04-27-2019, 12:35 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
वापसी में रस्ते भर मैं बस पूजा के बारे में ही सोचता रहा मेरी सांसे अभी तक उसके होंठो के स्वाद से महक रही थी और दिल में उसका असर कुछ ज्यादा सा था अपने आप में खोया हुआ मैं घर आते ही भाभी से टकरा गया
वो- देख के चलना
मैं- माफ़ी भाभी
वो- कहा गायब थे जनाब सुबह से
मैं- बस ऐसे ही टाइम पास
वो- तो टाइम पास भी करने लगे आप , माँ सा से मिल लो आपको पूछ चुकी है कई बार
मैं- जी
मैं माँ सा के कमरे में गया
वो- कुंदन
मैं- क्या हालत बना रखी है अपने जैसे सदियों से बीमार हो आप पहले की तरह अच्छे हो जाओ आपको ऐसे देख कर ठीक नहीं लगता मुझे
वो- जल्दी ही ठीक हो जाउंगी
मैं- हां, कितने दिन हुए अभी आपकी डांट नहीं सुनी तो खाना भी अच्छा नहीं लगता मुझे
वो- ठीक हो जाने दे फिर जी भर के कान मरो दूंगी तेरे
मैं- माँ सा मैं जनता हु की आप इस समय बहुत मुशिकल दौर से गुजर रही हो पर मैं आपको विस्वास दिलाता हु की जो भी होगा ठीक होगा आप फिकर ना करे
वो- माता पे पूरा विस्वास है मुझे
हम बाते कर ही रहे थे की तभी नर्स ने कहा इनको ज्यादा बात नहीं करने देनी तो अं वापिस बाहर आ गया तभी भाई भी आ गया उसके हाथ में कुछ सामान था
भाई- कुंदन ये ले ये वस्त्र तुझे वहा पहनने है और साथ ही कुछ तलवारे है और जो भी हथियार तुझे चाहिए देख ले जरा
मैं- आता हु भाई जी
मैंने उन चीजों को देखा जिनकी मेरे जीवन में कोई आवश्यकता नहीं थी कभी भी बस ऐसे ही मैंने चुनाव कर लिया और अपने कमरे में चला गया पूजा से मिलके जितना सुकून मुझे मिला था यहाँ आकर वापिस ऐसे लग रहा था की जैसे कैद में पंछी लौट आया हो पता नहीं ये मुझे क्या होता जा रहा था मैं कुर्सी पर बैठा पता नहीं क्या क्या सोच रहा था की भाभी आ गयी पता नहीं चला
भाभी- कुंदन
मैं- जी भाभी
वो- हाथ आगे कर जरा तेरी लिए कुछ लायी हु
मैं- क्या
वो- पहले हाथ आगे कर जरा
मैं- ये लो
मैंने जैसे ही हाथ आगे किया भाभी चौंक गयी और बोली- ये तेरे हाथ में क्या बंधा है
मैं- डोरा है भाभी
वो- कुंदन और मेरे हाथ में क्या है
मैंने देखा भाभी के हाथ में भी वैसा ही धागा था जैसे पूजा ने मेरे हाथ में बांधा था भाभी बस मुझे देखे जा रही थी
मैं- क्या हुआ
वो- किसने दिया तुझे ये जाहरवीर जी का धागा
मैं- क्या हुआ पहले बताओ तो सही मामूली धागा ही तो है
वो- मामूली धागा नहीं है ये कुंदन ये डोरा या तो पत्निया ही या फिर बड़ी भाभी ही बांध सकती है तो इसका मतलब ...........
मैं- इसका मतलब ये धागा आप ही बांधोगी भाभी
वो- पर तेरे हाथ में .....
