mastram kahani राधा का राज
04-07-2019, 12:30 PM,
#21
RE: mastram kahani राधा का राज
राधा की कहानी--6

गतान्क से आगे....................

मुकुल ने अपना लंड मेरे गुदा द्वार पर सटा दिया. "नहीं प्लीज़ वहाँ नहीं" मैने लगभग रोते हुए कहा. मेरी फट जाएगी. प्लीज़ वहाँ मत घुसाओ. मैं तुम दोनो को सारी रात मेरे बदन से खेलने दूँगी मगर मुझे इस तरह मत करो मैं मर जाउन्गि" मैं गिड गीडा रही थी मगर उनपर कोई असर नही हो रहा था. मुकुल अपने काम मे जुटा रहा. मैं हाथ पैर मार रही थी मगर अरुण ने अपने बलिष्ठ बाहों और पैरों से मुझे बिल्कुल बेबस कर दिया था. मुकुलने मेरे नितंबों को फैला कर एक जोरदार धक्का मारा.

"उूुउउइई माआ मर गाईए" मेरी चीख पूरे जंगल मे गूँज गयी. मगर दोनो हंस रहे थे. "सुउुउराअज… .ससुउउराअज मुझे ब्चाआओ….."

"थोड़ा स्बर करो सब ठीक हो जाएगा. सारा दर्द ख़त्म हो जाएगा." मुकुल ने मुझे समझाने की कोशिश की. मेरी आँखों से पानी बह निकला. मैं दर्द से रोने लगी. दोनो मुझे चुप कराने की कोशिश करने लगे. मुकुल ने अपने लंड को कुछ देर तक उसी तरह रखा.

कुछ देर बाद मैं जब शांत हुई तो मुकुल ने धीरे धीरे आधे लंड को अंदर कर दिया. मैने और राज ने शादी के बाद से ही खूब सेक्स का खेल खेला था मगर उसकी नियत कभी मेरे गुदा पर खराब नहीं हुई. मगर इन दोनो ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा. मेरी दर्द के मारे जान निकली जा रही थी. दोनो के जिस्म के बीच सॅंडविच बनी हुई च्चटपटाने के अलावा कुछ भी नही कर पा रही थी.

आधा लंड अंदर कर के मुकुल मेरे उपर लेट गया. उसके शरीर के बोझ से बाकी बचा आधा लंड मेरे अशोल को चीरता हुआ जड़ तक धँस गया. ऐसा लग रहा था मानो किसीने लोहे की गर्म सलाख मेरे गुदा मे डाल दी हो. मैं दोनो के बीच सॅंडविच की तरह लेटी हुई थी. एक तगड़ा लंड आगे से और एक लंड पीछे से मेरे बदन मे ठुका हुआ था. ऐसा लग रहा था मानो दोनो लंड मेरे बदन के अंदर एक दूसरे को चूम रहे हों. कुछ देर यूँ ही मेरे उपर लेटे रहने के बाद मुकुल ने अपने बदन को हरकत दे दी. अरुण शांत लेटा हुआ था. जैसे ही मुकुल अपने लंड को बाहर खींचता मेरे नितंब उसके लंड के साथ ही खींचे चले जाते थे. इससे अरुण का लंड मेरी योनि से बाहर की ओर सरक जाता और फिर जब दोबारा मुकुल मेरे गुदा मे अपना लंड ठोकता तो अरुण का लंड अपने आप ही मेरी योनि मे अंदर तक घुस जाता . उस छोटी सी जगह मे तीन जिस्म ग्डमड हो रहे थे. हर धक्के के साथ मेरा सिर गाड़ी के बॉडी से भिड़ रहा था. गनीमत थी कि साइड मे कुशन लगे हुए थे वरना मेरे सिर मे गूमड़ निकल आता. मुकुल के मुँह से "हा…हा…हा" जैसी आवाज़ हर धक्के के साथ निकल रही थी. उसके हर धक्के के साथ ही मेरे फेफड़े की सारी हवा निकल जाती और फिर मैं साँस लेने के लिए उसके लंड के बाहर होने का इंतेज़ार करती.मैं दोनो के बीच पिस रही थी. मैं भी मज़े लेने लगी. बीस पचीस मिनट तक मुझे इस तरह चोदने के बाद एक साथ दोनो डिसचार्ज होगये. मेरे भी फिर से उनके साथ ही डिसचार्ज हो गया. इस ठंड मे भी हम पसीने से बुरी तरह भीग गये थे.मेरा पूरा बदन गीला गीला और चिपचिपा हो रहा था. दोनो छेदो से वीर्य टपक रहा था.

तीनों के "आआआअहह ऊऊऊहह" से पूरा जंगल गूँज रहा था.

अरुण तो चोद्ते वक़्त गंदी गंदी गालियाँ निकालता था. हम तीनो बुरी तरह हाँफ रहे थे. मैं काफ़ी देर तक सीट पर अपने पैरों को फैलाए पड़ी रही.

मुझे दोनो ने सहारा देकर उठाया. मेरे जांघों के जोड़ पर आगे पीछे दोनो तरफ ही जलन मची हुई थी. दोनो के बीच मैं उसी हालत मे बैठ गयी. दोनो के साथ सेक्स होने के बाद अब और शर्म की कोई गुंजाइश नही बची थी. दोनो मेरे नग्न बदन को चूम रहे थे और अश्लील भाषा मे बातें करते जा रहे थे. दोनो के लंड सिकुड कर छोटे छोटे हो चुके थे.

कुछ देर बाद मुकुल ने पीछे से एक बॉक्स से कुछ सॅंडविच निकाले जो शायद अपने लिए रखे थे. हम तीनों ने उसी हालत मे आपस मे मिल बाँट कर खाया. पानी के नाम पर तो बस रम की बॉटल ही आधी बची थी. मुझे मना करने पर भी उस बॉटल से दो घूँट लेने परे. दो घूँट पीते ही कुछ देर मे सिर घूमने लगा और बदन काफ़ी हल्का हो गया. मैने अपनी आँखें बंद कर ली. मैं इस दुनिया से बेख़बर थी. तभी दोनो साइड के दरवाजे खुलने और बंद होने की आवाज़ आई. मगर मैने अपनी आँखें खोल कर देखने की ज़रूरत भी महसूस नही की. मैं उसी हालत मे अपनी नग्नता से बेख़बर गाड़ी की सीट पर पसरी हुई थी.

कुछ देर बाद वापस गाड़ी का दरवाजा खुला और मेरी बाँह को पकड़ कर किसीने बाहर खींचा. मैने अपनी आँख खोल कर देखा की सड़क के पास घास फूस इकट्ठा करके एक अलाव जला रखा है.

पास ही उस फटी हुई चादर को फैला कर ज़मीन पर बिच्छा रखा था. उस चादर पर अरुण नग्न हालत मे बैठा हुआ शायद मेरा ही इंतेज़ार कर रहा था. मुकुल मुझे खींच कर अलाव के पास ले जा रहा था. मैं लड़खड़ाते हुए कदमो से उसके साथ खींचती जा रही थी. दो बार तो गिरने को हुई तो मुकुल ने मेरे बदन को सहारा दिया. उसके नग्न बदन की चुअन अपने नंगे बदन पर पा कर मुझे अब तक की पूरी घटना याद आ गयी. मैं उसके पंजों से अपना हाथ छुड़ाना चाहती थी मगर मुझे लगा मानो बदन मे कोई जान ही नही बची है.
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04-07-2019, 12:30 PM,
#22
RE: mastram kahani राधा का राज
मेरे अलाव के पास पहुँचते ही अरुण ने अपना हाथ बढ़ा कर मुझे अपनी गोद मे खींच लिया. मुकुल भी वही आकर बैठ गया. दोनो वापस मेरे नग्न बदन को मसल्ने कचॉटने लगे. मेरे एक एक अंग को तोड़ मरोड़ कर रख दिया. थकान और नशे से वापस मेरी आँखें बंद होने लगी. दोनो एक एक स्तन पर अपना हक़ जमाने की कोशिश कर रहे थे. दोनो की दो दो उंगलियाँ एक साथ मेरी योनि के अंदर बाहर हो रही थी. मैं उत्तेजना से तड़पने लगी. मैं दोनो के सिरों को जाकड़ कर अपनी चुचियों पर भींच रही थी.

अरुण घुटने के बल उठा और मेरे सिर को बालों से पकड़ कर अपने लंड पर दबा दिया. वीर्य से सने उसके लंड को मैने अपना मुँह खोल कर अंदर जाने का रास्ता दिया. मैं उनके लंड को चूसने लगी और मुकुल मेरी योनि और नितंबों पर अपनी जीभ फेरने लगा. मुझे दोनो ने हाथों और पैरों के बल पर किसी जानवर की तरह झुकाया और अरुण ने मेरे सामने से आकर अपना लंड वापस मेरे मुँह मे डाल दिया. तभी मुकुल ने वापस अपने लंड को मेरी योनि के अंदर डाल दिया. दोनो एक साथ मेरे आगे और पीछे से धक्का मारते और मैं बीच मे फाँसी दर्द से कराह उठती.

