MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 02:08 PM,
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पद्मिननी को छुने का मेरा दिल तो बहुत कर रहा था. लेकिन उसके दर्द को देखते हुए, उसको छुने की मेरी हिम्मत नही हो रही थी. अपने दिमाग़ को पद्मि.नी से हटाने के लिए, मैने करवट बदली और दूसरी तरफ मूह करके लेट गया.

मैने अपनी आँखे बंद की और सोने की कोसिस करने लगा. मगर मेरी आँखों मे अभी भी नींद नही थी. मैने आँख बंद किए किए ही वापस पद्मि़नी की तरफ करवट ले ली. काफ़ी देर तक बस मैं करवट ही बदलता रहा.

मैं पद्मिदनी की तरफ करवट लिए लेता था. तभी मुझे अपनी पीठ पर पद्मिअनी के हाथ रखने का अहसास हुआ. मैने फ़ौरन अपनी आँख खोली और वापस पद्मिअनी की तरफ करवट ली. पद्मिहनी जाग रही थी और मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी. मैं भी उसे देख कर मुस्कुरा दिया. उसने मुझसे पुछा.

पद्मिहनी बोली “क्या हुआ पिताजी. आप बार बार करवट क्यो बदल रहे है.”

मैं बोला “कुछ नही, बस मुझे नींद नही आ रही.”

पद्मिोनी बोली “आज तो मैने आपको वो दवा भी नही दी है. फिर आपको ये बेचैनी क्यो हो रही है.”

मैं बोला “पता नही.”

पद्मिोनी बोली “मुझे पता है. आज आपको कुछ करने को नही मिल रहा है. इसलिए आपको ये बेचैनी हो रही है.”

मैं बोला “नही, ऐसी कोई बात नही है.”

पद्मिोनी बोली “चलिए मैं आपकी सोने मे कुछ मदद कर देती हूँ.”

ये कह कर उसने अपना हाथ मेरे लिंग पर रख दिया. जो पद्मिदनी के पास सोने की वजह से पहले ही तना हुआ था. उसने लिंग पर हाथ रख कर उसे, पायजामे के उपर से ही दबाना सुरू कर दिया. उसके हाथों के अहसास से ही, मेरे तन बदन मे आग लग गयी.

मैने भी खिसक कर पद्मिेनी के पास आ गया और अपना हाथ उसके बूब्स पर रख दिया और उन्हे धीरे धीरे मसल्ने लगा. फिर पद्मि नी ने मेरा पायजामा खोल कर नीचे किया और मेरी अंडर वेअर को भी नीचे सरका कर मेरे लिंग को अपने हाथ मे थाम कर उसे उपर नीचे करने लगी.

कुछ ही देर मे मेरे लिंग ने विकराल रूप ले लिया. अब मुझसे सहन नही हो रहा था. मैने भी पद्मिीनी की नाइटी को पकड़ कर उसके गले तक खिसका दिया और उसके बूब्स पर अपने होंठ रख कर उन्हे चूसने लगा. पद्मिउनी ने एक हाथ से मेरे सर को अपने बूब्स पर दबा लिया और दूसरे हाथ से मेरे किंग को मसल्ति रही.

अब पद्मिेनी भी बहुत गरम हो चुकी थी. मैने उस से लिंग को मूह मे लेने को कहा तो, उसने मना कर दिया. लेकिन बाद मे उसने मुझे अपने से अलग किया और पलट कर लेट गयी. अब उसका मूह मेरे लिंग के सामने था. वो मेरे लिंग को देखने हुए उसे उपर नीचे कर रही थी.

मैने उसकी पैंटी को नीचे खिसका दिया और अपने होंठ उसकी पुसी पर रख दिए. मैं उसकी पुसी को चूसने चाटने लगा. कुछ ही देर मे पद्मिीनी अपनी पुसी को मेरे मूह पर दबाने लगी और मेरे लिंग को ज़ोर ज़ोर से मसल्ने लगी. मैने अपनी जीभ उसकी पुसी के अंदर डाल दी और उसे अंदर बाहर करने लगा.

कुछ ही देर मे पद्मिेनी को भी जोश आ गया और उसने मेरे लिंग पर अपने होंठ रख दिए. उसके होंठ का गरम गरम अससास होते ही मैं लिंग को उसके होंठों पर दबाने लगा. पद्मि नी ने अपने होंठ खोले और लिंग को अंदर लेने की कोसिस करने लगी.

कुछ ही पल मे मेरे लिंग का टॉप पद्मिरनी के मूह मे था. मैं जोश मे आकर तेज़ी से उसकी पुसी मे जीभ को अंदर बाहर करने लगा. पद्मिरनी ने भी जितना हो सका मेरे लिंग को अपने मूह के अंदर कर लिया और उसे अंदर बाहर करने लगी.

मैने पद्मि नी को अपने उपर कर लिया और उसकी पुसी के अंदर जीभ को घुमाने लगा. पद्मि नी भी जोश से भरी हुई थी. वो मेरे लिंग पर अपने मूह को उपर नीचे कर रही थी. कुछ ही देर मे पद्मिशनी की पुसी ने पानी छोड़ दिया और वो शांत पड़ गयी.

मैने अपनी जीभ को उसकी पुसी से बाहर निकाला और उसमे उंगली डाल कर अंदर बाहर करने लगा. कुछ देर ऐसा करने के बाद पद्मि नी फिर से गरम हो गयी और फिर से मेरे लिंग पर मेहनत करने लगी. अब मैं धीरे धीरे उसकी पुसी मे अपनी उंगली को घुमा रहा था.

पद्मिलनी तेज़ी से मेरे लिंग को अपने मूह के अंदर बाहर करने मे लगी हुई थी. मेरे लिंग की अकड़ बढ़ गयी थी और अब वो भी पानी छोड़ने के करीब पहुच गया था. ये देखते ही मैने अपनी जीभ पद्मियनी की पुसी मे डाल दी और उसे अंदर बाहर करने लगा.

हम दोनो ही तेज़ी से एक दूसरे का पानी निकालने मे लगे हुए थे. कुछ ही देर बाद पद्मिीनी की मेहनत रंग लाई और मेरे लिंग ने उसके मूह मे ही पिचकारी मारना सुरू कर दी. पद्मि्नी ने तेज़ी से उसे बाहर निकाला और हाथ से उसे उपर नीचे करने लगी.

वो लिंग को तब तक उपर नीचे करती रही. जब तक की लिंग ने आख़िरी बूँद तक नही छोड़ दी. मैं कुछ देर रुका और फिर से पद्मितनी की पुसी पर अपनी जीभ फेरने लगा. अब मेरी तेज़ी बहुत ज़्यादा थी. मेरी जीभ पद्मिीनी की पुसी मे अंदर बाहर हो रही थी और पद्मितनी सिसकारी लेती हुई, मुझे पुसी पर दबा रही थी.

मैं उसके कुल्हों को मसल कर उसकी पुसी के अंदर बाहर जीभ को कर रहा था. फिर अचानक पद्मिसनी का सरीर तेज़ी से हिलने लगा और उसकी पुसी ने पानी छोड़ना सुरू कर दिया. वो एक बार फिर से शांत पड़ गयी.

कुछ देर वो ऐसे ही लेटी रही. फिर मेरे बराबर मे आकर लेट गयी और कहने लगी.

पद्मिेनी बोली “पिताजी, मज़ा आया.”

उसकी बात सुनकर मुझे हँसी आ गयी और मैने कहा.

मैं बोला “हाँ बहुत मज़ा आया.”

ये कह कर मैने उसे अपने पास खिचा और उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए. उसके होंठों को चूमने के बाद हम लोग एक दूसरे की बाहों मे बाहें डाले ही सो गये.

सुबह मेरी नींद पद्मिएनी के जगाने पर खुली. उसने मुझे जगा कर कहा.

पद्मिमनी बोली “पिताजी, जल्दी से उठ कर फ्रेश हो जाइए. मान जी लोग किसी भी समय आते ही होगे.”

मैं उठ कर फ्रेश होने चला गया. मैं फ्रेश होकर लौटा तो पद्मि्नी चाय लेकर आ चुकी थी. मैने उस से चाय ली और उस से पुछा.

मैं बोला “बहू, अब तुम्हारा दर्द कैसा है.”

पद्मिोनी बोली “पिताजी, दर्द अभी भी हो रहा है और मुझे चलने मे भी तकलीफ़ हो रही है.”

मैं बोला “कोई बात नही, तुम कल वाली दवा फिर से खा लेना. शाम तक तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगी.”

इसके बाद मेरी पद्मि नी से इसी बारे मे बात चीत चलती रही. तभी डॉरबेल बजी और पद्मिबनी दरवाजा खोलने चली गयी. उसके दरवाजा खोलने के बाद बाहर से अलीशा की आवाज़ आने लगी. मैं समझ गया कि, वो लोग आ चुके है. फिर भी मैं अपने कमरे मे ही रहा.

काफ़ी देर बाद अलीशा कमरे मे आई. उसने आते ही हंसते हुए मुझसे पूछा.

अलीशा बोली “काम सब ठीक ठाक हो गया ना.”

मैं बोला “हाँ काम तो सब ठीक ठाक हो गया है. लेकिन एक गड़बड़ हो गयी है.”

अलीशा बोली “क्या हुआ.”

मैने उसे कल की सारी सच्चाई बता दी. इस पर अलीशा हंसते हुए कहने लगी.

अलीशा बोली “इसमे गड़बड़ की क्या बात है. पहली पहली बार हर लड़की के साथ ऐसा ही होता है. आप चिंता ना करे, मैं सब संभाल लुगी.”

इसके बाद अलीशा उठ कर पद्मिानी के पास चली गयी. उसने पद्मिकनी को भी समझा दिया कि, घबराने की कोई बात नही है. ऐसा सभी लड़कियों के साथ होता है. उसकी बात से पद्मिीनी को कुछ राहत महसूस हुई.

उसके बाद समय यूँ ही बीतने लगा. बीच बीच मे मुझे और पद्मि नी को जब भी मौका मिलता, हम खुल कर सेक्स करते. ये सब चलते हुए एक साल हुआ और फिर राज का जनम हो गया. हमारे घर मे खुशियाँ मनाई जाने लगी.

मैने और पद्मिानी ने तय कर लिया कि अब हम सेक्स संबंध नही बनाएगे. लेकिन कुछ समय बाद, आकाश एक लड़की की चाहत जाहिर करने लगा. उसी समय अलीशा की भी तबीयत खराब रहने लगी थी. जब उसका इलाज कराया गया तो, उसको कॅन्सर निकला. जो कि आख़िरी स्टेज पर था.

अलीशा तो मेरी हर बात जानती ही थी. उसने भी अपनी आख़िरी इच्छा यही रखी कि, मैं जल्द से जल्द पद्मिेनी की झोली एक लड़की से भर दूं. आकाश और अलीशा की बात मानने के लिए मैने एक बार फिर पद्मिमनी से सेक्स संबंध बनाना सुरू कर दिए.

इधर दिन ब दिन अलीशा की हालत गिरती जा रही थी और उधर पद्मिरनी के भी दिन पूरे होने वाले थे. आख़िर भगवान ने अलीशा की सुन ली और पद्मिकनी ने रिया को जनम दे दिया. रिया के जनम के कुछ दिन बाद ही अलीशा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

इन थोड़े से दिनो मे ही मैं अलीशा को बहुत प्यार करने लगा था. इसलिए उसकी मौत के बाद मैं टूट सा गया था. तब मुझे अलीशा के गम से पद्मिानी ने बाहर निकाला और हम दोनो के बीच एक बार फिर से नज़दीकियाँ बन गयी. जिसके कारण कुछ ही समय बाद प्रिया का जनम हुआ.

प्रिया के जनम के बाद मैं अपने आपको संभाल चुका था. इसलिए फिर मैने और पद्मिकनी ने कभी सेक्स संबंध बनाने की कोई कोशिश नही की और हम लोग अपने बच्चों के बीच खुश रहने लगे.

पद्मि नी को शादी के बाद का जो सुख आकाश से मिलना चाहिए था. उसे वो उस से कभी ना मिल सका. फिर भी वो इस सब दर्द को पी गयी और कभी आकाश पर ये बात जाहिर नही होने दी. मगर एक बार फिर पद्मिभनी का अतीत उसकी बीमारी बनकर उसके सामने खड़ा है.

अब मेरी उमर तो इतनी रही नही कि, मैं पद्मिबनी की इस कमी को पूरा कर सकूँ. इसलिए मैने ये बात तुमसे कही है. तुम्हारा गरम खून है और अभी तुमको भी सेक्स करने की बहुत इच्छा होती होगी. ऐसे मे यदि तुम ये सब करते हो तो, इसमे तुम्हारी इच्छा की पूर्ति भी हो जाएगी और इसी बहाने पद्मिहनी का इलाज भी हो जाएगा.

अब आगे की कहानी पुन्नू की ज़ुबानी...

दादा जी कहानी सुनने के बाद मैं कीर्ति की तरफ देखने लगा. उसके चेहरे पर कयि रंग आ जा रहे थे. मगर मैं इस सब का मतलब नही समझ पा रहा था कि, उसके मन मे इस समय क्या चल रहा है. उसको इस तरह खामोश देख कर मुझे डर भी लग रहा था कि, वो फिर से कहीं नाराज़ ना हो जाए.

मगर इस सब के बाद भी, मेरी उस से कुछ कहने की हिम्मत नही हो रही थी. मैं बस खामोशी से उसकी तरफ देख रहा था. कुछ देर तक ये खामोशी यू ही बनी रही. फिर कीर्ति ने खुद ही इस खामोशी को तोड़ते हुए कहा.

कीर्ति बोली “हमे यहाँ आए हुए बहुत देर हो गयी है. अब हमे घर वापस चलना चाहिए.”

कीर्ति की ये बात सुनकर मुझे तो ऐसा लगा, जैसे किसी ने बड़ा सा पत्थर मेरे उपर रख दिया हो और मैं उसके वजन से दब गया हूँ. उस समय मुझे कीर्ति पर गुस्सा तो नही आ रहा था, मगर अपने उपर रोना ज़रूर आ रहा था कि, मैं जिस लड़की से कुछ नही छुपा रहा हू. वो ही मेरी एक ज़रा सी बात को समझने को तैयार नही है.

आख़िर मैने ऐसा किया ही क्या है. मैने तो सिर्फ़ वो ही सब बातें बताई थी. जो मेरे साथ हुई थी. इसमे मेरी ग़लती ही क्या थी. क्या मेरी यही ग़लती थी कि, मैं कीर्ति से कुछ भी छुपाना नही चाहता था. क्या मेरी यही ग़लती थी कि, मैं अपने से जुड़ी हर बात उसे बताए जा रहा था.

यही सब बातें सोचते सोचते मेरा चेहरा रुआंसा सा हो गया. मेरे दिल पर एक अजीब सा बोझ, मुझे महसूस होने लगा. इसलिए मैने ना तो कीर्ति की बात का कोई जबाब दिया और ना ही उसकी तरफ देखा. मैं सर झुका कर खामोश बैठ गया.

कीर्ति ने जब मुझे इस तरह से बैठे देखा तो, वो मेरे पास आकर खड़ी हो गयी और फिर मुझसे कहने लगी.

कीर्ति बोली “तुमने सुना नही, मैं क्या कह रही हूँ.”

लेकिन मैने कुछ ना कहा. मैं खामोश बैठा रहा. तब उसने फिर से कहा.

कीर्ति बोली “मैं कह रही हूँ कि, अब हमे घर चलना चाहिए. हमे यहाँ आए बहुत देर हो गयी है. फिर तुम्हे वापस भी तो जाना है.”

मगर मैने अभी भी कोई जबाब नही दिया. मैं यू ही सर झुकाए बैठा रहा और मन ही मन कीर्ति से हज़ारों सवाल करता रहा. लेकिन जब कीर्ति ने देखा कि, मैं ना तो उसकी बात का कोई जबाब दे रहा हूँ और ना ही उसकी तरफ देख रहा हूँ. तब वो मेरे बिल्कुल पास आकर खड़ी हो गयी और मेरे बालों मे उंगलियाँ चलाते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली “तुम्हे क्या हो गया है. तुम ऐसे क्यो बैठे हो. मेरी किसी बात का जबाब क्यो नही दे रहे.”

मैं कहना तो बहुत कुछ चाह रहा था. मगर कीर्ति के इस बर्ताव से, मेरे दिल को ऐसी ठेस लगी थी कि, मैं चाह कर भी कुछ नही बोल पा रहा था. यदि कीर्ति ने ये बात सुनकर मुझे भला बुरा बोल लिया होता तो, मुझे इतना बुरा नही लगता. लेकिन मेरी बात सुनने के बाद उसका सीधे घर वापस चलने को कहना, ना जाने क्यो मेरे दिल को दुख पहुचा रहा था.

मैं सिर्फ़ खामोश बैठा रहा और अब मेरी खामोशी कीर्ति को परेशान करने लगी थी. जब मैं उसके बार बार पुच्छने पर भी कुछ नही बोला. तब कीर्ति ने मेरे सर को खीच कर अपने सीने से लगा लिया. शायद उसे मेरे दर्द का अहसास हो गया था. मगर वो उसकी वजह नही समझ पाई थी. इसलिए वो मुझे अपने सीने से चिपका कर पुछ्ने लगी.

कीर्ति बोली “जान, तुम्हे मेरी कसम है. बोलो तुम्हे क्या हुआ है. तुम इस तरह चुप क्यो हो.”

कीर्ति की कसम ने मुझे बोलने पर मजबूर कर दिया और मेरे सब्र का बाँध टूट गया. मैने उस से कहा.

मैं बोला “मुझे क्या हुआ है. हुआ तो तुझे है. जो मेरी ज़रा सी बात को सुनकर मेरे साथ ऐसा बर्ताव कर रही है, जैसे मैने कोई बड़ा भारी गुनाह कर दिया हो. आख़िर मैने किया क्या है. मैने तो सिर्फ़ तुझे वो बात बताई है. जो मेरे साथ वहाँ पर हुई थी. इस सब मे मेरी ग़लती कहाँ है. बताओ मुझे.”

ये बात सुनते ही कीर्ति को समझ मे आ गया कि, मुझे क्या हुआ है. वो मेरे बालों मे हाथ फेरते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली “ओ हो, मेरी जान, मुझसे नाराज़ है. लेकिन मैने तो अपनी जान की बात सुनकर उसको कुछ भी नही कहा. ना ही उस पर कोई गुस्सा किया. फिर मेरी जान मुझसे क्यो नाराज़ है.”

मैं बोला “ज़्यादा मत बन. तूने कुछ ना कह कर भी बहुत कुछ कह दिया.”

कीर्ति बोली “कसम से जान, मुझे नही पता कि, तुम्हे मेरी कौन सी बात बुरी लगी है. प्लीज़ बोलो, तुम्हे मेरी कौन सी बात बुरी लगी है.”

मैं बोला “जब बोलने वाले को ही अपनी बात का पता नही है तो, फिर मैं क्यो बोलू.”

कीर्ति बोली “जान तुम्हे मेरी कसम, प्लीज़ बताओ, तुम्हे मेरी कौन सी बात बुरी लगी है.”

एक बार फिर मुझे कीर्ति की कसम के आगे झुकना पड़ा. मैने कहा.

मैं बोला “तूने मेरी बात सुनने के बाद ये क्यो कहा कि, अब हमे घर चलना चाहिए.”

कीर्ति बोली “बस इतनी सी बात है. अरे वो तो मैने इस लिए कहा था, क्योकि अभी हमे जाकर अंकिता से भी तो मिलना है.”

मैं बोला “ज़्यादा झूठ मत बोल. मैं जानता हूँ कि, तूने ये बात गुस्से मे कही थी. मगर मेरे उपर तेरा गुस्सा फ़िजूल है. मैने जब कुछ ऐसा वैसा किया ही नही है. तब तेरा मेरे उपर गुस्सा करने का क्या मतलब है.”

कीर्ति बोली “जान, जैसा तुम सोच रहे हो, ऐसा कुछ भी नही है. मेरा यकीन करो. मैं तुम पर ज़रा भी गुस्सा नही थी. बस तुम्हारी बात सुनकर मैं ज़रा परेशान हो गयी थी और मेरा मूड खराब हो गया था. इसलिए मैने तुमसे घर वापस चलने को कहा था.”

मैं बोला “क्यो, ऐसा क्या हुआ, जो मेरी बात सुनकर तू परेशान हो गयी और तेरा मूड खराब हो गया.”

कीर्ति बोली “जान, अब उस बात को छोड़ो भी. अब मेरा मूड अच्छा है. हम कोई और बात करते है.”

मैं बोला “नही, मुझे जानना है कि, किस बात ने तुझे परेशान किया है. तू नही जानती कि तेरे अचानक बिना कुछ कहे घर वापस चलने की बात से मुझे कितनी तकलीफ़ पहुचि है.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति ने अपने दोनो हाथ अपने कान पर रख लिए और कान पकड़ कर कहने लगी.

कीर्ति बोली “सॉरी जान, मुझसे ग़लती हुई. अब मैं दोबारा कभी ऐसा नही करूगी. अब तो तुम अपना गुस्सा ख़तम करो.”

मैं बोला “नही, मैं तुझ पर ज़रा भी गुस्सा नही हूँ. लेकिन मुझे ये जानना है कि, तूने ऐसा क्यो किया.”

कीर्ति बोली “जान प्लीज़, इस बात को ख़तम करो ना. मैं कान पकड़ कर तुमसे सॉरी कहती हूँ. दोबारा कभी ऐसी ग़लती नही करूगी.”

जब कीर्ति मुझे बात बताने को तैयार नही हुई तो, मेरा मूड खराब हो गया. मैने उस से गुस्से मे कहा.

मैं बोला “ठीक है, तू मुझे नही बताना चाहती तो, मत बता. चल हम घर वापस चलते है.”

ये कह कर मैं उठ कर खड़ा हो गया और जाने के लिए आगे बढ़ा ही था की, कीर्ति ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा.

कीर्ति बोली “अच्छा जी. अब ये मुझ पर गुस्सा नही तो, क्या दिखाया जा रहा है.”

उसके मूह से अच्छा जी सुनते ही मेरे दिल मे फिर से गुदगुदी होने लगी. लेकिन मैने अपनी मुस्कुराहट को छुपा कर, झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

मैं बोला “मैं कोई गुस्सा नही हूँ. लेकिन जब तुम्हे अपनी कोई बात मुझे बतानी ही नही है तो, फिर हम रुक कर यहा क्या करेगे. मैं ही पागल हूँ, जो अपनी हर छोटी बड़ी बात तुम्हे बता देता हूँ.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति को लगा कि, मैं सच मे उस से गुस्सा हो गया हूँ. इसलिए वो मुझे मानते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली “ओके बाबा, अब तुम अपना गुस्सा थूक दो. तुम पागल नही हो. मैं ही पागल हूँ, जो तुम्हे अपनी बात नही बता रही थी. चलो मैं तुम्हे अपनी बात बता देती हूँ. लेकिन पहले तुम अपना मूड ठीक करो और यहाँ बैठो.”

मैं बोला “मेरा मूड ठीक हो जाएगा. पहले तुम अपनी बात बोलो.”

ये कह कर मैं वापस अपनी जगह पर जाकर बैठ गया. मेरे बैठते ही कीर्ति भी मेरे पास आकर बैठ गयी. वो थोड़ी देर चुप रही और फिर उसने एक बार मेरी तरफ देखा. उसके बाद अपने चेहरे को सामने की तरफ घुमा लिया और अपनी बात कहना शुरू कर दी.

कीर्ति बोली “जान, तुम्हारे मूह से दादा जी की बात सुनकर मुझे लगा कि, तुमको उनकी मदद करना चाहिए. लेकिन जब मैने तुम्हारे साथ आंटी की कल्पना की तो, मुझसे ये सब सहन नही हुआ और मेरा मूड खराब हो गया. मैं इस बारे मे और बात नही करना चाहती थी. इसलिए मैने तुमसे घर वापस चलने को कहा था.”

मैं बोला “तुझे ये सब सोचने की कोई ज़रूरत नही है. तू बेकार मे परेशान मत हो. मैं इस सब के लिए पहले ही मना कर चुका हूँ. मेरी हर खुशी तुझ से ही जुड़ी है. जिस बात से तू खुश नही है. उस बात से भला मैं खुश कैसे रह सकता हूँ. इसलिए अब इस बारे मे कोई बात नही करेगे. अब तो तू अपना मूड ठीक कर ले.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति मेरे सीने से लग गयी और बड़ी मासूमियत के साथ कहने लगी.

कीर्ति बोली “आइ लव यू जान. तुम सच मे बहुत अच्छे हो. मैं तुम्हारे बिना नही रह सकती. तुम कभी मुझे छोड़ कर तो नही जाओगे.”

मैं बोला “कभी नही. मैं तुझसे दूर होने की कभी सोच भी नही सकता. तू तो मेरी जान है.”

ये कह कर मैने कीर्ति को अपने सीने पर दबा लिया. वो अब भी बहुत भावुक हो रही थी और इसी भावना मे बहती हुई वो कहने लगी.

कीर्ति बोली “जान, यदि तुम मुझसे दूर हो गये तो, मैं सच मे जी नही पाउन्गी. मैं तुम्हे किसी का होते हुए भी नही देख सकती. यदि कभी ऐसा हो गया तो, मैं अपने आपको ख़तम कर दुगी.”

मैं बोला “ये मरने की बात क्यो कर रही है. मेरे जीवन मे तेरे सिवा कभी कोई नही आएगा. मैं हमेशा तेरा ही रहुगा.”

मेरे इतना सब कहने पर भी, आज ना जाने कीर्ति पर क्या जुनून सवार हो गया था कि, वो इस बात को करना बंद ही नही कर रही थी. ऐसा लग रहा था, जैसे उसके मन मे मुझसे दूर होने का डर समा गया हो. वो बार बार बस उसी बात को दोहराई जा रही थी.

उस समय कीर्ति बिल्कुल किसी मासूम बच्चे की तरह, मेरे सीने से लगी सवाल किए जा रही थी और मैं उसके सवालों का जबाब दिए जा रहा था. जब मैने देखा कि कीर्ति बहुत ज़्यादा भावुक हो रही है. तब मैने माहौल को हल्का बनाने के लिए उसके माथे को चूमा और कहा.

मैं बोला “आज हम इतने दिन बाद मिले है और आज तूने अपनी किस्सी नही ली. क्या आज तेरा किसी लेने का मूड नही है.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति हँसने लगी और फिर अपना चेहरा मेरे सामने करके अपनी आँख बंद कर ली. उस समय उसके सुंदर चेहरे पर बहुत ही मासूमियत झलक रही थी और मुझे उस पर सारे जमाने का प्यार लुटाने का मन कर रहा था. मेरी नज़र उसके चेहरे से हट ही नही रही थी. मैं बस उसे एक-टक देखे जा रहा था.
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उसके होंठ किस करने के इंतजार मे फड़फडाए जा रहे थे. मैं इतने दिलकश नज़ारे को मिस करना नही चाहता था. मैं बस उसे देखे जा रहा था. मेरे सामने दुनिया की सबसे सुंदर लड़की थी और मैं उसे देख देख कर अपनी किस्मत पर गुमान कर रहा था.

मैं अपने आप मे गुम था और कीर्ति मेरे किस करने का इंतजार कर रही थी. लेकिन जब मैने उसे बहुत देर तक किस नही किया तो, उसने अपनी आँखे खोल कर मेरी तरफ देखा और पुच्छने लगी.

कीर्ति बोली “क्या हुआ जान, किस क्यो नही कर रहे हो.”

मैं बोला “जान, तू दुनिया की सबसे सुंदर लड़की है.”

कीर्ति बोली “ओके बाबा, मैं सबसे सुंदर हूँ. अब तो किस करो.”

मैं बोला “मुझे कोई किस विस्स नही करना. मैने तो तुझसे किसी लेने को कहा था.”

कीर्ति बोली “जान, अब ज़्यादा नाटक मत करो. सीधे तरह से किस करते हो या नही.”

मैं बोला “मैं नही करूगा.”

कीर्ति बोली “जानंननणणन्, प्लीज़ किस करो ना. क्यो अच्छा भला मूड खराब कर रहे हो.”

मेरा मूड उसके साथ शरारत करने का हो रहा था. इसलिए मैने उसे तंग करते हुए कहा.

मैं बोला “बोल तो दिया कि, मुझे कोई किस नही करना. फिर क्यो ज़बरदस्ती मेरे पिछे पड़ी है.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति ताव मे आ गयी और मुझे धमकाते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली “अच्छा तो मैं तुम्हारे पिछे पड़ी हूँ. अब मैं भी देखती हूँ कि, तुम मुझे कैसे किस नही करते.”

ये कह कर कीर्ति ने मेरे चेहरे को अपने हाथों मे पकड़ा और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख कर, ज़बरदस्ती किस करने लगी. मुझे उसका यू ज़बरदस्ती करना अच्छा लग रहा था. इसलिए मैं खुद को उस से छुड़ाने की कोसिस करने लगा.

मगर कीर्ति ने मेरे चेहरे को मजबूती से पकड़ लिया और मेरे होंठो को चूसना सुरू कर दिया. वो मेरे होंठ चूस रही थी और मैं खुद को उस से छुड़ाने की कोसिस कर रहा था. कीर्ति लगातार मेरे होंठ चुस्ती जा रही थी.

आख़िर कुछ देर बाद उसके किस ने असर दिखाना सुरू कर दिया और मेरी सारी नाटक बाजी बंद हो गयी. मैने भी अपने दोनो हाथ उसके चेहरे पर रख दिए और उसके किस के जबाब मे, मैं भी उसके होंठ चूसने लगा.

हम दोनो एक दूसरे के होंठों को जितना भी चूस रहे थे. हमारी प्यास उतनी ही बढ़ती जा रही थी. हम दोनो एक दूसरे के होंठ चूमने मे मगन थे. कीर्ति के होंठों को चूमते चूमते मैने अपना एक हाथ बढ़ा कर उसके सीने पर रख दिया. कीर्ति किस करने मे मगन थी. फिर भी उसका ध्यान एक पल के लिए किस से हट गया.

उसने मेरे हाथ को अपने सीने से अलग किया और फिर से किस करने लगी. मैं जानता था मेरे ऐसा करने से कीर्ति को दर्द होता है. फिर भी उसका इस तरह से मेरा हाथ अलग कर देना, मुझे अच्छा नही लगा. मेरी इस नाराज़गी का अहसास कीर्ति को चेहरे और किस करने से हो गया था.

लेकिन उसने किस करना बंद नही किया और अपनी जीभ मेरे मूह के अंदर डाल दी. फिर अपनी जीभ को मेरे मूह मे घुमाने लगी. मुझ पर एक अलग ही नशा चढ़ने लगा. कीर्ति ने अपनी आँख खोल कर मुझे देखा और फिर अचानक ही मेरा हाथ पकड़ कर अपने सीने पर रख दिया.

मगर मैने फ़ौरन ही अपना हाथ वापस हटा लिया. लेकिन कीर्ति ने फिर मेरा हाथ पकड़ कर अपने सीने पर रख लिया और धीरे धीरे अपने बूब्स पर दबाने लगी. कुछ पल के लिए मैने अपने हाथ को ढीला छोड़ा रहा. लेकिन उसके नरम नरम बूब्स का अहसास मिलते ही मेरे हाथ खुद ब खुद उसके बूब्स पर चलने लगे और मैं उन्हे धीरे धीरे दबाने लगा.

अभी हम किस करने मे मगन ही थे कि, तभी कीर्ति का मोबाइल बजने लगा. मैं किस करते करते रुक गया. लेकिन कीर्ति ने किस करना बंद नही किया और मुझे भी आँखों से इशारा करके किस करने को कहा. मैं फिर से किस करने मे मगन हो गया.

अब मैं बेहताशा कीर्ति के होंठों को चूस रहा था और उसके मूह मे अपनी जीभ डाल कर घुमा रहा था. साथ ही साथ उसके बूब्स को भी मसल रहा था. मुझे किस करने मे इतना मज़ा आ रहा था कि, मैने कीर्ति के बूब्स को ज़ोर ज़ोर से दबाना सुरू कर दिया. लेकिन कीर्ति ने मुझे नही रोका.

मेरे किस करने और कीर्ति के बूब्स मसल्ने से, कुछ ही देर मे कीर्ति के उपर वो ही पहले वाली मदहोशी सी छाने लगी और उसकी आँखे नशीली सी होने लगी. जिसे देखते ही मुझे पिच्छली बार वाली घटना की याद आ गयी. मैने फ़ौरन ही कीर्ति को किस करना और उसके बूब्स मसलना बंद कर दिया.

लेकिन कीर्ति अब पूरी तरह से मदहोशी के आलम मे थी. उसने फिर से मेरा हाथ पकड़ कर अपने बूब्स पर रख दिया और उन्हे दबाने का इशारा करने लगी. मैने डरते डरते फिर से उसे किस करना और उसके बूब्स मसलना सुरू कर दिए. कुछ ही देर मे, मेरे मे भी तनाव आना सुरू हो गया.