मैं- पर वर क्या भाभी , मेरे हाथ में जो धागा है वो इसके जैसा है पर असली आपके पास है अब आपके सिवा कौन हक़दार इसका
अब बांधो जल्दी से
भाभी ने धागा बाँधा और कुछ दुआ दी मुझे और बोली- तो मेरी देवरानी पसंद कर ली तुमने और बात इतनी आगे बढ़ गयी है
मैं- भाभी आपभी शक करने लगे मुझ पर ऐसा कुछ भी नहीं है
वो- भाभी को तो तूने पराया ही कर दिया कुंदन वर्ना मेरी आँखे इतनी भी नहीं फूटी की धागे धागे में फरक न महसूस कर सकू
मैं- भाभी, आप इस घर में मेरी सबकुछ हो भाभी , या मेरी दोस्त जो भी हो बस आप ही हो फिर आपसे भला मैं क्या छुपाऊ कुछ
होगा तो सबसे पहले आपको ही बताऊंगा न
वो- जाने दो अब क्या फायदा इन बातो का न ही सही समय है वर्ना मेरे सवाल इतने है की जवाब देते नहीं बनेगा तुमसे
मैं- आपके हर सवाल को सर माथे पर लेगा आपका देवर और अगर आपको एक धागे की वजह से ऐसा लगता है की मैं आपसे दूर हु तो अभी इस धागे को तोड़ देता हु
वो- नहीं कुंदन नहीं
मैं- तो फिर कभी मत कहना की भाभी को पराया कर दिया है आपकी जगह कोई नहीं ले सकता
भाभी बस मुस्कुराई और मुझे गले लगा लिया और चुपके से बोली- मेरा प्यारा देवर
उनके जाने के बाद मैं सोचने लगा की मैं उनकी तेज नजरो से अपने इस अनकहे रिश्ते को ज्यादा समय तक नहीं छुपा पाउँगा और होगा क्या जब ये बात सबके सामने आएगी और भाभी वो किस सवाल के बारे में कह रही थी की पूछने पे आएँगी तो मैं जवाब नहीं दे पाउँगा आखिर ऐसा क्या जानती है वो मैं सोचने लगा
पता नहीं कब रात घिर आई थी हमेशा की तरह आज भी वो खामोश थी आसमान में कुछ तारे थे जो शायद कुछ कहने की कोशिश कर रहे थे जैसे तैसे मैंने खाना खाया और आने वाले कल के बारे में सोचने लगा वो कल जो शायद आये या ना आये ये पता नहीं किस प्रकार की भावनाए मुझमे उमड़ रही थी मैंने देखा घर में ख़ामोशी थी पर हर कमरे की बत्ती जल रही थी मतलब कोई भी नहीं सो रहा था
और नींद आती भी किसे शायद सब दुआ कर रहे थे की दिन कभी निकले ही ना मैंने अपने हाथ में वो कपडे लिए जो भाई लाया था एक कुरता और एक धोती कुछ देर उनको हाथ में लिए रखा और फिर मैंने देखा भाई बाहर खड़ा था तो मैं भी आ गया
मैं- क्या हुआ नींद नहीं आ रही क्या
वो- बस ऐसे ही
मैंने देखा उनके हाथ में गिलास था शायद पेग लगा रहे थे पर रात के इस वक़्त
मैं- क्या हुआ भाई
वो- पता नहीं ऐसे लगता है जैसे सीने में दर्द सा हो रहा हो
मैं – तबियत ख़राब है मैं अभी डॉक्टर को बुलाके लाता हु
वो- नहीं भाई, कुछ नहीं है
मैं- तो फिर क्या बात
वो- तू कब इतना बड़ा हो गया पता ही नहीं चला यार, अभी कल तक मेरे सामने नंगा घूमता था और आज देख
मैं समझ गया भाई भी कल की वजह से थोडा परेशान है मैं बस चुपचाप भाई के सीने से लग गया उसकी गर्म बाहों में कुछ देर के लिए जैसे पनाह सी मिल गई वो क्या बोल रहा था क्या नहीं पर आज लग रहा था की बल्कि मैं महसूस कर रहा था की घर क्या होता है परिवार क्या होता है मैंने दरवाजे पर खड़ी भाभी को देखा और उनकी आँखों में कुछ आंसू भी देखे जो मेरे कलेजे को जला गए
