MmsBee कोई तो रोक लो
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मुझे कमरे से बाहर निकलते ना देख कर कीर्ति ने कहा.

कीर्ति बोली “क्या हुआ. अभी तक कमरे मे ही क्यो हो. पानी लेने क्यो नही जा रहे हो.”

मैं बोला “कैसे जाउ. किसी ने दरवाजा बाहर से बंद कर दिया है.”

कीर्ति बोली “ऐसा किसने किया होगा.”

मैं बोला “मेरे सोने के पहले प्रिया मेरे कमरे मे आई थी. शायद वो ही जाते जाते दरवाजा बाहर से बंद करके चली गयी.”

कीर्ति बोली “लेकिन उसने ऐसा क्यो किया होगा. उसे ऐसा करके क्या मिलेगा.”

मैं बोला “मुझे क्या मालूम. ये तो वो ही जाने.”

कीर्ति बोली “अब तुम क्या करोगे.”

मैं बोला “अब मैं सुबह होने का इंतजार करने के सिवा कर ही क्या सकता हूँ. सुबह निक्की मुझे जगाने आएगी. तब वो ही दरवाजा खोलेगी.”

कीर्ति बोली “तो क्या तुम सारी रात प्यासे ही रहोगे.”

मैं बोला “इसके सिवा मेरे पास रास्ता भी क्या है. अब इतनी रात को दरवाजा खटखटा कर, सबकी नींद तो खराब कर नही सकता.”

कीर्ति बोली “नही, मैं तुम्हे सारी रात प्यासा नही रहने दूँगी. तुम एक काम करो, निक्की को कॉल लगा कर दरवाजा खोलने को कह दो.”

मैं बोला “ये ठीक बात नही है. उस दिन भी निक्की को आधी रात को जगाया था. आज फिर उसको जगाना मुझे अच्छा नही लग रहा.”

कीर्ति बोली “तब फिर तुम प्रिया को कॉल करो. आख़िर दरवाजा भी तो, वो ही बंद करके गयी है.”

मैं बोला “प्रिया को तुम रहने ही दो. वो बहुत गहरी नींद मे सोती है. वो नही जागेगी.”

कीर्ति बोली “तुम कॉल लगाओ तो सही. वो जागती है या नही ये बाद मे देखेगे.”

मैं बोला “यदि वो जाग भी गयी तो, इतनी रात को मेरे दिमाग़ का दही बनाए बिना यहाँ से जाएगी नही. इसलिए अच्छा यही है कि उसे सोने ही दिया जाए. वैसे भी सिर्फ़ 4 घंटे की ही तो बात है. मैं किसी तरह से काट लुगा.”

कीर्ति बोली “नही मैं तुम्हारी कोई बात नही सुनूँगी. इन 4 घंटों मे तो तुम्हारा प्यास से और भी बुरा हाल हो जाएगा. मैं तुम्हे इस तरह प्यास से तड़प्ता नही देख सकती. प्लीज़ मेरी खातिर एक बार प्रिया को कॉल लगाओ.”

मैं बोला “तू कहती है तो मैं प्रिया को कॉल लगा देता हूँ. मगर वो नही उठी तो, फिर किसी को कॉल करने को मत बोलना और यदि उठ गयी तो, उसका तमाशा खुद ही देख लेना.”

कीर्ति बोली “तुम कॉल लगाओ ना. मुझे उम्मीद है कि वो ज़रूर उठ जाएगी.”

कीर्ति की बात सुनकर मैने प्रिया को कॉल लगा दिया और मेरे पहले ही कॉल मे प्रिया से कॉल उठा भी लिया. वो बहुत ज़्यादा नींद मे लग रही थी. उसने कॉल उठाते ही उनीदी सी आवाज़ मे कहा.

प्रिया बोली “हाँ बोलो, क्या हुआ. इतनी रात को मेरी याद कैसे आ गयी.”

मैं बोला “याद आई नही है. तुमने याद करने पर मजबूर कर दिया है.”

प्रिया बोली “क्यो, अब मैने ऐसा क्या कर दिया है.”

मैं बोला “तुम जाते जाते मेरे कमरे का दरवाजा बाहर से बंद करके चली गयी और अब मुझे प्यास लगी है तो, मैं पानी लेने भी बाहर नही जा पा रहा हूँ.”

मेरी बात सुनते ही प्रिया की सारी नींद भाग गयी. वो मुझे यकीन दिलाते हुए कहने लगी.

प्रिया बोली “कसम से मैने तुम्हारे कमरे का दरवाजा बंद नही किया है. मैं तो उसे ऐसे ही लटका कर आ गयी थी.”

मैं बोला “यदि तुमने दरवाजा बंद नही किया है तो, फिर किसने बंद किया है.”

प्रिया बोली “मुझे क्या मालूम. मैं तो तुम्हारे पास से सीधे अपने कमरे मे आकर सो गयी थी और अब तुम्हारे कॉल करने पर ही जागी हूँ.”

मैं बोला “चलो दरवाजा तुमने बंद नही किया है. लेकिन तुम अभी आकर दरवाजा खोल तो सकती हो ना.”

प्रिया बोली “हाँ हाँ, तुम रूको, मैं अभी आती हूँ.”

ये कह कर प्रिया ने फोन रख दिया. उसके फोन रखते ही कीर्ति ने पुछा.

कीर्ति बोली “क्या प्रिया आ रही है.”

मैं बोला “हाँ, वो आ रही है. लेकिन वो कह रही थी कि, दरवाजा उसने बंद नही किया है.”

कीर्ति बोली “यदि प्रिया ने दरवाजा बंद नही किया है तो, फिर दरवाजा किसने और क्यो बंद किया है.”

मैं बोला “अब ये तो दरवाजा बंद करने वाला ही जाने की उसने दरवाजा क्यो बंद किया है.”

मैं अभी कीर्ति से बात कर ही रहा था कि, मुझे दरवाजे पर किसी के होने की आहट हुई. मैं समझ गया कि प्रिया है. मैं बेड से उठ कर खड़ा हुआ. तभी प्रिया दरवाजा खोल कर अंदर आ गयी.

उसके हाथ मे पानी की बोतल थी. उसने मुझे पानी की बोतल दी और फिर बेड पर बैठ गयी. मैने पानी पिया और उस से कहा.

मैं बोला “सॉरी, तुम्हे इतनी रात को परेशान किया. यदि तुम्हारी नींद नही खुलती तो, सच मे मेरा प्यास के मारे बुरा हाल हो गया होता.”

प्रिया बोली “ऐसा कैसे हो सकता है कि, तुम मुझे जगाओ और मेरी नींद ना खुले. ये बात और है कि तुम कभी मुझे जगाते ही नही हो.”

मैं बोला “आज तो जगा दिया ना. अब तो खुश हो.”

प्रिया बोली “बहुत खुश हूँ. इसी खुशी मे सोच रही हूँ कि, यही तुम्हारे साथ ही सो जाउ.”

मैं बोला “अब इतनी रात को अपना नाटक शुरू मत करो. चुपचाप जाकर सो जाओ और मुझे भी सोने दो.”

प्रिया बोली “मैं तुम्हे सोने से कहाँ मना कर रही हू. मैं तो बस इतना ही बोल रही हूँ कि, मैं भी यही सो जाती हूँ.”

मैं बोला “तुम फिर शुरू हो गयी ना. इसी वजह से मैं तुम्हे जगाना नही चाहता था. तुम्हे जगा कर मैने सच मे ग़लती कर दी है.”

प्रिया बोली “अरे इतना भड़क क्यो रहे हो. मैं तो सिर्फ़ मज़ाक कर रही थी. तुम्हे मेरा मज़ाक करना पसंद नही है तो, मैं अब कोई मज़ाक नही करूगी. अब बताओ क्या करना है.”

मैं बोला “कुछ नही करना है. तुमने इतनी रात को उठ कर मेरी मदद की, उसके लिए थॅंक्स. अब मेरे उपर एक अहसान और करो. मुझे चैन से सोने दो और खुद भी जाकर सो जाओ.”

प्रिया बोली “इसका मतलब कि तुम मुझे अपने कमरे से भगा रहे हो. सोच लो, ये तुम मेरे साथ अच्छा नही कर रहे हो.”

मैं बोला “यार मेरा कहने का तुम ग़लत मतलब निकाल रही हो. मैं तो सिर्फ़ इतना कहना चाहता था कि, अभी रात बहुत हो गयी है. मुझे सोना है और तुम भी अपने कमरे मे जाकर सो जाओ.”

प्रिया बोली “मैं सब समझती हूँ. तुम मुझे हमेशा अपने पास से भगाने की कोसिस करते हो और अभी मुझे अपने कमरे से निकाल रहे हो.”

मैं बोला “नही तुम मेरी बात को नही समझ रही हो. इतनी रात को तुम्हारा मेरे कमरे मे अकेले रहना अच्छी बात नही है. यदि किसी ने देख लिया तो, वो इसका ग़लत मतलब निकालेगा. प्लीज़ मेरे कहने का मतलब समझने की कोसिस करो.”

प्रिया बोली “ओके ओके, मैं समझ गयी. अभी तो मैं जाती हूँ. लेकिन बाद मे तुमसे इस बात का बदला लेकर रहूगी.”

ये कह कर प्रिया बेड से उठ कर खड़ी हो गयी और फिर जाने लगी. मैं भी उसके पिछे पिछे, उसे दरवाजे तक छोड़ने आया. दरवाजे पर पहुच कर उसने मुझे गुड नाइट कहा और फिर जाने लगी.

मैं उसे जाते हुए देख रहा था. तभी पापा के कमरे के सामने से गुज़रते हुए उसके कदम रुक गये. उसने पलट कर मेरी तरफ देखा. मैं समझा कि वो मुझे देख रही है कि, मैं अभी खड़ा हूँ या नही, इसलिए मैने उसे देख कर मुस्कुरा दिया.

लेकिन उसने मेरी मुस्कुराहट का कोई जबाब नही दिया और पापा के कमरे के दरवाजे की तरफ बढ़ गयी. वहाँ पहुच कर उसने दरवाजे पर अपने कान लगा दिए. मुझे उसकी ये हरकत अजीब लगी. इसलिए मैं भी ये देखने उसके पास आ गया की, ये क्या कर रही है.

उसने मुझे आते देख कर चुप रहने का इशारा किया और फिर से अपने कान दरवाजे पर लगा दिए. मैने उसे फिर से ऐसा करते देखा तो धीरे से कहा.

मैं बोला “क्या हुआ. ये क्या कर रही हो.”

प्रिया ने भी धीरे से जबाब दिया.

प्रिया बोली “मुझे अभी अंकल के कमरे से किसी लड़की की आवाज़ आई.”

प्रिया की इस बात को सुनते ही मेरी आँखों मे रिया का चेहरा घूम गया. मुझे इस बात का पूरा यकीन था कि, यदि सच मे प्रिया ने सच मे पापा के कमरे से किसी लड़की की आवाज़ सुनी है तो. वो लड़की रिया के सिवा कोई और नही हो सकती थी. लेकिन मैने प्रिया के सामने लापरवाही से कहा.

मैं बोला “इतनी रात को कोई लड़की भला यहाँ कहाँ से आ जाएगी. हो सकता है कि तुम्हे कोई वहम हुआ हो.”

प्रिया बोली “नही, मैने बिल्कुल साफ आवाज़ सुनी है. रूको अभी सब पता चल जाएगा.”

ये कह कर प्रिया दरवाजे से अलग हुई और फिर कमरे के पास बनी सीडियों की तरफ जाने लगी. जो शायद उपर छत पर जाने के लिए बनी थी. उसने मुझे भी साथ आने का इशारा किया तो, मैं भी उसके पिछे पिछे सीडियाँ चढ़ने लगा.
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कुछ सीडियाँ चढ़ने के बाद, वो एक रोशनदन के पास रुक गयी और फिर धीरे से रोशनदन को खोलने की कोसिस करने लगी. मुझे समझते देर नही लगी कि, ये रोशनदन ज़रूर पापा के कमरे मे खुलता है.

मैं अपने पापा के चरित्र से अच्छी तरह से वाकिफ़ था और इस बात को भी अच्छी तरह से समझ रहा था कि, यदि पापा के कमरे मे रिया है तो अंदर क्या चल रहा होगा. इसलिए मैने तुरंत प्रिया का हाथ पकड़ा और उसे रोशनदन से दूर लाते हुए कहा.

मैं बोला “ये क्या कर रही हो. किसी के कमरे मे इस तरह चोरी छुपे देखना, अच्छी बात नही है.”

मेरी बात सुनकर प्रिया ने मुझसे अपना हाथ छुड़ाया और कहने लगी.

प्रिया बोली “इतनी अकल मुझे भी है कि, किसी के कमरे मे इस तरह नही देखना चाहिए. लेकिन मैने अभी अंकल के कमरे से किसी लड़की की आवाज़ सुनी है. मैं सिर्फ़ इतना देखना चाहती हूँ कि, इतनी रात गये अंकल के कमरे मे कौन लड़की है.”

मैने प्रिया को बहलाते हुए कहा.

मैं बोला “तुम्हे ज़रूर कोई ग़लत फ़हमी हुई है. भला इतनी रात को कोई लड़की यहाँ कैसे आ सकती है.”

प्रिया बोली “मुझे कोई ग़लत फ़हमी नही हुई है. मैने साफ साफ किसी लड़की की आवाज़ सुनी है और मैं भी ये अच्छे से जानती हूँ कि, बाहर की कोई लड़की नही हो सकती. इसका मतलब तो यही हुआ कि, इसी घर मे से कोई है. मैं बस यही जानना चाहती हूँ कि, कौन है और क्यो है. अब तुम चुप रहो और मुझे देखने दो कि अंदर कौन लड़की है.”

ये कह कर प्रिया फिर से रोशनदन की तरफ बढ़ गयी. प्रिया के ऐसा करते ही, मेरी धड़कने तेज हो गयी और मैं फिर से उसे रोकने के लिए आगे बढ़ गया. लेकिन मेरे प्रिया के पास पहुचते ही प्रिया ने मुझे चुप रहने का इशारा किया और दूसरे ही पल उसने रोशनदन को धीरे से खोल दिया.

रोशनदन के खुलते ही, अंदर चल रहे नज़ारे को देख कर, प्रिया के होश उड़ गये. उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी. वह समझ नही पा रही थी कि ये सब क्या चल रहा है. वो अपलक अंदर चल रहे नज़ारे को देखे जा रही थी.

अंदर पापा के साथ रिया ही थी. दोनो के बदन पर एक भी कपड़े नही थे. रिया बॅड पर घोड़ी बनी हुई थी और पापा बॅड के पर घुटनो के बल बैठे उसकी कमर को अपने हाथों से थामे हुए, उसकी योनि मे लिंग को तेज़ी से अंदर बाहर कर रहे थे.

पापा का मोटा और बड़ा लिंग हर धक्के के साथ रिया की योनि मे समा जाता और दूसरे ही पल झटके से बाहर आ जाता. जब लिंग योनि के अंदर जाता तो रिया के मूह से बड़ी ही कामुक आवाज़ निकल जाती थी.

दोनो के बीच ये खेल पता नही कब से चल रहा था. यदि इस खेल को खेलने वाला कोई और होता तो शायद मैं इस खेल को देखने से अपने आप को ना रोक पाता. लेकिन इस खेल को खेलने वाला मेरा बाप था और दूसरी तरफ प्रिया की बहन थी.

ये बात मेरे दिमाग़ मे आते ही मैने अपनी नज़र वहाँ से अलग कर के प्रिया की तरफ देखा तो उसका चेहरा गुस्से से लाल था. वो बस गुस्से भरी नज़रों से अंदर चल रहे इस वासना के खेल को देखे जा रही थी. मुझे नही पता अपनी बहन की इस हरकत को देख कर उसके अंदर इस समय क्या चल रहा था.

मुझे वहाँ प्रिया का खड़ा रहना ठीक नही लगा. मैने रोशनदान से उसका हाथ हटाया और रोशनदान बंद कर के प्रिया को एक किनारे ले आया. लेकिन ये सब देख कर प्रिया अपने आप मे नही थी. उसके मूह से एक शब्द नही निकला. वो चुप चाप बुत बनी खड़ी रही.

शायद अभी भी उसके दिमाग़ मे अंदर चल रहा वो खेल ही घूम रहा था. मेरी भी समझ मे नही आ रहा था कि मैं प्रिया से क्या कहूँ. कुछ देर मैं भी प्रिया के साथ चुप चाप खड़ा रहा. लेकिन ऐसे कब तक खड़ा रहता. आख़िर मैं मैने ही प्रिया से कहा.

मैं बोला “सॉरी प्रिया. अपने पापा की इस हरकत के लिए मैं शर्मिंदा हूँ. उन्हे रिया के साथ ऐसा नही करना चाहिए था.”

मेरी बात सुनकर प्रिया अपने ख़यालों से बाहर तो निकल आई. लेकिन उसका चेहरा अभी भी गुस्से से लाल था. उसने गुस्से मे ऐसे मेरी तरफ देखा, जैसे ये सब पापा ने नही बल्कि मैने ही किया हो.

प्रिया के इस गुस्से को देख कर एक पल के लिए तो मैं अंदर तक काँप गया. मगर फिर अपने आपको संभालते हुए मैने प्रिया से कहा.

मैं बोला “सॉरी यार, लेकिन पापा और रिया के बीच जो हुआ, उसमे मेरी क्या ग़लती है. ये सब मैने तो नही किया. फिर तुम मुझे क्यूँ गुस्से मे देख रही हो.”

मुझे लगा था कि मेरी बात सुनकर प्रिया का गुस्सा ख़तम हो जाएगा. लेकिन ऐसा नही हुआ. बल्कि मेरी बात सुनकर जो जबाब उसने दिया. उसे सुनकर मैं सन्न रह गया.

प्रिया बोली “तुम्हारे बाप ने जिस थाली मे खाया, उसी थाली मे छेद कर दिया. तुम भी उसी का गंदा खून हो. फिर भला तुम से क्या उम्मीद की जा सकती है.”

प्रिया की इस बात ने मुझे अंदर तक हिला दिया. मुझे उसकी बात पर गुस्सा तो बहुत आया. मगर मैं खून का घूट पीकर रह गया. मैने अपने गुस्से पर काबू पाते हुए कहा.

मैं बोला “प्रिया, तुम गुस्से मे, क्या क्या बोले जा रही हो. क्या तुम जानती भी हो.”

प्रिया बोली “मुझे कुछ नही जानना. मैने तुम बाप बेटे के बारे मे जो भी कहा ठीक ही कहा है. साँप का बेटा आख़िर सपोला ही तो होगा.”

अब प्रिया की बातें मेरे लिए सह पाना मुस्किल हो रही थी. मैं समझ गया था कि वो अभी बहुत गुस्से मे है और अभी मेरी कोई बात नही सुनेगी. इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला “प्रिया, अभी तुम बहुत गुस्से मे हो. अभी जाकर सो जाओ. हम सुबह इस बारे मे बात करेगे.”

लेकिन शायद प्रिया ने आज मुझे बेइज्जत करने की ठान रखी थी. उसने बड़े ही सख़्त लहजे मे मुझसे कहा.