मेरे उपर भी एक अजब ही नशे का सुरूर छाया हुआ था. मैने इसी नशे के सुरूर मे कीर्ति को लिटा दिया और खुद उसके उपर आ गया. अब मैं मैं कपड़ो के उपर से ही कीर्ति के बूब्स को मसल्ते हुए अपने लिंग को कीर्ति की जांघों के बीच रगड़ने लगा.

कीर्ति तो मुझसे ज़्यादा नशे मे लग रही थी. वो अब बस अपनी आँखे बंद किए, मेरे बालों पर हाथ फेर रही थी. मेरे लिंग का तनाव बढ़ता जा रहा था और मैं ज़ोर ज़ोर से उसे कीर्ति की जांघों के बीच रगड़ रहा था और कीर्ति मेरे नीचे किसी मछली की तरह तड़प रही थी.

हम दोनो के उपर ही एक जुनून सॉवॅर था और जुनून मे हमे जो करना अच्छा लग रहा था. हम वो किए जा रहे थे. कुछ ही देर मे कीर्ति का तड़पना बंद हो गया. मगर मैं अभी भी ज़ोर ज़ोर से अपने लिंग को, कीर्ति की जांघों के बीच रगडे जा रहा था. अब कीर्ति लेटी लेटी बस मेरे सर पर हाथ फेर रही थी और मेरे रुकने का इंतजार कर रही थी.

फिर अचानक ही मेरे लिंग का तनाव कुछ ज़्यादा बढ़ा और उसने पानी छोड़ना सुरू कर दिया. मेरा सारा पानी मेरे अंडर वेअर मे समाने लगा. मेरा लिंग 4-5 पिचकारी छोड़ने के बाद शांत पड़ गया और मैं भी जल्दी से कीर्ति के उपर से उठ कर बैठ गया. मैने कीर्ति को भी पकड़ कर बैठा दिया और उसे अपने सीने से चिपका लिया.

आज मैं बहुत खुश था. क्योकि चाहे हम दोनो ने सेक्स ना किया हो. फिर भी आज मेरे लिंग का पानी कीर्ति की वजह से निकला था. कीर्ति का मोबाइल अभी भी बज रहा था. मगर उसे उसकी ज़रा भी परवाह नही थी. कुछ देर तक हम ऐसे ही एक दूसरे की बाहों मे बाहें डाल कर बैठे रहे.

फिर कुछ देर बाद कीर्ति ने कुछ सकुचाते हुए कहा.

कीर्ति बोली “जान, मुझे टाय्लेट जाना है.”

अब टाय्लेट तो मुझे भी जाना था. इसलिए मैं बिना कुछ कहे खड़ा हो गया और फिर हम लोग वही कुछ दूरी पर बने टाय्लेट की तरफ चल दिए. वहाँ हमे फ्रेश होने मे कोई 15 मिनट लगे. उसके बाद हम वापस आकर उसी जगह पर बैठ गये.

लेकिन अब हम दोनो ही खामोश थे और उस गुज़रे हुए पल के बारे मे सोच रहे थे. जो अभी हमने एक दूसरे के साथ बिताया था. कीर्ति की खामोशी से मुझे लगा कि, शायद उसे ये सब अच्छा नही लगा है. इसलिए मैने उस के चेहरे को पकड़ कर अपने चेहरे के सामने किया और उस से पुछा.

मैं बोला “क्या हुआ. इतना चुप चुप क्यो है. क्या तुझे मेरा वो सब करना बुरा लगा है.”

मेरे मूह से ये बात सुनते ही कीर्ति ने मुस्कुराते हुए मेरा हाथ पकड़ लिया और कहने लगी.

कीर्ति बोली “नही जान, मुझे तुम्हारा कुछ भी करना, बुरा नही लगा.”

मैं बोला “जब तुझे बुरा नही लगा तो, फिर तू इतनी चुप चुप क्यो थी.”

कीर्ति बोली “वो तो मैं इस लिए चुप थी. क्योकि मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, क्या बात करूँ.”

मैं कीर्ति को सवाल करके परेशान नही करना चाहता था. इसलिए मैने उसे अपने गले से लगा लिया और फिर कहा.

मैं बोला “चल कोई बात नही. लेकिन कुछ भी कहो. आज की तेरी किस्सी पहले की सभी क़िस्सी से लाजबाब थी.”

लेकिन अब कीर्ति अपने शरारती मूड मे वापस आ चुकी थी. उसने बड़ी शरारत वाले अंदाज मे मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “वो सब तो ठीक है. लेकिन तुम अपनी चाबी मुझे क्यो चुबा रहे थे.”

इतना कह कर कीर्ति हँसने लगी. उसकी बात सुनकर मुझे भी हँसी आ गयी और मुझे याद आया कि, जब पहली बार कीर्ति को मेरे लिंग की चुभन महसूस हुई थी. तब उसने मुझसे पुछा था कि, ये मुझे क्या चुभ रहा है. तब मैने ही उस से कहा था कि, ये मेरी बाइक की चाबी है. आज वो उसी बात को याद दिला कर मुझे छेड़ रही थी.

इस बात के याद आते ही, मैने भी मुस्कुरा कर, उसी के अंदाज मे जबाब देते हुए कहा.

मैं बोला “ये जिस ताले की चाबी है. वो ताला इस चाबी को आज तक मिला ही नही. इसलिए इसे तुझे चुभा कर, इस चाबी का अरमान पूरा कर दिया.”

कीर्ति बोली “जान, मुझे देखना है.”

मैं बोला “क्या देखना है.”

कीर्ति बोली “जान, मुझे तुम्हारी चाबी देखना है.”

मैं बोला “क्यो.”

कीर्ति बोली “बस यूँ ही देखना है.”

मैं बोला “अभी नही, फिर कभी देख लेना.”

कीर्ति बोली “नही, मुझे अभी ही देखना है.”

मैं बोला “क्यो बेकार मे परेशान कर रही है. कह तो रहा हूँ कि, बाद मे दिखा दूँगा.”

कीर्ति बोली “वाह, रिया देख सकती है तो, मैं क्यो नही देख सकती.”

कीर्ति के मूह से रिया का नाम सुनना मुझे अच्छा नही लगा और मेरा चेहरा उतर गया. कीर्ति समझ गयी कि, मुझे उसकी ये बात पसंद नही आई है. उसने फ़ौरन मुझे मनाते हुए कहा.

कीर्ति बोली “सॉरी जान, मैं तो मज़ाक कर रही थी. मुझे नही मालूम था कि, तुम्हे रिया का नाम लेना इतना बुरा लगेगा.”

मैने भी इस बात को ज़्यादा बढ़ाना ठीक नही समझा और अपना मूड सही करते हुए उस से कहा.

मैं बोला “देख मेरे और रिया के बीच जो कुछ भी हुआ है. वो सिर्फ़ एक वक्त का जुनून था. मैं अभी इतने दिन रिया के पास रह कर आया हूँ. मगर मैने इतने दिनो मे कभी भी उसके साथ ऐसा कुछ करने के बारे मे सोचा तक नही है.”

कीर्ति बोली “मैं जानती हूँ जान, तुम चाहते तो वहाँ सब कुछ कर सकते थे. लेकिन तुमने मेरे प्यार की खातिर कुछ भी नही किया.”

मैं बोला “जब तू सब जानती है तो, फिर बार बार रिया का नाम क्यो लेती है. तुझे मालूम है कि, मुझे तेरे मूह से उसका नाम सुनना अच्छा नही लगता.”

कीर्ति बोली “ओके, आज के बाद मैं कभी रिया का नाम नही लुगी. अब तुम अपना मूड सही करो.”

मैं बोला “मेरा मूड बिल्कुल सही है. तू बोल तुझे क्या बोलना है.”

मगर कीर्ति ने जब देखा कि मेरा मूड सही हो गया है. तब वो फिर से अपनी शरारत पर उतर आई और कहने लगी.

कीर्ति बोली “मुझे कुछ बोलना नही है. मुझे तो कुछ देखना है.”

ये बोल कर वो खिलखिला कर हँसने लगी. मैं उसकी इस बात से पिछा छुड़ाना चाहता था. इसलिए मैने बात को बदलते हुए कहा.

मैं बोला “ये बेकार की बात बंद कर और पहले अपना मोबाइल देख. ना जाने कब से किसी का फोन आए जा रहा है.”

लेकिन कीर्ति मेरी इस चल को समझ चुकी थी. उसने फ़ौरन अपनी बात को दोहराते हुए कहा.

कीर्ति बोली “ज़्यादा बात बदलने की कोसिस मत करो. मैने जो देखने को कहा है. पहले मुझे वो दिखाओ.”

मैने भी उस से भोला बनते हुए कहा.

मैं बोला “मैं कहा बात बदल रहा हूँ. मैं तो सिर्फ़ ये कह रहा हूँ कि, ना जाने कौन तुझे आधे घंटे से कॉल पर कॉल लगाए जा रहा है और तू है की देख तक नही रही है. एक बार देख तो ले, हो सकता है कि, कोई ज़रूरी कॉल आ रही हो.”

कीर्ति बोली “वो मैं कुछ देर बाद देख लुगी. अभी तो मुझे वो दिखाओ, जो मैं देखने को कह रही हूँ.”

जब मैने देखा की कीर्ति अपनी बात से पिछे नही हट रही है. तब मैने दूसरी चाल चलते हुए, उस से कहा.

मैं बोला “क्या तूने मुझे कभी कुछ दिखाया है. जो मैं तुझे दिखाऊ.”

कीर्ति बोली “तुम बोलो, तुम्हे क्या देखना है. मैं अभी दिखाती हूँ.”

मैने सोचा ये ऐसे ही बोल रही है. इसलिए मैने उसके बूब्स की तरफ इशारा करते हुए कहा.

मैं बोला “मुझे ये देखना है.”

कीर्ति बोली ‘बस इतनी सी बात, ये लो मैं अभी दिखा देती हूँ.”

ये कह कर उसने एक नज़र अगल बगल दौड़ाई और फिर अपने टॉप को पकड़ कर उपर उठाने लगी. जब मैने उसे ऐसा करते देखा तो, फ़ौरन उसका हाथ पकड़ लिया और उसे रोकते हुए कहा.

मैं बोला “तुझे कुछ शरम हया है कि नही. कहीं भी, कुछ भी करने लगती है.”

कीर्ति बोली “मेरे अंदर शरम हया दोनो है. लेकिन तुमसे कैसी शरम. ये सब तुम्हारा ही तो है. फिर भला मैं इसे देखने से, तुम्हे रोकने वाली कौन होती हूँ.”

कीर्ति की ये बात मेरे दिल को छु गयी. मुझे उसके उपर बहुत ज़्यादा प्यार आया और मैने उसे खीच कर अपने गले से लगाते हुए कहा.

मैं बोला “तू सच मे बहुत बड़ी पागल है. तुज़से जीत पाना मेरे बस की बात नही है.”

कीर्ति बोली “जब तुम्हे ये मालूम है तो, फिर तुम ऐसी कोसिस ही क्यो करते हो. अब मुझे बातों मे मत बहलाओ और जो मुझे देखना है, जल्दी से दिखाओ.”

मैं बोला “इस सब के लिए ये ठीक जगह नही है. तुझे देखना ही है तो, तू घर चल कर देख लेना.”

कीर्ति बोली “वाह इसे देखने के लिए ये सही जगह नही है और अभी जो कर रहे थे. उसके लिए ये ठीक जगह थी.”

मैं बोला “यार तुझे पता है कि, वो सब अचानक ही हो गया था. मेरा ऐसा कुछ भी करने का कोई इरादा नही था.”

कीर्ति बोली “तो फिर इसे भी अचानक कर दो.”

कीर्ति की इस बात का मेरे पास कोई जबाब नही था. मैं अजीब ही परेशानी मे फस गया था. कीर्ति मुझे अपनी बातों मे उलझाए जा रही थी और मैं उसकी बातों मे उलझा जा रहा था. जब उसने मुझे इस तरह परेशान देखा तो, फिर वो हंसते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली “चलो, आज मैं तुम्हे छोड़ देती हूँ. लेकिन अगली बार मैं तुम्हारी इस चाबी को देख कर ही रहूगी. अगली बार कोई बहाना नही चलेगा.”

ये कह कर वो खिलखिलाकर हँसने लगी और मैने भी राहत की साँस ली. कुछ देर तक वो यू ही हँसती रही. फिर जब उसकी हँसी थमी तो, उसने थोड़ा संजीदा होते हुए मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “जान, मैं तुम्हे बहुत परेशान करती हूँ ना.”

मैं बोला “नही, तू मुझे ज़रा भी परेशान नही करती.”

कीर्ति बोली “सच मे मैं तुम्हे परेशान नही करती ना.”

मैं बोला “हाँ, तू सच मे मुझे परेशान नही करती. बल्कि तेरी ये शरारते ही तो है. जो तेरे पास ना होने पर भी, मुझे हमेशा तेरे पास बनाए रखती है और हमेशा गुदुगुदाये रहती है.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति ने मेरे गाल को चूम लिया और मेरे सीने से लगती हुई कहने लगी.

कीर्ति बोली “आइ लव यू जान.”

मैं बोला “आइ लव यू टू.”

ये कह कर मैं उसके सर पर हाथ फेरने लगा. तभी फिर से उसका मोबाइल बजने लगा. मगर कीर्ति ने अभी भी अपने मोबाइल को देखने की कोसिस नही की और मुझसे बात करने मे लगी रही.
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09-09-2020, 02:11 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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जब मैने देखा कि, उसका ध्यान मोबाइल की तरफ ज़रा भी नही है. तब मैने उसका ध्यान मोबाइल की तरफ दिलाते हुए कहा.

मैं बोला “तेरा मोबाइल कब से बजा जा रहा है. ज़रा देख तो किसका कॉल आ रहा है.”

कीर्ति बोली “मुझे नही देखना. अभी मैं तुम्हारे सिवा किसी से बात करना नही चाहती.”

मैं बोला “मैं तुझे बात करने को कहा कह रहा हूँ. मैं तो सिर्फ़ इतना चाहता हूँ कि, तू एक बार देख बस ले कि, कौन तुझे इतना कॉल लगा रहा है.”

कीर्ति बोली “जो कॉल लगा रहा है. उसे अब तक समझ जाना चाहिए था कि, मैं अभी कहीं पर बिज़ी हूँ. फिर वो क्यो ज़बरदस्ती इतने कॉल लगाए जा रहा है.”

मैं बोला “हो सकता है कि, तेरा ही कोई ज़रूरी कॉल आ रहा हो. एक बार देख लेने मे क्या बुराई है.”

कीर्ति बोली “जो मेरे लिए ज़रूरी है. वो मेरे पास है. मेरे लिए तुमसे ज़रूरी कुछ नही.”

कीर्ति की ये बात सुनकर मैने उसके गालों पर एक थपकी दी और फिर उसे समझाते हुए कहा.

मैं बोला “मैं कौन सा कही भागा जा रहा हूँ. मैं तो तेरे पास ही हूँ. तू एक बार देख बस ले कि, ये किस का कॉल आ रहा है.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति ने, अनमने मन से अपना मोबाइल निकाला और कॉल देखने लगी. कॉल देखने के बाद मन ही मन कुछ बुदबुदाने के बाद, उसने मोबाइल वापस रख दिया. उसकी इस हरकत पर मैं मुस्कुराए बिना ना रह सका. मैने उस से मुस्कुराते हुए पुछा.

मैं बोला “क्या हुआ. इतना गुस्सा किस पर कर रही है. किसका कॉल आया था.”

कीर्ति बोली “तुलिका का कॉल था.”

मैं बोला “तुलिका, तेरी वही सहेली है ना. जिसके घर जाने का कह कर, हम यहाँ आए है.”

कीर्ति बोली “हाँ, ये वही है. लेकिन ये मेरी कोई सहेली वहेली नही है.”

मैं बोला “तो फिर ये कौन है.”

कीर्ति बोली “ये सौरव की गर्लफ्रेंड है.”

मैं बोला “तो फिर ये तुझे क्यो कॉल लगा रही है. इसके पास तेरा मोबाइल नंबर कहाँ से आ गया.”

कीर्ति बोली “मुझे क्या मालूम, ये मुझे क्यो कॉल लगा रही है. मुझे तो सौरव ने इस से मिलवाया था. ताकि इसको यकीन आ सके कि, सौरव मुझसे शादी नही कर रहा है. मैने इस से मिलकर शादी ना करने की सच्चाई बता दी थी. तभी इसने मुझे अपना मोबाइल नंबर दिया था और मेरा मोबाइल नंबर लिया था.”

मैं बोला “तो फिर सुबह तूने ये क्यों कहा कि, तू अपनी सहेली तुलिका के यहाँ जा रही है.”

कीर्ति बोली “वो तो मैने इस लिए बोल दिया था. क्योकि इसे मेरे सिवा कोई नही जानता. अब मुझे क्या मालूम था कि, वहाँ मैं इसका नाम लुगी और यहाँ इसका कॉल आने लगेगा.”

मैं बोला “ठीक है, लेकिन इसमे इतना गुस्सा होने की क्या बात है.”

कीर्ति बोली “गुस्सा नही करूँ तो, क्या उसकी आरती उतारू. मैं यहाँ अपना समय तुम्हारे साथ बिताना चाहती हूँ और वो मुझे कॉल करके डिस्टर्ब कर रही है.”

मैं बोला “चल अपना गुस्सा छोड़ और अब उसका कॉल आए तो बात कर लेना. पता नही उसे तुझसे क्या काम आ गया है.”

मगर मेरी बात से कीर्ति को गुस्सा आ गया. वो तुनकते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली “मुझे अभी उस से कोई बात नही करना और अब तुम भी इस बारे मे कोई बात नही करोगे. तुमने अब यदि उसकी तरफ़दारी की तो, मुझसे बुरा कोई नही होगा.”

मैं बोला “गुस्सा क्यो होती है. तुझे बात नही करना तो मत कर, लेकिन अपना मूड तो खराब मत कर. चल तू अपना मूड सही कर, मैं तुझे एक चीज़ दिखाता हूँ.”

ये कह कर मैने अपना मोबाइल निकाला और एक फोल्डर खोल कर, मोबाइल कीर्ति को पकड़ा दिया. कीर्ति बड़े गौर से उस फोल्डर को देखने लगी और मैं बड़े इतमीनान के साथ कीर्ति को देखने लगा. कुछ देर बाद कीर्ति ने कहा.

कीर्ति बोली “तो ये है, निक्की.”

मैं बोला “हाँ, ये ही निक्की है.”

कीर्ति बोली “लेकिन ये फोटो तुम्हे कहाँ से मिली.”

मैं बोला “मैने निक्की को तुम्हारी फोटो इसी शर्त पर दिखाई थी कि, वो अपनी फोटो तुम्हे दिखाने के लिए मुझे देगी.”

कीर्ति बोली “ये तो सच मे हू-बू-हू मेरी तरह ही दिखती है. तुमने बेकार मे ही इस पर गुस्सा किया था.”

मैं बोला “हाँ वो तो है. मगर मैं क्या करता. मुझसे ये बात सहन नही हुई की, निक्की से तेरी बराबरी की जा रही है.”

कीर्ति बोली “चलो जाने दो. ये बताओ क्या तुमने प्रिया की फोटो ली है.”

मैं बोला “नही. लेकिन तुझे प्रिया की फोटो क्यो देखना है.”

कीर्ति बोली “मुझे देखना है कि, वो कौन सी खूबसूरत लड़की है. जो मेरी जान से इतना ज़्यादा प्यार करती है.”

कीर्ति की इस बात पर मैने भी कीर्ति को छेड़ते हुए कहा.

मैं बोला “ये बात तो सच है. प्रिया सच मे बेहद खूबसूरत है. तू एक बार उसे देख ले तो, तुझे भी उस से जलन होने लगेगी.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति ने पहले गुस्से से मुझे घूरा और फिर ना जाने क्या सोच कर, अपना मूह बनाते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली “मुझे क्यो उस से जलन होगी. मैं जानती हूँ, तुम ये बात मुझे छिडाने के लिए कह रहे हो. प्रिया मुझसे ज़्यादा सुंदर नही है.”

मैं बोला “नही, मैं झूठ नही बोल रहा. प्रिया सच मे तुझसे भी ज़्यादा सुंदर है.”

कीर्ति बोली “तुम फिर झूठ बोल रहे हो.”

मैं बोला “नही मैं झूठ नही बोल रहा. लेकिन तुझे क्यो लग रहा है कि, मैं झूठ बोल रहा हूँ.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति हसने लगी और अपनी आँखे मटकाती हुई कहने लगी.

कीर्ति बोली “तुम भूल गये हो कि, अभी कुछ देर पहले तुमने ही कहा था कि, प्रिया निक्की से सुंदर नही है.”

मैं बोला “हाँ मैने ऐसा कहा था. लेकिन मैने ये तो नही कहा कि, प्रिया तुझसे सुंदर नही है.”

कीर्ति बोली “इसमे कहने की क्या बात है. निक्की और मैं तो एक जैसे ही दिखते है और तुम्हारा ही कहना था कि, मैं निक्की से भी ज़्यादा सुंदर हूँ. अब बताओ जब प्रिया निक्की से ज़्यादा सुंदर नही हुई तो, वो मुझसे ज़्यादा सुंदर कैसे हो गयी.”

ये कह कर कीर्ति अपनी आँखो और हाथो से इशारे कर अपने सवाल का जबाब माँगने लगी. तब मुझे कीर्ति की बात का मतलब समझ मे आया और मैने हँसते हुए कहा.

मैं बोला “अब मेरी समझ मे आया की, तूने ये क्यो पुछा था कि, निक्की और प्रिया मे ज़्यादा सुंदर कौन है. मुझे नही पता था कि, तेरा दिमाग़ इस तरफ चल रहा है. तू सीधे सीधे मुझसे नही पूछ सकती थी कि, तुझमे और प्रिया मे ज़्यादा सुंदर कौन है.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति खिलखिला कर हँसने लगी और कहा.

कीर्ति बोली “मैं सीधे सीधे पूछती तो, तुम यही कहते कि, मैं ज़्यादा सुंदर हूँ. मैं दुनिया की सबसे सुंदर लड़की हूँ.”

ये कह कर वो फिर खिलखिला कर हसने लगी. लेकिन मैने उसका हाथ पकड़ा और बड़े ही प्यार भरे शब्दों मे कहा.

मैं बोला “देख तू चाहे माने या ना माने. लेकिन सच बात ये ही है कि, तू प्रिया और निक्की से बहुत ज़्यादा सुंदर है. तेरे ये लंबे बाल और ये माथे की बिंदी, तेरी सुंदरता को चार चाँद लगा देते है. तेरी ये आँखे, जिनमे झील से भी ज़्यादा गहराई है. इसकी बराबरी दुनिया की किसी चीज़ से नही की जा सकती. इस सब से बाद कर तेरी ये मुस्कुराहट है. जिसमे तेरा चेहरा किसी कमाल की तरह खिला हुआ दिखता है. मेरे लिए तो तू सच मे दुनिया की सबसे सुंदर लड़की है.”

मेरी बात सुन कर कीर्ति खिलखिलाकर हँसते हुए और कहने लगी.

कीर्ति बोली “बस बस जान, मेरी बहुत तारीफ हो गयी. मैं जानती हूँ तुम्हारे लिए दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की मैं ही हूँ. अब बहुत बातें हो चुकी है. अब हमे घर वापस लौटना चाहिए.”

मैं बोला “मेरा वापस जाने का मन नही है. हम इतनी जल्दी घर वापस जाकर क्या करेंगे. अभी तो सिर्फ़ 3:30 ही बजा है.”

कीर्ति बोली “तुम्हे 5:30 बजे एरपोर्ट पहुचना है. इस हिसाब से अब हमारे पास सिर्फ़ 2 घंटे बचे है. इन 2 घंटो मे हमे अंकिता से भी मिलना है और घर पर भी सब से मिलना है.”

मैं बोला “मुझे अंकिता से नही मिलना. जो समय मुझे अंकिता मे मिलने मे लगेगा. वो मैं तेरे साथ बिताना चाहता हूँ.”

कीर्ति बोली “जान समझा करो. यदि उस से मिलना ज़रूरी नही होता तो, मैं तुमसे अभी उस से मिलने के लिए नही कहती. लेकिन अब तुम्हे वहाँ जाकर मेहुल से बात करना ही पड़ेगी. तब हो सकता है कि, मेहुल को समझाने के लिए, तुम्हे अंकिता की ज़रूरत पड़ जाए.”

मुझे कीर्ति की बात सही लग रही थी. फिर भी मेरा मन वहाँ से जाने का नही कर रहा था. मैने कीर्ति की बात का बिना कोई जबाब दिए. उसको खीच कर अपनी गोद मे बैठा लिया और अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए. कीर्ति को भी जैसे इसी पल का इंतजार था. उसने बिना देर किए, मेरे सर पर अपना हाथ रखा और मेरे होंठों को चूसने लगी.

एक बार फिर हम एक दूसरे के शरीर मे समा जाना चाहते थे. हम दुनिया की हर बात से बेफिकर होकर एक दूसरे के होंठ चूस रहे थे. कुछ देर बाद कीर्ति ने मेरे होंठों को चूसना बंद किया और मेरे सारे चेहरे पर चुंबनो की बौछार करने लगी. वो बेहताशा मेरे चेहरे को चूमे जा रही थी.

ये हमारे इस मिलन की अंतिम बेला थी. जिसमे वो मुझे जी भर कर प्यार कर लेना चाहती थी. मैने भी उसके चेहरे को चूमना सुरू कर दिया. कुछ देर तक मैं यू ही उसके चेहरे को जगह जगह चूमता रहा. फिर कीर्ति ने मुझे रोका और मेरे माथे पर चूमते हुए खड़ी हो गयी.

लेकिन मैं अभी भी बैठा ही रहा. मेरा मन वहाँ से उठने का नही हो रहा था. मैं चाहता था कि, मैं अपने जाने से पहले, जितना ज़्यादा से ज़्यादा समय कीर्ति के साथ बिता सकूँ, बिता लूँ. यही सोच कर मैं कीर्ति की तरफ हसरत भरी निगाहों से देखने लगा.

कीर्ति मेरे दिल की बात समझ रही थी. उसने जब मुझे खड़े होते नही देखा तो, मेरा हाथ पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया और कहने लगी.

कीर्ति बोली “जान, अब बहुत प्यार करना हो गया. अब हमे चलना चाहिए.”

मैने अनमने मान से जबाब दिया.

मैं बोला “मेरा जाने का मन नही कर रहा है.”

कीर्ति बोली “जान, मुझे पता है. क्योकि मेरा मन भी यहा से जाने का नही कर रहा है. लेकिन अब अमि मिमी की खातिर हमे यहाँ से जाना ही होगा. क्योकि वो बड़ी बेसब्री से तुम्हारे वापस आने का इंतजार कर रही होगी.”

ये बात कह कर कीर्ति ने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया था. मेरी ज़िद कमजोर पड़ गयी थी. कीर्ति भी शायद इस बात को समझ चुकी थी. उसने मेरे हाथ को पकड़ कर खिचा और मैं बिना कोई विरोध किए खड़ा हो गया.

कीर्ति ने मेरी बाहों को अपने हाथों मे थाम लिया और फिर हम चलते हुए नीचे आ गये. मगर अब मैं खामोश था. कीर्ति ही थोड़ी बहुत बातें कर रही थी. नीचे आकर मैने अपनी बाइक उठाई और फिर हम अंकिता से मिलने के लिए चल पड़े.

मैं रास्ते मे भी खामोश ही रहा. कीर्ति मेरी इस खामोशी का मतलब समझ रही थी. इसलिए उसने मेरी इस खामोशी को तोड़ने और मेरे मन को बहलाने के लिए, मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “जान, तुमने मुझे अपने इस नये दोस्त के बारे मे तो, कुछ भी नही बताया.”

मैं बोला “किसके.”

कीर्ति बोली “वही, जिसने तुम्हे यहाँ आने मे इतनी मदद की है.”

मैं बोला “उसका नाम अजय है. उस से मेरी मुलाकात अंकल के ओप्रेशन के दिन हुई थी. मैं और रिया उसकी टॅक्सी मे बैठ कर ही घर आए थे. तब उस से मेरी रिया को लेकर थोड़ी बहुत बातें हुई और इन्ही बातों बातों मे मेरी उस से दोस्ती हो गयी. फिर मेरी उस से अक्सर उस से हॉस्पिटल मे मुलाकात होने लगी. क्योकि वो हॉस्पिटल के बाहर ही अपनी टॅक्सी लगाता था. मगर तब तक मैं उसके बारे मे कुछ नही जानता था.”

“लेकिन जब मैने तेरी सगाई की खबर सुनी तो मैं पूरी तरह से टूट गया था और अपने आपको संभालने के लिए मेरे मन मे शराब पीने का ख़याल आया. उस दिन अजय अपनी टॅक्सी लेकर हॉस्पिटल मे ही था. उसने जब मेरी हालत देखी तो, वो समझ गया कि, मेरे साथ कुछ बुरा हुआ है. जब मैने उस से मुझे किसी होटेल मे छोड़ने की बात की तो, वो मुझे अपने घर ले गया. मैं तो समझा था कि, उसका घर छोटा सा होगा.”

“लेकिन जब उसके घर पहुचा लो वहाँ एक आलीशान बंग्लो था. लेकिन उस समय मेरी हालत ऐसी नही थी कि, मैं उस से इस सब के बारे मे पुच्छ सकूँ. फिर आज जब मैने एरपोर्ट जाने के लिए अजय को बुलाया तो, निक्की ने उसे देख कर कहा कि, वो उसे अच्छी तरह से जानती है. फिर अजय ने भी यही बात कही कि, वो निक्की को जानता है और निक्की की वजह से ही वो पहले दिन मेरे और रिया पर ध्यान दे रहा था. मैने उस से पुछा कि, वो मेरी इतनी मदद क्यो कर रहा है तो, उसका कहना था कि, वो भी किसी से प्यार करता है. लेकिन उसका प्यार उसे नही मिल रहा है. इसलिए मेरे प्यार को मुझसे मिलकर उसे खुशी हो रही है.”

इतना कह कर मैं चुप हो गया और कीर्ति के कुछ बोलने का इंतजार करने लगा. मेरी बात सुनने के बाद कीर्ति कुछ देर तक खामोश रही. फिर कुछ सोच कर उस ने कहा.

कीर्ति बोली “जान, तुम जानते हो, अजय जिस लड़की से प्यार करता है, वो लड़की कहाँ है.”

मैं बोला “नही, मेरी इस बारे मे कभी बात नही हुई.”

कीर्ति बोली “लेकिन मैं जानती हूँ कि, वो लड़की कहाँ है.”

मैं बोला “जब मैं उस लड़की के बारे मे कुछ नही जानता तो, तू कैसे जान सकती है कि, वो लड़की कहाँ है.”

कीर्ति बोली “जान, सीधी सी बात है. इतना बड़ा आदमी यदि टॅक्सी चला रहा है तो, वो पैसे कमाने के लिए तो, टॅक्सी नही चला रहा होगा.”

मैं बोला “बात तो तेरी सही है. लेकिन तू कहना क्या चाहती है.”

कीर्ति बोली “जान, मैं कहना चाहती हूँ कि, अजय अपनी टॅक्सी हॉस्पिटल मे ही लगाता है. जिसका मतलब सॉफ है कि, वो लड़की हॉस्पिटल की ही कोई लड़की है. शायद उस लड़की को भी मालूम नही होगा कि, अजय इतना बड़ा आदमी है.”

मैं बोला “तेरी इस बात मे दम तो है. लेकिन एक बात समझ मे नही आ रही कि, डॉक्टर अमन, जब अजय का दोस्त है. तो फिर वो इस सब मे, अजय की मदद क्यो नही कर रहा है.”

कीर्ति बोली “जान, ऐसा नही है. जब डॉक्टर अमन, अजय के कहने पर तुम्हारी मदद कर सकता है तो, तुम खुद सोचो कि, वो अजय की मदद क्यो नही करेगा. वो अजय की मदद ज़रूर कर रहा होगा. लेकिन मुझे लगता है कि, अजय की लव स्टोरी मे कोई ऐसा ट्विस्ट है. जिसकी वजह से कोई भी, कुछ नही कर पा रहा है.”

मैं बोला “हो सकता है कि, तेरा कहना सही हो. अब जो भी बात होगी. अजय से बात करके ही पता चलेगी.”

कीर्ति बोली “तुम बात करके देख लेना. मेरी बात सही निकलेगी. वो लड़की हॉस्पिटल की ही कोई लड़की होगी.”

मैं बोला “ठीक है, अब तू ये बता कि, मुझे अंकिता से क्या बात करनी है.”

कीर्ति बोली “तुम्हे उस से कोई बात नही करनी है. मैं सिर्फ़ उस से तुम्हे मिलवाने के लिए, लेकर चल रही हूँ. वहाँ चल कर तुम्हारा मोबाइल नंबर उसको और उसका मोबाइल नंबर तुमको दे दुगी. बस इतना ही करना है.”

मैं बोला “लेकिन यदि मेहुल उस से बात करने को बोलेगा तो फिर क्या करूगा.”

कीर्ति बोली “वो मैं उसको समझा दुगी कि, हो सकता है कि, पुन्नू का दोस्त पुन्नू की गर्लफ्रेंड से बात करना चाहे. तब तुम पुन्नू की गर्लफ्रेंड बन कर उस से बात कर लेना.”

