12-09-2019, 02:18 PM,
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sexstories
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RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
क़ाज़ी के जाने के बाद हमने दावत का खाना खाया फिर शाम को माँ ने मुझे रोका और दोनो को बोला कि अब वो अपने कमरे में जाए और गुफ्तगू करे मैं तो समझ ही चुका कि शादी से पहले ही कितनी सुहागरात समीर ने सोफीया के साथ मनाई थी ये तो बस एक रसम निभा रहा था
दोनो अंदर चले गये उसके बाद कमरा बंद....माँ ने मुझसे कहा उफ्फ बहुत थकान भरा दिन था चल हम भी थोड़ा आराम कर ले दोनो को अकेला छोड़े....रात को भी मैने उन्हें डिस्टर्ब नही किया...समीर निकला ज़रूर था अपने रूम से और उसने फ़ौरन खाना ऑर्डर कर लिए मैने पूछ आंटी कहाँ है तो बोला सोफीया सो रही है अंदर ....मैं समझ गया ये तो चुदाई की थकान थी
मैने फिर भी चोरी निगाहो से झाकना चाहा तो पाया कि आंटी के बिस्तर पूरे गुलाब के पत्तो से बिखरे हुए थे चादर पूरी बिगड़ चुकी थी और आंटी के बदन पे सिर्फ़ उनकी शादी का जोड़ा वाली साड़ी ही धकि हुई थी वो अंदर से शायद नंगी थी....उफ्फ ये दृश्य देखके ही मेरे तन बदन में आग लग गई....समीर फिर हांफता हुआ बोला कि खाना आ गया है तू ले लेना और कुछ अंदर कमरे में नॉक करके भिजवा देना मैं जा रहा हूँ इतना कह कर वो अंदर चला गया....
खाना आते ही मैने उसे प्लेट में सजाया कमरे पे नॉक किया तो आंटी ने उठके लिया वो मुझे देखके शरमाई तो मैने नज़रें इधर उधर करते हुए शरम से कहा आंटी समीर तंग तो नही कर रहा ना....तो सोफीया आंटी ने मेरे गाल खीचे कहा जा बदमाश यहाँ से चल....मैं वापिस मुस्कुराता दरवाजा लगाते हुए उनके कमरे से अपने रूम में आया....तो माँ ने मुझे मुस्कुरा के पूछा अंदर का क्या माहौल है? मैने कहा वहीं जो हर सुहागरात के बाद होता है
हमने साथ डिन्नर किया और एक राउंड चुदाई की....माँ ने मना किया था कि अभी समीर के यहाँ आए हुए है मत कर...पर मेरा दिल नही माना....मैने माँ के दोनो छेदों में लंड खूब दबा दबके उनकी चुदाई की ऐसा लग रहा था शादी दोस्त की थी और सुहागरात मेरी ...हम भी फारिग हुए एकदुसरे से लिपटे सो गये....आधी रात को पानी लेने जब फ्रिड्ज के पास आया तो पाया कमरे के अंदर से आंटी की आहों की आवाज़ें और चूड़ियो का खनकता शोर सुनाई दे रहा था....ऐसा लग रहा था जैसे समीर अब तक सोफीया से फारिग नही हुआ था मैं मुस्कुराते हुए कमरे में आया क्यूंकी मुझे बड़ी नींद आ रही थी....