इस तरह जो संभोग चालू हुआ तो घंटों चलता रहा दोनो ने मुझे रात भर बुरी तरह झिझोर दिया. कभी आगे से कभी पीछे से कभी मुँह मे तो कभी मेरी दोनो चुचियों के बीच हर जगह जी भर कर मालिश की. मेरे पूरे बदन पर वीर्य का मानो लेप चढ़ा दिया. पूरा बदन वीर्य से चिपचिपा हो रहा था. ना तो उन्हों ने इसे पोंच्छा ना मुझे ही अपने बदन को सॉफ करने दिया. दोनो मुझे तब तक रोन्द्ते रहे जब तक ना संभोग करते करते वो निढाल हो कर वहीं पर गये. मैं तो मानो कोमा मे थी. मेरे बदन के साथ जो कुछ हो रहा था मुझे लग रहा था मानो कोई सपना हो. दोनो आख़िर निढाल हो कर वहीं लुढ़क गये.

रात को कभी किसी की आँख खुलती तो मुझे कुछ देर तक झींझोरने लगता. पता ही नहीं चला कब भोर हो गयी. अचानक मेरी आँख खुली तो देखा चारों ओर लालिमा फैल रही है. मैं दोनो की गोद मे बिल्कुल नग्न लेटी हुई थी. मेरा नशा ख़त्म हो चुका था. मुझे अपनी हालत पर शर्म आने लगी. मुझे अपने आप से नफ़रत होने लगी. किस तरह मैने उन्हे अपनी मनमानी कर लेने दिया. जी मे आ रहा था कि वहीं से कोई पत्थर उठा कर दोनो के सिर फोड़ दूं. मगर उठने लगी तो लगा मानो मेरा निचला बदन सुन्न हो गया हो. दर्द की अधिकता के कारण मैं लड़खड़ा कर वापस वहीं पसर गयी. मेरे गिरने से दोनो चौंक कर उठ बैठे और मेरी हालत देख कर मुस्कुरा दिए. मेरे फूल से बदन की हालत बहुत ही बुरी हो रही थी. जगह जगह लाल नीले निशान परे हुए थे. मेरे स्तन दर्द से सूजे हुए थे. दोनो ने सहारा देकर मुझे उठाया. मुकुल मुझे अरुण की बाहों मे छोड़ कर मेरे कपड़े ले आया तब तक अरुण मेरे नग्न शरीर से लिपटा हुया मेरे होंठों को चूमता रहा. एक हाथ मेरे स्तनो को मसल रहे थे तो दूसरा हाथ मेरी जांघों के बीच मेरी योनि को मसल रहा था. दोनो ने मिल कर मुझे कपड़े पहनने मे मदद की मगर अरुण ने मुझे मेरी ब्रा और पॅंटी वापस नही की उन दो कपड़ों को उसने हमारे संभोग की यादगार के रूप मे अपने पास रख लिया.

मैने सूमो मे बैठ कर बॅक मिरर पर नज़र डाली तो अपनी हालत देख कर रो पड़ी. होंठ सूज रहे थे चेहरे पर वीर्य सूख कर सफेद पपड़ी बना रहा था. मुझे अपने आप से घिंन आरहि थी. सड़क के पास ही थोड़ा पानी जमा हुआ था. जिस से अपना चेहरा धो कर अपने आप को व्यवस्थित किया.

दोनो मुझे अपने बदन से उनके दिए निशानो को मिटाने की नाकाम कोशिश करते देख रहे थे. अरुण मेरे बदन से लिपट कर मेरे होंठो को चूम लिया. मैने उसे धकेल कर अपने से अलग किया. "मुझे अपने घर वापस छोड़ दो." मैने गुस्से से कहा. अरुण ने सामने की सीट पर बैठ कर जीप को स्टार्ट किया. जीप एक ही झटके मे स्टार्ट हो गयी.

"ये….ये तो एक बार मे ही स्टार्ट हो गयी…" मैने उनकी तरफ देखा तो दोनो को मुझ पर मुस्कुराते हुए पाया. मैं समझ गयी कि ये सब दोनो की मिली भगत थी. मुझे चोदने के लिए ही सूनसान जगह मे लेजा कर गाड़ी खराब कर दिया. सारा दोनो की मिली जुली प्लॅनिंग का हिस्सा था. मैं चुप चाप बैठी रही और दोनो को मन ही मन कोस्ती रही.

घंटे भर बाद हम घर पहुँचे. रास्ते मे भी दोनो मेरे स्तनो पर हाथ फेरते रहे. मगर मैने दोनो को गुस्से से अपने बदन सी अलग रखा. हम जब तक घर पहुँचे राज अपने काम पर निकल चुका था जो की मेरे लिए बहुत ही अच्छा रहा वरना उसको मेरी हालत देख कर सॉफ पता चल जाता कि रात भर मैने क्या क्या गुल खिलाएँ हैं. मेरे लिए उसकी गहरी आँखों को सफाई देना भारी पड़ जाता.

मैने दरवाजा खोला और अंदर गयी. दोनो मेरे पीछे पीच्चे अंदर आ गये. मैं उन्हे रोक नही पाई.

"मैं बाथरूम मे जा रही हूँ नहाने के लिए तुम वापस जाते समय दरवाजा भिड़ा देना."

"जानेमन इतनी जल्दी भी क्या है. अभी एक एक राउंड और खेलने का मन हो रहा है." अरुण ने बदतमीज़ी से अपने दाँत निकाले.

"नही….चले जाओ नही तो मैं राज शर्मा को बता दूँगी. राज शर्मा को पता चल गया तो वो तुम दोनो को जिंदा नही छोड़ेगा." मैने दोनो की ओर नफ़रत से देखा.

"अरे नही जानेमन तुम हम मर्दों से वाकिफ़ नही हो. अभी अगर जा कर मैने कह दिया कि तुम्हारी बीवी सारी रात हमारे साथ गुलचर्रे उड़ाने के लिए रात भर हमारे पास रुक गयी तो तुम्हारा हज़्बेंड हमे ही सही मानेगा. देती रहना तुम अपनी सफाई. हाहाहा…." अरुण मेरी बेबसी पर हंस रहा था मुझे लग रहा था कि अभी दोनो का गला दबा दूं. मैं चुप छाप खड़ी फटी फटी आँखों से उसे देखती ही रह गयी.
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04-07-2019, 12:30 PM,
#23
RE: mastram kahani राधा का राज
"जाओ जानेमन नहा लो….बदन से पसीने की बू आ रही है. नहा धोकर तैयार रहना और हां बदन पर कोई भी कपड़ा नही रहे. हम कुछ देर मे तुम्हारे पातिदेव से मिलकर आते हैं. जाने से पहले एक बार तुम्हारे बदन को और अपने पानी से भिगो कर जाएँगे."

मैं चुप चाप खड़ी रही.

"अगर तूने हमारी बातों को नही माना तो कल तक सारा हॉस्पिटल जान जाएगा कि डॉक्टर. राधा अपनी सहेली के पति और उसके दोस्त के साथ रात भर रंगरलियाँ मना कर आ रही है. तुम्हारी ये ब्रा और पॅंटी मेरी बातों को साबित करेंगे."

मैं ठगी सी देखती रह गयी. कुछ भी नही कह पायी. दोनो हंसते हुए कमरे से निकल गये.

मैं दरवाजा बंद कर के अपनी बेबसी पर रो पड़ी. कुछ देर तक बिस्तर पर पड़ी रही फिर उठकर मैं बाथरूम मे घुस कर शवर के नीचे अपने बदन को खूब रगड़ रगड़ कर नहाई. मानो उन दोनो के दिए हर निशान को मिटा देना चाहती हौं.

बाहर निकल कर मैने कपड़ों की ओर हाथ बढ़ाए. मगर दोनो की हिदायत याद करके रुक गयी. मैं कुछ देर तक असमंजस मे रही. मैं अकेले मे भी कभी घर मे नग्न नही रही थी. फिर आज….खैर माने एक राज शर्मा का सामने से पूरा खुल जाने वाला गाउन पहना और बिस्तर पर जाकर लुढ़क गयी. अभी नींद का एक झोंका आया ही था कि डोर बेल की आवाज़ से नींद खुल गयी. मैने उठ कर घड़ी की तरफ निगाह डाली. सुबह के दस बज रहे थे. दोनो को गये हुए एक घंटा हो चुका था इसका मतलब है कि दरवाजे पर दोनो ही होंगे. मैं दरवाजे पर जा कर अपने गाउन की डोर खींच कर खोल दी. गाउन को अपने बदन से हटाना ही चाहती थी कि अचानक ये विचार कौंध गया कि अगर दोनो के अलावा कोई और हुआ तो? अगर उनकी जगह राज शर्मा ही हुआ तो…..क्या सोचेगा मुझे इस रूप मे देख कर? …..मेरे बदन पर बने अनगिनत नाखूनो और दांतो के निशान देख कर?