मैं बोला “वो ये नही पुछेगि कि, तुम खुद मेरे दोस्त से बात क्यो नही कर लेती हो.”

कीर्ति बोली “जान, मैं उस से कह दूँगी कि, पुन्नू का दोस्त मेरे रिश्ते मे लगता है. इसलिए मैं उस से बात नही कर सकती.”

मैं बोला “यदि मेहुल ने कभी उस से मिलने की ज़िद की, तब क्या करेगे.”

कीर्ति बोली “जानंनननणणन्, तुम इतना सब कुछ मत सोचो. मैने सब सोच कर रखा है. यदि मेहुल उस से मिलना चाहेगा तो, हम मेहुल को उस से मिलवा देगे.”

मैं बोला “तू कहती है तो, मैं कुछ नही सोचता. लेकिन ये अंकिता देखने मे कैसी है.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति हँसते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली “जान, तुम मेरी पसंद पर यकीन रखो. मैने तुम्हारे लिए झूठी गर्लफ्रेंड ज़रूर ढूंढी है. मगर उस कमिनि शिल्पा को ध्यान मे रख कर ढूंढी है. अंकिता किसी भी तरह से शिल्पा से कम नही है.”

मैं बोला “तू शिल्पा से इतना क्यो चिढ़ती है. उसने तो हमारे साथ कुछ भी ग़लत नही किया है.”

कीर्ति बोली “वो इसलिए क्योकि तुमने उस से प्यार किया और उसने कभी तुम्हारे प्यार का अहसास तक नही किया.”

मैं बोला “उसे अहसास तो तब होता, जब मैं कभी उसे बताता. लेकिन जब मैने कभी उस से कुछ कहा ही नही है तो, फिर उसे अहसास कैसे होता. फिर इसमे उसकी ग़लती कैसे हुई.”

कीर्ति बोली “मुझे नही मालूम. लेकिन मेरी जान को कोई ठुकराए, ये मैं नही सह सकती.”

मैं बोला “लेकिन इस बात मे तो मेरा भला ही हुआ है. मुझे भला तेरे जितना प्यार करने वाला कहाँ मिलता. मेरे लिए तो तू.........”

मैं अभी इतना ही बोल पाया था कि कीर्ति ने मेरी बात को बीच मे ही रोक कर, पूरा करते हुए कहा.

कीर्ति बोली “तू दुनिया की सबसे सुंदर लड़की है.”

ये कह कर वो खिलखिलाकर हँसने लगी. उसकी इस बात पर मुझे भी हसी आ गयी और मैं फिर उसे कुछ कहने लगा.

मैं बोला “तू......”

लेकिन फिर कीर्ति ने मेरी बात को पूरा करते हुए कहा.

कीर्ति बोली “तू कभी नही सुधरेगी.”

ये कह कर कीर्ति फिर से हँसने लगी और उसके साथ साथ मैं भी हँसने लगा. हम यूँ ही अपनी बात करते करते, अंकिता के घर पहुच गये. मेरे बाइक रोकते ही कीर्ति उतर कर डोरबेल बजाने चली गयी और मैं बाइक खड़ी करने लगा. मैं बाइक खड़ी करके कीर्ति के पास आया, तब तक दरवाजा भी खुल चुका था.

दरवाजा अंकिता ने ही खोला था. कीर्ति को अपने सामने देखते ही उसने कीर्ति को अपने गले से लगा लिया. फिर कीर्ति ने अंकिता से मेरा परिचय करवाया और उसके बाद हम लोग अंकिता के साथ उसके घर के अंदर आ गये.

अंकिता ने वाइट कलर का सलवार सूट पहना हुआ था. वो कीर्ति जितनी सुंदर तो नही थी. लेकिन शिल्पा को टक्कर देने वाला रूप ज़रूर उसने पाया था. वो किसी भी तरह से शिल्पा से कम नही लग रही थी. उसको देख कर मैं मन ही मन कीर्ति की पसंद की दाद देने लगा.
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09-09-2020, 02:11 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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हमे बैठा कर शिल्पा चाय पानी लेने चली गयी. तब कीर्ति ने मेरे पास आकर धीरे से पुछा.

कीर्ति बोली “जान, कैसी लगी मेरी पसंद. अब तो यकीन आया कि, मैने तुम्हरे लिए सही लड़की ढूंढी है. तुम चाहो तो इसके साथ अपना चक्कर चला सकते हो. मेरी तरफ से तुम्हे पूरी छूट है.”

ये कह कर कीर्ति खिलखिलाने लगी और मैने उसे आँख दिखाते हुए कहा.

मैं बोला “अपनी बकवास बंद कर, वो अभी वापस आती ही होगी.

लेकिन एक बार कीर्ति यदि अपनी शरारत पर उतर आए तो, उसे रोकना इतना आसान काम नही था. वो फिर अपने चुलबुलेपन को दोहराते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली “आती है तो आ जाए, मेरी बला से. मैं तो ये बात उसके सामने भी कह दूँगी.”

ये कहते हुए कीर्ति मेरी तरफ झुकी और मुझे अपनी बाहों मे जाकड़ कर मेरे गालों को चूमने लगी. कीर्ति की इस हरकत से तो, मेरी हालत और भी खराब हो गयी. मैने आनन फानन मे, उस से खुद को छुड़ाया और उस से खुद को दूर करते हुए कहा.

मैं बोला “ये क्या कर रही है. उसके घर मे कोई और भी तो हो सकता है. कोई आ गया तो, हमारे बारे क्या सोचेगा.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति ने मुझे आँख मारी और मुस्कुराते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली ‘डरो मत, उसके घर मे अभी कोई नही है. अब तो मैं तुम्हे प्यार करके ही रहूगी.”

ये कह कर वो बड़ी कातिल अदाओं से मुझे घूरते हुए, मेरी तरफ बढ़ने लगी. मैने गुस्से मे उसे घूरा और उस से दूर खिसक कर बैठ गया. ये देख कर वो खिलखिलाकर हँसने लगी.

तभी अंकिता चाय लेकर आ गयी. उसने हमे चाय दी और फिर खुद भी चाय लेकर हमारे साथ ही बैठ गयी.

मैं चुप चाप चाय पीने लगा. लेकिन थोड़ी ही देर बाद अंकिता ने कीर्ति को अपने साथ चलने को कहा और दोनो उठ कर, मेरे राइट साइड बने डाइनिंग रूम मे चली गयी. दोनो आपस मे धीरे धीरे बात करने लगी.

वो दोनो मुझसे बहुत ज़्यादा दूर नही थी. मगर मेरी तरफ उनकी पीठ थी. जिस वजह से वो मुझे देख नही सकती थी. लेकिन मैं उसको देख भी पा रहा था और उनके बीच चल रही बातों को भी सुन पा रहा था. लेकिन शायद उन्हे इस बात का कोई अनुमान नही था.

वो दोनो एक दूसरे से हँसी मज़ाक करने मे मस्त थी. कीर्ति चाय पीते पीते अंकिता से कह रही थी.

कीर्ति बोली “अब तो तूने मेरी पसंद को देख लिया है. अब बता मेरी पसंद कैसी है.”

अंकिता ने पिछे मुड़कर मेरी तरफ देखा. मैं खामोशी से सामने की तरफ मूह करके चाय पी रहा था. उसने मुस्कुराते हुए कीर्ति से कहा.

अंकिता बोली “तेरी पसंद तो सच मे लाखों मे एक है.”

अंकिता इसके आगे कुछ और बोल पाती, उसके पहले ही कीर्ति ने अंकिता की बात को काटते हुए कहा.

कीर्ति बोली “ओये ज़रा अपनी ज़ुबान संभाल के बोल. मेरी पसंद लाखों मे नही, दुनिया मे एक है.”

कीर्ति की बात सुनकर अंकिता हँसने लगी और कहा.

अंकिता बोली “हाँ हाँ, तेरी पसंद दुनिया मे एक है. लेकिन अपनी पसंद को ज़रा संभाल कर रखना. कही कोई दूसरा उसे, तुझसे चुरा ना ले.”

कीर्ति बोली “ये सपने देखना छोड़ दे. मेरी पसंद को चुराना इतना आसान नही है.”

अंकिता बोली “ये तो तू इसलिए कह रही है. क्योकि अभी तक उस पर, किसी खूबसूरत लड़की की नज़र नही पड़ी होगी. जिस दिन किसी खूबसूरत लड़की की नज़र उस पर पड़ गयी. तू हाथ मलती रह जाएगी.”

कीर्ति बोली “एक क्या, हज़ार खूबसूरत लड़कियों की नज़र उस पर पड़ जाए. लेकिन उसे मुझसे कोई नही चुरा सकता.”

अंकिता ने एक नज़र फिर से मेरी तरफ देखा. शायद वो ये देख रही थी कि, कही मैं उनकी बात सुन तो नही रहा हूँ. जब उसने देखा कि मेरा ध्यान उनकी तरफ नही है. तब उसने कीर्ति से कहा.

अंकिता बोली “इतना ज़्यादा भी मत इतरा. तू उसे मेरा नकली बाय्फ्रेंड बना रही है. कहीं ऐसा ना हो. उसे मैं ही चुरा लूँ.”

कीर्ति बोली “तुझे ऐसा लगता है तो, तू कोशिश करके देख ले. मेरी तरफ से तुझे पूरी छूट है.”

अंकिता बोली “एक बार अच्छे से सोच ले, बाद मे कहीं ऐसा ना हो, तुझे अपनी कही बात के लिए पछ्ताना पड़ जाए. आज कल के लड़को को तू जानती नही है. ये कपड़ो की तरह अपनी गर्लफ्रेंड बदलते है.”

कीर्ति बोली “ना मुझे कुछ सोचना है और ना ही मुझे किसी बात के लिए पछ्ताना पड़ेगा. रही बात आज कल के लड़कों की तो, मुझे किसी को जानने की कोई ज़रूरत नही है. क्योकि मुझे उस पर पूरा भरोसा है.”

अंकिता बोली “तुझे उस पर बहुत भरोसा है. लेकिन तू ये बात किस भरोसे पर कह रही है. ज़रा मैं भी तो सुनू.”

अंकिता की इस बात पर कीर्ति मुस्कुराते हुए बड़े ही विस्वास के साथ कहने लगी.

कीर्ति बोली “क्योकि वो जो कुछ भी करता है. मुझे बता कर और मुझसे पुच्छ कर ही करता है. यहाँ तक कि कल रात को 3 बजे, मैने उस से मिलने की ज़िद की और वो रात को ही मुझसे मिलने के लिए मुंबई से निकल पड़ा. सुबह मेरे सोकर उठने के पहले, वो मेरे सामने था. अब बोल क्या बोलती है तू.”

ये कह कर कीर्ति अपनी कही बात पर खिलखिलाने लगी. तब अंकिता ने कीर्ति से कहा.

अंकिता बोली “तो तू सीधे ये क्यो नही कहती कि, वो तेरा गुलाम है. तेरे पिछे तेरा चमचा बन कर जी हुजूर करता फिरता है और तेरे इशारों पर बंदर की तरह नाचता है.”

ये कह कर अंकिता भी हँसने लगी. अंकिता की ये बात, तीर की तरह मेरे दिल को चुभि थी. लेकिन फिर मैने इसे, दो सहेलियों का आपसी मज़ाक समझ कर, दिल पर नही लिया और इस बात को अपने दिमाग़ से निकाल दिया.

लेकिन अंकिता की इस बात से, कीर्ति के दिल को ज़रूर चोट पहुचि थी. उसका हसना बंद हो गया था और शायद उसका चेहरा भी उतर गया था. उसके उतरे हुए चेहरे को देख कर अंकिता ने कहा.

अंकिता बोली “ये अचानक तुझे क्या हो गया. अभी तो तू अच्छी भली हंस बोल रही थी. फिर अचानक तुझे ये क्या हो गया. तेरा चेहरा इतना उतर क्यो गया.”

लेकिन कीर्ति खामोश ही रही. उसने अंकिता की बात का कोई जबाब नही दिया. तब अंकिता ने फिर उस से पुछा.

अंकिता बोली “बता ना, तुझे अचानक ये क्या हो गया. तेरा हंसता खेलता चेहरा उतर क्यो गया. क्या मैने तुझे कोई ग़लत बात कह दी है. देख जो भी बात है खुल कर बोल दे. मुझसे तेरा ऐसा उतरा हुआ चेहरा नही देखा जा रहा है. बोल ना तुझे क्या हुआ.”

अंकिता की इस बात पर कीर्ति ने अपनी खामोशी को तोड़ा. वो बहुत ही भावुक होकर, अपनी नाराज़गी जताते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली “आज तूने बहुत ग़लत बात बोल दी है. तूने उसे जो कुछ भी कहा है. वो उसके प्यार को गाली देने के बराबर है. वो मेरी जान है. वो मेरा गुलाम नही, मैं उसकी गुलाम हूँ. मैं उसके पिछे चमची बनकर घूमती हूँ और उसके इशारों पर बंदरिया की तरह नाचती हूँ. अब बोल और कुछ जानना है तुझे.”

कीर्ति की नाराज़गी को अंकिता समझ चुकी थी. उसने अपनी सफाई देते हुए कीर्ति से कहा.

अंकिता बोली “यार, तू तो ज़रा सी बात का बुरा मान गयी. मैं तो सिर्फ़ मज़ाक कर रही थी. मज़ाक मे कही बात का, इतना बुरा मानने की क्या ज़रूरत है.”

लेकिन अंकिता की ये बात सुनकर भी कीर्ति के तेवर नही बदले. उसने फिर अंकिता से कहा.

कीर्ति बोली “मज़ाक तेरा और मेरा चल रहा था. तुझे मज़ाक ही उड़ाना था तो, मेरा उड़ाती. तुझे उसका मज़ाक उड़ाने का हक़ किसने दिया.”

कीर्ति की नाराज़गी ख़तम ना होते देख, अंकिता ने बड़े ही प्यार से उसे मनाते हुए कहा.

अंकिता बोली “सॉरी यार, मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी. मैं नही जानती थी कि, तू उसे इतना ज़्यादा प्यार करती है कि, उसके खिलाफ एक मज़ाक भी सहन नही कर सकती. यदि मुझे इस बात का ज़रा भी पता होता तो, मैं ऐसा मज़ाक कभी नही करती. तू इस ग़लती की मुझे जो सज़ा देना चाहे, दे दे. लेकिन मुझसे नाराज़ ना हो.”

अंकिता के इस तरह मानने से कीर्ति का दिल भी पिघल गया. लेकिन साथ साथ उसकी आँखों ने भी बरसात सुरू कर दी. वो अपने आँसू बहते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली “तेरे लिए ये एक ज़रा सी बात होगी. मगर मेरे लिए तो ये डूब मरने वाली बात है कि, आज मेरी वजह से उसके प्यार का मज़ाक उड़ाया गया है. मैने बहुत बड़ी बड़ी ग़लतियाँ की है. फिर भी उसने हंसते हंसते मेरी हर ग़लती को माफ़ कर दिया. सिर्फ़ मेरी आँखों मे आँसू देख कर, वो बिना एक शब्द भी कहे, अपने सब काम छोड़ कर, मुंबई से यहाँ तक आ गया. अब यदि मेरी खुशी के लिए ये सब करने पर, उसका मज़ाक उड़ाया जाए तो, ये मेरे लिए डूब मरने वाली बात नही तो और क्या है. वो मेरी जान है और मैं उसका अपमान कभी नही सह सकती.”

“लेकिन आज मैं तुझसे पुछती हूँ कि, प्यार मे यदि कोई अपने हर फ़ैसले, अपने साथी से पुच्छ कर करे तो, क्या ये गुलामी कहलाती है. क्या प्यार मे अपने साथी की बात मान कर चलने वाला चमचा कहलाता है. क्या प्यार मे समर्पण नाम की कोई चीज़ नही होती. तू बता मुझे कि सच्चा प्यार करने वाले को ये गाली क्यो सुनना पड़े.”

इतना कह कर कीर्ति खामोश हो गयी. लेकिन उसकी आँखों से आँसुओं की बरसात अभी भी हो रही थी. कीर्ति की बातों से अंकिता समझ चुकी थी की, कीर्ति के दिल पर उसकी बातों से बहुत गहरी चोट लगी है.

कीर्ति की आँखों के आसुओं से अंकिता की आँखों मे नमी पैदा कर दी थी. अंकिता ने कीर्ति के आँसू पोन्छे और उस से अपनी ग़लती मानते हुए कहा.

अंकिता बोली “सॉरी मेरी बहन, तेरा कहना ठीक है. सच्चे प्यार मे समर्पण होना बहुत ज़रूरी है. मुझसे आज सच मे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी. लेकिन मैं सच मे नही जानती थी कि, तुम दोनो मे इतना ज़्यादा प्यार है. मैं तो सिर्फ़ तुम्हे बाय्फ्रेंड गर्लफ्रेंड समझ रही थी. यदि मुझे इस बता का ज़रा भी पता होता तो, मेरा यकीन कर, मेरे मूह से ये बात कभी मज़ाक मे भी बाहर ना निकली होती. फिर भी मुझसे ग़लती तो हुई है. इसके लिए तू मुझे जो चाहे वो सज़ा दे ले. लेकिन प्लीज़ तू मुझे अपनी बहन समझ कर माफ़ कर दे. तू कहे तो, मैं अभी इस बात के लिए पुनीत से भी माफी माँग लेती हूँ.”

ये कह कर अंकिता अपनी जगह से उठ कर खड़ी हो गयी. लेकिन कीर्ति ने फ़ौरन उसका हाथ पकड़ लिया और अंकिता को मुझसे कुछ कहने से रोकते हुए कहा.

कीर्ति बोली “नही, तुझे उस से कुछ कहने की ज़रूरत नही है. तू यदि उस से माफी मगेगी तो, फिर उसे इसकी वजह भी बताना पड़ेगी. मैं नही चाहती कि, उसके दिल को तेरी किसी बात से ठेस लगे. इसलिए इस बात को यही ख़तम कर दे. अब हम लोगो को जाना है. हम लोग चलते है.”

ये कह कीर्ति भी खड़ी हो गयी. कीर्ति के मूह से अचानक ही जाने की बात सुनकर अंकिता को लगा कि, कीर्ति गुस्से मे वापस जा रही है. उसने कीर्ति को रोकते हुए कहा.

अंकिता बोली “इसका मतलब तो यही हुआ कि, तूने अभी तक मुझे उस बात के लिए माफ़ नही किया.”

कीर्ति बोली “नही, ऐसी बात नही है. मैने तुझे सच मे माफ़ कर दिया.”

अंकिता बोली “यदि तूने मुझे माफ़ कर दिया है तो, फिर थोड़ी देर और रुक जा. अभी तो मेरी पुनीत से कोई बात ही नही हुई है. वो मेरे बारे मे क्या सोचेगा कि, वो मेरे घर तक आया और मैने उस से दो बात तक नही की.”

कीर्ति बोली “वो तेरे बारे मे कुछ ग़लत नही सोचेगा. मैं उसे सब समझा दुगी. लेकिन अब हमारा रुक पाना मुस्किल है. हमे सच मे जल्दी जाना है. उसकी 6 बजे की मुंबई वापसी की फ्लाइट है और उसे अभी बहुत से लोगों से मिलना है. तू उस से फोन पर बात कर लेना. मैं तुझे उसका मोबाइल नंबर दे देती हूँ. तेरा जब मन करे उस से बात कर लेना और उसे अपने बारे मे सब खुद ही समझा देना.”

ये कह कर कीर्ति ने अंकिता को मेरा मोबाइल नंबर दे दिया. अंकिता हम लोगों को छोड़ने बाहर तक आई. बाहर आकर हम लोगों ने अंकिता को बाइ कहा और फिर घर के लिए निकल पड़े.

लेकिन कीर्ति का मूड, अंकिता के किए मज़ाक की वजह से, अभी भी खराब था. जिस वजह से, वो अभी भी खामोश ही थी. मैं उसकी इस खामोशी को तोड़ना चाहता था. लेकिन मेरी समझ मे, ये नही आ रहा था कि, मैं कीर्ति को ये बात बोलूं या ना बोलू कि, मैने उसके और अंकिता के बीच हुई सारी बात सुन ली है.

मैं इस बात से भी अंजान नही था की, उसके मन मे अभी क्या चल रहा है. वो मन ही मन इस सब के लिए खुद को दोषी मान रही थी. जबकि मैं कीर्ति के इस प्यार को देख कर, मन ही मन अपनी किस्मत पर नाज़ कर रहा था.

मगर जब कीर्ति की खामोशी मुझसे सहन नही हुई. तब मैने उस से सीधे ही कहा.

मैं बोला “इतनी सी बात को अपने दिल पर लेने की क्या ज़रूरत है. जो हुआ उसे भूल जा.”

मेरी ये बात सुनकर कीर्ति चौक गयी. उसे समझ मे नही आया कि, मैं क्या कह रहा हूँ. वो मेरे से बिल्कुल सट गयी और पुच्छने लगी.

कीर्ति बोली “मैं समझी नही. तुम किस बात की बात कर रहे हो.”

मैं बोला “अंकिता ने सिर्फ़ मज़ाक ही तो किया था. इसमे इतना बुरा मानने की क्या बात थी.”

कीर्ति को अभी भी यकीन नही आ रहा था कि, मैं उसके और अंकिता के बीच हुए मज़ाक की बात कर रहा हूँ. उसने फिर से पुछा.

कीर्ति बोली “मुझे अभी भी कुछ समझ मे नही आया कि, तुम किस मज़ाक की बात कर रहे हो.”

मैं अब उसकी परेशानी को और ज़्यादा बढ़ाना नही चाहता था. इसलिए मैने सीधे ही उस से कहा.

मैं बोला “मैं उस मज़ाक की बात कर रहा हूँ. जिसकी वजह से तुम, अंकिता से नाराज़ हो गयी थी. मुझे तुम्हारी और अंकिता की, सारी बातें सुनाई दे रही थी.”

अब कीर्ति की समझ मे सारी बात आ चुकी थी. उसने बेहद रुआंसा चेहरा बना कर, मुझसे माफी माँगते हुए कहा.

कीर्ति बोली “सॉरी जान, मेरी वजह से तुम्हे ये सब सुनना पड़ा.”

मैं बोला “सॉरी किस लिए. मुझे उसकी किसी बात का बुरा नही लगा और तुझे भी नही लगना चाहिए था. वो तुझसे सिर्फ़ मज़ाक ही तो कर रही थी. तू इतनी समझदार होकर भी, उसकी मज़ाक मे कही बातों का बुरा मान गयी.”

मगर कीर्ति अभी भी इस बात को अपने दिल से निकालने को तैयार नही थी. उसने अपना गुस्सा अंकिता पर उतारते हुए कहा.

कीर्ति बोली “मुझे ऐसा मज़ाक बिल्कुल पसंद नही. मज़ाक उसके और मेरे बीच मे चल रहा था. उसे जो भी कहना चाहिए था, मुझे कहना चाहिए था. तुम्हारा मज़ाक उड़ाने का उसे ज़रा भी हक़ नही था. तुम्हारा मज़ाक उड़ाने वाली, वो होती कौन है.”

मैं बोला “मज़ाक तो तूने सुरू किया था. इसलिए तुझे उसके मज़ाक को सहना चाहिए था.”

कीर्ति बोली “मज़ाक मैने सुरू किया था, इसी वजह से इतना सब सह गयी. नही तो आज के आज ही, उस से दोस्ती तोड़ कर आ गयी होती.”

मैं जानता था कि, मैं चाहे कितना भी कीर्ति को समझा लूँ. लेकिन वो अंकिता के मज़ाक को सही नही मानेगी. इसलिए मैने बात को बदलने की नियत से कहा.

मैं बोला “बाप रे बाप, किसी ने मेरा मज़ाक उड़ाया तो इतना गुस्सा और जब खुद मेरा मज़ाक उड़ाती रहती है. उसका क्या है.”

कीर्ति बोली “मैं तुम्हे जो चाहे, वो कह सकती हूँ. मुझे तुम्हे कुछ भी कहने का पूरा हक़ है. लेकिन कोई और तुम्हे कुछ कहेगा तो, मैं उसका मूह नोच लुगी. फिर चाहे वो कोई भी हो.”

कीर्ति की इन बातों को सुनकर और उसके मेरे लिए प्यार को महसूस कर, मुझे बहुत सुकून मिल रहा था. इसलिए मैने उसे छेड़ते हुए कहा.

मैं बोला “अच्छा कोई भी मुझे कुछ बोलेगा तो, तू उसका मूह नोच लेगी. फिर चाहे वो कोई भी हो.”

कीर्ति ने भी अपनी धुन मे कहा.

कीर्ति बोली “हाँ चाहे वो कोई भी हो.”

मैं बोला “तो ठीक है, तू घर चल कर छोटी माँ का मूह नोच. आज सुबह सुबह ही, उन्हो ने मुझे बहुत उल्टा सीधा बोला है.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति ने गुस्से मे मेरी पीठ पर एक ज़ोर का मुक्का मारा. मैने भी अपनी पीठ अकडा कर उसे ऐसा जताया, जैसे की मुझे सच मे बहुत ज़ोर से लग गया हो. जैसे ही कीर्ति को इस बात का अहसास हुआ कि, उसका मुक्का मुझे ज़ोर से लग गया है तो, वो फ़ौरन ही अपने हाथों से मेरी पीठ को सहलाते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली “तुम्हे शरम नही आती. मौसी के बारे मे ऐसी बात कहते हुए.”

मैं बोला “अभी तूने ही तो कहा था कि, तू किसी का भी मूह नोच लेगी. चाहे वो कोई भी हो.”

कीर्ति ने अपनी सफाई देते हुए बड़े ही भोलेपन से कहा.

कीर्ति बोली “मैने वो बात, घर वालों के लिए नही, बाहर वालों के लिए कही थी.”

मैं इसी तरह कीर्ति को छेड़ता रहा और कुछ ही देर मे वो भी, अपने पुराने रंग मे वापस आ गयी. अब उसका मूड सही हो चुका था और उसने भी अपनी शरारातें सुरू कर दी थी. एक दूसरे को छेड़ते छेड़ते, कुछ ही देर मे हम लोग घर पहुच गये.

हम जैसे ही घर के अंदर पहुचे तो, घर मे बहुत शांति थी. छोटी माँ और आंटी शायद अपने कमरे मे थी. अमि निमी दोनो सॉफ्फ़े पर चुप चाप बैठी थी और ना जाने किस ख़याल मे खोई हुई थी. अमि निमी घर मे हो और शांति रहे. ये मेरे लिए बहुत हैरत की बात थी.

मैने कीर्ति को इशारा कर के पुछा कि, इन्हे क्या हुआ. तब कीर्ति ने मुझे चुप रहने का इशारा किया और वो खुद तेज़ी से बढ़ती हुई, अमि निमी के पास चली गयी. वो जाते ही उनके पास बैठ गयी और मुझ पर झूठा गुस्सा करते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली “अब दोबारा मैं तुम्हारे साथ कही नही जाउन्गी. तुमने मेरे साथ आज ज़रा भी अच्छा नही किया.”

मुझे कीर्ति का यू गुस्सा करने से बस इतना समझ मे आया कि, वो ये गुस्सा अमि निमी को दिखाने के लिए कर रही है. लेकिन वो क्या करना चाहती है. ये मेरी समझ के बाहर था. मगर जब अमि निमी ने कीर्ति को यू मुझ पर गुस्सा करते देखा तो, अमि ने कीर्ति से पुछा.

अमि बोली “दीदी, आप भैया पर इतना गुस्सा किस बात पर है.”

कीर्ति बोली “अमि तुम्हे मालूम नही. आज इसकी वजह से मुझे कितना ज़्यादा परेशान होना पड़ा.”

अमि बोली “क्यो दीदी. ऐसा भैया ने क्या कर दिया.”

कीर्ति बोली “ये तो पुछो ही मत अमि. बस इतना समझ लो कि, आज के बाद मैं इसके साथ कही भी नही जाउन्गी.”

कीर्ति की बात सुन सुन कर अमि निमी की बात को जानने की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी. अमि ने फिर कीर्ति से पुछा.

अमि बोली “लेकिन दीदी, हुआ क्या है.”

कीर्ति बोली “अमि, मैं पूरे 3 घंटे अकेली खड़ी रही. मेरी सहेली को अचानक किसी काम से जाना पड़ गया. मैने इसे फोन करके कहा कि, मुझे आकर अपने साथ ले चलो. लेकिन इसने आने से सॉफ मना कर दिया. कहा कि तुम अपनी सहेली के घर के पास ही रूको. मैं 4 बजे आकर तुम्हे ले जाउन्गा. अब तुम ही सोचो ये 3 घंटे मैने कैसे अकेले खड़े खड़े बिताए होगे. यदि ये आकर मुझे अपने साथ ले जाता तो, इसका क्या बिगड़ जाता.”

कीर्ति की बात सुनते ही अमि निमी के चेहरे की मुस्कुराहट वापस आ गयी. शायद उन्हे लग रहा था कि, कीर्ति मेरे साथ घूम रही है. जिस वजह से उनका मूह फूल गया था. लेकिन जब उन्हो ने सुना की, कीर्ति अकेले परेशान होती रही है तो, ये जान कर उन्हे बहुत खुशी हुई.

अमि ने कीर्ति को समझाते हुए कहा.

अमि बोली “जाने दो दीदी. भैया यहाँ अपने काम से ही तो वापस आए थे. उन्हे आपको वापस लेने आने का, समय ही नही मिल रहा होगा.”

कीर्ति बोली “नही अमि, ये जान बुझ कर मुझे अपना घमंड दिखाता है. अब मैं सच मे इसके साथ कही नही जाउन्गी.”

कीर्ति के मूह से घमंड दिखाने वाली बात सुनते ही, निमी ने हंसते हुए मुझे देखा और फिर वो कीर्ति से कहने लगी.

निमी बोली “हाँ दीदी, अब आप भैया के साथ कही मत जाना. नही तो ये आपको ऐसे ही अपना घमंड दिखाएँगे.”

ये कह कर निमी ने धीरे से मुझे आँख मारी और मैं उसकी इस हरकत पर अपनी हँसी नही रोक पाया. उधर कीर्ति निमी की इस हरकत से अंजान थी. कीर्ति ने तुरंत निमी को अपने गले से लगा लिया और कहा.

कीर्ति बोली “हाँ, तू मेरी प्यारी बहन है. मैं तेरी बात ज़रूर मानूँगी.”

इसके बाद कीर्ति ऐसे ही अमि निमी को अपनी बातों मे बहलाने लगी और दोनो कीर्ति की हाँ मे हाँ मिलाने लगी. एक तरफ कीर्ति जहाँ बातों बातों मे अमि निमी के दिमाग़ से इस बात को निकालने मे लगी थी कि, वो दिन भर मेरे साथ घूम रही थी. वही दूसरी तरफ अमि निमी बातों बातों मे कीर्ति के दिमाग़ मे ये बात डाल रही थी कि, कीर्ति को अब मेरे साथ कहीं नही जाना है.

मैं थोड़ी देर खड़ा खड़ा उन तीनो की इस बात चीत का मज़ा लेता रहा. फिर कुछ देर बाद मैने अमि निमी के सर पर हाथ फेरा और मूह हाथ धोने अपने कमरे मे आ गया.
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09-09-2020, 02:12 PM,
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कमरे आकर मैं फ्रेश हुआ और फिर तैयार होने लगा. अभी मैं तैयार हो रहा था कि, तभी अमि निमी हंसते हुए मेरे कमरे मे आ गयी. उन्हे देखते ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी.

लेकिन मैने अपनी मुस्कुराहट को छुपा कर, उन पर झूठा गुस्सा दिखाते हुए, अपना मूह बना लिया और उनसे कुछ नही कहा. थोड़ी देर तक दोनो मेरे बोलने का इंतजार करती रही. मगर जब मैं खामोशी से तैयार होता रहा. तब दोनो आपस मे ख़ुसर फुसर करने लगी.

फिर अमि ने बात सुरू करते हुए मुझसे कहा.

अमि बोली “भैया क्या आप हम से नाराज़ हो.”

मैने बिना उनकी तरफ देखे, तैयार होते हुए कहा.

मैं बोला “मैं क्यो तुम लोगों से नाराज़ होने लगा.”

अमि बोली “वो इसलिए क्योकि हम लोगों ने कीर्ति दीदी के साथ मिलकर, आपकी बुराई की थी.”

मैं बोला “तुम लोगों ने ऐसा क्यो किया.”

अमि बोली “वो तो हम इसलिए कर रहे थे. ताकि दोबारा दीदी आपको कही जाने के लिए परेशान ना करे.”

मैं बोला “मैं कीर्ति के साथ गया था. क्या ये बात तुम लोगों को खराब लगी है.”

मेरी इस बात पर दोनो ही चुप रही. मैं उनके पास आकर बैठ गया और दोनो के सर पर, हाथ फेरते हुए कहा.

मैं बोला “देखो बेटू, जितना प्यार मैं तुम दोनो से करता हूँ. उतना ही प्यार कीर्ति भी तुम लोगों से करती है. यदि ऐसा नही होता तो, वो खुद से पहले तुम लोगों को, मेरे साथ घूमने क्यो भेजती. आज मैं यहाँ नही हू तो, क्या वो मेरी तरह, तुम लोगों का ख़याल नही रख रही है.”

