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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
ये कौन था दोस्त तो हो नहीं सकता क्योंकि झोपडी जलाना और पूजा के अनुसार गाड़ी में रखे बम का निशाना मैं था पर दुश्मन था तो वो बैग रुपयो से भरा और फिर भाभी और राणाजी के बीच हुई वो सब बातें आखिर ये चक्कर क्या था ये कौन सा खेल था जिसमे मैं एक मोहरा था
उस पूरी रात पूजा का कोई अता पता नहीं था वो रात बस ऐसे ही आँखों आँखों में कटी सुबह मैं फिर से जुम्मन से मिलने गया और उसको वापिस झोपडी बनाने को कहा पर उसने कहा कि इस बार पक्का कमरा ही बना देगा ताकि फिर कोई ऐसी हरकत न कर सके
मैंने कहा जैसा ठीक लगे कर दे उसके बाद मैं घर गया भैया की मौत के बाद माँ सा ने खाट पकड़ ली थी तबियत खराब रहने लगी थी कुछ देर उनके पास बैठा और फिर भाभी के पास गया
मैं- कुछ बात करनी थी
वो- हां बताओ
मैं- ये सबकुछ मेरे नाम करने का क्या पंगा है
वो- तुम्हे क्या लगता है
मैं- मुझे कुछ नहीं चाहिए सिवाय उन जवाबो के जिनकी मुझे तलाश है
वो- जवाब तो हर लम्हा तुम्हारे साथ है पर जरूरत है उस नजर की
मैं- पहेलिया नहीं भाभी
वो- जितना मैं जानती हूं बता चुकी हूं
मैं- कल आपकी और राणाजी की बाते सुनकर ऐसा नहीं लगता मुझे
भाभी- तो राणाजी से क्यों सवाल जवाब नहीं करते हो
मैं- उनसे भी करूँगा, पर आपसे इतना तो पूछ सकता हु न की अर्जुन सिंह की वसीयत झूठी है ना
वो- नहीं झूठी नहीं है बस किरदार बदल गए बल्कि बात ऐसी है की उस वसीयत में एक बहुत ही खास बात है बस उस बात को पकड़ लो काम हो जायेगा
मैं- पहेलिया नहीं भाभी मुझे जवाब दो
भाभी- तुम्हे आखिर इतनी दिलचस्पी क्यों है तुम भी सीधे सीधे क्यो नहीं बता देते हो
मैं- क्योंकि मैं जुड़ा हु अर्जुनगढ़ से अब ये मत पूछना की क्यों कैसे
भाभी- और तुम्हे ऐसा क्यों लगता है देवर जी मेरी एक बात हमेशा ध्यान रखना की आँखों देखा भी सच नहीं होता है कई बार ऐसा होता है की हम चीज़ों को अपने हिसाब से समझ लेते है पर हकीकत में होता कुछ और ही है
मैं- आपका इशारा किस और है
भाभी- उसी और जिस तरफ तुम समझ रहे हो रही बात इन्दर और मेरी वसीयत की तो हमने जो तुम्हे दिया है वो तुम्हारा हिस्सा है हमारे कोई औलाद हुईं नहीं और तुम्हे कभी औलाद से कम माना नहीं तो क्या हम तुम्हारे लिए इतना भी नहीं कर सकते क्या
मैं- पर भाभी
वो- पर क्या , कुछ और चाहिए तुम्हे
मैं- राणाजी ने मेरे पीछे आदमी लगाये पर उनको मारा किसने
वो- पता नहीं
मैं- भाभी जल्दी ही एक दौर आएगा जब आप फिर से एक दोराहे पर खड़ी होंगी तब किसे चुनेंगी
भाभी- तुम्हे चाहे लिख के ले लो
मैं- जरूर
भाभी मेरे पास आयी और अपने दहकते हुए लबो को मेरे होंठो से जोड़ दिया कुछ देर वो चूमती रही और बोली- बताओ और कहा लिख के दे
मैं- भाभी कही आपने राणाजी की मुझ पर डोरे डालने वाली बात तो नहीं मान ली ना
भाभी- अभी हम तुम्हारी नजरो से इतना भी नहीं गिरे है कुंदन
इसी के साथ मैं कमरे से बाहर निकल गया निपट दोपहर में मैं पैदल ही चला जा रहा था धुप कुछ ज्यादा ही तेज लग रही थी मैं खारी बावड़ी के पास से गुजर रहा था की मुझे लगा कोई है उस तरफ पर दिन का समय था शायद कोई चरवाहा या कोई ओर हो तो मैंने ध्यान नहीं दिया
और आगे बढ़ गया और जा पहुंचा पूजा के घर दरवाजा खुला था मैं अंदर गया वो सब्ज़ी काट रही थी
मैं- कहा गयी थी तू बता के नहीं जा सकती थी क्या
वो- एक जरुरी काम था और तू इतनी फ़िक्र ना किया कर मेरी
मैं- क्यों फ़िक्र न कर तेरी पता नहीं कौन दुश्मन है कौन दोस्त अगर तुझे कुछ हो गया तो
वो- कुछ नहीं होगा मुझे
मैं- इतना यकीन कैसे है तुझे
वो- तू जो साथ है ,वैसे मुझे पता लगा कोई तेरी झोपडी जला गया।
मैं- अब क्या कर सकते है सरकार, सब खाली पड़ा है यहाँ कोई कभी भी कुछ कर जाये कौन देखता है.
