MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 02:34 PM,
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अब दोनो तरफ से सिर्फ़ शांति थी. ना तो वो कुछ बोल रही थी और ना ही मैं कुछ बोल रहा था. बीती हुई बातों को याद करने का मेरे उपर ये असर पड़ा था कि अब मेरे मन मे कीर्ति के लिए कोई नाराज़गी नही थी.

अब मुझे सिर्फ़ उसका प्यार नज़र आ रहा था और मैं उसकी की हुई ग़लती को नज़र अंदाज़ करके उस से बात करना चाहता था. मैं जानता था की कीर्ति कि नाराज़गी भी मुझसे बात करते ही दूर हो जाएगी. इसलिए अब मैने खुद ही उस से बात करने की पहल करने का फ़ैसला कर लिया था.

लेकिन अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी मुझे कीर्ति की आवाज़ सुनाई दी. शायद कीर्ति ने दूसरे मोबाइल से किसी को कॉल किया था और उसने कहा.

कीर्ति बोली “हेलो, कौन, जीत.”

जीत का नाम सुनते ही मेरा मूड फिर से खराब हो गया. दूसरी तरफ से कुछ कहा गया. जिसके जबाब मे कीर्ति ने कहा.

कीर्ति बोली “तुम तो रात को बड़ी जल्दी सो जाते हो.”

इतना कह कर वो चुप हो गयी. शायद दूसरी तरफ से कुछ कहा जा रहा था. जिसके बाद कीर्ति ने कहा.

कीर्ति बोली “ओके, अभी मैं थोड़ी बिज़ी हूँ. मैं तुमसे कुछ देर बाद बात करती हूँ. बाइ.”

इसके बाद कीर्ति की आवाज़ आना बंद हो गयी. शायद उसने कॉल रख दिया था. थोड़ी देर की खामोशी के बाद कीर्ति ने मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “हेलो.”

मैं बोला “हां बोलो.”

कीर्ति बोली “तुमको कुछ कहना है.”

मैं बोला “नही.”

कीर्ति बोली “तो फिर कॉल रखा जाए.”

मैं बोला “ओक, बाइ.”

इतना कह कर मैने कीर्ति का कोई जबाब सुने बिना कॉल काट दिया. मुझे समझ मे नही आया कि, कीर्ति ने मेरे साथ ऐसा क्यो किया. जिस जीत की वजह से हमारे बीच झगड़ा लगा चल रहा था. उसे ही मेरे सामने कॉल लगाने का क्या मतलब था.

इसका तो सिर्फ़ एक ही मतलब समझ मे आ रहा था कि, कीर्ति मेरे सामने उसको कॉल लगा कर मुझे जलाना चाहती थी. कुछ भी हो लेकिन कीर्ति की इस हरकत ने मुझे फिर से चोट पहुचा दी थी.

मुझे उसके प्यार पर पूरा विस्वास था, इसलिए मैं तो उसको मनाने की पहल करने वाला था. लेकिन जीत को कॉल लगा कर उसने मेरे गुस्से को और बढ़ा दिया था. अब मैने भी सोच लिया था कि, यदि कीर्ति खुद से बात नही करती तो, अब मैं भी उस से कोई बात नही करूगा.

कीर्ति से बात ना करने का फ़ैसला तो मैने ले लिया था. लेकिन ये सवाल तो अब जहाँ का तहाँ था कि, कीर्ति ने मेरे साथ ऐसा क्यो किया. मैं जितना इस सवाल का जबाब ढूँढने की कोसिस करता. उतना ही उलझता जा रहा था और इसी उलझन मे उलझे उलझे मेरी आँख लग गयी.

मगर नींद मे भी मेरे दिमाग़ मे कीर्ति ही घूमती रही और फिर 8:45 बजे मेरी नींद खुल गयी. थोड़ी देर मैं लेटे लेटे कीर्ति के बारे मे ही सोचता रहा और जब उसके बारे मे सोचने से मेरा तनाव बढ़ने लगा तो, मैं उठ कर हॉस्पिटल जाने के लिए तैयार होने लगा.

जब से मैं मुंबई आया था. तब से रोज मेरे साथ कोई ना कोई घटना हो रही थी. मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि, ये सब मेरे साथ क्यो हो रहा है. ये ही सब सोचते हुए मैं तैयार हुआ और 9:30 बजे हॉस्पिटल के लिए निकल गया.

मैं हॉस्पिटल पहुँचा तो मुझे राज नीचे ही मिल गया. मगर आज मेरा उस से बात करने का कोई मूड नही था. मैने मेहुल को बुलाया और घर जाने का कहा तो राज भी उसके साथ घर जाने लगा.

राज को मेहुल के साथ घर जाते देख कर मैने राज से कहा.

मैं बोला “क्या आज तुम प्रिया के पास नही रुकोगे.”

राज बोला “नही, प्रिया की तबीयत अब सही है और घबराने की कोई बात नही है. इसलिए उसके पास निक्की अकेली रुक रही है और तुम भी तो यही हो.”

उसके बाद वो मेहुल के साथ घर चला और मैं कुछ देर प्रिया के पास रुक कर अंकल के पास चला गया. मेरी थोड़ी बहुत अंकल से बात हुई. अब वो पूरी तरह से ठीक हो चुके थे. लेकिन अभी उनको एक हफ्ते ऑर हॉस्पिटल मे ही रहना था.

कुछ देर बाद अंकल को नींद आने लगी और वो सो गये. मेरा मूड आज अच्छा नही था और रह रह कर, बार बार कीर्ति का ख़याल आ रहा था. अभी तक रोज 11 बजे के बाद मेरी कीर्ति से बात होती थी.

लेकिन आज 12 बज गया था और मेरी उस से कोई बात नही हुई थी. इसलिए अब मुझे उसकी कमी बहुत अखर रही थी और जब मुझे कीर्ति की कमी का अहसास बहुत सताने लगा तो, मैं उठ कर नीचे आ गया.

नीचे आकर मैने कॉफी ली और फिर बाहर आकर समुंदर के किनारे बैठ गया. लेकिन मेरे आने के कुछ ही देर बाद निक्की मेरे पास आ गयी. मुझे समझ नही आया कि उसे मेरे नीचे आने का पता कैसे चल गया. इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला “आप यहाँ कैसे. आपको कैसे पता चला कि मैं नीचे आया हूँ.”

मेरी बात सुनकर निक्की ने हंसते हुए कहा.

निक्की बोली “मैने तो आपको नीचे आते समय ही देख लिया था. जब आप नीचे आए तब मैं लिफ्ट के पास खड़ी शिखा दीदी से बात कर रही थी. लेकिन आप अपने आप मे इतना खोए हुए थे कि, आप मेरे पास से निकल कर कॅंटीन की तरफ चले गये मगर मुझे नही देखा.”

निक्की का कहना सही था. मैं कीर्ति की सोच मे इतना उलझा हुआ था कि, मुझे कुछ भी ध्यान नही था. फिर भी मैने बात को टालते हुए कहा.

मैं बोला “वो मुझे कॉफी की तलब लगी हुई थी. इसलिए मैने ध्यान नही दिया होगा और सीधे कॅंटीन की तरफ चला गया. आप रुकिये मैं आपके लिए भी कॉफी ले आता हूँ.”

निक्की अभी कुछ कह पाती, उस से पहले ही हम लोगो को अजय की आवाज़ सुनाई दी. अजय कह रहा था.

अजय बोला “मैं भी कॉफी पियुंगा.”

अजय की आवाज़ सुनते ही हम लोगो ने अजय की तरफ देखा तो, वो हमारे पीछे खड़ा था. उसकी बात सुनते ही मैने कहा.

मैं बोला “ओके, तुम निक्की के साथ बैठो, मैं अभी कॉफी लेकर आता हूँ.”

ये बोल कर, मैं बिना उनका जबाब सुने कॉफी लेने चला गया. थोड़ी देर बाद मैं कॉफी लेकर लौटा और दोनो को कॉफी देने के बाद उनके पास ही बैठ गया. मेरे बैठते ही अजय ने कहा.

अजय बोला “क्या हुआ. तुमको कोई परेसानी है क्या.”

अजय का सीधा सा सवाल सुनकर मैं चौक गया. मैने हैरत भरी नज़रों से अजय को देखते हुए कहा.

मैं बोला “नही तो, ऐसी कोई बात नही है. तुमको ऐसा क्यो लगा.”

अजय बोला “तुम्हारे चेहरे से ऐसा लगा कि, तुम कुछ परेशान हो.”

मैं बोला “नही, ऐसा कुछ भी नही है. बस मुझे बहुत देर से कॉफी की तलब लगी थी. इसलिए शायद परेशान लग रहा हूँ.”

मेरी बात को सुनने के बाद अजय ने भी इस बात पर ज़्यादा ज़ोर नही दिया और अंकल की तबीयत पूछने लगा. इसके बाद उसकी निक्की से प्रिया की तबीयत के बारे मे बातें होती रही.

इन्ही बातों मे निक्की का कॉफी पीना हो गया और फिर वो उठ कर वापस प्रिया के पास चली गयी. निक्की के जाने के बाद अजय ने मुझसे कहा.

अजय बोला “ऑर सूनाओ, तुम्हारी गर्लफ्रेंड का क्या हाल है. आज उस से बात हुई या नही.”

अचानक से अजय की बात सुनकर एक पल के लिए मैं चौक गया. मगर ये फिर मैने अपने आप पर काबू पाते हुए उस से कहा.

मैं बोला “वो अच्छी है. अभी अभी सोई है.”

मेरी बात सुनकर, अजय मुस्कुराने लगा. उसे मुस्कुराते देख मुझे अजीब ज़रूर लगा. लेकिन मैं खामोश ही रहा. मुझे खामोश देख कर अजय ने कहा.

अजय बोला “लगता तुम मुझे अपना दोस्त नही मानते, वरना मुझसे झूठ नही बोलते.”

मुझे अजय की ये बात समझ मे नही आई कि, उसने मुझसे ऐसा क्यो कहा. फिर भी मैने उस से कहा.

मैं बोला “मैं कुछ समझा नही. मैने तुमसे क्या बात झूठ कही है.”

अजय बोला “ये ही कि, तुम्हारी गर्लफ्रेंड से तुम्हारी अभी बात हुई है.”

मैं बोला “तो इसमे झूठ क्या बात है. मेरी उस से रोज ही इस समय बात होती है. हम लोग रोज देर रात तक बात करते है.”

अजय बोला “मैने रोज का नही पूछा था. मैने तुमसे सिर्फ़ आज का पूछा था कि, आज उस से तुम्हारी बात हुई या नही हुई.”

अजय मुझसे अपने सवालो मे उलझा रहा था. मुझे महसूस हो गया कि, उसे किसी ना किसी बात का शक़ है. इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला “लेकिन तुमको, ये क्यो लगा रहा है क़ी, आज उस से बात होने की बात मैने तुमसे झूठ कही है.”

मेरी बात सुनकर, अजय ने मुस्कुराते हुए कहा.

अजय बोला “क्योकि आज से पहले जब भी मैं तुमसे, तुम्हारी गर्लफ्रेंड के बारे मे कोई सवाल करता था. तुम्हारे होंठो पर मुस्कुराहट और चेहरे पर चमक आ जाती थी. लेकिन आज उसका नाम सुनते ही तुम्हारा चेहरा मुरझा सा गया.”

अजय की ये बात सुनकर, मुझे मानना पड़ा कि, उसके अंदर इंसान के मन की बात समझने की क़ाबलियत है. अब मुझे उस से कोई बात छुपाना ठीक नही लगा. इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला “हां, तुम ठीक कह रहे हो. कल मेरा उस से ज़रा झगड़ा हो गया था. इसलिए कल से मेरी उस से बात बंद है.”

ये कहते हुए मैने अजय को कल रात और आज शाम को कीर्ति से हुई दोनो बातें बता दी. अपनी बात कहने के बाद मैं अजय की तरफ देखने लगा. अजय थोड़ी देर तक कुछ सोचता रहा. फिर उसने मुझसे कहा.

अजय बोला “तुमको क्या लगता है. वो सच मे तुमसे नाराज़ है या नाटक कर रही है.”

मैं बोला “मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा. इसके पहले भी हमारे बीच बहुत बार झगड़ा हुआ. लेकिन उसने मेरे साथ ऐसा कभी नही किया. लेकिन कल तो उसने मेरी हर बात के बदले मुझे बहुत बातें सुनाई और आज तो उसने मुझे नीचे दिखाने की हद ही कर दी. वो एक ज़रा सी बात पर मुझसे इतना नाराज़ क्यो है, मैं अभी तक समझ नही पाया हूँ.”

इतना बोल कर मैं चुप हो गया. मगर मेरे दिल मे अब भी ये ही सवाल गूँज रहा था कि, आख़िर मेरी ज़रा सी बात पर कीर्ति इतना नाराज़ क्यों है. मुझे खोया हुआ सा देख कर अजय ने कहा.

अजय बोला “एक सच्चा प्यार करने वाला सिर्फ़ तकदीर वालो को मिलता है. तुम किस्मत वाले हो, जो तुम्हे इतना प्यार करने वाली लड़की मिली है. वरना लोग जिंदगी भर सच्चे प्यार की तलाश मे भटकते रहते है, मगर उन्हे उनका प्यार नही मिलता.”

अजय की इन बातों मे उसका दर्द सॉफ झलक रहा था. वो एक साइकिट्रिस्ट (मनो-चिकित्सक) होकर भी टॅक्सी चला रहा था. इसी से पता चलता था कि, वो अपना प्यार पाने के लिए किस हद तक संघर्ष कर रहा था.

मुझे अजय की छुपि हुई जिंदगी से परदा उठाने के लिए ये ही समय सही लगा और मैने अजय से कहा.

मैं बोला “तुम तो एक साइकिट्रिस्ट (मनो-चिकित्सक) हो. फिर तुम्हे अपना प्यार हासिल करने के लिए टॅक्सी चलाने की क्या ज़रूरत थी.”

मेरी बात सुनकर अचानक ही अजय बहुत ज़्यादा तनाव मे लगने लगा. उसने इस तनाव से बाहर निकलने के लिए अपनी जेब से सिगरेट का पॅकेट निकाला और एक सिगरेट जला कर कश लगाने लगा.

हर कश के साथ ना जाने उसके चेहरे पर कितने भाव आ रहे थे, जा रहे थे. कुछ देर तक सिगरेट के कश लगाने के बाद उसका चेहरा बहुत सख़्त हो गया. उसने एक ठंडी सी साँस छोड़ते हुए कहा.

अजय बोला “जो तुम देख और समझ रहे हो. मैं उनमे से कोई नही हूँ.”

मुझे अजय की बात बिल्कुल भी समझ मे नही आई कि वो कहना क्या चाहता है. मैने उस से फिर से सवाल करते हुए कहा.

मैं बोला “क्या मतलब.? मैं समझा नही कि तुम कहना क्या चाहते हो.”

अजय बोला “यही कि मैं टॅक्सी भी चलाता हूँ और एक साइकिट्रिस्ट (मनो-चिकित्सक) भी हूँ. लेकिन ये दोनो ही मेरा पेशा नही है.”

अजय की इस बात ने मुझे और भी ज़्यादा हैरानी मे डाल दिया. इसका मतलब था कि अजय की एक और भी पहचान है. मैने हैरानी भरे शब्दो मे अजय से कहा.

मैं बोला “तो फिर तुम कॉन हो और तुम्हारा पेशा क्या है.”

अजय बोला “सबसे बड़ी बात कि, मैं मुंबई का नही हूँ. मैं सूरत का रहने वाला हूँ. इसलिए मुझे यहाँ कोई नही जानता. मैं एक खानदानी बिज़्नेस मॅन हूँ. मेरा टेक्सटाइल का बिज़्नेस है और सूरत मे मेरी 5 टेक्सटाइल मिल्स है.”

अजय की ये बात सुनकर मेरी आँखें खुली की खुली रह गयी. मैं अब तक जिसके करोड़पति होने का अनुमान लगाता था. वो तो असल मे एक अरबपति था. मेरे मूह के बोल मूह मे ही रह गये.

इस से आगे पुच्छने के लिए मुझे कुछ समझ मे ही नही आ रहा था. मैं बस आँखे फाडे अजय को देखे जा रहा था. जब मैं कुछ सामान्य हुआ तो मैने बात को आगे बढ़ाते हुए उस से कहा.

मैं बोला “जब तुम इतने बड़े बिज़्नेसमॅन हो तो, फिर तुम्हे अपने प्यार को पाने मे क्या परेशानी थी, जो तुमको एक टॅक्सी ड्राइवर बनना पड़ गया.”

मेरी बात सुनकर भी अजय कही खोया हुआ सा बस सिगरेट फुके जा रहा था. उसकी आँखे ना जाने क्यो लाल हो गयी थी. जब उसकी एक सिगरेट ख़तम हो गयी तो, उसने दूसरी सिगरेट जलाई और उसके 2-3 गहरे कश लगाने के बाद मेरी तरफ देखते हुए कहा.

अजय बोला “क्योकि एक बिज़्नेसमॅन होने के साथ साथ मैं कुछ और भी हूँ.”

मुझे उसकी बारे मे जानने की इतनी ज़्यादा बेचेनी थी कि, उसकी बात पूरी होते ही मेरे मूह से खुद ब खुद निकल गया.

मैं बोला “तुम एक बिज़्नेसमॅन के अलावा और क्या हो.”

अजय ने बड़े गौर से मेरी तरफ देखा और एक ठंडी साँस छोड़ते हुए कहा.

अजय बोला “जिस लड़की को प्यार करता हूँ. उसके भाई का कातिल.”

मैं बोला “क्य्ाआआआ.”

अजय की ये बात सुनकर मुझे अब भी अपने कानो पर विस्वास नही हो रहा था. अभी तक मैने अजय के बारे मे जितना जाना था. उसमे ये सबसे बड़ा खुलासा था. मगर अजय के मूह से ये बात सुनने के बाद भी, मेरा दिल ये बात मानने को तैयार नही था की, अजय एक कातिल है.
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भले ही अजय से मेरी मुलाकात चन्द दिनो पहले ही हुई थी. लेकिन इतने कम समय मे भी मुझे उस से जो अपनापन मिला था. उतना अपनापन तो किसी को उसके सगे भाई से भी नही मिला होगा. बस इसी प्यार और अपनेपन की वजह से मेरा दिल इस बात को मानने को तैयार नही था कि वो एक कातिल भी हो सकता है.

कीर्ति के बर्ताव की वजह से मेरा दिमाग़ पहले ही उलझा हुआ था और अब अजय के इस खुलासे ने उसे और भी ज़्यादा उलझा दिया था. अभी मैं अपनी उलझन से बाहर निकल पाता की इस से पहले ही मेरे मोबाइल की रिंग बज उठी.

इतनी रात को मोबाइल की रिंग बजते देख, मुझे समझते देर ना लगी कि, ये कॉल ज़रूर कीर्ति का ही होगा. मैने मोबाइल निकाल कर देखा तो, मेरी सोच सही थी. कॉल कीर्ति का ही था.

लेकिन ये कॉल मेरे वाले मोबाइल पर आ रहा था, जो फ्री नही था. इसलिए मैने कीर्ति का कॉल काटा और उसे वापस कॉल किया. लेकिन कीर्ति ने मेरा कॉल काट कर फिर से वापस कॉल लगाया. मैने अब भी उसका कॉल नही उठाया और उसे वापस कॉल किया. मगर अभी भी कीर्ति ने अपनी वो ही हरकत दोहराई.

मेरा बार बार कॉल लगाना और कीर्ति का मेरा कॉल काट कर वापस कॉल लगाना. ये सब अजय भी देख रहा था. जब ये सिलसिला 4-5 बार चला तो, अजय ने मुझे टोकते हुए कहा.

अजय बोला “तुम बेकार कोशिश कर रहे हो. शायद वो तुम्हारा कॉल उठाना नही चाहती है.”

अजय की बात अपनी जगह सही थी. लेकिन वो ये नही जानता था कि मेरे ऐसा करने की वजह क्या है. मैने भी अपनी उस बात पर परदा डालते हुए कहा.

मैं बोला “तुम खुद देख लो. अभी वो मेरा कॉल उठा नही रही है और बाद मे खुद ही उल्टा मुझ पर गुस्सा करेगी.”

मेरी बात सुनकर, अजय ने कीर्ति की तरफ़दारी करते हुए कहा.

अजय बोला “लगता है वो तुमसे अभी भी नाराज़ है. इसलिए वो तुम्हारा कॉल नही उठा रही है. ऐसे मे अच्छा ये ही होगा कि तुम ही उसका कॉल उठा लो और यदि वो गुस्से मे कुछ बोल भी दे तो, उसकी बात का बुरा माने बिना ठंडे दिमाग़ से उसकी बात का जबाब दो. शायद तुम्हारे ऐसा करने से उसकी नाराज़गी दूर हो जाए. अब तुम उस से बात करो, तब तक मैं टॅक्सी पार्क करके आता हूँ.”

इतना कह कर अजय मेरे पास से चला गया. कीर्ति का कॉल अभी भी आ रहा था. मैने फ़ौरन कीर्ति का कॉल उठाते हुए कहा.

मैं बोला “हां बोलो, क्या बात है.”

मैने अपनी बात बड़े ही प्यार से कही थी. लेकिन कीर्ति ने बड़े ही गुस्से मे सवाल करते हुए कहा.

कीर्ति बोली “तुमको परेशानी क्या है. तुम्हे मुझसे बात करना पसंद नही तो साफ बोल दो. मैं तुमको परेशान करना बंद कर दूँगी.”

मुझे उसकी इस बात पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था. लेकिन अभी गुस्सा करने का सही समय नही था. इसलिए मैने उसकी बात को अनदेखा करते हुए, उस से कहा.

मैं बोला “अभी मैं अजय के साथ हूँ.”

मैं अपनी पूरी बात भी नही कर पाया था कि, कीर्ति ने मेरी बात को बीच से काटते हुए कहा.

कीर्ति बोली “दूसरो से गॅप सॅप करने के लिए तुम्हारे पास रात को भी टाइम है और मेरा कॉल तक उठाने का टाइम नही है.”

कीर्ति की बातें मुझे गुस्सा करने और उसकी बातों का जबाब देने के लिए मजबूर कर रही थी. फिर भी मैने अपने आपको शांत रखते हुए उस से कहा.

मैं बोला “मैं कोई गॅप सॅप नही कर रहा हूँ. अजय अपनी गुज़री हुई जिंदगी के बारे मे बता रहा था. उसने बताया कि वो अपनी गर्लफ्रेंड के भाई का कातिल है. इसके बाद मैं उस से कुछ पूछ पाता कि, तेरा कॉल आ गया. उस समय मेरा दिमाग़ काम नही किया. जिसकी वजह से मैने कॉल नही उठाया था.”

मेरी इस बात ने कीर्ति पर असर किया और फिर उसने कुछ नही कहा. शायद उसके मन मे भी अजय की बात को जानने की उत्सुकता थी. जब वो चुप रही तो मैने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उस से कहा.

