Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-28-2020, 02:13 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
इधर उसका हाथ मेरे सपाट पेट पर खेल रहा था। उसने धीरे धीरे अपना हाथ मेरी नाभी से नीचे खिसकाना शुरू किया। ओ मां, जैसे जैसे उसका हाथ मेरी योनि की ओर पहुंच रहा था, मेरी सांसें धौंकनी की तरह चलने लगी थीं। अंततः उसके दाहिने हथेली का स्पर्श पैंटी के ऊपर से ही मेरी योनी पर हुआ। सारा शरीर गनगना उठा, “ऊ्ऊ्ऊ्ई्ई्ई्ई… मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ,” मेरे अपने बेटे के हाथ का स्पर्श मेरी योनी पर! “उफ्फ भगवान” मेरे शरीर के अंदर मेरी धमनियों में रक्त का संचार उफान पर था। धधकने लगी मेरी कामाग्नि। झुलसने लगी मैं उस धधकती कामाग्नि में। मेरी योनि के अंदर से लसलसा द्रव्य निकलने लगा जिसके कारण मेरी पैंटी गीली होने लगी। ज्यों ही क्षितिज को मेरी पैंटी के गीलेपन का अहसास हुआ, वह बोल उठा, “यह क्या मॉम, आपकी पैंटी तो गीली हो गई है। इसे भी उतार दीजिए।” उसकी आंखों में एक मैं जो कुछ देख रही थी उसमें एक जिज्ञासा थी और उसकी आवाज में उत्तेजना की झलक।

“छि: छि: गंदे। यह क्या कह दिया? वहां कहाँ हाथ लगा रहा है? उफ्फ मेरे बच्चे, यह क्या कर रहे हो? हाय राम, लाज से मर जाऊंगी मैं।” मेरी आवाज में कोई विरोध नहीं था और न ही मेरा कोई प्रयास। मेरी बातों से फिर मेरे बच्चे के मन में कोई मायूसी न आए यह सोच कर तुरंत बोली, “तू उतारे बिना थोड़ी न मानेगा? चल खुद ही उतार दे, कर दे अपनी मां को नंगी और जी भर के अपनी मां के नंगे जिस्म का दीदार कर। उफ्फ मेरे प्यारे ब्वॉयफ्रेंड, मेरे बेटे, मेरे बच्चे, देख ले अपनी गर्लफ्रैंड का मादरजात नंगा बदन, जी भर के महसूस कर, प्यार कर, जो मर्जी वह कर माई डार्लिंग।” मैं उत्तेजना के आवेग में बोलने लगी। मुझसे अब रहा नहीं जा रहा था। जो होना है हो ही जाय भगवान।

“लो मेरी जानेमन मॉम, उतार दिया आपकी पैंटी। आह, यह क्या मॉम, आपकी चिकनी मुत्तू…..,” आगे शायद उसे शब्द नहीं मिल रहा था, तनिक रुका,

“आह्हह मेरे नादान बलम, मुत्तू नहीं रे शैतान, योनि बोल, चूत बोल, बुर बोल, मुनिया बोल” तुरंत मैं बोल पड़ी।

“हां हां आपकी चिकनी मुनिया कितनी खूबसूरत है मॉम, लेकिन यह लसलसा सा रस क्यों निकल रहा है?” वह मेरी चमचमाती फूली हुई योनि को अचंभे से देखते हुए बोला।

“अब मैं तुझे क्या बताऊँ मेरे बच्चे? अभी तू कैसा महसूस कर रहा है ये बता?”

“उफ्फ डियर, अजीब सा फील कर रहा हूँ। ऐसी फीलिंग पहली बार हो रही है। ऐसा लग रहा है आपसे कस के लिपट जाऊं। आपके जिस्म में समा जाऊं। मेरा मुत्तू…..” फिर रुका वह,

मैं समझ गई वह अपने लिंग को मुत्तू कह रहा है, “मुत्तू नहीं रे बुद्धू रसिया, लिंग बोल, लंड बोल, लौड़ा बोल, पपलू बोल” तुरंत मैं बोल पड़ी।

“हां हां वही, मेरा पपलू हार्ड हो गया है, उफ्फ मेरी जादूगरनी मॉम, क्या हो रहा है मेरे साथ?” वह उत्तेजना के आवेग में बोला।

“बस बस मेरे बच्चे, यही हाल मेरा भी हो रहा है इसीलिए मेरी मुनिया से यह पानी निकल रहा है, आह मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ” मैं बमुश्किल बोल पा रही थी। अब मैं पूरी तरह नंगी हो चुकी थी। अबतक मैं अपनी ओर से कोई पहल नहीं कर रही थी, जो भी कर रहा था वह मेरा नादान बेटा कर रहा था, किंतु अब मैं भी धीरे धीरे उसके सीने को सहलाने लगी।

“हाय मेरे बेटे, धीरे धीरे अपनी गर्लफ्रैंड को तो नंगी कर दिया और मेरे बदन को देख लिया, अब अपने कपड़े उतार कर अपनी गर्लफ्रैंड को भी अपने खूबसूरत बदन का दर्शन करा दे पगले। कब से मरी जा रही हूँ अपने ब्वॉयफ्रेंड के नंगे जिस्म को देखने के लिए।” मैं बदहवासी के आलम में बोली।

“ओके मॉम, लो, आप भी देख लो अपने ब्वॉयफ्रेंड का जिस्म” कहते न कहते पलक झपकते खड़ा हो गया और मुक्त हो गया अपने कपड़ों से। उफ्फ भगवान, इतना खूबसूरत जिस्म दिया था भगवान ने उसे। बिल्कुल कामदेव का अवतार लग रहा था। गठा हुआ शरीर, चौड़ा चकला सीना, सीने पर हल्के रोयें, मांसल मांसपेशियों वाली भुजाएँ और और ओ मेरी मां, उसका उफान मारता फनफनाता करीब आठ इंच लंबा और उसी के अनुपात में मोटा, बेहद सुंदर चिकना लिंग, अपलक देखती रह गयी मैं।

“हाय राम, इतने खूबसूरत हो मेरे बच्चे। आ जा अपनी गर्लफ्रैंड को अपनी बांहें में ले ले।” मैं अपने बांहें खोल कर आमंत्रण दे बैठी। वह बेचारा, अनाड़ी, उत्तेजना का मारा, कूद कर आ गया मेरी बगल में और मुझे बांहों में ले कर दुबारा चूमना आरंभ किया। उफ्फ भगवान, मेरा नंगा जिस्म, मेरे अपने कोख जाए बेटे के नंगे जिस्म से चिपका, मेरे अंतरतम को अजीब सा सुखद अनुभव प्रदान कर रहा था। अभी भी मेरे अंदर अंतरद्वंद चल रहा था, उचित अनुचित का। भगवान मानो मेरी मन:स्थिति पर हंस रहा था। मैं मन ही मन बोल रही थी, “हंस रहे हो भगवान? यह सब कुछ तो तेरा ही किया धरा है।”

“पगली, मैंने क्या किया? जो कुछ आज तक तेरे साथ हुआ और अभी हो रहा है, उसकी जिम्मेदार तुम खुद हो।” भगवान मानो मुझ से कह रहे थे।

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11-28-2020, 02:13 PM,
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“लेकिन परिस्थितियां तो तूने ही पैदा की थी।”

“मैं ने मनुष्य को बुद्धि दी है। विवेक दिया है। अपना निर्णय लेने की स्वतंत्रता प्रदान की है। मुझे क्यों दोष देती हो?”

“विवेक का सवाल तो तब आता है जब मुझे अच्छे बुरे का ज्ञान हो। मेरी नादानी में एक बूढ़े द्वारा मेरा कौमार्य भंग हो रहा था उस वक्त तुम कहाँ थे? जबतक मुझे सही गलत की जानकारी होती, तबतक तो मैं वासना के दलदल में धंस चुकी थी। अब जब मेरे अंदर कामुकता की अदम्य ज्वाला धधकती रहती है, उसके लिए क्या तुम दोषी नहीं हो?”