"कौन है?" मैने पूछा.

"हम हैं जानेमन….तुम्हारे आशिक़" बाहर से आवाज़ आई. मेरे पूरे बदन मे एक नफ़रत की आग जलने लगी. मैने एक लंबी साँस ली और अपने गाउन को अपने बदन से अलग होकर ज़मीन पर गिर जाने दिया. और दरवाजे की संकाल नीच कर दी. दोनो दरवाजे को खोल कर अंदर आ गये. मुझे इस रूप मे देख कर दोनो तो बस पागल ही हो गये. मैं ना नुकुर करती रही मगर मेरी मिन्नतों को सुनने का किसी के पास टाइम नही था. दोनो अंदर आ कर दरवाजे को अंदर से बंद किया. अरुण ने एक झटके से मेरे नंगे बदन को अपनी गोद मे उठाकर बेडरूम मे ले गया. मुझे बेड पर लिटा कर दोनो अपने कपड़े खोलने लगे.

"जान आज हम तुझे तेरे उसी बिस्तर पर चोदेन्गे जिस पर तू आज तक अपने राज शर्मा से ही चुद्ती आई होगी." अरुण ने कहा," ज़रा हम भी तो देखें की राज शर्मा को कितना मज़ा आता होगा तेरे इस नाज़ुक बदन को मसल्ने मे."

दोनो पूरी तरह नग्न हो कर बिस्तर पर चढ़ गये. मुझे चीत लिटा कर मुकुल मेरी टाँगों के बीच आ गया और अपना लंड मेरी योनि मे एक झटके मे डाल कर मुझे ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा.

पूरी योनि रात भर की चुदाई से सूजी हुई थी उस पर से मुकुल का मोटा लंड किसी तरह का रहम देने के मूड मे नही था. ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेरी योनि को किसी सांड पेपर से घिस रहा हो. अरुण उसे खींच कर मुझ पर से हटाना चाहा. पहले मेरी योनि की चढ़ाई वो ही करना चाहता था मगर मुकुल ने कहा इस बार तो पहले वो ही चोदेगा और उसने हटने से सॉफ सॉफ इनकार कर दिया.

अरुण जब मुझ पर से मुकुल को नही हटा पाया तो मेरे स्तनो पर टूट पड़ा. मुकुल मुझे ज़ोर ज़ोर से चोदने मे लगा था. उसके हर धक्के के साथ पूरा बिस्तर हिल जाता था. एक तो पूरी रात चुदाई की थकान और उपर से दुख़्ता हुआ बदन इस बार तो मैं दर्द से दोहरी हुई जा रही थी. मुँह से लगातार दर्द भरी आवाज़ें और चीखें निकल रही थी.

"आआआआहह…….हा…..हा……ऊऊऊओह………म्‍म्माआआअ………उईईईईईईईई……आआआआआः……..न्‍न्‍नणन्नाआआहियिइ ईईईईईई…………..उउउफफफफफफ्फ़…….उूुउउफफफफफफफफ्फ़…….हा…ऊऊहह" जैसी आवाज़ों से करना गूँज रहा था.

" मैं इसके पीछे घुसाता हूँ तू उसके बाद इसकी योनि मे अपना लंड ठोकना. दोनो साथ साथ ठोकेंगे इसे." अरुण ने कहा तो मुकुल ने अपना लंड मेरी योनि से निकाल लिया. अरुण ने मुझे घुमा कर पेट के बल लिटा दिया और मेरे नितंबों के नीचे अपने हाथ देकर मेरे बदन को कुछ उपर खींचा. मेरे बदन मे अब उनका किसी भी तरह का विरोध करने की ना तो कोई ताक़त बची थी ना ही कोई इच्च्छा. मैने अपना बदन ढीला छोड़ रखा था दोनो जैसे चाह रहे थे मेरे बदन को उस तरह से भोग रहे थे. अरुण अपने लंड को मेरे गुदा पर सेट करके मेरे उपर लेट गया. उसे इसमे मुकुल मदद कर रहा था. मुकुल ने अपने हाथों से मेरी टाँगे फैला कर मेरे दोनो नितंबों को अलग करके अरुण के लंड के लिए रास्ता बनाया. उसके लेटने से अरुण का लंड मेरे गुदा द्वार को खोलता हुआ अंदर चला गया. आज ही इसकी सील मुकुल ने तोड़ दी थी इसलिए इस बार ज़्यादा दर्द नही हुआ. मुझे उसी अवस्था मे अरुण कुछ देर तक चोद्ता रहा. उसके हाथ नीचे जाकर मेरे स्तनो को वापस निचोड़ने लगे.

कुछ देर बाद उसी अवस्था मे अपने लंड को अंदर डाले डाले अरुण घूम गया. अब मेरा चेहरा छत की तरफ हो गया था. नीचे से अरुण का लंड मेरे गुदा मे धंसा हुआ था.

" अरुण कुछ बचा भी है इन दूध की बोतलों मे? आज इनको भरने की तैयारी करते हैं. देखते हैं दोनो मे से कौन बनता है इसके बच्चे का बाप. जब इन बोतलों मे दूध आएगा तो ये खुशी खुशी हमारे लंड को नहलाएगी अपने दूध से." मुकुल हंस रहा था. उसने मेरी योनि की फांकों को अपनी उंगलियों से अलग किया और अपने लंड को अंदर डाल दिया. वापस मैं दोनो के बीच सॅंडविच बनी हुई थी. दोनो ओर से एक एक लंड मेरे बदन को पीस रहे थे. दोनो एक साथ अपने लंड ठोकने लगे.

तभी अरुण ने हाथ बढ़ा कर टेलिफोन उठाया.

क्रमशाश...........................
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04-07-2019, 12:30 PM,
#24
RE: mastram kahani राधा का राज
राधा की कहानी--7

गतान्क से आगे....................

" अरे मैं तो तुझे कहना ही भूल गया था. राज शर्मा बात करना चाहता है तुझसे. कह रहा था कि राधा से मेरी बात करवा देना."

इससे पहले की मैं "न्‍न्न्नाआी….. नहियीईईईई… .अभिईीई. .नहियीईईईई… . प्लीईसए……..इससस्स…..हाालात मईए नहियीईईईईई… .." कहकर उसे मना करती अरुण ने नंबर डाइयल कर दिया था. और उसका रिसीवर मेरे कान पर लगा दिया. हार कर मैने हाथ बढ़ा कर रिसीवर अपने हाथों मे ले लिया.

"हेलो…" दूसरी ओर से राज शर्मा की आवाज़ आई तो मेरे आँखों से आँसू आ गये. मैं चुप रही. दोनो पूरी ताक़त से मुझे चोद रहे थे.

"हेलो.." राज शर्मा ने दोबारा कहा तो मैने भी जवाब दिया"हेलो….राज … ..हा…हा…मैं राधा. मैं घर पहुँच गयी हूँ."

"ठीक तो हो ना? रास्ते मे कोई परेशानी तो नही हुई?"

"नही कोई परेशानी..ओफफ्फ़… .कोई परेशानी नही हुई..आह… मैं ठीक हूँ…तुम हा हा परेशान मत होना."

"तुम्हारी बातों से तो लग रहा है कि तुम्हारी तबीयत ठीक नही है. तुम इतनी हाँफ क्यों रही हो?"

" अरे कुछ नही….सुबह गाड़ी को काफ़ी धक्का लगाना पड़ा इसलिए अभी तक हाँफ रही हूँ. थकान के कारण ही पूरा बदन दर्द कर रहा है. कोई बात नही अभी कोई पेन किल्लर ले लेती हूँ शाम तक ठीक हो जवँगी. ह्म्‍म्म आहह तुम परेशान मत होना." कहकर मैने जल्दी से फोन काट दिया. ज़्यादा बात करने से मेरी हालत का पता चल जाने का डर था.

दोनो कुछ देर बाद अपने अपने लंड से ढेर सारा वीर्य मेरे दोनो छेदो मे भर कर मेरे बदन पर से उठ गये. दोनो अपने कपड़े पहने और वापस चले गये. मैं किसी तरह लड़ खड़ाती हुई उठी और उसी हालत मे दरवाजे तक आ कर उसे बंद किया और दौड़ कर वापस बाथरूम मे घुस गयी. दोनो छेदो से उनका रस रिस्ता हुआ जांघों तक पहुँच गया था. मैने वापस पानी से अपने बदन को सॉफ किया और बिस्तर मे आकर पड़ गयी. कब मेरी आँख लगी पता ही नही चला. जब आँख खुली तब शाम हो चुकी थी. मैने पेन किल्लर ले कर अपने दुख़्ते बदन को कुछ नॉर्मल किया जिससे राज शर्मा को पता नही चले. और तैयार होकर राज शर्मा का इंतेज़ार करने लगी.

