RajSharma Stories आई लव यू
09-17-2020, 12:42 PM,
#71
RE: RajSharma Stories आई लव यू
“मैं जानती हैं राज...अभी वो डिस्टर्ब है। तुम आज रात भर उसे अकेला छोड़ दो, कल सब ठीक हो जाएगा।"- डॉली ने मुझे समझाते हुए कहा।

"डॉली, पता नहीं क्या होगा? शीतल अगर मेरी जिंदगी से चली गई, तो बहुत मुश्किल होगा मेरे लिए रहना; जान हैं वो मेरी यार।"

"राज, तुम बेवजह परेशान हो रहे हो...कोई नहीं जा रहा है तुम्हें छोड़कर; शीतल तुम्हारी है और रहेगी।"

“थॅंक्स डॉली; तुम्हारी बातों से तसल्ली हो रही है।"

“अच्छा ये लो कॉफी पियो।"- डॉली ने कॉफी का गिलास मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा।

कॉफी का सिप गले से उतर नहीं रहा था। डॉली समझाती जा रही थी और मेरी समझ में उसकी एक बात नहीं आ रही थी। शीतल के लहजे से साफ था कि वो मुझसे अब कभी बात नहीं करेंगी। यह डर मुझे हिलाकर रख दे रहा था। इस डर की वजह से मैं शीतल के बिना जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर पा रहा था। बातें करते-करते मैं और डॉली, मेरे घर के नीचे तक आ गए थे। डॉली ने एक बार फिर मुझे उसी लहजे में समझाया और अपने घर के लिए निकल गई। कमरे में पहुंचकर सबसे पहले मैंने मेल चेक किया।

शीतल का रिप्लाई था- “राज, मैं नहीं चाहती हूँ कि मेरी बजह से तुम्हारा परिवार बिखर जाए। मैं चाहती हूँ कि तुम्हारी जिंदगी खूबसूरत बने... और ये सब तब हो सकता है, जब मैं तुम्हारी जिंदगी से चली जाऊँ। तुम्हारे घर वाले तुमसे मेरी शादी के लिए कभी राजी नहीं होंगे और अगर परिवार से अलग होकर तुम मुझसे शादी करोगे, तो जिंदगी खूबसूरत नहीं रहेगी। कोई क्या कहेगा मुझको, कि मैंने एक माँ को एक बेटे से अलग कर दिया। इस कलंक को अपने सिर पर लेकर नहीं जी पाऊँगी मैं। अच्छा यही है कि तुम शीतल को भूल जाओ और अपने पापा की मर्जी से शादी कर लो। राज, एक रिक्वेस्ट है; अब मुझे कोई मेल मत कीजिएगा, में रिप्लाई नहीं करूंगी; कभी कांटेक्ट करने की कोशिश मत करना, बरना मैं खुद को रोक नहीं पाऊँगी। तुमसे दूर रहने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी मुझे, पर मैं कोशिश करेंगी। इस बात का दुःख हमेशा रहेगा कि राज और शीतल एक नहीं हो पाए।
गुड बाय..टेक केयर।"

शीतल के जबाब को पढ़कर मेरे पैरों से जान ही निकल गई थी। मैं खड़ा नहीं हो पा रहा था। मेल पढ़ते ही मैं बेड पर बैठ गया और जोर-जोर से रोने लगा। कमरे की खिड़कियों को चीरकर मेरी आवाज बाहर तक जा रही थी, लेकिन मैं बेपरवाह होकर रो रहा था... शायद इस दर्द की दवा यही थी। आज न तो कोई मुझे चुप कराने वाला था और न कोई मेरे सिर को अपने कंधे पर रखने वाला। पहले जब भी कभी मैं उदास होता था, तो शीतल किसी बच्चे की तरह मेरा सिर अपनी गोद में रख लेती थीं। शीतल की कमी खल रही थी। मैं अकेला हो चुका था। मैं असहाय महसूस कर रहा था। शीतल को खोने का डर मुझ पर हावी था। मैं बेचारा था; रोने के अलावा कर भी क्या सकता था? खूब रोया और जब रो रोकर आँखें खुश्क हो गई, तो लैपटॉप पर शीतल को जवाब लिखना शुरू किया।
मैंने लिखा
"शीतल, एक छोटी-सी चीज ने सब-कुछ खत्म कर दिया। मुझे पछतावा है कि तुम्हें मम्मी-पापा से मिलवाया ही क्यों? नहीं मिलवाता, तो तुम यूँ अलग तो न होतीं। आज पहली बार बिना तुम्हारे अकेले घर आया हूँ। कैब ले ली थी आने के लिए। जानती हो, कैब में अकेले बैठना कितना मुश्किल हो रहा था। तुम जब भी कार में मेरे साथ बैठी होती थीं न, तोहर अधूरी चीज़ पूरी लगती थी। तुम बिन हर सफर अधूरा है मेरा।
क्या सोच रही हो? चली आओ न! अधूरापन पूरा करना है तुम्हें मेरा। अगर तुम सच में तय कर चुकी हो, तो मैं तुम्हें सच में नहीं रोचूंगा। अगर तुम चाहती हो, तो मैं कभी तुम्हारे सामने भी नहीं आऊँगा और कभी तुमसे बात भी नहीं करूंगा। लेकिन इसका मतलब ये मत समझना कि राज,शीतल को कभी भूल पाएगा। हकीकत में भले ही तुम मेरी नहीं हो पाई, पर मन में हमेशा तुम मेरी रहोगी। हमेशा की तरह मैं खुद से पहले तुम्हारे बारे में सोचूंगा और अपने हर कदम पर तुम्हें अपने साथ महसूस करूंगा। जाओ, जी लो अपनी जिंदगी मेरे आँसू अब तुम्हें नहीं रोकेंगे।

तुम जब नाराज हो जाती थीं, तो कहती थीं कि ये हमारी लास्ट मीटिंग है... ये हमारी आखिरी कॉल है। यही कहती थीं हर बार झगड़ा होने के बाद। लेकिन हम मिलते थे और फिर से बात करते थे। आज भी शायद तुम यही कह रही हो। लेकिन जानती हो, तुम लाख कहो कि ये आखिरी बार है, पर एक हकीकत ये है कि मेरे और तुम्हारे बीच कभी कुछ 'लास्ट' नहीं होगा..तुम हमेशा मेरे खयालों में रहोगी और मुझसे बात करोगी।

और हाँ, आखिरी बार तुमसे कुछ माँगना चाहता हूँ... यूँ कहूँ कि एक दिन माँगना चाहता हूँ: ज्योति की शादी का दिन। ज्योति की शादी में आखिरी बार मैं चंडीगढ़ के दिनों को दोबारा जीना चाहता हूँ तुम्हारे साथ। पूरा दिन और रात में तुम्हारे ही साथ रहूँगा। उसकी शादी की एक-एक रस्म में तुम्हारे साथ देखना चाहता ह...उसकी जयमाला,उसक फेरे और उसकी विदा के समय मैं ज्योति के रूप में तुम्हें और उसके होने वाले पति के रूप में खुद को ही महसूस करना चाहता हूँ। मैं तुम्हारे साथ एक प्लेट में खाना खाना चाहता हूँ एक रसगुल्ले को साथ शेयर करके खाना चाहता हूँ। तुम्हें अपने हाथ से गोलगप्पे और पावभाजी खिलाना चाहता है। वो रात मेरे जीवन की सबसे खूबसूरत रात होगी, जब सुनहरी रोशनी और चाँद की चाँदनी में हम दोनों बैठकर बातें कर रहे होंगे। ___ मैं जानता हूँ, न जाने कितनी बार हम दोनों के आँसू भी निकलेंगे; लेकिन उस दिन माथ में आँसू बहाने का मजा ही कुछ और होगा। उधर, ज्योति की विदाई होगी और इधर मैं तुम्हारी जिंदगी से हमेशा-हमेशा के लिए बिदा ले लूंगा... कुछ खूबसूरत यादों के साथ, उमर भर के लिए। तुम्हें अपना न बना पाने और तुम्हें खोने का मलाल जिंदगी भर रहेगा मुझे। हाँ, कभी अगर मेरी याद आए, तो फोन जरूर करना, मुझे अच्छा लगेगा; चाहे बीस साल बाद ही क्यों नहीं।"

देर रात तक शीतल के मेल का इंतजार करता रहा। सुबह जैसे ही आँख खुली, तो सबसे पहले लैपटॉप उठाया और मेल खोला। शीतल का रिप्लाई था
"ज्योति की शादी में चलने का कोई वादा तो नहीं कर सकती है, पर कोशिश करूंगी... और प्लीज मुझे गलत मत समझना; मैं जो कर रही हूँ, बो तुम्हारी ही भलाई के लिए है। गुड बॉय..टेक केयर।"

शीतल का जवाब पढ़कर मैं बेड पर ही लेटा रहा। एक बार फिर शीतल के साथ बिताए पल किसी फिल्म की तरह आँखों के सामने आ गए। आँसू भी अब कहाँ थमने वाले थे? खुद को सँभालने की कोशिश की और घड़ी की तरफ नजर घुमाई। सुबह के साढ़े आठ बजे थे। ऑफिस जाना था, वो भी अकेले।

आज न शीतल से बात होगी और न मुलाकात... इतना सोचकर ही मैं भीतर तक सिहर गया। कैसे बीतेगा दिन बिना शीतल को देखे और मिले? कैसे रहूँगा मैं ऑफिस में उनसे बात किए बिना? ये सारे सवालमखुद से ही पूछ रहा था।

जवाब में आया कि ऑफिस नही जाना बेहतर है।

ऑफिस में तो न शीतल से मिल पाऊँगा और न रोपाऊँगा; घर पर रहूँगा, तो उन्हें जी भरकर याद कर पाऊँगा। भुवन भैय्या के यहाँ से कॉफी मँगा ली थी... साथ में खाने के लिए बरेड बटर भी।
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09-17-2020, 12:42 PM,
#72
RE: RajSharma Stories आई लव यू
कमरे में घंटों घूमने के बाद मैं बालकनी में आकर बैठ गया था। घड़ी पर जब भी नजर जाती, तो मैं यही सोचता कि इस वक्त शीतल क्या कर रही होंगी। कई बार शीतल की बातों के बारे में सोचकर होंठों पर मुस्कान आती; तो बीते दिन जो कुछ हुआ, वो याद आते ही डर के मारे आँतें तक जकड़ जाती, पेट के अंदरूनी हिस्से में एक करंट-मा दौड़ जाता।

कोई बारह बजे होंगे। धूप काफी तेज थी, पर बालकनी में रोशनी सीधी नहीं आती थी। थोड़ी भी हवा चलती थी, तो बालकनी में ठंडक का अहसास होता था। मैं अभी भी वहीं बैठा था। तभी अंदर रखे मोबाइल की घंटी सुनाई दी। उठकर देखा, तो डॉली फोन कर रही थी।

"हाँ डॉली, कैसे हो?"

“मैं ठीक हूँ, तुम बताओ कैसे हो?"

"बस यार, ठीक हूँ।"

"कहाँ हो?"

"आज ऑफिस जाने का मन नहीं हुआ, घर पर ही हूँ।"

"ओह अच्छा ; शीतल से बात हुई?"

"नहीं...मैंने मेल किया था, तो जबाब आया, अब हम कभी नहीं मिलेंगे और न कभी बात करेंगे... सब खत्म अब।

"अरे!ये कैसा फैसला है राज?"

