Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 02:28 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
समीर और सोफीया उनसे बात चीत करना भी आदम ने कम कर दिया क्यूंकी समीर और सोफीया के माँ-बेटे के अटूट जोड़े को देख आदम किलस जाता था....धीरे धीरे वो भी ये सोचने लगा क्या यार? भला माँ के साथ शादी छि ये सब ग़लत है ये सब गुनाह है मैं बहेक गया था....यही सब कहते हुए आदम निशा पे पूरा ध्यान देने लगा वो फिर उसी साँचे में ढलता चला गया जिस साँचे में वो आजसे करीब पहले था...जिसने वासना के लिए पहले चंपा फिर आकाक्षा फिर अपने ही घर की औरतें भाभी मौसी किसी को ना बक्शा वो अब अपनी शहवत अपनी बीवी से पूरी करने लगा..

उस रात थका हरा आदम अपने बिस्तर पे बैठते हुए जुते उतारने लगा....माँ किचन में थी और पिता जी टी.वी देख रहे थे...तो वो कमरे में आके जूते उतारके अपने कपड़े सब उतारके बाथरूम जाने लगा....तो इतने में निशा कमरे में आई उसने मुस्कुरा के प्यार से आदम को देखा फिर उसके बॅग जो बिस्तर पे रखा था उसे एक साइड रखा...

निशा : क्या आदम इतना कोई लेट आता है?

आदम : क्यूँ? आज मन कर रहा है क्या? उफ्फ (अपने टाई को निकालते हुए)

निशा : देखो आदम तुम मुझे आजकल वक़्त नही दे पा रहे हो हर वक़्त बस काम काम

आदम : हाहहा अरे बाबा मैं अकेला कमाने वाला क्या और करूँ कहो तो ज़रा?

निशा : तुमने वादा किया था कि मुझे मार्केट ले चलोगे मुझे वो नया ब्रांड जो आया ना लिपस्टिक का वो वाला खरीदना है

आदम : उफ्फ हो निशा सॅंपल्स में आ जाएँगे अभी जाने की क्या ज़रूरत है? और वैसे भी जिस ब्रांड की तुम बात कर रही हो वो बहुत कॉस्ट्ली है तुम एक काम करो ना पैसे लेके जाओ माँ के साथ थोड़ा!

निशा : प्ल्ज़्ज़ आदम तुम चलो ना काकी के साथ कैसे? तुम जाओगे मैं जाउन्गी कितना अच्छा लगेगा प्ल्ज़्ज़ ना चलो ना अभी

आदम : तुमने वक़्त देखा है? यार मैं एक तो थका हारा घर लौटा हूँ तुम चाइ पानी ना पूछके मुझे कह रही हो जाने के लिए वो भी फिरसे मार्केट इस वक़्त

निशा : तो क्या हो गया? मेरे सहेलियो के पति तो घुमाने उन्हें कोलकाता तक ले जाते है तुम तो टाइम भी नही निकालते बस चिड जाते हो कौन सा हीरा माँग रही हूँ तुमसे?

आदम थक चुका था निशा किसी मथानी (एक चीज़ को मथने वाली ज़िद्दी) की तरह एक बार अगर बक बक करना शुरू कर देती थी तो बस...एक तो आदम ने उसे दुबारा सेक्स के लिए उकसाया भी नही था उससे अपनी ज़रूरत पूरी भी नही की थी ढंग से...और उसका नखरा किसी नखरेबाज़ लड़कियो जैसा था....आदम ने कहा तो ठीक है चलो जो लेना है ले लेना

तो निशा ने उसे चेहरे को चूम लिया...उसने कहा ठीक है आज छोड़ो कल तुम पक्का शाम को जल्दी आना....और सुनो पापा कह रहे थे मेरे पापा कि हम कहीं हनिमून पे क्यूँ नही घूमने जाते?.......

.आदम क्या कहता कि एक तो उसने बड़ी मुस्किल से फ्लॅट के लिए लोन लिया जिसके लिए उस दिन रात पागलो की तराहा खट्टना पड़ रहा है पर यहाँ निशा को तो जैसे उसके घर की कोई भी चीज़ ना मालूम हो वैसा जता रही थी...उसने निशा को बैठके तफ़सील से समझाया लेकिन वो हूँ हूँ में भी ऐसे जवाब दे रही थी जैसे उसे ये सब सुनके कोई समझ ही ना आई हो...

आदम इतना कहते हुए उसे स्मझाके बाथरूम में गया...जब वो वापिस लौटा तो उसकी माँ चाइ और शाम के लिए कुछ खाने को लाई थी...."ये ले तेरे पिताजी को भी दिया तू भी खा अरे निशा वो दाल चढ़ि हुई है तुम छोड़के आ गयी".........

."ओह सॉरी काकी मैं देखके आती हूँ"........इतना कहते हुए उसके जाते ही मुस्कुरा के अंजुम बेटे के पास बैठी उसके कंधे सहलाने लगी

अंजुम : क्या हुआ तू इतना चुप चुप क्यूँ है?

आदम : कुछ नही अगर कहूँगा तो तुझे यही लगेगा कि मैं शिकायत कर रहा हूँ

अंजुम : क्या बात है? बोल तो सही

आदम ने बताया कि दिन पे दिन जैसे उसने निशा से पहेल करना शुरू किया है उससे इश्क़ फरमाना शुरू किया उसे अपनाना शुरू किया वो तो जैसे उसके गले पड़ रही है छोटे बच्चो की तरह ज़िद्द पकड़ लेती है अगर ना कोई चीज़ पूरी करूँ तो उसे मथने लगती है मेरे सर पे..माँ ये सुनके बोली ये तो ग़लत है...लेकिन छोटी मोटी ज़िद पूरी करने से कोई ग़लत नही पर उसे समझना चाहिए एक तो हमारा ये फ्लॅट किश्तो में है और फिर उपर से तुझपे कितना काम का प्रेशर है...तू फिकर मत कर मैं बात करती हूँ

आदम : इससे पहले तुमने ही किया उससे बात कुछ दिन ठीक रही क्यूंकी मुँह फुलाए रही और फिर से अपना रंग दिखाने लगी

अंजुम : एक लिपसिट्क ही तो कहा है उसने तुझे दिला दे मेरे पीछे तो तूने पागलो की तरह !

आदम : माँ तेरी बात जुदा है तू एक समझदार औरत है मैने जब जब कोई महेंगी चेज़ लाई तो तूने बिना कहे उसे पहले इनकार किया कि इतना खर्चा क्यूँ कर रहा हूँ? या फिर बचाऊ पैसा पर ये कल की आई छोकरी और इतना नखरा

अंजुम : आदम बेटा अभी बच्पना है उसमें देख इतना काम करती है मेरा मैं उसे समझा दूँगी जब देखो बस तेरे इन्तिजार में किचन में बोलती रहती है फिर तू आता है तो देख खाने पे भी ध्यान नही उसका हाहाहा (अंजुम अकेले हँसी थी क्यूंकी आदम के चेहरे पे कोई भाव नही आए)
Reply
12-09-2019, 02:28 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
आदम ने कुछ नही कहा उसने चाइ ख़तम की और कहा कि वो नहाने जा रहा है...माँ को उसका उखड़ा व्यवहार पसंद नही आया...कब तक बेटे को समझाए निशा को भी तो समझना पड़ेगा....हाहहाहा ये रिश्ते ये नाते क्या नही कर डालते? अगले दिन माँ ने जब अपनी बहू को समझाया तो उसने रोई सी आक्टिंग जैसा करते हुए कहा कि बस घूमने की ही तो बात कही जो मुझपे इतने बरस पड़े...बरस पड़े जबकि आदम बरसा भी नही था...माँ ने उसे समझाया कि उसका पति दिन रात बहुत मेहनत कर रहा है सिर्फ़ इस फ्लॅट के लिए ऊपर से प्राइवेट नौकरी है उसे समझे औरत तो वो भी है उसके पति ने तो आजतक उसे सिर्फ़ जलाया कोई खुशिया नही दी पर आदम बहुत लायक लड़का है बस अपने लिए अपने संसार के लिए कल के लिए समझदारी से काम ले.....निशा ने कुछ नही कहा वो खामोश रह गयी...

जब पति शाम को लौटा तो उसने निशा से कहा कि चलो...तो उसने कहा कि तुम हमारी बात माँ को बता देते हो उन्होने मुझे जानते हो कितना समझाया?......आदम को मालूम चल चुका था तो उसने मुस्कुराया निशा चुपचाप रही और आदम ने कहा की माँ है यार उनका हक़ है हमे सही रास्ता दिखाए तुम प्ल्ज़्ज़ उनकी बातों का बुरा ना मानो....मुझे वक़्त दो मैं तुम्हें खुद घुमाने लेके जाउन्गा ओके चलो अब हँसो अरे हँसो ना हाहहा....निशा हंस पड़ी..

घर जब दोनो लौटे तो माँ ने दोनो को खुश देख खुशी ही हुई....चलो इस बहाने दोनो एकदुसरे को समझने तो लगे थे.....उस रात खुद पे खुद निशा आदम से लिपटने लगी...आदम ने उसे निवस्त्र किया और खुद के भी सारे कपड़े उतार डाले.....निशा उसके लिंग को सहला रही थी....आदम को लगा कि शायद आज इतने दिनो बाद वो उसके साथ काम क्रिया पूरी कर पाएगा....आज वो इस सुहागरात को अपने ज़ाया नही होने देना चाहता था....

दो बदन आपस में किसी साँप के भाती लिपट गये.....उभरी हुई कठोर निपल्स को चुचियो सहित मसल्ते हुए दबाते हुए आदम ने बीवी के अंदर काम वासना की आग को भड़का दिया वो आहें भरने लगी अपने जांघों को आदम के कुल्हो से लेके नीचे तक घिस्सने लगी....पति समझ चुका था वक़्त आ चुका है आलिंगन का...उसने दोनो टांगे चौड़ी की निशा की....