प्रिया बोली “मुझे अब तुमसे कोई बात नही करना और ना ही अब मैं तुम्हारी सूरत देखना चाहती हूँ. तुम्हारे लिए अच्छा यही होगा कि, कल अपने बाप के साथ तुम भी मेरे घर से चले जाओ.”

इतना कह कर प्रिया बिना मेरा जबाब सुने सीडियाँ उतरने लगी. मैं वही खड़ा उसे जाते हुए तब तक देखता रहा. जब तक कि वो मेरी नज़रों से ओझल नही हो गयी. प्रिया के जाने के बाद भी प्रिया की बातें मेरे कानो मे गूँज रही थी. उन्ही बातों को सोचते हुए मैं अपने कमरे मे आ गया.

कमरे मे आकर मैं बेड पर लेट गया और फिर से प्रिया की कही बातों को सोचने लगा. प्रिया ने खुले शब्दों मे मुझे गाली देते हुए अपने घर से चले जाने को कहा था और मैं खामोश रहने के सिवा कुछ ना कर सका.

मैं इन्ही सब बातों को सोच रहा था और ये बिल्कुल भूल चुका था कि इस सारे समय मे कीर्ति मेरे साथ फोन पर बराबर बनी रही थी. मुझे इस बात का अहसास भी ना होता अगर मेरा दूसरे मोबाइल पर कीर्ति ने कॉल ना लगाया होता.

अचानक मेरे दूसरे मोबाइल पर कीर्ति का कॉल आने लगा तो मुझे याद आया कि कीर्ति अभी मोबाइल पर ही है. मैने अपने आपको संभाला और जेब से मोबाइल निकाल कर बड़े ही प्यार से कीर्ति से कहा.

मैं बोला “हेलो, क्या हुआ, तू अभी तक सोई नही है.”

लेकिन शायद मेरी आज की रात ही खराब थी. कीर्ति ने भी मेरी बात को अनसुना कर दिया और उसने जो बात बोली, उसे सुनकर तो मेरे कान से धुआँ निकल गया और मेरी सोच के तोते उड़ गये.
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प्रिया की बातें सुनकर कीर्ति आग बाबूला हो चुकी थी और उसका गुस्सा सातवे आसमान पर था. उसके मूह मे जो आ रहा था, वो बके जा रही थी.

कीर्ति बोली “हाँ मुझे तो सो ही जाना चाहिए था. वो हरामजादी इतनी मीठी मीठी लॉरी, जो सुना कर गयी है. मुझे तो सुनते ही नींद आ जाना चाहिए थी. लेकिन देखो मैं कितनी बद्जात लड़की हूँ. इतना सब कुछ सुनने के बाद भी, बेशर्मो की तरह जाग रही हूँ. तुमने बहुत अच्छा किया जो सब कुछ चुप चाप सुनते रहे और अब आराम से सो भी जाना. लेकिन मुझे अब उस कमिनि की नींद छीने बिना नींद नही आएगी.”

“उस रंडी की औलाद की इतनी हिम्मत कि, तुम्हे गंदे खून की पैदाइश कहे. अब मैं उस कुतिया को बताउन्गी कि गंदा खून किसका है. उसके सारे खानदान को नंगा करके रख दुगी. उसको बताउन्गी कि, उसकी बहन खुद अपने भाई से चुदती रहती है और वो खुद अपने दादा की औलाद है. उसकी माँ बहन और उसको तुमसे ना चुदवा दिया तो, मैं भी अपने माँ बाप की बेटी नही. लाओ मुझे उस रंडी का नंबर दो. मैं अभी उसको उसकी असली औकात बताती हूँ. लाओ मुझे उसका नंबर दो.”

कीर्ति गुस्से मे पागल होकर प्रिया का नंबर माँग रही थी और उसको गालियाँ बके जा रही थी. मेरे लिए कीर्ति का ये रूप बिल्कुल नया था. जिसे देख कर कुछ देर के लिए मेरी बोलती बंद और दिमाग़ शुन्य हो गया.

इतनी गंदी गालियाँ पहली बार मैं उसके मूह से सुन रहा था और समझ नही पा रहा था कि, अब मैं उसके गुस्से को कैसे शांत करू. मगर ये तो उसके गुस्से की शुरुआत थी और मेरे चुप रहने से वो ओर भी ज़्यादा गुस्से मे आग बाबूला हो गयी. उसने मेरे उपर चीखते हुए कहा.

कीर्ति बोली “क्या हुआ. तुम्हे साँप क्यो सूंघ गया. उस रंडी का नंबर क्यो नही दे रहे. कहीं उस रंडी को चोदने के सपनो मे खो गये हो. ये सपने तुम बाद मे देखते रहना. मुझे जल्दी से उसका नंबर दो, वरना मैं अभी मेहुल को कॉल करके उसका नंबर लेती हूँ.”

आख़िर कार कीर्ति के मूह से मेहुल से नंबर लेने की बात सुनकर मेरी ज़ुबान मे कुछ जान वापस आई और मैने बड़े प्यार से कीर्ति को समझाते हुए कहा.

मैं बोला “जान, तुझे ये क्या हो गया है. मैं कभी सोच भी नही सकता था कि तू इतनी गंदी गालियाँ दे सकती है. तेरे मूह से ये सब बातें अच्छी नही लगती. ये तो बाजारू लड़कियों का काम है. शरीफ घर की लड़कियाँ ऐसी बातें नही करती.”

लेकिन कीर्ति पर मेरी बात का कोई असर नही पड़ा. वो अभी भी अपनी ज़िद पर ही अडी थी और मुझ पर ही बरस पड़ी.

कीर्ति बोली “हाँ मैं बाजारू लड़की हूँ. शरीफ तो वो है जिसने अभी तुम्हे जलील किया और घर से निकल जाने को कहा है. तुम्हे जो समझना है, तुम समझते रहो. मैं अच्छी नही हूँ तो, तुम मुझे छोड़ दो. लेकिन आज कुछ भी हो जाए, मैं उस रंडी को छोड़ने वाली नही हूँ. तुम फोन रखो, मैं मेहुल से उसका नंबर ले लेती हूँ.”

कीर्ति की ये बात मेरे दिल पर चोट कर गयी. लेकिन मैं ये भी जानता था कि अभी वो अपने आप मे नही है. वो खुद ही नही जानती कि वो क्या क्या बोले जा रही है.अब मेरे पास कीर्ति को शांत करने का बस एक ही रास्ता था और मैने बड़े ही शांत शब्दों मे कीर्ति से कहा.

मैं बाला “जान, प्लीज़ शांत हो जा. तुझे मेरी कसम, अपना गुस्सा ख़तम कर. इसके बाद यदि तू अपने मूह से एक भी गंदी बात निकलेगी, तो मेरा मरा हुआ मूह देखेगी.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति शांत पड़ गयी मगर उसकी तेज चल रही साँसे, मुझे इस बात का अहसास करा रही थी कि, उसके अंदर अभी भी गुस्से की ज्वाला भड़क रही है और जब तक वो प्रिया से मेरी बेइज़्ज़ती का बदला नही ले लेती, उसे शांति नही मिलेगी. मैने उसके गुस्से को शांत करने के लिए उसे समझाते हुए कहा.

मैं बोला “जान, मैं जानता हूँ कि तू मेरा अपमान नही सह सकती. मैं बहुत खुश नसीब हूँ, जो मुझे तेरा प्यार नसीब हुआ. लेकिन ज़रा ठंडे दिमाग़ से सोच कर देख.यदि प्रिया की जगह तू होती तो, ये सब देखने के बाद तू क्या करती.”

मेरी बात सुनकर भी कीर्ति चुप ही रही. तब मैने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.

मैं बोला “प्रिया नादान है. वो अभी रिया की किसी हरकत को नही जानती. इसलिए उसे ये सब देख कर इतना बुरा लगा है. तू खुद सोच कर देख, जब प्रिया का अपमान करना तुझसे नही सहा गया तो, फिर प्रिया वो सब देख कर कैसे सह सकती थी. उस समय उसके सामने मैं ही था. इसलिए उसने अपना सारा गुस्सा मुझ पर उतार दिया. लेकिन बाद मे उसे उसकी ग़लती का अहसास ज़रूर होगा और वो इसके लिए मुझसे माफी भी माँगेगी.”

ये बोल कर मैं कीर्ति के कुछ बोलने का इंतजार करने लगा. मेरी इस बात का कीर्ति पर क्या असर पड़ा. ये तो वही जाने. मगर इस बात को सुनने के बाद उसने बड़े ही अनमने मन से मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “मेरी एक बात मनोगे.”

मैं बोला “तू बोल कर तो देख, तेरी हर बात मानूँगा.”

कीर्ति बोली “कुछ भी हो, पर अब तुम यहाँ मत रहो. कल सुबह ही अपने रहने का कही और इंतेजाम कर लो.”

मैं बोला “बस इतनी सी बात, कल ही मैं अपने रहने का कही और इंतज़ाम कर लूँगा. अब तो तू खुश है ना या अभी कुछ ओर भी करना बाकी है.”

कीर्ति बोली “हाँ खुश हू. लेकिन यदि कर सको तो एक काम ऑर कर दो.”

मैं बोला “चलो वो भी कर देता हूँ. बोलो क्या करना है.”

कीर्ति बोली “प्रिया ने तुम्हारे बर्तडे मे जो मोबाइल गिफ्ट किया था. वो उसको वापस कर दो.”

मैं बोला “ओके, कल ही वापस कर दूँगा.”

मैने बिना कोई सवाल किए कीर्ति की कही, दोनो बातें पूरी करने की हामी भर दी थी. क्योकि मुझे घर से जाने के लिए खुद प्रिया ने कहा था. ऐसे मे मेरा वहाँ रुकना ठीक नही था और प्रिया ने मेरी सूरत भी देखने से मना किया था. ऐसे मे उसका मोबाइल भी अपने पास रखने का कोई मतलब नही था. मुझे कीर्ति की दोनो बातें ही सही लगी थी.

मेरी कीर्ति से ऐसी ही हल्की फुल्की बातें होती रही. उसका मूड सही नही था और मैं अपनी बातों से उसका मन बहलाने की कोशिस करता रहा. लेकिन 3:30 बजे कीर्ति ने मुझसे आराम करने को कह कर फोन रख दिया. अभी उसका मूड सही नही था इसलिए मैने उस से बात करने की कोई ज़िद करना ठीक नही समझा.

मगर कीर्ति के फोन रखने के बाद भी मेरी आँखों मे नींद नही थी. मैं कभी कीर्ति के गुस्से के बारे मे सोचता तो, कभी प्रिया के गुस्से के बारे मे सोचता. दोनो का गुस्सा अपनी अपनी जगह सही था. दोनो मे से कोई भी ग़लत नही था.

यदि कोई ग़लत था तो, वो था मेरा बाप, जिसकी वजह से आज ये सब हुआ था. मगर वो इन सब बातों से अंजान, रिया के साथ ऐयाशी करने के बाद, अब बेफिक्री की नींद सोने की तैयारी मे होगा.

ये बात मेरे दिमाग़ मे आते ही, मुझे याद आया कि रिया या पापा ने दरवाजा बाहर से बंद किया होगा और वो ज़रूर मेरा दरवाजा खोलने भी आए होगे या आने वाले होगे. ऐसे मे उन्हे मेरा दरवाजा बाहर से खुला मिला तो उन्हे इस बात का शक़ हो सकता है कि कही मुझे उनकी हरकत का पता तो नही चल गया.

ये सोच कर मैं तुरंत अपने बेड से उठा और बाहर जाकर देखा. लेकिन बाहर से कुछ समझ मे नही आ रहा था और पापा के कमरे के बाहर जाकर देखना मुझे ठीक नही लग रहा था. तभी मुझे सीडियों के रोशनदन की याद आई.

मैने अपने दरवाजे को बाहर से बंद किया और सीडियों पर बने रोशनदन के पास जाकर कान लगा दिए. रिया अभी भी अंदर ही थी. मैने धीरे से रोशनदन खोल कर देखा तो रिया कपड़े पहन रही थी. कपड़े पहनने के बाद उसने पापा को किस किया और उनके कमरे से बाहर आ गयी. पापा ने उसके जाने के बाद दरवाजा बंद कर लिया.

मैने भी रोशनदन को बंद किया और थोड़ी देर सीडियों पर वेट करने के बाद वापस नीचे आ गया. नीचे आने के बाद मैने देखा कि मेरे कमरे का दरवाजा बाहर से खोल दिया गया.

मैं वापस अपने कमरे मे आया और टाइम देखा तो अभी 4 बजा था. नींद तो मेरी आँखों मे थी नही, इसलिए मैं अपना समान पॅक करने लगा. पॅकिंग हो जाने के बाद मैं फ्रेश होने चला गया.

फ्रेश होने के बाद मैं तैयार हुआ और फिर बैठ कर ये सोचने लगा कि यहाँ पर सबको ऐसा क्या बोल कर जाउ. जिस से किसी के मन मे कोई सवाल ना उठे. लेकिन मेरे दिमाग़ मे ऐसी कोई बात नही आ रही थी.

यही सोचते सोचते 6 बज गये और निक्की ने आकर मेरा दरवाजा खटखटा दिया. मैने दरवाजा खोला तो निक्की मुझे तैयार देख कर चौक गयी.
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09-09-2020, 02:16 PM,
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अभी वो मुझसे कुछ पुच्छ या बोल पाती, उस से पहले ही मेरा मोबाइल बजने लगा. मैं और निक्की दोनो ही समझ गये कि कीर्ति का फोन आ रहा है. निक्की ने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और मुझे फोन उठाने का इशारा करने लगी.

मैने निक्की को अंदर आने को कहा और फिर कीर्ति का कॉल उठाया. मेरे कॉल उठाते ही कीर्ति ने मुझे कुछ बोलने का मौका दिए बिना ही अपनी बात कहना सुरू कर दी.

कीर्ति बोली “सॉरी जान, मैं रात को गुस्से मे, तुमको बहुत कुछ उल्टा सीधा बोल गयी थी. प्लीज़ रात की बात के लिए मुझे माफ़ कर दो.”

कीर्ति की इस बात को सुनकर, रात से पहली बार मेरे चेहरे पर मुस्कान आई थी. मैने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “तूने ऐसा कुछ भी नही बोला, जिसके लिए तुझे मुझसे माफी माँगना पड़े. तूने गुस्से मे जो कुछ भी बोला, वो भी मेरे लिए तेरा प्यार ही था, जो गुस्से के रूप मे बाहर निकल रहा था. मुझे तेरी किसी भी बात का, कोई बुरा नही लगा.”

लेकिन कीर्ति को अभी भी इस बात का यकीन नही हो रहा था कि, मुझे उसकी बात का बुरा नही लगा है. इसलिए उसने अपनी बात को फिर से दोहराते हुए कहा.

कीर्ति बोली “मेरी कसम खाकर बोलो कि तुम्हे सच मे मेरी किसी बात का बुरा नही लगा है.”

मैं बोला “क्या बच्चों जैसी बात करती है. कहा तो मुझे तेरी किसी बात का बुरा नही लगा. फिर इसमे कसम खाने वाली बात कहाँ से आ गयी.”

कीर्ति बोली “नही, तुम्हे बुरा लगा है. इसलिए तुम मेरी कसम नही खा रहे हो. यदि बुरा नही लगा होता तो, तुम मेरी कसम ज़रूर खा लेते.”

मैं बोला “ओके बाबा, तेरी कसम, मुझे तेरी किसी बात का कोई बुरा नही लगा. अब तो तू खुश.”

कीर्ति बोली “हाँ, अब ठीक है.”

मैं बोला “अब तू ये बता कि, तू अभी तक सोई क्यो नही.”

कीर्ति बोली “तुमसे किसने कहा कि मैं सोई नही. मैं तो अभी अभी सोकर उठती जा रही हूँ.”

मैं बोला “अब तू झूठ बोल रही है. तेरी बातों से साफ समझ मे आ रहा है कि तू रात भर जागती रही है. क्या अब ये सच जानने के लिए मुझे भी अपनी कसम देनी पड़ेगी.”

कीर्ति बोली “नही जान, कसम देने की कोई ज़रूरत नही है. तुम सही कह रहे हो. मैं रात भर जागती रही हूँ. लेकिन जान, सोए तो तुम भी नही हो. उस रंडी ने हम दोनो की ही रात खराब कर के रख दी है.”

कीर्ति के मूह से फिर प्रिया के लिए गाली सुनकर, मुझे लगा कि कही ये रात की तरह फिर से ना सुरू हो जाए. इसलिए मैने बात का रुख़ बदलते हुए कहा.

मैं बोला “देख तू अब सुबह सुबह फिर से सुरू मत हो. अभी मुझे सोचने दे कि, मुझे यहाँ से निकलने के बाद, कहाँ पर रहना है.”

कीर्ति बोली “इसमे सोचना क्या है. अपने दोस्त अजय से बात कर के देख लो. यदि उसने तुम्हे अपने घर मे रख लिया तो, तुम्हे किसी को भी कोई और वजह बताने की ज़रूरत नही पड़ेगी. तुम सब से ये कह सकते हो की, अजय के कहने पर ही, तुम उसके साथ रह रहे हो.”

कीर्ति का दिमाग़ चाचा चौधरी से भी तेज है, ये तो मैं जानता था और अब उसकी इस बात से ये भी समझ मे आ गया था कि, वो रात भर सिर्फ़ इन्ही सब बातों को सोचती रही है.

लेकिन अभी निक्की मेरे पास ही खड़ी थी. इसलिए मैने अपनी बात को जल्दी से ख़तम करते हुए कीर्ति से कहा.

मैं बोला “ठीक है, मैं अजय से बात करके देखता हूँ. अब तू सो जा, हम दोपहर मे बात करेगे.”

कीर्ति बोली “ओके जान, मुउउहह.”

कीर्ति के फोन रखने के बाद मैने निक्की की तरफ देखा तो, उसकी मुस्कान गायब थी. वो अब तक मेरे समान की पॅकिंग देख चुकी थी और मेरी कीर्ति से हुई बातों को भी सुन चुकी थी.

निक्की को इतना तो समझ मे आ चुका था कि, मैं यहाँ से जा रहा हूँ. लेकिन कहाँ और क्यो जा रहा हूँ, ये बात उसके लिए अभी भी, एक पहेली ही बनी हुई थी. मेरे कॉल रखते ही निक्की ने मुझसे कहा.

निक्की बोली “ये सब क्या है. ये समान की पॅकिंग किस लिए. आप कहाँ जा रहे है और क्यों.”

मैं बोला “मैं यहाँ से जा रहा हूँ. लेकिन कहाँ जा रहा हूँ, आपके इस सवाल का जबाब, अभी मेरे पास भी नही है.”

निक्की बोली “लेकिन क्यों जा रहे है. कल तो आप अच्छे भले थे. फिर रात भर मे ऐसा क्या हो गया. जो आप इतनी सुबह सुबह जा रहे है.”

मैं बोला “कुछ भी नही हुआ. बस अब मेरा मन यहाँ रुकने का नही कर रहा है. इसलिए यहाँ से जा रहा हूँ.”

