MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 02:23 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
111
पहले तो निक्की को कुछ समझ मे नही आया कि, मैं उसे अपना मोबाइल क्यों दे रहा हूँ. लेकिन जब उसने मोबाइल हाथ मे लिया तो, उसे उस मे कीर्ति का एस.एम.एस दिखाई दिया. एस.एम.एस देखते ही निक्की समझ गयी की, किसी बात पर कीर्ति मुझसे नाराज़ हो गयी है. उसने मुस्कुराते हुए कहा.

निक्की बोली “अब क्या हुआ. फिर किसी बात पर आप दोनो लड़ गये क्या.”

मैं बोला “मैं कहाँ लड़ा, वो भी आपकी तरह ही, बिना किसी बात के, मुझसे नाराज़ हो गयी है.”

ये कह कर, मैने निक्की को, छोटी माँ से बात करते समय कीर्ति के कॉल आने की बात बता दी. जिसे सुनकर निक्की ने कहा.

निक्की बोली “ये तो कोई बड़ी बात नही है. आप उसे सारी सच्चाई बता दो. उसकी नाराज़गी दूर हो जाएगी.”

मैं बोला “सच्चाई तो तब बताउन्गा. जब वो मेरा कॉल उठाए. वो मेरा कॉल ही नही उठा रही है. इसलिए मैने उसे एस.एम.एस किया था. उसके बदले मे, उसका ये एस.एम.एस आया है.”

निक्की बोली “इस एस.एम.एस से तो, वो सच मे बहुत नाराज़ लग रही है. वैसे आपने उसको मनाने के लिए क्या एस.एम.एस किया था.”

मैने निक्की को अपना भेजा हुआ एस.एम.एस दिखाया तो, उसको हँसी आ गयी. उसने हंसते हुए मुझसे कहा.

निक्की बोली “आप उसको मना रहे थे, या फिर उसको उसकी ग़लती बता रहे थे.”

मैं बोला “मैं कोई शायर तो हूँ नही. मेरे पास मेहुल के मोबाइल से ली हुई जो शायरी थी. उसी मे से दो शायरी ढूँढ कर, आप दोनो को मनाने के लिए सेंड कर दी. अब मुझे क्या मालूम था कि, उसे मेरी भेजी शायरी पसंद नही आएगी.”

निक्की बोली “क्या शायरी भेजना ज़रूरी थी. यदि शायरी नही आती तो, सीधे एक सॉरी का एस.एम.एस कर देते. वो उसी मे खुश हो जाती.”

अभी मेरी निक्की इस बात का कोई जबाब दे पाता. उस से पहले ही कीर्ति का दूरा एस.एम.एस आ गया.

कीर्ति का एस.एम.एस
“होंटो को मुस्कुराने की हसरत नही रही,
कोई हमे भी चाहे, ये चाहत नही रही,
दिल को है यक़ीन कि कोई ना आएगा मनाने को,
ये सोच कर अब रूठ जाने की आदत ही नही रही.”

कीर्ति का एस.एम.एस देख कर मुझे लगा कि वो मुझसे कुछ ज़्यादा ही नाराज़ है. मैने वो एस.एम.एस निक्की को दिखाया तो, निक्की हँसने लगी. मैने निक्की को हंसते हुए देखा तो कहा.

मैं बोला “भला ये क्या बात हुई. ऐसे समय मे आपको, कीर्ति को मनाने मे, मेरी मदद करना चाहिए तो, आप मेरी हालत पर हंस रही है.”

निक्की बोली “अब बात ही हँसने की है तो, हंस रही हूँ. मुझे लगता है कि, वो आपसे नाराज़ नही है. बस आपको थोड़ा सा सता रही है.”

मैं बोला “ऐसा क्यो. यदि वो नाराज़ नही है तो, फिर मुझे क्यो सता रही है.”

निक्की बोली “शायद वो चाहती है कि, आप उसे मनाओ. इसलिए तो वो बार बार मनाने वाले एस.एम.एस भेज रही है.”

मैं बोला “यदि ऐसी बात है तो, मैं अभी कॉल करके उसे मना लेता हू.”

ये कह कर मैं कीर्ति को कॉल करने को हुआ. मगर निक्की ने कॉल करने से रोकते हुए कहा.

निक्की बोली “रुकिये, ये क्या कर रहे है. उसको उसी के तरीके से मनाइए.”

मैं बोला “कैसे.”

निक्की बोली “लाइए, मोबाइल मुझे दीजिए.”

निक्की की बात सुनकर मैने निक्की को मोबाइल दे दिया. निक्की ने मोबाइल लेकर एक एस.एम.एस टाइप किया और कीर्ति को सेंड कर दिया.

निक्की का एस.एम.एस
“मुझसे रूठना मत,
मुझे मनाना नही आता,
मुझसे दूर मत जाना,
मुझे बुलाना नही आता ,
तुम मुझे भूल जाओ,
ये तुम्हारी मर्ज़ी,
पर मैं क्या करूँ,
मुझे भूलना नही आता.”

निक्की के एस.एम.एस सेंड करने के कुछ ही देर बाद, कीर्ति का एस.एम.एस भी आ गया.

कीर्ति का एस.एम.एस
“दर्द होता नही दुनिया को बताने के लिए,
हर कोई रोता नही आँसू बहाने के लिए,
रूठने का मज़ा तो तब है,
जब कोई अपना हो मनाने के लिए.”

कीर्ति का एस.एम.एस देखते ही, निक्की के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. उसने मुझे एस.एम.एस दिखाते हुए कहा.

निक्की बोली “कीर्ति का एस.एम.एस देखा. उसने फिर मनाने वाला ही एस.एम.एस भेजा है.”

मैं बोला “वो तो ठीक है. लेकिन अब उसके इस एस.एम.एस का जबाब क्या दें.”

निक्की बोली “रुकिये,थोड़ा सोचने दीजिए.”

ये बोल कर निक्की कुछ सोचने लगी. थोड़ी देर सोचने के बाद, उसने एक एस.एम.एस टाइप किया और कीर्ति को भेज दिया.

निक्की का एस.एम.एस
“माना कि मोहब्बत जताना हम को आता नही,
शरारतों से अपनी मैं तुमको सताता नही,
सहता हूँ नाज़-नखरे तेरी मोहब्बत मे,
फिर ना कहना कि ये आशिक़ तुमको मनाता नही.”

निक्की के एस.एम.एस सेंड करने के कुछ ही देर बाद, कीर्ति का एस.एम.एस आ गया.

कीर्ति का एस.एम.एस
“ये मेरा रूठना तुझ से, तेरा मुझ को मना लेना,
मोहब्बत की निशानी है, गले मुझको लगा लेना,
मोहब्बत जिस से होती है, उसी पे मान होता है,
जो मैं फिर रूठ जाउ तो, मुझे तुम फिर मना लेना,
आन से दूर ही रहना, कि ये सब कुछ मिटा देगी,
आन के खेल से खुद को, हर सूरत बचा लेना,
मोहब्बत के समंदर मे, कभी तूफान भी उठता है,
इस तूफान मे जान तुम, मुझे कश्ती बना लेना,
अगेर डूबेंगे हम दोनो, तो एक साथ ही डूबेंगे,
मेरा तुम से ये वादा है, मगर तुम भी साथ निभा लेना.”

निक्की ने कीर्ति का एस.एम.एस मुझे दिखया और फिर एक एस.एम.एस टाइप करके कीर्ति को भेज दिया.

निक्की का एस.एम.एस
“जो किया है तुमने वादा, वो उमर भर निभाना,
मेरी ज़िंदगी है तुमसे, कहीं तुम बदल ना जाना,
जो छुपि थी बात दिल मे, वो लबों पे आ गयी है,
मेरे दिल की धड़कने है, तेरे प्यार का फसाना,
तेरे प्यार की निशानी, मुझे ज़िंदगी से प्यारी,
मेरे प्यार की गवाही, ये मेरा तुझे मनाना,
जो किया है तुमने वादा, वो उमर भर निभाना,
मेरी ज़िंदगी है तुमसे, कहीं तुम बदल ना जाना.”

निक्की के एस.एम.एस सेंड करने के कुछ ही देर बाद, कीर्ति का जबाब भी आ गया. निक्की ने एस.एम.एस देख कर मुस्कुराते हुए, मोबाइल मेरी तरफ बढ़ा दिया.

कीर्ति का एस.एम.एस
“बात बात पर सताना अच्छा लगता है,
अपनी शरारतों से प्यार जताना अच्छा लगता है,
मनाते हो जब तुम इस शरारती अंदाज़ से,
वो वक्त बहुत ही सुहाना लगता है.”

मैने कीर्ति का एस.एम.एस देखा तो, मेरे चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गयी. मैने वापस मोबाइल निक्की को दे दिया. निक्की ने फिर एक एस.एम.एस टाइप करके कीर्ति को भेज दिया.

निक्की का एस.एम.एस
“कहते नही कुछ भी हम से वो सीधे-सीधे,
पर बात बात पर हज़ूर रूठ जाएँगे,
मनाओ जो उनको तो कहते है कि हम गुस्सा नही,
आँखों मे भर पानी, फिर गले लग जाएँगे,
प्यार का ये अंदाज़ भी उनका निराला है,
अभी हुई है सुलह, देखो अभी फिर से रूठ जाएँगे.”

थोड़ी ही देर मे फिर से कीर्ति का जबाब आ गया. निक्की ने एस.एम.एस देख कर मोबाइल मुझे दे दिया.

कीर्ति का एस.एम.एस
“तुमसे रोज़ मिलने को दिल चाहता है,
कुछ सुनने सुनने को दिल चाहता है,
था तुम्हारे मनाने का अंदाज़ कुछ ऐसा,
कि फिर से रूठ जाने को दिल चाहता है.”

मैं कीर्ति का एस.एम.एस पढ़ने के बाद मोबाइल वापस निक्की को देने लगा तो, निक्की ने कहा.

निक्की बोली “अब बस, अभी के लिए इतना काफ़ी है. अब उसको कॉल करके बात कर लीजिए. यदि फिर वो नाराज़ हो जाए तो, मुझे बुला लीजिएगा. अब मैं चलती हूँ.”

ये बोल कर निक्की हंसते हुए, मेरे पास से उठ कर वापस वेटिंग लाउंज की तरफ चल दी. मैं निक्की को जाते हुए देखता रहा और जब निक्की मेरी नज़रों से ओझल हो गयी तो, मैने कीर्ति को कॉल लगा दिया.

मेरा कॉल आते देख कर, कीर्ति ने फ़ौरन मेरा कॉल काट कर, मुझे वापस कॉल लगा दिया. मैने जैसे ही कॉल उठाया, मुझे कीर्ति के गाना गाने की आवाज़ सुनाई दी.

वो बड़ी मस्ती मे ज़ोर ज़ोर से गा रही थी. ऐसा लग रहा था, जैसे कि वो गाना गाते गाते नाच भी रही थी. मैं चुप चाप उसका गाना सुनने लगा.

कीर्ति का गाना
“ये गोरे गोरे से छोरे,
ये गोरे गोरे से छोरे,
ये इश्क इश्क चिल्लाते है, ऊवू येआः,
ये गली गली मंडराते है, ऊवू येआः,
शादी की डगर ना जाए मगर,
ये गोरे गोरे से छोरे,
ये गोरे गोरे से छोरे,

अंदर से चाहे कुछ भी हो ये,
अदा मगर है हीरो वाली,
दिन रात किताबें पढ़ते है ये,
लड़की की तस्वीरों वाली,
कहीं जीवन मेला ओये शावा,
पर शादी जमेला ओये शावा,
दरवाजा इन्हे दिखलाओ ज़रा,
ये गोरे गोरे से छोरे,
ये गोरे गोरे से छोरे.”

कीर्ति का गाना सुनकर मुझे हँसी भी आ रही थी और उसे इस तरह खुश देख कर दिल को शुकून भी मिल रहा था. मैं खामोशी से उसका गाना सुनता रहा और उसकी उच्छल कूद को महसूस करता रहा.

जब वो गाना गाना बंद हुआ और उसकी उच्छल कूद रुकी तो, मैने उसे टोकते हुए कहा.

मैं बोला “ये सब क्या चल रहा था. मैं कब से फोन पर हूँ.”

लेकिन आज कीर्ति कुछ अलग ही मूड मे लग रही थी. उसने मेरी बात को अनसुना करके दूसरा गाना गाना सुरू कर दिया और मैं खुद भी उसके इस गाने को सुन कर किसी दूसरी दुनिया मे खो सा गया.

कीर्ति का गाना
“माए नि माए मुंधेर पे तेरी बोल रहा है काग़ा
जोगन हो गई तेरी दुलारी, मन जोगी संग लागा

छन माहिया छन माहिया मेरे ढोल सिपाहिया
छन माहिया छन माहिया मेरे ढोल सिपाहिया

चाँद की तरह चमक रही थी उस जोगी की काया
मेरे द्वारे आके उसने प्यार का अलख जगाया
अपने तन पे भस्म रामा के सारी रैन वो जागा
जोगन हो गयी तेरी दुलारी मन जोगी संग लागा

सुन हीरिए नाच हीरिए नाच के राग जमा
सुन हीरिए नाच हीरिए नाच के धूम मचा

मन्नत माँगी थी तूने एक रोज़ मैं जाऊं बिहाई
उस जोगी के संग मेरी तू कर दे अब कुरमाई
इन हाथों पे लगा दे महेंडी, बाँध शगुन का धागा
जोगन हो गयी तेरी दुलारी मन जोगी संग लागा

माए नि माए मुंधेर पे तेरी बोल रहा है काग़ा
जोगन हो गई तेरी दुलारी, मन जोगी संग लगा.”

कीर्ति की सुरीली आवाज़ मे ये गाना सुनकर मैं सपनो की दुनिया मे पहुच गया. मुझे दुल्हन के लिबास मे सजी सँवरी कीर्ति नज़र आ रही थी और मैं उसी के दीदार मे खो गया.

मुझे पता ही नही चला की, कब कीर्ति का गाना ख़तम हो गया और वो मुझे खामोश देख कर हेलो हेलो कर रही थी. जब मैने उसकी बात का कोई जबाब नही दिया तो, उसने मेरे दूसरे मोबाइल पर कॉल लगा दिया.

दूसरे मोबाइल पर कॉल आने से, मैं अपने सपनो की दुनिया से बाहर आ गया. मगर अब भी मेरे उपर उस सपने की खुमारी छाइ हुई थी. मैने उसी खुमारी भरे अंदाज़ मे कीर्ति से कहा.

मैं बोला “आइ लव यू जान, आइ रियली मिस यू. मुउउहह.”

कीर्ति बोली “आइ लव यू सो मच जान. मुऊऊउऊहह.”

इतना बोलने के बाद दोनो तरफ से एक गहरी खामोशी छा गयी. मेरे दिल मे कीर्ति को देखने की तड़प ने, मुझे खामोश कर दिया था. शायद यही हाल कीर्ति का भी था और वो भी कुछ बोल नही पा रही थी.

अचानक ही एक खुशनुमा महॉल, एक संजीदा महॉल मे बदल गया था. मगर अब मुझे अपनी तड़प से ज़्यादा, कीर्ति की हँसी की परवाह सता रही थी. मैं नही चाहता था कि, कीर्ति की हँसी खुशी, एक पल के लिए भी उस से दूर रहे.

इसलिए मैने फ़ौरन अपने आपको संभाला और अपनी तड़प को छिपा कर, कीर्ति को छेड़ते हुए कहा.

मैं बोला “गुड, बहुत अच्छी बात है. तू यहाँ डॅन्स कर रही है और मैं तुझे नाराज़ देख कर बेकार मे ही परेशान हुआ पड़ा था.”

मेरी बात सुनते ही कीर्ति की हँसी छूट गयी. उसने मासूम बनते हुए कहा.

कीर्ति बोली “मैं कहाँ तुमसे नाराज़ थी.”

मैं बोला “यदि नाराज़ नही थी तो, फिर मेरा कॉल क्यो नही उठा रही थी.”

कीर्ति बोली “वो तो मैने इसलिए नही उठाया था, क्योकि जब मैने तुमको कॉल लगाई थी तो, तुमने मेरा कॉल नही उठाया था.”

मैं बोला “तब मैं छोटी मा से बात कर रहा था. तुझे मेरा फोन बिज़ी देख कर समझ जाना चाहिए था कि, मैं किसी से बात कर रहा हूँ.”

कीर्ति बोली “वो तो मुझे मालूम था कि, तुम मौसी से बात कर रहे हो, इसीलिए तो मैं कॉल लगा रही थी.”

मैं बोला “जब तुझे मालूम था कि, मेरी छोटी माँ से बात चल रही है तो, फिर तुझे बार बार कॉल करने की ज़रूरत क्या थी.”

कीर्ति बोली “मुझे सुनना था कि, ऐसी क्या बात चल रही है, जिसे सुनकर मौसी रोने लगी थी.”

मैं बोला “अब तू छोटी माँ की जासूसी भी करने लगी है.”

कीर्ति बोली “इसमे जासूसी की बात कहाँ से आ गयी. मैं मौसी के कमरे मे काम से गयी थी तो, उन्हे फोन पर बात करते करते रोते देखा. उनकी बातों से समझ मे आया कि, वो तुमसे बात कर रही है. इसलिए मैने तुमको कॉल लगा रही थी. लेकिन तुमने मेरा कॉल उठाया ही नही.”

मैं बोला “तो इसमे कौन सी बड़ी भारी बात हो गयी थी. तू मुझसे बाद मे भी पुछ सकती थी. क्या कभी मैं तुझसे कोई बात छिपाता हूँ.”

कीर्ति बोली “नही छिपाते, लेकिन मेरा बात सुनने का मन था.”

मैं बोला “तू बात सुन भी लेती तो, उस से क्या हो जाता. यदि बात सुनने के बाद मैं तुझसे कुछ पुछ्ता तो, तू ये ही कहती कि, अब इसमे, मैं क्या बोलू, तुम्हे जो ठीक लगे, वो तुम करो.”

मेरी बात सुनते ही कीर्ति समझ गयी कि, उसने सुबह प्रिया की बात पर, जो जबाब मुझे दिया था, मैं उसी जबाब को, उसके सामने दोहरा रहा हूँ. उसने अपनी ग़लती मानने वाले अंदाज़ मे कहा.

कीर्ति बोली “सॉरी जान, मैं जानती हूँ कि, तुम्हे मेरी सुबह की बात बुरी लगी है.”

मैं बोला “मुझे तेरी इस बात का ज़रा भी बुरा नही लगा. मुझे तो बस ये बात खराब लगी कि, उस समय तेरे मन मे, कोई बात चल रही थी. मगर तूने वो बात मुझे नही बताई.”

कीर्ति बोली “जान इसके लिए भी सॉरी. मैने ग़लती की थी. मुझे अपने मन की बात, तुमसे बोल देनी चाहिए थी.”

मैं बोला “अब सॉरी सॉरी ही करती रहेगी या बताएगी भी कि, उस समय तुझे क्या बात परेशान कर रही थी, जो तूने मुझे इस तरह का जबाब दिया था.”

कीर्ति बोली “जान, प्रिया का रोना देख कर, मुझे उस पर बहुत दया आ रही थी. मेरा दिल कर रहा था कि, तुम उसकी बात मान कर, वही रुक जाओ. लेकिन तुमने मेरी वजह से उसकी बात नही मानी और उसे रोता हुआ छोड़ कर आ गये.”

“मेरे सामने उसका वही बिलख बिलख कर रोना घूम रहा था और मुझे लग रहा था. वो दिल की मरीज भी है और इस तरह से रोना उसके लिए ख़तरनाक भी हो सकता था. बस यही सब सोच कर मुझे लगने लगा था कि, उसकी ग़लती की उसे बहुत बड़ी सज़ा दी जा रही है.”

“उस समय मेरा मन प्रिया की हालत देख कर दुखी था. लेकिन तुमसे ये सब करने को भी तो, मैने ही कहा था. फिर मैं तुमसे ये बात किस मूह से कहती कि, तुमने उसकी बात ना मान कर ग़लत किया है. मेरी समझ मे नही आ रहा था कि, मैं तुम्हारी बात का जबाब दूं. इसलिए मैने तुम्हे वो जबाब दे दिया था.”

इतना बोल कर कीर्ति चुप हो गयी. लेकिन उसके दिल की गहराई को देख कर मुझे उस पर बहुत प्यार आया और मैने उस से कहा.

मैं बोला “तेरा दिल सच मे सोने का है. जिसमे किसी के लिए भी, ज़रा सी खोट नही है.”

मेरी बात के पूरा होने के पहले ही कीर्ति ने मेरी बात को काटते हुए कहा.

कीर्ति बोली “ओये, अब मस्का लगाना छोड़ो और ये बताओ कि, तुम आज दिन भर सोए क्यो नही. तुम्हे तो आज से रात को हॉस्पिटल मे रुकना था ना. यदि तुम अभी 7 बजे तक जाग रहे हो तो, फिर रात को हॉस्पिटल मे कैसे रुकोगे.”

कीर्ति की बात सुनकर मैने उसे प्रिया की तबीयत के बारे मे बता दिया. जिसे सुनकर उसे प्रिया की चिंता होने लगी और उसने मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “जान, प्रिया ठीक तो हो जाएगी ना. उसे कुछ होगा तो नही.”

मेरे कीर्ति की बात का, कुछ जबाब दे पाने से पहले ही, मुझे निक्की मेरे पास आती दिखी तो, मैने कीर्ति को कुछ देर रुकने को कहा. तब तक निक्की मेरे पास आ चुकी थी. निक्की ने मेरे पास आते ही कहा.

निक्की बोली “प्रिया नींद से उठ गयी है और उसे जो साँस लेने मे परेशानी हो रही थी, वो भी अब ठीक हो गयी है. लेकिन उसके रक्त का दबाव (ब्लड प्रेशर) अभी भी सामान्य (नॉर्मल) से कम है. जिसे ठीक होने मे समय लगेगा. मगर डॉक्टर. ने एक एक करके सबको उस से मिलने की इजाज़त दे दी है. आप भी चल कर उस से मिल लीजिए.”

मैं बोला “ठीक है, जब आप मिलने जाए तो, मुझे भी बुला लीजिएगा.”

मेरी बात सुनकर निक्की वापस चली गयी. निक्की के जाते ही मैने कीर्ति से कहा.

मैं बोला “तूने प्रिया की तबीयत के बारे मे सुना.”

कीर्ति बोली “हाँ, ये बहुत अच्छा हुआ कि, उसे कुछ नही हुआ. वरना मैं जिंदगी भर अपने आपको कोस्ती रहती.”

मैं बोला “अब तो प्रिया ठीक है. फिर तू क्यो ये सब बेकार की बात सोच रही है. ये सब सोचना बंद कर और जैसे अभी इसके पहले खुश थी, वैसे ही खुश रह.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति ने अपना मूड सही करते हुए कहा.

कीर्ति बोली “ओक जान, प्रिया के ठीक होने की खुशी मे, तुमको एक गाना और सुनाती हूँ.”

इतना बोल कर कीर्ति ने, बिना मेरा कोई जबाब सुने, फिर से अपनी मस्ती और उच्छल कूद सुरू कर दी.

कीर्ति का गाना
“ऐसा जादू डाला रे, ऐसा जादू डाला रे,
सूरमाई है उजाला रे, ऐसा जादू डाला रे,
जो मेरी ज़ुल्फो से खेले रे, बाहो मे मुझको लेले रे,
ऐसा है कोई दिलवाला रे, ऐसा है कोई दिलवाला रे,
ऐसा है कोई दिलवाला रे, ऐसा है कोई दिलवाला रे.”

कीर्ति अपनी मस्ती मे मस्त थी. मगर मैने उसको बीच मे ही रोकते हुए कहा.

मैं बोला “चल अब अपनी नौटंकी बंद कर और फोन रख. मुझे प्रिया को देखने भी जाना है.”

कीर्ति बोली “ओके जान, रात को बात करते है. मुऊऊुउऊहह.”

मैं बोला “मुऊऊऊहह.”

इसके बाद कीर्ति ने फोन रख दिया और मैं उठ कर वेटिंग लाउन्ज मे चला गया. एक एक करके सब प्रिया से मिलने जा रहे थे. जब निक्की प्रिया से मिलने जाने लगी तो, मैं भी उसके साथ हो गया.

मैं और निक्की जब आइसीयू मे पहुचे तो, वहाँ पर प्रिया के पास आंटी थी. उन्हो ने मुझे और निक्की को एक साथ देखा तो, वो उठ कर बाहर आ गयी. क्योकि वहाँ पर 2 से ज़्यादा लोगों को रहने की इजाज़त नही थी.

आंटी के जाते ही निक्की प्रिया के पास जाकर बैठ गयी और मैं उन दोनो के पास जाकर खड़ा हो गया. प्रिया की हालत अभी भी ठीक नही लग रही थी. उसने एक नज़र मेरी तरफ देखा और निक्की की तरफ देखने लगी.

निक्की ने बड़े प्यार से प्रिया के हाथ को पकड़ा और फिर उसके हाथ को सहलाते हुए, उस से कहा.

निक्की बोली “तूने तो हम सब की जान ही निकाल दी थी. तू तो आराम से सो रही थी, लेकिन यहा 4 घंटे तक हम लोगों की जान पर बनी थी.”

इतना बोल कर निक्की फिर से प्रिया के हाथ को प्यार से सहलाने लगी. प्रिया की हालत देख कर ऐसा लग रहा था कि, जैसे उसमे कुछ बोलने की भी ताक़त नही है. मगर प्रिया ने फीकी सी मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा और फिर बड़ी ही धीमी सी आवाज़ मे, निक्की की बात का जबाब देते हुए कहा.

प्रिया बोली “कोई मुझे छोड़ कर भागने की कोशिश कर रहा था. लेकिन मैं भी इतनी जिद्दी हूँ कि, उसके पिछे पिछे यहाँ तक आ गयी. अब देखती हूँ कि, वो मुझे यहाँ से छोड़ कर कैसे भागता है.”

प्रिया की ये बात सुनकर निक्की के साथ साथ मेरे चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गयी. निक्की ने प्रिया के गाल पर प्यार से एक चपत लगते हुए कहा.

निक्की बोली “तू नही सुधरेगी कमीनी. ऐसी हालत मे भी तुझे मज़ाक सूझ रहा है.”

प्रिया ने एक बार फिर से मेरी तरफ देखा और निक्की से कहा.

प्रिया बोली “हाँ, इतनी बुरी दिखने लगी हूँ कि, लोग मुझे देख कर मन ही मन मुस्कुरा रहे है.”