“नहीं बिल्कुल नहीं। अभी जब तुम्हारे अंदर यह संघर्ष चल रहा है, क्या यह तुम्हारे विवेक का परिचायक नहीं है? अब इसमें अच्छाई की जीत होती है या बुराई की जीत होती है, यह तो तुम्हारी मानसिक दृढ़ता पर निर्भर करता है।”

“देखो, इस वक्त मैं बहस के मूड में नहीं हूं। हो सके तो अपने कामदेव को समझाओ, जिसने मुझे गुलाम बना रखा है। वरना मेरी हालत पर हंसो मत, न ही इस वक्त हमारे बीच दखल दो।”

“तुझे जो करना है कर कुलटा अपने बेटे के साथ, मुझे बीच में मत घसीट।”

“हां, इस वक्त वैसे भी तुम्हारे उपदेश और तर्क की मुझे कोई परवाह भी नहीं है। भाड़ में जाओ तुम और तुम्हारा उपदेश।” मन ही मन बोली और सारे अंतरद्वंद को तिलांजलि दे कर कूद पड़ी कामदेव के खेल में अपने खुद के बेटे के साथ, जो अब तक मेरे शरीर को चूमते हुए सर से मेरी योनि तक पहुंच चुका था।

ज्यों ही उसके होंठों का स्पर्श मेरी योनि पर हुआ, सारा शरीर झंकृत हो उठा। तड़प उठी मैं, “उ्ऊ्ऊ्ऊ्ई्ई्ई्ई्ई…… मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ” सीत्कार निकल गई मेरे मुख से। उस अनाड़ी को तो पता भी नहीं था कि एक व्यस्क स्त्री की योनी कैसी होती है। मेरे जैसी सेक्स की आदी स्त्री की योनि के दर्शन का, जो न जाने कितने पुरुषों के विभिन्न प्रकार और नाप के लिंग का स्वाद चख कर फूल कर पावरोटी की तरह कुप्पा थी, मेरे बेटे के लिए पहला अवसर था। उसकी उत्सुक नजरों में यही अति चित्ताकर्षक लग रहा था। हालांकि उसे अभी तक सिर्फ यही पता था कि यह एक स्त्री का मूत्रमार्ग है, लेकिन प्रकृति की लीला तो देखिए, वह प्राकृतिक तौर पर ही मेरी योनि को विशेष आकर्षण का केंद्र समझ लिया था। बिना यह जाने कि रतिक्रिया में इसी की विशेष भूमिका है, वह बेहताशा चूमे जा रहा था, चाटे जा रहा था और मैं पागल हुई जा रही थी, उसके सर को सहला रही थी, अपने नितंबों को उछाल उछाल कर उसके मुंह से अपनी योनि का संगम करा रही थी। इसी दौरान उसे पता नहीं क्या हुआ, अचानक चाटते चाटते अपनी जीभ मेरी यौन गुहा के अंदर भी घुसा दिया। उफ भगवान, स्वर्ग अगर कहीं है तो यहीं है यहीं है। मेरे भगांकुर से उसकी जीभ का संपर्क मुझे जन्नत दिखा रहा था। यह सब वह अनजाने में, बिल्कुल पशुओं की तरह स्वभाविक तौर पर कर रहा था, जिसे हम पाशविक प्रवृत्ति के रूप में जानते हैं।

“आह राजा, ओह बेटा, ओह मेरे ब्वॉयफ्रेंड, उफ्फ मेरी जान, आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह” यह सब इतना उत्तेजक था कि कुछ ही मिनटों में मैं थरथराने लगी और खुद को संभाल नहीं सकी, उसके सर को अपनी योनि से कस कर चिपका लिया, अपनी जांघों के बीच उसके सर को कस लिया और अद्वितीय स्खलन सुख में डूबती चली गयी।

जैसे ही मेरा बदन शिथिल हुआ, मेरी दमघोंटू पकड़ से क्षितिज छूटा और लंबी लंबी सांसें लेते हुए घबराई आवाज में बोला, “क्या हुआ मॉम?”

“क्क्क्कककुच्छ नननहींईंईंई मेरे बच्चे, तेरे प्यार करने का अंदाज इतना आनंददायक था कि मैं पागल हो गई थी,” किसी प्रकार अपनी सांसों पर नियंत्रण करते हुए बोली, “चल, तूने तो मेरी मुनिया से प्यार कर लिया, अब मुझे अपने पपलू से प्यार करने दे।” मैं जानती थी कि वह बेचारा भी उत्तेजना के जिस दौर से गुजर रहा है, तत्काल अगर उसे राहत न मिले तो बेचैनी में छटपटाता रहेगा। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, मैं उसके ऊपर चढ़ गई और उस पर चुंबनों की बौछार करने लगी। उसके माथे को चूमा, उसकी आंखों को चूमा, उसके गालों को चूमा, उसके होंठों पर गरमागरम चुम्बन दिया, उसके गले से होते हुए उसके सीने को चूमने लगी। उसके सीने से नीचे बढ़ती गई और उसके पेट को चूमते हुए नीचे जाने लगी। क्षितिज की उत्तेजना अपने चरम पर थी। उसकी सांसे धौंकनी की तरह चल रही थीं।
“ओह्ह मॉम, आह डियर, नीचे जाओ मेरी जान मेरे पपलू के पास, और पास, और पास, उफ्फ” वह उत्तेजना के आवेग में मेरे सर को पकड़ लिया और सीधे अपने लिंग के पास ले गया। उसकी बेचैनी मुझसे देखी नहीं जा रही थी। उसकी हालत उत्तेजना के मारे बेहद खराब थी। उसने मेरा सर पकड़ कर ठीक अपने लिंग के पास ले आया। अब मैं ठीक उसके आठ इंच लंबे और करीब तीन इंच मोटे, बेहद खूबसूरत, चिकने लिंग के पास थी। सख्त, काले नाग की तरह फनफनाता हुआ। इस बेचारे कुंवारे बेटे के लिंग के सुपाड़े के ऊपर का चमड़ा अभी तक पलटा भी नहीं था। उसका अंडकोश ढीला नहीं हुआ था, शायद आजतक उसके अंडकोश में अब तक की सारी जमा पूंजी गाढ़े वीर्य के रूप में एकत्रित थी। क्या करूं मैं, हाथों से बाहर निकाल दूं, या अपने हलक में उतार लूं या अपनी भूखी योनि के अंदर जज्ब कर लूं। इसी उधेडबुन में थी, कि उसने मेरा सर नीचे दबा कर मेरा मुह अपन तनतनाए लिंग से सटा दिया और बेसब्री से बोला, “क्या सोच रही हो मॉम? प्यार कर मेरे पपलू को, ओह मेरी जान, कब से तड़प रहा है मेरा पपलू।” मेरी सारी दुविधा पल भर में छूमंतर हो गई। मैं समझ गई कि जिस तरह उसने मेरी नग्न देह के संपर्क में आकर अपने प्रथम कामक्रीड़ा का शुभारंभ मुखमैथुन से किया, अनाड़ीपन में ही सही, मगर मुझे अद्वितीय आनंद प्रदान किया, अब उसी के प्रतिदान का समय आ गया है, अपने बेटे को इस बेचैनी भरी पीड़ा से मुक्ति प्रदान करने का। उसे भी इस आनंद से परिचित कराने का। मैंने उसके लिंग के चमड़े से ढंके सुपाड़े पर गरमागरम चुंबन अंकित कर दिया।
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11-28-2020, 02:13 PM,
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“आ्ह्ह््आआह्ह्ह्, ममा, ओ्ओ्ओह्ह्ह् माई स्वीटहार्ट, यस्स्स्स्, प्यार करो ओह मेरे पपलू को।” आनंदित हो कर बोला वह। अब मैंने अपने जीभ से उसके लिंग को सुपाड़े से लेकर जड़ तक चाटना शुरू किया। लिंग के जड़ के पास पहुंच कर मैं रुकी नहीं, नीचे जा कर उसके अंडकोश को चाटने लगी। “आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, ऐसे ही, उफ्फ हां मेरी जान ऐसे ही” वह खुशी के मारे बोले जा रहा था। मैं उसके आनंद भरे उद्गार से उत्साहित हो कर उसके सुपाड़े को अपने होंठों के बीच ले कर चुभलाने लगी। अपनी जीभ को उसके सुपाड़े के ऊपर के चमड़े के अंदर डाल कर चलाने लगी। फिर धीरे धीरे उसके विशाल सुपाड़े को मुह में भर कर चूसना आरंभ किया। अभी मैंने चूसना आरंभ ही किया था कि क्षितिज ने उत्तेजना के आवेश में मेरे सर को कस कर पकड़ लिया और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, उसनें अपनी कमर को ऊपर की ओर उछाला और अपना पूरा आठ इंच लंबा गधे सरीखा लिंग मेरे हलक में उतार दिया। यह इतना आकस्मिक हुआ कि मैं संभल भी नहीं पाई। उसका लिंग और अधिक मोटा हो कर मेरे गले को अवरुद्ध कर दिया। उसके मुंह से आनंद भरी लंबी आह निकलने लगी।