और उसके बीच अपने कॉंडम लगे लंड को घिस्सने लगा फाँक के बीच थोड़े ही परिश्रम में आदम ने अपना लंड अंदर सरका दिया....तो निशा इधर उधर सर मारने लगी...."आहह उग्घ उग्गघह उम्म्म ससस्स ससस्स नहिी हुंओ आअहह"...........निशा विरोध करने लगी उसे फिर अपने उपर से धकेलने लगी...लेकिन पति आदम ने उसे कस कर जकड़ा हुआ था उसके निपल्स को काटते हुए वो किसी जानवर की तरह अब आगे पीछे लंड घुसाने की नाकाम कोसिसे करने लगा

तो इतने में निशा ने उसे कहा कि वो सह नही पाएगी...अफ बहुत दर्द हो रहा है प्लज़्ज़्ज़ आदंम निकाल लो आअहह......

."अरे पगली यही तो वो वक़्त है जब औरत खुद पे खुद अपने मर्द की पूरी तरीके से हो जाती है उफ्फ फॅब और ना मुझे उक्साओ या रोको प्ल्ज़्ज़ काबू करो खुद पे".......

."प्लस्स आहह सस्स आदम"...........ना आदम जानता था ना उसकी बीवी जानती थी...कि बाहर खड़ी अंजुम दोनो की सिसकी सुन रही थी लेकिन निशा के सिसकियो में आहें कम और दर्द ज़्यादा था....वो बार बार विरोध किए जा रही थी और आदम सुन नही रहा था..

इतने में निशा ज़ोर से चीखी तो अंजुम थोड़ी घबराई आदम धक्के लगाता रहा कि उसे और वक़्त मिले तो वो अपना पूरा लॉडा अंदर तक पेल दे...जो करीब कुछ इंच ही अंदर घुसना बाकी था लंड मोटा बहुत था इसलिए अंदर जा नही पा रहा था या फिर निशा ने अपनी चूत भीच ली थी कि वो उसे अंदर लेना नही चाह रही थी...

इतने में जब निशा चीखी तो आदम को कुछ गीला गीला महसूस हुआ...निशा पश्त पड़ कर हाँफने लगी लेकिन आदम तो संतुष्ट नही हुआ था...वो लगातार धक्के लगाए ही जा रहा था...

."आदम छोड़ो मुझे अब हो गया प्ल्ज़्ज़ मन नही कर रहा है प्ल्ज़्ज़"........आदम और कुछ कह पाता निशा ने उसे नाख़ून मारा तो चीखते हुए आदम ने उसे छोड़ दिया उसकी चूत से पुकच्छ की आवाज़ के साथ लंड बाहर निकल आया..आदम का कॉंडम फॅट गया था उसने खीचके उसे फैका फिर निशा को गुस्से से देखा

आदम : क्या कर रही हो? तुम वॉट'स रॉंग विद यू? मेरा हुआ भी नही और तुमने मुझे दूर धकेल दिया इस्सह ऐसे कोई नाख़ून मारता है (अपने खरॉच को देखते हुए)

निशा : और नही तो क्या करूँ? तुम तो पूरे सांड़ बन जाते हो ऐसे में कोई मज़ा आता है तुम्हारा मेरे भीतर जाते ही एक तो मुझे दर्द बड़ा होता है और दूसरा मेरे हो जाने के बाद भी तुम स्खलित नही होते हो

आदम : लुक निशा आइ नो कि पानी तुम्हारा जब निकलता है तो ऑटोमॅटिकली तुम पष्ट पड़ जाती हो थक जाती हो मन नही करता पर कुछ मेरा कम से कम अपने पति की इक्षा का तो ख्याल करो शौहर हूँ तुम्हारा कोई पराया मर्द थोड़ी

निशा : आदम प्ल्ज़्ज़ मुझे कोई बात नही मुझे सोने दो मुझे नींद आ रही है फिर कल सुबह भी उठके नाश्ता बनाना पड़ता है लाते हो जाती हूँ प्ल्ज़्ज़ छोड़ो ये सब अब

आदम ने फिर कोशिश की निशा की नंगी पीठ पे उसने हाथ से सहलाया भी निशा ने उसके हाथ को झटक दिया वो नींद में उकता रही थी....अगर आदम ज़्यादा कोशिश करता ज़बरन तो शायद ये ज़बरदस्ती ही कहलाती ...आदम ने उसे वैसे ही नंगे छोड़ते हुए उठ गया एक बार उसने निशा की तरफ देखा और अपना लूँगी पहन लिया...

बाहर दरवाजे पे खड़ी अंजुम को अच्छा तो लगा नही पर आज उसे अहसास हुआ कि क्यूँ? निशा और आदम बार बार एकदुसरे की तरफ आते हुए भी एकदुसरे से दूर रूठ जाते है....शादी के इतने दिन हो गये पर आदम ने पूरी कोशिशें की पर अब जैसे वो फॉरमॅलिटी ही निभा रहा था पत्नी पे चढ़ने का भी उसका मन रॅत्तीभार का नही करता जब भी वो प्यार करने के लहज़े से उसे पकड़ती तो आदम उसे झटक देता या तो वो असंतुष्टि भाव वाला सेक्स करने को कहती जिसमें आदम को कोई मज़ा नही आता या फिर घूमने फिरने या कुछ फिर कोई ज़िद्द दिलवाने वाली बात होती...धीरे धीरे आदम घर भी अब देर से आने लगा...जब जल्दी आ जाता तो शाम का नाश्ता किए राजीव दा के घर भाग जाता...

माँ ये सब नोटीस कर रही थी...पर वो कर भी क्या सकती थी? अगर बेटे की इक्षा को माने तो पर घर की आई बहू के साथ नाइंसाफी ही होगी बहुत नेक दिल औरत थी अंजुम उस जैसी माँ बहुत कम ही होती है और उस जैसी सास भी जो बहू के इतने नखरे देखने के बाद भी उस पर सख्ती ना कर रही थी....जब निशा को एकदिन समझाया भी तो निशा ने मुँह फटे लहज़े में हँसी उड़ाते हुए अपने पति का कहा कि वो एकदम सांड़ बन जाता है और उसको झेलना उसकी बस की बात नही अगर वो उसे ढील दे दे तो घर में औलादो की लड़ी लगा दे...ये सब सुनके अंजुम को बेहद धक्का लगा उसे अच्छा नही लगा कि निशा पति को सीरीयस नही ले रही थी...
Reply
12-09-2019, 02:28 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
राजीव ने भी आदम को समझाया कि होता है कभी कभी हर लड़की एक जैसी नही हो पाती ज्योति भाभी भी तो वैसी नही आदम ने कहा उसने ये भी कहा कि देखो आपका कितना ख्याल रखती है....राजीव दा हंस पड़े फिर उसने आदम को कहा सब ठीक हो जाएगा अब इससे ज़्यादा तो उनके पास भी कुछ कहने को नही था समझा ही सकते थे....उधर ज्योति भाभी भी अंजुम को कही कि लगता है अपना आदम खुश नही जो बार बार निशा से लड़ झगड़ लेता है....अंजुम को अहसास हुआ की आज अगर उसकी मज़बूरी ना होती तो पर घर की औरत को आदम कभी भी अपने घर के भीतर ना लाता...लेकिन ये बदक़िस्मती ही थी दोनो माँ-बेटों की उन्हें मन पसंद जैसा उन्होने कल्पना किया था वैसी बहू उन्हें नही मिली....

उस रात तो और भी हद हो गयी जब आदम ने पाया कि निशा ने माँ की पायल पहनी हुई थी उसने निशा के पाओ से पायल छीन ली तो निशा ने कहा कि ये उसे अच्छी लगी इसलिए माँ ने उसे अपने हाथो से दी...आदम कुछ नही कहा पर उसने माँ को खूब सुनाया...रिश्तो में आए इस खटास की वजह अंजुम समझ रही थी आदम ने कोशिश की पर अब वो निशा को अपनी नही मान रहा था शायद अंजुम ने ग़लत फ़ैसला लिया था...पर अब कैसे सुधारे इन हालातों को...अब तो बेटा भी उससे रूठ गया वो पायल जो उसने उसके पिता के बेच देने के बाद उसकी पहली ख्वाहिश के तौर पे दिलाई वो उसकी बीवी के पाओ पे देख उसे गुस्सा आया था...अंजुम कुछ कह भी नही सकी उसे बेटे की बात का बहुत बुरा लगा...

निशा ने डॅन्स क्लास जाय्न कर ली और वो शाम को घर में ना रहती....कुछ दिन तो आदम ने बर्दाश्त किया पर जब उस रात वो थका हारा घर आया और माँ को कमरे पकड़े बैठे पाया तो उसे गुस्सा आया...उसने कहा निशा अभीतक आई नही तो उसने कहा कि नही आ जाएगी....

आदम : कब कब तक? उसके नखरे ऐसा सहोगी मैं तंग आ चुका हूँ उस कुतिया से

माँ : बेटा ऐसा मत कहो वो तुम्हारी बीवी है ऐसा मत बोल कम से कम

आदम : बस माँ तुम अब चुपचाप हो जाओ मैने बहुत तुम्हारी सुन ली पर तुम भी उस जैसी हो मैं ग़लत ही था खामोखा मैने तेरी बात मान ली किसी काम वाली को रखता तो ज़्यादा बेहतर होता पता नही मेरे ही नसीब में मुझे ऐसी औरत दिलवानी थी

माँ : बेटा प्लज़्ज़्ज़

इस बीच झगड़े में निशा आई तो आदम उस पर ही जैसे बरस पड़ा उसे खूब सुनाया उसने कि तुम्हें लाया तुम्हारी ज़िद को अपनाया और तुम क्या दे रही हो बदले में कम से कम माँ को आराम तो देने दो क्यूँ? वो बार बार किचिन में करेगी तुम जानती हो वो बीमार है....निशा सुनती रही सुबक्ती रही फिर उसने कहा कि ये उसकी भूल थी कि उसने आदम से शादी की जो बार बार बस शिकायत ही करता रहता है आख़िर जिस दिन का डर था अंजुम को वहीं हुआ कलेश

अब तो जैसे घर में आए दिन कलेश लग जाता था....आदम इतना चिड़चिड़ा हो गया कि एक बार तो उसने निशा पे हाथ उठा दिया माँ ने उसे खूब डांता तो बदले में अंजुम ने एक दिन अपने कानो से पाया कि उसकी बीवी रो रोके अपने परिवार को यह कह रही थी कि वो खुश नही है उसकी माँ उसके कान भरती है...ये सुनके बेहद ठेस पहुचि अंजुम को.....

