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RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
कोमल मुस्कुरा कर कहती, "तू ही है छोटू मोहल्ले में जो मेरा हर काम कर देता है." छोटू अपनी तारीफ सुन फूला न समाता फिर कोमल से पूछता, “कोमल क्या में इमली के पत्ते तोड़कर खा लूं?"
कोमल कहती, “हाँ हाँ क्यों नही? तेरे लिए कोई मना नही है.” इमली की तरह इमली के हरे पत्ते भी खट्टे होते हैं. जो खाने में बहुत खट्टे और अच्छे लगते हैं.
छोटू रोज़ स्कूल जाते वक्त कोमल से इमली के पत्ते लेकर जाता था और स्कूल में दोस्तों के साथ बैठकर खाता. यही सिलसिला सालों साल चलता रहा. कोमल इमली के पत्ते छोटू को देती और अपने लिए मेहँदी के पत्तो का बन्दोवस्त करवाती. लेकिन समय एक जैसा तो नही रहता और वही हुआ. इमली का मौसम खत्म हुआ. कोमल और छोटू का मिलना भी कम हो गया.
अब कभी कभार ही दोनों की मुलाक़ात होती थी. कोमल आज कल किसी अलग हवा में जी रही थी. जिसकी भनक किसी को नही थी लेकिन एक दिन वो भी आया जब कोमल अपने आप को किसी में खो बैठी और वो खोना ऐसा कि जिसके लिये वह अपनी जान हथेली पर लिए घूम रही थी.
___ गाँव में एक दूधिया आता था. वो कोमल के घर से भी दूध लेकर जाता था. कोमल उसके साथ बहुत मजाकें करती. कभी कभी उसके घर वाले उसे डांट भी देते लेकिन कोमल किसी के कहने से कब मानी थी जो आज मानती. दुधिया भी कोमल की ही उम्न का था. नाम था राज. उसका गाँव कोमल के स्कूल वाले रास्ते में ही पड़ता था.
धीरे धीरे दोनों एक दूसरे से घुलने मिलने लगे और फिर पता नही कब दोनों एक दूसरे को अपना दिल दे बैठे. ये बात खुद उन दोनों प्रेमियों को भी पता न चली. कोमल और राज ने अभी तक एक दूसरे से इश्क का इजहार भी न किया था.
बस बातें करते रहते. एक दूसरे को चिढाते, नये नये चुटकुले सुनाते. समय बीतता जा रहा था. इधर कोमल और राज का मौन इश्क अपने चरम पर था. उनके इश्क की आग उनके दिलों को जलाकर राख किये दे रही थी. मानो कह रही हो कि या तो इजहार करो नही तो तुम्हारे दिल के साथ साथ तुम्हे भी जलाकर राख कर दूंगी.
कोमल जब भैंस का दूध दुहने बैठती उस वक्त दूधिया राज बैठा बैठा उसके मोहक रूप के दर्शन करता रहता था. बीच बीच में कोमल भी उसे देखती रहती. कभी कभार भोंह के इशारे से पूंछती, "क्यों क्या हुआ ऐसे क्यों देख रहे हो?" और उसके रंग में रंगा दूधिया राज भी सर हिलाकर इशारों में कहता, "कुछ भी तो नही."
दोनों इश्क कलंदरों को पता था कि वो एक दूसरे को क्यों देखते हैं? लेकिन फिर भी पूछते थे. कारण था कोई भी पहले इजहार करने की हिम्मत न कर पा रहा था. जब भी उन में से कोई दूसरे की तरफ देखता और जब दूसरा पूछता तो तो उसमे मिलने वाला आनंद इजहारे इश्क के विचार से ज्यादा अच्छा लगता था.
इसलिए लोगों ने कहा है की छुप छुप के इश्क करने का मजा ही कुछ और होता है और वही आनंद ये दोनों प्रेमी प्राप्त किये जा रहे थे. लेकिन इश्क सिर्फ चुप रहकर देखना भर तो नहीं है. उसका और भी तो रूप है. जिसको पाने के लिए ये लोग भी लालयित थे. कोमल और उसकी बहन दोनों जब कॉलेज जातीं तो राज रास्ते में उन दोनों का इन्तजार करता रहता था. जैसे ही ये दोनों उसे दिखाई देतीं वो उठकर दोनों के साथ चलने लगता फिर अपना गाँव आने तक इनके साथ चलता रहता था.
