Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-28-2020, 02:19 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“कर ली अपनी मनमानी आखिर आपने। कर ही दिया मुझे बरबाद ना। हाय, जब हो ही गयी बरबाद तो अब और क्या बचा मां के लौड़े।” मैं भी अब आप ऊप के आदरसूचक संबोधन को अपनी चूत में डाल कर रंडीपन पर उतर आई। अपनी कमर उछालने लगी मैं। “साले मादरचोद, चल अब खुल के चोद मुझे साले कुत्ते, आह्ह्ह् ओह्ह्ह्ह्ह्ह हरामी चोद मेरी चूत, बना डाल भोंसड़ा कमीने।” भौंचक्का रह गया वह मेरे इस रूप को देख कर। “अब मुह फाड़े देख क्या रहा है बुरचोद, फाड़ डाल मेरी चूत, लंड के लोढ़े, मेरी बुर का भुर्ता बना लौड़े के लोटे।” मैं बेहद उत्तेजित थी और आप लोगों को पता ही है कि उत्तेजना के चरम पर जब मैं होती हूं तो रंडी भी मेरे रंडीपन के आगे पानी भरने लगती है।

“वाह रे मेरी रानी, ये तो गजब हो गया। क्या यह मेरे लंड का कमाल है? पहले तो बड़ी शरीफजादी बन रही थी? अब तो बिल्कुल रंडी हो गयी।”

“तूने मुझे बरबाद किया, जबरदस्ती किया। मेरे मना करने के बावजूद मुझे चुदने के लिए मजबूर किया और अब जब मेरी चूत में आग लगी है तो लगे भाषण झाड़ने बहनचोद। अब रगड़ मुझे, रौंद मुझे, पीस डाल अपनी बांहों में साले चुदक्कड़ कुत्ते।” उसपर मुझे रंडी बनाने की तोहमत लगाते हुए मजा लेने लगी। खैर अब उसे इन बातों से क्या लेना देना था। चोदना था, चोद रहा था। मेरे खुलेपन से और उत्साहित हो कर सचमुच में जंगली जानवर बन गया। नोचने लगा, खसोटने लगा, पूरी शक्ति से भंभोड़ने लगा वह। मैं कहां पीछे रहने वाली थी। पूरी शक्ति से उनके शरीर से चिपकी गचागच लंड खाने में मशगूल हो गयी। “ओह्ह्ह्ह्ह्ह राजा, आह हरामी, हाय मेरे कुत्ते कमीने चुदक्कड़ स्वामी, आह्ह्ह् ओह्ह्ह्ह्ह्ह, हाय्य्य्य्य मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ” सिसकारियां निकालने लगी।

“ओह मेरी कुतिया, चूतमरानी, बुरचोदी, उफ्फ्फ ओह्ह्ह्ह्ह्ह मजा आ््आआ््आआ रहा्आ्आ्आ्आ है ओह साली रंडी्ई्ई्ई्ई्ई अब तक क्यों नहीं चोदा रे तुम्हें।” इसी तरह हम दोनों एक दूसरे में समा जाने की जद्दोजहद करते रहे, धकमपेल करते रहे, मस्ती के सागर में डुबकी लगाते रहे और अंततः आधे घंटे के इस घमासान चुदाई के पश्चात हम दोनों एक दूसरे के तन में आत्मसात होने की पुरजोर कोशिश करते हुए आनंद के सागर में सराबोर अंतहीन स्खलन में लीन हो गये। जब हांफते कांपते निढाल हुए तो पूर्णतया तृप्ति की मुस्कान थी हम दोनों के होठों पर।
“कमाल हो तुम कामिनी। तेरे जैसी इतनी मस्त और खूबसूरत औरत मैंने आज तक नहीं चोदा। जैसी तेरी सूरत, वैसा तेरा बदन। इस उमर में इतनी बड़ी बड़ी मस्त चिकनी चूचियां भी इतनी टाईट, कमाल है। बदन का कसाव गजब है। तेरी गांड़ इतनी मस्त है कि लंड अपने आप खड़ा हो जाता है। चूत का तो कहना ही क्या। देखने में भोंसड़ा, लेकिन चोदने में साली सोलह साल के लौंडिया की चूत जैसी टाईट, वाह, मजा आ गया चोदकर। इतने दिन से खाली देख देख कर मूठ मारता रहा, मैं कितना बड़ा गांडू था।”

“साले चोदू कहीं के, मुझे बरबाद करके मजा आ रहा है मादरचोद। चलो कोई बात नहीं, बरबाद किया तो किया, जबरदस्ती चोदा तो चोदा मगर मजा बड़ा दिया रे प्यारे चुदक्कड़ जी। क्या लंड पाया है सिन्हाजी। मस्त। दिल खुश कर दिया चोदकर।” मैं उसके नंगे बदन से चिपकते हुए बोली।

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कहानी जारी रहेगी
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पिछली कड़ी में मैं बता रही थी कि मेरे पुत्र क्षितिज की मुझ पर आसक्ति से मुक्ति के लिए मैं उपाय ढूंढ़ रही थी। एक ही उपाय मेरे जेहन में आया कि उसका ध्यान मेरे अलावा अन्य स्त्रियों की तरफ किसी तरह मोड़ सकूं। किसी तरह मना बुझा कर मैंने क्षितिज को इसके लिए तैयार किया कि कम से कम एक बार किसी अन्य स्त्री के साथ हमबिस्तर तो हो। फिर आगे देखा जाएगा। मेरा यह मानना था कि एक बार अगर अन्य स्त्रियों के संसर्ग का मजा चख ले तो खुद ब खुद ढूंढ़ ढूंढ़ कर शिकार करने लगेगा। पहली ऐसी स्त्री ढूंढ़ने का जिम्मा मेरे माथे था। मैंने ढूंढ़ भी लिया। रेखा सिन्हा नाम था उसका, मेरी ही उम्र की। काली थी मगर थी बड़ी खूबसूरत। उसके साथ मेरा परिचय कैसे हुआ, यही मैं पिछली कड़ी में बता रही थी। उसका पति अलोक सिन्हा जो एक नंबर का रंगीला औरतखोर था। अपनी पत्नी के अलावा सारी स्त्रियों पर लार टपकाता रहता था। ऐसे ही करीब साल भर पहले मैं उनकी शिकार बनी। मैं खुद भी उस दिन कुछ अधिक ही वासना की भूख से परेशान थी। कुछ परिस्थिति, कुछ उनका मौके के ताक में रहने की आदत और कुछ खुद मेरा समर्पण, इन सबका मिला जुला फल यह हुआ कि उन्होंने चटखारे ले ले कर मेरे जिस्म का रसपान कर लिया। उस दिन उनके घर में उनके अलावा और कोई नहीं था। ड्राइंग रूम के सोफे पर ही जी भर के मेरे शरीर को रौंदा, नोचा, खसोटा, भंभोड़ा और बुझाया अपनी वासना की भूख। न सिर्फ उसे औरतों का शिकार करना आता था बल्कि संभोग सुख देने की कला में पारंगत भी था। तभी तो उनके भीषण झिंझोड़ निचोड़ के बावजूद मैं सुखद तृप्ति का अनुभव कर रही थी। वासना के उस सैलाब के उतरने के बाद हम दोनों नंग धड़ंग एक दूसरे के तन से चिपके हांफ रहे थे। जब थोड़ी सांस में सांस आई तो मैंने पूछा,