मैं इतना कह कर चुप हो गया. मुझे लगा कि दोनो मे से कोई अपनी सफाई ज़रूर देगा. लेकिन शायद दोनो को ये लग रहा था कि, इस बात को लेकर मैं उनसे नाराज़ हूँ. जब दोनो चुप रही तो, मैं उन्हे समझाते हुए कहने लगा.

मैं बोला “मैं तुम दोनो से ज़रा भी नाराज़ नही हूँ. मैं अपनी आमो निम्मो से, कभी नाराज़ हो ही नही सकता. बस मेरी इतनी सी बात मान लो कि, अपनी कीर्ति दीदी से मिलकर रहा करो. वो यदि मुझ पर गुस्सा भी होती है तो, उसकी बात का बुरा मत माना करो. क्योकि तुम्हारी तरह, वो भी मुझे बहुत प्यार करती है और जो हमे प्यार करता है. वही हम पर गुस्सा भी होता है. बोलो मेरी बात मनोगी ना.”

मेरी इस बात सुनकर दोनो के चेहरे खिल गये थे. उन्हे इस बात की खुशी थी कि, मैं उनसे ज़रा भी नाराज़ नही हूँ. उन दोनो ने खुशी खुशी कहा.

अमि निमी बोली “जी भैया, हम आपकी ये बात ज़रूर मानेगे. अब हम कीर्ति दीदी के साथ हमेशा मिलकर रहेगे और उनकी किसी बात का कभी बुरा नही मानेगे.”

मैं बोला “गुड, अब ये बताओ. छोटी माँ और आंटी कहाँ है.”

अमि बोली “भैया वो नीचे खाने के लिए आपका इंतजार कर रही हैं. हम इसीलिए आपको बुलाने आए थे. लेकिन ये बात कहना भूल ही गये.”

मैं उन से कीर्ति के बारे मे पुच्छने वाला था कि, तभी मेरी नज़र दरवाजे के पास खड़ी कीर्ति पर पड़ी. वो शायद अभी अभी आकर वहाँ खड़ी हुई थी. मैने कीर्ति को देखा तो, अमि निमी से कहा.

मैं बोला “ठीक है. अब तुम दोनो नीचे जाओ. मैं भी तैयार होकर थोड़ी देर मे नीचे आता हूँ.”

मेरी बात सुनकर दोनो नीचे जाने लगी. उनकी नज़र कीर्ति पर पड़ी तो, उन ने उसे भी नीचे चलने को कहा. मगर कीर्ति ने मेरे साथ नीचे आने को कह कर, उन दोनो को नीचे भेज दिया.

अमि निमी के नीचे जाते ही कीर्ति अंदर आई और मुझसे लिपट गयी. मैने भी बिना कुछ कहे, उसे अपनी बाहों मे भर लिया. हम दोनो ऐसे ही एक दूसरे के सीने से लगे रहे. ना तो कीर्ति कुछ कह रही थी और ना ही मैं कुछ कह रहा था. हम दोनो ही खामोश रहे.

इंसान दो ही सुर्तों मे खामोश रहता है. एक तो तब जब उसके पास कहने को कोई बात ना हो, या फिर तब जब उसके पास कहने के लिए बहुत कुछ हो. ऐसा ही कुछ हम दोनो के साथ भी था. हम दोनो के पास एक दूसरे से करने के लिए बातें तो, बहुत सी थी. मगर उन बातों को करने के लिए समय, अब बिल्कुल नही था.

इसलिए हम दोनो एक दूसरे के सीने से खामोशी से लगे रहे और एक दूसरे के दिल मे छुपे प्यार को, उसके दिल की धड़कन से महसूस करते रहे. जो बात हम नही कह पा रहे थे. वो बातें हमारे दिल की धड़कने एक दूसरे से कह रही थी और हम खामोशी से उनकी बात सुन रहे थे.

लेकिन वक्त किसी के लिए नही रुकता. ऐसा ही हमारे साथ भी हुआ. हम एक दूसरे मे खोए हुए थे. तभी मुझे किसी के आने की आहट सुनाई दी और मैं तुरंत कीर्ति से अलग होकर, अपने बाल सवारने मे लग गया.

कीर्ति तो ना जाने किन ख़यालों मे खोई हुई थी. उसे मेरा इस तरह, अचानक से अलग हो जाने का कारण समझ मे ही नही आया. इसके पहले की वो मुझसे इसका कारण पुच्छ पाती. उसके पहले ही छोटी माँ ने मेरे कमरे मे कदम रख दिया और कहने लगी.

छोटी माँ बोली “तुम दोनो अभी तक यहाँ क्या कर रहे हो. मैं कब से नीचे तुम्हारा खाने पर वेट कर रही हूँ.”

कीर्ति इतनी देर मे अपने आपको संभाल चुकी थी. उसने छोटी माँ की बात का जबाब देते हुए कहा.

कीर्ति बोली “मौसी, मैं तो कब से इसे नीचे चलने को कह रही हूँ. लेकिन इन लाट साहब का अभी तक बनना सवरना ही नही हो पा रहा है.”

कीर्ति की बात सुनकर मैने छोटी माँ से कहा.

मैं बोला “बस छोटी माँ, मेरा तैयार होना हो गया. चलिए नीचे चलते है.”

ये कह कर मैं, छोटी माँ और कीर्ति के साथ नीचे आ गया. नीचे आंटी मेरे लिए खाना लगा रही थी. मैने ये देखा तो कहा.

मैं बोला “क्या मैं अकेला ही खाना खाउन्गा. आप लोग नही खाएगे.”

आंटी बोली “हम सब तो खाना खा चुके है. बस तुम और कीर्ति ही खाना खाने के लिए बाकी रह गये थे. अब ज़्यादा समय बर्बाद मत करो और चुप चाप खाना खाओ.”

आंटी की बात सुनकर मैं और कीर्ति खाना खाने बैठ गये. अमि निमी भी हमारे पास ही बैठी थी. वो मुझसे कुछ छुपाने की कोसिस कर रही थी. जब मैने उन्हे ऐसा करते देखा तो, मैने उनसे पुछा.

मैं बोला “बेटू, छुटकी, ये तुम दोनो मुझसे क्या छुपा रही हो.”

अमि बोली “कुछ नही भैया, पहले आप खाना खा लीजिए. फिर हम बताएगे.”

मैं बोला “नही, मुझे अभी देखना है.”

मेरा इतना कहना था कि, निमी फ़ौरन अपनी जगह से खड़ी हो गयी. उसे डर था कि कहीं अमि अपनी चीज़ पहले मुझे ना दिखा दे. इसलिए वो मेरे पास आई और अपने हाथ मे पकड़ा हुआ, मनी बॅंक मेरे सामने रख दिया.

मनी बॅंक देखते ही, मैं समझ गया कि, ये मेरा बर्थ’डे गिफ्ट है. लेकिन फिर भी मैने अंजान बनते हुए निमी से कहा.

मैं बोला “छुटकी ये क्या है. अब तुझे पैसे किस लिए जोड़ना है.”

निमी मुझे समझते हुए कहने लगी.

निमी बोली “भैया, ये आपका बर्थ’डे गिफ्ट है. मैने बड़े प्यार से आपके लिए खरीदा है.”

मैं बोला “लेकिन मैं इसका क्या करूगा.”

निमी बोली “भैया आप इसमे पैसे जोड़िएगा और जब ये भर जाएगा. तब मैं उन पैसो से आपके लिए एक कार खरिदुगि.”

निमी की बात सुनकर सब हँसने लगे. लेकिन मैने उसका मनी बॅंक लेकर, उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा.

मैं बोला “तुझे मेरा कितना ख़याल है. ये तूने बहुत अच्छा किया. अब मेरे पास भी खुद की एक कार होगी. लेकिन यदि मुझे इसमे पैसे डालना याद ही नही रहा तो, ये भरेगा कैसे.”

निमी बोली “उसकी चिंता आप मत कीजिए. मैने सब सोच लिया है. मैं खुद रोज आपसे इसमे पैसे डलवाया करूगी. अब आप जल्दी से अपना पर्स निकालिए और इसमे पैसे डालिए.”

मैं बोला “ठीक है. लेकिन हम इसे रखेगे कहाँ.”

निमी बोली “मैं इसे अपने कमरे मे रखुगी. ताकि मुझे भी याद रहे कि, इसमे आपसे पैसे डलवाना है. अब जल्दी से इसमे पैसे डालिए.”

निमी की बात सुनकर मैने पर्स निकाल कर, मनी बॅंक मे पैसे डाले और जब पर्स रखने को हुआ तो, अमि मुझे रोकते हुए कहने लगी.

अमि बोली “रुकिये भैया. आपने निमी का गिफ्ट तो ले लिया. लेकिन मेरा गिफ्ट तो लिया ही नही है. अब आप ये पर्स नही रखेगे. अब आप मेरा दिया हुआ पर्स रखेगे.”

ये अमि ने पर्स मेरे हाथ मे थमा दिया. मैने अमि का पर्स ले लिया. लेकिन वो अभी मुझसे पर्स रखने की ज़िद करने लगी. तब तक कीर्ति खाना खा चुकी थी. मैने अपने दोनो पर्स उसे थमा दिए और अपने पुराने पर्स का समान नये पर्स मे रखने को कहा.

कीर्ति ने पर्स ले लिया और मैं फिर से खाना खाने लगा. तभी छोटी माँ ने कहा.

छोटी माँ बोली “तुम खाना खाओ. तब तक मैं तैयार होकर आती हूँ.”

मैं बोला “क्यो छोटी माँ. क्या आप कहीं जा रही है.”

छोटी माँ बोली “हाँ, हम सब तुझे एरपोर्ट छोड़ने जा रहे है.”

मैं बोला “नही छोटी माँ. किसी को जाने की ज़रूरत नही है. मैं अकेला चला जाउन्गा. मुझे सबको छोड़ कर जाने मे बहुत तकलीफ़ होती है.”

छोटी माँ बोली “ठीक है, तुझे छोड़ने मेरे सिवा कोई नही जाएगा.”

मैं बोला “आप भी क्यो जा रही है. क्या मुझे आपको छोड़ कर जाने मे तकलीफ़ नही होगी.”

छोटी माँ बोली “अब मुझे कुछ नही सुनना. मैं जा रही हूँ, मतलब जा रही हूँ. तुम चुप चाप खाना खाओ. तब तक मैं तैयार होकर आती हूँ.”

ये कह कर छोटी माँ तैयार होने चली गयी और मैं फिर से खाना खाने लगा. मैं खाना खाकर उठा तो, कीर्ति ने मुझे नया वाला पर्स थमा दिया. मैने नये पर्स को अपने जेब मे रखते हुए, उस से कहा.

मैं बोला :ये पुराना पर्स मेरे कमरे मे रख देना.”

कीर्ति बोली “नही, इसे मैं अपने पास रखुगी.”

मैं बोला “तू इस पुराने पर्स को रख कर क्या करेगी. ये तेरे किस काम आएगा.”

कीर्ति बोली “तुम्हे नही देना तो मत दो. इतने सवाल करने की क्या ज़रूरत है.”

शायद कीर्ति इस बात से नाराज़ हो गयी थी. मैने उसे गुस्सा होते देखा तो, उसे मानते हुए कहा.

मैं बोला “तुझे रखना है तो, रख ले. मैं तो ऐसे ही पुच्छ रहा था. इसमे गुस्सा होने की क्या बात है.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति खुश हो गयी. मैने एक नज़र सबको देखा. किसी का ध्यान अभी हमारी तरफ नही था. मैने धीरे से कीर्ति से कहा.

मैं बोला “ये बता, तेरे पास मेरे बर्थ’डे गिफ्ट के लिए पैसे कहाँ से आए.”

कीर्ति बोली “वो मैने अपनी पॉकेट मनी मे से बचाए थे.”

मैं बोला “ज़्यादा झूठ मत बोल. तूने अपनी पॉकेट मनी से इतने ज़्यादा पैसे बचा लिए कि, एक साथ दो दो मोबाइल खरीद लिए. सच बता, तेरे पास इसके लिए पैसे कहाँ से आए.”

कीर्ति बोली “प्लीज़, ये बात अभी छोड़ो. मैं फोन पर तुम्हे सब बता दुगी.”

मैं कीर्ति से इसके आगे कुछ और बोल पाता. उसके पहले ही छोटी माँ तैयार होकर आ गयी. वैसे तो वो हमेशा ही, साड़ी पहना करती थी. लेकिन आज उन ने पर्पल कलर का सलवार सूट पहना था. जो उनके गोरे रंग पर बहुत खिल रहा था. मैने उन्हे देखा तो, देखते ही रह गया.

लेकिन ये हाल सिर्फ़ मेरा नही था. वहाँ खड़े सभी लोगों का यही हाल था. कीर्ति तो दौड़ कर, छोटी माँ के पास गयी और उन्हे गले लगाते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली “मौसी, आज आप सच मे बहुत सुंदर लग रही है. आप आज मेरी मौसी नही, मेरी बड़ी बहन लग रही है.”

आंटी बोली “ये आज तुझे क्या हुआ. आज अचानक तुझे ये सलवार सूट पहनने की क्या सूझ गयी.”

आंटी और कीर्ति की बात पर छोटी माँ ने हंसते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “मेरा बेटा, मुझे साथ ले जाने मे हिचकिचा रहा था. मैं उसे हंसते हंसते यहा से भेजना चाहती थी. इसलिए मैने सोचा कि, चलो आज उसे एक दोस्त बनकर एरपोर्ट तक छोड़ कर आती हूँ.”

ये कह कर छोटी माँ ने ड्राइवर को गाड़ी निकालने को कहा और फिर मुझसे कहने लगी.

छोटी माँ बोली “यदि अब तुम्हारा सबसे मिलना जुलना हो गया हो तो, अब हमे एरपोर्ट के लिए निकलना चाहिए.”

मैं बोला “जी छोटी माँ.”

इसके बाद हम सब बाहर आ गये. बाहर आकर मैने आंटी के पैर छुये तो, उन्हों ने मुझे गले लगा लिया. उनकी आँखों मे नमी आ गयी थी. फिर भी उन ने मुझे हंसते हंसते विदा किया. आंटी से मिलने के बाद मैं चंदा मौसी से मिला. उन्हों ने भी मुझे गले लगाया और जल्दी वापस आने को कहा.

फिर मैं अमि निमी से मिला. मैने उनके सर पर हाथ फेरा और उन्हे अपने गले से लगाते हुए, उनको समझाया कि कीर्ति के साथ मिलकर रहना. इसके बाद मैं कीर्ति से मिला. उस से मैने सिर्फ़ इतना कहा कि, “मैं जा रहा हूँ. तुम अपना और सबका ख़याल रखना.”

उसके बाद मैने छोटी माँ को चलने को कहा तो, उन्हों ने ड्राइवर को साथ जाने से मना कर दिया और कहा कि, कार वो खुद ड्राइव करेगी. मैं कार मे बैठा और सबको हाथ हिलाकर बाइ कहा. सबने भी मुझे हाथ हिला कर बाइ कहा और फिर छोटी माँ ने गाड़ी आगे बढ़ा दी.

मैं थोड़ी देर गाड़ी से सर बाहर निकाल कर सबको देखता रहा और सब हाथ हिलाते रहे. फिर सबके आँखों से ओझल हो जाने के बाद, मैने अपना सर गाड़ी के अंदर कर लिया. लेकिन सबकी जुदाई से मेरा चेहरा उतर गया था और मैं उदास हो गया था.

छोटी माँ खामोशी से, गाड़ी चलाते चलाते, बार बार मेरी तरफ देख रही थी. मुझे इस तरह से उदास होते देख कर, उन्हों ने मुस्कुरा कर मुझसे कहा.

छोटी माँ बोली “इस तरह उदास क्यो है. अभी मैं तो तेरे साथ हूँ ना.”

मैं बोला “छोटी माँ, मैने आप से भी आने को मना किया था. लेकिन आप मानी नही और ज़बरदस्ती आ गयी. आपको नही पता कि, मुझे सबसे दूर होने मे कितनी तकलीफ़ होती है.”

छोटी माँ बोली “मुझे सब पता है. इसीलिए तो मैं तेरे साथ आई हूँ. ताकि तुझे हंसते हंसते विदा कर सकूँ.”

मैं बोला “आप भी छोटी माँ कमाल करती है. मैं भला आपसे हंसते हंसते दूर कैसे जा सकता हूँ.”

छोटी माँ बोली “वो सब बाद मे देखेगे. पहले तू ये बता तेरी उस गर्लफ्रेंड का क्या हुआ. उस से तेरी बात हुई या नही हुई.”

छोटी माँ के मूह से अचानक गर्लफ्रेंड की बात सुनकर, मुझसे कोई जबाब देते नही बना. मैं खामोश ही रहा. तब उन्हों ने मुझसे कहा.

छोटी माँ बोली “देख मैने तुझे दोस्त बनकर छोड़ने के लिए, अपना हुलिया तक बदल लिया और तू अभी भी मुझसे अपनी बात कहने मे शरमा रहा है. मैने कहा ना, मैं तेरी माँ भी हूँ और दोस्त भी हूँ. अब बता ना तेरी उस से बात हुई या नही हुई.”

मैने सकुचाते हुए छोटी माँ से कहा.

मैं बोला “जी छोटी माँ. मेरी उस से बात हो गयी.”

छोटी माँ बोली “उसने बताया कि, उसने सगाई करने के लिए अपने घर वालों को क्यो हाँ कहा था.”

मैं बोला “छोटी माँ उसने सगाई नही की है. उसने अपने घर वालों को, अपनी पढ़ाई पूरी होने तक रोकने के लिए, शादी की हाँ का नाटक किया है. लेकिन उसने ये भी बोल दिया है कि, जब तक उसकी पढ़ाई पूरी नही हो जाती और वो बालिग नही हो जाती. तब तक वो ना तो, शादी करेगी और ना ही सगाई करेगी.”

छोटी माँ बोली “देख, मैं ना कहती थी. एक बार उस से बात करके देख ले. ऐसा करने के पिछे, ज़रूर उसकी कोई मजबूरी रही होगी.”

मैं बोला “जी छोटी माँ, आपने बिल्कुल सही कहा था.”

छोटी माँ बोली “अब तू उस से मुझे कब मिला रहा है.”

मैं बोला “ये क्या छोटी माँ, आप फिर उसी बात के पिछे पड़ गयी.”

मेरे इस तरह से गुस्सा करने पर छोटी माँ ने हंसते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “अरे मैं तो इसलिए कह रही थी. ताकि मैं भी लड़की देख लूँ. आख़िर वक्त आने पर, लड़की के घर वालों से शादी की बात तो, मुझे ही करनी पड़ेगी.”

मैं बोला “जब वक्त आएगा. तब मैं सबसे पहले उसको आप से ही मिलवाउंगा. लेकिन आप अभी उस से मिलने की बात नही करेगी.”

छोटी माँ बोली “ठीक है, मैं तेरी बात मानकर, अभी मैं उस से मिलने की बात नही करती. लेकिन इसके बदले मे तुझे भी मेरी एक बात मानना होगी.”

मैं बोला “मैं आपकी हर बात मानुन्गा छोटी माँ. आप कह कर तो देखिए.”

मेरी बात सुनकर छोटी माँ मुस्कुरा दी. फिर उन्हों ने मुझे समझाते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “देख तेरी भी दो छोटी बहनें है. यदि तू उनकी शादी के लिए लड़का ढूंढेगा तो, कैसा लड़का ढूंढेगा.”

मैं बोला “मैं तो अपनी अम्मो निम्मो के लिए बहुत पढ़ा लिखा, अच्छे जॉब वाला और बहुत पैसे वाला लड़का देखुगा. ताकि उन्हे कभी कोई परेशानी ना हो.”

मेरी इस बात पर छोटी माँ फिर मुस्कुरा दी और मुझसे कहने लगी.

छोटी माँ बोली “जैसे तू अपनी छोटी बहनों के लिए, बहुत पढ़ा लिखा, अच्छे जॉब वाला और बहुत पैसे वाला लड़का चाहता है. वैसे ही उस लड़की के माँ बाप भी, उसके लिए ऐसा ही लड़का चाहते होगे. इसलिए अभी तू सिर्फ़ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे और खूब पढ़ लिख जा. जब तू खूब पढ़ लिख जाएगा और तेरे पास अच्छा सा जॉब होगा. तब उस लड़की के माँ बाप भी, तेरे साथ उसकी शादी से इनकार नही कर पाएगे.”

अब मैं छोटी माँ को, ये बात कैसे समझाता कि, मेरे लिए इन सब बातों से बढ़ कर ये बात है कि, वो लड़की रिश्ते मे मेरी बहन लगती है. मैं यदि उनके कहने पर ये सब हासिल कर भी लूँ. तब भी उसके माँ बाप और खुद छोटी माँ भी इस शादी के लिए कभी तैयार नही होगी.

मैं अभी अपनी इन्ही सोचो मे खोया हुआ था. लेकिन जब छोटी माँ ने देखा कि, मैने उनकी इस बात का कोई जबाब नही दिया. तब उन्हों ने मुझसे पुच्छा.

छोटी माँ बोली “क्या हुआ. क्या तुझे मेरी बात सही नही लगी.”

मैं बोला “नही छोटी माँ. आप सही कह रही है. लेकिन मुझे कोई जॉब करने की क्या ज़रूरत है. हमारा तो खुद का इतना बड़ा बिज़्नेस है.”

छोटी माँ बोली “तेरा सोचना ठीक है. लेकिन वो सारा बिज़्नेस तेरे पापा का है. मैं चाहती हूँ कि, तू जो भी करे अपने दम पर करे. तुझे किसी बात के लिए, किसी के सामने झुकना ना पड़े.”

मैं बोला “जी छोटी माँ, आप जैसा चाहती है, मैं वैसा ही करूगा. मैं पढ़ लिख कर बहुत बड़ा आदमी बनूंगा.”

मेरी बात सुनकर छोटी माँ ने, प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरा और ऐसे ही बात करते करते हम एरपोर्ट पहुच गये. एरपोर्ट पहुच कर मैने छोटी माँ से वापस जाने को कहा. लेकिन वो इसके लिए तैयार नही हुई और गाड़ी पार्क करके, वो भी मेरे साथ एरपोर्ट के अंदर आ गयी.

अभी मेरी फ्लाइट छूटने मे बहुत वक्त था. इसलिए हम लोग कॉफी पीने चले गये. मैने कॉफी पीते पीते, छोटी माँ से कहा.

मैं बोला “छोटी माँ, आप ऐसे कपड़ों मे बहुत अच्छी लगती है. आप हमेशा ऐसे ही रहा कीजिए.”

छोटी माँ बोली “ये तो मैने तेरी खातिर किया है. ताकि तुझे हंसते हंसते यहाँ से भेज सकूँ.”

मैं बोला “तो फिर आप मेरी खातिर ही ऐसी रहा कीजिए.”

छोटी माँ बोली “लेकिन मेरे ये सब करने का फ़ायदा क्या है. तुझे जाते समय उदास होना है तो, वो तू होगा ही.”

मैं बोला “नही छोटी माँ, मैं जाते समय ज़रा भी उदास नही होउंगा. लेकिन आप भी वादा कीजिए कि, अब आप हमेशा ऐसे ही रहा करेगी.”

छोटी माँ बोली “वो तो तू अपनी बात पूरी करवाने के लिए, ये सब कह रहा है. लेकिन जब तू जाने लगेगा. तब तू फिर से उदास हो जाएगा और पूरे रास्ते भर उदास रहेगा.”

मैं बोला “नही छोटी माँ, ऐसा बिल्कुल नही होगा. आप मेरा यकीन कीजिए. ना तो मैं यहाँ से जाते समय उदास रहुगा और ना ही मैं, रास्ते मे उदास रहुगा. प्लीज़ आप मेरी बात मान लीजिए ना.”

छोटी माँ बोली “ना बाबा ना, मैं तेरी ये बात नही मान सकती. मैं तो इधर रहूगी. मैं कौन सा तुझे प्लेन मे देखने आ रही हूँ कि, तू उदास है या नही.”

मैं बोला “नही छोटी माँ. मैं सच कह रहा हूँ. आपको ऐसे खुश देख कर, मुझे सच मे बहुत अच्छा लग रहा है. यदि आप ऐसे ही हसी खुशी से रहेगी तो, मेरे सामने आपका यही चेहरा घूमता रहेगा. फिर भला मैं क्यो उदास रहुगा. आप चाहे तो मुझसे कसम ले लीजिए.”

छोटी माँ बोली “रहने दे, कसम लेने की कोई ज़रूरत नही है. तू इतनी ज़िद कर रहा है तो, मैं तेरी बात मान लेती हूँ. अब तो तू खुश है ना.”

मैं बोला “जी छोटी माँ, मैं बहुत खुश हूँ.”

ऐसे ही बात करते करते पता नही चला कि, समय कब बीत गया और फ्लाइट की घोषणा हो गयी. फ्लाइट की घोषणा सुनते ही मैने छोटी माँ के पैर छुए तो, उन्हो ने मुझे अपने गले लगा लिया. जब मैं उनसे गले मिलकर अलग हुआ तो, उनकी आँखों मे आँसू थे.

उनकी आँखों मे आँसू देखते ही मैने मुस्कुराते हुए छोटी माँ से कहा.

मैं बोला “ये क्या छोटी माँ, अभी तो आप मुझे कह रही थी कि, मैं जाते समय उदास हो जाउन्गा और अब आप खुद आँसू बहा रही है.”

मेरी बात सुनकर छोटी माँ ने अपने आँसू पोन्छे और मुस्कुराते हुए कहने लगी.

छोटी माँ बोली “पगले, ये आँसू तो एक माँ की आँखों मे उमर भर छुपे रहते है. जब भी उसका बेटा उसके सीने से लगता है तो, ये अपने आप ही छलकने लगते है. इन्हे बहने से, ना तो तू रोक सकता है और ना ही वो उपर वाला रोक सकता है. लेकिन देख अब मेरी आँखों मे आँसू नही है. मैं पहले की तरह ही खुश हूँ. अब तू जा और सबको जल्दी से अपने साथ लेकर आ. हम सबको तुम लोगों के घर वापस आने का बहुत बेसब्री से इंतजार है.”

मैं बोला “जी छोटी माँ, जल्दी ही हम सब वापस आ जाएगे. आप सबका और अपना भी ख़याल रखना. अब मैं चलता हूँ.”

ये कह कर मैने फिर से छोटी माँ के पैर छुये और इस से पहले कि छोटी माँ को मेरी आँखों मे आँसुओं की नमी महसूस हो. मैने एक बार उनके चेहरे को देखा और पलट कर तेज़ी से फ्लाइट की तरफ बढ़ गया.

क्योकि अब मेरे लिए चाह कर भी अपने आँसुओं को बहने से रोक पाना मुस्किल हो गया था. छोटी माँ को यू अकेले छोड़ कर जाने से, मेरा दिल बैठा जा रहा था. मैने फ्लाइट की तरफ बढ़ते हुए अपनी आँखों पर हाथ लगाया तो, वो आँसुओं से भीग चुकी थी. मैने फ़ौरन अपने आँसुओं को पोन्छा और फ्लाइट पर चढ़ गया.

मैं उदास रहना नही चाहता था. इसलिए छोटी माँ के हंसते हुए चेहरे और उनकी बातों को याद करने लगा. छोटी माँ की बातों को याद करते ही, थोड़ी ही देर मे मेरी सारी उदासी भाग गयी.

थोड़ी ही देर बाद फ्लाइट ने भी उड़ान भरना सुरू कर दिया. सारे रास्ते भर मैं अमि, निमी, कीर्ति और छोटी माँ की बातों को ही, सोचता रहा और यही सब सोचते सोचते मेरा मुंबई तक का सफ़र पूरा हो गया और 8:45 पर फ्लाइट ने उड़ान भरना बंद कर दिया.

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09-09-2020, 02:13 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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कुछ देर बाद मैं प्लेन से उतरा और आज बिताए हुए पलों को याद करते हुए, एरपोर्ट से बाहर निकलने लगा. अभी मैने कुछ ही कदम आगे बढ़ाए होगे कि, तभी कीर्ति का कॉल आने लगा. मैने कॉल उठाया तो उसने कहा.

कीर्ति बोली “जान, कैसे हो. वहाँ कब पहुचे.”

मैं बोला “अच्छा हूँ. बस अभी अभी पहुचा हूँ. अभी प्लेन से उतरा ही था कि, तेरा कॉल आ गया. तू बता तू कैसी है.”

कीर्ति बोली “मैं तो अच्छी हूँ जान. बस तुम्हारे जाते ही फिर तुम्हारी याद सताने लगी है.”

मैं बोला “हाँ, याद तो मुझे भी तेरी सता रही है. लेकिन क्या करूँ, मेरा यहाँ होना भी तो ज़रूरी है.”

कीर्ति बोली “कोई बात नही जान. बस कुछ दिनो की ही तो बात है. फिर तो हमे एक दूसरे के साथ ही रहना है.”

मैं बोला “ठीक है. अब तू फोन रख. मैं राज के घर पहुच कर, तुझसे बात करता हूँ.”

कीर्ति बोली “ठीक है जान. लेकिन उसके पहले निक्की से बात करके, वहाँ का हाल चल जान लो.”

मैं बोला “अच्छी बात है. मैं अभी निक्की से बात कर लेता हूँ. अब तू फोन रख. मुउहह”

कीर्ति बोली “ओके जान, मैं फोन रखती हूँ. मुउउहह.”

इसके बाद कीर्ति ने फोन रख दिया. उसके फोन रखते ही मैं एरपोर्ट से बाहर आ गया और निक्की को फोन लगाने लगा. निक्की ने कॉल उठाया तो, मैने कहा.

मैं बोला “मैं मुंबई पहुच गया हूँ. यहाँ का हाल चल कैसा है.”

निक्की बोली “यहाँ सब ठीक है. सुबह मेरे यहाँ आते ही मेहुल ने मुझे, आपके जाने का बता दिया था और दोपहर को अमन भैया ने मेहुल से मिलकर उसे बताया था कि, उन ने अपने काम से आपको भेजा है. हमने जैसा सोचा था. सब कुछ वैसा ही हुआ है.”

मैं बोला “थॅंक्स, क्या अभी आप हॉस्पिटल मे ही है.”

निक्की बोली “हाँ, अभी मैं हॉस्पिटल मे ही हूँ. कुछ देर पहले ही मैं अंकल के पास से नीचे आई हूँ और राज उपर गया है.”

मैं बोला “मेहुल कहाँ है.”

निक्की बोली “मेहुल अभी घर मे ही है. वो 10 बजे तक आएगा.”

मैं बोला “ठीक है, मैं सीधे हॉस्पिटल ही आ रहा हूँ.”

ये कह कर मैने फोन रख दिया और टॅक्सी देखने लगा. अभी मैं टॅक्सी के लिए आगे बढ़ा ही था कि, मेरे सामने एक टॅक्सी आकर रुक गयी. मैने देखा तो, वो अजय था. मैं टॅक्सी मे बैठा तो, अजय ने कहा.

अजय बोला “सॉरी यार, मुझे आने मे ज़रा देर हो गयी.”

मैं बोला “लेकिन मैने तो तुम्हे आने के लिए कहा ही नही था. फिर तुमने बेकार मे तकलीफ़ क्यो की.”

अजय बोला “मुझे मालूम था कि, तुम्हारी वापसी की फ्लाइट 8:45 की है. इसलिए तुम्हे लेने चला आया. ये बताओ अभी तुम कहाँ जाओगे.”

मैं बोला “अभी तो मैं सीधे हॉस्पिटल जाउन्गा. निक्की भी अभी वही है.”

अजय बोला “वैसे तो तुम्हे, निक्की से यहाँ का सारा हाल चल पता चल ही गया होगा. फिर भी मैं तुम्हे बता देता हूँ कि, अमन ने तुम्हारे दोस्त से मिलकर उसे बता दिया था कि, तुम उसके काम से गये हो और रात तक वापस आ जाओगे.”

मैं बोला “हाँ, ये सब मुझे निक्की बता चुकी है. मेरी अभी उस से फोन पर बात हुई थी.”

अजय बोला “और सूनाओ, तुम्हारी गर्लफ्रेंड से तुम्हारी मुलाकात कैसी रही.”

मैं बोला “बहुत अच्छी रही.”

इसके बाद अजय से मेरी कीर्ति को लेकर ही बात चलती रही. कीर्ति से हुई, मेरी मुलाकात को लेकर अजय बहुत खुश था. मगर उसका इस तरह से दोहरा जीवन जीना, अभी भी मेरे लिए एक राज़ बना हुआ था.

लेकिन उसके राज़ मे से एक परत, शायद कीर्ति हटा चुकी थी. फिर भी कीर्ति की बात सही थी या नही, इसकी पुष्टि अजय से करना बाकी था. मगर अभी इन सब बातों को करने का ये सही समय नही था. इसलिए मैं अजय से इस बारे मे, कोई बात नही कर रहा था.

हम दोनो ऐसे ही बात करते करते हॉस्पिटल पहुच गये. हॉस्पिटल पहुचते ही हमे निक्की मिल गयी. हमारी थोड़ी बहुत निक्की से बात हुई. फिर मैं अजय को उसके साथ छोड़ कर, उपर अंकल के पास चला गया.