मैं बोला “वो अभी अपनी टॅक्सी पार्क करने गया है. तुझे यदि उसकी जिंदगी के बारे मे जानना है तो, तू दूसरे मोबाइल पर कॉल लगा ले.”

मेरा इतना कहना था कि, कीर्ति का कॉल कट गया. मैं समझ गया कि अब वो दूसरे मोबाइल पर कॉल लगाने वाली है. मैने दूसरा मोबाइल निकाला और तभी कीर्ति का कॉल आ गया. मैने कॉल उठाते हुए कहा.

मैं बोला “मैं ये मोबाइल जेब मे रख रहा हूँ और अपने मोबाइल से तुझे कॉल करता हूँ. जब अजय आएगा तो, उसके सामने बात करके मोबाइल रख दूँगा.”

मेरी बात के बदले मे कीर्ति ने कोई जबाब नही दिया. उसकी इस हरकत से सॉफ था कि, उसका गुस्सा कम नही हुआ. मैने भी इस बात पर ज़्यादा ज़ोर देना ठीक नही समझा और अपने मोबाइल से उसे कॉल लगा दिया. उसने मेरा कॉल उठाया तो, मैने दूसरा मोबाइल जेब मे रखते हुए कहा.

मैं बोला “हां अब बोल, तूने इतनी रात को कॉल क्यो किया.”

मेरे इतना सब बोलने के बाद भी कीर्ति ने अपनी बात वही से सुरू की, जहाँ उसने छोड़ी थी. उसने अपनी बात को दोहराते हुए कहा.

कीर्ति बोली “मैने सिर्फ़ ये बोलने के लिए कॉल किया था कि, यदि तुमको मुझसे बात करने मे परेशानी है तो साफ बोल दो. मैं तुमको कॉल करके परेशान करना बंद कर दूँगी.”

मेरा मन किया कि उस से बोल दूं कि, मुझे तुमसे बात करने मे परेशानी नही है. बल्कि तुम्हारे पास मुझसे बात करने का टाइम नही है. मगर अभी उस से किसी भी बात की बहस करने का टाइम नही था. क्योकि अजय टॅक्सी पार्क करके वापस आ रहा था. इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला “नही, मुझे कोई परेसानी नही है. अब अजय वापस आ रहा है. इसलिए मैं कॉल रखता हूँ.”

ये कह कर मैने कॉल रख दिया. मेरे कॉल रखते ही अजय मेरे पास आ गया. उसने मुझे कॉल रखते हुए देखा तो कहा.

अजय बोला “अरे मुझे देख कर कॉल क्यो रख दिया. मेरे सामने बात करने मे परेशानी थी तो, मुझे इशारा कर देते. मैं थोड़ी देर बाद आ जाता.”

मैं बोला “नही, ऐसी बात नही है. हमारी बात हो चुकी थी. इसलिए मैने कॉल रख दिया है.”

अजय बोला “क्या हुआ. वो क्यो कॉल की थी.”

मुझे अजय का ये सवाल करना अच्छा नही लगा. क्योकि भले ही अजय ये सवाल मुझे अकेला समझ के कर रहा था. लेकिन हक़ीकत ये थी कि, इस समय मेरे साथ कीर्ति भी थी और मुझे इस बात का डर सता रहा था कि, कहीं अजय कोई ऐसी बात ना कह दे. जिसे सुनने के बाद, कीर्ति मुझसे और भी ज़्यादा नाराज़ हो जाए.

मुझे अपनी बात का जबाब ना देते देख और किसी सोच मे गुम होते देख कर अजय ने कहा.

अजय बोला “क्या हुआ. क्या मैने कुछ ग़लत पूछ लिया.”

अजय की इस बात से मुझे होश सा आया. अजय मेरे सामने कोई झूठ नही बोल रहा था. ऐसे मे उस से झूठ बोलना मुझे सही नही लग रहा था. इसलिए मैने अपने आपको संभालते हुए कहा.

मैं बोला “नही, ऐसी कोई बात नही है. उसने सिर्फ़ ये कहने के लिए कॉल किया था कि, यदि मुझे उस से बात करने मे परेसानी है तो, मैं साफ बोल दूं. वो मुझको कॉल करके परेशान करना बंद कर देगी.”

मेरी बात सुनकर अजय को हैरानी हुई. उसने आश्चर्यचकित होकर मुझसे कहा.

अजय बोला “बस इतनी सी बात बोलने के लिए उसने रात को 1 बजे तुमको कॉल लगाया था.”

अजय की इस बात ने मुझे भी कीर्ति तक अपनी बात पहुचाने का बहाना दे दिया था. मैने भी बहती गंगा मे हाथ धोते हुए कहा.

मैं बोला “हां, उसने ये ही बात कहने को कॉल किया था. अब यदि मुझे उस से बात ही नही करना होती तो, मुझे उसका कॉल उठाने की ज़रूरत ही क्या थी. सच तो ये है कि उसे खुद ही मुझसे बात नही करना रहती है. उसे बस मुझसे झगड़ा करने का बहाना चाहिए रहता है. इसलिए उसने अभी मुझे कॉल किया था. ताकि मैं कुछ कहूँ और फिर वो सारी बात मेरे उपर ही डाल दे.”

मेरी बात सुनकर अजय कुछ सोच मे पड़ गया और मैं ये सोचने लगा कि मेरी इस बात को सुन कर कीर्ति क्या सोच रही होगी. कुछ देर चुप रहने के बाद अजय ने कहा.

अजय बोला “तुम दोनो का प्यार भी बहुत अजीब है. जब दोनो एक दूसरे के बिना रह नही पाते हो तो, इतना झगड़ा क्यो करते हो.”

मुझे अजय की बात समझ मे नही आई तो मैने उस से कहा.

मैं बोला “मैं कुछ समझा नही, तुम कहना क्या चाहते हो. मुझे तो सिर्फ़ झगड़ा ही झगड़ा दिख रहा है. इसमे प्यार कहाँ है. उसने तो अभी कॉल भी सिर्फ़ झगड़ा करने के लिए ही किया था. वो तो मैं शांत रह गया वरना एक नया झगड़ा सुरू हो जाता. फिर तुम्हे किस बात मे उसका प्यार नज़र आ गया.”

मेरी बात सुनकर अजय ने मुस्कुराते हुए कहा.

अजय बोला “तुम दोनो भले ही एक दूसरे से कितना भी झगड़ा कर लो. लेकिन फिर भी एक दूसरे के बिना नही रह पाते हो. अभी जब तुम नीचे आए थे तो, बहुत परेशान लग रहे थे. ऐसा लग रहा था कि, जैसे तुम मे जान ही ना हो. लेकिन उस से बात करने के बाद तुम्हारे चेहरे पर रौनक आ गयी है और ऐसा लग रहा है कि, जैसे मुर्दे मे जान आ गयी हो.”

अजय की इस बात मे बहुत दम था. कीर्ति से भले ही अभी मेरी अच्छे से बात नही हुई थी. मगर उसके साथ होने से ही मुझे जो खुशी मिल रही थी. उसने मेरे अंदर एक नयी ताक़त भर दी थी. फिर भी मैने अजय की बात को झुटलाते हुए कहा.

मैं बोला “ये तो तुम मेरी बात कर रहे हो. मैने इस बात से कभी मना नही किया कि, मुझे उस से बात करके खुशी नही होती. लेकिन उसका क्या है. जो हर बात पर सिर्फ़ झगड़ा करती है और अभी भी झगड़ा करने के लिए कॉल की थी. इसमे उसका कौन सा प्यार था.”

मेरी इस बात का जबाब भी अजय ने बड़ी ही समझदारी से देते हुए कहा.

अजय बोला “सबके प्यार जताने का अपना अलग अंदाज़ होता है. वो तुमसे नाराज़ थी. इसलिए चाह कर भी वो तुमको कॉल नही लगा पा रही होगी. लेकिन तुम्हारे कॉल का आने का इंतजार ज़रूर कर रही होगी. शायद ये समय तुम्हारा उसको गुड नाइट कहने का होगा.”

“इसलिए जब रात को 1 बजे तक तुम्हारा कॉल नही गया तो, उसका दिल तुम्हारी आवाज़ सुनने को तड़प गया होगा और फिर इस बहाने से तुमको कॉल लगा दिया. ताकि तुम्हारी नज़रो मे उसकी नाराज़गी भी बनी रहे और वो तुम्हारी आवाज़ भी सुन सके.”

अजय की ये बात सुन कर मैं मन ही मन उसके दिमाग़ की दाद दिए बिना नही रह सका. सच मे ही ये समय मेरा कीर्ति को गुड नाइट कहने का था. यदि अजय इस बात को ना कहता तो, शायद ही मैं कभी इस बात को समझ पाता. क्योकि इस तरह की बात शायद मैं कभी सोच भी ना पाता.

मगर इस बात के समझ मे आते ही मुझे कीर्ति पर बहुत प्यार आ रहा था. मेरा दिल कर रहा था कि, मैं अभी उस से बात कर लूँ. क्योकि मैं खुद भी उस से बात किए बिना तड़प रहा था.

लेकिन अभी अजय के सामने ऐसा कर पाना मुमकिन नही था. इसलिए मैने बात को बदलते हुए अजय से कहा.

मैं बोला “मेरी बात को छोड़ो. तुम ये बताओ कि ऐसी क्या वजह थी. जिस वजह से तुम्हे अपनी गर्लफ्रेंड के भाई का कत्ल करना पड़ गया.”

मेरी बात को सुनते ही एक बार फिर अजय के चेहरे के भाव बदल गये और उसका चेहरा किसी पत्थर की तरह सख़्त नज़र आने लगा. उसने अपने दोनो हाथ मेरे कंधों पर रख दिए और अपनी पथराई आँखों से मुझे देखते हुए कहा.

अजय बोला “मैने ये नही कहा कि, मैने अपनी गर्लफ्रेंड के भाई का कत्ल किया है. मैने ये कहा था कि, मैं जिस लड़की को प्यार करता हूँ. मैं उसके भाई का कातिल हूँ.”

मुझे अजय की ये गोल मोल बात ज़रा भी समझ मे नही आई और ना ही अब मेरे अंदर इतना सबर था कि, मैं उसकी बात को समझने की कोशिस कर सकूँ. इसलिए मैने झल्लाते हुए कहा.

मैं बोला “यार पहले ही मेरा भेजा घुमा हुआ. मेरे अंदर इतनी ताक़त नही है कि, मैं तुम्हारी गोल मोल बातों को समझ सकूँ. इसलिए जो भी बोलना है, सॉफ सॉफ बोलो.”

मेरी बात सुन कर शायद अजय को भी अपनी भूल और मेरी हालत का अहसास हो चक्का था. इसलिए उसने बिना कोई भूमिका बाँधे अपनी बात को कहना सुरू कर दिया.

अजय बोला “मैं जिस लड़की को प्यार करता हूँ. उस से अपने प्यार का इज़हार कभी किया ही नही है और ये भी नही जानता कि वो लड़की मुझसे प्यार करती है या नही. इसलिए वो मेरी गर्लफ्रेंड नही है. इसे तुम एक तरफ़ा प्यार कह सकते हो.”

अब अजय की बात मेरे समझ मे आ चुकी थी और उसके बारे मे जानने की मेरी उत्सुकता भी बढ़ चुकी थी. इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला “लेकिन ऐसा क्या हुआ कि, तुम उसी के भाई के कातिल बन गये, जिस लड़की से तुम प्यार करते थे.”

अजय बोला “वैसे तो ये एक छोटी सी कहानी है. मगर मैं ये कहानी तब से सुरू करता हूँ जब से मेरी जिंदगी की नीव पड़ना सुरू हुई.”

अब आगे की कहानी अजय की ज़ुबानी….

मेरे दादा धनंजय सिंग सूरत के मशहूर उद्योगपति ( इंडस्ट्रियलिस्ट) थे. उनकी एकलौती संतान मेरे पिता संजय सिंग थे. मेरे पिता की शादी सूरत के ही एक बिज़्नेसमॅन सुमेर सिंग की एकलौती लड़की नैना सिंग से हो गयी. जिनकी पहली और आखरी संतान के रूप मे मेरा जनम हुआ.

लेकिन मेरे जनम के कुछ साल बाद ही एक सड़क दुर्घटना (रोड आक्सिडेंट) मे मेरे माता पिता का देहांत हो गया. जिन माता पिता की उंगली पकड़ कर मैने चलाना सीखा था और स्कूल जाना सुरू किया था. उन्ही को अपनी आँखों के सामने लोगों के कंधो पर जाते देख कर मैं बिलख बिलख कर रोता रहा.

जिन माता पिता का चेहरा देख कर मेरे दिन की सुरुआत होती थी. उन्ही का चेहरा दिखा कर कहा गया इनके अंतिम दर्शन कर लो. जिन हाथों को मेरे माता पिता ने पेन्सिल पकड़ा कर लिखना सिखाया था. उन्ही हाथों मे जलती हुई लकड़ी थमा कर, कहा गया कि, इनको अग्नि दे दो. मैं रोता रहा बिलखता रहा और मेरे माता पिता को मेरे हाथों से अग्नि दिला दी गयी.
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09-09-2020, 02:34 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मेरी हँसती खेलती दुनिया, मेरे माता पिता के साथ ही जल कर रख हो गयी. मैं हसना भूल गया, खेलना भूल गया. मुझे हर जगह, हर चीज़ मे मेरे माता पिता की कमी नज़र आती और मैं अकेले मे मूह छुपा कर घंटो रोता रहता.

मैने खेलना कूदना, स्कूल जाना सब बंद कर दिया था और अपने आपको अपने घर मे क़ैद कर लिया था. मैं हर समय उदास रहने लगा. मुझे उदास देख कर मेरे दादा जी और नाना की को भी मेरी चिंता सताने लगी थी.

उनकी इतनी दौलत होने के बाद भी वो मुझे खुश नही रख पा रहे थे. दौलत से वो मुझे हर चीज़ खरीद कर दे सकते थे. मगर मुझे जो चाहिए था, उनकी सारी दौलत भी मुझे खरीद कर नही दे सकती थी. उन्हे भी अपनी इस बेबसी पर रोना आ रहा था.

लेकिन उनकी मजबूरी ये थी कि, मुझे संभालने के लिए वो लोग दिल खोल कर रो भी नही सकते थे. वो बस रात दिन उपर वाले से मेरी खुशियों की दुआ करते रहते थे. ऐसे ही वक्त बीतता रहा और दिन गुज़रते रहे.

लेकिन कहते है कि उपर वाले के घर देर है पर अंधेर नही है. वो सच्चे दिल से की हुई फरियाद ज़रूर सुनता है. उसने देर से ही सही मगर मेरे दादा जी और नाना जी की फरियाद भी सुन ली. मेरे पड़ोस मे धरम पाल खन्ना अपने भरे पूरे परिवार के साथ रहने आ गये.

धरम पल खन्ना के परिवार मे उनकी पत्नी दिल्प्रीत खन्ना, बड़ी बहू अरुणा खन्ना और छोटा बेटा सुमित पाल खन्ना, छोटी बहू समरीत खन्ना थे. उनके बड़े बेटे का देहांत हो चुका था और उनकी बेटी नलिना खन्ना की शादी मुंबई मे हुई थी और वो अपनी ससुराल मे ही रहती थी.

उनके बड़े बेटे अमित पाल का एक बेटा अमन खन्ना था. छोटे बेटे सुमित पाल के तीन बेटियाँ सीरत खन्ना, सेलिना खन्ना और और अर्चना खन्ना थे.

धरम पल खन्ना के हमारे पड़ोसी होने की वजह से जल्दी ही उनकी दादा जी के साथ दोस्ती हो गयी और फिर दोनो का एक दूसरे के घर मे आना जाना भी होने लगा. एक दिन दादा जी धरम पाल जी के घर गये.

उस समय धरम पाल जी और उनका पोता अमन दोनो मिलकर, उनकी पोती अर्चना के साथ खेल रहे थे. अर्चना उस समय दूदमूहि बच्ची थी. धरम पाल जी को इस तरह अपने पोता पोती के साथ खेलते देख कर दादा जी आँखें भर आई. जब धरम पाल जी ने इसकी वजह पूछी तो दादा जी उन्हे मेरे बारे मे बताया.

मेरे माता पिता की मौत और मेरी हालत के बारे सुनकर धरम पाल जी को बहुत दुख हुआ. उन्हो ने दादा जी की परेसानी को देखते हुए उनको सलाह दी कि, अजय को कुछ दिनो के लिए शहर से बाहर भेज दीजिए. अपने घर से दूर रहने से अजय को अपने माता पिता की यादों से बाहर निकलने का मौका मिलेगा.

दादा जी को उनकी ये सलाह पसंद आई. लेकिन अपने बिज़्नेस की वजह से उन के लिए एक दो दिन से ज़्यादा शहर से बाहर रह पाना मुमकिन नही था. जबकि मेरे लिए कम से कम दस पंद्रह दिन बाहर रहना ज़रूरी थी.

दादा जी की इस समस्या का समाधान भी धरम पाल जी ने कर दिया. उन्हो ने बताया कि अगले हफ्ते वो अपने परिवार के साथ अपनी बेटी की ससुराल मुंबई एक समारोह मे शामिल होने जा रहे है. आप भी अजय को लेकर हमारे साथ चलिए. यदि अजय वहाँ रुकने को तैयार हो जाए तो, उसे हमारे साथ वही छोड़ दीजिएगा.

दादा जी को उनकी ये बात जम गयी. मगर अब भी उनके सामने ये परेसानी बनी हुई थी कि, यदि मैं वहाँ रुकने को तैयार ना हुआ तो, उनकी सारी कोसिस बेकार हो जाएगी. अब दादा जी और धरम पाल जी इस परेसानी का हल भी ढूँढने मे लगे हुए थे कि, मुझे वहाँ रुकने के लिए कैसे तैयार किया जाए.

अमन अभी भी अपनी बहन अर्चना के साथ वही खेल रहा था. उसने अपने दादा जी और मेरे दादा जी की सारी बातें सुनी थी. जब उसने मेरे मुंबई मे रुकने की बात को लेकर उन दोनो को परेशान होते देखा तो, अमन ने मेरे दादा जी से कहा.

अमन बोला “दादा जी, आप इस बात के लिए ज़रा भी परेशान मत होइए. अजय को मुंबई मे रोकने की जबाब्दारी मैं लेता हूँ. आप बस एक बार मेरी अजय से मुलाकात करवा दीजिए.”

अमन की बात सुनकर दादा जी ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए रात को उसे डिन्नर पर आने को कह दिया.

रात को मैं दादा जी के साथ डिन्नर कर रहा था. तभी अमन आ गया. मैं उसे देख कर समझ नही पाया कि ये कौन है. दादा जी ने मेरा उस से परिचय करवाया. फिर वो भी हमारे साथ डिन्नर करने लगा.

अमन ने मेरे से बात करने की कोसिस की लेकिन मैने उन से ज़्यादा बात नही की और खामोशी से डिन्नर करता रहा. डिन्नर करने के बाद मैं अपने कमरे मे आ गया. अमन के जाने के बाद दादा जी मेरे पास आए.

उन्हो ने मुझे बताया कि अमन हमारा पड़ोसी है. वो भी हमारी तरह किस्मत का मारा हुआ है. उसके पिताजी का देहांत 2 साल पहले हो गया था. अभी यहाँ नया होने की वजह से उसका कोई दोस्त नही है. इसलिए मैने उसे अपने घर कभी भी आने जाने के इजाज़त दे दी है.

कुछ दिन बाद उसका नाम भी तुम्हारे स्कूल मे लिख जाएगा. मुझे लगता है कि वो एक अच्छा दोस्त साबित होगा. यदि वो तुमको भी ठीक लगे तो उस से दोस्ती कर लेना. इतना कह कर दादा जी मेरे पास से चले गये.

अगले दिन अमन लंच टाइम मे अपनी छोटी बहन अर्चना को लेकर हमरे घर आया. दादा जी ने उसको भी लंच करने को कहा तो, वो भी हमारे साथ बैठ गया. लेकिन अर्चना के गोद मे होने की वजह से वो लंच नही कर पा रहा था.

मैं लंच करके अपने कमरे मे जाने लगा तो, दादा जी ने कहा कि, मैं अर्चना को भी अपने साथ ले जाउ. ताकि अमन लंच कर सके. मैने बिना कोई जबाब दिए अर्चना को गोद मे ले लिया और अपने कमरे मे आ गया.

कमरे मे आकर मैं अर्चना को बेड पर बैठाने लगा. लेकिन गोद से नीचे उतरते ही वो रोने लगी. मैं उसे गोद मे लेकर चुप कराने लगा. थोड़ी ही देर मे वो मेरे साथ हिल मिल गयी और मेरे साथ खेलने लगी.

अर्चना के साथ खेलते खेलते कुछ देर के लिए मैं अपने सारे दुख दर्द भूल गया. मैं उसको खिलाने मे इस तरह खो गया कि, मुझे पता ही नही चला कि, अमन कब मेरे कमरे मे आ गया.

वो खामोशी से दरवाजे पर खड़ा, मुझे अर्चना के साथ खेलते देख रहा था. जब मेरी नज़र अमन पर पड़ी तो मैने अर्चना को उसकी गोद मे देते हुए कहा.

मैं बोला “सॉरी, मैने तुम्हे देखा ही नही. तुम्हारी बहन सच मे बहुत प्यारी है.”

मेरी बात सुनकर अमन ने मुस्कुराते हुए कहा.

अमन बोला “मेरी 3 बहने है. उसमे ये सब से छोटी और सबसे प्यारी है. मगर ये हर किसी के साथ इतनी जल्दी हिलती मिलती नही है. पता नही तुमसे ये इतनी जल्दी कैसे हिल मिल गयी.”

अमन की बात सुनकर ना जाने क्यो मुझे अच्छा सा लगा था. इसके बाद अमन अर्चना को लेकर वापस अपने घर चला गया. लेकिन वो रात को फिर डिन्नर के टाइम पर आया. डिन्नर के टाइम वो अकेला ही था. उसने हमारे साथ डिन्नर किया और अपने घर चला गया.

दूसरे दिन वो सुबह सुबह ही अर्चना के साथ हमारे घर आ गया. मुझे अपने कमरे मे दादा जी और अमन की आवाज़ सुनाई दी तो, मैने अपने कमरे से बाहर निकल कर देखा. बाहर हॉल मे दादा जी और अमन अर्चना के साथ खेल रहे थे.

अर्चना को खेलते देख कर मैं भी उनके पास आ गया. थोड़ी देर बाद दादा जी ने नाश्ता का बोला तो अमन उनके साथ नाश्ता करने लगा और मैं अर्चना के साथ खेलने लगा. कुछ देर बाद अमन किसी काम का कह कर अपने घर चला गया.

लेकिन अर्चना को ये कह कर मेरे पास छोड़ गया कि, वो अभी वापस आकर अर्चना को ले जाएगा. उसके जाने के कुछ देर बाद दादा जी भी अपने काम पर निकल गये. मगर मुझे किसी के भी जाने से कोई फरक नही पड़ा. मैं अर्चना के साथ खेलने मे मगन रहा.