एक दो दिन का तो कुछ नही लेकिन जब रोज़ ऐसा होने लगा तो कोमल की बड़ी बहन देवी उससे बोल पड़ी, "क्यों री कोमल ये राज दूधिया रोज अपने साथ ही क्यों जाता है?
कोमल अनजान बनते हुए बोली, “मुझे क्या पता?"
देवी उसे कुरेदते हुए बोली, “तो ठीक है. आज इसकी शिकायत पापा से किये देती हूँ. एक दिन में लाइन पर आ जाएगा."
कोमल हडबडा कर बोली, “अरे नही नही शिकायत की क्या जरूरत है? उसने हम से कोई गलत हरकत तो की ही नही न. फिर पापा से कहने की क्या जरूरत है."
देवी तंज करते हुए बोली, “अच्छा मेरी भोली बहन, जब कोई हरकत करेगा तभी कहोगी उससे पहले नही. जब कुछ हरकत कर ही देगा तब कहने का क्या फायदा? आज में इसकी शिकायत करके ही रहूँगी."
कोमल के दिल में राज का वास था. उसे राज के खिलाफ कुछ भी बर्दाश्त नहीं होना स्वभाविक था. वह तुनक कर बोली, "ठीक है कह देना पर में तुमसे न बोलूंगी. भूल जाना कि तुम्हारी कोई बहन भी थी."
देवी हैरत भरे स्वर में बोली, "अरे अरे पागल हो गयी हो क्या? ये राज क्या तुम्हारा फूफा लगता है जो इसकी शिकायत न करने दोगी और ये हो क्या गया है तुम्हे? उस राज की इतनी तरफदारी क्यों कर रही हो?"
कोमल अपने कहे पर हडबडा उठी. उसने इश्क के नशे में जो बात देवी से कह दी थी उसका अंदाज़ा उसे बात कहने के बाद हुआ. फिर सम्हलते हुए बोली, "देखो देवी मेरी बहन में तो सिर्फ ये कह रही थी क्यों किसी बेचारे सीधे साधे लडके को परेशान किया जाय?"
देवी को कोमल पर अब शक हो रहा था. सोच रही थी हो न हो ये राज इसी की राज़ी से हमारे साथ आता जाता है. कोमल के राज को सीधा साधा कहने पर वह तुनककर बोली, “अच्छा अब ये सीधा साधा लड़का कब से हो गया? कहीं कोई और बात तो नहीं कोमल रानी? बता देना नही तो तुम्हारी खैर नही."
कोमल तो पहले ही राज नाम की चासनी में पकी जलेबी थी.
ऊपर से देवी की तीखी बाते उसे और ज्यादा कुरकुरी किये जा रही थी लेकिन कोमल कितनी ही मुंहलवार थी परन्तु अपनी बड़ी बहन के सामने अपने इश्क को कबूल करना उसके लिए बहुत मुश्किल था.
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RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
सारे दिन बडबड करने वाली कोमल भी आज अपने मुंह से एक शब्द न बोल सकी थी. और वो राज? राज को तो जैसे सांप सूंघ गया था. हद तो ये थी कि दोनों एक दूसरे से नजरें तक न मिला पा रहे थे. बस चोरी चोरी एक दूसरे को देखते थे. कभी एक तो कभी दोनों.
कोमल चाहती थी कि पहले राज बोले और राज चाहता था कि पहले कोमल बोले. लेकिन दोनों के दिमाग में ये बात न आ रही थी कि बोले तो बोले क्या? घर से तो राज भी न जाने क्या क्या सोच के निकला था कि आज ये बोलूँगा आज वो बोलूँगा. और ये चंचल मतवाली कोमल ये तो हवा में उडती आई थी. रास्ते भर सोचती आ रही थी कि आज राज बोला तो ठीक नही तो वो खुद बोल देगी कि मुझे तुमसे प्यार हो गया है.
लेकिन अब क्या हुआ? अब तो दोनों के दोनों चुप खड़े थे. दोनों की हिम्मत जबाब दिए जा रही थी. दोनों के हाथ पैर कांप रहे थे. दोनों की हथेलियाँ पसीज रही थी. दोनों ही अपने होंठ चबा रहे. कुछ कहने की जद्दोजहद का महान नमूना पेश हो रहा था.
ये हो क्या रहा था? दोनों को ऐसे ही खड़े थे. कीमती समय बर्बाद हुआ जा रहा था. इसकी दोनों को चिंता भी थी. कोमल के स्कूल का टाइम भी लेट हो रहा था लेकिन उसे जरा भी परवाह नही थी. उसे तो परवाह थी राज के बोलने की. उससे कुछ कहने की.
