Sex kahani अधूरी हसरतें
03-31-2020, 03:44 PM,
#91
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
मम्मी तुम्हें क्या लगता है ऐसी हालत में यहां तक पहुंचने के बाद क्या वापस लौट जाना उचित रहेगा,,,,( सुबह दोनों हाथ से अपनी मां की दोनो चुचियों को मसलता हुआ बोला,,,, शुभम के इस बात का निर्मला के पास कोई भी जवाब नहीं था वह कुछ भी नहीं बोली बस अपना एक हाथ पीछे की तरफ ना कर पेंट के ऊपर से ही शुभम के लंड को पकड़ कर दबाने लगी,,, शुभम भी समझ गया कि उसकी मां पूरी तरह से तैयार है इसलिए बिल्कुल भी देर करना उचित नहीं था। शुभम अपनी नानी की तरफ देखा तो वहां अभी भी आंखें बंद किए हुए थी,,, निर्मला की भी नजर बार बार उसकी मां की तरफ चले जा रही थी अजीब से असमंजस में फंसी हुई थी निर्मला,,,,, एक तरफ उसे डर भी लग रहा था कि कहीं उसकी मां कही देख ना ले और एक तरफ ऊसे संभोग सुख का आनंद भी उठाना था। ना-नुकुर करते-करते आखिरकार वह अपने कपड़े उतरवा ही ली,,,, रह-रहकर उसके मुख से गर्म सिसकारी की आवाज निकल जा रही थी जिसे वह अपना मुंह दबाकर आवाज को दबा दे रहीे थी,,,, अभी भी निर्मला अपने बेटे के लंड को पजामे के ऊपर से ही मसल रही थी,,,, 4 बार अपनी मां के साथ शारीरिक संबंध बनाने के बाद थोड़ा बहुत ज्ञान तो उसे भी हो गया था,,,, की औरत के साथ कब क्या करना है। इसलिए वह एक पल भी गवाए बिना तुरंत चुचियों पर से हाथ हटा कर दोनों हाथों से साड़ी ऊपर की तरफ उठाने लगा निर्मला अपने बेटे की हरकत पर एकदम से कसमंसा रही थी। वह बार-बार कभी अपनी मां की तरफ देखती तो कभी आईने में जिसमे की निर्मला और शुभम साफ साफ नजर आ रहे थे और आईने में नजर आ रहे अपने दोनों लटकते खरबूजे को देखकर उसका चेहरा सुर्ख लाल होने लग रहा था। अगले ही पल वह फुर्ति दिखाते हुए अपनी मां की साड़ी को उसकी कमर तक चढ़ा दिया,,, साड़ी को कमर तक चढ़ाते ही निर्मला की काली रंग की मखमली पेंटी नजर आने लगी,,, जिसमें निर्मला की गदराई गांड छिपी हुई थी। निर्मला भी अब देर करना मुनासिब नहीं समझती थी इसलिए वह खुद ही अपने हाथों से अपनी पैंटी को नीचे जांघो तो सरका दी,,, अपनी मां की बड़ी बड़ी और मोटी गांड देखते ही शुभम की आंखों में चमक आ गई,,,, अब तो शुभम से एक पल भी सब्र करना मुमकिन नहीं था,,,, वह भी तुरंत अपने पजामे कि बटन खोल कर अपने पजामे को नीचे सरका दिया,,, पेंट को नीचे क्या सरकाते ही ऊसका टनटनाया लंड हवा मे झुलने लगा। जिसको देखने की लालच निर्मला रोक नहीं पाई और नजर को पीछे की तरफ घुमा कर वह अपने बेटे के खड़े लंड को देखकर एकदम से गनगना गई। उसकी बुर में खुजली होने लगी एक बार फिर से वह अपनी मां की तरफ नजर घुमाई,,,,तो,,, वह अभी भी आंखों को बंद किए हुए थी,,, शुभम भी अपनी नानी की तरफ देखते हुए बोला,,,

बस मम्मी अब थोड़ा सा झुक जाओ,,,( इतना कहते हुए वह अपनी हथेली को अपनी मां की पीठ पर रखते हुए इस पर दबाव देने लगा ताकि वह झुक जाए,,, निर्मला को भी मालूम था उसे क्या करना है वह भी धीरे से झुकते हुए बोली,,,,)

बेटा अगर मम्मी देख ली तो,,,,


नहीं देख पाएंगे तब तक अपना काम हो जाएगा बस थोड़ा झुक जाओ,,,
( निर्मला भी यही चाहती थी वह तुरंत झुक गई शुभम अपने लंड को हाथ में पकड़ के उसके सुपाड़े को,,,, बुर की गुलाबी पत्तियों के बीच सटाया,,, बुर पूरी तरह से गीली हो चुकी थी निर्मला का पूरा बदन उत्तेजना के मारे गनगना गया,,,, शुभम दोनों हांथोें से अपनी मां की गांड पकड़कर अपनी कमर को आगे की तरफ धकेला,,, बुर गीली होने की वजह से,,,आधे से ज्यादा लंड बुर मे घुस गया। आधे लंड से ही निर्मला की सांस अटक गई,,,शुभम दुसरा मौका दीए बिना ही अगला एक और करारा झटका मारा इस बार सुभम का पूरा लंड निर्मला की बुर मे समा गया,,,, उसकी चीख निकलते निकलते रह गई वह एन मौके पर अपने हाथों से अपना मुंह दबा ली,,, निर्मला के बदन में ऊन्माद पूरी तरह से भर चुका था। एक बार फिर से शुभम अपनी मां को हासिल कर चुका था वह अब रुकना नहीं चाहता था धीरे-धीरे अपनी कमर को हिलाता हुआ अपनी रफ्तार को बढ़ा दिया निर्मला भी मस्त हुए जा रही थी लेकिन आईने में खुद को अपने बेटे को देखकर शर्म से पानी-पानी भी हुए जा रही थी। दोनों को मजा आने लगा था तभी हम दोनों ने देखा कि उसने अपनी आंखों को खोल दी और उसकी नजरें उन दोनों पर ही टिकी हुई थी,,, इस बार निर्मला के साथ-साथ शुभम की भी सांस अटक गई,,,,, शुभम और निर्मला दोनों सोचने लगी कि बाथरुम में तो किसी तरह फस गई लेकिन इधर उनकी आंखों के सामने,,,, निर्मला अपने किए पर पछतावा लगे वह मन ही मन सोचने लगी कि उसे शुभम को रोक देना चाहिए था। शुभम भी अपनी हरकत पर पछताने लगा,,,, वह मन ही मन अपने आप को दोष देते हुए मन नहीं कह रहा था कि उसे अपने ऊपर कंट्रोल रखना चाहिए था। दोनों ज्यों का त्यों उसी पोजीशन में थे। निर्मला झुकी हुई थी और शुभम उसकी गांड को पकड़कर लंड ठुंसे हुए था। निर्मला की मम्मी की नजर उन दोनों पर की थी निर्मला को यह समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उसकी मां कुछ बोल क्यों नहीं रही है निर्मलाा भी अपने बदन को ढंकने की कोई भी कोशिश नहीं की। बस वह आश्चर्य और डर के मारे अपनी मां को ही देखे जा रही थी,,,, शुभम की तो घिग्गी बंध गई थी,,, वह क्या करें कहां जाएं कैसे अपने आप को छुपाए,,,, यह सब का ख्याल उसके दिमाग में बिल्कुल भी नहीं आ रहा था वह बस अपनी मां की कमर थामे अपने मोटे तगड़े लंड को अपनी मां की बुर में डाले खड़ा था,,,, उसकी मां भी उसी तरह झुक कर बुत बनी खड़ी थी पूरे कमरे में सन्नाटा सा छा गया था,,, शुभम पूरी तरह से डर चुका था उसे अब पक्का यकीन हो गया था कि अब उन दोनों की हालत खराब होने वाली है भला एक मां अपनी बेटी को इस तरह से अपनी आंखों के सामने और वह भी अपने नाती के साथ चुदती देखेगी तो क्या उसका खून नहीं खौलेगा,,,, और वैसे भी उन दोनों ने शर्म की सारी हदों को तोड़ दी थी। शुभम मन में यही सोच रहा था कि उसकी नानी दोनों के बारे में क्या सोच रही होगी,,, वह उन दोनों को एकदम बेशर्म और सुना लायक समझ रही होगी जो कि बिना शर्म किए ही उसकी आंखों के सामने एक ही कमरे में होने के बावजूद बिना लाज शरम के इस तरह से चुदाई कर रहे हैं। निर्मला और शुभम आश्चर्य के साथ देखे जा रहे थे लेकिन उन्हें अभी तक समझ में नहीं आ रहा था की वह बोल क्यों नहीं रही है बस वह अपनी आंखों को पटपटा रही थी।,,,,,,, निर्मला उसकी मां कुछ कहती इससे पहले ही वह बोलने के लिए अपना मुंह खोलि ही थी कि,,,

मममम,,,, मम्मी,,,,,,
( निर्मला के मुंह से इतना भर निकल पाया था कि उसकी मां आंखों को पटपटाते हुए,,, बिस्तर पर अपने हाथ से टटोलते हुए चश्मे को ढूंढने लगी लेकिन किसी तरह से उनके हाथों से चश्मा चादर के नीचे ढंक गया,,,, वह चश्मा ढूंढ नहीं पा रही थी,,,, तभी वहां बिस्तर पर हाथ से टटोलते हुए और आंखों को पटपटाते हुए बोली,,,

बेटी कहां गई तू,,,, मेरा चश्मा कहीं नजर नहीं आ रहा है।
( निर्मला और शुभम यह बात सुनते ही एकदम से सन्न रह गए और एक दूसरे का चेहरा देखने लगे,,,, वह दोनों कुछ समझ पाते इससे पहले ही वह फीर बोली,,,)

बेटी मुझे कुछ नजर नहीं आ रहा है तुझे बता ही तो थी कि चश्मा लगाए बिना मुझे कुछ भी दिखाई नहीं देता,,,
( निर्मला की मां ने निर्मला से यह बात शायद नहीं बताई थी इसलिए निर्मला को इस बारे में कुछ भी नहीं मालूम था लेकिन अब अपनी मां की बात सुनने के बाद उसे पूरा मामला समझ में आ गया था जिसको सुनकर उसकी आंखों में चमक आ गई थी,,,,, पल भर में उत्तेजना का पारा घटने के बाद इस खबर से एकाएक कामोत्तेजना का तापमान बढ़ने लगा था। शुभम भी यह बात अच्छी तरह से समझ गया था कि उसकी नानी को चश्मे के बिना कुछ भी नजर नहीं आता इसका मतलब साफ था कि उसने अभी तक ऊन दोनों को संभोगरत की स्थिति में बिल्कुल भी नहीं देख पाई हैं। दोनों संपूर्ण रूप से अभी तक उनकी नजरों में सुरक्षित और संस्कारी ही थे।,,,
निर्मला कुछ कहने की स्थिति में अब बिल्कुल भी नहीं थी क्योंकि सारा मामला साफ हो चुका था उन्हें अब खुला दौर मिल चुका था चश्मा चादर के नीचे होने की वजह से उसके मिलने की गुंजाइश लगभग नहीं थी क्योंकि जिस तरह से वह हाथों से टटोल कर देख रही थी चश्मा मिलना मुमकिन नहीं था।,,,

निर्मला में एकाएक हिम्मत आ गई थी। वह एक खेली खाई औरत की तरह बर्ताव करते हुए,,, अपनी कमर पर रखा हुआ अपने बेटे के हाथ को पकड़कर उसे अपनी हवा में लटकती हुई खरबूजे पर रख दी,,, यह निर्मला की तरफ से शुभम के लिए एक ईसारा था अपने कारवां को आगे बढ़ाने के लिए,,,
यह चूचियां कामोत्तेजना रूपी रिमोट का बटन था जोकि निर्मला ने अपने बेटे के हाथों सौंप दिया था। शुभम भी समझ गया था कि अब डरने वाली कोई भी बात नहीं है। वह तुरंत अपनी मां की चुचियों को दबाना शुरु कर दिया,,,, और अपनी मां की जड़ तक घुसा हुआ लंड बाहर की तरफ खींच कर उसे फिर से अंदर डालते हुए चोदना शुरू कर दिया,,, एक बार फिर से निर्मला की गर्म सिसकारी छूटने लगी,,,, वह अपनी मां की तरफ देखे तो वह अभी भी बिस्तर पर हाथ से टटोल रही थी और बोली,,,,

निर्मला,,,

हां,,,, मम्मी,,,,( सिसकारी की वजह से निर्मला के मुंह से हल्की सी आवाज निकली,,,,।)

बेटी तू यही है फिर भी कुछ बोल नहीं रही है,,,

मम्मी मैं बाल सवार रही हूं,,,,( इतना कहने के साथ ही उत्तेजना में शुभम ने जोरदार झटका मारा तो उसके मुंह से दबी दबी सी चीख निकल गई,,,,)
आहहहह,,,,

क्या हुआ,,,,?

कुछ नहीं मम्मी कंघी में बाल फंस गया था,,,,

अच्छा ठीक है लेकिन तू मेरा चश्मा तो मुझे दे दे उसके बाद बाल संवार लेना,,,,

मम्मी बस थोड़ा देर और रुको और वैसे भी दवा की बोतल पर लिखा हुआ है कि दवा डालने के बाद कम से कम बीस 25 मिनट तक आंखों को बंद ही रखना है।

ठीक है बेटी लेकिन जल्दी से बालों को संवार कर तु मुझे चश्मा दे दे सब कुछ धुंध ला-धुंधला सा नजर आ रहा है।

ठीक है मम्मी आप तबं तकआंखों को बंद कर लो,,,

ठीक है लेकिन शुभम कहां चला गया,,,,,

वह बाहर चला गया है,,,,
( निर्मला की मां अपनी बेटी की बात मानते हुए आंखों को बंद कर ली उन्हें क्या पता था कि उनकी आंखों के सामने ही उनकी बेटी अपने ही बेटे से चुदवा रही है,,,, बातों के दौरान लगातार सुभम अपनी मां की बुर में लंड पेले जा रहा था।
उसके धक्के अब तेज होने लगे थे,,, अपनी मां को चोदते हुए उसके ऊपर झुककर उसके गर्दन को चूमने लगा था। और उसे चुम़ते हुए कानों में धीरे से फुसफुसाया,,,,

वाह मम्मी क्या आईडिया लगाई हो,,,

बस अब कुछ बोल मत जल्दी से अपना काम खत्म कर,,,,

अपनी मां की बात सुनते ही वह अपनी मां की चुचियों को जोर-जोर से दबाता हुआ अपनी कमर की रफ्तार को बढ़ा दिया,,,, निर्मला बेशर्मों बंद कर दो अपने बेटे से चुदाई का मजा ले रही थी लेकिन आईने में अपने आप को इस तरह से अपने बेटे से चुदते हुए देखकर शर्म से पानी पानी हुए जा रही थी। आज मैंने उसे साफ नजर आ रहा था कि उसका बेटा उसके गर्दन को चूम रहा है उसकी बड़ी बड़ी चूचियां को अपनी हथेली में भरकर दबा रहा है,,,, और हल्की हल्की उसकी कमर भी आगे पीछे होती हुई नजर आती थी। यह सब नजारा निर्मला जैसी की संस्कारी औरत के लिए लज्जा से भर देने वाला था। लेकिन निर्मला ने भी अपनी लज्जा को त्याग चुकी थी,,,, कभी तो वहां कमरे में अपनी मां की उपस्थिति में भी चुदाई का सुख भोग रही थी और इसमें उसे अथाग आनंद की प्राप्ति भी हो रही थी। अगर कमरे में उसकी मां मौजूद नहीं होती तो इस समय पूरा कमरा निर्मला की गरम सिसकारियों से गुंज रहा होता लेकिन वह अपने आप को अपने दांतो से अपने होंठ को दबाकर अपनी गर्म सिसकारीर्यों की सुंदर ध्वनि को रोके हुए थी। शुभम की रफ्तार बढ़ चुकी थी वह जानता था कि ज्यादा समय ऊन दोनों के पास नहीं है। इसलिए उसका लंबा लंड सटासट निर्मला की बुर के अंदर बाहर हो रहा था,,, सुभम कभी दोनों खरबूजे को मसलता तो कभी केले के तने सामान चिकनी जांघों को हाथों से सहलाता,,,, शुभम पूरी तरह से अपनी मां की जवानी के रस को चलनी से छान लेना चाहता था।
पास में ही बिस्तर पर बैठी निर्मला की मां को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। वह तो निर्मला के बताए अनुसार अपनी आंखों को बंद किए हुए बैठी थी शायद दवा की शीशी पर लिखे निर्देश की वजह से लेकिन उसे कहां मालूम था कि उसकी बेटी ही उसे धोखा दे रही है।
थोड़ी ही देर बाद शुभम के धक्तों की रफ्तार एकदम से तीव्र हो गई,,,, निर्मला भी उत्तेजना के चलतेै अपनी बड़ी बड़ी गांड को पीछे की तरफ ठेलकर अपने बेटे के लंड को ले रही थी,,,
और थोड़ी ही देर में मां बेटे दोनों ने एक साथ अपने गरम रस को बाहर की तरफ उगलना शुरू कर दिया,,,, शुभम ने ढेर सारा गर्म रस की पिचकारी अपनी मां की बुर में मारना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में सब कुछ शांत हो गया निर्मला ने आंखों के इशारे से शुभम को कमरे से बाहर जाने को कह दी,, और जल्दी जल्दी अपने बालों को संवार कर अपने कपड़ों को दुरुस्त कर दी,,, और अपनी मम्मी के करीब जाते हुए बोली,,,,

बस मम्मी अब पूरा समय हो गया है ।(और इतना कहने के साथ ही वह चादर के नीचे रखी हुई चश्मे को निकालकर अपनी मां की आंखों पर लगाते हुए बोली,,,,।)