"तो क्या कर डॉली? शीतल फोन नहीं उठा रही हैं, मेरा साथ भी नहीं दे रही हैं। मैं जमाने भर से लड़ने के लिए तैयार हूँ, पर जिसके लिए लड़ना है, वो ही हार गई है।"

“मैं आ रही हूँ तुम्हारे पास।"

"ओके...आऔं, पर जल्दी आना; मुझे एक दोस्त की जरूरत है इस बक्त।"

"राज, यू डोंट वरी, मैं आ रही हूँ।'-डॉली ने इतना कहकर फोन रख दिया। कमरे की हालत खराब थी। डॉली के आने से पहले थोड़ी कमरे की हालत सुधारी और थोड़ी अपनी भी। कमरा और मैं दोनों ही बेतरतीब थे। नहाने के बाद मैं फिर वहीं बालकनी में बैठ गया और मोबाइल में शीतल के फोटो देखने लगा। लगभग एक घंटे बाद कमरे की घंटी बजी। डॉली ही थी। जैसे ही मैंने डॉली की आँखों में देखा, तो मैं अपने आँसू नहीं रोक पाया। कल से अब तक जो सैलाब मेरे भीतर था, बो बाहर आ चुका था। मेरे दिल की इच्छा पूरी हो गई थी। मैं अपने किसी दोस्त के गले लगकर रोना चाहता था। डॉली के आते ही मैंने उसे हग कर लिया और में जोर-जोर से रोने लगा। डॉली ने खूब संभालने की कोशिश की, लेकिन मेरे भीतर तो एक तूफान था, जो इतनी जल्दी थमने वाला नहीं था। डॉली भी मुझे किसी बच्चे की तरह चुप करा रही थी। वो मेरे माथे पर अपने हाथ को सहला रही थी, तो मेरे आँसू भी पोंछ रही थी और मैं रोते-रोते उसे सब बता रहा था। थोड़ी देर बाद यह सैलाब थमा और मैं थोड़ा नॉर्मल हुआ। हम दोनों अंदर आए और बालकनी में बैठ गए। ध्यान गया, तो देखा कि डॉली के हाथ में एक बड़ी-सी पॉलिथीन थी।

"इसमें क्या है डॉली? शॉपिंग से आई हो क्या?"

"नहीं,घर मे ही आई है और इसमें खाना है तुम्हारे लिए।"

"खाना? तुम क्यों परेशान हुई खाने के लिए?"

डॉली ने सोफे से उठकर मेरे पास बैठते हुए कहा- “मैं जानती हूँ कि तुमने कल से कुछ नहीं खाया है...दोस्त हूँ तुम्हारी और ऐसे वक्त में मैं साथ नहीं दूंगी तो कौन देगा?"

"थैक्स डॉली, पर इसकी सच में कोई जरूरत नहीं थी, मैं कुछ मंगा लेता।"

"तो ये ही समझ लो कि बाहर से मंगाया है।"

'अच्छा ...- मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

"तो पहले खाना खा लो...मैंने भी नहीं खाया है। साथ ही लाई हूँ अपना भी...।"

'ओके।'

डॉली ने हम दोनों के लिए प्लेट में खाना लगाया। दाल, चावल, भिंडी की सब्जी, चपाती, दही और सलाद। सब मेरी पसंद का ही था।

"डॉली, खाना बहुत टेस्टी है; आंटी ने बनाया है?" ।

"राज, आंटी ने क्यों बनाया होगा?" - उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा।

गोसे ही मुझे लगा तो फिर किसने बनाया है? कुक ने?"

“राज, मैंने बनाया है। आज घर पर कोई नहीं है, इसलिए मैंने ऑफ लिया है।"

“ओके...तो इतना टेस्टी खाना तुमने बनाया है! डॉली यू कुक रियली बेरी गुड।"

"थैक्यू।'

"पर ये पीली बाली तड़का दाल ही क्यों बनाई?"

"अरे! तुम्हें तो बहुत पसंद है न तड़का दाल।"

"हाँ, आई लव इट; पर तुम्हें कैसे पता?"

"अरे एक बार तुमने ही बताया था।"

"ओके और तुमने याद रखा?"

"दोस्तों की पसंद और नापसंद याद रखनी पड़ती है जनाब।"

"डॉली, सच में मैं बहुत लकी हूँ कि तुम्हारे जैसी दोस्त मिली है मुझे; तुमने हर पल मेरा साथ दिया है।"

"राज, दोस्ती प्यार से बढ़कर होती है। मैंने तुम्हें दिल से अपना दोस्त माना है, इसके पीछे वजह भी तुम ही हो। तुम्हारी अच्छाइयों की वजह से ही मैंने तुम्हें अपना दोस्त बनाया। तुम बहतु केयरिंग हो, तुम बहुत समझदार हो और तुम रिश्तों को बिलकुल क्लियर रखने वाले इंसान हो। तुम वैसे लड़के नहीं हो, जो हर लड़की में संभावनाएँ तलाशते हैं। तुमने दोस्ती और प्यार के रिश्ते को अलग-अलग रखा और दोनों ही रिश्तों को महत्त्व भी दिया... यही वजह है कि तुम जैसा दोस्त पाकर मैं खुद को लकी मानती हूँ। मैं आज तुम्हारे रूम पर भी चली आई। ऐसे ही तो मैं किसी के रूम पर नहीं जा सकती हूँ न; लेकिन मुझे भरोसा है तुम पर, कि तुम गलत इंसान नहीं हो। तुम मेरे गल्ले भी लगे आज; मुझे बुरा नहीं लगा, बल्कि अच्छा लगा कि तुमने मुझे इस कदर दोस्त माना कि अपना दुःख बाँटने के लिए मेरे कंधे का इस्तेमाल किया। सच में राज, तुम बहुत अच्छे. इंसान हो; बस मैं यही चाहती हूँ कि तुम हमेशा खुश रहो। शीतल हो या कोई और लड़की...सब तुम्हारे साथ खुश रहेंगी।"- उसने कहा। __
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09-17-2020, 12:43 PM,
#73
RE: RajSharma Stories आई लव यू
_“डॉली, दोस्ती में विश्वास बहुत जरूरी है और मैंने तुम्हें अपना दोस्त माना है। यही वजह है कि मैंने अपनी जिंदगी से जुड़ी हर बात बताई। सच कहूँ डॉली, मैं हमेशा तुम्हें एक दोस्त के रूप में अपने साथ रखना चाहता हूँ।"

"मैं हमेशा तुम्हारे साथ हैं और रहँगी राज।"- डॉली ने मुस्कराते हए कहा।

"अच्छा, सत्ताइस को मैं और शीतल मुंबई जा रहे हैं; ज्योति की शादी है और वो दिन हम दोनों आखिरी बार साथ बिताएंगे।"

“ओह, बाह! वैरी गुड...आई होप सब अच्छा हो; तुम लोगों के बीच सब अच्छा हो जाए वहां।"

"लेट सी, क्या होता है।" बालकनी में बैठे, कॉफी पीते-पीते कब दोपहर से शाम हुई, पता ही नहीं चला। डॉली के साथ बातें करते, कभी हँसते-कभी रोते, वक्त कितनी आसानी से कट गया था। शीतल के जाने का दु:ख था, पर डॉली जैसी दोस्त मिलने की खुशी भी थी। डॉली अपने घर जा चुकी थीं। शाम ढलने के साथ-साथ मैं फिर शीतल की यादों में खो गया।
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सत्ताईस अप्रैल। ज्योति की शादी का दिन । मैं कैब लेकर अपने घर से कनॉट प्लेस के लिए निकल चुका था। शीतल को साथ लेकर एयरपोर्ट निकलना था।

"शीतल, आर यू रेडी?" - मैंने फोन पर पूछा।

"हाँ, एकदम रेडी...कहाँ हो तुम?"

“मैं रास्ते में ही हूँ... पन्द्रह मिनट में तुम्हारे पास पहुंच रहा हूँ।"

"ओके...आई एम वेटिंग फॉर यू।"

"ओह, रियली!"

"हाँ राज, सुचमुच ... तुम हर वक्त मजाक क्यों करते हो; आई एम डाइंग फॉर यू।" शीतल ने मजाकिया लहजे में कहा।

"चलो अब मजाक मत करो, मैं पहँच रहा है।"

"लेकिन बाबा, मिलोगे कहाँ, ये तो बताऔ? घर के नीचे नहीं, क्योंकि यहाँ किसी को नहीं पता कि मैं तुम्हारे साथ जा रही: घर पर बोला है कि ऑफिस के इवेंट के लिए मुंबई जा रही हूँ।" ___

“ठीक है, फिर ब्लॉक-ए के इनर सर्कल के पास रहना, वहीं से पिक करूँगा... देखो बहुत लेट हो रहा है, फटाफट पहुँचो तुम।" ___

कनॉट प्लेस पहुँचकर, बताई गई जगह पर मैंने कार के शीशे से बाहर झाँका तो शीतल दिखाई दे गई। लगेज ट्रॉली साइड में रखी थी और शीतल किसी से फोन पर बात कर रही थीं। इस वक्त शीतल मेरी तरफ पीठ करके खड़ी थीं। उनके खुले और बिखरे बालों पर मेरी नजर ठहर-सी गई थी। बजाय शीतल के पास जाने या उन्हें बुलाने के मैं वहीं ठहरकर उन्हें देखने लगा। एयरपोर्ट पहुँचने के लिए देर हो रही है, यह खयाल मेरे मन से अब गायब सा हो चुका था। शीतल को देखकर मैं खो-सा गया और सोचने लगा कि ये मेरे बारे में इतना कैसे सोच लेती हैं। मैंने तो नहीं कहा था इनसे, काली ड्रेस पहनकर आने के लिए। कार से बाहर निकलकर मैं यह सब सोच ही रहा था कि शीतल फोन काटकर एकदम से पलटी। शीतल ने मेरी तरफ कुछ इस अंदाज में देखा, जिसमें गुस्सा और प्यार दोनों था।

"अच्छा , तो जनाब, चुपचाप से आकर खड़े हो गए और बता भी नहीं रहे... ये क्या बात हुई?" __

“देख रहा था कि कहाँ इतनी इंपॉर्टेट बातें हो रही है, जो पीछे मुड़ने तक की फुरसत नहीं हो रही मैडम को; उस पर भी कह रही थीं कि आई एम डाइंग हेयर ।"

"ओह राज प्लीज, ऐसे मत बोलो।"- इतना कहते हुए शीतल गले से लग गई।

"चलो, फ्लाइट का टाइम हो रहा है, कैब में बैठते हैं।" हम दोनों कैब में बैठ गए। कैब अपनी तेज रफ्तार से चल रही थी। हम दोनों एक-दूसरे के बारे में सोच रहे थे। मुंबई के खयाल मन में चल रहे थे, मगर आपस में बात करने के बजाय हम कार के शीशों से बाहर की ओर झाँक रहे थे।

पहल करते हुए मैंने शीतल से कहा- “तो आखिर तुमने प्लान बना ही लिया शादी में चलने का...शुक्रिया इसके लिए।"

"कैसी बातें कर रहे हो राज ...शुक्रिया तो तुम्हारा करना चाहिए मुझे; लेकिन मुनिए, शादी में जा रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं कि शादी में ही रहेंगे।"

शीतल, कैसी बातें कर रही हो बच्चों जैसी; शादी में जा रहे हैं तो शादी में ही रहेंगे न।"

"नहीं राज, मेरे कहने का मतलब है कि हम शादी में जा रहे हैं और मुंबई में जा रहे हैं... यू नो मुंबई; मुंबई बहुत अच्छा है, मुझे घूमना है... मैं तुम्हारे साथ समुदर की लहरें देखना चाहती हूँ, जब साथ में जा रहे है, तो पूरी तरह एंज्वाय करना चाहती हूँ।"- शीतल ने मेरी आँखों में देखकर कहा और फिर शीशे से बाहर देखने लगीं। __

“देखते हैं क्या होता है...जैसा टाइम होगा, उसके हिसाब से प्लानिंग करेंगे। पहले हम लोग ज्योति की शादी के वेन्यू पर ओशीवारा जाएंगे, फिर हो सकता है मुझे वहाँ थोड़ा बहुत काम कराना पड़े... और हाँ, एक बात मुनिए मैडम, कोई गारंटी नहीं है, वहाँ हम हरदम आपके साथ ही रहेंगे।"- ये कहते हुए मैंने इतनी सारी बातें एक साथ शीतल को बता दी कि शीतल वहीं चुप हो गई।
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09-17-2020, 12:43 PM,
#74
RE: RajSharma Stories आई लव यू
कैब, इंदिरा गांधी नेशनल एयरपोर्ट पहुंच चुकी थी। डेढ़ घंटे में फलाह भी मुंबई पहुँच चुकी थी। मुंबई पहुंचने तक मैंने अपनी बातों से शीतल का मूड ठीक कर दिया था।

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"छत्रपति शिवाजी एयरपोर्ट के बाहर हमें लेने के लिए कैब खड़ी थी। हम दोनों कैब में बैठ चुके थे। तभी ड्राइवर ने कंफर्म किया, “सर, होटल ताज लैंड्स एंड चलना है न?"