लेकिन बिल्ली के गले में पहले घंटी कौन बांधे? कोमल लाज के मारे जमीन में नजरें गढाए खड़ी थी और वो बातूल राज? वो तो कोमल से भी ज्यादा शरमा रहा था. किन्तु अब कोमल को ज्यादा देर चुप रहना अच्छा न लग रहा था तो वो खुद ही बोल पड़ी, “ऐ दूधिया(राज). तुम रोज हमारे पीछे क्यों लगे रहते हो? किसी दिन देवी ने पापा से तुम्हारी शिकायत कर दी तो?"
ये बात कहने में कोमल ने अपना पूरा जोर लगा दिया था. दिल की धडकनें तो किसी इंजिन की तरह चल रही थी. वो तो राज का नाम तक न ले सकी थी. इसीलिए तो उसे दूधिया कहकर सम्बोधित किया था.
लेकिन राज को कोमल के मुंह से अपने नाम की जगह दूधिया सुनना भी उतना ही अच्छा लगा जितना कि वो राज को नाम से उसे पुकारती. राज ने जब कोमल का ये सवाल सुना तो उसकी की हिम्मत बढ़ गयी. अपने दिल की धडकनों को थामते हुए लजाकर बोला, “देवी ही शिकायत करेगी तुम न करोगी?"
कोमल हडवडा गयी. बोली, “हाँ हाँ में भी करूंगी." लेकिन कोमल के मन में राज की शिकायत का तो खयाल तक नहीं था. ये बात तो राज भी जानता था और कोमल भी.
राज जानबूझकर अंजान बन कोमल से बोला, "ठीक है तो कल से में यहाँ न आया करूंगा और तुम कहोगी तो तुमसे बात भी न किया करूँगा.” राज ने ये बात कोमल का मन जाने के लिए बोली थी और हुआ भी वही.
कोमल तडप कर बोली, "नही नही. मेरा वो मतलब नही था. अगर तुम कोई गलत बात न करोगे तो तुम्हारी शिकायत न करूंगी. तुम साथ साथ जाते हो तो रास्ता बड़े आराम से गुजर जाता है." कोमल एक सांस में बोल गयी. लेकिन हाय रे दैय्या! ये क्या कह गयी? जो नही कहना था वही कह गयी. वाह री राज की दीवानी कोमल!
राज अब खुलने लगा था. उसे कोमल की बातों से थोडा सहारा मिला था. बोला, “तो तुम्हे अच्छा लगता है...ये जो में..तुम्हारे साथ आता जाता हूँ.” राज बात कहने में हिचक रहा था लेकिन दिल अपनी हमदम के इश्क में घुलता जा रहा था. जैसे रवडी में चीनी. जैसे रसगुल्ला में चासनी .जैसे दही में वडा और जैसे कड़ी में पकोड़ा.
कोमल ने शरमा कर चेहरा ऊपर उठाया. राज पहले से ही उसकी तरफ देख रहा था. दोनों की नजरें मिली. राज दूधिया की सादा आँखे कोमल की काली समंदरी कजरारी आँखों से जा लगी. राज तृप्ति पा उठा. उसे लगा कि आज उसने जीवन की सबसे खूबसूरत चीज को देख लिया हो. जैसे किसी गहरी प्यास में पानी मिल गया हो.
राज को उसकी बात का जबाब मिल चुका था. कोमल की नजरों ने राज को ये बता दिया था कि उसका रोजाना कोमल के साथ आना जाना अच्छा लगता है. बतलाना भी अच्छा लगता है. प्रेम कहानी आगे बढ़ने लगी थी. दोनों धीरे धीरे एकदूसरे को समझते जा रहे थे.
लेकिन अब क्या बात की जाय? तभी राज को सूझा कि कोमल आज स्कूल जायेगी कि नही? उसे बात करने का मुद्दा मिल गया था. बोला, “आज तुम स्कूल नही जाओगी?" राज का मन होता था कि कोमल को बोल दे कि तुम आज स्कूल न जाओ. यही मेरी नजरों के सामने बैठी रहो. में तुम्हे तुम्हे देखता रहूँ और तुम मुझे देखती रहो.
कोमल सोचती हुई बोली, “आज लेट हो गयी हूँ. मन नही करता स्कूल जाने का, अब लौट कर घर को भी नहीं जा सकती, घर के लोग पूंछेगे की पढने क्यों नही गयी आज?" कोमल स्कूल के लिए ज्यादा लेट नही हुई थी लेकिन उसका मन राज से अलग होने को नहीं करता था इसीलिए उसने ये बात बोली. सोचती थी ये राज क्या कहेगा?