अब अंजुम भी धीरे धीरे उखड़ सी गयी उससे ठीक मुँह बात तक नही करने लगी...निशा कोशिशें भी करती तो कुछ माँ उससे हां या ना में जवाब देके वहाँ से हट जाती...धीरे धीरे निशा समझ गयी कि अब अंजुम भी उससे बात करना छोड़ चुकी है....आदम के पिता ने बस इतना अंजुम को कहा कि बेटे को वक़्त दो दोनो को समझने दो पर काए का वक़्त और कितना वक़्त? यही तो इस समाज की रीत है की वक़्त लगने दो

आदम का आज मूड अच्छा था उसका प्रमोशन हुआ था और तनख़ाह में बढ़ोतरी...वो ये खुशी माँ के साथ सेलेब्रेट करना चाह रहा था पर जब घर आया तो ना माँ थी ना बाप...दोनो बाहर कही गये हुए थे निशा ने कहा....तो आदम बिना कुछ कहे बेडरूम में चला गया...

जब वो नहा कर बाहर लौटा तो निशा ने उसे चाइ दी और कुछ खाने को....आदम ने कुछ नही कहा उसने सिर्फ़ चाइ की चुस्किया ली फिर थोड़ा सा शाम का नाश्ता ख़ाके प्लेट फिर किचन में छोड़ आया..

."क्या हुआ पास्ता खाए नही?"......

"नही वो थोड़ा आयिली हो गया मुझे गॅस्ट्रिक हो जाता है".......इतना कहते हुए उखड़े अंदाज़ में आदम अपने कमरे में आके लेट गया...

जब उसने नज़रें उपर की तो पाया कि उसकी पत्नी मदरजात नंगी उसकी लूँगी को लपेटे हुए रोमॅन्स के अंदाज़ में कमरे में एक एक पाँव अंदर रखती है...आदम उसे चुपचाप देख रहा होता है...उसने धीरे से अपनी लूँगी को जैसे अपने छाती से नीचे किया...तो उसके उभरी छातिया आदम के सामने प्रस्तुत हुई....जैसे ही नाभि से नीचे उसने लूँगी की तो आदम की जैसे साँसें थम गयी...

उसकी टाँगों के बीच चूत एकदम चिकनी हुई थी...

."ये सब क्या कर रही हो तुम?".......आदम को जैसे फरक ना पड़ा जैसे नंगी औरत को देखने की उसकी आदत सी बन चुकी थी...

निशा : तुम्हारे सामने एक लड़की नंगी खड़ी है और उसे देखने के बजाय पूछ रहे हो कि किस प्रस्ताव के लिए वो नंगी हुई है?

आदम : देखो निशा उफ्फ

निशा ने नंगे ही आदम के खुले बदन पे चूमना शुरू कर दिया उसे कस कर लिपट गयी उसके सीने भरे बालों पे मुँह रगड़ती हुई उसके पेट को चूमने लगी...तो आदम ने उसे दूर धकेला....

निशा : क्या कर रहे हो तुम? (एक बार फिर उसने आदम को थामना चाहा पर आदम ने उसके लिपटने से पहले ही उसे दूर धकेल दिया)

निशा : क्या कर रहे हो???

आदम : बकवास है तुम्हारा यह मेरे सामने प्रस्तुत होना बेकार है मुझे अब कोई दिलचस्पी नही रही तुममें दो रातों से देख लिया मैने

निशा : क्या देख लिया? वो जानवारता है ये मुहब्बत है

आदम : वाहह वो वेशियत और ये मुहब्बत हुहह जब मुझे संभाल नही सकती जब झेल नही सकती तो काए को मुझे उकसा रही हो मैने ग़लती की तुमसे शादी करके आज तुम्हारे मुँह पे कह रहा हूँ

निशा : ओह्ह प्ल्ज़्ज़ आदम ग़लती तो मेरी हुई

आदम ने कुछ ना सुना निशा के बोलने से पहले ही और कुछ....उठके बाहर चला गया...निशा बिस्तर पे अपनी मुट्ठी को बंद किए जैसे चिड गयी उसे घृणा हुई जैसे अपने पति की तरफ....आदम छत पे ही रहा जब तक उसके माँ बाप घर ना लौटे जब उसने उपर से झाँका तो अंदर आया तो माँ ने उससे पूछा कि वो छत पे क्या कर रहा था? आदम ने कोई जवाब नही दिया....अंजुम को समझ आ रहा था शायद फिर कलेश हुआ था...
Reply
12-09-2019, 02:37 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
अगले दिन जब आदम उठा तो बीवी खर्राटे भर रही थी वो उठा और बाहर आया देखा माँ उसके लिए आज नाश्ता और टिफिन तय्यार कर रही थी....अंजुम ने आदम से कहा कि आज निशा की माँ आएँगी उनसे वो बात करेगी...पर आदम जानता था कोई फ़ायदा नही....

और वहीं हुआ निशा की माँ आई भी एक उम्मीद की किरण दिखी भी पर ...कोई फ़ायदा नही ना निशा की माँ अपनी बेटी को समझा पाई और ना ही कोई डाँट फटकार लगाई निशा अपने मन की कर रही थी तो आदम भी अब घर पे ध्यान देना छोड़ दिया..वो बस इस मौके के इन्तिजार में था कि कब वो निशा से पीछा छुड़ाए पर माँ की वजह से चुपचाप था..

निशा पर्स लटकाए वापिस घर जाने के लिए डॅन्स क्लास से निकल रही थी...तो इतने में मेन रोड में खड़ी किसी रिक्कशे के इन्तिजार में ठहरी....इतने में लंबे बालों वाला और फ्रेंच कट दाढ़ी में चस्मा लगाए वो अपनी बुलेट बाइक को ठीक निशा के सामने रोकता है

"हे निशा वॉट'स अप?".......उसे देखकर निशा ने मुस्कुराया

"अरे संजीव तुम यहाँ?"........संजीव ने हंसते हुए अपना चश्मा हटाया

संजीव की नज़र एक बार उसके पार्स लटकाए बाज़ुओ से होते हुए ठीक पसीनेदार बगलो पे पड़ी निशा ने पीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी...वो एक टक उसे निहारने लगा

निशा : ऐसे क्या घूर्र रहे हो?

संजीव : देख रहा हूँ शादी के बाद कितना निखर गयी हो? लगता है तुम्हारा हज़्बेंड तुम्हे पॅल्को में रखता है

निशा मुँह बनाए खामोश सी हो गयी....संजीव ने उसकी चुप्पी देख समझ लिया कि निशा शायद खुश नही थी..

संजीव : क्या हुआ? निशा तुम उदास क्यूँ हो गयी?

निशा : नही कुछ नही बस वो ऐसे ही

संजीव : देखो निशा मैं तुम्हारा सबसे करीब दोस्त हूँ मुझ से क्यूँ तुम इतना रूठ रही हो क्या मुझसे कोई खता हुई है?

निशा : अरे नही नही तुमसे क्या खता होगी भला तुमने मेरे साथ क्या किया? जो मैं तुमसे नाराज़ हूँगी

संजीव : आओ बाइक पे बैठो मैं तुम्हें घर तक ड्रॉप कर देता हूँ वहीं बानस्बादी साइड ही है ना तुम्हारा घर

निशा : तुम्हें कैसे पता ?

संजीव : अरे तुम्हारी सहेली ने बताया उस दिन तो शादी में आया भी था मैं लेकिन सोचा शायद तुम्हारे पति को मुझे देख ऐतराज़ हो

निशा : उन्हें काहे को ऐतराज़ होगा?

संजीव : मुझे लगा शायद वो हमारे रिश्ते के बारे में जानता हो कि हम कॉलेज में एक साथ

निशा शरमा गयी तो संजीव हल्का मुस्कुराया...."संजीव नाउ आइ आम मॅरीड"........

"मेरे लिए तो तुम अब भी वहीं कॉलेज गर्ल निशा ही रहोगी".......

.निशा ने कुछ नही कहा....संजीव के काफ़ी दबाव देने पे निशा उसके बाइक पे बैठ गयी....दोनो वहाँ से रुखसत हुए

रास्ते में संजीव बाइक को इतना तेज़ी से चला रहा था कि बार बार निशा को उसका कंधा पकड़ना पर रहा था...वो संकोच कर रही थी.....तो संजीव ने जानबूझ के उसके हाथ को अपने कमर पे रख दिया..."अरे बाबा बी कंफर्टबल"......निशा खामोश रही संजीव के उसके हाथ को छूने से उसे करेंट लगा जैसे...

संजीव : और कहो निशा? सबकुछ कैसा चल रहा है?

निशा : बस ठीक ही चल रहा है

संजीव : ठीक ही कहीं हनिमून घूमने नही गये अभीतक?

निशा : नही (एक बार फिर निशा ने थोड़ा रूड्ली जवाब दिया)

संजीव : ह्म लगता है हनिमून तुम्हारा पति यही मना रहा है हाहहा

पर निशा नही हँसी...तो संजीव खामोश हो गया उसने भापा कि निशा का मन उखड़ा उखड़ा सा है...तो उसने होंठ पे ज़ुबान फेरते हुए कुछ सोचा..