मैं और निक्की, दोनो ही प्रिया की बात का मतलब समझ गये थे. लेकिन मैं चुप ही रहा और प्रिया की बातों का मज़ा लेता रहा. जबकि निक्की ने फिर से प्रिया के गाल पर, प्यार से एक चपत मारी और उस से कहा.

निक्की बोली “कमीनी अब चुप भी कर, ज़्यादा मत बोल, अभी तुझे आराम की ज़रूरत है.”

मगर प्रिया तो प्रिया ही थी. वो भला इतनी आसानी से कहाँ चुप होने वाली थी. मुझे अपने पास पाकर उसके दिल को जो राहत मिली थी. अब वही राहत उसे, ऐसी हालत मे भी, बात करने की ताक़त दे रही थी और उसको उसके असली रंग मे वापस ला रही थी.

निक्की की बात, सुनने के बाद, प्रिया अपने हाथ को, धीरे से निक्की के हाथ से छुड़ाने लगी. इस से पहले कि, मैं और निक्की उसकी इस हरकत का कुछ मतलब समझ पाते, उसने अपने हाथ को निक्की के हाथ से छुड़ाया और फिर हाथ उठा कर, अपनी उंगली से मुझे अपने पास आने का इशारा किया.
Reply
09-09-2020, 02:23 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
112
मुझे और निक्की दोनो को समझ मे नही आ रहा था कि, प्रिया मुझे अपने पास क्यों बुला रही है. लेकिन निक्की का इशारा पाकर मैं प्रिया के और पास आकर खड़ा हो गया.

लेकिन प्रिया अभी भी मुझे अपने पास आने का इशारा कर रही थी. मैं उसके बाद से सट कर खड़ा था. इसलिए अब मुझे प्रिया का पास आने का इशारा करना समझ मे नही आ रहा था. मगर निक्की उसके ऐसा करने का मतलब समझ चुकी थी.

निक्की ने मुझे प्रिया के पास अपना चेहरा ले जाने का इशारा किया. मुझे निक्की का ऐसा कहना कुछ अजीब लगा लेकिन उस समय प्रिया की किसी बात को काटना, मेरे बस मे नही था.

मैने खामोशी से अपना सर प्रिया के पास झुका दिया और अपने चेहरे को बिल्कुल प्रिया के चेहरे के सामने कर दिया. प्रिया ने थोड़ा सा अपने सर को खिसकाया तो, मुझे समझ मे आ गया कि, वो कुछ कहना चाहती है.

मैने फ़ौरन अपने कान उसके सामने कर दिए. उसने अपने होंठों को बिल्कुल मेरे कानो के करीब किया और धीरे से कहा.

प्रिया बोली “सॉरी, प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो.”

ऐसी हालत मे भी प्रिया के मूह से ये बात सुनकर, मेरी आँखों मे नमी छा गयी. मैने पलट कर प्रिया के चेहरे को देखा तो, उसकी आँखों मे आँसू झिलमिला रहे थे.

मैने उसके आँसू पोन्छे और उसे चुप रहने का इशारा किया. मगर उसने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा.

प्रिया बोली “मैं सच कहती हूँ. वो सब मैने तुम्हे जान बुझ कर नही कहा था. वो सब गुस्से मे मेरे मूह से निकल गया था.”

उसके आँसू थे कि रुक ही नही रहे थे. मैने फिर उसके आँसुओं को पोन्छा और बड़े प्यार से उस से कहा.

मैं बोला “तुम इस बात को लेकर ज़रा भी परेशान मत हो. मैं इस बात को पहले से ही जानता था कि, तुम ये सब बातें सिर्फ़ गुस्से की वजह से कह रही हो. इसलिए मेरे मन मे उस बात को लेकर, ना तो पहले तुम्हारे लिए कोई मैल था और ना ही अभी कोई मैल है.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया की आँखे फिर आँसुओं से भीग गयी. मैने अपना हाथ उसके आँसू पोछ्ने के लिए बढ़ाया तो, उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा.

प्रिया बोली “तुम झूठ बोल रहे हो. यदि तुम्हे मेरी बात का बुरा नही लगा था तो, फिर तुमने घर क्यो छोड़ा. तुम मेरी बात मान कर, वहाँ रुक क्यो नही गये.”

प्रिया की बात ने मुझे अजीब परेशानी मे डाल दिया था. निक्की पास बैठी थी और उसके सामने मुझे कुछ कहने मे मुझे उलझन सी हो रही थी. लेकिन प्रिया के दिल से ये बात निकालना भी ज़रूरी था. इसलिए मैने प्रिया को समझाते हुए कहा.

मैं बोला “तुम मेरा विस्वास करो. मैने अभी तुमसे जो कुछ भी कहा है. सब सच कहा है. बाकी की बातें भी मैं तुम्हे अकेले मे बता दूँगा.”

प्रिया शायद मेरी उलझन को समझ चुकी थी. उसने मेरी उलझन को दूर करते हुए कहा.

प्रिया बोली “अभी भी मैं अकेली ही हूँ. तुम निक्की के सामने सारी बातें कर सकते हो. क्योकि दोपहर मे तुम्हारे जाने के बाद, मैने निक्की को सारी सच्चाई बता दी थी. मेरी कोई भी बात निक्की से छुपि नही रहती.”

प्रिया की बात सुनकर मुझे एक झटका सा लगा. मैं निक्की के सामने खुद को शर्मसार महसूस कर रहा था. मैं इतनी भी ताक़त नही जुटा पा रहा था कि, पलट कर एक नज़र निक्की को देख सकूँ. मगर मेरी हालत से अंजान, प्रिया ने फिर मासूमियत से कहा.

प्रिया बोली “बताओ ना, जब तुम मुझसे नाराज़ नही थे तो, फिर तुमने घर क्यो छोड़ा.”

अब प्रिया की बात का जबाब ना दे सकने की मेरे पास कोई वजह नही थी. मैने प्रिया से अपना हाथ छुड़ाया और उसके आँसुओं को सॉफ करते हुए कहा.

मैं बोला “तुमने अपनी बात उस समय बहुत गुस्से मे होने की वजह से कही थी, इसलिए मैने तुम्हारी बात का ज़रा भी बुरा नही माना था. लेकिन इस बात से भी इनकार नही किया जा सकता था कि, तुमने जो कुछ भी कहा था, वो सब पूरी तरह से झूठ था.”

“क्योकि सच तो यही था कि, मेरे बाप ने जिस थाली मे खाया था, उसी मे छेद किया था. जिस घर के लोगों ने हमें अपना समझ कर सहारा दिया था. मेरे बाप ने उसी घर की लड़की के साथ ग़लत हरकत करके, उन लोगों की पीठ पर छुरा घोंपा था.”

“मैं अपने बाप की हरकत के लिए, बेहद शर्मिंदा था और तुमसे नज़र मिला सकने की ताक़त भी, मेरे अंदर नही थी. ऐसे मे यदि मैं उस घर मे रुकता तो, मुझे रोज तुम्हारा सामना करना पड़ता और मैं रोज अपने आपको तुम्हारे सामने शर्मसार महसूस करता. इसलिए मैने तुम्हारा घर छोड़ने का फ़ैसला लिया था.”

“अब तुम मानो या ना मानो, पर सच यही है कि, मैने तुम्हारा घर, तुम्हारी बात का बुरा मान कर नही, बल्कि अपनी खुद की शर्मिंदगी की वजह से छोड़ा था. मैं किसी भी सूरत मे, अपने आपको उस घर मे रहने लायक, महसूस नही कर रहा था.”

इतना कह कर मैने एक ठंडी साँस ली और मैं खामोश हो गया. इस बात को कह देने से, मेरे मन से एक बड़ा बोझ उतर गया था. मैने प्रिया की तरफ देखा तो, वो किसी गहरी सोच मे दिख रही थी.

मुझे ये तो नही पता कि, उस समय वो क्या सोच रही थी. मगर शायद वो इस समय मेरी ही कही बात का जबाब सोच रही थी. उसकी इस सोच ने मुझे परेशानी मे डाल दिया था. क्योकि अभी उसकी तबीयत सही नही थी और ये सब बातें सोचना उसकी सेहत पर बुरा असर डाल सकती थी.

इसलिए मैने उसको, उसकी सोच बाहर निकालने के लिए, उसके हाथ को पकड़ कर दबाया. मेरे ऐसा करते ही प्रिया ने मेरी तरफ देखा तो, मैने उस से कहा.

मैं बोला “अब तुम किसी बारे मे, कुछ भी मत सोचो. तुम्हारे मन मे, जो भी सवाल है, मैं तुम्हारे हर सवाल का जबाब दूँगा. यदि तुम मुझसे घर वापस चलने का बोलोगि तो, मैं तुम्हारे साथ घर भी वापस चलुगा. लेकिन इस सब के लिए, तुम्हे जल्दी से अपनी तबीयत सही करना होगी. बोलो करोगी ना.”

मेरी बात सुनकर प्रिया के चेहरे पर रौनक आ गयी. उसने मुस्कुराते हुए हाँ मे सर को हिलाया. निक्की जो अभी खामोशी से सब कुछ सुन रही थी. उसने प्रिया की इस हरकत को देख कर, उसे छेड़ते हुए, उसका ही डाइलॉग कहा.

निक्की बोली “हाँ, अब दोस्ती की है तो, निभानी भी पड़ेगी.”

इतना कह कर निक्की हँसने लगी और मुझे भी हँसी आ गयी. मगर प्रिया ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए, उसे धीरे से एक मुक्का मारा. जिसे देख कर निक्की ने धीरे से कुछ बुद्बुदाया. जो मेरी समझ मे तो नही आया मगर शायद प्रिया समझ गयी थी और वो निक्की को फिर से मारने लगी.

निक्की थोड़ी देर तक प्रिया को ऐसे ही परेशान करती रही. लेकिन जब उसने प्रिया के चेहरे पर थकान देखी तो, उसने प्रिया को परेशान करना बंद कर दिया और उस से कहा.

निक्की बोली “चल अब बहुत बातें हो गयी. अब तू आराम कर ले. हम लोग बाहर जाते है और आंटी को, वापस भेजते है.”

इतना कह कर निक्की, बाहर जाने के लिए उठ कर खड़ी हो गयी और मेरी तरफ देखने लगी. मगर मैं अभी भी अपनी ही जगह पर खड़ा था. क्योकि प्रिया मेरे हाथ को अभी भी पकड़े हुए थी.

शायद वो नही चाहती थी कि, मैं उसके पास से जाउ, इसलिए निक्की की बात सुनने के बाद तो, उसने मेरे हाथ को और भी ज़ोर से पकड़ लिया था. मैने प्रिया के दिल की हालत को समझते हुए निक्की से कहा.

मैं बोला “आप चल कर आंटी को भेजिए. तब तक मैं प्रिया के पास ही बैठता हूँ.”

मेरी बात सुनकर निक्की के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. वो मुस्कुराते हुए बाहर जाने के लिए मूडी ही थी कि, तभी डॉक्टर निशा, एक नर्स और अंकल आंटी के साथ अंदर आई.

उन्हे देखते ही मैने प्रिया से अपना हाथ छुड़ाया और उसने भी मौके की नज़ाकत को समझते हुए फ़ौरन मेरा हाथ छोड़ दिया.

डॉक्टर निशा ने अंदर आने के बाद, सबसे पहले प्रिया से उसकी तबीयत पुछि. उसके बाद उन्हो ने मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देखा और मुझसे कहा.

डॉक्टर निशा बोली “ऑर हीरो, क्या हाल है.”

मैने भी मुस्कुरा कर उनकी बात का जबाब देते हुए कहा.

मैं बोला “मैं अच्छा हूँ. आप कैसी है.”

डॉक्टर निशा ने प्रिया की जाँच करते करते, मेरी बात का जबाब देते हुए कहा.

डॉक्टर निशा बोली “मैं भी अच्छी हूँ. लेकिन लगता है कि तुम नही सुधरोगे.”

उनकी ये बात सुनकर, मेरे साथ साथ सभी लोग हैरान होकर डॉक्टर निशा को देखने लगे. मुझे समझ मे नही आया कि, वो ऐसा क्यो बोल रही है. मैने उन से इस बात का कारण जानने के इरादे से कहा.

मैं बोला “क्यो, मैने ऐसा क्या कर दिया.”

डॉक्टर निशा बोली “अब मेरे सामने ज़्यादा स्मार्ट मत बनो. मैने तुमसे पहले ही कहा था कि, इस लड़की को खुश रखो. यही इसकी सेहत के लिए ठीक रहेगा. फिर भी तुमने इसका ख़याल नही रखा. देख लो आख़िर इसकी तबीयत खराब हो ही गयी ना.”

मेरे साथ साथ वहाँ खड़े सभी लोग उनकी बात का मतलब समझ गये थे. वो प्रिया का सही से ख़याल, ना रखे जाने की वजह से ऐसा बोल रही थी. जिसे सुनकर सबके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी थी. मैने भी उनको अपनी सफाई देते हुए कहा.

मैं बोला “आप ठीक कह रही है. मगर प्रिया ने स्कूल मे ज़्यादा उच्छल कूद की तो, इसमे मेरी क्या ग़लती है. कोई मैने तो, उस से ऐसा करने को नही कहा था.”

मेरी बात सुनकर डॉक्टर निशा ने प्रिया की जाँच करते करते, एक बार फिर मेरी तरफ तिर्छि नज़र से देखा और मुझसे कहा.

डॉक्टर निशा बोली “ओये हीरो, अपुन के साथ ज़्यादा शानपट्टी दिखाने की कोसिस नही करने का. तेरे को नही मालूम, तुम लोग जिस स्कूल मे पढ़ता है, अपुन वहाँ की प्रिन्सिपल रह चुकी है.”

डॉक्टर निशा के मूह से ये बोली सुनकर, मेरे तो चेहरे की हवाइयाँ उड़ गयी. मगर ये हाल सिर्फ़ मेरा नही था. अंकल आंटी प्रिया और नर्स भी डॉक्टर निशा की ये बोली सुनकर, बड़ी हैरानी से उन को देख रहे थे.

मगर निक्की को उनकी बात सुनकर कोई हैरानी नही हुई थी. वो उनकी बात सुनकर मुस्कुरा रही थी. उसने डॉक्टर निशा को छेड़ते हुए कहा.

निक्की बोली “वाह भाभी, आप तो शादी के पहले ही अमन भैया के रंग मे रंग गयी हो. कहीं आप दोनो का शादी के बाद, डॉक्टर-गिरी छोड़ कर गुंडा-गिरी करने का इरादा तो नही है.”

निक्की की बात सुनकर डॉक्टर निशा मुस्कुराए बिना ना रह सकी. उन्हो ने मुस्कुराते हुए निक्की से कहा.

डॉक्टर निशा बोली “नही, हमारा ऐसा कोई भी इरादा नही है. बस पुनीत को देख कर, अमन की पुरानी बातें याद आ गयी थी.”

डॉक्टर निशा की बात सुनकर, निक्की के मन मे अमन की बातों को लेकर उत्सुकता थी. उसने डॉक्टर निशा से कहा.

निक्की बोली “भाभी, क्या भैया सच मे, अपनी कॉलेज लाइफ मे एक टपोरी थे.”

निक्की की ये बात सुनकर, डॉक्टर निशा ने निक्की को गुस्से मे घूर कर देखा. लेकिन निक्की पर उनके घूर्ने का कोई असर नही पड़ा. वो अभी भी पहले की तरह ही हंस रही थी. जिसे देख कर डॉक्टर निशा ने कहा.

डॉक्टर निशा बोली “वो कोई टपोरी वपोरी नही, बल्कि कॉलेज का डॉन था.”

मगर निक्की की शरारत बंद नही हुई. उसने फिर डॉक्टर निशा को छेड़ते हुए कहा.

निक्की बोली “हाँ, दो चार चेले चपाटे बना लिए होंगे और उपर ही अपनी डॉन-गिरी चलाते होगे.”

ये सुनकर डॉक्टर निशा एक बार फिर निक्की को घूर कर देखने लगी. मगर जब उन्हो ने देखा कि, उनके घूर्ने का निक्की पर कोई असर नही पड़ रहा है तो, उन ने निक्की को अमन की डॉन-गिरी के बारे मे हुए कहा.

डॉक्टर निशा बोली “अमन के दो चार चेले नही, बल्कि दो चार कॉलेज के लड़के उसके चेले थे और पूरी यूनिवर्सिटी मे उसका रोब चलता था. कॉलेज के प्रिन्सिपल तक उसके खिलाफ कोई कदम उठाने से क़ौफ़ खाते थे. फिर टीचर्स की तो बात ही छोड़ो.”

सब बड़े गौर से डॉक्टर निशा की बात सुन रहे थे. जब डॉक्टर निशा ने सबके मन मे अमन के बारे मे जानने की उत्सुकता देखी तो, उन्हो ने अपनी बात बढ़ाते हुए आगे कहा.

डॉक्टर निशा बोली “स्टूडेंट्स पर अमन की इमेज का क्रेज़ ऐसा था कि, लड़के तो लड़के, लड़कियाँ तक, उसकी स्टाइल की नकल किया करती थी. कॉलेज की सुंदर से भी सुंदर लड़कियाँ अमन की दीवानी थी.”

डॉक्टर निशा की इस बात निक्की को फिर शरारत सूझी और उसने डॉक्टर निशा को छेड़ते हुए कहा.

निक्की बोली “मगर हमारे भैया की किस्मत ही खराब थी. बेचारे कॉलेज की इतनी सुंदर सुंदर लड़कियों को छोड़ कर कहाँ जाकर फस गये. लेकिन कहते है ना,
“नींद आए चटाई पर तो, दरी किस काम की,
और दिल लगा गधि से तो, परी किस काम की.”

ये कहकर निक्की खिलखिला कर हँसने लगी और निक्की के साथ साथ हम सबको भी हँसी आ गयी. जिसे देख डॉक्टर निशा गुर्रा कर निक्की की तरफ बढ़ी. लेकिन निक्की उनके आगे बढ़ने के मकसद को समझ गयी थी.

वो फ़ौरन जाकर आंटी के पिछे छुप गयी. उससे आंटी के पिछे छुपते देख डॉक्टर निशा ने कहा.

डॉक्टर निशा “मुझसे कब तक बचेगी तू. जब भी मेरे हाथ लगेगी, तेरी ऐसी गत करूगी कि, तू मुझे जिंदगी भर याद रखेगी.”

निक्की ने आंटी के पिछे छुपे छुपे अपना हाथ का अंगूठा दिखा कर डॉक्टर निशा को चिड़ाते हुए कहा.

निक्की बोली “मैं आपकी शादी के पहले आपके हाथ नही लगने वाली और शादी होने के बाद तो, आप मुझे कुछ कर नही पाओगी.”

निक्की की इस बात पर, डॉक्टर निशा ने जबाब देते हुए कहा.

डॉक्टर निशा बोली “उसके लिए भी, तुझे ज़्यादा इंतजार नही करना पड़ेगा. क्योकि इस फ्राइडे को हम शादी कर रहे है. फिर देखती हूँ कि, तुझे मुझसे कौन बचाता है.”

लेकिन डॉक्टर निशा की ये बात सुनने के बाद, निक्की खुद ही आंटी के पिछे से, बाहर निकल आई और फिर डॉक्टर निशा से लिपट कर, बड़े प्यार से कहा.

निक्की बोली “भाभी, मैं ये क्या सुन रही हूँ. क्या सच मे आप लोग इस फ्राइडे को शादी कर रहे है."

मगर इस बार के निक्की के सवाल को सुनकर डॉक्टर निशा शरमा गयी और उन्हो ने हाँ मे सर को हिला दिया. लेकिन उनके इस शर्मिलेपन ने उसकी सुंदरता मे चार चाँद लगा दिए थे. वो सच मे उस समय बहुत ज़्यादा सुंदर दिख रही थी.

डॉक्टर निशा के इस तरह से शरमाने से, मुझे पहली बार अहसास हुआ कि, लड़की का सबसे बड़ा गहना, उसकी शरम होती है. जो उसे किसी दुकान से खरीदना नही पड़ती, बल्कि उसके अंदर ही कहीं छिपि होती है.

डॉक्टर निशा को अपनी शादी की बात से, इस तरह से शरमाते देख, निक्की ने उन से कहा.

निक्की बोली “भाभी, अभी से ऐसे ही शरमाती रहोगी तो, मुझे शादी की पार्टी कौन देगा और शादी की शॉपिंग कौन करवाएगा.”

निक्की की बात सुनकर, डॉक्टर निशा ने अपनी शरम पर काबू करते हुए, बड़े प्यार से निक्की से कहा.

डॉक्टर निशा “शादी की पार्टी अलग से देने का तो, अब समय ही नही बचा है. मगर मैं तुम्हे शादी की शॉपिंग ज़रूर करवा दुगी. लेकिन ट्यूसडे के बाद, मुझे घर से निकलना मना है. इसलिए कल या परसों मे, जब भी तुम्हारे पास टाइम हो, तुम और आरू (डॉक्टर अमन की बहन) घर आ जाओ. मैं दोनो को शॉपिंग करवा दूँगी.”

प्रिया जो अभी तक सब कुछ खामोशी से देख रही थी. अब उस से भी चुप ना रहा गया. उसने डॉक्टर निशा और निक्की की चल रही बात को, बीच मे काटते हुए कहा.

प्रिया बोली “और मेरा क्या होगा. क्या मुझे शादी की शॉपिंग करने को नही मिलेगी.”

प्रिया की बात सुनते ही सबके चेहरे पर हँसी आ गयी. डॉक्टर निशा ने उसके पास आकर, उसके सर पर बड़े ही प्यार से हाथ फेरा और उसे समझाते हुए कहा.

डॉक्टर निशा बोली “सॉरी प्रिया, तुम हमारे साथ शॉपिंग मे नही जा सकती. अभी तुम्हारी हालत शॉपिंग मे जाने लायक नही है. वरना क्या मैं तुम्हे भूल सकती थी.”

डॉक्टर निशा की बात सुनकर, प्रिया उदास हो गयी और प्रिया की उदासी को देख कर, वहाँ खड़े सभी लोगों की हँसी भी गायब हो गयी. लेकिन डॉक्टर निशा ने बड़ी तेज़ी से माहौल को हल्का करते हुए, प्रिया से कहा.

डॉक्टर निशा बोली “अरे इसमे इतना उदास होने की क्या बात है. मैने तो बस ये कहा है कि, हम तुम्हे अपने साथ शॉपिंग के लिए नही ले जा सकते. ये थोड़ी ना कहा है कि, मैं तुम्हे शॉपिंग नही करवाउन्गी.

डॉक्टर निशा की ये बात सुनकर, प्रिया के साथ साथ, सब उनको हैरत से देखने लगे. किसी के भी समझ मे नही आया कि, वो कहना क्या चाहती है. प्रिया ने हैरानी से उन से कहा.

प्रिया बोली “जब मैं यहाँ से जा ही नही सकती तो, फिर मैं शॉपिंग कैसे कर सकती हूँ.”

डॉक्टर निशा ने प्रिया की इस बात पर उसे समझाते हुए कहा.

डॉक्टर निशा बोली “तुम्हारी शॉपिंग भी हम लोग करेगे. मगर तुम अपनी शॉपिंग एमएमएस के ज़रिए करोगी. हम लोग जो भी खरीदी करेगे, पहले तुम्हे एमएमएस करके तुम्हारी पसंद जान लेगे. जो भी चीज़े तुम्हे पसंद आएगी, वो हम खरीद लेगे. इस तरह तुम शॉपिंग पर जाए बिना ही अपनी पसंद की शॉपिंग कर लोगि.”

ये बात सुनते ही प्रिया के चेहरे पर कुछ पल के लिए मुस्कुराहट आ गयी. लेकिन अगले ही पल उसकी मुस्कुराहट फिर से गायब हो गयी और उसने कहा.

प्रिया बोली “लेकिन शॉपिंग करने का भी क्या फ़ायदा. आपकी शादी फ्राइडे की है और मैं तो शादी मे शामिल हो ही नही पाउन्गी.”

डॉक्टर निशा बोली “तुम इस बात की ज़रा भी चिंता मत करो. तुम्हे फ्राइडे के पहले ठीक करने की जबाब्दारी मेरी है. तुम फ्राइडे के पहले ठीक भी हो जाओगी और शादी मे शामिल भी हो सकोगी.”

डॉक्टर निशा की बात सुनकर प्रिया की मुस्कुराहट फिर से वापस आ गयी. उसके बाद डॉक्टर निशा ने अंकल आंटी को, प्रिया की तबीयत के बारे मे, कुछ ज़रूरी हिदायतें दी और उन से कहा.

डॉक्टर निशा बोली “अब आप लोग प्रिया की ज़रा भी चिंता मत कीजिए. प्रिया अब पूरी तरह ख़तरे से बाहर है. फिर भी मैने प्रिया का पूरा ख़याल रखने के लिए, जुली (नर्स) को बता दिया है. ये रात को 10 बजे तक यहाँ रहेगी.”

“रात के लिए, मैने शिखा (नर्स) की ड्यूटी यहाँ लगवा दी है और उसे भी प्रिया का पूरा ख़याल रखने को कहा है. आप लोगो को परेशान होने की ज़रूरत नही है. आप चाहे तो किसी एक को, प्रिया के पास छोड़ कर, बाकी लोग घर जा सकते है.”

इतना कहने के बाद, उन्हो ने प्रिया के पास ज़्यादा भीड़ ना लगाने को कहा और फिर वो नर्स के साथ वापस चली गयी. उनके जाने के बाद, आंटी प्रिया के पास रुकी रही और बाकी सब वेटिंग लाउंज मे आ गये.
Reply
09-09-2020, 02:23 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
113
वेटिंग लाउंज मे आने के बाद, निक्की बाकी लोगों को, प्रिया की तबीयत को लेकर, डॉक्टर निशा की कही बातें बताने लगी. इस बीच मैने भी कॉल करके, मेहुल को प्रिया के बारे मे बता दिया. निक्की की बात पूरी होने तक, मेहुल भी वहाँ आ चुका था.

निक्की की बात सुनने के बाद, दादा जी ने सब से कहा कि, अब 8 बज गये है. प्रिया की तबीयत अब ठीक है तो, हम सब को अब घर वापस चलना चाहिए. लेकिन उसके पहले ये तय कर लो कि, अभी रात को प्रिया के पास कौन रुकेगा.

दादा जी की बात सुनकर, रिया और निक्की दोनो ही प्रिया के पास रुकने की बात कहने लगी. मगर राज उनको ये कह कर, वहाँ रुकने से मना करने लगा कि, रात का समय है, उन दोनो मे से, कोई भी वहाँ रुका तो, अकेला परेशान हो जाएगा. इसलिए रात को प्रिया के पास, उसका ही रुकना ठीक रहेगा.