“एक बात पूछूं मेरे चोदूजी?”

“एक नहीं दस पूछो मेरी प्यारी बुरचोद।”

“इतनी खूबसूरत पत्नी के रहते आप पराई औरतों को चोदने की फिराक में क्यों रहते हो?”

“उंह, साली काली कलूटी कुतिया का नाम लेकर मूड खराब कर दिया।”

“काली ही ना है, लेकिन खूबसूरत तो है ना।”

“अब उसका जिक्र छोड़ो, मुह कसैला हो गया। मुझे पसंद नहीं तो मैं क्या करूं।”

“अच्छा ये बताओ चोदूजी, आपकी बेरुखी से अगर कहीं आपकी पत्नी आपसे बेवफाई करने लगे तो?”

“वो गांड़ मराए, मेरी बला से। मुझे क्या? अब मूड मत खराब करो मेरी जान, तेरी चूत चोद कर मेरा जन्म सार्थक हो गया। साली भैंस जैसी इतनी बड़ी चूत मैंने जिंदगी में नहीं देखी। इतनी बड़ी मगर साली इतनी चिकनी, गजब है। उससे भी गजब तो यह है कि इतनी बड़ी चूत होने के बावजूद इतनी टाईट! गजब तेरी चूत और गजब तू खुद मां की लौड़ी। अब यही देखो, इस उमर में भी इतनी बड़ी बड़ी चिकनी चूचियां इतनी सख्त कैसे?” मेरे नितंबों पर हाथ फेरते फेरते वे बोले, “तेरी गांड़? गांड़ कुछ कम है क्या? इतनी बड़ी बड़ी, चिकनी, उफ्फ्फ बड़ी जबरदस्त है, जबरदस्त। ऐसी गांड़ भी मैंने जिंदगी में नहीं देखी। साली जभी देखो तभी मेरा लौड़ा फनफना कर अपने आप खड़ा हो जाता है।”
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11-28-2020, 02:19 PM,
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“जो बोलना है साफ साफ बोलिए ना।”

“समझने वाले को इशारा ही काफी है।”

“ओह, तो मेरी गांड़ चोदने का खयाल है मेरे चुदक्कड़ जी को।”

“और क्या।”

“मतलब अब मेरी गांड़ फाड़ने का इरादा है।”

“गलत बात, फाड़ने का नहीं रे पगली, चोदने का।”

“एक ही बात है, आप तो चोदिएगा, लेकिन चुदवाने वाले की तो फटेगी।”

“एक बार ले कर तो देख, मजा न आए तो कहना।”

“ना बाबा ना, मेरी चूत का कचूमर निकाल दिया आपने अब मेरी गांड़ का मलीदा बनाना है क्या?” वे मेरी गांड़ को सहलाते जा रहे थे और बीच बीच में गांड़ की दरार में उंगली भी करते जा रहे थे। मजा आ रहा था मुझे मगर नाटक कर रही थी।

“मलीदा नहीं रे पगली, यह तो खुद ही स्वादिष्ट फालूदा है। चाटने का मन हो रहा है।”

“छि: गंदे”

“मक्खन है मक्खन”

“बात बनाना तो कोई आप से सीखे सिन्हा जी”

“लो, सच कह रहा हूँ। चाटूंगा भी, चोदूंगा भी। देख मेरा लौड़ा कैसे बमक उठा है फिर से।” उन्होंने मेरा हाथ अपने लंड पर रख दिया। वाकई, टन्न टन्न कर रहा था, तप रहा था गरम हो कर। झनझना उठी मैं। पुनः मेरी देह में कामुकता का सैलाब अंगड़ाई लेने लगा। इस बार उन्होंने मुझे पलट दिया, ऐसा पोजीशन लिया कि उनका मुह ठीक मेरे नितंबों पर था और उनका लिंग मेरे हाथ में। “खेल मेरे लंड से रानी, मन करे तो चाट, मन करे तो चूस, आह्ह्ह् हां ऐसे ही” और मैं समर्पित हो गयी। मेरी गुदा को प्रस्तुत कर दिया उनके सम्मुख, खेलने के लिए, चाटने के लिए और और और चोदने के लिए। मैं खुद भी भूखी कुतिया की तरह चाटने लगी, चूसने लगी उनके गधे सरीखे मोटे लिंग को, चपाचप, गपागप। उधर वे भी मेरी गुदा को बड़े प्रेम से चूमने लगे, चाटने लगे, मेरी गुदा के दरार में जीभ फिराने लगे, आह्ह्ह् ओह्ह्ह्ह्ह्ह, फिर मेरे गुदा द्वार में जीभ घुसाने लगे उफ्फ्फ मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ, कितना मजा आ रहा था बता नहीं सकती। करीब तीन चार मिनट में ही हम दोनों पागलों की तरह व्यवहार करने लगे। वे मेरी गुदा को मसलते हुए गुदा मार्ग में जीभ घुसा घुसा कर सटासट चाट रहे थे, बीच बीच में मेरे भगांकुर को छेड़ते मेरी उत्तेजना की अग्नि में घी डालते जा रहे थे और मैं उनके नितंबों को कस के दबोचे पूरी शक्ति से उनका पूरा लिंग हलक में उतार कर निगलने का असफल प्रयास करने लगी। बदहवास हो कर अंततः हम दोनों ने पैंतरा बदला और लीजिए, मेरी गुदा के तिया पांचा होने की घड़ी आ पहुंची।

