Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:02 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
हमारे साथ ही एक हरफन मौला टाइप लड़का था लंबा सा लेकिन पतला, सभी प्रकार के नशे की लत थी उसे. उसको जब मेरे ध्यान के बारे में पता लगा तो वो मुझे चेलेंज करने लगा कि आप भांग-गांजे के नशे में भी ध्यान लगा सकें तब हम जानें कि आपका ध्यान पक्का है. 

वैसे तो मुझे किसी से कोई फ़र्क नही पड़ने वाला था कि कोई मेरे बारे में क्या सोचता है, पर कुछ बातें समय के हिसाब से या जो होना होता है..

मैने उसका चॅलेंज आक्सेप्ट कर लिया और उन चीज़ों का सेवन शुरू कर दिया, धीरे-2 मुझे नशे की आदत पड़ने लगी, लेकिन उससे मेरे ध्यान में कोई अंतर नही आया, उल्टा और गहरा होने लगा. 

लेकिन एक ग़लत लत लग चुकी थी जो अब आदत बनती जा रही थी. पर इतना ज़रूर सुनिश्चित रखा कि वो चीज़ें प्राकृतिक ही हों. 

ध्यान और ब्रह्मचर्य से मेरी ज्ञानइंद्रियों की क्षमता बढ़ती जा रही थी, ऐसा मुझे महसूस होने लगा, 

जब भी मे थोड़ा विचलित होता किसी भी कारण से तो मध्य रात्रि के बाद त्राटक ध्यान में बैठ जाता और मेरा आत्मबल लौटने लगता जिससे सारी मन की चंचलता मिट जाती और वैचैनि दूर हो जाती.

एक दिन मन किया कि चलो कुछ मनोरंजन कर लिया जाए, वैसे तो मेरा घर शहर की भीड़ भाड़ से दूर बाहरी इलाक़े में था, लेकिन कोई कार्यवश ही शहर जाना होता था, 

एक अच्छी परिवारिक मूवी लगी थी तो देखने का विचार हो गया, शायद एक या दो ही हॉल थे उस समय उस शहर में. 

मैं चॉक में जो सिनिमा हॉल था उसमें थी वो मूवी, मे टिकेट लेकर टाय्लेट की तरफ जा रहा था, तभी मेरे कानों में कुछ ऐसी आवाज़ें सुनाई दी जो असम्बेदन्शील थी, 

अब ये चाहो तो ज्ञानइंद्रियों की शक्ति बढ़ गयी हो या कुछ अनहोनी से बचाने का नियती का प्रायोजन कह लो,... 

मे उन आवाज़ों की तरफ गया तो चार व्यक्ति टाय्लेट के पीछे की साइड में खड़े बातें कर रहे थे.

मुझे सच में ये अचंभा हुआ कि कोई व्यक्ति इतनी दूर की आवाज़ें इतनी सुगमता से कैसे सुन सकता है..? लेकिन मैने सुन ली थी.

वो चारों कुछ बॉम्ब ब्लास्ट करने के बारे में बातें कर रहे थे.

उनकी बातें सुन कर मेरे तिर्पन काँप गये, कहीं ये इसी हॉल को उड़ाने की बात तो नही कर रहे..? हे ईश्वर अगर ऐसा हो गया तो पता नही कितनी जानें जाएँगी.

मैने बाहर आकर इधर-उधर नज़र दौड़ाई इस आशा में कि शायद कोई पोलीस वाला दिखाई दे जाए तो उससे इनफॉर्म कर दूं. लेकिन दुर्भगयवस कोई नही दिखा.

अब करूँ तो क्या करूँ..? सच पुछो तो बॉम्ब का नाम ही इतना घातक है कि सुनते ही रूह फ़ना हो जाए. मरता क्या ना करता वाली बात.. खुद ही कूदने का फ़ैसला ले लिया और उन लोगों की तरफ चल दिया.

जैसे ही उधर पहुँचा…! ये क्या..? ये साले नर्पिशाच कहाँ गायब हो गये.. ? अब क्या करूँ..? 

मे किन्कर्तव्य विमुड सा वहीं खड़ा रह गया...! फिर कुछ सोच कर कि यहाँ खड़े रहने से कुछ नही होगा मुझे कुछ तो करना होगा..? 

मे मुड़कर हॉल के एंट्रेन्स की तरफ बढ़ा दूसरे लोग एंटर होना शुरू हो गये थे पहले वाला शो छूटने के बाद.

अब मेरी बैचैनि बढ़ने लगी थी, अंदर जाउ या नही जाउ, समस्या ये थी कि अगर ये बात में किसी ऐरे-गैरे हॉल के कर्मचारी को बताता हूँ, उसने मेरी बात का भरोसा किया नही किया..? 

और ये भी कह सकता है कि में जानबूझकर किसी के कहने से हॉल को बदनाम करने या पब्लिसिटी स्टंट कर रहा हूँ तो खम्खा समय बर्बाद होगा और करने वाले अपना काम करके निकल चुके होंगे.. !

यही सब उधेड़बुन में मे खड़ा था कि तभी मेरी नज़र उनमें से दो लोगों पर पड़ी, वो हाथ में एक छोटा सा हॅंड बॅग लिए हॉल में एंटर कर रहे थे. 

मे फ़ौरन उनकी ओर लपका, लेकिन जब तक में उन तक पहुँच पता वो अंदर घुस चुके थे. 

उनपर नज़र बनाए हुए में भी अंदर बढ़ता चला गया. हॉल में रोशनी मामूली थी, लेकिन मेरी आँखें सॉफ-सॉफ उन्हें देखने में सक्षम थी.

वो मैं गॅलरी में ही थे कि मे लोगों से बचता बचाता उनके पास और पास होता जा रहा था. इससे पहले कि वो अपनी रो की तरफ मुड़ते मैने पीछे से लपक कर दोनो की गर्दन अपने दोनो हाथों की मजबूत पकड़ में लेली......

अब वो दोनो चाह कर भी अपनी -2 गर्दन पीछे घुमा नही सकते थे.

मेरे हाथों में ना जाने कहाँ से इतनी मजबूती आ गयी, मेरे शरीर की पूरी शक्ति जैसे मेरे हाथों में आ गई हो.

मैने अपने हाथों के जोरे से ही पीछे घूमने पर उन्हें मजबूर कर दिया और बाहर की ओर ले चला.

मैने अपनी दोनो बाहें उन दोनो के गले में लपेट दी और दोनो हाथों के अंगूठे सीधे खड़े करके उनके गले के कौए (तेंटुवे) की सीध में कर दिए और उनके कदम से कदम मिला कर चलते हुए उन दोनो के कानों में सर्द लहजे में फुसफुसाया- 

तुम लोग मेरे हाथों की पकड़ से ही समझ चुके होगे कि मे तुम लोगों का क्या हश्र कर सकता हूँ, इसलिए तुम्हारी भलाई इसी में हैं कि तुम चुपचाप मेरे साथ बाहर की ओर चलो. 

इस समय हम तीनों ऐसे चल रहे थे मानो तीन जिगरी चल रहे हों, जिनके कंधे पर मेरे हाथ रखे हों.

उनमें से एक बोला- तुम हो कॉन और हमें बाहर क्यों ले जाना चाहते हो..?

मे- मुझे पता है कि तुम यहाँ क्या करने वाले हो और इस बॅग में क्या है..? अगर मैने तुम्हें इस पब्लिक के हवाले कर दिया तो तुम लोग समझ सकते हो कि क्या हश्र होगा तुम्हारा, 

ये पब्लिक 50-50ग्राम बाँट के ले जाएँगे तुम दोनो की बॉडी को. और हां मेरे अंगूठे देख रहे हो..? ज़रा भी चालाकी दिखाने की कोशिश की तो विश्वास करो ये किसी चाकू से कम काम नही करेंगे, सेकेंड्स से पहले तुम्हारे तेंटुवे अंदर घुस चुके होंगे, इसलिए चुप-चाप चलते रहो… 
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12-19-2018, 02:02 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
उन्हें स्थिति का भान हो चुका था इसलिए वो चुप चाप मेरे साथ बाहर तक आ गये, देखने वाले यही समझ रहे थे कि दोस्त होंगे.

बाहर आकर मैने कहा- अब बताओ जैल जाना चाहोगे या अपनी जान बचना चाहोगे..? 

उनमें से एक बोला- देखो हमें छोड़ दो, वादा करते हैं अब हम ऐसा कुछ नही करेंगे और ये शहर अभी छोड़ कर चले जाएँगे.

मे भी तो यही कर रहा हूँ मैने कहा- लेकिन मुझे तुम लोगों पर भरोसा नही है, इसलिए खुद तुम लोगो के साथ शहर से बाहर तक चल कर छोड़ने जाउन्गा, ताकि तुम फिर कोई वारदात यहाँ ना करो… 

मैने उनसे अगला सवाल किया – तुम लोग यहाँ कैसे आए थे बोलो..

वो- अपनी बाइक से, मैने कहा कहाँ है चलो वहाँ तक, तो वो इसी पोज़िशन में मेरे साथ हॉल के पीछे खड़ी बाइक तक आए. 

ये एक याज़डी 250 मोटर साइकल थी, मैने अपनी पोज़िशन चेंज करके फिर से उनके पीछे से गले पकड़ कर दबा दिए और दोनो को आगे बिठाया बॅग के साथ और खुद सबसे पीछे बैठ गया. 

उसने बाइक स्टार्ट की और चल दिए शहर से बाहर जाने वाले रोड पर.
रास्ते में मैने उनसे पुछा- किस तरह का बॉम्ब है ये..?

वो- टाइमर वाला, 

मे- कितना टाइम सेट किया है..?

वो- एक घंटे का जिसमें से लगभग 40 मिनट निकल चुके हैं, हमारा प्लान था कि मूवी शुरू होने के 20-25 मिनट्स के बाद ही फटे, हम इससे अपने सीट के नीचे छोड़ कर आने वाले थे.

