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RE: Free Sex Kahani जालिम है बेटा तेरा
मालती खाना ले कर आती है, और खाट पर बैठे अपने बेटे को देकर वही जमीन पर बैठ जाती है।
मालती(मन में)-- अगर उसकी बड़ी मां अपने बेटे से चुदवा सकती है, तो क्या मैं अपने बेटे के साथ.....नही...नही ये गलत है।
तभी उसकी नज़र कल्लू पर पड़ती है,
कल्लू आराम से खाना खा रहा था,
ना चाहते हुए भी मालती कल्लू को निहारे जा रही थी,
मालती(मन में)-- मेरा बेटा, सोनू के जैसा थोड़ी है, जो अपनी मां पर ही बुरी नज़र डालेगा। लेकीन मैं ही पागल हूं जो अपने ही बेटे के बारे में गदां सोच रही हू, लेकीन क्या करु जब से लंड देखी हू तब से मेरी बुर फड़पड़ा रही है। क्या करू? बाहर चुदवाउगीं तो बदनामी होगी,लेकीन लंड तो चाहीए ही। मेरे लिये अच्छा होगा की अपने बेटे के नीचे ही पड़ी रहु जिंदगी भर....लेकीन इसे पटाउ कैसे ? अगर ये बुरा मान गया तो....अब जो होगा देखा जायेगा?
मालती-- बेटा पानी बरसने लगा, तूने सारे कपड़े तो नीकाले थे ना?
कल्लू-- हां मां॥
मालती-- मैं फीर भी देख कर आती हूं कही कोइ छुट तो नही गया और कहते हुए बाहर चली जाती है,
जब वो जा रही थी तो कल्लू कनखी से उसकी बड़ी बड़ी गांड देख रहा था, मालती दरवाजे के पास पहुच कर छट से पिछे मुड़ जाती है, और कल्लू को देखती है, जो उसकी मटकती गांड की तरफ देख रहा था।
कल्लू हड़बड़ा कर अपनी नज़र दुसरी तरफ कर लेता है, लेकीन तब तक मालती समझ चुकी थी की ये मेरी गांड ही देख रहा था। मालती थोड़ा सा मुस्कुराइ और बाहर आ गयी।
कल्लू(मन में)-- हे भगवान कही मां ने देख तो नही लीया की मैं उसकी...नही नही देखी होती तो अब तक मेरी पीटाइ हो जाती, लेकीन क्या गांड है साली की, 1 साल से देखते आ रहा हू चुप चुप के लेकीन कुछ कर नही पा रहा हूं....
तभी वहां मालती आ जाती है, वो इकदम पानी में भीगी थी, ये देख कल्लू चिल्लाया!
कल्लू-- मां तू पागल हो कयी है, क्या ठंढी के मौसम में क्यूं भीग रही है? ठंढ लग जायेगी तो।
मालती(ठंढी से कापते हुए)-- बेटा वो मै....आ....छी (छिंकते हुए)
कल्लू-- देखा सर्दी लग गयी ना, चल अब जल्दी कपड़े बदल ले।
मालती वही खड़ी खड़ी अपनी साड़ी खोल देती है, भीगा हुआ ब्लाउज जो मालती की बड़ी बड़ी चुचीयों को एक अच्छा सा शेप दे रहा था, और उसका पेटीकोट पूरा उसके गांड से चिपका उसकी खुबसुरती को बढ़ा रहा था। और कल्लू के सोये हुए लंड की लम्बाइ भी।
कल्लू तो बस मुहं खोले अपनी मां की गदराइ हुइ जवानी देख रहा था।
मालती-- अप खड़े खड़े देखता ही रहेगा या मेरी साड़ी भी लायेगा अंदर से। मुछे ठंढ लग रही है...आ...छी:॥
कल्लू-- हां.... लाता हू।
और अंदर से जाकर साड़ी और पेटी कोट लेकर आता हैं॥
मालती-- अरे बेटा तूने मेरी अंगीया(ब्रा) और चड्ढ़ी नही लाई(कहकर हल्का सा मुस्कुरा देती है)
कल्लू तो ये सुनकर ही पागल हो जाता है, वो झट से अंदर जाता है और उसकी एक काले कलर की ब्रा लेता है, और फीर उसकी चडढी लेकर जैसे ही आता है, उसके दिमाग मे खुरापात है, उसने चडढी के सामने एक बडा सा होल कर दिया और फीर जल्दी से लाकर अपनी मां को दे दीया।
मालती-- अब मुझे ही देखता रहेगा या, मुह पिछे घुमायेगा। मुझे कपड़े बदलने है,
कल्लू अपना मुह पिछे घुमा लेता है, मालती अपना कपड़ा बदलने लगती है। लेकीन जब वो चड्ढी पनहने लगती है, तो उसे चड्ढी में बड़ा सा होल दीखा ये देख कर मालती मुस्कुराते हुए मन में-- वाह बेटा, मुझे लगा आग सीर्फ मेरे बुर में ही लगी है। लेकीन मुझे क्या पता था की तेरा भी लंड सुलग रहा है...और सोचते सोचते चड्ढी पहन लेती है,
मालती-- मैने कपड़े पहन लीये है, अब तू मुह घुमा सकता है।
कल्लू पलट जाता है, और खाट पर बैठ जाता है।
कल्लू-- मां खाना क्या बनायेगी आज?