पूजा- पर ये किसी आम गांव वाले की हरकत नहीं हो सकती वैसे भी कुंदन ठाकुर को अपना मानते है गांव वाले।
मैं-मुझे लगता है की मेरे इर्द गिर्द एक जाल बुना जा रहा है जैसे कोई चक्रव्यूह रचा जा रहा है
वो-कुंदन एक एक कड़ी को फिर से जोड़ो कुछ तो बात बनेगी सोचो जरा ये सब कैसे शुरू हुआ हर छोटी से छोटी बात पर विचार करो हो सकता है कुछ छूट रहा हो
मैं-तुम ही बताओ ये सब कहाँ से शुरू हुआ
वो- जब मैं पहली बार तुम्हे मिली
मैं-मान सकते है ऐसा ,तुमने मुझे अपनी कहानी सुनाई और मैं उससे जुड़ता चला गया
वो- तक़दीर कहते है इसे अगर मैं न होती तो कोई और जरिया होता जो तुम्हे ये सब बताता
मैं-सही है, परन्तु मुझे एक बात खटकती है की तुम बार बार उस हवेली तक जाती हो और वापिस आ जाती हो तो क्यों उसपे अपना हक नहीं जताती हो
वो- तुम्हे क्या लगता है की मैं ऐसा क्यों नहीं करती हूं
मैं- तुम ही बताओ
वो- क्योंकि मेरे पास आज कुछ भी ऐसा नहीं की मैं साबित कर सकु मैं ही वारिस हु ऊपर से वसीयत की शर्त तुमसे शादी किये बिना
मैं उसपे हक़ नहीं जता सकती
मैं- सवाल मुझसे शादी का नहीं है तेरे लिए मैं वो भी कर लूंगा पर मुद्दा है ये साबित करना की तू ही असली वारिस है और एक बात भाभी ने कहा था कि वसीयत की वो शर्त एक छलावा है
पूजा- तुम्हे वकील से मिलके वसीयत की ओरिजनल कॉपी लेनी पड़ेगी
मैं- हमे पूजा, इस बार तुम भी मेरे साथ चलोगी और मना मत करना जितना जल्दी हो सके हमे इस सब को सुलझा कर एक नयी जिंदगी की शुरुआत करनी होगी
जैसे ही मेरी बात पूरी हुई मुझे पूजा के चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान दिखाई दी
वो- चल पहले खाना खा ले बाकि बाते बाद में करेंगे
उसके बाद हमने खाना खाया मैं कुछ देर के लिए लेट गया आँख सी लग गयी कुछ घंटों बाद उठा और एक बार फिर से हमारी बातें शुरू हो गयी
मैं- यार वो पैसो का सूटकेस भी राख हो गया होगा
वो- नहीं मैं उसे यहाँ ले आयी थी पलंग के नीचे पड़ा है वैसे इन रुपयो का तुम करोगे क्या
मैं- पता नहीं
वो- रात को मेरे पास रुकोगे ना
मैं- नहीं कुछ काम है मुझे
वो- रात को कौन सा काम है
मैं- एक छोटा सा काम है होते ही लौट आऊंगा
वो- साथ चलु मैं
मैं- अभी नहीं पर अगली बार पक्का ले चलूंगा
रात अभी शुरू ही हुई थी मैं पूजा के घर से निकल कर खारी बावड़ी की ओर चल दिया इन तमाम बातों में मैं पद्मिनी को भूल ही गया था और आज मैंने सोचा था की अगर कोई मेरी मदद कर सकेगा तो बस पद्मिनी ही मैं ये भी जानता था की ये सब खतरनाक होगा मेरे लिए हालाँकि मुझे की मदद लेनी चाहिए थी पर एक बार मैं खुद से कोशिश करना चाहता था
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
बावड़ी हमेशा की तरह शांत थी वो ही सूनापन वो ही ख़ामोशी मैं उस कमरे की तरफ गया आज दरवाजा खुला था जैसे किसी को पता हो की मैं आने वाला हु जैसे ही मैं कमरे में गया अचानक से एक दिया जल गया
और रौशनी सी हो गयी पर कमरे में कुछ नहीं था कुछ भी नहीं सिवाय एक गहरी ख़ामोशी के पर मै अपने पास किसी की मौजूदगी को जरूर महसूस कर पा रहा था
मैं- जानता हूं आप यही कही है मेरे सामने आइये मुझे आपसे बात करनी है
मैंने कुछ देर इंतज़ार किया पर वही ख़ामोशी
मैं- आज मैं यहाँ से ऐसे नहीं जाऊंगा जो नजारा मैंने आपकी आँखों में देखा था उस से मेरी ज़िंदगी में तहलका मचा हुआ है आपने ऐसा क्यों दिखाया आपको बताना होगा ,बताना होगा