मे- जल्दी चलो हमें 15 मिनट में जंगल तक पहुँचना है. 

उस रोड पर एक बहुत ही घना जंगल है जो मैं सिटी से कोई 20किमी दूर है, जंगल इतना घना और ख़तरनाक है, कि 7 बजे के बाद उससे पब्लिक ट्रांसपोर्ट बंद कर दिया जाता है और सुबह के 6 बजे ही शुरू होता है.

इश्स समय सबा तीन बजे थे… शहर छोड़ते ही उसने बाइक की स्पीड बढ़ा दी क्योंकि अब उन्हें अपनी जान की भी परवाह होने लगी थी. 

आदमी कितना ही बड़ा राक्षस क्यों ना हो खुद की मौत से सबको डर लगता है, 

घने जंगल में पहुँचते ही मैने बाइक रोकने को कहा, और साइड में खड़ा करके जंगल के अंदर चलने को कहा, मैने फिर से उनके गले कब्ज़े में ले रखे थे, 

रोड से कोई 100 मीटर अंदर जाकर मैने अप्रत्याशित रूप से उन दोनो के सिर एक मोटे से पेड़ के तने पर दे मारे, उन दोनो के सर फट गये, और वो धडाम से वहीं गिर पड़े. 

उनके गिरते ही मैने फटाफट उनके कान के पीछे की नस जो नर्वस सिस्टम को कंट्रोल करती है दबा दी जिससे ये अश्यूर हो गया कि अब वो पलट कर मुझ पर अटॅक नही कर सकते.

मैने बॅग से बॉम्ब निकाला, उसकी एमर्जेन्सी लाइट ऑन हो चुकी थी, उसके सेट टाइम में अब मात्र चन्द सेकेंड्स ही बचे थे, फ़ौरन वो उन दोनो की बॉडी के बीच रखा और पूरी शक्ति से दौड़ लगा दी…..

अभी मे रोड तक पहुँच भी नही पाया था कि भडाम…. 

एक जबर्जस्त धमाका हुआ, उस धमाके की इंटेन्सिटी इतनी ज़्यादा थी कि 100 मीटर दूर पर भी मेरा शरीर हिल गया उसके झटके से मे उच्छल कर एक पेड़ से जा टकराया…

मेरी आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया और मे कुछ समय के लिए ही सही अपनी चेतना खो बैठा.

दो मिनट में ही मैने अपने आप को संभाला, ब्लास्ट की दिशा में देखा तो एक दो पेड़ भी उखड़ कर गिर गये थे, कुछ तो बीच से टूट ही गये थे. 

मैने आँखें बंद करके उपरवाले का धन्याबाद किया, अगर ये धमाका हॉल के अंदर हो जाता तो..? सोचकर ही मेरी रूह काँप गयी.

मे बाइक के पास आया, स्टार्ट की और शहर की ओर दौड़ा दी. 

15 मिनट बाद ही मैने वो बाइक वही खड़ी करदी और वहाँ से हट कर पास के रेस्टोरेंट में बैठ गया बाइक पर नज़र रखे हुए.

मूवी अभी ख़तम नही हुई थी, कोई 15 मिनट ही हुए होंगे कि वो दोनो जो उनके साथ टाय्लेट के पीछे बात-चीत करते देखे थे मैने, बाइक की तरफ आते दिखाई दिए. 

उन्होने इधर-उधर नज़र दौड़ाई कुछ देर. मे समझ गया कि वो अपने उन दोनो साथियों को देख रहे होंगे.

जब कुछ देर और उन्हें वो दोनो नही दिखे तो वो खड़ी बाइक की सीट पर ही बैठ गये और उनका इंतजार करने लगे.

मे लंबे-2 डॅग बढ़ा कर अचानक से उनके पीछे से प्रगट होकर बोला- अपने दोस्तों की राह देख रहे हो जो हॉल में बॉम्ब रखने वाले थे..?

वो एकदम चोन्के गये और मेरे मुँह की तरफ देखने लगे.

मे- क्या देख रहे हो..? उनका प्लान फैल हो गया…! शुक्र करो कि में टाइम पर पहुँच कर उनको सुरक्षित निकल लेगया वरना अभी तक तो तुम लोग भी पोलीस हिरासत में होते..!

एक – लेकिन तुम कॉन हो..? और तुमने उन दोनो को क्यों बचाया..?

मे- क्यों ! नही बचाना चाहिए था..?

दूसरा - नही..नही.. इसका कहने का मतलब है कि तुम्हारा क्या फ़ायदा इसमें जो तुमने ये सब किया हमारे लिए...?

मे- मेरा नाम सलीम है, मुझे इस शहर ही नही इस देश के क़ानून से ही नफ़रत है, जिसकी वजह से आज मे अनाथों जैसा जीवन जीने को मज़बूर हूँ. 

अभी तुम लोग बस इतना समझ लो, कि जो तुम करनेवाले थे उससे भी बड़ा धमाका होगा लेकिन बेकसूर लोगों की जानें लेकर नही, इस प्रशासन की नाक में नकेल डाल कर. आज ही हम कोतवाली को उड़ाएंगे.

तुम लोग मेरे साथ चलो, वो लोग पब्लिक की नज़र में आ चुके हैं, इसलिए मैने जहाँ उन्हें भेजा है वहाँ वो तुम लोगों का इंतजार कर रहे हैं, जल्दी करो हमारे पास समय नही है.

वो लोग मेरी बातों में फँस गये और उसी बाइक से फिर हम तीनों उसी जंगल में पहुँच गये, बाइक को किनारे खड़ी करके मैने उन्हें जंगल के अंदर चलने को कहा तो उनमें से एक बोला.

यहाँ जंगल में क्यों आए हैं वो लोग..?

मे - मैने उन्हें यहीं पर पहुँचने के लिए बोला था, चूँकि शहर में उन लोगों पर पोलीस को शक़ हो गया है.. 

अब जो भी प्लान तैयार करना है यहीं बैठ कर करेंगे.

उनमें से एक ने फिर पुछा- लेकिन वो लोग हैं कहाँ..?

मैने उस पहले वाली जगह से ऑपोसिट साइड में इशारा करके कहा- वो लोग इधर ही होंगे, हो सकता है थोड़ा अंदर जाकर बैठे होंगे.

जब हम जंगल के अंदर कोई 150 मीटर तक चले गये तो वो फिर से बोला- वो लोग तो कहीं दिखाई नही दे रहे ? कहीं तुम हमारे साथ कोई चाल तो नही चल रहे..?

मे- तुमने ठीक समझा…! तुम लोग मेरे जाल में फँस चुके हो और जल्दी ही तुम्हें भी उन दोनो के पास भेज दूँगा.

उनमें से एक ने फ़ौरन अपनी गन निकाल ली और मेरे उपर तान दी.., 

सेकेंड के सौवें हिस्से में मेरी छटी इंद्री जाग गयी, अब मेरी नज़र उसकी गन की नाल की पोज़िशन और उसके ट्रिग्गर पर टिकी थी.

वो गन लहराते हुए बोला- बता उन दोनो के साथ तूने क्या किया..?

मे- देख उधर धुआँ दिख रहा है..? मैने उधर इशारा करके कहा, तो फ़ौरन उन दोनो की नज़र उस दिशा में घूम गयी. 

वो दोनो उसी जगह पर अपने बॉम्ब के साथ उड़ चुके हैं, अबतक तो 72 हूरें उनकी सेवा में लग गयी होंगी.

उस गन वाले ने दाँत पीसते हुए कहा- काफ़िर की औलाद तूने हमारे प्लान को चौपट कर दिया और हमारे साथियों को ही उड़ा दिया, 

मे तुझे जिंदा नही छोड़ूँगा, ये कहते हुए उसने ट्रिग्गर दबा दिया.

मे माइक्रो ज़ेक्स में अपनी जगह से थोड़ा सा हट गया और साथ ही उसकी गन की नाल मेरे हाथ में थी, एक हाथ से उसकी गन वाले हाथ की कलाई थाम कर एक ज़ोर का झटका दिया,… 

नतीजा ! उसकी गन मेरे हाथ में आ चुकी थी, दूसरे वाले ने जैसे ही मुझ पर हमला करने की कोशिश कि, मेरी टाँग हवा में घूमी और वो औंधे मुँह पीछे को उलट गया.
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12-19-2018, 02:04 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
अब बाज़ी मेरे हाथ में थी, मैने फ़ौरन उसकी गन उसके आँखों के बीच माथे पर टिका दी और दबाब डालते हुए सर्द लहज़े में गुर्राया- 

बोल हराम्जादे, कॉन कॉन है इस सबके पीछे, और क्यों करना चाहते थे इतना बड़ा नरसंघार..?

वो कुछ नही बोला सिर्फ़ जलती आँखों से मुझे घूरता रहा.. तब तक दूसरा बंदा जो औंधे मुँह गिरा था, उठा और जान बचाकर भागने की कोशिश की, 

मैने फ़ौरन गन का रुख़ उसकी ओर किया और एक फाइयर कर दिया, गोली उसकी जाँघ चीरती हुई पार हो गयी और वो चीख मारते हुए वही गिर पड़ा. 

दर्द से बुरी तरह तड़प रहा था वो.

मैने फिर अपना निशाना उस गन वाले की ओर करके कहा- जल्दी बोल मेरे पास समय नही है.. 

वो बस घूरता ही रहा.. कि ढायं, मैने ट्रिग्गर दबा दिया और गोली उसके सर में होल बनाती हुई पीछे से निकल गयी..

सेकेंड के सौवे हिस्से में ही उसके प्राण पखेरू उड़ गये, और फटी आँखों से आसमान को देखता हुआ ज़मीन पर गिर पड़ा.

अब मैने उस घायल के पास जाकर उसे गले से पकड़ कर उठाया और जबर्जस्ती खड़ा करते हुए पुछा- 

अगर अपनी जान बचना चाहता है तो सब कुछ सच- सच बता दे. 