निक्की बोली “नही, कुछ ना कुछ बात तो ज़रूर हुई है. कीर्ति और आपकी बातों से इतना तो मैं समझ ही गयी हूँ कि यहाँ रात को कुछ हुआ है. ये और बात है कि आप मुझे बताना नही चाहते है. शायद आपकी नज़र मे, मेरी दोस्ती की कोई अहमियत नही है या फिर आपको, अब भी मुझ पर विस्वास नही है.”

अपनी बात कह कर निक्की उदास सी हो गयी. उसका उदासी भरा चेहरा, मुझे सब कुछ बताने पर मजबूर कर रहा था. लेकिन मैं चाहते हुए भी, ना तो उसे कुछ बता सकता था और ना ही उसे अंधेरे मे रख सकता था. इसलिए मैने उसके दिल को राहत पहुचने के लिए उस से कहा.

मैं बोला “आप ग़लत सोच रही है. मेरी नज़रों मे आपकी दोस्ती की बहुत अहमियत है और मुझे आप पर पूरा विस्वास है. लेकिन मैं चाह कर भी, अभी आपको कुछ नही बता सकता. आप मुझे थोड़ा समय दीजिए. मैं आपको सब कुछ बता दूँगा.”

निक्की बोली “ओके, आपको जब ठीक लगे आप मुझे बता दीजिएगा. यदि आप मुझे कुछ ना भी बताएगे, तब भी चल जाएगा. लेकिन ज़रा दादा जी और आंटी के बारे मे तो सोचिए. आपके इस तरह अचानक चले जाने से वो लोग क्या सोचेगे और फिर मेहुल भी तो आपसे इसकी वजह पुछेगा.”

मैं बोला “आप इसकी फिकर मत कीजिए. मैने सब सोच लिया है. दोपहर को जब मैं खाने के लिए आउगा. तब सब से बोल कर जाउन्गा. जिसके बाद किसी के मन मे कोई बात नही रहेगी. लेकिन उसके पहले आपको मेरा एक काम करना होगा.”

निक्की बोली “क्या काम.”

मैने प्रिया वाला मोबाइल उठाया और निक्की के हाथ मे देते हुए कहा.

मैं बोला “जब प्रिया सोकर उठे तो, ये मोबाइल प्रिया को दे देना. कहना कि अब मुझे इसकी ज़रूरत नही है.”

मेरी बात सुनकर निक्की समझ गयी कि, मेरी प्रिया के साथ ही कोई बात हुई है. लेकिन उसके कुछ पुच्छने से पहले ही मैने उस से कहा.

मैं बोला “अभी आप कुछ भी मत सोचिए. मैं आप को जल्दी ही सब कुछ बता दूँगा. तब तक आपका इस बात से अंजान रहना ही ठीक है. आप सिर्फ़ वैसा ही करते जाइए, जैसा मैं आप से कह रहा हूँ.”

निक्की बोली “ओके, जैसी आपकी मर्ज़ी. अब आप रुकिये, मैं आपके लिए चाय नाश्ता लेकर आती हूँ.”

मैं बोला “नही, अब इसकी कोई ज़रूरत नही है. यदि दादा जी और आंटी का ख़याल ना होता तो, मैं दिन का खाना भी यहाँ नही ख़ाता. अब मैं चलता हूँ. दोपहर को खाने पर मिलुगा.”

इतना कहने के बाद मैं, निक्की को वही छोड़ कर, कमरे से बाहर निकल आया. पोर्च से निकलने के बाद जब मेन हॉल मे आया तो, मुझे सीडियों पर कोई साया नज़र आया. मैने पलट कर सीडियों की तरफ देखा तो, वहाँ प्रिया खड़ी थी.

लेकिन रात की प्रिया मे और अभी की प्रिया मे बहुत अंतर था. जहा रात को प्रिया का चेहरा गुस्से मे लाल और आँखों मे मेरे लिए नफ़रत झलक रही थी. वही अभी प्रिया का चेहरा मुरझाया हुआ और आँखे सूजी हुई थी.

प्रिया की आँखों को देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे वो रात भर रोती रही हो और अभी फिर से रोने वाली हो. प्रिया उदासी भरे चेहरे से मेरी तरफ एक टक देखे जा रही थी. मानो कि कहना चाहती हो, मुझे रात की ग़लती के लिए माफ़ कर दो.

रात की प्रिया की बातें मुझे बुरी ज़रूर लगी थी मगर उन बातों को लेकर मेरे मन मे प्रिया के लिए कोई मैल नही था. इसलिए प्रिया की ऐसी हालत देख कर, मेरा मन हुआ कि उस से बात करूँ.

लेकिन अभी बात करने का सही समय नही था और प्रिया को उसकी ग़लती का अहसास कराना भी ज़रूरी था. इसलिए मैं प्रिया को देख कर भी अनदेखा करते हुए, घर से बाहर निकल गया.

बाहर आकर मैने टॅक्सी ली और हॉस्पिटल के लिए निकल पड़ा. लेकिन रास्ते भर मैं सिर्फ़ प्रिया के उदास चेहरे के बारे मे ही सोचता रहा. कहाँ आज प्रिया ने मुझे अपनी सहेली से मिलने के लिए, इतनी तैयारी की थी और कहाँ आज का दिन ही उसके लिए सबसे बुरा साबित हो रहा था.

फिर अचानक मुझे डॉक्टर निशा की बात याद आ गयी कि, प्रिया को हमेशा खुश रखो. ये बात मेरे दिमाग़ मे आते ही मुझे लगने लगा कि, मैं प्रिया के साथ जो कुछ भी करने जा रहा हूँ, वो सरासर ग़लत है.

मगर अब मैं चाह कर भी अपने फ़ैसले से पिछे हटने की स्थिति मे नही था. क्योकि यदि ये बात सिर्फ़ मेरे और प्रिया के बीच मे रही होती तो, मुझे अपना फ़ैसला बदलने के लिए इतना सोचना नही पड़ता.

मगर इस बात मे अब मेरे और प्रिया के अलावा कीर्ति भी जुड़ी हुई थी. जिसे प्रिया की बात से सबसे ज़्यादा चोट पहुचि थी. उसने छोटे से मज़ाक के लिए जब अपनी सहेली को नही छोड़ा था तो, फिर इतनी बड़ी बात के लिए प्रिया को इतनी आसानी से माफ़ कर देने का सवाल ही पैदा नही होता था.

ऐसे मे यदि मैं, कीर्ति की सहमति लिए बिना ही अपना फ़ैसला बदल कर, प्रिया की ग़लती को माफ़ कर देता तो, कीर्ति के दिल को और भी ज़्यादा चोट पहुच सकती थी. इसलिए मुझे कुछ भी करने के पहले कीर्ति की रज़ामंदी लेना ज़रूरी थी.

सारे हालात इतनी जल्दी जल्दी बदल रहे थे कि आगे क्या होगा कुछ भी समझ पाना मेरे लिए मुस्किल हो रहा था. कीर्ति और प्रिया की बातों मे उलझा हुआ मैं, हॉस्पिटल पहुच गया.

मेरी किस्मत ने साथ दिया और अजय मुझे वहाँ चाय पीते हुए मिल गया. मुझे देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. मैं उसके पास पहुचा तो, उसने एक चाय और लेकर मेरी तरफ बढ़ा दी. मैने चाय ली और हंसते हुए कहा.

मैं बोला “क्या हुआ, आज तुम्हारा धंधा पानी बंद है क्या.”

अजय बोला “नही यार, अभी सवारी छोड़ कर आया हूँ और 7 बजे फिर सवारी लेकर जाना है. लेकिन तुम आज इतनी जल्दी कैसे आ गये.”

मैं बोला “तुम से एक ज़रूरी काम था इसलिए जल्दी आ गया. वरना क्या पता तुम से मिल पाता या नही.”

अजय बोला “काम था तो फोन कर लेते. मैं खुद आ जाता या कहीं जाता भी होता तो रुक जाता.”

मैं बोला “मुझे मालूम था कि इस समय तुम मुझे मिल ही जाओगे. इसलिए फोन करने की ज़रूरत नही समझी.”

अजय बोला “अच्छा किया. अब बोलो भी क्या काम है.”

मैं बोला “मुझे अपने रुकने के लिए कोई जगह चाहिए. क्या तुम कहीं मेरे रुकने का इंतेजाम करवा सकते हो.”

अजय बोला “सॉरी यार, मैं इसमे तुम्हारी कोई मदद नही कर सकता.”

अजय के मूह से इतना सॉफ ना सुनकर मुझे बहुत खराब लगा. लेकिन फिर भी मैने ये बात अजय पर जाहिर ना करते हुए कहा.

मैं बोला “कोई बात नही. मैं खुद ही दोपहर मे कोई रुकने की जगह तलाश कर लूँगा.”

मेरी बात सुनकर अजय हँसने लगा. उस समय उसका हँसना मुझे अच्छा तो नही लगा. लेकिन मैं खामोश ही रहा. मुझे खामोश देख कर अजय ने अपनी हँसी रोकते हुए कहा.

अजय बोला “सॉरी, यदि मेरी बात का बुरा लगा हो तो, लेकिन तुमने बात ही ऐसी कर दी थी कि, मुझसे भी कहे बिना ना रहा गया.”

मैं बोला “क्यो, मैने ऐसी क्या बात कर दी. सिर्फ़ ये ही तो कहा था कि मेरे रुकने के लिए किसी जगह का इंतेजाम कर दो.”

अजय बोला “ये ही तो तुमने ग़लत बात की है. तुम जब तक चाहो और जैसे चाहो, बिना किसी रोक टोक के मेरे घर मे रुक सकते हो. फिर तुम्हे अपने रुकने के लिए जगह तलाशने की क्या ज़रूरत थी. क्या मैं तुम्हारा दोस्त नही हूँ.”

मैं बोला “नही ऐसी बात नही थी. असल मे मैं तुम्हे परेशान करना नही चाहता था और पता नही, अभी मुझे यहाँ कितने दिन ऑर रुकना पड़ता है.”

अजय बोला “मैं बोल तो रहा हूँ, तुम जब तक चाहो और जैसे चाहो वहाँ रह सकते हो. तुम्हे वहाँ रोकने टोकने वाला कोई नही है. क्योकि मैं खुद भी उस घर में कभी कभी ही रुकता हूँ. अब यदि इसके बाद भी तुम्हे वहाँ रुकने मे कोई परेसानी है तो, मैं एक काम करता हूँ कि वो घर ही तुम्हारे नाम पर लिख देता हूँ. फिर तो तुम वहाँ रुकोगे ना.”

अजय की इस बात को सुनकर मैं दंग रह गया. जिस जमाने मे लोग अपने दोस्त को अपनी बाइक कुछ देर के लिए देने मे सोचने लगते है. उसी जमाने मे अजय ने सिर्फ़ चन्द दिनो की मुलाकात वाले दोस्त के नाम पर अपना घर कर देने की बात कह दी.

जहा अजय की दरियादिली देख कर मेरा दिल खुशी से भर गया था. वही उसके अनसुलझे राज़ मे एक राज़ और जुड़ गया था. वो उस घर मे कभी कभी ही रुकता है. जिसका मतलब तो यही था कि, अजय का एक बंगलो और भी है. जो शायद इस से भी बड़ा है. इसलिए वो इस घर मे कभी कभी ही रुकता है.

मैं अजय की कही बातों मे खोया हुआ था और अजय मेरे जबाब का इंतजार कर रहा था. मुझे इस तरह सोच मे गुम देख कर अजय ने मुझे टोकते हुए कहा.

अजय बोला “इतना मत सोचो. ये बोलो तुम्हे कब से रुकना है.”

मैं बोला “आज दोपहर को खाने के बाद मैं अपना समान लेकर आ जाउन्गा.”

अजय बोला “समान की तुम चिंता मत करो. तुम कोई समान नही भी लाओगे, तब भी तुम्हारे मतलब की हर ज़रूरी चीज़ तुम्हे वहाँ मिल जाएगी.”

मैं बोला “वो सब तो मैं देख चुका हूँ. फिर भी मेरी पॅकिंग हो चुकी है और अब जब वहाँ रहना ही नही तो, फिर वहाँ अपना समान रखने की ज़रूरत ही क्या है.”

अजय बोला ‘ओके, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी. लेकिन यदि बुरा ना मानो तो, क्या ये जान सकता हूँ कि तुम वहाँ क्यो नही रुकना चाहते.”

मैं बोला “इसमे बुरा मानने की क्या बात है. कल रात को मेरा प्रिया से झगड़ा हो गया. इसलिए अब मैं वहाँ रहना नही चाहता हूँ. बस यदि हो सके तो तुम मुझे दोपहर को वहाँ लेने आ जाओ. जिससे सबको यही लगे कि मैं तुम्हारे कहने पर ही, तुम्हारे साथ रहने जा रहा हूँ.”

अजय बोला “ओके मैं सब समझ गया. मैं तुम्हे लेने आ जाउन्गा और ऐसे लेने आउगा कि, कोई तुम्हे रोकना भी चाहे तो रोक नही पाएगा.”

अभी मेरी और अजय की बात चल ही रही थी कि, अचानक अजय की टॅक्सी का हॉर्न बजने लगा. हम दोनो ने उस तरफ देखा तो, वहाँ वो ही नर्स खड़ी थी. जिसने मेरे बर्तडे वाली सुबह मुझे रोनी सी सूरत मे अंकल के पास बैठे देखा था.

मैने उसकी तरफ देखा तो, उसकी नज़र भी मेरे उपर पड़ी. वो बड़े गौर से मुझे देखने लगी. शायद मुझे पहचानने की कोसिस कर रही थी कि, उसने मुझे कहाँ देखा है. क्योकि उस दिन के बाद से मैं रात को हॉस्पिटल मे रुका ही नही था. जिस वजह से फिर दोबारा मेरा उस से सामना नही हुआ था.

अजय ने उस नर्स को अपनी टॅक्सी के पास खड़े देखा तो, मुझसे कहा.

अजय बोला “लो, मेरी सवारी आ गयी. मैं अब चलता हूँ. दोपहर को कितने बजे मैं तुम्हे वहाँ लेने पहुचू.”

मैं बोला “मैं 12 से 2 बजे के बीच मे वही रहूँगा. इस बीच तुम कभी भी आ जाना.”

अजय बोला “ओके, मैं ठीक 1 बजे वहाँ पहुच जाउन्गा. बाइ.”

मैं बोला “बाइ.”

इसके बाद अजय अपनी टॅक्सी लेकर वहाँ से चला गया. मैने टाइम देखा तो 7:15 बज चुके थे. मैने मेहुल को कॉल करके नीचे आने को कहा. मेहुल के नीचे आने पर मैने उस से कहा.

मैं बोला “तुम कितने बजे तक सोकर उठ जाओगे.”

मेहुल बोला “क्यो क्या हुआ. क्या तुम्हे कहीं जाना है.”

मैं बोला “नही, मुझे कही नही जाना. लेकिन तुमको रात रुकते हुए बहुत दिन हो गये है. आज से रात को मैं रूकुगा.”

मेहुल बोला “इसकी क्या ज़रूरत है. जैसा चल रहा है, वैसा चलने देते है.”

मैं बोला “मैने तुम्हारी सलाह नही माँगी. मैने कहा कि आज से रात को मैं रूकुगा, मतलब कि मैं ही रूकुगा..”

मेहुल बोला “अच्छा मेरे बाप, तू ही रात को रुकना. मैं 2 बजे सोकर उठुगा. उसके बाद तैयार होकर 3 बजे तक यहाँ आ जाउन्गा. अब तुझे और कुछ बोलना है या मैं जाउ.”

मैं बोला “हाँ, तुझे एक बात और बताना थी. आज से मैं राज के घर मे नही रहुगा.”

मेरी बात सुनकर मेहुल चौक गया. उसने सवालिया नज़रों से मेरे चेहरे की तरफ देखा और फिर थोड़ा चिंतित होकर पुछा.

मेहुल बोला “क्यो क्या हुआ. क्या वहाँ किसी ने तुझसे कुछ कहा है.”

मैं बोला “नही, मुझे किसी ने कुछ नही कहा.”

मेहुल बोला “तो फिर तू वहाँ क्यो नही रहेगा और यदि वहाँ नही रहेगा तो फिर तू कहाँ रहेगा.”

मैं बोला “यहाँ मेरा एक दोस्त है अजय. वो बहुत दिन से अपने साथ रुकने की ज़िद कर रहा था, इसलिए अब कुछ दिन मैं उसके साथ रहुगा.”

लेकिन मेरी बात पर मेहुल को विस्वास नही हो रहा था और उसे अब भी किसी बात की आशंका थी. उसने फिर से मुझसे पुछा.

मेहुल बोला “अबे यहाँ तेरा कोई दोस्त कहाँ से आ गया. मुझे चलाने की कोशिश मत कर. सच सच बोल क्या हुआ. यदि तुझे राज के घर मे किसी ने कुछ उल्टा सीधा बोला है तो, हम अभी के अभी उनका घर छोड़ देगे. यहाँ हमारे रुकने के लिए होटेल की कमी नही है.”

मैं बोला “तू कुछ ज़्यादा ही सोचने लगा है. कभी कुछ सही सोच पाना तेरे बस की बात नही है. इसलिए तू अपने दिमाग़ को ज़ोर देना बंद कर दे. मैने जो कुछ कहा है, सच कहा है. राज के घर के सभी लोग अच्छे है. वो भला मुझे क्यो कुछ कहने लगे.”

मेहुल बोला “तू सच बोल रहा है ना.”

मैं बोला “और कितनी बार बोलूं कि मैं सच बोल रहा हूँ. यदि तुझे अब भी मुझ पर यकीन नही है तो, दोपहर को मैं अपने उस दोस्त से तुझे मिलवा भी दूँगा. तब तो तू यकीन करेगा ना.”

मेहुल बोला “जाने दे, मुझे किसी से नही मिलना. तुझे जो दिखाई दे, तू वो कर, बस इतना याद रख, यदि तेरी बात ग़लत निकली तो मुझसे बुरा कोई नही होगा.”

मैं बोला “तुझसे बुरा कोई है भी नही. अब मेरा दिमाग़ मत खा और यहाँ से जा. मुझे अंकल के पास जाने मे देर हो रही है.”

मेरी बात सुनकर, मेहुल ने मुझे गुस्से मे घूर कर देखा, लेकिन फिर बिना कुछ बोले ही मूड कर सीधा चला गया.

मेहुल के जाने के बाद मैं अंकल के पास आ गया. मेरे पहुचते ही अंकल ने पापा के बारे मे पुछा तो, मैने कह दिया कि जब मैं यहाँ आ रहा था, तब तक वो सोकर नही उठे थे.

तब अंकल ने बताया कि पापा की फ्लाइट 9:30 बजे की है और वो जाने से पहले यहाँ आएगे. इसके बाद अंकल पापा के बारे मे ही यहाँ वहाँ की बात करते रहे. मुझे पापा के बारे मे बातें करना अच्छा नही लग रहा था. मगर अंकल की वजह से मजबूरी मे मुझे बातें करना पड़ रही थी.