अगले दिन जब नींद खुली तो सोफीया आंटी और समीर दोनो टेबल पे नाश्ता करने आए दोनो ही नहा धोके चेयर पे बैठे थे हमारा स्वागत किया फिर हमने साथ नाश्ता किया....माँ ने सोफीया आंटी से कहा कि अब होनमून का क्या प्लान करोगे? ना जाने क्यूँ समीर फिर झिझका उसने कोई जवाब नही दिया माँ से शायद शरमा रहा था....तो आंटी ने कहा कि समीर मुझे स्विट्ज़र्लॅंड लेके जाना चाह रहा है
मैने कहा बहुत खुंब तो फिर कब जा रहे है आप लोग...तो समीर ने उत्तर दिया बस चले जाएँगे फिलहाल काम काज निपटा लू तो हम हंस पड़े
कोई 5-6 दिन ठहरे थे काफ़ी मज़ा किया काफ़ी घमाई फिराई की...लेकिन इस बीच माँ और मेरे शारीरिक संबंध ना के बराबर ही बने शायद माँ को झिझक हो रही थी....हम एकात मे नही थे वहाँ...पर समीर तो माँ से जुड़ा हुआ था हर पल...मज़ाक मज़ाक में उसने बात तक छेड़ी थी शादी की मेरी...तो मैने साफ इनकार कर दिया कि..अब ऐसा कुछ नही होने वाला माँ और मैने ये फ़ैसला अभीतक नही किया....बाद में माँ ने मुझे बताया कि उन्होने सोफीया आंटी को पर्सनली समझाया था कि हम ऐसा इरादा क्यूँ किए थे? पर उन्हें बुरा ना लगे इसलिए माँ ने बस इतना कहा कि वो तय्यार नही..सोफीया आंटी ने फिर कुछ नही कहा वो जानती थी माँ समझदार है वो अपने आगे के अच्छे बुरे को देखते हुए ही अपना रिश्ता वैसे तय कर चुकी थी अपने बेटे आदम के साथ....
समीर और आंटी से विदा लेकर हम वापिस होमटाउन पहुचे....समीर ने जाते जाते कहा था कि अब हमे आते रहना है...तो माँ और मैने दोनो ने वादा किया था उनसे कि हम ज़रूर हमेशा आएँगे और उन्हें भी हमारे यहाँ आना है...इतना कहते हुए समीर हमे रेलवे स्टेशन इस बार माँ के संग छोड़ने तक आया....हम एकदुसरे के गले मिले थोड़ा भावुक हुए फिर हमारी ट्रेन छूट पड़ी....पीछे आंटी और समीर हाथ दिखाते रह गये और उनके परिवार से दूर होते हम माँ-बेटे एकदुसरे से चिपके दरवाजे पे ही खड़े उन्हें बाइ बाइ कर रहे थे....
होमटाउन पहुचते ही माँ और मैं हम दोनो फिर रोज़ की तरह ज़िंदगी जीने लगे ऑफीस से घर घर से ऑफीस मैं निभाता अपनी ड्यूटी तो माँ को घर का कामकाज संभालना होता या फिर सब्ज़ी मॅंडी जाना यही सब ग्रहणी का काम माँ संभाल रही थी...और फारिग हुए वक़्त में ज्योति भाभी के साथ गपशप करती इस बीच राजीव दा के साथ भी मैं गप्पे मारता ड्यूटी से आने के बाद फिर रात को अपने घर आके माँ के साथ रात का भोजन करता और सो जाता
हमारी यही ज़िंदगी थी यही हमारा आज था और कल भी शायद होने वाला था....माँ-बेटे के सिवाय इस घर में और कोई नही था हालाँकि बीच में माँ से थोड़ा झगड़ा भी हुआ और मन मुटाव भी पर दो प्यार करने वाले एकदुसरे से कितना अलग रह सकते थे? माँ ने शादी के इनकार करने के बाद साफ कह दिया कि वो मुझे किसी जवान लड़की से शादी करवाना चाह रही थी...जो सुशील हो अच्छी हो जो हर माँ अपने बेटे के लिए तलाशती है पर मैने भी कहा कि घर आके वो तुमसे मुझे अलग कर देगी..तो माँ ने कहा कि हर औरत एक जैसी नही होती....सच में माँ की परख और समझ ने ही हमारे रिश्ते को इतना मज़बूत किया था....एक आध रिश्ते भी आए थे मेरे लिए पर माँ ने साफ इनकार कर दिया क्यूंकी उसमें मेरी हां नही थी
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लेकिन जैसे खुशिया आती है वैसे ही दुख जैसे कहानी आगे बढ़ाते है वैसे ही मोड़ आते है....कुछ इस क़दर ऐसा मोड़ इन माँ-बेटे की ज़िंदगियो में आने वाला था जिससे दोनो अंजान थे जिसके आने से घर एक अलग ही तरीक़ो में बदल जाता...क्या था वो वजह जानें अगली कड़ी में.....
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