अब देखो मम्मी कैसा लग रहा है,,,,

हां अब सही नजर आ रहा है,,,,,( निर्मला की मां खुश होते हुए बोली।)
03-31-2020, 03:44 PM,
#92
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
एक बार फिर से अद्भुत अदम्य,, अविस्मरणीय अथाग आनंद से भरपूर संभोगनीय कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपूर्ण हो चुका था। लेकिन यह कार्यक्रम संपूर्णताह समाप्ति की ओर नहीं बल्कि उद्गमता की तरफ आगे बढ़ रहा था,,,, यह तो एक शुरूआत थी,,, चार पांच बार निर्मला और शुभम संभोग सुख के सागर में डुबकी लगा चुके थे लेकिन अभी भी,,,, शुभम निर्मला के खूबसूरत बदन के मदन रस से भरा हुआ मीठे जल सरोवर का उत्तम तैराकू नहीं बना था,,,, क्योंकि अभी भी इस सरोवर ने शुभम को पूरी तरह से ईतना मौका ही नहीं दिया था कि वह,,, इतनी जल्दी एक कुशल तेराकु बन सके,,, एक अच्छे तेराकु के लिए,,, नदी और सरोवर के पानी की गहराई उसके विस्तार के बारे में अच्छी तरह से पता होना चाहिए,, किसी भी मौसम का उस पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है इस बारे में पता होने के बाद ही तेराकु अपनी तैराकी दिखाने के लिए नदी में उतरता है और वही अच्छा और कुशल तेराकु कहलाता है। लेकिन निर्मला तो मदन रस का महासागर थी उसमें अपना कौशल्य दिखाने के लिए शुभम को अभी अपने आप को पूरी तरह से तैयार करना था। निर्मला के संपूर्णतह बदन के विस्तार के बारे में तो 5 बार बार उसे भोग चुका शुभम भी अच्छी तरह से वाकिफ नहीं था। औरत के किस अंग से खेलने मैं उसे बेहद आनंद की अनुभूति होती है इस बात से अभी शुभम पूरी तरह से अनजान था। उसने अब तक अपने औजार को सिर्फ औरत के नाजुक अंग में अंदर बाहर करके चोदना और हम की चूचियों को दबा दबा कर मजे लेना बस इतना भर ही जान पाया था। संभोग की परिभाषा का पूरा अध्याय अभी भी उसके ज्ञान से कोसों दूर था। निर्मला,,, संभोग के अध्याय के सारे पन्नो को पलट कर देख चुकी थी लेकिन उसका अध्ययन अभी भी वहं ठीक तरह से नहीं कर पाई थी। लेकिन वह इतना जरूर जानती थी कि मर्द औरत के साथ उनके अंगो के साथ क्या क्या करता है और औरत को मर्द की कौन सी हरकत से ज्यादा आनंद की अनुभूति होती है। लेकिन समय के अभाव और अपने संस्कार की वजह से वह अभी तक शुभम के साथ सभोग की क्रिया करते समय मुख्य आदेश का निर्देश शुभम को नहीं दे पाई थी।
ईसलिए दोनों अभी भी प्यासे ही थे एक अपने अज्ञान की वजह से और दूसरी अपनी शर्म और संस्कार की वजह से,,,
शुभम को अभी बहुत कुछ सीखना था और निर्मला को ढेर सारा अनुभव के साथ साथ आनंद भी लेना था जोकि वक्त के साथ ही मिल सकता था।
दूसरे दिन शुभम अपनी मां को घर में इधर-उधर ढूंढने लगा लेकिन वह घर में कहीं भी दिखाई नहीं दी,,,, उसकी नानी कुर्सी पर बैठकर शुभम की बेचैनी देख कर उसे बोली,,,

क्या हुआ शुभम तू इधर क्या ढूंढ रहा है,,,,

कुछ नहीं नानी मैं तो मम्मी को ढूंढ रहा हूं,,,,,,,, मम्मी कहां गई है?

तेरी मम्मी छत पर सूखे हुए कपड़े लेने गई है,,,,

ठीक है नानी मैं अभी छत पर जाता हूं,,,
( इतना कहने के साथ ही वह छत पर चला गया जहां पर निर्मला एक एक करके रस्सी पर डाले हुए कपड़े उतार रही थी और उसे बड़े सलीके से रख रही थी,,,,, शुभम जैसे ही छत पर पहुंचा तो उसकी नजर सीधे ही उसकी मां पर गई,,,, जोकि रस्सी पर डाले हुए कपड़े की वजह से उसके बदन का सिर्फ चूचियों के नीचे वाला हिस्सा नजर आ रहा था,,,, बाकी का हिस्सा रस्सि पर कपड़े टंगे होने की वजह से ढका हुआ था। जिसके पीछे खड़ी होकर निर्मला कपड़े उतार रही थी।
छत पर पहुंचते ही शुभम की नजर जैसे ही उसकी मां की खुले चीकने और गोरे गोरे माल पेट पर पड़ी तो ऊसका पूरा बदन उत्तेजना के कारण गनगना गया,,, शुभम अपनी मां की गहरी नाभि को देखा तो देखता ही रह गया गजब की नाभि का आकार था हल्की हल्की गहरी जिसे देखने पर,,, दुनिया का कोई भी मर्द उत्तेजित हो जाए,,,, और उस नाभि की गहराई में अपनी जीभ डाल कर घंटो तक उसे चाटता ही रहे,,,
शुभम तो अपनी मां की नाभि की गहराई की खूबसूरती देखकर एकदम अचंभित हो गया,,,,ऊसका मांसल चिकना पेट उसके हलन चलन की वजह से उसमे हो रही थिरकन की वजह से बड़ा ही काम भूख लग रहा था ऐसा न जा रहा है शायद शुभम ने अपनी जिंदगी में पहली बार देखा था और यह तो पहली बार ही ऐसे नजारे पर उसका ध्यान केंद्रित हुआ था। सुबह अपनी मां को रस्सी पर से कपड़े उतारते हुए देख. रहा था। शुभम से यह नजारा कामोत्तेजना की वजह से ज्यादा देर तक सब्र करने लायक नहीं छोड़ा था इसलिए वह तुरंत आगे बढ़कर के सीधी अपनी हथेली को अपनी मां की नाभि पर रखकर उसे अपनी मुट्ठी में भरते हुए दबोच लिया,,,
एकाएक अपनी नाभि पर इस तरह से हथेली का स्पर्श पाकर निर्मला एकदम से डर गई और जैसे ही डर के मारे पीछे कदम बढ़ाने के लिए वह अपने बदन को हरकत दी कि तभी,, शुभम अपना दूसरा हाथ उसकी चिकनी कमर पर रखकर उसे अपनी तरफ खींच लिया लेकिन उसे नहीं मालूम था कि इस तरह से करने पर उसकी मां उसकी बांहों में आ जाएगी,,,, और निर्मला तुरंत उसकी बाहों में समा गई लेकिन अभी भी उसके चेहरे पर रस्सी पर डाले हुए कपड़े थे,,, जिसकी वजह से वह देख नहीं पा रही थी कि आखिरकार ऐसी हरकत कौन कर रहा है,,,,

आऊच,,,,, छोड़ मुझे,,,,,,,छोड,,,,,, ( लेकिन इस तरह से अपनी बाहों में अपनी मां को आया हुआ देखकर उसकी कामोत्तेजना और ज्यादा बढ़ गई और वहां एक हाथ जो की उसके कमर पर थी उसे नीचे ले जाकर अपनी हथेली में उसके भरावदार नितंबों का भारी भरकम हिस्सा उसमें दबोच लिया,,,,,,,,
( इस हरकत पर तो निर्मला के भजन में उत्तेजना की चीटियां रेंगने लगी उसे इस बात का एहसास तो हो गया था कि ऐसी हरकत करने वाला उसका बेटा सुभमं ही है,,,, वह कुछ बोल पाती इससे पहले ही शुभम कसकर अपनी मां को अपनी बाहों में भरते हुए बोला,,,,,

ओहहहह,,,, मम्मी तुम बहुत खूबसूरत हो,,,,,

अरे पागल हो गया है क्या छोड़ मुझे,,,,( इतना कहते हुए वह अपने दोनों हाथ में लिए कपड़ों को एक हाथ में लेते हुए दूसरे हाथ से चेहरे पर आए कपड़े को हटाते हुए बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,) तू पागल हो गया है क्या,,, छत पर इस तरह से मुझे पकड़ेगा तो अगर कोई देख लिया,,,ना,,, गजब हो जाएगा,,,,,

कोई नहीं देखेगा मम्मी और वैसे भी अपनी छत पर किसी की नजर पहुंच ही नहीं पाते क्योंकि चारों तरफ ऊंची ऊंची दीवारें हैं,,,,,,

कुछ भी हो लेकिन तुम मुझे इस तरह से मत पकड़ कभी किसी की नजर पड़ गई तो खामखां सब भांडा फूट जाएगा,,,

( अपनी मां की बात सुनकर शुभम जोर से अपनी हथेली में उसके नितंबों का भारी भरकम हिसाब फिर से एक बार अपनी हथेली में दबोचते हुए बोला,,,)

मम्मी मुझे छोड़ने की बिल्कुल भी इच्छा नहीं कर रही है,,,
( अपने बेटे की हरकत और उसकी शरारत की वजह से वह मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,)

मुझे मालूम है कि तेरी इच्छा बिल्कुल भी नहीं कर रही है लेकिन तुझे छोड़ना ही पड़ेगा वरना जो कार्य हम दोनों ने शुरू किया है,,, अगर किसी की नजर हम पर पड़ गई तो उसे स्थगित करना पड़ेगा,,,,
( शुभम को लगने लगा कि उसकी मां जो बात कह रही है बिल्कुल सच है और वह अपने इस रिश्ते को यहीं खत्म करना नहीं चाहता था इसलिए वह ना चाहते हुए भी अपनी मां को अपनी बाहों से आजाद करने लगा लेकिन निर्मला की इच्छा शायद उसकी बाहों से दूर होने की नहीं थी,,,, इसलिए वह पीछे हटने की कोशिश बिल्कुल भी नहीं कर रहीे थी।
छत पर ठंडी ठंडी हवा चल रही थी। जिसकी वजह से उसके मुलायम बालों की लट इन हवा में लहरा रही थी जिसकी वजह से उसका चेहरा और भी ज्यादा खूबसूरत लग रहा था वह एक टक अपने बेटे में आई इस तरह की हरकत करने की हिम्मत को देख कर उसे देखने लगी,,, तभी उसके चेहरे को एकटक देखते हुए उसे कल कमरे में उसकी मां की उपस्थिति में हुई उसकी जबरदस्त चुदाई याद आ गई,,,, और तुम तो उसके चेहरे पर शर्मो हया की लाली छाने लगी वह शर्मा कर अपना चेहरे को दूसरी तरफ घूम आते हुए फिर से मुस्कुराते हुए रस्सी पर से टंगे हुए कपड़े उतारने लगी,,, अपनी मां को यूं शरमाता हुआ देखकर शुभम बोला,,,)

मम्मी तुम मुझसे युं मुंह क्यों फैर रही हो,,,,

मुझे शर्म आ रही है।

शर्म आ रही है और वह भी मुझसे ऐसा क्यों? ( शुभम आश्चर्य के साथ अपनी कमर पर हाथ रखते हुए बोला,,,, और उसकी मां कपड़ों को रस्सी पर से उतरते हुए मुस्कुरा कर बोली,,,)

क्योंकि आप तो बड़ा हो गया है,,, (वह नीचे नजरें झुका कर बोली,,,)

मम्मी यें कोई बात तो नहीं हुई,,,, बड़ा तो मैं कब से हो गया हूं लेकिन आज मुझसे शर्म कैसी मैं हूं तो तुम्हारा बेटा ही,,,,

हां मुझे मालूम है कि तू बड़ा हो गया है और मेरा ही बेटा है लेकिन तू अब इतना बड़ा हो गया है कि,,,,,,( इतना कहकर वह फिर से शर्मा गई और अपनी बात को अधूरी छोड़कर वापस कपड़े उतारने लगी,,,,,)

मम्मी में कितना बड़ा हो गया हूं कुछ दिन पहले जितना बड़ा था उतना आज भी हूं,, फीर आज यह मुझसे शर्म कैसी,,
( शुभम को उसकी मां की बातों का मतलब समझ में नहीं आ रहा था इसलिए वह आश्चर्य के साथ और उससे उत्सुकता के साथ अपनी मां से पूछा,,, और उसकी मां उसके सवाल का जवाब देते हुए बोली,,,,)

बेटा तू क्यों नहीं समझता मेरे कहने का मतलब यह है कि तू बड़ा तो हो गया है लेकिन अब बिस्तर में भी बिल्कुल बड़ा हो चुका है। ( निर्मला इतना कहकर जैसे ही रस्सी पर टंगी अपनी साड़ी को उतारने लगी कि तभी साड़ियों के नीचे छुपा कर सुखने के लिए रखी हुई उसकी गुलाबी रंग की पैंटी नीचे गिर गई,, शुभम को उसकी मां की कही बात का मतलब समझ में आया कि नहीं आया उसकी नजर सीधे फर्श पर गिरी उसकी मां की गुलाबी रंग की पेंटी पर गई और वह तुरंत नीचे झुक कर उसे उठाने लगा,,, उसकी मां भी हाथ आगे बढ़ा कर अपनी गिरी पैंटी को उठाने ही वाली थी कि उससे पहले वह पेंटी शुभम के हाथों में आ गई,,,, और वह शर्म के मारे जल्दी से उसके हाथों से छीनने चली,,की शुभम अपनी मां की पैंटी को अपने पीछे कर लिया,,,,,

क्या कर रहा है शुभम देना,,,( निर्मला हल्की मुस्कुराहट और शर्म का हावभाव चेहरे पर आया देखकर अपनी नजरों को दूसरी तरफ फेरते हुए बोली,,,)

नहीं यह तो नहीं दूंगा,,,,,( शुभम अपनी मां से चार पांच कदम की दूरी पर खड़े होकर उस मखमली पेंटिंग को अपने दोनों हाथों में लेकर उसे दिखाते हुए बोला,,,, और निर्मला अपने बेटे के हाथों में अपने गुलाबी रंग की पैंटी को देखकर शर्म से पानी-पानी हुई जा रही थी,,,,)

देख सुबह मुझे परेशान मत कर भला ऐसा भी कोई बेटा करता है क्या,,,,( निर्मला शरमाते हुए बोली,,,)

मै भी करना नहीं चाहता था लेकिन मम्मी तुम इतनी खूबसूरत हो कि तुम्हारी पेंटी भी मुझे बहुत खूबसूरत लगती है देखो तो सही कितनी नरम नरम और मुलायम है,,,,( पैंटी को अपनी नाक से लगाकर खास करके उस जगह को जिस जगह पर बूर होती है,,,)ऊममममम,,,,, कितनी मादक खुशबू आ रही है इसमें से,,,,,( अपने बेटे की इस हरकत पर तो निर्मला शर्म से पानी पानी हुए जा रही थी और शुभम कि इस तरह की हरकत की वजह से उसके बदन में उत्तेजना की लहर भी दौड़ रही थी जिसकी वजह से उसकी बुर में भी पानी का रिसाव होना शुरू हो गया था।) आहहहहहहह,,,, मम्मी जी कर रहा है कि इसको,,,,( उस जगह पर जीभ लगा कर,,,,) चाट जाऊ,,,,
( शुभम को जीभ लगा कर पैंटी को चाटते हुए देखकर उसका पूरा बदन कामोत्तेजना के असर में पूरी तरह से गनगना गया,,,,,, तभी उसके मन में ख्याल आया कि जहां पर अपनी जीभ लगा कर चाटना चाहिए उधर तो चाटता ही नहीं,,, सिर्फ पेंटी पर प्यार लुटा रहा है,,, यह नजारा देखकर निर्मला की बुर से अमृत की बूंदे टपकने लगी थी। लेकिन भला पूरी तरह से कामोत्तेजित हुए जा रही थी एक बार तो उसका मन कहा कि वह अपने बेटे से साफ साफ शब्दों में कह दे कि पेंटि क्यों चाटता है,चाटना ही है तो मेरी बुर चाट,,,, लेकिन निर्मला अपनी बेटे से यह नहीं कह सकती थी इसलिए वह जानबूझकर ऊपरी मन से उसे रोकते हुए बोली,,,,)

बेटा ऐसा मत कर प्लीज तू जानता है अगर कोई देख लिया तो क्या हो जाएगा,,,( ऐसा कहते हुए वहां से बंद के पीछे अपनी पैंटी लेने के लिए जाने लगी और शुभम उसे एक ही जाने के लिए उसे पेंटी दिखाते हुए दूर दूर जाने लगा,,,, छत पर मां बेटे का इस तरह से पकड़म पकड़ाई वाला खेल चल रहा था। जिसने अंततः दोनों को आनंद की अनुभूति भी हो रही थी और दोनों के बदन में उत्तेजना की लहर भी दौड़ रही थी,, एक का लंड तनाव से परिपूर्ण हो कर पेंट में तंबू बनाए हुए था तो दूसरी की मधुशाला समान रसीली बुर से नशीली शराब के सामान कसैली बूंदे टपक रही थी,,, जिसका स्वाद स्वादिष्ट मध से भी ज्यादा मीठा था। इसी पकड़म पकड़ाई के दौरान निर्मला अपने बेटे की बिल्कुल करीब आ गई और उससे अपनी पैंटी छीनतेे हुए,,,, इतनी करीब आ गई कि एक बार फिर से वह अपने बेटे की बाहों में समा गई,,,,, शुभम इस बार भी मौके का फायदा उठाते हुए एक बार फिर से उसे कसके अपनी बाहों में भर लिया,,,, पेंटि अभी भी सुभम के हाथों में ही थी लेकिन अपने आपको अपने बेटे की बाहों में पाकर एक बार फिर से वह सब कुछ भूल गई और बड़े ही नशीली अंदाज में अपने बेटे की आंखों में देखने लगी,,, शुभम जी बड़े ही उन्मादक ढंग से अपनी मां को देख रहा था पेंट में बना तंबू सीधे जाकर के निर्मला के पेट के नीचे के अंग में ठोकर मार रहा था,,,,, और उस तंबू के ठोकर का गहरा असर निर्मला की बुर की गहराई में हो रहा था जिसकी वजह से उसकी पैंटी पूरी तरह से गिली होने लगी थी,,, कुछ सेकंड के अंतराल में नहीं दोनों एक दूसरे की बाहों में होते हुए एक दूसरे की आंखों में डूबने लगे शुभम धीरे धीरे अपनी हथेलियों को उसके कमर पर से नीचे की उन्नत उभारों पर ले आया और एक बार फिर से भरावदार नितंबों का गुच्छा अपनी हथेलियों में भर लिया जिसकी वजह से निर्मला के मुंह से हल्की सी कराहने की आवाज निकल गई,,,,,, लेकिन उस कराहने में भी आनंद की उपस्थिति का पूरा आभास हो रहा था,,,, शुभम अपनी मां के नितंबों को अपनी दोनों हथेलियों में भरता हुआ बोला,,,,।
03-31-2020, 03:45 PM,
#93
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
मम्मी कल तो मै एकदम से डर गया था मुझे लगने लगा कि आज तो हम दोनों पकड़े गए हैं,,,,