वादा करता हूँ तुझे जिंदा छोड़ दूँगा, वरना तू अपनी आँखों से देख ही चुका है, 

मुझे तुम जैसे देशद्रोहियों को मारने में कोई हिचकिचाहट नही होती.
वो जीने की चाह में तोते की तरह शुरू हो गया- 

मेरा नाम असलम है, मे अकेला ही इस शहर से इनके साथ हूँ. 

ये जो अभी-2 तुमने मारा है इसका नाम शमसुद्दीन था, रामपुर का रहने वाला है, 

जिन्हें बॉम्ब से उड़ा दिया है उनमें से एक पाकिस्तानी था और दूसरा दिल्ली से आया था.

ये लोग 4 दिन पहले यहाँ आए थे, शहर की रेकी की और इस सिनिमा हॉल को उड़ाने का प्लान फाइनल किया.

मे- क्यों उड़ाना चाहते थे इतने लोगों को..? और तुम इन लोगों का साथ क्यों दे रहे थे..?

वो- हम सभी जानते हैं कि पाकिस्तान इस देश से कितनी नफ़रत करता है, और उसके मंसूबों को अमलीजामा पहनाने में हमारे यहाँ के कुछ लोग भी साथ देते हैं. 

रामपुर की मस्जिद का मौलाना अतौल्ला-ख़ान है, उसके पाकिस्तान से सीधे संबंध हैं, चूँकि वो एक मौलबी है तो प्रशासन भी उसपर हाथ नही डालता.

उसी ने मेरे अब्बू को 50,000/- रुपये दिए और मुझे इसमें शामिल होना पड़ा, हमारे परिवार की माली हालत सही नही है, सो अब्बू लालच में आ गये. 

मे अपने घर का सबसे बड़ा हूँ जो अब्बू के साथ थोड़ा बहुत कमाता हूँ, वाकी 3 बहनें, 2 छोटे भाई सबका बोझ है उनके कंधों पर.

मे- साले हराम जादे, किसने कहा कि इतनी औलाद पैदा करो, जब नही चलता है तो..? 

तुम लोग साले, जिस देश में रह कर खाते हो उसी को नुकसान पहुँचाते हो. 

और क्या जानते हो इस बारे में…?

वो- इससे ज़्यादा और मुझे कुछ पता नही है मे सच कह रहा हूँ, अब मुझे जाने दो. 

तौबा करता हूँ आइन्दा ऐसा कोई काम नही करूँगा.

मे- तुम देशद्रोही हो, और मेरी डिक्षनरी में देशद्रोहियों के लिए एक ही सज़ा है, और वो है मौत….

ढायं…एक गोली और चली, जो उसका भेजा चीरती हुई पार हो गयी…..!

दूसरे दिन के न्यूज़ पेपर में फ्रंट पेज की हेड लाइन्स … - **** के जंगलों में बॉम्ब ब्लास्ट, दो मानव शरीरों के अंग ब्लास्ट स्थल पर छत-बीक्षत अवस्था में पड़े पाए गये. 

घटना स्थल के दूसरी तरफ किसी ने दो लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी है, जिसमें एक इसी शहर का है नाम है असलम, 

उसके घरवालों से पोलीस पुच्छ-ताछ कर रही है.

पुच्छ-ताछ से अभी तक कोई नतीज़ा नही निकाला है, मकतूल के परिवार का कहना है, कि उनका लड़का कल दोपहर से लापता था. 

आशंका जताई जा रही है कि ये कोई बहुत बड़ी आतंकी शाज़िश थी, जिसे हो सकता है असलम और उसके दोस्त ने असफल करने की कोशिश की और अपनी जान गँवादी. 

पोलीस तहकीकात में लगी है, और सिटी एसपी ने अस्वस्थ किया है कि जल्द ही इस मामले को सुलझा लिया जाएगा. उधर मृतक परिवार शोक संतप्त है.

खबर पढ़ कर मेरे होठों पर मुस्कान आ गई, अपने ऑफीस में बैठा मे सोच रहा था कि देखो, ये पोलीस और मीडीया मिलकर लोगों को किस हद तक बेवकूफ़ बना सकते हैं, 

जिस बात का दूर-2 तक कोई नाता नही है उसे लोगों तक परोस देते हैं, और लोगों का क्या..? 

वो तो बस खबर पढ़ी, पेपर से गान्ड पोंच्छ कर कचरे के डिब्बे में डाला, फिर लग गये अपने रोजमर्रा के कामों में.

पूरे दिन मे अपने ऑफीस के कामों में लगा रहा, शाम को ऑफीस से सीधा कमरे पर आया, 

फ्रेश होकर स्कूटर उठाया और चल दिया शहर की ओर.. मेरे पास एक सेकेंड हॅंड बजाज सुपर स्कूटर था जो मैने यही आकर लिया था. 

होटेल में खाना खाया और घुस गया एक टेलिफोन बूथ में. एसपी का नंबर मिलाया… 

एक बार रिंग बजती रही, किसी ने फोन नही उठाया, दोबारा ट्राइ किया तो 3-4 रिंग बजने के बाद ही उधर से फोन उठा लिया.. 

हेलो… कॉन..? 

मे- क्या मे एसपी साब से बात कर सकता हूँ..?

एसपी- मे सिटी एसपी नारंग बोल रहा हूँ..! आप कॉन बोल रहे हैं..?

मे- नाम में क्या रखा है एसपी साब आपको तो काम से मतलब होना चाहिए…! 

एसपी- क्या कहना चाहते हो..?

मे- वाह एसपी साब ! क्या कहानी बनाई है आपने मीडीया से मिलकर, एक देशद्रोही को हीरो बना दिया और उसे शहीद का दर्ज़ा भी देदिया..!

एसपी- क्या मतलब..?

मे- असलम आतंकवादी था.. ! सच्चाई जानना चाहते हो तो उसके बाप को पकडो… सब उगल देगा.. 

थोड़ा ढंग से सेवा होगी तो, वैसे तो ये काम भी मे ही करने वाला था, पर आपकी खबर पढ़ कर इरादा बदल दिया..

एसपी- इसका मतलब..वो सब….???

मे- सही सोचा रहे हैं आप..! 

एसपी- लेकिन अपना परिचय तो दो..! 

मे - एक देशभक्त का कोई पर्सनल परिचय नही होता, पूरा देश उसका घर है, आप बस अपना काम करिए… और मे अपना… 

जल्दी ही आपको और भी खबर मिलने वाली हैं… और इतना बोलकर फोन कट कर दिया..
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12-19-2018, 02:04 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
दूसरे दिन की न्यूज़ एकदम उलट थी, जिसमें असलम और उसके परिवार को देशद्रोही बताया गया था, उसके बाप ने मौलाना का नाम छोड़कर सब कुछ कबूल कर लिया था, 

लोग खबर पढ़ कर सन्न रह गये, कि किस तरह से एक बड़ी दुर्घटना होने से बच गयी, पर कैसे बची ये किसी को कुछ पता नही था.

पोलीस की सरगर्मियां तेज हो गयी थी, इसके लिए नही की एक आतंकवादी घटना होने से बच गयी, 

बल्कि इसलिए कि इसे बचाने वाला कॉन है ? क्योंकि मीडीया बार-2 ये सवाल उठा रहा था, कि आख़िर ये हुआ कैसे, कॉन है वो देशभक्त जिसने ये सब किया.

उधर पाकिस्तान में बैठे मौलान के आका, बौखलाए हुए थे, और वो उसपर दबाब डाल रहे थे कि ये हुआ तो कैसे हुआ और किसने किया..? जो अभीतक खुद पोलीस की समझ से भी परे था. 

मे मौलाना को जानता नही था, लेकिन जानना तो था, और जब तक वो यहाँ सक्रिय है, कोई ना कोई देश विरोधी गतिविधि फिर से ज़रूर करेगा जिससे वो अपने आकाओं को पुनः विषवास में ले सके.

रामपुर मेरे शहर से 60-65 किमी दूर था, एक सनडे सुबह-2 स्कूटर उठाया और चल दिया उस मौलाना से मिलने.

जब में उस मस्जिद में पहुँचा तो वहाँ दोपहर की नमाज़ चल रही थी, 50-60 की संख्या में लोग कतारबद्ध नमाज़ अता कर रहे थे, 

सब लोगों के सामने एक व्यक्ति कोई 50-55 साल का खिचड़ी लंबी दाढ़ी सफेद ट्रडीशनल कपड़ों में, अलग थलग नमाज़ आता कर रहा था. 

मे समझ गया यही मौलाना होगा.

मे बाहर खड़ा होकर नमाज़ ख़तम होने का इंतजार करने लगा, क्योंकि अपने को तो ये सब आती नही थी, उस समय मैने भी ऐसे कपड़े पहन रखे थे सर पर एक सफेद रुमाल बाँध लिया, 

अब पहली नज़र में कोई ये नही कह सकता था कि मे इन लोगों में से नही हूँ.

नमाज़ ख़तम हुई, उसके बाद मौलाना ने कुछ उर्दू में अच्छी-2 बातें की लोगों के साथ, 

मे मन ही मन उसको गाली देता हुआ सोच रहा था कि देखो साला कितना बड़ा नौटंकीबाज़ है ये, 

अभी कितनी अच्छी-2 बातें कर रहा है, और साले के काम देखो. 

अगर इन लोगों को इसकी असलियत पता लग जाए तो क्या हश्र होगा इसका ? अल्लाह ही जाने.

धीरे-2 सब लोग जाने लगे, जब सब लोग निकल गये तो मे अंदर आया और मौलाना को सलाम बलेकुम कहा.

मौलाना ने भी जबाब में बेलेकम अस्सलाम कहा और घूम कर मेरी ओर देखते हुए बोला - तुम कॉन हो बर्खुरदार..? और यहाँ क्यों खड़े हो..? गये क्यों नही अभी तक..?

