09-17-2020, 12:46 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 23,268
Threads: 1,141
Joined: Aug 2015
|
|
Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
कलंकिनी
लेखक -राजहंस
विनीत की विचारधारा टूटी, बारह का घण्टा बजा था। लेटे-लेटे कमर दुःखने लगी थी। वह उठकर बैठ गया। सोचने लगा, कैसी है यह जेल की जिन्दगी भी। न चैन न आराम। बस, हर समय एक तड़प, घुटन और अकेलापन। इन्सान की सांसों को दीवारों में कैद कर दिया जाता है....जिन्दगी का गला घोंट दिया जाता है। वह उठकर दरवाजे के पास आकर खड़ा हो गया। खामोश और सूनी रात....आकाश में शायद बादल थे। तारों का कहीं पता न था। संतरीके बटों की आवाज प्रति पल निकट आती जा रही थी। संतरी ठीक उसकी कोठरी के सामने आकर रुक गया। देखते ही विनीत की आंखों में चमक आ गयी।
"विनीत , सोये नहीं अभी तक.....?"
"नींद नहीं आती काका।" स्नेह के कारण विनीत हमेशा उसे काका कहता था।
"परन्तु इस तरह कब तक काम चलेगा।" सन्तरी ने कहा- अभी तो तुम्हें इस कोठरी में छः महीने तक और रहना है।"
“वे छः महीने भी गुजर जायेंगे काका।" विनीत ने एक लम्बी सांस लेकर कहा-"जिन्दगी के इतने दिन गुजर गये....। छः महीने और सही।"
"विनीत , मेरी मानो....इतना उदास मत रहा करो।” सन्तरी के स्वर में सहानुभूति थी।
"क्या करूं काका!" विनीत ने फिर एक निःश्वास भरी—“मैं भी सोचता हूं कि हंसू... दूसरों की तरह मुस्कराकर जिन्दा रहूं परन्तु....।
" "परन्तु क्या?"
"बस नहीं चलता काका। न जाने क्यों यह अकेलापन मुझसे बर्दाश्त नहीं होता। पिछली जिन्दगी भुलाई नहीं जाती।"
"सुन बेटा।" सन्तरी ने स्नेह भरे स्वर में कहा- "इन्सान कोई गुनाह कर ले और बाद में उसकी सजा मिल जाये तो उसे पश्चाताप नहीं करना चाहिये। हंसते-हंसते उस सजा को स्वीकार करे और बाद में बैसा कुछ न करने की सौगन्ध ले। आखिर इस उदासी में रखा भी क्या है? तड़प है, दर्द है, घुटन है। पता नहीं कि तुम किस तरह के कैदी हो। न दिन में खाते हो, न ही रात में सोते हो। समय नहीं कटता क्या?"
“समय!" विनीत ने एक फीकी हंसी हंसने के बाद कहा-"समय का काम तो गुजरना ही है काका! कुछ गुजर गया और जो बाकी है वह भी इसी तरह गुजर जायेगा। यदि मुझे अपनी पिछली जिन्दगीन कचोटती तो शायद यह समय भी मुझे बोझ न लगता। खैर, तुम अपनी ड्यूटी दो—मेरा क्या, ये रातें भी गुजर ही जायेंगी....सोते या जागते।"
|
|
09-17-2020, 12:47 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 23,268
Threads: 1,141
Joined: Aug 2015
|
|
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
संतरी आगे बढ़ गया और विनीत फिर अपने ख्यालों में गुम हो गया। कभी क्या नहीं था उसकी जिन्दगी में? गरीबी ही सही, परन्तु चैन की सांसें तो थीं। जो अपने थे उनके दिलों में प्यार था और जो पराये थे उन्हें भी उससे हमदर्दी थी। जिन्दगी का सफर दिन और रात के क्रम में बंधकर लगातार आगे बढ़ता चला जा रहा था।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