रचना की डेलिवरी हो गयी. उसने एक प्यारे से लड़के को जन्म दिया था. उस घटना केबाद अरुण कई बार किसी ना किसी बहाने से आया मगर मैं हमेशा या तो हॉस्पिटल मे लोगों के बीच छिपि रहती या राज शर्मा के साथ रहती. जिससे की अरुण को कोई मौका नही मिल पाए. एक दो बार साथ मे मुकुल भी आया मगर मैने दोनो की चलने नही दी. दोनो मुझे लोगों से छिप कर अश्लील इशारे करते थे मगर मैने उन्हे अनदेखा कर दिया. मैने एक दो बार दबी आवाज़ मे उन्हे राज शर्मा से शिकायत करने की और रचना को खबर करने की धमकी भी दी तो उनका आना कुछ कम हुआ. मुझे उस आदमी से इतनी नफ़रत हो गयी थी कि बयान नही कर सकती. मैने मन ही मन उसके इस गिरे हुए हरकत का बदला लेने की ठान ली थी.

डेलिएवेरी के तीन महीने बाद रचना वापस आ गयी. अरुण गया था उसे लेने. दोनो बहुत खुश थे. हम भी उस नये अजनबी के स्वागत मे बिज़ी हो गये. उन्हों ने अपने बेटे का नाम रखा था अनिल. बहुत क्यूट है उनका अनिल. बिल्कुल अपने बाप की शक्ल पाया है. वापस आने के बाद अरुण कुछ दिन तक रचना के पास ही रहा. हम दोनो के मकान पास पास ही थे. इसलिए हम अक्सर किसी एक के घर मे ही रहते. अरुण मौके की तलाश मे रहता था. मुझे दोबारा दबोचने के लिए वो तड़प रहा था.

कई बार मौके मिले मेरे बदन को सहलाने और मसल्ने के लिए. रचना अपने बच्चे मे बिज़ी रहती थी इसलिए अरुण को किसी ना किसी बहाने मौका मिल ही जाता था. मैं घर पर सिर्फ़ एक झीनी सी नाइटी मे ही रहती थी. कई बार उसकी हरकतों से बचने के लिए मैने अंदरूनी वस्त्र पहनने की कोशिश की मगर उसने मुझे धमका कर ऐसा करने से रोक दिया. वो तो चाहता था कि मैं सुबह घर पर बिल्कुल नंगी ही रहूं जिससे उसे कपड़ो को हटाने की मेहनत नही करनी पड़े. मगर मैने इसका जम कर विरोध किया. अंत मे मैं इस बात पर राज़ी हुई कि घर मे सिर्फ़ एक पतला गाउन पहन कर ही रहूंगी.

राज शर्मा के सामने वो अपनी हरकतों को कंट्रोल मे रखता मगर हमेशा कुछ ना कुछ हरकत करने के लिए मौका ढूंढता ही रहता था. अब उसी दिन की बात लो हम दो फॅमिली एक रेस्टोरेंट मे डिन्नर के लिए गये. मैं अरुण के सामने की चेर पर बैठी थी और रचना राज शर्मा के सामने. हम दोनो ही सारी पहने हुए थे. अचानक मैने अपनी टाँगों पर कुछ रेंगता हुआ महसूस किया. मैने नीचे नज़र डाली तो देखा की वो अरुण का पैर था. अरुण इस तरह बातें करने मे मशगूल था जैसे उसे कुछ भी नही पता हो कि टेबल के नीचे क्या चल रहा है. उसने अपने पैर के पंजों से मेरी सारी को पकड़ कर उसे कुछ उपर उठाया और उसका पैर मेरे नग्न पैरों के उपर फिरने लगा. वो धीरे धीरे अपने पैर को उठता हुआ मेरे घुटनो तक पहुँचा. मैं घबराहट के मारे पसीने पसीने हो रही थी. वो एक पब्लिक प्लेस था और हम पर किसी की भी नज़र पड़ सकती थी. मेरी सारी काफ़ी उपर उठ चुकी थी. अब वो अपने पैर को दोनो जांघों के बीच फिराने लगा. मेरी सारी अब घुटनो के उपर उठ चुकी थी. मैने चारों तरफ नज़र दौड़ाई. सब अपने अपने काम मे व्यस्त थे किसी की भी नज़र हम पर नही थी. दूसरों को तो छोड़ो राज शर्मा और रचना भी हमारी हरकतों से बेख़बर चुहल बाजी मे लगे हुए थे. अरुण भी बराबर उनका साथ दे रहा था. सिर्फ़ मैं ही घ्हबराहट के मारे कांप रही थी. उसके पैर का पंजा मेरी पॅंटी को च्छू रहा था. मेरे होंठ सूख रहे थे.
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04-07-2019, 12:30 PM,
#25
RE: mastram kahani राधा का राज
"क्या हुआ बन्नो तू आज इतनी चुप चुप क्यों है?" मैं रचना के सवाल पर एकदम से हड़बड़ा गयी. और मेरी चम्मच से खाना प्लेट मे गिर गया.

"नही नही…..कुछ नही मैं तो….असल मे आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नही लग रही है."

"क्यों…..राज शर्मा तुमने कुछ कर तो नही दिया?" रचना राज शर्मा की ओर देख कर मुस्कुरई, "चलो अच्छी खबर है. तुम लोगों की शादी को काफ़ी साल हो गये अब तो कुछ होना भी चाहिए." कह कर रचना राज की ओर एक आँख दबा कर मुस्कुरई.

"हाँ हां और क्या अब तो रचना भी मम्मी बन गयी. तुम लोगों को भी अब प्रिकॉशन हटा देना चाहिए." अरुण नेरचना की बात आगे बढ़ाता हुआ मेरी ओर देख कर कहा, "राज शर्मा अगर तुमसे कुछ नही हो रहा हो तो किसी और को भी मौका दो." और मुझे वासना भरी निगाहों से देखा.

"हाँ हां क्यों नही…" रचना ने अपने हज़्बेंड को छेड़ते हुए कहा," मेरी सहेली को देख कर तो तुम्हारी शुरू से ही लार टपकती है. तुम तो मौका हो ढूँढ रहे होगे डुबकी लगाने के लिए."

उसे क्या मालूम था उसका हज़्बेंड डुबकी कब्की ही लगा चुका. हम चारों हँसने लगे. अचानक रचना का रुमाल हाथ से फिसल कर नीचे गिर पड़ा. ये देखते ही अरुण ने झटके से अपना पैर मेरी पॅंटी के उपर से हटा कर नीचे किया मगर उसका पैर मेरी सारी मे उलझ गया. मैने भी झटके से अपने दोनो पैर सिकोड लिए. जिससे रचना को पता नही चले. मगर मेरी सारी मे लिपटा उसका पैर हमारी बीच चल रही चुहल बाजी की कहानी कह रहा था. मगर शायद रचना को हम दोनो के बीच इस तरह की किसी हरकत की उम्मीद भी नही थी. इसलिए उसने झुक कर अपना रुमाल उठाया मगर हम दोनो की उलझी हुई टाँगों पर नज़र नही पड़ी. मेरा पूरा बदन पसीने से भीग गया था.

इसी तरह हम कई बार पकड़े जाते जाते बच गये.

मेरी शिफ्ट्स की ड्यूटी रहती थी. इसलिए कभी कभी जब मैं सुबह के वक़्त घर पर होती और राज शर्मा नर्सरी के लिए निकाला होता तब अरुण कुछ माँगने के बहाने से या मुझे बुलाने के बहाने से मेरे घर आ जाता और मुझे दबोच लेता. मेरे इनकार का उस पर कोई असर ही नही होता था. वो सबको बताने की धमकी देकर मेरे छ्छूटने की कोशिशों की हवा निकाल देता. वो मुझे ब्लॅकमेन्ल करके मेरे बदन से खेलने लगता. मैं उसकी जाल मे इस तरह फँसी हुई थी कि ना चाहकर भी चुप रहना पड़ता.

कई बार उसने मुझे दबोच कर एक झटके मे मेरा गाउन शरीर से अलग कर देता. फिर मुझे पूरी तरह नंगी करके मेरे बदन को चूमता चाट्ता और अपने लंड को भी मुझसे चटवाता. वो अपने लंड को ठीक तरह से सॉफ करता था या नही क्या पता क्योंकि उसके लंड से बदबू आती थी. मुझे उसी लंड को चूसने के लिए ज़बरदस्ती करता था. अपनी बीवी पर तो उसकी ज़बरदस्ती चल नही पाती थी. रचना उसके लंड को कभी मुँह से नही लगती. लेकिन मुझे उसके हज़्बेंड के लंड को अपने मुँह मे लेकर चाटना पड़ता था.