इन्ही बातों के चलते, अंकल ने बताया कि पापा को प्रिया बहुत पसंद आई है और वो प्रिया से तुम्हारी शादी के बारे मे सोच रहे है. ये बात तो मुझे प्रिया से पता चल चुकी थी. फिर भी मैं अंजान बने हुए, अंकल से सारी बातें सुनते जा रहा था.

इन्ही बातों के चलते 8 बज गये और थोड़ी ही देर बाद पापा आ गये. वो वापस जाने से पहले अंकल से मिलने आए थे. अंकल से उनकी थोड़ी बहुत बात हुई और फिर वो अपनी फ्लाइट पकड़ने के लिए एरपोर्ट रवाना हो गये.

पापा के जाने के बाद बाकी का समय ऐसे ही गुजरा और फिर 12 बजे राज आ गया. राज से मेरी थोड़ी बहुत बातें हुई और इन्ही बातों के चलते मैने राज को ये भी बता दिया कि आज मैं अजय के घर जा रहा हूँ.

उसने भी मेहुल की तरह मुझसे से सवाल जबाब किए. मैने उसे भी वही सब कहा, जो मेहुल को कहा था. अपनी बातों का जबाब मिल जाने के बाद राज अंकल के पास चला गया और मैं टॅक्सी लेकर राज के घर के लिए निकल पड़ा.
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09-09-2020, 02:16 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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सुबह के बाद से मेरी कीर्ति से बात नही हुई थी. शायद वो अभी तक सो ही रही थी और आज सनडे की वजह से छोटी माँ ने भी उसे जगाने की ज़रूरत ना समझते हुए, उसे इतनी देर तक सोने दिया होगा.

मुझे इस समय कीर्ति की बहुत याद आ रही थी और मेरा मन उस से बात करने का कर रहा था. लेकिन देर सुबह उसके सोने की वजह से, मैं उसकी नींद मे खलल डालना भी नही चाहता है.

थोड़ी देर मैं अपने दिल को मनाता रहा. लेकिन जब मेरा दिल नही माना तो, मैने कीर्ति को कॉल लगा ही दिया. मगर कीर्ति ने कॉल नही उठाया. मैं समझ गया कि वो गहरी नींद मे है. इसलिए फिर मैने उसे दोबारा कॉल नही लगाया.

मगर थोड़ी ही देर बाद उसका कॉल आने लगा. उसका कॉल आते देख मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. मैने खुशी खुशी कॉल उठाते हुए, उसके कुछ बोलने से, पहले ही कहा.

मैं बोला “गुड मॉर्ंनिंग, तो मेम साहिब की सुबह हो गयी.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति को भी हँसी आ गयी और उसने खुशी मे चहकते हुए कहा.

कीर्ति बोली “वाउ, क्या बात है. आज तो बड़े मूड मे लग रहे हो.”

लेकिन अचानक ना जाने मुझे क्या सूझी कि, उसे तंग करने के लिए, मैने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

मैं बोला “मैं कोई मूड ऊूद मे नही हूँ और ना ही ये कोई मॉर्ंनिंग है. घड़ी देखो, 12:30 बज गया है. ये क्या सोकर उठने का कोई समय है. तुम अपने आपको आख़िर समझती क्या हो.”

अचानक से मेरा बदला हुआ मूड देख कर कीर्ति की हँसी थम गयी और वो सहम कर रह गयी. उसे लगा कि, मैं सच मे गुस्से मे हूँ और उसके देर से उठने की वजह से नाराज़ हूँ. इसलिए उस से कुछ भी सफाई देते ना बना और वो चुप ही रही.

उसके इस तरह डर जाने से मुझे हँसी आ रही थी. मगर मैने अपनी हँसी को छुपाते हुए फिर कहा.

मैं बोला “मैं क्या पागल हूँ, जो इतनी देर से तेरे कॉल का वेट कर रहा हूँ. यदि तेरे से सुबह उठा नही जाता है तो, तू रात को जागती क्यो है. क्या मैने तेरे से, रात को जागने को कहा था.”

मुझे इतने ज़्यादा गुस्से मे देख कीर्ति ने बड़ी धीमी आवाज़ मे कहा.

कीर्ति बोली “सॉरी, ग़लती हो गयी. अब दोबारा ऐसा नही होगा.”

उसकी ऐसी हालत देख मुझे हँसी आ रही. फिर भी मैने अपनी हँसी रोकेने की कोशिस करते हुए कहा.

मैं बोला “बस खाली सॉरी, और जान कौन बोलेगा.”

मगर ये कहते ही मेरी हँसी छूट गयी और मैं हँसने लगा. मुझे हंसते देख कीर्ति समझ गयी कि, मैं उसे तंग कर रहा था. वो मुझे दम देने वाले अंदाज मे कहा.

कीर्ति बोली “आए तुमने मुझे बकरा बनाया. अब देखो मैं तुम्हारे साथ क्या करती हूँ.”

मगर मेरी हँसी नही रुक रही थी. मैने हंसते हुए कहा.

मैं बोला “बकरा नही, तुझे बकरी बनाया है.”

ये कह कर मैं फिर हँसने लगा. जिस पर कीर्ति किसी छोटे बच्चे की तरह कुन्मूनाते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली “हूँ हूँ..जान तुम बहुत गंदे हो. मुझे नींद से जगाया और फिर झूठा गुस्सा दिखा कर डरा दिया.”

मैं बोला “सॉरी, मुझे तेरी बहुत याद आ रही थी, इसलिए तुझे नींद से जगा दिया.”

कीर्ति बोली “ह्म्‍म्म, बहुत अच्छा किया. वरना पता नही कब तक सोती रहती.”

मैं बोला “यदि तेरी नींद पूरी नही हुई हो तो तू सो. हम बाद मे बात कर लेगे.”

कीर्ति बोली “नही जान. मेरी नींद पूरी हो गयी है.”

मैं बोला “लेकिन अब मैं 3 बजे के बाद ही फ्री हो पाउन्गा.”

कीर्ति बोली “क्यो, अभी क्या काम है.”

मैने उसे अजय से हुई सारी बात बता दी और ये भी बता दिया कि अब पापा वहाँ पहुचने वाले होगे. हमारी बात चल ही रही थी कि, राज का घर आ गया. मैने टॅक्सी से उतरने के बाद कीर्ति से कहा.

मैं बोला “ठीक है, अब तू फोन रख. मैं हॉस्पिटल से वापस लौटने के बाद तुझे कॉल करूगा.”

कीर्ति बोली “ओके जान, मुउउहह.”

मैं बोला “मुउउहह.”

इसके बाद कीर्ति ने कॉल रख दिया. कीर्ति से बात करके मेरे दिमाग़ को एक अजब ही ताज़गी मिली थी और मेरा सारा तनाव दूर हो गया था. मैने खुशी खुशी राज के घर के अंदर कदम रखा.

राज के घर के अंदर पहुचते ही मेरा सबसे पहले दादा जी से सामना हुआ. वो डाइनिंग टेबल पर अकेले ही बैठे थे. उन्हो ने मुझे देखते ही कहा.

दादा जी बोले “क्या बात है. आज तुम्हे आने मे बहुत देर हो गयी.”

मैं बोला “दादू, राज से बात करने मे देर हो गयी.”

दादा जी बोले “चलो कोई बात नही. जाओ जल्दी से फ्रेश होकर आ जाओ. सब तुम्हारा ही वेट कर रहे थे.”

मैं बोला “लेकिन यहाँ तो आप अकेले ही हो.”

दादा जी बोले “सब यहीं है. तुम फ्रेश होकर आओ. तब तक सब आ जाएगे.”

दादा जी को अकेले देख कर, मुझे अपनी बात कहने का ये सही मौका लगा. मैने दादा जी से कहा.

मैं बोला “दादू, आपसे एक बात की इजाज़त लेनी थी.”

दादा जी बोले “हाँ बोलो. क्या बात है.”

मैं बोला “यहाँ मेरा एक दोस्त है. वो कुछ दिन के लिए मुझे अपने साथ रुकने को बोल रहा है. क्या मैं कुछ दिन उसके साथ, उसके घर मे रुक सकता हू.”

दादा जी बोले “क्यो बेटा, क्या तुम्हे यहाँ कोई परेसानी है.”

मैं बोला “नही दादू, मुझे यहाँ किसी भी तरह की कोई परेसानी नही है.”

दादा जी बोले “तो फिर तुम्हे यहाँ से जाने की ज़रूरत क्या है. तुम्हे यहाँ कोई रोक टोक तो है नही. तुम जब चाहो उसे यहाँ बुला सकते हो या फिर खुद उस से मिलने जा सकते हो.”

मैं बोला “दादू, यही बात मैने भी उस से कही थी. लेकिन वो चाहता है कि, मैं जब यहाँ पर हूँ तो, कुछ दिन उसके साथ भी रहूं. वो खुद आपसे इसकी इजाज़त लेने आ रहा है”

दादा जी बोले “मैं तो तुम्हे उसके साथ रहने की इजाज़त दे दूँगा. मगर क्या घर के बाकी लोग इसके लिए तैयार हो जाएगे. क्या वो तुम्हे यहाँ से जाने देगे.”

मैं बोला “दादू राज से तो मैने पुच्छ लिया है. अब बाकी लोगों से आप कहोगे तो, वो भी तैयार हो जाएगे.”

दादा जी बोले “ठीक है, तुम्हारे दोस्त को आने दो. फिर देखते है कि क्या किया जा सकता है. अब तुम जाओ और जल्दी से फ्रेश होकर आओ.”

मैं बोला “ओके दादू.”

इतना कह कर मैं अपने कमरे मे आ गया. कमरे मे आकर मैने मूह हाथ धोया और फिर वापस डाइनिंग रूम मे आ गया. डाइनिंग रूम मे आते ही मैने एक नज़र सब पर डाली.

डाइनिंग टेबल की बीच वाली सीट पर हमेशा की तरह दादा जी बैठे हुए थे. दादा जी के लेफ्ट वाली सीट मे पहले आंटी, फिर रिया बैठी थी. रिया के बाद वाली सीट खाली थी. वो प्रिया की सीट थी. उसके बाद निक्की बैठी हुई थी.

मैं हमेशा की तरह दादा जी की राइट वाली सीट मे बैठ गया. मेरे बैठते ही दादा जी ने रिया और निक्की से कहा कि, दोनो मे से कोई जाकर प्रिया को ले लाओ.

दादा जी की बात सुनते ही निक्की उठी और प्रिया को लेने चली गयी. कुछ ही देर बाद मुझे प्रिया और निक्की आते दिखाई दी. लेकिन प्रिया को देखते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गये.
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09-09-2020, 02:19 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मैं बोला “दादू राज से तो मैने पुछ लिया है. अब बाकी लोगों से आप कहोगे तो, वो भी तैयार हो जाएँगे.”

दादा जी बोले “ठीक है, तुम्हारे दोस्त को आने दो. फिर देखते है कि क्या किया जा सकता है. अब तुम जाओ और जल्दी से फ्रेश होकर आओ.”

मैं बोला “ओके दादू.”

इतना कह कर मैं अपने कमरे मे आ गया. कमरे मे आकर मैने मूह हाथ धोया और फिर वापस डाइनिंग रूम मे आ गया. डाइनिंग रूम मे आते ही मैने एक नज़र सब पर डाली.

डाइनिंग टेबल की बीच वाली सीट पर हमेशा की तरह दादा जी बैठे हुए थे. दादा जी के लेफ्ट वाली सीट मे पहले आंटी, फिर रिया बैठी थी. रिया के बाद वाली सीट कहली थी. वो प्रिया की सीट थी. उसके बाद निक्की बैठी हुई थी.

मैं हमेशा की तरह दादा जी की राइट वाली सीट मे बैठ गया. मेरे बैठते ही दादा जी ने रिया और निक्की से कहा की, दोनो मे से कोई जाकर प्रिया को ले लाओ.

दादा जी की बात सुनते ही निक्की उठी और प्रिया को लेने चली गयी. कुछ ही देर बाद मुझे प्रिया और निक्की आते दिखाई दी. लेकिन प्रिया को देखते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गये.

प्रिया एक शॉल ओढ़े हुए थी और निक्की का सहारा लेकर धीरे धीरे सीडियाँ उतार रही थी. वो बहुत कमजोर लग रही थी और उसका चेहरा बहुत ज़्यादा मुरझाया हुआ था. ऐसा लग रहा था, जैसे वो बरसों से बीमार हो.

इतना तो मैं समझ गया था कि, प्रिया की ये हालत रात की बातों की वजह से हुई है और इसके लिए मेरी सुबह की बेरूख़ी भी कहीं ना कहीं ज़िम्मेदार है. मगर ये सब इतनी जल्दी हो जाएगा. इसका मुझे ज़रा भी अंदाज़ा नही था.

प्रिया धीरे धीरे सीडियाँ उतरते हुए चली आ रही थी. तभी अचानक मुझे कुछ सूझा और मैने अपनी सीट से उठते हुए दादा जी से कहा.

मैं बोला “दादू, एक मिनिट मैं अभी आता हूँ”

दादा जी बोले “क्या हुआ. ये अचानक कहाँ जा रहे हो.”

मैं बोला “बस एक मिनिट. मुझे एक ज़रूरी कॉल करने की याद आ गयी और मोबाइल मेरे कमरे मे ही रखा है. मैं अभी कॉल करके आता हूँ.”

ये कह कर मैं अपने कमरे मे आ गया. कमरे मे आकर सबसे पहले मैने कीर्ति से बात की, फिर उसके बाद अजय को कॉल लगा कर, उसे यहाँ के सारे हालत बताए. अजय से बात करने के बाद, मैं वापस डाइनिंग रूम मे आ गया.

जब मैं डाइनिंग रूम मे पहुचा तो, प्रिया दादा जी के पास, मेरी वाली सीट पर बैठी थी. मैं जाकर उसके बाजू वाली सीट पर बैठ गया. फिर मैने बड़ी गौर से प्रिया की तरफ देखा. वो धीरे धीरे छोटे, छोटे निबाले बनाकर कर ऐसे खा रही थी, जैसे कि कोई उसे ज़बरदस्ती खिला रहा हो.

मुझे खाना ना खाते देख, दादा जी ने मुझे खाना खाने को कहा तो मैने दादा जी से कहा.

मैं बोला “दादू, ये प्रिया को अचानक क्या हो गया. क्या प्रिया की तबीयत खराब है.”

दादा जी बोले “हाँ बेटा, आज सुबह अचानक ही प्रिया की तबीयत खराब हो गयी है. असल मे प्रिया को ...........”

दादा जी अभी कुछ कह पाते की, प्रिया खाना खाते खाते रुक रुक गयी और दादा जी की बात को बीच मे ही काटते हुए, बड़ी ही दयनीय आवाज़ मे कहने लगी.

प्रिया बोली “दादू प्लीज़, मैने कहा ना, मुझे कुछ नही हुआ. कल स्कूल मे ज़्यादा उच्छल कूद कर लेने की वजह से, तबीयत खराब हुई है. कुछ देर आराम करूगी तो, बिल्कुल ठीक हो जाउन्गी.”

शायद दादा जी प्रिया की दिल की बीमारी के बारे मे बताने वाले थे और प्रिया नही चाहती थी की, मुझे उसकी बीमारी के बारे मे पता चले, इसलिए उसने दादा जी की बात काट दी थी.

लेकिन प्रिया का बात करने का तरीका उसकी बीमार हालत को बयान करने के लिए बहुत था. जिसे देख कर दादा जी ने प्रिया को समझाते हुए कहा.

दादा जी बोले “बेटी, तुझे मालूम है कि, ज़्यादा उच्छल कूद तेरी सेहत के लिए अच्छी नही है. फिर तू जान कर भी ऐसा क्यो करती है.”

प्रिया जिस बात को करने से बचना चाह रही थी. दादा जी वही बात किए जा रहे थे. प्रिया ने फिर बात को संभालते हुए कहा.

प्रिया बोली “ओके दादू, अब दोबारा ऐसा नही करूगी. अब आप चुप चाप खाना खाइए.”

ये कह कर प्रिया दादा जी ज़ुबान पर ताला लगाना चाहती थी. मगर मैं प्रिया की बीमारी से अंजान नही था. इसलिए मैने बात को कुरेदते हुए कहा.

मैं बोला “लेकिन दादू, इस उमर मे उच्छल कूद करने से सेहत अच्छी रहती है. फिर आप प्रिया को ऐसा करने से क्यो रोक रहे है.”

ये बात मैने दादा जी के मूह से प्रिया की बीमारी जानने के लिए कही थी और मैं अपनी कोशिश मे कुछ हद तक सफल भी हुआ. दादा जी कहने लगे.

दादा जी बोले “बेटा तुम्हारी बात सही है. लेकिन बात दरअसल ये है कि, प्रिया..........”

दादा जी अभी अपनी बात पूरी कर पाते कि, उस से पहले ही प्रिया ने चिड़चिड़ाते हुए कहा.

प्रिया बोली “दादू प्लीज़, आप लोग इस बात को यही ख़तम कीजिए, नही तो मैं अभी अपने कमरे मे वापस चली जाउन्गी.”

दादा जी बोले “ओके, अब कोई इस बारे मे बात नही करेगा. लेकिन तू गुस्सा मत कर और खुशी ख़ुसी खाना खा.”

प्रिया ने अपनी हालत का फ़ायदा उठाते हुए, दादा जी को बात पूरी करने से रोक दिया था और अब मुझे भी इस बात को ज़्यादा कुरेदना अच्छा नही लगा और मैं भी चुप चाप खाना खाने लगा.

अभी हम खाना खा ही रहे थे कि, तभी एक नौकर ने आकर कहा कि, कोई अजय साहब आए है. अजय का नाम सुनते ही, मैं खाने को बीच मे ही छोड़ कर अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ. मुझे खाने से बीच मे उठते देख, दादा जी ने मुझसे कहा.

दादा जी बोले “बेटा तुम्हे खाना छोड़ कर उठने की कोई ज़रूरत नही है. अजय तुम्हारा दोस्त है. इस नाते वो भी इस घर का सदस्य ही हुआ. उसे यहीं बुला लेते है. सब से उसका परिचय भी हो जाएगा और बाकी बातें भी हो जाएगी.”

मैं बोला “ओके दादू, जैसी आपकी मर्ज़ी.”

ये कह कर मैं वापस अपनी सीट पर बैठ गया. दादा जी ने नौकर से, अजय को डाइनिंग रूम मे ले आने को कहा. फिर सब को बताया कि, अजय मेरा दोस्त है और कुछ दिन के लिए, मुझे अपने साथ, अपने घर ले जाना चाहता है.

जब दादा जी अजय के बारे मे बता रहे थे. तब सब दादा जी की ही तरफ देख रहे थे. मगर प्रिया चुप चाप खाना खा रही थी. मेरा सारा ध्यान प्रिया की तरफ ही था. मैं ये देखना चाहता था कि, मेरे जाने की बात सुनकर, प्रिया पर क्या असर पड़ता है.

जब तक दादा जी अजय के बारे मे बताते रहे. तब तक प्रिया खाना खाने मे ऐसे मगन थी. जैसे उसे किसी की कोई बात सुनाई ही ना दे रही हो. मगर जैसे ही दादा जी अजय के साथ मेरे जाने की बात कही, वैसे ही प्रिया के मूह मे जाता निबाला बीच मे ही रुक गया.