मालती कल्लू के बगल में बैठती हुई-- जो मेरा बेटा बोले, वही बनाउगीं॥
कल्लू-- मां तू बता ना तूझे क्या पंसद है।
मालती-- मुझे जो पंसद है तू खीला पायेगा?
कल्लू-- अरे मां तू बोल तो सही।
मालती-- मुझे तो बैंगन पंसद है।
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RE: Free Sex Kahani जालिम है बेटा तेरा
कल्लू इतना भी ना समझ नही था, वो समझ कया था की उसकी मां ने उसे उसकी गांड देखते हुए देख लीया था। और फीर होल वाली चड्ढी भी पहन ली और कुछ बोली नही, और अब इसे बैंगन खाना है।
कल्लू-- मां तूझे बैंगन कब से पंसद आने लगा?
मालती-- बेटा जब से सुनीता के घर में देखा तब से।
कल्लू हड़बड़ाया और सोचने लगा की इसने सुनीता काकी के घर में....कही सोनू ने तो नही दिखाया इसे( ये सोचकर ही उसकी गांड जलने लगती है)
क्यूकीं सोनू और उसकी बनती नही थी।
कल्लू-- मतलब तू मेरे दुश्मन के घर बैंगन देख कर आयी है, तो वही क्यूं नही खा ली?
मालती ये जानती थी की इसका सोनू से नही बनता,
मालती-- अरे तू नाराज़ क्यूं हो रहा है मेरे लाल, मैं बैंगन कहीं भी देखु लेकीन खाउगीं तो सिर्फ अपने घर की।
ये सुन कल्लू खुश हो जाता है॥
कल्लू-- मां मुझे भी तुझे अपना बैंगन खीलाने में बहुत मजा आयेगा।
मालती (शरमाते हुए)-- मुझे भी मजा आयेगा बेटा।
कल्लू -- मां तूझे ठंढ लग रही होगी मैं रज़ाइ ला देता हू फिर तू ओढ़ कर बैठ।
मालती-- ठीक है बेटा।
कल्लू अंदर से एक रज़ाइ ला कर दे देता है, मालती वो रज़ाइ ओढ़ कर बैठ जाती है।
मालती-- तूझे ठंढ़ी नही लग रही है क्या?
कल्लू-- लग तो रही है,
मालती-- अभी शाम होने में समय है। आजा तू भी रज़ाइ में थोड़ी तेर सो लेते है, तू भी तो कपड़े धो कर थक गया होगा?
कल्लू समझ जाता है की मां को बैंगन खिलाने का इससे अच्छा मौका नही मिलेगा, वो अपनी मां के साथ रज़ाई में घुस जाता है.....
कल्लू रज़ाई में अपनी मां के साथ लेटा था, उसका शरीर इकदम गरम हो गया था।
उधर मालती अपने बेटे की तरफ से कोइ प्रतीक्रीया चाहती थी, तभी उसे अपनी कमर पर कल्लू का हाथ महसुस हुआ,
मालती सीहर गयी, और अपनी आंखे बंद कर ली।
कल्लू ने उसकी कमर को थोड़ा अपने हाथ से मसला॥
मालती-- आ....ह बेटा क्या कर रहा है?