बाकि समय हम तीनो ने साथ ही काटा पर ऐसे लगा की जैसे आज भोर जल्दी ही हो गयी हो घर में सुबह से ही चहल पहल बढ़ गयी थी मेरा भाई पल पल मेरे साथ था किसी साये की तरह मैं दो पल के लिए घर के बाहर गया और मैंने देखा जैसे की पूरा गाँव ही वहा आ गया था मुझे नहलाया गया और फिर भाभी ने आरती की पर उनकी डबडबाई आँखे बहुत कुछ कह रही थी मेरे सर पर हाथ रखते हुए बस उन्होंने इतना कहा- अखंड जोत जलाई है निर्जला रहूंगी जब तक तुम नहीं आओगे मेरा मान रखना
भाई ने मुझे अपनी गाड़ी में बिठाया और एक के बाद एक गाड़िया दौड़ पड़ी उस रस्ते की तरफ जो लाल मंदिर की और जाता था करीब पौने घंटे बाद हम वहा पहुचे और जैसे ही मैं गाड़ी से उतरा चारो तरफ कुंदन ठाकुर के नाम के जयकारे लगने लगे इतनी भीड़ मैंने पहले कभी नहीं देखि थी और तभी मैंने ठाकुर जगन सिंह को हमारी और आते देखा
वो हमारे पास आया और बोला- ठाकुर कुंदन सिंह, मुझे तो उसी दिन समझ जाना चाहिए था पर पता नहीं तेरे अन्दर की आग को मैं पहचान नहीं सका
“आग पहचानी नहीं जाती जगन सिंह आग में बस जला जाता है ” राणाजी ने हमारी और आते हुए कहा
जगन- राणा हुकुम सिंह वाह तो ठीक बारह साल बाद ले ही आये वो ही दौर एक बार फिर पर इस बार दांव पर लगाया तो किसको जिसके दूध के दांत अभी टूटे नहीं
मैं- तमीज से ठाकुर साहब
राणाजी- अपने भाई के पास जाओ कुंदन
जगन- हां मिलवा लो जिससे मिलवाना है क्या पता बाद में नसीब हो ना हो
राणाजी- अपनी मर्यादा में रहे जगन सिंह जो बात करनी है हमसे करे बच्चो को बीच में ना लाये
जगन- यहाँ तो बच्चे ही हमे बीच में ले आये अब देखते है ऊंट किस करवट बैठेगा हमे तो बड़ी उत्सुकता है जिस तरह से आपके शेर ने चुनौती दी थी कितनी देर वो टिक पायेगा बड़ा सुकून मिलेगा जब उसका गर्म लहू इस पवित्र धरती की प्यास बुझाएगा बारह साल बहुत होते है हुकुम सिंह पर देखो तक़दीर एक बार उसी मोड़ पर सबको ले आई है ना
राणाजी- तब भी बात तुम नहीं समझ सकते थे और आज भी नहीं समझ रहे हो हमने तो हथियार उसी दिन गिरा दिया था पर खैर अब चुनौती स्वीकार हुई है तो मान भी होगा
जगन – हमे तो उस पल का इंतजार है जब कुंदन की लाश यहाँ पड़ी होगी और आप अपने घुटनों पर बैठे होंगे
राणाजी- तुम्हारा नीचपन गया नहीं आज तक खैर ना तुम पहले बात करने लायक थे ना आज हो
जगन- मेरी तो बस एक ही हसरत की आपके खून से अपनी तलवार की पयस बुझा सकता पर आपने तो हथियार ही छोड़ दिया कायरता का नकाब ओढ़ लिया
राणाजी- इन हाथो ने हथियार छोड़े है चलाना नहीं भूले और दुआ करना की तुम्हारे जीवन में वो दिन कभी नहीं आये बाकि किसी लोहे के टुकड़े की इतनी हसियत नहीं जो हमारे लहू से अपनी प्यास बुझा सके
|
|