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कोमल ने स्कूल न जाने की बात कह जैसे राज के मुंह की बात छीन ली थी. वह हिम्मत कर बोला, "हां तो क्यों जाती घर लौट कर? जब तक स्कूल की छुट्टी का समय नहीं होता तब तक यहीं रुक जाओ, में यहाँ तुम्हारे साथ बैठा रहूँगा."
कोमल राज के मन की बात जान चुकी थी लेकिन वो और ज्यादा राज से बात करना चाहती थी. वो अपने दिल के दिलवर को और ज्यादा पहचानना चाहती थी इसलिए बोली, “यहाँ तुम्हारे साथ मुझे किसी ने देख लिया तो न जाने लोग क्या क्या बात सोचेंगे? और मेरे घर ये बात पहुंची तो मेरी खैर नही.
राज ने जब अपनी कोमल के मुंह से उसका डर जाना सुना तो तडप उठा. वो कैसे अपनी जान को मुसीबत में देख सकता था? बोला, “अगर तुम बुरा न मानो तो मेरे पास एक जगह है जहाँ कोई आता जाता ही नही. अगर तुम चाहो तो छुट्टी होने के समय तक वहां...बैठ सकती हो?"
राज ये बात कहने में इतना सकुचा रहा था. जैसे कोई बुरी बात कह रहा हो? जैसे कोमल कहीं बुरा न मान जाए. कोमल को ये बात अच्छी तो लगी परन्तु कुछ बोली नही. उसने अपना किताबों का बस्ता (बैग) उठा आगे को बढ़ना शुरू कर दिया. राज समझ गया कि कोमल उसके साथ चलने को तैयार है.
लेकिन राज आगे न बढ़ पाया. वो तो उस चंचल कोमल को देख रहा था जिसकी चाल किसी नवयौवना हिरनी की तरह थी. कोमल की ये शोख अदाएं ही तो राज के दिल को लूट बैठी थी. कोमल ने महसूस किया कि राज उसके पीछे नही आ रहा है. उसने मुड कर देखा.
राज खड़ा खड़ा उसे एकटक देखे जा रहा था. मुंह पर हल्की मुस्कान थी जो लज्जा की चिकनाई से युक्त थी लेकिन कोमल को ये शरारत लगी. ऐसी शरारत जो मीठी मीठी चुभन देती है.जो चिढाती तो है लेकिन प्यार से.
कोमल उसी प्यार से चिढती हुई बोली, “तुम नही आओगे? न आओ तो मुझे वो जगह बता दो में अकेली ही चली जाउंगी.” कोमल ने अकेले जाने की बात राज का धैर्य परखने के लिए कही थी और हुआ भी वही.
राज का धैर्य जबाब दे गया. वो हड्वड़ा कर बोला, "हाँ हाँ चलता हूँ." और अपनी साईकिल को उठा कोमल के पीछे चल दिया.
कोमल राज की इस हड्वड़ा पर मुस्कुरा उठी. ये चंचल लडकी उस शरमाये हुए आशिक को छेड़ने का पूरा आनंद उठा रही थी. कोमल बलखाती हुई आगे आगे चल रही थी और राज साईकिल लिए कोमल के पीछे पीछे. राज अपनी नजरों को कोमल के रूप से मुक्त न कर पा रहा था. कभी कभी तो कोमल की तरफ देखने के कारण उसकी साईकिल गिरने को होती थी लेकिन वो आशिक ही क्या जो दर्द और कष्ट न सहे? जो मुश्किल न झेले. जो जमाने की फटकर न खाए. जो दो चार दिन भूखा न रहे. जो घर वालों से लात घूसों से न पिटे और जो पागलों की तरह दुःख भरे नग्मे न सुने. ये सोच थी आशिक दूधिया राज की. वाह रे राज!
फिर कोमल को ध्यान आया कि वो बिना राज के रास्ता बताये जा कहाँ रही है? उसे तो पता ही नहीं था कि राज कौन सी जगह की कह रहा था? और राज! राज को तो सुध ही नही थी कि वो कोमल के साथ कौन सी जगह जा रहा था? न ये फिकर कि वो रास्ता यही है जिसपे वो कोमल को ले जाना चाहता था? आखिर ये हो क्या रहा था?