“मान गई, मान गई रे चोदू आपको, उफ्फ्फ पगली कर दिया मादरचोद, आह्ह्ह् अम्म्म्म्आ्आ्आ्आ्आ।” बड़बड़ करने लगी।

“आ गया आ गया मेरा लौड़ा्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह आ गया मेरी रानी।” पोजीशन तो सटीक थी, कूद कर टूट पड़ा, सीधा लंड मेरी थरथराती गुदा द्वार में टिका कर सट्ट्टाक से पेल दिया।

“आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह, ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह््ह्ह मर गय्य्य्य्ई्ई्ई्ई रे, फट्ट्ट्ट्ट गय्य्य्यी्ई्ई्ई्ई्ई मेर्र्र्र्री्ई्ई्ई गां्आं्आं्आं्आंड़।” मेरी दर्दनाक चीख से पूरा कमरा दहल उठा। हलाल होती बकरी की भांती छटपटा उठी।

“चो्ओ्ओ्ओ्ओप्प्प्प्प मां की चूत। फटी नहीं है बुरचोदी। चिल्ला मत कुतिया। देख अब आयेगा मजा।” मेरी कमर को कुत्ते की तरह पकड़ कर दनादन ठोकने लगा, पेलने लगा, चोदने लगा, भच्च भच्च। सच में जंगली कुत्ता बन गया था वह।

“हाय हाय ओह ओह ओह मां, ओह मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ, उफ्फ्फ।” मेरी चीखों की परवाह किए बगैर पिल पड़ा था वह जालिम, जल्लाद, कसाई की तरह हलाल करने को मुझे, मेरी गांड़ का गूदा निकालने। मेरी पहली चीख सचमुच ही वास्तविक पीड़ा की चीख थी। आंखों से अश्रुधारा बहने लगी थी। बिना जाने खुद को समर्पित कर बैठी ऐसे कसाई के हाथों जिसे मेरी चीखों में आनंद आ रहा था। उत्साहित हो रहा था। लेकिन कुछ पलों के पश्चात वही पीड़ा आनंद देने लगी मुझे। मेरी संकीर्ण गुदा मार्ग हौले हौले ढीली होने लगी और फिर तो कहना ही क्या। उस घर्षण के सुखद आहसास में डूबती चली गयी। चीखें आनंदमय सिसकारियों में तब्दील हो गयींं। “आह इस्स्स्स्स, उफ्फ्फ ओह्ह्ह्ह्ह्ह, आह्ह्ह्, सी्सी्सी्सी्सी।” अपनी गांड़ उछाल उछाल कर चुदवाने लगी, “अहा, मजा, मजा आ रहा है राजा, ओह्ह्ह्ह्ह्ह मेरे चोदू डार्लिंग, चोद मेरी गांड़, निकाल मेरी गांड़ का गूदा, बना दे इसे फलूदा, आह मादरचोद, ओह बहन के लौड़े,” पागलों की तरह बोल निकलने लगे थे मेरे मुख से।
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11-28-2020, 02:19 PM,
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“आया, आया मजा आखिर मेरी कुतिया को साली रंडी्ई्ई्ई्ई्ई, रो रही थी, चिल्ला रही थी हरामजादी रंडी की चूत। अब बोल आह आह मेरी रानी ओह हुम हुम मजा आह आह हुंं हुंं हुंं आ रहा है कि नहीं हीं हीं हीं।”

“आह आह आ रहा है आ रहा है ओह ओह बहुत बहुत मजा आह आह आह आह आ रहा्आ्आ्आ्आ है राजा ओह आह चोदता रह चोदता रह ओह ओह मेरे चुदक्कड़, ओह मेरे चोदू, ओह मेरे गांड़ के लौड़े, ओह साले चोद मां के लौड़े, ओह मेरे ज्ज्ज्ज्जा्आ्आ्आ्आ्आन्न्न्न्नू्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ,” चुदती रही मैं, नुचती रही मैं। वे अब वहशीपन पर उतर चुके थे। मेरे कंधों पर दांत गड़ा गड़ा कर लाल कर दिया। पीछे से मेरी चूचियों को दबोच दबोच कर आटे की तरह गूथने लगे। ओह मेरी मां। दर्द, बेहद दर्द, मगर दर्द में मजा, बेहद मजा मिल रहा था मुझे। झिंझोड़ झिंझोड़ कर चोद रहा था, निचोड़ निचोड़ कर चोद रहा था और मैं आनंदित हो रही थी, बेशुमार खुशी प्रदान कर रहा था हरामजादा। करीब बीस मिनट के इस नोच खसोट में मैंने मानो जन्नत की सैर कर ली हो, थरथर कांपती हुई झड़ने लगी मैं, ऐसा लगा मानो मेरा शरीर हल्का फुल्का हो कर हवा में उड़ रहा हो। ऑफिस की थकान के बाद इतनी थकान भरी चुदाई, ताज्जुब था, थकान की जगह हल्के पन का आहसास हो रहा था मुझे। थकान सारी मेरी चूत और गांड़ में घुस गई थी। “ओह मजा आ गया राजा।” मेरे मुह से निकला। बीस मिनट बाद वे स्खलित होकर मुझ पर लद गये। मेरी गांड़ में छरछरा कर वीर्य इतना भर दिया कि मेरी योनि से होता हुआ सोफे को चिपचिपा कर रहा था। मह उसी तरह नंगे बदन एक दूसरे से लिपटे चिपटे करीब दस मिनट तक पड़े रहे।

“वाह, तू तो बहुत बड़ी चुदक्कड़ है री”

“हट, जबरदस्ती चोद कर आपने ही न चुदक्कड़ बनाया मुझे। मैं तो मना कर रही थी।”

“चुप कर बुरचोदी, इतने मजे से चुदवाना और वो भी मेरे इतने मोटे लंड से पहली बार, किसी साधारण औरत के बस की बात नहीं है। जैसी भी है तू मगर मस्त है। कसम से आज से पहले ऐसा मजा कभी नहीं मिला। अब तो बार बार चोदूंगा तुझे कामिनी जी। दोगी न चोदने?”