मैंने जवाब दिया- "हाँ, वहीं जाना है।" ___

"ताज लैंड्स एंड होटल?" शीतल ने चौंकते हुए मेरी ओर देखा। "हम वहाँ क्यों जाएंगे राज? तुम तो बोल रहे थे ओशीबारा जाना है हमको पहले।

"आप शांत रहिए मोहतरमा...पहली बार मुंबई आई हैं न आप...और मुंबई घूमना भी है; वो भी मेरे साथ घूमना है, तो थोड़ा पेशेंस तो रखना पड़ेगा।"- मैंने मुस्कराते हुए कहा।

“राज, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।"

"...तो आप मत समझिए; अब आपको कुछ समझने की जरूरत नहीं है; आप बम महसूस कीजिए।"

कुछ ही देर में गाड़ी, ताज होटल के पास रुकी। हम दोनों एंट्री करके होटल के रूम नंबर 840 में पहुंच चुके थे। मैंने लगेज रखकर रूम में रखे सोफे पर मुस्ताने के लिए लेट गया।

वहीं शीतल का खुशी के मारे कोई ठिकाना नहीं था। शीतल तो दौड़कर कमरे की खिड़की के पास रुकीं। शीतल की नजर जैसे ही बाहर के नजारे पर पड़ी, बो एकदम खामोश हो गई। जहाँ तक नजर जा रही थी, समुद्र की लहरें थीं। बाहर समुद्र की लहरें उफान पर थीं, तो अंदर शीतल के मन में अजीब-सी खुशी का समुदर हिचकोले ले रहा था। मौसम भी आज मेहरबान था। आसमान में घटा छाई हुई थी और शीतल उस दृश्य में पूरी तरह खो चुकी थीं।

तभी मैंने पीछे से जाकर शीतल को पकड़ लिया। “क्या हो रहा है?"- मैंने कहा। "क्या राज, डरा दिया तुमने...देखिए बाहर कितना अच्छा मौसम हो रहा है।"- शीतल ने इशारा करते हुए कहा।

"हाँ, मौसम तो वाकई बहुत प्यारा है शीतल... इस गर्मी में मुंबई का ये मौसम लगता है हमारे लिए तोहफा है।"

"हाँ, तो तोहफा कुबूल कर लीजिए न...प्लीज राज बाहर चलिए न! कमरे से समुद्र इतना खूबसूरत लग रहा है, तो बाहर जाकर...."

शीतल की बात काटते हुए मैंने कहा, “क्या हो गया है तुम्हें शीतल; ये बाहर जाने का वक्त नहीं है। हमारे पास चार-से पाँच घंटे हैं, शाम को शादी में चलना है, भूख भी लगी है बहुत तेज... सुबह जल्दी उठे हैं, थोड़ा आराम कर लेते हैं।"

मेरी इस बात पर शीतल ने मुंह बना लिया।

"शीतल, अभी कल का दिन भी बाकी है। ज्योति की विदा होने के बाद वापस यहीं आना है हमें; कल जहाँ कहोगी घूमने चलेंगे।"- मैंने शीतल की ओर देखते हुए कहा।

हम दोनों की बातचीत जारी थी कि अचानक झमाझम बारिश शुरू हो गई। शीतल खामोश रहीं, लेकिन उन्होंने कुछ इस अंदाज में मेरी तरफ देखा, जैसे बाहर चलने की गुजारिश कर रही हों।

झमाझम बारिश, समुद्र की लहरें और शीतल का मन... सारी चीजों ने मुझे बाहर जाने के लिए मजबूर कर दिया।

"तुम मुझे जिद्दी कहती हो, लेकिन हकीकत ये है कि तुम बहुत जिद्दी हो; जो चाहती हो करा लेती हो। देखो, अपनी जिद मनवाने के लिए बाहर बारिश भी करा दी... अब इस मौसम में मैं तुम्हें बाहर लेकर नहीं गया तो फिर मैं मुजरिम कहलाऊँगा; चलो सामान रखो, बाहर चलते हैं अब।" __

“लेकिन राज: तुमने कुछ खाया भी तो नहीं है; मैं रिसेप्शन पर बोल देती हूँ कुछ खाने के लिए" __

“शीतल इतनी फिक्र मत किया करो मेरी; बारिश खत्म हो जाएगी, बाहर जाने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा फिर। अब बाहर ही बड़ा पाव और रोस्टेड भुट्टा खाया जाएगा और इजाजत मिली तो थोड़ा-सा तुम्हें भी...'' मैंने हँसते हुए कहा।

मेरी इस बात पर शीतल शरमा-सी गई।

हम दोनों बारिश की फुहारों में बाहर निकल पड़े थे। सड़क पर ऐसे लग रहा था जैसे मुंबई भी हमारा साथ देने के लिए साथ चल रही हो।

बारिश तेज होती जा रही थी। इस बारिश में हम दोनों हाथों में हाथ डाले, पैदल ही जुहू चौपाटी तक पहुंच गए थे।
समुद्र के पास जाकर हम दोनों खड़े हो गए।

लहरें बार-बार आती, पाँवों को छकर, दुलराकर फिर लौट जातीं। समंदर कभी शांत होता, तो कभी गरजता। रोशनी की कतार के बीच शंख और सीप के सामान, बड़ापाब, पावभाजी, झालमुरी, आइसक्रीम, कैंडी और कॉफी के स्टॉल सजे थे। लोगों की भीड़ बढ़ती ही जा रही थी।

हम दोनों चुपचाप, अलग-थलग, भीड़ से धीरे-धीरे एक कदम दूर होते जा रहे थे। शीतल, मेरे पाँवों के निशानों के ऊपर एहतियात से अपने पाँव रखती जा रही थी। शीतल की शरारतें जारी थीं। कभी मेरे ऊपर पानी की बूंदें फेंक देना, तो कभी सीटी मार देना... कभी 'बचाओ राज' कहके मुझे डरा देना। लुका झिपी करते-करते हम दोनों कई किलोमीटर तक आ गए थे। शीतल पीछे-पीछे तब तक चलती रहीं, जब तक उनके इस बचकाने खेल से तंग आकर मैंने उन्हें खींचकर अपनी बाँहों के घेरे में न ले लिया। कमर को घरे मेरी बाहों में शीतल कैद हो गई थीं। हम बहुत देर तक समुद्र के किनारे-किनारे रेत पर चलते आ गए थे। रोशनी पीछे छूट गई थी। ऐसा लग रहा था इन संसार में केवल हम दोनों ही बचे हैं। समुद्र की गरजती लहरें और जमीन-आसमान के एक होने का डर, शीतल को मेरे और करीब ला देता था।

भीड़ से दूर हम दोनों अकेले दो जिस्म एक जान हो चुके थे। शीतल और मैंने एक-दूसरे को कसकर बाँहों में भर रखा था। बारिश लगातार जारी थी, आसमान में बिजली कड़क रही थी। कुछ देर पहले तक जो हमारे शरीर बारिश में भीगने से कैंपकपाने लगे थे, वो अब गर्म हो चुके थे। शीतल की साँसे बढ़ गई थीं... उनकी धड़कनों की धमक मैं अपने सीने पर महसूस कर रहा था। शीतल ने मेरी कमर के आस-पास अपने हाथों से घेरा बनाया हुआ था और मेरे हाथ धीरे-धीरे उनकी कमर से ऊपर बढ़ रहे थे। जैसे-जैसे मेरे हाथ उनके सीने की

तरफ बढ़ रहे थे, शीतल काँपती जा रही थीं। मैंने अपने एक हाथ से उनके चेहरे को बड़े नाजुक अंदाज में ऊपर उठाया, तो शीतल ने आँखें बंद करके ही अपना चेहरा ऊपर कर लिया। शीतल अच्छी तरह जानती थीं कि मैं उनके होंठों को अपने होंठों से मिलाने के लिए बेताब हूँ, इसलिए शीतल ने अपने चिपके हुए होंठों को अलग कर लिया था। शीतल के चेहरे पर बारिश की बूंदें ठहरी हुई थीं। शीतल के चेहरे पर ठहरी इन बूंदों को अपने होंठों से चखने के बाद मैंने अपने होंठों को उनके होंठों पर रख दिया। होंठ से होंठ जैसेही टकराए, तो आसमान में बिजली कड़क उठी और बिजली की इस कड़क के साथ शीतल ने मुझे और कम कर पकड़ लिया। मैं और शीतल पागलों की तरह एक-दूसरे को प्यार करते जा रहे थे। मौसम में जितनी ठंडक थी, हमारे होंठों के भीतर उतनी ही गर्माहट थी। हम दोनों हर फिक्र को छोड़कर एक-दूसरे में खोते जा रहे थे। कोई भी किसी को छोड़ना नहीं चाह रहा था। मेरे चुंबन से शीतल का कोई अंग अछूता नहीं रहा। उनकी आँखों, गर्दन और सीने पर मैंने अपने चुंबन के निशान छोड़ दिए थे। मैंने शीतल को तब तक नहीं छोड़ा, जब तक थककर शीतल ने अपना पूरा शरीर मेरी बाहों के सहारे नहीं छोड़ दिया।

शीतल को सँभालते हुए मैंने उन्हें खुद से अलग किया। हम दोनों बहीं समंदर किनारे रेत पर बैठ गए। शीतल की आँखें बंद थीं और सिर मेरे कंधे पर रखा था।

हम दोनों शांत थे। शीतल ने बस इतना ही कहा- "तुम्हारे साथ आज पूरी जिंदगी जी ली मैंने।" कुछ ही देर में मैं और शीतल वापस जुहू पहुँचे और कैब लेकर होटल आ गए। इस बीच नमित और शिवांग का भी फोन आ चुका था। ज्योति भी शीतल को फोनकर पूछ चुकी थी कि हम कब तक पहुंचेंगे।

"शीतल, सात बज चुके हैं और हमें साढ़े आठ तक निकलना है। हम लोगों को तैयार होना चाहिए।"

'हम्म।- शीतल इतना कहकर तैयार होने वॉशरूम में चली गई।

मुंबई के ओशीबारा स्थित एश्वर्या फार्म हाउस, दुल्हन की तरह सजा हुआ था। हर तरफ सुनहरी रोशनी बिखरी हुई थी, गेट पर दरबान खड़े थे; कुछ खूबसूरत युवतियाँ हाथ में पूजा के थाल लिए मेहमानों का स्वागत कर रही थीं। फूलों से सजा भव्य गेट और उसके आगे खड़े दो हाथी, शादी की भव्यता को दर्शा रहे थे। तकरीबन नौ बजे मैं और शीतल यहाँ पहुँचे।

स्वागत गैलरी से होते हए जैसे ही मैं और शीतल वेडिंग, वेन्यू में दाखिल हए, तो कैमरे के फ्लैश हम दोनों के ऊपर चमकने लगे। मैंने रॉयल ब्लू कलर का सूट पहना था, जिस पर गोल्डन कलर का पॉकेट पाउच लगा था लेकिन शीतल आज कयामत ढा रही थीं। शीतलने व्हाइट बेस की बेहद खूबसूरत साड़ी पहनी थी, जिस पर करीब छह इंच चौड़ा ब्लू मिल्क का बॉर्डर और बीच-बीच में मोर पंख बने थे। ऊपर से शीतल के खुले बाल, हाथ में चमकती हुई घड़ी, कानों में बड़े-बड़े इयररिंग्स और महकती खुशबू, शीतल की खूबसूरती में चार चाँद लगा रही थी। मेरे सूट का रंग और शीतल की साड़ी के बॉर्डर का रंग एक जैसा ही था। हम दोनों थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि नमित और शिवांग हमको रिसीव करने पहुँच गए।

"बेलकम राज.....वेलकम शीतल!''- दोनों ने हैंडशेक करते हुए कहा।

"थैक्स डियर; कब पहुँचे तुम लोग?"

