Desi Sex Kahani जलन
12-05-2020, 12:18 PM,
#21
RE: Desi Sex Kahani जलन
अब में थक गई हूं! ..मगर तुम चल कहां रहे हो? एक मंजिल तो खत्म कर दी। यह खौफनाक जंगल...अब्बा का कहीं पता नहीं। आखिर तुम्हारा इरादा क्या है?" मेहर ने घने जंगल को सशंक नेत्रों से देखते हुए कहा।

“घबराऔं नहीं मेहर!" कहते हुए जहूर ने कसकर घोड़े को एड लगाई। पास के पेड_f पर चिडियों का कलरव सुनाई पड रहा था। जंगल की हवा सांय-सांय
करती बह रही थी।

जहूर दो घंटे तक बराबर घोड़े || दौडता रहा। अन्त में मेहर घबराकर बोली-"मैं आजिज आ गई इस सफर से। घोड़े की हालत देखो—बेचारा हाफ रहा है। रोक दो घोड़े। को।"

"तुम थक गईं, मेहर!..." कहकर जहूर ने मेहर को अंक में जोरों से जकड लिया। मेहर का पारा चढ गया। उसकी सांस जोरों से चलने लगी। वह सक्रोध बोली-"तुम, फिर वही शरारत करने लगे...छोड दो मुझे। आखिर तुम्हारा इरादा क्या है?"

"मेरा इरादा?" जहर हंसता हुआ बोला- मेरा इरादा अब एक दुसरी दुनिया बसाने का है, मेहर! जहां सिर्फ हम, तुम और हमारी मुहब्बत हो—मतलब यह कि अब हम और तुम आजाद है और घर से इतनी दूर आ गये हैं कि कोई हमारा पता भी नहीं पा सकता। आओ इस जंगल में इन सुनसान जगह में हम-तुम मिलकर एक हो जाएं।" कहकर जहूर ने घोड़े | रोक दिया।

- तुम बुजदिल हो, काफिर हो। मुझे घर से इतनी दूर लाकर मुझ पर जुल्म करना चाहते हो।" मेहर ने अधिकारपूर्ण स्वर में कहा।

"तुम घबराओ नहीं, मेहर! आज तक मैंने तुम्हें पाने के लिए क्या-क्या मुसीबतें नहीं उठाई? क्या-क्या झिडकियां नहीं सही? क्या तुम्हें मालूम नहीं? अब अधिक बेताब न बनाओ, मैहर!" जहूर ने उसे और जोर से अपने बाहुपाश में आबद्ध कर लिया_*मेहर ! आज तक जिस चीज को मैं इन्सान बनकर नहीं पा सका। उसे हैवान बनकर हासिल करूंगा।" ____

"मुहब्बत के जोश में न आओ जहूर, अपना धर्म समझने की कोशिश करो। तुम दुश्मन के बेटे हो! मैं तुम्हारी नहीं हो सकती। मैं बगैर अब्बा के हुक्म के कुछ नहीं कर सकती।" मेहर ने झुंझलाकर कहा।

मेहर की विवशता ने जहर को नम्न बना दिया, बोला- "मेरी हालत, मेरी आरजू, मेरी मुरादों की और देखो, मेहर ! मैं बहुत बदनसीब हूं। मैं दिन-रात खून के चूंट पीकर जिंदगी बसिर कर रहा हं और तुम्हें मुझ पर जरा भी तरस नहीं आता?" जहर की आवाज में आजिजी थी—“मेहर मझ पर खफा न हो। इस तरह भवें टेढा न करो...हैं! यह आवाज कैसी? मालूम होता है, कुछ लोग इधर ही आ रहे हैं।"