“आ्आआ््आआ््हह्ह, ओ्ओ्ओह्ह्ह् मेरी जा्आ्आ्आ्आन, इस्स्स्स्स।” मेरे सर को इस कदर सख्ती से पकड़ रखा था कि मैं सर हिलाने या पीछे करने में भी असमर्थ हो गयी, मेरी सांसें जैसे थम गईंं, और तभी उसके लिंग से गरमागरम गाढ़े वीर्य का फौव्वारा फूट पड़ा। घुटती सांसों के बीच मैं उसके इतने सालों से जमे वीर्य का कतरा कतरा अपने हलक में उतारती चली गई। शायद यह उसके जीवन का प्रथम स्खलन था। करीब एक डेढ़ मिनट की दमघोंटू स्खलन के पश्चात जब उसकी पकड़ ढीली हुई, मैं हकबका कर उसके ढीले पड़ते लिंग को अपने मुख से निकाल कर लंबी लंबी सांसें लेने लगी। उधर वह भी अपने जीवन के प्रथम स्खलन के अनिर्वचनीय आनंद में डूब कर अपनी आंखें बंद किए लंबी लंबी सांसें ले रहा था। काफी देर से बेचारा बेचैन था इस आनंद भरे स्खलन के सुख से। इस सुखद अनुभव से अबतक वह वंचित था। मैं सर उठा कर उसके चेहरे को देख रही थी, ओह, मेरा बेटा कितना खुश दिख रहा था, पूरी तरह संतुष्ट। मुझे उस पर ढेर सारा प्यार उमड़ पड़ा और मैं उसके माथे को, गालों को होंठों को बेहताशा चूमने लगी, फिर बोली, “ओह मेरे प्यारे राजा, तुम्हारा पपलू बड़ा मस्त है रे, लेकिन बड़ा जालिम भी। मेरी तो जान ही निकाल डाली थी इसने।”

“ओह मेरी रानी मॉम, यू आर ग्रेट। पहली बार मैंने ऐसे आनंद को फील किया। मेरे पपलू को पता नहीं आपने क्या कर दिया, मेरा तो पूरा शरीर आनंद में डूब गया। सारा तनाव दूर हो गया। आपकी मुनिया, उफ मेरी जान, ऐसा महसूस हुआ जैसे स्वर्ग का द्वार हो। मन नहीं भरा। पता नहीं क्यों? कुछ तो और खास है आपकी मुनिया में जो मुझे पता नहीं है। ऐसा लग रहा है आपकी मुनिया मेंं कोई बहुमूल्य खजाना छिपा है, मगर उस खजाने को हासिल कैसे किया जाय यह मुझे पता नहीं है।” वह अनाड़ी नौजवान इस तरह अपने मनोभावों को व्यक्त कर रहा था कि मुझे उस की मासूमियत पर तरस आ रहा था। अब उसे कैसे बताऊँ मैं कि जिसे वह स्वर्ग का द्वार महसूस कर रहा है वह सचमुच में स्वर्ग का द्वार ही है। कैसे बताऊँ उसे कि मेरी योनि में क्या खजाना है? खजाना भी कैसा, अखंड, अवर्णनीय, आनंद का स्रोत।

“हाय मेरे भोले बलम, सच में तू बड़ा भोला है रे। बलिहारी जाऊं तेरे इस भोले पन पर।” मैं उसकी भोली बातें सुनकर हंस पड़ी। बड़ा प्यार उमड़ आया उसकी मासूमियत पर। उसके कामदेव स्वरूप नंगे तन से चिपक गई और उसके होठों को बेसाख्ता चूमने लगी।

मैं अब नैतिकता और अनैतिकता के बीच के द्वंद्व से पूरी तरह मुक्त हो चुकी थी। जब बात इतनी दूर तक बढ़ चुकी है तो अब और किस बात की झिझक। सिर्फ उसके कुवांरे लिंग को अपनी योनि में समाहित करना ही तो बाकी रह गया था। यौन क्रिया का असली सुख तो लिंग और योनि के मिलन में ही निहित है, अतः संसर्ग के वास्तविक सुख से इस नादान को वंचित रखने का कोई औचित्य भी नहीं था। मैं उसके नंगे जिस्म से चिपकी हुई उसके सारे अंगों पर अपने हाथ फेरती रही। यही काम क्षितिज भी अब मेरे साथ करने लगा था। वह मेरे चुंबन के प्रतिदान में मुझे अपनी मजबूत बांहों में दबोचे मेरे होंठों को चूम रहा था, मेरे गालों को चूम रहा था, मेरी गर्दन को चूम रहा था। इस वक्त मैं उसके नग्न शरीर पर चढ़ी हुई थी। उसके नंगे बदन से चिपका मेरा नंगा बदन मुझमें एक खुमारी सा भर रहा था। एक ऐसा आहसास, जिसे मैं आज तक महसूस नहीं कर पाई थी, ऐसे आहसास को महसूस कर रही थी। मैं उस पर निछावर हुई जा रही थी। मैं पुनः उत्तेजित होने लगी थी। मेरे बड़े बड़े स्तन उसके चौड़े चकले सीने से दबे हुए मुझे उकसा रहे थे कि मैं अपने बच्चे को अपनी कामुकता की भट्ठी में झोंक दूं। अपने साथ लिए दिए उसे भी वासना के सैलाब में डुबो दूं। पूरी तरह अपनी कामुक कमनीय देह को अपने बेटे को समर्पित कर दूं। उस अनजाने स्वर्गीय सुख से परिचित करा दूं जो उस अनाड़ी, नादान, सीधे सादे बच्चे के लिए बिल्कुल नया है। अपने हाथों से उसके सिर को बड़े प्यार से सहला रही थी। उसके गालों पर हाथ फिरा रही थी। यह सब करते करते करीब पांच मिनट बीत चुका था तभी मुझे आभास हुआ कि मेरी योनि के ठीक पास क्षितिज के मुरझाये हुए लिंग का स्पर्श हो रहा है जो शनैः शनैः सर उठा रहा था, सख्त हो रहा था, जाग रहा था। मैं गनगना उठी, प्रसन्न हो उठी उसके लिंग को पुनः जागता देख कर। मेरी योनि भी फड़फड़ा उठी। मेरा रोम रोम सिहर उठा। मेरे स्तन कठोर हो गये और चुचुक तन गये, शायद उनकी चुभन को क्षितिज ने भी अपने सीने पर महसूस कर लिया था। क्षितिज के हाथ खुद ब खुद मेरे सख्त हो चुके उरोजों पर अठखेलियाँ करने लगे।

“आह मॉम, मेरा पपलू फिर आपके प्यार का भूखा हो रहा है। ओह्ह मेरी जादूगरनी डार्लिंग, क्या जादू कर दिया आपने मॉम?” उसके चेहरे पर अब उत्तेजना स्पष्ट झलकने लगी थी।