04-27-2019, 12:36 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मेरा रुदन जब ख़तम हुआ तब तक उसके शरीर के पांच टुकड़े हो चुके थे मैंने अपनी चुनौती पूरी की मैंने देखा मेरे गाँव के लोग जय जय कार कर रहे थे मैंने राणाजी को अपनी और आते देखा अब मुझे अंगार का सर माता के दरबार में चढ़ाना था पर मैं अगर कुछ चाहता था तो सिर्फ पूजा से मिलना जैसे तैसे मैंने वो रस्म निभाई और फिर एक मटकी में अंगार का जितना खून इकठ्ठा कर सकता था कर लिया
मैं अपने भाई के पास गया और उस से गाड़ी की चाबी मांगी उसके चेहरे पर हज़ार सवाल थे पर उसने चाभी मेरे हाथ में रख दी मैंने गाड़ी चालू की और अपने दर्द से जूझते हुए अपपनी बेहोश होती आँखों और खोते होश को सँभालते हुए गाड़ी तेजी से भागा दी मेरी छाती का ज़क्म खुला था जिसमे से अभी भी खून रिस रहा था सर घूम रहा था पुरे बदन में दर्द था पता नहीं ये कैसा जीवट था बस पहुच गया मैं उसके दरवाजे पर
“पूजा पूजा ” मैंने चिल्लाते हुए उसका दरवाजा पीटना शुरू किया
जैसे ही दरवाजा खुला मैं उसकी बाहों में झूल गया
“कुंदन ” वो चीखी और मुझे अपनी बाहों में लिए लिए ही बैठ गयी उसकी आँखों से आंसू झर झर के गिरने लगे
मैं- पूजा मैंने अपनी कसम निभा दी देख मैं लौट आया हु और साथ उस नीच का खून भी लाया हु तेरे पैर धोने को
वो- कुंदन तू बहुत घायल है तुझे इलाज की जरुरत है तू रुक मैं करती हु कुछ , करती हु कुछ
मैं- कुछ नहीं होगा पगली जब तू साथ है तो भला मुझे क्या हो सकता है मैं कहा गिर सकता हु जब तू है मुझे थामने के लिए पगली
पूजा की आँखों से आंसू बाहे जा रहे थे वो जोर जोर से रोये जा रही थी
मैं- रोती क्यों है देख मै आ गया हु न तेरे पास इर क्यों रोती है
वो- खून, बहुत खून बह रहा है कुंदन
मैं- पानी पिला दे थोडा पूजा प्यास लगी है
वो- लाती हु
वो तेजी से भागी अन्दर मैंने एक नजर खुद को देखा और फिर उसने प्याला मेरे होंठो से अलग दिया उसके हाथो से कुछ घूंट पानी पीकर लगा की जैसी बरसो की प्यास बुझ गयी हो जैसे किसी प्यासी जमीन पर घनघोर बारिश बरस पड़ी हो
वो- एक मिनट मैं अभी आई
वो दौड़ कर अन्दर गयी और फिर आई तो उसके हाथो में कुछ लेप सा था जो वो मेरे सीने पर मलने लगी और जैसे मेरा सब कुछ जलने लगा धुआ सा उठने लगा पर वो उसे मेरे बदन पर लगाती रही बेशक जलन हुई पर उसके लेप का असर भी हुआ कुछ पलो के लिए मैंने आँखे मूंद ली वो मुझे सहलाती रही मैं उसकी गोद में लेटा रहा
फिर मुझे अपने गालो पर कुछ गीला सा लगा मैंने देखा उसके आंसू थे
मैं- रोती क्यों है पगली
वो- कहा रो रही हु
मैं- फिर आंसू क्यों
वो- आँख में कुछ चला सा गया होगा
मैं सहारा लेते हुए उठा और उसके हाथ को अपने हाथ में लिया और बोला- पूजा अभी मुझे जाना होगा मैं बाद में मिलूँगा
वो- तेरी हालत ठीक नहीं है मैं चलती हु साथ
मैं- नहीं रे, तेरा कुंदन इतना भी कमजोर नहीं लाल मंदिर से सीधा तेरे पास आया हु पर अभी घर भी जाना होगा एक और जरुरी काम है जो करना है पर उस से पहले तू यहाँ आ
मैंने वो मटकी ली और उसे दिखत हुए बोला देख इसमें उ नीच क खून है जिस से मैं तेरे पैर धोऊंगा अपने पैर आगे कर