मैने अंकल से उनकी तबीयत पुछि. फिर उन्हे घर का सारा हाल चाल बताता रहा. राज से भी मेरी थोड़ी बहुत बात हुई. थोड़ी देर अंकल के पास रुक कर, मैं वापस नीचे आ गया.

मैं नीचे आया तो निक्की अकेली बैठी थी. मैने उस से अजय के बारे मे पुछा तो, उस ने बताया कि, वो चले गये. फिर मैने निक्की से पुछा.

मैं बोला “रिया और प्रिया का क्या हाल है. उनमे से किसी ने मेरे बारे मे कुछ पुछा.”

मेरी बात सुनकर निक्की मेरी तरफ गौर से देखने लगी. फिर मुस्कुराते हुए कहा.

निक्की बोली “हाँ, दोनो ने तुम्हारे बारे मे पुछा था. रिया तो मेरी बात सुनकर कुछ नही बोली. लेकिन प्रिया ने सवालों की झड़ी लगा दी थी.”

मैं बोला “प्रिया क्या बोल रही थी.”

निक्की बोली “वो जो कुछ भी बोल रही थी. वो आपको उस से मिलकर पता चल जाएगा. मैने तो उसे जैसे तैसे टाल दिया. अब आप ही उसे झेलो.”

मैं बोला “कुछ तो बताइए.”

निक्की बोली “अभी कुछ नही बता सकती. मेहुल आ गया है.”

निक्की की बात सुनकर मैने पिछे की तरफ देखा तो, मेहुल हमारे ही पास आ रहा था. उसने मेरे पास आते ही पुछा.

मेहुल बोला “तू कब आया. आया था तो, मुझे कॉल क्यो नही किया. मैं तुझे लेने आ जाता. घर मे सब कैसे है. मम्मी कैसी है.”

एक ही साँस मे मेहुल ने बहुत सारे सवाल कर दिए. मैं एक एक करके, उसके हर सवाल का जबाब देता रहा और उसे घर के सब लोगों का हाल चाल बताता रहा. सबके बारे मे सुनकर मेहुल कुछ भावुक सा हो गया था. फिर कुछ देर बाद वो उपर अंकल के पास चला गया.

मेहुल के जाने के बाद मैने निक्की से प्रिया के बारे मे जानना चाहा. लेकिन मेरी निक्की से ज़्यादा बात ना हो सकी और राज नीचे आ गया. राज के आने के बाद, हम तीनो घर आ गये.

हम घर पहुचे तो खाने की तैयारी चल रही थी. मैने खाना खाने से मना किया तो, आंटी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खाने के लिए बैठा दिया. आंटी के लिए मेरे दिल मे अब बहुत इज़्ज़त थी. इसलिए मैं उनके कहने पर, खाने के लिए इनकार ना कर सका.

खाने पर घर के सभी लोग थे. मेरी थोड़ी बहुत दादा जी और अंकल से बात हुई. रिया ने भी मुझसे एक दो बात की. लेकिन प्रिया सारे समय चुप चाप खाना खाती रही और मेरी तरफ देख भी नही रही थी.

मैं समझ गया था कि, प्रिया मुझसे नाराज़ है. लेकिन ना जाने क्यो, मुझे प्रिया की ये नाराज़गी अच्छी नही लग रही थी. मैं उस से बात करना चाहता था. मगर उस समय मेरे पास चुप रहने के सिवा कोई रास्ता नही था.

खाना खाने के बाद मेरी दादा जी से, मेरे घर के बारे मे बात चलती रही. मैं दादा जी को, अमि निमी के बारे मे बताता रहा. फिर 11:30 बजे मैं सबको गुड नाइट बोल कर अपने कमरे मे आ गया.

कमरे मे आकर मैने अपने कपड़े बदले और बेड पर लेट गया. लेटे लेटे मैं कीर्ति के कॉल आने का इंतजार करने लगा. लेकिन कुछ ही देर बाद, मुझे नींद के झपके आने लगे. मुझे लगा कि मैं यदि ऐसे ही लेटा रहा तो, जल्दी ही मुझे नींद आ जाएगी और मैं कीर्ति से बात नही कर पाउन्गा.

मैं कीर्ति की आदत भी अच्छी तरह से जानता था कि, यदि उसकी मुझसे बात ना हुई तो, वो सारी रात मेरे कॉल आने का इंतजार करती रहेगी. यही सब सोच कर मैने कीर्ति को कॉल लगा दिया और फिर उसके कॉल आने का इंतजार करने लगा.

थोड़ी ही देर बाद कीर्ति का कॉल आ गया. मैने कॉल उठाया और उस से पुछा.

मैं बोला “अभी तक तूने कॉल क्यो नही लगाया. मैं कब से तेरे कॉल का इंतजार कर रहा था.”

कीर्ति बोली “मैं अमि निमी के सोने का इंतजार कर रही थी. वो जैसे ही सोई, मैने तुम्हे कॉल कर दिया.”

मैं बोला “चल कोई बात नही. अमि निमी तुझे परेशान तो नही कर रही है.”

कीर्ति बोली “नही जान, वो मुझे बिल्कुल भी परेशान नही कर रही. लेकिन तुमने ऐसा क्यो पुछा.”

मैं बोला “आज उन्हो ने जो कुछ भी किया. उस से यही लग रहा था कि, उन्हे तेरा मेरे साथ जाना पसंद नही आया. मैने उसके लिए उन्हे समझाया भी था.”

कीर्ति बोली “जान, तुम भी ना, ज़रा ज़रा सी बात को सोचते रहते हो. वो अभी छोटी है. उन्हे इतनी समझ ही कहाँ है कि, वो कुछ समझ सके.”

मैं बोला “मैं जानता हूँ. लेकिन मैं नही चाहता कि, उनके नन्हे से मन मे, ये बात घर करे कि, तू उनके भाई को उनसे छीन रही है.”

कीर्ति बोली “ऐसा कुछ भी नही होगा जान. मेरे उपर विस्वास रखो. जब तक तुम वापस आओगे. तब तक मैं उन्हे अपनी दीवानी बना लुगी.”

मैं बोला “यदि तू ऐसा कर ले तो, बहुत अच्छी बात है. मैं तुम तीनो को हमेशा एक साथ ही देखना चाहता हूँ.”

कीर्ति बोली “ऐसा ही होगा जान. तुम बिल्कुल चिंता मत करो. अब तुम आराम करो. हम कल बात करते है.”

मैं बोला “इतनी जल्दी. अभी तो मैने तुझसे कोई बात ही नही की है.”

कीर्ति बोली “जान, ना तो बात कहीं भागी जा रही है और ना ही मैं कहीं भागी जा रही हूँ. लेकिन आज तुम बहुत थके हुए हो. मेरी वजह से दो दिन से तुम्हारी नींद पूरी नही हो पाई है. इसलिए आज तुम आराम करो. हम कल बात करेगे.”

कीर्ति की ये बात सुनकर मेरे दिल को बहुत सुकून महसूस हुआ. उसे इतनी दूर रह कर भी मेरी हालत का अंदाज़ा और मेरा कितना ख़याल था. लेकिन अभी मेरा मन, उस से बात करने का कर रहा था. इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला “लेकिन मुझे अभी नींद नही आ रही है. मुझे तुझसे बात करनी है.”

कीर्ति बोली “नही जान, आज मैं तुम्हारी एक बात नही सुनुगि. आज तुम्हे अच्छे बच्चे की तरह जल्दी सोना होगा.”

मैं बोला “ठीक है, जैसी तेरी मर्ज़ी. गुड नाइट. मुउउहह.”

कीर्ति बोली “गुड नाइट जान. मुऊऊऊहह.”

इसके बाद कीर्ति ने कॉल रख दिया. मैने भी अपना मोबाइल एक किनारे रखा और आँख बंद करके, कीर्ति के बारे मे सोचने लगा और यही सब सोचते सोचते, पता ही नही चला कि कब मेरी नींद लग गयी.

सुबह मेरी नींद किसी के दरवाजा खटखटाने पर खुली. मैने टाइम देखा तो, अभी 6 बजा था. मुझे समझते देर नही लगी कि, निक्की मुझे जगा रही है. मैं उठा और दरवाजा खोल कर निक्की को गुड मॉर्निंग कहा. उसने मुझे तैयार होने को कहा और चली गयी.

उसके जाने के बाद मैं फ्रेश होकर तैयार होने लगा. जिसमे मुझे 7 बज गये. तब तक निक्की भी चाय नाश्ता लेकर आ गयी. मैं उसके साथ ही चाय नाश्ता करने लगा. मेरी निक्की से कोई खास बात नही हुई और चाय नाश्ता करने के बाद 7:30 बजे मैं हॉस्पिटल के लिए निकल गया.

मेरे हॉस्पिटल पहुचने पर मेहुल घर आ गया. मैं अंकल के पास बैठा रहा और हर घंटे पर उपर नीचे होता रहा. इस बीच कीर्ति का फोन आया तो, मेरी उस से थोड़ी बहुत बात हुई. उसे स्कूल जाना था इसलिए मेरी उस से ज़्यादा बात नही हो सकी.

फिर 9 बजे निक्की आ गयी. उसे इस समय देख कर मुझे थोड़ा ताज्जुब हुआ. मैने उस से पुछा कि, आज आप बड़ी जल्दी आ गयी है. तब उसने कहा कि, मैं नीचे जाकर देखु. मुझे सब समझ मे आ जाएगा. वो शायद अंकल के सामने कुछ कहना नही चाहती थी.

मैं निक्की की बात सुनकर नीचे आ गया. नीचे आकर मैने इधर उधर देखा मगर मुझे कोई नज़र नही आया. मैं जहाँ बैठता था, उस जगह की तरफ बढ़ गया. लेकिन वहाँ पहले से ही कोई लड़की बैठी थी.

उसे वहाँ बैठी देख कर मैं आगे बढ़ गया. लेकिन तभी मुझे एक जानी पहचानी आवाज़ सुनाई दी. जिसे सुनकर मैं चौके बिना ना रह सका. मैने पलट कर देखा तो, मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी.

वो आवाज़ प्रिया की थी. मैं जिसे अंजान लड़की समझ कर, आगे बढ़ गया था. वो लड़की कोई और नही प्रिया ही थी. वो इस समय पिंक कलर का सलवार सूट पहने हुई थी. जिस वजह से मैं उसे पिछे से पहचान नही पाया था. वो मुझसे कह रही थी.

प्रिया बोली “उधर कहाँ जा रहे हो. क्या मैं तुम्हे इधर बैठी नज़र नही आ रही.”

उसकी बात सुनकर मैं मुस्कुराते हुए, उसकी तरफ बढ़ गया और उस के पास बैठते हुए मैने कहा.

मैं बोला “आज तुम्हे इन कपड़ों मे देख कर, मैं सच मे तुम्हे पहचान नही पाया.”

लेकिन प्रिया अभी भी, मुझसे ना जाने किस बात पर नाराज़ थी. उसने मूह बनाकर कहा.

प्रिया बोली “हाँ, मैं तुम्हे क्यो पहचान मे आओगी. मैं तुम्हारी होती ही कौन हूँ.”

मैं बोला “नही, ऐसी बात नही है. तुम्हे इस लिबास मे देखने की, मुझे ज़रा भी उम्मीद ही नही थी. इसलिए मैने तुम्हारी तरफ ध्यान ही नही दिया. लेकिन कुछ भी कहो, आज तुम लग बहुत प्यारी रही हो. मेरा तो दिल कर रहा है कि, बस तुम्हे देखता ही रहूं.”

मेरी इन बातों से प्रिया की नाराज़गी कुछ हद तक कम हुई और उस ने मुझसे कहा.

प्रिया बोली “रहने दो, ज़्यादा मस्का मत लगाओ. मैं इतनी सुंदर भी नही हूँ. जो तुम मुझे देखते रहोगे.”

मैं बोला “मैं कोई मस्का नही लगा रहा हूँ. तुम सच मे बहुत सुंदर हो और सुंदर तो, तुम उन कपड़ों मे भी बहुत लगती हो. लेकिन इन कपड़ों मे, तुम सिर्फ़ सुंदर ही नही, बल्कि बहुत प्यारी भी लग रही हो.”

मेरी बात सुनकर प्रिया मुस्कुराए बिना ना रह सकी. लेकिन जल्दी ही उसने अपनी मुस्कुराहट छुपा ली और कहने लगी.

प्रिया बोली “तुम्हे बातें बनाना बहुत अच्छी तरह से आता है. ये बताओ कल दिन भर कहाँ गायब रहे.”

मैं बोला “कल मैं डॉक्टर अमन के काम से अपने शहर चला गया था. सुबह जल्दी निकल गया था, इसलिए तुम्हे बता कर नही जा सका.”

मैने ये बात प्रिया को अपनी सफाई देने की नियत से कही थी. लेकिन मेरी बात सुनकर प्रिया की नाराज़गी खुलकर सामने आ गयी.

प्रिया बोली “मैं कौन होती हूँ तुम्हारी, जो तुम मुझे कुछ बता कर जाओगे. तुम्हारी सग़ी तो निक्की थी. जिसे तुमने आधी रात को जगा कर, अपने जाने के बारे मे बताया था.”

मैं बोला “प्रिया तुम ग़लत सोच रही हो. मैने तुम्हे इस लिए नही जगाया था. क्योकि तुम बहुत गहरी नींद मे सोती हो और सुबह देर से उठती हो. मुझे डॉक्टर अमन के काम से अचानक जाना पड़ रहा था और दरवाजा बंद करने के लिए मुझे, उस समय निक्की के सिवा कोई दूसरा समझ मे ही नही आया. यदि डॉक्टर अमन को उस समय ज़रूरी काम नही होता तो, मैं तुम्हे बता कर ज़रूर जाता.”

प्रिया बोली “तुम झूठ बोल रहे हो. मैं सब जानती हूँ. तुम सब मिले हुए हो. तुम इतनी रात मे किसी काम से नही, बल्कि उस लड़की से मिलने गये थे.”

प्रिया की ये बात सुनकर तो, एक पल के लिए मुझे साँप ही सूंघ गया. मुझे समझ मे ही नही आया कि, इसे ये बात कैसे पता चली. लेकिन अगले ही पल मेरे दिमाग़ मे आया कि, इसे कुछ नही मालूम. इस समय ये गुस्से मे है और इसके दिल मे जो आ रहा है. वो बकती जा रही है. यही सोचते हुए मैने, प्रिया को अपनी सफाई देते हुए कहा.

मैं बोला “जैसा तुम सोच रही हो. ऐसा कुछ भी नही है. तुम चाहो तो मेरे घर फोन करके पता कर लो. मेरे वहाँ पहुचते ही मेरी माँ और बहन मुझे एरपोर्ट लेने आई थी और मैं उनके साथ घर गया था. अब यदि मैं उस लड़की से मिलने ही वहाँ गया होता तो, फिर अपने घर क्यो जाता और अपने घर वालों को क्या जबाब देता.”

लेकिन प्रिया भी इतनी जल्दी हार मानने वाली नही थी. उसने फिर अपना सवाल करना सुरू कर दिया. उसने कहा.

प्रिया बोली “तुम्हारा कहना है कि, तुम वहाँ जाकर भी उस लड़की से नही मिले हो.”

मैं बोला “ऐसा मैने कुछ भी नही कहा. मैं तो सिर्फ़ ये कह रहा था कि, मैं वहाँ अपने काम से गया था. अब जब मैं वहाँ गया ही था तो, उस से क्यो नही मिलता. मैं थोड़ी देर के लिए उस से भी मिला हूँ. लेकिन मैं वहाँ गया अपने काम से ही था.”

मेरी बातों पर शायद प्रिया को यकीन आ गया था. लेकिन फिर भी अपने यकीन को पक्का करने के लिए, उसने बड़े ही भोलेपन से, मुझसे पुछा.

प्रिया बोली “तुम सच बोल रहे हो ना. तुम सच मे ही डॉक्टर अमन के काम से घर वापस गये थे.”

प्रिया के इस भोलेपन के सामने मुझे अपना, उस से झूठ कहना चुभने लगा था. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, मैं उसकी इस बात के सामने क्या कहूँ. अब मेरी उस से झूठ कहने की ताक़त जबाब दे चुकी थी.

आख़िर कुछ भी था. वो लड़की जो कुछ भी कर रही थी, सिर्फ़ मेरे लिए ही कर रही थी. उसे मालूम था कि, मैं उसका नही बन सकता. इसके बाद भी वो खुद को, मेरे साँचे मे ढालने की कोसिस कर रही थी. उसका ये प्यार और भोलापन मुझे उस से झूठ बोलने से रोक रहा था.

मैं अभी अपने ही ख़यालों मे खोया हुआ था. तभी प्रिया ने मुझसे फिर पुछा.

प्रिया बोली “चुप क्यो हो. मेरी बात का जबाब तो दो.”

प्रिया की बात सुनकर मैने अपने आपको संभाला और उस से कहा.

मैं बोला “क्या जबाब दूं. मैं सब कुछ तो तुम्हे बता चुका हूँ.”

प्रिया बोली “बस इतना कह दो कि, अभी तुमने जो कुछ भी कहा है. सब सच कहा है.”

प्रिया की इस बात का मैं, चाहते हुए भी, कोई जबाब नही दे पा रहा था. जब मुझसे उसकी बात का जबाब देते नही बना. तब मैने बात को बदलते हुए प्रिया से कहा.

मैं बोला “लेकिन तुम्हे ऐसा क्यो लग रहा है कि, मैं झूठ बोल रहा हूँ.”

प्रिया बोली “मुझे नही मालूम. लेकिन मेरा दिल कह रहा है कि, तुम किसी काम से नही. उसी लड़की से मिलने वापस घर गये थे.”

मैं बोला “तो क्या सिर्फ़ मेरे बोल देने से, तुम्हारे दिल को ये यकीन हो जाएगा कि, मैं सच बोल रहा हूँ.”

प्रिया बोली “हाँ, मुझे यकीन हो जाएगा कि, तुम सच बोल रहे हो.”

इतना बोलकर प्रिया चुप हो गयी और मेरे जबाब देने का इंतजार करने लगी. लेकिन मैं अभी भी चुप ही था. मैं मन ही मन फ़ैसला करने की कोशिश कर रहा था कि, मैं प्रिया की इस बात का क्या जबाब दूं.

प्रिया से मुझे एक अजीब सा लगाव हो गया था. जो मुझे उसके भोलेपन के सामने झुकने और सच बोलने पर मजबूर कर रहा था. आख़िर मे जीत प्रिया के भोलेपन की हुई और मैने उस से कहा.

मैं बोला “प्रिया, तुम्हारा दिल जो कह रहा है. वही सच है. मैं उसी लड़की से मिलने ही घर वापस गया था. वो मेरे बिना एक पल भी, रह नही पा रही थी और उसने रो रो कर अपना बुरा हाल कर लिया था. वो मुझे एक बार देखना चाहती थी. इसलिए मुझे अचानक, आधी रात को घर वापस जाना पड़ा.”

अपनी बात बोलकर मैं प्रिया का चेहरा देखने लगा. मुझे नही मालूम था कि, मेरे इस सच को जानने के बाद प्रिया की क्या प्रतिक्रिया रहेगी. वो इस सच को जानकार मुझसे नाराज़ होती है या फिर पहले की ही तरह बात करती है.

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09-09-2020, 02:13 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मैं प्रिया के कुछ बोलने का इंतजार कर रहा था. प्रिया के चेहरे के रंग पल पल बदल रहे थे. ऐसा लग रहा था कि, जैसे वो मन ही मन अपने आप को कुछ समझाने की कोसिस कर रही हो.

कुछ देर वो मन ही मन, अपने आप से बातें करती रही. फिर अचानक ही उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. उसने मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देखा और फिर मुझसे पुच्छने लगी.

प्रिया बोली “इस बात को तुम्हारे सिवा और कौन कौन जानता है. क्या निक्की को ये बात पता है.”

मैं बोला “इस बात को सिर्फ़ 4 लोग जानते थे. एक तो डॉक्टर अमन, दूसरा मेरा एक यही का दोस्त है, तीसरी निक्की और चौथी वो लड़की. लेकिन अब तुमको मिलकर इस बात को 5 लोग जानने लगे है.”

प्रिया बोली “लेकिन निक्की जब ये बात जानती थी. तब उसने ये बात मुझे क्यो नही बताई.”

मैं बोला “निक्की से मैने किसी से कुछ भी बताने से मना किया था. मैने निक्की से कहा था कि, जिसको भी कुछ बताना होगा. मैं खुद ही बताउन्गा. क्या इसके बाद भी तुमको लगता है कि, निक्की ने तुम्हे, बात ना बताकर ग़लत किया है.”

प्रिया बोली “नही, निक्की ने कुछ ग़लत नही किया. लेकिन उसे तुमसे जुड़ी बात मुझे बता देनी चाहिए थी. मैं थोड़ी किसी को जाकर ये बात बता देती. बल्कि मैं भी तुम्हारा साथ ही देती.”

मैं बोला “ठीक है, अगली बार जब भी ऐसी कोई बात होगी. मैं सबसे पहले तुमको ही बताउन्गा. लेकिन अब तुम इस बात को लेकर निक्की से नाराज़ मत हो जाना. नही तो वो सोचेगी कि, एक तो उसने मेरी मदद की और उपर से मैने तुमसे ये बात बता कर उसकी तुमसे लड़ाई करवा दी.”

प्रिया बोली “नही, नही, मैं निक्की से कुछ नही कहुगी. लेकिन तुम भी अपना वादा याद रखना. अगली बार तुम्हारी कोई भी बात हो, सबसे पहले मुझे ही पता चलनी चाहिए.”

मैं बोला “हाँ, मैं अपना वादा याद रखुगा. मगर अब तुम भी इतनी ज़रा ज़रा सी बात पर मुझसे नाराज़ मत होना. तुम्हारे मन मे यदि कोई बात थी तो, तुम मुझसे पुछ सकती थी. उसके लिए मुझसे नाराज़ होने की क्या ज़रूरत थी.”

मेरी बात सुनकर प्रिया खिलखिला कर हँसने लगी. उसका इस तरह से हसना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. मैने भी उस से हंसते हुए कहा.

मैं बोला “अब कैसे खिलखिलाकर हंस रही हो. कल तो कैसा मूह फूला कर रखा हुआ था और मेरी तरफ देख तक नही रही थी.”

प्रिया बोली “कल मुझे तुम्हारे उपर बहुत गुस्सा था. एक तो तुम मुझे बताकर नही गये थे. उस पर मैं तुम्हे कॉल कर रही थी तो, तुम मेरा कॉल उठा भी नही रहे थे.”

मैं बोला “हाँ ये मेरी ग़लती थी कि, मैं तुम्हे बता कर नही गया था. लेकिन तुमने मुझे कब कॉल लगाया. मेरे पास तो तुम्हारा कोई कॉल नही आया.”

प्रिया बोली “मैने नये वाले मोबाइल पर तुम्हे कॉल किया था.”

प्रिया की ये बात सुनकर मुझे याद आया कि, उसका मोबाइल तो मैं अपने साथ लेकर ही नही गया था और लौट कर आने के बाद, मैने उसे देखा भी नही था कि, उसमे प्रिया का कोई कॉल है या नही. ये बात याद आते ही मैने प्रिया से कहा.

मैं बोला “वो मोबाइल तो मैं जल्दी जल्दी मे, अपने साथ ले जाना ही भूल गया था. तुम्हे मेरे दूसरे नंबर पर कॉल करना चाहिए था.”

प्रिया बोली “जब मैने उस नंबर पर बहुत बार कॉल लगाया तो, मुझे समझ मे आ गया था कि, तुम वो मोबाइल अपने साथ नही ले गये. इस बात से मुझे तुम पर और भी ज़्यादा गुस्सा आ गया था. इसलिए फिर मैने तुम्हारे दूसरे नंबर पर कॉल नही लगाया.”

मैं बोला “सॉरी, ये भी मेरी ही ग़लती थी. अब मैं तुम्हे इस शिकायत का मौका भी कभी नही दूँगा. लेकिन तुम यूँ ज़रा ज़रा सी बात पर मुझसे नाराज़ रहना बंद कर दो. मैं कौन सा तुम्हारे पास जिंदगी भर रहने वाला हूँ. कुछ दिन बाद तो, मुझे अपने घर वापस जाना ही है.”

कहने को तो मैं ये बात एक ही झटके मे कह गया था. लेकिन मेरी इस बात को सुनते ही प्रिया का खिला हुआ चेहरा मुरझा गया था. उसके मुरझाए हुए चेहरे को देखते ही, मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ और मुझे अपने आप बहुत गुस्सा आया.

लेकिन कमान से निकला तीर और मूह से निकली बात, जब अपने निशाने पर पहुचते है. तब उसे छोड़ने वाले को उस दर्द का अहसास नही हो पता. जो दर्द उसका निशाना बनने वाले को होता है.

ऐसा ही कुछ दर्द अब प्रिया के चेहरे से झलक रहा था. उसे मेरी जुदाई की बात ने बेचैन कर दिया था. मैं इस दौर से गुजर चुका था. इसलिए मुझे उसके दर्द का अंदाज़ा पूरा नाहो तो, कुछ हद तक ज़रूर हो रहा था.

मैने अपनी ग़लती को सुधारने और प्रिया का ध्यान इस बात से हटाने के लिए, हंसते हुए उस कहा.

मैं बोला “प्रिया, ये बताओ, तुम मुझे वो सब कब सिखा रही हो.”

प्रिया बोली “क्या.”

मैं बोला “वही, गर्लफ्रेंड बाय्फ्रेंड बंद कमरे मे क्या करते है.”

ये कह कर मैं हँसने लगा. लेकिन मेरी इस बात से भी प्रिया के चेहरे से मुस्कान गायब ही रही. उसने मुझे रूखा सा जबाब देते हुए कहा.

प्रिया बोली “प्लीज़, अभी मेरा मज़ाक का मूड नही है. अभी कोई मज़ाक मत करो.”

मैं समझ गया कि अभी प्रिया के दिमाग़ मे वही बात घूम रही है और ऐसे मे उसे मुझसे मिलने की बात के सिवा कोई बात सुकून नही देगी. इसलिए मैने प्रिया से कहा.

मैं बोला “ठीक है प्रिया. अब मैं कोई मज़ाक नही करूगा. लेकिन क्या मैं तुम से एक बात पुच्छ सकता हूँ.”

प्रिया ने बड़ी ही मायूसी भरे शब्दो मे कहा.

प्रिया बोली “हाँ पुछो.”

मैं बोला “जब राज और रिया, आंटी के साथ हमारे शहर आई थी. तब तुम उनके साथ क्यो नही आई.”

प्रिया बोली “मुझे चाचा के घर जाना बिल्कुल पसंद नही है.”

मैं बोला “क्यो.”

प्रिया बोली “वो चाचा चाची को मेरा रहन सहन ज़रा भी पसंद नही है. वो बात बात पर मुझे टोकते रहते है. इसलिए मैं उनके घर कभी नही जाती.”

मैं बोला “ये तो पहले की बात हो गयी. जब तुम मुझे जानती नही थी. लेकिन अब तो हम दोस्त बन गये है. क्या अब तुम मुझसे मिलने भी वहाँ नही आओगी.”

प्रिया बोली “मैं तो तुमसे मिलने आ जाउन्गी. लेकिन अब शायद तुम इसके बाद, मुझसे मिलने कभी नही आओगे.”

मैं बोला “ऐसी बात नही है. मेरी अंकल के डॉक्टर से बात हुई थी. उन्हो ने मुझे बताया था कि, हमे 3 महीने बाद फिर अंकल को दिखाने आना पड़ेगा.”

प्रिया बोली “वो तो तुम एक बार अंकल को दिखाने आओगे और चले जाओगे. उसके बाद क्या फिर दोबारा आ पाओगे.”

मैं बोला “हाँ क्यो नही आ पाउन्गा. डॉक्टर का कहना है कि, 5 साल तक अंकल को हर साल यहाँ आकर दिखना पड़ेगा. इसलिए साल मे एक बार तो मेरा यहाँ आना ज़रूर होगा. अब तुम बताओ कि, तुम मेरे यहाँ कब आ रही हो.”

मेरी बात सुनकर प्रिया मेरी तरफ देखने लगी. जैसे जानना चाहती हो कि, क्या मैं उसे बहलाने के लिए ये बात कह रहा हूँ या फिर मैं सच मे चाहता हूँ कि वो मेरे यहाँ आए. मैने उसे इस तरह अपनी तरफ देखते देखा तो, फिर से अपनी बात को दोहराते हुए कहा.

मैं बोला “बताओ ना, तुम मेरे यहाँ कब आ रही हो.”

प्रिया बोली “क्या तुम सच मे चाहते हो मैं वहाँ आउ.”

मैं बोला “हाँ क्यो नही. तुमने मुझे फोन बात करने के लिए दिया है. अब हम रोज बात करेगे तो, क्या मेरा दिल तुमसे मिलने के लिए नही करेगा.”

प्रिया बोली “तुम वहाँ जाकर सच मे मुझसे रोज बात किया करोगे.”

मैं बोला “हाँ, मैं वहाँ जाकर रोज तुमसे बात किया करूगा और यदि ना करूँ तो, तुम वहाँ आकर मेरी जम कर पिटाई कर देना.”

मेरी ये बात सुनकर प्रिया हँसने लगी. उसे हंसते देख कर मुझे भी सुकून मिल गया. मैने उस से फिर पुछा.

मैं बोला “अब बताओ भी, तुम मुझसे मिलने कब आओगी.”

प्रिया बोली “एग्ज़ॅम के बाद जब मेरी छुट्टियाँ पड़ेगी. तब मैं ज़रूर वहाँ आउगि.”

मैं बोला “पक्का आओगी.”

प्रिया बोली “हाँ, पक्का आउगि.”

अब प्रिया का मूड थी हो चुका था और मैं नही चाहता था कि, फिर मेरी किसी बात से उसका मूड खराब हो जाए. इसलिए मैने प्रिया से कहा.

मैं बोला “अच्छा, अब मैं उपर जाता हूँ और निक्की को नीचे भेजता हूँ. तुम उसके साथ घर चली जाना.”

प्रिया बोली “नही, मैं अभी घर नही जाउन्गी.”

मैं बोला “क्यो.”

प्रिया बोली “कल से मेरे स्कूल की छुट्टियाँ ख़तम हो रही है. इसलिए मैं आज का दिन तुम्हारे साथ ही बिताना चाहती हूँ. मैं तुम्हारे साथ ही घर चलूगी.”

मैं बोला “ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी.”

ये बोलकर मैं उपर चला गया और निक्की को नीचे भेज दिया. फिर मैं अंकल के पास ही बैठा रहा. उसके बाद 11:30 निक्की फिर उपर आ गयी. निक्की के आने पर मैं नीचे आ गया और प्रिया के पास बैठा बात करता रहा.

फिर 12 बजे राज भी आ गया. उस से मेरी थोड़ी बहुत बातें हुई और फिर वो हम लोगों को घर जाने के लिए बोलकर उपर अंकल के पास चला गया. कुछ देर बाद निक्की भी नीचे आ गयी और फिर मैं हम तीनो घर आ गये.

घर आकर मैने मेहुल को देखा तो, वो सो रहा था. मैने उसे जगाना ठीक नही समझा और अपने कमरे मे आ गया. मेरे कमरे मे आने के, थोड़ी ही देर बाद प्रिया मुझे खाने के लिए बुलाने आ गयी और मैं उसके साथ खाने के लिए चला गया.

आज भी रिया खाने पर मौजूद नही थी. पुच्छने पर पता चला कि, वो पापा के साथ गयी हुई है. मुझे रिया का इस तरह से पापा के साथ जाना पसंद नही आ रहा था. इसलिए मैने सोचा कि आज रिया से बात करना ही पड़ेगी. ये ही सब बातें सोचते सोचते मैने अपना खाना ख़तम किया और फिर सबसे थोड़ी बहुत बातें करने के बाद 1 बजे मैं अपने कमरे मे आ गया.

कमरे मे आकर मैं, कीर्ति के कॉल आने का इंतजार करने लगा. कुछ ही देर बाद कीर्ति का कॉल आ गया. मेरी उस से थोड़ी बहुत बातें हुई. फिर मेरे हॉस्पिटल जाने का टाइम होने लगा तो, उसने बाद मे बात करने की कह कर, फोन रख दिया.

उसके बाद मैं हॉस्पिटल चला गया. हॉस्पिटल पहुचते ही मैने राज को घर भेज दिया. अब मैं अंकल से पास बैठा हुआ था. लेकिन मेरा दिमाग़ सिर्फ़ पापा के आस पास ही घूम रहा था. इस समय मेरे दिमाग़ मे सिर्फ़ एक ही बात चल रही थी कि, चाहे जैसे भी हो, रिया को पापा के साथ यू रोज रोज जाने से रोकना है.

मैं अभी अपनी इन्ही सोचो मे गुम था कि, 3 बजे कीर्ति का कॉल आने लगा. मैं उठ कर नीचे आ गया और फिर मैने कीर्ति को रिया की बात बताई. उसने फिर से अपनी वही बात दोहराई कि, मैं रिया से इस बारे मे साफ साफ बात कर लूँ. थोड़ी देर मेरी कीर्ति से इसी बारे मे बात चलती रही. फिर उसके फोन रखने के बाद, मैं उपर अंकल के पास चला गया.