जहूर और मेहर ने सामने की ओर देखा—कुछ अश्वारोही जिनकी वेशभूषा भले आदमी होने की द्योतक न थी, उन्हीं की और चले आ रहे थे। उन लोगों ने इन दोनों को देख लिया था। उन्हें देखकर जहूर चौंक पड़ा_"ओह! ये तो जंगली डाक मालूम पड़ते हैं, राहगीरों को लूटकर उनका माल-असबाब ले लेना और उन्हें पकड़ कर थोड दाम पर गुलाम की हैसियत से अमीरों के हाथ बेच देना ही इनका काम है। खैर आ जाने दो। घबडाओ नहीं।" कहकर जहूर ने अपनी तलवार संभाली।

मेहर को पीछे कर वह डटकर खड़ा हो गया, एक वीर सिपाही की तरह। डाकुओं का दल पास आकर जहूर पर टूट पड़ा, जहूर की तलवार विजेता की तरह हवा में नाच उठी।
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12-05-2020, 12:19 PM,
#22
RE: Desi Sex Kahani जलन
"हाय मेरी बेटी! तू कहां गईं?” बुड्डा अब्दुल्ला अपनी झोंपड 1 में चारपाई पर पड़ बच्चों की तरह रो रहा था—“अगर नहीं पता लगा तो सब कबायलियों को काटकर फेंक दूंगा। इतने लोगों के रहते हुए मेरी बेटी और मेरा कैदी कैसे गायब? यह क्या? पानी बरसने लगा और अंधेरा छा गया और मुझे होश तक नहीं? या खुदा मुझे हिम्मत दे...।" कहता हुआ अब्दुल्ला उठा और झोंपड़ के कोने में रखी हुई मशाल जला दी। बाहर अंधकार के साथ-साथ वर्षा का ताण्डव सुनाई पड़ रहा था।

"मैं पनाह चाहता हूं।।" झोंपड के बाहर आवाज आई। अब्दुल्ला ने द्वार खोलकर देखा ___ "सत्ताईस-अट्ठाइस वर्ष का एक युवक जलकणों से भीगता हुआ उसके द्वार पर खड़ा है। उसकी मुखाकृति से यह प्रकट हो रह था कि वह किसी उच्च वंश का है। समय ने उसे ये दिख दिखलाये हैं। साधारण वस्त्र पहने रहने पर भी उस पर जैसे तेजस्विता चमक रही है।"

"क्या चाहते हो?" -अब्दुल्ला ने रोष पूर्ण स्वर में पूछा।

"पनाह चाहता हूं, बुजुर्ग?"-आगन्तुक ने नम्न स्वर में कहा।

"आ जाओ, मेरे नौजवान दोस्त!" एकाएक नम्र बनकर अब्दुल्ला बोला- आओ बैठो। हां! तुमने मेरी लड़की को देखा है क्या? जरूर देखा होगा...। नहीं देखा है तो निकल जाओ यहां से...अच्छा, अच्छा ठहरो, मत जाओ। बूढ अब्दुल्ला के रहते तुम्हें पनाह न मिले, यह उसकी शान के खिलाफ है, मगर तुम भीगे हो न? अपने कपड़ उतार दो। यह लो, मेरे पास दूसरा कपडा नहीं है, सिर्फ यह साडी है—मेरी बेटी की है। इसे पहने लो। अरे, जनानी साडी नहीं पहन सकते? भीगे ही पड रहोगे? क्या वाहियात दिमाग पाया है तुमने।"

"मैं औरतों से नफरत करता हूं-" बूढ की बहकी-बहकी बातों से ऊब कर अन्यमनस्क भाव से आगन्तुक बोला।

"औरतों से नफरत करते हो? वल्लाह! दुनिया का ऐसा कौन शख्स है जो औरतों से नफरत कर सका है ! नहीं है इस वक्त मेरी बेटी, नहीं तो देखता कि तुम कैसे उससे नफरत करते? सच कहता है, बेटे! तुम्हारी और उसकी जोडी खुब फबती। अगर वह आज मेरे पास होती तो जरूर उसकी शादी तेरे साथ कर देता। हाँ, तो क्या सचमुच तुमने उसको नहीं देखा?"