मुझे भी तो यही लगा था,,,, जैसे ही मम्मी हम दोनों की तरफ देखी मेरी तो सांसे ही अटक गई थी,,,, और अटकती भी कैसे नहीं हम दोनों किस हाल में थे,,,,

हां मम्मी हम दोनों साथ में बड़े ही बैढेंगे हाल में थे,,,,( शुभम अपनी मां की गांडं को मसलते हुए बोला,,,,)

सच शुभम जिस हाल में हम दोनों थे उस हाल में अगर सच में तेरी नानी देख ली होती मेरी तो जान ही ले लेती,,,, मैं पूरी तरह से घोड़ी बनकर झुकी हुई थी( निर्मला अपने बेटे की आंखों में झांकने हुए) तेरा मोटा लंबा लंड मेरी बुर की गहराई में घुसा हुआ था,,,, तेरे दोनों हाथ मेरी कमर को थामे हुए थे,,,
यह बड़ा ही आनंदित कर देने वाला नजारा था लेकिन यही नजारा मम्मी देख लेती तो उनके लिए किसी हादसे से कम यह नजारा नहीं था,,, तू ही सोच अगर मम्मी यह नजारा देखती तो क्या सोचती कि उनकी बेटी खुद अपने बेटे से ही चुदवा रही है और वह भी अपनी ही मां के सामने,,, सच ऊनकी तो जान ही निकल जाती,,,,

अच्छा हुआ मम्मी की नानी को बिना चश्मे के कुछ भी नजर नहीं आता,,,, वरना सच में अपनी कहानी शुरु होने से पहले ही खत्म हो जाती,,,,,
03-31-2020, 03:45 PM,
#94
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
मम्मी को बिना चश्मे के कुछ नहीं दिखाई देता या मुझे कल ही पता चला था,,,,( निर्मला जैसे कुछ सोचते हुए बोली)

हां मम्मी अगर पहले ही पता होता तो उस दिन बाथरूम में भी मैं बिना डरे तुम्हारी चुदाई कर दिया होता,,,,( शुभम अपनी मां से बेझिझक बोल दिया और उसकी मां अपने बेटे की बात सुनकर शर्मा गई,,, और शरमाते हुए बोली,,,)

काश कि उस दिन पता होता तो सच में उस दीन बाथरूम में बहुत मजा आता,,,,


अरे अब तो पता चल गया ना की मम्मी को बिना चश्मे के कुछ नजर नहीं आता अब तो हम चाहे जहां पर भी मजे ले सकते हैं,,,,

बुद्धू,,,,,, बिना चश्मे के लिए नजर नहीं आता लेकिन तेरी नानी हमेशा चश्मा लगाए रहती है वह कभी-कभी ही चश्मा निकालती है इस बात का ध्यान जरूर रखना कहीं ऐसा ना हो कि तू कहीं भी शुरू पड़ जाए,,,,,
( इतना कहने के साथ ही दोनों हंस पड़े लेकिन तभी निर्मला बोली,,,)

तेरा डंडा मेरी टांगों के बीच क़हर मचा रहा है,,,,

तुम मेरे ईस डंडे को थोड़ी सी जगह दे दो,,,

नहीं मैं बिल्कुल भी इसे अपनी टांगों के बीच जगह नहीं दूंगी,,,

बस थोड़ा सा दे दो ना मम्मी तुम्हारी भी परेशानी खत्म हो जाएगी यह डंडा भी सांत हो जाएगा,,,( ऊससे जितना हो सकता था उतना ज्यादा नितंबों का गुच्छा अपनी हथेलियों में भरते हुए बोला,,, जिसकी वजह से निर्मला के मुंह से हल्की सी सिसकारीे निकल गई,,।

सससहहहहह,,, क्या कर रहा है दुखता है,,,,


तभी तो कह रहा हूं बस एक बार अपनी टांगों को खोल दो,,,

धत्त,,,, तू बावरा हो गया है तुझे अब जरा सी भी शर्म लिहाज नहीं है कहीं भी शुरू हो जाता है। अरे छत पर कहीं किसी ने देख लिया तो,,,,,

क्या मम्मी जब कमरे में तुम्हारी मां के होने के बावजूद भी मैंने तुम्हारी बुर में लंड डालकर तुम्हारी चुदाई कर दिया और तुम्हारी मां को इसकी भनक तक नहीं लगी तो छत पर भला किसको पता चलेगा,,,,
( अपने बेटे की बात और उसकी चालाकी देखकर वह मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,।)

बहुत बातें बनाने आता है तभी तो कह रही हूं कि बेटा अब तो बड़ा हो गया है और चलो अब जाने दो मुझे ढेर सारे काम करने हैं,,,,, ( इतना कहते हुए वह अपना हाथ पीछे ले जाकर अपने बेटे के हांथ से ऊस पेंटिं को छीन ली,,,, शुभम की अच्छी तरह से जानता था कि छत पर यह सब करना ठीक नहीं था इसलिए वह अपनी मां को अपनी बाहों की कैद से आजाद कर दिया और उसकी मां मुस्कुराते हुए सब कपड़े ले कर जाने लगी तो वह पीछे से आवाज़ देता हुआ बोला,,,,)

मम्मी रात को कमरे का दरवाजा खुला रखना मैं आऊंगा,,,,
( अपनी बेटी की बातें सुनकर आश्चर्य के साथ वह अपने बेटे की तरफ देखते हुए बोली।)

पागल हो गया है क्या तुम ऐसा कभी मत करना और मैं दरवाजा खुला नहीं रखूंगी,,,( इतना कहकर वह मुस्कुराते हुए छत से नीचे उतर गई और उसे हम छत पर खड़ा अपनी मां को जाते हुए देखता रहा ।)
निर्मला बहुत खुश थी और साथ ही आश्चर्य में भी पड़ गई थी क्योंकि उसे यकीन नहीं हो रहा था कि सुबह इतनी जल्दी काफी खुल जाएगा,,, छत पर उसके द्वारा की गई हरकत से उसका तन-बदन पूरी तरह से कामातुर हो चुका था लेकिन वह अपनी भावनाओं पर काबू रखें रही वरना छत पर ही वह अपने बेटे से चुद गई होती। जिस तरह से शुभम उसकी पैंटी को लेकर के जीभ से चाट रहा था उसका मन यहीं कर रहा था कि मौका मिलने पर वह अपने बेटे से अपनी बुर जरूर चटवाएगी। यह सोचकर ही उत्तेजना के मारे उसकी बुर फुलने पिचकने लगी और तुरंत उसका हाथ अपने आप ही जांघों के बीच बुर के ऊपर चली गई जो कि वाकई में पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। निर्मला से रहा नहीं जा रहा था उसके बेटे की हरकतों ने उसके बदन में पूरी तरह से चुदाई की चिंगारी भड़का दिया था और जाते जाते,,,, उसका यह कहना कि रात को दरवाजा खुला रखना मैं आऊंगा इस बात से तो और भी ज्यादा उस का तन बदन कामातुर होकर लंड के लिए तड़पने लगा था। ऊसे यकीन नहीं आ रहा था कि सुभम इतनी हिम्मत दिखा सकता है। लेकिन इस बात पर उसे थोड़ा भरोसा जरुर था कि जिस तरह से वहां उसकी मां की उपस्थिति में भी बिना डरे उसकी जमकर चुदाई किया था उसे देखते हुए वहं जरूर कमरे में आ सकता है,,,, यह बात सोचते ही उसका मन खुशी से झूम उठा आखिरकार फिर से वह बड़े ही रोमांचक तरीके से उसे बिस्तर पर चोदने वाली थी जिसकी स्तर पर खुद उसकी मां भी साथ में सोती थी अगर सब कुछ सही हुआ तो एक बार फिर से उसका बेटा अपनी नानी की मौजूदगी में ही उनकी बेटी को चोदेगा,,,,,।

रात के करीब 10:00 बजे निर्मला मन में ढेर सारी कामना लिए अपने कमरे में गई जहां पर अभी भी उसकी मां जग रही थी,,,, अपनी आंखों में दवा डलवाने के लिए,,,,, निर्मला जल्दी-जल्दी अपनी मां की आंखों में दवा डाल दी और उन्हे लेटने के लिए बोल कर खुद ही उनके चश्मे को दूर टेबल पर. रख दी,,,,,

निर्मला सारा इंतजाम कर चुके थे उसे बस इंतजार था आपने बेटे का कमरे में आने का इसलिए तो वह अपने बेटे को ना बोलने के बावजूद भी दरवाजा खुला छोड़ दी थी क्योंकि उसे मालूम था कि अशोक घर पर आने वाला नहीं है और वैसे भी जब भी,,,, उसकी मां कभी भी घर पर आती थी तो अशोक अक्सर घर से बाहर ही रहता था,,,,,
निर्मला एकदम सिल्की गाउन पहने हुए थी जो कि उसके बदन से चिपका हुआ होने की वजह से बदन का हर एक अंग साफ तौर पर गाउन के ऊपरी सतह पर साफ साफ नजर आ रहा था। वह बिस्तर पर अपने बेटे के इंतजार में जांघों को आपस में भींचकर रगड़ रही थी,,,,। उससे अपने बदन की गर्मी सही नहीं जा रही थी। बार बार अपने बेटे के इंतजार में उसकी नजर दरवाजे पर चली जा रही थी कभी वह अपनी मां की तरफ देखती जोकी गहरी नींद में सोते हुए नाक बजा रहेी थी।
दूसरी तरफ शुभम की आंखों से नींद कोसों दूर थी वह अपने कमरे में चहल कदमी करते हुए 11:00 बजने का इंतजार कर रहा था। क्योंकि वह जानता था कि 11:00 बजे तक उसकी रानी गहरी नींद में सो जाती है। उसके मन में उसकी मां को लेकर के ढेर सारी ख्याल आ रहे थे बार-बार उसका गुदाज मांसल बदन उसकी आंखों के सामने तैर जा रहा था। उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो चुका था । बस देर थी तो उसके कमरे में जाने की,,,, शुभम को ज्यादा देर इंतजार नहीं करना पड़ा और तभी 11 बजने का अलार्म जो कि उसने खुद ही आज ही लगा कर रखा था वह बजने लगा उसे इस बात का डर था कि कहीं उसे नींद ना आ जाए लेकिन जब चुदाई का नशा सर पे सवार हो तो नींद कोसों दूर चली जाती है। वजह से अलार्म बंद किया और अपने कमरे से बाहर आकर अपनी मां के कमरे की तरफ जाने लगा जहां पर निर्मला बेसब्री से उसका इंतजार कर रही थी ।वह अपनी आंखें बिछाए अपने बलम के इंतजार में दोनों हाथ से अपनी चूचियों को दबा रही थी। थोड़ी ही देर में शुभम अपनी मां की कमरे के बाहर खड़ा था वह अपनी मां को दरवाजा खुला रखने की हिदायत पहले ही दे चुका था। लेकिन उसके मन में यह संख्या थी की कहीं वह नानी की डर की वजह से दरवाजा सच में बंद. ना रखी हो। इसलिए वह देखने के लिए दरवाजे पर सिर्फ हांथ ही रखा था कि दरवाजा खुद-ब-खुद खुलता चला गया। जैसे ही दरवाजा खुला शुभम की खुशी का ठिकाना ना रहा है वह समझ गया कि उसकी मां भी यही चाहती है जो वह चाहता था आग दोनों तरफ बराबर की लगी हुई थी। निर्मला जग रही थी वह भी तो अपने बेटे का ही इंतजार कर रहे थे जैसे ही दरवाजा खोला उसकी नजर उसके बेटे पर गई और उसे देखते ही वो जानबूझकर आंखों को बंद कर ली ताकि उसे लगे कि वह सो रही है। शुभम दरवाजे पर खड़ा होकर की अपनी नानी की तरफ नजर दोड़ाया तो वह गहरी नींद में सोते हुए खर्राटे भर रही थी। उन्हें गहरी नींद में सोता हुआ देखकर उसे सुकून हुआ। वह धीरे से दरवाजे को बंद कर दिया,,,, और आहिस्ता आहिस्ता कदम आगे बढ़ाते हुए अपनी मां की तरफ बढ़ने लगा अपनी मां के करीब पहुंचते हैं उसने देखा कि उसकी मां एक दम मुलायम गाउन पहने हुए थी और गांऊन गहरी नींद में सोने की वजह से,,, चढ़कर घुटनों के ऊपर तक हो गई थी जिसकी वजह से उसकी गोरी-गोरी मांसल पिंडलियां नजर आ रही थी। गोरी गोरी पिंडलियों को देखते हैं उसका लंड. और ज्यादा टाइट हो गया। कमरे में डीम बल्ब जल रहा था,,,, उसकी रोशनी मेरी निर्मला पूरी तरह से साफ साफ नजर आ रही थी लेकिन फिर भी एक बार उसके दिल में हुआ की ट्यूब लाइट जला दे लेकिन फिर इस बात से डर कर नहीं जलाया की ट्यूब लाइट जलने की वजह से उसकी रोशनी की कारण कहीं उसकी नानी की नींद ना खुल जाए,,,, शुभम के लिए सब्र कर पाना बड़ा मुश्किल हुए जा रहा था इसलिए वहात अपनी मां की पिंडलियों पर अपना हाथ रखकर उसे सहलाते हुए बिस्तर पर बैठ गया,,, निर्मला तो जानबूझ कर अपनी आंखें बंद की हुई थी इसलिए अपने बेटे के स्पर्श से पूरी तरह से गनगना गई लेकिन फिर भी वह अपनी आंखों को बंद करके वैसे ही पड़ी रही शुभम की तो हालत खराब हो जा रही थी उत्तेजना के मारे उसकी सांसे ऊपर नीचे हो रही थी। वह अपनी हथेली को पिंडलियों से ऊपर की तरफ ले जाने लगा साथ ही उसका गाउन भी ऊपर की तरफ खींचा चला जा रहा था। जैसे-जैसे गाउन ऊपर की तरफ से रखा जाता है वैसे वैसे निर्मला का मांसल बदन उसकी आंखों के सामने नंगा होता जाता जिसे देखकर उसके लंड में रक्त प्रवाह और भी तेज गति से होने लगता। धीरे-धीरे करतो हुए ऊसकी हथेली उसकी जांघों तक पहुंच गई,,, मक्खन जैसी जांघों का स्पर्श हथेली पर होते हैं शुभम उसे अपनी हथेली में दबोेचते हुए ऊपर की तरफ ले जा रहा था। वह अपनी मां की गोरी जांघों को हथेलीे में दबोचते हुए अपना चेहरा अपनी मां के चेहरे के बिल्कुल करीब ले जा करके धीरे से बोला,,,

मम्मी ओ मम्मी उठो मै आ गया हूं।,,,,, ( शुभम बहुत ही में से उसके कानों में बोला लेकिन उसकी मां आंखें बंद करके वैसे ही लेटी रही,,, मैं तो खुद अपने बेटे को अपनी बाहों में भर लेना चाहती थी लेकिन वह अभी देखना चाहती थी कि उसका बेटा क्या हरकत करता है,,,, दो चार बार इस तरह से बुलाने पर भी निर्मला ने कोई भी जवाब नहीं दी,, तो शुभम को लगने लगा कि उसकी मां गहरी नींद में सो रही है और बड़े प्यार से अपनी मां के खूबसूरत चेहरे को देखने लगा बालों की लटे उसके चेहरे पर आ चुकी थी,,,, लाल लाल होंठ बहुत ही खूबसूरत लग रहे थे जिनको देखकर शुभम से बिल्कुल भी नहीं रहा गया और वह अपने होठों को आगे बढ़ाकर अपनी मां के होठ पर रख कर चूमने लगा,,,, शुभम अपनी मां के लाल लाल होठों को अपने मुंह में भर कर चूसने लगा तो निर्मला से भी बिल्कुल नहीं रहा गया उसने झट़ से अपनी आंखें खोल दी,,,, अपनी मां को चोदा हुआ देखकर शुभम बोला,,,

मैं तुम्हें बोला था फिर भी सो गई कम से कम मेरा इंतजार तो की होती,,

पागल हो गया है क्या तू दिख नहीं रहे मम्मी बगल में सो रही है अगर ऊनकी नींद खुल गई तो,,,,

नहीं खुलेगी मम्मी देख नहीं रही हो कैसे खर्राटे भर के सो रही है तुम मेरा साथ दो बाकी मैं संभाल लूंगा,,,,,( इतना कहते हुए वह पूरी तरह से अपनी मम्मी के बदन पर चढ़ गया,,,, और उसके पजामे में बना तंबू सीधे उसकी मां की जांघों के बीच ठोकर मारने लगा,,,, अपने बेटे के लंड के कठोर पन को अपनी बुर के इर्द-गिर्द महसूस कर के निर्मला काभी धैर्य जवाब देने लगा,,,, लेकिन वह ऊपरी मन से ना नुकुर करते हुए उसे रोकने की कोशिश करने लगी लेकिन सुबह बात कहां मानने वाला था वह तो अपनी मां के बदन पर पूरी तरह से लेट चुका था,,, और एक बार फिर से अपने हाथों की उंगलियों को गोल बनाकर चश्मे का इशारा करते हुए बोला)
मम्मी नानी का चश्मा कहा हैं?