पर जैसे ही मेरी आवाज शांत हुई वही ख़ामोशी फिर से छा गयी। कमरे के रखा दिया कब से बुझ गया था पर आज मैं कुछ सोच कर आया था सिर्फ पद्मिनी की रूह ही मुझे बता सकती थी की आखिर ऐसा क्या हुआ था जिसकी वजह से उन्हें जान देनी पड़ी
पर जितना मैं उन्हें पुकारता उतना ही वो सूनापन मुझ पर अपने डोरे डालने लगता रात इसी कश्मकश में आधे से ज्यादा बीत गयी कोई हल नहीं निकले मैं बावड़ी की सीढ़ियों पर बैठा था और तभी मुझे पानी रिसने की आवाज सुनाई दी मैंने देखा बावड़ी में पानी भर रहा था
कुछ ही देर में पानी लबालब भर गया चाँद की रौशनी में मैंने पानी में एक परछाई देखी पर दूसरी तरफ कोई नहीं थी
मैं- आखिर क्यों आँख मिचौली खेल रही है आप
फिर से कोई जवाब नहीं आया पल पल मेरी हताशा बढ़ती जा रही थी पर हाल वही ढाक के तीन पात वाला मुझे वो छाया लगातार पानी में हिलती डुलती दिख रही थी जो प्रमाण था की वो यही पर है
मैं- ठीक है अगर आप सामने नहीं आना चाहती तो बेशक ना आइये पर इतना जरूर है की आपकी मदद के बिना वो हवेली फिर कभी रोशन न हो सकेगी, आपकी वारिस को उसका हक़ कभी नहीं मिलेगा ,आपको लगता होगा मैं भी अपने पुरखों की तरह उसी खजाने की तलाश में आया हु पर मेरा खुदा गवाह है हक़दार को उसका हक़ जरूर मिलेगा चाहे आप मदद करे या न करे
ये कहकर मैं बावड़ी की सीढ़ियां चढ़ते हुए ऊपर आने लगा और जैसे ही मैं चबूतरे तक आया मैंने देखा वहाँ पर कुछ पड़ा है मैंने चाँद की रौशनी में देखा ये वही दुल्हन का जोड़ा था जो मैंने और पूजा ने देखा था
उसके साथ ही दो कंगन और एक हार भी था मैंने सारे सामान को समेटा और सोचने लगा अखिर ये किस तरह का इशारा है ये कौन सी कड़ी है जिसे मैं पकड़ नहीं पा रहा हु,ये दुल्हन का जोड़ा क्या पद्मिनी ये चाहती है की मैं पूजा से ब्याह कर लूं
या फिर ये कोई और ही कहानी है मेरे दिमाग में भाभी की कही बात अब भी गूंज रही थी की अक्सर जैसा दीखता है वैसा होता नहीं है तो क्या ये सब मेरा भरम है या कोई माया आखिर ये सब है क्या मैंने वो दुल्हन का जोड़ा उठाया और पास ही एक पेड़ पर छुपा दिया ताकि दिन में इसे ले जा सकु
उसके बाद मैंने अपने कदम गांव की तरफ कर लिए और घंटे भर बाद मैं अपने घर के सामने खड़ा था बड़ा दरवाजा खुला ही था हमेशा की तरह ,मैं सीधे भाभी के कमरे की ओर गया दरवाजे के पल्ले को धकेला तो वो बिना आवाज खुल गया मैं अंदर दाखिल हुआ और दरवाजे की कुण्डी लगा ली
भाभी की तरफ देखा वो गहरी नींद में सो रही थी मैं उनके पास लेट गया और उसे जगाया
भाभी- कौन है
मैं- और कौन होगा मेरे सिवाय
भाभी- कुंदन तुम इस समय ,यहाँ पर
मैं- अब क्या समय का मोहताज होना पड़ेगा आपसे मिलने के लिए
वो- पर इतनी रात को
मैं- क्या दिन क्या रात भाभी जब आपकी याद आयी देखो चला आया
भाभी- मेरी याद तुम्हे यहाँ लायी है या तुम्हारी बेचैनी
मैं- आज तो आपकी याद ही लायी है बहुत थक गया हूं भाभी जैसे किसी कांच की तरह टूट कर बिखरा हु आपके पास पनाह मांगने आया हु आज
भाभी- बात क्या है
मैं-कुछ नहीं
मैंने अपना हाथ भाभी के काँपते पेट पर रखा और उसकी नाभि को सहलाने लगा मेरे स्पर्श मात्र से ही भाभी के बदन में कंपन होने लगा पर उन्होंने मेरा हाथ नहीं हटाया
भाभी- हमे खबर हुई है की तुम्हे बिजली की जरुरत है कल तुम बिजली दफ्तर जाना तुम्हारा काम हो जायेगा
मैं- अभी मुझे बस आपकी जरूरत है
मैंने भाभी की एक टांग को अपने पैर तले दबा लिया और अपने हाथ को पेट से हटा कर उनके उभारो पर फेरने लगा