"आधा घंटा पहले..हमारा होटल यहीं पास में है।"- नमित ने कहा।

“राज-शीतल, तुम दोनों बहुत प्यारे लग रहे हो...जस्ट लाइक अ हैप्पी मैरिड कपल।"- शिवांग ने कहा।

"ओह! रियली? थॅंक्स अलॉट शिवांग।"- शीतल ने कहा।

"अब दोनों जल्दी शादी कर लो।"- नमित ने कहा।

नमित की इस बात पर शीतल ने कोई रिप्लाई नहीं किया, तब मुझे ही कहना पड़ा "करेंगे यार...पहले ये ज्योति की शादी हो जाए: वैसे कहाँ हैं अभी मैडम?"

"वो अभी पार्लर गई है तैयार होने...आती होगी।”- शिवांग ने कहा।
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09-17-2020, 12:43 PM,
#75
RE: RajSharma Stories आई लव यू
"चलो फिर ज्योति के मॉम-डैड से मिलते हैं।" - मैंने कहा।

“या दैदस ग्रेट आइडिया।"- नमित ने कहा।

मैं, शीतल, नमित और शिवांग ज्योति के मॉम-डैड से मिले और उसके बाद गराउंड में लगे सोफे पर बैठ गए। नमित ने खाने की कुछ चीजें यहीं मंगा ली थीं। मुंबई का फेमस बड़ा पॉव, पॉवभाजी, आइक्रीम, चॉकलेट रसगुल्ला, दही पापड़ी, पनीर टिक्का और फदम से सोफे के सामने रखी मेज भर गई थी और नई-पुरानी बातों का दौर शुरू हो गया था। नमित और शिवांग, शीतल को हमारे स्कूल की शरारतों के बारे में बता रहे थे। शीतल भी उनकी बातों का खूब आनंद ले रही थीं। जब भी मेरी शरारत की बात होती, तो शीतल मुस्कराते हुए मेरी तरफ देखतीं। मैं न हँस रहा था और न मुस्करा रहा था। मेरे दिमाग में एक अजीब-सा कोलाहल था। वो कोलाहल शायद आज के आखिरी दिन का था। कल जब हम दिल्ली पहुँचेंगे, तो मेरे और शीतल के रास्ते अलग-अलग हो जाएँगे, ये बात बार-बार मुझे झकझोर रही थी।

काफी देर तक बात करने के बाद पूरे ग्राउंड की रोशनी धीमी हो गई और बीचोंबीच बना स्टेज जगमगा उठा। फॉक्स लाइट, स्टेज के बराबर में बनी सीढ़ियों पर पड़ी, तो गुलाबी लहँगा पहने ज्योति, हाथ में जयमाला लिए एक-एक कदम बढ़ रही थी, तो दूसरी तरफ सीढ़ियों पर शेरवानी पहने आर्यन चल रहा था। दुल्हन के लिबास में ज्योति बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसे ऐसे देखकर एक क्षण में बचपन से अब तक की मारी यादें आँखों के सामने तैर गई। हम लोग सोफे से खड़े होकर स्टेज के करीब पहुँच गए। मैं थोड़ा इमोशनल हो गया था। शीतल यह बात समझ गई थीं, तो उन्होंने अपना हाथ मेरे कंधे पर रखकर समझाने की कोशिश की। शीतल के कहने पर हम लोग ज्योति के साथ-साथ चलकर स्टेज पर पहुँचे। आर्यन और ज्योति की जोड़ी जम रही थी। लग रहा था मानो दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। सामने खड़े होकर हम लोग ज्योति-आर्यन की जयमाला देख रहे थे। सबसे पहले ज्योति ने आर्यन के गले में माला डाली; उसके बाद आर्यन ने ज्योति के गले में। इसके बाद आसमान में आतिशबाजी होने लगी। शीतल ने एक बार ज्योति की तरफ देखा और फिर मेरी आँखों में।

"राज, बुश हो न तुम?"

"हाँ, बहुत।" - मैंने शीतल का हाथ थामते हुए कहा।

“देखिए, ज्योति कितनी प्यारी लग रही है।"

"बहुत प्यारी लग रही है।"

“मैं जानती हूँ तुम क्या सोच रहे हो।"

“मैं भी जानता है कि इस वक्त तुम क्या सोच रही हो।" इतना कहकर हम दोनों एक-दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुराए और ज्योति-आर्यन को बधाई देने उनके पास पहुंच गए। देर से आने के लिए ज्योति, स्टेज पर ही मुझे डाँटने लगी। मैंने उसे बड़े प्यार से गले लगाया और आर्यन को भी बधाई दी। शीतल और ज्योति ऐसे मिले, जैसे बचपन के दो बिछड़े दोस्त।।

“मैं बहुत खुश हूँ शीतल आपको यहाँ देखकर।"- ज्योति ने कहा।।

"आना ही था ज्योति तुम्हारी शादी में...तुमने इतना बोला जो था।"- शीतल ने कहा।

"अब जल्दी से तुम दोनों शादी कर लो। राज की फैमिली से आप मिल ही चुकी हो...मैं भी पक्का आऊँगी तुम्हारी शादी में।"- ज्योति ने कहा ।

मैं एक फोन का बहाना कर अलग आ गया था। शीतल और ज्योति बात कर रही थीं। नमित समझ गया था कि मैं जान-बूझकर अलग आया हूँ।

"हे राज! क्या हुआ?"

"कुछ भी तो नहीं यार...एक फोन कॉल था।"

"देख राज, हमारी दोस्ती चार दिन की नहीं है: तुझे कब से जानता हूँ, बता क्या हुआ...ऐसे क्यों आ गया वहाँ से तू?"

“यार नमित, घर में कोई मेरी और शीतल की शादी के लिए राजी नहीं है... मम्मी को शीतल ने अपने बारे में सब बता दिया।"

"सब सच मतलब? यही कि उनकी शादी हो चुकी है और उनकी बेटी है?"

"हाँ यार...मैंने नहीं बताया था घर पर; लेकिन जिस दिन शीतल ऋषिकेश आई थीं, उन्होंने ही मम्मी को बता दिया। मम्मी ने अभी तीन दिन पहले पापा को बता दिया... पापा का फोन आया और पता नहीं क्या-क्या कहा उन्होंने मुझसे।"

“अरे यार, फिर कैसे होगा सब?”

“यही तो मुझे समझ नहीं आ रहा है नमित; उधर पूरा घर मुझसे नाराज है, पापा बात नहीं कर रहे हैं मुझसे... उन्होंने साफ कह दिया कि शीतल हमारे घर की बहू नहीं बन सकती है।"

"तुमने शीतल को बताया ये सब?"

"बताया क्या... ऋषिकेश से लौटने के बाद मेरे और शीतल के बीच कुछ ठीक नहीं रहा; अगले दिन से शीतल ने मुझसे बात तक करना बंद कर दिया। वो खुद को मुझसे दर रखने की कोशिश कर रही हैं। वो कहती हैं कि मैं तुम्हें अपने परिवार से अलग होते हुए नहीं देख सकती हूँ; मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से तुम्हारा परिवार बिबर जाए। ज्योति की शादी में हम आखिरी बार साथ आए हैं; आज के बाद हम अलग-अलग हो जाएंगे।"

"तूने बताया क्यों नहीं ये सब?"

“यार नमित, क्या बताता? बहुत बुरी हालत हो गई थी मेरी...कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ।"

"कोई बात नहीं मेरे दोस्त, सब ठीक होगा, तू परेशान मत हो...आज आखिरी बात साथ आए हो, तो एन ज्वॉय करो... चल ..."- नमित ने गले मिलते हुए कहा।

शीतल, ज्योति, आर्यन और शिवांग अभी भी स्टेज पर थे। हम लोग पहुँचे, तो सबने साथ में खूब सारे फोटो खिंचवाए। खूब खाना-पीना हुआ, नाच-गाना हुआ, खूब हँसी मजाक हुआ... एक-एक रस्म का मर्म भी जाना, ज्योति को विदा करते वक्त खूब आँसू भी बहे।

ये आँसू, जुदाई के आँसू थे...थोड़े ज्योति के लिए, तो थोड़े शीतल के लिए। ज्योति अपने ससुराल जा चुकी थी। जो फार्म हाउस रात में जगमगा रहा था, बो अब किसी बिखरे हुए आँगन की तरह लग रहा था। जिस मंडप में ज्योति ने आर्यन के संग सात फेरे लिए थे, अब उसे हटाया जा रहा था। कहीं सोफे पड़े थे, तो कहीं उखड़ा हुआ टेंट। कितना अजीब होता है न ये सब।।

पहले हम कितनी खूबसूरती से शादी का मंडप सजाते हैं। कोई कसर नहीं रहने देते हैं... और शादी होते ही सब उजड़ जाता है। यही इस दुनिया की रीति है। शादी पूरी हो चुकी थी और इसी के साथ पूरा हो गया था मेरा और शीतल का साथ वाला आखिरी दिन । अब बस हमें दिल्ली लौट आना था।

नमित और शिवांग की फ्लाइट आठ बजे की थी, तो दोनों एयरपोर्ट के लिए निकल गए। मुझे और शीतल को होटल से ग्यारह बजे निकलना था। हमारी फ्लाइट एक बजे की थी। सब जा रहे थे। मैं और शीतल भी कैब से वापस होटल पहुंच गए। पूरे रास्ते मैं और शीतल चुप ही रहे। शीतल अपना सिर, कार की सीट पर टिकाए आँख बंद किए ही बैठी रहीं और मैं शीशे से बाहर ही झाँकता रहा। दिल-दिमाग में शीतल के साथ बिताया एक-एक पल किसी फिल्म की तरह चल रहा था। डर भी लग रहा था कि जिसकी आवाज सुने बिना मेरा दिन नहीं होता, उसके बिना रहना कितना मुश्किल होगा। मैंने रात में शीतल से यह बात भी की, कि क्या सब-कुछ पहले जैसा नहीं हो सकता है?

शीतल ने आँसुओं के साथ बस इतना ही कहा, “आज हमारा आखिरी दिन है। इसके बाद तुम मुझसे कभी बात करने की कोशिश भी नहीं करोगे।" ।
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09-17-2020, 12:43 PM,
#76
RE: RajSharma Stories आई लव यू
थोड़ी ही देर में हम लोग होटल पहुंच गए। कमरे में पहुंचकर मैं कपड़े बदलकर सोफे पर बैठ गया। शीतल, बिना कपड़े बदले फिर से उसी खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई, जहाँ से समंदर साफ नजर आ रहा था। मैं शांत खड़ी शीतल को देख रहा था और बो बाहर की तरफ। काफी देर तक ऐसे देखने के बाद भी शीतल ने एक बार पलटकर मेरी तरफ नहीं देखा।

मैं समझ गया था कि शीतल मेरी तरफ नहीं देखेंगी। मैं जानता था कि वो मेरा इंतजार कर रही हैं। मैं उठा और खिड़की के पास जाकर शीतल को पीछे से हग कर लिया। मेरी बाँहों की गिरफ्त पाते ही शीतल ने एक लंबी साँस ली, मानो वो इस पल का ही इंतजार कर रही थीं। मेरा चेहरा उनके कंधे के पास था। शीतल ने भी अपना चेहरा थोड़ा पीछे घुमाया और मेरी आँखों में देखने की कोशिश की। उनकी आँखों में पानी साफ नजर आ रहा था।

मैं उनके इन आँसुओं को पोंछ पाता, इससे पहले ही उन्होंने मुड़कर मुझे अपनी बाँहों में भर लिया। मैंने शीतल का चेहरा अपने हाथ से ऊपर उठाया और फिर एक बार पूछा, "क्या सब-कुछ पहले जैसा नहीं हो सकता है शीतल? मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता हूँ।"

___ “राज, मैं भी तुम्हारे बिना हमेशा अधूरी रहूँगी; पर मुझसे दूर हो जाने में ही तुम्हारी भलाई है।"

“ये कैसी जिद है शीतल ... मैं नहीं जी पाऊँगा तुम्हारे बिना; क्या तुम रह पाओगी?"