वो कभी सोफे पर तो कभी दीवार के साथ लगा कर तो कभी किचन की पट्टी पर मेरे हाथ टिका कर मुझे छोड़ता. मेरे मना करने पर भी वो मेरी योनि को अपने वीर्य से भर देता था. मैं प्रेग्नेन्सी से बचने के लिए डेली कॉंट्रॅसेप्टिव लेने लगी थी. क्योंकि क्या पता कब उसका बीज असर दिखा दे. फिर भी एक डर तो बना ही रहता था.

कुछ दिन वहाँ रह कर अरुण को अपने काम पर लौटना पड़ा. रचना को ड्यूटी पर बच्चा ले जाने मे दिक्कत रही थी. इन्फेक्षन हो जाने का ख़तरा तो रहता ही था. घर पर बच्चे को अकेला भी नही छोड़ सकती थी. मैने उसे अपने घर को बंद कर मेरे और राज शर्मा के साथ ही रहने की सलाह दी.

"नही राधा..अरुण क्या सोचेगा. वो बहुत शक्की आदमी है."

"किसी को बताने की तुझे ज़रूरत ही कहाँ है. जब वो आए तो तू अपने घर चली जाना. अब देख तू यहाँ रहेगी तो तेरे आब्सेन्स मे तेरे बच्चे की मैं ही मा बन कर रहूंगी." मैने कहा.

"लेकिन बच्चे को भूख लगी तो क्या पिलाएगी? तेरे मम्मो मे तो अभी दूध ही नही है." कहकर उसने मेरी चुचियों को मसल दिया. मैं भी उसकी हरकतों पर हँसने लगी.

"एक बात बता…." रचना ने पूछा," तेरा पति कुछ सोचेगा तो नही? मैं अगर तेरे साथ रहने लगी तो उसे कोई ऑब्जेक्षन तो नही होगा?"

"ऑब्जेक्षन और उसे?......" मैने उन दोनो के बीच संबंधों को गरम बनाना की ठान ली थी, "तेरी निकटता से उसे कभी ऑब्जेक्षन हो सकता है क्या? वो तो तेरी निकटता के लिए च्चटपटाता रहता है. और वैसे भी दो दो बीवी पकड़ कोई मना करेगा भला."

" राधा अब मैं मारूँगी तुझे" वो मुझे पकड़ने के लिए मेरी ओर दौड़ी.

"अच्छा? ज़रा आईने मे नज़र मार तेरा लाल शर्म से भरा चेहरा तेरे जज्बातों की चुगली कर रहा है. सॉफ दिख रहा है कि आग तो दोनो तरफ ही लगी हुई है." मैं हँसती हुई सोफे के चारों ओर भागी मगर उसने मुझे पकड़ लिया और हम गुत्थम गुत्था हो कर सोफे पर गिर पड़े.
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04-07-2019, 12:30 PM,
#26
RE: mastram kahani राधा का राज
"तू भी तो कम नही है. अरुण के साथ तू भी बहुत आँख मटक्का करती रहती है. दिन भर किसी ना किसी बहाने से तेरे घर की ओर भागता था और आधे घंटे से पहले वापस नही आता था. तूने क्या अपनी सहेली को अंधी समझ रखा है."

"बुदमास…..शक्की……" हम दोनो एक दूसरे से लिपटे हुए हंस रहे थे एक दूसरे को चिकोटी काट रहे थे. गुदगुदी दे रहे थे.

खैर रचना अपना सारा समान लेकर हमारे घर पर ही रहने लगी. सामने ही उसके घर का दरवाजा था. दिन मे एक आध बार अपने घर भी चली जाती थी. जिससे अरुण आए तो उसे ऐसा नही लगे कि मकान काफ़ी दिनो से बंद है. राज शर्मा तो बहुत खुश था रचना को अपने साथ पकड़. हम तीनो मिल कर एक फॅमिली की तरह ही रह रहे थे. आग और घी साथ साथ कब तक एक दूसरे को च्छुए बिना रह सकते हैं जब साथ ही उनकी आग को हवा देने के लिए मैं मौजूद थी. अक्सर हम दोनो की ड्यूटी अलग अलग शिफ्टों मे रहती थी. हम दोनो मे से एक घर पर रहता. सुबह के अलावा जब मेरी ड्यूटी शाम की या रात की होती तो राज शर्मा रचना के साथ ही रहता. जब पहली बार मेरी नाइट शिफ्ट हुई तो रचना अपने मकान मे सोने के लिए जाने लगी तो मैने ही उसे रोक दिया.

"यही सो जा ना. राज शर्मा तो अपने बेडरूम मे सोएगा. तुझे उसके साथ सोने के लिए थोड़ी कह रही हूँ. क्यों राज ? मेरी सहेली के साथ किसी तरह की छेड़ चाड तो नही करोगे ना?" मैने राज शर्मा की ओर देखा उसे भी अपनी ओर मिलाने के लिए.

"हां हां रचना तुम अपने बेटे के साथ उस बेडरूम मे सोजाना और अगर डर लगे तो अंदर से लॉक कर लेना. यहाँ रहोगी तो कभी रात मे किसी चीज़ की ज़रूरत परे तो आवाज़ तो लगा सकोगी."

हम दोनो ने अपनी दलीलों से रचना को निरुत्तर कर दिया. काफ़ी समझाइश के बाद रचना राज शर्मा के साथ मेरे आब्सेन्स मे हमारे मकान मे रात को रुकने को राज़ी हुई.

मैने दोनो ओर हवा देना चालू रखा.

"मैं जा रही हूँ ड्यूटी. रात को चुपके से दोनो बेडरूम मे मत घुस जाना. वैसे भी उसका हज़्बेंड तो पास रहता नही है. कभी उसे किसी मर्द की ज़रूरत पड़े तो मेरा शेर तो है ही."

"राधा तू पागल हो गयी है." राज शर्मा ने कहा.

"इसमे पागल होने वाली क्या बात है. तुम उसे पसंद करते हो कि नही?" मैने उसे तब तक नही चोदा जब तक उसने हामी नही भरी.

"और मैं बताती हूँ वो भी तुम्हे उतना ही पसंद करती है. तुम्हारी निकटता को तरसती रहती है. मुझ से खोद खोद कर तुम्हारे बारे मे पूछ्ती रहती है. राज शर्मा जी को क्या पसंद है…राज शर्मा जी

मेरे बारे मे क्या कहते हैं. भाई तुम्हारी आधी घरवाली तो है ही."

वो हँसने लगा. लेकिन धीरे धीरे दोनो के मन मे एक दूसरे के प्रति आग जलती जा रही थी. और मैं इस आग को खूब हवा दे रही थी. रचना अभी बच्चे को दूध पिलाती थी इसलिए ब्लाउस के नीचे ब्रा नही पहनती थी. कभी अनदेखी मे एक दो बटन्स खुले भी रह जाते थे. राज शर्मा उसके झीने ब्लाउस मे कसी चुचियों को नज़र बचा कर निहारता रहता था. मैं उसे ऐसा करते हुए पकड़ लेती तो वो खिसियानी सी हँसी हस देता.

क्रमशः...........................
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04-07-2019, 12:30 PM,
#27
RE: mastram kahani राधा का राज
गतान्क से आगे....................

एक दिन वो सुबह अख़बार पढ़ रहा था तभी रचना हम तीनो के लिए चाइ बना लाई. चाइ के कप्स टेबल पर रखते वक़्त उसकी सारी का आँचल कंधे पर से फिसल गया. राज शर्मा अख़बार पढ़ने का बहाना करता हुआ उसके उपर से रचना की चुचियों को निहार रहा था. रचना के ब्लाउस के उपर के दो बटन्स और नीचे का एक बटन खुला हुआ था. उसका ब्लाउस सिर्फ़ एक बटन पर टिका हुआ था. उसने आँचल को निहारता देख चाइ के कप्स को टेबल पर रख कर अपने आँचल को समहाल लिया. लेकिन एक मिनिट का वो अंतराल काफ़ी था राज शर्मा की आँखों मे सेक्स की भूख जगाने के लिए.

" रचना तू ऐसे ही बैठ जा अपनी चुचियों पर से आँचल हटा कर. तेरे जीजा के मन की मुदाद पूरी हो जाएगी." मैने रचना की तरफ देखते हुए अपनी एक आँख दबाई. रचना शर्म से लाल हो गयी. उसने अपने आँचल को और अच्छी तरह बदन पर लप्पेट लिया.

" मेरा राज शर्मा तेरी उन दोनो रस भरी चुचियों को देखने के लिए पागल हुआ जा रहा है. क्या करूँ मेरी चुचियाँ तो अभी सूखी ही हैं ना." मैने दोनो की और खिंचाई की.

" चुप…चुप…..तू आज कल बहुत बदमाश होती जा रही है. कभी भी कुछ भी कह देती है." रचना ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा.

हम तीनो हंसते बातें करते हुए चाइ पीने लगे. इसी तरह मैं दोनो को पास लाने के लिए जतन करती जा रही थी. एक दिन जब हम दोनो ही थे घर मे तब मैने जान बूझ कर सेक्स संबंधी बातें शुरू की. वो कहने लगी अरुण बहुत गरम आदमी है और जब भी आता है दिन रात उसके पास सिर्फ़ यही काम रहता है. मैने भी राज शर्मा के बारे मे बताया. वो राज शर्मा के बारे मे खोद खोद कर पूच्छने लगी.