सबको राज की बात सही लग रही थी. लेकिन अचानक ही मेहुल ने राज की बात को काटते हुए कहा.

मेहुल बोला “यार रात को तो, मैं भी यही हूँ और बीच बीच मे आकर प्रिया को देखता रहुगा. इसके अलावा डॉक्टर निशा ने भी, सिखा नाम की जिस नर्स की रात को, प्रिया के पास ड्यूटी लगवाई है. वो नर्स बहुत अच्छी है और मरीजों का बहुत अच्छी तरह से ख़याल रखती है.”

“मुझे उसके बारे मे इसलिए मालूम है, क्योकि अभी तक पापा के पास रात को, उसी की ड्यूटी रहती थी और वो रात को बार बार, पापा को आकर देखती रहती थी. पापा ने तो यहाँ तक कह दिया था कि, मुझसे ज़्यादा तो सिखा उनका ख़याल रखती है.”

“अब ऐसे मे यदि रिया या निक्की यहाँ पर रुकती है तो, उनके अकेले होने या परेशान होने का सवाल ही पैदा नही होता और यदि प्रिया के पास रिया या निक्की मे से कोई रहता है तो, वो इनके सामने अपनी कोई भी बात या परेशानी बेजीझक कह सकती है. इसलिए मेरी मानो तो, रिया या निक्की मे से ही किसी को प्रिया के पास रहने दो.”

मेहुल की बात राज और बाकी सब लोगों को भी ठीक लगी. इसलिए राज ने रिया और निक्की मे से, एक को रुकने के लिए कह दिया था. लेकिन अब भी बात वही के वही पर अटकी हुई थी. क्योकि रिया और निक्की दोनो ही प्रिया के पास रुकने की ज़िद कर रही थी.

मगर रात को हुई बातों की वजह से, मेरा मन कर रहा था कि, निक्की ही प्रिया के पास रुके. शायद निक्की भी यही चाह रही थी, इसलिए वो रुकने की ज़िद कर रही थी. लेकिन जब उसने देखा कि रिया उसकी बात मानने को तैयार नही है. तब उसने रिया से कहा.

निक्की बोली “मैं तो सिर्फ़ इसलिए यहाँ रुकने की ज़िद कर रही हूँ. ताकि यदि रात को ज़रूरत पड़ जाए तो, निशा भाभी या अमन भैया को आसानी से बुलाया जा सके. अब यदि इसके बाद भी तुम रुकना चाहती हो तो, मुझे तुम्हारे रुकने मे कोई परेसानी नही है.”

निक्की की इस बात को सुनकर रिया को अपनी ज़िद छोड़नी पड़ी. दादा जी और अंकल ने भी निक्की को रुकने की सहमति दे दी. इसके बाद दादा जी ने, राज से प्रिया और बाकी सबके खाने का इंतेजाम करने को कहा तो, राज खाना लेने चला गया.

राज के जाने के बाद, निक्की ने दादा जी से कहा कि, वो डॉक्टर निशा से एक बार प्रिया के खाने के बारे मे पुछ लेती है. ये कह कर वो डॉक्टर निशा के पास जाने लगी तो, मैं भी उसके साथ हो लिया.

हम दोनो डॉक्टर निशा के पास पहुचे तो, वहाँ डॉक्टर अमन और अजय पहले से ही बैठे थे. लेकिन ना तो अजय, टेक्शी ड्राइवर के भेष मे था और ना ही डॉक्टर अमन, डॉक्टर की भेष भूषा मे थे. दोनो ही साधारण भेष भूषा मे थे.

वो लोग अपने हँसी मज़ाक मे व्यस्त थे. उन लोगों को हँसी मज़ाक मे व्यस्त देख कर, मेरा मन अंदर जाने का नही था और मैं वही से वापस लौट जाना चाहता था. लेकिन तब तक डॉक्टर निशा की नज़र हम पर पड़ चुकी थी.

डॉक्टर निशा ने हमे देखते ही अंदर आने का इशारा किया तो, बाकी लोगों की नज़र भी हम पर पड़ गयी. मजबूरी मे निक्की के साथ मुझे भी अंदर जाना पड़ गया. हम लोग भी जाकर उनके साथ बैठ गये. हमारे बैठते ही डॉक्टर निशा ने अजय से कहा.

डॉक्टर निशा बोली “लो अजजी, तुम्हारा दोस्त और तुम्हारी रोज़ी रोटी का दुश्मन आ गया.”

मुझे डॉक्टर निशा की बात का मतलब तो समझ मे नही आया था. फिर भी उनकी बात सुनकर, मैं मुस्कुराए बिना ना रह सका. मैने मुस्कुराते हुए डॉक्टर निशा से कहा.

मैं बोला “अब मैने क्या कर दिया.”

डॉक्टर निशा बोली “क्यो, क्या तुमको नही मालूम कि, तुमने क्या किया है.”

मैं बोला “मुझे सच मे नही मालूम कि, मेरी वजह से अजजी की रोज़ी रोटी पर कैसे असर पड़ा है.”

मेरे इस जबाब को सुनकर सबके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. मगर डॉक्टर निशा ने फिर मुझे छेड़ते हुए कहा.

डॉक्टर निशा बोली “देखो कितना भोला बन रहा है. जैसे इसने कुछ किया ही ना हो.”

मैं बोला “अब मैं आपको कैसे यकीन दिलाऊ कि, मुझे सच मे कुछ नही पता कि, मुझसे क्या ग़लती हो गयी है.”

डॉक्टर निशा बोली “अच्छा चलो मान लेती हूँ कि, तुम्हे सच मे कुछ नही पता. लेकिन क्या तुम्हे ये भी नही पता कि, अजजी टॅक्सी चलाता है.”

मैं बोला “वो तो सभी को पता है. इसमे नया क्या है.”

डॉक्टर निशा बोली “फिर तुम्हे ये भी पता होगा कि, अब अजजी का टॅक्सी चलाने का टाइम हो गया है.”

मैं बोला “हाँ पता है.”

डॉक्टर निशा बोली “तो अब ये बताओ कि, अजजी टॅक्सी कैसे चलाए.”

मैं बोला “मैं कुछ समझा नही. अजजी को टॅक्सी चलाने मे क्या परेसानी है.”

डॉक्टर निशा बोली “बहुत बड़ी परेसानी है. प्रिया यहाँ हॉस्पिटल मे है और प्रिया के घर के सारे लोग यही है. उन से आज ही तुमने अजजी को मिलाया था और अब यदि वो अजजी को टॅक्सी चलाते देखेगे तो, क्या उनके मन मे सवाल नही आएगा कि, तुम्हारा दोस्त तो बहुत बड़ा आदमी है, फिर वो टॅक्सी क्यो चला रहा है. क्या इस से तुम्हारे लिए परेसानी खड़ी नही होगी.”

मैं डॉक्टर निशा के कहने का मतलब समझ गया था. मैं अभी उनकी इस समस्या का हल बताने ही वाला था कि, तभी मुझे कीर्ति की कही ये बात याद आ गयी कि, अजजी जिस लड़की से प्यार करता है, वो लड़की हॉस्पिटल की ही कोई लड़की है. ये बात याद आते ही, मैं जो बात कहने वाला था, उसे ना कह कर, बात घूमाते हुए कहा.

मैं बोला “तो इसमे कौन सी बड़ी बात है. सिर्फ़ दो तीन दिन की ही तो बात है. अजजी दो तीन दिन के लिए, यहाँ टॅक्सी ना चला कर, कहीं ओर टॅक्सी चला सकता है.”

मेरी बात सुनकर, डॉक्टर निशा मुझे हैरानी से देख रही थी. फिर उन्हो ने अपनी हैरानी जताते हुए अजय से कहा.

डॉक्टर निशा बोली “अजजी, सुन लो अपने दोस्त की बात, ये तो बिल्कुल नासमझ है, किसी बात को समझता ही नही है. जब तक तुम इसे सच्चाई नही बताओगे, इसके कुछ समझ मे नही आएगा.”

अजय डॉक्टर निशा की बात का कुछ जबाब दे पाता, उस से पहले ही, डॉक्टर अमन ने सिगरेट जलाते हुए कहा.

डॉक्टर अमन बोले “ग़लत, बिल्कुल ग़लत.”

डॉक्टर अमन की बात सुनकर, सब के सब, आश्चर्य चकित होकर, डॉक्टर अमन को देखने लगे. किसी के कुछ समझ मे नही आया कि, वो क्या कहना चाहते है. डॉक्टर निशा ने हैरानी भरे सबदों मे कहा.

डॉक्टर निशा बोली “तुम कहना क्या चाहते हो.”

डॉक्टर अमन ने सिगरेट का एक कश लगाया और डॉक्टर निशा की बात का जबाब देते हुए कहा.

डॉक्टर अमन बोले “बस यही कि, पुनीत ज़रा भी नासमझ नही है. बल्कि ज़रूरत से ज़्यादा स्मार्ट है.”

डॉक्टर निशा बोली “तुम्हारे कहने का क्या मतलब है.”

डॉक्टर अमन बोले “मतलब ये कि, मुझे पुनीत का ये जबाब, नासमझी वाला नही बल्कि समझदारी वाला लग रहा है.”

डॉक्टर अमन की ये बात सुनकर, सब इसका मतलब समझने की कोशिस करने लगे. लेकिन फिर भी किसी को उनकी बात समझ मे नही आई थी. इसलिए डॉक्टर निशा ने फिर कहा.

डॉक्टर निशा बोली “तुमको ऐसा क्यो लग रहा है.”

डॉक्टर अमन बोले “बिल्कुल सीधी सी बात है कि, अजजी को जानने वाले सभी लोग, ये अच्छी तरह से जानते है कि, अज्जि टॅक्सी पैसों के लिए नही चलाता है. फिर पुनीत को ऐसा जबाब देने की क्या ज़रूरत थी. मुझे तो उसके ऐसा कहने की, सिर्फ़ एक ही वजह समझ मे आती है कि, उसे कुछ ना कुछ इस बात का अंदाज़ा है और वो अपने उसी अंदाज़े को पक्का करना चाहता था.”

डॉक्टर अमन की ये बात सुनते ही, मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. भले ही ये अंदाज़ा मेरा नही कीर्ति का था, मगर फिर भी डॉक्टर अमन की बात ग़लत नही थी. इसलिए मैं मन ही मन उनके दिमाग़ की दाद दिए बिना ना रह सका.

सब खामोशी से मेरी तरफ देख रहे थे और मैं सिर्फ़ मुस्कुरा रहा था. थोड़ी देर खामोशी रहने के बाद, मैने ही इस खामोशी को तोड़ते हुए कहा.

मैं बोला “मुझे लगता है कि, अज्जि को यहाँ टॅक्सी चलाने मे कोई परेसानी नही है. क्योकि अज्जि तो रात को टॅक्सी चलाता है और अभी कुछ देर बाद, जिन लोगों से अज्जि मिला है, वो सब चले जाएँगे. यदि रुकेगा भी तो, सिर्फ़ राज रुकेगा और राज अज्जि से अभी तक मिला ही नही है.”

मेरी बात की सहमति अजय और निक्की ने भी दी. मगर ये खुशी सिर्फ़ थोड़ी देर की थी. क्योकि उसके बाद डॉक्टर निशा ने फिर मुझे एक झटका दिया. उन्हो ने मेरी बात ख़तम होने के बाद कहा.

डॉक्टर निशा बोली “चलो, ये तो अच्छी हुआ. अजजी बेकार मे ही डर रहा था. लेकिन अब सच सच बताओ. प्रिया की ये हालत तुम्हारी वजह से हुई है ना.”

डॉक्टर निशा की बात सुनकर, मैं चौके बिना ना रह सका. मुझे समझ मे नही आया कि, उन्हे इस बात का शक़ मुझ पर क्यो है. मुझे निक्की पर पूरा विश्वाश था कि, वो किसी से कुछ नही कह सकती. अब बचा सिर्फ़ अजय, जिसे कि प्रिया से मेरे झगड़े के बारे मे पता था.

मैने ये जानने के लिए अजय की तरफ देखा. वो शायद मेरे इस तरह से देखने का मतलब समझ गया था. उसने इशारे मे मुझे सर हिलाकर ना कर दिया कि, उसने कुछ नही कहा.

अब मेरी समझ से ये बात दूर थी कि, डॉक्टर निशा को इस बात का शक़ बार बार मेरे उपर ही क्यो जा रहा है. आख़िर मे जब मुझसे नही रहा गया तो, मैने उनसे कहा.

मैं बोला “आपको ऐसा क्यो लगता है कि, प्रिया की तबीयत खराब होने मे मेरा हाथ है. जबकि मैं तो सुबह ही वहाँ से निकल गया था.”

मेरी बात सुनकर, डॉक्टर निशा मुस्कुरा दी और फिर उन ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा.

डॉक्टर निशा बोली “क्योकि, मुझे प्रिया ने खुद बताया है.”

डॉक्टर निशा की ये बात सुनकर, मैने एक बार निक्की की तरफ देखा. लेकिन निक्की खुद इस बात को सुनकर हैरान दिख रही थी. मैं अभी कुछ ठीक से सोच भी नही पाया था कि, डॉक्टर निशा ने मुझे टोकते हुए कहा.

डॉक्टर निशा बोली “बोलो, क्या प्रिया के अपने मूह से कहने के बाद भी, तुम यही कहोगे कि, प्रिया की ये हालत तुम्हारी वजह से नही हुई है.”

मुझे अभी भी इस बात का पूरा विस्वास था कि, ये बात प्रिया ने नही कही है, इसलिए मैने डॉक्टर निशा की बात का जबाब देते हुए कहा.

मैं बोला “ऐसा हो ही नही सकता. मुझे पूरा विस्वास है कि, प्रिया ये बात किसी से नही कह सकती.”

मेरी बात को सुनकर, डॉक्टर निशा की मुस्कान और भी गहरी हो गयी. उन्हो ने मुझे मेरी बात का जबाब देते हुए कहा.

डॉक्टर निशा बोली “चलो तुमने इस बात को तो माना कि, तुम दोनो के बीच ऐसी कोई बात हुई है. बस तुम इस बात को मान रहे हो कि, ये बात प्रिया ने मुझसे कही है.”

डॉक्टर निशा की ये बात सुनकर, मैं सन्न रह गया. मैं खुद ही अपनी ज़ुबान से ये मान चुका था कि, मेरे और प्रिया के बीच कोई बात हुई है. डॉक्टर निशा ने बड़ी चतुराई से, मुझे अपनी बातों मे फसा कर, सच्चाई उगलवा ली थी और अब उनके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान थी.

मैने एक नज़र बाकी सब की तरफ देखा तो, डॉक्टर अमन के चेहरे पर भी एक मुस्कुराहट थी. लेकिन अजय मुझे किसी बात की, चिंता ना करने का इशारा कर रहा था. जबकि निक्की गुस्से मे डॉक्टर निशा को घूर कर देख रही थी. मगर सब खामोश थे और एक दूसरे को देख रहे थे.

शायद निक्की को डॉक्टर निशा की ये बात पसंद नही आई थी. उसने इस खामोशी को तोड़ा और मेरी तरफ़दारी करते हुए, डॉक्टर निशा पर गुर्रा कर कहा.

निक्की बोली “ऐसी कोई बात नही है. यदि ऐसी कोई बात होती तो, प्रिया ने मुझे ज़रूर बताई होती. उसकी कोई बात मुझसे छुपि नही है. आप ये तुक्के के तीर चलाना बंद करो.”

निक्की की बात सुनकर, डॉक्टर निशा को हँसी आ गयी. उन्हो ने अब निक्की को छेड़ते हुए कहा.

डॉक्टर निशा बोली “तीर तो मैं पुनीत पर चला रही थी. लेकिन तुमको तकलीफ़ क्यो हो रही है. वैसे मैं तुमको बता दूं कि, ये तुक्के का तीर नही था. मैं सुबह जब प्रिया को देखने गयी थी तो, उसका चेहरा मुरझाया हुआ था और ऐसा लग रहा था कि, वो बहुत रोई है.”

“मगर तब मुझे यही लगा कि, शायद बीमारी की वजह से ऐसा हो. लेकिन जब दोपहर को उसे यहाँ लाया गया तो, उसकी जाँच करते समय मेरी नज़र एक ऐसी बात पर पड़ी कि, मुझे कुछ शक़ हुआ और उसके बाद, शाम को जब मैं उसे देखने पहुचि तो, पुनीत उसके पास था और उसका चेहरा खिला हुआ था. जिस से मेरा शक़ इस बात को लेकर पक्का हो गया.”

ये कह कर डॉक्टर निशा फिर से मेरी तरफ देखने लगी. मेरे मन मे इस बात को लेकर सवाल उठ रहे थे कि, डॉक्टर निशा ने ऐसा क्या देखा, जिसकी वजह से उनके मन मे ये शक़ पैदा हुआ था. मगर मैं चाह कर भी ये बात उन से नही पुच्छ पा रहा था. लेकिन मेरी इस मुस्किल को अजय ने आसान करते हुए कहा.

अजय बोला “तुमने ऐसा क्या देख लिया था. जिसकी वजह से तुम्हे शक़ हुआ था.”

अजय की बात का डॉक्टर निशा ने हंस कर, जबाब देते हुए कहा.

डॉक्टर निशा बोली “वैसे तो, मैने कल भी प्रिया को पुनीत से गुस्सा होकर जाते देखा था. तब मैने इस से पुछा था कि, क्या वो तुम्हारी गर्लफ्रेंड है. मगर इसने मना कर दिया था. तब मैने इसे समझाया था कि, उसको बिल्कुल परेशान मत करना और उसे हमेशा खुश रखने की कोशिश करना. यही उसकी सेहत के लिए अच्छा है.”

“उस समय मुझे इसकी बात पर यकीन हो गया था कि, प्रिया इसकी गर्लफ्रेंड नही है. मगर आज जब मैं दोपहर को प्रिया की जाँच कर रही थी. तब मुझे उसकी हथेली मे ब्लेड से काट कर बनाया हुआ “पी” नज़र आया. मुझे समझ मे नही आया कि, प्रिया ने खुद अपने नाम का अक्षर इस तरह से अपने हाथ पर काट कर क्यो लिखा है.”

“मगर जब मैं शाम को प्रिया के पास पहुचि तो, पुनीत उसके पास था और प्रिया का चेहरा खिला हुआ था. तभी मुझे लगा कि प्रिया के हाथ मे लिखे “पी” का मतलब पुनीत से भी जुड़ा हो सकता है.”

“मैने इस बात की सचाई जानने के, लिए जब प्रिया का ख़याल ना रखने के लिए, पुनीत को दोषी बताया तो, प्रिया के चेहरे की रौनक और भी बढ़ गयी. जिसे देख कर मैने उसके सामने अमन की बात सुरू कर दी. सब मेरी बातों को सुनने मे लगे थे. मगर प्रिया का सारा ध्यान सिर्फ़ पुनीत की ही तरफ था.”

“वो सबके साथ होते हुए भी ना जाने अपनी किस दुनिया मे गुम थी. तब जाकर मेरा ये शक़ पक्का हो गया कि, हो ना हो इन दोनो के बीच मे, कुछ ना कुछ खिचड़ी ज़रूर पक रही है.”

“अब प्रिया की हरकतों से तो, ये सॉफ जाहिर होता है कि, वो पुनीत को बहुत प्यार करती है. मगर पुनीत को देख कर ऐसा नही लगता कि, वो भी प्रिया से प्यार करता है. अब मेरी बात मे कितनी सच्चाई है, ये तो प्रिया, पुनीत या फिर निक्की ही बता सकते है.”

इतना बोल कर, डॉक्टर निशा मेरी ओर निक्की की तरफ देखने लगी. मुझसे तो डॉक्टर निशा की इस बात का कोई जबाब देते नही बन रहा था. वही निक्की डॉक्टर निशा के मूह से अपना नाम सुनकर, चौके बिना ना रह सकी थी.

वो शायद डॉक्टर निशा से इसकी वजह पुछ्ने वाली थी. मगर उसके कुछ बोलने के पहले ही, अजय ने डॉक्टर निशा की बात का जबाब देते हुए कहा.

अजय बोला “प्रिया पुन्नू को प्यार करती है या नही, ये तो मैं नही जानता. मगर इतना ज़रूर जानता हूँ कि, पुन्नू प्रिया को प्यार नही करता. क्योकि उसकी पहले से ही एक गर्लफ्रेंड है और वो दोनो एक दूसरे को बहुत प्यार करते है.”

अजय की बात सुनने के बाद, डॉक्टर निशा का चेहरा एका एक उतर गया. उनका फूल की तरह खिला हुआ चेहरा, अब मुरझा सा गया था और वो ना जाने किस सोच मे गुम हो गयी थी.
Reply
09-09-2020, 02:24 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
114
किसी को भी डॉक्टर निशा के इस अचानक बदले मूड का कारण समझ मे नही आ रहा था. कुछ देर तक कुछ सोचने के बाद, डॉक्टर निशा ने मुझसे कहा.

डॉक्टर निशा बोली “क्या प्रिया इस बात को जानती है कि, तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है.”

मैं बोला “हाँ, मैने उसे पहले ही सब कुछ बता दिया था.”

डॉक्टर निशा बोली “सब जानने के बाद उसने क्या कहा.”

मैं बोला “वो कहती है कि, वो सिर्फ़ मेरी दोस्त बनी रहना चाहती है. इसके सिवा वो कुछ भी नही चाहती.”

मेरी बात सुनकर, डॉक्टर निशा एक बार फिर किसी सोच मे पड़ गयी. कुछ देर सोचने के बाद, उन्हो ने बड़े ही संजीदा अंदाज़ मे मुझसे कहा.

डॉक्टर निशा बोली “बहुत ही मुस्किल होता है ना.”

मैं डॉक्टर निशा की इस बात का मतलब समझ नही सका. मैने हैरान होते हुए कहा.

मैं बोला “क्या.”

डॉक्टर निशा बोली “जिस से प्यार हो, उस से दूर रहना और जिस से प्यार ना हो, उसके साथ रहना.”

ये कह कर डॉक्टर निशा फीकी सी मुस्कान मे मुस्कुराने लगी. लेकिन उनकी इस मुस्कान से, उन के दिल मे, प्रिया के लिए छुपा दर्द सॉफ नज़र आ रहा था. जिसे मैं महसूस कर सकता था और फिर प्रिया को होने वाले दर्द का अहसास करके, ना चाहते हुए भी, मेरी आखों मे नमी आ गयी.

डॉक्टर निशा ने थोड़े से शब्दों मे जिंदगी की, एक बहुत कड़वी सच्चाई बोल दी थी. मेरे पास उनकी बात का जबाब होते हुए भी, मैं उन्हे को जबाब नही दे पा रहा था. मुझे खामोश देख कर उन्हो ने फिर कहा.

डॉक्टर निशा बोली “क्यो मुस्किल होता है ना.”

अब मेरे पास उन की बात का जबाब देने के सिवा कोई रास्ता नही था. मैने एक ठंडी सी साँस भरते हुए कहा.

मैं बोला “हाँ, बहुत मुस्किल होता है. अपने प्यार से दूर रहना एक सज़ा जैसा लगता है. लेकिन उस से ज़्यादा तकलीफ़ तब होती है. जब कोई आपको अपनी जान से बढ़ कर प्यार करे और आप उसे प्यार के बदले मे, प्यार ना दे सको. तब ऐसा लगता है, मानो सीने मे कोई आग भभक रही हो और उस आग मे दिल जल रहा हो.”

इतना बोल कर मैं खामोश हो गया और एक बार फिर प्रिया को होने वाले दर्द के बारे मे सोचने लगा. वही दूसरी तरफ डॉक्टर निशा भी मेरी बात की गहराई मे खो गयी. लेकिन जब डॉक्टर अमन ने महॉल को बहुत ज़्यादा संजीदा होते देखा तो, उन ने सबका ध्यान अपनी तरफ खिचते हुए कहा.

डॉक्टर अमन बोले “यार तुम लोग भी किस बात मे फसे हुए हो. क्या हुआ जो प्रिया को पुनीत का प्यार नही मिला. हो सकता है कि, उसकी किस्मत मे पुनीत से भी अच्छा लड़का हो. यदि पुनीत ने उसका दिल तोड़ा है तो कोई दूसरा आकर उसे जोड़ भी देगा. प्यार हमारे चारों तरफ होता है. बस उसे पहचानने की ज़रूरत होती है."

डॉक्टर अमन ने अपनी बात से सबको, सिर्फ़ जिंदगी का आईना दिखाया था. लेकिन दिल वालों की महफ़िल मे दिमाग़ की बात कौन समझता है. इसलिए उनकी बात सुनकर सब खामोश हो गये थे. मगर कहते है ना कि.......
”झूठी सच्ची आस दिला कर यूँ कब तक बहलाओगे,
दीवाने फिर दीवाने है मचल गये तो क्या होगा.”

यही हुआ भी, अजय जो अब तक सब की बातें चुप चाप सुन रहा था. उसने डॉक्टर अमन की ये बात सुनी तो, अपने आपको बोलने से ना रोक पाया. उसने डॉक्टर अमन की बात का जबाब देते हुए कहा.

अजय बोला “जो बातें अभी तुमने कही है. वो कहने और सुनने मे बहुत अच्छी और सच्ची लगती है. लेकिन ये सब दिमाग़ की बातें है. ये बातें दिल को समझ मे नही आती. दिल से इनका कोई लेना नही है. क्योकि दिल का एक अपना ही दिमाग़ होता है. वो सिर्फ़ वही देखता और सुनता है, जो वो चाहता है.”

“जो कुछ भी अभी तुमने कहा है, वो बातें कहने और सुनने मे बहुत अच्छी लगती है. प्रायोगिक तौर पर ये बातें उन के लिए बहुत अच्छी है. जो दिमाग़ से सोचते है और जिनके लिए दिल शरीर का सिर्फ़ एक ऐसा पुर्जा है, जो खून सॉफ करने के अलावा और किसी काम मे नही आता है.”

“मगर इन बातों का, उन लोगों के लिए कोई मोल नही है, जो दिल से सोचते है और जिनके लिए दिल शरीर का सिर्फ़ एक पुर्जा नही, बल्कि एक ऐसा हिस्सा है, जो उनके जज्बातों पैदा करता है और उन्हे सुख दुख का अहसास करता है.”