“मैं भी नहीं रह पाऊँगी, लेकिन साथ भी नहीं रह सकती मैं राज।" इतना कहकर शीतल ने अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दिए। मैंने अपनी बाँहों की पकड़ और मजूबत कर ली। मैं शीतल की आँखों में इस सवाल का जवाब हूँढ़ने की कोशिश कर रहा था। मैं देख रहा था कि ये वही आँखें हैं, जिनके जादू से मैं शायद ही कभी बाहर आ पाऊँगा। मैं जितना शीतल की आँखों में देखता गया, मैं उतना ही शीतल में गहराता चला गया। हम दोनों की साँसें तेज हो गई थीं... हम दोनों एक-दूसरे में खोते चले गए। मैं इस पल को रोमांच से भर देना चाहता था। मेरे भीतर अभी भी ये उम्मीद थी, कि शायद ये सब होने के बाद शीतल मेरी होकर रह जाएँ। शायद यही वजह थी कि मैं उनके इंच-इंच में इतना प्यार भर देना चाहता था, कि चाहकर भी शीतल खुद को मुझसे अलग न कर पाएँ। मैं किसी हाल में शीतल से अलग नहीं होना चाहता था। जब वो मुझसे थोड़ा भी अलग होती, तो मैं उन्हें अपनी तरफ खींच लेता और फिर से अपने सीने से लगा लेता।

मैं शीतल को गोद में उठाकर बेड पर ले आया था। वो लेटी हुई थी और उनकी आँखें बंद थीं। उनकी साड़ी हट चुकी थी। रेशमी साड़ी के बंधन से आजाद होते ही शीतल खुद को समेटने की कोशिश करने लगी, लेकिन मैंने उन्हें अपने गले से लगा लिया। अब हम दोनों के बीच कोई दूरी नहीं थी। मेरी उँगलिया उनके बालों के बीच से निकलकर उनके बदन को छू रही थीं। नाजुक छुअन से शीतल पागल हो चुकी थीं। मैं भी इस मिलन की बेला पर कुछ भी अधूरा छोड़ना नहीं चाहता था। शीतल का चेहरा लाल हो चुका था, उनकी आँखों में चमक साफ दिख रही थी। शीतल ने अपने होंठों से मेरे बदन को छुआ, तो मेरा वजूद तक हिल गया। मने भी अपने होंठों से चूमकर उनके पूरे शरीर को प्रेम से भर दिया था। ऐसा लग रहा था जैसे आज पूरी कायनात हम दोनों को मिलाने में लगी है। मैं और शीतल, प्रेम के उस पड़ाव पर थे, जब लगता है दुनिया की सारी खुशियाँ उस एक इंसान से हैं, जो तुम्हारी बाहों में हैं। आखिरी दिन के आखिरी पलों में मैं और शीतल एक-दूसरे के हो चुके थे।

खूबसूरत यादों के साथ उम्र भर न भूल पाने वाला बेहद खूबसूरत पल लेकर हम दोनों मुंबई से दिल्ली लौट आए।

शीतल मेरी कभी नहीं हो पाएंगी...लेकिन शीतल हमेशा मेरी रहेंगी। ज्योति की शादी को दो दिन बीत गए थे। सुबह, टाइम से ऑफिस जाना और शाम को टाइम से घर लौट आना शुरू कर दिया था। ऑफिस में दिनभर काम में लगा रहता था। न मैं कैफेटेरिया जाता था और न शीतल मेरे फ्लोर पर आती थीं। शीतल के मेल, उनके सारे मैसेज मुझे बार-बार उनकी याद दिलाते थे, इसलिए मैंने वो सारे मेल और मैसेज अपने फोन से हटा दिए थे। अगर मैं नहीं हटा पाया था, तो शीतल के दिए हुए संगमरमर से बने वो गणेश जी, जो वो मेरे लिए आगरा से लाई थीं। बप्पा की वो छोटी-सी मूरत, मेरे डेस्क पर अब भी रखी थी।

ऑफिस से लौटते वक्त पता नहीं मन में क्या आया कि पापा को फोन लगा दिया। "हेलो पापा!”

"हाँ राज...याद आ गई हमलोगों की?"

"क्या पापा, आप भी...आप लोगों की याद हमेशा आती है।"

"लगता तो नहीं; पिछले कितने दिनों से तुमने फोन तक नहीं किया।"

"सॉरी पापा,बहुत मूड खराब था।"

"देखो राज, जिस रास्ते पर तुम चल रहे हो, उस पर तुम कभी खुश नहीं रहोगे; हमारी बात मानो, हम तुम्हारे माँ-बाप हैं, जो सोचेंगे अच्छा सोचेंगे।"

"आई नो पापा।"

"देखो, एक अच्छी-सी लड़की से शादी करो और अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करो। शीतल बेटी बहुत अच्छी है, लेकिन वो तुम्हारे लिए नहीं है; उसका और तुम्हारा कोई मेल नहीं है।" __

में बस सुनता जा रहा था।

"शीतल को अपनी उम्र का दूसरा लड़का मिल जाएगा, तुम अपने भविष्य के बारे में मोचो। शीतल का साथ अभी तुम्हें अच्छा लग रहा है... लेकिन हमने भी जमाना देखा है; ऐसी परिस्थिति में जो शादी होती हैं, उनमें आगे प्रॉब्लम ही होती हैं... तुम्हारी खुशी इसी में है कि जो लड़कियाँ हमने देखी हैं, उनमें से किसी एक को तुम पसंद कर लो। हाँ, हमारा, तुम्हारे ऊपर कोई प्रेशर नहीं होगा; लड़की से मिलने के बाद तुम्हें लगे कि वो तुम्हारे लिए ठीक नहीं है, तो मना कर देना।"

“ठीक है पापा, आप जैसा चाहें; आपकी और मम्मी की खुशी से बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं है... अगर इस बात से आप लोगों के चेहरे पर मुस्कान आएगी, तो मैं तैयारहूँ।" ___

“ये हुई न समझदारी बाली बात: चलो, ये खुशखबरी मैं तुम्हारी मम्मी को देता हूँ और तुम ध्यान रखो अपने खाने-पीने का: लड़की वालों से मिलो, तो लगना चाहिए कि कोई लड़का है।"

"ओके पापा, बॉय।" पापा को शादी के लिए हाँ तो कर दी थी, पर मन अभी भी दुविधा में था। आखिर कर भी क्या सकता था मैं? जिसके लिए जमाने से लड़ना चाहा, उसने ही कदम पीछे कर लिए; अब पापा की बात मानने के अलावा कोई चारा भी नहीं था मेरे पास।

घर के पास पहुँचा था, कि डॉली का कॉल आ गया।

"हेलो राज, कहाँ हो?"

"हाय डॉली...ऑन द बेटू होम।"

“मैं भी रास्ते में हूँ...आई वांट टूमीट यू।"

"ओके, आओ भुबन भैय्या के यहाँ।।"

"ओके...दस मिनट में।" मैं भुवन भैय्या के यहाँ पहुँच गया। थोड़ी देर में डॉली भी आ गई। टेबल पर कॉफी भी आ गई थी और हमारी बातें भी शुरू हो गई थीं। बातों में सिर्फ डॉली के सवाल थे और मेरे जवाब। मुंबई में सब कैसा रहा? ज्योति की शादी कैसी हुई? मेरे और शीतल के बीच क्या चल रहा है?

और मेरा जवाब था, कि सब खत्म हो गया है, शीतल मेरी जिंदगी से जा चुकी हैं; मैंने उन्हें रोकने की पूरी कोशिश की, पर मैं उन्हें रोकने में असफल ही रहा। डॉली मेरे लिए परेशान थी। उसके चेहरे पर मेरे लिए चिंता साफ नजर आ रही थी। शीतल के जाने के बाद एक डॉली ही थी, जो मेरी फिक्र कर रही थी।

“राज, तुम परेशान मत होना, सब ठीक हो जाएगा। राज, जानते हो, प्यार एक समर्पण है, जिसमें इंसान अपने प्यार के लिए पूरी तरह समर्पित हो जाता है... प्यार एक ऐसा त्याग है, जिसमें इंसान प्यार के लिए दुनिया की सारी दौलत को ठुकरा देता है। प्यार एक ऐसी तपस्या है, जिसमें इंसान अपनी सारी खुशियाँ, अपने सारे ऐशो आराम कुर्बान कर देता है, लेकिन बदले में उसे बस आँसू ही मिलते हैं।"

“डॉली, मैं बहुत अकेला हो गया है।"

“मैं जानती हूँ राज । शीतल की की, तो शायद ही मैं पूरी कर पाऊँ, पर एक दोस्त की तरह मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ: तुम मुझसे अपनी हर परेशानी शेयर कर सकते हो... और मच कहूँ तो मुझे भी तुमसे हर बात शेयर करना अच्छा लगता है। तुम बिलकुल अकेले नहीं हो राज; मैं हूँ तुम्हारे साथ।"

“थेंक यू डॉली।"

"तो अब मुस्कराओ। जनाब राज, उदास चेहरे में अच्छे नहीं लगते हैं।" - डॉली ने हँसते हुए कहा था।

कॉफी खत्म हो गई थी। मैं और डॉली बातें करते-करते घर की तरफ निकले थे। पापा से फोन पर जो बात हुई, वो भी मैंने डॉली को बता दी थी। हाँ, इस बात को सुनकर वो बहुत खुश नहीं हुई थी। उसका रिएक्शन कोई खास नहीं था।

रात काफी हो चुकी थी। आँखों से नींद तो पिछले कई दिनों से गायब थी...लेकिन जब से शादी के लिए हाँ की थी, तब से बेचैनी बहुत बढ़ गई थी।

शीतल की याद आ रही थी। लैपटॉप खोला और शीतल को एक मेल लिखा
" शीतल, कैसी हो? मेरा तो हाल बहुत बुरा है। दिन गुजर जाता है, पर तुम नहीं दिखती हो। बेचैन हो जाता हूँ, तो जानती हो क्या करता हूँ? तुम्हारी फेसबुक प्रोफाइल देख लेता हूँ या पाकिंग में खड़ी तुम्हारी स्कूटी देख आता हूँ। वो सारी चीजें जो तुमसे जुड़ी हैं, वो सारी जगहें जो तुमसे जुड़ी हैं, मुझे तुम्हारी याद दिलाती हैं। वो रास्ते, जहाँ से हम दोनों जाया करते थे, बो हल्दीराम, वो जूम की दुकान, सब तुम्हारा नाम लेकर बुलाते हैं।

पर पता है, अब नहीं जाता हूँ मैं वहाँ; तुम्हारे बिना कहीं जाने का मन नहीं करता है अब। तुम्हारी यादें, आँखों के आगे इस कदर घूमती हैं कि आँखें दुःखने लगती हैं, पर नींद नहीं आती है। और अगर नींद आती भी है, तो तुम ख्वाबों में आ जाती हो। शीतल, मैंने जब से प्यार का मतलब जाना है, बस तुम्हें ही चाहा है.... मैंने जब से जिंदगी का सपना संजोया; हर सपने में तुम्हें ही अपने साथ पाया। तुम्हारी आँखों में भी मैं हमेशा खुद को ही देखना चाहता हूँ। तुम दूर हो गई हो; चली गई हो मेरी जिंदगी से... पर जानती हो, मेरी साँसे तो चल रही हैं, पर मुझे जिंदा होने का अहसास ही नहीं है। तुमने हमेशा मुझे पागल कहा... सच में मैं पागल हो गया हूँ, होशहवास खो बैठा हूँ। अगर मैं जिंदा हूँ, तो सिर्फ तुम्हारे प्यार के अहसास की बदौलत और तुम्हारी यादों की बदौलत । तुमने मेरी जिंदगी में वापस न आने का फैसला कर लिया है। तुम वापस आओ या न आओ, पर यादों में हमेशा तुम्हें प्यार करता रहूँगा। मेरे प्यार को समेटने में तुम्हारी पूरी जिंदगी खत्म हो जाएगी, पर मेरा प्यार खत्म नहीं होगा।
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09-17-2020, 12:43 PM,
#77
RE: RajSharma Stories आई लव यू
गुड नाइट।" सुबह आठ बजे फोन की घंटी बजी। पापा का फोन था।

"हेलो पापा...गुडमॉर्निंग।"

“गुडमॉर्निंग बेटा, उठ गए थे?"