अर्चना का कॉलिज खुला तो वह भी नियमित रूप से कॉलिज जाने लगी। अर्चना एक रईस बाप की इकलौती सन्तान थी। खूबसूरत ब अमीर होने के कारण वह कालेज में चर्चित थी। अर्चना अपनी पढ़ाई में ध्यान देती। पढ़ाई के अतिरिक्त उसे किसी चीज में कोई इन्ट्रेस्ट नहीं था। कॉलिज के कुछ लड़के उससे दोस्ती करना चाहते थे। मगर अर्चना बहुत ही रिजर्व रहती। लड़के-लड़कियों के साथ ही पढ़ती थी लेकिन किसी भी लड़के से उसकी मित्रता नहीं थी। लड़कियों से भी कम ही थी, जिनके साथ उठती-बैठती थी वह। कॉलिज को वह मन्दिर से भी ज्यादा महत्त्व देती थी और पढ़ाई को पूजा का दर्जा देती थी। कॉलिज के प्रोफेसर उसकी प्रशंसा करते नहीं थकते थे। उसके पास किसी चीज की कमी न थी। वह शानदार चरित्र, बेहिसाब पैसा, खूबसूरती और इज्जत की मालिक थी। इतना सबकुछ होने के बाद भी उसमें घमण्ड नाम की कोई चीज न थी। आज तक उसने कॉलिज में किसी से कोई बदतमीजी नहीं की थी....। मगर, कॉलिज के कुछ लड़के उसे घमण्डी, रईसजादी, पढ़ाकू, आदि नामों से आपस में बातचीत करते। अन्दर-ही-अन्दर अर्चना से खुन्दक खाए बैठे थे क्योंकि वह कभी किसी को फालत् लिफ्ट नहीं देती थी। वह लोग अर्चना को कुछ कहने की हिम्मत नहीं रखते थे....। मगर उसे बेइज्जत करना चाहते थे। एक दिन अर्चना अपनी एक दोस्त कोमल के साथ लाइब्रेरी में बैठी पढ़ रही थी। कॉलिज के बे ही बदतमीज छात्र अर्चना पर नजर लगाए बैठे थे।
"कोमल, मैं एक मिनट में अभी आई.....” अर्चना ने किताब पर नजर जमाए बैठी कोमल से कहा।
"कहां जा रही हो अर्चना?" कोमल ने किताब बंद करते हुए पूछा।
"अभी आई पानी पीकर! तुम मेरे सामान का ध्यान रखना।" यह कहकर वह लाइब्रेरी से बाहर निकल गई। तभी कोमल की कुछ दोस्तों ने, जो सामने ही थोड़ी दूरी पर थीं, उसे अपने पास बुलाया।
कोमल एक मिनट, इश्वर तो आना।" कोमल अपना सामान हाथ में लिये थी। यूं ही उनके पास चली गई। अर्चना की किताबें मेज पर भी भूल गई।
"हां, क्या बात थी?" कोमल ने वहां जाकर अपनी दोस्तों से पूछा।
“यार, एक मिनट बैठ तो सही। तू तो हमसे बिल्कुल ही बात नहीं करती आजकल।”
कोमल उनके साथ बैठ गई। अर्चना को बिल्कुल ही भूल गई कि वह पानी पीने गई है....। उन आवारा छात्रों ने मौका देखकर एक प्रेम-पत्र अर्चना के आने से पहले उसकी पुस्तक में रख दिया और थोड़ी दूर जाकर बैठ गये।
तभी विनीत लाइब्रेरी में आया और बिना इधर-उधर देखे, वह जहां अर्चना की किताबें रखी थीं, दो-तीन कुर्सी छोड़कर पढ़ने बैठ गया। अर्चना बापस आयी तो कोमल को सामान के पास न देखकर वह सकते में आ गई। दो-तीन कुर्सी छोड़कर बैठे विनीत पर एक सरसरी निगाह डालकर वह पुनः पढ़ने के लिए बैठ गई। जैसे ही पढ़ने के लिए किताब खोली—वह तुरन्त चौंकी। किताब का पन्ना पलटते ही एक पत्र रखा नजर आया। उस पर लिखा था-'आई लव यू अर्चना। मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं। मगर कहने से डरता हूं तुम्हारा विनीत।' बस उसके तन-बदन में आग लग गई। आज तक किसी ने उस पर कोई व्यंग्य तक न कसा था....फिर इसका इतना साहस कैसे हुआ? मन-ही-मन सोच लिया, इसे सबक सिखाना चाहिये....वर्ना यह और भी आगे बढ़ सकता है।
|
|
09-17-2020, 12:47 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 23,268
Threads: 1,141
Joined: Aug 2015
|
|
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"हां....हां....कोमल! तुम ठीक कहती हो।" अर्चना ने उसकी बात स्वीकारते हुए कहा। विनीत के गाल पर लगे जोरदार थप्पड़ को याद करके अर्चना के मुंह से निकला। "ओह!” अर्चना मन-ही-मन शर्मिन्दा हो उठी।