कोमल फिर रुकी गयी. मुड़कर राज की तरफ देखा. वो पगला दूधिया राज तो पहले से ही उसको देख रहा था. कोमल के एकदम मुडकर देखने पर हड्वड़ा गया. कोमल अब राज के सामने पहले से अधिक खुल गयी थी. तीखी नजरें और होठों पर मुस्कान लिए बोली, “अब कितनी दूर और जाना है?"
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आज एक अलग घड़ी थी इन दोनों प्यार के जीवों के लिए. जिसे ये पूरी तरह से महसूस कर रहे थे. दिलों की धडकनों में होने वाली सुरसुरी उन्हें कुछ नया होने का आभास करा रहीं थी और अजीब बात तो ये थी कि दोनों के पास घड़ी भी नही थी. समय का पता कैसे चले? कैसे इश्क कबूल करने की जल्दी हो?
अन्य दिन तो राज भी घड़ी पहनता था लेकिन आज बो जल्दी जल्दी में अपनी घड़ी पहनना भूल गया था. घड़ी राज के लिए सबसे जरूरी चीजों में से एक थी. जब वो दूध लेने कोमल के गाँव जाता था तो घड़ी से ही तो पता चलता था कि किसकी भैंसिया कब दूही जानी है? अगर थोडा सा भी लेट हुए तो भैंस वाला दूध में पानी मिला देता था और फिर राज डेयरी मालिक की फटकार सुननी पडती थी.
लेकिन आज उसे घड़ी की एक और अहमियत पता चली कि अगर इश्क करो तो घड़ी जरूर पहनो, नही तो समय का पता ही नही चलता और आप उस दिन का इश्की लेक्चर मिस कर देते हैं. ये ऐसा लेक्चर होता है जिसका एक एक अक्षर आपके लिए बहुत ज़रूरी होता है. अगर आप इश्क के कलमा पढने वाले है तो.
कोमल ने राज की तरफ फिर से देखा और शुरुआत करती हुई बोली, “अब खड़े ही रहने का इरादा है? कहो तो बैठ जाऊं? मेरी टाँगे तो दर्द कर रही है." इतना कह कोमल बैठ गयी
लेकिन राज ने सुना कि कोमल के पैरों में दर्द हो रहा है तो एकदम से बोला, "कहों तो तुम्हारे पैर दबा दूँ?" ये कहने के बाद राज खुद ही झेंप गया. सोचा दैय्या रे दैय्या! ये क्या कह गया?
कोमल का माथा ठनक गया और हंसी भी छूट गयी. बोली, “आज बाबले हो गये हो क्या? अरे हम तो कह रहे थे कि खड़े खड़े पैर में दर्द हो रहा है ये कोई वैसा दर्द थोड़े ही है. और हो भी रहा होता तो क्या तुमसे पैर दबाने को कहती? बुद्धू कहीं के."
कोमल की प्यार भरी फटकार सुन राज का मन इश्क के रंग से रंग उठा. डालडा पिघल कर मक्खन हो गयी. सादा पानी मीठा शरवत वन गया.
कोमल आम के पेड़ के नीचे बैठी थी और राज उससे थोड़ी दूर पर खड़ा था. कोमल ने राज की तरफ देखा और बोली, “अब खड़े रहकर क्या कर रहे हो? आकर बैठ जाओ और कुछ बताओ या सुनाओ. घर पर दूध लेने आते थे तब तो बड़ी लम्बी लम्बी बाते करते थे. फिर आज क्या मौन व्रत रखा है?"
राज पहले से बहुत बातूल था. कोमल की प्यार भरी चुटकियां उसे उस बातूलपन की तरफ धकेलती जा रहीं थी. अब बह भी खुलता जा रहा था. बोला, “नही ऐसी कोई बात नही. सोचता हूँ क्या बोलूं? अच्छा चलो ये बताओ तुम आज स्कूल क्यों नही गयीं? अगर चाहती तो जा भी सकतीं थी.
कोमल ने मन ही मन में सोचा वाह रे राज दूधिया! मुझसे पूछता है की स्कूल क्यों नही गयीं और खुद के मन में था कि में आज स्कूल जाऊं ही नहीं, यह सोच वह बोली, "अच्छा और तुम ये रोज रोज मेरे साथ यहाँ से गाँव के बाहर तक आते जाते हो ये सब किस लिए करते हो?" सवाल से महा सवाल टकरा दिया. वाह री मतवाली कोमल!