मुझे अभी अंकल के पास आए, अभी कुछ ही देर हुई थी कि, प्रिया आ गयी. उसने आते ही कहा कि, वो यहाँ अंकल के पास बैठ रही है. मैं नीचे निक्की के पास चला जाउ. उसकी बात सुनकर मैं नीचे आ गया.

नीचे आने पर जब मैं निक्की के पास पहुचा तो, वहाँ निक्की अकेली नही थी. उसके साथ वहाँ मेहुल भी था. उन दोनो को साथ देख कर मैं समझ गया था कि, आज ये दोनो ज़रूर शिल्पा वाली बात को छेड़ेंगे.

लेकिन अब मुझे इस बात के करने से कोई परेशानी नही थी. क्योकि मेरी इस बात को करने की तैयारी तो, कीर्ति के साथ मिलकर पहले ही हो चुकी थी. आज मेरा भी मूड इस बात को यही ख़तम कर देने का था.

मैं बड़े आराम से चलते हुए दोनो के पास पहुचा और फिर मैने मेहुल से पुछा.

मैं बोला “तू इस समय यहाँ कैसे. मैने सुबह तुझसे दिन मे आने से मना किया था.”

मेहुल बोला “मेरी नींद पूरी हो चुकी है. अब इस से क्या फरक पड़ता है कि, मैं यहाँ हूँ या फिर घर मे हूँ.”

मैं बोला “चल कोई बात नही. अच्छा किया, जो तू आ गया.”

ये बोलकर मैं चुप हो गया और उनके पास ही बैठ गया. थोड़ी देर कोई कुछ नही बोला. फिर मेहुल ने कहा.

मेहुल बोला “यदि तेरा मूड सही हो तो, मुझे तुझे एक ज़रूरी बात करनी है.”

मैं बोला “हाँ बोल ना, क्या बात है.”

मेहुल बोला “तू जिस बात को लेकर निक्की से नाराज़ है. मैं वही बात करना चाहता हूँ.”

मैं बोला “मैं निक्की से किसी बात को लेकर नाराज़ नही हूँ. तू चाहे तो निक्की से पुछ सकता है.”

मेहुल बोला “तू बात को बदलने की कोशिश मत कर. क्या तूने निक्की से खुद नही कहा था कि, तू शिल्पा से प्यार करता है.”

मैं बोला “नही, मैने ऐसा कुछ भी नही कहा था.”

मेरी इस बात को सुनकर मेहुल और निक्की दोनो चौक गये. मेहुल मुझे छोड़ कर निक्की का चेहरा देखने लगा और निक्की आवाक सी मेरा चेहरा देखने लगी. उसे समझ मे नही आ रहा था कि, मैं झूठ क्यो कह रहा हूँ. लेकिन वो चाह कर भी मुझसे कोई सवाल करने की हिम्मत नही कर पा रही थी.

मगर निक्की का चेहरे के हाव भाव देख कर मेहुल समझ गया था कि, मैं निक्की से कही बात से मुकर रहा हूँ. उसने फिर मेरी तरफ देखते हुए कहा.

मेहुल बोला “देख तुझे सच नही बोलना है तो, मत बोल. लेकिन झूठ बोल कर इस बात पर, परदा डालने की कोशिश मत कर की, निक्की ने जो भी बताया था, वो सच नही था. उस दिन तेरा चेहरा इस बात की गवाही दे रहा था कि, निक्की ने जो भी कहा था. वो सब सच था.”

मैं बोला “वो तो मुझे निक्की की इस बात पर गुस्सा आया था कि, मैने उसे अपना दोस्त समझ कर, जो कुछ भी बताया था. वो सब उसने तुम्हारे सामने बिना कुछ सोचे समझे उगल दिया था. क्या उस समय मेरा इस बात से गुस्सा होना जायज़ नही था.”

मेहुल बोला “लेकिन तेरी इस बात से भी तो, यही साबित होता है कि तेरे और निक्की के बीच मे शिल्पा को लेकर बात हुई थी.”

मैं बोला “हाँ, हम दोनो के बीच शिल्पा को लेकर बात हुई थी. मैं इस बात से कब इनकार कर रहा हूँ.”

मेहुल बोला “अभी तो तूने कहा कि, तू शिल्पा से प्यार नही करता. जबकि निक्की से तूने कहा था कि, तू शिल्पा से प्यार करता था.”

मैं बोला “मैं फिर कह रहा हूँ कि, मैं शिल्पा से प्यार नही करता था. मैने निक्की से ऐसा कुछ भी नही कहा.”

मेहुल बोला “ओके, मैं मान लेता हूँ कि, तूने निक्की से ऐसा कुछ नही कहा. अब तू ही बता कि, तूने निक्की से क्या कहा था.”

मैं बोला “मेरी और निक्की की गर्ल और बाय्फ्रेंड को लेकर बात चल रही थी. निक्की ने पुछा कि, मेरी कोई गर्लफ्रेंड है. तब मैने कहा नही है. इसी बात को लेकर निक्की ने मुझसे पुछा कि, आपको अब तक कोई लड़की पसंद ही नही आई या किसी ने आपको धोका दे दिया. तब मैने निक्की से कहा कि, मुझे एक लड़की पसंद तो आई थी. लेकिन वही लड़की मेहुल को भी पसंद आ गयी. इसके बाद मेरा किसी लड़की की तरफ ध्यान ही नही गया.”

ये बोलकर मैने मेहुल और निक्की का चेहरा देखा. दोनो मेरी बात सुनकर खोए हुए थे. मैने फिर अपनी बात को पूरा करते हुए कहा.

मैं बोला “मेरे और निक्की के बीच बस यही बात हुई थी. अब तुम चाहो तो, इस बात के सच झूठ का पता, निक्की से कर लो.”

मेरी बात सुनकर मेहुल तो कुछ नही बोला. लेकिन निक्की ने फ़ौरन कहा.

निक्की बोली “हाँ, बिल्कुल यही बात हुई थी.”

निक्की की ये बात सुनकर मुझे थोड़ी राहत महसूस हुई. क्योकि मैने निक्की को बिना विस्वास मे लिए, ये सब बात कह दी थी. जबकि हक़ीकत मे निक्की को मैने शिल्पा के बारे मे वही बात बताई थी. जो बात मैने कीर्ति को बताई थी. निक्की की इस बात से मुझे, इतना तो समझ मे आ गया था कि, अब वो अपनी ग़लती को सुधारना चाहती है. इसलिए उसने मेरी हाँ मे हाँ मिला रही है.

लेकिन ये बात सुनकर भी मेहुल चुप रहा और किसी सोच मे खोया रहा. उसे शायद अब भी इस बात का विस्वास नही हो रहा था कि, मैं शिल्पा से प्यार नही करता. इसलिए मैने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए निक्की से कहा.

मैं बोला “जब यही बात मैने कही थी तो, फिर बीच मे ये बात कहाँ से आ गयी कि, मैं शिल्पा से प्यार करता था.”

निक्की बोली “ये मेरी ग़लती थी. मैने आपके पसंद आने का मतलब ये लगा लिया कि, आप उस से प्यार करते थे.”

मगर निक्की की इस बात के बाद भी मेहुल पर कोई असर नही पड़ा. वो ना जाने अपने मन ही मन मे, किन सवालों मे उलझा हुआ था. अब मुझे ना चाहते हुए भी, वो बात कहने का फ़ैसला लेना पड़ा. जो बात कहने से मैं बचना चाहता था. मैने निक्की की बात के जबाब मे कहा.

मैं बोला “जब आपने इसे इतना सब कुछ बता दिया था तो, फिर ये क्यो नही बताया कि, मैं किसी और लड़की से प्यार करता हूँ.”

मेरी ये बात सुनकर जहाँ मेहुल मेरी तरफ फटी हुई आँखों से देखने लगा. वही निक्की का मूह खुला खुला रह गया. निक्की को समझ मे नही आया कि, मैं ये क्या कह रहा हूँ. उसे लगने लगा कि, अब शायद मैं मेहुल को, कीर्ति के बारे मे बताने जा रहा हूँ.

मेरी बात से दोनो की बेचेनी बड़ी हुई थी. निक्की तो खामोशी से मेरे कुछ बोलने का इंतजार कर रही थी. लेकिन मेहुल से सबर ना हुआ. उसने मुझसे पुछा.

मेहुल बोला “क्या तू ये सच बोल रहा है.”

मैं बोला “हाँ, ये बात सच है. मैं सच मे एक लड़की से प्यार करता हूँ.”

मेहुल बोला “कौन है वो. क्या नाम है उसका. क्या मैं उसे जानता हूँ.”

मैं बोला “उसका नाम अंकिता है. तुम उसे नही जानते.”

मेरी इस बात को सुनते ही निक्की के चेहरे पर मुस्कान आ गयी. वो समझ गयी कि, मैं मेहुल को किसी और लड़की के बारे मे बता रहा हूँ.

मेहुल बोला “ये सब कब हुआ. तूने आज तक मुझे ये बात बताई क्यो नही.”

मैं बोला “जब मेरी उस से मुलाकात हुई थी. मैं तभी ये बात तुझे बताने के लिए घर गया था. लेकिन तू उस समय मामा के घर गया हुआ था. फिर उसके बाद मुझे अंकल की तबीयत की बात पता चल गयी तो, मेरा ये बात बताने का मन ही नही किया.”

मेहुल बोला “क्या वो भी तुझसे प्यार करती है.”

मैं बोला “पता नही. हम अभी सिर्फ़ एक दूसरे से बात ही करते है. इस बारे मे ना मैने उस से पुछा और ना ही उसने कुछ बताया.”

मेहुल बोला “तो उस से इस बारे मे कब बात करेगा.”

मैं बोला “पहले यहाँ से तो फ़ुर्सत हो जाउ. फिर वाहा जाकर इस बारे मे सोचुगा.”

मेहुल बोला “मुझे उस से कब मिला रहा है.”

मैं बोला “तू जब कहेगा, तब मिला दूँगा. लेकिन उस से मिलकर अभी प्यार वाली कोई बात नही करना.”

मेहुल बोला “मैं ऐसी कोई बात नही करूगा. लेकिन आज तूने ये बात सुनकर मेरा दिल खुश कर दिया. अब हम चारों मिलकर खूब मस्ती करेगे.”

मैं बोला “हम चारों से तेरा क्या मतलब है.”

मेहुल बोला “अबे तू, मैं, शिल्पा और अंकिता.”

मैं बोला “मैने ऐसा तो कुछ नही कहा. तूने एक बार मिलवाने की बात की है. वो मैं पूरी कर दूँगा. लेकिन तू यदि ये सोच रहा है कि, इसके बाद मैं तेरे साथ कही घूमने भी जाउन्गा तो, तू ये सपने देखना छोड़ दे.”

मेहुल बोला “अबे तुझे मेरे साथ जाने मे क्या परेशानी है.”

मैं बोला “कोई परेशानी नही है. लेकिन मुझे तेरे साथ नही जाना, मतलब नही जाना.”

मेहुल मुझे अपने साथ चलने के लिए मनाता रहा. लेकिन मैं भी अपनी बात पर अड़ा रहा. निक्की हमारी इन बातों का मज़ा ले रही थी और धीरे धीरे मुस्कुरा रही थी. जब मैं मेहुल की बात मानने के लिए तैयार नही हुआ. तब मेहुल उठ कर अंकल के पास चला गया.

मेहुल के जाने के बाद निक्की ने पुछा.

निक्की बोली “ये अंकिता कौन है.”

मैं बोला “अंकिता एक लड़की है.”

मेरी बात सुनकर निक्की को हँसी आ गयी और उसने हंसते हुए फिर से पुछा.

निक्की बोली “ये तो मैं भी जानती हूँ कि, अंकिता एक लड़की है. लेकिन ये अचानक आपकी लव स्टोरी मे बीच मे कहाँ से आ गयी.”

मैं बोला “वो बीच मे आई नही. उसे आपकी वजह से बीच मे लाना पड़ गया. नही तो मेरे लिए मेहुल की बात का जबाब दे पाना बहुत मुस्किल हो जाता.”

निक्की बोली “सॉरी, आपको मेरी वजह से इतनी परेशानी उठना पड़ी. लेकिन मेरा सवाल अभी भी वही का वही है कि, ये अंकिता आपको कहाँ से मिल गयी.”

मैं बोला “अंकिता कीर्ति की सहेली है. उसे मेरे और कीर्ति के सिवा कोई नही जानता. इसलिए उसे अपनी गर्लफ्रेंड बनाकर मेहुल से मिलने मे मुझे कोई परेसानी नही है.”

निक्की बोली “तो ये सारा आइडिया कीर्ति का था.”

मैं बोला “हाँ, उसके सिवा ऐसा कोई दूसरा कर भी नही सकता है.”

निक्की बोली “अब तो आपकी परेशानी हल हो गयी है. क्या आप अभी भी मुझसे नाराज़ है.”

मैं बोला “नही, मैं आपसे नाराज़ नही हूँ. लेकिन मुझे ये बात जानना है कि, आपने ऐसा क्यो किया था.”

निक्की बोली “आप मुझे अपनी सफाई देने का मौका ही नही दे रहे थे तो, मैं आपको कैसे बताती कि, मैने ऐसा क्यो किया.”

मैं बोला “चलिए अब बता दीजिए कि, आपने ऐसा क्यो किया.”

निक्की बोली “अभी नही बता सकती. अभी प्रिया आ रही है. लेकिन मुझे जब भी अपनी बात कहने का मौका मिलेगा, मैं आपको इसकी वजह ज़रूर बताउन्गी.”

ये कह कर निक्की चुप हो गयी और मैं प्रिया की तरफ देखने लगा. प्रिया बहुत खुश नज़र आ रही थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी. जिस वजह से उसका चेहरा खिला खिला लग रहा था.

वो अपनी धुन मे, मुस्कुराते हुए बड़े आराम से, हमारे पास आई और फिर मेरे बाएँ तरफ (लेफ्ट साइड ) आकर बैठ गयी. उसके मन मे इस समय ना जाने क्या चल रहा था. जिसे सोचते हुए, उसने मेरे बयाँ (लेफ्ट) हाथ को, अपने दाहिने (राइट) हाथ से जाकड़ लिया और मेरे कंधे पर सर टिका कर आँख बंद करके बैठ गयी.

मैं और निक्की प्रिया की इस हरकत को बड़े गौर से देख रहे थे. लेकिन वो इन सब बातों से बेख़बर, मेरे कंधे पर सर रख कर, आँख बंद किए, मंद मंद मुस्कुरा रही थी और किसी दूसरी ही दुनिया मे खो गयी थी.

मेरी समझ मे ये नही आ रहा था कि, आख़िर उसे हुआ क्या है. वो इतना ज़्यादा खुश क्यो है और इस तरह की हरकत क्यो कर रही. उसकी इस मंद मंद मुस्कुराहट का कारण क्या है.
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09-09-2020, 02:13 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मैने सवालिया नज़रों से निक्की की तरफ देखा तो, वो खुद मेरी तरफ सवालिया नज़रों से देखने लगी. जैसे कहना चाहती हो कि, इसे अचानक क्या हो गया. ये ऐसा क्यो कर रही है.

लेकिन अभी मैं खुद ही इस सवाल मे उलझा हुआ था. ऐसे मे निक्की के इस सवाल का जबाब मैं क्या दे पाता. उपर से 4:45 बज गया था और अब किसी भी समय राज आ सकता था. ऐसे मे मेरे साथ प्रिया का इस तरह बैठना, मुझे उलझन मे डाल रहा था.

मगर प्रिया तो अभी भी इस सब से बेख़बर, अपनी दुनिया मे खोई हुई थी. प्रिया को उसकी दुनिया से वापस लाने के लिए, मैने निक्की की तरफ देखा और उसे इशारे से प्रिया को मुझसे अलग करने को कहा.

मेरी बात सुनकर निक्की प्रिया के पास आ गयी. उसने प्रिया के सर पर हाथ फेरते हुए कहा.

निक्की बोली “प्रिया, ओ प्रिया. ऐसे बैठ कर कहा खोई हुई है. हम लोग भी तेरे साथ है. हमे भी तो बता, तू इतनी खुश किस बात को लेकर है.”

निक्की की बात सुनकर प्रिया ने अपनी आँखे खोली और अपना सर मेरे कंधे से हटा कर निक्की को देखने लगी. लेकिन अभी भी वो मेरे हाथ को अपने हाथों से जकड़े हुए थी. उसने निक्की को देखा तो, मगर कुछ बोले बिना बस मुस्कुराती रही.

जब निक्की ने देखा कि उसे देख कर प्रिया की मुस्कुराहट और भी ज़्यादा गहरी हो गयी है. तब उसने प्रिया से कहा.

निक्की बोली “इतना ज़्यादा किस बात को लेकर मुस्कुरा रही है. कुछ हम लोगो को भी तो बता.”

प्रिया बोली “मैं नही बताउन्गी. यदि मैने तुम लोगों को बताया तो, तुम लोग मुझ पर हसोगे.”

निक्की बोली “हम तेरे उपर ज़रा भी नही हँसेगे. अब जल्दी से बता, तू किस बात को लेकर इतना खुश है.”

प्रिया बोली “अभी जब मैं राजेश अंकल के पास बैठी थी. तब उन्हो ने मुझे एक बात बताई थी. उसी बात को लेकर मैं इतनी खुश हूँ.”

मैं बोला “प्रिया क्यो परेशान कर रही हो. सीधे से बताओ ना, क्या बात है.”

मेरी बात सुनकर प्रिया ने मेरी तरफ हंसते हुए देखा और फिर नज़र नीचे करके कहने लगी.

प्रिया बोली “तुम्हारे पापा को मैं बहुत पसंद हूँ.”

इतना कह कर वो अपना सर नीचे करके फिर मुस्कुराने लगी. वो यूँ शर्मा रही थी. जैसे वो मुझे अपनी शादी की बात बता रही हो. मुझे उसकी इस बात का कोई मतलब समझ मे नही आया. मैने झुंझलाते हुए उस से कहा.

मैं बोला “यार, मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा कि, तुम क्या कहना चाहती हो. जो भी कहना है, ज़रा ज़रा सॉफ सॉफ कहो.”

मेरी इस बात के जबाब मे प्रिया ने अपना सर झुकाए झुकाए, अपनी बात कहना सुरू किया.

प्रिया बोली “अभी मैं जब राजेश अंकल के पास बैठी थी. तब अंकल ने मुझे बताया कि कल अमर अंकल (पापा) उनके पास आए थे. अमर अंकल से उनकी हमारे घर के बारे मे बातें होती रही. तब अमर अंकल ने राजेश अंकल से कहा था कि, मुझे रिया की छोटी बहन प्रिया बहुत पसंद आई. जब पुन्नू और प्रिया शादी के लायक हो जाएगे. तब मैं प्रिया के पिताजी से ज़रूर, पुन्नू के लिए प्रिया का हाथ माँगूंगा.”

इतना कह कर प्रिया चुप हो गयी और फिर से शरमाने लगी. लेकिन प्रिया की बात सुनकर मेरे तोते उड़ गये. मेरी तो समझ मे नही आया कि, मैं प्रिया से क्या बोलू. मगर निक्की ने जब प्रिया की बात सुनी तो, उसने प्रिया से कहा.

निक्की बोली “प्रिया तू तो पुनीत के बारे मे सब जानती है. तुझे ये भी मालूम है कि, वो किसी और से प्यार करता है. फिर तू ये बात सुनकर इतना खुश क्यो हो रही है. क्या तू ये सब जानकर भी पुनीत से शादी करना चाहती है.”

निक्की की इस बात का जबाब प्रिया ने बड़े ही गुस्से से देते हुए कहा.

प्रिया बोली “हाँ, हाँ मुझे सब मालूम है. मैं कब कह रही हूँ कि, मैं इन दोनो के रास्ते मे आउगि.”

निक्की बोली “तो फिर तू इस बात को सुनकर इतना खुश क्यो हो रही है.”

इस बात का जबाब प्रिया ने बड़ी ही मासूमियत से देते हुए कहा.

प्रिया बोली “वो मैं अंकल की बातों मे ऐसा खो गयी थी कि, मुझे ये बात याद ही नही रही.”

प्रिया की ये बात सुनकर निक्की हँसने लगी और फिर उसने प्रिया से कहा.

निक्की बोली “अब तुझे बात याद आ गयी है तो, इनका हाथ छोड़ दे और ज़रा सही से बैठ जा. राज के आने का टाइम हो गया है. वो तुझे ऐसे देखेगा तो, ना जाने क्या सोचने लगेगा.”

निक्की की बात सुनते ही प्रिया ने मेरा हाथ छोड़ दिया और सही से बैठ गयी. अब निक्की उसे शादी की बात को लेकर छेड़ रही थी और वो निक्की के उपर गुस्सा कर रही थी. लेकिन मैं उन दोनो की इस हरकत से अंजान किसी और ही सोच मे खोया हुआ था.

मेरे दिमाग़ मे इस समय पापा की ये बात चल रही थी कि, उन्हो ने अंकल से मेरे और प्रिया की शादी की बात यूँ ही कह दी, या फिर इसके पिछे भी उनके गंदे दिमाग़ की कोई चल छुपी हुई है.

मैं इसी सब मे खोया रहा और राज आ गया. राज से हमारी थोड़ी बहुत बात हुई और फिर वो उपर अंकल के पास चला गया. उसके उपर पहुचने के बाद मेहुल नीचे आ गया. उस से मेरी थोड़ी बहुत बात हुई और फिर मेहुल के साथ निक्की प्रिया घर चली गयी.

उनके जाने के बाद मैं और राज बारी बारी से उपर नीचे होते रहे. इस बीच मेरी कीर्ति से भी थोड़ी बहुत बात हुई. फिर 10 बजे मेहुल आ गया तो, मैं और राज घर आ गये.

घर आने के बाद हम लोगों ने खाना खाया. खाना खाने के बाद मेरी सबसे बातें होती रही. फिर 11:15 बजे मैने सबको गुड नाइट कहा और अपने कमरे मे आ गया.

कमरे मे आकर मैं कीर्ति के फोन का वेट करने लगा. थोड़ी ही देर बाद कीर्ति का कॉल आ गया. उस से मेरी पापा की बातों को लेकर बात हुई और फिर ये बातों का सिलसिला रात को 1:10 बजे तक चलता रहा. उसके बाद हम सो गये.

सुबह 6 बजे मेरी नींद, रोज की तरह निक्की के जगाने से ही खुली. उसके जाने के बाद मैं फ्रेश होकर तैयार होने चला गया. आज रिया और प्रिया भी जल्दी उठ गयी थी. आज से उनका स्कूल सुरू हो रहा था तो, वो भी स्कूल के लिए तैयार हो रही थी.

मैं तैयार होकर अभी बैठा ही था कि प्रिया आ गयी. आज उसने अपने स्कूल की ड्रेस वाइट स्कर्ट और टॉप पहनी हुई थी. जिसमे वो बहुत सुंदर लग रही थी. उसे देखते ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी.

वो मेरे लिए नाश्ता लेकर आई थी. मैने उसे नाश्ता लिए देखा तो, मुस्कुराते हुए उस से कहा.

मैं बोला “क्या हुआ, आज नाश्ता निक्की की जगह तुम लेकर आ रही हो.”

प्रिया बोली “मैं स्कूल जा रही थी तो, सोचा तुमसे मिलती चलूं. निक्की चाय नाश्ता लाने की तैयारी कर रही थी तो, मैं नाश्ता लेकर आ गयी. निक्की चाय लेकर आएगी.”

मैं बोला “अच्छा किया. क्या तुम नाश्ता नही करोगी.”

प्रिया बोली “मैने नाश्ता कर लिया है. अब मैं चलती हूँ. दोपहर को खाने पर मिलुगी.”

इतना कह कर प्रिया चली गयी. उसके जाने के बाद मैने कीर्ति को कॉल लगाया और उस से बात करने लगा. कीर्ति भी स्कूल जाने की तैयारी कर रही थी. इसलिए मेरी उस से ज़्यादा बात नही हो सकी.

कीर्ति से बात करने के बाद मैं नाश्ता करने लगा. थोड़ी देर बाद निक्की चाय लेकर आ गयी और मेरे साथ ही चाय पीने लगी. मैने उस से पुछा.

मैं बोला “क्या आपके स्कूल की छुट्टियाँ अभी ख़तम नही हुई.”

निक्की बोली “आज से मेरे स्कूल की भी छुट्टियाँ ख़तम हो गयी है. लेकिन कल सनडे होने की वजह से, मैने आज की छुट्टी कर ली. मगर कल शाम को मैं वापस चली जाउन्गी.”

निक्की के मूह से उसके जाने की बात सुनकर, ना जाने क्यो मुझे अच्छा नही लगा. फिर भी मैने उस से कुछ नही कहा. मैं चुप चाप, चाय पीता रहा और फिर चाय पीने के बाद मैं हॉस्पिटल चला गया.

हॉस्पिटल पहुचने के बाद, मेरी अंकल से बात होती रही. बातों बातों मे अंकल ने बताया कि, पापा कल वापस जा रहे है. कोई और हालत होते तो, मुझे पापा के वापस जाने से ज़रूर बेहद खुशी हुई होती.

लेकिन उन्हो ने कीर्ति के साथ जो कुछ किया था. उसे याद कर के मुझे पापा का वापस जाना अच्छा नही लग रहा था. मुझे फिर इस बात का डर सताने लगा कि, वो वापस जाकर कही फिर कीर्ति के साथ कोई हरकत ना करे.

एक तरफ पापा तो, दूसरी तरफ निक्की के वापस जाने की बात ने, मुझे परेशान करके रख दिया था. जहाँ निक्की के जाने से मुझे उसके सुनेपन का भय सता रहा था तो, वही पापा के जाने से मुझे उनकी हरकतों का भय सता रहा था.

इन्ही सब सोच मे गुम रहते, मेरा बाकी का समय गुजर गया और फिर राज आ गया. राज से मेरी थोड़ी बहुत बातें हुई और फिर 12 बजे मैं खाना खाने घर आ गया.

अभी रिया लोग स्कूल से नही लौटी थी. मैने खाना खाया और फिर थोड़ी बहुत सबसे बात करके अपने कमरे मे आ गया. आज मैने खाने पर किसी से ज़्यादा बात नही की थी. शायद इस बात पर निक्की ने भी गौर किया था. इसलिए थोड़ी देर बाद वो मेरे कमरे मे आ गयी.

जब वो कमरे मे आई, तब मैं इन्ही सब ख़यालों मे खोया हुआ था. उसने मुझे यू परेशन देखा तो, मुझसे कहा.

निक्की बोली “क्या बात है. आज आप किसी बात को लेकर परेसान लग रहे है.”

मैं बोला “नही, ऐसी कोई बात नही है. मैं तो बस खाना खा कर आराम कर रहा हूँ.”

निक्की बोली “लगता है आप अभी भी मुझे अपना दोस्त नही मानते. यदि मानते होते तो अपनी परेसानी की वजह मुझे ज़रूर बता दी होती. ठीक है, मैं चलती हू.”

ये बोल कर वो वापस जाने को मूड गयी. लेकिन मैने उसे रोकते हुए कहा.

मैं बोला “आप नाराज़ हो कर वापस क्यो जा रही है. सच मे परेसानी वाली कोई बात नही है.”

मेरी बात सुनकर निक्की वापस मूडी और फिर मेरे पास आकर कहने लगी.

निक्की बोली “नही कोई बात तो ज़रूर है. जिसकी वजह से आपका चेहरा कुछ उतरा हुआ सा लग रहा है. ये बात और है कि, आप मुझे वो बात बताना नही चाहते.”

निक्की की बात के जबाब मे मैने कहा.

मैं बोला “बात सिर्फ़ इतनी सी है कि, मुझे आपका वापस जाना अच्छा नही लग रहा है.”

मेरी बात सुनकर निक्की ने हंसते हुए कहा.

निक्की बोली “ये तो बहुत अजीब बात है. आप जिसे प्यार करते है, वो भी आपके पास है और जो आपको प्यार करती है, वो भी आपके पास है. फिर आपको मेरा जाना इतना खराब क्यो लग रहा है.”

मैं बोला “आपकी बात सही है. लेकिन फिर भी मुझे आपका जाना अच्छा नही लग रहा है. आप जैसा दोस्त से दूर होने मे बुरा तो लगेगा ही.”

निक्की बोली “शुक्र है, आपने मुझे दोस्त तो माना. वरना तो मुझे लगता था कि, आपके दोस्तो मे मेरा नाम ही नही है.”

मैं बोला “कोई कह देने बस से तो दोस्त हो नही जाता. आपने मेरा हर समय साथ दिया है. यही तो एक सच्चे दोस्त होने की निशानी है.”

निक्की बोली “ओके तो फिर आप मेरे जाने की चिंता करना छोड़ दीजिए. मैं अभी दादा जी से बात करके अपनी छुट्टियाँ और बढ़ा देती हूँ. अब तो आप खुश है.”

मैं बोला “लेकिन ऐसा करने से आपकी पढ़ाई का नुकसान होगा.”

निक्की बोली “मैं कोई पढ़ाई मे कमजोर नही हूँ. जो थोड़े दिन की छुट्टी ले लेने से, मेरी पढ़ाई का नुकसान हो जाएगा. आप चिंता मत कीजिए, मेरी पढ़ाई का कोई नुकसान नही होगा.”

मैं बोला “थॅंक्स.”

अभी मैं इसके आगे और कुछ कह पाता, इसके पहले ही मुझे प्रिया की आवाज़ सुनाई दी.

प्रिया बोली “अब दोस्ती की है तो, निभानी ही पड़ेगी.”

उसकी बात सुनते ही हम हँसने लगे. वो अभी भी अपनी स्कूल ड्रेस मे थी. शायद स्कूल से आकर वो सीधे मेरे पास ही चली आई थी. मैने उसे आया देखा तो कहा.

मैं बोला “तुम कब आई.”

प्रिया बोली “जब निक्की छुट्टी लगाने की बात कर रही थी, तब ही आई हूँ.”

मैं बोला “छुप कर किसी की बात सुनना अच्छी बात नही है.”

प्रिया बोली “मैं छुप कर कहा सुन रही थी. मैं तो तुम लोगों के सामने ही खड़ी थी, पर तुम लोग अपनी बात मे ऐसे मगन थे कि, मेरी तरफ ध्यान ही नही दिया.”

मैं बोला “अब यदि बात सुनना हो गया हो तो, अंदर भी आ जाओ. ऐसे कब तक दरवाजे पर ही खड़ी रहोगी.”

प्रिया बोली “आती हूँ, आती हूँ. मैं इतनी आसानी से तुम्हारा पिच्छा नही छोड़ने वाली. बस 5 मिनट वेट करो. मैं कपड़े बदल कर आती हूँ.”

इतना बोल कर प्रिया वापस चली गयी. उसके बाद मैने निक्की से चाय पीने का कहा तो, वो चाय बनाने चली गयी. थोड़ी देर बाद निक्की चाय लेकर आई तो, प्रिया भी उसके साथ ही थी.

हम लोग बात करते करते चाय पी रहे थे. तभी मेहुल भी आ गया. फिर हम सब के बीच हँसी मज़ाक की बातें चलती रही. बातों बातों मे प्रिया ने मेहुल से पुछा.

प्रिया बोली “अच्छा एक बात बताओ. आपके अलावा पुनीत के और कितने खास दोस्त है.”

मेहुल बोला “इसका खास दोस्त कौन है, ये तो तुम इसी से पुछो. हाँ मुझे इतना मालूम है कि मेरे अलावा राहुल और असलम के साथ भी इसकी अच्छी पटती है.”

प्रिया बोली “क्या कोई लड़की दोस्त नही है.”

मेहुल बोला “यार तुम लड़कियों की यही परेसानी है. कोई बात सीधे तरीके से नही पूछती. हर बात को गोल गोल घुमा कर पूछती हो. सीधे से ये क्यो नही पुच्छ लेती कि, क्या इसकी कोई गर्लफ्रेंड है.”

प्रिया बोली “गर्लफ्रेंड का तो मुझे मालूम है. मैं सिर्फ़ ये जानना चाहती हूँ कि, गर्लफ्रेंड के अलावा कोई और लड़की दोस्त है.”

प्रिया की बात सुनकर मेहुल ने मुझे घूर कर देखा. फिर प्रिया से कहा.

मेहुल बोला “मुझे तो गर्लफ्रेंड का भी कल ही पता चला है. फिर भला किसी और लड़की के दोस्त होने का मुझे क्या पता चलेगा. लेकिन तुम ये बताओ, तुम इसके बारे मे इतनी जानकारी क्यो निकाल रही हो.”

मेहुल की इस बात को सुनकर प्रिया सकपका गयी. मैने प्रिया की हालत देखी तो, मुझे उस पर हँसी आ गयी. मैने उसका बचाव करते हुए मेहुल से कहा.

मैं बोला “वो इसलिए पुछ रही है क्योकि मैने ही उस से कहा था कि, तुम मेहुल से इस बारे मे पुच्छ लेना कि, मेरी किसी लड़की से दोस्ती है या नही.”