संजीव : मैं समझ सकता हूँ तुम खुश नही हो इस शादी से (एकदम से संजीव की बात सुन निशा सकपकाई)

निशा : त..तुम्हें ऐसा किसने कहा?

संजीव : ओह क'मोन निशा तुम मुझसे कुछ छुपा नही सकती तुम्हारे चेहरे का दर्द मैं सॉफ देख सकता हूँ

निशा : नही संजीव ऐसा कुछ नही है

संजीव : सच में..तो फिर मेरी जगह तुम्हारा पति तुम्हें लेने क्यूँ नही आया

निशा : व..ओ काम पे है

संजीव : वाहह काम पे है एक तो तुमसे उसने शादी की और तुम्हें ऐसे छोड़ रखा है देखो यू लुकिंग सो लाइट...आइ मीन ना कोई साज़ ना सिंगार कैसी बनके हो ऐसा लग रहा है जैसे तुमपे उसका कोई ध्यान नही क्या माँ का गुलाम है? तुम्हारी सास की सुनता है क्या?
Reply
12-09-2019, 02:37 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
निशा की जैसे उसने रग को पकड़ा था...निशा तो पहले ही आदम और उसके माँ से उखड़ी हुई थी और संजीव कुछ वहीं बातों को टटोल रहा था....उसने ये नही समझा कि संजीव हिनस्टाई कर रहा है बल्कि उल्टे उसे खुद लगा कि शायद उसकी हालत का ज़िमेद्दार उसका पति ही है जो वो ऐसी दिख रही है सबको....निशा खामोश रही

संजीव : मेरी ही ग़लती है सब मेरी ग़लती है (ज़ज़्बाती होते हुए)

निशा : क..क्यूँ संजीव तुम ऐसा क्यूँ कह रहे हो?

संजीव : मेरे ही वजह से तुम्हारा यह हाल हो रहा है...अगर मैने तुम्हारा हाथ थामा होता तो शायद तुम ऐसे मोड़ पे ना होती....मैं भी क्या करता? आइ वाज़ जस्ट आ रिच स्पॉइल्ट सन उस टाइम मेरे पास कोई करियर नही था...तुम्हारे पिता जी ने तो घर में जैसे नकबंदी कर रखी थी एक बार आया भी तो तुम्हारी माँ ने मुझे भगा दिया था

निशा : आइ नो संजीव उसके लिए माफी चाहती हूँ सब मेरे माँ बाप की ही ग़लती का नतीजा है पर क्या करू?

संजीव : तुम बुरा मत मना मैं तुम्हारे हालत का मज़ाक नही उड़ा रहा मैं तो तुम्हें अब भी दिलो जान से चाहता हूँ....मैं उन रातों को अब भी भुला नही पता है कोई समझे या ना समझे तुम्हारी शादी के दिन मैं बहुत रोया था जानती हो क्यूँ? तुम्हे खो जाने के दुख से

निशा हैरत से संजीव की बात सुन रही थी उसके हाथ अब भी उसकी स्पीड में बाइक चलाने से उसके कमर पे थे...एक पल को उसने स्पीड इतनी तेज़ की कि ज़ोर के ब्रेक लेने से निशा की छातियाँ उसके पीठ से जा दबी...उस अहसास से ही संजीव सिहर उठा...निशा ने अपने पल्लू को ठीक करते हुए संजीव से थोड़ा फासला बना लिया...कुछ देर खामोशी के बाद

निशा : क्या तुम मुझसे अब भी प्यार करते हो ?

संजीव : जाने दो निशा अब क्या फ़ायदा मैं नही चाहता कि तुम्हारे शादी शुदा ज़िंदगी में कोई दरार लाउ

निशा : देखो संजीव मेरी अब शादी हो गयी है अब ऐसा प्ल्स मत सोचो तुम मेरे सच्चे दोस्त थे और रहोगे

संजीव : थॅंक यू निशा थॅंक यू सो मच

निशा : अच्छा आजकल क्या कर रहे हो?

संजीव : कोलकाता में अच्छी नौकरी मिली थी मैने ठुकरा दी

निशा : क्यूँ? नौकरी? तुम्हारे पास किस चीज़ की कमी है अकेले रहते हो डॅड लॉयर है और तुम्हारे पास इतना बड़ा बंग्लो है सबकुछ तो है

संजीव : हाहाहा मेरे लिए धन दौलत कोई बड़ी चीज़ नही है मेरी कमज़ोरी मेरा प्यार है जिससे शायद मैं ज़िंदगी भर मोहताज रहूँगा

निशा : क्यूँ संजीव? मेरी सहेली के साथ तो उस दिन आए तो थे शादी में रानी क्या वो तुम्हें चाहती नही?

संजीव : हाहाहा मुझे रानी में कोई इंटेरेस्ट नही अब छोड़ो वो सब मैं यहाँ अकेले रह रहा हूँ डॅड वीक्ली आते है कोलकाता में ज़्यादातर रहते है...वैसे भी जो चीज़ मेरी यहाँ मज़ूद है मुझे उसके लिए कोलकाता नही जाना दौलत मेरे लिए बड़ी नही वो तो मेरे कदम चूमती है मुझे तो किसी का साथ चाहिए

निशा शर्मा जाती है वो समझ रही है कि संजीव बार बार बात उस पर रखके ही यह सब कह रहा है कोलकाता ना जाने की वजह शायद निशा थी...एक वक़्त था जब निशा उसे काफ़ी चाहती थी और वो भी उसे...लेकिन शायद माँ-बाप की ना मंज़ूरी और हैसियत की वजह से उसे संजीव से दूरिया बनानी पड़ी थी...लेकिन आज संजीव के दिल को टटोलने के बाद उसे ऐसा लगा जैसे उसने आदम से शादी करके कितनी बड़ी भूल की....

संजीव ने उसे घर तक छोड़ दिया...संजीव ने उसे कहा कि अगर वो चाहे तो ऐसे ही उसे पिक अप कर लिया करेगा...पर निशा को डर लगा उसने इनकार किया कहीं उसके ससुराल वाले या मांता पिता को मालूम ना चल जाए...पर संजीव ने उसे हिम्मत दी कहा कि उसे डरने की किसी से ज़रूरत नही....ज़िंदगी उसकी है किसी की जागीर नही...

संजीव वहाँ से चला तो गया पर निशा के दिल में एक अज़ीब सी कसक छोड़ गया...निशा बार बार दिल ही दिल में खाना बनाते वक़्त संजीव के बारे में सोच रही थी....उस रात सुहागरात में भी निशा ने झूठ सिर्फ़ इसलिए कहा क्यूंकी कॉलेज के टाइम में संजीव से वो एक आध बार उसके करीब खीची चली गयी थी

उसे आज भी याद है कि संजीव ही वो पहला मर्द था जिसने उसकी चूत पे हाथ रखा था और अपना मुँह लगाया था उसे चखा था...उस वाक़या को याद करते ही निशा एकदम से सिहर उठी...उसने पाया कि प्रेशर कुक्कर की सिटी बज रही थी...वो मंद ही मंद मुस्कुराए बस शरमाने लगी....रात को आदम आया तो निशा ने उसके आगे शाम का नाश्ता परोसते हुए अंदर चली गयी...आदम भी उस पर कोई ख़ास ध्यान नही देता था...वो तो अपनी कशमकश में जैसे उलझ सा रहा था....दिन पे दिन कमज़ोर पड़ गया था एक तो खुशी से वो वंचित हो गया था अपने...और उपर से ऑफीस का काम काज बहुत बढ़ गया था...थक हारके जब घर आता तो नहा धोके जैसे तैसे खा पीके सो जाता...करवट बदलती निशा की तरफ एक बार भी नज़र नही करता...

आजकल ऑफीस के बाद वो बियर शॉप पे ही नज़र आ जया करता था...जब घर आता तो नशे में चूर होता...एक बार माँ ने उसे बाथरूम में उल्टिया करते देखा तो पूछा कि क्या हुआ? माँ थी उसे चिंता सताई...पर आदम ने कुछ नही कहा उखड़े अंदाज़ में वो अपने कमरे में चला गया...जब उसके कमरे में आई तो उसे सोया पाया...अंजुम ने निशा से कहा कि अपने ससुर जी को खाना दे देना आज उसका मन नही और बेटे की तबीयत खराब है इसलिए उसे ना दे...निशा ने कुछ नही कहा...

धीरे धीरे निशा और संजीव की मुलाक़ात शुरू होने लगी...वो दोनो अक्सर निशा के डॅन्स क्लास के बाद मिलने लगे थे....संजीव उसे कही घुमाने ले जाया करता था...हर दिन घर के हालातों को जानने की कोशिश करता था..निशा तो जैसे उसके आगे खुल गयी थी उसने बताया कि उसके साथ उसके पति की अनबन हमेशा रहती है उसका उस पर ध्यान नही....वो सिर्फ़ माँ माँ करता रहताहै और अब तो वक़्त बिल्कुल नही देता चिड़चिड़ा सा हो गया है वग़ैरा वग़ैरा...तो संजीव कान भरता कि उसके लिए कुछ भी करने की ज़रूरत नही शादी की है उसने तुमसे कोई नौकर नही तुम उसकी...बस निशा भड़क उठती और यही सोचती की संजीव सच ही तो कह रहा है...
Reply
12-09-2019, 02:37 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
धीरे धीरे रेस्टोरेंट तो बाइक पे घूमना फिरना आम हो गया दोनो के लिए....धीरे धीरे निशा संजीव के घर आना जाना भी करने लगी संजीव मन ही मन खुश होने लगा....उस दिन निशा फिर संजीव के घर आई उसे दिल-ए-हाल ब्यान किया कि किस सित्मो से वो गुज़र रही है? अब उसका उसके पति के साथ रहना मुस्किल हो रहा है....संजीव ने कहा हो सकता है कि उसका दिल तुमसे भर गया हो इसलिए वो ऐसी हरकते कर रहा है अरे तुम नही जानती इन लोगो को ये लोग बहुत गये गुज़रे होते है...क्या मालूम? उसके थके हारे आने की वजह कुछ और हो...निशा खामोशी से उसकी तरफ देखने लगी....संजीव ने कहा कह रहा हूँ ना ऐसा हो सकता है क्या मालूम वो किसी और के साथ सोने भी लगा हो..