“हाय मेरे राजा, जादूगरनी सिर्फ मैं नहीं हूं रे, तू भी कम बड़ा जादूगर नहीं है। देख मेरी चूचियां कैसे तन गयी हैं। देख मेरी मुनिया कैसे फड़फड़ा रही हैं, ओह मेरे नादान बेटे, जो हाल तेरे पपलू का हो रहा है वही हाल मेरी मुनिया का भी हो रहा है।” मैं जानती थी कि अब मुझे क्या करना है। जो भी मैं करने जा रही थी उसे मैं इस तरह करना चाहती थी कि क्षितिज को ऐसा आभास हो कि यह सब अपने आप हो रहा है, बिना किसी के पहल के। मैं कसमसाती हुई किसी प्रकार अपनी योनि छिद्र को अबतक पूर्ण रूप से तन चुके उसके लिंग के सुपाड़े के ऊपर स्थापित कर लिया था।

“ओह मेरी मां, यह क्या, उफ्फ, आपकी मुनिया तो लगता है मेरे पपलू को चूम रही है। आह्हह कितना अच्छा लग रहा है मैं बता नहीं सकता।” उसने उत्तेजना के आवेश में अपने हाथ का दबाव मेरे नितंबों पर बढ़ाना शुरू कर दिया। “ओह मॉम, अपनी मुनिया को मेरे पपलू से चिपकने दो, कस के चूमने दो, उफ्फफ, आने दो मेरी रानी अपनी मुनिया को।”

मैं ने अपनी ओर से सिर्फ इतना ही किया था कि मेरी योनि को उसके लिंग पर स्थापित कर दिया और नतीजा मेरे मनोनुकूल निकला। अनजाने में आवेशित क्षितिज मेरे नितंबों पर दबाव बढ़ाता जा रहा था, परिणाम स्वरूप धीरे धीरे मेरे लसलसे योनि छिद्र को फैलाता हुआ उसके लिंग का विशाल सुपाड़ा मेरी योनि में प्रवेश करने लगा। “आह्ह् मेरे बेटे, ओह यह क्या कर रहे हो, ओह मा्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, उफ्फ तेरा पपलू मेरी मुनिया के अंदर घुस्स्स्स्आ्आ्आ्आ्ह्ह चला जा रहा है, ओह।”

“आह्ह्ह् मॉम, यह मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे पपलू को आपकी मुनिया के इसी रास्ते की तलाश थी। ओह मॉम जाने दो मेरे पपलू को, शायद यहीं वह खजाना है जिसकी तलाश मुझे थी।” धीरे धीरे मुझे अपने बंधन में कसता जा रहा था। इसी क्रम में उसके सुपाड़े के ऊपर का चमड़ा कब पलट गया उसे पता ही नहीं चला। शायद उत्तेजना की अधिकता और आनंद के उन पलों में चमड़ा पलटने की हल्की सी पीड़ा का उसे आभास तक नहीं हुआ था। सरकता सरकता धीरे धीरे घुसता चला जा रहा था उसका कुवांरा लिंग, मुझ जैसी खेली खाई रंडी की फूल कर कुप्पा बनी फकफकाती योनि में, जो उस समय तक वासना की अग्नि में झुलस झुलस कर धधकती ज्वालामुखी का कुआं बन चुका था। फिर भी अपने खुद के बेटे के लिंग को अपनी योनि में ग्रहण करने का एक अलग ही आहसास हो रहा था। समाज की दृष्टि से अनैतिक इस दैहिक संबंध के रोमांच को महसूस करने का एक निहायत ही अलग अनुभव था यह। मैं नैतिक अनैतिक की लक्ष्मण रेखा को पार कर चुकी थी।

आगे जो कुछ हुआ, उसे जानने के लिए अगली कड़ी पढ़ें।

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11-28-2020, 02:13 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
पिछले भाग में आप लोगों ने पढ़ा कि किस तरह मेरा बेटा क्षितिज मेरे बिस्तर तक आया और परिस्थितियों ने कुछ ऐसा मोड़ लिया कि मैं निर्वस्त्र हालत में अपने कोख जाए जवान बेटे की नग्न देह से चिपकी अपने तन को पूरी तरह से समर्पित करने के कागार पर खड़ी थी। शायद भगवान नें भी इस घृणित कृत्य की ओर से अपनी नजरें दूसरी ओर फेर ली थी। क्या यह घृणित कृत्य था? समाज के बनाए नियमों के अनुसार हां। लेकिन ये नियम हम मानवों ने ही तो बनाए हैं, सिर्फ इस बात को ध्यान में रख कर कि परिवार रुपी संस्था बनी रहे। हम अपने को बौद्धिक रुप से सभी प्राणियों में श्रेष्ठ मानते हैं और यही कारण है कि हमने अपने जीने के तौर तरीकों को कायदे कानूनों की लक्ष्मण रेखा खींच कर उसके अंदर बंद कर दिया है। हमारे अंदर की स्वतंत्र सोच को क्रियान्वित करने पर अंकुश लगा रखा है। क्या हम अन्य जीवों से अलग हैं? क्या हमारी शारीरक आवश्यकताएं अन्य प्राणियों से भिन्न हैं? नहीं, कदापि नहीं। हम भी अन्य प्राणियों की तरह ही हैं। इस संसार के सभी प्राणियों की विभिन्न प्रजातियों में भगवान ने नर मादा का सृजन किया है। जबतक संतान छोटा है, तभी तक मां अपने बच्चों की देखभाल करती है। जब वही बच्चे बड़े हो जाते हैं तो बच्चा सिर्फ नर होता है और बच्ची सिर्फ मादा होती है। नर बच्चा बड़ा होकर किसी भी मादा, चाहे वह उसकी अपनी बहन या मां ही क्यों न हो, से स्वतंत्र, स्वछंद रुप से संभोग करता है और प्राकृतिक रुप से प्रजनन की प्रक्रिया को सतत जारी रखता है और उसी तरह नारी बच्ची बड़ी होकर सिर्फ एक मादा होती है, जिससे कोई भी नर, चाहे वह उसका पिता या भाई ही क्यों न हो संभोग करता है। जब सारे प्राणी ऐसा कर सकते हैं तो हम मानव क्यों नहीं। हो सकता है आप लोगों में से कई लोग इसे मेरी कामुकता भरा कुतर्क कहकर नकार दें, लेकिन जरा सोच कर देखिए कि यह सत्य नहीं है क्या? हम तथाकथित सभ्य समाज वााले, खुद को बौद्धिक रूप से सभी प्राणियों में श्रेेष्ठ समझने वाले लोग, अपने ही बनाए नियमों के बंधन में बंंध कर घुट घुट कर जीने को वाध्य। जिन्होंने थोड़ी हिम्मत दिखाई, वे ढंके छुपे तौर पर यह सब किए जा रहे हैं और जिंदगी का भरपूर लुत्फ उठा रहे हैं। खैर इन सब बातों में उलझ कर मैं अभी क्यों अपना और आपका कीमती समय क्यों बरबाद कर रही हूं।

इस वक्त तो मैं पूरी तरह अपने बेटे के चंगुल में फंस चुकी थी, जिसकी नादानी को मैंने वासना के उस फिसलन भरे गर्त में गोता खाने के लिए ढकेल चुकी थी, जहां से निकलना उसके वश की बात नहीं थी। उसे तो मानों मुहमांगी मुराद मिल चुकी थी। शेर को खून का स्वाद मिल चुका था, वह भला अब पीछे कैसे हट सकता था। दबाता चला गया दबाता चला गया तबतक, जबतक उसका पूरा का पूरा आठ इंच का लिंग मुझ रंडी की योनि चीरता हुआ जड़ तक समा नहीं गया। “ओह्ह्ह्ह्ह्ह मा्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, कककक्य्य्आ्आ्आ्आ कर दिया मेरे बेटे, उफ्फ्फ, तेरा पपलू मेरी मुनिया को चीईईईईईर्र्ररररर दिया रे, आह।” मैं बेसाख्ता बोल पड़ी।