"किसको?

"मेरी बेटी को!"

"आपकी बेटी आखिर है कौन?"

"नहीं जानते तुम उसे, नौजवान! मेरी बेटी थी, जैसे जन्नत की हूर। आज रात से गायब है।" बुड्ढे ने सारी कहानी सुलतान को सुना दी।

सुलतान ने कहा— "आप घबराये नहीं। मैं कोशिश करके उसकी खोज करूंगा।"

"तुम्हारी बातें मुझे बहुत अच्छी लग रही हैं नौजवान ! तुम्हें तो किसी बादशाहत में पैदा होना था। अच्छा लो, तुम मेरे ही कपड पहन लो। उफ! बड || सर्दी है। इस बारिश ने ही इतनी सर्दी पैदा कर दी है। अरे, तुम तो कांप रहें हो? यह लो थोड -सी शराब...हा-हां, पी लो! क्यों?...क्यों रख दी बोतल? यह ठर्रा नापसंद है...मालूम होता है, कहीं के बादशाह हो कि यह देशी शराब नहीं छू सकते। पी लो! बदन में गर्मी आ जाएगी। पी लो, यह मेरा हुक्म है। जानते हो, कौन हूँ मैं? मैं हूं अब्दुल्ला—इस कबीले का सरदार ! शाबाश! सब पी जाओ।"

अनिच्छा रहते हुए भी, आगंतुक वह तेज शराब धीरे-धीरे गले के नीचे उतारने लगा। हृदय में जैसे अग्नि प्रज्ज्वलित हो उठी।

कहाँ अंगूरी शराब और कहां खजूर का ठर्रा-जमीन-आसमान जैसा अंतर! __

"इस तरह धीरे-धीरे पी रहे हो, मानो गले का छेद छोटा हो। देखो, इस तरह पीओ...।" अब्दुल्ला ने एक दूसरी बोतल लेकर अपने होंठों से लगाई और एक ही सांस में सब साफ कर गया, फिर बोला-"अच्छा तुम्हारे पास तलवार है न?

हाँ! है? तो....

तो निकाल लो तलवार? मुकाबला करो मुझसे।"

कहकर अब्दुल्ला अपनी तलवार लेकर उठ खडा हुआ। आगन्तुक अब तक इस बुट्टे के पागलपन से पूर्णतया ऊब चुका था। उसे इस बात का पछतावा हो रहा था कि उसने किस बुरी घडी में इस झोपडी में पैर रखा। ____

“आओ!" अब्दुल्ला कहने लगा—"तुम्हें लड ना ही पडगा । उठा लो तलवार! शराब! आ जाओ! यह लो! शाबाश! खूब वार करता है।"

आगन्तुक लापरवाही से लड रहा था और साथ ही बुड्ढे की सनक से चिंतित भी होता जा रहा था।

"खुब लड़ते हो, नौजवान! अच्छा, रख दे तलवार। यह है मेरा बिस्तर, सो जाओ इसी पर। में आज जमीन पर ही सो जाऊंगा।" बूढ ने कहा।

आगन्तुक ने विरोध प्रकट करना चाहा तो अब्दुल्ला ने मुंह पर उंगली रख, चुप रहने का संकेत कर दिया। विवश होकर तलवार उसने कोने में खडी कर दी और बिस्तर पर जा लेटा।

कई दिनों से इधर-उधर भटकते रहने पर भी उसके हृदय की जलती हुई आग शांत नहीं हुई थी। वह जिस शांति की खोज में निकला था, वह उसे नहीं मिल सकी थी और न ही निकट भविष्य में मिलने की आशा ही थी।
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12-05-2020, 12:19 PM,
#23
RE: Desi Sex Kahani जलन
छः
मनुष्य जब अच्छाई की सीमा को लांघकर बुराई की ओर झुकता है तो उसमें हित-अहित सोचने का ज्ञान नहीं रह जाता।