कल्लू-- कुछ तो नही मां॥
मालती-- मेरी कमर क्यूं दबा रहा है?
कल्लू-- वो तूझे ठंढी लगी है ना इसलीये। मैं दबाउं मां॥
मालती-- दबा लेकीन गलत जगह क्यूं दबा रहा है?
कल्लू-- फीर कहां दबाउं मां?
मालती कल्लू की तरफ अपना मुह करती हुइ बोली।
मालती-- चड्ढी में छेंद करना जानता हैं, और कहा दबाना है वो नही जानता तू।
कल्लू सुन कर थोड़ा मुस्कुरा देता है।
मालती-- हसं क्यू रहा हैं?
कल्लू-- हसं इसलीये रहा हू , की तूने फीर भी चड्ढी पहन ली।
मालती-- बेशरम....इक तो अपनी मां के चड्ढी में छेंद करता है और उपर से हस रहा है। बोल क्यूं छेद की थी तूने?
कल्लू(मालती के कान में)-- ताकी तेरा छेंद देख सकू।
तभी बाहर से आवाज आती है.....मालती अरी वो मालती।
दोनो आवाज सुनते ही घबरा कर अलग हो जाते है, मालती घर के बाहर नीकली तो उसे गांव की 3, 4 औरते दीखी,
मालती-- क्यां हुआ? रमा।
रमा-- अरे वो अपने सरपंच है ना, वो चल बसे।
मालती-- क्या? कैसे -
रमा-- पता नही सब वही गये है, हम भी जा रहे है, चल तू भी॥
मालती भी उन लोग के साथ चल देती है, और इधर कल्लू भी अपना सायकील उठा कर चल देता है।
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03-28-2020, 11:23 AM,
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RE: Free Sex Kahani जालिम है बेटा तेरा
सरपंच के घर पर भीड़ लगी हुई थी, पुरा गावं के लोग भी इकट्ठा हुए थे। रोने बीलखने की आवाजें गुंज रही थी।
सोनू भी वही था, वो अपने बड़े पापा के पास खड़ा था।
रजींदर-- अरे सुना रात को सोये तो सुबह उठे ही नही।
तभी वहा कार आकर रुकती है। उसमे से डाक्टर पारुल अपनी बेटी वैभवी के साथ उतरती है।
रजिंदर-- अरे सोनू जा कुर्सी ले के आ जल्दी।
सोनू सरपंच के घर में कुर्सी लाने चला जाता है, और दो कुर्सी ले के आता है। एक कुर्सी पारुल को देता है, और दुसरा कुर्सी वैभवी के तरफ बढ़ा देता है।
वैभवी-- कैसे हुआ ये?
सोनू-- पता नही सब तो यही कह रहे है की , रात को सोये तो सुबह उठे ही नही।
वैभवी-- लेकीन मुझे तो कुछ और ही लग रहा है।
सोनू-- क्या लग रहा है?
वैभवी-- उसे तुमसे क्या वो मां डाक्टर है बता देगी। और वैसे भी मैं तुमसे बात क्यू कर रही हूं॥
सोनू (धिरे से)-- शायद प्यार हो गया हो मुझसे।
वैभवी-- प्यार और तुमसे....हं..कभी थोपड़ा देखा है आइने में। तुमने ही कहा था ना मैं बहुत खुबसुरत हूं॥
सोनू-- आप तो परी लगती है।
वैभवी-- तो परी के साथ , इसान का मेल नही होता।
सोनू-- हाय यही अदा तो अपकी मुझे पागल कर देती है।
वैभवी-- इडीयट् । बात करने की तमीज़ नही है क्या तुम्हे?
सोनू-- आप सीखा दो ना।
वैभवी कुछ बोलती इससे पहले ही उसके बड़े पापा बोले-
रजिंदर-- उधर क्या कर रहा है, चल जा ट्रेक्टर ले के आ मट्टी(लाश) लेके चलने का वक्त हो गया है,
सोनू वहा से जाकर ट्रेक्टर ले के आता है, और सब मट्टी के साथ गंगा कीनारे चल देते है।
शाम को सब घर वापस आ जाते है, सोनू थोड़ी देर सरपंच के घर पर बैठता है और फीर सीधा घर पर आ जाता है।
शाम के करीब 7 बज गये थे, और अंधेरा हो चुका था। घर में सुनीता के साथ साथ कस्तुरी और अनिता भी बैठे थे।
कस्तुरी-- अरे सोनू बेटा बाहर ही रह।
सोनू बाहर ही रुक जाता है,
सोनू-- क्यू चाची क्या हुआ?