“ओह्ह्ह्ह्ह्ह मेरी स्वीट मॉम, आह्ह् आपकी मुनिया ने मेरे पपलू को पूरा का पूरा निगल लिया। दर्द हो रहा है क्या? होने दो मॉम अपने ब्वॉयफ्रेंड के लिए, अपने ब्वॉयफ्रेंड की खुशी के लिए, बर्दाश्त कर लो मॉम, बड़ा्आ्आ्आ्आ आनंद मिल रहा है मुझे। ओह शायद इसी की तलाश थी मुझे और मेरे पपलू को। स्वर्ग है मेरी रानी आह्ह् यही स्वर्ग है, हां यही सुख का वह खजाना है, मिल गया मुझे मिल गया।” खुशी का पारावार न रहा उसका।

“आह्ह् ओह्ह, चुप शैतान, हाय रे मेरी मुनिया” मुझे बींध कर मेरा बेटा कितना खुश था। सारी लाज शरम को तिलांजलि दे कर मैं कूद पड़ने को तत्पर हो गई इस कामुक खेल में। मैंने दर्द का बनावटी दिखावा करते हुए अपनी कमर को पीछे की ओर उचकाया, लेकिन क्षितिज ने पुनः अपनी पूरी शक्ति से मेरे नितंबों को अपनी ओर खींच लिया। फिर से उसका लिंग मेरी योनि में पैबस्त हो गया। मैंने भी ठान लिया कि आज अपने बेटे को इस आनंद से पूरी तरह रूबरु करा दूंगी। मैंने सप्रयास अपनी योनि को संकुचित करके उसके विशाल लिंग को अपनी योनि से कस लिया। मेरी कसी हुई योनि में उसके लिंग के अंदर जाने और बाहर आने से घर्षण का जो आनंद उसे प्राप्त हुआ, उसका का परिणाम यह हुआ कि उसने अनजाने में ही बिना किसी मार्गदर्शन के अपने लिंग का प्रहार पहले धीरे धीरे फिर धकाधक मेरी योनि में करना शुरू कर दिया।
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11-28-2020, 02:13 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“आह ओह अहा मजा आ रहा है मेरी जान, उफ अबतक यह सब क्यों नहीं हुआ, आह मेरी मॉम, मेरी स्वीट मॉम, मेरी प्यारी रानी, ओह ओह अद्भुत।” वह मेरी कमर पकड़ कर ठाप पर ठाप लगाये जा रहा था और बुदबुदाता जा रहा था, मुझे चूमे जा रहा था, उत्तेजना के आवेग में मेरे गालों पर अपने दांत भी गड़ा दे रहा था।

“ओह मेरे पागल रसिया, मेरी मुनिया के दीवाने, आह्ह् ओह्ह्ह्ह्ह्ह मार ही डालोगे क्या अपनी रानी को, उफ्फ्फ जालिम, इतनी खुशी से कहीं मर ही न जाऊं, ओह मेरे बच्चे, ओह्ह्ह्ह्ह्ह मेरी जान,” मैं उसकी मजबूत बांहों में बंधी अपनी कमर उचकाती हुई उसके ठाप का जवाब ठाप से देने लगी थी। ओह अपने बेटे से पहली बार चुदने के वे रोमांचक अविस्मरणीय पल, अखंड आनंद, उफ्फ्फ, सच में कहीं मैं पागल न हो जाऊं। मेरा रोम रोम तरंगित हो उठा।

“ओह मेरी जान, हम जो कर रहे हैं यह क्या है मॉम?” हांफते हुए वह बोला।

“संभोग है मेरे बच्चे, यह संभोग है। चुदाई है, चुदाई मेरे प्यारे नादान चुदक्कड़। जैसे ही तूने अपने पपलू, अपने लंड को मेरी मुनिया में डाला, मेरी चूत में डाला, तू बन गया मेरा चुदक्कड़।” मैं हांफते हुए उत्तेजित स्वर में बोली। वह मेरी बातें सुनकर पल भर रुका, जो मुझे बेहद नागवार गुजरा, तुरंत बोली, “चोद मेरे बच्चे चोद, अपनी मम्मी को चोद, जम के चोद, निकाल ले अपनी कसर, आह मेरे रज्ज्ज्ज्ज्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, बना ले मुझे पूरी तरह अपनी गर्लफ्रैंड, बना ले मुझे अपनी रंडी,” अब मैं अपनी असली औकात में आ रही थी।

“हां मेरी रानी, चोद रहा हूँ, आपको आज पूरी तरह मेरी गर्लफ्रैंड बना लूंगा, रानी बना लूंगा, रंडी बना लूंगा, ओह्ह्ह्ह्ह्ह मेरी जान,” बोलता जा रहा था और चोदता जा रहा था। पूरी ताकत से ठोके जा रहा था। बहुत जल्दी सीख रहा था मेरा बेटा, आखिर रंडी मां की औलाद जो ठहरा। इतनी अधिक उत्तेजित थी कि मैं दस मिनट में ही मैं छरछरा कर झड़ने लगी, “आ्आआ््आआह्ह्ह्ह,”। मैं छिपकली की तरह उसके शरीर से चिपक कर थरथराने लगी।

“क्या हुआ मॉम?” वह हांफता हुआ बोला।

“कुछ नहीं रे, बहुत सुख दे रहे हो अपनी मां को बेटे, बर्दाश्त नहीं हो रहा है, तू चोदता रह।” किसी तरह अपनी सांसों पर काबू पाकर बोली।

मेरी बातों से आश्वस्त हो कर अपनी सुविधा के अनुसार अब उसने मुझे नीचे कर दिया था और मेरे ऊपर चढ़ गया था। मैं दुबारा उत्तेजित हो उठी। मैं भी साली छिना्आ्आ्आ्आल, बिछी जा रही थी अपने बेटे के नीचे, अपनी टांगों को फैला कर उसकी कमर में लपेटे मगन हो चुदी जा रही थी। बेड रूम में फच फच चट चट की आवाज गूंज रही थी और साथ ही हमारी सम्मिलित कामुकतापूर्ण “आह उह इस्स्स्स्स उस्स ओह्ह्ह्ह्ह्ह,” आहें और सिसकियां। बीस मिनट तक हम मां बेटे का यह कामुकतापूर्ण आनंददायक, घिनौना खेल चलता रहा। गुत्थमगुत्था होते रहे, एक दूसरे के शरीर में समा जाने की जद्दोजहद करते रहे। अंततः, उसके शरीर में तनाव आने लगा, ठोकने की रफ्तार तूफानी हो गई और तभी, उसने मुझे इतनी जोर से जकड़ लिया कि मेरी पसलियां कड़कड़ा उठीं। उसका लिंग मेरी योनि के अंदर और भी विशाल आकार लेने लगा और तब ऐसा लगा मानो गरमागरम लावा मेरी योनि में फच्च फच भरता जा रहा हो। “आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह मेरी जा्आ्आ्आ्आन,” कहता हुआ उसका शरीर शिथिल होने लगा। तभी मैं भी झड़ने लगी, “ओह्ह्ह्ह्ह्ह मेरे राजा, मेरे चोदू बेटे, आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह, मैं गई रे्ए्ए्ए्ए्ए्ए,” कहते हुए उसके शिथिल पड़ते शरीर से चिपक कर लंबी लंबी सांसें लेने लगी। हम दोनों ऐसे हांफ रहे थे मानो बड़ी लंबी दूरी की दौड़ पूरी करके मंजिल तक पहुंंचे हों। उसके चेहरे पर पूर्ण संतुष्टि और प्रसन्नता देख कर मैं निहाल हो गई। हम एक दूसरे की बांहों में समाये दूसरी ही दुनिया में पहुंच चुके थे।

“ओह माई स्वीट मॉम, आई लव यू,” कहते हुए मुझे बड़े प्यार से चूम लिया उसने।

“आई लव यू टू मेरे चोदू डियर। कैसा लगा?”