अपने आपको सँभालते हुए मैंने पूजा के पैरो को धोया और फिर उसे हैरान परेशान छोड़ कर मैं गाव की तरफ मुड गया पर मेरी हालत भी ठीक नहीं थी पल पल आँखों के आगे अँधेरा छा रहा था और तभी जैसे उक्काब आई और खून की उलटी गाड़ी में ही गिरने लगी लगा की जैसे अब प्राण निकले ही गाँव पता नहीं दूर था या पास था होश जैसे गुम सा ही था अँधेरा जैसे निगलने ही वाला था और तभी पता नहीं भाभी का चेहरा नजर आने लगा
जो अपने देवर का इंतज़ार कर रही थी की वो आकर उसका निर्जला उपवास तोड़ेगा बड़ी मुश्किल से अपन आप पर काबू पाया ये मैं जानता हु या बस मेरा खुदा की कैसे मैं पहुच पाया पता नहीं साला रास्ता लम्बा हो गया था या फिर हमारी ही हिम्मत टूट गयी थी बस फिर इतना ही याद रहा की गाडी जब रुकी तो घर के बाहर भीड़ लगी थी और भाभी आरती का थाल लिए मेरी राह देख रही थी
बस उसके बाद कुछ याद ना रहा इसके सिवा की भाभी की बाहों में झूल गया था जब आँखे खुली तो खुद को हॉस्पिटल में पाया बदन पर जगह जगह पट्टिया बंधी थी कुछ छोटी कुछ बड़ी थोडा बहुत हिलने की कोशिश की तेज दर्द हुआ फिर मेरी नजर भाभी पर पड़ी जो अभी अभी आ रही थी
भाभी- कुंदन ओह , होश आ गया तुम्हे
मैं- भाभी
वो- कुछ मत बोलो बस लेटे रहे मैं अभी डॉक्टर को बुलाती हु
फिर कुछ देर बाद डॉक्टर के साथ पूरा परिवार ही आ गया ऐसा लगा मुझे डॉक्टर ने पता नहीं क्या चेक किया और क्या बताया पर अपने को करीब हफ्ता भर उधर ही रुकना पड़ गया सब लोग पल पल मेरे पास ही रहते पर मैं बस पूजा को ही देखना चाहता था अपने पास मुझे अपने से ज्यादा उसकी फ़िक्र थी पता नहीं क्यों उससे इतना लगाव हो गया था की जैसे मेरी हर साँस बस पूजा का नाम ही सुमरती थी
डॉक्टर ने बताया था की कुछ चोट ज्यादा समय लेंगी ठीक होने में और सर पर जो घाव लगा उसकी वजह से कमजोरी भी लगेगी पर खाने- पीने और दवाइयों से रिकवरी हो जाएगी पर कब हफ्ते भर से यहाँ पड़े है जिंदा लाश की तरह वैसे तो सब था यहाँ पर पर अब कोफ़्त होने लगी थी उस दिन मैंने आखिर कह ही दिया
मैं- हटाओ यार ये ताम-झाम तुम्हारे जाने दो हमे बाकि अब घर पर ठीक हो लेंगे
डॉक्टर- पर अभी आपको और रुकना पड़ेगा
मैं- समझो आप अब मैं बेहतर हु वैसे भी बस पट्टिया ही तो बदलनी है वो तो घर पर भी बदली जा सकती है मुझे बस जाना है
तो आखिर मैंने कुछ हिदायतों के साथ अपनी बात मनवा ही ली और घर आ गया , यहाँ आकर बहुत सुकून मिला लगा की मैं ठीक ही हो गया हु पर कुछ पाबंदिया थी जबकि दिल अपना उड़ना चाहता था असमान में मिलना चाहता था पूजा से और छज्जे वाली की भी बहुत याद आने लगी थी पर भाभी एक पल भी अकेला नहीं छोडती थी , कोई ना कोई हर पल साथ ही रहता पर अब मन बेकाबू होने लगा था
तो उस दोपहर पहन कर नीली शर्ट आधी बाजु वाली और बालो को ठीक से बा कर हमने भी सोच लिया की आज पूजा से मिलना ही है और बस अपने आप में मुस्कुराते हुए कमरे से निकल रहे थे की दरवाजे पर भाभी सा से टकरा गए
भाभी- कहा जा रहे हो
मैं- जी बस सोचा थोडा बाहर घूम लू
वो- तबियत इतनी भी ठीक नहीं हुई अभी
मैं- अभी मन नहीं लगता भाभी मैं जल्दी ही आ जाऊंगा