मे- जनाब मौलाना साब, अभी-2 आपका कुछ सबक सुना, दिल को अच्छा लगा, कि अपने मौलाना माल्वी इंशनियत के बारे में कितना अच्छा सोचते हैं, 

अगर ऐसा हक़ीक़त में हो तो हमारी ये सर-ज़मीन कितनी हसीन हो जाए..क्यों मौलवी साब.. सही कह रहा हूँ ना मे..? 

वो कुछ चोन्कन्ने भाव लाकर बोला - हां ये तो तुम सही कह रहे हो मियाँ, और हमारी कोशिश भी रहती है कि इस बाबत अमल भी हो.

मे- तो फिर अभी अभी ****** शहर में जो वाकीया हुआ वो क्या था..?

मौलाना - क्या फर्मा रहे हो मियाँ..? हमारा उस वाकीयत से क्या ताल्लुक ?

मे- लेकिन नूर मुहम्मद. का कहना है कि उसे आपने 50000/- दिए थे इस काम की मदद के एवज में..!

मौलाना- अब्बल तो वो ऐसा बोल नही सकता,… और तुम कॉन हो ? और किस हसियत से ये सब मालूमात कर रहे हो..?

मे- इससे क्या फ़र्क पड़ता है मौलवी साब की मे कॉन हूँ..? फराक इससे पड़ता है कि इस देश के एक मज़हावी इमारत का रहनुमा जिसके उपर एक समाज के आत्म सम्मान का जिम्मा है, 

वो दुश्मन देश से मिलकर इस देश को नुकसान पहुचाना चाहता है..!

मौलवी – ये सरासर बेबुनियादी और बेहूदा इल्ज़ाम है हमपर, हम अभी लोगों को बुलाकर उन्हें बतायेंगे कि किस तरह ये आदमी हमें और हमारे मज़हब को बदनाम करना चाहता है.

मे- शौक से बुलाइए ! जब उन्हें आपकी सच्चाई पता लगेगी जिसका मेरे पास पुख़्ता सबूत हैं, सोचिए आपका क्या हश्र होगा..?

मौलाना के हाथ पैर फूल गये.. वो बगलें झाँकने लगा. जब उसे बचने का कोई रास्ता नज़र नही आया तो वो मुझे अंदर ले जाने लगा..

मे - भूल जाओ मौलाना कि तुम मेरा कुछ बिगाड़ सकते हो !

मे ही वो इंसान हूँ जिसने तुमहरे मंसूबों को मॅटीया मेट कर दिया और अब तुम्हारा अंत निकट है, 

याद कर्लो अपने खुदा को और माफी मांगलो अपने गुनाहों की जो तुमने उसकी इबादत की आड़ में किए हैं.

मौलाना - तुम अभी बच्चे हो मेरे सामने, और कहते ही ना जाने कहाँ से उसके हाथ में रेवोल्वेर नज़र आने लगी जिसका रुख़ मेरी ओर ही था. 

वो आगे बोला- मे इतने दिनो से सोच-2 के परेशान था कि आख़िर ये सब किसने किया होगा, खुदा ने घर बैठे ही तुम्हें मेरी झोली में डाल दिया.

मे - अबे हरामजादे अभी भी खुदा का ही नाम लेगा ? कुछ तो डर उससे..? 

और रही बात मुझे ख़तम करने की तो कोशिश करके देख ले, अगर तू कामयाब हुआ तो कुछ दिन और जी लेगा. 

चल निकाल ले अपने अरमान, करले कोशिश….,

उसने आव ना देखा ताव और गोली चला दी मेरे उपर.. संग आर्ट का तो मे माहिर था, झुकाई देकर उसके बार को निष्फल ही नही किया, साथ ही उसके रेवोल्वेर वाले हाथ पर के जबर्जस्त किक मार दी.

ऱेवोल्वेर छिटक कर उसके हाथ से दूर जा गिरी, मे उसके सामने खड़ा मुस्करा रहा था.. जिसने उसके गुस्से में घी का काम किया, 

और उसने मेरे उपर जंप लगा दी, मे साइड में हट गया और वो अपनी ही झोंक में फर्से पर औंधे मुँह गिरा.

मैने उसकी पीठ पर जूते की एक भरपूर ठोकर लगाई, उसकी पसलियां चटख गयी, 
वो चीख मार कर पलट गया, जैसे ही पलटा, एक और जोरदार किक उसके बगल में पड़ी, 

फिर तो मैने उससे अपने जूते की नोक पर रख लिया, मस्जिद में उसकी चीखें गूज़्ने लगी, 

ये मस्जिद का अन्द्रुनि हिस्सा होने की वजह से कोई भी आवाज़ बाहर जाने का कोई सवाल ही नही था.

पीटते पीटते मौलाना बेहोश हो गया फिर मैने एक नोट लिख कर उसके सीने पर चिपकाया कि ये देशद्रोही है, 

इसका सबूत ***** पोलीस की हिरासत में मजूद नूर मुहम्मद नाम का व्यक्ति है, जो इसकी सच्चाई जानता है. 

और उसके माथे पर सुराख बना कर शांति पूर्वक मे वहाँ से निकल आया.
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12-19-2018, 02:04 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
शाम की नमाज़ के वक़्त जब लोग मस्जिद में इकट्ठा हुए, तो उन्होने वहाँ मुल्ला को मरे हुए पाया, 

लोगों ने पोलीस को खबर कर दी, पोलीस ने आकर वो नोट बरामद किया. 

आनन फानन में हवालात में बंद, नूर मुहम्मद को फिर से इंटेरगेट किया गया, 
शुरू में तो वो घुमाता रहा, जब 3र्ड डिग्री इस्तेमाल किया तो सब बक दिया.

सारी हक़ीक़त लोगों के सामने आ गयी, और एक आतंकवादी साज़िश, जो पाकिस्तान द्वारा रची गयी थी, फैल हो गयी थी, 

जब डिप्लोमॅटिक तौर पर पाकिस्तान से पुछा गया तो वो सॉफ मुकर गया, अब कोई सबूत तो था नही. 

पोलीस अंजाने देशभक्त की तलाश करती रही, लेकिन ना कुछ हाथ आनेवाला था सो नही आया.

इस घटना को बीते महीनो गुजर गये, मे अपने काम और ध्यान में डूब गया. 

तभी एक दिन ब्रिज बिहारी भैया, जो एक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं, और ये यूनिवर्सिटी मेरे प्रेज़ेंट शहर से मात्र 25किमी दूर है, 

आ धम्के मेरे ऑफीस में और मुझे अगले सनडे यूनिवर्सिटी में स्थित उनके आवास पर आने का बोल कर चले गये.

अब सगे भाई हैं, क्या काम है ? देखना तो पड़ेगा ही सो अगले सनडे ले स्कूटर पहुँच गया उनके घर.

वहाँ जाकर पता लगा कि मेरी शादी की बात चल रही हैं, उनके ही स्टाफ के एक सज्जन की मामा की लड़की के साथ,

बीए बीएड करके किसी स्कूल में टीचर थी, मैने सोचा तो अब मुझे किसी मास्टरनी के गले बाँधने की कोशिश चल रही है यहाँ तो.

मैने कसम खाई थी रिंकी की मौत के बाद, कि मे अब भविष्य मे किसी और से शादी नही करूँगा, 

लेकिन ये बात मेरे घर में किसी को पता नही थी, और ना ही बता सकता था. अब इनको डाइरेक्ट मना तो नही कर सकता, तो अब क्या करूँ….?

तभी मेरे दिमाग़ में आइडिया आया, पक्का ये ऐसी फॅमिली है जो अपनी बेटी का भविष्य किसी सुरक्षित हाथों देना चाहते हैं, 

इन्हें मे नही एक रोज़गारी इंजिनियर दिखाई दे रहा है. अगर मे ये जॉब छोड़ के घर बैठ जाउ तो… तो शायद ये लोग पीछे हट जाएँगे.

पर सीधे-2 कैसे छोड़ूं.. इसी उधेड़ बुन में कुछ दिन और गुजर गये, लड़की वाले रोज़ खबर भेजें कि लड़की देखने कब आ रहे हो.

तभी बिल्ली के भाग छीन्का टूट गया- ---

इनक्रीमेंट का टाइम था, मेरी इतनी अच्छी पर्फॉर्मनॅन्स के बाद भी मुझे दूसरे लोगों से कम इनक्रीमेंट दिया मॅनेज्मेंट ने, 

बस फिर क्या था, भिड़ गया अपने बॉस से, वो बेचारा वैसे भी सीधा-सदा आदमी था, उसने मुझे एमडी के सामने खड़ा कर दिया, 

एमडी पिन्नकी था, चिड गया मेरी बात पर, मैने वहीं बैठे-2 रेसिग्नेशन लिखा और मार दिया उसके मुँह पर.

दूसरे दिन हिसाब लिया और आ गया अपने गाँव सब झोला डंडा टाँग कर.

घर में सभी लोग एकदम से इस तरह आया देखकर अचंभित रह गये, कारण पता लगा तो सब मुझे भला बुरा कहने लगे, 

कोई मुझे बेवकूफ़, तो कोई मुझे पागल समझ रहा था. पर में चुप-चाप अपने खेती-वाडी के कामों में लग गया. 

श्याम भाई को बोल दिया कि अब में किसी की नौकरी नही करूँगा.

लंबी चौड़ी खेती वाडी थी, आदमी की ज़रूरत तो रहती ही है, लेकिन घर की परंपरा, प्रतिष्ठा तो नौकरी को ही वॅल्यू देती थी, 

भले वो चाहे किसी की गुलामी करना ही क्यों ना हो.

मैने अपने को काम में व्यस्त कर लिया, ध्यान की क्रिया लगातार जारी ही थी लेकिन साथ-2 में अब थोड़ा बहुत नशे की लत भी लग गयी थी जो केवल भांग और गांजे तक ही सीमित थी. 

मे ज़्यादातर अपने ट्यूबिवेल पर ही रहता था, कभी-2 अपनी माता राम के दर्शन करने आजाया करता था.