कोमल अर्चना के चेहरे पर शर्मिन्दगी के भाब देखकर बोली-“तुमने जल्दबाजी में बड़ा गलत काम कर डाला अर्चना। विनीत एक बेहद शरीफ युबक है। मैं उसे अच्छी तरह जानती हूं। तुम्हें इस कॉलिज में आये एक ही बर्ष हुआ है, इसीलिए तुम नहीं जानतीं उसे।" वह अतीत में खो गई।
“तुम कैसे जानती हो उसे?" अतीत में खोई कोमल को अर्चना ने जगा दिया।
जब मैं कॉलिज में प्रवेश लेने के लिये आयी थी तो बहुत डरी-डरी सी इधर-उधर घूम रही थी। कोई भी कुछ बताने को तैयार न था। मुझे कुछ भी पता नहीं था कहां से फार्म लेना है, कहां फीस जमा करनी है? अचानक विनीत से मुलाकात हो गई। विनीत ने मेरा एडमिशन कराया, मुझे किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं उठाने दी। उसकी जान-पहचान की वजह से मेरा सब काम आसानी से हो गया।" वह एक लम्बी सांस खींचकर चुप हुई, फिर बोली-"मगर मैं उससे प्यार कर बैठी। कुछ दिन बाद मैंने किसी तरह उससे अपने दिल की बात कह डाली। इस पर उसने मुझे एक लम्बा-चौड़ा लेक्चर सुनाया और 'आइन्दा मुझसे बात न करना' कहकर मेरे पास से चला गया।" उसने अपने दिल की पूरी किताब खोलकर रख दी।
अर्चना बड़े ध्यान से उसकी बात सुन रही थी। कोमल फिर बोली-"विनीत तो मेरी जिन्दगी में न आ सका, मगर उसके बाद मनोज मेरी जिन्दगी में आया। उसने विनीत की यादें मेरे दिल से निकाल फेंकी। वह मुझे बहुत प्यार करता है। उसके बाद मैं कभी विनीत से नहीं बोली। मगर आज तुमने उसको थप्पड़ मारकर मेरे दिल की पुरानी यादों को ताजा कर दिया....."
"गलती हो गई कोमल।" धीमे स्वर में बोली अर्चना।
कोमल अर्चना का बुझा-बुझा चेहरा देख रही थी। अर्चना ने कुछ सोचकर कहा- मैं विनीत से माफी मांग लूंगी। लेकिन कोमल....तुम ये बताओ कि....तुम यहां पढ़ाई करने के लिये आती हो या इश्क फरमाने के लिये?"
“यही बात विनीत ने भी कही थी मुझे।" कोमल मुस्कराकर बोली।
क्या मतलब?" अर्चना चौंक उठी।
"लेकिन क्या करूं अर्चना वहन! ये कम्बख्त दिल है ना, समझाने पर भी नहीं समझता। किसी न किसी पर आ ही जाता है। वैसे सबसे पहले तो विनीत पर ही आया था।” कोमल मुस्करा रही थी।
|
|
09-17-2020, 12:47 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 23,268
Threads: 1,141
Joined: Aug 2015
|
|
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
विनीत के ये शब्द उसके दिल पर शोलों की तरह पड़े....अर्चना कातर हो उठी।
अर्चना विनीत को किसी भी तरह हीन भावना का शिकार होने से बचाना चाहती थी। वह विनीत को समझाने वाले स्वर में बोली-"वि....नी....त....मैं ये अच्छी तरह जानती हूं कि मैं एक अमीर बाप की इकलौती औलाद हूं। मगर इसका मतलब ये नहीं कि मैं किसी भी गरीब व्यक्ति की इज्जत का जनाजा अपनी अमीरी के घमण्ड में उठा दूं। नहीं विनीत नहीं! मैं अमीर जरूर हूं मैं ये मानती हूं, मगर मैंने कभी खुद को दौलतमंद नहीं समझा। विनीत, दौलत तो हाथ का मैल है, कब उतर जाये क्या पता! और ऐसा नहीं है कि अमीर लोग कुछ और दुनिया से निराली चीज खाते हैं। जो अन्न गरीब लोग खाते हैं, वो ही अमीर लोग खाते हैं, फिर....ये अमीरों-गरीबों का क्या....?" अर्चना की आंखें भर आईं। आवाज हलक में अटक गई, जिसने उसे चुप होने पर मजबूर कर दिया।