भाभी- जानती हूं तुम्हे मेरी जरूरत है पर इस जिस्म की नहीं कुंदन तो ये प्रयास मत करो हम जानते है तुम यहाँ इस जिस्म को पाने नहीं बल्कि अपनी उलझन सुलझाने आये हो
मैं भाभी की चूची को कस के भीचते हुए- और अगर मैं कहु की आज मुझे आपकी चाहत है तो
भाभी-"आह" हां तुम्हे मेरी चाहत है पर मेरे जिस्म की नहीं
मैं- अगर मैं इस जिस्म को पाना चाहू तो
भाभी- अपनी भाभी को परख रहे हो देवर जी नहीं तुम इस तरह मुझे नहीं झुठला सकते अगर तुम्हे इस जिस्म की चाहत होती तो मैं तो हर पल तुम्हारे ही तो साथ थी क्या उलझन है ये बताओ
मैं भाभी के ब्लाउज़ के हुक खोलते हुए- बस देखना चाहता हु की मेरी भाभी दहकती हुई कैसी लगती है
भाभी- तो यु कहो ना की तुम भी इस जिस्म की मंडी में हमारी नुमाइश करना चाहते हो
मैं- जिस्म इतना खूबसूरत है तो कद्रदानों में अगर एक नाम मेरा भी जुड़ जाये तो क्या हो
भाभी-तुम्हे क्या लगता है अपनी इन जली कटि बातो से मेरा जी जला सकोगे ,भाभी हु तुम्हारी तुम्हे पाला है मैंने तुमसे ज्यादा मैं समझती हूं तुम्हे, ये हथकंडे मेरे ऊपर नहीं चलेंगे
मैंने भाभी की कमर में हाथ डाला और उसको खींच कर अपने सीने से लगाया और अपने गर्म होंटो से उसके गुलाबी गालो को छू भर लिया
भाभी- रुक क्यों गए इस जिस्म को पाने की हसरत लिए आये हो कौन रोकता है आओ कर लो अपनी हसरत पूरी
मैंने भाभी के जिस्म को अपने से थोड़ा दूर धकेल दिया और पास रखे जग से पानी पीने लगा भाभी भी उठ बैठी
भाभी- क्या हुआ जोश ठंडा पड़ गया देवर जी,तुम्हे तुमसे ज्यादा अगर इस दुनिया में कोई जानता है तो वो मैं हु बेशक तुमने सोचा होगा भाभी तो रंडी है पिघल जायेगी तुम्हारे आगोश में
मैं चुप रहा
भाभी- तुम्हारी जो भी उलझने है वो तुमने खुद पैदा की है कुंदन तो जवाब भी खुद तलाश करो जिन सवालो को तुम खेल समझ कर उनसे खिलवाड़ कर रहे हो वो सवाल नहीं बल्कि बर्बाद ज़िंदगियां है हम सब जिनमे तुम भी शामिल हो मुखोटे ओढ़े हुए है ,जिस्म सबके सड़े हुए है इन लिबासों के नीचे
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
भाभी- छलावा समझते हो तुम्हे देख कर मुझे लगता है की अब तक तुम सच के करीब तो क्या उसके रास्ते पर भी चलने लायक नहीं हुए हो
मैं- कहना क्या चाहती है आप
भाभी- की खजाना इस बावड़ी में दफन है अगर तुम चाहो तो उसकी तलाश कर सकते हो
मैं- पर मुझे क्या मोह है खजाने का अगर यहाँ है तो रहने दीजिए मुझे इस चक्कर में नहीं पड़ना है मेरी और भी उलझने है
भाभी- मैं तुम्हे ये नहीं कह रही की तुम ले जाओ खजाने को मैं बस देखना चाहती हु की तुम उसके वारिस हो या नहीं
मैं- इतनी सी बात के लिए आप मुझे यहाँ ले आयी हो
भाभी- इतनी सी बात कहा है
मैं- क्यों इतनी पहेलिया बुझाती हो
भाभी- मोहब्बत जो होती है ना वो ही सबसे बड़ी बात होती है तुम्हे लाने का मकसद है तुम्हे अनदेखे सच से रूबरू करवाने का ,देखो और बताओ इस जगह में तुम्हे क्या दिखाई देता है
मैं- कुछ नहीं
भाभी- सही कहा कुछ भी तो नहीं पर फिर भी अपने अंदर इतिहास समेटे हुए है जिसका एक हिस्सा अब तुम भी हो
मैं- कुछ समझा नहीं
भाभी- समझ जाओगे, देखो बरसो पहले लाल मन्दिर की बहुत मान्यता थी हर साल यहाँ मेला लगता था खूब रौनक होती थी ना जाने कितने लोग अपनी अरदास लेकर आते पर यहाँ एक बात और थी की लोग इसे न्यायालय भी समझते थे यहाँ परख होती थी चुनोती क
खैर,ये सब तो तुम्हे पता होगा ही की ना जाने कितनी कहानिया इस जगह से जुडी है तो एक कहानी ऐसी ही है जिसके दो पात्र है मेनका और ।।।।
मैं- और