“बहुत ही अच्छा। बता नहीं सकता। आज तक मुझे इस सुख से वंचित कैसे रखा आपने, बताओ न मॉम।”
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11-28-2020, 02:14 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“देख बेटे, मां बेटे के बीच के ऐसे शारीरक संबंध को समाज अपराध के रुप में देखता है, इसलिए मैं डरती थी। वैसे भी मैंने कभी सोचा नहीं था कि हमारे बीच ऐसा कभी होगा। मैंने आज तक तुझे सिर्फ एक बेटे के रूप में देखा था।”

“तो अब किस तरह देख रही हो मॉम?”

“हट बदमाश, मारूंगी हां। अब तो तू न सिर्फ मेरा ब्वॉयफ्रेंड रह गया है, बल्कि मेरे तन मन का मालिक भी बन गया है। मालूम है तुझे कि जब एक बेटा अपनी मां के साथ संभोग करता है तो उसे क्या कहते हैं?”

“नहीं मालूम।”

“तो सुन, उसे कहते हैं मदर फकर, याने मादरचोद।” कहकर मैं खुद शरमा गई और उसके सीने पर चेहरा छुपा लिया।

“ओह मेरी जान, अपने प्यारे मादरचोद से शरमा गई? हाय, तेरी इस अदा पर तो फिदा हूं मॉम डियर।” मुझे अपनी बांहों में समेट कर बोला। उस रात क्षितिज को जो चुदाई का चस्का लगा, रात भर न खुद सोया न मुझे सोने दिया। जवान हट्ठा कट्ठा लड़का था, रात भर में पांच बार चोदा मुझे। चोद चोद कर मेरी हालत खराब कर दी उसने। मेरे गालों पर, गर्दन पर, चूचियों पर उसके दांतों के लाल लाल निशान उभर आए थे। चूचियों को दबाया, चूसा, काटा। चूत को चूसा, चाटा, चोदा, फुला दिया। मैं भी रंडी की तरह आनंद मगन खुल कर चुदती रही। सवेरे तक छोड़ ही नहीं रहा था मुझे। पूरी तरह आसक्त हो गया था मुझ पर। साय बजे सवेरे मुझे होश आया कि सात बज गये हैं। जबरदस्ती किसी प्रकार मना बुझा कर उठी मैं।

हाय राम, अभी इस वक्त क्षितिज मेरे कमरे से निकलेगा और हरिया या करीम में से किसी ने देख लिया तो क्या सोचेंगे? मेरी शरीर की हालत खुद रात भर के नोच खसोट की चुगली कर रही थी। मैं किसी तरह उठी, कपड़े पहन कर दरवाजे के बाहर झांका और रास्ता साफ देखकर क्षितिज को जबरदस्ती कमरे से बाहर धकेलते हुए बोली, “भाग यहाँ से जल्दी, वरना किसी ने देख लिया तो गजब हो जाएगा।”

क्षितिज अपने कपड़े पहन चुका था, लेकिन उसकी लाल लाल आंखें रात भर के जागरण और काली करतूतों की चुगली कर रही थीं। “ठीक है मॉम, अभी तो जाता हूँ, लेकिन आज रात फिर आऊंगा।” कहते हुए मुझे बांहों में ले कर चूम लिया।
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11-28-2020, 02:14 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि मेरे नादान पुत्र क्षितिज का मुझपर बालसुलभ आकर्षण उसके जवान होते न होते मेरी खूबसूरती के प्रति विपरीत लिंग के आकर्षण में बदल चुका था। मेरी खूबसूरती पर इस कदर आसक्त था कि मुझे छोड़ कर उसे किसी और नारी में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई थी। हमारे बीच मां बेटे का संबंध दोस्ती में बदला, फिर घनिष्ठता बढ़ते बढ़ते अंतरंग संबंध में परिणत हो गया। उसकी नादानी भरी कामुक हरकतों और मेरी बमुश्किल, सड़े सब्र से दबाई गई कामवासना की ज्वाला के भड़क उठने के परिणाम स्वरूप हमने मां बेटे के तथाकथित पवित्र रिश्ते को शर्मसार करते हुए सारी तथाकथित मर्यादा को छिन्न भिन्न कर बैठे और हमारे बीच नर नारी के बीच का दैहिक संबंध स्थापित हो गया। एक बार वासना का वह बांध टूटा तो उसके तीव्र सैलाब में बहते गये और रात भर हम कामुकता का वह खेल खेलते रहे जो हमारे तथाकथित सभ्य समाज में वर्जित है। उस नादान बेटे को तो मानो खुशी का खजाना नसीब हो गया। रात भर मेरी नग्न देह रौंदता रहा। सुबह तक आनंद के सागर में डूबते उतराते, थक कर चूर, लस्त पस्त हो गये। सुबह घड़ी पर मेरी नजर ज्यों ही पड़ी मैं घबरा उठी। आठ बज रहे थे। मैंने अस्त व्यस्त हालत में ही क्षितिज को उठाया और धकेल कर जबर्दस्ती कमरे से बाहर निकाला। जब तक मेरी नजरों से ओझल नहीं हुआ, मेरा हृदय बेहताशा धड़कता रहा कि कहीं हमारी करतूतों का भांडा न फूट जाए। उसके जाते ही मैं तुरंत ही खुद का हुलिया दुरुस्त करने लगी। इस दौरान मेरे मन में कई तरह की बातें चल रही थीं। अपने बेटे के साथ हुए शारीरक संबंध की मेरे मन में कोई ग्लानि नहीं थी। इसके विपरीत मैं काफी प्रफुल्लित महसूस कर रही थी। मेरा मन बड़ा प्रसन्न था। मेरे बेटे की खुशी देख कर मैं समझ सकती थी कि मैंने उसे क्या उपहार दे दिया है। आज के इस युग में, इस उम्र में, जबकि कोई भी युवक युवती शायद ही नारी पुरुष के शारीरक संबंध से अनभिज्ञ रहता हो (भले ही उन्होंने इस संबंध का अनुभव नहीं किया हो), एक मुझ जैसी कामुकता की भट्ठी में धधकती औरत का बेटा कैसे अपवाद रह गया था, इस बात का आश्चर्य था मुझे। अब जा कर उसने इस संबंध के बारे में जाना और जाना भी तो किससे? खुद अपनी मां से और वह भी किस तरह? अपनी खुद की मां के साथ यौनाचार कर के। बेचारा बच्चा। उसे तो पता भी नहीं था कि जिस मां के चेहरे की खूबसूरती, जिस मां की खूबसूरत काया पर फिदा होकर स्त्री संसर्ग के प्रथम आनंद का परिचय पाया था, वह कितनी बड़ी खेली खाई छिनाल है। शुरू से ही उसके मन में अगर किसी नारी के प्रति आकर्षण था तो वह मैं ही थी, इस बात को मैं बखूबी जानती थी। एक मां के लिए एक बेटे का प्यार धीरे धीरे विपरीत सेक्स के बीच के आकर्षण में बदलता गया इस बात को मैं समझ रही थी, इसलिए मैं चाहती थी कि किसी प्रकार उसकी रुचि अपनी हम उम्र लड़कियों में हो। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि उसकी नजरों में दुनिया की एकमात्र खूबसूरत नारी मैं ही थी। हमेशा दूसरी लड़कियों से मेरी तुलना किया करता था वह पगला, जिसमें हर लड़की मेरे मुकाबले उन्नीस ही लगती थी। पहले मैं मां थी उसकी, फिर दोस्त बनी, फिर गर्लफ्रैंड बनी और अंततः उसकी अंकशायिनी बन गई।
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11-28-2020, 02:14 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
अब जो हो गया सो हो गया, जो भी हुआ मेरी नजर में कुछ खास बुरा भी नहीं हुआ, सब कुछ बड़ा ही आनंददायक था। अपने जवान बेटे के नंगे तन से अपनी नंगी देह का संपर्क होने देना, खुद की नग्न देह को अपने जवान बेटे के नंगे जिस्म के सम्मुख परोस देना और उसे अपने यौनांगों से खेलने देना, उसे अपनी प्यासी यौन गुहा में गोते लगाने देना, सब कुछ कितना रोमांचक था, कितना अभूतपूर्व था, कितना अनिर्वचनीय था, यह कोई मुझ जैसी वासना के दलदल में धंसी बेहया छिनाल मर्दखोर से पूछे, जो अपनी अदम्य कामपिपासा के वशीभूत न जाने अबतक कितने मर्दों के बिस्तर गरम कर चुकी थी। सच में, यह बताने की नहीं बल्कि खुद से करके महसूस करने की, अनुभव करने की चीज है जिसे शब्दों में बयां करना नामुमकिन है। अब आगे मुझे इस रिश्ते के कारण आने वाली दुश्चिंताओं के झंझावत से मुक्त होने का मार्ग तलाश करना था। पहली और प्रमुख दुश्चिंता यह थी कि जिस पागलपन की हद तक क्षितिज मुझ पर आसक्त था, कहीं यह उसकी पढ़ाई और उसके कैरियर बनाने के मार्ग में रोड़ा न बन जाए। दूसरी दुश्चिंता यह थी कि हमारे इस रिश्ते की भनक किसी और को कहीं लग न जाए। अगर हरिया, करीम जैसे घर के लोगों को पता चल भी जाए तो मुझे कोई खास परेशानी नहीं थी, किंतु यदि किसी बाहरी व्यक्ति को हम मां बेटे के इस (तथाकथित) अनैतिक रिश्ते के बारे में पता चल गया तो “तथाकथित सभ्य समाज” में जिस छीछालेदरी का सामना करना पड़ेगा उसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी। सर उठा कर जीना दुश्वार हो जाता हमारा।