विनीत अर्चना की आंखों में आये आंसुओं को देख रहा था, उसकी समझ में नहीं आया कि वह क्या करे।
जैसे ही अर्चना की नजर विनीत पर पड़ी, वह उसे ही देख रहा था। अर्चना ने अपने आंसू पोंछे और आगे बोल पड़ी "आप मेरी गलती की क्या सजा देना चाहते हैं? गलती तो इन्सान से हो ही जाती है और मैं तो गलती का अहसास करके आपके सामने प्रायश्चित कर रही हूं। आप नहीं समझ सकते....मैं अनजाने में की गई इस गलती से किस कदर परेशान हूं....हकीकत जानने के बाद मैं आपसे क्षमा मांगने के लिये बेचैन हो उठी हूं....।" वह सिसकने सी लगी।
अर्चना को सिसकते देख विनीत ने थोड़ी पास बैठकर धीरे से कहा- यह आप क्या कर रही हैं?"धीरे से कहा-"आपका एक-एक आंसू कीमती है।"
अर्चना ने अपना मुंह ऊपर को करते जैसे अपनी भावनाओं पर काबू पाते हए कहा, "यह मिस....मिस क्या कर रहे हैं....? मेरा नाम अर्चना है....आप मुझे अर्चना कह सकते हैं।"
"अब आप चाहती क्या हैं?" विनीत उलझ गया।
"मैं....मैं चाहती हूं....।" वह हकलायी—“कि आप मुझे माफ कर दीजिये। आप नहीं जानते मैं किस नेचर की लड़की हूं। आप चाहें तो पूरे कॉलेज से पूछ सकते हैं। मुझे कॉलिज में आये काफी दिन हो गये हैं, मगर मैं आज फर्स्ट टाईम किसी लड़के से बात कर रही हूं। मेरी सोच सबसे अलग है....मैं कॉलेज को....मन्दिर और शिक्षा को पूजा मानती हूं। मुझे कॉलिज में आये काफी दिन हो गये हैं मगर मैं आज फर्स्ट....टाईम किसी लड़के से बात कर रही हूं। मुझे अपने बेदाग चरित्र पर एक हल्का-सा भी दाग बर्दाश्त से बाहर है। अपनी किताब में रखा बो पत्र देखकर मैं आपे से बाहर हो गई थी। मेरे मस्तिष्क की एक-एक नस झन्ना गई थी। मस्तिष्क ने सोचना-समझना बंद कर दिया था। बस गुस्से में आकर मैं आप पर हाथ उठा बैठी। मैं जानती हूं कि मेरी गलती छोटी नहीं है, काफी बड़ी गलती है। मगर ऐसी भी नहीं कि क्षमा योग्य नहीं हो। वह गलती अन्जाने में हुई है। मैंने जानबूझकर नहीं की है। तब भी आपकी नाराजगी खत्म नहीं होती....तो मैं आपके सामने हूं, आप जो चाहे मुझे सजा दे सकते हैं।"
"मैं बदले की भावना नहीं रखता।" विनीत धीरे से बोला।
"तो फिर आप मुझे क्षमा कर दीजिये।" अर्चना के चेहरे पर मासूमियत साफ दिखाई दे रही थी।
|
|
09-17-2020, 12:47 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 23,268
Threads: 1,141
Joined: Aug 2015
|
|
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"देखिये, मिस अर्चना जी, मैं एक गरीब आदमी हूं। मेरे और आपके स्टैण्डर्ड में जमीन आसमान का फर्क है। क्षमा....लेन-देन तो बराबर के लोगों में होता है। मेरी और आपकी कोई बराबरी नहीं। मैंने जो कपड़े पहने हैं, एकदम सस्ते हैं। आपके जैसी ड्रेस मेरे पिता अपने एक महीने के वेतन से भी नहीं खरीद सकते। आप कार से आती-जाती हैं और मैं बसों के धक्के खाता फिरता हूं। आपकी एक छोटी-सी बीमारी के लिये एकदम डॉक्टर बुला लिये जाते होंगे, जबकि हमें बड़ी से बड़ी बीमारी होने पर भी सरकारी अस्पतालों के धक्के खाने पड़ते हैं।" अर्चना उसके मुंह से निकलने वाले एक-एक शब्द को बहुत ही ध्यान से सुन रही थी—“सच में आपमें और हममें जमीन-आसमान जितना फर्क है। आप मुझ गरीब के साथ बेकार में ही अपना कीमती समय नष्ट कर रही हैं।" इतना कहकर विनीत तीर की तरह पार्क से बाहर निकल गया। सड़क पर आती बस को रोककर उसमें चढ़ गया।