उसने निबाला धीरे से अपनी थाली मे ही वापस रख दिया. मगर अपना सर उठा कर किसी की तरफ नही देखा. बस एक तक अपनी थाली को ही घूरे जा रही थी. उसे ये बात समझ मे आ चुकी थी कि, मैं कल की बात की वजह से ही अजय के साथ जा रहा हूँ.

वो थोड़ी देर अपनी थाली को घूरती रही. फिर उसने अपना सर उठा कर दादा जी की तरफ देखा. शायद वो कुछ बोलना चाहती थी. मगर तभी अजय अंदर आ गया और उसने दादा जी से नमस्ते की तो, सबका ध्याना अजय की तरफ चला गया.

आज अजय का पहनावा रोज से ज़रा हट कर था. वो इस समय जीन्स टी-शर्ट मे किसी फिल्मी हीरो से कम नही लग रहा था. उसकी पहनी हुई हर चीज़ ब्रॅंडेड कंपनी की थी. जो उसकी असली हैसियत का बखान कर रहा था. एक पल के लिए तो सब के साथ साथ, मैं और निक्की भी अजय के इस नये रूप मे देखते रह गये थे.

दादा जी ने अजय को बैठने को कहा तो, वो उनके सामने की सीट पर बैठ गया. दादा जी ने उसे खाने के लिए भी कहा मगर उसने मना कर दिया. दादा जी ने अजय का सबसे परिचय कराया.

इसके बाद अजय दादा जी मेरे बारे मे बात करने लगा. जिसके जबाब मे दादा जी ने उस से भी वही सब बातें की, जो मुझसे की थी, मगर आख़िर मे अजय ने दादा जी से, मुझे अपने साथ ले जाने की इजाज़त हासिल कर ही ली.

इन्ही बातों के चलते सब का खाना खाना हो चुका था. प्रिया अभी भी सर झुकाए खामोश बैठी थी. कुछ देर बाद अजय ने मुझसे चलने को कहा तो, मैने कहा मैं अपना समान ले लूँ, फिर चलता हूँ.

ये कह कर मैं उठने ही वाला था कि, प्रिया ने अपना हाथ टेबल के नीचे किया और मेरी कलाई पकड़ ली. मैने प्रिया की तरफ देखा. लेकिन वो अभी भी सर झुकाए बैठी थी.

मैने अपना हाथ छुड़ाने की कोसिस की तो, प्रिया ने और भी मजबूती से मेरा हाथ पकड़ लिया. आख़िर मे मैने अपने दूसरे हाथ का सहारा लेकर, प्रिया से अपनी कलाई को छुड़ाया और उठ कर अपने कमरे मे आ गया.

मेरी पॅकिंग तो पहले से ही थी. मगर मैं कुछ देर बाद कमरे से निकलना चाहता था. ताकि सबको यही लगे कि मैने अभी पॅकिंग की है. मगर मैं ये भी अच्छी तरह से जानता था की, मेरे पास ज़रूर कोई ना कोई आएगा. इसलिए मैं बॅग खोल कर अपना समान इधर उधर कर, पॅकिंग करने का नाटक करने लगा.

मेरा सोचना सही निकला था. कुछ ही देर बाद मेरे पास निक्की आ गयी. लेकिन निक्की को पॅकिंग के बारे मे पहले से ही पता था. इसलिए मैने समान पॅकिंग का, नाटक करना बंद किया और बैठ गया. निक्की ने आते ही मुझे प्रिया वाला मोबाइल वापस दिया. उस मोबाइल को देखते ही मैने निक्की से कहा.

मैं बोला “क्या हुआ, आप मुझे ये मोबाइल वापस क्यों कर रही है. क्या प्रिया ने इसे लेने से मना कर दिया.”

निक्की बोली “मना तो वो तब करती. जब मैं ये मोबाइल उसको देती. मैने ये मोबाइल उसको दिया ही नही.”

मैं बोला “क्यो.”

निक्की बोली “सुबह जब मैं आपके कमरे से निकली, तभी प्रिया मुझे सीडियों पर खड़ी मिल गयी थी. उसका चेहरा मुरझाया हुआ और आँखे सूजी हुई थी. ऐसा लग रहा था, जैसे वो रात भर रोती रही है.”

“उसका उदासी भरा चेहरा देख कर, मैने उस से पुछा भी कि, उसे क्या हुआ है. मगर उसने बस इतना कहा कि, मुझे बहुत बेचेनी हो रही है. इसके बाद मैं उसको, उसके रूम मे ले गयी और उसको आराम करने का बोल कर आ गयी.”

“मगर 9 बजे जब मैं उसको नाश्ते के लिए बुलाने गयी. तब देखा कि उसे बहुत तेज बुखार है. मैने फ़ौरन आकर आंटी को बताया और उन्हो ने निशा दीदी को बुलाया. निशा दीदी ने आकर प्रिया को देखा और कुछ दवाइयाँ देकर, उसको आराम करने की सलाह दी है. इसलिए उसे ये मोबाइल वापस करने की, मेरी हिम्मत ही नही हुई.”

मैं बोला “आपने ये बहुत अच्छा किया. अभी प्रिया को मोबाइल वापस करने का, ये सही समय नही है. अब मैं खुद ही कोई अच्छा सा समय देख कर, उसे ये मोबाइल वापस कर दूँगा.”

ये कहते हुए मैने निक्की के हाथ से मोबाइल वापस ले लिया. मगर निक्की का मूड कुछ ठीक नही लग रहा था तो मैने उस से कहा.

मैं बोला “क्या हुआ. क्या आपको मेरी बात सही नही लगी.”

निक्की बोली “आपकी बात सही है. लेकिन आप जो कर रहे है. क्या वो करना ज़रूरी है.”

मैं बोला “मैं समझा नही आप क्या कहना चाहती है.”

निक्की बोली “क्या प्रिया की ग़लती की, उसे इतनी बड़ी सज़ा देना ज़रूरी है.”

मैं बोला “आपको ये क्यो लग रहा है कि, मैं प्रिया को उसकी ग़लती की सज़ा दे रहा हूँ. क्या प्रिया ने आपसे इस बारे मे कुछ कहा है.”

निक्की बोली “नही प्रिया ने मुझसे कुछ नही कहा. लेकिन आपके अचानक इस तरह से जाने और प्रिया के इस तरह से बीमार पड़ जाने से, सॉफ समझ मे आता है कि, प्रिया से कोई ग़लती हुई है.”

मैं बोला “नही, ना तो प्रिया ने कोई ग़लती की है और ना ही मैं उसे कोई सज़ा दे रहा हूँ. मैं तो बस वो ही कर रहा हूँ. जो प्रिया ने मुझसे करने को कहा था. अब इस से ज़्यादा, मैं अभी आपको कुछ नही बता सकता.”

निक्की बोली “मैं कुछ जानने के ज़िद भी नही कर रही हूँ. बस आपको ये समझाना चाहती हूँ कि, प्रिया ने चाहे जो भी ग़लती की हो. मगर अभी वो अपनी उस ग़लती के लिए दिल से पछ्ता रही है. यदि आप यहाँ रुक जाते है तो, मुझे यकीन है कि, वो आप से अपनी ग़लती के लिए माफी भी माँग लेगी.”

मैं बोला “मैं जानता था कि, प्रिया को इस बात का अहसास ज़रूर होगा. मगर अब मेरा यहाँ रुक पाना मुश्किल है.”

निक्की बोली “आप समझते क्यो नही, आपका जाना प्रिया को तोड़ कर रख देगा. वो आपका जाना सह नही पाएगी.”

मैं बोला “समझना तो ये बात प्रिया को चाहिए कि, आज नही तो कल मुझे जाना ही है. मेरे साथ ना तो उसका कोई मेल है और ना ही उसका कोई भविष्य है. इसलिए प्रिया को समय रहते प्रिया को खुद को संभाल लेना चाहिए.”

मेरी बात सुनकर निक्की चुप हो गयी. क्योकि मेरी बात सच थी. मगर प्रिया की हालत निक्की को मुझसे बहस करने के लिए मजबूर कर रही थी. थोड़ी देर चुप रहने के बाद निक्की ने भावुक होते हुए कहा.

मेरी बात की सच्चाई ने निक्की को कुछ देर के लिए चुप ज़रूर करा दिया. मगर प्रिया की हालत या प्रिया के दिल मे छुपे प्यार ने. निक्की को मुझसे बहस करने के लिए फिर मजबूर कर दिया. निक्की ने भावुक होते हुए कहा.

निक्की बोली “आप ठीक कहते हो पुनीत सर. प्रिया को समझना चाहिए कि, किसी को सिर्फ़ प्यार करने से, वो अपना नही हो जाता. किसी पर जान देने से, वो सच मे जान नही बन जाता. ये तो किस्मत की बात होती है कि, किसको किसका प्यार नसीब होता है.”

“मगर वो बेचारी इन सब बातों को क्या समझे. वो तो सपनो की दुनिया मे रहती है. वो इस बात को जान कर भी अंजान है कि, सपना चाहे अच्छा हो या बुरा. सपने की किस्मत तो सिर्फ़ टूट जाना होती.”

“अब यदि उसने एक ऐसे लड़के से प्यार करने का सपना सज़ा लिया है. जो उसे प्यार तो क्या, अपनी दोस्ती के काबिल भी नही समझता है तो, उसे इस सपने को देखने की सज़ा ज़रूर मिलनी चाहिए.”

“अब उसने आप से प्यार करने का सपना देखा है तो, सज़ा देने का हक़ भी आपका ही बनता है. आप उसे इस सपने को देखने के गुनाह की सज़ा ज़रूर देना और सज़ा भी ऐसी देना कि, वो ज़िंदगी मे फिर कभी किसी को प्यार करने का सपना देखने की हिम्मत ना कर सके.”

निक्की अपने दिल की सारी भडास निकाल कर, बिना मेरा जबाब सुने चली गयी. उसके दिल मे जो भी आया, वो मुझे बक कर गयी थी. एक तरह से, उसने मुझे बड़े प्यार से, जली कटी सुनाई थी और मैं खामोशी से सुनता रहा. उसने मुझे मखमली जूतो से मारा और मैं ख़ाता रहा.

उस समय मेरे खामोश रहने का मतलब ये नही था कि, मेरे पास निक्की की बातों का कोई जबाब नही था. बल्कि मैं खामोश इसलिए था क्योकि, उस समय निक्की जो भी बोल रही थी, वो उसके दिल मे प्रिया के लिए छुपा प्यार था. यही वजह थी कि, मैने निक्की की किसी बात का विरोध नही किया और खामोशी से सुनता रहा.

निक्की मेरे कमरे से जा चुकी थी और मुझे भी कमरे मे आए बहुत देर हो चुकी थी. मैने अपना बॅग उठाया और कीर्ति से बात करने के लिए, जैसे ही मोबाइल निकाला दरवाजे के सामने प्रिया नज़र आ गयी.

मैने मोबाइल अपनी जेब मे रखा और प्रिया की तरफ देखने लगा. मुझे लगा कि वो अंदर आएगी मगर वो दरवाजे पर ही खड़ी, उदासी भरी नज़रों से मुझे देखती रही.

वो मुझे जाने से रोकने या अपनी ग़लती की माफी माँगने आई थी. मगर शायद उसको समझ मे नही आ रहा था कि, वो अपनी बात कैसे कहे. थोड़ी देर मैं प्रिया के अंदर आने का वेट करता रहा. लेकिन जब वो अंदर नही आई तो, मैने उस से कहा.

मैं बोला “वहाँ क्यो खड़ी हो. कोई बात करना है तो, यहाँ बैठ कर आराम से कर लो.”

मगर मेरी बात सुनकर उसने नज़रें झुका ली. शायद उसमे मेरा सामना करने की या अपनी बात कहने की ताक़त नही थी. मेरी भी हालत कुछ ऐसी ही थी. मैं उस बंद कमरे मे प्रिया और उसके दर्द का सामना नही कर पा रहा था.

मुझे लग रहा था कि, यदि प्रिया थोड़ी देर ऐसे ही मेरे सामने खड़ी रही तो, उसके बिना कुछ कहे ही, मुझे अपने जाने का इरादा बदल देना पड़ेगा. इसलिए मैने प्रिया से कहा.

मैं बोला “ओके, तुम्हे कुछ नही कहना तो, मैं जाता हूँ. मुझे देर हो रही है.”

ये कहते हुए बाहर जाने के लिए, मैं दरवाजे की तरफ बढ़ा. लेकिन प्रिया ने दरवाजे की दोनो तरफ अपने हाथ रख कर मेरा रास्ता रोक लिया. प्रिया के शरीर मे उस समय इतनी ताक़त नही थी कि, वो अपने हाथों के ज़ोर पर मुझे जाने से रोक सके. मगर फिर भी उसकी इस हरकत ने मेरे बढ़ते हुए कदमो को रोक दिया था.

अब मुझे प्रिया पर गुस्सा आ रहा था. क्योकि ना वो कुछ बोल रही थी और ना मुझे जाने दे रही थी. मैने प्रिया पर झुंझलाते हुए कहा.

मैं बोला “प्रिया, ये क्या हरकत है. बाहर अजय मेरा वेट कर रहा है और यहा तुम ये नौटंकी कर रही हो. अब बहुत हो गया. दरवाजे के बीच से दूर हटो और मुझे जाने दो.”

लेकिन प्रिया पर मेरी इस झुंझलाहट का कोई असर नही पड़ा. वो अभी भी खामोश, दरवाजे पर अपने दोनो हाथ रखे, सर झुकाए ऐसे खड़ी रही. जैसे कि उसे मेरी कोई बात सुनाई ही ना दी हो.

प्रिया की इस हरकत पर मुझे और भी ज़्यादा गुस्सा आ गया. मैने गुस्से मे प्रिया पर बरसते हुए कहा.

मैं बोला “ठीक है, तुम चाहती हो कि, मैं तुम्हे धक्का दे कर, तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती करके यहाँ से जाउ, तो अब यही होगा.”

ये कहते हुए मैं प्रिया को ज़बरदस्ती दरवाजे से अलग करने के लिए आगे बढ़ गया. मगर प्रिया की इस खामोशी को तूफान के गुजरने के बाद की खामोशी समझना मेरी भूल थी. क्योंकि ये तूफान के आने के पहले की खामोशी थी.

अपनी इस लंबी खामोशी के बाद प्रिया ने जो किया. उस बात की कभी मैने, अपने सपने मे भी कल्पना नही की थी. इसलिए प्रिया की इस हरकत को देख कर मेरा रोम रोम काँप गया.
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09-09-2020, 02:20 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मेरे आगे कदम बढ़ते ही प्रिया की आखों से आँसू छलकने लगे और उसने अपने दोनो हाथ दरवाजे से अलग कर लिए. मुझे लगा कि शायद मेरे गुस्से से डर कर, प्रिया मुझे जाने के लिए रास्ता दे रही है.

लेकिन मेरा ये वहम सिर्फ़ पल भर के लिए ही रहा. क्योकि अगले ही पल प्रिया बिजली की गति से मेरे सामने आकर घुटनो के बल बैठ गयी. इस से पहले कि मैं, उसकी हरकत को कुछ समझ पाता, उसने एक झटके मे अपना सर, मेरे पैरों पर रख दिया और दोनो हाथों से मेरे पैरों को जकड कर, बिलख बिलख कर रोने लगी.

वो मेरे पैरों पर अपना सर रखे फुट फुट कर रो रही थी और कह रही थी. “मुझे माफ़ कर दो, मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी. मुझे छोड़ कर मत जाओ, मुझे माफ़ कर दो, मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी.”

ना उसका रोना रुक रहा था और ना उसका बोलना रुक रहा था. उसका रोना और उसकी दर्द भरी आवाज़ मेरा सीना छलनी कर रही थी. मैं उस से अपने पैरों को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था.

लेकिन उसमे उस समय ना जाने कहाँ से इतनी ताक़त आ गयी थी कि, मैं उसकी पकड़ से अपने पैरों को आज़ाद नही करवा पा रहा था. मेरी अपने आपको छुड़ाने की कोशिश, उसके बिलखने को और बढ़ा रही थी.

वो बिलख बिलख कर रोती जा रही थी और बस एक ही बात रटती जा रही थी. “मुझे माफ़ कर दो, मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी. मुझे छोड़ कर मत जाओ, मुझे माफ़ कर दो, मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी.”

मेरे हौसले उसके आगे पस्त पड़ गये और मैने अपने आपको उस से छुड़ाना बंद कर दिया. मगर मुझे किसी के और के आ जाने का डर भी लग रहा था. इसलिए मैने निक्की को कॉल किया और उस से कहा.

मैं बोला “प्लीज़ आप यहाँ जल्दी आओ. मगर अकेले ही आना. प्लीज़ जल्दी आओ.”

मेरी बात को सुनने के बाद निक्की ने आने मे ज़रा भी देर नही की और वो फ़ौरन भागते हुए आई. मगर कमरे मे आते ही उसकी भी वही हालत हुई जो मेरी थी. प्रिया को मेरे पैरो पर देख कर, उसका दिल भी रो पड़ा.

वो प्रिया के पास बैठ गयी और उसे मेरे पैरों पर से उठाने की कोशिश करने लगी. लेकिन प्रिया ने मेरे पैरों को नही छोड़ा. उसका रोना निक्की को देख कर और भी बढ़ गया.

प्रिया का रोना देख कर निक्की की आँखों मे भी आँसू आ गये. वो उसे समझाने की कोसिस कर रही थी. लेकिन उसकी किसी भी बात से प्रिया का रोना नही थम रहा था. निक्की ने उसे अपनी कसम भी दी तो, प्रिया ने उसकी कसम को भी अनसुना कर दिया.

मगर निक्की के कसम देने की बात से मुझे लगा कि शायद प्रिया मेरी कसम को ज़रूर मानेगी और यही सोच कर मैने प्रिया से कहा.

मैं बोला “प्रिया तुमको मेरी कसम, रोना बंद करो और मुझे जाने दो.”

लेकिन आज प्रिया की बहती गंगा जमुना को रोकना किसी की भी कसम के बस मे नही था. वो अभी भी बहुत बुरी तरह से बिलख ही रही थी. आख़िर मे मैने एक और कोशिश करते हुए कहा.

मैं बोला “प्रिया तुमको मेरी कसम, रोना बंद करो और मुझे जाने दो. यदि तुम मेरी कसम ना मानो तो, मेरा मरा हुआ मूह देखो.”

मेरी इस बात ने प्रिया के उपर अपना असर दिखाया. उसने मेरे पैरों को छोड़ दिया और निक्की के गले लग कर रोने लगी. निक्की उसे समझा रही थी, मगर प्रिया के आँसू नही रुक रहे थे.

मैं खामोश खड़ा बस उसे रोते देखता रहा. जब प्रिया चुप नही हुई तो, निक्की ने मुझसे कहा.

निक्की बोली “अब आप यहाँ खड़े मत रहिए. आप यहाँ से जाइए, वरना अभी कोई आपको बुलाने आ गया और उसने प्रिया को ऐसे रोते देख लिया तो, सब गड़बड़ हो जाएगी.”