“दिल एक शीशे की तरह होता है, जिसके टूटने की ना तो कोई आवाज़ होती और ना ही जिसे दोबारा जोड़ा जा सकता है. क्योकि जब दिल टूटता है तो, उसके अरमानो की मौत हो जाती है. जब दिल के अरमान ही ना रहेगे तो, फिर कोई दूसरा आकर क्या जोड़ेगा. जिसे तुम दिल का जोड़ना कह रहे हो, वो जीने के लिए सिर्फ़ एक समझोता होता है. अपनी हार या नाकामयाबी से उबरने का एक दिलासा होता है.”

अजय की बात सुनकर, मुझे लगा कि अब डॉक्टर अमन कुछ नही बोल पाएगे. लेकिन ऐसा नही हुआ. उन्हो ने अजय की बात का तर्क देते हुए कहा.

डॉक्टर अमन बोले “तुम्हारी बात सही है. लेकिन तुम मेरी बात का ग़लत मतलब निकाल रहे हो. मेरे कहने का मतलब सिर्फ़ ये था कि, पुनीत प्रिया का सच्चा प्यार नही हो सकता. क्योकि पुनीत तो किसी और को प्यार करता है. इसका मतलब तो यही है हुआ ना कि, प्रिया का सच्चा प्यार कोई और है.”

मगर डॉक्टर अमन की इस बात पर अजय ने उन्हे चिडने वाली मुसकान मे, मुस्कुराते हुए कहा.

अजय बोला “भाई मेरे, तू ठहरा एक प्लास्टिक आंड कॉसमेटिक सर्जन्स, जो लोगों की बाहरी सुंदरता को ही देखता है. लेकिन मैं एक साइकिट्रिस्ट (मानो-चिकित्सक) हूँ, जो लोगों के दिल और दिमाग़ को समझता हूँ. मेरा मानना है कि, प्यार सच्चा या झूठा नही होता. प्यार या तो होता है या फिर नही होता और यहाँ पुनीत को प्रिया से प्यार नही है.”

अजय की ये बात सुनकर मुझे एक झटका और लगा. उसकी इस बात से समझ मे आया कि, वो एक साइकिट्रिस्ट (मनो-चिकित्सक) है. ये जानने के बाद, मेरी अजय के बारे मे जानने की उत्सुकता और भी बढ़ गयी थी. जबकि उसकी बात को सुनकर डॉक्टर अमन ने, उसी की बात को पकड़ कर, पलटवार करते हुए कहा.

डॉक्टर अमन बोले “तो साइकिट्रिस्ट साहब, प्रिया के बारे मे कुछ बताइए. आपकी भाषा मे कहे तो, प्रिया पुनीत से प्यार करती है और यदि उसे पुनीत से प्यार है तो, फिर पुनीत की जगह उसकी जिंदगी मे कोई नही ले सकता. अब जब पुनीत किसी और से प्यार करता है तो, फिर प्रिया के प्यार का अंजाम क्या है.”

डॉक्टर अमन की बात सुनकर, अजय ने मुस्कुराते हुए कहा.

अजय बोला “प्रिया और पुन्नू दोनो का प्यार अभी कच्ची उमर का प्यार है. ऐसे प्यार मे ये अंतर कर पाना मुस्किल होता है कि, ये सच मे प्यार ही है या फिर सिर्फ़ एक आकर्षण है, जो कि इस उमर मे अक्सर होता है.”

“यदि प्रिया का प्यार सिर्फ़ एक आकर्षण हुआ तो, फिर समय के साथ उसका ये आकर्षण कम हो जाएगा. क्योकि किसी भी चीज़ का आकर्षण तभी तक बना रहता है. जब तक वो चीज़ सामने हो या फिर जब तक कोई उस से भी बेहतर चीज़ सामने ना आ जाए.”

“क्योकि आकर्षण चाहे कितना भी गहरा क्यो ना हो, मगर एक दिन समय, दूरी और उस से बेहतर चीज़ की उपस्तिथि, उस आकर्षण को ख़तम कर देती है. अब ये तो पुन्नू के यहाँ से जाने के बाद ही पता चलेगा कि, प्रिया को सच मे पुन्नू से प्यार है या ये सिर्फ़ उसका आकर्षण है.”

अजय और डॉक्टर अमन के बीच चल रही ये बातें समझने वाली थी. लेकिन मेरा मन इन बातों मे नही लग रहा था और मुझे इन बातों से बोरियत होने लगी थी और अब मैं जल्दी से जल्दी यहाँ से निकलना चाहता था.

यही सोचते हुए, मैने निक्की की तरफ देखा. वो शायद मेरे इस तरह से देखने का मतलब समझ गयी थी. इसलिए उसने डॉक्टर अमन के कुछ बोल पाने के पहले ही, डॉक्टर निशा से प्रिया को दिए जाने वाले खाने के बारे मे पुछा और उसके बाद हम उन लोगों को बात करता छोड़, वहाँ से उठ कर आ गये.

वहाँ से निकल आने के बाद, निक्की ने राज को कॉल करके प्रिया के खाने के बारे मे बताया और फिर हम वेटिंग लाउन्ज मे बैठ कर आपस मे बातें करने लगे. कुछ देर बाद राज खाना लेकर आ गया.

राज के आने बाद, अंकल, आंटी ने घर जाकर खाना खाने की बात कही और हम लोगों से खाना खा लेने को कहा. इसके बाद आंटी प्रिया को खाना खिलाने चली गयी. हम लोगों ने मेहुल को बुलाया और फिर सब ने साथ मिलकर खाना खाया.

खाना खाने के बाद, कुछ देर तक इधर उधर की बातें चलती रही. बातों बातों मे राज ने कहा कि, आज रात को वो भी हॉस्पिटल मे ही रुकेगा. यदि आज रात को कोई परेसानी समझ मे नही आती है तो, कल से निक्की या रिया अकेली प्रिया के पास रुक सकती है.

किसी को भी राज की बात मे कोई खराबी नज़र नही आई और निक्की के साथ साथ राज का भी हॉस्पिटल मे रुकना तय हो गया. इसके बाद मेहुल अंकल के पास जाने लगा तो उसने मुझसे कहा.

मेहुल बोला “तुम्हे दिन मे ज़रा भी आराम करने के मौका नही मिला है. इसलिए तुम कल से रात को पापा के पास रुकना. आज पापा के पास मैं ही रुक रहा हूँ. तुम घर वापस चले जाओ.”

मुझे मेहुल की ये बात सही लगी. क्योकि कल रात से लगातार जागने की वजह से, अब मुझे नींद के झोके परेशान करने लगे थे और अब मेरे लिए एक एक पल जागना मुस्किल हो रहा था. इसलिए मैने मेहुल से कहा.

मैं बोला “ठीक है, मैं अभी 10 बजे तक यहाँ हूँ. उसके बाद घर चला जाउन्गा. तू बीच बीच मे राज के पास आते रहना, नही तो ये अकेला यहाँ बोर हो जाएगा.”

मेहुल बोला “तू राज की चिंता मत कर, अभी 11 बजे के बाद पापा सो जाएँगे. फिर मैं राज के साथ ही रहुगा और बीच बीच मे पापा को भी जाकर देखता रहुगा. वैसे भी वो सुबह के पहले नही उठते है.”

अपनी बात पूरी करने के बाद मेहुल अंकल के पास चला गया. मेहुल के जाने के बाद, सब एक एक करके प्रिया से मिले. फिर 9:15 बजे अंकल, आंटी, दादा जी और रिया घर चले गये.

निक्की प्रिया के पास थी और मैं राज के साथ वेटिंग लाउंज मे बैठा इधर उधर की बातें कर रहा था. मगर अब मुझे नींद बहुत ज़्यादा परेशान करने लगी थी. इसलिए मैने राज से नीचे चल कर कॉफी पीने का कहा और फिर हम लोग नीचे आ गये.

हम ने कॅंटीन से कॉफी ली और फिर बाहर समुंदर किनारे आकर कॉफी पीने लगे. अभी हम कॉफी पी ही रहे थे कि, तभी वहाँ आकर अजय की टॅक्सी रुकी और उसमे से वही नर्स उतरी, जो सुबह अजय की टॅक्सी का हॉर्न बजा रही थी.

टॅक्सी से उतरते ही उस नर्स की नज़र मुझ पर पड़ी. उसने एक नज़र मेरी तरफ देखा और फिर मूड कर हॉस्पिटल के अंदर चली गयी. उसके जाने के बाद अजय ने अपनी टॅक्सी एक किनारे लगा दी. लेकिन वो टॅक्सी से उतरा नही. शायद वो राज की वजह से मेरे पास नही आना चाहता था.

इधर राज उस नर्स को बड़ी गौर से अंदर जाते हुए देख रहा था और जब वो हॉस्पिटल के अंदर चली गयी तो, राज ने एक ठंडी सी साँस भरते हुए, मुझसे कहा.

राज बोला “क्या पटाखा लड़की है यार, इस पुल्झड़ी को जब भी देखता हूँ, तन बदन मे आग लग जाती है. साली को देखते ही लंड उठ कर खड़ा हो जाता है और इसकी गान्ड को सलामी देने लगता है. इसके सामने तो करीना कपूर भी फैल है. कसम से एक बार इसकी मारने को मिल जाए तो, अपने लंड की लाइफ ही बन जाए.”

राज के मूह से, उस नर्स के लिए इतने ख़तरनाक बोल सुनकर, मैं उसके बारे मे सोचने पर मजबूर हो गया. उसकी उमर 22-23 साल के आस पास की ही होगी. उसने इस समय पटियाला सलवार सूट पहना था और जिस मे वो सच मे बहुत सुंदर लग रही थी.

लेकिन उसका रहन सहन बहुत ही सादा सा लगता था. जिस से समझ मे आता था कि, वो बहुत सादगी पसंद है. उसका व्यक्तित्व भी कुछ कम आकर्षक नही था. उस से जब मेरी बात हुई थी. तब उसकी ज़रा सी बात मे ही, मुझे एक अजीब सा अपनापन महसूस हुआ था.

इसके पहले दो बार की मुलाकात मे मेरा ध्यान, उसकी इन सब बातों पर इसलिए नही जा पाया था, क्योकि उन दोनो बार ही मैं परेशान था. लेकिन अब जब मेरा ध्यान उसकी इन सब बातों पर गया तो, मुझे ना जाने क्यो, उसके बारे मे, राज की बातें बहुत बुरी लग रही थी.

मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे कि राज ने वो सब बातें, उस नर्स को नही बल्कि, मेरे किसी अपने को कही है. मैं अभी इन्ही सब बातों मे उलझा हुआ था कि, राज ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खिचते हुए कहा.

राज बोला “यार आज तो रात कमाल की कटने वाली है. हो सकता है साली रात भर मे पट जाए और जल्दी ही मेरे लंड के भी बारे न्यारे हो जाए.”

अब मुझसे राज की ये सब बातें सहन करना मुस्किल हो रहा था. फिर भी मैने अपने आपको शांत रखते हुए कहा.

मैं बोला “क्या वो अपनी ड्यूटी छोड़ कर, तुम्हारे आस पास मंढराती रहेगी. जो तुम उसे रात भर मे पटाने के सपने देख रहे हो.”

राज बोला “यार क्या तू उसको पहचानता नही है. यही तो सिखा है, जिसकी ड्यूटी आज प्रिया के पास लगी है. अब इसकी प्रिया के पास ड्यूटी है तो, इस से बात करना कौन सा मुस्किल काम है.”

मैं बोला “ड्यूटी प्रिया के पास लगी है. कोई ज़रूरी है कि, वो तुम्हारी तरफ कोई ध्यान भी दे.”

राज बोला “ध्यान तो वो ज़रूर देगी. अभी तूने देखा नही, वो जाते जाते कैसे तिर्छि नज़रों से मुझे देख रही थी. इसके पहले तो उसने कभी मुझे ऐसे नही देखा था.”

राज की इस बात ने मुझे उसको जलाने का एक मौका दे दिया. मैने राज की बात को बीच मे ही काटते हुए, उस झूठ कहा.

मैं बोला “वो तुम्हे नही, बल्कि मुझे देख रही थी. क्योकि मैं अंकल के पास रात को रुकता था. तब मेरी उस से बात चीत होती रहती थी. इतने दिन से मैं उसे दिखा नही था. इसलिए अभी मुझे यहाँ देख कर वो चौंक गयी थी.”

मेरी बात सुनकर, राज कुछ सोच मे पड़ गया और मैं मन ही मन मुस्कुरा रहा था. कुछ देर तक सोचने के बाद, राज ने मुझसे कहा.

राज बोला “यार, तेरी उस से बात चीत चलती है तो, तू उसको पटाने मे मेरी मदद कर, मैं भी वादा करता हूँ कि, जब वो मुझसे पट जाएगी तो, हम दोनो मिल कर उसकी बजाएँगे.”

राज की ये बात सुनकर, मैने मन मे कहा, “बहनचोद अपनी बहन को तो खराब कर दिया है. अब दूसरे की बहन बेटी को भी खराब करना चाहता है. लेकिन तेरा ये सपना मैं कभी पूरा नही होने दूँगा.”

मुझे अपनी बात का जबाब ना देते देख और इस तरह किसी सोच मे गुम देख कर, राज ने मुझे टोकते हुए कहा.

राज बोला “इतना क्या सोच रहा है. बता ना मेरी मदद करेगा या नही करेगा.”

मैं बोला “मुझे तुम्हारी मदद करने मे कोई परेशानी नही है. लेकिन मेरी बात मानो तो, उस से दूर ही रहो. इसी मे तुम्हारी भलाई है.”

राज बोला “ऐसा क्यो. क्या उस लड़की मे कोई खराबी है.”

मैं बोला “नही, लड़की मे कोई खराबी नही है. लड़की बहुत अच्छी है. मगर उसके भाई मे खराबी है. वो बता रही थी कि, उसका भाई कोई बड़ा गुंडा है और यदि किसी भी लड़के को, उसके आस पास भी फटकते देखता है तो, उस लड़के को सीधे हॉस्पिटल का रास्ता दिखा देता है.”

“यहाँ तक कि उसके भाई ने, यहाँ के कुछ डॉक्टेर तक के साथ मार पीट की है और हमेशा अपनी बहन पर नज़र रखे रहता है. अब कही ऐसा ना हो कि, हम दोनो उसकी बहन की बजाने जाए और उसका भाई आकर, हम दोनो की बजाकर निकल जाए.”

मेरी बात सुनकर, राज सोच मे पड़ गया. मुझे अपना काम बनता नज़र आया तो, मैने आग मे घी डालते हुए कहा.

मैं बोला “मैं तुम्हारे लिए, कोई भी ख़तरा मोल लेने को तैयार हूँ. लेकिन मैं तो कुछ दिन बाद यहाँ से चला जाउन्गा. उसके बाद सब कुछ तुम्हे अकेले ही झेलना पड़ेगा. क्या तुम ये सब कुछ झेल सकोगे.”

अपनी बात कह कर, मैं राज के जबाब देने का इंतजार करने लगा. कुछ देर सोचने के बाद राज ने कहा.

राज बोला “जाने दे यार. अगर मार पीट की नौबत आई तो, फिर थाना कचहरी भी करना पड़ेगी और बदनामी अलग होगी. मैं कौन सा उस लड़की से शादी करना चाहता हूँ. जो उसके लिए इतना सब कुछ झेलु. साला ज़रा सी चूत के लिए, इतना सब झेलने की मेरी हिम्मत नही है. इस से अच्छी तो, अपनी कामवाली रज्जो ही है. जब मर्ज़ी हो ठोको और कोई रिस्क भी नही है.”

राज की बात सुनकर, मुझे हँसी आ रही थी. लेकिन मैने अपनी हँसी दबाते हुए, बात को बदला और राज से कहा.

मैं बोला “ये रज्जो कौन है. मैने तो तुम्हारे यहाँ किसी काम वाली को नही देखा. हाँ काम करने एक बूढ़ी सी औरत ज़रूर आती है. कहीं तुम उसकी ही बात तो नही कर रहे हो.”

राज बोला “नही वो नही. वो तो अभी कुछ दिन के लिए रज्जो की जगह काम पर आ रही है. क्योकि रज्जो 15 दिन की छुट्टी पर अपने गाओं गयी है. रज्जो 1-2 दिन मे वापस आने वाली है. यदि तुम्हारा दिल उसके साथ मज़े करने को करे तो, मुझे बता देना. मैं तुम्हारे मज़े के सारे इंतज़ाम कर दूँगा.”

मैं बोला “नही, मुझे तो तुम माफ़ करो यार. मैं इन सब चीज़ों से दूर रहता हूँ. अब बात बंद करो और उपर चलो. मैं प्रिया से मिलकर, 10 बजे घर निकलुगा.”

मेरी बात सुनकर, राज ने हामी भरी और फिर हम दोनो उपर आ गये. उपर आने के बाद, राज वेटिंग लाउंज मे चला गया और मैं प्रिया के पास आ गया.

मैं जब प्रिया के पास पहुचा तो, वो सो रही थी और निक्की उसके पास कोई नॉवेल पढ़ रही थी. वो नॉवेल पढ़ने मे ऐसी मगन थी कि, उसे मेरे आने तक का अहसास नही हुआ. मैने उसका ध्यान नॉवेल से हटाने के लिए, उस से कहा.

मैं बोला “लगता है कि, आप रात रुकने की पूरी तैयारी करके निकली थी.”

अचानक मेरी आवाज़ सुनकर निक्की चौक गयी. उसने मेरी तरफ देखा और फिर मुस्कुराते हुए कहा.

निक्की बोली “नही, ऐसी कोई बात नही है. प्रिया सो गयी थी और मैं यहाँ अकेली बैठी बोर हो रही थी. तभी शिखा दीदी आ गयी और उन्हो ने मुझे बोर होते देखा तो, ये नॉवेल लाकर दे दिया.”

मैं बोला “अच्छी बात है. अब नॉवेल पढ़ते पढ़ते, आपका टाइम आसानी से कट जाएगा. मैं तो घर जाने से पहले प्रिया से मिलने आया था. लेकिन ये तो बहुत गहरी नींद मे लगती है.”

निक्की बोली “हाँ, मैने प्रिया को बताया था कि, आप 10 बजे तक यहाँ है. वो भी आपके आने का इंतजार कर रही थी. लेकिन इंतजार करते करते उसकी नींद ही लग गयी. आप रुकिये, मैं अभी प्रिया को जगा देती हूँ.”

मैं बोला “नही रहने दीजिए. अभी प्रिया का आराम करना बहुत ज़रूरी है. जब वो जागे तो, उसे बता दीजिएगा कि, मैं उस से मिलने आया था.”

निक्की बोली “ये तो मैं बता ही दूँगी. लेकिन वो इस बात को लेकर मुझसे लड़ेगी कि, जब आए थे तो, मैने उसको जगाया क्यो नही.”

मैं बोला “नही लड़ेगी. आप बोल देना कि, मैने ही जगाने से मना किया था. अब मैं चलता हूँ.”

निक्की बोली “ओके, जैसी आपकी मर्ज़ी. बाइ, गुड नाइट.”

मैं बोला “ठीक है. बाइ, गुड नाइट.”

निक्की को बाइ करके मैने एक नज़र प्रिया को देखा और फिर वापस जाने के लिए मूड गया. अभी मैने एक दो कदम ही आगे बढ़ाए थे कि, तभी मुझे प्रिया की आवाज़ सुनाई दी.

प्रिया बोली
“ज़ख़्म मुस्कुराते है अब भी तेरी आहट पर,
दर्द भूल जाते है अब भी तेरी आहट पर,
उमर काट दी लेकिन बच्पना नही जाता,
चौक चौक जाते है अब भी तेरी आहट पर,
तेरी आहट आए तो नींद उड़ जाती है,
हम खुशी मनाते है अब भी तेरी आहट पर.”

प्रिया की शायरी सुनते ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. मैने मुस्कुराते हुए पिछे पलट कर देखा तो, प्रिया अपने दोनो हाथ को मोड़ कर, अपने सर के नीचे रखे थी और मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी.
Reply
09-09-2020, 02:32 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
115
उसे इस तरह से देख कर, मेरी मुस्कुराहट और भी गहरी हो गयी. मैने वापस उसके पास आते हुए कहा.

मैं बोला “तो तुम जाग रही थी और चुपके चुपके मेरी बातें सुन रही थी.”

मेरी बात के जबाब मे प्रिया फिर से मुस्कुरा दी और उसने मुस्कुराते हुए कहा.

प्रिया बोली “नही, सच मे ही मेरी नींद लग गयी थी. मगर मुझे नींद मे ऐसा महसूस हुआ कि, तुम मेरे पास आए हो और फिर खुद ही मेरी नींद खुल गयी. जब मेरी नींद खुली तो, तुम निक्की को बाइ करके जाने ही वाले थे और मैने तुम्हे रोक लिया.”

मैं बोला “चलो अच्छा हुआ कि, तुम्हारी नींद खुल गयी. कम से कम जाने से पहले तुम से बात तो गयी. वरना तुम कहती कि, तुमसे मिले बिना ही चला गया.”

मेरी बात सुनकर प्रिया थोड़ा सा संजीदा हो गयी और फिर उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

प्रिया बोली “नही, मैं ऐसी बात नही है. मैं ये ज़रूर चाहती थी कि, तुम्हारे जाने से पहले मैं तुमसे मिल सकूँ. लेकिन तुम ऐसा नही भी करते, तब भी मैं तुमसे कुछ नही कहती. क्योकि मुझे मालूम है कि, मेरी वजह से तुम दिन भर परेशान हुए हो और रात से ज़रा भी सोए नही हो.”

“यदि ऐसी बात नही होती तो, मैं तुम्हे यहाँ से, हरगिज़ जाने नही देती और तुम्हे रात को मेरे पास ही रुकने को बोलती. मगर तुम्हे मेरी वजह से, दिन भर हुई परेसानी को देखते हुए, मैं खुद चाहती थी कि, अब तुम जाकर आराम कर लो.”

प्रिया की बात सुनकर, मुझे उसकी बात की गहराई महसूस हुई. क्योकि नींद की वजह से मेरा वहाँ रुक पाना मुस्किल हो रहा था और इसी वजह से, मैने एक बार भी, वहाँ रत को रुकने की बात नही की थी.

मगर मुझे मन ही मन, ये डर भी सता रहा था की, मेरे एक बार भी रात को रुकने के लिए ना कहने से, पता नही प्रिया मेरे बारे मे क्या सोचेगी. लेकिन ये जानकर मेरे मन का बोझ उतर गया की, प्रिया को मेरी परेसानी का अहसास पहले से ही था.

मैं थोड़ी देर प्रिया और निक्की के साथ हँसी मज़ाक करता रहा. फिर प्रिया ने खुद ही, मुझे 10 बजने की बात कहते हुए जाने को कहा. मैने प्रिया और निक्की को बाइ कहा और मैं राज को भी बाइ करके नीचे आ गया.

मैं नीचे आया तो, अजय अपनी टॅक्सी मे ही बैठा था. मुझे आते देख वो टॅक्सी से उतर कर बाहर आ गया. मैं उसके पास पहुचा तो, उसने कहा.

अजय बोला “खाना खा लिया या अभी खाना खाने चले.”

मैं बोला “मेरा खाना तो, तभी हो गया था. जब मैं तुम्हारे पास से आया था.”

अजय बोला “तो चलो, मैं तुम्हे घर छोड़ देता हूँ.”

मैं बोला “तुम क्यो परेशान होते हो. मैं कोई टॅक्सी पकड़ कर निकल जाउन्गा.”

लेकिन मेरे बहुत मना करने पर भी अजय नही माना और फिर मुझे उसकी टॅक्सी मे बैठना ही पड़ा और फिर घर के लिए निकल पड़े. अजय को लेकर, मेरे मन मे बहुत से सवाल थे. लेकिन जब भी मैं उसके साथ अकेला होता था. किसी ना किसी परेसानी मे घिरा रहता था. जिस वजह से मैं चाह कर भी उस से कुछ नही पुच्छ पाता था.

ऐसा ही कुछ अभी भी मेरे साथ था. अभी मुझे नींद परेशान कर रही थी और मैं घर जाकर सीधे सोना चाहता था. इसलिए अभी मुझे, अजय से उसके बारे मे, कोई बात करना ठीक नही लगा और.मैं खामोशी से उसकी बातें सुनता रहा.

थोड़ी देर वो इधर उधर की बात करता रहा. फिर उसने राज की बात छेड़ते हुए कहा.

अजय बोला “क्या राज तुमसे शिखा के बारे मे कुछ बोल रहा था.”

अजय की ये बात सुनकर, मैं चौके बिना ना रह सका. क्योकि जब मेरी और राज की बात चल रही थी. उस समय अजय अपनी टॅक्सी मे था और हम से बहुत दूर था. मैने अजय की बात का जबाब देने की जगह, उस से उल्टा सवाल करते हुए कहा.

मैं बोला “तुमको ऐसा क्यो लगा कि, राज मुझसे शिखा के बारे मे कुछ बात कर रहा था.”

अजय बोला “जब मैं शिखा को लेकर, यहा पहुचा तो, मेरी तुम पर नज़र नही पड़ी थी. लेकिन शिखा ने तुम्हे देख लिया था. उसी ने मुझे बताया था कि, तुम्हारा सुबह वाला दोस्त खड़ा है. जब मैने तुम्हारी तरफ देखा तो, मुझे तुम्हारे साथ राज भी दिखाई दिया.”

“राज की वजह से मैने तुम्हारे पास आना ठीक नही समझा और मैं टॅक्सी मे ही बैठा रहा. लेकिन मेरा ध्यान तुम लोगो पर ही था. राज शिखा को तब तक घूरता रहा था. जब तक कि वो अंदर नही चली गयी. उसके बाद वो तुमसे बात करने लगा था. इसी वजह से मुझे ऐसा लगा, जैसे वो शिखा के बारे मे ही, कोई बात कर रहा हो.”

मैं बोला “मैं तो शिखा को जानता ही नही था. बस इसके पहले 2 बार उसे देखा था. लेकिन उसका नाम नही जानता था. जब उसे राज ने उसे टॅक्सी से उतरते देखा तो, उसने ही मुझे बताया कि, ये शिखा है, जिसकी ड्यूटी रात को प्रिया के पास लगी है.”

अजय बोला “बस इतना ही या और कुछ भी बोला है.”

अजय को शिखा मे इतनी दिलचस्पी लेते देख, मैने अजय को घूर कर देखते हुए कहा.

मैं बोला “सब ठीक तो है. तुम्हे शिखा मे इतनी दिलचस्पी क्यो है. कही कोई लफडा तो नही है.”

मेरी बात सुनकर अजय को हँसी आ गयी. उसने एक नज़र मेरी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए कहा.