फिर काफ़ी देर बाद अमन आया और मुझसे थोड़ी बहुत बात करने के बाद अर्चना को लेकर चला गया. दोपहर और रात को भी कल की तरह सब कुछ होता रहा. बस फ़र्क इतना था कि अब मेरी अमन से बात चीत होने लगी थी.

अब अमन रोज मेरे घर अर्चना को लेकर आता और मैं घंटो उसके साथ खेलता रहता. मेरी खोई हुई मुस्कान एक बार फिर अर्चना के रूप मे वापस लौट आई थी. लेकिन मेरा घर से बाहर जाना अभी भी बंद ही था.

मैं बस रोज अर्चना के घर आने का वेट करता रहता था. अर्चना के घर आते ही मेरा घर उसकी मासूम किल्कारियों और मेरी हँसी से गुज़्ने लगता था. मुझे वापस खुश देख कर दादा जी की भी खुशी का कोई ठिकाना नही था.

ये सिलसिला चार दिन तक यूँ ही चलता रहा. इन चार दिनो मे मुझे अर्चना की इतनी ज़्यादा आदत हो गयी थी कि, जब पाँचवे दिन अमन उसे लेकर मेरे घर नही आया तो मैं उसे देखने के लिए तड़प उठा.

मैं पाँचवे दिन भी रोज की तरह सुबह अर्चना के आने का वेट कर रहा था. लेकिन अमन अर्चना को लेकर नही आया. दादा जी नाश्ता करने के बाद काम के लिए जाने लगे तो, मैने उनसे कहा.

मैं बोला “दादा जी, आज अमन हमारे घर क्यो नही आया.”

दादा जी ने मेरी तरफ देखा. उनकी पारखी नज़र एक बार मे ही ये ताड़ चुकी थी कि, मैं अमन को क्यो पुच्छ रहा हूँ. उन्हो ने भी मुझे मेरी ही तरह जबाब देते हुए कहा.

दादा जी बोले “हो सकता है कि, वो आज किसी काम मे फस गया हो. इसलिए नही आ सका हो.”

दादा जी के ये कह देने के बाद मेरे पास पूछने के लिए कुछ बचा ही नही था. मैं चुप होकर रह गया और दादा जी काम पर चले गये. दोपहर लंच मे भी अमन नही आया तो, मैने दादा जी के सामने वो ही सवाल दोहराया और दादा जी ने फिर अपना वो ही जबाब दोहरा दिया.

लंच के बाद दादा जी वापस काम पर चले गये. लेकिन अब मुझे अर्चना की कमी बहुत अखर रही थी. आख़िर मे जब मुझ से अर्चना को देखे बिना नही रहा गया तो, मैने अमन के घर जाने का फ़ैसला किया और अमन के घर की तरफ बढ़ गया.

अमन के घर पहुचते ही बाहर आँगन मे उसके दादा जी बैठे मिल गये. उन्हे देखते ही मैने उन से नमस्ते किया और अमन को पूछा. उन्हो ने मुझे बैठने को कहा और अंदर अमन को आवाज़ लगाई तो, उनकी बड़ी पोती सीरत अर्चना को गोद मे लिए बाहर आई.

उसने आकर बताया कि, अमन अपना कमरा साफ कर रहा है. अर्चना ने मुझे अपने सामने देखा तो, वो सीरत की गोद मे से मेरे पास आने के लिए मचलने लगी. मैने उठ कर उसे अपनी गोद मे ले लिया और फिर मैं उसे खिलाने लगा.

इसके बाद धीरे धीरे घर के बाकी लोग भी वहाँ आने लगे और दादा जी सब से मेरा परिचय कराते रहे. कुछ ही देर मे अमन भी वहाँ आ गया और मुझसे अपना कमरा देखने को चलने के लिए कहने लगा.

मैं अमन के साथ जाने के लिए अर्चना को अपनी गोद से उतारने लगा तो, वो मेरी गोद से उतरने को तैयार नही थी. तब मैं उसे भी अपने साथ लेकर अमन का कमरा देखने चला गया.

इस तरह मेरा अमन के आना जाना और उसके बाकी परिवार से भी मेल जोल हो गया. अब मुझे अमन के घर आने जाने मे कोई हिचक नही होती थी और मैं जब चाहे तब अर्चना के साथ खेलने उसके घर जाने लगा.

अभी इन सब बातों को 8 दिन ही हुए थे कि, एक दिन मेरे दादा जी से अमन के दादा जी ने कहा कि “वो लोग कुछ दिनो के लिए मुंबई जा रहे है. यदि हम लोग भी उनके साथ चले तो, बहुत अच्छा रहेगा.”

उनकी बात सुनकर मेरे दादा जी ने कहा कि “वो मुंबई मे कुछ ज़मीन खरीदना चाहते है. यदि अजय वहाँ जाने को तैयार है तो, उन्हे मुंबई जाने मे कोई परेसानी नही है.”

दादा जी की बात सुनकर अमन के दादा जी ने मुझसे चलने के बारे मे पूछा तो, मैने भी चलने की हां कह दी और फिर इसके तीसरे दिन हम सब मुंबई के लिए निकल गये.

दादा जी वहाँ 2 दिन रुके और इन 2 दिन मे वो बस वहाँ कोई अच्छा सा बंग्लो ही देखते रहे. उन्हे एक बॉग्लो पसंद भी आ गया और उन्हो ने वहाँ सच मे ही एक बंग्लो खरीद लिया.

वहाँ 2 दिन रुकने के बाद दादा जी वहाँ मुझे अमन लोगो के साथ ही छोड़ कर वापस आ गये. मैने दादा जी के साथ वापस लौटने की बात भी की थी, मगर अमन ने अर्चना का वास्ता देकर मुझे वहाँ रोक लिया. अमन के परिवार से मुझे बहुत अपनापन मिल रहा था. इसलिए मुझे वहाँ रुकने मे ज़रा भी परेसानी नही हुई.

हम लोग 10 दिन मुंबई मे रुके और वहाँ खूब मस्ती करते रहे. मुंबई से वापस आने के बाद मैं बिल्कुल बदल गया था. मेरा घूमना फिरना, खेलना कूदना, स्कूल जाना, सब कुछ सुरू हो गया.

बस यदि कुछ नही बदला था तो, वो था अर्चना के साथ मेरा खेलना और उसके लिए मेरा लगाव. उसने अभी बोलना सुरू नही किया था. फिर भी मैं उस से ढेर सारी बातें करता रहता था और वो भी मेरी बातें सुनकर कभी खिलखिलाने लगती तो, कभी अपने कोमल हाथों से ताली बजाने लगती.

मेरे लिए वो किसी नन्ही परी से कम नही थी. जिसने मेरे जीवन मे आकर मुझे मेरी सारी खुशियाँ वापस दे दी थी. मैं जब तक उसको देख नही लेता था. मेरे दिल को चैन नही पड़ता था. उसे देखते ही मेरे चेहरे पर खुद ब खुद मुस्कान आ जाती थी.

मेरे लिए सबसे खुशी का दिन वो था जब उसने अपने कोमल हाथों से मेरी कलाई पर राखी बाँधी थी. उस दिन खुशी के मेरे मेरे आँसू छलक आए थे. उसके बाद दूसरा खुशी का दिन वो था जब उसने मुझे भैया कह कर पुकारा था. उस दिन मुझे लगा था कि, मेरा खोया हुआ सब कुछ एक बार फिर मुझे वापस मिल गया है.
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09-09-2020, 02:36 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मैं अब खुश रहना सीख गया था. वक्त तेज़ी से गुजरने लगा. इसी बीच मेरे नाना जी का देहांत हो गया. मगर जो अपने माता पिता की मौत को सह गया हो. उसके लिए इस दर्द को सह लेना कोई बड़ी बात नही थी. जल्दी ही मैने इस दर्द से उबर कर वापस अपनी जिंदगी जीना सुरू कर दिया.

दिन, महीने, साल गुजर गये. हम सब धीरे धीरे करके बड़े हो गये. मैने और अमन ने 12थ भी पास कर ली. अमन 12थ के एग्ज़ॅम के बाद छुट्टियों मे अपनी बुआ के पास मुंबई गया. वही निशा को देख कर, पहली ही नज़र मे वो उसे अपना दिल दे बैठा.

जब वो मुंबई से वापस लौटा तो बस रात दिन निशा की ही बातें करता रहता और हर समय निशा के ख़यालों मे ही खोया रहता. मुझे भी इस बीच एक लड़की पसंद आई थी. मगर उस लड़की के लिए दीवाना बनने से पहले ही मुझे पता चल गया था कि, वो लड़की किसी और लड़के से प्यार करती है. मेरी लव स्टोरी सुरू होने के पहले ही ख़तम हो चुकी थी.

जिसके बाद से मैने किसी भी लड़की के लिए पागल ना बनने का फ़ैसला कर लिया था. लेकिन अमन का निशा के लिए दीवानापन देख कर, मुझे लगा कि अमन को उसका प्यार मिलना चाहिए. इसलिए मैने अमन को सलाह दी कि, वो अपनी आगे की पढ़ाई, मुंबई मे अपनी बुआ के पास रहकर कर ले, ऐसा करने से उसे अपना प्यार हासिल करने मे आसानी होगी.

अमन को मेरी बात जम गयी और उसने अपने घर वालों से बात की, मगर कोई भी इसके लिए तैयार नही था. तब मैने उसके घर मे बात की और समझाया कि, अमन डॉक्टर. बनना चाहता है. उसकी पढ़ाई के लिए मुंबई ही सबसे ठीक जगह है.

मेरी बात को सुनकर अमन के घर वाले उसे मुंबई भेजने को तैयार हो गये. मेरे दादा जी ने भी अमन को कह दिया कि, वो यदि चाहे तो मुंबई मे हमारे बंग्लो मे भी रह सकता है. उस दिन अमन की खुशी का ठिकाना ही नही था.

कुछ दिन बाद अमन ने सूरत छोड़ दिया और मुंबई मे अपनी बुआ के पास रहने लगा. अमन के जाने के बाद मैं एक बार फिर से अकेलापन महसूस करने लगा. ऐसा नही था कि, अमन के अलावा मेरा कोई दोस्त नही था. मेरे बहुत से दोस्त थे मगर अमन और उसके परिवार से मेरा जो दिल का रिश्ता था. वो शायद किसी से भी नही था.

अमन तो मुंबई चला गया था. फिर भी उसके परिवार के साथ मेरा मेल जोल बना रहा और इसकी वजह मेरी नन्ही परी अर्चना थी. उस से भले ही मेरा खून का रिश्ता नही था. फिर भी वो मेरे लिए सब कुछ थी. उसकी मासूम मुस्कान मेरी कमज़ोरी बन गयी थी.

इधर मैं एक बेमकसद जिंदगी जी रहा था तो, वहाँ मुंबई मे अमन के दो ही मकसद थे. एक तो निशा का प्यार हासिल करना और दूसरा डॉक्टर बनना. धीरे धीरे अमन अपने एक मकसद मे कामयाब हो गया. कुछ समय बाद निशा को भी अमन से प्यार हो गया. निशा जितनी सुंदर थी, उस से भी ज़्यादा खूबसूरत उसका दिल था.

मुझे शुरू मे ये ज़रूर लगता था कि, निशा एक घमंडी लड़की है. लेकिन उस से मिलने के बाद मैने जाना कि वो बाहर से जितनी कठोर दिखती है. उसका दिन उतना ही कोमल है और वो हर रिश्ते को अच्छी तरह से निभाना जानती है.

कुछ ही समय मे वो मेरी अच्छी दोस्त बन गयी. मैं जब कभी अमन से मिलने मुंबई जाता और निशा से मिले बिना वापस आ जाता. तब वो मुझसे फोन पर इस बात को लेकर बहुत झगड़ा करती थी और अमन उसको मेरे खिलाफ भड़का कर इस झगड़े के मज़े लेता रहता था.

यू ही हँसी मज़ाक से दिन गुजर रहे. कुछ समय बाद अमन और निशा की मेहनत रंग लाई और वो दोनो डॉक्टेर बन गये. मैं भी एक साइकिट्रिस्ट बन चुका था. लेकिन दादा जी के कहने पर मैने उनका बिज़्नेस संभाल लिया था.

अभी तक सब ठीक चल रहा था और सबको अब अमन के घर वापस आने का इंतजार था. लेकिन अमन के एक फ़ैसले ने सबको चौका दिया. अमन ने घर वापस आने की जगह, मुंबई मे ही एक हॉस्पिटल मे जॉब जाय्न कर लिया.

अमन के इस फ़ैसले का सारे घर ने विरोध किया. यहाँ तक की अमन की माँ ने भी अमन को इस बात के लिए बहुत बातें सुनाई और उसको सूरत वापस आने के लिए कहा. लेकिन अमन ने उनकी बात को मानने से इनकार कर दिया.

अमन के ऐसा करने की वजह ये थी कि, वो चाहता था कि, उसका परिवार भी अब मुंबई आकर उसके साथ रहने लगे. लेकिन अमन ने अपना ये फ़ैसला बहुत जल्दबाज़ी मे और अपने घर वालों की राय सुने बिना ले लिया था. जिस वजह से अब उसे सबका विरोध सहना पड़ रहा था.

अमन की बुआ ने भी अमन को समझाने की कोसिस की थी और उसे सूरत वापस लौट जाने की सलाह दी थी. जिस वजह से अमन ने उनका घर छोड़ दिया था और अब वो मुंबई वाले हमारे बंग्लो मे आकर रहने लगा था.

अमन की इस बात ने मुझे भी परेसानी मे डाल दिया था. एक तरफ अमन और निशा मुझ पर, अमन के परिवार को मुंबई आकर रहने के लिए मनाने का दबाव डाल रहे थे तो, दूसरी तरफ अमन का परिवार मुझ पर अमन को सूरत वापस आने के लिए समझाने का दबाव डाल रहे थे.

अमन के चाचा जी का कहना था कि, उन के परिवार सारा बिज़्नेस सूरत मे है और वो चाहे तब भी उनके लिए अपना बिज़्नेस सूरत से समेट कर, उसे मुंबई मे जमा पाना मुमकिन नही है.

वही दूसरी तरफ अमन का कहना था कि, अब वो डॉक्टर बन गया है. ऐसे मे उसके परिवार मे किसी को काम करने की कोई ज़रूरत ही नही है. वो अपने परिवार की हर ज़िम्मेदारी उठाने के लिए पूरी तरह से तैयार है.

एक तरफ अमन था और दूसरी तरफ अमन का परिवार था. दोनो अपनी अपनी जगह सही थे. लेकिन मैं दोनो मे से किसी की भी तरफ़दारी करने की स्थिति मे नही था. क्योकि अमन के वापस आने का मतलब, उसके और निशा के देखे हुए सपनो को मिटाना था. जो अमन के लिए सही नही था.

वही अमन की बात मानने का मतलब अमन के परिवार का यहाँ से जाना था. जो मेरे लिए सही नही था. क्योकि अमन के परिवार ने मेरे अधूरे परिवार को पूरा किया था. अमन के चाचा चाची हो या फिर अमन की माँ हो. उन्हो ने मुझे अमन से कम प्यार नही दिया था. अमन की तीनो बहने भी मुझे अमन से कम प्यार नही करती थी.

ऐसे मे उनके जाने के बारे मे सोचने से भी मेरी जान निकलने लगती थी. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, मैं क्या करूँ और क्या ना करूँ. एक तरफ मेरे दोस्त की खुशियाँ थी और दूसरी तरफ मेरी खुद की खुशियाँ थी. दोनो की खुशियाँ मेरी मुट्ठी मे बंद थी और फ़ैसला मुझे करना था कि, मैं किसकी खुशियाँ चाहता हूँ.

आख़िर मे मैने अपने दिल पर पत्थर रख कर अपने दोस्त की खुशियों को चुन लिया. मैने एक एक करके सबको मुंबई जाने के लिए मनाने का फ़ैसला किया और इस काम की सुरुआत मैने अमन के चाचा जी को मनाने से सुरू की. उनको मनाना सबसे ज़्यादा मुस्किल काम था. क्योकि मुंबई मे रहने के लिए, उन्हे अपना जमा जमाया बिज़्नेस बंद करना पड़ रहा था.

मैने उनसे जब मुंबई जाने की बात की तो, उन्हो ने अपने बिज़्नेस का हवाला देते हुए इस बात से साफ इनकार कर दिया. लेकिन जब मैने उनको समझाया कि, उनको अपना बिज़्नेस यूँ आनन फानन मे बंद करने की ज़रूरत नही है. वो पहले अपना बिज़्नेस मुंबई मे जमाने की कोसिस करे. जब तक उनका बिज़्नेस मुंबई मे नही जम जाता, तब तक मैं यहाँ उनके बिज़्नेस की देख भाल करता रहुगा.

मेरी इस बात को सुनने के बाद उन ने पहली बार अमन की बात पर गंभीरता से विचार किया. लेकिन अंत मे उन्हो ने इसका फ़ैसला अपने पिता जी और बाकी परिवार की मर्ज़ी पर छोड़ते हुए, मुझसे रात को डिन्नर पर सबसे बात करने को कह दिया. मैं उसी रात डिन्नर के समय अमन के घर पहुच गया. घर के सभी लोग डिन्नर पर मौजूद थे. मैं भी उनके साथ डिन्नर मे शामिल हो गया.

अब सीरत 12थ मे और सेलिना 10थ क्लास मे आ गयी थी. अर्चना भी अब बड़ी हो चुकी थी और अब वो 8थ क्लास मे आ गयी थी. तीनो बहनो मे सेलिना बहुत नटखट थी और शरारती थी. वो बात बात पर मुझे परेशान करती थी. ये बात अर्चना को ज़रा भी पसंद नही आती थी और वो उस से लड़ने लगती थी.

कहने को सीरत दोनो से बड़ी और समझदार थी. लेकिन वो भी इन दोनो की लड़ाई का मज़ा लेने का कोई मौका हाथ से नही जाने देती थी और आग मे घी डालने का काम करती रहती थी. लेकिन दिखाती ऐसा था, जैसे उसने कुछ किया ही ना हो.

मेरा डिन्नर अक्सर उनके साथ ही होता था. इसलिए मेरा आज डिन्नर पर रहना उनके लिए कोई नयी बात नही थी. मगर मेरा खामोश रह कर डिन्नर करना सबके लिए नया ज़रूर था. मैं डिन्नर मे सब के साथ होते हुए भी मेरा ध्यान उन सबकी बातों मे नही था. मैं बस इस बात मे खोया हुआ था कि, मैं सब से अमन की बात कैसे करूँ.

सब को मेरा यू खामोशी के साथ डिन्नर करना कुछ अजीब ज़रूर लग रहा था. मगर कोई कुछ बोल नही रहा था. सब आपस मे बात करते हुए बस मुझे देखते जा रहे थे. जब कुछ देर तक ऐसा ही चलता रहा तो, सेलिना को शरारत सूझी और उसने बड़ी ही मासूमियत से मुझसे कहा.

सेलिना बोली “भैया, ज़रा मुझे चपाती देना.”

सेलिना की बात सुनकर मैं अपने ख़यालों से बाहर आ गया और डाइनिंग टेबल पर यहाँ वहाँ नज़र घूमने लगा. मुझे ऐसा करते देख सेलिना और सीरत हँसने लगी. वही अर्चना ने चिड-चिड़ाते हुए मुझसे कहा.

अर्चना बोली “भैया, खाने मे चपाती कहाँ है. दीदी ने आपको बुद्धू बनाया और आप बुद्धू बन कर चपाती ढूँढ रहे हो.”

अर्चना की बात से मुझे याद आया कि आज खाने मे पराठे थे. मैने बनावटी गुस्से मे सेलिना को घूरा तो, वो मुझे देख कर और ज़ोर से हँसते हुए कहने लगी.

सेलिना बोली “भैया चपाती दो ना.”

सेलिना को इस तरह मुझे परेशान करते देख, अर्चना को गुस्सा आ रहा था. उसे गुस्सा आते देख, सीरत को भी उनके झगड़े की आग मे घी डालने का मौका मिल गया और उसने अर्चना को भड़काने के लिए, सेलिना को समझाते हुए कहा.

सीरत बोली “रहने दे, भैया को ज़्यादा परेशान मत कर, कही भैया की लाडली को गुस्सा आ गया तो, वो अभी बेलन से तेरी पिटाई कर देगी.”

सीरत की बात सुनकर, जहाँ एक तरफ अर्चना का गुस्सा बढ़ गया था. वही दूसरी तरफ सेलिना ने अपना अगला निशाना अर्चना को बनाते हुए कहा.

सेलिना बोली “बड़ी आई भैया की चमची. क्या इसी बस के भैया है. मेरे भी भैया है और मैं जैसे चाहू, वैसे बात करू. इसमे किसी को जलना है तो जलता रहे. ठीक कहा ना भैया मैने.”

इतना कह कर सेलिना फिर से हँसने लगी. उसे हँसता देख अर्चना गुस्से मे अपनी जगह से खड़ी हो गयी. उनकी इन हरकतों का मज़ा घर के सभी लोग ले रहे थे. इसलिए कोई उनको नही रोक रहा था.

लेकिन मुझे लगा कि अब यदि मैने बीच मे ना बोला तो, सच मे दोनो के बीच झगड़ा हो ही जाएगा. इसलिए मैने अर्चना को समझाते हुए कहा.

मैं बोला “आरू, अपना गुस्सा थूक दे. ये दोनो तुझे गुस्सा दिला रही है. तू इन की बातों मे मत आ और चुप चाप खाना खा.”

मेरी बात सुनकर अर्चना वापस बैठने को हुई. लेकिन उसे बैठते देख सेलिना ने फिर से अपनी बात दोहराते हुए कहा.

सेलिना बोली “भैया चपाती दो ना.”

इतना कह कर वो फिर हंस दी. लेकिन इस बार उसकी हँसी को सुनकर अर्चना उठ कर किचन की तरफ जाने लगी. उसे किचन की तरफ जाते देख, सीरत ने सेलिना से कहा.

सीरत बोली “सेलू अब तू यहाँ से भाग ले. लगता है वो भैया की चमची किचन मे बेलन लेने गयी है और आज वो तेरी पिटाई किए बिना नही मानेगी.”

ये बोल कर सीरत हँसने लगी. लेकिन सेलिना की हँसी गायब हो गयी थी और सब के साथ साथ उसकी नज़र भी अब किचन की तरफ ही लगी थी. थोड़ी ही देर बाद सबको अर्चना किचन से बाहर आती हुई दिखी. उसने अपने दोनो हाथ पिछे छुपा रखे थे. इसलिए किसी को नही दिखा की उसके हाथ मे क्या है.

वो चुप चाप आई और अपनी सीट पर बैठ गयी. अर्चना मेरे और चाची के बीच की सीट पर बैठी थी. इसलिए मेरे और चाची के अलावा किसी के समझ मे नही आया कि अर्चना किचन मे क्यूँ गयी थी. अर्चना की हरकत देखते ही मेरे और चाची के चेहरे पर मुस्कान आ गयी.