“हां जी हां रज्ज्ज्ज्ज्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, मेरे मस्त मस्त चोदू जी।” तृप्ति और खुशी के मिले जुले भाव से उन्हें चूम बैठी। जब मैं वहाँ से निकली, उस वक्त रात साढ़े नौ बज रहा था। उस दिन के बाद हमारा मिलना जुलना बदस्तूर जारी रहा। आपस में घर आना जाना, परिवार वालों से मिलना जुलना चलता रहा। मुझे पता चल गया था कि उनकी पत्नी रेखा सिन्हा जी की बेरुखी झेलते हुए पत्नी धर्म निभाए जा रही है। मुझे इस बात का अंदाजा था कि ऐसी औरतें, जिन्हें परिवार में पति का प्यार, पति से पत्नी सुख नसीब नहीं होता है, प्यार और शारीरिक भूख के लिए आसानी से फंस सकती हैं। हो सकता है कहीं किसी से चक्कर चल भी रहा हो, कौन जानता है। पारीवारिक मेल जोल के चलते रेखा से मेरी घनिष्ठता भी हो गयी थी, यह और बात है कि उसे सिन्हा जी और मेरे बीच के अनैतिक संबंध के बारे मे बिल्कुल भी पता नहीं था। अब मैं योजना बना कर उसे क्षितिज के बिस्तर तक लाने की जुगत में भिड़ गयी, दूसरे ही दिन उसमें सफल भी हो गयी।

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11-28-2020, 02:19 PM,
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अबतक आपलोगों ने पढ़ा कि किस तरह मेरे और मेरे बेटे के मध्य संबंध, शारीरक संबंध तक पहुंच गया। मेरे बेटे की मुझ पर इतनी आसक्ति थी कि वह किसी और स्त्री की तरफ देखना भी गंवारा नहीं करता था। इसी बात से मैं चिंतित थी। मैं वासना की भूखी, आजाद पंछी थी, मेरे लिए किसी एक पुरुष से बंध कर रहना बेहद कष्टकर था। मैंने किसी तरह क्षितिज को अन्य स्त्रियों की ओर ध्यान देने के लिए मना लिया। मेरी नजर रेखा सिन्हा पर केन्द्रित हो गयी। वह बिल्कुल उपयुक्त थी इस कार्य के लिए। उससे मेरा परिचय उनके पति आलोक सिन्हा जी के माध्यम से हुआ था। आलोक सिन्हा जी परस्त्रियों पर लार टपकाने वाले रंगीली तबियत के मालिक थे। एक दिन संयोग से मैं उनके रंगीन स्वभाव की शिकार हो गयी। शिकार क्या हुई, मैं खुद ही जानबूझ कर उन के हत्थे चढ़ी। संयोग, परिस्थिति, उनकी रंगीन मिजाजी और मेरी वासना की भूख, इन सबका परिणाम था कि मैं चुद गयी उनसे। उसके बाद यह सिलसिला चल निकला हम दोनों मिलते रहे, मौज करते रहे, जब मौका मिलता भिड़ जाते थे वासना के खेल में और एक दूसरे की शारीरिक भूख मिटा लिया करते थे। वे कमीने थे तो मैं भी एक नंबर की कमीनी चुदक्कड़ थी। इसी क्रम में एक दूसरे के घर आने जाने का सिलसिला शुरू हुआ। इसी क्रम में रेखा से मेरा परिचय हुआ। परिचय क्या हुआ घुल मिल गये एक दूसरे से और आपस में सहेलियां बन गये थे। उसे सिन्हा जी के साथ मेरे अंतरंग रिश्ते के बारे में पता ही नहीं था। वह अपने काले रंग के कारण पति से उपेक्षा का दंश झेलती पत्नी की भूमिका निभाए जा रही थी, हालांकि उसका चेहरा मोहरा, शारीरिक गठन काफी आकर्षक था। इतना तो निश्चित था कि अपने पति की उपेक्षा के कारण उसे पति के प्यार और शारीरिक सुख से वंचित रहना पड़ रहा था। उसके हाव भाव और बातों में यह झलकता भी था। इसी कारण मेरे लिए उसका शिकार करना बेहद आसान था। उसकी एक बेटी थी जो हॉस्टेल में रह कर कॉलेज की पढ़ाई कर रही थी। यह संयोग ही था कि सिन्हा जी भी एक हफ्ते के ऑफिशियल टूर में थे। स्वर्णिम अवसर था मेरे लिए।

क्षितिज के घर आने के अवसर पर मैंने तीन दिन की छुट्टी ले रखी थी। अभी यह दूसरा दिन था। दूसरे दिन हम दोनों मां बेटे रात भर रंगरेलियां मनाते रहे। तीसरे दिन मैं अपने पूर्व नियोजित योजनानुसार ठीक रेखा के दफ्तर से छुट्टी के समय उसके दफ्तर के सामने अपनी कार खड़ी कर उसका इंतजार कर रही थी। संध्या चार बजे ज्योंही रेखा दफ्तर से बाहर निकली, और सामने ऑटो स्टैंड की ओर बढ़ी, तभी मैंने उसे आवाज दी।

“अरे रेखा!”

“अरे कामिनी!”

“क्या घर चल रही हो?”

“हां”

“तो आओ ना मेरी कार में, मैं भी घर ही चल रही हूं। ऑफिस में कुछ काम था, हो गया, लौट रही थी तो तुम्हें देख लिया।”

“ओह थैंक गॉड, मैं तो ऑटो देख रही थी।” वह सामने की सीट पर बैठी और हम चल पड़े।

“और सुनाओ, क्या हाल है?”