वह मैं उधर टेबल पर रख दी हूं,,,( निर्मला धीरे से फुसफुसाते हुए बोली और शुभम अपनी मां का जवाब सुनकर खुश होते हुए बोला,,,।)

खुद भी लंड लेने का मन कर रहा है लेकिन बेवजह नखरे दिखा रही हो जानबूझकर खुद ही नानी के चश्मे को इतनी दूर रखी हो ताकि उनकी नींद खुलने पर भी कुछ नजर ना आए क्यों सही कहा ना मैंने,,,,
( इस बार निर्मला के पास कहने के लिए कुछ भी नहीं था क्योंकि सब कुछ शुभम ने बोल दिया था और जो आप बोल रहा था वह बिल्कुल सच दिया था इसलिए वह अपनी चोरी पकड़े जाने पर मुस्कुराने लगी,,,,। निर्मला को इस तरह से मुस्कुराता हुआ देखकर एक बार फिर से वह अपने होंठ को अपनी मां के होठ पर रखकर चूसना शुरू कर दिया,,, बस फिर क्या था निर्मला कहां पीछे हंटने वाली थी वह तो खुद ही बदन कि प्यास से तड़प रही थी वह कसके अपने बेटे को अपनी बाहों में भींच ली,,, शुभम तो पागलों की तरह अपनी मां के लाल लाल होठों को चूसना शुरू कर दिया मानो कि उसमें से मधुर रस झर रहा हो,,, साथ ही एक हाथ से उसकी बड़ी बड़ी चूचियां को दबाना शुरु कर दिया,,,, चूचियों का गाउन के ऊपर से हो रहे नरम-नरम एहसास से उसे इस बात का पता चल गया कि उसकी मां ने ब्रा नहीं पहनी हुई है। वह उत्तेजना के मारे और जोर-जोर से चूचियों को दबाना शुरु कर दिया निर्मला की हालत खराब होने जा रही थी उसके मुंह से गरम गरम सिसकारी हल्की आवाज के साथ बाहर आ रही थी। उसकी नजर बार बार अपने बगल में लेटे उसकी मां पर चली जा रही थी बेड काफी बड़ा था इसलिए उन दोनों के लिए भी काफी जगह बचा हुआ था शुभम पूरी तरह से अपनी मां के बदन पर लेटा हुआ था निर्मला अपने बेटे की पीठ को अपनी हथेली से सहला रही थी और उसके लंड के कठोर पन को अपनी बुर पर एकदम साफ महसुस भी कर रही थी। उत्तेजना के मारे निर्मला का चेहरा लाल लाल टमाटर की तरह हो गया था कुछ देर तक अपनी मां की चूची से खेलने के बाद वह अपने हाथ को धीरे धीरे नीचे की तरफ ले जाने लगा जैसे ही वह अपनी हथेली को,,, अपनी मां की मांसल जांघों के बीच ले गया तो उसकी हथेली में हो रहे हल्के हल्के बालों के खुरदरापन का एहसास से उसकी उत्तेजना और ज्यादा बढ़ गई क्योंकि उसकी मां ने पेंटी भी नहीं पहनी थी,,,, वह अपनी मां की बुर पर अपनी हथेली रखकर उसे सहलाते हुए अपनी मां की कानों में बोला,,,,

मम्मी लगता है कि तुम पहले से ही चुदवासी हो गई हो तभी तो आज ना तो ब्रा पहनी हो और ना पेंटिं,,,

क्या करूं बेटा छत पर तेरी हरकत देखकर मेरी भी हालत खराब होने लगी मैं भी तेरे लंड के लिए तड़प रही है तभी तो समय ज्यादा ना बिगड़ जाए इसलिए पहले से ही तैयार लेटी हुई थी,,,,

तो देर किस बात की है मम्मी अगला कार्यक्रम शुरू किया जाए,,,( इतना कहने के साथ ही शुभम अपनी मां के बदन पर से अपने बदन को हल्के से ऊपर उठा लिया अपने बेटे के इशारे को निर्मला अच्छी तरह से समझ गई,,, और वह झठ से अपनी बेटे के पजामे को नीचे की तरफ सरकादी,,,, बाकी का शुभम खुद ही अपने हाथों से निकाल दिया,,, जब शुभम अपने हाथों से अपने पहचाने को अपने पैरों के बाहर निकाल रहा था तो निर्मला खुद ही अपने गांव में को पूरी तरह से ऊपर की तरफ कर दी और उसका पूरा नंगा बदन,,, डिम लाइट की पीली रोशनी में चमकने लगा अपनी मां के नंगे बदन और खूबसूरत बड़ी बड़ी चूचियां को देखकर शुभम की कामोत्तेजना और ज्यादा बढ़ गई उसका लंड पूरी तरह से टट्टार खड़ा हुआ था। जिसका निर्मला की नज़र पड़ते ही वह प्रसन्नता के साथ साथ शर्मा भी गई,,,, वो खुद ही कुछ मेहमान को अपने घर में प्रवेश कराने के लिए,,,
अपनी टांगों को खोल दी शुभम अपनी मां की खुली हुई टांग को देख कर समझ गया कि उसकी मां मेहमान का स्वागत करने के लिए पूरी तरह से तैयार है इसलिए वह भी धीरे धीरे अपनी मां के ऊपर झुकता चला गया,,,, निर्मला अपने हाथ को नीचे की तरफ ले जाकर खुद अपने बेटे के लंड को पकड़ कर अपनी बुर के मुहाने पर सटा दी,,, दोनों के बदन की गर्मी दोनों को चुदास से भर रही थी,,,, उत्तेजित होने की वजह से निर्मला की बुर पकौड़े की तरह फूल चुकी थी,,, और काफी की ली भी हो चुकी थी जिसकी वजह से शुभम का काफी मोटा लंड बड़े आराम से धीरे धीरे करके बुर के अंदर उतरने लगा,,, जैसे जैसे अपने बेटे के लंड को अपनी बुर की गहराई में महसूस कर रही थी वैसे वैसे उसके मुंह से गर्म सिसकारी निकल रही थी जिसे वह खुद ही दांतों से दबा दे रही थी,,, धीरे-धीरे करके शुभम का पूरा लंड बुर के अंदर उतर गया,,,
निर्मला एक बार अपनी मां की तरफ देखी वह अभी भी खर्राटे भर रही थी बड़ा ही रोमांचक नजारा लग रहा था निर्मला ने कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि वह इस तरह से अपने बेटे से चुदवाई की और वह भी अपनी मम्मी के बगल में लेट कर,,,,, शुभम अब अपने संभोगनीय कार्यक्रम को शुरू करने वाला था,,,, वह अपने दोनों हाथों में अपनी मां की चुचियों को-वर्कर दबाना शुरु कर दिया और हल्के हल्के अपनी कमर को हिलाना भी शुरू कर दिया,,, धीरे-धीरे उसकी मां की मुंह से सिसकारियों की आवाज आने लगी थी। शुभम धीरे धीरे अपनी मां को चोदना शुरू कर दिया था बुर के अंदर की गर्मी,,,, उसके लंड की उत्तेजना को बढ़ाते हुए और भी ज्यादा कड़क कर दी थी। फच फच की आवाज के साथ शुभम अपनी मां को चोद रहा था। चुदाई की भनक पास में सो रही उसकी नानी को कानो कान भी नहीं थी। पूरे कमरे का माहौल पूरी तरह से उन्मादक बन चुका था। शुभम कभी अपनी मां की चुचियों को दबाता तो कभी उसे मुंह में भर कर पीना शुरु कर देता। अपने बेटे से इस तरह की हरकत करवाते हुए चुदवाने में निर्मला को भी बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी तभी तो वह जोर जोर से अपने बेटे के बाल को अपनी मुट्ठी में भींच कर अपनी चूचियों के बीच दबा दे रही थी। धीरे धीरे शुभम की कमर तीव्र गति से ऊपर नीचे होना शुरु कर दी,,, निर्मला देवी रहा नहीं जा रहा था वह रह रह कर नीचे से अपने भारी भरकम नितंबों को ऊपर की तरफ उछाल दे रही थी। शुभम अपनी मां की चुचियों को पीता हुआ इतनी कसके अपनी बाहों में जकड़ा हुआ था कि,,, निर्मला का भजन गुदाज होने के बावजूद भी उसकी हड्डियां तक चिटक जा रही थी। शुभम का लंड बहुत तेजी से बुर के अंदर बाहर हो रहा था। इस तरह की चुदाई की ही जरूरत थी निर्मला को। अपने जीवन के बहुत से वर्ष यूं ही काट दि थी निर्मला ने जीवन से उड़ चुका सारे रंग को वापस शुभम भर रहा था।
निर्मला की जिंदगी में एक बार फिर से शुभम में रंगीनियत ला दी थी,,, शुभम की उत्तेजना उस वक्त और ज्यादा बढ़ जाती जब जोश में आकर के निर्मला नीचे से अपनी भारी भरकम गांड को उठाकर ऊपर की तरफ उचका देती थी,,,, उस समय शुभम निर्मला को कसके अपनी बाहों में दबोच लेता था। निर्मला बहुत देर से अपने होंठ को दांतों से भींचते हुए अपनी गरम सिसकारी की आवाज को दबाए हुए थी। पलंग पूरी तरह से चरमराने लगा था। शुभम के हर प्रहार के साथ निर्मला का बदन आगे की तरफ झुल जाता था। पलंग की चरमराहट की वजह से पूरा पलंग जबरदस्त झटकों के साथ हीलने लगा था। दोनों चुदाई का संपूर्ण आनंद उठा रहे थे कि तभी उन दोनों के कानों में आवाज आई,,,

बेटी यह अजीब अजीब सी आवाजें क्यों आ रही है और यह पलंग क्यों हीलं रहा है।
( अपनी मां की आवाज सुनते ही निर्मला तो फिर से सन्न हो गई,,, एक पल को तो वह पूरी तरह से घबरा गई साथ में शुभम भी लेकिन तभी उन दोनों को ख्याल आया कि उन्हें रखने के बगैर कुछ भी नजर नहीं आता इसलिए वह कुछ भी जवाब नहीं दे बस अपने काम में मगन रहने लगी,,, दो चार बार और पूछने के बाद निर्मला बोले ताकि उंहें लगेकी निर्मला सो रही थी,,,,)

कुछ नहीं मम्मी आपको थोड़ी कमजोरी है ना इसके वजह से आप को ऐसा लग रहा है,,,, आप सो जाइए ऐसा कुछ भी नहीं है ना तो कोई आवाज आ रही है और ना ही पलंग हिल रहा है

ठीक है बेटी,,,,( इतना कहकर वह सो गई शुभम अपनी मां की चालाकी देखकर बहुत खुश हुआ और और तेज तेज झटके लगाते हुए उसकी चुदाई करने लगा,,, थोड़ी ही देर बाद दोनों एक साथ झड़ गए,,,, झड़ने के बाद शुभम निर्मला के बदन पर ही लेटा रहा,,,, कुछ समय बिता तो निर्मला उसे अपने कमरे में जाने के लिए बोली लेकिन उस के नंगे बदन के ऊपर लेटने की वजह से फिर से शुभम के बदन में उत्तेजना का संचार होने लगा उसका ढीला बड़ा लंड एक बार फिर से तनकर खड़ा हो गया,,, निर्मला भला ऊसे क्यों इंकार करने वाली थी,,, एक बार फिर से उसने अपनी टांगों को खोल दी और शुभम उसमें समा गया,,,यह खेल सुबह 5:00 बजे तक चलता रहा,,, इसके बाद उसकी नानी उठे इससे पहले ही वह अपने कमरे में चला गया।
03-31-2020, 03:46 PM,
#95
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
निर्मला और शुभम की नजरों में असंभव सा काम संभव होता जा रहा था। उन दोनों को अपने आप पर इतना विश्वास बिल्कुल भी नहीं था और ना ही इस हद तक वह किसी भी प्रकार का खतरा उठाने के लिए तैयार थे जबकि घर में निर्मला की मां मौजूद थी फिर भी यह सब कैसे हो जा रहा था उन दोनों को भी इस बात का आश्चर्य हो रहा था। निर्मला जो कि एक अच्छे परिवार में पली-बढ़ी थी। संस्कार का सिंचन उसके माता-पिता ने अपनी बेटी निर्मला में बखूबी किया था।

और निर्मला भी अपने मां-बाप के द्वारा दिए गए संस्कार का उपयोग उसका सही इस्तेमाल समाज के रीति रिवाजों के साथ अपने आप को ढालने में करती आ रही थी। मन में ढेर सारे उमंग और भावनाओं के बावजूद भी पति का प्यार ठीक तरह से ना पाते हुए भी वह अपने परिवार के प्रति अपना फर्ज बखूबी निभा रही थी,,,, पति से सुखद शारीरिक सुख की अपेक्षा नहींवत के बराबर हो चुकी थी फिर भी वह अपने पति से इस बारे में किसी भी प्रकार की शिकायत नहीं करती थी,,, यह सब वह अपने दिल से स्वीकार कर चुकी थी उसे यकीन था कि यह सब ऐसे ही चलता ही रहेगा इसलिए तो वह अपने सपनों को अपने फर्ज के तले कुचल कर आगे बढ़ रही थी,,,,। लेकिन वह कभी इस बात को सपने में भी नहीं सोची थी कि उसके बेरंग जिंदगी को फिर से रंगीन करने उसका ही बेटा ऊसकी जिंदगी में आएगा,,,,।,,,, शुभम की वजह से वह फिर से एक बार सपने देखना शुरु कर दी थी।
संभोग की असली परिभाषा क्या होती है यह शुभम से ही पता चला था उसके हर धक्कों के साथ किस तरह से बदन हवा में गोता लगाने लगता है यह एहसास भी शुभम ने हीं कराया था। धीरे-धीरे इस राह पर वहां इतने आगे निकल गए कि उधर से पीछे मुड़कर देखने का भी समय नहीं रह गया था। निर्मला के लिए इस रिश्ते को रोक पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया था इस रिश्ते में वासना पूरी तरह से घूल चुका था। और वासना कोई गेहूं में से कंकड़ बिननें जैसा नहीं था,,, की जब चाहे उसे हाथों से छांटकर बाहर फेंक दिया यह तो एक जहर की तरह होता है जो कि,,,, मनुष्य के शरीर में घुसकर उनकी नसों के साथ साथ उनके मन मस्तिष्क में भी अपना जाला बुन देता है पूरी तरह से पूरे शरीर में उतर जाता है जिसे अपने अंदर से बाहर निकाल पाना नामुमकिन सा हो जाता है। बरसों से देख रही दुखों के बादल को और बरसो की प्यासी अंतरात्मा को मिले इस सावन की बौछार में अपने आप को पूरी तरह से भिगोए बिना वह खुद ही जाने देना नहीं चाहेगी,,,,,, पहली बार तो उसे महसूस हो रहा था कि औरत जब मस्त होने लगती है तो उसकी बुर में मदन रस का छोटा सा तालाब बन जाता है,,,,


उत्तेजना में फूल कर वह कचोरी जेसी हो जाती है। पुरुष के हाथों से हो रही स्तन मर्दन की वजह से बदलने की उत्तेजना से मिल जाती है कि उनकी आकार में निरंतर बढ़ोतरी होती रहती हैं,,,, निर्मला को इस बात की भी जानकारी शुभम के साथ संभोग करने के पश्चात ही हुई की एक संपूर्ण मर्द का लंड काफी लंबा होता है जिसका हर धक्का बच्चेदानी पर चोट करता है।,,, और सही मायने में तभी जाकर के औरत को संपूर्ण सुख की प्राप्ति भी होती है। इसलिए तो निर्मला बिश्नोई रिश्ते से बिल्कुल खुश थी भले ही वह अपने बेटे के साथ ही संबंध क्यों न लगती हो बड़ी मुश्किल से आए इस खुशियों पर वह किसी भी प्रकार का ग्रहण नहीं लगने देना चाहती थी। इसलिए तो वहां इन सब बातों का किसी को पता ना चल जाए इसका ख्याल रखती थी लेकिन उसे इस बात का भी पता चल चुका था कि सर पर अगर वासना पूरी तरह से फरार हो जाती है तो फिर किसी का भी डर नहीं रह जाता तभी तो वह अपनी मां की मौजूदगी में भी उसी कमरे में अपने बेटे के साथ संभोग सुख की असीम प्राप्ति को महसूस की और तो और एक ही बिस्तर पर पास में सो रही अपनी मां की उपस्थिति में भी वह कमरे में अपने बेटे को बुलवाकर मस्ती के साथ चुदाई का संपूर्ण आनंद उठाई,,,। एक बात उसे अभी भी अधूरी लगती थी तो वह यह थी कि उसने अपने बेटे के साथ खुलकर चुदाई का पूरी तरह से आनंद नहीं उठा पाई थी अभी भी उसे बहुत कुछ करना बाकी था लेकिन उसके लिए दोनों को बिना किसी डर के एकांत की जरूरत थी,,, और इसके लिए निर्मला की मां का घर से वापस गांव लौट आना बहुत जरूरी था क्योंकि उनके चलते वह दोनों घर में किसी भी तरह का खुलकर आनंद उठाने में असमर्थ ही साबित हो रहे थे बार बार यह डर लगा रहता था कि कहीं वह देख ना ले,,, इसलिए तो निर्मला जल्द से जल्द अपनी मां की आंखों का इलाज करा कर उसे वापस गांव भेज देना चाहती थी और इसीलिए वह आज अपनी मां को आंखों के ऑपरेशन के लिए डॉक्टर के वहां ले जा रही थी और शुभम को आज भी अकेले स्कूल जाना था।,,