वही बाकी सब लोग कुछ भी समझ ना आने के कारण सोच मे पड़े हुए थे और अर्चना के अगले कदम का इंतजार कर रहे थे. लेकिन वो मुस्कुराती हुई चुप चाप खाना खा रही थी. उसे चुप चाप खाना खाते देख, सेलिना से नही रहा गया और उसने मुझे छेड़ते हुए फिर कहा.

सेलिना बोली “भैया चपाती दो ना.”

सेलिना के इतना बोलने की देर थी कि, अर्चना ने मेरी तरफ देखते हुए बड़ी ही मासूमियत से कहा.

अर्चना बोली “भैया, दीदी कितनी भूखी है. बेचारी कब से चपाती माँग रही है. उसको चपाती दे दो ना.”

मैने भी मुस्कुराते हुए अर्चना से कहा.

मैं बोला “ओके आरू, तू कहती है तो मैं सेलू को चपाती दे ही देता हूँ.”

ये कहते हुए मैने टेबल के नीचे से हाथ उपर उठाया और दो चपाती सेलिना की तरफ बढ़ा दी. मेरे चपाती देते ही सब की हँसी छूट गयी और सेलिना का मूह छोटा सा हो गया. लेकिन उसने अपनी खिज को निकालते हुए कहा.

सेलिना बोली “ये तो सुबह की चपाती है. ये आप खाओ और अपनी लाडली को खिलाओ. मुझे नही खाना ये चपाती.”

ये बोल कर वो अपनी हार से भन-भनाइ खाना खाने लगी और अर्चना अपनी जीत पर मुस्कुरा रही थी. असल मे अर्चना किचन से सुबह की चपाती ले कर आई थी और उसने वो लाकर मुझे पकड़ा दी थी. जो सेलिना के चपाती का बोलते ही मैने उसके सामने रख दी थी.

इस तरह हँसी मज़ाक करते करते सब का डिन्नर हो गया. डिन्नर हो जाने के बाद मैने अपनी बात रखते हुए दादा जी से कहा.

मैं बोला “दादा जी, आज मैं आप सब से अमन के बारे मे कुछ बात करना चाहता हूँ.”

मेरी ये बात सुनते ही सब मेरी तरफ गौर से देखने लगे. क्योकि सबने अमन को समझाने का काम मुझे दिया था. उन्हे ऐसा लग रहा था कि, मैं शायद अमन के वापस आने के बारे मे कुछ कहना चाहता हूँ.

सबकी आँखों मे अमन के वापस आने की एक उम्मीद और मेरी बात सुनने की उत्सुकता साफ नज़र आ रही थी. वही मेरी आँखों मे अभी कुछ देर पहले का हँसी खुशी का माहौल घूम रहा था. जो मुझे अपनी बात कहने से रोक रहा था. मुझे आगे कुछ ना कहते देख कर, दादा जी ने मुझे टोकते हुए कहा.

दादा जी बोले “हां बेटा बोलो, तुम अमन के बारे मे हम सब से क्या बात करना चाहते हो.”

दादा जी की बात सुनकर मैने एक बार सबके चेहरे की तरफ देखा. सबके चेहरे को देख कर मेरी कुछ भी कहने की हिम्मत जबाब दे गयी. ऐसे मे मेरी हिम्मत बढ़ाते हुए चाचा जी ने कहा.

चाचा जी बोले “बाबू जी, मैं बताता हूँ कि, अजजी आप सब लोगो से क्या बात करना चाहता है.”

चाचा जी की बात सुनकर, सब हैरानी से चाचा जी को देखने लगे. चाचा जी सबकी हैरानी को दूर करते हुए, दिन मे मुझसे मुंबई जाने को लेकर हुई बात बता दी. जिसे सुनते ही अमन की मम्मी ने सबसे पहले इस बात का विरोध करते हुए और मुझे लताड़ते हुए कहा.

मम्मी बोली “अजजी तुमको हम लोगों से ऐसी बात करते हुए ज़रा भी शरम नही आई. हम ने तो तुमको उस नलायक को समझाने बोला था. लेकिन तुम उसको समझाने की जगह उसकी ही तरफ़दारी कर रहे हो. आज तुमने ग़लत बात मे उसकी तरफ़दारी करके हम सब का दिल दुखाया है. हमें तुमसे ऐसी उम्मीद नही थी.”

“आख़िर तुम्हे उस से इतनी हमदर्दी किसलिए हो रही है. जो तुम हम लोगों को हमारा घर छोड़ कर उसके पास जाने को कह रहे हो. क्या हम सब अब तुम्हारी आँखों मे चुभने लगे है. जो तुम हुमको अपनी आँखों की किरकिरी की तरह निकाल फेक देना चाहते हो.”

अमन की मम्मी बहुत गुस्से मे थी और उनके दिल मे अमन को लेकर जितनी भी भडास थी. उन्हो ने सब की सब भडास मेरे उपर निकाल दी. उन्हो ने कभी भी मुझसे इतने गुस्से मे बात नही की थी.

इस सबके बाद भी मुझे उनकी किसी भी बात का बुरा नही लगा था. क्योकि वो मुझे अमन से कम प्यार नही करती थी और आज अपने उसी हक़ से वो मुझे भला बुरा बोले जा रही थी. जब वो बोलते बोलते शांत हुई तो, मैने उनसे कहा.

मैं बोला “मोम, आपका गुस्सा अपनी जगह सही है. मगर आप ऐसा कैसे सोच सकती है कि, आप सब मेरी आँखों की किरकिरी है. आप सब तो मेरा परिवार है. मैं ही जानता हूँ की, आप सब को जाने के लिए बोल कर मेरा दिल कितना रोया है. आप सब मुंबई जाएगे तो, आपका परिवार पूरा हो जाएगा.”

“लेकिन आप सब के जाने से मेरा परिवार तो हमेशा के लिए दूर हो जाएगा. मुझसे तो आप जैसी माँ की ममता, ये चाचा चाची का प्यार और इन जान से प्यारी बहनो की प्यार भरी नोक झोक सब कुछ ही छिन जाएगी. मेरा तो सब कुछ ही आपके जाते ही ख़तम हो जाएगा.”

अपनी बात बोलते बोलते मेरे आँसू बहने लगे और मैं चाह कर भी अपने आँसू रोक नही पा रहा था. मुझे रोते देख, मम्मी का गुस्सा भी ख़तम हो गया. उन्हो ने मेरे सर पर हाथ फेरा और मुझे समझाते हुए कहा.

मम्मी बोली “तू क्यो रोता है. हम लोग तुझे छोड़ कर कहीं नही जा रहे है. तेरा कुछ भी ख़तम नही होगा. मुझे तो ये समझ मे नही आता कि, तूने उसकी ये बात मानी क्यो. जो लड़का अपने बाप समान चाचा का सगा नही हुआ. वो भला तुम्हारा सगा कैसे हो सकता.”

मम्मी की प्यार भरी बातों से मेरा मन हल्का हो गया था. मैने अपने आपको संभालते हुए उनसे कहा.

मैं बोला “मोम, आप अमन के बारे मे ग़लत सोच रही हो. अमन चाचा जी को अपने पापा का ही दर्जा देता है और ये तीनो बहने तो उसकी जान है. यदि ऐसा ना होता तो, उसने सिर्फ़ आपको ही मुंबई लाने के लिए सोचा होता. लेकिन उसने एक बार भी ऐसा नही कहा. उसने जब भी मुंबई आने की बात कही. तब भी उसने अपने पूरे परिवार के मुंबई आने की बात कही है और उसका पूरा परिवार आप सब है.”

मेरी इस बात का समर्थन चाचा जी ने भी किया. चाचा जी का साथ मिलते ही मेरे लिए सबको समझाना आसान हो गया था. मैं एक एक करके अपनी बात सबको समझाता रहा और आख़िर मे सब मुंबई जाने के लिए तैयार हो गये.

कुछ ही दिनो की तैयारी के बाद सब लोग मुंबई जाने के लिए तैयार हो गये. मैं सबको स्टेशन तक छोड़ने आया. मुझे छोड़ कर जाते हुए, सबकी आँखें नम थी. कोई भी जाना नही चाहता था. लेकिन फिर भी जाना पड़ रहा था.

अर्चना का तो रो रो कर बुरा हाल हो गया था. वो बस एक ही रट लगाए हुई थी कि, मैं आपको छोड़ कर नही जाउन्गी. मैं उसको समझाने की जितनी भी कोसिस करता, वो उतना ही ज़्यादा रोती जा रही थी.

आख़िर मे अर्चना की ऐसी हालत देख कर, चाचा जी ने मुझसे कहा कि तुम भी साथ चलो, वरना ये रो रो कर अपनी तबीयत खराब कर लेगी. मुझसे भी उसका इस तरह से रोना देखा नही जा रहा था. इसलिए मुझे भी सब के साथ मुंबई आना पड़ गया.
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09-09-2020, 02:36 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मुंबई आने के बाद मैं एक दिन सबके साथ रहा. दूसरे दिन मैने घर वापस लौटने की बात की तो, अर्चना ने फिर रोना सुरू कर दिया. तब मैने उसे समझाया कि, अब मुझे उसके पापा और अपना दोनो का बिज़्नेस देखना है. ऐसे मे मेरा वहाँ रुकना ठीक नही है.

लेकिन मेरे समझाने पर भी वो मेरी बात मानने को तैयार नही थी. तब अमन ने उसको समझाते हुए कहा.

अमन बोला “तू अज्जि की लाडली बहन है ना, तो इसे खुशी खुशी यहाँ से जाने दे. मैं तुझसे वादा करता हूँ कि, ये वहाँ जाने के बाद रोज तुझसे फोन पर बात किया करेगा और हर सनडे तुझसे मिलने यहाँ आया करेगा. यदि इसने ऐसा नही किया तो, मैं इसे खुद वहाँ से उठा लाउन्गा. बस थोड़े दिनो की ही बात है. फिर तेरे पापा का यहाँ बिज़्नेस जमते ही, हम इसे भी हमेशा हमेशा के लिए तेरे पास यही बुला लेगे.”

अमन ने अर्चना को मेरे वापस उसके पास आने की उम्मीद दिला दी. जिस उम्मीद की वजह से मैं अर्चना को बहला कर, मुंबई से वापस अपने घर आ गया था. लेकिन यहाँ अमन का सुना पड़ा घर देख देख कर मुझे सबकी बहुत याद आ रही थी और मुझे रोना आ रहा था.

ना जाने उस छोटी सी लड़की मे ऐसा क्या था कि, वो जबसे मेरी जिंदगी मे आई थी, मेरी जिंदगी खुशियों से भर गयी थी. उसने मुझे जीना सिखाया था और उसके होते हुए मुझे कभी किसी की ज़रूरत महसूस नही हुई थी.

लेकिन आज उसके ना होने से, अब मेरा ही घर मुझे काटने को दौड़ने लगा था. मुझे अपने ही घर मे एक पल भी रहना मुस्किल सा लगने लगा था और मैं एक बार फिर से अपने आपको बिल्कुल अकेला महसूस करने था.

मैं अभी अपने इसी अकेलेपन से बाहर निकलने के बारे मे सोच रहा था कि, तभी मेरे मोबाइल की रिंग बजने लगी. मैने मोबाइल देखा तो, मेरे चेहरे पर खुद बा खुद मुस्कुराहट आ गयी. मैने कॉल उठाते हुए कहा.

मैं बोला “कैसी है तू. खाना खाया या नही.”

अर्चना बोली “मैं अच्छी हूँ. मैने खाना भी खा लिया, पानी भी पी लिया और सो भी लिया है.”

अर्चना की बात सुनकर मैं हँसे बिना ना रह सका. मैने उसकी बातों का मज़ा लेने के लिए उस से कहा.

मैं बोला “वहाँ जाकर तो तू बहुत ही फास्ट हो गयी है. इतनी जल्दी इतना सब कुछ कर लिया झुटि.”

मेरी बात सुनकर वो खिलखिलाने लगी. उसकी हँसी सुनकर मेरे दिल का बोझ कुछ कम सा हो गया. मैने उसे बातों मे लगाते हुए कहा.

मैं बोला “तू हंस क्यो रही है. झूठ बोलते हुए तुझे शरम नही आती.”

अर्चना बोली “भैया आप बात ही ऐसी कर रहे हो. आपको पता है कि इतने टाइम डिन्नर नही होता. फिर भी आप पुच्छ रहे हो कि, मैने खाना खाया या नही.”

मैं बोला “बड़ी समझदार हो गयी है. बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगी.”

मेरी बात सुनकर वो फिर खिलखिलाने लगी. फिर उसने मुझसे धीरे से कहा.

अर्चना बोली “भैया, आपको एक राज़ की बात बताना है.”

मैने भी उसकी बात मे दिलचस्पी दिखाते हुए कहा.

मैं बोला “बोल जल्दी, क्या राज़ की बात है.”

अर्चना बोली “भैया आज छोटे दादू (अमन के दादा जी) बड़े दादू (मेरे दादा जी) से फोन पर बात कर रहे थे.”

मैं बोला “तो इसमे राज़ की बात क्या है. वो लोग तो रोज ही बात करते है.”

अर्चना बोली “आप पूरी बात तो सुनते नही हो और बीच मे बोलने लगते हो.”

मैं बोला “ओके, अब मैं बीच मे नही बोलुगा. अब बता इसमे राज़ की बात क्या है.”

अर्चना बोली “वो आपकी शादी की बात कर रहे थे. बड़े दादू आपकी शादी के लिए लड़की ढूँढ रहे और उन्हो ने छोटे दादू को भी लड़की देखने को कहा है. छोटे दादू ने पापा को भी कोई अच्छी सी लड़की देखने के लिए कहा है.”

मैं बोला “ये तो तूने बहुत पते की बात बताई है. लेकिन मैं तो उसी लड़की से शादी करूगा. जिसे तू पसंद करेगी.”

मेरी बात सुनकर अर्चना ने चहकते हुए कहा.

अर्चना बोली “भैया यदि ऐसी बात है तो, मैं कल से ही अपनी भाभी ढूँढना सुरू कर देती हूँ. आप देखना मैं कितनी सुंदर भाभी ढूँढती हूँ. लेकिन इस काम मे आपको भी इसमे मेरा साथ देना होगा. हम दोनो मिल कर भाभी ढूंढ़ेंगे, तो दादू लोगो से पहले ढूँढ लेगे.”

मैं बोला “ओके, तेरी भाभी को हम दोनो मिलकर ढूंढ़ेंगे. अब खुश.”

अर्चना बोली “हां, लेकिन ये हम लोगों का भाभी ढूँढने वाला राज़ किसी को पता नही चलना चाहिए.”

मैं बोला “नही पता चलेगा मेरी माँ. अब तू फोन रख, हम लोग कल बात करते है.”

इसके बाद अर्चना ने फोन रख दिया. लेकिन अर्चना की बात से मुझे इतना तो समझ मे आ गया था कि, दादा जी को मेरे अकेलेपन की वजह से मेरी शादी करने की चिंता सता रही थी.

दादा जी को इस चिंता को मिटाने के लिए मुझे खुद को अकेलेपन की इस जिंदगी से निकलना ज़रूरी हो गया था. अब मेरे पास इस अकेलेपन से बचने का एक ही रास्ता रह गया था कि, मैं अपने आपको काम मे इतना बिज़ी कर दूं कि, मेरे पास किसी बात को सोचने का टाइम ना रहे.

अगले दिन से मैने ये ही किया और अपने आपको पूरी तरह से काम मे लगा दिया. यहा मैं दादा जी सारा बिज़्नेस संभालने मे लगा था तो, वहाँ अमन के चाचा जी मुंबई मे अपना बिज़्नेस जमाने मे लगे थे.

यू ही दिन गुज़रते गये और अमन के चाचा जी का बिज़्नेस मुंबई मे अच्छी तरह से जम चुका था. मैने भी यहाँ धीरे धीरे दादा जी का सारा बिज़्नेस संभाल लिया था और अब उस बिज़्नेस को फैलाने मे लगा हुआ था.

अमन का परिवार मुंबई के माहौल मे खुद को पूरी तरह से ढल चुका था और अब मेरी उनसे कम ही बात हुआ करती थी. लेकिन अर्चना वहाँ के माहौल मे रंगने के बाद भी, मुझे एक दिन के लिए भी नही भूली थी.

वो अब भी मुझसे रोज ही फोन पर बात किया करती थी. वो कभी सीरत या सेलिना की सीकायत करती तो, कभी अपनी स्कूल की बातें बताती और जब उसके पास करने की कोई बात नही होती तो मेरी शादी की बात लेकर बैठ जाती थी.

उसके पास मुझसे करने के लिए रोज ही कोई ना कोई बात रहती ही थी. ऐसे ही उसने अपने जन्मदिन के एक दिन पहले मुझे फोन किया और अपने जनमदिन का याद दिलाने के लिए मुझसे कहा.

अर्चना बोली “भैया, क्या आपको याद है. कल क्या है.”

मुझे याद था कि, कल उसका जनम दिन है और मैं उसके जनम दिन का गिफ्ट उसे पहले ही भेज चुका था. फिर भी मैने अंजान बनते हुए कहा.

मैं बोला “नही, मुझे याद नही कल क्या है. क्यो कल क्या है.”

उसे लगा कि, मुझे सच मे उसका जनम दिन याद नही है. उसने इस बात पर मुझसे नाराज़ होते हुए कहा.

अर्चना बोली “क्या भैया, आपको इतना ज़रूरी दिन भी याद नही है. जाओ मैं आपसे बात नही करती.”

उसे नाराज़ होते देख कर, मैने हंसते हुए उस से कहा.

मैं बोला “बड़ी आई, मुझे कल दिन याद दिलाने वाली. भला मैं कभी तेरा जनम दिन भूल सकता हूँ.”

मेरे मूह से कल अपना जनम दिन होने की बात सुनते ही उसकी नाराज़गी दूर हो गयी तो, उसने मुझसे कहा.

अर्चना बोली “जब आपको मेरा जनम दिन याद था तो, झूठ क्यो बोले थे.”

मैं बोला “मैं तो बस तुझसे ज़रा सा मज़ाक कर रहा था. मैने तो तेरे जनम दिन का गिफ्ट सुबह ही भेज दिया था. कल तुझे तेरे जनम दिन का गिफ्ट मिल भी जाएगा.”

मुझे लगा था कि, मेरी ये बात सुनकर अर्चना खुश हो जाएगी. लेकिन उसने मेरे गिफ्ट को कोई अहमियत ना देते हुए कहा.

अर्चना बोली “मुझे जनम दिन पर कोई गिफ्ट विफ़्ट नही चाहिए. मेरे जनम दिन पर आप यहाँ आइए. वरना मैं कोई जनम दिन वनम दिन नही मनाउन्गी और ना ही आपसे कभी बात करूगी.”

अर्चना की ये ज़िद सुनकर, मैं परेसानी मे फस गया. क्योकि अगले दिन मेरी एक बहुत ज़रूरी बिज़्नेस मीटिंग थी. जिसकी तैयारी पहले से ही हो चुकी थी और अब इस मीटिंग को टाला नही जा सकता था.

मैने ये बात अर्चना को समझाने की कोसिस करने लगा. लेकिन उसने मेरी कोई भी बात सुनने से मना कर दिया और मेरे कल मुंबई ना आने पर, मुझसे कभी बात ना करने धमकी देकर फोन रख दिया.

मैने उसे समझाने के लिए वापस फोन किया. लेकिन उसने फोन नही उठाया. फोन चाची जी ने उठाया. मैने उनसे अर्चना से बात करवाने को कहा तो, अर्चना ने फोन पर आने से मना कर दिया.

मैं जानता था कि, वो बहुत जिद्दी है. इसलिए मैने दादा जी से कल की मीटिंग लेने को कह दिया और मैं अर्चना को मनाने के लिए अगले ही दिन मुंबई पहुच गया. लेकिन जब मैं अमन के घर पहुचा तो, अर्चना स्कूल गयी हुई थी.

मुझे अचानक आया देख कर सब चौक गये. तब मैने उनको कल अर्चना से हुई बातों के बारे मे बताया. जिसे सुनने के बाद चाची जी ने कहा.

चाची जी बोली “अब समझ मे आया कि, वो सुबह क्यो अपना जनम दिन ना मनाने की बात कह कर और सबसे झगरा करके स्कूल चली गयी. हम सब तो ये ही सोच रहे थे कि, आख़िर इसे सुबह सुबह हो क्या गया है.”

चाची जी की बात सुनकर और अर्चना का मेरे लिए प्यार देख, मेरी आँखें नम हो गयी. उसका भोला भाला चेहरा मेरी आँखों के सामने घूमने लगा और मेरा दिल उसे देखने के लिए तड़पने लगा. मैने अपनी आँखों की नमी को सबसे छुपाते हुए चाची जी से कहा.

मैं बोला “मैं उसका मूड सही करना अच्छी तरह से जानता हूँ. मैं अभी उसको स्कूल से लेकर आता हूँ.”

ये कह कर मैने सेलिना को अपने साथ अर्चना की स्कूल चलने को कहा और मैं अपनी कार की तरफ बढ़ गया. लेकिन तभी सेलिना ने मुझे टोकते हुए कहा.

सेलिना बोली “भैया, आप यदि ऐसे आरू की स्कूल पहुचे तो, आपका सर्प्राइज़ धरा का धरा रह जाएगा. आप उसे ऐसा सर्प्राइज़ दीजिए कि, उसे हमेशा याद रहे.”

मुझे सेलिना की ये बात ज़रा भी समझ मे नही आई. मैने उस से इसका मतलब पूछते हुए कहा.

मैं बोला “तू कहना क्या चाहती है.”

सेलिना बोली “भैया आप हमारी वाली कार लेकर स्कूल चलिए. जिसमे वो रोज स्कूल से घर आती है. अपनी कार देख कर उसे ज़रा सा भी शक़ नही होगा.”

मैं बोला “लेकिन इस से फ़ायदा क्या होगा. वो तो कार के पास आते ही मुझे देख लेगी.”

मेरी बात सुनकर, सेलिना मुस्कुराने लगी. उसे ये मुस्कुराते हुए देख कर, मैने उस से कहा.

मैं बोला “तू कुछ बोलती क्यो नही और खड़े खड़े हंस क्यो रही है.”

सेलिना बोली “ऐसे नही बोलुगी. आगे की बात सुनने के लिए आपको मेरी शर्त मानना पड़ेगी.”

सेलिना की बात सुनकर, मैने उसे घूर कर देखा. मेरे इस तरह देखने पर उसने हंसते हुए कहा.

सेलिना बोली “अब आपको आगे की बात सुनना है तो, इतनी रिश्वत तो देनी ही पड़ेगी.”

मेरे पास उसकी शर्त मानने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नही था. इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला “ओके, मुझे तेरी सब शर्त मंजूर है. अब बोल आगे क्या करना है.”

सेलिना बोली “इतनी जल्दी भी क्या है भैया. पहले मेरी शर्त तो सुन लीजिए.”

मैं बोला “ओके, बोल तेरी क्या शर्त है.”