गाँव के कुछ हम उम्र लड़के मेरे भक्त बन गये, जो कि इस तरह के नशे का इस्तेमाल पहले से ही करते थे, 

मेरी वजह से उनकी नशे की क्वालिटी सुधर गयी थी, जैसे कि जहाँ वो पहले सुखी भांग पीस-2 कर खाते थे वहीं मे उन्हें मेवा युक्त और दूध वाली मलाई दार माल खाने को देता. 

बदले में वो मेरी सेवा करते, मेरा काम करते. बस ऐसे ही मज़े में दिन व्यतीत हो रहे थे.

कभी-2 कुछ साधु संत भी आने-जाने लगे मेरे पास, वो मेरे ईश्वरीय गायन से प्रभावित हुए बिना नही रह पाते थे. 

मेरा गायन केवल किताबी नही था, मैने ये सब प्रॅक्टिकल करके अर्जित किया था.

“सदा दिन रहत ना एक समान” ……, घर परिवार के कुछ पुराने झगड़े और कुछ नये दुश्मन इकट्ठे हो रहे थे जिसका भान हमें नही हुआ था, 

और एक दिन ऐसी घटना घटित हो गयी जिसकी कल्पना हम में से किसी ने नही की थी.
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12-19-2018, 02:04 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
सर्दियाँ शुरू हो रही थी, मे अपने ट्यूब वेल पर ही सोता था 24 घंटे में ब मुश्किल 2-3 घंटे के लिए ही गाँव आता था.

एक रात पड़ोसी के खेतों में ट्यूब वेल का पानी चल रहा था, में कुछ नशे की वजह से गहरी नींद में सोया हुआ था. 

घनघोर अंधेरी रात थी, वो बंदा जिसके यहाँ पानी चल रहा था, भागता हुआ आया और मुझे झकझोर कर जगाया…

अरुण भैया… उठो… मे हड़बड़ा कर उठा और पुछा कि क्या हुआ..? क्यों इतना हड़बड़ाया हुआ है..?

वो बोला- सुनो देखो गाँव की ओर से लगातार फाइरिंग की आवाज़ें आ रही हैं.. लगता है किसी के यहाँ डकैती पड़ रही है. 

मे अब नींद से पूरी तरह बाहर आ चुका था, मैने उसे पुछा कि ये कब से आ रही हैं तो वो बोला कि कोई 10 मिनट तो हो गये होंगे.

जब ध्यान दिया तो…! ओ तेरी की !! ये तो हमारे ही छोर की तरफ से आरहि थी, मैने उससे कहा कि तू यहीं रुक मे देखता हूँ, तो वो बोला, 

भैया अब मे यहाँ अकेला नही रह पाउन्गा, मे भी तुम्हारे साथ चलता हूँ, मैने कहा ठीक है चल फिर.

मैने अपना समान निकाला (खुकारी और रेवोल्वेर) जो उसको भी नही पता था कि मेरे पास ये समान भी हो सकता है. 

सब कुछ अच्छी तरह से बेल्ट में लगाया और बिना देर किए दौड़ पड़े घर की ओर.

जैसे-2 हम गाँव के नज़दीक आते जा रहे थे, तस्वीर सॉफ होती जेया रही थी, और एक फरलॉंग पहले ही ये क्लियर हो गया की डाकू मेरे ही घर में हैं.

हमारे घर के पिछे वाले हिस्से में एक सेकेंड फ्लोर भूरे लाल ने बना रखा था, 

एक डाकू उसके ही उपर था, जिसके पास एक राइफल थी और एक बंदा उसके नीचे वाली छत पर टॉर्च लेकर इधर से उधर चक्कर लगा रहा था ये सुनिसचीत करने कि कोई आ ना जाए.

हमारे घर से सटा हुआ पड़ोसी का कच्चा मिट्टी का बड़ा सा मकान था, जिसका पिछला हिस्सा गिर चुका था और उसकी मिट्टी से उस हिस्से का प्लॅटफार्म दूसरे लेवेल से करीब 4-5 फीट उँचा था, 

कई बार हम वहाँ से अपनी छत पर चढ़ जाते थे, ये बात हमारे अलावा और किसी को पता नही थी.

राइफल वाले और टॉर्च वाले डाकू का अटेन्षन सामने की ओर ही था क्योंकि हमारा घर गाँव में लास्ट में है, 

गाँव मोहल्ले और आस-पास के लोग जिनके पास असलह थे वो चला रहे थे, जिनके जबाब में वो डाकू जबाबी फाइयर करता.

हम दोनो गाँव के बाहर एक मंदिर है भोले नाथ का, उसकी आड़ में खड़े हो गये. 

मैने उस लड़के को घूम कर आगे जाने को बोला कि जहाँ सब लोग हैं वहाँ चला जा, और किसी को अभी बताना कुछ मत.

वो बोला- तुम यहाँ पर रह कर क्या करने वाले हो..? तो मैने कहा ! अभी कुछ कह नही सकता… पर कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा.

मुझे यहाँ से अभी तक इतना ही पता लग पाया था, 

अंदर कॉन क्या कर रहा है ? कितने आदमी हैं ? कुछ पता नही था. 

मैने अपना टारगेट, उपर खड़े राइफल वेल को चुना उसके बाद आगे का पता लगेगा क्या सिचुयेशन बनती है.

वो लड़का जब वहाँ से चला गया, तो मे दबे पाँव घर के पीछे आ गया और उस कच्चे मिट्टी के मकान के पिछले हिस्से के उँचे प्लेट फार्म पर जाके दीवार से चिपक कर स्थिति का निरीक्षण किया, 

अंधेरा उनको मदद कर रहा था तो मुझे ज़्यादा कर रहा था.

जब मैने पाया कि इन दो के अलावा इस हिस्से में और कोई नही है, और इन दोनो का अटेन्षन भी आगे की ओर ही है,

मे जिस तरह से बचपन से चढ़ते आरहे थे छत पर उसी तरह से आसानी से चढ़ गया. 

अब ये देखना था, कि वो टॉर्च वाला टॉर्च का फोकस इधर ना कर्दे. 

दम साधे मे थोड़ी देर सेकेंड फ्लोर वाले कमरे की दीवार से चिपका खड़ा रहा, 
जब देखा कि वो टॉर्च वाला दूसरे छोर पर राउंड लगाने गया है, 

मौका देख कर मैने अपनी साँस रोक के खड़े- 2 जंप लगाई और उच्छल कर एक ही प्रयास में मैने सेकेंड फ्लोर की छत के किनारे को पकड़ लिया.

मैने अपने दोनो बाजुओं के ज़ोर से खुद को उपर उठाया, मेरा लक अच्छा था या उस राइफल वाले का खराब, 

वो अगले सिरे पर ही खड़ा फाइरिंग कर रहा था. 

बंदर की तरह उच्छल कर मे छत पर पहुँच गया, कमर से खुकारी निकाली और बैठे-2 ही दम साढ़े उसके पीछे से उसकी ओर बढ़ता गया, 

जैसे ही मे उससे दो कदम के फ़ासले पर पहुँचा, एकदम गॉरिला की तरह जंप लगा कर में उसके उपर झपटा. 

मैने एक साथ दो काम किए एक उसके मुँह पर अपने हाथ का ढक्कन लगाया, दूसरे में लगी खुकरि से उसका गला रैत दिया.

उसके मुँह से आवाज़ भी नही निकल पाई और वो दूसरी दुनिया की सैर पर चला गया……
अब उसकी राइफल भी मेरे कब्ज़े में आ चुकी थी, तो सबसे पहले उस टॉर्च वाले को ही उड़ा दिया. 

फाइरिंग तो समय-2 पर चल ही रही थी, किसी को पता ही नही चला कि हो क्या गया.
अब छत के इस पोर्षन पर मेरे सामने कोई नही था, अब में सब कुछ देख लेना चाहता था.

अब सबसे पहले पता करना था, कि कितने लोग कहाँ-2 हैं, किस पोज़िशन में क्या-2 कर रहे हैं ?

उसके सामने वाले पोर्षन में प्रेम चन्द भाई का दो मंज़िला था, उनकी सारी फॅमिली उपर ही सोती थी. 

उनके बरामदे में मे यहाँ से सब कुछ देख सकता था, लेकिन धुप्प अंधेरे के कारण कुछ भी ठीक से नही देख पाया…

फिर भी अंधेरे में काफ़ी देर रहने की वजह से इतना अनुमान लग गया क़ी वरांडे में तीन लोग खड़े दिख रहे थे. 
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12-19-2018, 02:04 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
पीछे से जाकर छजली से होते हुए उनके बरामदे में जाया जा सकता था लेकिन वो भी नॉर्मल कंडीशन में जब वहाँ कोई ख़तरा ना हो तब.

लेकिन वहाँ तो तीन-2 यमदूत खड़े थे, सबके हाथ में कुछ ना कुछ तो होना ही चाहिए. 

छजली 3 फुट उँची थी जो कामन आँगन के चारों ओर बनी हुई थी, मे छजली की आड़ लिए हुए उनके बरामदे के कोने तक पहुँच गया. 

अपने मुँह को मैने कपड़े से ढँक लिया था. बरामदे वाले बदमाशों का ध्यान कमरों में हो रही लूट-पाट और औरतों के साथ मार-पीट की ओर था, 

मैने मौके का फ़ायदा उठाया और फुर्ती से छजली क्रॉस करता हुआ बरामदे में पहुँच गया. 

पहुँच ही नही गया सेकेंड में ही दो के गले भी रेत दिए खुकारी से, 

तीसरे को लपकने ही वाला था कि वो पलटा और मेरी खुकारी उसके पेट में. 

चीखना चाहता था वो कि तभी मेरा हाथ उसके मुँह पर ढक्कन की तरह जम गया.

उधर जब उपर से काफ़ी देर तक फाइरिंग की आवाज़ें नही आई तो बदमाशों और गाँव वालों को भी कुछ संशय होने लगा और वो ख़ुसर-पुशर करने लगे. 