"हाँ पापा, थोड़ी देर पहले उठा।"

"अच्छा तुम्हें एक फोटो और बॉयोडाटा मेल किया है; काब्या नाम है उसका ... फोटो देख लो, फिर मैं कॉल करता हूँ।"

“ठीक है पापा, मैं ऑफिस जाकर देखूगा; शाम को बात करूंगा फिर आपसे।" पापा के फोन रखने के बाद मैंने मेल चेक किया। मुझे काव्या के फोटो देखने की नहीं, शीतल के रिप्लाई की जल्दी थी। पापा का मेल सबसे ऊपर था और उसके नीचे शीतल का मल था। उसने लिखा था __

“राज, तुम्हारे प्यार के लिए मेरा ये जन्म काफी नहीं। जब मेरी जिंदगी खत्म हो जाएगी, तो मैं अगले जन्म में फिर आऊँगी। उस जन्म में ऊपर वाले से बस तुम्हारा साथ माँगूंगी। न उम्र का अंतर होगा और न समाज का डर... बस मैं और तुम। एक साथ बचपन में खेलेंगे, एक साथ बड़े होंगे, एक साथ जवान होंगे, प्यार करेंगे, शादी करेंगे और बूढ़े हो जाएंगे। फिर एक दिन एक-दूसरे की बाँहों में इस दुनिया से विदा हो जाएंगे। तुम अपना ध्यान रखना और तुम्हें मेरे प्यार की कसम, इस मेल का कोई रिप्लाई मत करना।"

कॉफी बनाई और लैपटॉप उठाकर बालकनी में सोफे पर बैठ गया। शीतल को जवाब भी नहीं लिख पा रहा था मैं... उसने प्यार का वास्ता जो दिया था। थोड़ी देर बाद पापा का मेल खोला और पहला क्लिक बॉयोडाटा पर किया।

नाम- काव्या राणा, जन्म- देहरादून, एजुकेशन- ग्राफिक इरा यूनिवर्सिटी से एमबीए, हाइट- पाँच फीट पाँच इंच, फैमिली में पापा, मम्मी और एक छोटा भाई।

बॉयोडाटा देखकर इतनी खुशी तो हुई कि पापा ने एक पढ़ी-लिखी लड़की पसंद की है मेरे लिए। मेल में काव्या के तीन फोटो और अटैच थे। फोटो पर क्लिक किया, तो मैं बिना किमी भाव के काफी देर तक फोटो देखता रहा। मैं काव्या के फोटो में शीतल को तलाश रहा था। बारी-बारी से तीनों फोटो देखे और लैपटॉप बंद कर, मैं ऑफिस के लिए तैयार होने चला गया।

शाम के करीब चार बजे पापा का फोन फिर से आ गया। "हाँ राज...कैसे हो बेटा?"

"बढ़िया पापा...ऑफिस में हैं।"

"अच्छा अच्छा; तो फोटो देखी तुमने?"

"हाँ पापा, देखी।"

"क्या मन है तुम्हारा फिर?"

“मम्मी ने देखी फोटो?"

"हाँ, तुम्हारी मम्मी को पसंद है लड़की और घर में सभी को पसंद है।"

“ठीक है फिर पापा, आप आगे बात करिए।"

"अरे वाह! तब तुम ऐसा करो, इस संडे ऋषिकेश आ जाओ, काव्या के घर चलना है।"

"ठीक है पापा, मैं आ जाऊँगा।"

"ओके, तो हम लोग तैयारी करते हैं।"

"ओके पापा।" अपने परिवार के लिए मैंने अपनी सारी खुशियाँ कुर्बान कर दी थी। मेरी शादी की बात से पूरा घर खुश था। मम्मी खुश थीं, पापा खुश थे, भाई-बहन खुश थे... बस, मैं ही खुश नहीं था। लेकिन कर भी क्या सकता था। शीतल तो अब ऑफिस में दिखती भी नहीं थीं। नमित, शिवांग और ज्योति को फोन करके सारी बातें बता दी थी।

ऑफिस से निकल ही रहा था कि डॉली का फोन आया। "हाय राज! कहाँ हो तुम अभी?"

"डॉली मैं ऑफिस में हूँ...ऐसे क्यों पूछ रही हो? कोई प्रॉब्लम?"

"अरे नहीं बाबा, कोई प्रॉब्लम नहीं है; मैं यहाँ नोएडा आई हूँ, तो सोचा पूछ लूँ।"

"अच्छा , कहाँ हो तुम?"

“मैं जीआईपी मॉल में हूँ और बम निकल रही हूँ; साथ ही चलो फिर घर।"

"अरे वाह! आ जाओ फिर ऑफिस।"

"ओके आई एम कमिंग।" दस मिनट बाद ही डॉली, ऑफिस के बाहर कार लेकर आ गई। "तुम इराइब करोगे राज?"

"नहीं, तुम्ही करो।" हम दोनों घर के लिए निकल चुके थे। मैं थोड़ा चुप ही था।

"क्या हुआ राज, चुप क्यों हो?"

"बस ऐसे ही।"

"अरे बताओ न क्या हुआ?"

"कुछ नहीं, सुबह पापा का कॉल आया था; एक लड़की की फोटो भेजा था उन्होंने... काव्या नाम है, देहरादून से है।"

“दिखाओ फोटो मुझे।"

"ओके, ये देखो।" डॉली ने कार साइड लगाई और फोटो देखना शुरू कर दिया। फोटो देखने के बाद डॉली ने मोबाइल तो वापस कर दिया, लेकिन कुछ कहा नहीं।

"डॉली, कैसे लगी तुम्हें काव्या?"

"अच्छी है राज ...मुंदर है, तुम्हें मैच करेगी।"

“आर यू श्योर?"

"हाँ,अच्छी है।"

“मैं संडे को जा रहा हूँ ऋषिकेश; काव्या के घर जाना है मिलने।"

"अरे वाह ! ग्रेट...विश यू ऑल द बेस्ट।"

घर आ गया था। मैं कार से बाहर आ चुका था। फोटो देखने के बाद डॉली का रिएक्शन मुझे कुछ अटपटा लगा था। वो मुस्कराई तो थी, लेकिन रास्ते भर उसने कोई बात नहीं की थी।

तीन दिन बीतने के बाद भी उसका कोई फोन नहीं आया। आज शनिबार था और मैं ऑफिस में था।

डॉली का मैसेज आया- “राज, आई वांट टू मीट यू इन द ईवनिंग। ऑफिस से जल्दी आ सकते हो?"

"कुछ स्पेशल?" - मैंने रिप्लाई किया।

"हाँ, समथिंग बेरी स्पेशल ।"

“कितने बजे और कहाँ?”

"सात बजे...कॉफी हाउस।"

"ओके...आई बिल बी देयर।"

फोन रखकर मैं सोचने लगा कि तीन दिन बाद डॉली ने ऐसे अचानक से मैसेज क्यों किया। खैर इस बात का जवाब थोड़ी देर बाद ही मिलने वाला था, तो सोचने में ज्यादा दिमाग नहीं लगाया।
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09-17-2020, 12:43 PM,
#78
RE: RajSharma Stories आई लव यू
ऑफिस से में सीधे कॉफी हाउस पहुंच गया था, ठीक सात बजे। डॉली को वहाँ एक नए रूप में देखकर मैं तो हैरान रह गया। जो डॉली हमेशा शादस, जींस, स्कर्ट, शर्ट और वेस्टर्न ड्रेस पहनती थी, उसने आज बहुत प्यारा ब्लू कलर का सूट पहना हुआ था। खुले बाल, आँखों में काजल, एक हाथ में थोड़ी-सी चूड़ियाँ पहने बो बेहद खूबसूरत लग रही थी।

"अरे वाह ! डॉली ये तुम हो?"- मैंने उसके पास जाकर कहा।

'यस।'

"यू आर लुकिंग सो ब्यूटीफुल डॉली।"

“थॅंक्स राज।"

“सो बॉट्स द स्पेशल?"

"माई बर्थ-डे।”

"ओह बाओ! हैप्पी बर्थ-डे डॉली।"- यह कहते हुए मैंने उसे हग किया।

“थॅंक यू सो मच।"

"तो बर्थ-डे पार्टी में कौन-कौन आएँगे?"

"कोई नहीं। मैंने बताया था न कि मेरे ज्यादा दोस्त नहीं हैं: तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो, तो तुमको बुला लिया बस।"

“नी वे थैक्स।"

हम दोनों एक टेबल पर एक-दूसरे के सामने बैठ गए थे। कई सारी चीजें ऑर्डर भी कर दी थीं। खूब बातें हो रही थीं।
"राज,घर कबजा रहे हो?"

"बस, कल सुबह निकलूंगा।"

"कार से जा रहे हो?" 'हाँ।'

"और वापस कब आओगे?"

"कल रात में ही।"

"ओके । राज, तुम खुश हो न इस शादी से?"

"हाँ डॉली, मैं खुश है; मेरी फैमिली की खुशी ही अब मेरी खुशी है।"

"सही है...जाओ। काव्या अच्छी लड़की है उससे बात करना तुम अलग से... जिंदगी बितानी है तुम्हें उसके साथ।" ।

'हम्म।

"जानते हो राज...जिंदगी में हम कितनी चीजें खो देते हैं, क्योंकि कुछ भी हमारे हाथ में नहीं होता है; सब भगवान जी के ही हाथ में है न, वो जैसा चाहते हैं करते हैं।"

"आई नो डॉली।"

“जिसे हम चाहते हैं और वो हमें न मिले, तो दु:ख होता है; पर कई बार मजबूरी में कुछ और करना पड़ता है। शीतल अगर तुम्हारी जिंदगी में आता तो अच्छा होता, पर कोई नहीं... काव्या के साथ भी खुश रहोगे तुम। उसे खूब प्यार करना, उसे कभी किसी चीज की कमी मत होने देना।"
"हाँ डॉली ।"

"और हाँ, उसे कभी शीतल के बारे में मत बताना, उसे बुरा लगेगा।"

'काव्या बहुत लकी है कि उसे तुम्हारे जैसा लड़का मिल रहा है। जैसे तुमने शीतल को प्यार किया, वैसे ही काव्या को प्यार करना; काव्या के आने के बाद किसी का खयाल भी अपने दिल में मत लाना।"

"हाँ डॉली, मैं जानता हूँ ये सब; मैं बहुत प्यार करूँगा उसे और बहुत ध्यान रखूगा उसका।"

'गुड ।'

"पर ये बताओ, मुझे फोन पर क्यों नहीं बताया कि तुम्हारा बर्थ-डे है? गिफ्ट भी नहीं ला पाया तुम्हारे लिए।"

"राज, तुम आ गए यहाँ, मेरे लिए इससे बड़ा गिफ्ट कोई नहीं है। कल जो अपनी शादी की गुड न्यूज लेकर तुम दिल्ली आओगे, बो मेरा बर्थ-डे गिफ्ट होगा।"

"बो तो होगा ही, पर अभी ये पेन मेरी तरफ से।" ।

"राज, ये मैं नहीं ले सकती हूँ; ये तो तुम्हारा लकी पेन है न और ये बहुत कीमती है।"

"डॉली, दोस्त को दिए गए गिफ्ट की कीमत नहीं देखी जाती और रही बात लकी पेन की, तो मेरे पास रहे या तुम्हारे पास, एक ही बात है।"