अर्चना पार्क की सीट पर गुमसुम-सी बैठी रह गई। वह थोड़ी देर बाद सीट से उठी और बोझल कदमों से कॉलिज की ओर बढ़ने लगी। लेकिन शायद वह इस बात से अन्जान थी कि वह तो अपना दिल उसे हार बैठी थी। मगर वह यह नहीं जानती थी कि विनीत एक मिट्टी के माधो की तरह है। उसे किसी भी लड़की में कोई इन्ट्रेस्ट नहीं है। वह तो केवल पढ़ाई में ही अपना इन्ट्रेस्ट रखता है। कॉलिज में बापस आयी तो लड़कों का बही ग्रुप, जिसने ये ओछी हरकत की थी, उसको देखकर खिलखिलाकर हँस रहा था। वह उनको इगनोर करके लाइब्रेरी में जाकर बैठ गई। किताब खोलकर किताब पर झुक गई....मगर किताब में उसको विनीत की ही तस्वीर नजर आ रही थी। पढ़ाई में मन नहीं लगा। उसने हारकर....किताब बंद की और घर जाने के लिये उठ खड़ी हुई। एक गहरी सांस लेकर बड़बड़ा उठी वह—'मैं भी आसानी से हार मानने वाली नहीं विनीत! जिन्दगी में पहली बार कोई गलती की है मैंने। जब तक तुम मुझे दिल से क्षमा नहीं करोगे, मैं तुम्हारा पीछा छोड़ने वाली नहीं हूं।' वह अपनी कार में आकर बैठ गई और चल दी घर की ओर। सारा दिन कमरे में बंद रही। खामोश रात में अर्चना के कानों में विनीत की कहीं बातें गूंज रही थीं। वह बैड पर लेटी लेटी बेचैनी से करवटें बदल रही थी। मगर चैन तो कहीं गुम हो गया था। अर्चना की नींद चैन विनीत चुरा ले गया था। उसकी आंखों में विनीत का सुन्दर किन्तु मासूम चेहरा घूम रहा था। उसकी याद आते ही वह भाव-विभोर होकर बैठ जाती। वह सोने की पूरी-पूरी कोशिश कर रही थी। मगर नींद तो आने का नाम ही नहीं ले रही थी। वह हारकर आखें बंद करके पलंग पर लेट गई। कब नींद आई, उसे नहीं पता।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
|
|
09-17-2020, 12:47 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 23,268
Threads: 1,141
Joined: Aug 2015
|
|
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
दूसरे दिन जब कॉलिज आई तो सबसे पहले वह लाइब्रेरी में पहुंची। लाइब्रेरी में जाकर वह उसी सीट पर बैठ गई जहां अक्सर बैठा करती थी। मगर....विनीत उसे कहीं नजर न आया फिर। वह क्लास में चली गई। उसका दिल परेशान हो गया। मगर वह अपनी परेशानी किसे बताती? कोई सुनने वाला न था। उसने तब से ही कोमल से दोस्ती खत्म कर दी थी जब से उसे कोमल के कैरेक्टर के विषय में पता चला था। उसकी आंखों में तो आंसू का एक कतरा न था, मगर दिल जैसे आंसुओं का सागर बन चुका था। वह बार-बार लाइब्रेरी में आकर झांकती, मगर विनीत का कहीं पता न था। शायद वह आज कॉलिज नहीं आया था। अर्चना की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी। वह मायूस हो गई। क्योंकि वह उसके घर के विषय में भी नहीं जानती थी। अब करे तो क्या करे? हारकर वह अपने घर चली गई।
मायसियों का सिलसिला कई दिन तक चलता रहा। वह रोज आती और इसी तरह परेशान होकर इधर-उधर भटकती फिरती और फिर हारकर रोज की तरह निराश-सी होकर घर को लौट जाती। पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लग रहा था। एक दिन वह कालेज से जा रही थी तो रास्ते में उसे विनीत दिखाई दिया। उसने अपनी गाड़ी रोकी ब साइड में खड़ी कर दी। उतरकर विनीत के करीब गई। विनीत को देखते ही अर्चना की आंखों में चमक आ गई। मगर वह ऐसे सड़क पर उससे बात भी नहीं करना चाहती थी। उसे डर था कि कहीं कोई देख न ले। किसी ने देख लिया तो बेकार में ही बदनामी होगी। वह अपने चरित्र पर कोई भी उंगली उठवाना नहीं चाहती थी। किसी के कदमों की आहट सुनकर विनीत ने पीछे देखा तो अर्चना थी। वह उसे देखकर ठिठक गया। फिर नजरें घुमाकर आगे चल दिया।