वो- उफ्फ्फ ये बेताबी तुम्हारी काश कोई इतना हमारे लिए भी तड़प जाये
मैं- भाभी आपको तो टांग खीचने का बहाना चाहिए बस चलो आप नहीं चाहती तो नहीं जाता
वो- वैसे भी नहीं जा पाते, राणाजी और तुम्हारे भाई निचे ही है
मैं- कोई बात नहीं
मैं वापिस अपने पलंग पर बैठ गया भाभी सामने कुर्सी पर बैठ गयी और बोली- वैसे इतनी बेताबी किस से मिलने की है तुम्हे जो बार बार ये बेकरारी तुम्हारे चेहरे पर आ जाती है
मैं- कितनी बार बताऊ भाभी
वो- जब तक तुम सच नहीं बता देते की कौन है वो जो हमारे देवर के लिए इतनी महत्वपूर्ण हो गयी है
मैं- इतना भी शक ना करो भाभी
वो- शक क्या देवर जी आप कहो तो सही हम तो सबूत पेश करदे याद है हमने कहा था की जिस दिन ठकुराईन जसप्रीत सवाल करने पे आएगी जवाब नहीं सुझेंगे
मैंने भाभी के चेहरे पर वो ही रहस्यमयी शरारती मुस्कान देखि और आज भी उन्होंने वो ही बात बोली थी
मैं- आज आप कर ही लो सवाल जवाब भाभी
वो- देख लो फिर ना कहना
मैं- नहीं कहूँगा
वो- तो फिर बताओ क्या चल रहा है दरअसल मेरे मन में दो बाते है एक पर मुझे पूरा विश्वास है और दूसरी को मेरा मन नहीं मानता पर सच छुपता भी तो नहीं
मैं- पहेलियाँ ना बुझाओ भाभी आप ऐसे ही जान ले लो मेरी
वो- ना जी ना जान लेके हम क्या करेंगे
मैं- तो फिर क्या बात
वो-ठीक है मुद्दे पर आते है अब प्रेम-प्रसंग तो तुम कबुलोगे नहीं तो मैं दूसरी बात करती हु और मैं उम्मीद करुँगी की तुम झूठ नहीं बोलो और ना ही कोई बहाना मारो
मैंने हाँ में सर हिलाया
वो- तू तुम्हारे और चाची के बीच क्या सम्बन्ध है
|
|
04-27-2019, 12:36 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मैं- और भाई क्या हालचाल
वो – बढ़िया आप बताओ ठाकुर साहब
मैं- यार तू भी
वो- तो क्या कहे
मैं- कुंदन बोल भाई और एक नयी कैसेट भर
वो- हां, अभी लो आज फ्री ही हु वैसे आपकी वो आयत आई थी आज
मैं- कब
वो- घंटे भर पहले ही गयी है
मैं- तो यार बताना था ना
वो- कितनी बार तो बताया पर आप है की टाइम पर आते ही नहीं
मैं- भाई एक से एक पंगा तैयार रहता बस उलझ ही जाता हु कभी कुछ कुछ होता है साला खुद के लिए समय निकालना भारी हो रहा है अब तबियत कुछ ठीक नहीं तो वैसे
वो- वैसे बवाल तगड़ा काट दिया आपने
मैं- अरे कुछ नहीं बस ऐसे ही हो गया
वो- हम सुने कोई लड़की वडकी का पंगा हुआ आपके और अंगार के बीच
मैं- कौन बोला तेरे को
वो- बस आजकल आपके ही चर्चे है चारो और तो आ गयी खबर
मैं- झूटी खबरों पे ध्यान ना दिया कर
वो- खैर, बताओ कौन कौन से गाने भरे
मैं- जो आयत ले गयी वो ही भर दे
उसने मुस्कुराते हुए गाने भरने चालु किये मैं बाहर आके बैठ गया हलवाई की दुकान पर एक चाय ली और चुसकिया लेते हुए बस आयत के बारे में ही सोचने लगा वैसे तो हमको यकीन था की छजे वाली का ही नाम आयत है पर बस कन्फर्म हो जाता तो बेहतर रहता क्योंकि इक तो उससे मुलाकात बहुत कम हो रही थी और हुई भी तो ज्यादा कुछ बात ना हुई