डॉली ने पेन, बतौर गिफ्ट रख लिया था। पार्टी भी खत्म हो चुकी थी। मैं और वो वापस अपने-अपने घर आ गए।

"हेलो मम्मी, मैं निकल गया हूँ।” सुबह के चार बजे थे और मैं ऋषिकेश के लिए निकला था। मम्मी को फोन करके बता दिया था। रास्ते भर मैं यही सोचता रहा, कि अगर मेरी आँखों और मेरे चेहरे ने मेरे दिल की सच्चाई काव्या को बता दी, तो क्या होगा।

मैं काव्या के सामने पुरानी यादों की परछाई को लेकर नहीं जाना चाहता था। मैं डर रहा था, फिर भी शीतल मेरे दिमाग से निकल ही नहीं रही थीं। कई बार तो काव्या के बारे में सोचते हुए, मुंह से शीतल का नाम निकल जाता था। एक अजीब-सी हालत हो गई थी मेरी। मैं वो काम करने जा रहा था, जो मेरा दिल नहीं चाहता था... जिसकी मुझे कोई खुशी नहीं थी।

न मन में उमंग थी और न शादी का उत्साह । ऐसा लग रहा था, मानो मैं फार्मेलिटी के लिए ये शादी कर रहा हूँ।

नौ बजे के करीब मैं ऋषिकेश पहुंच गया। घर में घुसते ही किसी त्योहार जैसा माहौल लग रहा था। मम्मी-पापा और भाई-बहन, सब नए-नए कपड़े पहनकर तैयार थे। सबके चेहरे खुशी से खिले हुए थे। गर्मागर्म नाश्ता भी मेरे लिए तैयार था।

घर पहुँचकर सबसे पहले मैं ऊपर अपने कमरे में गया और प्रेश होकर नीचे आया।
"अरे राज ये क्या, तुम लोअर-टीशर्ट में आ गए! भई तैयार हो जाओ, चलना है देहरादून।"

"पापा, पहले नाश्ता कर लें, तब चेंज करूंगा।"

"हाँ, पहले राज को नाश्ता करने दो।

"- माँ।

"हाँ, तुम नाश्ता करो, फिर अच्छे से तैयार होना।"- पापा। माँ ने साथ बैठकर दही-पूड़ी का नाश्ता परोसा। नाश्ते के बाद मैं, पापा-मम्मी, भाई और बहन, देहरादन के लिए निकले। पापा ने कार में बैठते ही काव्या के पापा को फोन कर दिया था। रास्ते भर पापा का वही पुराना राग चलता रहा और मैं कार ड्राइव करता रहा। एक घंटे के बाद हम लोग काव्या के घर पहुँच गए। काव्या के घर में घुसते ही एक बड़ा-सा ड्रॉइंग रूम था, जिसमें बड़े-बड़े चार सोफे पड़े थे। ड्रॉइंग रूम की दीवारों पर बड़ी-बड़ी पेंटिंग्स भी लगी थीं। सभी पेंटिंग्स पर नीचे की तरफ एक कोने में एक चाभी बनी हुई थी।

चाय-नाश्ते के साथ बातों का दौर शुरू हो चुका था। काव्या के पापा-मम्मी और चाचा चाची हमारे साथ बैठे थे। सब लोग एक-दूसरे से बातें कर रहे थे। काव्या के चाचा और चाची ने कई बातें जो मुझसे पूछीं, मैंने बड़ी शालीनता से उनका जवाब दे दिया। काव्या के पापा ने भी छोटी-छोटी चीजें पूछी थी, जैसे- देहरादून तो आए होंगे आप पहले?
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09-17-2020, 12:43 PM,
#79
RE: RajSharma Stories आई लव यू
काव्या की मम्मी बिलकुल मेरे सामने बैठी थीं और बस मुझे देखकर मुस्करा रही थीं। पूरे परिवार के हावभाव से लग रहा था कि उन्हें काव्या के लिए मैं पसंद आ गया हूँ। अंदर से छोटे बच्चों के खिलखिलाने की भी आवाज आ रही थी। पूछने पर पता चला कि चाचा चाची के दो छोटे बच्चे हैं।

थोड़ी देर में चाची, काव्या को लेकर ड्राइंग रूम में आई। बेहद साधारण से सूट में काव्या, फोटो से कहीं ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। उसकी नजरें झुकी हुई थीं। चाची ने उसे मेरी मम्मी के पास सोफे पर बिठा दिया। पापा और मम्मी ने अब काव्या से सवाल शुरू कर दिए। अधिकतर सवालों के जवाब, काव्या की चाची और मम्मी ने ही दिए। काव्या, घबराहट से शांत थी, जैसे हर लड़की इस मौके पर होती है। थोड़ी देर बाद पापा ने काव्या के पापा से उसे वापस अंदर भेजने को कह दिया और काव्या अंदर चली गई।

___“राज, अगर तुम काव्या से कुछ बात करना चाहो, तो अंदर जा सकते हो।"- चाचा ने कहा।

मैं पापा की तरफ देखने लगा।

"हाँ, अगर बच्चे पाँच मिनट आपस में बात कर लें, तो ठीक रहेगा।"- पापा ने कहा।

"हाँ भाईसाहब, बिलकुल; इसमें क्या हर्ज है? आखिर दोनों अपना जीवनसाथी चुनने जा रहे हैं।"- काव्या के पापा ने कहा।

__“सरला! राज को छत पर ले जाओ और काव्या से मिलवाओ।"- चाचा ने चाची से कहा।

चाची के साथ मैं अंदर चल दिया। काव्या अपने कमरे में ऊपर थी शायद। चाची मुझे बुली छत पर लेकर आई। छत पर कुछ कुर्मियाँ पड़ी थीं।

“राज बेटा, तुम यहाँ बैठो, में काव्या को लेकर आती हूँ।"

"ओके चाची जी।"

काव्या की छत से, देहरादून के आस-पास मौजूद पहाड़ियाँ बेहद खूबसूरत लग रही थीं। मैं बैठा नहीं था, बल्कि खड़ा होकर इन वादियों को निहार रहा था। तभी चाची ने आवाज दी।
"राज, काव्या है।"

"ओह! हॉय।"- मैंने पीछे मुड़ते हुए कहा।

"तुम दोनों बात करो, मैं थोड़ी देर में आती हूँ।"- ये कहकर चाची नीचे चली गई।

"काव्या अब भी घबरा रही थी। उसकी नजरें अभी भी झुकी हुई थीं। मैं थोड़ा आगे बढ़ा और काव्या से कहा- "आपकी छत से देहरादून बहुत खूबसूरत दिखता है; कभी नजर उठाकर देखा भी है आपने? अगर नहीं देखा है तो देखिए।"

इसके बाद एकाएक काव्या की नजरें उठीं और मुझसे मिलीं। उसके चेहरे पर एक मुस्कराहट आ गई, पर मेरा चेहरा अभी भी भावहीन था।

“पेंटिंग करती हैं आप?"

"आपको कैसे पता?"

"ड्राइंग रूम में लगी पेंटिंग्स से पता चला।"

"पर उन पर तो मेरा नाम ही नहीं लिखा है, फिर..."

"कई बार नाम की जरूरत नहीं होती है। सभी पेंटिंग्स पर एक ही तरह का साइन बना हआ है, चाबी का और उसी चाबी के डिजाइन की रिंग आपके हाथ में है।"

“मान गए आपको हम।"

"और क्या पसंद है आपको?"

“पेंटिंग के अलावा मुझे क्राफ्टिंग पसंद है और इंटीरियर डिजाइनिंग पसंद है।"

“उसका भी नमूना आपके ड्राइंग रूम में देखा; आपने बहुत अच्छी तरह सजाया है सब।"

"एमबीए के बाद क्या प्लान है?"

“एक अच्छी -मी जॉब।"

“गुड, मुझे यही जवाब सुनना था काव्या।"

"आप कुछ पूछ सकते हैं मुझसे।" ।

"आपकी बातों ने मुझे सब बता दिया आपके बारे में।"- उसने मुस्कराकर जवाब दिया। चाची ने छत का दरवाजा खटखटा दिया था। मैं और काव्या नीचे आ चुके थे। दोनों परिवारों ने शादी के लिए हाथ मिला लिया था। ठीक दस दिन बाद मेरी और काव्या की सगाई की तारीख तय कर दी गई थी। खाने-पीने के बाद हम लोग वापस ऋषिकेश चले आए एक गुड न्यूज के साथ। मम्मी-पापा तो जैसे गंगा नहा लिए।

* * *

सब लोगों को घर छोड़कर, मैं ठीक पाँच बजे दिल्ली के लिए निकल गया था। मम्मी ने दोस्तों को देने के लिए कुछ मिठाई के डिब्बे मेरे साथ रख दिए थे। काव्या के घर पर मेरे चेहरे के भाव कुछ खास नहीं थे। मम्मी शायद समझ गई थीं कि मेरे दिमाग में अब भी शीतल हैं, शायद इसलिए चलते वक्त उन्होंने कई सारे नसीहतें मुझे दे दी थीं। ___

काब्या से शादी के लिए हाँ तो कर दी थी, लेकिन अभी भी मैं कई सारी उलझनों में था। मैं खुद से ही सवाल कर रहा था, क्या मैंने शादी के लिए हाँ करके ठीक किया? कहीं ऐसा तो नहीं कि शीतल का प्यार, काव्या की जिंदगी बर्बाद कर दे? क्या मैं काव्या को उसके हिम्मे का प्यार दे पाऊँगा या नहीं?

कोई नौ बजे थे। मैं दिल्ली पहुँचने वाला था, तभी डॉली का फोन आया। "कहाँ पहुँचे राज?"- उसने पूछा।

"डॉली, मैं एनएच-24 पर हूँ, आधे घंटे में घर पहुंच रहा हूँ।" __

“मिलना है मुझे तुमसे...आई एम वेटिंग फॉर यू; मुझे जानना है, क्या हआ ऋषिकेश

"आई एम कमिंग...बताता हूँ क्या हुआ; सगाई है दस दिन बाद मेरी।"

इतना कहते ही बराबर से गुजरती हुई एक इनोवा कार ने मेरी कार को साइड मार दी। मेरा बैलेंस बिगड़ा और मेरी कार डिवाइडर से जा टकराई। टकराते ही कार का हॉर्न बजने लगा, कार से धुआँ उठने लगा। लाइटें लगातार जल रही थीं और फोन पर मेरी चीख सुनकर डॉली चिल्ला रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी फिल्म का कोई मीन देख रहा हूँ। मेरे सिर से खून बह रहा था। रास्ता जाम हो गया था। कुछ लोग मुझे कार से बाहर निकाल रहे थे। मुझे काफी दर्द हो रहा था। मुझे जो लोग बाहर निकाल रहे थे, उन्हीं में से किसी ने फोन पर डॉली को सब बता दिया।

थोड़ी ही देर में मुझे मैक्स हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया। डॉली भी हॉस्पिटल में पहुँच गई थी। डॉक्टर्स ने उसे काफी रोकने की कोशिश की, लेकिन बो रूम के अंदर चली आई। मैं थोड़ा अचेत था। डॉली के आँसू बह रहे थे,बो काँप रही थी। अंदर आते ही बो मुझसे लिपट गई और एक साँस में कई शिकायतें उसने मुझसे कर डालीं। कार ठीक से नहीं चला सकते हो, कार चलाते हुए बात क्यों कर रहे थे?