शहजादा परवेज हर तरह की बुराइयों से आक्रान्त हो चुका था और इन बुराइयों की ओर ले जाने वाला था उसका दोस्त कमर, जो आज महीनों से उसका अंतरंग मित्र बन बैठा था। उसकी बुरी संगत से ही परवेज ने, जिसने कभी शराब न पी थी, आजकल शराब में डूबा रहता है। ___

अपने महल में बैठा हुआ परवेज कमर से बात करने में व्यस्त था—"दोस्त, तुम्हारी राय से तो सब काम कर रहा हूं। सल्तनत की सारी बागडोर भाई-जान ने मुझे सौंप दी, मगर वह बुड्डा वजीर अभी तक यहीं सोच रह है कि भाईजान की तबीयत जल्द ही अच्छी हो जायेगी और वे आकर, फिर से इस सल्तनत का भार संभालेंगे, मगर उस बेवकूफ बुड्ढे को नहीं मालूम कि अब सुलतान शायद ही लौट सके।।"

"हां... तो सुलतान के पीछे तुमने अपने सिपाही रवाना कर दिये हैं न।" ___

"हां! अपने खास पच्चीस हथियारबन्द सिपाहियों को मैं सुलतान की खोज में रवाना कर चुका है.जो मौका पाते ही उन्हें मौत के घाट उतार देंगे और तब सुलतान इस सल्तनत को सम्भालने के लिए कभी न आ सकोगे। अच्छा हुआ जो तुमने मुझे यह राय दी, नहीं तो हमेशा ही भाईजान के वापस लौट आने का डर बना रहता...देखें, हमारी सिपाही क्या करके आते हैं ?" ___

"क्या बात है?"—सहसा दरवाजे पर एक सिपाही देखकर परवेज ने पूछा- लौट आये तुम लोग? और सब कहां हैं?"

सिपाही ने पहले तीन बार अभिवादन किया, फिर बोला- और लोग बाहर खड हैं आलीजाह!

“काम हुआ?" __

“जी नहीं ! सुलतान का पता लगाने की हमने बहत कोशिश की, मगर सब बेकार। न जाने वे दुनिया के किस परदे में गायब हो गये हैं। आप सब जानिये हजूर परवरदिगार, हम अपनी कोशिश से बाज नहीं आये। सिपाही ने कहा। _

"तुम लोग नमकहराम हो। जाओ, फिर से सुलतान का पता लगाओ। जी तोड कर ढूंढ और जल्द सुलतान का सिर लाकर हाजिर करो!...जाओ! अभी जाओ!" परवेज ने गरजकर कहा— और सुन!"

भय से कांपता हुआ सिपाही और भी कांपने लगा।
"देखो ! अगर तुम लोगों ने मेरा काम कर दिया तो मैं तुम्हें मालामाल कर दूंगा, इतनी दौलत दूंगा कि तुम सारी जिंदगी चैन से काट सकोगे। तुम कहते हो कि सुलतान का पता नहीं मगर मैं कहता है कि तुम लोग जमीन-आसमान एक कर दो। कहीं-न-कहीं तुम्हें जरूर मिलेंगे वे। हां! एक बात का ख्याल रखना, उनकी पोशाक बहुत मामूली होगी। अब जाओ।"

सिपाही चला गया और इधर प्याले पर प्याले गले के नीचे उतरने लगे।
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12-05-2020, 12:19 PM,
#24
RE: Desi Sex Kahani जलन
घने जंगलों की एक झाड में बीस-पच्चीस सिपाही छिपकर बैठे हैं और सामने की पगडण्डी पर से आते हुए एक साधारण मुसाफिर की ओर गिद्ध-दृष्टि से देख रहे हैं। मुसाफिर निर्भय होकर अपना मार्ग तय करता हुआ आ रहा है।