कोमल के सवाल ने राज को निरुत्तर कर दिया था. जबकि राज जानता था कि कोमल स्कूल क्यों नही गयी और कोमल भी ये जानती थी कि राज उसके आगे पीछे क्यों घूमता है? फिर ये सवाल क्यों? इन सब शुरूआती आशिक लोगो की ये सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि इन्हें ये पता नहीं होता कि ये कर क्या रहे हैं? सब करते भी जाते है. यही तो हो रहा था इन दोनों इश्क कलंदरों के बीच में.
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राज डरते डरते कंपकपाती टांगों से चलते हुए कोमल की बगल में जा बैठा और हाथ में घास का तिनका ले जमीन पर उसे घुमाने लगा. बगल में बैठे राज को दूर से कोमल ने महसूस किया. वह अंदर तक एक अनजाने रंग में रंग गयी. पेड़ के नीचे बैठे इन अनबोले आशिकों को सावन के महीने में चलने वाली सुगन्धित वायु का स्पर्श हो रहा था. आज हवा भी ऐसी थी कि कभी राज की तरफ से कोमल की तरफ बहती तो कभी कोमल की तरफ से राज की तरफ बहती थी.
पता नहीं कि ये हवा ही थी जो इधर से उधर वह रही थी या कोई इश्क की अनजानी वयार जो दोनों को एक दूसरे की बदन की खुशबु का आनंद दिलवाए जा रही थी? कोमल के बदन से उठती सुंगधित खुसबू राज को स्वर्ग का आनंद दिए जा रही थी. राज के बदन की मर्दाना खुश्बू कोमल को पागल किये जा रही थी.
दरअसल हवा में कोई खुसबू थी ही नही. ये तो इन आशिकों का बहम था. और हो भी क्यों न? जब आप किसी को इतनी शिद्दत से चाहते हैं तो उसकी हर एक बात आपको निराली लगती है. उसके बदबू भरे पसीने में आपको खुसबू आती है. उसकी मामूली अदायें आपका दिल लूट लेती हैं. और ये ही आभास चंचल कोमल और वाबले दूधिया राज के साथ हो रहा था, अब गाँव में तो उस समय डियोडेरेंट नही थे तो खुसबू कहाँ से आई? ये तो इन दोनों के इश्किया पागलपन की सुगंध थी.
लेकिन आग और फूस एक साथ ज्यादा देर तक अलग नहीं रहते. आग पहले फूस को जलाती है और फिर खुद भी बुंझ जाती है. यही तो होना था इन दोनों का. अब ये तो पता नही कि आग कौन था और फूस कौन. लेकिन थे दोनों ही कुछ न कुछ. कोमल ने राज की तरफ देखा. राज ने कोमल की तरफ.कोई कुछ न बोला. फिर कोमल बोल पड़ी, “क्या देख रहे हो?"
राज का फिर वही जबाब था, “कुछ भी तो नही."
फिर कोमल को पता नही क्या सूझा. बोली, “अगर कल से में स्कूल न आऊं? तुम्हे कहीं मिलूं भी नहीं तो क्या करोगे?" कोमल ने ये बात राज को टटोलने के लिए कही थी लेकिन इस बात ने राज के दिल पर तलवार की धार की तरह वार किया.
वो तिलमिला कर रह गया. उसका मन तो करता था कि बात कहते वक्त ही कोमल को चुप कर दे लेकिन न कर सका और प्यार के आवेश में आ बोला, "पहले तो तुम्हें ढून्ढूगा और अगर न मिलीं तो जहर खा मर जाऊँगा. लेकिन तुम जाओगी कहाँ?"
कोमल राज के मुंह से एकदम ऐसे अंदाज़ से की गयी बात पर हैरान थी लेकिन उसे अंदर से अपने होने बाले प्रेमी पर गर्व भी था जो उसके लिए अपनी जान देने के लिए तैयार था. एक लड़की को अपने आशिक से और क्या चाहिए? चंचल कोमल अभी राज को और तैस में लाना चाह रही थी. बोली, "तुम क्यों जान दे दोगे? मुझसे रिश्ता ही क्या है तुम्हारा? दूध लेने ही तो आते हो मेरे घर फिर ये जीने मरने की बाते किसलिए?"
कोमल मन में खुश थी. उसे राज से प्यार भरी चुटकी लेने में बड़ा मजा आ रहा था लेकिन राज तो उन बातों को गम्भीरता से लेता जा रहा था. बोला, “में कौन लगता हूँ तुम्हारा ये तुम पूंछ रही हो? अगर एक लडकी एक अकेले लडके के साथ सूनसान जगह पर बैठी है तो वो कौन होगी उसकी? ये अपने आप से पूंछ लो."