मेरा दिल प्रिया को ऐसे रोते हुए छोड़ कर जाने का नही कर रहा था. मगर निक्की की बात भी सही थी. इसलिए मैं बुझे हुए मन से, प्रिया को रोते हुए छोड़ कर कमरे से बाहर निकल आया.

मैं सही समय पर कमरे से बाहर निकला था. क्योकि मेरे कमरे से बाहर निकलते ही मुझे, रिया अपनी तरफ आती दिखाई दी. मुझे आते देख उसने कहा.

रिया बोली “अच्छा हुआ, आप आ गये. मैं आपको ही बुलाने आ रही थी. निक्की और प्रिया कहाँ रुक गयी. वो आपके साथ क्यो नही आई.”

एक तो मैं प्रिया की हरकतों से तनाव मे आ गया था. उस पर रिया के मूह से ये सवाल सुनकर, मेरा तनाव और भी बढ़ गया. मुझे रिया के इस सवाल का कोई जबाब नही सूझा तो, मैने निक्की को कॉल लगा दिया. निक्की के कॉल उठाते ही मैने कहा.

मैं बोला “आप लोग आ क्यो नही रही हो. रिया आप लोगो को पूछ रही है.”

मेरी बात सुनकर निक्की को मेरे कॉल करने का मतलब समझ मे आ गया. उसने मुझसे कहा.

निक्की बोली “आप रिया से कहो कि, प्रिया को थकान महसूस हो रही है. मैं उसे थोड़ी देर बाद लेकर आती हूँ.”

मैने निक्की की कही बात रिया से कह दी. उसके बाद मैं रिया के साथ हॉल मे आ गया. अब मैं नही चाहता था कि कोई और निक्की या प्रिया के बारे मे पुच्छे. इसलिए मैने हॉल मे पहुचते ही दादा जी से कहा.

मैं बोला “अच्छा दादू, अब मैं चलता हूँ मगर आप से मिलने रोज आता रहूँगा.”

दादा जी बोले “ठीक है बेटा, लेकिन तुमने कुछ दिन के लिए जाने की बात कही थी. इसलिए हो सके तो, एक दो दिन रह कर वापस आ जाना.”

मैं बोला “जी दादू.”

इसके बाद मैने दादा जी और आंटी के पैर छु कर उनसे आशीर्वाद लिया. फिर अजय से चलने को कहा. दादा जी, आंटी और रिया मुझे बाहर तक छोड़ने आए. मैने हाथ हिला कर सबको बाइ किया और फिर कार मे बैठ गया. अजय ने भी सबको बाइ बोला और फिर गाड़ी आगे बढ़ा दी.

वहाँ से निकलते ही मुझे ऐसी राहत महसूस हुई. जैसे कि मेरी चोरी पकड़े जाते जाते रह गयी हो. लेकिन अब प्रिया का रोता हुआ चेहरा मुझे परेशान कर रहा था. मैं प्रिया के बारे मे सोच कर उदास और खामोश हो गया था. मुझे उदास देख कर अजय ने कहा.

अजय बोला “क्या हुआ. इतना उदास क्यो हो. क्या उन से दूर होने का दुख हो रहा है.”

मैं बोला “जब किसी से प्यार और अपनापन मिलता है तो, उस से दूर होने मे तकलीफ़ तो होती ही है.”

अजय बोला “हाँ ये बात तो है, मगर अब इस बारे मे ज़्यादा मत सोचो वरना और भी तकलीफ़ होगी. अब ये बताओ कि क्या करना है. अभी हॉस्पिटल जाओगे या घर चल कर आराम करोगे.”

मैं बोला “अभी हॉस्पिटल जाउन्गा. वहाँ राज मेरा वेट कर रहा होगा. मेहुल 3 बजे के बाद ही वहाँ पहुचेगा. तब तक मुझे ही वहाँ रुकना होगा. तुम मुझे वही छोड़ दो.”

अजय बोला “ओके.”

इसके बाद अजय ने मुझे हॉस्पिटल मे छोड़ दिया और मेरा समान लेकर वो अपने घर के लिए निकल गया. मैने राज को कॉल करके नीचे आने को कहा और फिर कीर्ति वाला मोबाइल निकाल कर कहा.

मैं बोला “हेलो.”

लेकिन कीर्ति की तरफ से कोई आवाज़ नही आती तो, मैने फिर कहा.

मैं बोला “हेलो, तू है या नही, मैं तुझसे ही बोल रहा हूँ.”

मेरी बात सुनते ही कीर्ति का जबाब आ गया. उसने कहा.

कीर्ति बोली “सॉरी, मुझे लगा कि, तुम किसी को कॉल लगा रहे हो.”

मैं बोला “ओके, अब ये बता क्या करना है.”

कीर्ति बोली “क्या मतलब, मैं कुछ समझी नही.”

मैं बोला “मैं पुच्छ रहा हूँ कि, प्रिया के बारे मे अब क्या करना है.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति ने सिर्फ़ इतना कहा.

कीर्ति बोली “अब इसमे, मैं क्या बोलूं, तुम्हे जो ठीक लगे, वो तुम करो.”

कीर्ति की ये बात सुनकर मुझे ऐसा लगा, जैसे वो मुझसे अपने दिल की बात कहने से हिचक रही हो. इसलिए मुझे उस पर थोड़ा गुस्सा आया. मगर तभी मुझे राज आता हुआ दिखाई दिया तो, मैने अपनी बात को बीच मे ही रोकते हुए, कीर्ति से कहा.

मैं बोला “राज आ रहा है. अब तू फोन रख, मैं घर पहुचने के बाद तुझे कॉल करूगा.”

कीर्ति बोली “ओके जान, आइ लव यू, मुउउहह.”

मैं बोला “मुउउहह.”

इसके बाद कीर्ति ने कॉल रख दिया. तब तक राज भी आ गया. मेरी उस से थोड़ी बहुत बात हुई और मैने उसे आज अपने देर से आने की वजह बताई. फिर राज घर चला गया और मैं अंकल के पास आ गया.

मगर मेरे दिमाग़ मे अभी भी कीर्ति का जबाब ही घूम रहा था. मैं सोच रहा था कि, कीर्ति के दिल मे ऐसी क्या बात थी, जिसे वो मुझसे कहने मे हिचक रही थी. कहीं वो मेरी किसी बात को लेकर मुझसे नाराज़ तो नही थी या फिर कहीं उसे प्रिया या निक्की की किसी बात का बुरा तो नही लग गया.

ये सब बातें सोच कर, कीर्ति के मन की बात जानने की, मेरी बेचेनी बढ़ रही थी. अपनी इन्ही सोच मे गुम रहने के कारण मुझे पता ही नही चला कि, कब 3:30 बज गये.

मेहुल अभी तक नही आया था. इतने समय तक मेहुल के ना आने से मैं समझ गया कि, मेहुल यहाँ से जाते ही भूल गया होगा कि, आज से रात को मुझे हॉस्पिटल मे रुकना है और इसलिए वो आराम से ही सोकर उठा होगा. इस बात को सोच कर मुझे मेहुल के उपर गुस्सा आ गया.

रात से ही मेरा मूड खराब करने का दौर चल रहा था. पहले पापा और रिया की हरकत से मूड खराब हुआ. उसके बाद प्रिया ने उल्टा सीधा बक कर मूड खराब किया. उसके बाद जो कसर बाकी रह गयी थी, उसे कीर्ति ने प्रिया को गाली बक कर पूरी कर दी थी.

फिर रात जैसे तैसे मैने काट ही ली थी. सोचा था कि, दिन मे सब सही हो जाएगा. मगर दिन मे भी कुछ नही बदला. ये सिलसिला तो दिन मे भी वैसे का वैसे ही जारी रहा.

पहले प्रिया ने रोकर, फिर कीर्ति अपने मन की बात छुपा कर और उसके बाद मेहुल ने मेरे कहने पर भी हॉस्पिटल ना आकर, एक के बाद एक मेरा दिमाग़ खराब किया था. और तो और आज निक्की ने भी जली कटी सुनाने मे कोई कसर नही छोड़ी थी.

मैं ये सब बातें सोच कर, अपने आपको बहुत अकेला महसूस कर रहा था और इस अकेलेपन मे मुझे छोटी माँ की याद आने लगी. मैने अंकल से कहा मैं चाय पीकर आता हूँ और मैं बाहर पोर्च मे आ गया.

वहाँ आकर मैने छोटी माँ को कॉल लगा दिया. मैने दो बार छोटी माँ को कॉल लगाया लेकिन उनका मोबाइल नही उठा. शायद वो मोबाइल अपने कमरे मे रख कर किसी काम मे बिज़ी थी.

लेकिन मेरा मन उन से बात करने का कर रहा था. इसलिए मैं उन्हे कॉल लगाता रहा और 2-3 बार और कॉल लगाने के बाद मेरा कॉल उठ गया. मगर कॉल अमि ने उठाया था.

उसकी आवाज़ सुनते ही मेरे दिल को कुछ राहत महसूस हुई और मेरे चेहरे पर अपने आप मुस्कुराहट आ गयी. मैने उसे, ना पहचान पाने का नाटक करते हुए कहा.

मैं बोला “हेलो कौन.”

मेरी बात सुनकर अमि ने अपनी नाराज़गी जताते हुए कहा.

निमी बोली “क्या भैया, आप मेरी आवाज़ भी नही पहचानते. मैं अमि हूँ.”

मैं बोला “ओह्ह बेटू तू, मुझे तो लगा था कि कॉल छुटकी ने उठाई है. किधर है छुटकी.”

मैने ये बात अमि को चिडाने के लिए कही थी. लेकिन उसकी समझ मे मेरी ये बात नही आई और वो एक साँस मे मुझे सबके बारे मे बताने लगी.

अमि बोली “भैया, निमी बाहर खेल रही. मम्मी आंटी टीवी देख रही है. कीर्ति दीदी अपने कमरे मे है और चंदा मौसी हमारे बाजू वाले कमरे मे आंटी का समान रख रही है.”

मैं बोला “ चुप हो जा BBC लंडन. मैने तो सिर्फ़ निमी का पूछा था और तू सारे घर का हाल चाल देने लगी. ये बता कि तू यहाँ अकेले छोटी माँ के कमरे मे क्या कर रही है.”

अमि बोली “मैं भी निमी के साथ खेल रही थी. मम्मी का मोबाइल बज रहा था तो, उन्ही ने मुझे मोबाइल लेने भेजा था. आपका कॉल था इसलिए मैने उठा ली.”

मैं बोला “चल अच्छा किया. अब ये बता, तुम दोनो कीर्ति से झगड़ा तो नही करते हो.”

अमि बोली “नही भैया, हम लोग कीर्ति दीदी से बिल्कुल नही लड़ते. मगर आपको एक राज़ की बात बताऊ.”

मैं बोला ‘कौन सी राज़ की बात.”

अमि बोली “बताती हूँ, मगर पहले आप वादा करो कि, आप ये बात कीर्ति दीदी से नही करोगे. वरना वो मुझ पर बहुत गुस्सा करेगी.”

मैं बोला “ओके बाबा, मैं वादा करता हूँ कि, मैं ये बात कीर्ति तो क्या किसी से भी नही कहूँगा. अब बता, क्या बात है.”

अमि बोली “कीर्ति दीदी ना, कल रात को किसी से मोबाइल पर बात कर रही थी और बहुत गंदी गंदी गालियाँ दे रही थी.”

अमि की इस बात ने तो, थोड़ी देर के लिए मेरी ही बोलती बंद कर दी थी. एक तो मैं पहले से ही, इतने लोगों की बातों का तनाव झेल रहा था और अब एक तनाव अमि ने भी दे दिया था.

मगर अभी मेरे लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी अमि का मूह बंद करना था. ताकि वो इस बात को छोटी माँ या किसी और से ना करे. लेकिन उसके पहले ये जानना ज़रूरी था कि, उसने ये सब बात कैसे सुनी. इसलिए मैने अमि से कहा.

मैं बोला “बेटू, तूने नींद मे ज़रूर कोई सपना देखा होगा. भला कीर्ति किसी को गालियाँ क्यो देगी.”

अमि बोली “नही भैया, ये सपना नही सच है. कल रात को अचानक मेरी नींद खुली तो, कीर्ति दीदी हमारे पास नही थी और कमरे का दरवाजा खुला था. मुझे लगा कि शायद वो अपने कमरे मे सोने चली गयी है. इसलिए मैं दरवाजा बंद करने उठी तो देखा कि, आपके कमरे की लाइट जल रही थी. मैं समझ गयी कि कीर्ति दीदी वही है. मैं उन्हे देखने गयी तो, वो मोबाइल पर किसी को गालियाँ दे रही थी. ये देख कर मैं डर गयी और फिर से वापस आ कर सो गयी.”

अमि ने ये तो बता दिया कि, उसे ये बात कैसे पता चली. लेकिन अब सबसे ज़रूरी ये था कि, वो ये बात किसी से ना कहे. इसलिए मैने अमि को समझाते हुए कहा.

मैं बोला “बेटू, तूने ये बात छोटी माँ या फिर से तो नही बताई.”

अमि बोली “नही भैया, यदि मैं मम्मी से ये बात बोलती तो, वो दीदी को डाँटती और दीदी मुझसे गुस्सा हो जाती.”

मैं बोला “तू तो सच मे बहुत समझदार हो गयी है. देख ये बात किसी से मत बोलना. मैं जब आउगा तो कीर्ति को खूब डान्टुन्गा.”

अमि बोली “क्या भैया, अब आप बच्चो जैसी बात करने लगे. आप उनको डान्टोगे तो, उन्हे पता नही चल जाएगा कि, ये बात मैने आपसे बताई है.”

मैं बोला “लेकिन गाली बकना तो बुरी बात है. यदि कीर्ति को नही डांटा तो वो फिर गाली बकेगी.”

अमि बोली “मैं कुछ नही जानती. आपने मुझसे वादा किया था कि, आप ये बात किसी से नही कहोगे. यदि आप दीदी को डान्टोगे तो, मुझसे गुस्सा हो जाएँगी.”

मैं बोला “तो फिर उसके साथ क्या किया जाए.”

अमि बोली “आप जब खुद उनको गाली बकते पकडो, तब डाटना.”

मैं बोला “चल ठीक है. अभी मैं तेरी वजह से कीर्ति को छोड़ देता हूँ. लेकिन देख अब तू ये बात किसी से मत कहना.”

मेरी बात सुनकर अमि हँसने लगी. उसे हंसते देख कर मैने कहा.

मैं बोला “बेटू, क्या हुआ. तू हंस क्यो रही है.”

अमि बोली “भैया, आप तो बच्चों से भी बच्चे हो.”

मैं बोला “क्यो क्या हुआ. मैने ऐसा क्या बोल दिया.”

अमि बोली “अरे मैने आप से वादा लिया कि, आप ये बात किसी से मत बोलना और आप मुझसे ही कह रहे हो कि, ये बात किसी से मत कहना. हहेहहे.”

वो फिर से हँसने लगी और उसकी इस हँसी से मुझे कुछ राहत महसूस हुई. तभी मेरे मोबाइल पर मेहुल का कॉल आने लगा तो, मैने अमि से जताया कि, छोटी माँ से कहना मैं बाद मे बात करूगा. इसके बाद मैने कॉल काट दिया और मेहुल को कॉल लगाया. उसके कॉल उठाते ही, मैने उस से कहा.

मैं बोला “अब 3:45 बजे, तेरे 3 बजे रह है.”

मेहुल बोला “अबे मैं 3 बजे क्यो नही आ पाया, पहले सुन तो ले.”

मैं बोला “तो सुना ना, मैने कब तुझे बोलने से रोका.”

मेहुल बोला “जब तू पूरी बात बताने देगा. तभी तो मैं तुझे कुछ बताउन्गा ना.”

मैं बोला “चल बता, क्या बता रहा है.”

मेरे इतना बोलते ही मेहुल ने अपने देर से आने की वजह बताना शुरू कर दी. जैसे जैसे वो अपनी बात कहता जा रहा था. वैसे वैसे ही मेरे चेहरे का रंग बदलता जा रहा था. मेहुल की बात सुनते सुनते, मेरी आँखों से झर झर करके आँसू झरने लगे.
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मेहुल जैसे जैसे अपनी बात बोलते जा रहा था. वैसे वैसे मैं इस सब के लिए खुद को दोषी मान रहा था. मेहुल कह रहा था.

मेहुल बोला “जब मैं सोकर उठा. तब तुम वहाँ से निकल चुके थे. मैं तैयार होकर बाहर निकला तो, मुझे निक्की तुम्हारे कमरे से निकलते दिखी. मैने उस से पुछा कि, क्या अंदर कमरे मे पुन्नू है.”

“तब निक्की ने बताया कि, अंदर प्रिया है. वो पुनीत से मिलने आई थी. लेकिन अचानक उसे थकान महसूस होने लगी तो, वो यहीं रुक गयी. मगर अब उसकी तबीयत कुछ ज़्यादा खराब हो गयी है. आप उसके पास बैठो, मैं अभी दादा जी और आंटी को बुला कर लाती हूँ.”

“इतना बोल कर निक्की भाग कर, दादा जी और आंटी को बुलाने चली गयी और मैं तुम्हारे कमरे मे आ गया. मगर वहाँ प्रिया की हालत देख कर मैं घबरा गया. उसे साँस लेने मे परेशानी हो रही थी.”

“मैं फ़ौरन उसके पास पहुचा और उसके सर पर हाथ फेरने लगा. तब तक दादा जी और आंटी भी आ गये. निक्की ने डॉक्टर. निशा को कॉल लगा कर, प्रिया की हालत बताई तो, उन्हो ने, उसे फ़ौरन हॉस्पिटल लाने को कह दिया.”

“तब तक राज भी आ चुका था और फिर हम लोग बिना समय गवाए प्रिया को यहाँ ले आए. हम सब 1 घंटे से इधर ही है. प्रिया को आइ.सी.यू. (इंटेन्सिव केर यूनिट) मे ऑक्सिजन पर रखा गया है. उसकी हालत देख कर, मैं इतना घबरा गया था कि, मुझे कुछ भी नही सूझ रहा था.”

“अभी जब निक्की ने कहा कि, प्रिया की तबीयत के बारे मे, तुमको भी बता दूं. तब मुझे याद आया कि, तू मेरे आने का रास्ता देख रहा होगा और मैने फ़ौरन तुझे कॉल लगा दिया.”

इतना बोल कर मेहुल चुप हो गया. मगर प्रिया की तबीयत का सुनकर, मेरे हाथ पाँव फूल गये और मैं वही पोर्च मे रखी चेयर पर ही सर पकड़ कर बैठ गया. मैं ये भी भूल गया कि, अभी मोबाइल पर मेहुल है.

जब मैं थोड़ी देर कुछ नही बोला तो, मेहुल हेलो हेलो करने लगा. तब मुझे होश आया. मगर मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि, मैं मेहुल से क्या बोलूं. क्योकि प्रिया की इस हालत के लिए, मैं खुद ही जम्मेदार था.

जब मेहुल ने एक दो बार और हेलो हेलो किया तो, मैने अंजान बनते हुए, मेहुल से कहा.