निशा : मैं क्या करू? संजीव ?

(मन ही मन जैसे संजीव ने आग भड़काते हुए मुस्कुराया निशा रोने लगी)

संजीव : तुम्हें कुछ करने की ज़रूरत नही है अगर उसे तुम्हारे प्रति कोई प्यार नही तो उसे तड़पाओ जलाओ उसे...छोड़ दो उसे उसके हालत में तुम ज़िंदगी की मौज लो ऐसे ही तो आजकल की लड़किया जीती है जो शादी के बाद भी खुश नही रहती

निशा : लेकिन !

संजीव : निशा किस सदी की हो तुम? यार इतनी मॉडर्न हो पढ़ी लिखी हो समझदार हो क्या तुम्हें चाहिए नही कि तुम्हें कोई प्यार कोई ख्याल करे दोस्ती करना कोई गुनाह नही होता

निशा के चेहरे पे हाथ फेरते हुए....निशा ने उसके चेहरे पे रखे संजीव के हाथ को हटाया तो संजीव ने उसे कस कर थाम लिया....संजीव के आँखो में उसे वासना सॉफ फूटते नज़र आई

संजीव : तुम जानती नही कितना तडपा हूँ मैं निशा चाहे हालत कैसे भी हो? मैं तुमसे चाह कर भी अलग नही हो पा रहा

निशा : प.पर्रर संंनज़ीववव प्लज़्ज़्ज़

संजीव : निशा भूल जाओ कि तुम कोई गुनाह कर रही हो ये तो एक चाहत है और मैं तो तुम्हारा पहले भी था और आज भी हूँ

निशा से कुछ ना कहा गया...और वो खुद पे खुद जैसे संजीव के गले लग गयी...

उधर सदमे में घिरा सा चुपचाप ऑफीस से घर की ओर जा रहा था लेकिन मन नही कर रहा कि उस घर में वो जाए जहाँ उसे कोई प्यार नही मिल सकता...ना निशा से ना अपनी माँ से....वो पुराने दिन याद करता हुआ खुद को कोस्ता हुआ चंपा को एक बार फिर याद करने लगा....ना जाने क्यूँ साली दिल से हट नही रही थी

इतने में उसने पाया कि रूपाली भाभी का पति उसका भाई बिशल वहाँ खड़ा है...बिशल उसे देखके उसके गले लगा...दोनो भाई बस स्टॅंड पे ही खड़े होके बात करने लगे....मर्द तो आख़िर मर्द है अपना दर्द बाँट ही लेता है....सबकुछ जानते हुए बिशल ने जैसे उस पर तरस खाया

बिशल : क्या साला ये कोई जिंदगी है ? जाने दे साली को (आदम जानता था बिशल मुँह फॅट इंसान है)

आदम : क्या करू भैया इसलिए सोचा?

बिशल : अरे एंजाय मार यार चल मेरे साथ तुझे ताड़ी पिलाता हूँ सारा टेन्षन एक साइड

आदम : अपुन दारू नही पीता

बिशल : अबे ताड़ी भी नशीली चीज़ है तू पीके देखेगा ना तो दिन भर की सारी थकान दूर हो जाएगी चल तो अरे चल ना मज़े भी आएँगे जानी

आदम कुछ ना कहा वो बिशल के साथ उस ग्रामीण सेवा में बैठा जो टाउन से बाहर जाती थी...और सीधे गाड़ी कचम्खच लोगो की भीढ़ के साथ टाउन की ओर मूड चली...."आए आए इधर रोक रे"..........गाड़ी रुकी दोनो बाहर निकले...दोनो तरफ खुला मैदान सा था...

और एक पतला सा रास्ता सीधे झोप्पड़ पट्टी की ओर जाता था..."भाई ये कहाँ ले आए मुझे?"........

"अरे यार 10 मिनट दूर है ये जगह टाउन से...यहाँ पे ज़्यादातर ताड़ी पीने लोग आते है तू चल तो फिर दिखाता हूँ तुझे पर संभाल के थोडा ढलान है"..........घुप अंधेरा चाँद की फीकी रोशनी पर रही थी..

दोनो एकदुसरे का हाथ पकड़े ताकि गिर ना जाए ये सोचके ढलान से नीचे उतरे...जल्द ही रोशनी दिखी उसके बाद एक बड़ा सा चिकनी मिट्टी का ठेका आदम ने देखा...दरवाजा खुला हुआ था और अंदर गंदे गंदे गाने बज रहे थे....माहौल नशाखोरो का था...

एक काउंटर बना हुआ था एक बूढ़ा बैठा हुआ था और वहीं 3-4 औरतें जो वहीं की निवासी थी सबको ताड़ी ग्लास में डाल डालके पिला रही थी..वो देहाती थी लेकिन सबका भरा पूरा बदन था साड़ी सिर्फ़ लपेटी हुई थी क्यूंकी आदम ने सॉफ गौर किया की साड़ी पर उसे निपल सॉफ सारे के बाहर से ही दिख रहे थे....

एक औरत ने बिशल और आदम को देखते हुए बैठ जाने को कहा....आस पास सब अज़ीब अज़ीब दरुबाज़ लोग बैठे हुए थे....बिशल ने पसरते हुए दो ताड़ी का इंतेज़ाम करने को कहा....आदम जानता था वो कमाता है यही फ़ायदा लिए बिशल उसे लाया होगा...पर उस वक़्त आदम का दिमाग़ बहुत टेन्स्ड था इसलिए वो चुपचाप रहा जब तक ताड़ी लिए एक औरत ना आई....

अंजुम घर पे इन्तिजार कर रही थी...आदम का ना निशा घर पे अब तक आई थी और ना आदम...."उफ्फ हो आदम के पापा ये लड़का कहाँ रह गया? रात 11 होने को है...और उपर से निशा भी अभीतक डॅन्स क्लासस से नही आई मैं नही जानती क्या हो रहा है?".......इधर से उधर टहलते हुए अंजुम ने अपने हज़्बेंड को कहा..

अंजुम का पति : उफ्फ हो अंजुम शांत हो जाओ आ जाएगा कहीं किसी काम के पर्पस में टाउन से बाहर गया हो सकता है

अंजुम को समझाते हुए आदम के पिता कमरे में लौट आए....उन्हें अपनी बहू की गैर मज़ूद्गी से कोई फरक नही पड़ा था...क्यूंकी वो लापरवाह इंसान थे..लेकिन फिकर अंजुम को दोनो की थी....इतने में दूर मेन रोड पे ऑटो को रुकते देख....अंजुम नोटीस करने लगी...आदम नशे में धुत्त लरखड़ाए अंदाज़ में चला आ रहा था...

."या अल्लाह"......अंजुम ने अपने चेहरे पे हाथ रखा उसे यकीन ना हुआ कि बेटा इस हालत में घर लौटेगा

जब वो घर में दाखिल हुआ तो लगभग लड़खड़ाया..."मैं पूछती हूँ कहाँ था तू? और ये क्या हाल बनाया हुआ है इस्श".......माँ ने मुँह पे साड़ी रखी उसके मुँह से ताड़ी की भभक उठ रही थी....अंजुम महेक को पहचान सकती थी..

माँ : तू..तूने नशा किया!

आदम : हां किया तो

माँ : मैं पूछती हूँ आख़िर तुझे हुआ क्या है? क्यूँ कर रहा है ऐसा? तुझे कोई फिकर है कितना बुरा हाल हो रहा था मेरा जो लड़का 8 बजे आता था वो आज इतने लेट आया है और तुझे ज़रा सा भी ये सवाल ना उठा कि घर आए तो ये पूछे कि निशा कहाँ है? तेरी बीवी घर शाम से नही लौटी

आदम माँ को शिकायत करता देख जैसे झल्लाया..."बस बहुत हो गया बॅस करो नही सुनना तुम्हारी बकवास...गयी होगी किसी से मराने मरर्ने दो रंडी को मुझे मत शिकायत करो तुम्हारी बहू है ना तो तुम ध्यान दिया करो"........बेटे के ऐसे झल्लाए स्वर में बात को सुनके अंजुम के दिल को जैसे ठेस पहुचि
Reply
12-09-2019, 02:38 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
अंजुम ने फिर भी परवाह नही की वो जानती थी वो पिया हुआ है..इसलिए उसने पूछा कि किसने तुझे ताड़ी पिलाई......आदम ज़ुबान से लड़खड़ा रहा था...उसने माँ को कस कर दूर धकेल दिया...और लड़खड़ाते हुए बिना कुछ कहे अपने कमरे में चला गया....

जब अंजुम अंदर आई तो उसने पाया कि ऑफीस के ही पसीनेदार कपड़ों में बेटा बिस्तर पे ढेर होके खर्राटे भर रहा था...अंजुम को उसकी ये हालत देखकर बेहद दुख हुआ...आज अगर उसकी बीमारी ने उसे तोड़ा ना होता ना मज़बूर किया होता...तो शायद आदम का यह हाल ना हुआ होता...ना ही वो किसी ग़लत संगति में पड़ता....ये सब किया धरा उस निशा का है...अपनी बहू को कोसते हुए अंजुम को जैसे उस पर तेज़ सख़्त गुस्सा आया...