घर के सारे मर्द आगे वाले पोर्षन में ही सोते थे सो वो सब बाहर निकल कर भाग गये थे, 

और चौक में खुले में वाकई मोहल्ले के लोगों के साथ खड़े खड़े बस बदमाशों के चले जाने का इंतजार कर रहे थे…

और इसके अलावा वो कर भी क्या सकते थे…घर में सिर्फ़ औरतें ही रह गयी थी.

अब मेरा ध्यान कमरों में हो रही मार-पीट और मेरी भाभी-भतीजियों के साथ छेड़-छाड़ कर रहे बदमाशों पर गया, 

सामने वाले कमरे में मेरी वृद्ध चाची और मंझले चचेरे भाई की बेटी थी, उनको चार-2 बदमाश मार-पीट कर रहे थे, 

जवान हो रही भतीजी के कपड़े फाड़ डाले थे.

मेरा गुस्सा सातवे आसमान पर पहुँच गया, घुसते ही एक की पीठ में खुकारी घोंप दी दूसरे का गला पकड़ कर ज़मीन पर पटका, 

अप्रत्याशित हुए हमले ने उनके पैर उखाड़ दिए और वो दो बचे हुए बदमाश भाग खड़े हुए, 

अभी छजली कूद कर पीछे की साइड कूदने ही वाले थे के मैने रेवोल्वेर निकाल कर उन पर फाइयर कर दिया. 

गोली किसके कहाँ लगी पता नही पर वो छत से पीछे की तरफ खेतों में कूद गये. 

अब मे दूसरे वाले कमरे की ओर गया उसमें भाभी और उनकी बेटी थी जिसकी सगाई करने जाने वाले थे अगले हफ्ते, दोनो के कपड़े फटे हुए थे.

मे अभी उस कमरे में घुसने वाला ही था कि अपने इतने नज़दीक से हुए फाइयर की वजह से वो चोन्कन्ने हो गये और उन्हें छोड़ कर निकल भागने लगे, 

मे गेट पर ही खड़ा था, जो सामने आया पेलता गया एक-दो गिरते पड़ते निकल भागने में सफल हो गये.

उपर का सफ़ाया करने के बाद मे बरामदे से उतरने वाले जीने से नीचे आँगन में आया तो वहाँ आँगन में भी दो और मिल गये. 

उनको पहले तो पता ही नही चला कि मे कॉन हूँ, जब तक समझते एक को ठोक दिया, दूसरा भागने वाला था कि उसको पीछे से गोली मार दी, जो उसके पीठ में घुस गयी शायद और वो रंभाता हुआ वही गिर पड़ा, 

आँगन से होते हुए अपने घर के गेट से अंदर दाखिल हुआ तो वहाँ भी साले 4-4, मेरी बूढ़ी मा और बेहन के साथ मार-पीट कर रहे थे और माल-पानी कहाँ छुपा रखा है ऐसा पुच्छ रहे थे.

मेरी माँ का एक हाथ तोड़ दिया था उन लोगों ने वो बेचारी दर्द से कराह रही थी, 

मेरी बेहन के मुँह से भी खून बह रहा था, मेरा गुस्से के मारे बुरा हाल हो रहा था, कपड़े खून से लथपथ थे, 

मुँह कपड़े से ढका होने के कारण पहले तो वो लोग अपना ही कोई साथी समझे मुझे लेकिन जैसे ही उनमें से मैने एक की आंतड़िया निकाली, वो मेरे उपर झपटे, एक को रास्ते में ही टपका दिया और दो भाग लिए.


मे उनके पीछे- 2 भागा और जैसे ही मैन गेट से निकल कर बाहर की गॅलरी मे आया वहाँ और दो पहरा दे रहे थे उन चारों को ललकारता हुआ मे उनके पीछे-2 भागा, 

भागते ही एक फाइयर और कर दिया, गोली एक बदमाश की पीठ में घुस गयी. 

लेकिन मेरी आवाज़ पहचान कर बाहर खड़े लोगों ने भी गॅलरी की तरफ भागना शुरू कर दिया और तीन बचे बदमाशों में से एक को पकड़ लिया, दो भाग गये, 

मे उन लोगों के पास पहुँचा और जाते ही उस पकड़े हुए बदमदश के पेट को भी फाड़ डाला.

मेरे सारे कपड़े बदमशों के खून से लथपथ हो चुके थे, मुँह पर कपड़ा देख कर मेरे घरवाले और गाँव वाले भी डर गये. 

चूँकि मैने जाते ही उस बदमाश को मार डाला था इसलिए वो कुछ आस्वस्त हुए और चोंक कर मेरी ओर देखने लगे. 

जब मैने अपने मुँह का कपड़ा हटाया तो सब की चीख निकल पड़ी.

प्रेम भाई- अरुण ! तू ठीक तो है ? इधर कहाँ से आया..?

मे ठीक हूँ.. अंदर सब बदमाश मरे पड़े हैं, और कुछ भाग गये..मैने कहा तो सब आश्चर्यचकित हो मुझे देखते ही रह गये.. फिर सब अंदर भाग कर गये..

आँगन से ही लाशों की शुरुआत हो गयी.. माँ और बेहन अभी भी थर-थर काँप रही थी, 
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12-19-2018, 02:05 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
हम लोगों की आवाज़ सुनकर उपर से वो चारों भी नीचे आ गयी ये अच्छा किया कि उन्होने अपने फटे हुए कपड़े चेंज कर लिए थे अब तक.

भाभी बोली उपर डर लग रहा है, चारों ओर लाशें ही लाशें बिछि पड़ी हैं. मुझे देखते ही उन्होने मुझे अपने गले से लगा लिया इस बात की बिना परवाह किए कि मेरे कपड़े खून से सने हुए थे. 

तुमने हम सब को बचा लिया अरुण… लेकिन फिर कांपति हुई विशमय के साथ बोली- ये सब तुमने अकेले ही किया है..?

हां भाभी ये सब मैने अकेले ही किया है, और कोई था भी तो नही मेरे साथ जिससे मदद माँग सकता..? 

फिर मैने सबको क्या-2 कैसे-2 हुआ सब बताया तो सबकी आँखें फटी रह गयी और सबने मुझे एक साथ भींच लिया.

अरे अब तुम लोग मिलकर मार डालोगे क्या..? मेरा दम घुट रहा है तो सबने झेन्पते हुए मुझे छोड़ा, और सबके चेहरे पर मुस्कान आ गयी.

उधर गाँव का चौकीदार डकैती की खबर सुनते ही थाने की ओर दौड़ा था.. 

गाँव में उस वक़्त टेलिफोन की सुविधा नही थी, और जो चौकीदार था उसके बेचारे के पास साइकल वग़ैरह भी नही थी, सो पैदल ही 3 किमी तक भागता गया तब जाके थाने में इत्तला दी. 

उसके बावजूद भी पोलीस 3 घंटे के बाद पहुँची गाँव में. 

लोगों ने आते ही इनस्पेक्टर को लपक लिया, तो वो खीँसें निपोर कर अपनी राम कहानी सुनाने लगा. 

जब उसने अंदर के हालत देखे तो उनकी आँखें फटी रह गयी, अब वो उल्टे सीधे सवाल करने लगा कि ये कत्ल किसने किए हैं, कैसे किए हैं वग़ैरह-2.

मे- ओये इनस्पेक्टर ! अकल घास चरने गयी है क्या तेरी...? ये तुझे कत्ल दिखाई दे रहे हैं..? 

इंस्पेक्टर- ये लड़का कॉन है..? 

प्रेम भाई- ये मेरा भाई है.. क्यों..?

इंस्पेक्टर- इसको सिखाया नही तुमने, पोलीस से ऐसे बात करते हैं.. ? एक डंडा डालूँगा इसकी गान्ड में सारी अकड़ निकल जाएगी..!

लपक के उसका गला पकड़ के दबाते हुए मैने कहा- साले मेरी गान्ड में डंडा डालेगा..तू हैं. 

अभी में तुझे भी मारकर इन बदमाशों में शामिल कर दूं तो बोल क्या कर लेगा. 

उसकी रूह फ़ना हो गयी, इतने में प्रेम भाई ने उसे छुड़वा दिया और बोले- इनस्पेक्टर हमारे यहाँ 20 बदमाश चढ़ गये, 

आप 3 घंटे में अब आ रहे हो ? वो भी 4 सिपाहियों को लेकर..! हम सब गाँव वाले एक होकर इनको नही मारते तो ये लोग हमें मार डालते. 

ये नही सोचा आपने और उल्टा हमारे उपर ही धोंस जमा रहे हो.

ये देखो हमारी औरतों को मार-2 कर क्या हालत कर दी है. इलज़ाम लगाने से पहले ये तो सोचा होता कि इतनी रात गये इतने सारे लोगों को हम पकड़-2 के लाए मारने के लिए इनके घरों से, जिनमें ये भी नही पता कि ये कहाँ-2 से आए हैं.

इनस्पेक्टर की सिट्टी-पिटी गुम हो चुकी थी, ढीला पड़ते हुए वो बोला- आइ आम सॉरी मास्टर साब, मेरा कहने का ये मतलब ये नही था.. 

मे तो बस जानना चाहता था कि ये सब कैसे किया आप लोगों ने ?

फिर उन्होने सब लाशों को वहाँ से उठवा कर थाने पहुँचवाया, हमारी औरतों की मेडिकल जाँच के लिए सिटी हॉस्पिटल ले जाया गया क़ानूनी कार्यवाही की गयी. 

इन्ही सब कामों में सुबह हो गयी.

सुबह के उजाले में घर के पीछे से भी दो बदमाश घायल अवस्था में पड़े मिले, उन्हें मेडिकल ट्रीटमेंट देके हिरासत में ले लिया गया.