मैं बोला “लेकिन अचानक ये सब कैसे हो गया.”

मेहुल बोला “ये सब अचानक नही हुआ. मुझे तो आज ही पता चला कि, प्रिया को पहले से ही दिल की बीमारी (हार्ट डिसीज़) थी और कल प्रिया ने स्कूल मे कुछ ज़्यादा उच्छल कूद कर ली. जिसका उसके दिल पर बुरा असर पड़ा है. सुबह डॉक्टर. निशा ने प्रिया को पूरा आराम करने की सलाह दी थी. मगर उसने नही मानी. जिसकी वजह से फिर उसके दिल पर बुरा असर पड़ा और उसे साँस लेने मे परेसानी हो रही है.”

“प्रिया के रक्त का दबाव (ब्लड प्रेशर) बहुत कम है. जिसको सामान्य (नॉर्मल) पर लाने के लिए प्रिया को आइ.सी.यू. मे रखा गया है. डॉक्टर. निशा का कहना है कि, प्रिया की हालत अभी नाज़ुक है और ज़रा सी भी लापरवाही से, उसको दिल का दौरा (हार्ट अटॅक) पड़ सकता है. इसलिए प्रिया की हालत मे सुधार होने तक, उसे हॉस्पिटल मे ही रहना पड़ेगा.”

मैं बोला “अब प्रिया की तबीयत मे कुछ सुधार आया या नही.”

मेहुल बोला “प्रिया को बहुत बेचेनी सी हो रही थी और वो बार बार ऑक्सिजन मास्क निकालने की कोसिस कर रही थी. इसलिए उसे नींद का इंजेक्षन दिया गया है. जिसके बाद से वो सो रही है.”

मैं बोला “अभी प्रिया के पास कौन कौन है.”

मेहुल बोला “सिर्फ़ राज है. हम सब बाहर वेटिंग लाउंज मे है.”

मैं बोला “तुम लोग किस फ्लोर पर हो.”

मेहुल बोला “हम 3र्ड फ्लोर पर है. तुझे आना है तो, आ जा.”

मैं बोला “ओके, मैं अभी आता हूँ.”

ये बोल कर मैने फोन रख दिया. मैं इस समय अंकल के पास 4थ फ्लोर पर था और जल्दी से जल्दी प्रिया के पास पहुचना चाहता था. इसलिए मैं तेज़ी से 3र्ड फ्लोर की तरफ बढ़ गया.

मैं जब 3र्ड फ्लोर पर वेटिंग लाउंज मे पहुचा तो, वहाँ दादा जी, आंटी, राज, रिया, निक्की और मेहुल थे. सभी परेशान नज़र आ रहे थे. खास कर आंटी के चेहरे से ऐसा लग रहा था कि, जैसे वो बहुत रोई है. मैने जाते ही दादा जी से कहा.

मैं बोला “दादू, ये सब क्या हो गया. जब आप लोग यहाँ आए तो, मुझे प्रिया की तबीयत का क्यो नही बताया.”

दादा जी बोले “बेटे ये सब इतना अचानक हो गया कि, किसी के कुछ समझ मे नही आ रहा था कि, वो क्या करे. आकाश (रिया के पापा) को भी निक्की ने ही कॉल करके खबर दी थी.”

दादा जी की बात सुनकर, मैने निक्की की तरफ देखा और उस से कहा.

मैं बोला “मैं तो यहाँ ही था. फिर आप ने मुझे कॉल क्यो नही किया.”

मेरी बात के जबाब मे, निक्की ने एक बार फिर बड़े प्यार से मेरे गाल पर मखमली जूता मारते हुए कहा.

निक्की बोली “सॉरी, मुझे आपको खबर देना याद नही रहा. वैसे भी उस समय प्रिया को किसी के होने, ना होने से कोई फरक पड़ने वाला नही था. उस समय उसे सिर्फ़ इलाज की ज़रूरत थी और फिर किसी का अंकल के पास रहना भी तो, ज़रूरी था. आप भी यहाँ आ जाते तो, अंकल के पास कौन रहता.”

निक्की की इस बात का मतलब भले ही कोई नही समझ पाया था. लेकिन मैं उसकी नाराज़गी को समझ गया था. आख़िर प्रिया की इस हालत के लिए, ज़िम्मेदार भी तो मैं ही था. यदि मैने प्रिया की बात मान ली होती तो, प्रिया की ये हालत हरगिज़ नही हुई होती.

अब ऐसे मे यदि निक्की, मुझे प्रिया की हालत का दोषी मान कर, मुझसे नाराज़ थी तो, उसकी ये नाराज़गी जायज़ ही थी. लेकिन अभी मेरे लिए निक्की की नाराज़गी कोई मायने नही रखती थी.

मुझे अभी सिर्फ़ प्रिया की हालत की चिंता थी और मेरी बेचेनी हद से ज़्यादा बड़ी हुई थी. इसलिए मैने निक्की की बात को अनसुना करते हुए, दादा जी से कहा.

मैं बोला “दादू, सब तो यही नज़र आ रहे है. फिर इस समय प्रिया के पास कौन है.”

दादा जी बोले “बेटा, प्रिया के पास अभी आकाश (प्रिया के पापा) है.”

मैं बोला “दादू, क्या मैं प्रिया से मिल सकता हूँ.”

दादा जी बोले “बेटा, प्रिया को नींद का इंजेक्षन दिया गया है. वो अभी सो रही है. डॉक्टर ने एक से ज़्यादा लोगों को, उसके पास रहने से मना किया है.”

मगर इस समय मेरा दिल प्रिया को एक नज़र देखने के लिए तड़प रहा था. मैं कैसे भी बस एक बार उसे देखना चाहता था. मैने फिर दादा जी कहा.

मैं बोला “दादू, मैं उसके पास नही जाउन्गा. बस उसे दूर से ही देखुगा.”

मेरी बातों से दादा जी को मेरी बेचेनी का अहसास हो गया था. उन्हो ने मुझे प्रिया को देखने की सहमति देते हुए कहा.

दादा जी बोले “ठीक है बेटा. यदि तुम्हारा दिल कर रहा है तो, जाकर देख आओ. वो आइ.सी.यू. के रूम नंबर. 3 मे है.”

दादा जी की बात सुनते ही मैं आइ.सी.यू. की तरफ बढ़ गया. आइ.सी.यू. रूम नंबर. 3 के पास पहुच कर मैं रुक गया. मैने धड़कते दिल से, रूम के दरवाजे के शीशे (ग्लास) से अंदर देखा तो, मुझे प्रिया दिखाई दी.

प्रिया के मूह और नाक पर ऑक्सिजन मास्क लगा था और हाथ मे आइवी ड्रिप (इंट्रेवीनस ड्रिप) लगी हुई थी. नींद की दवा के असर की वजह से वो गहरी नींद मे सोई हुई थी. मगर गहरी नींद की हालत मे भी उसे उलझन सी हो रही थी.

प्रिया को ऐसी हालत मे देख कर, मेरी आँखों मे नमी आ गयी और मैं अपने आँसुओं को बहने से रोकने की नाकाम कोसिस करने लगा. मैं क्या उस समय प्रिया को कोई भी देखता तो उसका भी यही हाल होता.

हमेशा हिरनी की तरह, सारे घर मे कूदती फिरने वाली लड़की, आज बेसूध सी सोई हुई थी. जिसकी हँसी को रोक पाना, किसी के बस की बात नही थी. आज उसने रो रो कर खुद को ऐसी हालत मे पहुँचा दिया था कि, साँस लेना भी उसके लिए एक सज़ा सी बन गयी थी. उसकी हर आती जाती साँस, उसे नींद मे भी एक दर्द सा दे रही थी.

मैं प्रिया को होने वाले दर्द का अहसास कर रहा था कि, तभी प्रिया नींद मे चौक उठी. उसे चौुक्ते देख अंकल फ़ौरन अपनी सीट से उठ कर, प्रिया के पास आ गये और प्रिया के सर पर हाथ फेरने लगे.

मैं प्रिया को देख कर ऐसा खो गया था कि, मेरी नज़र अंकल पर नही पड़ी थी. मगर अब जब अंकल पर नज़र पड़ी तो, मेरे आँसुओं बाँध टूट गया. अंकल एक हंत प्रिया के सर पर फेर रहे थे और दूसरे हाथ से अपने आँसू पोछ रहे थे.

वो बड़े गौर से प्रिया को देखे जा रहे थे और उनके आँसू बहे जा रहे थे. अंकल को देख कर आज पहली बार मुझे मेरी मरी हुई माँ की याद आ गयी. बाप का दिल क्या होता है. आज पहली बार मुझे अंकल को देख कर अहसास हो रहा था.

यदि मुझे छोटी माँ का प्यार नही मिला होता तो, मैं अपने बाप के होते हुए भी एक अनाथ की ज़िंदगी जी रहा होता. एक मेरा बाप था, जो जाते जाते अपनी औलाद के लिए, आँसुओं के बीज बोकर गया था और एक अंकल थे जो, अपनी औलाद के लिए आँसू बहा रहे थे.

ये सब देख कर, मुझे छोटी माँ की याद सताने लगी. उन्हों ने इतने सालों मे, कभी एक बार भी मुझे अपनी माँ की कमी महसूस करने का मौका नही दिया था. मेरी आँखें छोटी माँ के उस प्यार को याद करके छलक रही थी.

मेरा दिल छोटी माँ से लिपट कर रोने का कर रहा था. मुझे बहुत ज़्यादा छोटी माँ की कमी अखरने लगी थी और अब मेरे लिए एक पल भी वहाँ रुक पाना मुस्किल हो गया था. इसलिए मैं वहाँ से अलग हो गया और अपने आँसुओं को पोछ्ते हुए आइ.सी.यू. से बाहर आ गया.

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09-09-2020, 02:22 PM,
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मगर वहाँ से बाहर आ जाने के बाद भी, अंकल के आँसू, मेरी आँखों के सामने घूम रहे थे और मुझे एक बाप के प्यार की कमी का अहसास करा रहे थे. जो प्यार मुझे कभी नसीब नही हुआ था.

इस ख़याल के चलते, मेरे कदम खुद ब खुद वेटिंग लाउंज की जगह, लिफ्ट की तरफ बढ़ गये. मैं नीचे आ गया और समुद्र किनारे, एकांत मे जाकर, एक चट्टान पर बैठ गया.

आज एक के बाद एक हो रहे हादसों को देख कर, मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मेरे बुरे समय की शुरुआत हो रही हो. रात से ही पापा, रिया, प्रिया, कीर्ति, मेहुल, निक्की यहाँ तक की अमि तक की बातों से मेरे दिल को जाने अंजाने मे चोट पहुच रही थी. ये ही सब सोचते सोचते मेरा दिल बहुत ज़्यादा बेचेन हो उठा था.

एकांत मे आकर मेरी बेचेनी ऑर भी ज़्यादा बढ़ गयी थी और इस बेचेनी के आलम मे मेरी आँखों मे सिर्फ़ छोटी माँ का चेहरा घूम रहा था. मुझे लग रहा था कि, मैं कैसे भी कर के उनके पास पहुच जाउ और उनके गले से लग कर, अपना मन हल्का कर लूँ.

मैने भारी मन से अपना मोबाइल निकाला और छोटी माँ को कॉल लगा दिया. मगर उन्हों ने कॉल नही उठाया. मैने दो तीन बार और कोशिश की मगर नतीजा वही का वही रहा.

छोटी माँ के कॉल ना उठाने से, मेरे दिल का अधूरापन ऑर भी बढ़ गया. मेरा अकेलापन मुझे काटने लगा. मुझे लगने लगा कि छोटी माँ को भी मेरी कोई फिकर नही है और ये बात सोचते ही मेरी आँखों मे नमी च्छा गयी.

मगर तभी छोटी माँ का कॉल भी आने लगा. मैने उदास मन से कॉल उठाया और छोटी माँ से कहा.

मैं बोला “आपको मुझसे बात करने का टाइम मिल गया.”

मगर छोटी माँ मेरे इस वक्त के हालत से अंजान थी. उन्हों ने बड़े ही सीधे शब्दों मे कहा.

छोटी माँ बोली “अरे मुझे घर के और भी काम रहते है. काम छोड़ कर आने मे कुछ वक्त तो लगता ही है.”

लेकिन अपनी माँ को अपने पास पाकर, मेरे सब्र का बाँध टूट चुका. ना जाने क्यो, मेरी आँखों की नमी, आँसुओं मे बादल गयी. मैने रोते हुए छोटी माँ से कहा.

मैं बोला “हाँ हाँ, मैं मरूं या जियु. उस से आपको क्या. आप तो बस अपने काम मे बिज़ी रहो.”

मुझे इस तरह रोता देख छोटी माँ को झटका लगा. उन्हे समझ नही आया कि, मैं ऐसा क्यो कह रहा हूँ. फिर भी उन्हों ने मुझे अपनी सफाई देते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “तू ये कैसी बात कर रहा है. मेरे पास कब तेरे लिए समय नही रहा. रोज तो तुझसे बात करती हूँ ना. फिर तू आज अचानक ऐसा क्यो बोल रहा है.”

मगर मेरे उपर छोटी माँ के सफाई देने का कोई असर नही पड़ा. मैने फिर अपनी बात को दोहराते हुए कहा.

मैं बोला “जब मैं आपको कॉल करता हूँ, तब आप मुझसे बात करती हो. आपको खुद से, कभी मेरी याद नही आती. आपको भला मेरी याद क्यो आएगी. मैं तो आपका सौतेला बेटा हूँ ना.”

ये बोल कर मैं किसी छोटे बच्चे की तरह रोने लगा. मेरे रोने से छोटी माँ को ये अहसास तो करा दिया था कि, मुझे कुछ हुआ है. इसलिए उन्हों ने मुझे संभालने की कोसिस करते हुए, बड़े प्यार से कहा.

छोटी माँ बोली “ये अचानक तुझे क्या हो गया है. मेरा बहादुर बेटा, बच्चों की तरह क्यो रो रहा है. मैं तेरे साथ हूँ ना. फिर तुझे किस बात की चिंता है.”

मगर मेरे रोने की वजह तो छोटी माँ का साथ ना मिल पाना थी और उन की इस बात ने मेरे जले पर नमक का काम किया. मैने रोते हुए कहा.

मैं बोला “कहाँ हो आप मेरे साथ. आपके पास मेरे लिए वक्त ही कहाँ है. आप तो अपने काम मे बिज़ी हो.”

छोटी माँ बोली “मैं किसी काम मे बिज़ी नही थी. तेरे पापा से तेरा हाल चाल ही पता कर रही थी.”

पापा का नाम सुनते ही मेरा गुस्सा भड़क गया. मैने आग बाबूला होते हुए कहा.

मैं बोला “मेरे सामने उस कमिने का नाम मत लो. पहले उसने मेरी माँ को मुझसे छीना और अब आपको भी मुझसे दूर कर रहा है. पता नही, मैं किसके लिए जिंदा हूँ. मुझे तो मेरी माँ के साथ ही मर जाना चाहिए था.”

ये बोल कर मैं फिर से सुबकने लगा. लेकिन मेरी इस बात ने छोटी माँ के सीने मे, वो तीर चुबा दिया था. जो शायद दुनिया की किसी भी माँ के सीने को चीर कर रख देता. आख़िर था तो वो एक माँ का ही कलेजा. वो कब तक भला मेरी बातों के तीर को सह पाता.

छोटी माँ का कलेजा छल्नी हो गया और उनके भी सब्र का बाँध टूट गया. उनकी आँखें भी आँसुओं से भीग गयी और उन के दिल मे छुपा दर्द बाहर आने लगा. वो तिलमिलाते हुए कह रही थी.

छोटी माँ बोली “हाँ तू सच कहता है. मैं तेरी सौतेली माँ ही हूँ. तेरे जीने मरने से मुझे कोई फरक नही पड़ता है. मगर एक बात कान खोल कर सुन ले. तुझे कुछ होने से पहले मैं अपने आपको ख़तम कर दुगी और उस से पहले तेरी छोटी बहनो को जहर देकर मार दुगी. क्योकि तेरे बिना ना तो तेरी बहने रह सकती है और ना ही मैं रह सकती हू.”

“इतने सालों से अपने पति की सारी ज़्यादतियाँ, जिस बेटे का मूह देख कर सह रही थी. आज उसने ही मुझे सौतेला कर दिया. मेरा तो नसीब ही खराब है. पति का सुख तो कभी मिला नही और आज बेटे ने भी माँ मानने से इनकार कर दिया. मर तो मुझे जाना चाहिए.”

ये कह कह कर छोटी माँ बिलख बिलख कर रोने लगी. उनका रोना देख कर, मेरा रोना और भी बढ़ गया. अब छोटी माँ भी रो रही थी और मैं भी रो रहा था. मैं रोते हुए उनको चुप होने को बोल रहा था. मगर वो रोए जा रही थी और उनका रोना देख कर मैं भी रोए जा रहा था.

दोनो तरफ से आँसुओं की गंगा जमुना बह रही थी और फिर उनको चुप करने की चाह मे, मेरे मूह से अचानक वो निकल गया. जिसे सुनकर छ्होटी माँ का रोना खुद ब खुद रुक गया.
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09-09-2020, 02:23 PM,
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मेरी आँखे आँसुओं से भीग रही थी और जिंदगी मे पहली बार मेरे दिल से एक शब्द निकला. जिसे मैने रोते हुए छोटी माँ से कहा.

मैं बोला “मम्मी, प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो. प्लीज़ मम्मी.”

मेरे मूह से मम्मी सुनते ही छोटी माँ का रोना रुक गया और उन्हो ने, अब तक की सारी बातों को भुलाते हुए, मुझसे कहा.

छोटी माँ बोली “तूने अभी क्या कहा, ज़रा फिर से बोल.”

मैं बोला “प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो.”

छोटी माँ बोली “नही, ये नही. तूने अभी मुझे क्या कह कर बुलाया था.”

मैं बोला “मम्मी.”

मेरी बात सुनकर छोटी माँ की आँखों की नमी एक बार फिर से वापस आ गयी. जो मुझे उनकी बातों से समझ मे आ रही थी. वो मुझसे कह रही थी.

छोटी माँ बोली “इतनी सी बात कहने मे, तूने इतने साल लगा दिए. मेरे कान कब से तेरे मूह से ये शब्द सुनने को तड़प रहे थे.”

ये बात बोलते हुए छोटी माँ बहुत भावुक हो गयी थी और उन्हे भावुक देख कर, मैं भी भावुक हो उठा. मैने उन से कहा.

मैं बोला “हाँ मम्मी, आप ही मेरी माँ हो. आपके सिवा इस दुनिया मे मेरा कोई नही है. प्लीज़ अपने इस नालयक बेटे को माफ़ कर दो.”

मेरी आँखे अभी भी आँसुओं मे भीगी हुई थी. मगर मेरी बातों से छोटी माँ को जो खुशी मिली थी. वो उनकी बातों से झलकने लगी. उन्हो ने मुझे चुप करते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “चुप कर पगले. क्या फिर मुझे रुलाएगा. खबरदार जो कभी अपने आपको नालयक कहा. तू तो मेरा प्यारा बेटा है.”