अजय बोला “भाई, वो रोज की सवारी है. सुबह शाम मेरी टॅक्सी मे आती जाती है. अब शिखा जैसी सीधी साधी लड़की को कोई घुरे तो, क्या मुझे उसमे दिलचस्पी नही होना चाहिए.”

मुझे अजय की ये बात बिल्कुल सही लगी. जब एक ज़रा सी मुलाकात मे ही, शिखा से मुझे अपनापन सा लगा था और मैने उसके लिए राज से इतना बड़ा झूठ बोल दिया था. फिर अजय का तो, उसके साथ रोज का आना जाना था. उसे तो राज के घूर्ने का बुरा लगना ही था.

इसलिए अब मैने इस बात को ज़्यादा घुमाना ठीक नही समझा और अपने शब्दों मे, अजय की बात का जबाब देते हुए कहा.

मैं बोला “शिखा की सुंदरता पर राज का दिल आ गया था और वो उसे पटाना चाहता था. लेकिन मैने भी उसे ऐसी पट्टी पढ़ाई है की, अब वो शिखा के साए से भी दूर भागेगा.”

मेरी बात सुनकर, अजय ने हैरत भरी नज़रों से मेरी तरफ देखते हुए कहा.

अजय बोला “क्यो, तुमने राज को ऐसी क्या पट्टी पढ़ा दी की, अब वो शिखा के साए से भी दूर भागेगा.”

अजय की बात सुनकर, मैने शिखा के भाई के गुंडा होने वाली, जो बात राज को बोली थी. वही बात अजय को बता दी. जिसे सुनकर अजय अपनी हँसी नही रोक पाया और हंसते हुए मुझे कहा.

अजय बोला “लेकिन शिखा का तो, कोई भाई ही नही है.”

मैं बोला “अब शिखा का भाई है या नही है, इस से क्या फरक पड़ता है. राज कौन सा, उस से इस बात की सच्चाई पुच्छने जाएगा.”

अजय बोला “मगर शिखा के लिए, तुम्हे राज से झूठ बोलने की ज़रूरत क्या थी. क्या तुम शिखा को जानते भी नही हो.”

मैं बोला “हाँ, मैने शिखा को सिर्फ़ एक बार अंकल के पास देखा था. तब के बाद से, आज सुबह वो दूसरी बार, मुझे तुम्हारी टॅक्सी के पास दिखी थी.

तब के बाद से वो, आज सुबह तुम्हारी टॅक्सी के पास दिखाई दी. लेकिन उसकी ज़रा सी बात मे ही, मुझे उसकी सादगी नज़र आ गयी थी. जिसकी वजह से मुझे राज का वो सब कहना अच्छा नही लगा और मुझे राज को शिखा से दूर रखने के लिए ये झूठ कहना पड़ गया.”

मेरी बात सुनकर अजय ने मुझे छेड़ने हुए, मेरी बात का मुझ पर ही पलटवार करते हुए कहा.

अजय बोलो “सब ख़ैरियत तो है ना. कही शिखा की सादगी पर दिल तो नही लूटा बैठे.”

अजय की बात सुनकर, मुझे हँसी हा गयी. मगर मैने उसकी बात को काटते हुए कहा.

मैं बोला “इस जनम मे तो, मैं अपना दिल पहले ही किसी के नाम कर चुका हूँ. शिखा तो क्या, अब किसी को भी अपना दिल देने के लिए, मुझे दूसरा जनम लेना पड़ेगा.”

बस इसी तरह की बात करते हुए हम घर पहुच गये. घर पहुच कर अजय ने घर का लॉक खोला और हमारे अंदर पहुचने पर उसने मुझे मेरा बॅग दिया. इसके बाद मेरी उस से थोड़ी बहुत बातें हुई और फिर वो टॅक्सी लेकर वापस चला गया.

अजय के जाने के बाद मैने कपड़े बदले और समय देखा तो, 10:45 बज चुके थे. मुझे अब बहुत ज़्यादा नींद आ रही थी. इसलिए मैने कीर्ति के कॉल का इंतजार करना ठीक नही समझा और खुद ही उसे कॉल लगा दिया.

लेकिन कीर्ति का फोन बिज़ी बता रहा था. मुझे लगा कि शायद वो मौसी से या अपनी किसी सहेली से बात कर रही है. इसलिए मैने उसको कॉल लगाना बंद किया और उसके कॉल आने का इंतजार करने लगा.

मगर जब 10 मिनिट तक इंतजार करने के बाद भी कीर्ति का कॉल नही आया तो, मैने फिर उसे कॉल लगाया, पर अभी भी उसका फोन बिज़ी बता रहा था. मैने सोचा शायद किसी से कोई ज़रूरी बात चल रही है. इसलिए मैने उसके कॉल आने का इंतजार करना ही ठीक समझा.

मुझे कीर्ति के कॉल का इंतजार करते करते 11:15 बज गये. लेकिन उसका कॉल नही आया तो, मैने फिर उसे कॉल किया. मगर अभी भी उसका फोन बिज़ी ही बता रहा था. वो किस से इतनी देर से बात कर रही है, ये जानने के लिए मैने उसके दूसरे मोबाइल पर कॉल लगाया. लेकिन उसने दूसरे मोबाइल पर कॉल नही उठाया.

एक तो मुझे नींद परेशान कर रही थी. ऐसे मे कीर्ति का फोन पर किसी के साथ बिज़ी रहना और मेरा कॉल ना उठाना, इस बात से मेरा मूड बहुत ज़्यादा खराब हो गया था. मुझे उस पर बहुत ज़्यादा गुस्सा आ रहा था और इसलिए अब मैने उसे कॉल ना लगाने का फ़ैसला किया.

अब मेरी आँखों से नींद उड़ चुकी थी और मैं सिर्फ़ कीर्ति के कॉल आने का इंतजार कर रहा था. मुझे समझ नही आ रहा था कि, किस से इतनी ज़रूरी बात चल रही है. जो मेरा कॉल आते देख कर भी, कीर्ति की बातें ख़तम नही हो रही थी.

फिर 11:30 बजे कीर्ति का कॉल आने लगा. मैने बुझे मन से उसका कॉल उठाया तो, उसने कॉल उठाते ही कहा.

कीर्ति बोली “सॉरी जान, वो जीत से बात कर रही थी ना, इसलिए तुम्हे कॉल लगाने मे देर हो गयी.”

कीर्ति के मूह से जीत नाम सुनकर, मैं समझ नही पाया कि, वो किसकी बात कर रही है. इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला “तू किस जीत की बात कर रही है. मैं तो किसी जीत को नही जानता.”

कीर्ति बोली “अरे वो मेरी बुआ की बड़ी नंद (फूफा की बहन) का लड़का जीतेन है ना. मैं उसी की बात कर रही हूँ. तुम तो उसे अच्छे से जानते हो.”

मैं बोला “तो जीतेन बोल ना. उसने तुझे क्यो कॉल किया था.”

कीर्ति बोली “वो अगले सनडे को बुआ और वाणी दीदी के साथ यहाँ आ रहा है. यही बताने के लिए उसने कॉल किया था.”

एक तो कीर्ति के मेरा कॉल ना उठाने की वजह से पहले ही मेरा मूड खराब था. उस पर जीतेन का नाम सुनकर और भी मेरे तन बदन मे आग लग गयी. क्योकि जीतेन भले ही कीर्ति का दूर का रिश्तेदार था. मगर मौसी उसे बहुत पसंद करती थी.

लेकिन यदि एक ये ही वजह होती तो, मुझे उस से इतनी चिड नही होती. मगर वो हर किसी के सामने मुझे छोटी माँ का सौतेला बेटा होने का अहसास दिलाता रहता था. इसके अलावा वो जब भी आता था, पूरे समय कीर्ति के आस पास मंढराता रहता था.

जो मुझे पहले से ही अच्छा नही लगता था तो, अब अच्छा लग सकने का कोई सवाल ही पैदा नही होता था. बस इसी बात की चिड मैने कीर्ति पर उतारते हुए, उस से कहा.

मैं बोला “अभी सिर्फ़ जीतेन का कॉल आया तो, तेरा ये हाल है कि, तू मेरा कॉल देख कर भी अनदेखा कर रही है. जब वो खुद आ जाएगा, तब तो तू मुझे पहचानने से भी इनकार कर देगी. आख़िर वो तेरी बुआ की नंद का लड़का जो है.”

मैने अपनी बात के आख़िरी शब्द पर कुछ ज़्यादा ज़ोर दिया था. जिसे सुनकर कीर्ति को इस बात का अहसास हो गया कि, मुझे उसका जीतेन से बात करना पसंद नही आया है. उसने इस बात पर अपनी सफाई देते हुए कहा.

कीर्ति बोली “ये तुम कैसी बात कर रहे हो. यदि जीतेन ने अपने आने की खबर देने के लिए, मुझे फोन लगाया और मैने उस से थोड़ी सी बात कर ली तो, इसमे इतना बुरा मानने की बात क्या है.”

मगर कीर्ति की इस सफाई को सुनकर मेरा मूड सुधरने की जगह और भी बिगड़ गया. मैने उस पर अपनी खीज निकलते हुए कहा.

मैं बोला “ये थोड़ी सी बात है. मैने तुझे 10:45 पर कॉल लगाया था. तब तेरी उस से बात चल रही थी और अब पूरे 45 मिनिट बाद, तू 11:30 बजे मुझे कॉल लगा रही है. मेरे कॉल लगाने के, पता नही कितनी देर पहले से, तेरी उस से बात चल रही थी और तू इसे थोड़ी सी बात करना कह रही है. यदि ये थोड़ी सी बात है तो, फिर ज़्यादा बात करना किसे कहते है.”

मेरी इस बात से कीर्ति का मूड भी खराब हो गया. उसे लगा कि, मैं उसके किसी से बात करने पर उंगली उठा रहा हूँ. इसलिए उसने भड़कते हुए मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “यदि मैने उस से एक घंटे भी बात कर ली तो, कौन सा पहाड़ टूट गया. तुम भी तो फोन पर, किसी के भी साथ, घंटो लगे रहते हो, लेकिन मैं तो तुमसे इस बात कि, कभी कोई शिकायत नही करती हूँ. जब मुझे तुम्हारे किसी से बात करने मे कोई परेसानी नही होती है तो, फिर तुम्हे मेरे किसी से बात करने मे परेशानी क्यो हो रही है. क्या मैं अपने किसी रिश्तेदार से बात भी नही कर सकती.”

कीर्ति का मेरे उपर ये इलज़ाम लगाना, मुझे हजम नही हुआ. क्योकि मैं उसके सिवा किसी से भी फोन पर इतनी देर बात नही करता था. मैने कीर्ति से इस बात की सफाई माँगते हुए कहा.

मैं बोला “तू ये क्या बके जा रही है. मैने कब तुझे किसी से बात करने से रोका है और मैं तेरे सिवा किसके साथ, फोन पर घंटो बात करता रहता हूँ.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति ने, ना आव देखा, ना ताव और झट से मेरी बात का जबाब देते हुए कहा.

कीर्ति बोली “क्यो मैने तुम्हे जब शाम को फोन लगाया था. तब तुमने मौसी से कितनी देर तक बात की थी. क्या मैने तुम्हारी इस बात का कोई बुरा माना था. जो तुम्हे मेरे जीतेन से बात करने का इतना बुरा लग रहा है.”

कीर्ति के इस बेतुके से जबाब को सुनकर, मुझे उस पर बहुत गुस्सा आया. लेकिन मैने अपने दिमाग़ को शांत रखने की कोसिस करते हुए, उस से कहा.

मैं बोला “तेरा दिमाग़ तो ठिकाने है. तुझे पता भी है कि, तू क्या कह रही है. छोटी माँ से जीतेन की बराबरी करने की, तेरे अंदर सोच भी कैसे आई. वो मेरी माँ है और उनसे मैं चाहे कितनी देर भी बात करूँ. मुझे इसके लिए, तेरे सामने कोई सफाई देने की ज़रूरत नही है.”

मगर अब शायद कीर्ति का दिमाग़ सच मे ठिकाने नही था. उसने मेरी इस बात का बड़ा ही दिल दुखाने वाला जबाब देते हुए, मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “यदि तुम्हे किसी अपने से बात करने मे, मुझे सफाई देने की ज़रूरत नही है तो, फिर मुझे भी मेरे किसी रिश्तेदार से बात करने मे, तुम्हे सफाई देने की, कोई ज़रूरत नही है और मैं कौन सा उस से फोन पर इश्क़ लड़ा रही थी. सिर्फ़ उसका और उसके घर वालों का हाल चाल ही तो पुच्छ रही थी. ऐसा करके मैने कौन सा बड़ा भारी गुनाह कर दिया.”

कीर्ति से मुझे ऐसे जबाब की उम्मीद कभी नही थी. उसकी ये बात मेरे दिल मे तीर की तरह चुभ गयी. क्योकि वो अपने रिश्तेदार की बराबरी मेरी माँ से कर रही थी. जिसे सहन कर पाना मेरे बस मे नही था.

मेरे गुस्सा अब सातवे आसमान पर पहुँच चुका था. अब अपने गुस्से पर काबू रख पाना मेरे बस मे नही था. मैने अपना सारा गुस्सा कीर्ति पर उतारते हुए कहा.

मैं बोला “तेरा जिस से मन करे, तू उसके साथ इश्क़ लड़ा ले. मुझे इस से कोई फरक नही पड़ता. लेकिन उसके पहले, मेरी एक बात, अच्छी तरह से कान खोल कर सुन ले. दोबारा अपने किसी रिश्तेदार की बराबरी, मेरी माँ बहनो से करने की कोशिश मत करना. वरना मुझसे बुरा कोई नही होगा.”

मगर शायद कीर्ति को मेरे गुस्से का अहसास नही हुआ था या फिर शायद आज वो मुझसे किसी भी बात मे, हार ना मानने की ज़िद किए बैठी थी. इसलिए उस पर मेरी इस बात का भी उल्टा ही असर पड़ा. उसने मुझे, मेरी बात का जबाब देते हुए कहा.

कीर्ति बोली “तुम्हारे जो मूह मे आ रहा है, तुम बकते जा रहे हो. मैं तुम से प्यार करती हूँ तो, इसका मतलब ये नही है कि, तुम जब चाहे तब, मुझ पर उंगली उठाते रहो और मैं चुप चाप सुनती रहूं. तुम्हे इस तरह मुझ पर उंगली उठाने का कोई हक़ नही है. अपनी हद पार मत करो.”

लेकिन अब मेरे उपर गुस्से का जुनून सवार था और कीर्ति की बातें उस जुनून को और भी बढ़ा रही थी. मैने कीर्ति की बात को बीच मे काटते हुए कहा.

मैं बोला “अपने दो कोड़ी के रिश्तेदार से मेरी माँ की बराबरी करके, आज सारी हदें तो तूने पार की है. मेरे लिए, मेरी माँ बहनों से बढ़कर दुनिया मे कोई भी नही है. यहाँ तक कि तू भी नही.”

“तू अपना प्यार अपने पास ही रख. मुझे तेरे प्यार की कोई ज़रूरत नही है. अब तू जा और जिस से, जितनी देर बात करना चाहती है, कर सकती है. अब मुझे इस से कोई परेशानी नही है. क्योकि आज से तू मेरे लिए मर चुकी है और ये मेरी तुझसे आख़िरी बात थी.”

अपनी आख़िरी बात कहते कहते मेरी आँखों मे आँसू आ गये. मेरी बात के जबाब मे, कीर्ति कुछ कहने को हुई. लेकिन मैने उसकी बात सुने बिना ही, कॉल काट दिया और दोनो मोबाइल बंद कर दिए.

115
Reply
09-09-2020, 02:32 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
116
अपनी आख़िरी बात कहते कहते मेरी आँखों मे आँसू आ गये. मेरी बात के जबाब मे, कीर्ति कुछ कहने को हुई. लेकिन मैने उसकी बात सुने बिना ही, कॉल काट दिया और दोनो मोबाइल बंद कर दिए.

मगर मोबाइल बंद करते ही, मुझे अपने अंदर, बहुत कुछ टूटता सा महसूस होने लगा. मुझे ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे मैने अपना मोबाइल नही बल्कि अपने दिल की धड़कनो को बंद कर दिया हो. बंद मोबाइल को देख देख कर, कीर्ति की कमी के अहसास से मेरी जान निकली जा रही थी और मेरे आँसू रुकने का नाम नही ले रहे थे.

एक तरफ कीर्ति की कही बातों से, मेरे सीना छल्नि हो गया था तो, दूसरी तरफ उनकी कमी का अहसास मुझे खून के आँसू रोने को मजबूर कर रहा था. मैं ना तो उसकी उन बातों का दर्द मैं सह पा रहा था और ना ही उसकी जुदाई का दर्द सह पा रहा था.

कल तक जो लड़की मेरे लिए, सारी दुनिया से लड़ने को तैयार थी. आज वो ही किसी तीसरे के लिए, मुझसे ही लड़ गयी थी. मैं अभी भी इस बात का यकीन नही कर पा रहा था और मेरे दिल, बार बार कीर्ति से बस एक ही सवाल करना चाह रहा था कि, “जान तुमने ऐसा क्यो किया. क्या यही तुम्हारा प्यार था. क्या तुम्हारे लिए मेरी बस इतनी ही अहमियत थी.”

मेरा दिल कीर्ति से हज़ारों सवाल करना चाह रहा था मगर मेरे दिल के इन सवालों का जबाब देने के लिए कीर्ति मेरे पास नही थी. कीर्ति के इस बर्ताव की वजह से ना तो मेरी उस से नाराज़गी कम हो पा रही थी और ना ही इस की वजह से, मेरे दिल मे उसके लिए प्यार कम हो पा रहा था. मैं क्या करूँ या क्या ना करूँ, कुछ समझ मे नही पा रहा था और बस रोए जा रहा था.

मैं चाह कर भी कीर्ति के इस बर्ताव को, ना तो भुला पा रहा था और ना ही अपने आपको उस से बात करने के लिए तैयार कर पा रहा था. मगर उसके बिना गुजरने वाला हर पल, मेरे उपर मौत से भी बदतर कर गुजर रहा था और उसके बिना मेरी जान निकली जा रही थी.

मेरी बेचेनी हद से ज़्यादा बढ़ गयी थी और अब मेरे पास इस सब से बाहर निकलने के, बस दो ही रास्ते बचे थे. एक तो ये कि मैं अभी अपने मोबाइल चालू करके, कीर्ति से बात कर लूँ या फिर दूसरा ये कि मैं अपने आपको शराब मे इतना डुबो दूं कि, कीर्ति को याद ही ना कर सकूँ.

लेकिन कीर्ति के बर्ताव ने मुझे इतनी बुरी तरह से तोड़ दिया था कि, अब मेरे अंदर उस से बात करने की ताक़त ही नही बची थी. इसलिए मैने खुद को शराब मे डुबो देने का फ़ैसला किया और बाहर हॉल से, उस दिन की आधी बची हुई ओल्ड मॉंक रूम की बोतल, सोडा और कुछ ड्राइ फ्रूट ले लाया.

मैं बेड पर बैठ गया और पेग बनाने लगा. मैने पेग बनाया और एक बार मे ही पूरा पेग पी लिया. जिस से मुझे मेरे सीने मे कुछ जलन सी हुई. लेकिन इस जलन से मेरे दिल को कुछ राहत सी महसूस हुई.

फिर मैने एक बाद एक, दो पेग पिए, जिस से मुझे कुछ हल्का हल्का सुरूर महसूस होने लगा. मगर इस नशे के सुरूर मे भी, कीर्ति मेरे दिल और दिमाग़ पर छाई हुई थी. मैं अभी भी उसी के बारे मे सोच रहा था.

इस नशे की हालत मे, कीर्ति की याद ने मुझे कुछ ज़्यादा ही पागल कर दिया और अब मुझे कीर्ति की उस दिन की बात याद आने लगी थी, जब मैं शराब के नशे मे चूर था और वो मुझे किसी छोटे बच्चे की तरह सुलने की कोसिस कर रही थी.

कीर्ति का वो प्यार भरा पल याद आते ही, मेरी आँख एक बार फिर छलक उठी, अब मेरी कीर्ति की जुदाई सहने की ताक़त जबाब दे चुकी थी. मुझे लग रहा था कि यदि मैने अभी कीर्ति से बात नही की तो, मैं तड़प कर मर जाउन्गा.

आख़िर मे मैने खुद से हार मानते हुए, कीर्ति से बात करने का फ़ैसला किया और अपने दोनो मोबाइल चालू कर दिए. मोबाइल चालू करते ही, दोनो मोबाइल पर कीर्ति का एक ही मेसेज आया.

कीर्ति का मेसेज “तुमने मेरे मूह पर मोबाइल बंद करके अच्छा नही किया. तुम अपने आपको समझते क्या हो. तुमको इतना घमंड किस बात का है. अपना घमंड अपने पास ही रखो. मुझे अपना घमंड दिखाने की कोशिश मत करो. यदि तुम मेरे बिना रह सकते हो तो, मैं भी तुम्हारे बिना रह सकती हूँ. अब मैं तुमसे कभी बात नही करूगी.”

कीर्ति का मेसेज पढ़ कर, मेरा दिल एक बार फिर छल्नि छल्नि हो गया. मैने कीर्ति को कॉल लगाने का अपना फ़ैसला, ये सोच कर बदल दिया कि, यदि वो मेरे बिना रह सकती है तो, फिर मैं भी उसे, उसके बिना रह कर दिखाउन्गा.

मगर कीर्ति के बिना रहने की सोच कर ही, एक बार फिर मेरा दिल रो उठा. अब मेरे पास खुद को शराब के नशे मे पूरी तरह से डुबो देने के सिवा, कोई दूसरा रास्ता नही बचा था और मेरे हाथ खुद ही उस चौथे पेग की तरफ बढ़ गये, जो मैने बना कर रखा था.

अभी मैने पेग उठाया ही था कि, तभी कीर्ति का फोन आने लगा. शायद मेरे पास उसका मेसेज पहुचते ही, वो समझ गयी थी कि, मैने मोबाइल चालू कर दिए है. इसलिए उसने मोबाइल चालू होने के, कुछ ही देर बाद कॉल लगा दिया था. मैने भी बिना कुछ सोचे उसका कॉल उठाते हुए, उस कहा.

मैं बोला “हाँ बोलो.”

कीर्ति बोली “तुम्हे मेरा मेसेज मिल गया.”

मैं बोला “हाँ मिल गया.”

कीर्ति बोली “बस यही पुच्छने को कॉल किया था.”

मैं बोला “और कुछ बोलना है.”

कीर्ति बोली “नही और कुछ नही बोलना.”

मैं बोला “ठीक है और कुछ नही बोलना तो, अब फोन रखो.”

कीर्ति बोली “मैं ही क्यो फोन रखूं. तुम मेरे मूह पर फोन काट सकते हो तो, फोन रख भी सकते हो.”

मैं बोला “मुझे तुमसे फालतू की बहस नही करना. यदि तुम्हे कुछ बोलना है तो बोलो, वरना फोन रखो.”

कीर्ति बोली “मुझे कुछ नही बोलना. लेकिन मैं फोन नही रखुगी. फोन तुमको ही रखना पड़ेगा.”

मैं बोला “फोन तुमने लगाया है, इसलिए फोन तुम ही रखो.”

कीर्ति बोली “मैं तुम्हारी नौकर नही हूँ, जो तुम कहो उठो तो, उठ जाउ और तुम कहो बैठो तो, बैठ जाउ. मैं एक बार फोन नही रखुगी तो, मतलब की मैं फोन नही रखूँगी. फोन तुमको ही रखना पड़ेगा.”

मैं बोला “ना मैने फोन लगाया है और ना मैं फोन रखुगा.”

कीर्ति बोली “तो ठीक है, फोन चालू रहने दो. एक घंटा पूरा होने पर फोन खुद ही कट जाएगा.”

मैं बोला “मैं बेकार मे एक घंटे तक फोन पकड़ कर बैठा नही रह सकता.”

कीर्ति बोली “मैने तुमसे कब कहा की, तुम फोन पकड़ कर बैठे रहो. तुम फोन एक किनारे रख दो.”

अब मैने उस से बेकार मे बहस करना ठीक नही समझा. मैने हाथ मे पकड़ा हुआ पेग टेबल पर रख कर, मोबाइल को कान से लगाए लगाए ही लेट गया और आँखे बंद करके, कीर्ति को महसूस करने की कोशिश करने लगा.

लेकिन कीर्ति की तरफ से, उसकी सासों के सिवा कोई आवाज़ नही आ रही थी. शायद वो भी मेरी हरकत को महसूस करने की कोसिस कर रही थी. लेकिन ना तो वो मुझसे कुछ बोल रही थी और ना ही मैं उस से कुछ बोल पा रहा था.

इसकी वजह ये थी कि, अभी तक हम दोनो की, दूसरे से नाराज़गी ख़तम नही हुई थी. उसे मुझसे बहुत सी शिकायत थी तो, मुझे भी उस से बहुत सी शिकायत थी. जिस वजह से हम दोनो एक दूसरे से कोई बात नही कर पा रहे थे.

लेकिन कीर्ति के मेरे पास होने के अहसास से ही, मेरे दिल को जो राहत मिली थी. उस राहत से मेरी उड़ी हुई नींद फिर से वापस आ गयी और मुझे पता ही नही चला कि, मैं फोन पकड़े पकड़े, कब गहरी नींद की आगोश मे चला गया.

सुबह 6 बजे मेरी नींद खुली तो, मुझे याद आया कि, रत को मैं चालू मोबाइल पकड़े पकड़े ही सो गया था. ये बात याद आते ही मैने फ़ौरन मोबाइल को उठा कर रात का कॉल देखा तो, पाया कि रात को मोबाइल पूरे एक घंटे तक चलने के बाद बंद हुआ था.

जिसका मतलब यही था कि, कीर्ति मेरे सो जाने के बाद भी, कॉल काटने का इंतजार करती रही. लेकिन ये जानने के बाद भी, मेरी नाराज़गी उस से ख़तम नही हुई थी और उसकी रात की बातें मेरे दिमाग़ मे घूम रही थी. उसने जिस तरह से मेरी बेज़्जती की थी, वो मैं चाह कर भी भूल नही पा रहा था.

यही वजह थी कि, आज सुबह उठने के बाद, मैं रोज की तरह, उसे कॉल लगाने की ताक़त नही जुटा पा रहा था. मैं इस बात को भी अच्छी तरह से जानता था कि, यदि मैं उसे सुबह कॉल नही लगाता हूँ तो, हो सकता है कि वो भी मुझे दिन भर या रात को कोई कॉल ना करे.