" राज शर्मा ठेठ पहाड़ी आदमी है उसमे ताक़त तो इतनी है कि अच्छे अच्छो को पानी पीला दे. उसका लंड इतना मोटा और गधे की तरह लंबा है. जब अंदर जाता है तो लगता है मानो गले से बाहर अजाएगा."

"हा….तू झूठ बोल रही है. इतना बड़ा होता है भला किसी का." रचना राज शर्मा के बारे मे खूब इंटेरेस्ट ले रही थी.

" अरे जो झेलता है ना वो ही जानता है. आज इतने सालों बाद भी मेरे एक एक हाड़ को तोड़ कर रख देता है. इतनी देर तक लगातार चोद्ता है कि मेरी तो जान ही निकल जाती है."

" अच्छा तुझे तो खूब मज़ा आता होगा? लेकिन अब भी मैं नही मानती कि उसका लंड इस साइज़ का हो सकता है. अरुण का इससे काफ़ी छ्होटा है" रचना ने अपनी सूखे होंठों पर अपनी जीभ फेरी.

" तूने देखा नही पयज़ामे मे जब खड़ा होता है उसका तो कैसे तंबू का आकार ले लेता है."

रचना ने कुछ कहा नही सिर्फ़ अपने सिर को हिलाया.

"हां हां तुझे पता कैसे नही चलेगा. आजकल तो तुझे देखते ही उसका लंड बाहर आने को च्चटपटाने लगता है." मैं उसको छेड़ने लगी.

" तू भी तो अरुण के लंड को तडपा देती है." रचना ने मुझे भी लपेटने की कोशिश की.

"देखेगी?... बोल देखेगी राज शर्मा के लंड को?" मैने उससे पूछा. तो वो चुप रह कर अपनी सहमति जताई.

"ठीक है मैं कोई जुगाड़ लगाती हूँ."

उस दिन जैसे ही राज शर्मा पेशाब करने के लिए रात को बाथरूम मे घुसा मैने रचना को बाथरूम मे जाकर टवल लेकर आने को कहा. रचना को पता नही था कि अंदर राज शर्मा है. और जैसी मुझे उम्मीद थी. राज शर्मा ने दरवाजा अंदर से लॉक नही किया था. रचना बिना कुछ सोचे समझे बाथरूम के दरवाजे को खोल कर अंदर चली गयी. मैं पहले ही वहाँ से हट गयी थी. राज शर्मा कॉमोड के सामने खड़ा हुआ पेशाब कर रहा था. रचना को सामने देख कर हड़बड़ी मे वो अपने लंड को अंदर करना ही भूल गया. रचना की आँखें उसके लंड पर ही लगी हुई थी. उसका लंड रचना को देख कर खड़ा होने लगा. कुछ देर तक इसी तरह खड़े रहने के बाद रचना "उईईईई माआ" करती हुई बाथरूम से बाहर भाग आई. उसका पूरा बदन पसीने पसीने हो रहा था. मैने कुरेद कुरेद कर जब उससे पूछा तो उसने माना की वाक़ई उसे राज शर्मा का

लंड पसंद आ गया. अब मुझे उम्मीद हो गयी कि मैं अपने मकसद मे ज़रूर कामयाब हो कर रहूंगी.

रात को खाना ख़ान एके बाद मैं बर्तनो को सॉफ करके किचन सॉफ कर रही थी. रचना मेरे काम मे हाथ बटा रही थी. उसने मेरे ज़ोर देने पर रात को सारी की जगह सामने से खुलने वाला गाउन पहन रखा था. नीचे मैने उसे पेटिकोट या ब्रा पहनने नही दिया. इससे वो अपने कदम धीरे धीरे उठा कर चल रही थी क्योंकि पैरों को हिलाते ही नग्न पैर बाहर निकल पड़ते. मैं आज अपने काम से संतुष्ट थी. रचना चाह कर भी अपनी सुंदर टाँगे राज शर्मा से छिपा नही पा रही थी. इस पर मैने दोनो को कुछ निकटता देने के लिए कहा,

"रचना तू रहने दे. ये दूध गरम कर रखा है. इसे राज शर्मा को पिला कर जा बच्चे को सम्हाल नही तो अभी उठ कर रोने लगेगा. उसके दूध का टाइम भी हो गया है. ये मर्द हमेशा दूध के शौकीन होते हैं चाहे बच्चा हो या बूढ़ा."

रचना कुछ ना बोल कर राज शर्मा के लिए दूध का ग्लास लेकर हमारे बेडरूम मे चली गयी. मैं बिना आवाज़ के बेडरूम के पास पहुँची दोनो के बीच होने वाली बातों को सुनने के लिए. राज शर्मा धीरे से कह रहा था, "रचना आज तुम गाउन मे बहुत खूबसूरत लग रही हो. आओ बैठो यहाँ कुछ देर."

" नही मुझे जाने दो. बच्चे के दूध पीने का टाइम हो गया है." रचना ने धीरे से कहा.

" कितना किस्मेत वाला है." राज शर्मा ने धीरे से उसके साथ मस्ती करते हुए कहा.

" धात आप बहुत गंदे हो." फिर कुछ देर तक चुप्पी रही सिर्फ़ बीच बीच मे चूड़ियों की या कपड़ों के सरकने की आवाज़ आ रही थी.

" एम्म छोड़ो मुझे प्लीज़. राधा आती ही होगी. मुझे इस तरह तुम्हारी बाहों मे देख कर क्या सोचेगी. तुम मर्द तो कुछ ना कुछ बहाना बना कर बच जाओगे. मैं ही बदनाम हो जाउन्गि." रचना के गिड़गिदाने की आवाज़ आई.

"इतनी जल्दी भी क्या है. राधा काम पूरा करके आएगी कुछ देर तो लगेगा."
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04-07-2019, 12:31 PM,
#28
RE: mastram kahani राधा का राज
" प्लीज़…प्लीज़ मेरा हाथ छोड़ो देखो राज मैं फिर कभी आ जाउन्गि. अभी नही." कहते हुए उसके कमरे से भाग कर निकलने की आवाज़ आई. मैं झट से किचन मे चली गयी. रचना आकर मेरी बगल मे खड़ी हुई. उसकी साँसे ज़ोर ज़ोर से चल रही थी.

"क्या हुआ क्यों भाग रही थी?" मैने पूछा तो उसको मेरे अस्तित्व की याद आई.

"नही नही बस कुछ नही….बच्चा उठ गया है उसे दूध पिलाना है मैं चलती हूँ." कह कर वो बिना मेरे जवाब का इंतेज़ार किए वहाँ से निकल गयी.

अगली शाम हम तीनो खाना खाने के बाद एक ही सोफे पर बैठ कर फिल्म देख रहे थे. आज मेरे कहने के बावजूद रचना ने सारी पहन रखी थी. हां अंदर ब्रा ज़रूरी नही था. कमरे की लाइट ऑफ थी सिर्फ़ टीवी की रोशनी कमरे मे कुछ उजाला कर रही थी. मैं राज शर्मा की एक ओर बैठी थी और रचना दूसरी ओर. फिल्म काफ़ी रोमॅंटिक थी उसमे लव सीन्स काफ़ी थे जिसे देखते देखते मैं गर्म होने लगी. मैं सरक कर राज शर्मा से सॅट गयी. राज शर्मा ने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रख दिया. मैं अपना हाथ राज शर्मा की जाँघ पर रख कर उसे पायजामे के उपर से सहलाने लगी. बगल मे रचना बैठी थी उसकी मैने कोई परवाह नही की. धीरे धीरे मेरा हाथ उसके लंड को पायजामे के उपर से सहलाने लगा. उसका लंड खड़ा हो गया था. मैं उसके लंड को अपनी मुट्ठी मे भर कर सहला रही थी. राज शर्मा ने अपना चेहरा मेरी ओर करके मेरे होंठों को चूमा. अचानक मेरी नज़र रचना पर पड़ी तो मैने पाया कि वो भी राज शर्मा से सटी हुई है और राज शर्मा का दूसरा हाथ रचना के कंधे पर है. वो अपनी उंगलियों से रचना का गाल गला सहला रहा था. रचना का सिर राज शर्मा के कंधे पर टिका हुआ था. उत्तेजना से उसकी आँखें बंद थी. कुछ देर बाद राज शर्मा की उंगलियाँ नीचे सरक्ति हुई उसके ब्लाउस के अंदर घुस गयी. उसके हाथ अब रचना की चूचियों को सहला रहे थे. रचना अपने निचले होंठ को दाँतों मे दबा कर सिसकारियाँ निकलने से रोक रही थी. मगर अचानक ना चाहते हुए भी मुँह से सिसकारी निकल ही गयी. सिसकारी के साथ ही उसकी आँखें खुली और मुझसे आँखें मिलते ही वो हड़बड़ा कर राज शर्मा से अलग हो गयी.