बहुत सारे मरे हुए बदमाशों की पहचान हो गयी थी, एक दो तो भूरे के रिस्तेदार ही थे, 

दो सामने वाले के साले निकले. पूरी साजिश खुल चुकी थी. जिन लोगों का हाथ था वो भी अरेस्ट कर लिए गये.

एक बार और मेरे जीवन का यथार्थ सिद्ध हो गया..और मैने एक लंबी साँस लेकर मन ही मन कहा कि चलो – “मेरा जीवन कुछ काम तो आया”

इस हादसे के बाद मेरी जिंदगी पूरी तरह बदल गयी, जब भी मे ध्यान लगाने की कोशिश करता, मुझे वो नरसंहार नज़र आने लगता और अपने ध्यान से बिचलित होने लगता, 

एक बैचैनि सी होने लगती, मेरी आँखों में हिंसक भाव उठने लगते. 
मेरी समझ में नही आ रहा था कि ये सब क्यों हो रहा है और इससे कैसे मुक्ति मिले.

ऐसा भी नही था कि मैने इससे पहले किसी को मौत की सज़ा नही दी थी, कुछ महीने पहले ही उन आतकवादियों को उनके अंजाम तक पहुचाया था लेकिन ऐसा पहले नही हुआ था.

कुछ दिन इसी उधेड़ बुन में निकल गये, मे थोड़ा उदास सा भी रहने लगा, ना किसी से ज़्यादा बोलना और ना किसी से सीधे -2 जबाब देना, 

घर वाले भी मेरे व्यवहार से परेशान रहने लगे. और एक नयी मुशिबत ये हुई कि लोग मुझसे बात करने में कतराने लगे थे.

कोई-कोई तो यहाँ तक बोल देता, कि ये कोई नॉर्मल इंशन नही है…ज़रूर इसके उपर कोई भूत-प्रेतों का साया है… 

एक दिन मे अपने खेत में जो कि थोड़ी सी ज़मीन थी जहाँ, दूसरे के ट्यूब वेल से पानी दे रहा था गेहूँ खड़े थे उसमें बाली आना शुरू हो रही थी फसल में.

तभी वहाँ मेरे ही मोहल्ले की लड़की जिसका नाम भूरी था बथुआ का साग तोड़ने आई, उसके साथ उसी के घर की दो लड़कियाँ और थी.

मे खेत की मेड (बाउंड्री) पर बैठा था तो वो भी मेरे साथ आकर बैठ गयी और मुझसे बात करने लगी, 

मे भी उससे नॉर्मली बात करने लगा. 

वो मुझसे छोटी थी लगभग 18 के आस-पास की उम्र होगी उसकी, अब गाँव नाते से मुझे भैया बोलती थी. 

जिसकी झलक शुरू के अपडेट मे पढ़ी होगी आपने.
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12-19-2018, 02:05 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
ग़रीब घर की भूरी, पिता के देहांत के बाद बढ़ती किल्लतो से मुश्किल से परिवार का भरण पोषण हो रहा था.

4 भाइयों के बीच अकेली बेहन, आमदनी का ज़रिया मात्र 10-12 बीघा ज़मीन ही थी, 

बड़ा भाई मेरे से कोई 2 साल ही बड़ा था, लेकिन फैल होते-2 मुश्किल से 10थ पास ही कर पाया था, 

तीन भाइयों के बाद चौथी औलाद थी वो. बड़े भाई की मुश्किल से शादी हो पाई थी.

भूरी एक हल्के कद की गोरी-चिटी लड़की थी, रंग रूप की वजह से ही उसका नाम उसके पिता ने भूरी रख दिया था. 

अधखिलि कली जिसके पास ढंग के पहनने को कपड़े भी नही होते थे, इस समय भी वो एक घिसे घिसाए पुराने से सलवार सूट में थी जो शायद काफ़ी पुराना होने से उसके विकसित हो रहे बदन को ढंग से ढक भी नही पा रहे थे.

वैसे तो उसके संतरे अभी 30” के ही हुए होंगे, लेकिन टाइट कुर्ते मैं लगता था कपड़े को फाड़ के बाहर निकल पड़ेंगे. 

बिना ब्रा के उसके छोटे-2 लेकिन नुकीले चुचक उसके झीने कपड़े में सॉफ छटा दर्शा रहे थे. 

उसके कपड़े इतने घिस चुके थे की पिंक कलर का कपड़ा भी उसके बदन के रंग का दिख रहा था.

मैने उसे नज़र भर देखा…, 

पहले तो मुझे उस पर दया आई, और मैने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा. 

फिर जब मुझे उसके कपड़ों से आर-पार उसका शरीर दिखाई देने लगा तो मेरी भावनाएँ बदलने लगी, 

अनायास ही मेरा हाथ उसकी पीठ पर चला गया और उसे सहलाने लगा.

मे उसकी पीठ सहलाते हुए बोला- भूरी, तेरे पास और ढंग के कपड़े नही हैं..?

वो- क्यों इनमें क्या खराबी है ..?

मे- पुराने हैं, देखो तुम्हारा शरीर भी चमक रहा है..

जब उसने मेरी नज़रों का पीछा किया तो वो शर्म से दोहरी हो गयी और बोली- 
हैं तो एक दो जोड़ी, पर भाभी पहनने नही देती, बोलती है, अभी इनसे ही काम चलने दो जब तक चलता है बाद में निकाल लेना.

मे- और तेरी मम्मी क्या कहती है…?

वो- वो बेचारी क्या कहेगी, चुप ही रहती है.

मे- तेरा मन नही होता अच्छा खाने-पहनने को..?

वो- किसका मन नही होगा… भैया..? लेकिन आए कहाँ से..? दो जून की रोटी हो जाती है वही बहुत है..!

मे - ओह्ह्ह.. भूरी..! मे उसकी दयनीय दशा जान कर कराह कर बोला - अगर तेरा बाहर खाने का मन करता है तो मुझे बता मे तुझे खाने के लिए पैसा दे दूँगा अगर चाहे तो..! 

ये बात मैने दया वश कही थी, भूरी थोड़ी एमोशनल होती हुई मेरे कंधे पर सर रख कर बोली-

जलेबी खाने का बहुत मन करता है, जब भी सुबह-2 अजुद्दि लाला की दुकान पर जाती हूँ, उसी समय वो गरम-2 बना रहा होता है, 

जब और लोग भी खा रहे होते हैं तो सच कहती हूँ भैया, इतना मन करता है, कि उठा के भाग जाउ….

कंधे से चिपकने से उसके अधखिले संतरे जो की सिर्फ़ एक झीने से कपड़े की दीवार के उस पर थे उसके नन्हे-मुन्ने अंगूर के दाने मेरे बाजू में चुभने से लगे. 

मेरा मन किया कि हाथ से सहला दूँ.. लेकिन मन को काबू में करके उसकी पीठ से हाथ लेजा कर उसके दूसरे बाजू को पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया, दूसरे हाथ से उसकी ठोडी को पकड़ कर उठाया और बोला- 

मे तुझे पैसे दूँगा जलेबी खाने के लिए, जब जी करे खा लिया करना, ठीक है, लेकिन कोई पुच्छे कि पैसे कहाँ से आए तो क्या कहेगी..?

वो - कोई भी बहाना बना दूँगी, तुम चिंता मत करो, मे तुम्हारा नाम नही लूँगी.

मैने उसे कस कर कहा- ओह्ह.. तू तो बड़ी समझदार है मेरी गुड़िया.. शाबास, ले ये 50 रुपये रख अभी… मैने जेब से निकाल कर उसको एक 50 का नोट दे दिया. 

और हां जब ख़तम हो जाएँ ना तो बोल देना और दे दूँगा ठीक है. अब तू जा मुझे काम करना है.

वो हां में गर्दन हिला कर मुझसे और ज़ोर से लिपट गयी और मेरे गाल पे किस करके बोली- ओह्ह्ह मेरे प्यारे अरुण भैया, तुम कितने अच्छे हो..? 

फिर वहाँ से चली गयी, और मे अपने काम में बिज़ी हो गया.

शाम को सब काम धंधा निपटा कर घर जा कर खाना-वाना खाया, थोड़ा बहुत इधर उधर बैठा, साथ के लड़कों के साथ थोड़ा गांजे की चिलम में कस लगाया और सोने के लिए ट्यूब वेल की ओर चल दिया.

आज मैने अनुभव किया कि मेरा मन आज अशांत नही था, भूरी के साथ बिताए पलों को याद करते ही मेरा शरीर रोमांच से भर गया. 

अब मेरे मन में बैचानी की जगह कुछ और ही तरह की फीलिंग आ रही थी. जिसमें कुच्छ संवेदना, कुछ रोमांच, जैसी कॉलेज के दिनो में आती थी, अब मे भूरी का साथ पाने की कल्पना करने लगा. 

सोने की कोशिश की तो आँखें बंद करते ही भूरी ख्वाबों में आ गयी, वोही उसका दोपहर वाला रूप, अल्हड़ कच्ची कली अब धीरे-2 मेरे दिलो-दिमाग़ पर छाने लगी. 

जिस मुशिबत से में आज से पहले जूझ रहा था, उससे तो मुक्ति मिल गयी थी, लेकिन एक नयी तरह का रोमांच हाबी होता जा रहा.

दो साल से ज़्यादा समय से मैने सेक्स नही किया था, ध्यान मुद्रा शुरू करने के बाद कुछ महीनो तक तो कभी-2 रात को मेरा अंडरवेर खराब हो भी जाता था, 

लेकिन जब से कुण्डलिनी यात्रा वाला प्रयोग किया था तब से तो मेरे वीर्य की कभी एक बूँद भी निकली हो, ऐसा फील भी नही हुआ था.

लेकिन आज ढाई साल के बाद दिन की बातों को याद करके मेरे लिंग में भी कुछ-2 तनाव सा महसूस होने लगा था. 

सोचते-2 ना जाने कब मुझे नींद ने अपने आगोस में ले लिया और मे भूरी के अधखिले योवन का अनुभव अपने सपनों में करता हुआ सो गया.