सेलिना बोली “मेरी शर्त है कि, आप आज हम तीनो बहनो को एस्सेल वर्ल्ड लेकर जाएगे.”

मैं बोला “ओके, मुझे तेरी शर्त मंजूर है. अब जल्दी से अपनी आगे की बात भी बोल दे.”

मेरे मूह से हां सुनने के बाद सेलिना ने अपनी आगे की बात बताते हुए कहा.

सेलिना बोली “मेरा आइडिया है कि, आप ड्राइवर काका की यूनिफॉर्म पहन कर चलिए. वो आपको बिल्कुल भी पहचान नही पाएगी.”

सेलिना का ये आइडिया सुनकर, मैने उसे गौर से देखा. मैं समझ नही पा रहा था कि, वो मेरे साथ कोई शरारत कर रही है या सच मे ही ऐसा करने को बोल रही है. जब मुझे उसके ऐसा करने की कोई वजह समझ नही आई तो, मैने बुरा सा मूह बनाते हुए कहा.

मैं बोला “ये कैसा बेहूदा सा आइडिया है. तू मुझे एक मामूली सा ड्राइवर बना कर मेरा मज़ाक बनाना चाहती है.”

मेरी बात सुनकर, सेलिना ने जो तर्क दिया. उसे सुन कर मैं कुछ भी कहने लायक नही रहा. उसने मेरी बात का तर्क देते हुए कहा.

सेलिना बोली “ये क्या भैया. क्या ड्राइवर इंसान नही होते. मुझे आपसे ऐसी बात की उम्मीद नही थी.”

अभी सेलिना अपनी बात पूरी भी नही कर पाई थी कि, सीरत ने उसकी बात को काटते हुए मुझसे कहा.

सीरत बोली “भैया आप ही हमें सिखाते थे कि, कोई भी काम बड़ा या छोटा नही होता और आज आप को ही सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए ड्राइवर बनने मे शरम आ रही है.”

मेरी दोनो बहने, मेरी ही सिखाई बातें आज मुझे याद दिला रही थी. मुझे ऐसा करने का कोई तुक समझ मे नही आ रहा था. इस पर उनके शरारत करने की आदत भी मुझे ऐसा करने से रोक रही थी. मैने उनको अपने ऐसा ना करने की बात पर अपनी सफाई देते हुए कहा.

मैं बोला “तुम लोग बेकार की बहस क्यो कर रही हो. मेरे कहने का मतलब सिर्फ़ ये था कि, वो तो मुझे देख कर वैसे ही खुश हो जाएगी. फिर तुम लोग मुझसे ऐसा क्यो करवाना चाहती हो.”

मुझे यूँ अपनी बात पर आड़े हुए देख दोनो हँसने लगी. लेकिन दोनो का मूड मुझसे अपनी बात मनवाने का था. इसलिए सीरत ने अपनी आदत के अनुसार आग लगाते हुए कहा.

सीरत बोली “रहने दे सेलू. भैया से ये सब ना होगा. वो अपनी छोटी बहन को उसके जनम दिन पर एक छोटा सा गिफ्ट भी नही दे सकते.”

सेलिना बोली “सही कहा दीदी, भैया अपनी लाडली की खुशी के लिए इतना भी नही कर सकते.”

दोनो मुझे ऐसा करने के लिए उकसा रही थी और मैं उनकी बातों मे फासना नही चाहता था. इसलिए मैने दोनो से कहा.

मैं बोला “मुझे जो गिफ्ट देना था, वो मैं उसे पहले ही दे चुका हूँ और उसकी खुशी के लिए ही यहाँ आया हूँ. अब तुम दोनो अपनी बक बक बंद करो और चुप चाप उसकी स्कूल चलो.”

मेरी बात सुनकर, सेलिना चुप चाप गाड़ी मे आकर बैठ गयी. लेकिन सीरत ने अपनी आख़िरी कोसिस करते हुए कहा.

सीरत बोली “आपका दिया हुआ गिफ्ट, उसे मिल गया था. लेकिन वो आपसे बहुत नाराज़ थी, इसलिए उसने वो गिफ्ट खोल कर भी नही देखा. अब कहीं ऐसा ना हो की, आपको देख कर वो स्कूल से आने से ही मना कर दे. उसका गुस्सा तो आप जानते ही है. मगर इस सब से मुझे क्या. चलिए आरू की स्कूल चलते है.”

इतना कह कर, सीरत भी गाड़ी मे आकर बैठ गयी. लेकिन उसकी इस बात ने मुझे सोच मे डाल दिया. क्योकि आरू बहुत जिद्दी थी और यदि एक बार किसी बात को लेकर नाराज़ हो जाए तो उसको मनाना आसान नही था.

मगर मैं ये भी अच्छी तरह से जानता था कि, आरू मुझसे ज़्यादा देर तक नाराज़ नही रह सकती थी. इसलिए मेरा इन दोनो की बात मानने का कोई सवाल ही पैदा नही होता था. मुझे इस तरह सोचता देख, सीरत ने फिर मुझे उकसाते हुए कहा.

सीरत बोली “भैया, ज़्यादा मत सोचिए. आप से ये नही होगा, इसलिए अब ऐसे ही स्कूल चलते है.”

सीरत की बात के जबाब मे मैने उस से ड्राइवर की यूनिफॉर्म लाने को कहा तो, वो भाग कर यूनिफॉर्म ले आई. कुछ ही देर मे मैं यूनिफॉर्म पहन कर तैयार हो गया. मुझे ड्राइवर की यूनिफॉर्म मे देख कर दोनो खुश हो गयी और फिर हम लोग आरू की स्कूल आ गये.

दोनो ने मुझे गाड़ी मे ही बैठे रहने को कहा और दोनो आरू को लेने स्कूल के अंदर चली गयी. थोड़ी देर बाद मुझे तीनो स्कूल से बाहर निकलती नज़र आई. गाड़ी के पास आने के बाद, सीरत आगे मेरे पास वाली सीट पर आकर बैठ गयी. सेलिना और आरू पीछे की सीट पर बैठ गयी. सबके गाड़ी मे बैठते ही सीरत ने मुझसे कहा.

सीरत बोली “काका एस्सेल वर्ल्ड चलिए.”

अपने लिए काका सुनते ही मैने सीरत को घूर कर देखा तो, उसने मुझे चुप चाप चलने का इशारा किया. उधर आरू ने एस्सेल वर्ल्ड चलने की बात सुनी तो, गुस्से मे भन्नाते हुए कहा.

अर्चना बोली “मैने कहा ना, मुझे कहीं नही जाना. सीधे घर चलो वरना अच्छा नही होगा.”

आरू को एस्सेल वर्ल्ड चलने के नाम पर गुस्सा होते देख, सीरत ने पीछे पलट कर देखते हुए उस से कहा.

सीरत बोली “आज आख़िर तुझे हुआ क्या है. आज तेरा जनम दिन है और तू सुबह से ही सब पर वेवजह गुस्सा हुए जा रही है. हम तो तेरे को जनम दिन का गिफ्ट देना चाहते है और तुझे पार्टी देने के लिए एस्सेल वर्ल्ड ले जा रहे है.”

लेकिन आरू पर सीरत की बात का कोई असर नही पड़ा. उसने फिर गुस्से मे अपनी बात को दोहराते हुए कहा.

अर्चना बोली “मुझे नही चाहिए कोई गिफ्ट विफ़्ट, मुझे जो भी गिफ्ट मिले है वो भी तुम लोग रख लो. मुझे कहीं नही जाना और ना ही कोई पार्टी चाहिए. सीधे घर चलो, नही तो मुझे यही उतार दो.”

आरू का गुस्सा शांत ना होते देख, सीरत ने उस से कहा.

सीरत बोली “चल जैसा तू कहती है, हम वैसा कर देगे. बस तू हमें इतना बता दे कि, तू इतना किस वजह से नाराज़ है.”

सीरत की ये बात सुनकर आरू कुछ शांत पड़ गयी. लेकिन कुछ बोली नही. शायद वो अपनी नाराज़गी की वजह किसी को बताना नही चाहती थी. उसे चुप देख कर सीरत ने मुझे गाड़ी आगे बढ़ाने का इशारा किया तो, मैने गाड़ी स्टार्ट की. लेकिन मेरे गाड़ी स्टार्ट करते ही आरू ने कहा.

अर्चना बोली “काका सीधे घर चलो. मुझे घर छोड़ने के बाद इनको जहाँ जाना है वहाँ ले जाना.”

अर्चना के ऐसा बोलने पर, सीरत ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए आरू से कहा.

सीरत बोली “ठीक है, जब तुझे हमारी कोई बात नही मानना तो, हम भी अब तुझसे कोई बात नही करेंगे. तू आगे आकर बैठ और मुझे सेलू के पास बैठने दे.”

ये कह कर सीरत गाड़ी से उतर गयी और पीछे का दरवाजा खोल कर आरू को आगे जाने का इशारा किया. आरू भी बिना कुछ कहे गाड़ी से उतर गयी. उसके उतरते ही सीरत पीछे उसकी सीट पर जाकर बैठ गयी और आरू आकर आगे बैठ गयी.

लेकिन आगे बैठते ही जैसे ही उसकी नज़र मुझ पर पड़ी तो, उसने पीछे पलट कर सीरत और सेलिना की तरफ देखा. वो दोनो उसे देख कर मुस्कुरा रही थी. उसके बाद उसने फिर से मेरी तरफ देखा तो, मैने उसे हॅपी बर्तडे कहा.

मेरे हॅपी बर्तडे बोलते ही, सीरत और सेलिना ने भी उसे हॅपी बर्तडे कहा. जिसे सुनते ही पहले आरू के चेहरे पर मुस्कुराहट आई और फिर उसकी आँखों मे आँसू झिलमिलाने लगे.
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09-09-2020, 02:37 PM,
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बहुत अजीब सा मंज़र था. आरू मुझे देखे जा रही थी. उसके होंठों पर मुस्कान थिरक रही थी. लेकिन उसकी आँखों मे आँसू झिलमिला रहे थे. उसकी मासूम आँखो मे आई नमी को पोछने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाए.

लेकिन तभी आरू आगे बढ़ कर मेरे सीने से लग गयी और ना जाने कब उसकी आँखों की नमी आँसुओ मे बदल गयी. मैने उसके आँसू पोछने के लिए उसे अपने सीने से अलग करना चाहा तो उसने और भी ज़ोर से मुझे अपनी बाहों मे जाकड़ लिया.

उसकी इस हरकत को देख, कुछ पल के लिए मेरी आँखों मे भी नमी आ गयी. यही हाल सीरत और सेलिना का भी था और यदि कोई दूसरा ये मंज़र देख रहा होता तो शायद वो भी इस पल मे अपनी आँखों मे नमी आने से ना रोक पाता.

कुछ देर के लिए वक्त जैसे थम सा गया था. सब खामोश थे और बस आरू को देख रहे थे. मैने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और फिर उसका चेहरा उपर उठा कर उसके आँसू पोछते हुए उस से कहा.

मैं बोला “रो मत पगली. क्या मैं तुझे रुलाने के लिए इतनी दूर आया हूँ. भला अपने जनम दिन के दिन भी कोई रोता है क्या.”

मेरी बात ने अपना असर दिखाया और आरू रोना बंद कर के अपना चेहरा साफ करने लगी. आरू का मूड ठीक होते देख, सीरत ने सेलिना के कान मे कुछ कहा, जिसके बाद सेलिना ने आरू से कहा.

सेलिना बोली “तो पगली, अब हम घूमने चलें.”

सेलिना की बात सुनते ही आरू ने उसे गुस्से मे घूरते हुए देखा और उसे धमकाते हुए कहा.

अर्चना बोली “दीदी, मुझे पगली वगली मत बोलना, वरना मुझसे बुरा कोई नही होगा.”

आरू की धमकी के जबाब मे सीरत ने सेलिना की तरफ़दारी करते हुए आरू से कहा.

सीरत बोली “ओये अभी भैया तुझे पगली बोले तो, तूने उन्हे कुछ नही कहा और जब सेलू ने पगली कहा तो तुझे इतना बुरा लग गया.”

सीरत के इस जबाब के बाद भी आरू के तेवर मे कोई फरक नही पड़ा. उसने अपनी बात दोहराते हुए कहा.

अर्चना बोली “वो मेरे भैया है. वो मुझे कुछ भी बोल सकते है. लेकिन आप दोनो उनकी बराबरी करने की कोसिस मत करो.”

मुझे समझ मे आ गया था कि, ये सब सीरत का ही किया हुआ है. इस से पहले की बात और आगे बड़े, मैने आरू को बात के बीच मे ही रोकते हुए कहा.

मैं बोला “ये बेकार की बहस बंद करो. ये बोलो की, अब हम घूमने चले या फिर वापस घर चले.”

मेरी बात सुनकर, आरू ने बहस करना बंद कर दिया और फिर कुछ सोचते हुए मुझसे कहा.

अर्चना बोली “भैया, क्या मैं अपनी एक सहेली को भी साथ लेकर चल सकती हूँ.”

लेकिन आरू की बात का मेरे कुछ जबाब देने के पहले ही सीरत ने उसे छेड़ते हुए कहा.

सीरत बोली “सिर्फ़ एक सहेली को क्यो. तू ऐसा कर अपनी पूरी स्कूल को साथ ले चल. भैया अभी सबके लिए बस बुला देते है.”

सीरत की बात सुनकर आरू का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. इस से पहले की फिर से दोनो की बहस सुरू हो पाती. मैने बीच बचाव करते हुए कहा.

मैं बोला “देख तू इसकी बातों मे मत. ये बेकार मे तुझे झगड़े के लिए उकसा रही है. क्या तू इसकी आदत नही जानती. तू जा और जल्दी से अपनी सहेली को ले आ. वरना सारा समय तेरा इसके सात बहस करने मे ही बीत जाएगा.”

मेरी बात सुनकर आरू ने अपनी जीभ बाहर निकाल कर सीरत को चिड़ाते हुए गाड़ी से बाहर निकल गयी. उसके जाते ही सीरत भी गाड़ी से उतरी और आगे आकर बैठ गयी. पहले मुझे लगा कि वो कुछ बात करने आई है.

लेकिन जब वो आकर चुप चाप बैठी रही तो, मुझे समझते देर नही लगी कि ये आरू को परेशान करने के लिए उसकी सीट पर आकर बैठी है. ये बात मेरे समझ मे आते ही मैने उस से कहा.

मैं बोला “चल तू, वापस जाकर अपनी सीट पर बैठ जा.”

मेरे ऐसा कहने का मतलब सीरत को समझ मे नही आया तो, उसने मुझसे कहा.

सीरत बोली “क्यो, मैने क्या किया. मैं तो चुप चाप बैठी हूँ.”

मैं बोला “मैं तेरे यहाँ आकर बैठने का मतलब अच्छे से समझ रहा हूँ. अब तू आरू को और परेशान मत कर और सीधे से जाकर अपनी सीट पर बैठ जा.”

मेरी बात सीरत के समझ मे आते ही उसने अपनी सफाई देते हुए कहा.

सीरत बोली “अरे भैया, मैं उसे परेशान कहाँ कर रही हूँ. बस थोड़ा सा मज़ाक कर रही हूँ.”

मैं बोला “नही, तूने उसके साथ बहुत मज़ाक कर लिया. अब कोई मज़ाक वजाक नही होगा.”

मेरे इतना बोलते ही सीरत हँसने लगी. उसके हँसने का कारण मुझे समझ नही आया तो मैने उस से कहा.

मैं बोला “मैने कोई हँसने वाली बात तो की नही है. जो तू मेरी बात सुनकर हंस रही है.”

सीरत बोली “भैया, आप सच मे ही आरू के भाई हो.”

मैं बोला “तू कहना क्या चाहती है. साफ साफ बोल, मैं कुछ समझा नही.”

सीरत बोली “यही कि आप भी आरू की तरह बात करने लगे हो.”

मैं बोला “तेरे कहने का क्या मतलब है.”

सीरत बोली “अभी आप बोले की मज़ाक वजाक होगा.”

मैं बोला “तो इसमे क्या हुआ.”

सीरत बोली “अब इतने भोले भी मत बनो. आपको पता है कि आरू भी ऐसे ही बात करती है. वो हर बात को उल्टा सीधा करके बोलती है. जैसे अभी कुछ देर पहले बोली थी कि, गिफ्ट विफ़्ट, पगली वगली वैसे ही आप भी बोले हो.”

सीरत की बात सुनकर, मैं भी अपनी हँसी नही रोक सका और तभी मुझे आरू अपनी सहेली के साथ आती दिखी तो, मैने सीरत से पिछे जाकर बैठने को कहा. लेकिन उसने कहा कि, वो आरू के कहते ही उसे उसकी सीट दे देगी.

मैने उसकी बात मान ली और कुछ ही देर मे आरू गाड़ी के पास आ गयी. लेकिन गाड़ी के पास आते ही सीरत को अपनी सीट पर बैठे देख कर आरू की भवें तन गयी. मगर सीरत पर इस सब का कोई असर नही पड़ा. वो आराम से बैठी मुस्कुराती रही.

इस से पहले की आरू झगड़ा सुरू करती. मैं गाड़ी से उतर कर उसके पास आ गया और उस की सहेली की तरफ देख कर, उस से कहा.

मैं बोला “आरू, अपनी सहेली से मुझे नही मिलवाओगी.”

मुझे अपने पास आते देख, आरू का ध्यान सीरत पर से हट गया था और जब मैने उस से उसकी सहेली से मिलने की बात की तो, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट वापस आ चुकी थी. उसने मुझे अपनी सहेली से मिलाते हुए कहा.

अर्चना बोली “भैया, ये मेरी सहेली निकिता है.”

आरू ने मुझे तो निक्की का परिचय दे दिया था. लेकिन निक्की को मेरा परिचय नही दिया था. इसलिए निक्की ये सब देख कर कुछ असमंजस मे थी. मैने उसकी ये हालत देखी तो उस से कहा.

मैं बोला “हेलो निक्की, मैं अजय आरू का सूरत वाला भाई हूँ.”

मेरे इतना बोलते ही निक्की के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और उसने तपाक से कहा.

निक्की बोली “तो आप है आरू के अजय भैया. लेकिन आप ड्राइवर की यूनिफॉर्म मे क्यो है.”

मैं बोला “हां मैं ही इसका अजय भैया हूँ. ये मुझसे बहुत नाराज़ थी और इसे मनाने के लिए मुझे ड्राइवर बनना पड़ गया.”

निक्की बोली “आरू सच ही कहती थी कि, आप उसके लिए कुछ भी कर सकते है.”

मैं बोला “इसमे नया क्या है. हर भाई अपनी बहन के लिए ये सब करता है. तुम्हारा भाई भी तो तुम्हारे लिए ऐसा ही कुछ करता होगा.”

मेरी बात सुनकर, निक्की कुछ उदास सी हो गयी. उसका उतरा हुआ चेहरा देख कर, मुझे लगा कि शायद मैं कुछ ग़लत कह गया. मैने बात को संभालने की कोसिस करते हुए निक्की से कहा.

मैं बोला “क्या हुआ. क्या मैने कुछ ग़लत कह दिया.”

मेरी बात के जबाब मे निक्की ने बड़ी ही मासूमियत से कहा.

निक्की बोली “मेरा कोई भाई नही है.”

निक्की की बात सुनकर मुझे उसके मासूम से दिल को होने वाले दर्द का अहसास हो चुका था. मैं किसी अपने के ना होने के दर्द से गुजर चुका था. इसलिए मैने उसका दर्द कम करने की नियत से कहा.

मैं बोला “अब ऐसा दोबारा मत बोलना. आरू तुम्हारी सबसे अच्छी सहेली है तो, फिर आरू का भाई भी तो तुम्हारा भाई ही हुआ ना. आज से तुम मुझे ही अपना भाई समझो.”

मेरी बातों को सुनकर निक्की की आँखों मे खुशी की चमक आ गयी. वो मुझे अपलक देखने लगी. मैने उसे इस तरह अपने आपको देखते देखा तो उस से कहा.

मैं बोला “ऐसे क्या देख रही हो.”

निक्की बोली “आरू हमेशा कहती थी मेरे भैया बहुत अच्छे है. आज देख भी लिया कि आप सच मे बहुत अच्छे है.”

मैं निक्की और आरू के साथ बात करने मे लगा था. उधर जब सीरत ने देखा कि हमारी बात ख़तम होने का नाम ही नही ले रही तो, उसने हम लोगों को अपनी बात सुनाते हुए सेलिना से कहा.

सीरत बोली “सेलू ले, भैया की टीम मे एक और पगली शामिल हो गयी.”

सीरत की बात सुनते ही सेलिना ने भी मज़ा लेते हुए कहा.

सेलिना बोली “दीदी सिर्फ़ पगली शामिल हुई है, या कोई अगली पगली शामिल हुई है.”

इतना बोल कर, सेलिना हँसने लगी. वो दोनो तो आरू का मज़ा लेना चाहती थी. लेकिन उनकी बात सुनकर निक्की को शायद ये लगा कि, वो लोग उसका मज़ाक उड़ा रही है. जिस वजह से उसका चेहरा उतर गया.

लेकिन जैसे ही सीरत ने निक्की का उतरा हुआ चेहरा देखा तो, उसे अपनी ग़लती का अहसास हुआ और उसने फ़ौरन अपने मज़ाक को संभालते हुए कहा.

सीरत बोली “सेलू, ज़्यादा हवा मे मत उड़. अब आरू अकेली नही है. अब निक्की भी उसके साथ है और भैया तो उन दोनो का ही साथ देगे. इसलिए अब इनसे पंगा लेना ठीक नही है.”

ये कहते हुए सीरत ने सेलिना को आँख मारकर निक्की के डरे हुए चेहरे की तरफ इशारा किया. जिसे देख कर सेलिना भी उसकी बात का मतलब समझ गयी और उसने डरने का नाटक करते हुए कहा.

सेलिना बोली “ओह्ह दीदी मैने तो ये सोचा ही नही था कि, आरू की सहेली भी आरू के जैसी ही होगी. आप ठीक कहती हो अभी आरू से पंगा लेना ठीक नही है.”

सीरत और सेलिना की की बात को सुनकर निक्की को लगा कि, वो लोग उसके साथ होने से डर गयी है. ये देख कर उसके चेहरे की रौनक वापस आ गयी और मेरे चेहरे पर भी मुस्कुराहट तैर गयी.

मुझे ये देख कर खुशी हो रही थी कि, मेरी दोनो बहने भले ही कितनी भी शरारत करती हो. मगर कभी किसी के दिल को ठेस नही लगा सकती है. मैने आरू और निक्की को गाड़ी मे बैठने को कहा और पीछे का दरवाजा खोला तो निक्की अंदर जाकर बैठ गयी.

लेकिन आरू अभी भी बाहर खड़ी रही. मैं जानता था, वो पिछे नही बैठेगी. इसलिए मैने आगे का दरवाजा खोला और सीरत को पिछे जाकर बैठने को कहा. सीरत मुस्कुराती हुई पिछे जाकर बैठ गयी और आरू आकर आगे बैठ गयी.