अंजुम खुद पलंग के किनारे बैठी और उसने बेटे के जूतो को उतारा फिर मोजे को उसके बाद कॉलर में फँसे टाइ को ढीला करके उसकी गाँठ खोल कर उसे निकाला...अंजुम ने जाते जाते ए सी थोड़ा तेज़ कर दिया...ताकि वो आराम से सो सके...अंजुम ने काफ़ी निशा का इन्तिजार किया था पर वो इतनी हट स्वाभाव की हो जाएगी उसने सोचा नही था...ना ही सिर्फ़ वो घर पे ध्यान दे रही थी बल्कि अपने पति की भी उसे कोई परवाह नही थी...अंजुम ने पाया कि सिंक में झूठे बर्तन पड़े हुए है वो उन्हें मांझणे लगी...उसने अपने पति के लिए थाली भर खाना उसके पास लाके रखा और अपना कमर पकड़के बैठ गयी..

अंजुम का पति : अंजुम ये क्या तुम खाना नही खाओगी और बेटे को दिया

अंजुम : बिना खाए सो गया (पिताजी को अफ़सोस हुआ)

अंजुम : मैं थक चुकी हूँ आदम के पापा निशा को समझा समझाकर लगता है अपने चलते बेटे की ज़िंदगी जैसे खराब कर दी हो मैने

अंजुम का पति : सब ठीक हो जाएगा

अंजुम : मुझे नही लगता

अंजुम का पति और कह भी क्या सकता था? उसने खाना खाया और हाथ धोके जब वापिस लौटा तो पाया निशा आ चुकी थी....ससुर ने निशा से पूछा क्या बात है निशा? इतने देर से तुम कहाँ थी?.....निशा सकपकाई...तो इतने में अंजुम बाहर आई..उसे निशा पे तेज़ गुस्सा आया....

निशा : वो दरअसल

अंजुम : देखो निशा ये तुम्हारा ससुराल है तुम्हारा मायका नही जहाँ तुम अपनी मर्ज़ी से घर आओगी अगर कही जाना भी पड़ गया था तो कम से कम बता देती एक बार भी आदम को कॉल किया तुमने (निशा खामोश रही) जानती हो वक़्त क्या हुआ है? तुम्हें कोई फिकर भी है खुद की ना सही पर हमे तो तुम्हारी फिकर है ना

निशा को अंजुम ने खूब खड़ी खोती सुनाया...कि वो आजतक चुप रही और क्या लगा रखा है? घर पे उसका कोई ध्यान नही बेमतलब का डॅन्स क्लासस...बेटे ने छूट क्या दे दी? कि वो तो अपने मन की करने लगी.....आदम के पिता अपनी बीवी अंजुम को समझा रहे थे...लेकिन अंजुम का गुस्सा निशा के प्रति सिर्फ़ आदम के लिए था...उसकी बेबसी भरी हालत अंजुम से देखी ना जा रही थी...आज आदम के बदले रूप की ज़िम्मेदार कही ना कही निशा ही थी...

निशा सुबकने लगी तो अंजुम को उसका पति कमरे में ले गया.....अंजुम कमर पकड़े दर्द को पी रही थी...आज उसने दिन से ही खूब काम किया था...पति ने कहा भी कि कुछ खा ले...पर अंजुम ने मना कर दिया....फिर पति ने उसे लेटा दिया और उसके पाज़ामी की डोरी को नीचे खिसकाई उसकी कमर से लेके नितंबो के उपरी सिरे तक मलम लगाई जहाँ उसे दर्द उठता था.....कुछ ही पल में अंजुम सो गयी....आदम के पिता वैसे भी इतने सालो के रिश्ते के बावजूद भी रूचि नही रखते थे...इसलिए उन्होने बीवी की पीठ को कपड़े से ढका...और करवट बदले रज़ाई ओढ़ ली....

अगले दिन जब आदम की नींद टूटी तो माथे में उसे तेज़ दर्द लगा वो दर्द को पिए जब घर से बाहर लौटा तो माँ को बर्तन मान्झ्ता देखा...."माँ यह सब क्या है? निशा कहाँ है?"........

."वो अभी जागी है तू बता तू ठीक है देख आदम मुझसे ना छुपा कि कल तू पीके आया था"..........आदम चुपचाप हो गया..

आदम ने सोचा शायद माँ बिशल दा को कोसे इसलिए उसने कहा कि बस ऐसे ही मन किया तो मैने ताड़ी पी ली....माँ ने कहा की तू जानता है कितनी गंदी चीज़ होती है दस बोतल की शराब का उसमें नशा होता है...वो इसीलिए आदम को यहाँ रखना नही चाहती थी कि उसे पीने खाने की लत ना लग जाए...आदम ने कहा कि तू ये सब काम छोड़ दे

माँ : नही बेटा अगर मैं नही करूँगी तो कौन करेगा? निशा को कुछ मत कह मैने उसे कल वैसे ही बहुत कुछ कह डाला मुँह फुलाई हुई है

आदम : उसके मुँह फूलने की मुझे परवाह नही निस्सा निशा

माँ ने रोकना चाहा आदम को पर आदम रुका नही कमरे में गया तो निशा तौलिया बालों में बाँधी बाहर आई..."उठ गये आप?".......

."क्या मैं जान सकता हूँ? कि तुम किचन में होने की बजाय यहाँ क्या कर रही हो?"........

"बस सोचा की नहा लूँ"........

"वो सब तो ठीक है पहले माँ का हाथ बटाती माँ ने बताया तुम घर पे नही थी"........

."हां मैं कल डॅन्स क्लास्स्स से अपनी सहेली के यहाँ"

आदम : ये भी नही सोचा कि मैं घर आ क्यूँ नही रहा ये भी नही सोचा मेरे परिवार वाले मेरा इंतजार कर रहे होंगे बस अपने मन की चला ली क्यूँ? कौन सी सहेली नाम तो बताना
Reply
12-09-2019, 02:38 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
निशा सकपकाई..."वो संजीव के साथ जो उस दिन आई थी रानी"........"ह्म किसी सहेली के यहाँ जाना देर रात रुकना ठीक पर अगर आके खाना बनाना तुम्हारे लिए मुस्किल"

निशा : देखो आदम बस करो अब तुम हद से गुज़र रहे हो

आदम : हद से तुम गुज़र रही हो मैं तुम्हें आखरी बार कह रहा हूँ घर के काम काज को भी सम्भालो माँ की तबीयत ठीक नही रहती

निशा : देखो आदम काकी कब बीमार हुई एक दिन खाना नही बना सकी तो तुम मुझे कोसोगे क्या

आदम ने सोचा भी नही था...कि निशा का साहस इतना बढ़ जाएगा वो चाहता तो आगे बढ़ता...और निशा को दो-तीन खीच कर लगा देता....अंजुम आके बेटे को समझाने लगी कि निशा को कुछ ना कहे...आदम ने माँ से कहा कि वो वहाँ से फिलहाल जाए...निशा ने रोई सूरत बनाए माँ की तरफ देखते हुए कहा हो गयी आपको तसल्ली देख लिया आपने कैसे जॅलील कर रहे है मुझे? आपको अच्छा लगता है ना कि मुझे ये दान्टे कोसे और मारे...अब तो आप खुस होंगी

आदम : निशा बिहेव युवरसेल्फ़ (आदम जैसे दहाडा तो निशा सेहेम उठी अंजुम ने कस कर बेटे की बाँह को पकड़ लिया)

निशा बिना कुछ कहे घर से निकल गयी....अंजुम ने उसे रोकना चाहा पर वो निकल गयी..."जाने दो उसे वो समझाने के काबिल नही है"........आदम ने माँ की तरफ देखते हुए कहा

माँ : ग़लती मेरी है बेटा जो मैं तुझे समझ नही पाई तेरी ज़िंदगी मेरे वजह से खराब हो गयी

आदम : माँ ये बात फिर दुबारा ना कहना मुझे परवाह नही कि हमारा ये शादी शुदा रिश्ता बचे या ना बचे पर मैं तुझे दुखी में नही देख सकता

आदम इतना कह कर बिना नाश्ता लिए ऑफीस को रुखसत हो गया...ये क्या हो गया था इस घर को? किसकी नज़र लग गयी थी अंजुम जैसे सोच में पड़ गयी....उस शाम आदम के घर में निशा के चाचा चाची आए और आदम की उपस्थिति पाते ही उसे समझाने लगे....आदम ने एक कान से सुना दूसरे कान से निकाला उसने सॉफ कह दिया कि उसके नखरे सहने का उसमें दम नही...अगर संसार का ख्याल उसे नही तो फिर वो जा सकती है यहाँ से....उसके चाचा चाची कुछ कह ना सके...वो वैसे ही वहाँ से चले गये...

ये तो आए दिन का जैसे क़ानून बन गया...निशा घर पे कम ध्यान देने लगी...हर चीज़ पे अपना हक़ जताने लगी..आदम की इक्षा की उसे कोई परवाह ना हुई...बस आदम के आने से पहले घर लौट आती...और उसके सामने खाना परोस देती...फिर जब आदम कमरे मे आता तो वो सो जाती...अंजुम अपना काम खुद करती थी सॉफ सफाई अगर वो करती तो निशा खाना बना देती इसलिए अंजुम ने निशा को और कुछ नही कहा ना ही दोनो सास बहू एकदुसरे से बातचीत करते...ऐसा लग रहा था एक ही घर में सब गैरो की तरह रह रहे थे....

अपने घर के हर कलेश हर एक बात को निशा क्लास के बहाने संजीव के यहाँ दिन गुज़ारे उसे बताया करती थी...उसने ये तक बताया कि क्यूँ वो आदम से दूरिया बना रही थी...

संजीव : हाहहाहा तुम्हारे पति का लंड क्या गधे जैसा है? माइ गॉड इतना बड़ा ऐसा तो हमारा भी नही

निशा : हुहह सांड़ बन जाता है सांड़ एक बार शुरू होता है तो रुकता नही उस दिन तो आमादा हो गया ये जानने को कि कही मेरा किसी से पहले कोई संबंध!