“हाल क्या रहेगा, वही, घर से ऑफिस और ऑफिस से घर। अभी घर पहुंच के घर का काम। गनीमत है कि सिन्हा जी टूर पर हैं, नहीं तो फिर वही रोज की चखचख” तनिक उदासी की छाया थी उसके चेहरे पर।
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11-28-2020, 02:19 PM,
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“अरे ऐसी ही है हम औरतों की लाईफ, ऑफिस का काम देखो, घर का काम देखो, जुते रहो। अब मुझे ही ले लो, क्षितिज छुट्टी में आया हुआ है और उसके चक्कर में मैं तीन दिनों की छुट्टी ले कर घर बाहर के कामों में ही उलझी हुई हूं।” “ओह, क्षितिज आया हुआ है? क्या हाल है उसका? कितने दिन की छुट्टी है?”

“एक हफ्ते की छुट्टी है। घाटशिला भी जाना है उसे, नाना नानी से मिलने, एक दो दिन रह कर आ जाएगा।”

इसी तरह बातें करते करते हम घर पहुंच गये। मैंने कार अपने घर की गेट के अंद घुसा दिया।

“अरे यह तुम अपने घर क्यों ले आई?”

“आ भी जाओ भई, चाय पीकर चली जाना, वैसे भी अकेली ही तो हो, कौन सी जल्दी है।”

“ओके बाबा, लेकिन जल्दी जाऊंगी, बहुत सारा काम पड़ा है घर में।”

“चली जाना, चली जाना, थोड़ी सांस तो ले लो। घर कहाँ भागा जा रहा है।” कॉलबेल बजाते ही हरिया ने दरवाजा खोला।

मेरे साथ रेखा को देख कर मुस्कुरा कर बोला, “अरे रेखा बिटिया कैसी हो?” पचहत्तर साल का बूढ़ा, इस उम्र में भी पराई स्त्रियों पर लार टपकाता रहता था हरामी। करीब पांच साल पहले तो बुढ़ापे की असमर्थता के कारण चोदना बंद किया था उसने और करीम चाचा नें मुझे, वरना मुझे चोदे बिना उनको चैन ही कहां मिलता था। धीरे धीरे उनकी चोदने की क्षमता घटती गयी और खीझ कर मैं ने ही उन्हें मना करना शुरू कर दिया था। खाली पीली मुझे गरम कर देते और आनन फानन झड़ कर मुझे बीच मझधार में तड़पती छोड़ देते थे कमीने। मेरे द्वारा घास नहीं डालने के बावजूद दूसरी औरतों पर नजरें गड़ाए रहते थे, मौका पाकर अभी भी यहां वहां मुह मारने से बाज नहीं आते थे दोनों। भाड़ में जाएं दोनों, मैंने उन्हें रोकना टोकना भी बंद कर दिया था। रेखा को देख कर वैसी ही मुस्कान थी हरिया के चेहरे पर।

“ठीक हूं अंकल” कहते हुए मेरे साथ अंदर आ गयी।

तभी क्षितिज बैठक में आ गया। “आ गयी मॉम? ओह नमस्ते आंटी।” मैंने आंखों के इशारे से उसे जता दिया कि यही है शिकार। समझ गया वह। “सो्ओ्ओ्ओ्ओ्ओ ब्यूटिफुल, यू आर लुकिंग ग्रेट आंटी। सो्ओ्ओ्ओ्ओ्ओ हॉ्हॉ्हॉट।” रेखा के लिए उसके प्रशंसात्मक शब्द थे और वैसा ही भाव चेहरे पर भी था। सिर्फ बरामूडा और टी शर्ट में था वह, चमक रहा था, खूबसूरत तो था ही। एकाएक उसकी खिलती जवानी और खूबसूरती को देखकर चमत्कृत रह गयी रेखा। उसके शब्दों और हाव भाव की ताब न ला सकी वह।

“चल हट, बड़ा शैतान हो गया है। अपनी आंटी को भी छेड़ने से बाज नहीं आ रहा है बदमाश।” रेखा तनिक शरमा गयी।

“कसम से आंटी, गजब की खूबसूरत हो गयी हैं आप तो। साल भर पहले तो आप ऐसी नहीं थीं। उमर के साथ आपकी खूबसूरती तो निखरती ही जा रही है।”

“हट बदमाश, मारूंगी हां।” लरज उठी रेखा।

“चल अब रेखा को छेड़ना बंद कर क्षितू। शुरू हो गया तू? इंजीनियरिंग कॉलेज जा कर बहुत बात बनाना सीख गया है,” क्षितिज से बोली मैं, फिर रेखा की ओर मुखातिब हो कर बोली, “लेकिन सच ही कहा क्षितिज नें, तू सच मे बेहद खूबसूरत है।”

“ले अब तू भी शुरु हो गयी।” काले रंग के बावजूद चेहरा उसका लाज से सुर्ख हो उठा। उसकी खूबसूरती और निखर गयी उस हालत में।

“अच्छा छोड़ इन सब बातों को और चल पहले हाथ मुंह धो कर फ्रेश हो जा, तबतक चाय आ जाएगी।” कहते हुए मैं उसका हाथ पकड़ कर मेरे बेडरूम में ले आई। क्षितिज वहीं बैठक में रुक गया। रेखा ने कोई प्रतिवाद नहीं किया। हम दोनों फ्रेश हो कर मेरे बेड पर ही बैठ गये।

“वाऊ रेखा तू तो सचमुच दिन ब दिन और जवान होती जा रही हो।” मैंने उसके तरोताजा चेहरे को प्रशंसात्मक दृष्टि से देखते हुए कहा।
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11-28-2020, 02:19 PM,
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“हट, जवान काहे की, बेकार की बात मत कर।”

“सच कहती हूं, सूरत तो सूरत, तेरी फिगर देख कर तो मुझे जलन होती है।”

“अब तू भी लगी मुझे चिढ़ाने।”

“कसम से, सिन्हा जी तो बड़े किस्मत वाले हैं।”

“फिर बकवास। मुझ काली कलूटी से शादी करके तो वे पछता रहे हैं।” उदासी छा गयी उसके चेहरे पर।

“कैसे आदमी हैं वे? इतनी खूबसूरत पत्नी को पाकर भी कोई पछताता है क्या? तुम काली हो तो क्या हुआ, मुझसे पूछो, कितनी खूबसूरत हो तुम।”

“तुम्हारे मानने से क्या होता है।”

“झूठ नहीं बोल रही हूं मैं। मैं तो फिदा हूं तेरी खूबसूरती पर। काश मैं मर्द होती।”

“मर्द होती तो?”