पर जब भी आयत के बारे में सोचता तो पूजा मेरे दिल दिमाग पर हावी होने लगती मर ध्यान आयात से हट कर पूजा पर ही चला जाता और मैं फिर खोने लगता उसके अहसास में बड़ी विचित्र सी स्तिथि उत्पन्न हो रही थी और हम भी समझ रहे थे की कभी ना कभी ये दो नावो की सवारी महंगी पड़ेगी हमे
पर हमारा नाजुक दिल कहा किसी की सुनता था वो तो बस वो ही करता था जो उसको करना होता था खैर एक बार जो घर स निकले तो फिर रात को ही गए वापिस जब मैं घर आया तो बिजली गुल थी और मोसम बरसात का हो रहा था ये सावन भी न इस धरती पर नहीं ये मुझ पर बरस रहा था इस बार
अपने आप में इस कदर खोया हुआ था की भाभी कब कमरे में आई कुछ पता नहीं चला होश जब आया जब उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा
भाभी- कहा खोये हुए हो देवर जी
मैं- अरे भाभी आप
वो-हां, मैं पर किसी और को होना चाहिए था क्या
मैं- नहीं आप भी पता नहीं क्या क्या बोलती हो
वो- सोचा यहाँ ही बिस्तर लगा लू
मैं- सारा घर आपका है जहा जी करे लगा लो
वो- इस बार बरसात बहुत ज्यादा पड़ रही है ना
मैं- हां,
वो- जानते हो ये बारिश की बुँदे भी अपनी कहानी सुनाती है
मैं- और क्या कहती है ये
वो- ये तो समझने वाले पे है
मैं- तो आपको क्या कहती है ये
वो- कुछ नहीं
मैं- बढ़िया
भाभी मुस्कुराई
मैं- और बताओ
वो- क्या बताये हम बाते तो तुम्हारे पास है
मैं- अजी हम तो झोंके हवा के से हो रहे है अब कुछ होश ना कुछ खबर अपने से बेगाने होने लगे है
भाभी- इश्क में जो पड़ गए हो
मैं- नहीं भाभी मुझे ऐसा नहीं लगता है इश्क बुरी बीमारी और फिर मैं इस काबिल कहा
वो- इश्क हो तो काबिल अपने आप कर देता है
मैं- भाभी इश्क मुझे अपनाये इस काबिल नहीं मैं
वो- जुबान झूठ बोलती है पर आँखे कुछ और बयां करती है
मैं- अभी कैसे कहू मैं
वो- देर ना करना ,वर्ना फिर सारी उम्र मलाल रहेगा
मैं- किस बात का
वो- तुम जानो
मैं- क्या जानू क्या समझू
वो- बस महसूस करो इश्क अपनी मोजुदगी खुद बता देगा
मैं- इश्क हमारे जैसो के लिए कहा सबसे पहले राणाजी ही काट डालेंगे
वो- ये तो इश्क करने से पहले सोचना था और इश्क सच्चा होगा तो पर पा जाओगे
मैं- छोड़ो ना इन बातो को भाभी और कुछ बाते करो
वो- क्या बात करू कुछ भी तो नहीं मेरे पास कहने को
मैंने रेडियो चालू किया कुछ गाने बजने लगे लैंप की रौशनी में एक दुसरे के आमने-सामने बैठे हुए हम दोनों बस एक दुसरे को ही देख रहे थे जैसे कहना तो बहुत कुछ चाहते थे पर पता नहीं वो कौन सी बात थी जो होंठो तक आकार रुक जाती थी
लैंप की लौ में भाभी का गोरा चेहरा किसी खरे सोने की तरह दमक रहा था चेहरे को उनके बाल हलके हलके जैसे चूम रहे थे उनके गाल पर जो काला तिल था बस एक नजर में ही किसी को भी बेक़रार कर जाये भाभी जब मुस्कुराती थी तो उनके मोतियों से दांत उनके सुतवा होंठ खूबसूरती की जीती जागती मिसाल थी वो पता नहीं कब मैं उन्हें निहारने में इतना खो गया
भाभी- अब ऐसे भी मत देखो देवर जी की नजरो से ही ............................. उन्होंने अपनी बात अधूरी छोड़ दी
मैं- कुछ नहीं भाभी वो .....