दूसरी तरफ से तरफ भी पूरी तरह से शुभम के प्रति आकर्षित हो चुकी थी बार-बार उसे अपने नितंबों के बीच शुभम के लंड के कड़क पन का एहसास हो जाता था जिसकी वजह से बार-बार उसकी बुर गीली हो जा रही थी,,, शुभम को याद करके उसके तकरीर लंड को याद करके उसने ना जाने कितनी बार अपनी बुर के अंदर बैगन का उपयोग कर चुकी थी,,,, लेकिन देवगन की लंबाई और चौड़ाई उसकी बुर को संपूर्ण रुप से संतुष्ट करने में असमर्थ साबित हो रही थी क्योंकि उसे भी अब जीते-जागते मोटे तगड़े लंड की जरूरत थी जो कि उसे शुभम की जांघों के बीच ही लटकता हुआ नजर आ रहा था। निर्मला की तरह शीतल भी बहुत प्यासी थी,,, खुले विचारों की होने के बावजूद भी उसने अब तक गैर मर्द को अपने करीब भी भटकने नहीं दी थी हालांकि उसकी बातों से ऐसा ही लगता था कि वह गैर मर्दों के साथ भी संबंध रखती है लेकिन वास्तव में ऐसा बिल्कुल भी नहीं था बल्कि वह इन सब बातों के जरिए अपने मन के दुख को दबा देती थी,,, शुभम के हट्टे-कट्टे शरीर उसकी भोली सूरत और खास करके जब उसके हथियार का कड़कपन सीतल ने अपने नितंबों के बीच में महसूस की तब से वह शुभम की पूरी तरह से दीवानी हो चुकी थी,,, वह किसी भी हालत में शुभम को प्राप्त करना चाहती थी और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाना चाहती थी। सुबह-सुबह बाथरूम में नहाते समय उसके जेहन में शुभम का ही ख्याल आ रहा था जिसकी वजह से उसके तगड़े लंड की कल्पना करते हुए शीतल पूरी तरह से गरमा गई,,,, और जब तक वह अपनी बुर में अपनी दो उंगलियां डाल कर अंदर बाहर करते हुए अपना पानी नहीं निकाल दी तब तक उसके मन को तसल्ली नहीं मिली,,। नहाने के बाद वह तैयार होकर,, स्कूल के लिए निकल गई दूसरी तरफ शुभम को अकेले ही स्कूल जाना था क्योंकि आज उसकी नानी की आंखों का ऑपरेशन था और जिसे लेकर,,, उसकी मां अस्पताल जा रही थी। घर से निकलते निकलते अपनी मां से नजरें बजाते हुए निर्मला शुभम को अपनी बाहों में भरकर उसके होठों को चूम ली,,, शुभम के जी में आया कि वह अपनी मां को बाहों में भर कर अपनी दोनों हथेलियों से उसकी गांड को दबोच ले लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाया सिर्फ मुस्कुरा कर रह गया और दोनों घर से बाहर आकर अलग अलग दिसा मे चले गए,,,,।

स्कूल में जब शुभम पहुंचा और अपनी क्लास की तरफ जा रहा था कि तभी शीतल ने उसे आते देख ली,,, वह अकेला ही था इसलिए उसे अपने पास बुलाई,,,,

क्या हुआ शुभम तुम आज फिर से अकेले ही आ रहे हो तुम्हारी मम्मी कहां है,,,,( शुभम की नजर एक बार फिर से पीतल के खूबसूरत बदन पर घूमने लगी उसे उस दिन की घटना याद आ गई जब वह अचानक ही नीचे झुक कर टिफन उठा रही थी,,,, और वह भी अपने आप ही अचानक ठीक उसके नितंबों से आकर के सट गया,,, उसके भरावदार बड़े-बड़े नितंबों की गर्माहट व अभी भी महसूस करके एकदम से गन गना जाता है। वह घटना भी शुभम के लिए अद्भुत सुख के एहसास कराने वाली कल्पना में रचने के लिए काफी था,,, वह की कल की बात पर ध्यान ना देकर उसकी खूबसूरती के रस को आंखों से ही पीने लगा जब उसकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला तो शीतल मुस्कुरा कर फीर से बोली,,,)

ऐईईईई,,,,, कहां खो गए मैं तुमसे कुछ पूछ रही हूं,,,,

( शीतल की आवाज जैसे ही उसके कानों में गई तो ऐसा लगा कि जैसे उसे किसी ने नींद से जगाया हो वह एकदम से हड़ बड़ाते हुए बोला,,,,,)

ककककक,,,, क्या पूछ रही हो आप मैं ठीक से सुना नहीं,,,,

( शीतल उसकी हड़बड़ाहट देख कर मुस्कुराने लगी,,, और हंसते हुए बोली,,,,,)

अरे सुनोगे कैसे तुम्हारा ध्यान तो किसी और चीज पर है,,,,

( शीतल की बात सुनते ही शुभम झेंप सा गया,,, क्योंकि उसे भी इस बात का पता चल गया कि शीतल को इस बात की खबर हो गई कि वह उनके बदन को ही घूर रहा था,,,, शीतल बात को आगे बढ़ाते हुए बोली।)

मैं बोल रही थी कि तुम आज भी अकेले आए हो तुम्हारी मम्मी कहां है उनकी तबीयत तो ठीक है ना,,,,

मम्मी बिल्कुल ठीक है मैं आपको बताया था ना कि नानी के आंख का ऑपरेशन कराना है इसलिए उन्हें आज अस्पताल लेकर गई है,,,।

ओहहहह,,, तो यह बात है फिर तो आज भी तुम अपना लंच बॉक्स लेकर नहीं आए होंगे।

जी,,,,,

तो एक काम करना रीशेष में फिर से मेरे क्लास में चले आना,,

ठीक है मैम,,,,

गुड बॉय,,,, ( इतना कहकर वह शुभम के सर पर हाथ रखते हुए उसके बालों में,, अपनी उंगलियां घुमा कर मुस्कुराते हुए अपनी क्लास में चली गई,, शुभम वही खड़ा शीतल को क्लास में जाती देखता रहा,,,, और उसकी प्यासी नजरें शीतल की मटकती हुई गांड पर ही टिकी हुई थी जो की बहुत ही कामोत्तेजना का अनुभव करा रही थी।
क्लास में बैठकर शुभम शीतल के बारे में ही सोचता रहा बार-बार उसकी आंखों के सामने उसके बड़े बड़े नितंब मटकते हुए नजर आ रहे थे,,, शुभम औरत की चुदाई कर चुका था इसलिए,,, वह औरत को भोग चुका था,, औरत को भोगने मे किस तरह का अद्भुत सुख का एहसास और मजा आता है इसके बारे में बखूबी जानता था। इसलिए तो शीतल के खूबसूरत बदन के बनावट और उसके उतार चढ़ाव को देखकर उसकी आंखों में नशा उतरने लगा था। उसके मन में भी शीतल को भोगने की इच्छा जागने लगी थी। उसे भी अब रिसेस होने का इंतजार बड़ी बेसब्री से होने लगा। आखिरकार की घंटी बज गई और वहां मन में ढेर सारे अरमान लिए शीतल की क्लास की तरफ जानेलगा

शीतल भी अपनी क्लास में बैठ कर उसका ही इंतजार कर रही थी सभी विद्यार्थी क्लास से बाहर जा चुके थे तभी उसे शुभम क्लास में आता नजर आया और वह खुश हो गई,,,,
लेकिन तभी उससे बोली,,,,

शुभम मैं अपना लंच बॉक्स गाड़ी की डिक्की में ही भूल गई हूं प्लीज तुम जा कर के ले कर आ जाओ,,,, यह लो डीक़्की की चाभी,,,,

( शुभम चाबी लेने के लिए हाथ बढ़ाया और जानबूझकर शीतल अपनी नरम-नरम उंगलियों को उसके हाथ से स्पर्श करा दी जिसका इस पर सोते ही शुभम के बदन में करंट लगने जैसा एहसास होने लगा,,,, वह जल्दी से शीतल के हाथों से चाबी लेकर क्लास के बाहर चला गया,,,, पार्किंग में जाकर वह गाड़ी की डिक्की खोल कर अंदर इधर उधर ढुड़ते हुए उसे प्लास्टिक की थैली मिली जिसमें लंच बॉक्स रखा हुआ था वह हथेली में हाथ डालकर जैसे ही टिफिन को निकालने लगा की थैली में रखे हुए नरम नरम कपड़ों का एहसास उसे होने लगा और वहां उत्सुकतावश उन कपड़ों को उस हथेली में से बाहर निकाल कर देखा तो उसके बदन में उत्तेजना की लहर दोड़ने लगी,,, ऊसके लंड. में एकाएक तनाव आने लगा। वह उन कपड़ो को हाथों में लेकर ध्यान से देखने लगा उसे समझते देर नहीं लगी कि वह नरम मुलायम कपड़ा शीतल मैडम की पैंटी और ब्रा थी। मरून रंग की ब्रा और पैंटी एकदम मखमल के जैसे मुलायम थी। वह बार बार उन कपड़ों पर अपनी उंगलियों से पकड़कर सहलाता,,,, वह आज दूसरी बार किसी औरत की ब्रा और पैंटी को हाथों में ले रहा था इससे पहले वह अपनी मां की पैंटी को हाथों में ले चुका था जिसका एहसास अब तक उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ा दे रहा था,,,, आज दूसरी बार उसके हाथों में किसी औरत की पैंटी और ब्रा दोनों आई थी,,,, इसलिए उसके लंड का तनाव कुछ ज्यादा ही बढ़ चुका था। वह शीतल की ब्रा को हाथों में लेकर के उसके कप साइज को अपनी हथेलियों से नापता हुआ यह सोच रहा था कि,, शीतल की बड़ी-बड़ी गोल चूचियां इतने छोटे से कप. में कैसे आती होगी,,,, वाह कल्पना में ही शीतल की नंगी चूचियों को देख कर मस्त होने लगा,,,, कामातुर हो चुका शीेतल की ब्रा के कप को अपनी मुट्ठी में दबोच कर ये एहसास अपने बदन को कराता कि वह शीतल की चुचियों को अपनी हथेली में दबा रहा है,,,, शुभम पूरी तरह से उत्तेजना से भर चुका था वह शीतल की पैंटी को हाथों में लेकर,, पेंटी के चारों तरफ अपनी उंगलियों का स्पर्श करा कर उत्तेजित हुआ जा रहा था। पैंटी की साइज देखकर वह शीतल के भरावदार नितंबो की कल्पना करके मस्त हुआ जा रहा था। उसे देखकर वह मन ही मन में सोच रहा था कि शीतल की बड़ी-बड़ी गांड ईसके अंदर कैसे समाती होगी,,,,। शुभम की कल्पना करने की शक्ति भी बड़ी अद्भुत थी वह कल्पना करते हुए शीतल को खुद ही अपनी पैंटी उतारता हुआ देख रहा था,,,, और उसकी बुर जो की कचोरी की तरह थोड़ी हुई थी जिस पर बालों का नामोनिशान तक नहीं था इस तरह की कल्पना करते हुए उसके लंड से पानी की दो चार बूंदें टपक गई। शुभम से बिल्कुल भी रहा नहीं जा रहा था,,,, वह एक बार चारों तरफ नज़र घुमा कर इस बात की तसल्ली कर लिया कि कोई यहां देख तो नहीं रहा है जब उसे पूरा यकीन हो गया कि किसी की भी नजर उसकी तरफ बिल्कुल भी नहीं है तो वह डिक्की में झुक कर,, शीतल की पेंटिं को सीधे ही अपनी नाक पर लगाकर खास करके उस जगह पर जिस जगह पर शीतल की बूर होती है वह जोर से नथुनों से उसकी खुशबू अपने अंदर भरने लगा,,, पेंटी से आ रही शीतल कीे बुर की मादक खुशबू उसके बदन में कामोत्तेजना का सैलाब भर दी,,, पेंट के अंदर उसका लंड ठुनकी मारने लगा,,,,, वह जितना हो सकता था उसने जोर जोर से पैंटी की खुशबू अपने नथुनों के जरिए अपने सीने में उतारने लगा,,, शुभम एक दम मस्त हो चुका था उसकी इच्छा उस स्थान को जीभ से चाटने की कर रही थी लेकिन उसे कुछ ज्यादा ही देर हो चुकी थी इसलिए उसका जाना जरूरी था वह जल्दी से ब्रा और पैंटी जिस तरह से हथेली में पड़ा था उसी तरह से रख कर,,, डिक्की बंद कर दिया और क्लास की तरफ जाने लगा,,,,
03-31-2020, 03:46 PM,
#96
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
शुभम को इतनी देर होता देखकर शीतल मन ही मन खुश होने लगी क्योंकि उसे विश्वास हो गया कि उसकी युक्ति काम कर गई,,, वह जानबूझकर अपनी ब्रा और पैंटी को लंच बॉक्स के साथ थैली में रखी थी उसे यह तो पक्का यकीन नहीं था कि आज सुभम स्कूल अकेले ही आएगा,,, लेकिन वह इतना जरूर पैक कर ली थी कि जो भी हो वह किसी न किसी बहाने से शुभम को अपनी ब्रा और पैंटी जरूर दिखाएगी,,, वह जानती थी कि लड़के हमेशा औरतों की ब्रा पेंटी जैसे अंग वस्त्र को देखकर एकदम उत्तेजित हो जाते हैं और उन वस्तुओं को लेकर मन में ढेर सारे कामुक कल्पनाएं भी करते रहते हैं। और शुभम भी डिक्की मैसे लंच बॉक्स लेते समय जरूर थेली में रखी हुई ब्रा पेंटी देखा होगा और उन्हें हाथों में लेकर के एकदम उत्तेजित हो गया होगा तभी तो उसे इतनी देर लगी यही सब सोचते हुए शीतल मन ही मन बहुत खुश हो रही थी कि तभी शुभम क्लास में दाखिल हुआ और कुर्सी पर बैठने ही वाला था कि शीतल की नजर सीधे शुभम की पैंट में बने तंबू पर गई और साथ ही,, तंबू के स्थान पर हल्का हल्का गीलेपन का धब्बा भी नजर आया उस धब्बे को देखते ही शीतल समझ गई कि शुभम पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था। शुभम कुर्सी पर बैठ गया और लंच बॉक्स खोलने लगा शीतल उसे देखकर मुस्कुरा रही थी। कुछ ही देर में दोनों खाना खाने लगे शुभम पूरी तरह से उत्तेजना के सागर में गोते लगा रहा था। और इस बात को जानकर कि शुभम उसकी पैंटी और ब्रा को देखकर उत्तेजित हो चुका है,,, शीतल के बदन में भी कसमसाहट हो रही थी। तभी खाते-खाते शीतल बोली।

शुभम तुम इतनी देर कहां लगा दिए थे,,,, ( तभी वहां आश्चर्य के साथ अपने माथे पर हाथ रखते हुए बोली,,,)
अरे यार कही तुम वो तो नहीं देख लिए,,,,,,

( शीतल को इस तरह आश्चर्य के साथ बोलता हुआ देखकर शुभम घबरा गया उसे लगने लगा की कहीं शीतल मेम थेली में रखी हुई ब्रा पेंटी के बारे में तो नहीं बोल रही,,,, शुभम शीतल की बात सुनकर हड़बड़ा गया,,)

ककककक,,,, क्या मैम,,,

अरे शुभम, तुम जिस थैली से लंच बॉक्स निकाले थे भूल से मैंने उसमे अपनी पहनी हुई ब्रा और पेंटी रख दी थी कहीं तुम उसे देख तो नही लिए,, ( शीतल बात बनाते हुए बोली लेकिन शुभम क्या बोलते हैं वह तो खामोश होकर नजरें झुकाए उसकी बातें सुनता रहा,,,,,)

अगर देख लिए हो तो उसके लिए सॉरी मुझे मालूम नहीं था मैं सच में एकदम भूल गई थी और तुम्हें वहां भेज दी,,,,


कोई बात नहीं मैंम,,( शुभम शरमाते हुए बोला)

सॉरी शुभम कहीं तुम्हें खराब तो नहीं लगा,,,,,

नहीं मैंम ऐसी कोई बात नहीं है,,,,,

( शुभम का जवाब सुनकर शीतल मन ही मन बोली की भला तुझे क्यों खराब लगेगा तुझे तो मजा आ गया होगा,,,, शीतल को भी इसमें बहुत मजा आ रहा था। बातों ही बातों में शीतल शुभम के साथ खुलना चाहतीे थी,,,, वह एक बहाने से शुभ उनके मन में क्या चल रहा है वह जानना चाहती थी। लेकिन वह बात को आगे बढ़ाती से पहले ही उसकी सह अध्यापिका क्लास में आ गई,,, और आते ही बोली।)

शीतल यह तो अपनी निर्मला का बेटा है ना काफी बड़ा हो गया है।

हां जी यह अपनी निर्मला का ही बेटा है,,,
( शीतल उसकी बात का जवाब नहीं देना चाहती थी क्योंकि उसकी वजह से सारा मजा किरकिरा हो गया था लेकिन वह उसकी सीनियर थी इसलिए औपचारिक रूप से जवाब दी। और तभी रिशेष पूरी होने की घंटी बज गई,,,,।
03-31-2020, 03:46 PM,
#97
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
शुभम के हाथों में आई शीतल की पैंटी और ब्रा जिसके बारे में सोचकर वह अभी भी उत्तेजित हो जा रहा था,,, बार-बार वह हाथ में आई ऊसकी पैंटी और ब्रा के आधार पर शीतल की खूबसूरत भरावदार नितंब और उसकी बड़ी-बड़ी गोलाइयों की कल्पना करके पैंट के ऊपर से ही अपने लंड को मसल रहा था। वह अपने कमरे में बैठा हुआ था अभी तक अस्पताल से उसकी मां और नानी नहीं आई थी। अपनी मां की खूबसूरत बुर के दर्शन कर चुका शुभम बार-बार कल्पना में शीतल की बुर का भूगोल किस तरह का होगा उसकी तुलना वह करीब-करीब अपनी मां की बुर से कर रहा था। यह सब सोचकर वह पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था और बिस्तर पर बैठे-बैठे अपनी पेंट को नीचे सरका कर अपने टन टनाए हुए लंड को अपने हाथ में लेकर हिलाना शुरू कर दिया,,। वह मन में कल्पना करते हुए शीतल की खूबसूरत बुर में अपना लंड डालकर मुठ मारना शुरू कर दिया।,,, उसका लंड पूरी तरह से टनटनाकर उसकी हथेली में गर्मी पैदा कर रहा था। वह शीतल को याद करते हुए जोर जोर से लंड हिलाने लगा,,,, और थोड़ी देर बाद ऊसके लंड ने फुवारा छोड़ दिया,,,

करीब शाम ढलने को थी तब दरवाजे की बेल बजी शुभम समझ गया कि उसकी मां और नानी अस्पताल से वापस आ गए हैं,,,। वह जल्दी से जाकर दरवाजा खोला,,, निर्मला अपनी मां को सहारा देकर अंदर ले आ रही थी तभी दरवाजा बंद करते हुए शुभम बोला,,,।

मम्मी नानी का ऑपरेशन हो गया क्या?