मेरी बात सुनकर मेहुल मेरे उपर ही भड़क उठा. मेहुल ने कहा.

मेहुल बोला “अबे जब तूने इसे अपनी गर्लफ्रेंड के बारे मे बता दिया तो, अपने किसी और दोस्त के बारे मे मुझसे पुच्छने को क्यो कहा. तू कौन सा हर बात मुझे बताकर रखता है.”

मैने बात को टालते हुए कहा.

मैं बोला “यार अब मुझे तेरी इस बहस मे नही पड़ना. मेरे तो हॉस्पिटल जाने का टाइम हो गया है. तुम लोग अपनी बातें करो, मैं हॉस्पिटल निकलता हूँ.”

मेरी बात सुनकर प्रिया भी खड़ी हो गयी और हॉस्पिटल चलने की ज़िद करने लगी. लेकिन मैने उसे अपने साथ जाने से रोकते हुए कहा.

मैं बोला “तुम अभी स्कूल से आई हो और आते ही यहा बातों मे लग गयी. अभी तुमने खाना भी नही खाया है. तुम ऐसा करो कि, खाना खाकर निक्की के साथ आ जाना.”

मेरी इस बात का समर्थन निक्की ने भी किया. जिस वजह से प्रिया ने मेरी बात मान ली. फिर उन लोगों को वही बातें करता छोड़ कर मैं बाहर आ गया. बाहर मुझे रिया खाना खाते दिखी.

वो इस समय अकेली ही बैठी खाना खाना रही थी. उसे देख कर मैं उसके पास ही रुक गया. मैने उसके पास बैठते हुए कहा.

मैं बोला “आज कल तो तुम्हारे पास मुझसे मिलने का भी टाइम नही रहता है. बहुत ज़्यादा बिज़ी रहने लगी हो.”

रिया बोली “ऐसी तो कोई बात नही है. बस तुम्हारा घर आने जाने का टाइम ही कुछ ऐसा है की, मेरी तुम से मुलाकात ही नही हो पाती है.”

मैं बोला “घर के बाकी भी लोग तो है. उनसे तो मेरी मुलाकात खाने के टाइम हो ही जाती है. लेकिन तुमने तो आज कल घर पर खाना ही खाना छोड़ दिया है. कहीं ये सब मेरी वजह से तो नही है.”

रिया बोली “ऐसा कुछ भी नही है. मैं अपने ज़रूरी काम की वजह से अंकल (पापा) के साथ रहती हूँ. इस वजह से मेरी तुम से दोपहर के खाने पर मुलाकात नही हो पाती है.”

मैं बोला “ठीक है, लेकिन यदि तुम्हारे पास थोड़ा टाइम हो तो, मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है.”

रिया बोली “हाँ बोलो, मेरे पास अभी टाइम ही टाइम है.”

मैं बोला “अभी नही, अभी मुझे हॉस्पिटल जाना है. तुम चाहो तो हॉस्पिटल आ जाना या फिर रात को थोड़ा टाइम निकाल लेना.”

रिया बोली “ओके, मैं हॉस्पिटल आने की कोसिस करूगी. लेकिन हॉस्पिटल नही आ पाई तो, रात को ज़रूर तुमसे बात करूगी.”

मैं बोला “ठीक है, अब मैं चलता हूँ.”

इसके बाद मैं रिया को बाइ बोलकर हॉस्पिटल आ गया. मैं हॉस्पिटल पहुचा तो, राज नीचे ही बैठा था. उसने बताया कि उपर पापा है. फिर थोड़ी बहुत बात करके वो घर चला गया.

उसके जाने के बाद मैं उपर अंकल के पास आ गया. पापा की अंकल से बातें चल रही थी. लेकिन मेरे और पापा के बीच अभी भी कोई बात नही हुई. मेरा मन तो कर रहा था कि, मैं पापा से कहूँ कि, आप अभी वापस मत जाइए. मगर मेरे दिल मे उनके लिए इतनी नफ़रत थी कि, मेरे मूह से ये बात निकल ही ना सकी और कुछ देर बाद पापा चले गये.

शायद अंकल इतने दिनो से इस बात को गौर कर रहे थे कि, हम बाप बेटे के बीच कभी कोई बात चीत नही होती है. इसलिए उन ने पापा के जाते ही, इस बात को लेकर मुझे टोक दिया.

लेकिन मैने बातें बना कर अंकल की इस बात को टाल दिया और उन से यहाँ वाहा की बातें करने लगा. थोड़ी देर बाद कीर्ति का कॉल आने लगा तो, मैं नीचे आ गया.

नीचे आकर मैने कीर्ति का कॉल उठाया तो कीर्ति ने कहा.

कीर्ति बोली “जाओ मैं तुमसे बात नही करती. तुम्हे इतनी देर से मुझे कॉल करने का, टाइम ही नही मिल रहा है. मैं कब से तुम्हारे कॉल का वेट कर रही हूँ.”

मैं बोला “सॉरी जान, आज सच मे मुझे कॉल लगाने का टाइम नही मिल पाया. खाना खाते ही सब मेरे कमरे मे आ गये थे और मई चाहते हुए भी तुम्हे कॉल नही लगा सका.”

कीर्ति बोली “यदि घर मे कॉल नही लगा पाए थे तो, इधर आकर लगा सकते थे. लेकिन सच बात तो ये है कि, तुम्हे मेरी याद ही नही आई. इसलिए तुमने यहाँ आकर भी मुझे कॉल नही किया.”

मैं बोला “यहाँ पापा आए हुए थे और मैं अंकल के पास था. जब पापा गये, तब मैं तुझसे बात करने ही वाला था. लेकिन फिर अंकल से बात होने लगी और इसी बीच तेरा कॉल आ गया.”

कीर्ति बोली “मैं कुछ नही सुनुगि. तुमने ग़लती की है. तुम्हे इसकी सज़ा ज़रूर मिलेगी.”

मैं बोला “ठीक है, तुझे जो सज़ा देना है, जब मैं आउ तो मुझे दे लेना.”

कीर्ति बोली “नही, तुमने अभी ग़लती की है. तुम्हे इसकी सज़ा भी अभी ही मिलेगी.”

मैं बोला “बोलो, क्या सज़ा देना चाहती हो.”

कीर्ति बोली “तुम अपने दोनो कान पकड़ कर सॉरी बोलो.”

मैं बोला “ओके, मैं अपने दोनो कान पकड़ कर सॉरी बोलता हूँ.”

कीर्ति बोली “ऐसे नही, तुम सच मे अपने कान पकड़ कर सॉरी बोलो.”

मैं बोला “मैं सच मे अपने कान पकड़ कर सॉरी बोल रहा हूँ.”

कीर्ति बोली “मुझे बेवकूफ़ मत समझो. तुम सिर्फ़ बोल रहे हो. तुम अपने कान पकड़ नही रहे हो.”

मैं बोला “तू पागल हो गयी है क्या. यहाँ सब देख रहे है. वो मुझे ऐसे देखेगे तो, क्या सोचेगे.”

कीर्ति बोली “जिसे जो सोचना है, वो सोचता रहे. तुम अपने कान पकड़ते हो या मैं फोन रखू.”

आख़िर मे मुझे उसकी ज़िद के सामने झुकना ही पड़ा. मैने अपने दोनो कान पकड़े और कहा.

मैं बोला “ये ले मैं सच मे अपने कान पकड़ कर सॉरी बोल रहा हूँ. अब तो मुझे माफ़ कर दे.”

कीर्ति बोली “ओके ओके मैने तुम्हे माफ़ किया. अब दोबारा ऐसी ग़लती मत करना.”

मैं बोला “नही करूगा मेरी माँ. अब तेरा सज़ा देना हो गया हो तो, मैं कुछ बोलू.”

कीर्ति बोली “हाँ बोलो.”

मैं बोला “तू अब घर वापस चली जा.”

कीर्ति बोली “क्यो जान, मुझसे कोई ग़लती हो गयी क्या.”

मैं बोला “नही, तुझसे कोई ग़लती नही हुई है. लेकिन कल पापा वापस वहाँ आ रहे है. मैं नही चाहता कि, उनकी गंदी नज़र तुझ पर पड़े.”

कीर्ति बोली “जान, छोड़ो ना उस बात को, अब वैसा कुछ नही होगा.”

मैं बोला “नही, मुझे उस आदमी का कोई भरोसा नही है. तू मेरी बात मान और घर वापस चली जा.”

कीर्ति बोली “जान, मेरा भरोसा करो. मैं अब उन्हे ऐसी कोई ग़लती करने का मौका ही नही दुगी और रात को दरवाजा बंद करके सोया करूगी. तुम मेरी ज़रा भी चिंता मत करो.”

मैं बोला “देख यदि उस कमिने ने तेरे साथ कुछ ग़लत हरकत की तो, मैं उसे जिंदा नही छोड़ूँगा. इसलिए बेहतर यही होगा की, मेरी बात मान और वापस चली जा.”

कीर्ति बोली “नही जान, मैं अमि निमी को अकेला छोड़ कर नही जाउन्गी. मैं तुम्हारी ये बात कभी नही मानूँगी.”

मैं बोला “देख, मुझे मजबूर मत कर, यदि तू सीधे तरह से मेरी बात नही मानेगी तो, मैं छोटी माँ से बोलकर तुझे घर वापस भिजवा दूँगा.”

कीर्ति बोली “प्लीज़ जान, तुम्हे मेरी कसम है. तुम ऐसा कुछ नही करोगे. मेरा यकीन करो, अब मैं तुमहरि जान पर किसी की गंदी नज़र नही पड़ने दुगी.”

आख़िर ना चाहते हुए भी मुझे कीर्ति की कसम के आगे झुकना पड़ा. लेकिन फिर भी मुझे उसकी चिंता सता रही थी. उसे मेरी इस हालत का अहसास था. इसलिए उसने बात को बदलते हुए कहा.

कीर्ति बोली “जान, तुम्हारी मेहुल से बात हुई या नही.”

मैं बोला “हाँ हो गयी, मैने उसे अंकिता के बारे मे बता दिया है.”

कीर्ति बोली “मैने अंकिता से कह दिया है कि, शायद तुम अपने किसी दोस्त से उसकी बात कारवाओगे. यदि मेहुल बात करने का बोले तो, तुम उसकी बात अंकिता से करवा सकते हो.”

मैं बोला “नही, इसकी कोई ज़रूरत नही है. मैने वहाँ लौटने तक के लिए, बात को टाल दिया है.”

कीर्ति बोली “ठीक है जान, तुम्हे अंकल के पास से आए हुए बहुत देर हो गयी है. तुम वापस अंकल के पास जाओ. हम रात को बात करेगे.”

मैं बोला “ठीक है, मुउउहह.”

कीर्ति बोली “आइ लव यू जान. मुऊऊऊहह.”

इसके बाद कीर्ति ने कॉल रख दिया. मैं उपर अंकल के पास जाने के लिए मुड़ा. तभी मेरी नज़र निक्की और प्रिया पर पड़ी. वो मेरी ही तरफ चली आ रही थी.
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09-09-2020, 02:14 PM,
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मैने दोनो को अपनी तरफ आते देखा तो, मैं वही रुक गया. निक्की ने मेरे पास आते ही कहा.

निक्की बोली “आप यहाँ नीचे क्या कर रहे है. क्या उपर अंकल के पास कोई और है.”

मैं बोला “नही, मेरा एक ज़रूरी कॉल आ गया था. इसलिए मैं नीचे आया था. मैं उपर जाने ही वाला था कि, आप दोनो को आते देख कर रुक गया.”

निक्की बोली “ओके, अब आप यही रुकिये और प्रिया के साथ बात कीजिए. तब तक मैं अंकल से मिलकर आती हूँ.”

लेकिन प्रिया ने उसकी बात को काटते हुए कहा.

प्रिया बोली “नही, पहले मैं अंकल के पास होकर आती हूँ, फिर बाद मे तुम चली जाना.”

निक्की बोली “ओके, पहले तू ही जाकर अंकल से मिल आ.”

निक्की की बात सुनकर प्रिया अंकल के पास चली गयी. मैं और निक्की वही बैठ गये. मैने निक्की से पुछा.

मैं बोला “रिया तो घर पर ही थी. फिर वो क्यो नही आई.”

निक्की बोली “रिया अभी सो रही है. वो शायद 4 बजे तक आएगी.”

मैं बोला “ठीक है, अब यदि आपका मूड हो तो, मेहुल वाली बात भी बता दीजिए.”

निक्की बोली “बिल्कुल बताती हूँ. उस दिन हुआ ये था कि, आपके जाने के बाद, मैं, राज और मेहुल हॉस्पिटल मे ही रुके रहे. मैं तो सारे समय नीचे ही रही. बस राज और मेहुल उपर नीचे हो रहे थे. जब मेहुल नीचे आया तो, मेरी उस से आपके बारे मे बातें होती रही. बातों बातों मे मेहुल ने बताया कि, जब से उसकी शिल्पा के साथ दोस्ती हुई है. तभी से आपके और मेहुल के बीच दूरियाँ बढ़ गयी.”

“मेहुल की उसी समय विशाल, आयन और कार्तिक नाम के लड़को से दोस्ती हुई. जिसकी देखा देखी आपने भी राहुल और असलम नाम के अपने नये दोस्त बना लिए. मेहुल को आपके नये दोस्त बनाने से कोई परेसानी नही थी. लेकिन उसे आपका राहुल से दोस्ती करना ज़रा भी पसंद नही आया था. क्योकि मेहुल की नज़र मे राहुल अच्छा लड़का नही था.”

“मेहुल ने आपसे राहुल से दोस्ती रखने के लिए मना भी किया. लेकिन आपने उस समय, शिल्पा से जलन की वजह से, उसकी ये बात नही मानी और फिर इस वजह से, आपके और मेहुल के बीच बात चीत कम हो गयी. लेकिन इस सब के बाद भी, ना तो आपने मेहुल से मिलना बंद किया और ना ही मेहुल ने आपसे मिलना बंद किया. दिली तौर पर आप लोगों ने एक दूसरे का साथ कभी नही छोड़ा. इसलिए आप लोगों की दोस्ती हमेशा बनी रही.”

निक्की की बात सुनकर मैने कहा.

मैं बोला “मेहुल ग़लत सोचता है. मेरे मन मे शिल्पा को लेकर कभी कोई जलन नही रही है. हाँ मैने इतनी ग़लती ज़रूर की थी कि, शिल्पा की वजह से मैने मेहुल से कहा था कि, हम स्कूल मे कभी नही मिलेगे. जिस बात को लेकर मेहुल ने अपने नये दोस्त बना लिए थे और मैं बिल्कुल अकेला हो गया था. मजबूरी मे मुझे राहुल और असलम से दोस्ती करनी पड़ी.”

“मेहुल ने मुझसे राहुल से दोस्ती तोड़ने के बारे मे ज़रूर कहा था. क्योकि राहुल एक बिगड़ा हुआ लड़का था. लेकिन राहुल मेरे साथ अच्छे से रहता था और कभी कोई ग़लत बात नही करता था. ऐसे मे मे राहुल से कैसे दोस्ती तोड़ सकता था.”

निक्की बोली “बस यही जलन वाली बात, मुझे भी मेहुल की बुरी लगी और मुझे मजबूरी मे, उस से ये कहना पड़ गया कि, आप शिल्पा से इसलिए दूर रहते है, क्योकि आप भी शिल्पा को प्यार करते थे. मैं मेहुल को इसके आगे कुछ और समझा पाती कि, उसके पहले ही आप आ गये और आपने हमारी ये बात सुन ली. फिर उसके बाद जो हुआ, वो आपके सामने था.”

मैं बोला “चलिए, जो हुआ उसे भूल जाइए. मैं अब मेहुल की सारी ग़लत फ़हमी दूर कर दूँगा. लेकिन आप एक बात बताइए कि, उस रात आप अकेले कैसे रुक गयी. क्या मेहुल और राज ने आपको यहाँ रुकने से रोका नही था.”

निक्की बोली “जब आप नाराज़ होकर उपर चले गये. तब मुझे बहुत बुरा लगा और मैने मेहुल से कहा कि, मैं आपसे अपनी ग़लती की माफी माँगे बिना वापस नही जाउन्गी. लेकिन मेरी बात सुनकर मेहुल परेशान हो गया. वो बोला कि तुम यहाँ रात को अकेली कहाँ रुकोगी. तब मैने अमन भैया से बात की और उन्होने मेरे रात रुकने के लिए डॉक्टेर्स का रेस्ट रूम खुलवा दिया.”

“राज नीचे आया तो, मैने उस से कह दिया कि, मेरी अमन भैया से बात हुई है. उन्हो ने मुझे यहाँ रुकने के लिए एक कमरा खुलवा दिया है. मैं आज रात यहाँ ही रूकूगी. उसने मुझे समझाने की कोसिस की, यहाँ रुकने की कोई ज़रूरत नही है. फिर भी मैने उसकी बात नही मानी. बाद मे मेहुल ने उस से कहा कि, इसे यही रुकने दो. इसकी डॉक्टर अमन से बात हो गयी है. इसे यहाँ रुकने मे कोई परेसानी नही होगी. आख़िर मे मेहुल की बात मान कर, वो दोनो घर चले गये और मैं आपसे माफी माँगने के लिए यही रुक गयी.”

मैं बोला “उसे आप माफी माँगना कहती है. वो तो सॉफ सॉफ धमकी देना कहलाता है. भला ऐसे भी किसी से माफी माँगी जाती है.”

निक्की बोली “मैं तो आपसे कान पकड़ कर सॉरी कह रही थी. लेकिन आप इतने गुस्से मे थे कि, आप मेरी कोई बात सुन ही नही रहे थे. ये देख कर मुझे भी, आप पर गुस्सा आ गया और फिर मुझसे वो सब हो गया.”

मैं बोला “कुछ भी कहिए, लेकिन आपका उस तरह से गुस्सा करना और फिर गुस्से मे वो सब पागलपन करना, मैं कभी नही भूल सकता. उस समय तो मैं सच मे आपसे डर गया था. मुझे ये लग रहा था कि, मैं यदि आपकी बात नही मानूँगा तो, आप सही मे कुछ उल्टा सीधा ना कर ले.”

निक्की बोली “हाँ, मैं उस समय कुछ भी कर सकती थी. उस समय मेरे दिमाग़ मे आपसे माफी हासिल करने के सिवा कुछ नही चल रहा था और उसे हासिल करने के लिए मैं किसी भी हद तक जा सकती थी.”

मैं बोला “लेकिन किसी को धमका कर माफी हासिल करना कहाँ की बात हुई. ये तो सरासर ज़बरदस्ती थी.”

मेरी ये बात सुनकर निक्की बड़े ही जोशीले अंदाज मे कहने लगी.

निक्की बोली “मैं ठाकुरों की बेटी हू. मेरी रगों मे भी ठाकुरों का खून जोश मारता है. मुझे जो चाहिए, वो मैं हर कीमत पर हासिल करके रहती हूँ. मैं इस बात की परवाह नही करती कि, उसे हासिल करने के लिए, मैं जो तरीका अपना रही हूँ, वो सही है या ग़लत है.”

निक्की की ये बात सुनकर मैं हँसे बिना ना रह सका. मैने हंसते हुए कहा.

मैं बोला “वाह रे ठाकुरों की बेटी. आपके इस जोश का तो कोई जबाब नही.”

मेरी बात सुनकर निक्की भी हँसने लगी और फिर उसने मुझसे कहा.

निक्की बोली “गुस्सा तो आपका भी बहुत भयंकर है. पता नही कीर्ति आपके गुस्से को कैसे शांत करती होगी.”

निक्की की ये बात सुनकर मैने एक ठंडी साँस ली और फिर उस से कहा.

मैं बोला “मई कीर्ति से कभी ज़्यादा देर तक गुस्सा नही रह सकता. मैं उस पर उतनी ही देर गुस्सा रह सकता हूँ, जितनी देर वो मेरे सामने ना हो. उसके मेरे सामने आते ही, मेरा गुस्सा खुद ब खुद गायब हो जाता है.”

निक्की बोली “चलो कोई तो ऐसा है, जिसे देखते ही आपका गुस्सा गायब और बोलती बंद हो जाती है.”

ये बोल कर वो खिलखिलाकर हँसने लगी. काफ़ी देर तक हमारा यू ही हँसी मज़ाक चलता रहा. फिर निक्की ने अंकल के पास जाने की बात कही और वो उठ कर अंकल के पास चली गयी.

निक्की से बात करने के बाद मेरा मन कीर्ति से बात करने का कर रहा था. लेकिन निक्की के उपर जाते ही प्रिया को नीचे आना था. इसलिए मैं कीर्ति को कॉल नही करना चाहता था.

मगर जब मेरा दिल नही माना तो, मैने उसे कॉल लगा ही दिया. मेरा कॉल देखते ही कीर्ति ने फ़ौरन कॉल लगा दिया और मेरे कॉल उठाते ही कहा.

कीर्ति बोली “जान, क्या हुआ. क्या मेरी बहुत याद आ रही है, जो इस समय कॉल लगा रहे हो.”

मैं बोला “तेरी याद मुझे कब नही आती. अभी तो इस लिए कॉल लगाया कि, ज़रा पता कर लूँ. तू अभी क्या कर रही है.”

कीर्ति बोली “कुछ नही, रात को तुमसे बात करने की तैयारी कर रही हूँ.”

मैं बोला “कैसी तैयारी.”

कीर्ति बोली “सोने जा रही थी. रात को मेरी नींद पूरी नही हो पाती है ना.”

मैं बोला “ठीक है, तू आराम कर, हम रात को बात करते है.”

कीर्ति बोली “नही जान, मुझे तुमसे अभी बात करना है.”

मैं बोला “बेकार मे ज़िद मत कर, अभी प्रिया आने वाली है. मेरी तुझसे बात नही हो पाएगी.”

कीर्ति बोली “ठीक है जान, मैं फोन रख दुगी. लेकिन पहले मुझे प्रिया की आवाज़ सुनना है. क्या तुम मुझे प्रिया की आवाज़ सुना दोगे.”

मैं बोला “तू कभी नही सुधरेगी. हमेशा कुछ ना कुछ तेरे दिमाग़ मे चलता ही रहता है. चल ठीक है, मैं फोन चालू रखता हूँ. लेकिन देख, बीच बीच मे मुझे कॉल करके, तंग मत करना.”

कीर्ति बोली “थॅंक्स जान, मैं तुम्हे बिल्कुल तंग नही करूगी. मुऊऊऊहह.”

मैं बोला “ठीक है, अब मैं मोबाइल जेब मे रख रहा हूँ. मुऊऊऊहह.”

ये कह कर मैने मोबाइल जेब मे रख लिया. कुछ ही देर मे प्रिया आकर मेरे पास बैठ गयी. मैने प्रिया से पुछा.

मैं बोला “क्या बात है. आज तुम्हे अंकल से मिलने की बहुत जल्दी थी. आते ही सीधे अंकल के पास चली गयी.”

प्रिया बोली “वो तो मैं इसलिए पहले अंकल के पास चली गयी थी, ताकि उनके पास से फ्री हो कर, मैं आराम से तुम से बात कर सकूँ. अब जब तक राज भैया नही आ जाते है. तब तक मैं तुम्हारे पास से हिलने वाली नही हूँ.”

मैं बोला “तुम भी बड़ी अजीब ही हो. अच्छा ये बताओ, जब रिया घर पर ही है तो, वो तुम लोगों के साथ क्यो नही आई.”

प्रिया बोली “उनको खाना खाने के बाद नींद आ रही थी, इसलिए वो सो रही है. क्या तुम्हे मेरे साथ अकेले रहना अच्छा नही लग रहा है. जो रिया दीदी को साथ लाने की बात कर रहे हो.”

मैं बोला “ऐसी बात नही है. मैने रिया को घर पर देखा था, इसलिए तुमसे उसके बारे मे पुच्छ लिया. यदि तुमको अच्छा नही लगा तो, आगे से नही पूछूँगा.”

प्रिया बोली “मैने ये तो नही कहा था. मैं तो सिर्फ़ ये पुच्छ रही थी कि, क्या तुम्हे मेरे साथ अकेले रहना अच्छा नही लगता.”

मैं बोला “अच्छा लगता है. अब ये सब बातें छोड़ो और ये बताओ, तुम्हारा आज का स्कूल का दिन कैसा गया.”

प्रिया बोली “अच्छा नही गया. सारे समय तुम्हारी ही याद सताती रही. बस इंतजार करती रही कि, कब छुट्टी हो और मैं तुम्हारे पास पहुच जाउ.”

प्रिया की इस बात ने मुझे परेसानी मे डाल दिया था. उसकी हर बात घूम फिर कर मेरे उपर ही ख़तम हो रही थी. वो जानते हुए भी उस इंसान के सपने देख रही थी. जिसे पाना उसके नसीब मे नही था.

वो एक ऐसा सपना देखने की कोसिस कर रही थी. जो सुरू होने के पहले ही टूट चुका था. फिर भी ये उसकी दिलेरी थी कि, वो सपने की हक़ीकत से मूह चुरा कर, उसे देखने की नाकाम कोसिस किए जा रही थी.

उसके इस प्यार को देख कर, जितना मुझे अपनी किस्मत पर नाज़ हो रहा था तो, उस से कही ज़्यादा प्रिया की किस्मत पर अफ़सोस हो रहा था. मेरा तो ये सोच कर ही दिल बैठा जा रहा था कि, मेरे जाने के बाद इस लड़की का क्या हाल होगा. ये अपने आपको कैसे संभाल पाएगी. आख़िर इसे ये बात समझ मे क्यो नही आती कि, मैं इस से नही, किसी और से प्यार करता हूँ.

मैं मन ही मन अपने अनसुलझे सवालों का जबाब ढूँढ रहा था. तभी प्रिया की आवाज़ ने मुझे चौका दिया. मैने उसकी तरफ देखा तो, वो बड़ी ही मासूमियत से कह रही थी.

प्रिया बोली “तुम्हे मालूम है, आज मेरी सहेली नेहा से मेरी लड़ाई हो गयी.”

ये बोल कर वो मेरी तरफ देखने लगी. मगर मेरा मूड अब उसकी बातों को सोच कर सही नही था. इसलिए मैं चुप ही रहा. मैने जब उसकी इस बात पर कुछ नही कहा. तब उसने मेरे से पुछा.

प्रिया बोली “क्या हुआ. क्या तुम्हे मेरी बात पसंद नही आ रही.”

मेरा मन उसकी बातों को सुनने का ज़रा भी नही था. लेकिन फिर भी मैं अपनी किसी बात से, उसके दिल को ठेस लगाना नही चाहता था. इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला “नही, तुम बोलो, मैं सुन रहा हू. तुम्हारी सहेली से तुम्हारी लड़ाई क्यो हुई.”

प्रिया बोली “उसका एक बाय्फ्रेंड है. वो रोज मेरे सामने अपने बाय्फ्रेंड की तारीफ करती थी. मैने भी उस से झूठ कह दिया कि, मेरा भी एक बाय्फ्रेंड है. आज उसने अपने बाय्फ्रेंड से मुझे मिलाया और फिर मुझसे कहने लगी कि, अब मैं भी उसे अपने बाय्फ्रेंड से मिलाऊ. लेकिन मैने ऐसा करने से मना कर दिया. इस पर वो कहने लगी कि, मैं झूठ बोलती हूँ. मेरा कोई बाय्फ्रेंड नही है. यदि मेरा कोई बाय्फ्रेंड है तो, मैं उस से मिलवती क्यो नही हूँ. इसी बात को लेकर मेरी उस से लड़ाई हो गयी.”

उसकी ये बात सुनकर मुझे कीर्ति की याद आ गयी. उसने भी अंकिता को ऐसी ही जलन मे आकर, मेरे और अपने बारे मे बता दिया था. मैं समझ गया था कि, प्रिया ने ऐसा क्यो किया है. फिर भी मैने अंजान बनते हुए कहा.

मैं बोला “जब तुम्हारा कोई बाय्फ्रेंड नही है तो, फिर तुम्हे उस से झूठ नही बोलना चाहिए था. इसमे तो तुम्हारी ही ग़लती है.”

मेरी बात सुनकर प्रिया को बहुत निराशा हुई. उसने मायूसी भरे शब्दो मे कहा.

प्रिया बोली “हाँ, ग़लती तो मेरी ही है. लेकिन मैं क्या करती. जब वो अपने बाय्फ्रेंड की बात बताती थी तो, मुझसे उस से जलन होने लगती थी. इसलिए मैने उस से झूठ कहा था. मुझे क्या मालूम था कि, वो मेरे बाय्फ्रेंड से मिलने की ज़िद करने लगेगी.”

मैं बोला “तो इसमे कौन सी बड़ी बात है. तुम इतनी सुंदर हो कि, तुम्हे एक से बढ़ कर एक लड़के मिल जाएगे. तुम किसी अच्छे लड़के को, अपना बाय्फ्रेंड बना लो और फिर अपने बाय्फ्रेंड से उसे मिलवा दो.”

प्रिया बोली “मुझे किसी को बॉयफ्रेंड नही बनाना. मैं बिना बाय्फ्रेंड के ही ठीक हूँ. हाँ मगर तुम चाहो तो, इसमे मेरी मदद ज़रूर कर सकते हो.”

मैं बोला “वो कैसे.”

प्रिया बोली “तुम एक बार नेहा से मेरे बाय्फ्रेंड बनकर मिल लो. उसे यकीन हो जाएगा कि, मेरा भी कोई बाय्फ्रेंड है.”

प्रिया की ये बात मानने मे मुझे कोई परेसानी नही थी. लेकिन अब मैं उसकी ये बात मान कर उसके प्यार को और गहरा करना नही चाहता था. इसलिए मैने प्रिया का दिल तोड़ते हुए कहा.

मैं बोला “नही यार, तुम्हारा ये काम मुझसे नही होगा. हाँ यदि तुम चाहो तो, मैं मेहुल से बात करके, उसे इस सब के लिए तैयार कर लेता हूँ. वो तुम्हारा बाय्फ्रेंड बनकर, तुम्हारी सहेली से मिल लेगा.”

मेरी बात का असर प्रिया पर वही पड़ा. जो मैं सोच रहा था. मेरी बात सुनते ही प्रिया गुस्सा हो गयी. उसने गुस्से मे खड़े होते हुए मुझसे कहा.

प्रिया बोली “रहने दो, मेरे लिए किसी से बात करने की, तुम्हे कोई ज़रूरत नही है. मैं खुद ही नेहा से सॉरी बोल कर, अपनी ग़लती मान लूँगी.”

ये बोलकर प्रिया गुस्से मे मेरे पास से जाने लगी. मैं उसे रोकने के लिए उठ कर खड़ा हुआ. लेकिन तभी मेरी नज़र, मेरे पिछे खड़ी डॉक्टर. निशा पर पड़ी. वो शायद समुंदर के नज़ारे देखने, अभी अभी मेरे पिछे आकर खड़ी हुई थी और उनकी तरफ मेरी पीठ होने की वजह से, मुझे पहचान नही पाई थी.

मगर जैसे ही मेरी नज़र उन पर पड़ी. उनकी भी नज़र मेरे उपर पड़ गयी. उन्हो ने मुझे पहचान लिया और वो चलती हुई मेरे पास आ गयी. उन ने प्रिया को भी मेरे पास से गुस्से मे जाते हुए देख लिया था.

वो मेरे पास आई और फिर मुस्कुराते हुए कहने लगी.

डॉक्टर निशा बोली “कैसे लड़के हो, एक लड़की को नाराज़ करते, तुम्हे शरम नही आती.”

मैं बोला “मैने कुछ नही किया. वो खुद ही नाराज़ होकर चली गयी.”

डॉक्टर निशा बोली “तुम उसे कैसे जानते हो. क्या वो तुम्हारी गर्लफ्रेंड है.”

मैं बोला “नही, वो प्रिया है, निक्की की सहेली. जिसके बारे मे निक्की ने डॉक्टर. अमन को बताया था. हम लोग इन्ही के घर मे रुके है.”

मेरी बात सुनते ही डॉक्टर निशा ने कहा.

डॉक्टर. निशा बोली “ओह माइ गॉड, क्या ये ही वो प्रिया है, जिसके बारे मे, निक्की ने अमन को बताया था.”

मैं बोला “हाँ, ये ही वो प्रिया है. लेकिन आप इस बात को सुनकर इतना चौक क्यो रही है.”

डॉक्टर. निशा बोली “कुछ नही. मैं इसे जानती हूँ, इसलिए ये सुनकर चौक गयी कि, ये वो ही प्रिया है, जिसकी बात निक्की ने अमन से की थी. लेकिन एक बात याद रखो. प्रिया को बिल्कुल परेशान मत करना और उसे हमसेषा खुश रखने की कोसिस करना. यही उसकी सेहत के लिए अछा है.”

मई बोला “आप ऐसा क्यो बोल रही है. आख़िर प्रिया को हुआ क्या है.”

डॉक्टर. निशा बोली “तुम बहुत बोलते हो. प्रिया को कुछ नही हुआ है. बस उसका ख़याल रखना और उसको ज़रा भी परेशान मत करना. अब मैं चलती हूँ. तुम्हे यदि यहाँ किसी बात की, कोई परेशानी हो तो, मुझे बता देना. बाइ.”