भाभी- ठाकुर हुकुम सिंह
मैंने भाभी की ओर देखा
भाभी- हां ठीक सुना तुमने मेनका और राणा हुकुम सिंह तो कुंदन ये उन दिनों की बात है जब राणाजी एक नोजवान थे और मेनका भी अल्हड मस्तानी थी ठाकुर साब अक्सर इस तरफ आते थे और मेनका का डेरा भी कुछ दूरी पर ही था
इतेफाक देखो जब राणाजी इस तरफ से गुजरते तभी मेनका भी पानी भरने आती तो पता नहीं कब दोनों की आँखे चार हो गयी अब इश्क़ कहो या जवानी कहा ज़माने की ऊंच नीच को देखते है दोनों कब एक दूसरे के कितने करीब आ गए की बात कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गए
साथ जीने मरने की कसमें खायी जाने लगी सब ठीक चल रहा था पर राणाजी ने मेनका को ये नहीं बताया था की उनका विवाह हो चूका है और उनका एक लड़का भी है इधर मेनका की आँखों में वो सपने सजने लगे थे जो शायद उसकी औकात से बाहर के थे
मेनका टूट कर चाहने लगी थी राणाजी को और राणाजी के मन की बात का उसे पता उस दिन चला जब मेनका गर्भवती हो गयी वो खुश थी की पेट में आयी सौगात उसके जीवन में ख़ुशी भर देगी पर उसे अंदाजा नहीं था की आगे क्या होगा उसके साथ
जब उसने राणाजी को ये खुशखबरी सुनाई तो राणाजी ने उस से पल्ला झाड़ लिया और बदले में उसे पैसे और तमाम चीज़े देने की कोशिश की मेनका तो सकते में आ गयी जिस इंसान को वो अपना सब कुछ मान चुकी थी उसने उसे बीच राह धोखा दे दिया था
राणाजी के लिए मेनका बस एक खिलौना थी जिस से उन्होंने खेला और फिर फेक दिया पर मेनका ने दिल से चाहा था राणाजी को ,पर समय का फेर अब वो अपना दुःख बताये तो किसे और कौन विश्वास करता उस पर तो जल्दी ही उसके गर्भवती होने की खबर डेरे में भी पता चल गयी
एक कुंवारी लड़की का इस हाल में होना हमेशा से ही मुसीबत भरा रहा है पर मेनका के लिए वो वक़्त बहुत मुश्किल था उसे डेरे से निकाल दिया गया जब उसे जबसे ज्यादा अपनों की जरुरत थी तब उसे उसके परिवार ने उसे दुत्कार दिया और राणाजी तो पहले ही उसके साथ दगा कर चुके थे
दुखो के पहाड़ को सर पर उठाये मेनका ने हार नहीं मानी और ज़िन्दगी के टूटे सिरो को फिर से जोड़ने की कोशिश की पर पेट में पल रही उसके प्यार की निशानी की चिंता उसे पल पल सताती थी और एक बेसहारा मजलूम औरत कर भी तो क्या सकती थी
पर उसने हार नहीं मानी पर ज़िन्दगी ने सोच लिया था उसे हराने का नियत समय पर उसने एक संतान को जन्म दिया और प्रसूति अवस्था में ही वो चल बसी ,तो कुंदन ये इसी जगह से जुडी एक कहानी है जो वक़्त की रेत में कही खो गयी
मैं- पर भाभी आपने ये कहानी मुझे क्यों बतायी
भाभी-मैंने सोचा तुम्हे पता होनी चाहिए क्योंकि बुराई को अगर कुछ हरा सकता है तो सिर्फ अच्छाई, ज़िन्दगी में कितने ही पल हम गुस्सा करते है हमे कुछ कमजोर लम्हो में लगता है की कुछ कर जाये पर अगर हम तसल्ली से सोचे तो कुछ हल निकल ही आता है
मैं-कभी कभी मैं सोचता हु आप किस मिटटी की बनी है भाभी
भाभी- उस मिटटी की जिसके तुम बने हो, खैर आओ तुम्हे कुछ ऐसा दिखाती हु जो शायद तुम्हारी कल्पना से परे है
मैं- क्या भाभी
भाभी में बिना मेरे
भाभी ने अपना हाथ बावड़ी के पानी की ओर किया और जैसे ही रक्त ने पानी को महसूस किया पानी सूखने लगा और धीरे धीरे गायब हो गया और नीचे की गीली मिट्टी फटने लगी और उसके बाद जो मैंने देखा आँखों ने होने से मना कर दिया
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मेरे सामने अकूत दौलत थी इतना सोना चांदी आभूषण और पता नहीं क्या क्या था पर वो नजारा कुछ सेकंड ही रहा और फिर सब पहले जैसा हो गया मैं हैरत से कभी बावड़ी को देखु कभी भाभी को