"सुलतान ही तो है—" एक सिपाही ने कहा- "होशियार हो जाओ। देखो, कितने मामूली कपडा पहन रखे हैं।"

"बेशक सुलतान ही है...।" सिपाहियों ने जमादार ने कहा- "तुम नम्बर तीन, अपनी बंदूक हाथ में ले लो... तुम्हारा निशाना अचूक है। देखना शिकार हाथ से जाने न पाये।

उन सिपाही ने जिसे लक्ष्य करके उक्त बात कही थी, उसे अपनी बन्दुक हाथ में ले ली। दूसरे ही क्षण उसकी बन्दूक तन गईं।
और धांय!! बेचारे मुसाफिर के मुंह से जोरों की एक चीख निकलकर दूर तक बन-प्रदेश में गूंज उठी। उसका शरीर कटे पेड की तरफ गिरकर पृथ्वी पर छटपटाने लगा।

पेड पर बैठा हुआ एक कौवा जोरों से चीख उठा— कांव-कांब!"

“लो...।" सिपाहियों के मुंह से खुशी की आवाज निकल पड__“अब सुलतान का सिर ले चलकर शहजादा परवेज से मुंह मांगा इनाम लो!" सब सिपाही उस मुसाफिर के शव की ओर बढ ।
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12-05-2020, 12:19 PM,
#25
RE: Desi Sex Kahani जलन
"काम हो गया। काम हो गया दोस्त कमर!..." परवेज ने कमर का कन्धा पकड़ कर झकझोर दिया-*आज हम लोगों की मुराद पूरी हई। हमारे सिपाहियों ने सुलतान को मौत के घाट उतार दिया है। अब वे कभी न लौट सकेंगे, दोस्त! अब हम और तुम आजाद है।एकदम आजाद !"

"आपे से बाहर न हो, शहजादे! सुलतान का सिर कहां है? मंगाए तो। कमर ने कहा।

"अभी मंगवाता हूं- परवेज बोला—"सिपाही ! सिर लाओ।"

सिपाही बाहर जाकर एक गठरी उठा लाया। गठरी खून से भीगी थी। सिपाही ने गठरी खोली। परवेज और कमर, दोनों ने गौर से उस सिर को देखा।

कमर बोला- "बेशक! यह सुलतान का ही सिर है, हैं, यह क्या?" कमर के मुंह से आश्चर्य की एक चीख निकल पड। वह जमीन पर झुककर सिर को गौर से देखने लगा। कान के पास हाथ ले जाकर उसने न जाने क्या देखा, फिर बोला-"नहीं, यह सुलतान का सिर नहीं है। हालांकि सूरत हूबहू उनसे मिलती है, मगर मेरी आंखें धोखा नहीं दे सकतीं-उनके कान के बगल में एक मस्सा है।" ____

तो क्या यह किसी बेगुनाह का सिर है?" परवेज झल्लाकर बोला-"शैतानो! पहचानते भी न बना तुम लोगों से? बेगुनाह का सिर काट लाए?" ___

"हम बेकसूर हैं, शहजादे साहब! हमारी नजरों का कसूर नहीं है। आप ही बताएं कि इसकी हूबहू सूरत सुलतान जैसी है या नहीं? हमारा कसूर माफ करें, गरीब पर!"... एक सिपाही ने गिडगिड ते हुए कहा।

“जाओ, फिर से खोज करो। बगैर फतहयायी हासिल किये, मुंह न दिखाना।" परवेज ने कहा तो सिपाही चले गए।

"दोस्त कमर!"- परवेज ने आगे बढ़ कर कमर को अपने अंक में कस लिया।

"हां-हां! यह क्या कर रहे हो? इतने बेताब न बनो। छोड .कोई आ रहा है...उफ! यह तो बुद्धा वजीर ही कितने गौर से मुझे देख रहा है। मैं जाता है, नहीं तो यह बुला जरूर पहचान जायेगा। तुम इससे निपटो।" कहता हुआ कमर दूसरे दरवाजे से बाहर हो गया।