दूसरी सुबह जब मेरी नींद खुली, तो मन एक सुखद अनुभूति से भरा हुआ था, मेरा चित्त एक दम शांत लग रहा था, मानो कोई जादू हुआ हो.

सुबह-2 बहुत सारे काम होते हैं घर खेतों के, तो नाश्ता वग़ैरह करके उनमें लग गया, आज मेरा मन काम में भी लग रहा था, 

काम निपटाते-2 कब 12 बज गये पता ही नही चला, दोनो चचेरे भाई, अपने-2 स्कूल चले जाते थे, बच्चों को पढ़ाने, 

श्याम भाई ने तो मेरे आने के बाद खेतों की चिंता ही छोड़ दी थी. 

मे अभी नहा धो के चुका ही था और कमरे में चारपाई पर लेट कर अपने शरीर को थोड़ा रेस्ट दे रहा था कि दरवाजे पर आहट हुई.., 

मैने जब देखा तो भूरी को वहाँ खड़े पाया, उसके भी आधे से खेत हमारे ट्यूब वेल के पास ही थे.

ओह्ह्ह.. भूरी…!! आ.. आजा, और सुना कैसी है, आज जलेबी खाई या नही- मैने पुछा उसे.

उसके हाथ में अख़बार के कागज का एक पॅकेट जैसा था. 

वो आकर मेरी चारपाई पर बैठ गयी, मे लेटा ही रहा और थोड़ा साइड में खिसक कर उसे बैठने के लिए जगह दे दी.

वो - आज मैने जी भरके जलेबी खाई, और देखो तुमहरे लिए भी लाई हूँ, लो ख़ाके देखो, बहुत अच्छी है और पॅकेट खोल कर मेरे सामने रख दिया.

मे थोड़ा सा उपर को खिसक कर अढ़लेटा सा हो गया अपनी एक एल्बो का सहारा लेकर- अरे वाह !! लगता है गरम-2 हैं, 

मैने अपना हाथ बढ़ाया एक टुकड़ा उठाने को तो उसने मेरा हाथ रोक कर बोली - तुम लेटे रहो मे खिलाती हूँ तुमको, 

और एक टुकड़ा मेरे मुँह में दे दिया, मैने जान बूझकर उसकी उंगली काट ली…

आययईीीई… कटखने…कहीं के… मेरी उंगली काट ली… ये कह कर अपना हाथ झटकने लगी.. 

मे हँसने लगा तो गुस्से जैसा मुँह करके बोली- बहुत गंदे हो तुम..!! मे तो तुम्हें जलेबी खिला रही थी और तुमने मुझे ही काट लिया.. 

जाओ मे नही खिलाती अब, खुद ही ख़ालो..
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12-19-2018, 02:06 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मैने उसका वो हाथ पकड़ कर उसकी उंगली को अपने मुँह में रख कर चूस लिया और बोला - मेरी प्यारी गुड़िया रानी को दर्द हो रहा है, 

और अपने कान पकड़ कर सॉरी कहा तो वो खुश हो गयी और मेरी छाती से लिपट गयी..

ओह्ह अरुण भैया..!! तुम कितने अच्छे हो..? सच में इतना प्यार मेरे भाइयों ने मुझे कभी नही किया जितना तुम कर रहे हो मुझे.

मे उसकी पीठ सहलाता रहा, फिर धीरे-2 मेरा हाथ उसकी कमर तक पहुँचा, वो और ज़्यादा चिपकने लगी, 

वो मेरी ओर झुक सी गयी थी इस वजह से उसकी छोटी सी गान्ड का आधा हिस्सा उठ गया, 

कमर से होते हुए मेरा हाथ उसके गोल मुलायम चूतड़ पर चला गया, उसका भी एक हाथ मेरी जाँघ पर था, जो और चिपकने की वजह से सरक कर मेरे पप्पू के पास पहुँच गया. 

उसके हाथ का नर्म एहसास पाकर वो अकड़ने लगा, और इसी उत्तेजना के कारण मेरा हाथ उसके चूतड़ पर कस गया और मैने उसे ज़ोर्से मसल दिया…

आई.. वो छिटक कर मुझसे दूर हो गयी और गहरी नज़रों से देखने लगी, फिर नज़रें नीची करके शरमा गयी. 

मैने उसका हाथ पकड़ कर पुछा- भूरी क्या हुआ..? कुछ ग़लत कर दिया मैने..?
वो कुछ नही बोली, और मुस्कुराती हुई तिर्छि नज़र से देखती रही. 

मे जलेबी खाने लगा, जब आधी से ज़्यादा ख़तम करदी मैने तो वो मेरी ओर देख 
कर बोली- अकेले-2 ही खा जाओगे..? मुझे नही दोगे..?

मे- ले ना, किसने रोका है ले खा, और एक टुकड़ा उसके मुँह की तरफ बढ़ा दिया जो उसने मुँह खोल कर खा लिया. 

जलेबी ख़तम करके मे हाथ धोने चला गया, इतने में उससे कमरे की साफ सफाई कर दी, जब लौटा तो वो बिस्तर सही कर रही थी.

मैने फिर से अपने पास बिस्तर पर उसे बिठा लिया और बात-चीत करने लगे उसके घर परिवार के बारे में.

मे- भूरी ! तूने बताया नही, तू उस टाइम दूर क्यों हट गयी थी ? कुछ गड़बड़ हो गयी थी क्या मुझसे..?

वो हंसते हुए बोली - तुमने ज़ोर से नही दबा दिया मेरे वहाँ पर..?

मे - कहाँ पर दबा दिया था..? तो वो हंसते हुए मेरी छाती से लग गयी.. और मुँह छिपा कर बोली - गंदे भैया..!

अच्छा जी..!! तो गंदे भैया से चिपकी क्यों है…? हैन्न..हैन्न.. और उसकी बगलों में गुदगुदा दिया, 

वो खिल-खिलाकर मेरी पीठ पर हाथ कस्के और ज़्यादा चिपक गयी और बोली- मेरे गंदे भैया बहुत प्यारे भी तो हैं.. !

मे - आजा अपने प्यारे भैया की गोद में बैठ…! और कहते हुए उसे अपनी गोद में खिचने लगा तो वो एक साइड को दोनो पैर करके मेरी गोद में बैठने लगी, 

मैने कहा ऐसे नही..! वो मेरी ओर देखने लगी..! मैने कहा जैसे बच्चे बैठते हैं, दोनो ओर पैर करके वैसे.

तो वो झट से मेरे दोनो ओर पैर निकाल कर, मेरी ओर मुँह करके मेरी गोद में बैठ गयी.., 

मेरा पप्पू अकड़ने लगा उसकी मुलायम छोटी-2 लेकिन गोल-मटोल गान्ड को अपने उपर पाकर, जो शायद उसको भी अच्छे से फील हो रहा होगा.

मैने उसके गालों को हाथ में लेकर सहलाया और कहा- तुझे अच्छा लग रहा हैं ना मेरी गोद में ? तो उसने हमम्म.. करके मंडी हिलाकर हामी भर दी.

मे - तू बहुत सुंदर सी प्यारी सी गुड़िया है भूरी ! और मैने उसके होठों को चूम लिया, 

शायद उसको ये कुच्छ अट-पटा सा लगा और मेरी ओर देख कर बोली..

अरे ये क्या करते हो..? मेरा मुँह क्यों झूठा कर रहे हो..? 

मे - अरे पगली इससे मुँह झूठा नही होता ? ऐसे प्यार किया जाता है, ये कहकर मैने फिर से उसके होठों पर किस किया और इस बार उसके निचले होठ को अपने मुँह में लेकर चूस लिया, 

वो मेरे होठ चूसने से गन्गना गयी, और उसके होठ थर-थर काँपने लगे, फिर मैने पुछा- कैसा लगा..?

वो मेरी ओर देखने लगी, उसकी आँखों में वासना के लाल डोरे तैरने लगे, कोमल भावनाएँ जाग उठी, और वो बोली – 

बहुत अच्छा, मज़ा आ रहा है, और करो ना..!!

मैने फ़ौरन उसके होठों को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगा, 

इस बार उसके उपर के होंठ को चूसा, तो उसने भी मेरे नीचे के होठ को अपने होठों से कस लिया और मेरी तरह ही चूसने लगी, 

अब मैने अपनी जीभ को उसके दाँतों के उपर घुमाया तो उसने अपना मुँह खोल दिया, 

मेरी जीभ अब उसके मुँह के अंदर जाकर इधर-उधर सैर करने लगी.

जब मेरी जीभ उसकी जीभ से टकराई, तो उसको इसमें मज़ा आया और वो भी अपनी जीभ मेरी जीभ से भिड़ाने लगी, 

अब हमारी जीभें एक दूसरे से कुस्ति करने लगी.

जलेबी खाने के बाद मीठी लार का मज़ा एक दूसरे के मुँह में घुलने लगा…

जब 2-3 मिनट ऐसा ही चला, तो मैने किस तोड़कर उससे पुछा- क्यों भूरी.. मुँह झूठा करने में मज़ा आया कि नही..?

वो शरमा कर मेरे सीने से चिपक गयी.. और बोली- तुम कोई जादूगर तो नही हो ? मेरा मन ही नही कर रहा तुमसे अलग होने को. 

मेरे दोनो हाथ अब उसके गोल-मटोल नितंबों को सहलाने लगे तो वो और थोड़ा उपर को उचक गयी, 

उसकी मुलायम गान्ड को सहलाते हुए मेरे हाथ उपर की तरफ बढ़ने लगे और उसकी पीठ पर होते हुए उसकी दोनो बगलों को सहलाते हुए जैसे ही उसकी गोल-गोल संतरे साइज़ की चुचियों पर पहुँचे..

और हल्के से उसके चूचुकों को सहलाया, वो सिसकते हुए मेरे गले में बाहें डालकर मेरे होठों को चूसने लगी…
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