हां बेटा हो गया,,,,

कोई तकलीफ तो नहीं हुई,,,

नहीं ऐसी कोई तकलीफ नहीं हुई बस मम्मी को थोड़ी सी घबराहट हो रही है डॉक्टर ने इन्हें पूरी तरह से आराम करने को कहा है,,,, तू भी नानी का हाथ पकड़ ले सहारा देकर वमेरे कमरे तक ले जाना है,,,
( अगले ही पल निर्मला अपनी मम्मी को बिस्तर पर लेटा दी,,,
निर्मला की मम्मी ऑपरेशन की वजह से थोड़ी घबराई हुई थी और शरीर में कमजोरी भी थी। इसलिए डॉक्टर हमेशा एक जन को इनके पास रहने की हिदायत दिया था। लेकिन शुभम की हालत खराब हो रही थी उसकी इच्छा बहुत कर रही थी निर्मला को चोदने के लिए,,, यही हाल निर्मला का भी था लेकिन वह मजबूर थी वह अपनी मां को एक पल के लिए भी नहीं छोड़ सकती थी क्योंकि वह यही चाहती थी कि जल्दी से जल्दी उन्हें आराम हो जाए ताकि वह उन्हें जल्दी गांव भेज सके,,,, उसे इस बात का डर था कि उसकी गैरमौजूदगी में कहीं कमजोरी की वजह से उन्हें चक्कर आ गया कहीं ऊन्हें चोट लगी तो और मुश्किल हो जाएगी।,,,, शुभम बार-बार अपनी मां को मना रहा था,,,, लेकिन इस बार वह खुद का मन होने के बावजूद भी उसे बार-बार इंकार कर दे रही थी जबकि वह दोनों फायदा उठा सकते थे,,,, पर इसमें थोड़ी मुश्किल थी क्योंकि डॉक्टर ने उन्हें काला चश्मा लगाने को दिया था जो कि हमेशा आंखों पर लगाए ही रहना था। इसलिए अब पहले जैसी वह बात नहीं थी कि वह चश्मा उतार दे तो उन दोनों को खुला दौर मिल जाए। शुभम जैसे तैसे करके निर्मला के बदन को इधर-उधर हाथ लगा कर अपने मन को बहला ले रहा था।
लेकिन यह सबसे उसके बदन की प्यास बुझ नहीं रही थी।
एक तो शीतल ने भी उसकी हालत खराब कर रखी थी।
दो दो खूबसूरत नारियों के खूबसूरत मादक बदन का मायाजाल शुभम के मन मस्तिष्क को अपने वश में जकड़ लिया था। इस बदन की मायानगरी के जाल से निकल पाना दुनिया की किसी भी मर्द के बस की बात नहीं थी और ना ही मर्द लोग इस बदन रूपी मायाजाल से निकलने के बारे में कभी सोच भी सकते हैं। तो शुभम की क्या बिसात थी वह तो अभी अभी जवान हो गया था और सही मायने में ठीक से पूरी तरह से औरत के बदन के भूगोल की पूरी जानकारी भी नहीं ले पाया था। शुभम तड़प रहा था अपनी मां को चोदने के लिए लेकिन उसकी मा ही उसे यह मौका नहीं दे रही थी क्योंकि वह जानती थी बस दो चार दिन की बात है जब उसकी मां चली जाएगी तो वह खुद ही पूरी तरह से खुलकर चुदाई का मजा लेगी,,,,।
और जैसे तैसे करके वह दिन भी आ गया जब निर्मला और शुभम दोनों मिलकर उसे रेलवे स्टेशन ट्रेन पर बिठाने के लिए ले जाने लगे,,,, शुभम तो खुश था ही उसकी मां और भी ज्यादा खुश थी।,,, प्लेटफॉर्म पर थोड़ी ही देर में ट्रेन आ गई और निर्मला ने अपनी मां को ट्रेन में बिठा कर उन से विदा
ली,,, ।
यह पल उनके लिए बेहद खुशी का पल था इस पल के लिए वह दोनों ना जाने कितने समय से इंतजार कर रहे थे। दोनों को अब खुला दौर मिल चुका था एक दूसरे में समाने के लिए शुभम और निर्मला रेलवे स्टेशन से वापस लौटते समय कार में बैठे बैठे एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा रहे थे,,,, शुभम बहुत खुश था क्योंकि आज उसकी प्यास बुझने वाली थी चार-पांच दिनों से वह भी तड़प रहा था निर्मला की भी यही हालत थी,,,, वह भी घर पहुंचने का इंतजार कर रही थी,, निर्मला अपनी आदत अनुसार आराम से गाड़ी चला रही थी जल्दबाजी तो उसे बहुत अच्छी घर पहुंचने की लेकिन किसी भी प्रकार की जल्दबाजी में भी वह गाड़ी की गति को अपनी मर्यादा से ज्यादा नहीं बढ़ने देती थी,,। क्योंकि उसे अच्छी तरह से मालूम था कि कितनी रफ्तार को वह अपने कंट्रोल में कर सकती है।
शाम ढल चुकी थी अंधेरा छाने लगा था निर्मला को अच्छी तरह से मालूम था कि अशोक तीन-चार दिनों के लिए बाहर गया हुआ है और घर पर उसके और शुभम के सिवा तीसरा कोई भी नहीं था,,,, निर्मला के मन में ढेर सारी भावनाएं जन्म ले रही थी और वह सारी भावनाएं शारीरिक सुख से जुड़ी हुई थी,,,,, उसे वह दिन याद आने लगा जब वह शादी करके नई-नई घर में आई थी,,,, उस समय उसका पति अशोक उसे बेहद प्यार करता था खासकर के बिस्तर पर,,,, शादी से पहले भी निर्मला को जुदाई के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं था अपनी सहेलियों के मुंह से एकाद दो बार वह चुदाई की बातें सुन चुकी थी,,, लेकिन वह संभोग को प्रेक्टिकली नहीं जानती थी शादी होने के पश्चात जब वह अपने ससुराल आई तो उसका पति अशोक उस से बेहद खुश था वह हर तरह की सुख निर्मला को देने लगा बिस्तर में निर्मला को वह कभी भी कपड़े पहनने नहीं देता था,,, अक्सर जब वह अशोंक के साथ कमरे में होती थी तो वह संपूर्ण रूप से वस्त्र विहीन एकदम नंगी ही होती थी। अशोक उसे कपड़े पहनने ही नहीं देता था हालांकि वह कपड़े खुद अपने ही हाथों से उतारकर निर्मला को पूरी नंगी कर देता था,,, वैसे भी औरत से प्यार करने का यही एक उत्तम तरीका भी था जब तक औरत के बदन से संपूर्ण रूप से कपड़े अलग नहीं हो जाते तब तक उसके सौंदर्य रस का पान ठीक तरह से नहीं किया जा सकता। एक पति को उसकी पत्नी या एक मर्द को एक औरत बिस्तर में संपूर्ण तरह से नंगी ही भाती है। शुरु शुरु में निर्मला के लिए यह एक अजीब सी बात लगती थी उसे अपने पति पर गुस्सा भी आता था लेकिन जब वह निर्मला को नंगी करने के बाद अपनी बाहों में जकड़ता था,,, तो निर्मला का सारा गुस्सा सारा विरोध हवा में फुर्र हो जाता था। आखिरकार वह भी तो थी एक औरत ही उसके भी बदन के कुछ जरूरते थी कुछ चाहती थी,,,। उस समय वह अपने पति की हर हरकत को दिल से स्वीकार कर लेती थी अशोक उसके चुचियों को मुंह में भर कर चूसने के साथ-साथ दांतों से काट भी लेता था जगह-जगह दांत गड़ा देता था लेकिन यह सब निर्मला को उस समय बेहद आनंददायक लगता था,,,, मैं कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि एक मर्द को औरत को इस तरह से प्यार करता है। उसकी सहेलियों से जो बात है वह सुनती थी उससे उसे बस इतना ही ज्ञान था कि मर्द अपने लंड को जो कि वह लंड शब्द को कभी भी खुले शब्दों में अपनी जबान पर नहीं आने दी थी,,,, मर्द अपने लंड को औरत की बुर में डालकर अंदर बाहर करते हुए उसे चोदता है बस इतना ही,,,
निर्मला को संभोग के अध्याय में ज्ञान था। लेकिन जब ऊसका वास्तविकता से सामना हुआ तो उसके मन की सारी धारणाएं धरी की धरी रह गई ऐसा नहीं था कि अपनी धारणाओं को गलत साबित होता देख कर उसे दुख पहुंचा हो,,, बल्कि मर्द द्वारा इस तरह किए जाने वाले प्रेम से तो वह एकदम से आनंदित हो उठी,,,, उसकी सांस चलना बंद हो गई थी जिस समय उसके पति ने अपने होठो को उसकी बुर की गुलाबी पंखुड़ियां से सटाया था,,,,। निर्मला को,, उस समय तो बिल्कुल भी यकीन नहीं हुआ कि वह सपना देख रही है या हकीकत है,, उसका संपूर्ण बदन इस तरह से गनगना रहा था कि मानो उसे बिजली के झटके लग रहे हो,,, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका पति अपनी जीभ को उस स्थान पर इतनी गहराई तक उतार देगा कि जहां तक उसने उसकी कल्पना भी नहीं की थी,,,, एक पल तो उसे अपने पति द्वारा इस तरह की हरकत करने पर बुरा लगने लगा कि इतनी गंदी जगह पर वह अपनी जीभ अपने होंठ लगाकर कैसे चाट सकता है,,,, लेकिन अगले ही पल जीत के द्वारा बुर कीे गुलाबी पंखुड़ियों पर उसके पति के जीभ की थपथपाहट उसके बदन में उत्तेजना की लहर भर दी,,, निर्मला उससे में उत्तेजना के परम शिखर पर पहुंच चुकी थी और मात्र अपने पति के जीभ से ही वह इतना जबरदस्त पानी छोड़ने लगी कि अशोक यह देखकर एकदम से हैरान हो गया,,,, पहली बार में ही वह अनगिनत अत्यधिक स्खलन होकर वह एकदम से मस्त हो गई,,,,, उसी में यकीन नहीं हो पा रहा था की औरत के जीवन में इस तरह का भी सुख होता है। लेकिन अगले ही पल जब उसके पति ने अपने लंड को उसके मुंह में डालकर उसे चूसने के लिए बोला तो वह मारे गिन्न के उल्टी कर दी,,,
शायद औरतों को पहली बार ऐसा पसंद नहीं होता यह सोच कर अशोक ने उससे मैं उसे कुछ नहीं बोला था और अपने नंबर को उसकी बुर में डाल कर पहली बार उसे चुदाई के सुख से मुखातिब किया था। निर्मला भी अपनी जिंदगी में पहली बार अपनी बुर में लंड को ले रही थी इसलिए उसकी भी उत्तेजना और उत्सुकता कुछ ज्यादा ही बढ़ चुकी थी,,,,
इसलिए वह मस्त होकर अपने पति से चुदवा रही थी और ऐसा लगभग एकाद साल तक चला,,,, लेकिन इन सालों के दरमियान उसने कभी भी अपने पति के लंड को मुंह में लेकर नहीं चूसी,,

धीरे-धीरे अशोक को इस बात का ज्ञान हो गया कि उसकी पत्नी निर्मला कभी भी जैसा वह चाहता है उस तरह से उसके लंड को अपने मुंह में लेकर नहीं चुसेगी,,,,। बिस्तर में वह अपनी पत्नी से जिस तरह का सहकार की कामना रखता था उस तरह का सहकार वह नहीं दे पाती थी। इस बात को लेकर दोनों में कहासुनी भी हो जाती थी। अशोक जैसा चाहता था वैसा करने में निर्मला कोई एतराज नहीं था लेकिन वह जिस माहौल में पली बढ़ी हुई थी,,, संस्कार और मर्यादा का पालन करना उसके धर्म में निहित था,,,, वह अपने संस्कार से परे नहीं जा सकती थी एक तरह से संस्कार की मर्यादा में वह बंध़ी हुई थी,,,, ऐसे में वह अपने पति के लिंग को मुंह में लेकर मुखमैथुन नहीं कर सकती थी और ना ही दूसरी औरतो की तरह खुलकर बिस्तर पर अपना जलवा दिखा सकती थीै,,, ईस तरह से निर्मला अपने संस्कार की वजह से खुल नहीं पाती थी उसे बेहद शर्म सी महसूस होती थी और वही बात अशोकं को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी।
बिस्तर में निर्मला अपनी तरफ से कोई भी हरकत नहीं कर पाती थी और ना ही करने को तैयार थी लेकिन अशोक द्वारा की गई सारी हरकत उसे बेहद आनंदित कर देती थी।
इसी वजह को लेकर धीरे-धीरे अशोक का प्यार निर्मला के लिए कम होता गया और जब शुभम का जन्म हुआ तब से तो अशोक लगभग उससे दूर ही रहने लगा,,, वह निर्मला के पास अभी आता था जब उसे उसकी जरूरत पड़ती थी और अपना काम निपटाकर करवट लेकर फिर सो जाता था,,, बरसों से इसी प्रकार का दुख झेल रही निर्मला के जीवन में शुभम की वजह से एक बार फिर से हरियाली आई थी,,, अपने पति के लंड को मुंह में लेने से उसे गिन्न आती थी,, लेकिन जब से वह अपने बेटे के लंड को देखी थी उसके लंड से चुदी थी तब से वह अपने बेटे के लंड को मुंह में लेने के लिए आतुर थी लेकिन अभी भी ऐसा कोई मौका नहीं मिला था कि वह अपने बेटे के लंड को मुंह में ले सके अब तक तो सिर्फ बुर के अंदर डालना और निकालना ही लगा हुआ था,,,
जिस तरह से उसका पति पहली बार उसकी बुर पर अपने होठ रखकर और जीभ को अंदर डालकर उसे चाटा था,,, और उस समय जिस प्रकार का उसे आनंद मिला था उसी प्रकार के आनंद के लिए तड़प रही थी वह भी है चाहती थी कि उसका बेटा भी उसकी बुर पर अपने होठ रखें उसे अपनी जीभ से चाटे,,, उसकी बुर से बेहद प्यार करे उसे मस्त कर दे और ऐसा मौका उसे आज ही मिला था आज वह अपने बेटे के साथ खुलकर मस्ती करना चाहती थी। घर पर उसे कोई रोकने वाला नहीं था कोई टोकने वाला नहीं था,,,, वह बहुत खुश नजर आ रही थी और यही सोचते हुए वह धीरे-धीरे गाड़ी चलाते हुए अपने घर की तरफ बढ़ती चली जा रही थी कि तभी एक रेस्टोरेंट के आगे वह अपनी गाड़ी रोक दी,,,


क्या हुआ मम्मी यहां गाड़ी क्यों रोक दि,,,।

बेटा अब घर पर चलकर कौन खाना बनाएं इस से अच्छा है कि मैं यही से कुछ खाने के लिए ले लेती हूं,,,

ठीक है मम्मी मैं यहीं इंतजार करता हूं आप लेकर आओ,,
( निर्मला रेस्टोरेंट की तरफ जाने लगी और शुभम कार में बैठे बैठे अपनी मां को जाते हुए देख रहा था निर्मला सीढ़ियां चढ़ते हुए आगे बढ़ रही थी और मैं जिस तरह से सीढ़ियां चढ़ रही थी साड़ी के अंदर उसकी भरावदार गांड की लचक कुछ ज्यादा ही कामुक लग रही थी,,, निर्मला की मटकती हुई गांड को देख कर शुभम का लंड एक बार फिर से खड़ा हो गया,,, वह तब तक अपनी मां को देखता रहा जब तक वह रेस्टोरेंट में दाखिल नहीं हो गई,,,, वह मन ही मन सोच लिया था कि आज घर पहुंचते ही अपनी मां की मस्त गांड से जी भर के खेलेगा,,,, थोड़ी ही देर बाद हाथों में खाने का सामान लेकर वहां रेस्टोरेंट से बाहर निकलती हुई नजर आई,,,,
और दोनों गाड़ी में बैठकर अपने घर की तरफ जाने लगे,,, दोनों को घर पर जल्दी पहुंचने का इंतजार था,,,,,
03-31-2020, 03:47 PM,
#98
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
थोड़ी ही देर बाद निर्मला की गाड़ी घर के गेट पर आकर खड़ी हुई और शुभम एक पल की भी देरी किए बिना गाड़ी से नीचे उतर कर जल्दी से मेन गेट खोल दीया। बिरबलाची एक्सीलेटर पर अपने पैर का दबाव देते हुए कार कोे गेट के अंदर ले आई,,,, गाड़ी को गैराज में पार्क करके वह घर के दरवाजे पर आकर अपने पर्स से घर की चाबी निकालने लगी
पर्स में से चाबी छोड़ते समय उसकी साड़ी का पल्लू कंधे से नीचे गिर गया और उसके दोनों बड़े बड़े खरबूजे शुभम की आंखों के सामने अपना नृत्य दिखाने लगे,,, निर्मला लो कट ब्लाउज पहन रखी थी इसलिए दोनों खरबूजे ऐसा लग रहा था कि अभी ब्लाऊज से कूदकर बाहर आ जाएंगे,,, सुभम से रहा नही गया और वह हांथ आगे बढ़ाकर ब्लाउज के ऊपर से ही चुचियों को दबा दिया,,,,

आाऊच्च,,,, क्या कर रहा है दरवाजे को खोलने दे तुझसे तो जरा भी सब्र नहीं होता,,,( इतना कहते हुए वह दरवाजे का लॉक खोलने लगी,,) अरे मैं कहीं भागी थोड़ी जा रही हूं,,,,
( दरवाजा खोल कर घर में प्रवेश करते हुए) अब तो दिन भी अपना है और रात भी अपनी है,,,,।


क्या करूं मम्मी तुम्हारी चुचियों है इतनी खूबसूरत और बड़ी-बड़ी कि इन्हें देखते ही दबाने का मन करने लगता है।
( शुभम की बात सुनकर मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए दरवाजा लॉक करके)
दबाने का मन करता है तो दवा भी लेना और पी भी लेना लेकिन आराम से इतना कि जल्दबाजी दिखाएगा तो ना तो तू ही ठीक से मजा ले पाएगा ओर ना मैं ही,,,, चल अब जल्दी से हाथ मुंह धो कर फ्रेश हो जाते हैं भूख भी बहुत लगी है,,,,
( इतना कहकर वह दोनों हाथ पैर धोने चले गए और थोड़ी ही देर में फ्रेश होकर डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गए,, डाइनिंग टेबल पर निर्मला और शुभम दोनों आमने सामने बैठे हुए थे।
निर्मला रेस्टोरेंट से लाई खाने हथेली को खोलने लगी और उसमें से सब्जियां और चपाती बाहर निकाल कर प्लेट में रखने लगी तभी शुभम पास में ही रखें सेव के बाऊल मैसे एक सेव निकाल कर खाने लगा यह देख कर निर्मला मुस्कुराते हुए बोली,,,

लगता है तुझे सेव काफी पसंद है,,,,

हां मम्मी से वो तो मुझे बहुत पसंद है लेकिन इन छोटे-छोटे से उसे मेरा मन नहीं भरता जब से मैंने तुम्हारे खरबूजों का स्वाद चखा हूं तबसे उनके सामने यह सेव भी फीकी पड़ने लगी हैं ।

( निर्मला खाना परोस चुकी थी और मुस्कुराते हुए सेव के बगल में पड़े केले के गुच्छों में से एक केला तोड़कर उसे छीलने लगी,,, और छिलने के बाद ऊसे मुंह मे डालते हुए बोली,,,)

मुझे तो केला पसंद है,,,
( अपनी मां की यह बात सुनते ही वह तपाक से बोला)


किसका?