__ "किसके साथ मौज-मस्ती की जा रही थी, शहजादे साहब?" वजीर ने अभिवादन करते हुए कहा-"कौन था वह...और...और यह प्याला...यह सुराही..क्या अब शरबते-अनार का भी शौक हो गया है आपको? क्यों न हो?"
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12-05-2020, 12:19 PM,
#26
RE: Desi Sex Kahani जलन
सात
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जंगल-जंगल दौडते रहने पर भी दिल को राहत न मिली। महल छोड, सल्तनत छोड -सब कुछ छोडकर वह मामूली पोशाक पहनी, दर-दर की खाक छानी, मगर दिल की जलन न गई—न गईं। उफ् थकान से पैर कटा जा रहा है और यह ल ऐसी तेज चल रही है कि बदन तक झुलसा देती है—बडबडता हुआ वह मुसाफिर एक घने पेड के नीचे बैठकर हांफने लगा।

जंगल की तेज लू जोरों से चल रही थी और ऊपर आकाश से सूर्य भगवान आग उगल रहे थे। भयानक तपिश थी।

"प्यास लगी है, मगर जंगल में कोई चश्मा भी नहीं। उफ! गला सूखा जा रहा है। या खुदा, क्या करूं?" बेचारा! मुसाफिर कहिए या सुलतान काशगर! जिसे प्यास लगने पर अंगूर का शर्बत मिलता था, आज वह पानी की एक बूंद के लिए तरस रहा है ! कैसी विडंबना है।

इतने में थोड दर पर किसी मकान के होने का उन्हें आभास मिला. परंतु इस बियाबान जंगल में यह मकान कैसा? जहां किसी आदमी का पहुंचना गैर-मुमकिन है, वहां मकान किसलिए बनाया गया है? उसमें रहता कौन होगा! ऊह ! मुझे इस सब फिजूल की बातों से क्या मतलब? मुझे प्यास बेदम किये दे रही है, मुझे वहां पहुंचना ही चाहिए। स्वत: बडबड ते हुए सुलतान उसी ओर बढ।।

मकान के द्वार पर पहुंचकर सुलतान रुके।
बाहर से देखने पर मकान विशाल और सुदृढ बना हुआ मालूम पड़ता था। भीतर से द्वार बंद था। पास ही इमली का एक ऊंचा वृक्ष था।

सुलतान ने आगे बढ़कर द्वार का कुण्डा खटखटाया और आवाज दी एक मुसाफिर ल और गर्मी से परेशान होकर पनाह के लिए दरवाजे पर खड़ा है। मेहरबानी करके दरवाजा खोलिये।

भीतर से किसी के आने की पगध्वनि सुनाई पड। सुलतान सजग होकर खड़ा हो गये।

दूसरे ही क्षण द्वार खुला और वहां पर खड दिखाई दी एक ऐसी आकृति, जिसको देखकर सुलतान कांप उठे।

"उफ! औरत ! जहां जाता हूं, वहीं औरत। जिससे नफरत करता हूं, वहीं बार-बार सामने आती है। खुदा भी मानो मेरे साथ मजाक कर रहा है।" सुलतान का मस्तिष्क एकबारगी चक्कर खा गया और वे गिरते-गिरते बचे।

"मुसाफिर !" उस सौन्दर्य-प्रतिमा ने, जिसने अभी-अभी द्वार खोला था, मधुर स्वर में कहा "तुम बहुत परेशान दिखते हो, अन्दर आओ।" परंतु सुलतान ने उसकी बात का कुछ भी उत्तर न दिया। उसकी और देखा तक नहीं।

संसार की प्रत्येक औरत से उन्हें घृणा हो गई थी। उसके दिल की जलन औरतों को देखकर और भी तीव्र हो उठती थी।

कहाँ तो गर्मी और ल से घबराकर, आश्रय पाने की लालसा से वे इधर आये थे, परंतु यहां आकर उनके दिल की आग और भभक उठी। वे उलटे पांव लौटने लगे।

"तुम जा रहे हो मुसाफिर!" उस औरत ने पूछा। सु

लतान बोले- "मैं रुक नहीं सकता—मैं...मैं..."