कस्तुरी-- अरे मट्टी से आ रहा है, पैर धो ले और कपड़े बाहर उतार कर आ।
सोनू पैर धोता है, और फटाफट कपड़े बदल कर अंदर आ जाता है।
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RE: Free Sex Kahani जालिम है बेटा तेरा
कस्तुरी-- आज तेरे मन का पराठा बनायी हूं॥
सोनू -- नही चाची, आज सब गांव में भुखे रहेगें, एक मट्टी उठी है, ॥
कस्तुरी-- हां बेटा वो तो है,
सोनू बैठा यही सोच रहा था की, अब तो फातीमा काकी के घर जा नही सकता, और एक मादरचोद बड़ी अम्मा थी तो अपनी मां चुदाने गयी है अपनी मायके, अब लंड को बुर मीले तो मीले कहा। सोचते सोचते उसकी नज़र कस्तुरी पर पड़ी, जो की वो सोनू को ही देख रही थी,
कस्तुरी-- क्या हुआ बेटा कुछ चाहिए क्या?
सोनू(मन में)-- हा साली तेरी बुर देगी मुझे?
सोनू-- नही कुछ नही चाहिए।
कस्तुरी(सोनू की तरफ देखते हुए)-- मुझे लगा कुछ चाहिए, और अपनी चुचीया हल्की सी दबा देती है। और सोनू को देख कर मुस्कुरा देती है।
उसकी ये हरकत सोनू के सीवा कोई और नही देख पाता। सोनू देखते ही समझ जाता है की ये साली की भी बुर गरम है।
सोनू भी बीना डर के सबसे नज़रे चुराये कस्तुरी को आंख मार देता है।कस्तुरी ये देख कर शरमा जाती है।
सोनू उसके साथ ऐसे ही बैठे 2 घंटे तक हरकते करता रहा।
सोनू-- मां मै उपर छत पर सोने जा रहा हूं॥
सुनीता-- क्यूं बेटा उपर छत पर क्यूं सोने जा रहा है।
सोनू-- आज से मैं वही सोउगां मां॥
सुनीता-- ठीक है, बेटा।
और सोनू उठ कर जाते जाते कस्तुरी को इशारा कर देता है। कस्तुरी भी हां में सर हीला कर शरमा जाती है।
करीब आधे घंटे और बैठने के बाद सब लोग सोने चले जाते है।
कस्तुरी अन्नया के साथ लेटी थी और वो अनन्या के सो जाने का इंतजार कर रही थी।
करीब 2 घंटा हो गया लेकीन अनन्या और उसके बगल .के खाट पर लेटी कस्तुरी की बेटी आरती दोनो बाते ही कर रही थी।
कस्तुरी-- तुम लोग सोवोगे नही क्या?
आरती-- नही मां आज पता नही क्यूं निदं नही आ रही है।
कस्तुरी-- हां तुझे निंद कैसे आयेगी , तेरी मां की बुर जो चुदने वाली है।
कस्तुरी-- तो तुम लोग चिल्लाओ ,मुझे तो निंद आ रही है। मै जा रही हूं छत पर सोने। और वैसे भी छत पर सोनू सो ही रहा है।
अनन्या-- हां जा तू चाची, हमें पता नही कब निदं आयेगी?
छत पर सोनू बल्ब की रौशनी में अपने खाट पर लेटा था।
और इधर जैसे जैसे कस्तुरी सिढ़िया चढ़ रही थी, वैसे वैसे उसकी सांसे बढ़ रही थी,
कस्तुरी छत पर आकर पहले सिढ़ियो का दरवाजा बंद करती है। और सोनू के कमरे में अंदर आती है।
सोनू-- क्या बात है बहुत जल्दी आ गयी।
कस्तुरी (अंदर से कड़ी लगाते हुए)- हां तो क्या करु? वो अनन्या और आरती सोने का नाम ही नही ले रही थी। लेकीन तू मुझे यहां क्यूं बुलाया है॥
सोनू-- तूझे चोदने!