मैं बस मुस्करा रहा था। डॉक्टर्स ने ब्लड साफ कर दिया था और अब सिर से खून बहना बंद हो गया था। शायद मुझे दर्द का इंजेक्शन दिया गया था, क्योंकि अब दर्द नहीं हो रहा था। डॉली ने मेरे फोन से पापा को फोन कर दिया था। पापा-मम्मी और भाई-बहन, मेरे एक्सीडेंट की खबर सुनकर दिल्ली के लिए निकल पड़े थे। शीतल को इसके बारे में कुछ भी बताने के लिए मैंने मना कर दिया था।

रात काफी हो चुकी थी। मैंने उसे घर चले जाने के लिए कहा भी, लेकिन उसने हर बार मना किया। उसकी आँखों में अभी तक आँसू थे। मैं बार-बार उसे चुप कराता और वो फिर रोने लगती। डॉली मेरे पास बैठी थी और मेरे माथे को सहला रही थी। थोड़ा आराम पाकर मेरी आँख लग गई।
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09-17-2020, 12:44 PM,
#80
RE: RajSharma Stories आई लव यू
रात में करीब एक बजे पूरा परिवार अस्पताल पहुंच गया था। मैं सोया हुआ था। मेरी हालत देखकर माँ और भाई-बहन का रो-रोकर बुरा हाल था। पापा भी मुझे देखकर घबरा गए थे। मेरे माथे पर भारी भरकम पट्टी बँधी हुई थी। डॉली ने पापा और मम्मी को पूरी बात बता दी। पापा सबसे पहले डॉक्टर्स से मिले और मेरा हाल जाना। डॉक्टर्स ने कहा कि घबराने की बात नहीं है; सिर में बाहरी चोट है, जल्दी ठीक हो जाएगी।

सब लोग कमरे में ही बैठे थे। डॉली, मम्मी को संभाल रही थी। थोड़ी देर में जब सब सामान्य हुआ तो डॉली के पापा अस्पताल आ गए और डॉली उनके साथ अपने घर चली गई।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
"चुप हो जाओ तुम, सब ठीक हो जाएगा।"- पापा ने मम्मी से कहा।

"क्या चुप हो जाऊँ, देखो हालत उसकी... बेटा है...सब आपकी बजह से ही हुआ है।" मम्मी ने कहा

"अरे कैसी बात कर रही हो तुम; मेरी वजह से कैसे हुआ?" – पापा ने कहा।

"और किसकी बजह से। आप ही चाहते थे कि वो घरवालों की मर्जी से शादी करे, अब देखो क्या हुआ।"- मम्मी ने कहा।

"तुम गलत सोच रही हो...इस बात का शादी से क्या लेना है?"- पापा ने कहा।

"आप नहीं समझोगे कभी; मैं माँ हूँ राज की। देहरादून में काव्या के यहाँ भी राज खुश नहीं था... उसके चेहरे पर कोई खुशी नहीं है इस शादी की; वो तो बस हमारी खुशी के लिए शादी कर रहा है, उसकी खुशी शीतल में है राज के पापा, उसकी खुशी शीतल है।" मम्मी ने कहा।

"देखो इन बातों का अब कोई मतलब नहीं है और तुम ये बातें बिलकुल मत करो।" पापा ने कहा।

"हाँ मैं नहीं करूंगी..राज ने हमारी खुशी के लिए काव्या से शादी के लिए हाँ कर दी और आज उसकी जान पर बन आई। राज के पापा, ये काव्या या किसी और के साथ कभी खुश नहीं रहेगा।"

"तो मैं क्या करूँ अब? काव्या के पापा को मैं शादी के लिए हाँ कह चुका हूँ।" – पापा ने कहा।

"मुझे नहीं पता कि आप क्या करेंगे; पर मुझे मेरे बेटे की खुशी चाहिए... मैं अपने बेटे को मरते हुए नहीं देख सकती हूँ।"- मम्मी ने कहा।

"देखो रोना बंद करो, सब ठीक हो जाएगा।"- पापा ने कहा।

"क्या खाक ठीक हो जाएगा...देखो उसकी तरफ; शुक्र है कि कम ही चोट आई उसे वरना...!"- मम्मी ने कहा।

"अरे प्लीज रोना बंद करो; राज के ठीक होने का इंतजार करो।" मम्मी-पापा रात भर सोए नहीं। मम्मी मेरे बेड के पास ही बैठी रहीं, तो पापा सामने सोफे पर बैठकर मुझे देखते रहे। सुबह सात बजे डॉली भी अपने मम्मी-पापा के साथ हॉस्पिटल आ गई। मैं भी जग गया था। मम्मी ने भगवान का कई बार शुक्रिया किया। डॉक्टर भी चकअप के लिए आए थे। मेरी हालत अब ठीक थी।

"डॉक्टर साहब, कैसी है राज की हालत अब?"- पापा ने पूछा।

"सर, राज अब ठीक है; शाम को हम डिस्चार्ज करने की हालत में होंगे... कुछ दिन दबाई चलेगी।"

मम्मी के कंधे पर हाथ रखकर पापा कहीं बाहर चले गए। डॉली, घर से सबके लिए नाश्ता लेकर आई थी। सबने थोड़ा बहुत नाश्ता किया और मैंने सिर्फ जूस पिया इस बीच ऑफिस के लोग मिलने आते रहे। मैंने शीतल को कुछ भी बताने से सबको मना कर दिया था।

शाम को पाँच बजे पापा-मम्मी मुझे डिस्चार्ज कराकर ऋषिकेश ले आए।

ऋषिकेश में पूरा दिन आराम के साथ गुजरता था। आस-पास रहने वाले लोग एक्सीडेंट की खबर सुनकर मुझे देखने आ रहे थे। सब आते थे सहानुभूति देने और मम्मी पापा उन्हें मेरी सगाई की खुशखबरी देकर भेजते थे।

डॉली, रोज फोन करके मेरी हालत जानती रहती थी। सगाई में कुल पाँच दिन ही बचे थे। पापा ने पूरे ऋषिकेश शहर को सगाई का निमंत्रण भेज दिया था। मैंने भी नमित, शिवांग, ज्योति और डॉली के अलावा बाकी दोस्तों को इनवाइट कर दिया था। शीतल को इनवाइट करने का खयाल भी मन में आया था, लेकिन मैंने शीतल को न बुलाना ही बेहतर समझा। शीतल ने मुझे कसम दी थी कि अपनी शादी के बारे में मुझे मत बताना। सब लोग सगाई की तैयारियों में लगे थे, वेन्यू बुक हो चुका था, कैटरर्स भी सहारनपुर से बुलाया जा रहा था। बनारस से पान वाले भी आ रहे थे। शहनाई और संगीत मंडली दिल्ली से बुलाई गई थी। मैं भी अब पूरी तरह ठीक हो गया था। पापा-मम्मी और भाई बहन बहुत खुश थे। सगाई के लिए सभी ने कपड़े भी बनवा लिए थे। मेरे लिए भी मम्मी ने खास शेरवानी बनवाई थी।

आखिरकार वो दिन आ ही गया, जिसका सबको सालों से इंतजार था। मेहमान आने शुरू हो गए थे। नमित, शिवांग पहले से ही तैयारियों में जुटे थे। ज्योति अपने पति आर्यन के साथ पहुंच गई थी। डॉली भी दिल्ली से आ पहुंची थी। पंडाल रंग-बिरंगे फूलों से महक रहा था। सब लोग हाथों में गुलदस्ते लेकर पहुंचने लगे थे। पापा, गेट पर मेहमानों का स्वागत कर रहे थे और मम्मी अंदर मेहमानों की आवभगत में लगी थीं। तय मुहर्त के मुताबिक बारह बजे रिंग सेरेमनी होनी थी। पापा और मम्मी स्टेज पर मेरे पास आ चुके थे। नमित, शिवांग मेरे साथ खड़े थे और ज्योति, डॉली और काव्या को लेने गए थे। ___

मंदिर के घंटों जैसे संगीत के साथ काव्या ने हाल में बनी सीढ़ियों से उतरना शुरू किया था। ऑरेंज कलर के भारी-भरकम लहंगे के सँग, सुनहरी ज्वैलरी पहने काव्या ने वहाँ मौजूद सभी का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। मैं भी काव्या की तरफ देख रहा था, लेकिन उसने आँखों तक चूंघट किया हुआ था। काव्या, रेडकार्पेट पर मेरी तरफ बढ़ रही थी। उसके चलने का अंदाज बिलकुल शीतल जैसा था; उसके होंठों की मुस्कराहट भी शीतल जैसी थी, उसके नाजुक हाथ मुझे शीतल की याद दिला रहे थे। जैसे-जैसे काव्या मेरे नजदीक आती जा रही थी, उसकी हर अदा में मुझे शीतल नजर आ रही थी। मैं काब्या की तरफ घूरने वाली नजर से देख रहा था। डॉली और ज्योति मुझे देखकर मुस्करा रही थीं। नमित और शिवांग भी मेरे कंधे पर थपकी दे रहे थे। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये सब हकीकत है। मैं सोचने लगा कि काव्या और शीतल के अंदर इतनी सारी चीजें एक जैसी कैसे हो सकती हैं।

अगले ही पल काब्या मेरे सामने थी। पापा और मम्मी भी मेरे पास आ गए थे। सगाई की रस्म अब होने को थी। हम दोनों एक-दूसरे को अँगूठी पहनाने वाले थे।

"नमित बेटा, अंगूठियाँ कहाँ हैं?"- पापा ने कहा।

“बस आ रही है अंकल।" इसके बाद एक छोटी-सी बच्ची, मजे हुए थाल में दो अंगूठियाँ लेकर पास आई। उस बच्ची को देखकर मैं हैरान रह गया। मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा कैसे हो सकता है? मने बच्ची से नजर हटाकर, काव्या की तरफ देखा। उसके होंठों से मुस्कराहट का आभास हो रहा था। पापा, मम्मी, नमित, शिवांग, डॉली और ज्योति... सब मेरी तरफ देखकर मुस्करा रहे थे। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने फिर से उस बच्ची की तरफ देखा और फिर से काव्या की तरफ देखा। वो काव्या थी ही नहीं, अब मुझे पूरा विश्वास हो गया था। लेकिन जिसका विश्वास हुआ था, वो सब कैसे हुआ, ये बात समझ में नहीं आ रही थी। मैंने सामने खड़ी लड़की का चूँघट हटाया, तो मैं उछल पड़ा था। मैं खुशी से चिल्लाने लगा था। मैं किसी पाँच साल के बच्चे की तरह कूद रहा था। सब लोग बहुत खुश थे। मेरी आँखों से आँसू निकल आए थे, मैं फूट-फूट कर रोने लगा था। मम्मी की आँखों में भी आँसू थे। मैंने खुशी से पापा की तरफ देखा, तो उन्होंने मुझे गले से लगा लिया।

"बेटा, तुम्हारी खुशी से बढ़कर हमारे लिए कुछ भी नहीं है।''- पापा ने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा।

जीवन की सारी खुशियाँ मेरी झोली में आ गई थीं। मेरा तो जन्म लेना सार्थक हो गया था। जो चाहा वो मिल गया था।

ये छोटी-सी बच्ची मालविका थी और सामने काव्या नहीं, शीतल थीं। मालविका ने अपनी नन्ही उँगलियों से मेरे हाथ को थाम लिया। मैंने पापा के गले से हटकर उसे अपनी गोद में उठा लिया।

मैंने शीतल की आँखों में देखा और गले से लगा लिया। न जाने कितनी देर तक हम दोनों एक-दूसरे को गले लगाकर आँसू बहाते रहे।

"बेटा, खुशी के मौके पर आँसू नहीं बहाते हैं।"- शीतल के पापा ने कहा। नजर घुमाई तो शीतल का पूरा परिवार साथ खड़ा था।

मैं और शीतल, रिंग सेरेमनी के लिए स्टेज पर पहुंचे और एक-दूसरे को रिंग पहना दी। पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा था। इस खास मौके पर गुलाब के फूल बरसने लगे थे। सब लोगों की नजरें हम पर टिकी थीं। ज्योति, आर्यन का हाथ थामे मुस्करा रही थी और डॉली, आँखों मे आँसू पोंछ रही थी।

___ "आई लब यू पापा।"- मालविका ने यह कहकर मेरे और शीतल के हाथ को एक-दूसरे के हाथ में उम्र भर के लिए दे दिया।

"आई लव यू बेटा।"- मैंने मालविका को गोद में उठाते हुए कहा। "एंड आई लव यू शीतल...आई लव यू बेरी मच।"

“आई लब यू टू राज..मैं बहुत प्यार करती है तुमसे; आई लव यू।"


समाप्त
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