भाभी- आओ माता के दर्शन करले फिर घर चलते है
मैं- कैसे किया आपने
वो- मैं मालकिन हु इस खजाने की
मैं- कैसे
भाभी-जैसे तुम हो
कहाँ मैं पूजा को रहस्यमयी कहता था और भाभी ने जो आज किया था मेरा सर चकरा गया था खैर हमने माता के दर्शन किये पर मेरे चेहरे पर हवाइयां उडी हुई थी मैंने भाभी का हाथ पकड़ लिया
मैं- कही मुझसे ऐसा कुछ तो नहीं हुआ न की मुझे उसका अफ़सोस हो
भाभी- अभी तक तो नहीं आगे का पता नहीं
मैं- मुझे पार लगा दो भाभी
भाभी- ज़िन्दगी की जंग सबको खुद लड़नी पड़ती है कुंदन
मैं- सहारा बनो आप मेरी मदद नहीं करोगी तो कौन करेगा
भाभी- और मेरी मदद कौन करेगा क्या तुम करोगे
मैं- आपके एक इशारे पे प्राणों को त्याग दू आप कहिये तो सही
भाभी- तो वचन दो की जब जीवन में ऐसा समय आएगा की तुम्हारे मन में द्वन्द हो, जब आसमान में ढलते सूर्य की लाली होगी और चंद्र किरने बाहे फैलाये स्वागत करेंगी,जब आँखों में आंसू होंगे और दिल में दर्द जब तुम्हारे हाथ कांपेंगे और इरादे कमजोर तब तुम सत्य का चुनाव नहीं बल्कि अपनी अंतरात्मा का कहा मानोगे
जब जीवन में अपने पराये का भेद मिट जाएगा जब रक्त रक्त की प्यास बुझायेगा जब ना प्रेम होगा न अहंकार जब ना कोई आस होगी ना कोई विश्वास जब हर बंधन टूटेगा तो तुम अपने मन की आवाज सुनोगे वचन दो।
मैं- वचन दिया भाभी आपको माँ दुर्गा सामान साक्षी मान कर वचन दिया
भाभी- मैं जानती हूं तुम इस वचन के साथ ही साथ मेरा मान भी रखोगे
मैं- भाभी, पर आपने ये कैसे किया मेरा मतलब खजाना कैसे पहचानता है आपको
भाभी- कुंदन ये एक बहुत जटिल व्यवस्था है जो सिर्फ इसलिए की गयी थी ताकि खजाना खाली उसके असली हक़दार को ही मिले और ये जो तुमने अभी देखा ये। सुरक्षा का प्रथम चरण है खून की पहचान
मैं- पर आपका खून कैसे , आप अर्जुनगढ़ से कैसे जुडी है
भाभी- नहीं मैं अर्जुनगढ़ से बिलकुल नहीं जुडी हु
मैं- तो फिर कैसे
भाभी- जवाब तुम्हारे पास ही है झाँक कर देखो अपने मन में, खैर , मैं बस तुम्हे परख रही थी और उम्मीद करती हूं कि इस खजाने का लालच तुम न करो क्योंकि असल में इसका कोई वारिस है ही नहीं कमसे कम फ़िलहाल जो लोग इसके बारे में जानते है
" क्योंकि जहाँ तक मैं जानती हूं पद्मिनी ने नाहरवीरो को परास्त करके इसे अपने पति और राणाजी के लिए उठाया था , और फिर पद्मिनी ने ही उन दोनों से इसे बचाने के लिए एक ऐसी व्यवस्था तैयार की ,जिसमे दोनों ठाकुर ही चाह कर भी इसे कभी हासिल न कर सके"
" परन्तु तंत्र के कुछ अकाट्य नियम होते है जिनके अनुसार जो किसी विद्या या धन का संचरण करले तो वो उसका हो जाता है जैसे इस मामले में सब कुछ पद्मिनी का हो गया और उसके जरिये दोनों ठाकुरो का और यही बात अटक गयी है"
मैं- कैसे
भाभी- तंत्र की एक जटिल शाखा जिसके अनुसार खजाना स्वतन्त्र है अपना वारिस चुनने को मतलब पद्मिनी ने ऐसी व्यवस्था की है जिसके अनुसार जो भी असली वारिस है वो एक कीमत चूका कर ही इसको प्राप्त कर पायेगा
मैं- और ये कीमत क्या होगी
भाभी- ये राज़ बस राणाजी ही जानते है
मैं- परन्तु इन सब में आप कहाँ फिट होती है मतलब आपका अर्जुनगढ़ से कोई संबंध नहीं और देवगढ़ की बहू है आप तो आपको कैसे पहचानता है ये खजाना
भाभी- मैं खजाने की प्रथम प्रहरी हु राणाजी समझ गए थे इस बात को इसलिए ही मेरा विवाह इंद्र के साथ हुआ
मैं- पर आप कैसे ये बताइये