आरू के बैठने के बाद मैं भी गाड़ी मे आकर बैठ गया और गाड़ी आगे बढ़ा दी. आरू मेरे से बात करने लगी और सीरत निक्की से बात करके उस का डर दूर भगाने लगी. बीच बीच मे सेलिना कभी मेरी और आरू की बात मे तो, कभी सीरत आरू निक्की की बात मे टाँग अड़ा कर अपने होने का अहसास दिलाती रही.

बस इसी तरह बातों बातों मे पता ही नही चला कि हम कब एस्सेल वर्ल्ड पहुच गये. वहाँ पहुच कर मैने सबको गाड़ी से उतारा और कार पार्किंग देखने लगा. तभी सीरत ने कहा कि, जब तक आप कार पार्क करते है. तब तक हम लोग जाकर टिकेट ले लेते है.

मैने उसे टिकेट के पैसे दिए और मैं कार पार्क करने चला गया. लेकिन जब मैं कार पार्क करके आया तो आरू और निक्की अब भी वही खड़ी थी. उन्हे वही खड़े देख कर मैने उस से कहा.

मैं बोला “तुम लोग अभी तक यही खड़ी हो. तुम लोग उनके साथ क्यो नही गयी.”

मेरी बात सुनकर आरू ने गुस्साते हुए कहा.

अर्चना बोली “भैया 5 टिकेट लेने के लिए 5 लोगों का जाना ज़रूरी नही है. कोई एक भी जाकर 5 टिकेट ले सकता है.”

आरू की बात सुनकर मैं हँसे बिना ना रह सका. मैने उसे अपनी सफाई देते हुए कहा.

मैं बोला “मैने तो बस यू ही पुच्छ लिया था. तू इतना नाराज़ क्यो हो रही है. चल अब ये बात छोड़ और ये बता तुझे मेरा गिफ्ट मिला या नही.”

ये कह कर मैं वही पास खड़ी अक्तिवा पर बैठ गया और आरू का जबाब सुनने लगा. आरू ने मेरी बात के जबाब मे कहा.

अर्चना बोली “नही, मैने किसी के गिफ्ट नही देखे. आप ही ने तो रात को मुझे गुस्सा दिला दिया था.”

मैं बोला “लेकिन तेरा गुस्सा तो मुझसे था ना. फिर बाकी सब के गिफ्ट पर अपना गुस्सा क्यो निकाला.”

अभी आरू मेरी बात का कोई जबाब दे पाती, उस से पहले ही निक्की ने बीच मे बोलते हुए कहा.

निक्की बोली “भैया, इसने घर मे ही नही. स्कूल मे भी आपका गुस्सा सब पर उतारा है. स्कूल मे भी जिस किसी ने इसको बर्थ’डे विश किया. इसने उस पर ही गुस्सा करते हुए कहा कि, मेरा कोई जनम दिन वनम दिन नही है.”

निक्की की बात ने मुझे सोच मे डाल दिया था. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, आरू की इस बात के लिए मैं खुशी महसूस करू या फिर उस पर नाराज़गी जताऊ. मेरे लिए कुछ भी फ़ैसला कर पाना मुस्किल था.

लेकिन मेरी इस मुस्किल को निक्की ने आसान कर दिया. उसने जब मुझे आरू से कुछ ना कहते देखा तो, उसने मुझसे कहा.

निक्की बोली “ये क्या भैया. आप इसको कुछ समझते क्यो नही. क्या इसका ऐसा करना आपको अच्छा लगा.”

मैं बोला “हां, मुझे ये देख कर बहुत अच्छा लगा कि, मेरी छोटी बहन के दिल मे मेरे लिए कितना प्यार है. मैं मानता हूँ कि, उसने सबका दिल दुखा कर ग़लत किया है. लेकिन मैं वादा करता हूँ कि, अब वो किसी के साथ ऐसा दोबारा नही करेगी. क्यो आरू मैने ठीक कहा ना.”

मेरी बातों से आरू को अपनी ग़लती का कोई अहसास नही हुआ. लेकिन उसने मेरी बात को रखते हुए कहा.

अर्चना बोली “भैया मैने किसी के साथ कोई ग़लत नही किया. मेरा दिल नही था अपना जनम दिन मनाने का तो मैं क्या करती. लेकिन मैं आपकी बात नही काटुगी और ना ही आपको कभी किसी के सामने झुकने दुगी. मैं कोसिस करूगी कि ऐसा दोबारा ना हो.”

आरू की बात सुनकर निक्की हँसने लगी. उसे हंसते देख कर मैं और आरू दोनो उसकी तरफ देखने लगे. उसने अपनी बात को साफ करते हुए कहा.

निक्की बोली “देख लिया ना भैया. ये अभी भी कह रही है कि, मैं कोसिस करूगी कि, ऐसा दोबारा ना हो. इसने ऐसा ना करने का कोई वादा नही किया है.”

निक्की की बात सुनकर आरू गुस्से से उसे देखने लगी. लेकिन मैने आरू की तरफ़दारी करते हुए कहा.

मैं बोला “आरू को कोई वादा करने की ज़रूरत नही है. मेरे लिए उसका ये ही कहना काफ़ी है कि, वो मुझे कभी किसी के सामने झुकने नही देगी.”

मेरी बात को सुनकर, एक तरफ निक्की को आरू की बात की गहराई का अहसास हो गया तो, दूसरी तरफ आरू का चेहरा भी खुशी से खिल उठा. माहौल को सही होते देख, मैने दोनो से कहा.

मैं बोला “हम यहाँ कब से बात कर रहे है. मगर अभी तक सीरू और सेलू टिकेट लेकर नही आई.”

मेरी बात सुनते ही दोनो ने उस तरफ देखा, जहा सीरत और सेलिना टिकेट के लिए गयी थी. फिर आरू ने उस तरफ इशारा करते हुए कहा.

अर्चना बोली “भैया, वो देखिए, दीदी लोग आ रही है.”

मैने उस तरफ देखा तो सीरत और सेलिना हमारी ही तरफ आ रही थी. उनके आगे आगे एक लड़की चल रही थी. उसकी उमर लगभग 20-21 साल होगी. उसने उस समय सफेद रंग का चूड़ीदार सलवार सूट पहना हुआ था. उसके हाथ मे पीले रंग की चूड़ियाँ और माथे पर उसी रंग की बिंदी चमक रही थी.

जिसकी वजह से उसका गोरा रंग और भी ज़्यादा निखर गया था. मैने उसे देखा तो, देखता रह गया. मेरे साथ ऐसा जिंदगी मे पहली बार हो रहा था की, मैं किसी लड़की को देखने से खुद को रोक नही पा रहा था.

वो बड़ी तेज़ी से हमारी ही तरफ चली आ रही थी. वो जैसे जैसे हमारे करीब आ रही थी. वैसे वैसे मेरे दिल की धड़कने बढ़ती जा रही थी. मैं उसके चेहरे से नज़रे हटाना चाहता था. लेकिन मेरा दिल मेरे काबू में नही था.

मैं अपनी सुध बुध खो बैठा था और बस एक-टक उसे देखे जा रहा था. लेकिन उस लड़की ने हमारे पास आते ही ऐसा बॉम्ब फोड़ा कि मेरे होश तो काबू मे आ गये. मगर आरू ज़रूर बेकाबू हो गयी.

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वो लड़की चलते हुए मेरे पास आकर खड़ी हो गयी. एक पल के लिए मेरा दिल धक करके रह गया. मैं अभी भी उसे ही देख रहा था. उसने एक नज़र मेरी तरफ देखा और फिर अपने बॅग मे कुछ देखने लगी.

कुछ ही देर मे उसके हाथ मे टिकेट और कुछ पैसे आ गये. उसने वो टिकेट और पैसे मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा.

लड़की बोली “ये टिकेट और पैसे आपकी में साहब ने दिए है. उन्होने कहा कि, वो अपने भैया के साथ घर जा रही है. आप अपनी दोनो बहनो को आराम से घुमा कर, गाड़ी घर ले आइयेगा.”

आरू शायद उस लड़की की बात को समझ रही थी. इसलिए उसके माथे पर बल पड़ने लगे थे. लेकिन उस लड़की की सारी बातें मेरे सर के उपर से गुजर गयी. जब मेरे समझ मे कुछ नही आया तो, मैने उस लड़की से कहा.

मैं बोला “आप कौन है और किस के बारे मे बोल रही है. मेरी कुछ समझ मे नही आ रहा है.”

मेरी बात सुनकर लड़की ने एक बार पीछे पलट कर यहाँ वहाँ देखा. जैसे वो किसी को ढूँढ रही हो. लेकिन जब उसे वो नज़र नही आया, जिसे वो देखने की कोसिस कर रही थी तो, उसने मुझसे कहा.

लड़की बोली “मैं वहाँ अपनी सहेली के साथ टिकेट ले रही थी. तभी मेरी सहेली ने आपको मेरी अक्तिवा पर बैठे देखा और मुझे अक्तिवा पार्क करने को कहा तो, मैं टिकेट लेने के बाद अक्तिवा पार्क करने यहाँ आने लगी. आपकी दोनो में साहब भी वही थी. उनने हमारी बात सुनी तो….”

इतनी बात कह कर लड़की बात करते करते चुप हो गयी और आरू की तरफ देखने लगी. अब तक मैं समझ चुका था कि, ये सब किया धरा सीरू और सेलू का है. इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला “उन दोनो ने आपसे क्या कहा.”

मेरी बात सुनकर, उसने एक बार फिर आरू की तरफ देखा, जो बड़ी ध्यान से हमारी बात सुन रही थी. शायद वो लड़की चाहती थी कि, आरू उसकी बात ना सुन सके इसलिए उसने मेरे और करीब आकर धीरे से कहा.

लड़की बोली “आपकी मेम साहब ने कहा कि, हमारे ड्राइवर की छोटी बहन का दिमागी संतुलन ठीक नही है और आज उसका जनम दिन था इसलिए वो लोग उसको यहाँ घुमाने लाई थी. लेकिन ज़रूरी काम की वजह से उनको अपने भाई के साथ जाना पड़ रहा है. इसलिए उन्होने आप लोगों के यहाँ घूमने के लिए ये टिकेट और पैसे मेरे हाथ से भिजवाए है.”

उस लड़की की बात सुनते ही सीरू और सेलू की शरारत पर मुझे बहुत गुस्सा आया. लेकिन तभी मेरी नज़र आरू पर पड़ी. गुस्से से उसके नथुने फदक रहे थे और चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था. शायद उसने लड़की की बात सुन ली थी.

मैने उसे आँखों से शांत रहने का इशारा किया और लड़की की तरफ देख तो वो भी आरू का गुस्से से तमतमाया चेहरा देख कर घबरा गयी थी. उसने धीरे से मुझसे कहा.

लड़की बोली “लगता है आपकी बहन को दौरा पड़ रहा है. आप उसको संभालिए, मैं अपनी अक्तिवा पार्क करने जाती हूँ.”

लड़की की बात सुनते ही मैं उसकी अक्तिवा से हट गया और लड़की आरू को देखते हुए अक्तिवा लेकर वहाँ से चली गयी. उसके जाते ही आरू का गुस्सा फट पड़ा. उसने गुस्से मे तमतमाते हुए कहा.

अर्चना बोली “देख लिया ना भैया आपने. मैं इसलिए इनकी कोई बात नही मानती हूँ. मैं उन दोनो को छोड़ूँगी नही.”

आरू की बात सुनकर मैने सीरू और सेलू को यहा वहाँ देखा. लेकिन दोनो कही नज़र नही आई. जब मुझे वो दोनो कही नज़र नही आई तो, मैने निक्की से कहा.

मैं बोला “निक्की, सीरू और सेलू कहाँ है.”

निक्की बोली “भैया दोनो दीदी तो हमारे सामने ही अंदर चली गयी.”

निक्की की बात से मुझे याद आया कि, मैं उनके आगे आने वाली लड़की मे इतना खो गया था कि, मैं देख ही नही सका की, सीरू और सेलू कब उसके पीछे से गायब हो गयी. लेकिन अब मुझे उनकी इस हरकत पर बहुत गुस्सा आ रहा था.

मगर यहाँ आरू भी उनकी इस हरकत से बहुत गुस्से मे थी और ऐसे मे मेरा भी गुस्सा होना उसके गुस्से को ओर भी ज़्यादा भड़का देता. लेकिन ऐसे समय मे आरू को समझाना बेकार था. इसलिए मैने आरू और निक्की से कहा.

मैं बोला “रूको, हम भी इनको अब अच्छा सबक सिखाएगे. चलो अंदर चल कर पहले उनको ढूँढते है.”

मेरी बात से दोनो को लगा कि, मैं सच मे उन दोनो को सबक सिखाना चाहता हूँ. इसलिए दोनो बड़े जोश मे मेरे साथ अंदर आ गयी. लेकिन अंदर ढूँढने पर भी उन दोनो का कोई पता नही चला.

जब वो दोनो हमें कही नज़र नही आई तो, मैने आरू और निक्की से कहा कि, हम क्यो उनको ढूँढने मे अपना समय बर्बाद करे. उनको जब मिलना होगा वो मिल जाएगी. तुम लोग उनके पीछे अपना मज़ा खराब मत करो.

मेरी बात उन पर असर कर गयी और वो वहाँ का मज़ा लेने लगी. कुछ ही देर मे आरू ने झूले का बोला तो, मैने उन दोनो को झूले पर बैठा दिया और उनको झूलते हुए देखने लगा.

अभी आरू और निक्की झूला ही झूल रही थी कि, तभी ना जाने कहाँ से सीरू और सेलू मेरे पास आकर हँसने लगी. मैने उनको हंसते देखा तो, उन पर गुस्सा करते हुए कहा.

मैं बोला “ये तुम दोनो ने अच्छा नही किया और अब हंस भी रही हो. ऐसा करते हुए तुम दोनो को ज़रा भी शरम नही आई.”

मेरी बात को सुनकर, उन्हे ऐसा लगा कि, मैं गुस्सा होने का दिखावा कर रहा हूँ. क्योकि मैं अक्सर आरू के सामने उन पर गुस्सा होने का नाटक किया करता था. इसलिए सीरू ने अभी भी मेरे गुस्से को गंभीरता से ना लेते हुए कहा.

सीरत बोली “क्या भैया, ज़रा सा मज़ाक ही तो किया है. हम तो बस थोड़ा सा मज़ा ले रहे थे.”

सीरत का ये जबाब सुनकर, मुझे और भी ज़्यादा गुस्सा आ गया और जिंदगी मे पहली बार मैं अपनी तीनो बहनो मे से किसी पर गुस्सा कर बैठा. मैने सीरत के उपर चिल्लाते हुए कहा.

मैं बोला “इस तरह का बेहूदा मज़ाक करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई. तुम दोनो पढ़ी लिखो गँवार हो. जिन्हे ये भी नही पता कि, छोटी बहन के साथ कैसा मज़ाक किया जाता है और कैसा मज़ाक नही किया जाता है. आज तुम लोगों को उस मासूम की बड़ी बहन कहते हुए भी मुझे शरम आ रही है.”

मैं गुस्से मे जो मूह मे आया, उन दोनो को बोलता चला गया. मुझे गुस्सा होते देख, जहा सेलिना सहम गयी, वही सीरत की आँखों से टाप टॅप आँसू गिरने लगे. मैं इतना ज़्यादा गुस्से मे था कि, मुझे आरू और निक्की के आने का अहसास नही हुआ.

आरू ने जब मुझे उन दोनो पर गुस्सा करते देखा और सीरत को रोते देखा तो, उसने धीरे से कहा.

अर्चना बोली “सॉरी भैया, मैं दीदी से नाराज़ नही हूँ. आप भी इन पर गुस्सा मत करो.”

आरू के पास होने के अहसास से ही मेरा गुस्सा कम हो गया और तब मुझे अहसास हुआ की, अपनी एक बहन की तरफ़दारी करने मे मैने दूसरी बहन को रुला दिया है. अब रुलाया मैने था तो, मनाना भी मुझे ही था. मैने उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा और उसे सीने से लगाते हुए कहा.

मैं बोला “पागल, मेरे ज़रा से गुस्सा करने पर ही रोने लगी. क्या तुझ पर गुस्सा करने का मेरा हक़ नही है.”

मेरी इस प्यार से भरी बात ने सीरू पर असर किया. उसने अपने आँसू पर काबू करते हुए कहा.

सीरत बोली “भैया, मेरा इरादा आपको या आरू को ज़रा भी दुख पहुचाने का नही था. मैं तो बस थोड़ी सी शरारत करके आरू को परेशान कर रही थी. मुझे नही पता था कि, मेरी शरारत आपको इतना दुख पहुचा देगी वरना मैं ऐसा कभी नही करती.”

मैने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसे समझाते हुए कहा.

मैं बोला “मुझे तुम्हारा शरारत करना ज़रा भी बुरा नही लगा. लेकिन जिस बात को लेकर तुमने शरारत की, मुझे वो बात बुरी लगी. मेरी तीन बहनो मे ही मेरी सारी दुनिया सिमटी है. मैं तुम लोगों के साथ किसी बुरी बात होने की कल्पना भी नही कर सकता. फिर आरू मे तो मेरी जान बस्ती है. ऐसे मे जब उस लड़की ने आरू का दिमागी संतुलन खराब होने की बात की तो, तुम ही सोचो मेरे उपर क्या बीती होगी.”

मेरे गुस्सा होने की वजह पता चलते ही सीरू ने अपनी ग़लती मानते हुए कहा.

सीरत बोली “सॉरी भैया, अब ऐसा दोबारा नही होगा.”

सीरू के मूड सही होते ही सेलू ने चुटकी लेते हुए बड़ी ही मासूमियत से कहा.

सेलू बोली “भैया मैं आप से नाराज़ हूँ.”

मैं बोला “अब तुझे क्या हुआ. मैने ऐसा क्या किया जो तू मुझसे नाराज़ है.”

सेलू बोली “आप आरू को प्यार करते हो. सीरू को गुस्सा किया और उसे भी प्यार किया. लेकिन मुझे ज़रा भी प्यार नही करते. यदि आपको गुस्सा करने से ही प्यार आता है तो आप मुझे मार लीजिए. लेकिन मुझे भी इन दोनो की तरह प्यार कीजिए.”

उसकी बात सुनते ही सब हँसने लगे और मैने उस पर झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

मैं बोला “यहाँ सबके सामने तेरी पिटाई नही कर सकता ना. लेकिन तू घर चल फिर तेरी अच्छे से पिटाई करता हूँ.”

मेरी बात सुनकर भी एक बार फिर सबके ठहाके गूँज गये. उसके बाद मैने सब से कहा.

मैं बोला “क्या अब हम ऐसे ही बात करते रहेगे या तुम लोग यहाँ आने का कुछ मज़ा भी लोगे.”

मेरी इस बात के जबाब मे सीरत ने कहा.

सीरत बोली “भैया, असली मज़ा अभी सुरू कहाँ हुआ. बस थोड़ा इंतजार करो. फिर सबको बहुत मज़ा आने वाला है.”

मैं बोला “तेरे कहने क्या मतलब.”

लेकिन मेरी इस बात का जबाब सीरत की जगह सेलिना ने देते हुए कहा.

सेलिना बोली “मतलब भी समझ मे आ जाएगा. बस थोड़ा इंतजार करिए.”

ये कह कर दोनो टाइम देखने लगी. उनकी इस हरकत से समझ मे आ रहा था कि, इसमे भी दोनो की कोई शरारत है. मैने दोनो को धमकाते हुए कहा.

मैं बोला “सच सच बोलो, अब तुम दोनो ने क्या शरारत की है.”

मेरी बात सुनकर दोनो ने पहले मेरे चेहरे को गौर से देखा कि, मैं गुस्से मे तो नही हूँ. जब उन्हे लगा कि, अब मैं गुस्से मे नही हूँ तो, सीरू ने कहा.

सीरत बोली “सॉरी भैया, हम ने कोई शरारत नही की है. मगर बहुत जल्दी मज़ा आने वाला है.”

अभी मेरी उनसे इसी बात को लेकर बात चल रही थी कि, तभी सेलू चाहक उठी और उसने सीरू को कुछ इशारा किया. सीरू ने उसके इशारे को समझते ही मेन गेट की तरफ देखा और फिर हम से कहा.

सीरत बोली “भैया, वो देखिए असली मज़ा. जिसके लिए हम आपको यहाँ लाए थे.”

उनकी बात सुनते ही मैने मेन गेट की तरफ देखा और सामने का नज़ारा देखते ही मेरे होश उड़ गये. वही आरू और निक्की भी सामने का नज़ारा आँखें फाड़ कर देख रही थी. जबकि सीरू और सेलू हमे देख कर मुस्कुरा रही थी.
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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सामने अमन निशा के साथ बड़ी ही स्टाइल के साथ अंदर आ रहा था. उसने अभी तक घर मे किसी को भी निशा के बारे मे नही बताया था. यही वजह थी कि आरू अमन के साथ निशा को देख कर चौक गयी थी.

लेकिन अब सोचने की बात ये थी कि, सीरू और सेलू निशा के बारे मे कैसे जानती है. उन्हे कैसे पता था कि आज अमन और निशा यहाँ आने वाले है. मगर अभी ये सब मालूम करने का समय नही था. अभी तो बस ये देखना था कि, अमन अब इन सबका सामना कैसे करता है.

मैं बस एक दर्शक की तरह अमन और निशा को देख रहा था. जो अपनी धुन मे चले आ रहे थे. आरू को हैरत मे पड़े देख कर, सीरू ने उस से कहा.

सीरत बोली “ऐसे मूह फाडे क्या देख रही है. वो कोई अजूबा नही, हमारी होने वाली भाभी है.”

इधर सीरू का ये कहना हुआ और उधर अमन की नज़र हम पर पड़ गयी. हम पर नज़र पड़ते ही अमन के बढ़ते हुए कदम रुक गये. अमन को यूँ रुकते देख कर, निशा ने उसकी नज़रों का पीछा किया और मुझे अपने सामने पाया.

निशा मेरे अलावा किसी को जानती नही थी. इसलिए मुझे ड्राइवर की यूनिफॉर्म मे देख कर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. उसने अमन का हाथ पकड़ा और उसे खिचते हुए मेरे पास ले आई. उसने पास आते ही हँसते हुए मुझसे कहा.

निशा बोली “अजजी ये क्या हुलिया बना रखा है. तुम कब आए और हमें बताया क्यो नही.”

मेरी तो सोच के तोते अमन और निशा को यहाँ देख कर ही उड़ गये थे. इसलिए मैं निशा की इस बात का कोई जबाब ना दे सका. मुझे कुछ ना कहते देख, निशा ने फिर कहा.

निशा बोली “अरे अजजी, कुछ बोलते क्यो नही. मैं तुमसे कुछ पूछ रही हूँ. तुम यहाँ कैसे और ये सब कौन है.”

मैने निशा की इस बात का जबाब देने का सोचा. लेकिन मेरे कुछ बोलने के पहले ही सीरू ने निशा से कहा.