तेरा और किसका,,,, मेरा अब इन छोटे-छोटे केलों से मन नहीं भरता,,,, छोटे केले कब अंदर जाकर कब खत्म हो जाते हैं इस बात का पता ही नहीं चलता लंबा केला होता है तो इसका एहसास होता रहता है कि तुमने कुछ खाया है,,,
( निर्मला की बात सुनकर शुभम को बहुत मजा आ रहा था वह फिर बोला,,,।)

उस छोटे से पहले से क्यों पेट भर रही होै तुम्हारे सामने बड़ा बड़ा केला पड़ा है।,,,

वह केला भी खाऊंगी लेकिन समय आने और इत्मीनान से,,,


लेकिन मम्मी मेरा केला तो पूरी तरह से तैयार हो चुका है,,,

तू अब बहुत शैतान हो गया है,, मुझसे इस तरह की बातें करने में तुझे शर्म नहीं आती,,

नहीं पहले आती थी लेकिन अब तो बिल्कुल नहीं आती,,, तुम्हें आती है क्या,,,?

हां मुझे तो आती है,,,, (निर्मला मुस्कुराते हुए प्लेट को शुभम की तरफ बढ़ाते हुए बोली,,,।)

अच्छा,,,,,, जब अपनी दोनो टांगे फैलाकर मेरे लंड को अपनी बुर में लेकर चुदवाती हो तब तो नहीं आती,,,
( शुभम की इस बात पर वह उसे आंखें तैर्ते हुए देख कर बोली,,,)

हां,,, तब नहीं आती,,,
( इस तरह की अश्लील बातें करने में दोनों को बेहद मजा आ रहा था बल्कि निर्मला तो मैं तो कभी सोची नहीं थी कि उसका बेटा या वह खुद ही इस तरह की बातें आपस में करेंगे लेकिन,, हालात और माहौल और दोनों के बीच का रिश्ता ही इस तरह का कुछ हो गया था,,की इस तरह की अश्लील बातें आपस में करना दोनों के लिए एकदम सहज होने लगा था।
और दोनों को इस तरह की अश्लील गंदी बातें करने में बेहद आनंद की प्राप्ति भी हो रही थी। और इस तरह की बातें आपस में करना दोनों के लिए अच्छी बात भी थी। क्योंकि जिस तरह से निर्मला अपने बेटे के साथ खुलकर मजा करना चाहती थी उसके लिए आपस में बातचीत के दौरान इतना खुलना उचित था। निर्मला और शिवम दोनों एक दूसरे को देखते हुए मुस्कुरा भी रहे थे और खा भी रहे थे,,। निर्मला खाना खाते समय मन-ही-मन इरादा बना चुकी थी कि आज की रात वह अपने बेटे को अपनी रसीली बुर का स्वाद चखा कर ही रहेगी,,। वह आज पूरी तरह से अपनी बेटे के साथ मजा लेना चाहती थी अपने पति के लंड को मुंह में लेने से गिन्न का अनुभव करने वाली निर्मला मन ही मन यह भी ईरादा बना रही थी कि आज वहां अपने बेटे के खड़े मोटे और लंबे लंड को अपने मुंह में लेकर चूस कर देखेगी कि क्या सच में औरतों को लंड चूसने में आनंद की अनुभूति होती है।
कैसा लगता होगा जब मोटा लंड मुंह में जाता होगा वह कैसे हरकत करेंगी जब सच में वह अपने बेटे के मोटे लंड को अपने मुंह में लेकर लॉलीपोप की तरह चुसेगी,,,, खाना खाते समय यह सब सोचकर उस की उत्सुकता और भी ज्यादा बढ़ती जा रही थी और साथ ही इस तरह के मादक ख्यालात की वजह से,,, उस की रसीली बुर से नमकीन रस का स्राव हो रहा था। जिसको वह साफ-साफ महसूस कर पा रही थी हर निवाले के साथ उसके बदन में उत्सुकता के साथ-साथ कामोत्तेजना भी बढ़ती जा रही थी,,, वह लगातार अपने बेटे की तरफ देखकर मंद मंद मुस्कुरा रही थी और उसकी मुस्कुराहट में कामुकता छलक रही थी। अपनी मां की एक सीमा तक मुस्कुराहट को देखकर शुभम की ऊत्तेजना बढ़ने लगी थी जिसका सीधा असर उसके पैंट में हो रहा था। जिसे वह बार-बार दूसरे हाथ से एडजस्ट कर ले रहा था और इस हरकत को निर्मला भी बखूबी पहचान रही थी। निर्मला से अपने बेटे का इस तरह से कसमसानाऔर उत्तेजित होना देखा नहीं गया और वह बोली,,,।

लगता है तुम्हें केला खिलाने का मन कर रहा है,,,,

हां मम्मी और वह भी पूरा,,,( इतना कहने के साथ ही वह अपने एक पेऱ को आगे बढ़ाकर अपनी मां के पैरों की एड़ियां से रगड़ने लगा,,,, शुभम पूरी तरह से उत्तेजना के सागर में डुबकी लगा रहा था और उसका साथ उसकी मां बराबर दे रही थी क्योंकि वह भी दूसरे पर से शुभम के पैर को रगड़ना शुरू कर दी,,, दोनों बेहद उत्तेजित नजर आ रहे थे,,,


क्या मैं तेरा केला पूरा खा पाऊंगी,,,,,


खां जाओगीे और पूरा पेट भर के खाओगी,,,, ( शुभम निवाला मुंह में डालते हुए बोला)


तुझे शायद पता नहीं जब मैं पहली बार तेरे मोटे लंबे लंड को देखेगी तो मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह तेरा लंड है,,
( निर्मला इतना कहने के साथ ही पानी का गिलास लेकर उसे पीने लगी,,)


तुम्हें ऐसा क्यों लगा था मम्मी,,,


क्योंकि तेरे पापा का लंड तेरे से पतला और तेरे लंड की लंबाई से आधा ही होगा,,,,,( निर्मला अफसोस जताते हुए बोली)

तब तो मम्मी सच में तुम्हें कभी भी मजा नहीं आता होगा,,


हां ऐसा ही है लेकिन तब मुझे संतुष्टि थी मुझे यह नहीं पता था ना कि लंड इतना बड़ा भी होता है क्योंकि मैंने तो अपनी जिंदगी में तो तेरे पापा का हीं देखी थी,,,,,।


सिर्फ पापा का तुम सच कह रही हो मम्मी,,,,


हां रे मैं बिल्कुल सच कह रही हूं लेकिन तू ऐसा क्यों पूछ रहा है,,,।

नहीं बस ऐसे ही,,,( वह बात को बदलते हुए दूसरा निवाला मुंह में डालने लगा,,)

नहीं तू ऐसे ही नहीं पूछ रहा है कुछ तो बात है,,,। ( निर्मला आशंका जताते हुए बोली वह कुछ कुछ समझ रही थी कि वह क्या कहना चाह रहा है लेकिन वह खुद उसके मुंह से सुनना चाहती थी।)
03-31-2020, 03:47 PM,
#99
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
नहीं मम्मी ऐसी कोई बात नहीं है मैं तो बस यूं ही पूछ लिया था।


नहीं मैं मान ही नहीं सकती तेरे मन में जरूर कुछ आया है तभी तू मुझसे यह पूछ रहा है,,, देखा सच सच बता दे तेरे और मेरे बीच में कोई भी ऐसी बात नहीं होनी चाहिए कि तु मुझसे ना कर सके और मैं तुझसे कुछ ना कह सकु अब तो हम दोनों के बीच कुछ भी छुपा नहीं रहना चाहिए तेरे मन में जो आए वह मुझे बोल सकता है इसलिए डर मत और बोल दे,,,।
( निर्मला शुभम के मन से डर निकाल रही थी वह जानती थी कि शुभम जरूर ऐसा कुछ बोलने वाला है जिसे बोलने में उसे शर्म महसूस हो रही है या तो वह डर रहा है,,, इसलिए तो उसकी बात सुनने की उत्सुकता निर्मला के मन में भी बढ़ती जा रही थी,,, अपनी मां से इस तरह के तसल्ली भरे शब्द सुनकर उसके मन का डर निकलने लगा और वह भी अपने मन की बात बताते हुए बोला।)

मम्मी मैं बताता हूं लेकिन तुम गुस्सा मत करना मेरे मन में बस यूं ही आ गया था,,,।

बेटा तू बिल्कुल चिंता मत करो अब हम दोनों के बीच कुछ भी छुपाने जैसा नहीं है इसलिए तू बिंदास बोल,,,
( इतना बोलते हुए निर्मला ने आखिरी में वाला भी अपने मुंह में डालकर उसे चलाने लगी लगभग दोनों ने खाना खा चुके थे,,, शुभम खाना खाकर पानी पीते हुए बोला,,,।)

मम्मी तुम इतनी ज्यादा खूबसूरत हो सेक्सी हो तुम्हारा बदन एकदम खूबसूरत है,,( अपने बेटे के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर निर्मला मुस्कुरा रही थी) तुम इस उम्र में भी इतनी ज्यादा सेक्सी और खूबसूरत लगती हो तो अपने कॉलेज के दिनों में तो तुम और भी ज्यादा खूबसूरत लगती होगी,,,


हां लेकिन तेरे कहने का मतलब क्या है,,


मेरा मतलब यही है कि जब तुम्हें देखकर मेरा मन मचलने लगता है तब तो उस समय तुम्हारे साथ में पढ़ने वाले लड़कों की तो हालत खराब हो जाती होगी जरूर वह तुम्हारे पीछे पड़े होंगे,,,,
( शुभम की यह बात सुनकर उसके चेहरे की रौनक बढ़ने लगी क्योंकि वह जो भी कह रहा था वह बिल्कुल सच था वह अपनी जवानी के दिनों में और भी ज्यादा सेक्सी लगती थी और लड़के भी उसके पीछे अक्सर घूमते रहते थे लेकिन वह शुभम के मुंह से असली बात जानना चाहती थी जोंकि वह गोल गोल घुमा रहा था।)

हां बेटा जो तू कह रहा है वह बिल्कुल सच है लड़के अक्सर मेरे आगे पीछे घूमा करते थे लेकिन तू कहना क्या चाहता है।


मम्मी मैं यही कहना चाहता हूं कि कॉलेज में भी तुम्हारे बॉयफ्रेंड तो होंगे ही,,,( इतना सुनते ही उसकी भौंहे तन गई )
और वह भी हो सकता है कि तुम्हारे बॉयफ्रेंड ने तुम्हें,,,,
तुम्हें,,,मेरा मतलब है,,,,


तू इतने पर ही अटके रहेगा या आगे भी कुछ बोलेगा मैं तुझसे पहले भी कह चुकी हूं कि तू डर मत बोल दे जो बोलना है,,,
( निर्मला अपने बेटे के मुंह से सुनना चाहती थी लेकिन वह हड़बड़ा रहा था इसलिए उसकी हड़बड़ाहट दूर करने के लिए वह उसका हौसला बढ़ाने लगी,,।)

मम्मी मैं यह कह रहा था कि तुम्हारा बॉयफ्रेंड है तो तुम्हारी चुदाई जरूर की होगी,,,, और तुम उसका लंड जरूर देखी होगी,,,,,

( इतना सुनते ही निर्मला जोर-जोर से हंसने लगी शुभम को क्या समझ में नहीं आया कि आपकी बात सुनकर उसकी मां क्यों हंस रही है,,, आश्चर्य और उत्सुकता से अपनी मां की तरफ देख रहा था तभी वह हंसते हुए बोली,,,,।)

मुझे मालूम था कि तेरे मन में यही खुराफाती शैतानी ख्यालात चल रहा है।,,,, ऐसा कुछ भी नहीं है मैं जानती हूं कि बहुत लोगों के दिमाग में यही सब ख्याल आता है।,, ऐसा नहीं है कि, मेरे पीछे लड़के ना पड़े हो लगभग कॉलेज के सभी लड़के मेरे पीछे पड़े थे लेकिन,, उनमें से किसी को भी मैंने अपनी करीब नहीं आने दी,,,, इसलिए तो मैं जो कह रही हूं आप बिल्कुल सही है,,, मैं अपने जीवन में सिर्फ दो लोगों के ही लंड को देख चुकी हूं। तेरे पापा का और तेरा,,,।
( अपनी मां की बात सुनकर शुभम के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नजर आने लगे दोनों खाना खा चुके थे,,,, तभी निर्मला बर्तन को समेटते हुए बोली,,,)