वो- मुझ पर कुछ अहसान थे पद्मिनी के शायद इसलिए
मैं- तो आप जानती है उन्हें
वो- हां ,पर वो कोई खास वजह नहीं थी
मैं- तो आप ये भी जानती होंगी की अब भी खारी बावड़ी में उनकी मौजूदगी है
भाभी- ऐसा नहीं हो सकता है
मैं- क्यों
वो- वो मुक्त हो गयी थी
मैं- तो फिर ।।।।।।
भाभी- जानते हो कुंदन दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति क्या होती है मैं तुम्हे बताती हु, वो शक्ति है प्रेम हर चीज़ का आदि से अंत तक बस प्रेम है हम लाख बुरे हो अच्छे वो पर प्रेम कही ना कही किसी न किसी रूप में मौजूद अवश्य रहता है अगर ये बात समझ लो तो बाकी जीवन बेहतर तरीके से कट जाता है
मैं- आप राणाजी का षोषण क्यों सहती है
भाभी- सही समय पर ये भी जान जाओगे तुम
मैं- अगर आप चाहे तो मेरे साथ आ सकती है कुंदन इस काबिल है कि अपनी भाभी को मान सम्मान से रख सके
भाभी- जानते है
मैं- तो फिर क्यों हो राणाजी के साथ
वो- जान जाओगे जल्दी ही जान जाओगे खैर शाम ढल रही है हमे घर के लिए निकलना चाहिए
मैं- नहीं मुझे कुछ और देर रुकना है
मैं उठा और चलते चलते उस संगमरमर के पत्थर के पास पहुच गया
मैं- भाभी किसी ने बताया था कि आपको तलवार बाजी बहुत बढ़िया आती है
भाभी- बरसो से मैंने तलवार को छुआ भी नहीं है
मैं- आओ जरा
भाभी- रहने दो
मैं- आओ न
भाभी- कुंदन मेरे हाथ में तलवार आते ही खून मांगती है रहने दो चोट लग जाएगी
मैं- कुंदन को इतना कम भी मत आंकिये सरकार
भाभी- चलो अगर तुम्हारी ये ही आरज़ू है तो ये ही सही
भाभी ने उन दोनो तलवारो में से एक खींच ली मैंने भी उठा ली
भाभी- चोट लग गयी तो मुझे दोष तो नहीं दोगे न
मैं- छू कर तो दिखाइये पहले
भाभी- जैसा तुम चाहो देवर जी
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मैं- तो आप ही बताओ क्या करू दिल कहता है आपको अपनी बाहों में भर लू जब जब आपके गले लगता हु एक ठंडक सी मिलती है दिल करता है की आपके इन रसीले होंठो का रस पी लू जी भर के पर फिर दिल दोराहे पर ले आता है आप ही बताओ ये क्या है क्या और ठाकुरों की तरह मुझे भी बस जिस्म की प्यास ही है या दिल का निकम्मा पण है ये
भाभी- ये जिस्म है भी तो क्या कुंदन कुछ भी तो नहीं कुछ साल बाद जवानी ढलने लगेगी ये प्यास है भी तो क्या बस एक छलावा जैसे किसी भटकते मुसाफिर को रेगिस्तान में नखलिस्तान का बार बार होता भ्रम , ये प्यास एक भरम है एक लालच है तुम्हे लगेगा ये मिट गयी बुझ गयी पर कुछ देर बाद फिर से ............ दरअसल ये सब एक हिरन और कस्तूरी के रिश्ते सा है कस्तूरी की महक को जिन्दगी भर तलाश करता है वो पर नादाँ कभी समझ नहीं पाता की ये महक उसके अन्दर से ही आ रही है
मैं- सही कहा भाभी पर अगर ये जिस्म की प्यास नहीं तो फिर क्या है आखिर क्यों ऐसा लगता है की आप की छाया की तरह मेरे सम्पूर्ण अस्तित्व पर छाती जा रही है
भाभी- मित्रता और प्रेम के बीच खडे हो तुम कुंदन चुनाव तुम्हे करना है या फिर दोनों को साथ ले कर भी तुम चल सकते हो अगर तुम इस काबिल हो तो , रही बात मेरी तो मैं तुम्हारा अकर्ष्ण हो सकती हु मैं तुम्हारे सफ़र की वो सराय हो सकती हु जहा तुम्हे कुछ समय पनाह मिल जाये पर मैं तुम्हारी मंजिल कभी नहीं हो सकुंगी अब निर्णय तुम्हे करना है
मैं-मैं मंजधार में हु भाभी
वो- अक्सर दो नावो की सवारी वाले नाविक डूबा ही करते है कुंदन और मैं तो तीसरा जहाज हु कुंदन
भाभी की बात सुनकर मैं हैरत में रह गया कितना जानती थी वो मुझे
मैं- आप कमाल है भाभी पर फिर भी .........