“इतना प्यार करती, इतना प्यार करती कि…” कहते कहते मैंने उसे बांहों में दबोच लिया और भरपूर चुंबन उसके होंठों पर अंकित कर दिया।

“हट शैतान।” छिटक कर अलग होना चाहती थी वह किंतु मेरी पकड़ काफी मजबूत थी।

“कसम से सच कह रही हूं मैं। यू आर लुकिंग सो््ओओ ब्यूटीफुल, सो्ओ्ओ्ओ्ओ्ओ सेक्सी।” मैं उसे बांहों में भर कर तड़ातड़ उसके होंठों, गालों, आंखों को बेहताशा चूमने लगी। वह छटपटा रही थी लेकिन उसकी सांसें धौंकनी की तरह चल रही थी।

“अरे यह क्या कर रही हो छोड़ो मुझे।” वह छूटने के लिए छटपटा रही थी मगर मेरी शक्ति के आगे बेबस थी। मैं उस पर हावी होती जा रही थी। मेरे चुंबनों से लगता है वह कमजोर होती जा रही थी। उसका विरोध धीरे धीरे कमजोर पड़ने लगा। उसके विरोध की परवाह किए बगैर मैं ने उसे बिस्तर पर गिरा दिया और उधर मैं अपने चुंबनों से उसे बेहाल करती जा रही थी और इधर मेरा हाथ उसके वक्षस्थल पर रेंगने लगा। उसकी आंखें अधमुंदी हो गयीं। “ओह्ह्ह्ह्ह्ह मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ, ककककक्य्य्य््आ्आ कर रही हो आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह।” वह बुदबुदा रही थी। मैं खेली खायी वासना की पुतली, सब जानती थी कि स्त्री को वश में कैसे किया जाता है और खास कर रेखा जैसी अतृप्त, पति द्वारा उपेक्षिता स्त्री को वश में करना तो मेरे बांये हाथ का खेल था। उसके कामोत्तेजक अंगों से खेलते हुए मैं उसे मदहोश करना चाहती थी, उसकी कामाग्नि को भड़काना चाहती थी ताकि उसके अंदर दबी हुई वासना की चिंगारी ज्वालामुखी का रूप ले ले, जिसके वशीभूत वह नि:संकोच समर्पण को वाध्य हो जाय और क्षितिज के लिए शिकार करना सरल हो जाय, और मैं देख रही थी कि मेरा प्रयास रंग ला रहा था।

“उफ्फ्फ आह्ह्ह्, ककक्या्आ्आ ककककररररर रही हो तुम आह छछछछोड़ो आह।”

“करने दो रेखा ओह मेरी जान करने दो उफ्फ्फ तेरी खूबसूरती मुझे हमेशा आकर्षित करती रहती है, मुझे प्यार करने दे।”

“ननननहींईंईंईंईं, ओह नननननहींहींईंईंईं, तू औरत है पगली, ऐसे कोई औरत किसी औरत से कहीं प्यार करती है भला।”

“चुप कर, बस अब कुछ न बोल मेरी जान। करने दे मुझे, प्यार करने दे तेरे इस जिस्म को ओह्ह्ह्ह्ह्ह कितनी सख्त है तेरी चूचियां आह्ह्ह्।” उसके उरोजों को दबाती हुई कामोत्तेजक स्वर में बोली मैं। उसकी साड़ी के पल्लू को एक तरफ खिसका कर ब्लाऊज खोलने लगी।

“यह क्ककककक्या कर रही हो?” उसकी सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं। मैं रुकी नहीं, चूमती रही, ब्लाऊज खोल कर ब्रा के ऊपर से ही उसकी चूचियां दबाने लगी। रहा नहीं जा रहा था मुझसे, खुद मैं भी उत्तेजित हो रही थी। बेसब्री में उसके ब्रा को भी खोल दिया मैंने। उफ्फ, कितनी बड़ी बड़ी चूचियां थी उसकी। कैसी कसी हुई सख्त चूचियां थीं उसकी। रहा नहीं गया तो मैं मुह लगा बैठी उसकी काली काली चिकनी गठी हुई चूचियों पर और लगी चूसने पागलों की तरह।
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11-28-2020, 02:19 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“आह्ह्ह् ओह्ह्ह्ह्ह्ह ओह मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ, पागल कहीं की उफ्फ्फ, मुझे भी पागल कर रही हो आह्ह्ह्।”

“हां मैं पागल हो गयी हूं। तू भी पागल हो जा। मैं विधवा, प्यार की भूखी, तू उपेक्षा की मारी प्यार की भूखी, मुझे प्यार करने दे पगली, उफ मेरी जान, जैसा तेरा चेहरा, वैसा तेरा तन और वैसी ही तेरी चूचियां।” चूसती जा रही थी उसकी विशाल गोल गोल चूचियां, चुभलाने लगी मैं खड़ी हो चुकी उसके चचुक। उत्तेजना के मारे अकड़ने लगी वह।

“आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह, ओ्ओ्ओह्ह्ह्,” वह सिसक रही थी। मैं अब उसकी साड़ी के अंदर हाथ डाल चुकी थी। सीधे उसकी पैंटी के ऊपर ही से उसकी योनि का स्पर्श करने लगी। सहलाने लगी। चिहुंक उठी वह ,”उई मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ, हाय।” पैंटी गीली हो चुकी थी उसकी। चिहुँक जरूर उठी थी वह मगर विरोध करना छोड़ दिया था अब उसने। आनंदित हो रही थी मेरी हरकतों से।

“अब उतार भी दे अपने पूरे कपड़े रेखा डार्लिंग, उफ अब रहा नहीं जा रहा मुझसे। तेरे नंगे बदन की खूबसूरती देखने के लिए मरी जा रही हूं। तेरे नंगे जिस्म से प्यार करने को तड़प रही हूं मैं।” बोलते हुए उसके किसी उत्तर या प्रतिक्रिया का इंतजार किए बगैर मैं ने उसे पूरी तरह नंगी कर दिया।