इस सब के बाद भी, मैं अपने आपको, कीर्ति को कॉल लगाने के लिए तैयार नही कर पा रहा था. क्योकि मेरे दिमाग़ मे बार बार, कीर्ति की बस ये ही बात घूम रही थी कि, “तुम्हे इस तरह मुझ पर उंगली उठाने का कोई हक़ नही है. अपनी हद पार मत करो.”

यदि मुझे कीर्ति को कुछ कहने का हक़ नही था तो, फिर उस से बात करने का या इस रिश्ते को आगे बढ़ाने का कोई मतलब ही नही रह जाता था. क्योकि मेरे प्यार की तो, कोई हद ही नही थी. मेरा सोना जागना, खाना पीना, हसना रोना सब कीर्ति से ही था और अब वो ही मुझे मेरी हद दिखा रही थी.

आख़िर मे मैने सब कुछ कीर्ति के उपर ही छोड़ते हुए, भारी मान से उसे कॉल ना लगाने का फ़ैसला किया और उठ कर फ्रेश होने चला गया. फ्रेश होने के बाद, मैं हॉस्पिटल जाने के लिए तैयार होने लगा और तैयार होते होते मुझे 7:15 बज गया.

मैं तैयार होने के बाद, घर को लॉक करके बाहर निकला ही था कि, तभी अजय की टॅक्सी मेरे सामने आकर रुकी. उसकी टॅक्सी मे शिखा बैठी हुई. जिस से समझ मे आ रहा था कि, वो शिखा को छोड़ने घर जा रहा था. लेकिन शायद उसे कोई काम याद आ गया और वो शिखा को लेकर यहाँ आ गया.

अजय ने टॅक्सी से नीचे उतरते हुए शिखा से कुछ देर इंतजार करने को कहा और फिर मुझे आँखों से अंदर चलने का इशारा किया. मुझे कुछ समझ मे तो नही आ रहा था. फिर भी उसके इशारे को समझते हुए मैं चुप चाप अंदर आ गया.

अंदर आते ही अजय एक दूसरा गॅरेज खोलने लगा. मुझे लगा कि शायद वो अपनी कोई दूसरी कार निकलेगा. लेकिन गॅरेज खुलते ही मुझे वहाँ पल्सार, यूनिकॉर्न, करिज़्मा और स्प्लेनडर+ बाइक नज़र आई. इस से पहले कि मैं कुछ समझ पाता, अजय ने मुझसे कहा.

अजय बोला “इन मे से जो भी बाइक तुम्हे पसंद हो, तुम उसे इस्तेमाल कर सकते हो.”

मैं बोला “लेकिन इसकी क्या ज़रूरत है. मैं तो टॅक्सी से आता जाता हूँ और मुझे हॉस्पिटल के सिवा कहीं आना जाना भी नही रहता है.”

अजय बोला “बहुत ज़रूरत थी. घर मे मे चार चार बाइक होते हुए भी, तुम्हारा टॅक्सी से आना जाना मुझे अच्छा नही लग रहा था. रात को मैं जल्दी मे तुम्हे ये बताना भूल गया था और अब तुम्हारा हॉस्पिटल जाने का टाइम हो रहा था. इसलिए मुझे शिखा को घर छोड़ने से पहले तुम्हारे पास आना पड़ा है.”

मैं बोला “क्या शिखा को मालूम है कि, ये तुम्हारा घर है.”

अजय बोला “नही, अमन और निशा के सिवा इस घर के मालिक को कोई नही जानता. क्योकि मैं यहाँ बहुत कम रहता हूँ. अभी भी मैने शिखा से यही कहा है कि, मुझे डॉक्टर अमन के फरन्ड को एक ज़रूरी मेसेज देना है और वो डॉक्टर अमन के दूसरे बंगलो मे ठहरा है.”

मैं बोला “लेकिन शिखा तो, ये जानती है कि, मैं तुम्हारा दोस्त हूँ. फिर वो अब मुझे यहाँ देख कर, तुमसे कुछ पुछेगि नही.”

अजय बोला “वो ऐसा कुछ नही पुछेगि. क्योकि उसने तुम्हे उपर अंकल के पास देखा था और अमन ने शिखा से अंकल को अपने दोस्त का पिता बताते हुए, उनका खास ख़याल रखने को कहा था. कल सुबह जब शिखा ने तुम्हे मेरे साथ देखा था. तब वो तुम्हे पहचान नही पाई थी.”

“उसके बाद उसने मुझसे तुम्हारे बारे मे पुछा तो, मैने उसे बताया कि, तुम डॉक्टर अमन के दोस्त हो और डॉक्टर अमन ने मुझसे तुम्हारा ख़याल रखने को कहा है और अब मेरी भी तुमसे दोस्ती हो गयी है.”

मैं बोला “लेकिन शिखा से ये झूठ बोलने की ज़रूरत क्या थी. यदि वो ये सब जान भी लेती तो क्या फरक पड़ जाता.”

मेरी बात सुनकर अजय को हँसी आ गयी. उसने मुस्कुराते हुए, मेरी बात का जबाब देते हुए कहा.

अजय बोला “ये सब बातें हम फ़ुर्सत मे बैठ कर लेगे. अभी तो मुझे जाना होगा, क्योकि बाहर शिखा मेरा इंतजार कर रही है. उसे ज़्यादा इंतजार करवाना अच्छा नही होगा. तुम ज़्यादा सोचना मत और जिस बाइक को ले जाने का मन करे, अपनी ही समझ कर ले जाना. मुझे तुम्हारे ऐसा करने से बहुत खुशी होगी. अब मैं चलता हूँ.”

ये कह कर अजय मेरा कोई जबाब सुने बिना ही वापस चला गया. मैं हैरानी से उसे जाता हुआ देखता रहा. मैं समझ नही पा रहा था कि, कोई एक दो दिन की मुलाकात मे ही, किसी के लिए इतना सब कुछ कैसे कर सकता है.

मैं अजय की सोच मे गुम था और तभी मुझे उसकी टॅक्सी के स्टार्ट होने की आवाज़ सुनाई दी और फिर धीरे धीरे उसकी टॅक्सी की आवाज़ आना बंद हो गयी. वो जिस काम से आया था, उसे पूरा कर के जा चुका था.

मैने एक नज़र चारों बाइक पर डाली. चारों ही बाइक एक से बढ़ कर एक थी. लेकिन मैने अपने लिए स्प्लेनडर+ को चुना. क्योकि मेरे पास घर मे भी स्प्लेनडर+ ही थी. मैने बाइक को बाहर निकाला और गॅरेज को बंद करने के बाद, मेन गेट को लॉक करके बाहर आ गया.

पहली बार मुंबई की सड़क पर, बाइक चलाने मे कुछ घबराहट सी हो रही थी. लेकिन फिर मैने बाइक को स्टार्ट किया और बाइक आगे बढ़ा दी. कुछ दूर बाइक चलाने के बाद, मेरी घबराहट खुद ही दूर हो गयी और फिर मैं कुछ ही समय बाद हॉस्पिटल पहुच गया.

मैने बाइक पार्क की और समय देखा तो, अभी सिर्फ़ 7:45 बजे थे. मैने मेहुल को कॉल लगाया और अपने आ जाने की खबर दे दी. फिर उसके बाद मैं प्रिया के पास चला गया.

प्रिया के पास अभी भी निक्की ही थी. मैने उस से राज के बारे मे पुछा तो, उसने बताया कि, राज सुबह 7 बजे ही घर चला गया था और अब घर से किसी के आने के बाद ही वो घर जाएगी.

प्रिया की हालत पहले से बहुत अच्छी नज़र आ रही थी. मेरी उस से भी थोड़ी बहुत बात हुई. तब तक मेहुल भी हमारे पास आ चुका था. फिर 8:15 बजे रिया और अंकल आ गये. अंकल ने निक्की से घर जाने को कहा तो, मैं निक्की और मेहुल के साथ बाहर आ गया.

मेहुल टॅक्सी देखने लगा तो, मैने उसे बाइक ले जाने को कहा. मेरी बात सुनकर निक्की को तो, कोई आश्चर्य नही हुआ. लेकिन मेहुल चौक कर मुझे देखने लगा. तब मैने उसे बताया कि, मैं जिस दोस्त के पास रुका हूँ, ये उसकी ही बाइक है. इसके बाद मेहुल 3 बजे तक आने की बोल कर, निक्की को बाइक पर लेकर घर चला गया.

मेहुल के जाने के बाद मैं अंकल के पास आ गया. इसके बाद का मेरा सारा समय कभी अंकल के पास तो, कभी प्रिया के पास रहते गुजर गया. इस बीच दादा जी और आंटी भी आ चुके थे और अंकल अपने ऑफीस जा चुके थे.

आंटी ने 12 बजे मुझसे खाने के लिए पुछा तो, मैने कह दिया कि, मैं नाश्ता करके आया हूँ और अब अपने दोस्त के साथ ही खाना खाउन्गा. जबकि हक़ीकत तो ये थी कि, आज मैने सुबह से एक चाय तक नही पी थी.

सुबह से मेरी कीर्ति से कोई बात नही हुई थी. जिस वजह से मेरी भूख प्यास दोनो मर चुकी थी और मेरा कुछ भी खाने पीने का मन नही कर रहा था. जिस वजह से मुझे आंटी से झूठ बोलना पड़ा था.

लेकिन कुछ ही देर बाद अजय का कॉल आ गया. वो शायद नींद से अभी अभी जागा था. उसने अल्साते हुए, मुझसे कहा.

अजय बोला “यार, तुम्हारे खाने का क्या सोचा है.”

मैं बोला “मेरे खाने के चिंता मत करो, मैं किसी रेस्टोरेंट मे खा लुगा.”

अजय बोला “ऐसे कैसे तुम किसी रेस्टोरेंट मे खाना खा लोगे. जब तक तुम मेरे घर मे हो. तुम्हारे खाने पीने की जबाब दारी मेरी है.”

मैं बोला “यार तुम क्यो बेकार मे परेशान होते हो. तुम भी तो मुझे बाहर से ही खाना मंगवा कर खिलाओगे ना. ऐसे मे यदि मैं खुद ही बाहर खाना खा लेता हूँ तो, इसमे बुरा क्या है.”

मेरी बात सुनकर, अजय हँसने लगा और फिर उस ने मुझसे मज़ाक करते हुए कहा.

अजय बोला “भाई, हम ग़रीब लोगों को कभी कभी ही किसी होटेल मे खाना खाना नसीब होता है. बाकी दिन तो घर के खाने से ही गुज़ारा करना पड़ता है. वैसे भी तुमने मुझसे वादा किया था कि, किसी दिन मेरे साथ खाना ज़रूर खाओगे तो, समझ लो वो दिन आज आ गया.”

अजय और अजय की बातें, दोनो ही मेरे सर के उपर से गुजर रहे थे. इसलिए मैने उस से ज़्यादा बहस करना ठीक नही समझा और उसे खाने के लिए हाँ कर दिया. मेरे मूह से हाँ सुनते ही, उसने खुश होते हुए मुझसे कहा.


अजय बोला “तुम हॉस्पिटल से कितने बजे फ़ुर्सत होगे.”

मैं बोला “3 बजे.”

अजय बोला “तो क्या तुम 3 बजे तक भूखे ही रहोगे.”

मैं बोला “नही, ऐसी बात नही है. मैं यहाँ चाय नाश्ता कर चुका हूँ. वैसे तो मैं 12 बजे घर चला जाता था. लेकिन आज से मैं रात को हॉस्पिटल मे रूकुगा. इसलिए आज 3 बजे तक यहाँ रुका हूँ.”

अजय बोला “ठीक है, मैं 3 बजे घर पहुचो, मैं तुमको वही मिलता हूँ.”

मैं बोला “ओके.”

इसके बाद अजय ने कॉल रख दिया और मैं फिर से हॉस्पिटल मे बिज़ी हो गया. लेकिन मुझे रह रह कर कीर्ति की याद सता रही थी. मगर ना तो मैं उसको कॉल लगा रहा था और ना ही उसकी तरफ से कोई कॉल आ रहा था.

आख़िर कीर्ति को याद करते करते किसी तरह बाकी का समय भी गुजर गया. फिर 3 बजे मेहुल और राज आ गये. मेरी उनसे थोड़ी बहुत बात हुई और फिर रात को 10 बजे आने की बोल कर मैं वहाँ से घर के लिए निकल गया.

मैं 3:15 बजे घर पहुचा तो, अजय मुझे घर के बाहर ही, मेरा इंतजार करते हुए मिल गया. वो इस समय बिल्कुल साधारण से कपड़ो मे था और एक ऐक्टिवा पर बैठा मेरा इंतजार कर रहा था.

मुझे समझ मे नही आया कि, अब ये अक्तिवा कहाँ से आ गयी और ये घर के बाहर बैठ कर मेरा इंतजार क्यो कर रहा है. बस यही सोचते हुए मैने अपनी बाइक अजय के पास रोक दी.

लेकिन मुझे आता देखते ही अजय ने अपनी अक्तिवा स्टार्ट कर ली थी और मेरे उसके पास पहुचते ही, उसने मुझसे कहा.

अजय बोला “यहाँ रुकने की ज़रूरत नही है, मेरे पिछे पिछे आओ और रास्ता अच्छे से याद कर लेना.”

मुझे उसकी बात समझ मे नही आई. लेकिन मैने चुप चाप बाइक उसके पिछे लगा दी और रास्ते को याद रखते हुए, उसके पिछे पिछे चलने लगा. करीब 5 मिनिट अजय के पिछे चलने के बाद, हम लोग बड़ी बड़ी इमारतों को पिछे छोड़ते हुए, छोटे छोटे घर मकानो की तरफ आ गये.

कुछ दूर चलने के बाद अजय ने अपनी अक्तिवा एक गली के अंदर डाल दी. मैं भी उसके पिछे पिछे चल रहा था. उस गली मे कुछ दूर तक चलने के बाद, अजय ने अपनी अक्तिवा एक दो मंज़िला मकान के सामने रोक दी.

मकान देख कर ही समझ मे आ रहा था कि, वहाँ कोई मध्यम वर्गिया परिवार (मिड्ल क्लास फॅमिली) रहता है. लेकिन उसी मकान से थोड़ी दूरी पर, खाली पड़े मैदान मे अजय की टॅक्सी खड़ी थी. जिसे देख कर, मुझे लगा कि, शायद ये अजय का दूसरा मकान है.

उस मकान के सामने एक छोटा सा आँगन था. जो कि तीन तरफ दीवारों से घिरा हुआ था और जिसके सामने एक छोटा सा गेट लगा हुआ था. अजय ने गेट खोल कर अपनी अक्तिवा को आँगन मे रखा और फिर बाहर आकर मुझे भी बाइक अंदर रखने को कहा.

अजय के कहने पर मैने बाइक लाकर अंदर आँगन मे खड़ी कर दी और फिर घर के आँगन को देखने लगा. आँगन ज़्यादा बड़ा तो नही था, लेकिन बहुत ही सॉफ सुथरा था और उसकी चार दीवारी (बाउंड्री वॉल) के किनारे किनारे फूलों के पौधे (प्लॅंट्स) लगे हुए थे. जिनमे रंग बिरंगे फूल खिले होने के कारण, वो बहुत ही सुंदर लग रहे थे.

इसके बाद मैने एक नज़र घर की तरफ डाली तो, घर की निचली मंज़िल (ग्राउंड फ्लोर) के सामने के, कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. मगर दरवाजे पर पर्दे लगे हुए थे. जिस वजह से अंदर का कुछ भी नज़र नही आ रहा था.

मगर घर को इस तरह से खुला हुआ देख कर, मैं ये सोचने पर मजबूर हो गया कि, अजय तो अभी मेरे साथ, बाहर से आ रहा है. लेकिन घर पहले से ही खुला हुआ है. तो क्या इस घर मे अजय के साथ और कोई भी रहता है. यदि कोई रहता है तो, उसका अजय से रिश्ता क्या है और अजय ने इस बात को अभी तक राज़ क्यों रखा है.
Reply
09-09-2020, 02:32 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
117
अजय की बाकी बातों की तरह, ये बात भी अभी एक राज़ ही थी. लेकिन अब शायद अजय के हर राज़ पर से परदा उठने का समय आ चुका था और अजय की जिंदगी एक खुली किताब की तरह मेरे सामने आने वाली थी. जिसका कि मुझे बहुत बेसब्री से इंतेजार था.

मगर ऐसे समय पर कीर्ति का मेरे साथ फोन पर ना होना, मुझे बहुत अखर रहा था. क्योकि मैं चाहता था कि, जब मैं अजय से, उसकी जिंदगी के बारे मे बात करूँ, तब कीर्ति भी मेरे साथ फोन पर रहे, ताकि वो भी अजय की जिंदगी से जुड़े राज़ को जान सके. लेकिन आज जब इस राज़ के खुलने का वक्त पास आया तो, कीर्ति मेरे साथ नही थी.

इस ख़याल के मेरे मन मे आते ही, एक बार फिर मुझे, कीर्ति की यादों ने घेर लिया. वो कैसी है, क्या कर रही है. वो मुझे याद कर रही है या नही, ये सारी बात मेरे दिमाग़ मे घूमने लगी. लेकिन मेरे पास इन मे से किसी भी बात का कोई जबाब नही था. मुझे कीर्ति की किसी भी बात की, कोई खबर नही थी.

क्योकि आज कीर्ति से नाराज़गी के चलते, मैने घर मे भी फोन लगा कर, किसी से कोई बात नही की थी और कीर्ति ने भी सुबह से अभी तक, मेरा हाल चाल जानने की कोई कोशिश नही की थी. जिस वजह से उसकी हर बात से मैं अंजान था.

मेरा दिल अब भी, कीर्ति की आवाज़ को सुनने के लिए तड़प रहा था और कीर्ति की जुदाई मे अपने हथियार पहले ही डाल चुका था. लेकिन मेरा दिमाग़ था कि, वो किसी भी कीमत पर कीर्ति की ग़लती को माफ़ करने के लिए तैयार नही था और मेरे दिल से तरह तरह के सवाल किए जा रहा था.

मेरा दिमाग़ कह रहा था कि, यदि कीर्ति तुमसे प्यार करती है तो, वो अपनी ग़लती की माफी क्यों नही माँग लेती. यदि उसे तुमसे प्यार है तो, फिर वो तुमसे बात किए बिना कैसे रह ले रही है. यदि सुबह से अभी तक तुमने उस से बात नही की तो, उसने तुमसे बात करने की कोशिश क्यो नही की है. यदि तुम्हे उसकी कमी अखर रही है तो, फिर उसे तुम्हारी कमी क्यो नही अखर रही है और यदि उसे तुम्हारी कमी अखर रही है तो, वो तुमको मना क्यो नही रही है.

मेरे दिमाग़ की ये सारी बातें, मेरे दिल को कीर्ति से बात करने से रोक रही थी. मगर इस सब के बाद भी, मेरा दिल हर जगह, हर बात पर कीर्ति की कमी को महसूस करने से बाज नही आ रहा था और बार बार सिर्फ़ कीर्ति को ही याद किए जा रहा था.

मुझे मेरे दिल और दिमाग़ ने, एक अजीब ही उलझन मे उलझा दिया था. जिस वजह से अब मेरी अजय के बारे मे जानने की सारी उसुकता ख़तम हो गयी थी और मेरे चेहरे पर उदासी छा गयी थी.

मुझे इस तरह से किसी गहरी सोच मे गुम देख कर और मेरे अचानक से उतर गये चेहरे को देख कर, अजय को लगा कि, शायद मुझे उसका ये घर पसंद नही आया. उसने मुझे मेरी सोच से बाहर निकालने के लिए, मेरे कंधे को पकड़ कर, हिलाया और संजीदा होते हुए मुझसे कहा.

अजय बोला “क्या हुआ, क्या सोच रहे हो, क्या तुम्हे मेरा ये छोटा सा घर पसंद नही आया.”

अजय की बात सुनकर, मुझे अपनी हालत का अहसास हुआ और मैने अपने आपको संभालते हुए, अजय से कहा.

मैं बोला “कोई घर भी घर, सिर्फ़ मकान के छोटे या बड़े होने से, छोटा या बड़ा नही हो जाता. घर तो उसमे रहने वालों से छोटा बड़ा होता है और मेरा मानना है कि, जिस घर मे तुम रहो, वो घर कभी छोटा हो ही नही सकता.”

मेरी बात सुनकर, अजय के चेहरे पर मुस्कुराहट वापस आ गयी. उसने मुस्कुराते हुए मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा.

अजय बोला “ऐसा क्यो. भला मेरे रहने से कोई घर कैसे बड़ा हो सकता है.”

मैं बोला “क्योकि तुम्हारा दिल बड़ा है और जिसका दिल बड़ा हो, उसका घर कभी छोटा हो ही नही सकता. अब यदि तुम्हारा बात करना हो गया हो तो, अब अपना घर भी दिखा दो.”

अजय बोला “क्यो नही, आओ चलो, इस ग़रीब का छोटा सा आशियाना भी देख लो.”

ये कह कर वो घर की दाहिनी (राइट) तरफ बनी सीडियों (स्टेर्स) की तरफ बढ़ गया. मैं भी उसके पिछे पिछे चलने लगा. लेकिन अब मेरे मन मे एक सवाल और आ रहा था कि, यदि अजय घर की पहली मंज़िल पर रहता है तो, घर की निचली मंज़िल पर कौन रहता है. क्या अजय यहाँ किराए (रेंट) पर रहता है.

मैं ये सब सोच रहा था और हम लोग उपर पहुच गये. उपर 36*24 का छत था और छत की एक तरफ 3 कमरे बने हुए थे. उन कमरों मे से तीसरे कमरे से लगा हुआ, एक बाथरूम बना हुआ था. जिस से समझ मे आ रहा था कि, उपर के कमरे किराए पर देने के लिए ही बनाए गये है.

उपर पहुचने के बाद अजय ने तीसरे कमरे का दरवाजा खोला और मुझे अंदर चल कर बैठने को कह कर, वापस नीचे की तरफ चला गया. अजय के नीचे चले जाने के बाद, मैने कमरे की तरफ देखा.

यहाँ भी कमरे मे परदा लगा हुआ था. मैने पर्दे को हटाया और कमरे के अंदर आ गया. लेकिन अंदर का नज़ारा देख कर, मुझे अपनी आँखों देखे पर यकीन कर पाना मुश्किल हो रहा था कि, अजय जैसा करोड़पति आदमी, इस छोटे और साधारण से मकान मे रहता है.

कमरे मे परदा लगा होने की वजह से, बाहर की रोशनी अंदर नही आ पा रही थी और अंदर का कमरा एक 60 वॉट के बल्ब की पीली रोशनी से रोशन था. जिसकी रोशनी की मुझे आदत ना होने के कारण, ये रोशनी मेरी आँखों को चुभ रही थी. कुछ देर तो मुझे खुद को इस रोशनी मे ढलने मे लग गयी.

जब मुझे इस रोशनी की कुछ आदत सी हुई तो, मैने कमरे के चारो तरफ देखा. कमरे मे ज़्यादा समान तो नही था. लेकिन कमरा बेहद सॉफ सुथरा था. कमरे के दरवाजे के दाहिनी तरफ वाली दीवार से लग कर एक छोटा सा बेड था. जिसमे एक सॉफ और सुंदर सी चादर बिछि हुई थी.

बेड के पास ही सामने वाली दीवार से लग कर एक पुराना सा टीवी रखा हुआ था और टीवी के पास ही एक दरवाजा था. जो अंदर वाले कमरे मे जाने के लिए था. अंदर के कमरे मे भी बल्ब की रोशनी जा रही थी. जिस से पता चल रहा था कि, अंदर वाला कमरा ज़्यादा बड़ा नही और वहाँ शायद किचन बना हुआ है.

बेड के सामने वाली दीवार के पास लकड़ी की अलमारी और अलमारी के पास ही दीवार पर एक आईना लगा हुआ था. दरवाजे के पास बाएँ तरफ एक टेबल रखी हुई थी और टेबल पर सलीके से कुछ किताबें जमी हुई थी. उसी टेबल के पास चार चेयर और एक सेंट्रल टेबल रखी हुई थी.

मैं खड़ा खड़ा कमरे का नज़ारा कर रहा था कि, तभी मेरी नज़र बेड पर रखे एक अख़बार (न्यूसपेपर) पर पड़ी. मैं आकर बेड पर बैठ गया और अख़बार के पन्ने पलटने लगा. पन्ने पलटते पलटते मेरी नज़र एक कविता पर पड़ी. जो किसी महिला कवियत्रि तृप्ति ने लिखी थी. कविता का शीर्षक था प्रतीक्षा.

वैसे तो मुझे कविता या शेर और शायरी पढ़ने का शौक बिल्कुल भी नही था. ना ही इसमे कही गयी बातें मेरे दिमाग़ मे चढ़ा करती थी. फिर भी कीर्ति के साथ रहते रहते, अच्छी शायरी जमा करना मेरी आदत मे शामिल हो गया था. ताकि वो शायरी मैं कीर्ति को भेज सकूँ.

लेकिन किसी कविता को पढ़ने का ये मेरा पहला मौका था. इस कविता का शीर्षक, मेरे इस समय की परिस्थिती से मेल ख़ाता था. जिसकी वजह से मैं अपने आपको ये कविता पढ़ने से ना रोक सका और कविता पढ़ने लगा.
“प्रतीक्षा”

“बस तेरी प्रतीक्षा मे, गुज़ार दी जिंदगी हम ने.
तुम जो आए नही तो, उजाड़ ली जिंदगी हम ने.
सब्र की सीमाएँ थी, हम प्रतीक्षा कब तक करते.
काग़ज़ों को स्याहियों से, हम भरा कब तक करते.
तुमने ना भूलने की, हम से कसम ले डाली थी.
छोड़ कर ना जाउन्गा, अपनी बात भी उसमे डाली थी.
एक अगर रूठेगा तो, उसे दूसरा मनाएगा.
वादे ये प्यार के, कोई तोड़ कर ना जाएगा.
वादा निभाया मैने, और लाज बच गयी तेरी भी.
अगले जनम मे मिलने की, आस बच गयी मेरी भी.
मुक्त करती हूँ तुमको, तेरे भूले बिसरे वादों से.
मत करना तुम ग्लानि कभी, अपने अधूरे वादों से.”

कविता की पहली लाइन पढ़ते ही, मेरी आँखों मे कीर्ति का चेहरा घूमने लगा था और कविता की हर लाइन मुझे कीर्ति के दिल के दर्द का अहसास करा रही थी. मुझे ऐसा लग रहा था कि, जैसे ये कविता कीर्ति ने ही लिखी हो.