वो- फिर भी क्या जहाज की सवारी करोगे, नहीं, तुम नहीं थाम सकोगे पतवार क्योंकि इस जहाज के तले में छेद है इसे तो डूबना ही है भला तुम कैसे पार लगाओगे
मैं- आपका इशारा समझ रहा हु मैं पर इतना तो हक़ है मेरा
भाभी- हक़ तुम्हारा नहीं मेरा है और किस हक़ की बात करते हो तुम , इस जिस्म पर तुम्हारा कोई हक़ नहीं
मैं- जिस्म की तो मैंने बात ही नहीं की मैंने तो उस दिल की बात की जो जख्मी पड़ा है उसके ज़ख्मो पर मरहम लगाने का हक़ तो है मेरा और ये हक़ आप छीन नहीं सकती मुझसे
भाभी- पर इस दिल का रस्ता इस जिस्म से होकर गुजरेगा देवर जी
मैं- वासना और प्रेम में अंतर है ऐसा आपन ही कहा था
भाभी- ठाकुर हो, तलाश ही लिया तरीका तुमने आखिर
मैं- मुझे इस जिस्म की चाहत नहीं भाभी
भाभी- पर मेरा तन, मेरा मन कोई भी नहीं तुम्हारा
मैं- अगर ऐसा है तो छोड़ क्यों नहीं देती मेरा हाथ इस मंजधार में, मैं कर लूँगा इस भंवर को पार
भाभी- छोड़ भी तो नहीं सकती और थाम भी तो नहीं सकती कैसा नसीब है मेरा काश मैं तुम्हे समझा सकती पर तुम समझ नहीं पाओगे और मैं बता नहीं सकती बस इतना तय है की अंतिम साँस तक मैं तुम्हारा साया हु तुम जिस राह के पथिक हो मैं छाया हु उस सफ़र की
मैं- तो फिर क्यों नहीं देती पनाह मुझे अपनी बाहों में
भाभी- क्योंकि टूट कर बिखर जाओगे तुम और मैं ऐसा देख नहीं पाऊँगी
मैं- कोई गम नहीं अगर मैं टूट भी जाऊ आप संभाल लोगी
भाभी ने कस के मुझे अपने सीने से लगा लिया उनकी आँखों से गिरते आंसू मेरे गालो पर अपना नाम दर्ज करवा गए
भाभी ने बहुत कुछ कह दिया था और मैं अब भी हैरान था परेशां था ज़िन्दगी ये किस मोड़ पर ले आयी थी बस रोने को जी चाहता था पर मर्द का यही तो दोष है रो भी नहीं सकता औरत हो तो रोकर अपना गुबार निकाल ले पर आदमी क्या करे
बाकि का सफर दो अजनबियों की तरह बीता न मैंने कुछ कहा और न भाभी ने चुप्पी तोड़ी दिल्ली पहुचते ही हम सीधा होटल के कमरे में गए जहाँ हमारे रुकने की व्यवस्था थी उसके बाद अगले दिन लगभग पूरा ही फौज की कार्यवाही में गुजरा
उसके बाद मैं और भाभी घूमने गए मैं गाँव का लौंडा पहली बार इतने बड़े सहर में आया था तो बस इसकी चकाचौन्ध ही देखता रह गया यहाँ का खुला उन्मुक्त वातावरण और मेरे साथ भाभी जैसी खूबसूरत महिला
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