कोमल को राज से इस उत्तर की उम्मीद नहीं थी. वो सकपका गयी लेकिन फिर सम्हलते हुए बोली, “हमारा होगा क्या? क्या हम ऐसे ही मिलते रहेंगे? क्या हमारा कोई भविष्य नही?"
राज ने कोमल के मुंह से हम' शब्द का जिक्र सुना तो उसे यकीन हो गया कि जो मेरे अंदर है वो इस पगली कोमल के अंदर भी है. कोमल को अपने भविष्य को लेकर जो चिंता थी वो राज को भी थी. राज बोल पड़ा, “अभी शुरुआत होने से पहले हमे ऐसा नही सोचना चाहिए. पहले शुरुआत तो होने दो."
कोमल फिर से मजाक के मूड में थी. बोली, “अभी और कुछ करना है शुरुआत करने के लिए? ये जो साथ बैठकर बातें कर रहे हैं क्या ये शुरुआत नही है?"
राज कोमल की बात सुन झेंप गया. उसे समझ नही आता था कि कब कोमल मजाक करती है और कव गम्भीर होती है. लेकिन अब राज भी कोमल की तरह चुलबुला होना चाहता था. जैसे वो रोज उसके घर दूध लेने जाता था तब जो मजाकें वो कोमल के साथ करता था आज फिर से वही मजाकें करना चाहता था. चेहरे पर शरारती मुश्कान लिए बोला, "मेरे एक दोस्त ने जब एक लडकी के साथ ये शुरुआत की थी तो एक बच्चे का बाप बन गया था. तो उस हिसाब से तो हमारी शुरुआत कुछ भी नही."
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कोमल बुरी तरह शरमा गयी. उसका गोरा मुखड़ा इस मजाक से पके हुए सेव की तरह लाल हो गया. चेहरे पर शर्मीली मुस्कान थी. फिर नीचे नजरें कर बोली, “छि: चुप रहो. वैसे तो बोल नही रहे थे और बोले भी तो ये बेहूदा बातें. कुछ और नहीं बोल सकते थे?"
राज की हंसी छूट गयी. उसे कोमल का इस तरह शर्माना बड़ा अच्छा लगा लेकिन फिर हंसी रोकते हुए बोला, "अच्छा में तो बुरी बातें करता हूँ तो तुम्ही कोई अच्छी बात बताओ?"
कोमल क्या बोलती जो उसके के दिल में था उसे बोलने के लिए बहुत हिम्मत की जरूरत थी. जो अभी कोमल के पास नही थी. फिर भी कुछ तो बोलना ही था. कोमल फिर से उस रंगरेज़ राज के इश्क में रंगती हुई बोली, “तुम क्या क्या कर सकते हो मेरे लिए?" कोमल ने सवाल तो कर दिया लेकिन उसको ये अपना सवाल बहुत बेहूदा लगा.
राज फिर तैस में आ गया बोला, “तुम जो कहो, कहो तो अपने प्राण निकाल कर तुम...."
कोमल का फूल जैसा कोमल हाथ राज के होंठो से जा लगा. राज आगे न बोल पाया. उसने अपनी आँखें बंद कर ली. कोमल के हाथ का पहला स्पर्श अपने होंठो पर पा राज ऐसा मदहोश हो गया जैसे उसने सारे जहां की मदिरा अपने मुंह से लगा ली हो. वो इस कदर इस नशे में खो गया मानो कब से बो इस मदिरा का पान कर रहा हो.
लेकिन ये मदहोशी! ये मदिरा पान? ये मादक स्पर्श कितनी देर तक चल सकता था? कोमल ने अपना हाथ राज के होंठो से हटा लिया. राज का ध्यान भंग हो गया. उसका सारा नशा एक पल में ऐसे उतर गया. मानो उसने कोई नशा किया ही न था. उसका मन करता था कि कोमल का हाथ, वो हाथ जिससे राज को सारे जहाँ का आनन्द मिला. उसे फिर से अपने होंठो पे लगा ले.
हे ईश्वर! कितनी तपिश थी? कितना अनदेखा सौन्दर्य था? कितनी मदहोशी थी? कितना अपार आनंद था और कितनी कोमलता थी इस चंचल शोख लडकी के हाथ के स्पर्स में? राज के मन में इस वक्त बस यही बात चल रही थी लेकिन कोमल के एकदम हाथ हटा लेने से सब कुछ खत्म हो गया था.