"मैं मैं चलती हूँ मुझे नींद आ रही है." उसने झट अपने कपड़ों को ठीक करते हुए कहा और भागती हुई अपने कमरे मे चली गयी.

अगली शाम को हम तीनो बैठे ताश खेल रहे थे. बच्चा बेडरूम मे सो रहा था. अचानक उसकी रोने की आवाज़ आई.

" मैं अभी आती हूँ. बच्चा उठ गया है उसके दूध पीने का टाइम हो रहा है." कह कर रचना अपने हाथ के पत्ते टेबल पर रख कर उठने को हुई तो मैने उसको रोक दिया.

"तू बैठी रह राज शर्मा ले आएगा बच्चे को. इतना मज़ा आ रहा है और तू भागना चाहती है." मैने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया.

"लेकिन……."

"अरे बैठ ना तेरा चान्स है अपना पत्ता डाल राज प्लीज़ बच्चे को ले आओ ना बेडरूम से."

राज शर्मा उठ कर बेड रूम मे चला गया और बच्चा लाकर रचना की गोद मे दे दिया. बच्चे को देते वक़्त उसने अपनी हथेली के पिच्छले हिस्से से रचना के स्तनो को सहला दिया. उसकी इस हरकत से रचना के गाल लाल हो गये. मैने ऐसी आक्टिंग की मानो मुझे कुछ पता ही नही चला हो.

रचना बच्चे को आँचल मे छिपा कर दूध पिलाने लगी. मैने देखा राज शर्मा रचना के सामने बैठा कनखियों से रचना को निहार रहा था. हम वापस खेलने लगे. राज शर्मा ने ग़लत कार्ड फेंका. मैं तो इसी मौके का इंतेज़ार कर रही थी.

"राज शर्मा या तो ठीक से खेलो या रचना की सारी के अंदर घुस जाओ." मैने गुस्से से कहा.

"नही नही….वो…वू" राज मेरे हमले से हड़बड़ा गया.

"रचना राज को एक बार दिखा ही दे अपने योवन. इसका दिमाग़ तो अपनी जगह पर वापस आए. एक काम कर तू अपने कंधे से सारी हटा दे और देखने दे इसे जी भर के. देख देख कैसे लार टपक रही है इसकी…." मैं हँसने लगी. दोनो भी एक दूसरे से नज़रे मिलकर मुस्कुरा दिए. रचना ने अपनी सारी के आँचल को हटाने की कोई हरकत नही की तो मैं उठी और उसके पास जाकर अपने हाथों से उसकी सारी का आँचल उसके कंधे से हटा दिया. उसक एक स्तन बच्चे के मुँह मे था और दूसरा ब्लाउस मे. राज शर्मा की आँखे इस दृश्य को देख कर फटी रह गयी. रचना के ब्लाउस के नीचे के दो बटन्स लगे हुए थे. ब्लाउस के बारीक कपड़े के पीछे से दूसरे स्तन का आभास सॉफ दिख रहा था. रचना ने अपना सिर शर्म से नीचे झुका लिया. उसके गाल गुलाबी होने लगे.
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04-07-2019, 12:31 PM,
#29
RE: mastram kahani राधा का राज
"क्यों अब तो दिल को सुकून मिल गया. मेरी सहेली के बूब्स को देख कर अब मन मचल रहा होगा उन्हे छ्छूने के लिए. लेकिन खबरदार अगर अपनी जगह से भी हिले तो." मैने कहा. वो कुछ उचक कर रचना के निपल को देखने की कोशिश कर रहा था.

"अच्छा सॉफ नही दिख पा रहा होगा जनाब को." मैने कहा और अपने हाथ बढ़ा कर उसके ब्लाउस के बाकी बचे बटन्स खोल दिए. आख़िरी बटन खोलते समय रचना ने अपनी हथेली को मेरी हथेली के उपर रख कर एक हल्का सा अनुरोध किया, " नही राधा.."

लेकिन मैने आख़िरी बटन को भी खोल दिया. मैं राज शर्मा की तरफ देख कर मुस्कुरई और धीरे से अपने हाथों से ब्लाउस के पल्ले को रचना के दूसरे स्तन के उपर से हटा दिया. उसका स्तन एक तो दूध से भरा होने की वजह से और दूसरा किसी पदाए मर्द की नज़रों की तपिश पा कर एक दम कड़ा हो रहा था. निपल्स खड़े होकर आधे इंच लंबे हो गये थे. रचना अपने जबड़ों को आपस मे भींच कर अपने मन मे चल रहे उथलपुथल को बाहर आने से रोक रही थी. मैने ब्लाउस को कंधे से नीचे उतार दिया और रचना की हल्की मदद से उसे उसके बदन से अलग कर दिया. अब रचना टॉप लेस होकर राज शर्मा के सामने बैठी हुई थी. उसका एक स्तन बच्चे के मुँह मे था और दूसरा किसी के होंठों की चुअन के लिए तड़प रहा था. राज शर्मा ने अपना एक हाथ बढ़ा कर उसके उस उरोज को छुआ तो रचना अपने मे सिमट गयी. राज शर्मा अपनी एक उंगली रचना के निपल के उपर फिरा रहा था. रचना के मुँह से "आअहह……म्‍म्म्मम…." जैसी सिसकारियाँ निकल रही थी. मैने राज शर्मा के हाथ के उपर एक हल्की सी चपत मार कर उसके स्तन के उपर से हटा दिया.

" मैने कहा ना छूना मना है. तुम देखना चाहते थे रचना के बदन को मैने दिखा दिया. इसके आगे कोई हरकत मत करना." लेकिन आग तो भड़क चुकी थी अब तो इसे सिर्फ़ दोनो का सहवास ही शांत कर सकता था. जब एक स्तन का दूध ख़त्म हो गया तो उस निपल को मुँह से निकाल दिया. रचना ने उसे घुमा कर अब अपने दूसरे स्तन के निपल को बच्चे के मुँह मे डाल दिया. बच्चा वापस उसे चूसने मे जुट गया. पहले वाले निपल्स के उपर एक बूँद दूध लटक रहा था. जो बच्चे के मुँह मे जाने से बच गया था. मैने अपनी उंगली मे उस दूध के बूँद को लेकर राज शर्मा की तरफ बढ़ाया राज शर्मा किसी बरसों के भूखे की तरह लपक कर मेरी उंगली को अपने मुँह मे भर कर उसे चूसने लगा.

राज शर्मा आगे बढ़ कर रचना के स्तनो को दोबारा च्छुना चाहता था. इस बार मैने मना नही किया. रचना ने ही उसके हाथ को अपने मकसद मे कामयाब होने नही दिया.

रचना का बच्चा कुछ ही देर मे पेट भरने पर दूसरे निपल को छोड़ कर वापस सो गया. अभी उस स्तन मे दूध बचा हुआ था. रचना ने ब्लाउस पहनने के लिए मेरी ओर हाथ बढ़ाया. मगर मैं तो इतनी जल्दी उसे छोड़ना नही चाहती थी. मैने उसके निपल को अपनी दो उंगलियों मे भर कर हल्के से दबाया तो दूध की एक तेज धार उससे निकल कर सामने बैठे राज शर्मा के पैरों के पास गिरी.

"पियोगे?.... .." मैने राज शर्मा की ओर देखते हुए पूचछा, " अभी कुछ बाकी है. ख़तम करोगे इसे."

अँधा क्या चाहे दो आँखे जैसी ही बात थी. राज शर्मा ने अपने सिर को ज़ोर से हिलाया जिससे मुझे समझने मे किसी तरह की ग़लती ना हो जाए. रचना ने एक बार नज़रें उठा कर राज शर्मा को देखा और मुस्कुरा कर अपनी सहमति भी जता दी. राज शर्मा झपट कर उठा और रचना के स्तन को थामने के लिए आगे बढ़ा.

"नही ऐसे नही. इस काम को पूरा मज़ा लेकर करो कहीं ये भागी तो जा नही रही है. चलो बेडरूम मे" मैने कहा. राज शर्मा तो खड़ा हो ही चुका था. मैने रचना के हाथ से बच्चा लेकर राज शर्मा को थमाया और रचना को खींच कर खड़ा किया. अभी भी कुछ झिझक बची थी उसमे. उसे खड़ी करके मैने उसकी सारी को भी बदन से हटा दिया. अब वो सिर्फ़ एक पेटिकोट पहने हुए थी.

क्रमशः...........................
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04-07-2019, 12:31 PM,
#30
RE: mastram kahani राधा का राज
राधा की कहानी--9

गतान्क से आगे....................