वो- वो क्या
मैं- कुछ नहीं
वो- सब समझती हु मैं
मैं –समझती ही तो नहीं हो भाभी समझती तो ऐसी बात ना करती
वो- तो कैसी बाते करू तुम ही बता दो
मैं- जाने दो , सो जाओ रात बहुत हुई
वो- हाँ रात बहुत हुई पर तुम्हारी आँखों में नींद नहीं
मैं- अब नींद है भाभी आये आये ना आये
वो- अक्सर इस हाल में नींदे उड़ जाया करती है
मैं- किस हाल में भाभी
वो- जो अभी तुम्हारा है
मैं- बस यही तो कसमकश है भाभी की पता नहीं ये क्या हो रहा है पल पल ऐसा लगता है की जैसे सब कुछ बदल सा गया है
वो- सब नहीं बस तुम बदल गए हो जैसा मैं पहले कहा इश्क हो गया है तुमको चाहे तुम मानो या ना मानो
मैं- इश्क पर किससे बस यही उलझन है भाभी
वो- दो चार है क्या
मैं- पता नहीं पर इतना जरुर जानता हु की जैसे कई टुकड़े हो गए है मेरे जैसे बिखर कर रह गया हु मैं
वो- ये भटकाव अच्छा नहीं इश्क बुरी बला होती है लग जाये तो आसानी से पीछा नहीं छूटता हम तुम्हे मना तो नहीं कर सकते पर इतना जरुर कहेंगे की प्रीत का स्वाद जो चखा जुबान ने फिर बेगाने हुए जग से समझो अब भाभी तुम्हे क्या समझाए आखिर हमारी हदे बस इस चारदीवारी तक ही तो है पर फिर भी हम थोड़े उत्सुक है अपने देवर की प्रेम कहानी को महसूस करने के लिए
मैं- प्रेम बस किस्से कहानियो में होता है भाभी
वो- तो क्या तुम्हरे लिए भी बस ये जिस्मो का खेल है
मैं- भाभी मेरे लिए जिस्मो का कोई मोल नहीं न ही सूरत का बस दिल धड़क सा जाता है अपने आप
वो- तो बताओ जरा कैसी है वो
मैं- आप पूछ कर ही मानेंगी ना
वो- इतना तो हक़ है हमारा
मैं- उस से कही ज्यादा पर मैं फिर से दोहराऊंगा की मेरे पास कुछ भी नहीं बताने को फ़िलहाल तो पर जब भी कुछ होगा ये वादा है की सबसे पहले सिर्फ आपको ही बताऊंगा
वो- हमे इंतजार रहेगा खैर, सो जाओ अब
मैं- आप सो जाइये मुझे अभी नींद नहीं आ रही
वो- तो मैं भी जागती हु फिर
मैं- आपकी मर्ज़ी
व्- एक बात कहे
मैं- जी
वो- चाची और तुम में ये सब कैसे शुरू हुआ
मैं- पता नहीं
वो- अब इतना भी शर्माना बता भी दो
मैं- बस हो गया अपने आप
वो- अपने आप कुछ नहीं होता कही ना कही से तो शुरू हुआ ही होगा कोई तो बात
मैं- भाभी अब क्या नंगा ही करोगी झूठा सा पर्दा तो रहने दो ना
वो- अच्छा ठीक है नहीं पूछती अब खुश
मैं- आप बताओ कुछ
वो- मैं क्या बताऊ
मैं- कुछ भी
वो- मेरी तो इतनी ही जिंदगी है कुछ पीहर में कट गयी कुछ यहाँ इन चार दीवारियो में कट रही है एक औरत की बस यही कहानी यही फ़साना है इसके सिवा कुछ नहीं
मैं- समझता हु भाई फौज में है तो आपको अक्सर उनके बिना ही रहना पड़ता है पर तीन बरस और उनके पन्द्रह हो जायेंगे फिर वो हमेशा के लिए आपके साथ ही तो होंगे
वो- वो तो है पर कुछ बाते और भी होती है जीवन में जो तुम अभी नहीं समझोगे
मैं- बताओगी तो समझ लूँगा
वो- मुझे नींद आ रही है चलो अब सोने दो
|
|
|