“उफ्फ्फ पगली क्या कर दिया बेशरम, हाय औरत होकर मुझ औरत को नंगी कर के भला कैसे प्यार करोगी पागल। इस्स्स्स्स्स रे ऐसे तो मर्द करते हैं आह्ह्ह् भगवान” जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी वह। किसी कुशल शिल्पी के द्वारा तराशी गयी मूरत की तरह उसकी काया नें मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया था। कमर में कोई बल नहीं था। चरबी का नामोनिशान नहीं था न ही उसके उसके पेट पर न ही कमर में। काली होने के बावजूद चमचमाती उसकी जंघाएँ और चिकने पांव, उफ्फ्फ भगवान ने बड़ी फुरसत से बनाया था उसे। पता नहीं कितने सालों से नहीं चुदी थी, काली होने के बावजूद दपदपा रही थी उसकी योनि किसी 20 – 21 साल की लौंडिया की तरह। पति द्वारा उपेक्षा के फलस्वरूप योनि के रख रखाव का ध्यान नहीं रखने के कारण योनि के ऊपर बेतरतीब घुंघराले झांट अलग ही छटा बिखेर रहे थे। कुछ पलों के लिए तो अपलक देखती रह गयी मैं। फिर अचानक ही मानो मेरी तंद्रा भंग हुई, टूट पड़ी मैं उसपर, पांवों से चूमते हुए उसकी जंघाओं तक पहुची, फिर जंघाओं से होते हुए दप दप करती चिकनी काली चूत पर। थरथरा रही थी वह, कांप रही थी जैसे बुखार चढ़ गया हो। जैसे ही मेरे होंठों का स्पर्श उसकी योनि पर हुआ, “उई्ई्ई्ई्ई्ई अम्म्म्म्आ्आ्आ्आ्आ,” सिसकारी निकल पड़ी उसकी, छटपटा उठी वह। “आह आग लगा दिया पगली तूने मेरे तन में ओह मां।” अब मैंने उसकी योनि पर अपना ध्यान केंद्रित किया। चूमते चूमत अब चाटने लगी मैं। मेरे दोनों हाथ उसके सख्त उरोजों से खेलने और मसलने में व्यस्त थे। इधर उसकी चूत से झांकता लाल लाल योनिद्वार और रक्तिम उभरा हुआ भगांकुर। पागलों की तरह चाटने लगी, चूसने लगी उसके भगांकुर को। थरथराने लगी वह और “आह््हहँ्ँ्हँ्हँ्हँ्हँइ्ई्ई्ई्ई्ईस्स्स्स्स् अम्म्म्म

म्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्,” एक दीर्घ विश्वास उसके मुख से निकला, स्खलन था वह उसका, पता नहीं कितने सालों बाद, स्वर्गीय स्खलन के सुख में डूबी, मेरे सर को अपनी दोनों जंघाओं से कस लिया और झड़ने लगी। उसकी योनि से निकलते प्रोटीनयुक्त रस को पी गयी मैं। करीब दो मिनट तक उसी स्थिति में रहे हम और रेखा निढाल हो गयी, पैर पसार कर।

जैसे ही वह दीर्घ निश्वास के साथ निढाल हुई और उसकी जंघाओं के बंधन से मुक्त हुई मैं, मेरी सांस में सांस आई और मैं बोली, “उफ्फ्फ, जान ही निकाल दिया था तूने तो।”

इसके आगे की घटना अगली कड़ी में
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11-28-2020, 02:20 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि किस तरह मैं क्षितिज के लिए एक ऐसी स्त्री रेखा को फंसाया, जो अपने पति की उपेक्षा का दंश झेलती हुई वासना की अग्नि अपने अंदर दबाए हुए पत्नी धर्म का निर्वाह किए जा रही थी। मैं ने बड़ी चालाकी से उसे अपने जाल में फंसा कर उसके साथ समलैंगिक संबंध स्थापित कर लिया। इस क्रम में मैं उसके अंदर की दमित भावनाओं को उभार कर इस कदर उत्तेजित कर दिया था कि वह मुझ से बिल्कुल खुल गयी। समलिंगी संभोग के दौरान वह एक बार स्खलन सुख का अनुभव भी कर चुकी थी, लेकिन अभी वह वास्तविक कार्य बाकी था जिसके लिए मैंनें रेखा को अपने जाल में फंसाया था। अब आगे –

“आह्ह् बरसों बाद ऐसा सुख मिला। उफ्फ्फ, जादूगरनी कहीं की। काश तू मर्द होती, चुद गई होती।” वह लाज से दोहरी होती हुई बड़ी मुश्किल से बोली। “तू भी उतार न अपने कपड़े, तेरे नंगे जिस्म से प्यार कर, मैं भी तेरे जिस्म से प्यार करना चाहती हूं।” शरमाते हुए बोली वह।

“वाह मेरी लाजो रानी, ऐसे बोलोगी तो मर ही जाऊंगी मैं। चल मैं भी नंगी हो जाती हूं।” फटाफट अपने कपड़े उतार कर नंगी हो गयी मैं।

“वाऊ, गजब, तू तो पूरी कामिनी है। मुझी को खूबसूरत बता रही थी शैतान की बच्ची।” अब वह खुल गयी थी मुझ से। अच्छा ही हुआ, उसकी झिझक खत्म हुई। अब मैं उसे दुबारा गरम करना चाहती थी ताकि मौके पर चौका जड़ने के लिए क्षितिज हाजिर हो जाय। सब कुछ पूर्वनियोजित षड़यंत्र था हम मां बेटे का। नंगी हो कर पुनः लिपट गयी मैं रेखा के नंगे जिस्म से। अब रेखा भी मेरे चुंबन का उत्तर चुंबन से दे रही थी। उसके हाथ भी मेरे जिस्म पर अठखेलियाँ कर रहे थे। हमारी चूचियां आपस में टकरा रही थीं, रगड़ खा रही थीं, घर्षण से उत्पन्न उत्तेजना के मारे वह पुनः जल उठी। मैं खुद जल रही थी। हमारी योनियों का मिलन और योनि का योनि के बीच का घर्षण वासना को और भड़का रहा था। भगनासा से भगनासा का टकराव हमारी उत्तेजना की अग्नि में घी का काम कर रहा था। हम दोनों कमर चला रहे थे ऐसे, मानो औरत और मर्द के बीच संभोग हो रहा हो। एक दूजे के तन में समा जाने की असफल चेष्टा करती रहीं। एक दूसरे की चूचियों को दबोच दबोच कर लाल कल दिया था हम दोनों ने। आखिर थीं तो औरतें ही ना। कब तक, आखिर कब तक चलता यह सब।

“काश तू मर्द होती कामिनी, चुद जाती अभी ही, ओह मेरी जान।” अंततः उसके मुह से यह उद्गार निकला।

“मेरी जगह कोई और होता तब भी चुद जाती क्या?” अपनी सांसों पर काबू पाते हुए मैं बोली।

“उफ्फ्फ, तूने जैसी आग लगाई है मेरे तन में, कोई भी होता चुद जाती।” बदहवासी के आलम में बोल उठी, “कोई भी, कैसा भी मर्द, उफ”

“लौंडा, जवान, बूढ़ा, कोई भी?”