कस्तुरी-- धत बेशरम, भला कोइ अपनी चाची के साथ ऐसा कोई करता हैं क्या?
सोनू-- साली तेरी जैसी उठी उठी गांड और भरी भरी चुचीया जीसकी चाची के पास होगी। वो चुतीया ही होगा जो नही चोदेगा?
कस्तुरी शरमा जाती है-- सोनू ऐसे बात मत कर, मुझे शरम आ रही है।
सोनू-- शरमायेगी तो चुदवायेगी कैसे?
कस्तुरी-- मुझे नही चुदवाना।
सोनू-- चल साड़ी उतार ॥ आज पुरी रात है तुझे चोद चोद कर अपनी रंडी बनाउगां॥
कस्तुरी-- नही ना सोनू ऐसा नही करते।
सोनू-- नखरे मत कर मादरचोद। चल साड़ी उतार जल्दी,
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RE: Free Sex Kahani जालिम है बेटा तेरा
कस्तुरी भी नही चाहती थी की उसके बदन पर एक भी कपड़ा रहे। उसने अपनी साड़ी के साथ साथ पुरा कपड़ा निकाल कर नंगी हो गयी।
कस्तुरी-- कैसा लगा तेरी चाची का जीस्म।
सोनू-- साली तू तो रंडी है। इकदम अपतक शरम आ रही थी।
कस्तुरी-- हां मैं तेरी रंडी हू सीर्फ तेरी। और खाट पर आकर बैठ जाती है। चोद चोद कर अपनी रखैल बना ले सोनू, और जैसे रज़ाइ हटाती है। सोनू का लंबा मोटा लंड तन कर खड़ा था।
कस्तुरी-- हाय रे...ये तेरा लंड है या...घोड़े का।
सोनू-- अपनी बुर में लेगी तो बताना , की कैसा है मेरा लंड। चल अब चुस इसे मुंह में लेके।
कस्तुरी सोनू का लंड अपने हाथ में लेती है।
कस्तुरी-- अरे ये तेरा लंड तो मेरी मुट्ठी में भी नही आ रहा है। पता नही ये मेरी बुर का क्या हाल करेगा।
सोनू-- साली अब मुह में डालेगी....आह हां मेरी रंडी ऐसे ही चुस।
कस्तुरी अपना मुहं खोले सोनू का लंड अपने हलक तक उतार लेती, वो सच में बहुत बड़ी चुदक्कड़ थी, खासते हुए भी वो सोनू का लंड अपने गले में उतार लेती॥
कस्तुरी-- आह ऐसा लंड मैने अपनी जिंदगी में पहली बार देखा है।
सोनू-- अह , साली मुझे भी पहली बार तेरी जैसी रंडी मिली है, आह जो कमाल चुसती है।
कस्तुरी(सांस लेते हुए)-- तेरी कुतीया हूं ना तो चुसुगीं ही। कैसा चुस रही है तेरी रंडी चाची।
सोनू-- बोल मत आह मादरचोद , क्या चुसती है। अपनी बेटी से कब चुसवायेगी।
कस्तुरी-- पहले उसकी मां को तो चोद ले।
सोनु-- उसकी मां तो चोदुंगा ही।
कस्तुरी--- कसम.सेे।ये। तेरा। लंड देख कर तो कोइ भी औरत तेरे सामने कुतीया बन जाायेगी....।
सोनू ने उसे खाट पर लिटा दीया... और उसके.उपर चढ़ गया, उसकी.चुुुचीयों कोअपने द़ातो में दबा कर उपर की तरफ खीचने.लगा......।
कस्तुरी----- आ..........आ.......ह, न....ही सो......नू , दर...द कर ...रहा हैईईईई........इआ,
कस्तुरी दर्द से तीलमीला गई..उसे फातीमा की चुदााई देखने के बाद ये तो पताा चल गया थाकी सोनू बेरहम है, लेकीन इतंनाय नहीी जानती.थी।
सोनू का.तो काम ही था बेरहमी से चोदना......,
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