खैर अब आगे मुझे काफी सावधानी और बुद्धिमानी से इन समस्याओं का समाधान निकालना था।

“क्या हुआ बेटी? (मुझे बेटी ही कहते थे क्षितिज के सामने हरिया और करीम) तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है क्या?” मेरी थकान से शिथिल शरीर, बुझी बुझी सूरत और अनिद्रा के कारण लाल लाल आंखें देख कर नाश्ते की टेबल पर हरिया ने टोका।

“कुछ नहीं चाचा जी (मैं भी उन्हें चाचा ही कहती थी उनको, भले ही मुझ नादान बाला के कमसिन तन को भोग भोग कर, खींच तान कर असमय ही छिनाल औरतों की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया था हवस के इन पुजारियों ने), बस यूं ही, रात को ठीक से नींद नहीं आई थी ना, इसलिए।” मैं ने जवाब दिया।

“ओके मॉम, नाश्ता करके आप कुछ देर सो लीजिए, फिर हम आज शॉपिंग के लिए चलेंगे, फिर आईलेक्स में मूवी देख कर आएंगे।” अबतक सर झुकाए चुपचाप नाश्ता करता हुआ क्षितिज बोला।

आगे की घटना अगली कड़ी में।
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11-28-2020, 02:14 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
अब तक आप लोगों ने पढ़ा कि किस तरह मेरे आकर्षण में बंधे अपने कोख जाए युवा पुत्र क्षितिज की नादान जिद के सम्मुख मैं खुद को समर्पित कर बैठी थी। हालांकि शायद मेरे अंदर दिल के किसी कोने में कहीं न कहीं यह चाहत दबी हुई थी, जो क्षितिज के प्राकृतिक पुरुषजनित आकर्षण, नादानी भरे आग्रह और हरकतों से शनैः शनैः जागने लगी थी और जिसका अंत मेरे बिस्तर पर इस तरह हुआ। आज रात को फिर वही क्रम दुहराया जाने वाला था, इसका आभास उसने मुझे करा दिया था। मैं मन ही मन उसके लिए तैयार थी। मैं क्षितिज के शॉपिंग और सिनेमा देखने के प्रस्ताव में सहमति दे तो चुकी थी किंतु कर रात भर के थकान के आलस्य के मारे कुछ आराम करना चाहती थी, अतः उसके कमरे के दरवाजे पर पहुंच कर आवाज दी, “क्षितु बेटा, जरा सुनो तो।”

“क्या हुआ मॉम?” जब वह दरवाजा खोला तो रात भर के जागरण के कारण उसकी आंखें लाल और नींद से बोझिल थीं। “अंदर आओ न मॉम”

“नहीं, मैं केवल यह कहने आई थी कि अभी दिन में आराम कर लो, फिर हम शाम को शॉपिंग के लिए जाएंगे।”

“अरे मेरी जान अंदर तो आईए।” कहते हुए मुझे कमर से पकड़ कर अंदर खींच लिया और दरवाजा बंद कर दिया। वही रात वाली प्यास दृष्टिगोचर हो रही थी उसकी आंखों में।

“अरे क्या करते हो? छोड़ो मुझे शैतान।” घबराहट में छटपटाते हुए बोली।

“छोड़ दूंगा मॉम, छोड़ दूंगा, पहले एक पप्पी तो ले लूं।” कहते कहते मुझे संभलने का मौका दिए बिना अपनी मजबूत बांहों में कस कर जकड़ लिया और अपने होंठों को मेरे होठों से चिपका दिया। यह एक गरमागरम चुंबन था जो मेरे अंदर की वासनामयी नागिन को जगाने के लिए काफी था। मेरे अंदर की कामुकता भरी ज्वालामुखी का लावा खौल उठा। मैं उसकी बांहों में कसी तड़प उठी। करीब एक मिनट के लंबे चुंबन के बाद जब उसने मुझे छोड़ा तो मेरी हालत बद से बदतर हो चुकी थी। सांसें मेरी धौंकनी की तरह चल रही थीं। उरोज मेरे तन चुके थे। योनि मेरी फड़फड़ा कर पानी छोड़ने लग गई थी। एक ऐसी मछली की तरह हो गयी थी मेरी हालत जिसे पानी से निकाल कर सूखे पर रख दिया गया हो।

“बदमाश, यह क्या कर दिया रे, ओह मेरे रसिया?” कहकर मैं अपनी सारी निद्रा और थकान भूल कर दुबारा उसके बदन से चिपक गई और अपनी बांहों में भर कर उसके होंठों को बेहताशा चूमने लग गयी। भड़क उठी थी मेरी कामुक शैतानी भावनाएं। कैसे अपनी भावनाओं पर काबू रख सकती थी भला। हो सकता है उसने बिना कुछ सोचे समझे अपने स्वभाविक लगाव का प्रदर्शन किया हो लेकिन मेरी प्रतिक्रिया अस्वभाविक तौर पर कुछ अधिक ही आक्रामक थी, खुद को रोक सकने में नि:शक्त, असमर्थ। इतना काफी था उस नये नये स्त्री संसर्ग का स्वाद चखे हुए नवयुवक के लिए। पिल ही तो पड़ा वह पागल मुझ पर।

“उफ्फ्फ मेरी प्यारी मुनिया की मालकिन मॉम, पपलू मेरा गोता लगाने को बेताब हो गया है, ओह्ह्ह्ह्ह्ह माई स्वीटी।” फिर कहां रुक सकता था वह पागल रसिया। मेरी प्रतिक्रिया, जो एक प्रकार से मेरे समर्पण का संकेत था, जिसे समझने में उसने पल भर भी देर नहीं की, मुझे सीधे उठा कर बिस्तर पर पटक दिया और आनन फानन मेरे कपड़ों से मुझे मुक्त कर दिया।

“ओह मेरे राजा, पागल रसिया, मेरे अनाड़ी बेटे, मुझे भी पागली बना दिया शैतान, अब देख क्या रहा है, आ भी जा अपनी मां के तन में डुबकी लगा ले, देख मेरी मुनिया को तेरे पपलू के लिए कैसे फकफका दिया है तूने मेरे कामदेव।” अपनी बांहें फैला कर अपनी नग्न देह को परोस देने को तत्पर हो गयी। छिनाल तो थी ही एक नंबर की, नि:संकोच, पूर्ण निर्लज्जता के साथ, पूर्ण समर्पिता बनी पसर गयी थी।