संजीव : उसे मालूम चल गया क्या?

निशा : शक़ हुआ उसे पर मैने भी झूठी कसम ही खाई रही वरना क्या अपमान का मुझे डर नही? मुझे तो खुशी है कि एक तरह से अच्छा हुआ उस इंसान से पीछा तो छूटा

संजीव : दट;स गुड निशा तुम नही जानती मेरी ज़िंदगी में तुम्हारे आ जाने से मैं कितना खुश हूँ (निशा की पीठ पे हाथ फेरते हुए)

निशा कसमसा उठी उसे किसी की पत्नी होने की कोई लाज ना रही....वो संजीव के आगोश में जैसे चली गयी...संजीव ने उसका पेटिकोट ब्लाउस साड़ी एक एक कर सब उतार दिया...पहले तो निशा झिझकी इतने दिनो के संबंध के बावजूद वो कभी शादी के बाद उससे ना हमबिस्तर हुई थी....आज संजीव पहेल करना चाह रहा था...निशा खुद पे खुद संजीव के इशारो पे चलते हुए बिस्तर पे कुतिया मुद्रा में आ गयी....निशा की गान्ड को दबोचता हुआ संजीव अपनी हसरतें पूरी करने लगा...

वो निशा को तबीयत से चोदने लगा...और निशा हिकच हिकच के सिसकते हुए अपने भीतर लिंग को अंदर बाहर महसूस करती रही....संजीव ने उसे कस कर थामा और अकड़ गया..दोनो बिस्तर पे ढेर होके हाफने लगे....लेकिन दोनो एक होंठ बेदर्दी से एक दूसरे को चूमते रहे....

"अगर ये चीज़ तुम्हारा पति देख लेगा तो".....

."कौन दिखाएगा उसे तुम या मैं ....निशा बेशार्मो की तरह हंस पड़ी तो संजीव भी हंस पड़ा उसने उसकी छातियो को दबाते हुए उसे अपने सीने से लगा लिया..

ये तो एक दिन का किस्सा था पर ये तो रोज़ की बात हो रही थी...पति को शक़ ना हो इसलिए निशा घर जल्दी आती थी...चुदाई से इतनी पष्ट पड़ जाती थी कि उसके हाथ खाना बनाते वक़्त काँपते थे इस बातों को अंजुम देख ज़रूर रही थी पर कुछ कह नही पा रही थी और कहती भी क्या? उसे ईलम नही था इस बात का..

उधर आदम ने माँ के दिए कसम के वजह से ताड़ी को हाथ तक ना लगाया...जब घर लौटा तो निशा अपने कमरे में थी....आदम अपने कपड़े उतारने लगा...तो निशा ने उखड़े ही अंदाज़ में पूछा...कि कल एक बर्तडे पार्टी है तो घर आने में थोड़ा देरी होगा पर वो सहेलियो के साथ आ जाएगी...असलियत में संजीव ने एक हाउस पार्टी रखी थी...जिसमें काई क्लाइंट्स आने वाले थे बिज़्नेस पर्पस के लिए...संजीव ने बेहद इन्सिस्ट किया था निशा को...

आदम : तो मुझसे क्यूँ पूछ रही हो? मुझे नही जाना कही?

निशा : मैने तुम्हे जाने या ना जाने के लिए नही पूछा बस कह रही हूँ

आदम : जहाँ जाना है जाओ गेट लॉस्ट

आदम ने भी उखड़े अंदाज़ में कहा और अपने कपड़े उतारे और दूसरे कमरे में आया....माँ लेटी हुई थी....पिता जी उठके उसके पास से बाहर ही आ रहे थे..."क्या हुआ माँ को?".......

"बेटा वो दरअसल तबीयत ठीक नही है अंजुम की डॉक्टर को दिखाके लाया था जब तू नही था"........

"माँ ने कुछ खाया"......

."हां पर बुखार उतर नही रहा डॉक्टर का कहना है बदली मौसम की ठंड पकड़ ली है इन्हें".......

."ओह नो पिताजी ये हुआ कैसे?"........

.पिताजी ने कहा हुहह अब क्या बोलू? तेरी बीवी का तो घर के काम काज में मन नही लगता रात के झूठे बर्तन ये धोती है बस हरारत का वहीं बुखार लग गया है...आदम को बीवी पे गुस्सा आया...वो अपने कमरे में नही लौटा...उसने पिता जी से कहा की आप अपने कमरे में सो जाए इस कमरे में माँ को सोने दे वैसे भी ये कमरा थोड़ा गरम है..."ठीक है बेटे"......पिता जी चले गये...

तो आदम ने पंखा सब ऑफ किया फिर माँ पे रज़ाई उधाई उसने देखा अपनी माँ का मासूम चेहरा ऐसा लग रहा था जैसे उसके चेहरे पे बेटे की ही कितनी टेन्षन हो? वो बाहर आया...और उसने बिशल दा को कॉल किया..."हां भैया वो हाँ वो ताड़ी जो उस दिन पिलाई थी ना वो लेडी हां उसकी बेटी का नंबर चाहिए सुना है घरो घर में झाड़ू पोछा का काम करती है मेरे भी घर का कर देगी मैं उसे दुगना पैसा दूँगा अच्छा ओके चलो".........आदम जिस भोजपुरी इलाक़े में ताड़ी पीने जाता था वहीं पे उसकी पहचान एक आंटी से हुई थी जो अक्सर उसे और बिशल को एक आध बार ताड़ी पिलाई थी उसी ने बातों ही बातों में आदम को बताया था कि उसकी बेटी है जो कामवाली है उसी की तरह अब वो उमर होने से शहर नही आती पर अपनी बेटी को भेज सकती है...ये सुनके आदम ने काफ़ी सोच विचार किया...
Reply
12-09-2019, 02:42 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
अब निशा से तो कोई उससे उमीद नही थी उसने सोचा सिर्फ़ माँ की ही सेवा के लिए उसे पैसे देके वो हाइयर कर लेगा...आदम यही सोचते हुए जब कमरे में लौटा...तो पाया उसकी माँ ठंड से तिठुर रही थी...उसने माँ के हाथ पाओ को घिसा लेकिन माँ का ठंड बढ़ रहा था....वो जब पिता जे के रूम में गया तो वहाँ पिता जी सो चुके थे....उसकी बीवी भी करवट बदले उसी के लिए कमरा खुला छोड़े सो रही थी....आदम ने अपने कमरे का दरवाजा लगा दिया और फिर तीसरे कमरे में आया जहाँ माँ सो रही थी...उसने अंदर आके दरवाजा लगाया...

वो जानता था कि माँ की ठंड को कैसे कम किया जा सकता है....कही ना कही उसका दिल धधक रहा था....बीवी और पिता जी दोनो घर पे मज़ूद थे...लेकिन रात बहुत ज़्यादा हो चुकी थी और पिता तो गहरी नींद में अपने कमरे में खर्राटे भर रहे थे....निशा तो वैसे भी उस पर ध्यान नही देती थी कि वो घर में क्या कर रहा है?

आदम धीरे धीरे कमरे में आया...फिर उसने माँ की रज़ाई हटाई...उसने जब माँ का बदन छुआ तो उसे माँ का शरीर ठंडा लगा...ऐसे हालत में उसे डॉक्टर के पास ले जाया भी नही जा सकता था बाहर आते ही उसे ठंड तेज़ लग जाती...उसने मोटे रज़ाई को एक तरफ किया...फिर अपने कपड़े उतारे...वो पूरा नंगा हो गया...उसने अपने कच्छे को भी एक साइड फ़ैक् दिया....उसने धीरे धीरे आगे बढ़ के सोच लिया कि शायद यही एक कोशिश बची है माँ को ठीक करने की....माँ इन सब से अंजान बुखार में तिठुर रही थी

मैने माँ के पाजामे की डोरी आहिस्ते आहिस्ते से खोली...और उस पर दोनो तरफ उंगली घुसाए पैंटी सहित नीचे उतारने लगा लगा...पाजामा पैंटी सहित माँ के पाओ से निकालते हुए मैने उन दोनो को एक साइड रख दिया....फिर मैने माँ के जंपर को भी धीरे धीरे दोनो हाथो से उपर उसके बाजुओं तक लाने लगा...तो इससे माँ थोड़ी कसमसाई मैने उसे हल्के से सहारे से उठाया और जंपर को भी बाजुओं से निकालता हुआ उसके आज़ाद कर दिया अब माँ और मेरे बीच सिर्फ़ उनकी ब्रा का फासला था..

मैने माँ के ब्रा के हुक को खोला और उसे भी कलाईयो से निकालते हुए फ़ैक् दिया....माँ इस बीच हड़बड़ाते उठ बैठी...."क..क्या कर रहा है यह सब?".......

"सस्शह चुप तेरी तबीयत ठीक नही जो करना है मुझे कर लेने दे".......माँ ने चुप्पी साध ली ऐसे भी उनकी तबीयत ठीक नही थी...

मैने उन्हें नंगी लेटा दिया...माँ के बदन पे एक भी कपड़ा नही था इसलिए उनका बदन सर्द से तिठुर उठा...मैने पास की बत्ती को भुजा दिया...फिर उनके गुदाज़ पेट पे हाथ फेरते हुए टांगे फैलाई...वहाँ माँ की चूत पे मेरा हाथ था...जो पावरोटी जैसी सूजी और गरम थी...

मैने उनके बीच एक उंगली घुसाइ तो माँ सिसकी...आज जैसे मेरे बदन की गर्मी उबाल खा रही थी..आजतक सिर्फ़ एक ठंडी औरत को जैसे झेल रहा था..माँ को वापिस पाकर मैं जैसे धन्य हो गया था

उसकी बाहों में टूटके जैसे मैं ढेर हो गया....मैने उसकी दोनो बगलो को उठाया जिनपे हल्के हल्के रोयेदार बाले उग गयी थी...उनपर ज़ुबान फेरते हुए मैने माँ की टाँगों के बीच पावरोटी चूत को मुट्ठी में लेके दबाना चालू किया...माँ ने टाँगें एकदम फैला दी पहले तो ना नुकुर किया...