राज तडप कर कुछ बोलता उससे पहले कोमल लरजते स्वर में बोली, "एक बात सुन लो राज. हमारे सामने दोबारा मरने मारने की बातें न करना. बताये देते हैं हां."
राज कोमल के मदभरे जादू में पूरी तरह सरावोर था. कोमल की प्यार से भरी चिंतित डांट पर माफ़ी मांगता हुआ बोला, "माफ़ करना कोमल हमे नही पता था कि हमारी ये बात तुमको इतनी बुरी लग जायेगी. लेकिन तुमने हमारे मुंह से अपना हाथ क्यों हटा लिया?" राज ने जब ये हाथ हटाने वाली बात बोली तब उसका लहजा बहुत नशीला था.
बराबर में बैठी चंचल शोख कोमल भी कब पीछे रहती. वो भी राज के इश्क के नशे में डूबती हुई बोली, "तुम्हें इतना अच्छा लगता हमारा हाथ. कहो तो फिर से रख दे तुम्हारे मुंह पर?" ये बात कहते वक्त कोमल की आँखों में एक अजीब सा नशा था जिसको नाम देना इस इश्क की बेइज्जती होगी.
वो चंचल कोमल के इश्क में पगला हुआ दूधिया राज? उसे लगा कि कोमल ने उसके जनम जनम की मुराद पूरी करने की बात कह दी है. वो कंपकपाते लहजे में बोला, “हाँ..रख दोगी तो एहसान होगा तुम्हारा मेरे ऊपर. तुम इस के बदले जो कहोगी वो करू...." राज बात पूरी करता उससे पहले फिर वही फूलों के समान कोमल मुलायम. मदभरा स्पर्श वाला कोमल का हाथ राज के होठों पर ठीक उसी जगह आ लगा जहाँ पहले लगा था.
ओह मेरे राम! ये आनंद, ये सुकून, ये शीतलता, ये खुशबु और ये मिठास. क्या यही प्यार है? क्या यही मोहब्बत है? क्या यही इश्क है? राज को आज सारा जहाँ भी कोई दे तो उसे इस स्पर्स के लिए ठुकरा दे, उसका मन, उसका तन, उसका दिल किसी ऐसे रस से भर गया था जिसका स्वाद सारे जहाँ की धन दौलत और खुशियों से ज्यादा कीमती था. राज के मुताबिक कहें तो उसकी कोई कीमत ही नही थी. सरल शब्दों में वो बेशकीमती लेकिन न खरीदी जा सकने वाली वस्तु था. किन्तु क्या अभी तक ऐसा हुआ है कि किसी वस्तु में आग लगी हो और वो एक जगह ही जलती रही हो? आग का काम तो चारो तरफ फैलना ही होता है और वही होने वाला था इन दोनों प्रेमियों के बीच. राज तो अलग दुनियां में खोया ही हुआ था लेकिन कोमल भी राज के मर्दाना खुरदरे होठों की छुअन से मादक हो उठी थी. उसके शरीर के एक एक रोम में प्यार की अग्नि दस्तक दे चुकी थी. कोमल को होश न रहा की वो है कहाँ?
राज ने उसी मस्त मदिर स्पर्स के नशे में कोमल के दूसरे हाथ को अपने हाथ में ले लिया. कोमल ने राज के मुंह से अपना दूसरा हाथ हटा उसी के हाथों में दे दिया. अब कोमल के दोनों हाथ राज के हाथों में थे. देखकर ऐसा लगता था मानो दोनों का स्वयंवर हो रहा हो. ऐसा स्वयंवर जिसका साक्षी वो आम का पेड़ था. वो आम का पेड़ जिसके पत्तों और लकड़ी को इन दोनों आत्माओं के धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है. जिसकी लकड़ी और पत्तों से इन दोनों आत्माओं के इष्ट देवों की पूजा होती है. खुले आकाश के नीचे वो पवित्र आम का पेड़. उस पेड़ के नीचे ये दो आत्माओं का मिलन. ये सावन का महीना. पेड़ों के बौरो की मंद मंद खुशबू, हल्की मद्दम खुसबूदार हवा और ये मादक पंक्षियों का कलरव. क्या मोहब्ब्ती माहौल था. अगर कोई कलाकार इस माहौल को देखे. महसूस करे. समझे तो इसे दुनिया का सबसे उत्तम स्थान. समय और माहौल कह डाले.
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