इतना कह कर डॉक्टर. निशा मेरे पास से चली गयी और मैं उन्हे जाते हुए देख कर, उनकी बात का मतलब निकालने की कोसिस करता रहा. अभी वो थोड़ी ही दूर पहुचि थी कि, उन्हे रास्ते मे निक्की मिल गयी.

वो रुक कर निक्की से बातें करने लगी. मैं उन से बहुत दूर था, इसलिए मुझे उनकी बातें सुनाई नही दे रही थी. मगर उनकी बातों से ऐसा लग रहा था. जैसे वो प्रिया के बारे मे ही बात कर रही हो.

अभी मैं निक्की लोगों को देख रहा था कि, तभी दूसरे मोबाइल पर कीर्ति का कॉल आने लगा. शायद उसने सोचा होगा कि, अब मैं अकेला हूँ. इसलिए उसने मुझसे बात करने के लिए, दूसरे मोबाइल पर कॉल किया था. मैने मोबाइल निकाला और कहा.

मैं बोला “हाँ बोलो, क्या बात है.”

कीर्ति बोली “जान ये तुमसे कौन बात कर रही थी और ये प्रिया के बारे मे ऐसा क्यो बोल रही है.”

मैं बोला “वो मुझसे डॉक्टर. निशा बात कर रही थी. वो डॉक्टर. अमन की मंगेतर है. मुझे खुद उनकी बात समझ मे नही आ रही है कि, वो ऐसा क्यो बोल रही थी. वो इस समय निक्की से बात कर रही है. शायद निक्की को इस बारे मे कुछ मालूम होगा.”

कीर्ति बोली “जान, मुझे तो लगता है कि, प्रिया को कोई बीमारी है. जिसकी वजह से उन्हो ने ऐसा कहा है.”

मैं बोला “नही, ऐसा नही हो सकता. प्रिया तो अच्छी भली दिखती है. ऐसे मे उसे कोई बीमारी हो ही नही सकती.”

कीर्ति बोली “फिर डॉक्टर. निशा ने ऐसा क्यो बोला.”

मैं बोला “अब ये तो निक्की के आने पर ही पता चलेगा. अब तू फोन रख दे. तुझे प्रिया की आवाज़ सुननी थी, वो मैने तुझे सुना दी. अब तू थोड़ा आराम कर ले.”

कीर्ति बोली “जान प्लीज़, मुझे जानना है कि, डॉक्टर. निशा ने ऐसा क्यो कहा और प्रिया को क्या हुआ है. प्लीज़ थोड़ी देर फोन और चालू रखने दो.”

मैं बोला “ठीक है, तुझे सुनना है तो, तू सुन ले. लेकिन अब निक्की किसी भी समय यहाँ आ सकती है, इसलिए मैं फोन जेब मे रख रहा हूँ.”

कीर्ति बोली “ओके जान.”

कीर्ति के ओके बोलने के बाद मैने मोबाइल वापस जेब मे रख लिया और निक्की के आने का वेट करने लगा. थोड़ी देर बाद ड्र. निशा और निक्की की बातें ख़तम हो गयी और निक्की मेरी तरफ आने लगी.

निक्की को आता देख कर मैं अपनी जगह पर बैठ गया. निक्की ये तो देख चुकी थी कि, मैने उसे और डॉक्टर. निशा को बात करते हुए देख लिया है. लेकिन शायद डॉक्टर. निशा ने निक्की को ये नही बताया था कि, उन्हो ने प्रिया के बारे मे मुझसे क्या कहा है.

जिस वजह से निक्की बड़ी बेफिक्री मे मेरे पास आकर बैठ गयी और कहने लगी.

निक्की बोली “क्या हुआ. प्रिया इतनी जल्दी अंकल के पास वापस क्यो चली गयी. क्या आपका उस से कोई झगड़ा हुआ है.”

मैं बोला “हाँ, उसे मेरी एक बात बुरी लग गयी और वो गुस्से मे मेरे पास उठ कर, अंकल के पास चली गयी.”

निक्की बोली “वो तो मैं उसका गुस्से मे लाल चेहरा देख कर ही समझ गयी थी. इसी वजह से मेरी उस से कुछ पुछ्ने की हिम्मत भी नही हुई. लेकिन आपका उस से झगड़ा किस बात को लेकर हो गया.”

मैं बोला “वो भी बता दूँगा. मगर पहले आप मुझे एक बात बताइए.”

निक्की बोली “हाँ पुछिये.”

मैं निक्की से कुछ पुच्छ पाता, उसके पहले ही मेरे मोबाइल की मेसेज टोन बज उठी. मुझे लगा कि ये मसेज कीर्ति ने किया है. इसलिए मुझे कीर्ति पर गुस्सा आने लगा. लेकिन जब मैने मोबाइल निकल कर मेसेज देखा तो, मेरा गुस्सा शांत हो गया.

वो मेसेज कीर्ति ने नही किया था. वो प्रिया का मेसेज था. जो इस समय उसके दिल मे छुपे दर्द को, बयान कर रहा था और मुझे मेरे किए बर्ताव पर शर्मिंदा होने पर मजबूर कर रहा था.

निक्की ने जब देखा कि मैं किसी का मसेज पढ़ रहा हूँ तो, उसने पुछा.

निक्की बोली “क्या कीर्ति का मेसेज आया है.”

मैं बोला “नही, प्रिया का मेसेज है.”

ये कह कर मैने उसे प्रिया का मेसेज पढ़कर सुनने लगा. ताकि कीर्ति को भी उसका मेसेज सुनाई दे सके.

प्रिया का मेसेज
“भीगते रहते है बारिश मे अक्सर,
कभी माँगी किसी से पनाह नही.
हसरतें पूरी हो या ना हो,
ख्वाब देखना तो कोई गुनाह नही.”
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09-09-2020, 02:14 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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प्रिया का मेसेज पढ़ने के बाद कुछ पल के लिए मैं खामोश हो गया. उसके इस मेसेज मे उसके दर्द के साथ साथ एक सवाल भी छुपा हुआ था. जिसका कोई जबाब मेरे पास नही था. मैं उसके इस दर्द को अच्छी तरह से महसूस कर सकता था. लेकिन अभी मुझे डॉक्टर. निशा की बात को जानने की भी बहुत बेचेनी थी. मैं जानना चाहता था कि, उन्हो ने ऐसा क्यो कहा. आख़िर प्रिया को हुआ क्या है.

मगर प्रिया का मेसेज पढ़ने के बाद, मैं चाह कर भी प्रिया के दर्द को अनदेखा कर, निक्की से ये बात नही पुच्छ पा रहा था. इसलिए मैने निक्की से कहा.

मैं बोला “आपने प्रिया का मेसेज सुना. वो सब कुछ जानने के बाद भी, ऐसी नादानी कर रही है. मुझे समझ मे नही आ रहा की, मैं उसे कैसे समझाऊ. मुझसे उसका इतना प्यार करना, नही सहा जा रहा है. आप ही उसे कुछ समझाइये.”

मेरी बात सुनकर निक्की ने संजीदा होते हुए कहा.

निक्की बोली “मैं अपनी तरफ से उसे समझाने की पूरी कोसिस कर चुकी हूँ. मेरे सामने तो, वो ये बात मान भी चुकी है कि, अब उसके और आपके बीच मे कुछ नही है. आप और वो सिर्फ़ अच्छे दोस्त है. लेकिन अपने पहले प्यार को भूलना भी तो, इतना आसान नही होता. जब तक आप उसके सामने रहेगे. तब तक वो चाहे भी तो, इस बात को नही भुला सकती. मगर आपके जाने के बाद वो धीरे धीरे सब कुछ भूल जाएगी.”

निक्की की इन बातों मे मुझे कुछ सच्चाई नज़र आई. इसलिए मैने फिर इस बात को आगे बढ़ाना ठीक नही समझा और निक्की से कहा.

मैं बोला “शायद आप ठीक कह रही है. मैं ही इस बात को उसके दिल से निकालने मे जल्दबाज़ी कर रहा था. मुझे उसकी हालत समझनी चाहिए थी और उसे इस से बाहर निकलने के लिए वक्त देना चाहिए था.”

निक्की बोली “हाँ, वक्त हर जख्म का मरहम होता है. वक्त उसे सब कुछ समझा देगा. अब आप इस बात की चिंता मत कीजिए और उसके साथ एक अच्छे दोस्त की तरह रहिए.”

मैं बोला “ठीक है, अब ऐसा ही होगा. लेकिन अभी मुझे आपसे ये जानना है कि, प्रिया को क्या हुआ है.”

मेरी इस बात का मतलब निक्की नही समझ सकी. उसे समझ मे ही नही आया कि, मैं क्या कहना चाहता हूँ. इसलिए उसने मुझसे पूछा.

निक्की बोली “मैं समझी नही, आप क्या जानना चाहते है.”

मैं बोला “अभी मेरी डॉक्टर. निशा से बात हुई थी. वो कह रही थी कि, प्रिया को ज़्यादा परेशान मत करना और उसको हमेशा खुश रखना. यही उसकी सेहत के लिए अच्छा है. आख़िर उन्हो ने प्रिया के लिए ये बात क्यो कही. क्या प्रिया को कुछ हुआ है.”

मेरी बात सुनकर निक्की सोच मे पड़ गयी कि, वो ये बात मुझे बताए या ना बताए. लेकिन जब मैने फिर से अपने सवाल को दोहराया तो, निक्की ने अपनी खामोशी तोड़ते हुए कहा.

निक्की बोली “डॉक्टर. निशा ने ये बात इसलिए कही है. क्योकि वो प्रिया का इलाज कर रही है. वो प्रिया को तो जानती थी. लेकिन उन्हे इस बात का पता नही था कि, प्रिया मेरी सहेली है. अभी वो मुझसे इसी बारे मे बात कर रही थी. मगर उन्हो ने मुझे ये नही बताया कि, उनकी आप से भी इस बारे मे बात हुई है.”

मैं बोला “नही, उन्हो ने मुझे प्रिया के बारे मे कुछ नही बताया. मगर उन्हो ने जो बात बोली है. उस से मुझे यही लगा कि, प्रिया को कुछ हुआ है.”

निक्की बोली “आपने ठीक सोचा. प्रिया पिच्छले काफ़ी समय से बीमार है और अभी उसका इलाज चल रहा है.”

निक्की की बातों से मेरी बेचेनी और भी बढ़ गयी. मैने बेचेनी भरे शब्दों मे उस से पुछा.

मैं बोला “लेकिन प्रिया को हुआ क्या है. उसे क्या बीमारी है.”

निक्की ने एक पल को मेरी तरफ देखा और फिर नज़र नीचे करके, ठंडी साँस छोड़ते हुए कहा.

निक्की बोली “प्रिया के दिल मे छेद है.”

निक्की की ये बात किसी तीर की तरह मेरे दिल मे चुभि. मुझे अभी भी अपने कानो पर विस्वास नही आ रहा था कि, मैने जो कुछ सुना है वो सच है. मेरी आँखों मे प्रिया का हंसता खिलखिलाता चेहरा घूम गया और मैने निक्की से कहा.

मैं बोला “ये आप क्या कह रही है. ऐसा नही हो सकता. उसके जैसी हँसती खेलती लड़की को, कभी कोई बीमारी हो ही नही सकती. कह दीजिए ये सब झूठ है. आप मज़ाक कर रही है.”

लेकिन निक्की ने अपनी बात को दोहराते हुए कहा.

निक्की बोली “नही यही सच है. प्रिया के दिल मे छेद है और निशा दीदी के पास उसका इलाज चल रहा है.”

निक्की के इस जबाब ने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया था. प्रिया के साथ गुज़रा हुआ हर लम्हा, मेरी आँखों के सामने घूमने लगा. उसके साथ बिताए हर लम्हे मे मुझे, मेरे लिए सिर्फ़ प्यार ही प्यार नज़र आ रहा था.

कीर्ति के बाद प्रिया ही वो लड़की थी. जिसने मुझे बेपनाह प्यार किया था. मैं उसके प्यार का जबाब प्यार से तो नही दे सका था. लेकिन फिर भी मेरे दिल मे प्रिया की जो जगह थी, वो किसी और की नही थी.

ऐसे मे उसके इस दर्द को सह पाना मेरे, लिए बहुत ही मुस्किल हो गया था. उसकी इस बीमारी के अहसास ने, मेरे रोम रोम मे दर्द की एक लहर उठा दी और मैं चाहते हुए भी, अपनी आँखों मे नमी को आने से ना रोक सका.

निक्की के सामने ही मेरी आँखों से झर झर आँसू गिरने लगे. मैं जितना उन्हे रोकने की कोसिस कर रहा था. वो उतनी ही तेज़ी से आए जा रहे थे. मेरे लिए अपने आपको संभाल पाना मुस्किल हो गया था.

मैं उठ कर दूर जाकर खड़ा हो गया और अपने आपको संभालने की कोसिस करने लगा. थोड़ी देर निक्की अपनी ही जगह पर बैठी रही. फिर उठ कर मेरे पास आकर खड़ी होते हुए कहने लगी.

निक्की बोली “आप दिल छोटा मत कीजिए. प्रिया जल्दी ही ठीक हो जाएगी. निशा दीदी बोल रही थी कि, प्रिया का एक ऑपरेशन करेगे और प्रिया पूरी तरह ठीक हो जाएगी.”

मैने अपने आपको संभाल कर, निक्की से नाराज़गी जताते हुए कहा.

मैं बोला “लेकिन आपने इतनी बड़ी बात को मुझसे छुपाकर क्यो रखा. क्या आपको एक दोस्त होने के नाते, ये बात मुझे बतानी नही चाहिए थी.”

निक्की बोली “मैं ये बात आपको बताना चाहती थी. लेकिन प्रिया ने अपनी कसम देकर मुझे ऐसा करने से रोक दिया था.”

मैं बोला “प्रिया मुझसे ये बात क्यो छुपाना चाहती थी.”

निक्की बोली “प्रिया को डर था कि, यदि आपको उसकी बीमारी के बारे मे पता चलेगा तो, आप उस से हमदर्दी जताने लगॉगे. उसे आपकी हमदर्दी नही सिर्फ़ दोस्ती चाहिए थी. वो आपका सहारा नही, सिर्फ़ आपका साथ चाहती थी. इसलिए उसने मुझे कसम दी थी कि, मैं ये बात आपको कभी नही बताउन्गी.”

निक्की की बात सुनकर मुझे प्रिया के मासूम दिल मे छुपि, उसकी कोमल भावनाओ का अहसास हुआ और इस अहसास ने एक बार फिर मेरी आँखों को भिगो दिया. मैने निक्की से कहा.

मैं बोला “प्रिया सच मे बहुत भोली है. मैं आज तक सिर्फ़ यही समझता था कि, इस लड़की को हँसी मज़ाक और गुस्सा करने के सिवा कुछ नही आता. लेकिन आज पता चला कि, ये लड़की अपने अंदर कितना दर्द छुपाये बैठी है और कभी किसी को अपने दर्द का अहसास तक नही होने देती.”

निक्की बोली “हाँ, प्रिया बिल्कुल ऐसी ही है. सब कुछ अपने दिल के अंदर छुपा कर रखती है. उसे शायद किसी का दिल दुखाना अच्छा नही लगता.”

निक्की की इस बात से मुझे प्रिया का दिल दुखाने वाली बात याद आ गयी. मैने निक्की को प्रिया की मुझसे नाराज़गी की वजह बताई और उस से कहा.

मैं बोला “मैने आज जानबूझ कर प्रिया का दिल दुखाया है. मुझसे सच मे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी है.”

निक्की बोली “इसमे आपकी कोई ग़लती नही है. आपने जो भी किया है, वो सिर्फ़ प्रिया की भलाई को ध्यान मे रख कर ही किया है. आप इस बात को अपने दिल से ना लगाए. प्रिया बहुत भोली है और आप से ज़्यादा देर नाराज़ नही रह सकती. आप उस से बात करके उसे मना लें.”

मैं बोला “ठीक है, आप उपर जाइए और प्रिया को नीचे भेज दीजिए. मैं उसकी इच्छा ज़रूर पूरी करूगा.”

निक्की बोली “ओके, लेकिन ये याद रखिएगा कि, प्रिया को इस बात का पता ना चले कि, आपको उसकी बीमारी के बारे मे मालूम हो गया है और इसलिए आप उसकी ये बात मान रहे है.”

मैं बोला “आप इस बात की बिल्कुल फिकर मत कीजिए. मैं प्रिया को कभी पता नही लगने दूँगा कि, मैं ये बात जानता हूँ.”

निक्की बोली “ओके, मैं उपर जाती हूँ और प्रिया को नीचे भेजती हूँ.”

इसके बाद निक्की उठ कर उपर चली गयी. उसके जाने के बाद, मुझे कीर्ति का फोन पर होना याद आया. मैने अपना मोबाइल बाहर निकाला और कीर्ति से बात करने लगा. कीर्ति ने मेरे फोन उठाते ही कहा.

कीर्ति बोली “जान, अभी तुम रो रहे थे.”

मैं बोला “नही तो ऐसा कुछ भी नही है.”

कीर्ति बोली “नही जान, मुझे इस बात का पूरा अहसास हुआ था कि, तुम रो रहे हो.”

मैं बोला “वो बस प्रिया की बीमारी का सुनकर, खुद ब खुद आँखों मे आँसू आ गये थे. लेकिन प्लीज़ तू इस बात का कोई ग़लत मतलब मत निकाल लेना. प्रिया सिर्फ़ मेरी दोस्त है.”

कीर्ति बोली “नही जान, मैं इस बात का, कोई ग़लत मतलब नही निकाल रही हूँ. मैं तो आज तक प्रिया से मिली भी नही हूँ. फिर भी मुझे उसकी बीमारी का सुनकर बहुत बुरा लगा. फिर तुम तो इतने दिन से उसके साथ हो. ऐसे मे उसकी बीमारी का सुनकर, तुम्हे दुख तो होगा ही.”

मैं बोला “थॅंक्स, मैं तो डर ही गया था कि, पता नही तू क्या सोचेगी.”

कीर्ति बोली “मैं क्या सोचुगी. क्या मैं तुम्हे जानती नही हूँ. मुझे मालूम है कि, तुम किसी की भी तकलीफ़ नही देख सकते. लेकिन जान, आज सच मे तुमने प्रिया का दिल दुखा कर बहुत बड़ी ग़लती की है. मुझे समझ मे नही आता कि, तुम्हे उसकी ये बात मान लेने मे परेशानी क्या थी. आख़िर हम ने भी तो अंकिता को तुम्हारी झुटि गर्लफ्रेंड बना कर मेहुल से मिलवाया है. यदि तुम उसकी सहेली से मिल लेते तो, इसमे क्या बुराई थी.”

मैं बोला “हाँ ग़लती तो मुझसे हो गयी है. लेकिन उस समय मुझे नही मालूम था कि, प्रिया बीमार है.”

कीर्ति बोली “मैं बीमारी की वजह से नही बोल रही हूँ. तुम उसकी बात को दोस्ती के नाते भी मान सकते थे. ऐसा करने मे कोई बुराई नही थी.”

मैं बोला “तू कैसी लड़की है. जो लड़की मुझे प्यार करती है. तू उसी की तरफ़दारी कर रही है. क्या तुझे उस से ज़रा भी जलन नही हो रही.”

कीर्ति बोली “इसमे जलन होने की क्या बात है. वो मेरे प्यार को मुझसे छीन थोड़े ही रही है. अब उसे अंजाने मे तुमसे प्यार हो गया तो, इसमे उस की क्या ग़लती है. वो बेचारी तो खुद ही इस आग मे जल रही है.”

मैं बोला “चल ठीक है. अभी प्रिया आएगी तो मैं उसकी ये इच्छा पूरी कर दूँगा. अब तेरा बातें सुनना हो गया हो तो, अब तू फोन रख.”

कीर्ति बोली “ओके जान. मैं अब तुम्हे और परेशान नही करूगी. मैं फोन रख रही हूँ. मुऊऊऊहह.”

इतना बोल कर कीर्ति ने फोन रख दिया. उसके फोन रखने के थोड़ी ही देर बाद प्रिया आ गयी. लेकिन उसका चेहरा अभी भी गुस्से मे लाल था. वो आई और आकर मेरे पास बैठ गयी. मगर अब उसने मेरी तरफ अपनी पीठ कर रखी थी.

मुझे उसकी इस हरकत पर हँसी भी आ रही थी और उस पर बहुत प्यार भी आ रहा था. मैं जानता था कि, वो मुझसे बात तो करना चाहती है. लेकिन अब वो खुद से कोई बात नही करेगी. इसलिए मैने खुद ही बात सुरू करते हुए कहा.

मैं बोला “प्रिया मैं सोच लिया है कि, मैं तुम्हारी सहेली से तुम्हारा बाय्फ्रेंड बनकर मिलुगा. अब तो तुम अपना गुस्सा ख़तम कर दो.”

मगर प्रिया अभी भी मुझ पर गुस्सा करते हुए कहने लगी.

प्रिया बोली “मैने फ़ैसला कर लिया है कि, अब मैं मोनिका को सब सच सच बता दूँगी. अब तुम्हे मेरे उपर कोई अहसान करने की कोई ज़रूरत नही है.”

मैं बोला “यार ये तो ग़लत बात है. मैं तुम्हारी मदद करने की बात कह रहा हूँ और तुम हो कि, उसे मेरा अहसान कह रही हो.”

प्रिया बोली “मुझे तुम्हारी कोई मदद नही चाहिए. अपनी मदद तुम अपने पास रखो.”

उसकी बातों से साफ पता चल रहा था कि, वो मुझ पर झूठा गुस्सा दिखा रही है और चाहती है कि, मैं उसे मनाऊ. मैने भी उसे मनाते हुए कहा.

मैं बोला “यार मेरे से ग़लती हो गयी, जो मैने तुम्हारी बात को पहले नही माना. अब यदि तुम बोलो तो मैं उस ग़लती के लिए, तुमसे कान पकड़ कर सॉरी बोलने को तैयार हूँ. अब तो तुम अपना गुस्सा ख़तम कर दो.”

प्रिया बोली “जो तुम्हारे सगे है, वो ही तुम पर गुस्सा करेगे. मैं तुम पर गुस्सा करने वाली कौन होती हूँ.”

प्रिया की इस बात पर मैं हँसे बिना ना रह सका. मैने हंसते हुए कहा.

मैं बोला “अच्छा तो तुम मेरी सग़ी नही हो. फिर ये भी बता दो कि, मेरे सगे कौन है.”

लेकिन प्रिया का झूठा गुस्सा दिखाना अभी भी चालू था. उसने गुस्से मे कहा.

प्रिया बोली “ज़्यादा नाटक मत करो. मैं अच्छे से जानती हूँ कि, यही बात यदि रिया दीदी या निक्की ने कही होती तो, तुम फ़ौरन मान लेते. लेकिन मैने कहा तो, किसी और को मेरा बाय्फ्रेंड बनाने लगे. जैसे मैं कोई रास्ते की चलती फिरती लड़की हूँ.”

मैं बोला “यार तुम बेकार मे बात को बढ़ा रही हो. मैने तो इतना कुछ सोचा भी नही था. मैने तो ये बात सिर्फ़ इसलिए कही थी. क्योकि मैं दिन भर हॉस्पिटल मे रहता हूँ. ऐसे मे मैं तुम्हारी सहेली से मिलने कैसे जा पाता.”

प्रिया बोली “हाँ, मेरे काम के लिए तुम्हारे पास हॉस्पिटल से निकलने का टाइम नही है. लेकिन अपने दोस्त के साथ दिन भर घूमने और अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने जाने के लिए तुम्हे हॉस्पिटल से टाइम मिल गया था. इतना घुमा फिरा कर बात क्यो कर रहे हो. सीधे से ये क्यो नही कह देते कि, मैं तुम्हे अच्छी नही लगती.”

प्रिया की इस बात ने मुझे संजीदा होने पर मजबूर कर दिया था. मैने उसे अपना ऐसे करने की वजह समझाते हुए कहा.

मैं बोला “नही प्रिया, ऐसी कोई बात नही है. तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मैने तुम्हारी मदद करने से मना इसलिए किया था, क्योकि मैं तुमसे दूरी बनाना चाहता था. मैं नही चाहता था कि, तुम्हे मेरे जाने के बाद तकलीफ़ हो. मगर तब मैं ये नही जानता था कि, मेरे ऐसा करने से भी तुम्हे तकलीफ़ होगी. वरना मैने ऐसा हरगिज़ नही किया होता.”

मेरी बात सुनकर प्रिया का गुस्सा भाग गया. उसने मेरी तरफ मूह करके बैठते हुए कहा.

प्रिया बोली “तुम मुझसे दूरी बनाना क्यों चाहते हो. क्या तुम्हे अब भी लगता है कि, मैं तुम्हारे और तुम्हारी गर्लफ्रेंड के बीच आउगि.”

मैं बोला “नही, मुझे ऐसा कुछ नही लगता. मैं जानता हूँ की, तुम ऐसा कुछ नही करोगी. लेकिन तुम्हारी हर बात मुझसे सुरू होकर, मुझ पर ही ख़तम हो रही थी. जिसने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया था कि, मेरे जाने के बाद तुम मेरे बिना कैसे रह पाओगी. जिसकी वजह से मुझे ऐसा करना पड़ा.”

प्रिया बोली “हाँ ये मेरी ग़लती है कि, मैं तुम्हारे सिवा कुछ और नही सोच पाती हूँ. लेकिन अब हम दोस्त है, और तुमने मुझसे वादा किया है कि, तुम मेरा साथ कभी नही छोड़ोगे.”

मैं बोला “मुझे अपना वादा याद है प्रिया और मैं अपना वादा मरते दम तक निभाउन्गा.”

प्रिया बोली “ओके, अब ये बात छोड़ो और ये बताओ, क्या तुम सच मे मेरे बाय्फ्रेंड बनकर मेरी सहेली से मिलोगे.”

मैं बोला “हाँ, तुम्हारा जब मन करे, तुम मुझे उसके पास ले चलना.”

मेरी बात सुनकर प्रिया बहुत खुश हो गयी और उसे खुश देख कर मैं भी खुश हो गया. प्रिया ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.

प्रिया बोली “मैं कल ही उस से मिलने का बोल देती हूँ. तुम्हे कल उस से मिलने मे कोई परेसानी तो नही होगी.”

मैं बोला “नही, मुझे कोई परेसानी नही है.”

प्रिया बोली “ओके, मैं उस से बात करके तुम्हे बता दुगी. फिर हम कल यहाँ से ही उस से मिलने चलेगे.”

मैं बोला “ठीक है.”

इसके बाद मेरी प्रिया से इसी बारे मे बात चलती रही और वो मुझे अपनी सहेली और उसके बाय्फ्रेंड के बारे मे बताती रही. हमारी बातों का ये सिलसिला तब तक चलता रहा. जब तक कि राज नही आ गया.

राज के आने पर मेरी उस से थोड़ी बहुत बात हुई और फिर वो अंकल के पास चला गया. उसके उपर पहुचते ही निक्की नीचे आ गयी. मेरी निक्की और प्रिया से थोड़ी बहुत बात हुई, फिर दोनो घर चली गयी.

उनके जाने के बाद मैं, वही बैठा बैठा, अभी कुछ देर पहले कीर्ति, निक्की और प्रिया के साथ गुज़रे हुए, लम्हों के बारे मे सोचने लगा. तीनो ही लड़की एक से बढ़ कर एक थी. कोई किसी बात मे, किसी से कम नही था.

एक तरफ कीर्ति थी, जिसके सिर्फ़ साथ होने के अहसास से ही, मेरे अंदर हर एक परेसानी से लड़ने की ताक़त आ जाती थी. जो मेरे रोम रोम मे इस तरह समाई थी कि, मेरी हर साँस के साथ, मुझे उसके होने का अहसास होता था और मेरा रोम रोम, उसकी खुश्बू से महक उठता था.

जो हज़ारों मील दूर होते हुए भी, साए की तरह मेरे साथ साथ चल रही थी. जिसके बिना मैं एक पल भी जीने का सोच नही सकता था. जो मेरा दिल, मेरी धड़कन, मेरी जान, मेरा वजूद, मेरा सब कुछ थी.

दूसरी तरफ वो दो लड़कियाँ थी, जिन्हे मैं सिर्फ़ कुछ दिनो से ही जानता था. मगर इन थोड़े से दिनो मे उन्हो ने मुझे जो प्यार, जो अपनापन दिया था. वो मुझे शायद पहले कभी नही मिला था.

निक्की को यदि मैं अपना बेस्ट फ्रेंड कहूँ तो, ये किसी भी तरह से ग़लत नही था. उसने हर कदम पर मेरा साथ, एक सच्चे दोस्त की तरह ही दिया था. वो बिल्कुल कीर्ति की तरह ही, मेरी हर बात का ख़याल रख रही थी. जिस वजह से अंजाने मे ही उसने मेरे दिल मे एक खास जगह बना ली थी. लेकिन इस बात का अंदाज़ा शायद उसे खुद भी नही था.

वही प्रिया एक ऐसी मासूम लड़की थी. जो कीर्ति और निक्की की उमर की, होने के बाद भी, बिल्कुल भोली और नादान थी. उसके अंदर से बच्पना अभी नही गया था. उसका मन किसी मासूम बच्चे की तरह, बिल्कुल कोमल और निश्छल था. जिसमे सब के लिए प्यार के सिवा कुछ नही था.

लेकिन अपने उस कोमल मन मे, उसने मेरी तस्वीर बसा ली थी. जिसे वो इसका अंजाम जाने बिना बेपनाह प्यार करती थी और मेरे ना चाहते हुए भी, उसने मेरे दिल मे अपनी अलग जगह बना ली थी.

मैं बाद के पूरे समय इन्ही ख़यालों मे खोया रहा और इन्ही ख़यालों मे खोए खोए, मेरा बाकी का समय भी बीत गया. रात को मेहुल के आने पर, मैं और राज घर आ गये.

जब हम घर पहुचे तो, वहाँ पापा भी थे. बाद मे निक्की से पता चला कि, रिया और दादा जी के कहने पर, पापा ने आज ही होटेल छोड़ दिया है और आज की रात वो हमारे साथ ही रहेगे.

मुझे इसमे कोई खास बात नज़र नही आई और फिर मैने इस बारे मे ज़्यादा जानने की कोसिस भी नही की. मैने खाना खाया और थकान होने का बहाना करके, 11 बजे अपने कमरे मे आ गया.

मेरे कमरे मे आने के थोड़ी ही देर बाद, प्रिया भी आ गयी. उसने बताया कि उसकी सहेली से उसकी बात हो गयी है. उसने कल 3 बजे का टाइम मिलने के लिए का दिया है. वो कल निक्की के साथ हॉस्पिटल आएगी और वही से मेरे साथ अपनी सहेली से मिलने चलेगी. इतनी बात करने के बाद प्रिया चली गयी.

उसके जाने के बाद मैं कीर्ति के फोन का वेट करने लगा. लेकिन 12 बजे तक कीर्ति का फोन नही आया और इसी बीच मेरी नींद लग गयी. फिर मेरी नींद रात को 2 बजे खुली.

मैने नींद खुलते ही कीर्ति को कॉल लगा दिया. मेरा कॉल देखते ही कीर्ति का कॉल आने लगा और उसने कॉल उठाते ही कहा.

कीर्ति बोली “हाए मैं मर जावा. मैं अभी तुम्हे कॉल लगाने की सोच ही रही थी कि, तुम्हारा कॉल आ गया.”

मैं बोला “ज़्यादा बातें मत बना. मुझे मालूम है कि, ना तो तू मुझे नींद से जगाती और ना ही खुद सोती. ये तो अच्छा हुआ कि मेरी नींद खुल गयी. नही तो तू रात भर जागती ही रहती.”

कीर्ति बोली “रात भर जागती तो क्या हुआ. सुबह तो देर तक सोती रहती. वैसे भी कल सनडे है. किसी बात की कोई चिंता नही थी.”

मैं बोला “चल ठीक है. तू ज़रा रुक, मैं बाहर से पानी लेकर आता हूँ. आज जल्दी जल्दी मे मैं पानी लेना ही भूल गया.”

कीर्ति बोली “मैं अकेले यहाँ क्या करूगी. मैं भी तुम्हारे साथ चलूगी.”

मैं बोला “तुझे मेरे साथ चिपकी रहना है तो, चिपकी रह. मगर मुझे अभी बहुत ज़ोर से प्यास लगी है. इसलिए चल पहले चल कर पानी ले आते है. फिर बात करते है.”

कीर्ति बोली “तो चलो ना. मैं कहाँ मना कर रही हूँ. तुम ही बातों मे लगे हो.”

मैं बोला “ठीक है.”

ये कह कर मैं बाहर जाने के लिए उठ गया. मैने कमरे से बाहर जाने के लिए, दरवाजा खोलने की कोसिस की, लेकिन दरवाजा नही खुला. शायद किसी ने दरवाजा, बाहर से बंद कर दिया था. लेकिन किसने और क्यो किया था, ये मेरी समझ के बाहर था.

दरवाजा खुलते ना देख कर, मैं निराश हो गया और वापस बेड पर आकर बैठ गया. लेकिन प्यास की वजह से मेरा हाल बहाल हो रहा था. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, अब मैं क्या करूँ.

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