सीरत बोली “हम चारों अजय भैया की बहने है और इन्हो ने ये हुलिया हमें खुश करने के लिए ही बनाया है. लेकिन इनसे इतना सवाल करने वाली आप कौन है.”

सीरू के मूह से मेरी बहन होने की बात सुनकर, निशा चौक गयी. क्योकि वो अच्छे से जानती थी कि, अमन की 3 बहनो के सिवा मेरी कोई और बहन नही है. लेकिन यहाँ चार लड़कियाँ खुद को मेरी बहन कह रही थी और उस से उसका परिचय पूछ रही थी. उसने परेसानी की हालत मे सीरू की बात का जबाब देते हुए कहा.

निशा बोली “हम दोनो अजजी के फ्रेंड है. लेकिन अजजी ने कभी मुझसे आप लोगों के बारे मे कुछ नही बताया.”

निशा की इस बात के जबाब मे सीरू ने कहा.

सीरत बोली “हम ने आपका परिचय पूछा था. अमन भैया को तो हम अच्छे से जानते है. क्या उन्होने भी आपको हमारे बारे मे कुछ नही बताया.”

सीरू की बात सुनकर निशा अमन की तरफ सवालिया नज़रों से देखने लगी. लेकिन अमन की चोरी पकड़ी गयी थी और उसकी हालत भी मेरे जैसी ही थी. उसे भी कुछ समझ नही आ रहा था कि, वो निशा से कैसे कहे कि, वो तीनो उसकी बहन है.

अमन की परेसानी देखते हुए, मुझे लगा कि, यदि निशा को इनका नाम मालूम पड़ जाए तो, वो समझ जाएगी कि, ये तीनो अमन की बहनें है. मैने स्तिथि को संभालने की कोसिस करते हुए कहा.

मैं बोला “सॉरी निशा, मैं तुमको अपनी बहनों से मिलाना भूल गया था. लो अब मैं तुमको इन सब से मिला देता हूँ.”

लेकिन सीरू शायद मेरी इस चालाकी को समझ गयी थी. उसने फ़ौरन मेरी बात को बीच मे से ही काटते हुए कहा.

सीरत बोली “रूको भैया. हम अपना परिचय खुद दे देते है. लेकिन पहले इनका पूरा परिचय तो ले ले.”

सीरू की बात से निशा कुछ परेशान सी लगने लगी. फिर भी उसने अपना परिचय देते हुए कहा.

निशा बोली “मैं डॉक्टर निशा हूँ. अमन के हॉस्पिटल मे ही उसके साथ हूँ.”

इतना बोल कर, निशा चुप हो गयी. लेकिन सीरू ने उस से कहा.

सीरत बोली “और.”

निशा बोली “और क्या.”

सीरत बोली “आपने ये तो बता दिया कि, आप अजय भैया की फरन्ड है. लेकिन ये नही बताया कि अमन भैया आपके फरन्ड है या नही.”

सीरू के इन सवालों से निशा को कुछ उलझन सी हो रही थी. इसलिए सीरू के इस सवाल का जबाब उसने सीधे सीधे देते हुए कहा.

निशा बोली “अमन और मैं जल्दी ही शादी करने वाले है. इतना काफ़ी है या और भी कुछ जानना है.”

निशा की बात सुनकर, सीरू और सेलू के साथ मैं भी अपनी हँसी नही रोक सका. निशा को कुछ भी समझ नही आ रहा था.वही आरू कभी निशा को तो, कभी अमन को देख रही थी. मैने आरू को ऐसे देखा तो, उस से कहा.

मैं बोला “अब बस भी कर, क्या इन दोनो को खा जाएगी.”

मेरी बात को सुनकर, आरू ने अमन की तरफ देखते हुए कहा.

अर्चना बोली “भैया खाना तो आज आप सबको छोटे दादू खिलाएगे. जब मैं उनको ये सब बातें बताउन्गी.”

आरू की ये बात सुनकर, सीरू समेत सबके चेहरे की हवाइयाँ उड़ गयी. अमन को भी लगा कि, उसकी सारी मेहनत पानी मे मिलने वाली है. उसने फ़ौरन आरू के पास आकर, उसे बहलाते हुए कहा.

अमन बोला “अरे मैं तो तुम सबको निशा से मिलवाने ही वाला था. मैं ने अजजी से कहा भी था कि, कोई अच्छा सा दिन देख कर, इन सबको निशा से मिला देते है. तुम्हे यकीन ना हो तो, अजजी से पूछ लो.”

लेकिन आरू पर अमन की इस बात का कोई असर नही पड़ा. उसने अमन को टका सा जबाब देते हुए कहा.

अर्चना बोली “मुझे किसी से कुछ नही पूछना. अब जो भी पुछेगे, रात को छोटे दादू ही पूछेगे.”

इतना कहते हुए आरू ने सबसे नज़र बचा कर मुझे आँख मार दी. उसकी इस हरकत से मुझे तो समझ मे आ गया कि, वो मज़ाक कर रही है. लेकिन बाकी सब की हालत खराब थी और निशा ये सोच सोच कर परेशान थी कि, ये सब क्या हो रहा है.

अमन ने आरू को मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन जब आरू नही मानी तो, उसने मुझसे कहा.

अमन बोला “अजजी ये सब तेरा ही किया धरा है. अब तू ही मुझे इस सब से बाहर निकलेगा. तेरे सिवा ये किसी की बात नही सुनेगी. अब तू ही इसे समझा.”

अमन की बात के जबाब मे मैने उस से कहा.

मैं बोला “ये सब मेरा किया हुआ नही है. ये सब सीरू और सेलू का किया धरा है. अब इन से ही बोलो कि, ये तुम्हे इस मुसीबत से बाहर निकाले.”

अभी मैं आगे कुछ और बोल पाता की इस से पहले ही वो अक्तिवा वाली लड़की अपनी सहेली के साथ हमारे पास आ गयी. मैने उसे देखा तो, मैं बात करना भूल कर उसे ही देखने मे खो गया.

इधर सीरू और सेलू की हालत तो पहले ही औरु ने खराब कर रखी थी. उस पर इस लड़की को देख कर वो कुछ और भी परेशान सी हो गयी. उस लड़की ने हमारे पास आते ही उन दोनो से कहा.

लड़की बोली “अरे आप दोनो तो चली गयी थी. फिर यहाँ वापस कैसे आ गयी. सब ठीक तो है ना.”

उसकी बात सुनकर, सीरू और सेलू ने कुछ बोलते नही बना. वही निशा और भी हैरत मे आ गयी कि, अब ये नयी बला क्या आ गयी. इधर जब आरू ने देखा कि सीरू और सेलू उसको कोई जबाब नही दे पा रही है तो, उसने उस लड़की से कहा.

अर्चना बोली “मैं बताती हूँ ये लोग यहाँ वापस कैसे आई. आपके जाते ही मुझे दौरा पड़ गया था. तब भैया ने इनको कॉल करके मेरे बारे मे बताया तो, ये अपने भैया को लेकर यहाँ आ गयी. इनके भैया डॉक्टर है.”

ये कह कर आरू ने अमन की तरफ इशारा किया. लड़की ने अमन से नमस्ते किया और फिर आरू की तबीयत पुच्छ कर चली गयी. उसके जाते ही उसने मुझे देखा. मैं अब भी उस लड़की को जाते हुए देख रहा था.

अमन को कुछ समझ मे नही आया कि ये लड़की कौन है. उसने मुझे पूछा तो, मेरा ध्यान उसकी तरफ नही था. तब आरू ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे हिलाया तो मैने उस लड़की को देखना बंद किया और सब को देखने लगा.

अमन ने फिर पूछा कि वो लड़की कौन थी तो, आरू ने उसे सारी बात बता दी. जिसे सुनकर, अमन और निशा हँसे बिना ना रह सके. लेकिन जल्दी ही आरू पर नज़र पड़ते ही उनकी हँसी थम गयी. अमन ने सीरू और सेलू से आरू को समझाने के लिए कहा.

अमन की बात सुनकर, वो दोनो आरू को समझाने की कोसिस करती रही. लेकिन आरू अपनी ज़िद पर ही अडी रही. अब तक निशा को भी सारी बात समझ मे आ चुकी थी और वो भी आरू की बात से परेशान हो गयी थी.

मैं चुप चाप खड़ा इस सब का मज़ा ले रहा था. लेकिन जब देखा कि, अब कुछ ज़्यादा ही मज़ाक हो चुका है तो, मैने आरू को मज़ाक ख़तम करने का इशारा किया और उस से कहा.

मैं बोला “आरू, क्या तू छोटे दादू को ये बात बताए बिना नही मानेगी.”

अर्चना बोली “हां, मैं ये बात हर हालत मे छोटे दादू को बताउन्गी.”

मैं बोला “अच्छा तू बताना चाहती है तो बता देना. लेकिन तू छोटे दादू को क्या बताएगी. ये तो बता दे.”

मेरी बात सुनकर आरू ने अमन और निशा की तरफ देखा और फिर उन्हे घूरते हुए कहा.

अर्चना बोली “मैं छोटे दादू से बोलुगी कि, मुझे दोनो भाभी पसंद है.”

आरू की बात सुनते ही सबके चेहरे खिल उठे और सबके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. किसी ने आरू की बात पर गौर नही किया था. लेकिन आरू की बात ने निशा को असमंजस मे डाल दिया था. उस ने बड़ी हिम्मत करके आरू से कहा.

निशा बोली “अभी तुमने ये कहा ना कि, तुमको दोनो भाभी पसंद है.”

अर्चना बोली “हां.”

अब सबका ध्यान आरू की बात पर गया. लेकिन कोई भी उसकी बात का मतलब नही समझ सका. निशा ने परेशान होते हुए उस से कहा.

निशा बोली “दोनो भाभी से तुम्हारा क्या मतलब. क्या तुमने अमन के लिए किसी और को भी पसंद किया है.”

निशा की बात सुनकर आरू हँसने लगी. उसने हँसते हुए निशा की बात का जबाब देते हुए कहा.

अर्चना बोली “भाभी, आप ये क्या सोच रही है. मैने ऐसा तो नही कहा है. दोनो भाभी से मेरा मतलब अमन भैया के लिए आप और अजय भैया के लिए वो अक्तिवा वाली भाभी से था.”

आरू की बात सुनकर सबकी नज़र मेरी तरफ और मेरी नज़र आरू की तरफ चली गयी. मैने चौंकते हुए आरू से कहा.

मैं बोला “ये क्या बोले जा रही है तू.”

मैं अभी इतना ही बोल पाया था कि, सेलू ने बात को बीच मे काटते हुए कहा.

सेलिना बोली “भैया, आरू ठीक ही तो बोल रही है. मुझे भी भाभी पसंद है.”

मैं बोला “तुम लोग ये क्या पागलपन कर रही हो. किसी भी राह चलती लड़की को अपनी भाभी बना रही हो.”

मेरी बात सुनकर, सीरू ने भी उन दोनो की तरफ़दारी करते हुए कहा.

सीरत बोली “भैया, इस बात मे मैं भी इन दोनो के साथ हूँ. मुझे भी भाभी पसंद है.”

सीरू की बात पर मैने झुंझलाते हुए अमन से कहा.

मैं बोला “इन सबका तो दिमाग़ फिर गया है. तू ही इनको कुछ समझा.”

मेरी बात के जबाब मे अमन ने कहा.

अमन बोला “मैं इनको क्या समझाऊ. मुझे तो खुद भाभी बहुत पसंद आई है.”

अमन की बात सुनने के बाद निशा से भी चुप ना रहा गया और उसने भी अपनी सहमति देते हुए कहा.

निशा बोली “और मुझे भी वो पसंद है. बेचारी अभी से अपने होने वाले पति की बहन का कितना ख़याल कर रही थी.”

निशा की बात सुनते ही सब हँसने लगे. सबको हंसते देख, निक्की जो अब तक चुप थी. उसने भी अपनी ज़ुबान खोलते हुए कहा.

निक्की बोली “सब की तरह मुझे भी भाभी बहुत पसंद आई. लेकिन अजय भैया को तो भाभी हम सबसे ज़्यादा पसंद है.”

निक्की की बात सुनकर, मैं सोच मे पड़ गया कि अब ये कौन सा नया बॉम्ब फोड़ने वाली है. वही सब निक्की की इस बात का मतलब समझने की कोसिस करने लगे और निशा ने उस से कहा.

निशा बोली “तुम ये कैसे कह सकती हो कि, अजजी को वो सबसे ज़्यादा पसंद है.”

निक्की ने मेरी तरफ देखा और फिर धीरे से कहा.

निक्की बोली “वो इसलिए कि जब भी भाभी भैया के सामने आते है. वो उनको देखते ही रहते है. जब हम लोग बाहर थे, तब भी भैया उनको देखने मे इतना खो गये थे कि, दीदी लोग कब अंदर चली आई, ये तक इनको पता नही चला और अभी भी जब भाभी यहाँ आई थी, तब भी भैया सिर्फ़ उनको ही देखे ही जा रहे थे.”

निक्की की बात सुनकर सब मुस्कुराने लगे और मेरे पास अब सफाई देने के लिए कुछ नही बचा था. निक्की ने मेरी पोल सबके सामने खोल कर रख दी थी. मैने मुस्कुराते हुए निक्की के कान पकड़ कर उस से कहा.

मैं बोला “गोपी चन्द जासूस की बच्ची. तुझे शरम नही आई, अपने भैया की जासूसी करते हुए.”

निक्की बोली “ओह्ह भैया, मेरा कान छोड़ो, मुझे दर्द हो रही है. कान पकड़ना है तो, सीरू और सेलू दीदी के कान पकडो. क्योकि मुझसे बड़ी जासूस तो वो है. जिनको अमन भैया के यहाँ आने का पहले से पता था.”

मैं बोला “तू बिल्कुल ठीक कहती है. ये सब किया हुआ इन्दोनो का ही है.”

ये कहते हुए मैने निक्की के कान छोड़ दिए और फिर सीरू से कहा.

मैं बोला “अब तुम दोनो ऐसे ही बोलोगि या निक्की की तरह तुम्हारे भी कान पकड़ने होगे.”

मेरी बात सुनकर, दोनो मुस्कुराने लगी और सेलू ने अपनी सफाई देते हुए कहा.

सेलिना बोली “भैया इस सब मे मेरी कोई ग़लती नही है. ये सब दीदी का ही आइडिया था. उन्होने ही कल अमन भैया को फोन पर कहते सुना था कि, आज वो यहाँ आएगे. दीदी ने मुझसे पूछा कि, मैं भाभी से मिलना चाहती हूँ तो, मैं इसके लिए तैयार हो गयी और फिर आपके हमारी यहाँ आने की शर्त को मान लेने से, हमारा भाभी से मिलने का रास्ता खुल गया.”

सेलू की बात सुनकर, निशा ने उसको गले से लगा लिया और उस से कहा.

निशा बोली “तुम लोगों को मुझसे मिल तो लिया है. लेकिन अभी ये बात अपने घर मे मत बताना. क्योकि पहले मुझे अपने घर वालों को इस शादी के लिए तैयार करना है.”

निशा की बात के जबाब मे सीरू ने निशा के सामने अपने चुप रहने की शर्त रखते हुए कहा.

सीरत बोली “भाभी, आप इस बात की ज़रा भी चिंता मत कीजिए. हम मे से कोई भी इस बात को घर मे नही करेगा. लेकिन इसके लिए आप लोगों को हमारी एक शर्त मानना होगी.”

निशा बोली “क्या शर्त है, बोलो.”

सीरत बोली “हमारे अजय भैया जब हमारे सामने इस बात को कबुल नही कर पाए की, वो उस अक्तिवा वाली लड़की को पसंद करते है तो, फिर ये उस लड़की के सामने कैसे कबुल कर पाएगे की, ये उसको पसंद करते है. अभी तो वो इनको एक ड्राइवर ही समझती है. ऐसे मे तो इनकी बात बन ही नही सकती. आप कुछ ऐसा कीजिए कि सारी ग़लतफहमी दूर हो जाए और वो हमारी भाभी बन जाए.”

सीरू की शर्त सुनकर निशा की जान मे जान आई. उसने मुस्कुराते हुए कहा.

निशा बोली “बात तो तुम्हारी सही है. लेकिन हमें उसके बारे मे कुछ भी नही मालूम. यहाँ तक कि हम उसका नाम तक नही जानते. ऐसे मे उसके बारे मे कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी. पहले हम उसके बारे मे मालूम कर ले. फिर हम उसकी ग़लतफहमी भी दूर कर देगे. तब अजजी को उसकी नज़रो मे एक ड्राइवर ही रहने दो.”

सब को निशा की बात जम गयी और फिर उसके बाद सब वहाँ मौज मस्ती करने मे लग गये. इस बीच वहाँ घूमने फिरने मे हमारी मुलाकात उस लड़की से 2-3 बार हुई और उसकी निशा के साथ कुछ बात चीत भी हुई. मैं उसे देखते रहने के सिवा कुछ ना कर सका.

वहाँ मौज मस्ती करने के बाद सबने रेस्टोरेंट मे खाना खाया. उसके बाद निशा और अमन हॉस्पिटल का बोल कर चले गये. उनके जाने के बाद मैने निक्की को उसके हॉस्टिल छोड़ा और फिर मैं अपनी बहनो के साथ घर आ गया.

शाम को मैं सूरत के लिए वापस निकलना चाहता था. लेकिन घर के सभी लोगों ने आज वही रुकने की ज़िद की तो मैं रुक गया. सुबह के सफ़र और दिन भर घूमने फिरने की वजह से रात को खाना खाने के बाद बिस्तर पर लेटते ही मुझे बड़ी सुकून भरी नींद आ गयी.

लेकिन सुकून भरी नींद शायद मे नसीब मे ही नही थी. मेरी नींद लगे अभी कुछ ही देर हुई थी कि, तभी किसी ने मेरे कमरे का दरवाजा खटखाया. मैने उनिंदी सी हालत मे दरवाजा खोला तो सामने अमन खड़ा था. अमन ने मुझे जो बात बताई, उसे सुनकर मेरी आँखों मे नींद की जगह आँसुओं ने ले ली और मैं धम्म से ज़मीन पर गिर गया.
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09-09-2020, 02:39 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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अब आगे की कहानी पुन्नू की ज़ुबानी….

अजय अभी अपनी आगे की बात बता पाता कि, एक दम से मेरे मोबाइल की स्क्रीन चमकने लगी. एक घंटा पूरा हो जाने की वजह से कीर्ति का कॉल कट गया था. अजय के सामने मैं कीर्ति को कॉल नही लगा सकता था. इसलिए मैने अजय की बात को बीच मे ही काटते हुए कहा.

मैं बोला “बात को बीच मे ही काटने के लिए सॉरी. लेकिन मुझे थोड़ी देर के लिए उपर अंकल को देखने जाना होगा. मुझे उनके पास ने आए बहुत देर हो गयी है.”

मेरी बात सुनकर अजय ने मुझे अंकल के पास जाने को कहा और मैं उपर अंकल के पास चला गया. अंकल आराम से सो रहे थे. मैं वापस नीचे आया और कीर्ति को कॉल लगाने के बाद, प्रिया को देखने उसके रूम मे चला गया.

मैं जब प्रिया के कमरे मे पहुचा तो, वो सो रही थी और निक्की उसके पास बैठी नॉवेल पढ़ रही थी. मेरे आने की आहट से उसका ध्यान नॉवल पढ़ने से हट गया. उसने मुस्कुराते हुए कहा.

निक्की बोली “आपको सोना नही है क्या या सारी रात उधर बैठ कर गॅप सॅप करने का ही इरादा है.”

मैं बोला “मैं तो रात भर जागता हूँ. लेकिन आप क्यो जाग रही है. यदि आपको सोना है तो, सो जाइए. मैं बाहर ही बैठा हूँ. बीच बीच मे आकर प्रिया को देखता रहूँगा.”

निक्की बोली “मुझे सच मे बहुत नींद आ रही है. क्या मैं सच मे सो जाउ.”

मैं बोला “हां, आप सो जाइए और प्रिया की फिकर मत कीजिए. मैं उसे देखता रहूँगा.”

मेरी बात सुनकर, निक्की के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गयी. उसने नॉवेल बंद करते हुए कहा.

निक्की बोली “ओके, मैं अभी थोड़ी देर बाद सो जाउन्गी. कोई बात हो तो आप मुझे जगा देना.”

मैं बोला “ओके.”

इतना बोल कर मैं बाहर अजय के पास आ गया. अजय अभी भी वही बैठा हुआ था. मैं उसके पास जाकर बैठा तो, उसने कहा.

अजय बोला “तुमको आने मे बड़ी देर लग गयी. क्या अंकल जाग गये थे.”

मैं बोला “नही, अंकल सो रहे थे. लेकिन मैं नीचे आकर प्रिया को देखने चला गया था. निक्की अभी भी जाग रही थी तो, उसे सोने का बोल कर आ रहा हूँ.”

अजय बोला “ये तुमने अच्छा किया. उसे रात को जागने की आदत नही है.”

अजय की इस बात से, मुझे याद आया कि, अजय निक्की को अपनी बहन मानता है. लेकिन अभी मुझे निक्की से ज़्यादा अजय की अधूरी बात को सुनने की उत्सुकता थी. इसलिए मैने बात को आगे बढ़ाते हुए अजय से कहा.

मैं बोला “उस दिन अमन ने फोन पर क्या बात कही थी. जिसे सुनकर तुम्हे झटका लगा था और मोबाइल तुम्हारे हाथ से छूट कर ज़मीन पर गिर गया था.”

मेरी बात सुनकर अजय ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.


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अब आगे की कहानी अजय की ज़ुबानी….

अमन की बात सुनते ही मुझे ऐसा झटका लगा कि, मेरे हाथ से मोबाइल छूट कर नीचे गिर गया. मैने हड़बड़ा कर मोबाइल उठाया तो अमन हेलो हेलो कर रहा था. मैने घबराकर उस से कहा.

मैं बोला “आरू कहाँ है. वो ठीक तो है ना.”

अमन बोला “अभी आरू का कोई पता नही है. हम लोग यहीं है. यहाँ के हालात बहुत खराब हो गये है.”

मैं बोला “तू फिकर मत कर, आरू को कुछ नही होगा. मैं अभी वहाँ के लिए निकलता हूँ.”

मेरी बात सुनकर अमन ने कॉल रख दिया. कहने को तो मैने अमन से कह दिया था कि, आरू को कुछ नही होगा. लेकिन यहाँ मैं खुद अमन की बात को सुनकर डर गया था. मैं जल्द से जल्द मुंबई पहुचना चाहता था.

लेकिन ट्रेन और कार से मुंबई जाने मे 4 से 5 घंटे का समय लगना था और इस समय सूरत से मुंबई के लिए कोई सीधी फ्लाइट भी नही थी. मेरे पास जल्दी मुंबई पहुचने का सिर्फ़ एक रास्ता था और मैने वही रास्ता अपनाया.