बस अब मुझे यूं बातों में वक्त जाया नहीं करना है और यह बर्तन में सुबह साफ कर लूंगी,,, मैं अपने कमरे में जा रही हुं तु जल्दी आ जाना।
( इतना कहकर वह अपने कमरे की तरफ चल दी)
03-31-2020, 03:47 PM,
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
निर्मला जा चुकी थी शुभम कुछ देर तक वहीं बैठा रहा और खुद देख कर और अपनी मां के बीच हुई गंदी बातों के बारे में सोचता रहा,,,। वह मन ही मन सोचने लगा कि उसकी मां पूरी तरह से बदल चुकी है वाह पहले कभी भी अपनी मां के मुंह से इस तरह के अश्लील शब्दों को भूल से भी नहीं सुना था लेकिन अब तो वह खुले तौर पर उससे खुलकर बातें कर रही थी। लेकिन वह अपनी मां के इस व्यवहार और रवैये से बेहद खुश और आनंदित था । क्योंकि वह तो खुद ही अभी जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था और उसे ऊसकी जवानी को मांजने का पूरा साधन उसे मिल चुका था। शुभम के नजरिए में निर्मला अब उसकी मां नहीं बल्कि एक खूबसूरत जवानी से भरपूर मदमस्त बदन वाली औरत थी। जिसे पाने के लिए मोहल्ले के सारे मर्द हमेशा लालायित रहते हैं और तो और खुद उसके दोस्त भी उसकी मां को भोगने की कल्पना करके ना जाने कितनी बार अपने ही हाथों से अपना लंड हिलाकर पानी भी निकाल चुके हैं। शुभम की आंखों के सामने हमेशा उसकी मां का खूबसूरत बदन किसी बेहद स्वादिष्ट पकवानों से भरी हुई थाली के समान घूमती रहती थी। वह निर्मला को पूरी तरह से प्राप्त कर चुका था,,, उसके बेहद खूबसूरत बदन को भाग चुका था लेकिन फिर भी निर्मला के बदन की कशिश इतनी गहरी थी कि,,, शुभम को सोते जागते उठते बैठते हमेशा उसकी आंखों के सामने निर्मला के खूबसूरत बदन की झलक नजर आती रहती थी। निर्मला के खूबसूरत बदन के हर एक अंग के बारे में सोचते हुए शुभम घंटों गुजार देता था,,,। शुभम की किस्मत जोरों पर थी तभी तो निर्मला खुद आगे चलकर उसके साथ बिना किसी दबाव के बिना जोर जबरदस्ती के उसके साथ संबंध बनाई थी,,,। और दोनों के बीच का यह शारीरिक संबंध पूरी तरह से गहरा हो चुका था लेकिन अभी तक दोनों,,, सिर्फ किनारे पर तेर कर ही मजा ले रहे थे अभी तो उन दोनों को समुद्र के बीचो-बीच जाकर असली तैराकी का मजा लेना बाकी था,,, निर्मला की खूबसूरत बदन की बाल्टी जवानी के रस से एकदम छलक रही थी जिसमें से शुभम के ऊपर तो मात्र कुछ छींटें ही पड़े थे। निर्मला की जवानी के रस में पूरी तरह से शुभम को अभी भीगना बाकी था। और भीगने का सही समय आ चुका था।,,,, कमरे के अंदर उसके सपनों की रानी है उसका बेसब्री से इंतजार कर रही थी।शुभम के पजामे मे उसका लंड पूरी तरह से तनकर तंबू बनाए हुए
था।,,, शुभम भी अब वहां रुक कर अपना कीमती वक्त जाया नहीं करना चाहता था इसलिए वह कुर्सी पर से उठा और सीढ़ियां चढ़ता हुआ अपनी मां के कमरे की तरफ जाने लगा चलते समय उसका लोग पूरी तरह से तंग कर किसी लोहे की रोड की तरह पजामे में तंबू बनाए हुए था। कोई और समय होता तो वह पेंट में बने इस तंबु को छुपाने की पूरी कोशिश करता लेकिन घर में,,, उसके और उसकी मां के सिवा दूसरा कोई भी नहीं था और उसकी मां से छुपाने जैसा उसके पास सब कुछ भी नहीं था इसलिए वह बिंदास हो करके अपना पैंट के ऊपर से ही मसलते हुए अपनी मां के कमरे की तरफ चला जा रहा था। अपनी मां के कमरे के करीब पहुंचा तो देखा कमरे का दरवाजा पूरी तरह से खुला हुआ था और अंदर ट्यूबलाइट कि सफ़ेद रोशनी पूरे कमरे को रोशन किए हुए थी,, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था उसे आज अपनी मां के कमरे में जाने से थोड़ा सा घबराहट महसूस हो रही थी और साथ में उत्सुकता भी बनी हुई थी,,,,
इस तरह का डर घबराहट और उत्सुकता के साथ साथ उत्तेजना का अनुभव हर मर्द को अपनी सुहागरात के दिन ही महसूस होती है और ऐसा अनुभव शुभम को भी हो रहा था लेकिन उसकी सुहाग़रात नहीं थी क्योंकि वह अभी तक पूरी तरह से कुंवारा ही था। हालांकि वह सामाजिक तौर पर कुंवारा था लेकिन,,, और शारीरिक तौर पर वह पूरी तरह से मर्द बन चुका था,,, लेकिन संपूर्ण तौर पर मर्द बनने की परिपक्वता अभी भी बाकी थी लेकिन इसका सुचारु रुप से ट्रेनिंग चालू थी। और वैसे भी कहा जाए तो आज शुभम की खास तौर पर सुहागरात ही थी भले ही बिस्तर पर,,, उसकी पत्नी ना होकर उसकी मां ही थी। क्योंकि निर्मला भी इसी पल का बेसब्री से इंतजार कर रही थी जिस तरह का विरोध उसे अपनी सुहागरात के दिन अपने बदन में महसूस हो रहा था,,, जिस तरह की घबराहट और जिस तरह की उत्सुकता उसे पुरुष संसर्ग से मिलने वाला था उसी तरह का अनुभव आज वह कर रही थी।,,
शुभम का दिल जोरों से धड़क रहा था अभी तक वह दरवाजे पर ही खड़ा होकर कमरे के अंदर का जायजा ले रहा था,,, उसकी नजर बिस्तर पर गई तो आंखें एकदम से चमक उठी क्योंकि उसकी मां बिस्तर पर पीठ के बल लेटी हुई थी और उसकी एक टांग घुटनों से मुड़ी हुई थी जिसकी वजह से उसकी साड़ी जांघो के नीचे तक सरक गई थी और उसकी सुडौल मोटी मोटी मांसल दूधिया रंग की चिकनी चांद है ट्यूब लाइट की रोशनी में और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। शुभम की नजर मिलते ही निर्मला की मोटी मोटी जांघों पर पड़ी तो उत्तेजना के मारे उसका गला सूखने लगा निर्मला कोई का आभास हो चुका था कि शुभम दरवाजे पर खड़ा है इसलिए वह छत की तरफ नजरें गड़ाए मुस्कुरा रही थी बड़ा ही कामुक नजारा देखने को मिल रहा था,,,,,। यह नजारा देखकर तो सुभम के हांथ पैर ऊत्तेजना के मारे कांपने लगे थे।
शुभम की स्थिति खराब होने लगी थी इस तरह का उत्तेजक नजारा देखकर उसके वजन में उत्तेजना कि बाहर भी दौड़ रही थी जिसकी वजह से उससे वहां रुका भी नहीं जा रहा था और एक अजीब सी घबराहट दिमाग में बनी हुई थी जिसकी वजह से वह अंदर भी नहीं जा पा रहा था काफी देर तक वह दरवाजे पर ही खड़ा होकर अंदर के नजारे का रसपान अपनी आंखों से कर रहा था,,,, निर्मला उत्तेजना के मारे गहरी गहरी सांसे लेते हुए अभी तक बड़ी तेज गति से घूम रहे पंखे को ही देख रही थी,,, ऊसके नथुनों मे से अंदर बाहर हो रही उसकी सांसो के साथ साथ ब्लाउज में केद ऊसी बड़ी बड़ी छातियांे ऊपर नीचे हो रही थी जिसे देख कर शुभम का दिल और जोरों से धड़क रहा था। अपनी मां की सांसों के साथ ऊपर नीचे हो रही बड़ी बड़ी चूचियां को देखकर उससे रहा नहीं गया और वह कमरे में प्रवेश कर गया,,, कमरे में प्रवेश करते ही वह सबसे पहले दरवाजे को लॉक करना ही ठीक समझा वैसे तो पूरे घर में निर्मला और शुभम के सिवा कोई भी नहीं था वह दोनों चाहते तो दरवाजा खुला रखकर भी सब कुछ खुले तौर पर कर सकते थे लेकिन,,, फिर भी शायद बंद कमरे के अंदर कुछ ज्यादा ही मस्ती छा जाती है इस वजह से जरूरत ना होने के बावजूद भी शुभम दरवाजे को लॉक करते हुए अपनी मां को ही देखे जा रहा था,,,, बिस्तर पर पीठ के बल लेटी हुई,,, हुस्न की मल्लिका,, निर्मला जब अपने बेटे को दरवाजा लॉक करते हुए देखेी तो उसका बदन मारे उत्तेजना के कसमसाने लगा और वह अपने बेटे की तरफ देख कर मुस्कुराने लगी,,,, शुभम फिर से दरवाजा लॉक करके वहीं खड़ा होकर फिर से अपनी मां की तरफ देखने लगा और उसकी मादक मुस्कान देखकर उसके पैजामे का तंबू और ज्यादा तन गया।,, वह वहीं खड़ा हो कर के अपनी मां को कसमसाते हुए देख रहा था,,, निर्मला के भजन में उत्तेजना की थी तैयारी में रही थी उसके बदन का पोर पोर शुभम की बाहों में समा जाने के लिए आतुर था। वह अपनी उत्तेजना को अपने काबू में नहीं रख पा रही थी और अपने दोनों हाथ को पीछे की तरफ ले जाकर के अंगड़ाई लेते हुए,,, अपने बदन में बेहद कामुक तरीके से हरकत कर रही थी अंगड़ाई लेते हुए वह कभी अपने नितंबों को बिस्तर से ऊपर की तरफ हल्के से उठा देती तो कभी अपनी छातियों को ऊपर उठाकर ऐसा जताने की कोशिश करती मानो वह,,, अपनी दोनों बड़ी बड़ी छातियों को छत से सटा देगी,,, अंगड़ाई लेती हुई निर्मला बिस्तर पर एकदम खुली किताब की तरह लग रही थी जो कि अपने किताब के हर पन्ने को खोलने के लिए बेहद बेसब्र नजर आ रही थी। शुभम का हाथ खुद-ब-खुद पजामे के ऊपर से उसके लंड पर आ गया था और यह नजारा देखकर निर्मला उसकी तरफ करवट लेकर घूमते हुए बोली,,,।

अब वहीं खड़े ही रहोगे या मेरे करीब आओगे,,,,,
( यह निर्मला का बेसब्र निमंत्रण था,,,, और उसका निमंत्रण पाकर शुभम अपने कदम आगे बढ़ाते हुए बिस्तर के करीब जाने लगा,,,, निर्मला को ंऊसकें पेजामें मे बना उसका खुंटा,,, किसी बेहद नुकीला हथियार की तरह नजर आ रहा था जौकी उसकी बेहद नाजुक बदन को भेदने के लिए एकदम तैयार था,,,। पजामें में तना हुआ तंबू देखकर निर्मला के मुंह में पानी आ गया। जिसे वह मुंह में लेकर चूसने का पूरा मन बना चुकी थी वह उस के बेहद करीब था। जी मैं तो आ रहा था कि वह आगे बढ़कर के पजामे को खींचकर नीचे सरका दे और उसके खड़े लंड को हाथ में पकड़ कर सीधा मुंह में उतार कर उसे चूसना शुरू कर दें,,। लेकिन उसके पास समय बहुत अच्छा अभी तो पूरी रात बाकी थी इसलिए जो भी करना था धीरे-धीरे करना था ताकि वह जैसे फूलों में से भंवरा रसों को चूस चूस कर उसके मीठे रस का मजा लेता है उसी तरह वह भी सारी रात अपने बेटे के दमदार लंट मे से सारा रस चूस कर मस्त हो जाए। शुभम बिस्तर के करीब कदम बढ़ाते हुए कभी वह अपनी मां की बड़ी-बड़ी चूचियों को देखता तो कभी उसकी ऊजली नंगी दूधिया जांघों को देखकर मस्त होता जाता,,, वह बिस्तर के बिल्कुल करीब पहुंच गया था उसकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी,,वह अपना एक हाथ बढ़ाकर अपनी हथेली को उसकी मांसल नंगी जांघों पर रख दिया,,, और हथेली को जांघों पर रखते ही उसे कस कर अपनी हथेली में दबोच लिया,,,, शुभम की इस हरकत पर निर्मला के मुंह से उत्तेजनात्मक सिसकारी निकल गई,,,,

सससससस,,,,,, हहहहहहहह,,,,,, शुभम,,,,

( निर्मला के मुंह से इतना निकलना था कि वह अपनी मां की नंगी जांघों को चूमना शुरू कर दिया,,,,, वह लगातार अपनी मां की गोरी गोरी मक्खन जैसी जांघों पर अपने होंठ घुमाने लगा,,, लगभग वाह जांघों को अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया था शुभम के बदनं में पूरी तरह से उत्तेजना भर चुकी थी। अपने बेटे की इस हरकत की वजह से निर्मला भी कामोत्तेजना का अनुभव कर रही थी और उसका बदन कसमसा रहा था धीरे धीरे जिसकी वजह से उसकी शाडी और ज्यादा ऊपर सरकने लगी,

शुभम पागलों की तरह अपनी मां के मांसल जांघों को ही चुमे जा रहा था। और चुमता भी क्यों नहीं निर्मला का बदन का हर एक पोर, हर एक अंग बेहद मांसल और मक्खन की तरह चिकना था। शुभम इतना ज्यादा उन्मादक स्थिति में पहुंच चुका था कि वह अपनी मां की जांघों को चूमते हुए दोनों हाथों से ऊसकी मोटी चिकनी जांघो को भी जोर जोर से दबा रहा था।,,, निर्मला की उत्तेजना हर पल बढ़ती ही जा रही थी उसके मुंह से गरम ंसिसकारियों की आवाज आना शुरू हो गई थी।,,, अपने बेटे की चाहत और उसका पागलपन देखकर निर्मला के मन में उसके मन में दबी ख्वाहिश जगने लगी वह चाह रही थी कि उसका बेटा खुद उसकी पैंटी को नीचे सरका कर उसकी रसीली बुर पर अपने तपते होठ रखकर उसे खूब चाटे।,,, यह ख्याल और ख्वाइश उसके मन में आते ही उसके शरीर में उत्तेजना की लहर दौड़ में लगी वह उत्तेजना के मारे अपने बदन को खासकर के बड़े-बड़े भारी नितंबों को बिस्तर से ऊपर की तरफ उचका ले रही थी,,, खास करके वहां यह हरकत अपने बेटे को उस रसीली बुर की तरफ आकर्षित करने के लिए कर रही थी लेकिन वह तो उसकी जांघो को ही चुमने चाटने में व्यस्त और मस्त हो रहा था।,,,, निर्मला की धड़कनें बढ़ने लगी थी उसकी सांसो की गति के साथ साथ उसकी ब्लाउज के अंदर कैद बड़े-बड़े खरबूजे भी ऊपर नीचे हो रहे थे जो कि बड़े ही उन्मादक लग रहे थे। शुभम पागलों की तरह अपनी हथेलियों को की मां की जांघो के चारों तरफ घुमा रहा था रह रह कर वह अपनी हथेली मैं जानू को कब का दबोच भी ले रहा था जिसकी वजह से निर्मला की सिसकारी और ज्यादा तेज हो जाती थी


सससहहहह,,,, आहहहहहह,,,, शुभम तेरी ईन हरकतो ने मुझे आज अपनी सुहागरात की रात याद दिला दिया।,,,,,

ऐसा क्यों मम्मी,,,,, (वह अपनी मां की जांघों को जीभ से चाटता हुआ बोला।)

तुझे इस तरह से मेरी जांघो को चूम चाट रहा है मेरे बदन में अजीब सी खलबली मची हुई है,,,, तेरी इन हरकतों से मुझे मेरी सुहागरात याद आ गई,,, ऐसी ही घबराहट उत्तेजना और कसमसाहट मुझे उस दिन महसूस हुई थी जब तेरे पापा ने पहली बार मेरे बदन को छुआ था,,, कसम से ऊस पल की कसमसाहट मुझे आज अपने बदन में महसूस हो रही है।,,,
( निर्मला जानबूझकर अपने बेटे से यह बात बोल रही थी क्योंकि वह चाहती थी कि किसी भी तरह से उसका बेटा उसकी रसीली बुर को अपनी जीभ से चाटे,,, बरसो गुजर गए थे उसकी बुर पर किसी मर्द की जीभ का स्पर्श,,, उसके होंठों का स्पर्श नहीं हुआ था,,,, )

कैसी कसमसाहट मम्मी,,,, क्या किया था उस दिन पापा ने,,,
( शुभम अपनी मां की नजरों से नजरें मिलाता हुआ बोला,,
निर्मला के लिए भी यही सही मौका था अपने दिल की बात को शुभम से बताने के लिए वह , बातों ही बातों में शुभम से बता देना चाहती थी कि उसे क्या अच्छा लगता है,,,और वह क्या करवाना चाहती है इसलिए वह बोली,,,।)

जाने दे बेटा अब पिछली बातों को याद करके क्या फायदा उस समय का कुछ और था अब वह समय लौटकर तो आने वाला नहीं है,,,( निर्मला बात को घुमाते हुए बोली वह जानती थी कि उसके सा बोलने पर शुभम जरूर उससे पूछेगा इसलिए वह उसकी उत्तेजना को बढ़ाते हुए हल्के से अपनी टांग को थोड़ा सा खोल दी,,, जिसकी वजह से उसकी साड़ी पूरी तरह से नीचे सड़क पर कमर तक पहुंच गई और उसकी मरून रंग की मखमली पैंटी नजर आने लगी,,,, निर्मला के बदन में कोई इस हरकत की वजह से शुभम की नजर निर्मला के ठीक जांघों के बीच ऊसकी मरुन रंग कीे पैंटी पर पड़ी,,, और उसके बाद देने में यह नजारा देखकर उत्तेजना की लहर दौड़ गई,,, एक बार फिर से उसके खुद के ऊपर उसका कंट्रोल नहीं रहा और वहां अपनी दोनों हथेलियों में अपनी मां की नंगी जांघों को दबोच ते हुए बोला,,,,।)

बोलो ना मम्मी क्या किया था पापा ने उस दिन,,,,

तू क्या करेगा जानकर सुभम, बेवजह मेरी भी प्यास बढ़ जाएगी,,,,

नहीं मम्मी तुम को बताना ही होगा आखिर मैं भी तो सुनूं कि पापा ने उस दिन ऐसा क्या किया था कि जो आपके बदन में अजीब अजीब सी कशमशाहट होने लगी थी,,,
( अपने बेटे की यह बात सुनकर निर्मला मन ही मन में सोचा कि यही सही मौका है अपने मन की बात बताने का इसलिए वह अपने बेटे की आंखों में बड़े ही नशीली और कामुक अदा से देखते हुए बोली,,।)

बेटा उस दिन जैसे ही तेरे पापा कमरे में आए आते ही मुझे अपनी बाहों में दबोच लिया और अपने होठों को मेरे गुलाबी होठों पर रखकर चूसना शुरू कर दिए,,,( शुभम बड़े ध्यान से सुन रहा था।) जिस तरह से तेरे पापा ने पूरे जोश के साथ मुझे अपनी बाहों में भरा था मुझे तो ऐसा लग रहा था कि मेरी हड्डियां चटक जाएंगी,,,

क्या सच में मम्मी,,,( शुभम आश्चर्य के साथ बोला)

हां बेटा,,,, शुरु-शुरु में तेरे पापा ऐसे ही थे और उस दिन तो उनकी पहली रात थी इसलिए कुछ ज्यादा ही जोश में थे,,

फिर क्या हुआ मम्मी,,,( शुभम मक्खन जैसी जांघो को हल्के-हल्के सहलाता हुआ बोला,,)

फिर क्या तेरे पापा ने तो ब्लाउज के ऊपर से मेरी दोनो चुचियों को पकड़कर दबाना शुरु कर दिए,,,, मुझे बहुत दर्द कर रहा था लेकिन वह नहीं माने और अगले ही पल मेरे बदन से ब्लाउज और मेरी ब्रा दोनों उतर चुकी थी और वह मन लगाकर मेरी चूचियों को पी रहे थे,,,,( अपनी मां की यह सब बातें सुनकर उत्तेजना के मारे शुभम का गला सूखने लगा था और शुभम के चेहरे पर बदलते हाव भाव को निर्मला अच्छी तरह से देख रही थी और समझ रही थी,,,,।)


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