विनीत के इस अन्दाज ने अर्चना को हिला दिया। वह बहीं-की-बहीं खड़ी रह गई। उसने मन-ही-मन निश्चय किया कि वह उससे जरूर मिलेगी।
आखिर वह मुझसे दूर क्यों भाग रहा है? अन्जाने में हुई गलती की इतनी बड़ी सजा क्यों दे रहा है। इन्हीं सोचों में गुम विनीत को वह तब तक जाता देखती रही जब तक वह आंखों से ओझल न हो गया। फिर वह वापस अपनी कार के पास आयी। एक झटके से स्टेयरिंग सीट का गेट खोला और सीट पर बैठ गई। कुछ देर तक वह रुकी हुई कार में बैठी रही। ना चाहते हुए भी उसने गाड़ी स्टार्ट की और घर की ओर चल दी। खाली सड़क थी मगर फिर भी गाड़ी....धीरे-धीरे चल रही थी। वह चाहकर भी विनीत का ख्याल दिल से नहीं निकाल पा रही थी। तभी उसकी अन्तरात्मा ने उससे पूछा—'आखिर क्यों तुम उससे मिलने के लिये इतनी बेचैन हो?' अर्चना के दिल ने तुरन्त जवाब दिया- अपनी गलती की माफी मांगनी है मुझे....।'
आत्मा ने फिर कहा- उस दिन माफी मांग तो ली थी तमने....अब और क्या....चाहती हो....? वह काफी नहीं जो तुमने उस रोज पार्क में बैठकर कहा था....। फिर उसकी और तुम्हारी बराबरी भी क्या है?'
अर्चना के दिल से फिर आवाज उभरी—'हां, मैंने उससे माफी मांग ली थी। मगर उसने मुझे क्षमा किया ही कहां किया था? वह तो बीच में ही वहां से उठकर चला गया था। बस मैं ये ही चाहती हूं कि वो मुझे क्षमा कर दे....।'
'वह माफ नहीं करता तो न करे! तुम उसके पीछे इतनी परेशान क्यों हो रही हो?' उसकी अन्तरात्मा ने फिर कचोटा,
‘वह क्या लगता है तुम्हारा?' इसका जवाब तोअर्चना के खुद के पास भी नहीं था। वह बेचैन हो गई-आखिर वह उसका लगता क्या है? तभी उसकी आत्मा ने कहा- 'मैं बताती हूं कि तुम उसे चाहने लगी हो....| तुम्हें उससे प्यार हो गया है....।'
'नहीं! ऐसा नहीं है। वह बड़बड़ा उठी।
ऐसा ही है अर्चना! बरना तुम इतने दिनों से उस अजनबी इन्सान के लिये इतनी परेशान क्यों हो? जबकि तुमने जान-बूझकर कोई गलती नहीं की है....और फिर भी तुम उससे क्षमा मांग चुकी हो—अब तुम्हारा काम खत्म। वह क्षमा नहीं करता तो न करे, तुम पर कौन-सा फर्क पड़ता है? मगर नहीं, तुम फिर भी उससे मिलने को बेचैन हो। तुम्हारी बेचैनी उससे क्यों मिलना चाह रही है? क्योंकि तुम्हारी नीद और चैन वह ले जा चुका है। हर वक्त क्यों उसके बारे में सोचती रहती हो? पढ़ाई में क्यों मन नहीं लग रहा है? आज तक कभी एक पीरियड भी मिस नहीं किया....और अब एक हफ्ता होने को आ रहा है, तुमने पढ़ाई ही नहीं की—इसका मतलब क्या है? 'आज भी सुवह से उसी का इन्तजार कर रही हो, आखिर क्यों? साफ जाहिर है कि तुम्हारा दिल उसे चाहने लगा है।' अर्चना के दिल ने कहा-'हो सकता है....।'
'मगर अर्चना, यह तुम्हारे लिये बहुत बुरा है। मस्तिष्क ने सरगोशी की।
'आखिर क्यों?' अर्चना का दिल हलक में आ गया।
'क्योंकि वह तुम्हारे काबिल नहीं है।' अर्चना भावुक हो गई–क्या बकती हो?'