मैने मॅनेजर को फ़ौरन मुंबई के लिए एक प्राइवेट प्लेन का इंतेजाम करने को कहा. मेरी बात सुनते ही मॅनेजर मेरे रूम से बाहर चला गया. मैं बेचेनी से उसके वापस आने का इंतजार करने लगा.

करीब 15 मिनट बाद मॅनेजर ने आकर बताया कि, उसने एक प्राइवेट प्लेन बुक कर लिया है. मैं जब चाहे तब मुंबई के लिए निकल सकता हूँ. उसकी बात सुनकर मैने उस से कहा.

मैं बोला “मैं अभी ही मुंबई के लिए निकल रहा हूँ. हुमारे सभी कारखानो के सभी कर्म-चारियों को छुट्टी दे दो और उन से कहो कि, वो मेरी बहन की सही सलामती के लिए दुआ करे.”

इतना कह कर मैं ऑफीस से ही एरपोर्ट के लिए निकल गया. एरपोर्ट पहुचने मे मुझे करीब 10 मिनट लगे और फिर प्लेन से मुंबई पहुचने मे मुझे करीब 45 मिनट लगे. एक घंटे के अंदर मे मुंबई पहुच गया.

मुंबई पहुचते ही मैने अमन को कॉल किया. उसने बताया कि वो अभी आरू के स्कूल मे ही है और आरू का अभी भी कोई पता नही चल सका है. मैं टॅक्सी लेकर सीधे आरू की स्कूल पहुच गया.

लेकिन वहाँ का माहौल देख कर मेरा दिल दहल गया. जहाँ आरू की स्कूल की इमारत थी. वहाँ अब मलबे का ढेर नज़र आ रहा था. आधे से ज़्यादा इमारत बॉम्ब के धमाके से धराशायी हो चुकी थी और मलबे से स्कूल के बच्चों को निकालने का काम चल रहा था.

मैं अमन को यहाँ वहाँ देख रहा था. तभी अमन की नज़र मुझ पर पड़ गयी और वो मेरे पास आ गया. उसने बताया कि, आरू के स्कूल के अलावा मुंबई के एक हॉस्पिटल और एक सिनिमा हॉल मे भी बॉम्ब ब्लास्ट हुआ है. हज़ारों लोग घायल हुए और सैकड़ों लोगों की जान गयी है.

मुंबई के हॉस्पिटल घायलों से भरे पड़े है. ये धमाके हुए 2 घंटे से ज़्यादा का समय हो चुका है. अब मलबों से घायलो और जिंदा इंसानों की जगह सिर्फ़ लाशें निकल रही है. पता नही हमारी आरू अब जिंदा भी है या….”

अमन की आख़िरी बात पूरी होने के पहले ही मैने उसकी कॉलर पकड़ ली और उस से कहा.

मैं बोला “तू कहना क्या चाहता है. तेरा कहना है कि, अब हमे हमारी आरू नही, उसकी लाश मिलेगी.”

मेरी बात सुनकर अमन का सबर का बाँध टूट गया और वो रो पड़ा. उसने मेरे गले से लगते हुए कहा.

अमन बोला “तो और क्या बोलू मैं. मेरी फूल जैसी बहन इस मलबे मे कहीं दबी पड़ी है और मैं खुद को उसके सही सलामत होने का दिलासा देने के सिवा कुछ नही कर पा रहा हूँ.”

मैं बोला “ये दिलासा नही है. मेरा दिल कहता है कि, हमारी आरू को कुछ नही होगा. तू हिम्मत मत हार, सब ठीक हो जाएगा.”

अभी मैने इतनी बात बोली थी कि, तभी चाचा जी भागते हुए आए और हम से कहा.

चाचा जी बोले “आरू मिल गयी. लेकिन उसकी हालत बहुत खराब लगती है. हमे उसे जल्दी हॉस्पिटल ले जाना होगा.”

चाचा जी की बात सुनते ही हम ने उस तरफ दौड़ लगा दी, जहाँ चाचा जी ने बोला था. वहाँ पहुचते ही आरू की हालत देख कर मेरा दिल रो पड़ा. वो पूरी तरह खून से लथ पथ थी और उसकी ये हालत देख कर, मैं अपने आँसू ना रोक सका.

अमन ने आनन फानन मे उसे हॉस्पिटल ले जाने का इंतज़ाम किया. हम आरू को ढूँढने और उसे समय पर हॉस्पिटल ले जाने मे तो कामयाब हो गये. लेकिन आरू का खून बहुत बह चुका था और उसकी हालत बहुत नाज़ुक बनी हुई थी.

उसकी नाज़ुक हालत को देखते हुए डॉक्टर. ने खून चढ़ाए जाने की ज़रूरत बताई. मगर आरू का ब्लड ग्रूप ए बी- (एबी नेगेटिव) था. जो घर मे किसी का भी नही था. किसी जान पहचान वाले से भी उसका ब्लड ग्रूप मेल नही खा रहा था.

डॉक्टर. ने साफ कह दिया था कि, यदि समय रहते आरू को ब्लड नही चढ़ाया गया तो, उसकी जान भी जा सकती है. अमन शहर के सभी ब्लड बॅंक मे कॉल करके ब्लड का पता कर रहा था. लेकिन अभी हाल मे हुए हादसे की वजह से अब- ब्लड किसी भी ब्लड बॅंक मे मौजूद नही था.

निशा भी रक्त-दान करने वाले ऐसे लोगों से संपर्क करने की कोशिस मे लगी थी, जिनका ब्लड ग्रूप एबीमाइनस था. लेकिन दोनो मे से किसी को भी सफलता नही मिली थी. इधर आरू की हालत और भी खराब होती जा रही थी.

तभी अमन को एक ब्लड बॅंक मे बात करते हुए पता चला की, उनके पास एबी माइनस ब्लड है पर अभी अभी उनकी वो ब्लड किसी को देने की बात हो चुकी है. अमन की ये बात सुनकर मुझे आशा की एक किरण नज़र आई.

मैने निशा से उस ब्लड बॅंक चलने को कहा और मैं निशा के साथ वहाँ पहुच गया. लेकिन उस ब्लड बॅंक वाले ने ब्लड देने से सॉफ मना कर दिया. उसने कहा कि ये ब्लड जिसको देने के लिए, रखा है, वो अभी ब्लड लेने आने ही वाले है. उनके मरीज की हालत बहुत नाज़ुक है.

मैं उसे समझाने की कोसिस करता रहा कि, मेरी बहन की हालत भी नाज़ुक है. मगर वो किसी की अमानत मे खयानत ना करने की बात कह कर ब्लड देने से मना करता जा रहा था. मैने उस से ये भी कहा कि, हम ब्लड का इंतज़ाम करने मे लगे है. जैसे ही हमे ब्लड मिलता है, वो ब्लड हम उस मरीज को उपलब्ध करवा देगे. मगर वो हमारी कोई बात सुनने को तैयार नही था.

मैं किसी भी हालत मे वो ब्लड हासिल करना चाहता था और जब मुझे वो किसी तरह से मानता ना दिखा तो, मैने अपने जेब से 1000 के नोट की एक गॅडी निकाल कर उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा.

मैं बोला “उस एक बॉटल ब्लड की कीमत मेरे लिए ये भी कम है. तुम चाहो तो मुझसे और भी पैसे ले लो. लेकिन वो ब्लड मुझे दे दो.”

मेरी बात सुनकर वो सोच मे पड़ गया. लेकिन निशा ने मुझे टोकते हुए कहा.

निशा बोली “ये तुम क्या कर रहे हो. वो यदि हमारे इतना कहने पर भी ब्लड नही देने को तैयार नही है तो, इसका मतलब ये ही है कि, उस मरीज की हालत सच मे ही बहुत ज़्यादा खराब है. ऐसे मे इस तरह ब्लड हासिल करना सही नही है.”

निशा की ये दलील सुनकर, मुझे उस पर गुस्सा आ गया. मैने उस पर झल्लाते हुए कहा.

मैं बोला “तुम अपना मूह बंद रखो. मुझे तुम्हारी सलाह की ज़रूरत नही है. यहाँ सवाल मेरी बहन की जिंदगी का है और इसके लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ.”

ये कहते हुए मैने अपने हाथ की डाइमंड रिंग उतारकर उसके सामने रखते हुए कहा.

मैं बोला “ये डाइमंड रिंग है. अभी इस रिंग की कीमत कम से कम सवा लाख रुपये होगी. अब यदि तुम्हे सही लगे तो, वो ब्लड मुझे दे दो. मैं तुमसे वादा करता हूँ कि, जल्दी ही मैं ब्लड का इंतेजाम करके तुम्हे लाकर दे दूँगा. फिर तुम वो ब्लड उस मरीज को दे देना.”

मेरी इस बात के जबाब मे उसने जल्दी से मेरी दी हुई नोटों की गॅडी और रिंग को उठा लिया. फिर बिना कुछ बोले अंदर गया और ब्लड लाकर हम को दे दिया. निशा मेरी इस हरकत से खुश नही थी. लेकिन मुझे भी निशा की कोई परवाह नही थी.

मैं ब्लड लेकर हॉस्पिटल पहुचा और ब्लड अमन को देने के बाद निशा से कहा.

मैं बोला “तुम आराम से मत बैठो. अभी हमे उस मरीज के लिए ब्लड का इंतज़ाम करना है. तुम रक्त-दान करने वालो को ढूँढती रहो. जैसे ही ब्लड मिले, उसे ब्लड बॅंक मे देने की जगह, सीधे उस मरीज तक पहुचा देना.”

मेरी बात सुनकर, निशा ने मुझे गुस्से मे देखा और फिर से कॉल करने मे बिज़ी हो गयी. इधर आरू को ब्लड चढ़ाया जा चुका था. उसके शरीर पर बहुत ही गंभीर चोटे लगी थी. जिनसे उबरने के लिए उसे ब्लड की सख़्त ज़रूरत थी और अब ब्लड चढ़ जाने से डॉक्टर. को उम्मीद बँध गयी थी, कि जल्दी ही आरू की नाज़ुक हालत पर काबू कर लिया जाएगा.

उधर निशा ने भी आधे घंटे की मेहनत के बाद एक रक्त-दाता को ढूँढ निकाला था. उसने ब्लड बॅंक वाले से उस मरीज की हॉस्पिटल का पुछा और उस रक्त-दाता को वहाँ लेकर चली गयी. मुझे निशा की ये बात बहुत अच्छी लगी थी कि, उसके लिए सब मरीज एक बराबर है और वो उस रक्त-दाता को खुद ही उस मरीज के पास लेकर गयी है.

लेकिन जब निशा उस मरीज के पास से वापस लौटी तो, उसका चेहरा लटका हुआ था. उसने आकर बताया कि, उसके पहुचने के पहले ही, वो मरीज समय पर ब्लड ना मिलने की वजह से दम तोड़ चुका था.

मुझे उस मरीज की मौत का बहुत अफ़सोस हुआ. लेकिन मुझे अपनी की हुई हरकत पर कोई पछ्तावा नही था. क्योकि सवाल मेरी बहन की जिंदगी का था और यदि मैं ऐसा नही करता तो, हो सकता था कि, उस मरीज की जगह मेरी बहन दम तोड़ देती.

उस समय मुझे जो ठीक लगा वो मैने किया था. लेकिन निशा को मेरी ये बात इतनी बुरी लगी कि, उसके बाद से उसने मेरे साथ बात करना बंद कर दिया और मुझसे कटी कटी रहने लगी. मुझे उसकी इस नाराज़गी का अहसास उसकी बोल चाल से होने लगा था.

मगर उस समय मुझे निशा की नाराज़गी से ज़्यादा, अपनी उस बहन की फिकर थी. जिसे हॉस्पिटल मे रहते 24 घंटे से ज़्यादा हो गया था, मगर अभी तक उसने आँख नही खोली थी. डॉक्टर. का कहना था कि, यदि इसे 48 घंटे के भीतर होश नही आया तो ये कोमा मे भी जा सकती है.
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09-09-2020, 02:41 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
131
ये बात सुनकर सब परेशान हो गये थे. अमन और निशा को, आरू को होश मे लाने के लिए जो भी डॉक्टर. सही समझ मे आता, वो उसे बुलाते. लेकिन किसी के भी इलाज का कोई फ़ायदा नही हुआ और 3 दिन तक आरू के होश मे ना आने पर डॉक्टर ने उसे कोमा मे घोषित कर दिया.

उस पल मुझे ऐसा लगा, जैसे डॉक्टर. ने आरू को कोमा मे नही बल्कि मुझे मृत घोषित कर दिया हो. मेरी तो सारी दुनिया ही थम सी गयी थी. ये सिर्फ़ मेरा हाल नही था. घर के सभी लोगों की हालत ऐसी ही थी.

सब पर गुस्सा करने वाली मोम किसी से कुछ बोल ही नही पा रही थी. कुछ बोलते ही उनके आँसू आ जाते थे. चाचा चाची भी आरू को देख देख कर रोते रहते थे. हमेशा शरारत करने वाली सीरू और सेलू की हँसी कही खो गयी थी.

मगर आरू की इस हालत का सबसे ज़्यादा फरक अमन की जिंदगी पर पड़ा था. वो आरू को एक पल के लिए भी अकेला नही छोड़ता था और इस बेहोशी की हालत मे भी उस से घंटो बातें करता रहता था. निशा उसे समझाती कि, वो तुम्हारी बात को नही सुन सकती. उसका दिमाग़ तुम्हारी बातों को समझने की स्तिथि मे नही है.

लेकिन एक डॉक्टर. होते हुए भी वो इस बात को मानने से इनकार कर देता और कहता वो मेरी हर बात सुन सकती है. देखना मेरी बातें इसे ज़रूर होश मे ले आएगी. जिस अमन को आज तक सब पत्थर दिल समझा करते थे. उस पत्थर को देख कर सबकी आँखे भर आती थी. यहाँ तक की मेरे अंदर भी अमन से सामना करने की ताक़त नही बची थी. मैं उसे आरू के पास देख कर वापस बाहर आ जाता था.

ऐसे ही आरू की बेहोशी के चौथे दिन अमन उसके पास बैठा था और मैं बाहर सबके साथ बैठा था. तभी निशा भी आ गयी. उसने थोड़ी देर सब से बात की और फिर आरू को देखने चली गयी.

वो जब अंदर पहुचि तो अमन आरू से बातें कर रहा था. अमन ने आरू को बताते हुए कहा.

अमन बोला “आरू तुझे पता है. निक्की अपने अंकल आंटी के पास चली गयी है. वो हादसे के दिन तबीयत खराब होने की वजह से स्कूल नही आ पाई थी. उसे जब स्कूल के हादसे और तेरी हालत का पता चला तो, वो भागते भागते तुझे देखने आई थी. लेकिन तेरी हालत देख कर, वो वापस बीमार पड़ गयी और उसके अंकल आंटी उसे हॉस्टिल से अपने घर ले गये.”

“निक्की को तेरी इस हालत से बहुत सदमा पहुचा है. अब तू जल्दी से अपनी तबीयत सही कर ले. फिर हम निक्की से मिलने चलेगे और फिर हम लोगों को उस अक्तिवा वाली लड़की का भी तो पता करना है ना. जिसे तूने अजजी के लिए पसंद किया है. तू जल्दी ठीक नही होगी तो, फिर हम कैसे उसके साथ अजजी की शादी करवा पाएगे.”

निशा खड़ी खड़ी चुप चाप अमन की बातें सुन रही थी. लेकिन जब अमन ने मेरा नाम लिया तो, निशा से चुप ना रहा गया. उसने अमन को टोकते हुए कहा.

निशा बोली “अमन आरू को झूठा दिलासा मत दो. अब अजजी का अब लड़की के साथ कुछ नही हो सकता.”

निशा की बात सुनकर, अमन ने हैरत से निशा की तरफ देखते हुए कहा.

अमन बोला “तुम कहना क्या चाहती हो. क्या तुम उस लड़की से मिली हो.”

निशा बोली “हां, मैं उस लड़की से मिली हूँ.”

अमन बोला “क्या तुमने उस से अजजी के बारे मे बात की थी. क्या उसने अजजी के बारे मे तुमसे कुछ कहा है.”

निशा बोली “नही, मेरी उस लड़की से अजजी के बारे मे कोई बात नही हुई. लेकिन इतना जानती हूँ कि, अब अजजी के साथ उस लड़की की बात नही बन सकती.”

निशा की बात सुनकर, अमन ने परेशान होते हुए कहा.

अमन बोला “लेकिन हमारे अजजी मे खराबी क्या है. जो उस लड़की से अजजी की बात नही बन सकती.”

निशा बोली “क्योकि अजजी उस लड़की के भाई की मौत की वजह है.”

ये कहते निशा ने उसे उस दिन की बात बता दी. जिसे सुनने के बाद अमन ने कहा.

अमन बोला “वो लड़की ग़लत सोचती है. अजजी ने सिर्फ़ अपनी बहन की जान बचाने के लिए ये सब किया है.”

अमन की बात पर निशा ने चिढ़ते हुए कहा.

निशा बोली “तुम ग़लत बात मे अजजी की तरफ़दारी कर रहे हो. लेकिन तुम लोग इस सच्चाई से मूह नही चुरा सकते कि, उस लड़की के भाई की जान अजजी की वजह से ही गयी है. तुम अजजी की तरफ़दारी इसलिए कह रहे हो. क्योकि उसने ये सब तुम्हारी बहन की जान बचाने के लिए किया है.

अमन को शायद निशा की ये बात बुरी लग गयी. उसने निशा को घूर कर देखते हुए कहा.

अमन बोला “क्या कहा तुमने, मेरी बहन. क्या आरू सिर्फ़ मेरी बहन है. क्या वो तुम्हारी कुछ भी नही है.”

निशा को अपनी ग़लती का अहसास हुआ और उसने अमन से माफी माँगते हुए कहा.

निशा बोली “सॉरी, मुझसे ग़लती हुई. मेरे कहने का मतलब सिर्फ़ इतना था कि, उस लड़की के साथ जो भी हुआ है. वो ग़लत हुआ है और उसकी वजह अजजी है.”

निशा की इस बात का कोई जबाब ना देकर, अमन ने उस से उल्टा सवाल करते हुए कहा.

अमन बोला “तुम मेरे एक सवाल का जबाब दो. जो अजजी ने मेरी बहन की जान बचाने के लिए किया. वो तुमने क्यो नही किया. क्या तुमको ये नही पता था कि, यदि समय पर ये ब्लड आरू को नही मिलता तो, उसकी जान भी जा सकती थी.”

अमन की बात सुनकर निशा सन्न रह गयी. उसे अमन से ऐसी बात की उम्मीद नही थी. उसने अमन को अपनी सफाई देते हुए कहा.

निशा बोली “मैने आरू के लिए ब्लड ढूँढने की पूरी कोशिस की थी और बाद मे मुझे वो ब्लड मिल भी गया था. तभी तो मैं उस लड़की के पास गयी थी.”

अमन बोला “लेकिन तुम्हारा ढूँढा हुआ ब्लड उस लड़की के भाई के काम नही आया. क्या तुम ये बात दावे के साथ कह सकती हो कि, वो ब्लड मिलने तक, मेरी आरू की जान नही जाती है.”

अमन की इस बात ने निशा की बोलती बंद कर दी. निशा से कुछ भी कहते नही बन रहा था. उसे चुप देख कर अमन ने उस से कहा.

अमन बोला “मुझे तुमसे किसी बात की कोई शिकायत नही है और ना ही मैं ये कहता हूँ कि तुम ग़लत हो. लेकिन तुमको अजजी को ग़लत बोलने का कोई हक़ नही है.”

ये कहते हुए अमन की आँखे भर आई. लेकिन वो अपनी बात कहने से नही रुका. उसने अपने बहते हुए आँसुओं के साथ कहा.

अमन बोला “मेरा भाई ग़लत नही है. उसने जो कुछ भी किया सही किया. तुम उसके और आरू के बारे मे क्या जानती हो. आरू मेरी बहन है. चाचा चाची की लड़की है. मगर अजजी की तो जान है. जब अजजी अपने माता पिता की मौत के बाद जिंदगी से निराश हो गया था. तब मैने ही अजजी की गोद मे आरू को दिया था. तब से वो आज तक आरू को अपने सीने से लगाए रखा है.”

“चाचा जी ने भी बड़े दादू की मौत के बाद, अजजी के कहने के बाद भी, आरू को इसलिए वापस नही आने दिया था, क्योकि वो जानते थे कि, आरू अजजी की कमज़ोरी है. उसके रहते अजजी को किसी को सभालने की ज़रूरत नही पड़ेगी.”

“तुमको लगता है कि, अजजी ने वो सब करके ग़लत किया. तुम उस समय ग़लत सही के बारे मे सोच सकती थी. क्योकि उस समय तुम्हारा कुछ भी दाँव पर नही लगा था. लेकिन अजजी को उस समय आरू के रूप मे अपनी सारी दुनिया ही ख़तम होती नज़र आ रही थी.”

“आरू उसकी माँ भी है, बहन भी है और बेटी भी है. अपनी उस दुनिया को बचाने के लिए उस समय यदि अजजी को किसी का खून भी करना पड़ता तो, वो आरू की जान बचाने के लिए, बिना सोचे समझे वो भी कर देता.”

इतना कह कर अमन चुप हो गया. लेकिन अमन की ये बातें निशा के दिल पर असर कर गयी. उसने अमन से माफी माँगते हुए कहा.

निशा बोली “सॉरी, मैं सच मे अजजी को बहुत ग़लत समझ बैठी थी. मैं अब तक हर बात को अपने नज़रिए से देखती आ रही थी. मैने कभी अजजी के नज़रिए से ये सब सोचने की और अजजी को समझने की कोसिस ही नही की थी. मगर अब ये भी एक सच है कि, अब अजजी को उस लड़की को भूलना होगा. ये ही अजजी और उस लड़की दोनो के लिए सही होगा.”

निशा की ये बात सुनकर, अमन को खुशी और दुख दोनो हुए. उसने निशा से कहा.

अमन बोला “लेकिन उस लड़की को ये सब बातें कैसे पता चल गयी.”

निशा बोली “वो लड़की जब ब्लड लेने वहाँ पहुचि तो, उसे ब्लड नही मिलने पर उसने वहाँ हंगामा खड़ा कर दिया था. बाद मे उसे वहाँ काम करने वाले लड़के ने बता दिया कि, उसके भाई को दिया जाने वाला ब्लड किसी अमीर आदमी ने अपने पैसो के बल पर खरीद लिया.”

अमन बोला “लेकिन इस से ये कहाँ साबित होता है कि, ये सब करने वाला अजजी ही है.”

निशा बोली “साबित तो कुछ नही होता. लेकिन इस हादसे के बाद उस लड़की के मन मे अमीर लोगों के लिए सिर्फ़ नफ़रत है और जिस आमिर आदमी ने अपनी दौलत के बल पर उसके भाई की जान बचाने वाला ब्लड खरीदा था. वो उसे अपने भाई का कातिल मानती है.”

अभी निशा अपनी बात पूरी कर पाती कि, उस से पहले ही उसे कन्पकपाती हुई आवाज़ मे सुनाई दिया. “मेरे भैया कातिल नही है.”
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