"तुम न जाओ मुसाफिर!" कहते-कहते उस सुंदरी ने आगे बढ़ कर सुलतान का हाथ पकड लिया।

सुन्दरी का हाथ लगते ही सुलतान को ऐसा लगा, जैसे उनके दिल में भभक उठी आग को शीतल जल की फुहारों ने गिरकर एकदम बुझा दिया है।
उन्होंने शांति, स्फूर्ति और शीतलता का अनुभव किया।

कहां औरतों से घृणा और कहां नीरव वन-प्रदेश में एक औरत का स्पर्श! कितना आश्चर्यजनक परिवर्तन ! वस्तु सुलतान के दिल की जलन कम हो गई थी।

"तुम न जाओ मुसाफिर...।" सुन्दरी ने फिर मिन्नत की और सुलतान का हाथ पकड हुए दरबाजे की ओर बढ़ —“हिचको नहीं मुसाफिर ! इसे अपना ही घर समझो।"

सुलतान को अनुभव हुआ कि जैसे किसी ने उन पर जादू की छडी फेर दी है और उनके ज्ञानतन्तु निष्क्रिय हो गये हैं। वे उस सुन्दरी के साथ चुपचाप अन्दर चले गए।

सुन्दरी ने उसे एक चारपाई पर बैठा दिया। सुलतान के हृदय की विचित्र गति हो रही थी। इस अपरिचित औरत की ओर जाने क्यों उनका हृदय आकर्षित होता जा रहा था—वही हृदय, जो अब तक घृणा की दावाग्नि से विदग्ध हो रहा था।

सुलतान ने एक क्षण के लिए उस सुन्दरी का सिर से पैर तक निरीक्षण किया। उफ् ! कितना खूबसूरत चेहरा है, कैसी उठती जवानी है, कैसा अछूता हुस्न है!
सब कुछ देखकर सुलतान का हृदय न जाने क्यों उस सुन्दरी पर मुग्ध हो गया।
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12-05-2020, 12:19 PM,
#27
RE: Desi Sex Kahani जलन
"थके दिखते हो मुसाफिर। लेट जाओ, मैं तुम्हारे पैर दबा देती हूं।" सुन्दरी के इस शिष्ट आग्रह से इतना अपनत्व, इतनी करुणा, इतना आकर्षण था कि सुलतान आपादमस्तक सिहर उठे उन्हें लगा, जैसे उसने उन्हें बेदाम खरीद लिया हो।
उन्होंने कहा—“नहीं, तुम्हें तकलीफ करने की जरूरत नहीं। हां, तुम और तुम्हारा घर दोनों मुझे बहुत पसंद आये, मगर तुम ऐसे सुनसान मकान में अकेली किस तरह रहती हो ?

"मेरी कहानी बहुत दर्दनाक है, मुसाफिर!" सुन्दरी चारपाई पर ही सुलतान के पास बैठती हुई बोली।

.
सुलतान की सुन्दरता ने उसे भी अपनी ओर आकर्षित करना आरम्भ कर दिया था। दोनों ओर से प्रेम अंकुरित होने लग गया था।
“तुम्हारा नाम क्या है ?"-सुलतान ने पूछा।

सुन्दरी की मतवाली आंखें सुलतान के मुख पर केंद्रित हो गयीं। बोली- मेरा नाम मेहर है मुसाफिर।"

"मेहर!"...सुलतान ताज्जुब से बोले उठे-"यह नाम तो कहीं सुना है, परंतु कहाँ, याद नहीं आता।"

“मैं एक मशहूर कबीले के सरदार अब्दुल्ला की बेटी हूं।"