“आया जानेमन, आया।” वह भी बिना एक पल गंवाए पूरी तरह नंगा हो गया और कूद कर मेरी नग्न देह पर छा गया। बेकरारी से मेरे उरोजों को चूसने लगा, मसलने लगा, उससे मन नहीं भरा तो सीधे 69 पोजीशन में आ गया और मेरी योनि को पागलों की तरह चाटने लगा।

“उफ्फ्फ राजा बेटा, मेरा चोदू बेटा, ओह मादरचोद बबुआ,” मेरे मुख से बेसाख्ता निकलने लगा, इतने उत्तेजक आनंदमय लम्हे थे वे। उसका शरीर जिस स्थिति में था उस स्थिति में जहां उसका मुंह मेरी योनि पर चिपका हुआ था, वहीं उसका निहायत ही खूबसूरत लिंग अपने पूरे जलाल के साथ मेरे मुख के पास चिकने सिंगापुरी केले की तरह झूल रहा था। मैं बेगैरत, बेशरम छिनाल, मां बेटे के पावन रिश्ते को शर्मसार करती हुई, निर्लज्जता की पराकाष्ठा को पार करती हुई, बेहयाई पर उतर आई और बदहवासी के आलम में गपागप उसके तनतनाए पपलू को मुंह में ले कर चूसने में मशगूल हो गयी। कुछ देर इसी तरह चूसने चाटने का दौर चलता रहा। आह्ह्ह्, ओह्ह्ह्ह्ह्ह, स्वर्गीय सुख की अनुभूति हो रही थी। वासना का तूफान सर चढ़ कर बोल रहा था। विहंसता शैतान अपनी विजय पर इठला रहा था और नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले फरिश्ते शर्म के मारे सर छुपाने के लिए स्थान तलाश कर रहे थे।
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11-28-2020, 02:14 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“ओह मेरे मादरचोद बेटे, अब और नहीं, अब चोद भी डाल कमीने अपनी मां की चूत।” उत्तेजना के आवेग में मैं पूरी तरह रंडी बनी हांफती कांपती बोल उठी।

“हां मेरी चूतमरानी मॉम, अब ये ले मेरा पपलू अपनी मुनिया के अंदर,” उसने पैंतरा बदल कर आव देखा न ताव, ठूंस दिया भक्क से पूरा का पूरा लंड मेरी चूत में और मेरे नितंबों को कस के दबोच कर किसी स्वचालित यंत्र की तरह भच्च भचाभच चोदने में मशगूल हो गया। “आह, ओह मेरी प्यारी मॉम, माई स्वीट मॉम, चूतमरानी मॉम, मस्त मॉम, आह ओह्ह्ह्ह्ह्ह, स्वर्ग का सुख है मेरी बुरचोदी मॉम आपकी मुनिया में”, कहते हुए चोदे जा रहा था मुझे, भंभोड़े जा रहा था मुझे, निचोड़े जा रहा था मुझे, और मैं कमीनी कुतिया, उसके शरीर से चिपटी, अपनी टांगों को उठाए कमर उछाले जा रही थी, गुत्थमगुत्था हुई जा रही थी, अपने बेटे को पूरी तरह अपने अंदर समा लेने की जद्दोजहद कर रही थी। सारी शर्मोहया को तो पहले ही त्याग चुकी थी, वो तो जैसे घुस कर अंतर्ध्यान हो गई थी मेरी कामुक देह की वासना से धधकती चूत में। मेरा नादान बेटा, नैतिकता अनैतिकता के ज्ञान से मरहूम, सीख गया था, कर गया था, कर रहा था, ऐसा गंदा काम, जिसे हमारा सभ्य समाज घृणा की दृष्टि से देखता है। व्याह पूर्व नारी देह से संसर्ग की कला और नारी देह भी किसकी? अपने खुद की मां की और मैं कुलटा, उसे अपनी कामुकता की भट्ठी में झोंकती मुदित हो रही थी।

“ओह राजा, ओह्ह्ह्ह्ह्ह बेटा, हां हां हां हां, चोद अपनी मां को मादरचोद, चोद अपनी गर्लफ्रैंड को चोदू डियर, जी भर के प्यार कर, खेल मेरे अंग अंग से मां के लौड़े।” मैं असहनीय उत्तेजना में तड़फड़ाती, बड़बड़ाती जा रही थी, पूरी बेहयाई पर उतर आई थी मैं। ऐसा भीषण तूफान उठा था वासना का कि हम एक दूसरे से लिपटे चिपटे कमर चलाते इधर उधर लुढ़क रहे थे। कभी वह ऊपर कभी मैं ऊपर।

करीब आधे घंटे की कमरतोड़ चुदाई के पश्चात स्खलन का उस बेहद सुखद, स्वर्गीय अहसास से दो चार होते हुए हम एक दूसरे से चिपके निढाल हो गये। “आह्ह्ह् मेरी प्यारी मॉम, जन्नत है जन्नत तेरे बदन में, उफ्फ्फ मेरी स्वर्ग की अप्सरा, भगवान करे इसी तरह लिपटे रहूं, चिपटे रहूं, तुझ में समाया रहूं।” वह अनंत सुख में डूबे आंखें बंद किए बोला।

“हां मेरे बच्चे, मेरी हालत भी कुछ ऐसी ही है। हम एक दूसरे की बांहों में समाए रहें, सदा सदा के लिए। खेलते रहें एक दूसरे के तन से। लेकिन इसके साथ साथ कई और भी बातें ऐसी हैं जिसका हमें निर्वाह करना है मेरे बच्चे, जैसे दिखावे के लिए ही सही, समाज की नजरों में हमारे मां बेटे के संबंध का निर्वाह, हमारी जीविका के लिए मेरा कार्य, जैसे तुम्हारी पढ़ाई और अपने स्वर्णिम भावी कैरियर की तैयारी। इन सब चीजों का भी उतना ही ख्याल रखना है मेरे बच्चे।” मैं बड़े लाड़ से उसके सीने पर सर रख कर बोली।

“ओके मॉम डन। ऐसा ही होगा मेरी जान। तुम देखोगी कि तुम्हारे प्यार में पागल यह बंदा न तुम्हारे ऊपर, न ही अपने ऊपर किसी को उंगली उठाने का मौका देगा। बस तू अपना प्यार इसी तरह मुझ पर लुटाती रह। आप टेंशन न लो मॉम, मैं अपने जीवन में सफलता का झंडा गाड़ दूंगा, फिलहाल तो एक बार और मुझे अपनी मुनिया में डंडा गाड़ने दे। देख कैसे खड़ा होकर तेरी मुनिया को सलाम कर रहा है, साला मानता ही नहीं मादरचोद।” अपने टनटनाए लिंग को दिखाते हुए वह बोला।

उसकी बातों में आत्मविश्वास का पुट देख मन प्रसन्न हो उठा। मुदित मन से बोली, “गुड ब्वॉय। खुश कर दिया तूने। इसी बात पर एक और चुदाई तो बनती है। चोद ले मेरे बच्चे अपनी मम्मी को, आजा मेरे तन मन के रसिया, मेरे प्यारे मादरचोद बेटे।”

बस मेरे कहने की देर थी कि एक और चुदाई का दौर चालू हो गया, गचागच, फचाफच, चपाचप, ओह्ह्ह्ह्ह्ह अंतहीन आधे घंटे की घमासान चुदाई। फिर नुची चुदी, थकान से लस्त पस्त, अस्त व्यस्त, मैं हांफती कांपती, किसी प्रकार खुद को संभालते, थरथराते कदमों से अपने कमरे में आकर पसर गई। पता नहीं दोपहर के खाने के लिए उठुंगी भी या नहीं, फिर शाम को शॉपिंग भी तो करनी है, यही सोचती हुई कब मेरी आंख लग गई पता ही नहीं चला।

इसके आगे की घटना अगली कड़ी में।

तबतक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए।
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