वो अपने हाथों से अपने बदन को ढकने की कोशिश कर रही थी. रचना के बेडरूम मे पहुँच कर पहले बच्चे को धीरे से बिस्तर पर सुला दिया. फिर मैं रचना को अपनी बाहों मे भर कर उसे अपने बेडरूम मे ले गयी. राज शर्मा पीछे रह गया था बच्चे के चारों ओर तकिया लगा कर आने के लिए.

"राधा मुझे शर्म आ रही है. राज शर्मा तेरा हज़्बेंड है. मुझे ऐसा नही करना चाहिए." रचना ने मेरी ओर किसी याचक की तरह देखा. उसकी आँखों मे रिक्वेस्ट थी.

" जब मुझे इससे कोई परेशानी नही है तो तू क्यों अपने आप को परेशान कर रही है. तू मेरी बहन की तरह है. हम एक दूसरे के बिना नही जी सकते तो फिर अपनी सबसे प्यारी चीज़ को अपने इस प्यारे बहन के साथ बाँटने मे मुझे किसी भी तरह का झिझक नही है." मैं उसे अपने बेड पर बिठाया. राज शर्मा भी बेडरूम मे आ चुका था.

मैने राज शर्मा को रचना की गोद मे सिर रख कर लेटने का इशारा किया. राज शर्मा किसी अज्ञानकारी बच्चे की तरह बिना कुछ कहे रचना की गोद मे सिर रख कर लेट गया. रचना राज शर्मा के चेहरे को निहारने लगी और अपनी लंबी लंबी उंगलियों से राज शर्मा के बालों को सहलाने लगी. मैने रचना के एक स्तन को अपने हाथों से थाम कर राज शर्मा की ओर बढ़ाया राज शर्मा ने झट अपना मुँह खोल कर उसके खड़े निपल को अपने मुँह मे भर लिया.

वो किसी बच्चे की तरह आवाज़ करता हुआ रचना के निपल को चूसने लगा. रचना के स्तनो से दूध निकल कर उसके मुँह मे समा रहा था. रचना बहुत उत्तेजित हो चुकी थी. वो अब अपने उपर कंट्रोल नही कर पा रही थी. उसके मुँह से,

"आआआआहह… ..ऊऊऊऊहह… .म्‍म्म्मममम……..न्नराआआआईल…….राआआाईलाम…

….

म्माआआआआ" जैसी आवाज़ें निकल रही थी.

रचना ने अपने नाखूनो से राज शर्मा के सीने पर कई घाव कर दिए. वो राज शर्मा के बालों भरे सीने को सहला रही थी. उसका हाथ राज शर्मा के सीने को सहलाते हुए उसके पेट की तरफ बढ़ा और सकुचाते हुए उसके पायजामे के उपर फिरने लगा. राज शर्मा का लंड पायजामे के अंदर किसी तंबू के बीच वाले बॅमबू की तरह नज़र आ रहा था. उसने अपनी आँखें बंद कर के अपने काँपते हाथों से राज शर्मा के लंड को टटोला और आहिस्ता से उसे अपनी मुट्ठी मे भर लिया. वो राज शर्मा के लंड को पायजामे के उपर से सहलाने लगी. ये देख कर मैने राज शर्मा के पायजामे को ढीला कर के उसके लंड को बाहर निकाल कर रचना का हाथ उस पर रख दिया. नग्न गर्म लंड का स्पर्श पाते ही रचना ने अपना हाथ उस पर से हटा लिया और चौंक कर अपनी आँखें खोल दी. उसका मुँह अस्चर्य से खुल गया और मुँह पर अपनी हथेली रख कर अपनी चीख को रोका.

"राधा ये तो काफ़ी बड़ा है." उसने मेरी की तरफ देखा.

" तुझे पसंद है?" मैने पूछा मगर उसने कोई जवाब नही दिया बस राज शर्मा के लंड को एकटक देखती रही.

राज शर्मा रचना के स्तनो को मसल मसल कर उससे दूध का एक एक कतरा चूस रहा था. रचना का ध्यान राज शर्मा की हरकतों पर नही था. वो तो राज शर्मा के लंड को अपनी मुट्ठी मे लेकर सहला रही थी. राज शर्मा काफ़ी देर तक उसके स्तनो को चूस कर उठा और रचना से लिपट कर उसे बिस्तर पर लिटाने की कोशिश करने लगा. मैं भी उसे इस काम मे मदद करने लगी. मगर रचना ने अपने बदन को अकड़ा लिया और हमारा विरोध करने

लगी.

"नही राधा ये सही नही है." उसने अपने हाथों से राज शर्मा के चेहरे को दूर धकेलते हुए कहा.

"क्यों इसमे ग़लत क्या है? ये एक जिस्मानी भूख है. तुम किसी का हक़ तो नही छ्चीन रही हो. मैं तो खुशी से तुम्हारी ये तड़प मिटाना चाहती हूँ. और जो तुम्हारे सामने है वो कोई और नही राज शर्मा है. उसके साथ जब इतना सब हो गया तो अब आख़िरी काम से झिझक क्यों रही है. अपने दिल पर हाथ रख कर बोल कि राज शर्मा तुझे पसंद नही है. मैं आज के बाद कभी तुझ से कुछ नही कहूँगी."

"नही राधा….चूमने सहलाने तक तो ठीक है मगर सेक्स……" रचना बिस्तर से उतरने लगी.

" रचना क्या हो गया है तुझे आज?" मैने पूछा.

रचना ने अपना सिर झुका दिया और धीमे से कहा," राधा आज नही….मुझे कुछ वक़्त दो अपने दिल और दिमाग़ के बीच चल रहे द्वंद को काबू करने के लिए. प्लीज़"

" ठीक है आज नही लेकिन कल राज शर्मा को अपने जिस्म को छूने की इजाज़त देने का वादा करो."

"ठीक है मैं ….मैं वादा करती हूँ. आज छोड़ दो कल तुम लोगों की जो मर्ज़ी करना." रचना ने कहा.

" ठीक है राज शर्मा कल प्यार कर लेना मेरी सहेली को आज मेरी तो प्यास बुझा दो." कह कर मैं वहीं रचना के सामने अपने वस्त्र उतारने लगी. गर्म तो थी ही दोनो के संबंधों को लेकर. मेरी योनि से रस बह कर बाहर आ रहा था. रचना उठने को हुई तो राज शर्मा ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया.

" तुम मत जाओ… यहीं रहो इससे हमारा मज़ा दुगना हो जाएगा." रचना बिना कुछ कहे वहीं पर रुक गयी. राज शर्मा ने मेरी टाँगों को अपने कंधे पर रख लिया और मेरी कमर के नीचे एक तकिया रख कर मेरी कमर को उँचा किया. फिर मेरी योनि को चादर से पोंच्छा जिससे गीलापन कुछ ख़तम हो जाए. फिर मेरी योनि पर अपने लंड को टिका कर रचना को कहा,

"तुम इसे अपने हाथों से सेट करो अपनी सहेली की योनि मे." रचना ने वैसे ही किया और अपने सूखे होंठों पर जीभ फिराते हुए मेरी योनि मे राज शर्मा के लंड को अंदर तक धंसते देखती रही. मैने रचना को अपने पास खींच लिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

राज शर्मा ने पूरे जोश से मुझे ठोकना शुरू किया. मैं "आहूऊऊहह" करने लगी. आज उसके धक्कों मे ग़ज़ब का जोश था. रचना हम दोनो के पास बैठ कर कभी मेरे बदन को सहलाती कभी राज शर्मा को सहलाती. राज शर्मा ने उसे अपनी बाहों मे ले कर अपने सीने मे कस कर दबा दिया और उसके होंठों को अपने दाँतों से दबा लिया. रचना उत्तेजित हो गयी थी. वो राज शर्मा के अंदर बाहर हो रहे रस से भीगे हुए लंड को अपनी उंगलियों से सहला रही थी.

वो उत्तेजित हो कर बड़बड़ाने लगा," ले ले…और ले…कल तेरी सहेली को भी इसी तरह थोकून्गा. रचनाआअ कैसा लग रहा है…..कैसा लग रहा है तुझे. कल आएगी ना मेरे बदन के नीचे?"

मैं भी उसका साथ देने लगी," हां हाआँ कल बता देना मेरी सहेली को कि तुम किसी शेर से कम नही हो. कल उसका अंग अंग तोड़ देना. उसकी योनि ठोक ठोक कर सूजा देना. इस तरह मसल कर रख देना उसे कि वो भी तुम्हारी गुलाम होकर रह जाए."

रचना ने हमारे रस से भीगी हुई उंगलियाँ उठा कर राज शर्मा को दिखाई तो राज शर्मा ने रचना के हाथो को पकड़ कर उसके मुँह की ओर मोड़ दिया. रचना बिना किसी तरह का इनकार किए उन उंगलियों को मुँह मे भर कर चूसने लगी.

"आहह राधा……..म्‍म्म्ममम….मजाआ… .आ गयाआअ" आज राज शर्मा इतना उत्तेजित था कि जल्दी ही अपना सारा वीर्य मेरी योनि मे उडेल कर निढाल हो गया.
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