क्योकि इसकी हर लाइन मे मुझे, मेरी और कीर्ति की कहानी नज़र आ रही थी और इसकी आख़िरी लाइन मे मुझे अपना कीर्ति से किया हुआ वो वादा याद आया, जो मैने मुंबई से घर वापस पहुचने पर कीर्ति से किया था. जब कीर्ति ने मेरे मरने की बात के उपर से, मुझे तमाचा मारा था. मेरी आँखों मे उस दिन का मंज़र किसी फिल्म की तरह घूमने लगा.

_________________

मैं बोला “मैं तुझे बहुत दुख देता हूँ ना.”

कीर्ति भी मेरे पास ही नीचे आकर बैठ गयी और मेरे हाथों को चूमते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली “मुझे तुम्हारा दिया हर दर्द कबुल है. मैं तुम्हारा हर दर्द हंसते हंसते सह सकती हूँ. लेकिन यदि तुम्हे कोई आँच भी आए तो, मैं सह नही पाती हूँ. मुझे माफ़ कर दो. मैने वेवजह तुम पर हाथ उठाया. मगर मैं क्या करती. मैं उस बात को भुला नही पा रही थी. जिसकी वजह से मेरा सब कुछ लुट जाने वाला था.”

मैं बोला “सॉरी, अब आगे से ऐसा कुछ नही होगा.”

कीर्ति बोली “तुम हमेशा ऐसा ही कहते हो. लेकिन बार बार वही करते हो. जिस से मुझे तकलीफ़ होती है.”

मैं बोला “लेकिन तूने भी तो वही किया है. जिस से मुझे तकलीफ़ होती है.”

कीर्ति बोली “मैने जो किया सिर्फ़ अपने आपको सज़ा देने के लिए किया है. यदि तुम मेरी जान को नुकसान पहुचाओगे तो, मैं तुम्हारी जान को भी नुकसान पहुचाउन्गी. मैं तुमसे ये पहले ही बोल चुकी हूँ.”

मैं बोला “ठीक है आज के बाद से हम दोनो ही एक दूसरे की जान को नुकसान नही पहुचाएगे.”

कीर्ति बोली “ऐसे नही, तुम मेरी कसम खाकर बोलो कि, तुम चाहे मेरे बारे मे कुछ भी सुन लो. लेकिन तब तक कोई ऐसा कदम नही उठाओगे. जब तक ये साबित ना हो जाए कि, तुमने जो सुना है वो सही है.”

कीर्ति की इस बात पर मैने उसे छेड़ते हुए कहा.

मैं बोला “यानी कि साबित होने के बाद मैं कुछ भी कर सकता हूँ.”

कीर्ति बोली “ज़्यादा मज़ाक मत करो. भगवान भी चाहेगा. तब भी मैं तुम्हे छोड़ कर नही जा सकती. मौत भी मुझे तुमसे दूर नही कर सकती. अब तुम सीधे से मेरी कसम खाते हो या फिर मैं कुछ और करूँ.”

मैं बोला “ख़ाता हूँ बाबा. मैं तेरी कसम खाकर बोलता हूँ कि, अब चाहे कैसी भी बात क्यो ना हो. मैं कभी बिना सोचे समझे और सच्चाई का पता किए बिना ऐसा कोई भी कदम नही उठाउँगा. जिसके उठाने से तुझे तकलीफ़ हो.”

कीर्ति बोली “ये हुई ना कोई बात. अब मैं सच मे बहुत खुश हूँ.”

मैं बोला “तू भी तो कसम खा. तू भी तो आए दिन ये हाथ काट कर मुझे तकलीफ़ देती रहती है.”

कीर्ति बोली “ओके मैं भी कसम खाती हूँ कि, जब तक तुम मेरी जान को कोई तकलीफ़ नही पहुचाओगे. तब तक मैं भी तुम्हारी जान को कोई तकलीफ़ नही पहुचाउन्गी.”

_________________

उस दिन की बात याद आते ही, सबसे पहले मुझे, कल रात को अपनी शराब पीने की हरकत का पछ्तावा हुआ. क्योकि चाहे कल रात को शराब पीने के बाद, मेरी कीर्ति से ज़्यादा बात ना हुई हो, मगर मेरी जितनी भी उस से बातें हुई थी, उस से उसे इस बात का अहसास ज़रूर हो गया होगा कि, मैने शराब पी रखी है.

अभी तक मुझे सिर्फ़ ये दिख रहा था कि, कीर्ति ने मेरे दिल को चोट पहुचाई है और उसने मेरा अपमान किया है. मुझे मेरी कहीं भी कोई ग़लती नज़र नही आ रही थी. लेकिन अब मुझे अपनी शराब पीने की ग़लती सॉफ नज़र आ रही थी.

अब मेरी इस ग़लती के बाद, कीर्ति के मेरे सामने झुकने का सवाल ही पैदा नही होता था. शायद यही वजह रही होगी कि, रात के बाद से, उसने मुझे कोई कॉल करने की कोसिस नही की थी.

लेकिन अपनी ग़लती नज़र आने के बाद भी मैं कीर्ति के सामने झुकने को तैयार नही था. क्योकि भले ही मैने ग़लती की थी, मगर उस ग़लती को करने की शुरुआत तो, कीर्ति की तरफ की गयी थी. यदि कीर्ति ने ग़लती नही की होती तो, मेरे फिर भी ग़लती करने का सवाल ही पैदा नही होता.

आख़िर मे मुझे कीर्ति के सामने ना झुकने और उसे कॉल लगाने का एक तरीका समझ मे आ गया. मैने बिना देर किए मोबाइल निकाला और कीर्ति को कॉल लगा दिया. मेरा कॉल जाते ही, कीर्ति ने फ़ौरन मेरा कॉल उठा लिया.

उसके कॉल उठाने से ही, मैं समझ गया था कि, कीर्ति की भी नाराज़गी कम नही हुई है. वरना वो मेरा कॉल उठाने की जगह, मेरा कॉल काट कर, मुझे दूसरे मोबाइल पर कॉल लगाती. उसने कॉल उठाते ही मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “हाँ बोलो.”

मैं बोला “मुझे कुछ नही बोलना.”

कीर्ति बोली “जब कुछ बोलना नही तो, कॉल क्यो लगाया.”

मैं बोला “मैं अभी अजय के दूसरे घर मे आया हूँ, इसलिए तुम्हे कॉल लगाया था.”

कीर्ति बोली “तो इसमे मैं क्या करूँ. इस से मेरा क्या मतलब.”

मैं बोला “इस से तुम्हारा कोई मतलब नही है. मुझे लगा कि, तुम्हे कॉल लगाना चाहिए तो, मैने लगा दिया. अब यदि तुम कॉल चालू रखना चाहती हो तो, चालू रख सकती हो और यदि कॉल बंद करना चाहती हो तो, बंद कर सकती हो. मैं मोबाइल जेब मे रख रहा हूँ. तुम्हे जो ठीक लगे, तुम कर लेना.”

ये बोल कर, मैने मोबाइल जेब मे रख लिया. लेकिन मेरा सारा ध्यान मोबाइल की तरफ ही लगा हुआ था. कुछ देर तक मोबाइल चालू रहने के बाद, अचानक कट गया. मुझे लगा कि, शायद गुस्से की वजह से कीर्ति ने कॉल काट दिया है.

मगर कॉल काटने के अगले ही पल, कीर्ति के दूसरे मोबाइल से, मेरे दूसरे मोबाइल पर कॉल आने लगा. मैने कॉल उठाया और उस से कहा.

मैं बोला “हाँ, क्या हुआ.”

कीर्ति बोली “कुछ नही, वो मेरा हाथ लग जाने से कट गया था.”

मैं बोला “ठीक है, मैं मोबाइल जेब मे रख रहा हूँ.”

ये कह कर मैने मोबाइल वापस अपने जेब मे रख लिया. मगर मैं कीर्ति के, कॉल के अचानक कट जाने की वजह, अच्छी तरह से समझ गया था और इसके समझ मे आते ही, खुद ब खुद मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी थी.

असल मे वो इस बात को अच्छी तरह से जानती थी कि, मेरे उस नंबर पर ज़्यादा बॅलेन्स नही होगा. इसलिए वो मेरे उस नंबर का बॅलेन्स खर्च करना नही चाहती थी. जिस वजह से उसने, उस नंबर पर से मेरा कॉल काट कर, मुझे इस नंबर पर कॉल लगाया था.

उसकी इस हरकत से मेरे दिल को बहुत सुकून मिला और मेरी खोई हुई भूख फिर से वापस आ गयी थी. मैं अभी कीर्ति की हरकत मे ही खोया हुआ था कि, तभी अजय बिसलेरी की 3 बॉटल्स लेकर आ गया. उसने बिसलेरी की बॉटल्स सेंट्रल टेबल पर रखते हुए, मुझसे कहा.

अजय बोला “तुम बाहर बाथरूम मे जाकर मूह हाथ धो लो. तब तक मैं खाना लगाता हूँ.”

ये कहते हुए अजय ने, मुझे टवल थमा दिया और वापस नीचे चला गया. मैं भी उठ कर मूह हाथ धोने चला गया.

मैं जब तक मूह हाथ धोकर वापस आया, तब तक अजय सेंट्रल टेबल पर खाने की दो थाली लगा चुका था. किचन की लाइट जल रही थी. इसलिए मेरे लिए ये अनुमान लगाना मुस्किल था कि, ये खाना कहाँ से आया है.

कीर्ति मेरे साथ मोबाइल पर बनी हुई थी और अजय की बातों से उसे ये भी समझ मे आ गया होगा कि, मैं यहाँ खाना खाने आया हूँ. मैने वापस आकर खाना लगे देखा तो, बेड पर बैठते हुए अजय से कहा.

मैं बोला “क्या ये खाना तुमने बनाया है.”

मेरी बात सुनकर अजय ने मुस्कुराते हुए कहा.

अजय बोला “नही, मेरा खुद का खाना नीचे से बन कर आता है. मैं यहाँ पेयिंग गेस्ट हूँ, इसलिए मुझे खाना बनाने की ज़रूरत नही पड़ती. अब तुम बेकार का सवाल करना छोड़ो और ये बोलो कि खाना तुम इस सेंट्रल टेबल पर ही खा लोगे या फिर तुम्हारे खाना खाने के लिए डाइनिंग टेबल का इंतज़ाम किया जाए.”

अजय की इस बात का जबाब भी मैने उसी के अंदाज़ मे देते हुए कहा.

मैं बोला “यार भूख के मारे तो मेरा बुरा हाल हो रहा है और तुमको डाइनिंग टेबल की पड़ी हुई है. अब ज़्यादा तकल्लूफ मत करो और खाना सुरू करो.”

ये कहते हुए मैने एक चेयर खीची और सेंट्रल टेबल के पास आकर बैठ गया. मुझे बैठते देख अजय भी एक चेयर पर बैठ गया. अभी हम खाना खाना, शुरू ही करने वाले थे कि, तभी मुझे बाहर से किसी लड़की की आवाज़ आती सुनाई दी.

मेरी पीठ दरवाजे की तरफ थी, इसलिए मैं उसे देख नही सका. अजय मेरे सामने था और उसका मूह दरवाजे की तरफ था. उस लड़की ने दरवाजे पर खड़े खड़े ही अजय से कहा.

लड़की बोली “अज्जि भैया, आप जल्दी जल्दी मे ये पापड नीचे ही भूल कर आ गये थे. दीदी ने मुझे ये पापड आपको देने के लिए भेजा है.”

लड़की की बात सुनकर, अजय ने उस लड़की की तरफ देखा और फिर बहुत ही मासूम बनते हुए उस से कहा.

अजय बोला “ये तो तुमने बहुत अच्छा किया. लेकिन अब ये पापड देने के लिए तुम खुद अंदर आ रही हो या फिर ये पापड खुद ही चल कर अंदर आने वाले है.”

अजय की बात सुनकर, एक तरफ तो मैं अपनी हँसी रोक नही पाया. वही दूसरी तरफ वो लड़की, अपना पैर पटकते हुए, अंदर आ गयी और पहली बार मेरी नज़र उस लड़की पर पड़ी. वो लगभग मेरी ही उमर की थी.

उसकी आवाज़ तो कोयल की तरह सुरीली थी ही और अब जब मैने उसे देखा तो, देखता ही रह गया. उसने सुरीली आवाज़ ही नही बल्कि, कयामत की सुंदरता भी पाई थी. वो एक दम दूध की तरह सफेद थी और उसकी आँखे नीली थी. जो उसको ऑर भी ज़्यादा सुंदर और सेक्सी बना रही थी.

उस ने इस समय एक शॉर्ट पॅंट और वाइट टी-शर्ट पहनी हुई थी. उसका शॉर्ट पॅंट उसकी गोरी गोरी जाँघो मे कसा हुआ था और उसकी टी-शर्ट इतनी ढीली और लंबी थी कि, उसका आधे से ज़्यादा शॉर्ट पॅंट, उस से ढका हुआ था. जिस से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि, जैसे उसने नीचे कुछ पहना ही ना हो.

उसके इस पहनावे को देख कर, मुझे अचानक ही प्रिया की याद आ गयी. क्योकि दोनो के पहनावे मे कोई खास ज़्यादा अंतर नही था. प्रिया की याद आते ही, मैं उस लड़की की सुंदरता की तुलना प्रिया की सुंदरता से करने लगा.

लड़की सच मे ही बेहद खूबसूरत थी. लेकिन प्रिया के साथ उसकी तुलना करने से, उसकी सुंदरता फीकी लगने लगी थी और आज पहली बार मुझे प्रिया की सुंदरता का अहसास हो रहा था.

मैं प्रिया और उस लड़की की सुंदरता की तुलना करने मे खोया हुआ था. तभी उस लड़की ने सेंट्रल टेबल पर पापड रख कर, ठुनक्ते हुए अजय से कहा.

लड़की बोली “ये लीजिए आ गये आपके पापड, मगर दोबारा मेरा मज़ाक उड़ाया ना तो, ये पापड जैसे आए है, वैसे ही वापस भी चले जाएँगे.”

ये बोल कर लड़की फिर से पैर पटकते हुए वापस चली गयी और अजय मुस्कुरा कर उसे जाते हुए देखता रहा. उसके चले जाने के बाद अजय ने मुझसे कहा.

अजय बोला “ये नेहा है और ये प्रिया की बहुत ही खास सहेली है.”

मुझे उस लड़की या उसके नाम को जानने मे, कोई खास दिलचस्पी नही थी. क्योकि मुझे जिस लड़की मे दिलचस्पी थी. वो भले ही इस वक्त मुझसे नाराज़ चल रही थी, फिर भी मेरे साथ फोन पर बनी हुई थी और ये ही बात मुझे मन ही मन गुदगुदा रही थी.
Reply
09-09-2020, 02:33 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
118
मुझे उस लड़की या उसके नाम को जानने मे, कोई खास दिलचस्पी नही थी. क्योकि मुझे जिस लड़की मे दिलचस्पी थी. वो भले ही इस वक्त मुझसे नाराज़ चल रही थी, फिर भी मेरे साथ फोन पर बनी हुई थी और ये ही बात मुझे मन ही मन गुदगुदा रही थी.

लेकिन जैसे ही मैने अजय के मूह से, प्रिया का नाम सुना तो, मेरे दिमाग़ मे एक बॉम्ब सा फुट गया और एक साथ कयि सवाल मेरे दिमाग़ मे उठने लगे. मैं अपने दिमाग़ मे उठ रहे, इन सवालों का जबाब जानने के लिए, अजय की तरफ सवालिया नज़रों से देखने लगा.

अजय मेरे इस तरह से देखने का मतलब समझ चुका था. उसने मेरी इस बेचेनी को देखते हुए, मुझसे कहा.

अजय बोला “ये बात सुनकर जैसे सवाल तुम्हारे दिमाग़ मे आ रहे है. कुछ ऐसे ही सवाल, जब मुझे इस बात का पता चला था, मेरे दिमाग़ मे भी आ रहे थे. लेकिन इस बात को करने के लिए, ना तो ये समय ठीक है और ना ही ये जगह ठीक है. इसलिए अभी तो तुम सिर्फ़ खाना खाओ. तुम्हारे सारे सवालों का जबाब, मैं तुमको आज रात को हॉस्पिटल मे दूँगा.”

अजय की ये बात सुनकर, मैने भी उस से कोई सवाल करना ठीक नही समझा और खाना खाने लगा. लेकिन कीर्ति अभी भी मेरे साथ फोन पर बनी हुई थी और मैं चाहता था कि, कम से कम वो मेरे खाना खाते तक मेरे साथ फोन पर बनी रहे.

लेकिन अजय के अभी कोई भी बात बताने से मना कर देने के बाद से, ना तो अजय कुछ बोल रहा था और ना ही मुझे अजय से करने के लिए कुछ बात सूझ रही थी. जिस वजह से हम दोनो चुप चाप खाना खा रहे थे.

मगर अब मुझे अंदर ही अंदर ये डर सताने लगा था कि, कोई भी बात होती ना देख कर, कीर्ति कहीं फोन ना रख दे. इसलिए मैं अजय से बात करते रहना चाहता था और जब मुझे करने के लिए कोई बात नही सूझी तो, मैं खाना खाते से बीच मे उठा और बेड पर रखे अख़बार को उठाते हुए अजय से कहा.

मैं बोला “तुमने आज के अख़बार मे छपी ये कविता पर पढ़ी है.”

अजय बोला “नही, आज मुझे अख़बार पढ़ने का टाइम ही नही मिला. क्या तुमको कविता पढ़ने का शौक है.”

मैं बोला “नही, मुझे कविता पढ़ने का शौक तो नही है. मगर अख़बार के पन्ने पलटते पलटते मुझे ये कविता नज़र आ गयी और जब इसे पढ़ा तो, मुझे बहुत पसंद आई.”

अजय बोला “हाँ, हर सोमवार (मंडे) और बुधवार (वेडनेसडे) को इसमे बहुत अच्छी अच्छी कविताएँ और शेर-शायरी आती है. लेकिन मुझे इन सब मे कोई ज़्यादा रूचि नही है.”

मैं बोला “रूचि तो मुझे भी नही है. लेकिन मुझे ये कविता बहुत पसंद आई. तुम भी सुनो शायद तुम्हे भी पसंद आए.”

ये कह कर मैं अजय को अख़बार मे छपी कविता सुनाने लगा. असल मे मैं वो कविता कीर्ति को सुनाना चाहता था, इसलिए मैने उस कविता मे थोड़ा फेर बदल कर के, उसे एक लड़के के नज़रिए से पढ़ कर सुनाने लगा.
“प्रतीक्षा”

“बस तेरी प्रतीक्षा मे, गुज़ार दी जिंदगी हम ने.
तुम जो आई नही तो, उजाड़ ली जिंदगी हम ने.
सब्र की सीमाएँ थी, हम प्रतीक्षा कब तक करते.
काग़ज़ों को स्याहियों से, हम भरा कब तक करते.
तुमने ना भूलने की, हम से कसम ले डाली थी.
छोड़ कर ना जाउन्गी, अपनी बात भी उसमे डाली थी.
एक अगर रूठेगा तो, उसे दूसरा मनाएगा.
वादे ये प्यार के, कोई तोड़ कर ना जाएगा.
वादा निभाया मैने, और लाज बच गयी तेरी भी.
अगले जनम मे मिलने की, आस बच गयी मेरी भी.
मुक्त करता हूँ तुमको, तेरे भूले बिसरे वादों से.
मत करना तुम ग्लानि कभी, अपने अधूरे वादों से.”

अजय को पूरी कविता सुना देने के बाद, मेरे चेहरे पर खुद ही मुस्कुराहट आ गयी. मेरी इस मुस्कुराहट की वजह ये थी कि, मैने कविता के ज़रिए ही सही, मगर कीर्ति को अपने दिल की बात कह दी थी.

यदि ये ही कविता मैने कीर्ति को मेसेज मे भेजी होती तो, उसका जबाब ज़रूर आया होता. लेकिन अभी हम दोनो की ही एक दूसरे से नाराज़गी ख़तम होने का नाम नही ले रही थी. जिसकी वजह से, इस झगड़े को ख़तम करने की पहल ना तो कीर्ति की तरफ से हो रही थी और ना ही मैं कोई पहल कर रहा था.

लेकिन इस झगड़े के बाद भी हम दोनो का एक दूसरे के साथ बने रहना, इस बात का सबूत था कि, हमारे दिल मे एक दूसरे के लिए कितना प्यार है. भले ही हम एक दूसरे से कोई बात नही कर रहे थे. मगर हम एक दूसरे से बात करने और एक दूसरे की आवाज़ सुनने के लिए तड़प रहे थे.

यही वजह थी कि, अजय के अभी कोई भी बात बताने से मना कर देने के बाद भी, कीर्ति फोन पर बनी हुई थी और मेरी आवाज़ सुनकर अपने दिल की तड़प को कम कर रही थी और कीर्ति के फोन पर बने रहने से मेरे दिल को भी राहत मिल रही थी.

मेरा और अजय का खाना खाना हो चुका था और अब हम लोग यहाँ वहाँ की बातें कर रहे थे. थोड़ी देर बाद मैने अजय से जाने की इजाज़त माँगी तो, अजय ने रात के खाने के बारे मे पुछा. उसकी इस बात के जबाब मे, मैने उस से कहा.

मैं बोला “दिन का खाना तो अभी शाम को 4:30 बजे खा रहा हूँ और यहाँ से जाने के बाद मुझे जाकर सीधा सोना ही है. ऐसे मे रात को उठते ही मुझे भूख लगने का सवाल ही पैदा नही होता है. यदि फिर भी मुझे रात को भूख लगती है तो, मैं वही कॅंटीन से कुछ लेकर खा लुगा. इसलिए मेरे रात के खाने की, तुम बेकार मे चिंता मत करो.”

मेरी बात सुनने के बाद भी, अजय रात के खाने की ज़िद करता रहा. मगर बाद मे मेरे समझाने पर उसे मेरी बात समझ मे आ गयी. अब मैं जल्दी से जल्दी यहाँ से निकल जाना चाहता था. क्योकि अब कीर्ति के कॉल को आए एक घंटा होने वाला था और एक घंटा होते ही उसका कॉल खुद ही कट जाना था.

इसलिए मैं कीर्ति के कॉल के काटने के पहले ही, घर पहुच जाना चाहता था. क्योकि कॉल काटने के बाद, कीर्ति के वापस कॉल लगाने की कोई उम्मीद नही थी और उसका कॉल काटते ही, मुझे जो सूनापन महसूस होने वाला था, मैं उस से बचना चाह रहा था.

यही सब सोचते हुए मैने अजय से रात को हॉस्पिटल मे मिलने की बात कही और फिर उसे बाइ बोल कर, मैं उसके दूसरे घर के लिए निकल लिया. लेकिन मेरी बाइक चलाते हुए भी मेरी नज़र मोबाइल पर ही थी.

मैं अभी अजय के घर से कुछ ही दूर पहुचा था कि, एक दम से मोबाइल की स्क्रीन चमकने लगी. ये देखते ही मैं उदास हो गया, क्योकि कीर्ति का कॉल कट चुका था. एक पल के लिए मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे जिस्म से जान ही निकल गयी हो. मेरे अंदर का सारा जोश ठंडा पड़ गया.

लेकिन अगले ही पल मेरा चेहरा खुशी से खिल उठा. क्योकि कॉल काटने के थोड़ी ही देर बाद, कीर्ति का कॉल दोबारा आने लगा. मैने कॉल उठाया तो, कीर्ति ने कहा.

कीर्ति बोली “एक घंटा होने की वजह से कॉल कट गया था, इसलिए वापस कॉल लगाई हूँ.”

मैं बोला “ओके, अभी मैं बाइक चला रहा हूँ. यदि तुम कॉल रखना चाहती हो तो रख सकती हो. मैं मोबाइल वापस जेब मे रख रहा हूँ.”

मगर मेरी इस बात के जबाब मे कीर्ति ने कोई जबाब नही दिया. मैने मोबाइल वापस जेब मे रख लिया. लेकिन मेरी नज़र बराबर मोबाइल पर जमी हुई थी और कीर्ति ने अभी भी मोबाइल नही रखा था. मुझे समझ मे नही आया कि, कीर्ति ने अभी तक मोबाइल क्यो नही रखा है.

कीर्ति के मोबाइल ना रखने से मुझे ऐसा लगा. जैसे कि उसको अपनी ग़लती का अहसास हो गया हो और अब वो मुझसे बात करना चाह रही हो. ये बात दिमाग़ मे आते ही, मैने बाइक तेज़ी से घर की तरफ बढ़ा दी और कुछ ही देर मे, मैं घर पहुच गया.

घर पहुच कर मैने बाइक रखी और सीधा अपने कमरे की तरफ भागा. कमरे मे पहुच कर मैने जल्दी से कपड़े बदले और फिर खुशी खुशी कीर्ति वाला मोबाइल बाहर निकाल कर कान पर लगाया.

लेकिन मेरे कुछ भी बोल पाने के पहले ही, मुझे कमरे का दरवाजा खुलने की आवाज़ आई. शायद कीर्ति अपने कमरे से निकल कर, कहीं जा रही थी. थोड़ी देर बाद, मुझे उसके सीडियों से उतरने का आभास हुआ और फिर उसके बाद मुझे कीर्ति की आवाज़ सुनाई दी. उसने छोटी माँ से कहा.

कीर्ति बोली “मौसी आज मेरी तबीयत कुछ ठीक सी नही है. आज रात को मेरे लिए खाना मत बनाइए.”

कीर्ति की तबीयत सही ना होने की बात सुनकर, मेरा दिल बेचेन हो गया और मुझे उसकी तबीयत की चिंता सताने लगी. वही दूसरी तरफ छोटी माँ ने भी अपनी चिंता जाहिर करते हुए कीर्ति से कहा.

छोटी माँ बोली “ये अचानक तेरी तबीयत को क्या हो गया. सुबह भी तूने कुछ नही खाया और अब रात को भी खाने से मना कर रही है.”

कीर्ति बोली “मौसी आज सुबह से मेरा पेट खराब है, इसलिए कुछ खाने का मन ही नही कर रहा है.”

छोटी माँ बोली “तूने ज़रूर कुछ उल्टा सीधा खा लिया होगा. तभी तेरा पेट खराब हुआ है.”

कीर्ति बोली “हाँ मौसी, कल रात को मैने कुछ ज़्यादा ही खाना खा लिया था. इसी वजह से कल रात से पेट कुछ ज़्यादा ही आवाज़ कर रहा है. एक दिन इसे भूखा रखुगी तो, इसकी सारी अकल ठिकाने आ जाएगी और दोबारा मेरे सामने ऐसी ग़लती करने की हिम्मत नही करेगा.”