“मर्द रे मर्द कमीनी, ओह लंड वाला कोई भी मर्द साली हरामजादी, आह्ह् लौड़ा वाला, लौंडा, जवान, बूढ़ा कोई भी जो मेरी चूत की आग बुझा दे।” इतनी पागल कर चुकी थी मैं उसे कि उसे कुछ समझ नहीं आ रहाथा कि वह क्या बोल रही थी।

“फिर से सोच ले तू क्या बोल रही है।”
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11-28-2020, 02:20 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“सोचूं? अब भी सोचूं? चूत में आग लगी है फिर भी सोचूं? सोचने लायक छोड़ा है क्या तूने हरामजादी? समझ नहीं आ रहा है तुझे मां की लौड़ी? चुदना है चुदना, साली मां के चूत की ढक्कन। मेरी चूत में आग लगी है आग।” मेरे बालों को जकड़ कर झिंझोड़ती हुई पागलों की तरह चीखी। मैं समझ गयी लोहा गरम है, कोई भी आकर ठोक सकता है। उसके सोचने समझने की शक्ति समाप्त हो गयी है। वासना के भूख से बेहाल, बदहवासी के आलम में वह क्या प्रलाप कर रही है शायद उसका आभास भी नहीं था उसको। और लो, तभी, तभी किसी भूत की तरह अकस्मात क्षितिज दरवाजे के अंदर प्रकट हो गया। मैं जानबूझकर दरवाजा उढ़का रखी थी। दरवाजे के बाहर कान लगाकर हमारी सारी बातें सुन रहा था। उपयुक्त अवसर के इंतजार में था और लो, वह उपयुक्त अवसर आ पहुंचा था। एकाएक ऐसी स्थिति की कल्पना भी रेखा ने नहीं की थी शायद। किसी के मन की मुराद इस तरह से पूरी हो तो समझ लो आशातीत ढंग से भगवान ने दिया छप्पर फाड़ के। इक्कीस साल का छ: फुटा खूबसूरत हट्ठा कट्ठा युवक, मानो साक्षात कामदेव का अवतार बन कर प्रकट हुआ हो। हक्की बक्की रह गयी रेखा तो, तन पर चिंदी का भी नामोनिशान नहीं, मादरजात नंगी मेरे मादरजात नंगे जिस्म से चिपकी।

“यह क्या मॉम? ओह्ह्ह्ह्ह्ह आंटी? यह, यह क्या हो रहा है आप दोनों के बीच?” बनावटी आश्चर्य से आंखें फाड़े वह बोला। बनावटी ही तो था उसका आश्चर्य। उसके बरमूडा को विशाल तंबू की शक्ल में तब्दील किया हुआ उसका भीमकाय लिंग बरमूडा के अंदर कितनी देर से छटपटा रहा होगा इसे मुझसे बेहतर कौन जान सकता था भला।

“हाय राम, तू इस तरह अचानक, हमारे कमरे में?” मैं चौंकने और घबराने का नाटक करती हुई नंग धड़ंग अपने कपड़े उठाकर सीधे बाथरूम में घुस गयी। आग तो भड़का चुकी थी रेखा के अंदर कामुकता की। अब रेखा समझे और क्षितिज।

“वाऊ आंटी, गजब की खूबसूरत हैं आप तो। क्या शरीर पाया है आपने।” लार टपकाती नजरों से रेखा को नख शिख देखता हुआ क्षितिज बोला। मैं बाथरूम के अंदर से सुन रही थी सब कुछ। रेखा किंकर्तव्यविमूढ़ बिस्तर पर मादरजात नंगी, कामोत्तेजना की ज्वाला में धधकती पड़ी रही। “लगता है मैं गलत समय में आ गया।” रेखा को भौंचक्की हालत में देख कर बोला वह।

सहसा मानो नींद से जाग उठी वह, “नहीं नहीं, ठीक समय पर आये हो बेटे।” जल्दी से हड़बड़ा कर बोली रेखा, कहीं वापस न लौट जाए वह। उसका शरीर जल रहा था चुदने की चाहत में। मैं लगा चुकी थी आग और अब वह किसी से भी चुदने को मरी जा रही थी। चूत में ज्वाला धधक रही थी।

“ओह आंटी क्या बोल रही हो?”

“ठीक बोल रही हूं बेटे। ठीक समय पर आ गये तुम।”

“तो, तो क्या, तो क्या आपको मेरे इस तरह अचानक आने से वाकई बुरा नहीं लगा?”

“पागल, बुरा क्यों लगेगा? बिल्कुल सही समय पर आये हो।” वासना से ओतप्रोत आवाज थी।

“मगर आप मेरी मॉम के साथ नंगी होकर कर क्या रही थीं?” उसके नंगे जिस्म को खा जाने वाली नजरों से घूरता हुआ बोला।

“बेवकूफ, तू सचमुच जानना चाहता है कि अनजान बन कर मुझे सता रहे हो?”

“सता कहां रहा हूं?”

“देख नहीं रहे हो शैतान, सेक्स कर रहे थे।”

“औरत औरत के बीच सेक्स?”

“मर्द उपलब्ध नहीं रहे तो औरत क्या करे?”

“ओह्ह्ह्ह्ह्ह, तो मॉम क्यों भाग गयी?”

“अपने बेटे के सामने कौन मां नंगी यह सब करेगी बेवकूफ?”

“ओह, ऐसी बात है। तो अब?”
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