|
|
09-17-2020, 12:48 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 23,268
Threads: 1,141
Joined: Aug 2015
|
|
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
वह अपनी अन्तरात्मा से उलझ पड़ी। 'मैं बकतीह?'आत्मा को गुस्सा आ गया— मैं ठीक कह रही हूं। तुम करोड़पति बाप की इकलौती औलाद! कहां वह गरीब मां-बाप का साधारण-सा बेटा। तुम और बो नदी के दो किनारों के समान हो....जो कभी आपस में मिल ही नहीं सकते।' अर्चना की आंखें भर आईं। मगर उसके दिल ने मोर्चा सम्भाले रखा—'वह साधारण नहीं है, वह लाखों में एक है। उसके जैसे चरित्रवान व्यक्ति आजकल कम ही देखने को मिलते हैं। उसके चरित्र के विषय में मैं कोमल से भी सुन चुकी हूं। दुनिया में पैसा ही सब कुछ नहीं है। पैसा चला जाए तो दुबारा आ सकता है, लेकिन किसी के चरित्र पर एक छोटा-सा भी दाग लग जाये तो वह कभी नहीं मिटता और विनीत का चरित्र बेदाग है।' अन्तरात्मा अर्चना के दिल की मजबूत दलीलों से कुछ ढीली पड़ गई। फिर बोली- चलो मान ली तुम्हारी बात, मगर क्या तुम्हारे पिता....उसे....अपना दामाद स्वीकार कर लेंगे?'
'अब ये दामाद बाली बात कहां से आ गई?' अर्चना सकपका गई।
'क्यों....प्यार के बाद बिबाह नहीं करोगी?'
'विवाह के विषय में मैंने अभी कुछ नहीं सोचा।'
'तो क्या विनीत से विवाह नहीं करोगी?'
'अगर वह तैयार न हुआ तो क्या करोगी?'
अब अर्चना ने अपनी गर्दन गर्व से ऊपर उठाई_नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। मेरा प्यार। मेरा नेचर, मेरा करेक्टर उसे इन्कार ही नहीं करने देगा। एक बार उससे मेरी बात हो जाए, फिर देखना वह भी मेरी चाहत का दीवाना हो जाएगा। वह भी बैसी ही बेचैनी महसूस करेगा जैसी आज मैं उसके लिये कर रही हूं।"
'लेकिन अर्चना, मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे पिता उस फटीचर से तुम्हारी शादी करने को तैयार हो जाएंगे।' अन्तरात्मा ने कहा।
'सांच को आंच कहां? अगर मेरा प्रेम सच्चा है और उसे पाने की लगन सच्ची है तो दौलत तो क्या दुनिया की कोई भी ताकत हमें अलग नहीं कर सकती।'
'तुम जैसे प्रेम की भावनाओं में वहने बाले, ख्याली पुलाब पकाने बालों की भावनाएं हकीकत के समुद्र की एक लहर से ही वह जाती हैं।'
अर्चना का दिल चीख उठा—'नहीं! मेरी मौहब्बत में बहाब नहीं है। वह चट्टान की तरह बुलन्द और मजबूत है....उसे कोई नहीं बहा सकता....कोई नहीं।'
'कहने और करने में बहुत फर्क है मिस अर्चना जी! देखते हैं कितना अमल करती हो अपनी बातों पर.....।' '
अब इसमें अमल करने वाली बात कहां से आ गई....?' अर्चना का दिल असमंजस में पड़ गया।
'जहां तक मैं समझ सकती हूं कि तुम जैसी अमीर लड़की विनीत जैसे गरीब ब्यक्ति के साथ गुजारा नहीं कर सकती।'
'मगर जहां तक मेरा ख्याल है....आप एकदम गलत सोच रखती हैं।' इतना कहकर अर्चना मुस्करा उठी। अर्चना की आत्मा और दिल में होने वाला वार्तालाप विच्छेद हुआ तो वह अपने घर के समीप थी। उसने गाड़ी की स्पीड थोड़ी तेज की और घर पहुंच गई।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
|
|
|