माँ : बे..टा नहिी ससस्स तू शादी शुदा हो चुका है एब्ब नही बॅस सस्सस्स नही इयाहह हफ (माँ की चूत को भीच देने से ही माँ गरमा गयी और खुद पे खुद आहें भरने लगी)

आदम : माँ मैं उस बनावटी ज़िंदगी को नही जीना चाहता...मुझे तू चाहिए मुझे वो दिन वो वक़्त वापिस चाहिए ज्सिके लिए मैं तरसा हूँ..शायद खुदा ने यही एक रास्ता दिखाया...कि तेरे इस तपते बुखार में मैं तेरे करीब आ सकता हूँ...अगर तूने मुझे आज धिक्कारा तो मैं तुझे खो दूँगा...तेरी तबीयत बिल्कुल ठीक नही है...सोच ले अगर आज तूने मुझे अपने से दूर किया तो मुझे खो देगी

माँ : नहिी सस्स नहिी मैं तुझसे दूर नही रह पाउन्गी अफ आराम सी सस्सस्स (मैने माँ की चूत को बेदर्दी से मसलना शुरू कर दिया उसकी मुट्ठी में मुनिया को भीचते ही जैसे माँ काँप उठी उसकी सिरहन जैसे पूरे शेरर में दौड़ उठी हो)

मैने माँ की छातियो को इस बीच मुँह में लेके चूसना शुरू किया...दोनो मोटे ब्राउन निपल्स को चुसते ही जैसे मैं पागल होता चला गया....मैं दाई चुचि को भी हाथो में लिए मसल रहा था...और जब बाई चुचि के उपर से मुँह हटाता तो उसको भी चुस्सता....फिर बाई ओर की चुचि को मसलता...मैने हाथ माँ की चुचियो से ना हटाए....बस उसे चरम आनंद देने लगा...
Reply
12-09-2019, 02:42 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
माँ ने अपनी दोनो टांगे मेरे कमर और कूल्हें पे सहलाना शुरू कर दिया...माँ अब मेरी काबू में थी..मैने धीरे धीरे छातियो पर से मुँह नीचे ले जाते हुए गोल गहरी नाभि को चूमा और उस पर ज़ुबान लगाई...फिर नाभि से ज़ुबान निकालते हुए फटे स्ट्रेच मार्क्स भरे तालपेट से ले जाते हुए सीधे माँ की चूत पे मुँह रख दिया..माँ के तालपेट और चूत के फास्लो के बीच हल्के हल्के झान्ट उगे हुए थे....मैने उनपे नाक घुसाई और उसे सूंघते हुए चूत को चाटने लगा...स्लूर्रप्प स्लूर्रप्प्प ऑश ससस्स उम्म्म्म.....माँ सिसक रही थी और मैं उसकी चूत को जीब से चख रहा था....वाहह माँ की चूत अब धीरे धीरे खुल रही थी...

माँ ने इस बीच मेरे सर को अपने चूत पे दबाना चाहा...वो कस कर मेरे सर और बालों को थामे...अपनी चूत पे जैसे दबा रही थी...अपने ही बेटे की ज़बान की लज़्जत चूत पे बर्दाश्त जैसे ना हो पा रही थी उससे..

माँ : बेटा धीरी धीरे ज़ोरर से नही सस्स (ज़ुबान चूत की दरार में तेज़ी से चलाने लगा बेटा)

आदम : उफ़फ्फ़ माँ इसमें तो रिस रिस के जैसी महेक आ रही हो मुझे तेरी ये गंध बेहद अच्छी लगती है कि लुभावनी है

माँ : हट बदमाश ये तो मेरी चूत की पेशाब और पसीने की मिली जुली महेक है...(आदम ने मुँह चूत से हटाए माँ की तरफ मुस्कुरा कर देखा)

फिर उसने माँ की चूत को मुँह में भर लिया और दाने को चुसा..माँ किसी तड़पति बिन पानी मछली की तरह मुँह पे हाथ रखके जैसे उस पर दाँत काट रही थी...उसकी लज़्ज़त उससे बर्दाश्त ना हो रही हो...बेटा बीच बीच में दाने को दाँतों से भीचते हुए उपरी चूत पे मुँह रखके उससे चुसता भी गया...जब उसने पाया कि माँ कसमसा रही थी...

तो उसने दो उंगली को दरारो के सीमा पे रखा और उसे दबाव दिए अंदर प्रवेश किया...उंगली को चूत अंदर बाहर करते हुए वो चूत को पूरी तरह से खोल चुका था...बीच बीच में उसने अंगूठे से माँ के दाने को भी खूब छेड़ा..जिससे माँ ने अपने कुल्हो को हवा में उठा लिया..

माँ : अब बस भी कार कितनी उंगली करेगा उफ़फ्फ़ मेरे शरीर में ताक़त नही है अब चोद भी दे बहुत बदन टूट रहा है..

आदम : बस ठहर जा ज़रा (उसने चूत से उंगली अंदर बाहर किए एक पल को रोका फिर झट से उंगली बाहर खीची और एक एक उंगली को चूसा...माँ की चूत के भीतरी अन्द्रुनि से निकाला रस उसके मुँह में घुल सा गया....उसने माँ की चूत पे एक बार नाक रखी उसे सूँघा फिर माँ पे जैसे सवार होते हुए दोनो बेड के कगार को मज़बूती से थामा)

इससे आदम का मुश्तन्डा लंड जो अकडे हुए था...माँ के चेहरे के उपर झूलने लगा...माँ ने झट से उसे अपने मुँह में किसी बर्फ के गोले को चूसने के भाती लिया...माँ की गरम मुँह का अहसास आदम को पागल किए जा रहा था.....एम्म्म ससलूर्रप्प्प स्लूर्रप्प म्म्म्मम.....माँ लंड को चूस्ते हुए गुनगुना सी रही थी...लंड चूसने की आवाज़ उसके मुँह से बेटा हल्के हल्के उसके मुँह में ही लंड भीतर तक डालने लगा...

"एम्म्म एम्म अओओउू अओउू एम्म".....होंठ अंडकोष को छू रहे थे...लंड मुँह के अंदर बाहर कर रहा था आदम अपनी माँ के....उसने मज़बूती से काग्गर को पकड़े रखा और माँ के मुँह में लंड ठूँसे रखा..माँ भी बेटे के लंड को चुसते हुए जैसे खा रही थी...उसका साइज़ हालाकी उसके लिए काफ़ी हद तक बड़ा था...पर उसे सहना और उसका मज़ा लेने की वो आदि थी...

"अओउ ओओउूउ"....अब हलक तक जैसे आदम लिंग को घुसाने लगा तो माँ की आँखे बड़ी बड़ी हो गयी उसने बेटे के कुल्हो पे चुन्टी कांटी और उसकी पेट पे हाथ फेरते हुए उसे पीछे धकेला.

उसी पल आदम ने लॉडा माँ के मुँह से बाहर खीचा...माँ का मुँह लार थूक से गीला हो चुका था उसने अपने होंठ पोंछे..तो आदम ने अपने गीले लंड पे थूक मलते हुए माँ के होंठो से होंठ जोड़ लिए...दोनो पागलो की तरह एकदुसरे को स्मूच करने लगे...एकदुसरे के होंठो को चूसने चबाने लगे...एकदुसरे की जीब पे जीब सटाने लगे...जब दोनो अलग हुए तो हाफ्ते हुए साँसें एकदुसरे के चेहरे पर छोड़ने लगे....

आदम ने लंड को फुरती से माँ की चूत के मुंहाने पे घिसा...तो गीली चूत ने उसे अपने अंदर जैसे समा लिया..

."ओह्ह्ह्ह"....माँ ने ज़ोर से आहह भरी...

इस बीच आदम ने पाया उसका लंड अंदर तक सरकता जा रहा था...जब अंडकोष ही केवल बाहर लटके रह गये तो वो माँ की छातियो पे सर रखकर कुछ देर के लिए सुस्ताया....

अंजुम को अहसास हुआ कि सुपाड़ा बेटे का उसके बच्चे दानी को छू रहा था उससे वो काँपने लगी क्यूंकी बेटे के हिलने से लंड उस हिस्से पे घिस रहा था..जिसे सहना अंजुम के बस की नही थी...उसने बेटे के कंधे पे दोनो हाथ रखके और उसे धक्के लगाने को कहा...

आदम : हाए माँ तेरी चूत की सील ऐसा लगा जैसे खुली ही नही है अभी तक इतनी सख़्त..

माँ : अब गेपिंग इतना हो जाता है तो चूत में सख्ती आ जाती है बेटा ये कोई ढीली चूत नही किसी अधेड़ उमर की औरत की

आदम : यह तो है माँ ससस्स (लंड स्ररर से अंदर भीतर तक पेलते हुए आदम उसे बाहर निकालने को होता है फिर सुपाडे मुंहाने तक पहुचते ही उसे फिर तेज़ी से अंदर घुसा देता है)

हर धक्को में अंजुम हिल जाती है और उसकी छातियाँ बेटे के जैसे से टकरा जाती है...आदम इसी मुद्रा में माँ की चूत में सतसट धक्के पेलने शुरू करता है.."वाहह माँ क्या गजब की चूत है तेरी? इस्शह कितनी सख्ती है गहराइयो में".......

"अफ बेटा और अंदर कितना डालेगा? मुझे मूत लग रहा है".....

."क्या तुझे पेशाब लग रहा है".......आदम धक्को पे धक्के तेज़ मारता ही बोला
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,558,602 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 550,907 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,257,484 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 950,577 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,686,997 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,108,965 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,999,135 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,216,452 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,089,988 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 290,513 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 10 Guest(s)