छोटी माँ की बात सुनकर, मेरे चेहरे पर खुशी आ गयी. मैने अपने आँसू पोन्छ्ते हुए कहा.

मैं बोला “सॉरी मम्मी. अब कभी ऐसी बात नही करूगा. अब आप मुझसे नाराज़ तो नही हो ना.”

छोटी माँ बोली “नही, बिल्कुल नही हूँ. बल्कि आज तो मैं बहुत खुश हूँ. आज तूने मुझे वो खुशी दी है. जिसके लिए मैं बरसों से तरस रही थी. यदि आज तू मेरे पास होता तो, मैं अभी तुझे अपने गले से लगा लेती. मेरा दिल तुझे गले लगाने के लिए बहुत तड़प रहा है.”

मैं बोला “मम्मी, मुझे भी आपकी बहुत याद आ रही थी. इसलिए जब आपने कॉल उठाने मे देर की तो, मुझे गुस्सा आ गया और मैं गुस्से मे ये सब कह गया.”

छोटी माँ बोली “लेकिन आज तुझे हुआ क्या है. तू इतना परेशान सा क्यो है.”

मेरी अभी छोटी माँ से बात चल ही रही थी कि, तभी दूसरे मोबाइल पर कीर्ति का कॉल आने लगा. मैने उसका कॉल काट दिया और फिर छोटी माँ से बात करने लगा. मैने छोटी माँ से कहा.

मैं बोला “नही, मम्मी, जैसा आप सोच रही है. ऐसी कोई बात नही है. बस मुझे आज आपकी बहुत याद आ रही थी.”

लेकिन मेरी इस बात का छोटी माँ पर कोई असर नही पड़ा. उन ने मेरी परेसानी का कारण जानने की कोसिस करते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “अब तू मुझे बहलाने की कोसिस मत कर. क्या मैं नही जानती कि, तुझे इतनी ज़्यादा अपनी माँ की कमी कब अखरती है. बचपन से तुझे इतना बड़ा ऐसे ही नही कर दी हूँ. मैं तेरी रग रग से वाकिफ़ हूँ. सच सच बता, क्या बात तुझे परेशान कर रही है.”

आख़िर मे मुझे छोटी माँ की ज़िद के सामने झुकना ही पड़ा. मैने उन्हे प्रिया की तबीयत और अंकल के रोने के बारे मे बताया. छोटी माँ मेरी मन की बात समझ गयी थी. इसलिए उन्हों ने इस बात को आगे ना बढ़ा कर, मुस्कुराते हुए मुझसे कहा.

छोटी माँ बोली “छोड़ इस बात को और मेरी एक बात का सच सच जबाब दे.”

मैं बोला “जी, पुछिये.”

छोटी माँ बोली “पहले वादा कर कि, मैं जो पुछुगि. तू सच सच जबाब देगा.”

मैं बोला “इसमे वादा करने की क्या ज़रूरत है. क्या मैने कभी आपसे कुछ झूठ कहा है.”

छोटी माँ बोली “हाँ ये बात तो है. तू मुझसे कभी झूठ नही बोलता.”

मैं बोला “तो फिर पुछिये, आपको क्या पुच्छना है.”

छोटी माँ बोली “अच्छा ये बता, तुझे अमि निमी मे से कौन ज़्यादा प्यारा है.”

छोटी माँ का सवाल सुनकर एक पल के लिए तो मेरा दिमाग़ चकरा गया. लेकिन दूसरे ही पल मैने उन पर भड़कते हुए कहा.

मैं बोला “आप ये कैसा बेतुका सवाल पुच्छ रही है. भला ये भी कोई सवाल हुआ. पुच्छना ही है तो, कोई ढंग का सवाल पुछिये.”

छोटी माँ बोली “सवाल तो मेरा यही है. यदि तू जबाब देने से डरता है तो, जबाब मत दे.”

छोटी माँ मुझे चने के झाड़ पर चढ़ा रही थी और मैं चढ़ता जा रहा था. मैने ताव मे आकर कहा.

मैं बोला “यदि आपका सवाल यही है तो, मेरा जबाब भी सुन लीजिए. मुझे दोनो ही प्यारी है. यदि एक मेरा दिल है तो, दूसरी उस दिल की धड़कन है. ना तो कोई दिल के बिना रह सकता है और ना धड़कन के बिना रह सकता है. अब मिल गया आपको आपके सवाल का जबाब.”

छोटी माँ बोली “ये भी भला कोई जबाब हुआ. साफ साफ बोलो दोनो मे से कौन ज़्यादा प्यारा है.”

मैं बोला “जबाब तो मैने दे दिया. अब आप खुद ही फ़ैसला कर लीजिए कि, दिल ज़्यादा ज़रूरी होता है या फिर धड़कन ज़्यादा ज़रूरी होती है.”

ये बोल कर मैं अपनी जीत पर हँसने लगा. उन्हो ने मुझे हंसते हुए देख कर, मूह बनाते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “तूने मुझे मेरी बात का जबाब नही दिया ना. ठीक है, आज के बाद मैं तुझसे कुछ भी नही पुछुगि.”

छोटी माँ की इस बात से मुझे ऐसा लगा कि वो मुझसे नाराज़ हो गयी है. इसलिए मैने उन्हे मनाते हुए कहा.

मैं बोला “मैं कब आपकी बात का जबाब देने से मना कर रहा हूँ. लेकिन आप बेकार का सवाल कर रही हो. आपको जिसके बारे मे भी पुच्छना है, आप पुच्छ लो. लेकिन अमि निमी के बारे मे मेरा वही जबाब रहेगा, जो मैने अभी आपको दिया है.”

ये बात कहने के बाद मुझे लग रहा था कि, अब छोटी माँ मुझसे ऐसा कोई सवाल नही करेगी. लेकिन ऐसा सोचना मेरी भूल थी. क्योकि छोटी माँ ने अमि निमी की बात तो, सिर्फ़ मुझे अपनी बातों के जाल मे उलझाने के लिए की थी. असली बात तो वो अब पुच्छने वाली थी. उन्हो ने मेरी बात सुन कर कहा.

छोटी माँ बोली “रहने दे, मुझे कुछ नही पुछ्ना. तू फिर से गोल मोल जबाब देकर मेरा मूड खराब करेगा.”

मैं बोला “नही मम्मी, आप पुछो. अब मैं आपका मूड खराब नही करूगा.”

छोटी माँ बोली “ठीक है, तू कहता है तो, पुच्छ ही लेती हूँ.”

ये कह कर छोटी माँ थोड़ी देर कुछ सोचती रही. फिर उन्हो ने कहा.

छोटी माँ बोली “अच्छा ये बता, यदि तुझसे तेरे पापा और मुझ मे से, किसी एक को चुनने को कहा जाए तो, तू किस को चुनेगा और क्यो चुनेगा.”

छोटी माँ का ये सवाल सुनकर मुझे हँसी आ गयी. मैं अपनी हँसी रोक ना पाया और मैने हंसते हुए कहा.

मैं बोला “आज आपको क्या हो गया है. कैसे बच्चों जैसे सवाल किए जा रही हो.”

छोटी माँ बोली “मेरे सवाल बच्चों जैसे है तो क्या हुआ. तू उन बच्चों जैसे सवालों का भी तो, सही से जबाब नही दे पा रहा है.”

मैं बोला “इसमे जबाब क्या देना. क्या आप इतना भी नही समझती कि, एक बच्चे के लिए उसकी माँ से बढ़ कर कुछ नही होता.”

छोटी माँ बोली “मैं क्या समझती हूँ और क्या नही, ये तू मुझ पर छोड़ दे. तू बस अपना जबाब दे कि, तू अपने पापा और मुझ मे से किसको चुनेगा और क्यो चुनेगा.”

मैं बोला “मैं आपको चुनुगा.”

छोटी माँ बोली “ऐसे नही, ज़रा अच्छे से सोच कर जबाब दे.”

मैं बोला “इसमे सोचना क्या है. मैं हर हाल मे आपको ही चुनुगा.”

छोटी माँ बोली “ये तूने इतनी आसानी से इसलिए बोल दिया है. क्योकि अभी तेरे पापा, तुझसे बिल्कुल प्यार नही करते. मगर मान ले, वो तुझे बहुत प्यार करने लगे, तब तू दोनो मे किसको चुनेगा.”

एक पल को पापा के प्यार ना करने वाली बात मेरे दिल को चुभ गयी. मुझे ऐसा लगा जैसे छोटी माँ ने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया. कुछ देर के लिए मैं सच मे सोच मे पड़ गया. मगर अगले ही पल मेरे दिल ने अपना फ़ैसला सुना दिया. मैने छोटी माँ से कहा.

मैं बोला “पापा मुझे कितना ही प्यार क्यो ना कर लें. मगर मैं दोनो मे से, आपको ही चुनुगा.”

छोटी माँ बोली “ऐसा क्यो, क्या तेरे लिए तेरे पापा के प्यार का कोई मोल नही है.”

मैं बोला “आपके सवाल का जबाब तो मैने दे दिया. फिर इसमे क्यो वाली बात कहाँ से आ गयी.”

छोटी माँ बोली “नही, अभी मेरे सवाल का पूरा जबाब तूने नही दिया. मैने पुछा था की, किसको चुनेगा और क्यो चुनेगा. यदि तू वजह नही बताता है तो, मैं यही समझुगी कि, तू झूठ बोल रहा है और ये बात तूने सिर्फ़ मेरा दिल रखने के लिए कही है.”

मैं बोला “मुझे कोई झूठ बोलने की ज़रूरत नही है. मैने जो कहा वही सच है. दुनिया मे आपसे बढ़ कर मेरे लिए कुछ भी नही है. पापा क्या, दुनिया मे कोई भी, कभी आपकी जगह नही ले सकता. आपके प्यार से बढ़ कर मेरे लिए कुछ भी नही है और आपको चुनने के लिए मुझे कभी भी सोचने की ज़रूरत नही है. भला एक बेटे के लिए, उसकी माँ से भी बढ़ कर कुछ होता है क्या.”

ये कह कर मैं छोटी माँ के जबाब का इंतजार करने लगा. मुझे लग रहा था कि, मेरे इस जबाब के बाद, छोटी माँ के पास कहने को कुछ नही रहेगा. लेकिन ऐसा नही हुआ. उन्हो ने मेरी बात सुनकर कहा.

छोटी माँ बोली “जब तेरे लिए, तेरी माँ से बढ़ कर कुछ नही है तो, फिर तू अपने पापा के प्यार की कमी को क्यो महसूस करता है. क्या मैं, तुझे प्यार नही करती या फिर मेरे प्यार मे कुछ कमी है.”

छोटी माँ की बात सुनकर मैं सन्न रह गया. मेरे पास उनकी इस बात का कोई जबाब नही था और मैं खामोश रहने के सिवा कुछ ना कर सका. मुझे खामोश देख कर उन्हो ने फिर कहा.

छोटी माँ बोली “क्या हुआ, कुछ बोलता क्यो नही. क्या सच मे मैं तुझे प्यार नही करती या फिर मेरे प्यार मे कुछ कमी है.”

मुझे अपनी ग़लती का अहसास हो चुका था और ये बात भी मेरे समझ मे आ चुकी थी कि, इतनी देर से छोटी माँ, बच्चों की तरह की बातें क्यो कर रही थी. मैने उन के सामने अपनी ग़लती मानते हुए कहा.

मैं बोला “सॉरी मम्मी, मैं ग़लत था, जो उस बात को लेकर इतना दुखी हो गया. आपके प्यार मे कभी कोई कमी नही रही. मैं ही नासमझ था, जो इस बात को पहले ना समझ सका कि, मेरे पास तो दुनिया का सबसे अनमोल प्यार है. जिसकी बराबरी किसी का भी प्यार नही कर सकता. मुझसे खुशनसीब तो इस दुनिया मे कोई दूसरा नही होगा. जिसे इतना प्यार करने वाली माँ मिली हो.”

मेरी बात सुनकर छोटी माँ ने एक ठंडी साँस ली. उन्हे इस बात की खुशी थी कि, जो बात वो मुझे समझाना चाहती थी, वो बात मैं समझ गया. उन्हों ने आगे मुझे समझाते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “देख जो हुआ, उसे भूल जा. लेकिन मेरी एक बात हमेशा याद रखना. इस दुनिया मे, किसी के पास भी, सब कुछ नही रहता. हर इंसान को, किसी ना किसी बात की कमी रहती ही है. लेकिन खुश सिर्फ़ वो ही इंसान रहता, जो अपनी कमियों को नही, बल्कि उन चीज़ों को देखता है, जो उसे जिंदगी मे हासिल है.”

“इसलिए जब कभी भी तुझे, अपनी जिंदगी मे, किसी कमी का अहसास हो तो, सिर्फ़ उन चीज़ों की तरफ देखना, जो तुझे जिंदगी मे हासिल है. तब तुझे कभी किसी चीज़ की कमी से दुख नही होगा.”

ये बोल कर छोटी माँ चुप हो गयी. मैने उन्हे इस बात का विस्वास दिलाया कि, मैं उनकी बात को समझ चुका हूँ और अब कभी उन्हे शिकायत का मौका नही दूँगा. फिर छोटी माँ से थोड़ी बहुत हल्की फुल्की बातें करने के बाद मैने फोन रख दिया.

छोटी माँ से बात करने के बाद मैं अपने आप मे एक नयी ताज़गी महसूस कर रहा था. मुझे अब सिर्फ़ कीर्ति के कॉल के तनाव के सिवा कोई तनाव नही था. क्योकि मैं जब छोटी माँ से बात कर रहा था. तब वो मेरे दोनो मोबाइल पर कॉल लगाती जा रही थी.

मैने दूसरे मोबाइल पर उसका कॉल दो तीन बार काटा, उसके बाद भी उसका कॉल आता रहा. वो उस समय शायद अपने रूम मे रही होगी. इसलिए उसे ये समझ मे नही आया कि, मैं छोटी माँ से बात कर रहा हू.

खैर मेरे लिए ये कोई ज़्यादा तनाव वाली बात नही थी. इसलिए मैं मेहुल को कॉल लगाकर उस से बात करने लगा. इतनी देर तक मेरे हॉस्पिटल मे नज़र ना आने की वजह से, मेहुल को लगा था कि, मैं घर जा चुका हूँ और वो कुछ देर बाद अंकल के पास चला गया था.

मेहुल ने मुझसे घर जाने को कहा तो, मैने कह दिया कि, जब तक प्रिया सो कर नही उठती है, तब तक मैं यही रहुगा. फिर थोड़ी बहुत बात करने के बाद मैने फोन रख दिया.

मैने घड़ी देखी तो 5 बज चुका था. मुझे दादा जी लोगों के पास से आए बहुत देर हो गयी थी. इसलिए अब मैं उपर उन लोगों के पास जाना चाहता था. मगर उसके पहले कीर्ति से बात करना भी ज़रूरी था. वरना उपर पहुचते ही उसका कॉल आ सकता था.

यही सोच कर, मैने कीर्ति को कॉल लगा दिया. लेकिन जब दो तीन बार कॉल जाने के बाद भी कीर्ति ने कॉल नही उठाया तो, मुझे लगा शायद वो किसी काम मे बिज़ी है. इसीलिए मैने उसे कॉल लगाना बंद किया और सबके पास उपर हॉस्पिटल मे चला गया.

मैने वहाँ पहुच कर, दादा जी से प्रिया की तबीयत का पता किया. प्रिया अभी भी दवा के असर से सो ही रही थी. मैं भी सबके साथ वहाँ बैठ कर, प्रिया के जागने का इंतजार करने लगा.

सब आपस मे कुछ ना कुछ बात कर रहे थे. लेकिन निक्की बिल्कुल खामोश थी. मैने एक दो बार उस से बात करने की कोसिस की, मगर वो मेरी किसी भी बात का सही से जबाब नही दे रही थी.

शायद अभी भी निक्की की नाराज़गी दूर नही हुई थी. उसका नाराज़ होना जायज़ था, मगर फिर भी मुझे, उसकी ये नाराज़गी अच्छी नही लगी और मैं वेटिंग लाउंज से बाहर निकल आया.

बाहर पोर्च मे आकर मैं कीर्ति को कॉल लगाने लगा. मगर अभी भी कीर्ति कॉल नही उठा रही थी. अब मुझे समझते देर नही लगी कि, कीर्ति शायद उसका कॉल ना उठाए जाने की वजह से, मुझसे नाराज़ है और इसी गुस्से मे, वो कॉल नही उठा रही है.

आज का दिन, मेरे लिए बहुत ही अजीब था. जहाँ जा रहा था, सबकी नाराज़गी मोल ले रहा था. यदि आज छोटी माँ भी मुझसे नाराज़ हो गयी होती तो, ये दिन मेरे लिए एक मनहूस दिन ही कहलाता.

लेकिन छोटी माँ से बात करके मुझे जो शुकून मिला था. उसने मेरे अंदर एक विस्वास जगा दिया था और मुझे एक नयी ताक़त दी थी. जिसे महसूस करने के बाद, मुझे ये सब बातें बहुत छोटी लगने लगी थी.

मुझे विस्वास था कि, कीर्ति और निक्की की नाराज़गी को दूर करना कोई बड़ी बात बही है. अपने इसी विस्वास के चलते मैने अपना मोबाइल निकाला और मेहुल के मोबाइल से लिए हुए शायरी वाले एसएमएस देखने लगा.

उसमे मुझे नाराज़गी के उपर दो एसएमएस मिल गये. उन मे से मैने एक एसएमएस कीर्ति को और दूसरा एसएमएस निक्की को सेंड कर दिया.

कीर्ति को सेंड किया एसएमएस
“ना रुलाना बुरा है,
ना सताना बुरा है,
बस ज़रा ज़रा सी बात पर,
तेरा रूठ जाना बुरा है.”

निक्की को सेंड किया एसएमएस
“दोस्त दोस्त से कभी खफा नही होते,
दिल दिल से कभी जुदा नही होते,
भुला देना हमारी कमियों को,
क्योकि इंसान कभी खुदा नही होते.”

कीर्ति और निक्की को एसएमएस सेंड करने के बाद, मैने एक ठंडी साँस ली और फिर वही पोर्च मे रखी चेयर पर बैठ गया. थोड़ी ही देर बाद मुझे निक्की वेटिंग लाउंज से बाहर निकलती दिखी.

मैं वेटिंग लाउंज के बिल्कुल सामने ही बैठा था. इसलिए लाउंज से बाहर निकलते ही निक्की की नज़र मुझ पर पड़ गयी और वो सीधे मेरे पास आने लगी. लेकिन निक्की के मेरे पास पहुचने से पहले ही कीर्ति का एसएमएस आ गया.

कीर्ति का मेसेज
“कोई रूठे यहाँ तो कौन मनाने आता है,
रोनेवाला खुद ही चुप हो जाता है,
दुनिया भूल जाए तो कोई गम नही होता,
जब अपने भूल जाए तो रोना आता है.”

मैं जब तक एसएमएस पढ़ता रहा, तब तक निक्की मेरे पास आकर खड़ी हो गयी थी. तभी मेरे दिमाग़ मे निक्की को मनाने का एक तरीका आया और मैने अपना मोबाइल उसकी तरफ बढ़ा दिया.
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