कीर्ति की ये बात सुनकर, मुझे ऐसा लगा, जैसे वो ये बात अपने पेट के लिए नही, बल्कि मेरे लिए कह रही हो. वही उसकी बात सुनकर छोटी माँ हँसे बिना ना रह सकी और उन्हो ने कीर्ति से कहा.

छोटी माँ बोली “अच्छा तो तू भूखा रह कर, अपने पेट को आवाज़ करने की सज़ा दे रही है.”

कीर्ति बोली “हाँ, मैं खुद को भूखा रख कर इसे सज़ा ही दे रही हूँ. इसकी वजह से मैं किसी से बात भी नही कर सकती.”

कीर्ति की बात सुनकर एक बार फिर छोटी माँ की हँसी की आवाज़ गूँज गयी और उन्हो ने हंसते हुए उस से कहा.

छोटी माँ बोली “क्यो, क्या तेरा पेट तुझे किसी से बात करने से रोकता है, जो तू इसकी वजह से किसी से बात भी नही कर पा रही है.”

कीर्ति बोली “और नही तो क्या. जब भी मैं किसी से बात करने जाती हूँ, ये आवाज़ करना सुरू कर देता है. अब भला ऐसे मे किसी से बात करना अच्छा लगता है क्या.”

छोटी माँ बोली “लेकिन अभी तो तेरा पेट ज़रा भी आवाज़ नही कर रहा है.”

कीर्ति बोली “कैसे आवाज़ करेगा. भूखा रहने की वजह से अभी मूह फूला कर बैठा हुआ. मगर अंदर ही अंदर बहुत गुध्गुधा रहा है.”

कीर्ति की बातों से मुझे साफ समझ मे आ रहा था कि, वो कल रात की बातों की वजह से ही खाना नही खा रही है और अपने पेट की आड़ मे, मेरे बारे मे ही बात कर रही है. उसकी इस हरकत पर मुझे उस पर गुस्सा भी आ रहा था और हँसी भी आ रही थी.

वही छोटी माँ भी उसकी इन बातों को मज़े लेकर सुन रही थी. फिर बाद मे उन्हो ने संजीदा होते हुए कीर्ति से कहा.

छोटी माँ बोली “अब मज़ाक बहुत हो गया. ये बता तूने कोई दवाई ली या नही. यदि पेट मे ज़्यादा तकलीफ़ हो रही हो तो, चल अभी चल कर दवा ले आते है. वरना तेरी तकलीफ़ बढ़ भी सकती है.”

कीर्ति बोली “मौसी चिंता की कोई बात नही है. मैने दवा खा ली है. सुबह तक बिल्कुल आराम लग जाएगा.”

छोटी माँ बोली “ठीक है, मैं तेरे रात के खाने के लिए कुछ हल्का फूलका बना दुगी. यदि तेरे पास पेट की दवा ना हो तो, अभी मॅंगा कर रख लेना. ताकि रात को परेशानी ना हो.”

कीर्ति बोली “ओके, मैं अभी दवा मॅंगा लेती हूँ मगर आप मेरे खाने की चिंता मत करो. मेरा सच मे कुछ भी खाने का मन नही है और हो सकता है कि, कुछ खाने से पेट की तकलीफ़ और भी बढ़ जाए.”

कीर्ति की बात सुनकर छोटी माँ ने उस पर गुस्सा करते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “आए लड़की, अब तू अपना ज़्यादा दिमाग़ मत चला. मुझे पता है कि, कब क्या खाना चाहिए और कब क्या नही खाना चाहिए. यदि तुझे पेट मे ज़्यादा तकलीफ़ हो रही है तो, तू अभी मेरे साथ डॉक्टर के यहाँ चल. नही तो जैसा मैं कह रही हू, वैसा कर. अब बोल तुझे क्या करना है.”

छोटी माँ को गुस्सा करते देख, कीर्ति ने भी उनकी बात मान लेने मे ही अपनी भलाई समझी. उसने बेमन से छोटी माँ से कहा.

कीर्ति बोली “ठीक है मौसी. आप को जो ठीक लगे, आप खाने मे बना दीजिएगा. लेकिन मैं रात का खाना अपने कमरे मे ही खाउन्गी.”

छोटी माँ बोली “ठीक है, तू अपने कमरे मे ही खाना खा लेना. अब तू अपने कमरे मे जाकर आराम कर और कमल को फोन करके पेट की दवा भी मॅंगा ले.”

कीर्ति बोली “जी मौसी, मैं अभी माँगा लेती हूँ.”

इसके बाद उन दोनो की आवाज़ आना बंद हो गयी. शायद कीर्ति अपने कमरे मे वापस आ रही थी. मुझे छोटी माँ का कीर्ति को इस तरह से डाटना बहुत अच्छा लगा था और इस बात की खुशी भी थी कि, छोटी माँ के सामने कीर्ति की एक नही चली और अब उसे रात को खाना खाना ही पड़ेगा.

लेकिन ये बात अभी भी मेरी समझ से बाहर थी कि, कीर्ति की तबीयत सच मे खराब है या फिर वो किसी वजह से तबीयत खराब होने का नाटक कर रही है. अब बात चाहे जो भी थी, मगर मेरे लिए जानना ज़रूरी हो गयी थी.

प्यार का रिश्ता हम दोनो के बीच भले ही कुछ समय पहले बना था. लेकिन इस प्यार का बीज तो हमारे बीच बचपन से ही पनप रहा था. बचपन से ही कीर्ति बहुत गुस्से वाली थी और उसका मुझसे बात बात पर झगड़ा होता रहता था.

मुझे उसकी ये आदत कभी भी समझ मे नही आती थी कि, वो अपने हर काम के लिए मेरा ही नाम लेती थी और फिर बाद मे किसी बात पर मुझसे ही झगड़ा कर लेती थी. कभी कभी मुझे उसकी इस हरकत पर बहुत गुस्सा आता और मैं सोच लेता कि, अब मैं दोबारा उसके घर नही जाउन्गा.

लेकिन वो इस पर भी मेरा पीछा नही छोड़ती और किसी ना किसी बहाने मेरे घर आ जाती और अपनी मीठी मीठी बातों से बहला कर मुझे मना ही लेती. शायद मुझसे झगड़ा करना ही उसके प्यार जताने का एक अंदाज़ था.

मुझे अच्छे से याद है कि, आज से 2 साल पहले कीर्ति के बर्थ’डे पर मैं छोटी मा और अमि निमी के साथ गया हुआ था. बर्थ’डे पार्टी मे कुछ खास महमानो को ही बुलाया गया था, इसलिए ज़्यादा भीड़ भाड़ नही थी.

कीर्ति पिंक कलर की फ्रॉक मे किसी परी की तरह लग रही थी. वो मुझे अपनी सभी सहेलियों से मिलवा रही थी. फिर बाद मे उसने केक काटा और अमि, निमी और कमल को केक खिलाने के बाद, मुझे भी केक खिलाया.

केक खाने के बाद अचानक मेरे पेट मे दर्द होने लगा और मैं एक किनारे आकर खड़ा हो गया. पार्टी मे आए सभी लोग कीर्ति को गिफ्ट दे रहे थे और मैं दूर खड़ा ये सब नज़ारा देख रहा था.

मौसा जी ने कीर्ति के बर्थ’डे गिफ्ट मे उसे एक वीडियो गेम गिफ्ट किया. लेकिन उन्हो ने कीर्ति के साथ साथ मुझे भी एक वीडियो गेम गिफ्ट किया. क्योकि वो मुझे बहुत प्यार करते थे और ये उनकी आदत थी कि, यदि वो कीर्ति के लिए कोई नया गिफ्ट लाते तो, मेरे लिए भी वो गिफ्ट लेकर आते थे.

कीर्ति ने कभी भी इस बात का बुरा नही माना था और ना ही उसे अभी इस बात का कोई बुरा लगा था. उसने खुद मेरे पास आकर मुझे मौसा जी का दिया हुआ गिफ्ट लाकर दिया और फिर मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “मेरा बर्थ’डे गिफ्ट कहाँ है.”

मैं उसकी इस बात का मतलब नही समझा और मैने उस से कहा.

मैं बोला “मुझे क्या पता. सब गिफ्ट तो, तू ही रख रही है.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति खिलखिला कर हँसने लगी और उसके मोतियों की तरह सफेद दाँत चमकने लगे. उसने मेरे सर पर प्यार से एक थपकी मारी और कहा.

कीर्ति बोली “बुद्धू, मैं उस गिफ्ट की बात कर रही हूँ. जो तू मुझे देने के लिए लाया है.”

लेकिन मैं कोई गिफ्ट लेकर नही गया ही नही था और ना ही मैने इसकी कोई ज़रूरत समझी थी. क्योकि छोटी माँ तो कीर्ति के लिए गिफ्ट लेकर गयी ही थी. इसलिए मैने लापरवाही से कहा.

मैं बोला “मैं कौन सा कमाता हूँ, जो मैं कोई गिफ्ट लेकर आता.”

मेरी इस बात से कीर्ति चिड गयी और उसने मुझ पर अपना गुस्सा उतारते हुए कहा.

कीर्ति बोली “तो क्या मैं कमाती हूँ, जो मैने तेरे बर्थ’डे पर तुझे गिफ्ट दिया था.”

मैं बोला “अरे तो इसमे इतना गुस्सा होने की क्या बात है. मैने तो तुझसे नही कहा था कि, तू मेरे बर्थ’डे पर मुझे कोई गिफ्ट दे. अब फिर मेरा बर्थ’डे आ रहा है. तू भी मुझे कोई गिफ्ट मत देना. हिसाब बराबर हो जाएगा.”

लेकिन मेरी बात सुनकर, कीर्ति की आँखों मे आँसू आ गये. आज के दिन मुझे उसका यूँ आँसू बहाना अच्छा नही लगा और मैने उसे मनाते हुए कहा.

मैं बोला “अब तू इतनी सी बात पर रोना मत सुरू कर, सब मेहमान देखेगे तो, क्या सोचेगे. यदि मैं तेरे बर्थ’डे पर तेरे लिए कोई गिफ्ट नही लाया तो क्या हुआ. मेरे घर से छोटी माँ तो तेरे लिए गिफ्ट लेकर आई है ना.”

मैने तो ये बात कीर्ति को समझाने के लिए बोली थी. लेकिन ना जाने उसने मेरी इस बात का क्या मतलब निकाल लिया था कि, उसकी आँखे गुस्से मे लाल हो गयी और वो मेरी तरफ घूर कर देखने लगी.

थोड़ी देर तक वो मेरी तरफ गुस्से मे घूर कर देखती रही. उसके बाद उसने गुस्से मे मेरे हाथ से मौसा जी का दिया हुआ गिफ्ट छीना और वापस मूड कर पार्टी मे जाने लगी.

लेकिन अभी वो एक दो कदम ही आगे बड़ी थी कि, उसे मेरी आवाज़ सुनाई दी और उसने गुस्से मे पलट कर मेरी तरफ देखा. मगर मेरी तरफ देखते ही उसके हाथ से गिफ्ट छूट कर नीचे गिर गया और उसने घबरा कर मेरी तरफ दौड़ लगा दी.
Reply
09-09-2020, 02:33 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
119
मैं घुटनो के बल, अपना पेट पकड़ कर ज़मीन पर बैठा कराह रहा था. कीर्ति घबराई हुई मेरे पास आई और मेरे पास बैठ कर मेरी पीठ पर हाथ फेरते हुए मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “ये अचानक क्या हुआ तुझे. क्या तेरे पेट मे दर्द हो रहा है.”

लेकिन उस समय दर्द की वजह से मेरी जान निकली जा रही थी और मैं कीर्ति के किसी भी सवाल का जबाब देने की हालत मे नही था. मैने दर्द से कराहते हुए कहा.

मैं बोला “जा जल्दी से छोटी माँ को बुला वरना मैं दर्द से मर जाउन्गा.”

मेरी ऐसी हालत को देख कर कीर्ति और भी ज़्यादा घबरा गयी और फिर बिना देर किए, भागती हुई छोटी माँ को बुलाने चली गयी.थोड़ी ही देर मे छोटी माँ निमी को गोद मे लेकर, कीर्ति और अमि के साथ मेरे पास आ गयी.

उन्हो ने फ़ौरन निमी को अपनी गोद से नीचे उतारा और मेरे पास आ गयी. उन को अपने पास देख कर, मुझे बहुत राहत महसूस हुई. उनकी समझदारी और हिम्मत का लोहा तो सभी मानते थे.

मुझे भी यही लगा था कि, छोटी माँ आएगी और मुझे जल्दी से हॉस्पिटल ले जाएगी. लेकिन छोटी माँ ने आकर जो किया, उसकी तो मुझे उन से उम्मीद ही नही थी. वो आकर मेरे पास बैठ गयी और मेरा सर पकड़ कर अपनी गोद मे रख लिया.

लेकिन शायद छोटी माँ को मेरी ऐसी हालत होने का अंदाज़ा नही था. इसलिए जब उन्हो ने मुझे ज़मीन पर पड़ा दर्द से तड़प्ते देखा तो, वो अपनी सुध बुध खो बैठी और उनकी आँखों से आँसुओं की नदियाँ बहने लगी और मेरे चेहरे पर तप टॅप आँसू गिरने लगे.

छोटी माँ की आँखों से आँसू बहे जा रहे थे और वो बार बार मेरे माथे को चूम कर मुझसे पूछती जा रही थी. “क्या हुआ मेरे बच्चे, तुझे क्या हुआ. तू ऐसा क्यो पड़ा है.”

वो बस रोए जा रही थी और बार बार मेरे चेहरे को चूम कर बस यही पुच्छे जा रही थी. उनकी सारी समझदारी इस वक्त ना जाने कहाँ खो गयी थी और उन्हे ये भी होश नही रहा कि, ऐसी हालत मे मुझे हॉस्पिटल ले जाना चाहिए.

मैं ये तो अच्छी तरह से जानता था कि, छोटी माँ मुझे बहुत प्यार करती है. मगर कितना ज़्यादा प्यार करती है, ये मुझे आज महसूस हो रहा था. मेरी ज़रा सी तकलीफ़ से उनकी सारी सुध बुध और समझदारी कहीं खो सी गयी थी.

उनके इस प्यार को महसूस करके, एक पल के लिए मैं अपना सारा दर्द भूल गया और मेरी आँखें भी आँसुओं से भर गयी. वही दूसरी तरफ छोटी माँ को रोता हुआ देख कर, अमि निमी और कीर्ति भी रोने लगी.

जिसे सुनकर पार्टी मे आए लोग वहाँ जमा होने लगे और कुछ ही देर मे मौसा जी, मौसी, आंटी और अंकल भी हमारे पास आ गये. मौसा जी को देखते ही कीर्ति ने उन्हे रो रो कर सारी बात बता दी.

जिसे सुनते ही मौसा जी गाड़ी निकालने जाने लगे और अंकल से कहा कि वो मुझे लेकर आए. मौसा जी की बात सुनते ही अंकल ने मुझे गोद मे उठा लिया और आंटी से कहा.

अंकल बोले “रिचा, तुम और अनु बच्चों का ख़याल रखो. हम लोग पुन्नू को लेकर हॉस्पिटल जाते है.”

इसके बाद मौसा जी, अंकल और छोटी मा मुझे हॉस्पिटल लेकर आ गये. जहा डॉक्टर ने मेरी जाँच की और मुझे एक इंजेक्षन दे दिया. जिस से मेरे पेर का दर्द कम हो गया और मुझे नींद आ गयी.

रात भर मैं बेहोशी की नींद सोता रहा और सुबह जब मेरी नींद खुली तो छोटी माँ मेरे पास ही बैठी थी. उनकी आँखों से पता चल रहा था कि, वो सारी रात सोई नही है.

मुझे जागते देख कर उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. लेकिन अपने आपको हॉस्पिटल मे ही देख कर मुझे हैरानी हुई और मैने छोटी माँ से कहा.

मैं बोला “छोटी माँ, मैं अभी तक हॉस्पिटल मे क्यू हूँ. मुझे तो बस पेट मे दर्द था और जब डॉक्टर ने दवा दे दी थी तो हम घर वापस क्यू नही गये.”

मेरी बात सुनकर छोटी माँ ने प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरा और मुस्कुराते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “तू अभी पूरी तरह ठीक नही हुआ है. अभी तुझे कुछ दिन और हॉस्पिटल मे रहना होगा.”

मैं बोला “नही छोटी माँ, अब मुझे पेट मे ज़रा भी दर्द नही है. अब मैं पूरी तरह से ठीक हूँ.”

मेरी बात सुनकर छोटी माँ ने मुझे समझाते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “नही, अभी तू पूरी तरह ठीक नही हुआ है. तेरे पेट मे दर्द अपेंडिक्स मे सूजन की वजह से उठा था. उसका एक छोटा सा ऑपरेशन होना है. उसके बाद तू पूरी तरह ठीक हो जाएगा.”

ऑपरेशन का नाम सुनते ही मेरे चेहरे का रंग उड़ गया और डर के मारे मेरी हालत खराब हो गयी. मेरे चेहरे का उड़ा हुआ रंग देख कर छोटी माँ को मेरी हालत का अंदाज़ा हो गया.

छोटी माँ मुझे समझाने की कोसिस करती रही. लेकिन मैं ऑपरेशन के लिए मना करता रहा. कुछ ही देर मे मौसा जी और अंकल आंटी भी आ गये. वो भी मुझे समझाने की कोसिस करते रहे.

मगर मैं किसी की भी बात मानने को तैयार नही था. बाद मे छोटी माँ ने अमि निमी का वास्ता देकर किसी तरह मुझे ऑपरेशन के लिए तैयार कर ही लिया और कुछ घंटो के बाद मेरा अपेंडिक्स का ऑपरेशन हो गया.

ऑपरेशन के समय मौसी और कीर्ति के अलावा सभी लोग हॉस्पिटल मे थे. फिर ऑपरेशन के बाद जब मुझे होश आया तब भी एक एक कर सभी लोग मुझसे मिले. लेकिन मौसी और कीर्ति अभी भी मुझसे मिलने नही आई थी.

उस समय मुझ पर दवाइयों का नशा था. इसलिए मैं इस बात पर ज़्यादा गौर नही कर पाया था. लेकिन जब दूसरे दिन भी मौसी और कीर्ति मुझे देखने नही आए. तब खुद ब खुद मेरा ध्यान इस बात पर चला गया.
Reply
09-09-2020, 02:33 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
120
मौसी मुझे पसंद नही करती थी. ये बात किसी से छुपि नही थी और मुझे भी उनके देखने ना आने का कोई मलाल नही था. लेकिन कीर्ति से मुझे इस बात की ज़रा भी उम्मीद नही थी.

मेरे और कीर्ति के बीच झगड़ा होना कोई नयी बात नही थी. हमारे बीच हमेशा किसी ना किसी बात को लेकर झगड़ा लगा ही रहता था. लेकिन इस के बाद भी हम दोनो को एक दूसरे की परवाह रहती थी.

आज मेरा हॉस्पिटल मे दूसरा दिन था और दूसरे दिन भी कीर्ति का मुझे देखने ना आना. मुझे अंदर ही अंदर चुभ रहा था और जब ये चुभन बहुत बढ़ गयी तो मैने छोटी माँ से इसके बारे मे पुच्छने का फ़ैसला किया.

इस से पहले कि मैं छोटी माँ से कुछ पूछ पाता, उसके पहले ही मौसा जी आ गये. उन्हे देख कर मुझे एक उम्मीद बँधी कि शायद उनके साथ कीर्ति भी आई होगी. लेकिन ये देख कर दिल उदास हो गया कि वो अकेले ही आए है.

उन्हो ने मेरा हाल चाल पूछा और फिर उनकी छोटी माँ से बातें होती रही. थोड़ी देर उनकी बातें सुनते रहने के बाद मैने मौसा जी कहा.

मैं बोला “मौसा जी, कीर्ति कहाँ है.? वो मुझसे मिलने क्यो नही आई.”

मौसा जी बोले “कल उसकी तबीयत सही नही थी. इसलिए वो तुमसे मिलने नही आ पाई.”

कीर्ति की तबीयत खराब होने की बात सुनकर मेरे चेहरे का रंग ही उड़ गया और मैने कीर्ति की फिकर करते हुए मौसा जी से कहा.

मैं बोला “मौसा जी, कीर्ति को क्या हुआ. अचानक उसकी तबीयत कैसे खराब हो गयी.”

मेरी बात सुनकर मौसा जी ने प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरा और फिर मुस्कुराते हुए कहा.

मौसा जी बोले “तुम ज़रा भी फिकर मत करो. कीर्ति को कुछ नही हुआ है. बस तुम्हारी तबीयत खराब देख कर और ऑपरेशन की बात सुनकर वो घबरा गयी थी. इसलिए उसे बुखार आ गया था. अब वो पूरी तरह ठीक है और आज वो तुम्हसे मिलने ज़रूर आएगी.”

मौसा जी की बात सुनकर मुझे कुछ राहत मिली. लेकिन अब मेरा दिल कीर्ति से मिलने के लिए और भी ज़्यादा बेचैन हो उठा था. मैं बड़ी बेसब्री से दोपेहर का इंतेजर करने लगा.

दोपहर का इंतजार करते करते 12 बजे के बाद, पता ही नही चला कब मेरी नींद लग गयी. फिर मेरी नींद दोपेहर को 2 बजे के बाद खुली. जब मेरी नींद खुली तो पिंक कलर के मिनी स्कर्ट टॉप मे कीर्ति मेरे पास बैठी, बड़े गौर से मुझे ही देख रही थी.

मुझे जागते देख उसके चेहरे पर चमक आ गयी और उसके मोतियों की तरह सफेद दाँत चमक उठे. वो उस समय बहुत सुंदर लग रही थी. उसे अपने पास आकर मेरे चेहरे पर भी मुस्कुराहट छा गयी और मैने मुस्कुराते हुए उस से कहा.

मैं बोला “तू कब आई. मुझे जगाया क्यूँ नही.”

कीर्ति बोली “मैं तो बहुत देर की आई हूँ. तू ही कुंभ करण की तरह सोया हुआ था. फिर तुझे कैसे जगाती.”

कीर्ति की इस बात को सुनकर मैने भी मज़ाक मे उसे छेड़ते हुए कहा.

मैं बोला “बड़ी आई कुंभ करण की नानी. यहाँ मैं दर्द से मरा जा रहा था और तू है कि, बीमारी का बहाना बना कर घर मे आराम कर रही थी.”

लेकिन कीर्ति मेरे मज़ाक को समझी नही और उसने मेरी बात को गंभीरता से ले लिया. उसकी मुस्कुराहट उसके चेहरे से गायब हो गयी और उसकी जगह उसकी आँखों मे आँसुओं ने ली. उसने रोते हुए कहा.

कीर्ति बोली “हां तुझे तो सिर्फ़ अमि निमी ही प्यार करती है. मैं कॉन सा तुझे प्यार करती हूँ. जो मुझे तेरी बीमारी से कोई फरक पड़ेगा. तू देखने आया था ना कि, तेरे जाने के बाद मैं बीमारी का बहाना बना कर के कितनी आराम से थी.”

कीर्ति के अचानक से बदले इस रूप ने थोड़ी देर के लिए मेरी बोलती भी बंद कर दी. लेकिन अगले ही पल मैने कीर्ति को अपनी बात की सफाई देते हुए कहा.

मैं बोला “अरे तू रोने क्यू लगी. मैं तो सिर्फ़ मज़ाक कर रहा था. मैं जानता हूँ कि तेरी तबीयत सच मे खराब थी. सुबह मौसा जी ने मुझे सब कुछ बता दिया था.”

मगर मेरे इस सफाई देने का कीर्ति पर कोई असर नही पड़ा. उसने अपने मन का गुबार निकालते हुए कहा.

कीर्ति बोली “तुझे कुछ नही मालूम. क्या मालूम है कि तेरी तबीयत को देख कर मैं सारी रात कितना रोई हूँ. क्या तुझे मालूम है कि, तेरे ऑपरेशन की बात सुनकर ही मुझे बुखार आ गया था. मैं तो सब से कितना बोल रही थी कि, मुझे एक बार तेरे पास ले जाए. लेकिन कोई मुझे यहाँ लाने को तैयार ही नही था. तो मैं तुझे देखने कैसे आती.”

इतना बोल कर कीर्ति सर झुका कर, नम आँखों से सुर सुराने लगी. मैने अंजाने मे ही सही मगर उसके दिल को ठेस पहुचा दी थी. मुझे अपनी इस ग़लती का पछ्तावा हो रहा था और उसे मनाने के लिए मैने अपने दोनो कान पकड़ कर उस से कहा.

मैं बोला “सॉरी मेरी माँ, मुझसे ग़लती हो गयी. ये देख मैं तेरे सामने दोनो कान पकड़ कर, तुझे सॉरी बोल रहा हूँ.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति ने एक पल के लिए नज़र उठा कर मुझे देखा और फिर से नज़र नीचे कर ली. मैं जानता था कि अब वो इतनी आसानी से नही मानेगी, इसलिए उसे मनाने के लिए मैं उठ कर बैठने की कोसिस करने लगा.

लेकिन मुझे उठने की कोसिस करते देख, कीर्ति फ़ौरन उठ कर मेरे पास आ गयी और मुझे वापस लिटाते हुए कहा.

कीर्ति बोली “ये क्या कर रहे हो. जब उठने मे तकलीफ़ है तो उठ कर क्यो बैठ रहे हो.”

मैं बोला “तुझे मनाने के लिए. तू मुझसे नाराज़ जो है.”

कीर्ति बोली “मैं कोई नाराज़ वराज नही हूँ. तुम आराम से लेटे रहो. तुमको उठने की कोई ज़रूरत नही.”

मैं बोला “तू सच मे नाराज़ नही है ना.”

कीर्ति बोली “हां, मैं सच मे नाराज़ नही हूँ.”

इसके बाद मेरी कीर्ति से बातें होती रही और उसका मूड ठीक हो गया. उस दिन पहली बार मुझे अहसास हुआ था कि, भले ही कीर्ति मुझसे कितना भी झगड़ा करती हो. मगर उसके लिए मेरी बहुत अहमियत है.

मैं अभी अपने अतीत की यादों मे खोया हुआ था कि, तभी मेरे कानो मे दरवाजा भड़ाक से बंद करने की आवाज़ सुनाई दी और मैं अपने अतीत से बाहर निकल आया. शायद कीर्ति अपने कमरे मे वापस आ गयी थी.
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,482,496 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 542,358 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,224,414 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 926,081 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,643,280 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,071,705 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,935,949 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,007,252 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,013,080 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 283,079 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 4 Guest(s)