"ओह, याद आ गया...याद आ गया। सुलतान उछल पड।

"मेहर, मैं तुम्हारे घर एक दिन गया था। तुम्हारे अब्बा तुम्हारे लिए बहुत रंजीदा हैं। अच्छा हुआ कि तुम मिल गई।" . सुलतान ने आद्योपांत सब कहानी सुना डाली, परंतु यह नहीं बताया कि वे सुलतान काशगर हैं

__ *और तुम कौन हो मुसाफिर? तुम्हारी बातें तो बडी दिलकश और ताज्जुब की हैं।" मेहरा ने पूछा।

"मैं एक अदना आदमी हूं, जिसके पास न घर है—न जर, परंतु नाम सुलतान है।"

"सुलतान!...." मेहर आश्चर्य से भरकर बोली-"सुलतान तो बादशाह को कहते हैं।"

"नहीं-नहीं मेहर! मेरा फकत नाम ही सुलतान है...अच्छा तुम अपनी कहानी शुरू से सुना जाओ।"

मेहर धीरे-धीरे सब कहानी कह गई।
आखिर में बोली-"मुझे और जहूर को पकड कर डाकुओं ने यहां ला रखा है। यह डाकुओं का ही मकान है। घबराओ नहीं, गुलाम और बांदियों का रोजगार करना ही इन डाकुओं का काम है। वे गिनती में पचास हैं। महीनों में एक बार वे इस जगह आते हैं। अपने पकड हए आदमियों को यहीं रखते हैं! 25, 50 इकटे हो जाते हैं तो वे उन्हें ले जाकर गुलाम और बांदियों की तरह बेच देते हैं। मुझे और जहर को भी उन्होंने यहीं लाकर रखा है। उनके सरदार की निगाह जब मुझ पर पड़ी तो उसने मुझे रोक लिया और बेचारा जहर दूसरे ही दिन शहर काशगर बेचने के लिए ले जाया गया। अच्छा ही हुआ। वह मुझे बहुत परेशान किया करता था...आजकल सरदार मुझे बेहद तंग करता है। मेरी जान अजीब आफत में पड रहती है। अब तुमने मेरा दुख-दर्द सुन लिया है, क्या मेरी मदद करोगे, मुसाफिर।"

“करूंगा! जरूर करूंगा!"- सुलतान ने कहा।

"मैं सच कहती हूं सुलतान, तुम मेरा इतना भला कर दो तो मैं जिंदगी भर तुम्हारा एहसान नहीं भूलूंगी। तुम बडअच्छे हो सुलतान!" मेहर ने कहा। __ वहीं मेहर, जिसे जहूर की सूरत तक से नफरत थी, सुलतान को देखकर अपना दिल खो बैठी । आज उसे ख्याल आया कि मुहब्बत कितनी प्यारी चीज है। ___

"मेहर...!" सुलतान मेहर के और पास खिसक आये-"तुमने मुझे जिला दिया। मेरा दिल बेतरह जल रहा था, मगर तुमने न जाने कैसे मेरे दिल की आग बुझा दी। मैं औरतों से नफरत करता था, मगर अब महसूस कर रहा हूं कि मैं गलत था, मेरे ख्यालात गलत थे, मेहर! तुम कितनी खूबसूरत-कितनी खुशनुमा हो!" सुलतान ने मेहर के कोमल हाथों को अपने हाथों में ले लिया। उन्हें स्वर्गीय आनन्द का-सा अनुभव हुआ। वह अपने आप तक को भूल गए थे, परंतु होंठ कांप-से रहे थे।

"मैं एक अदना मुसाफिर तुम्हारी मुहब्बत का प्यासा हूं। दर-दर भटकते-भटकते मुझे एक ऐसी चीज मिल गई है, जो मेरे दिल को पूरी तरह से राहत दे सकेगी-और वह चीज तुम हो, मेहर! मुझे नाउम्मीद करना। मैं प्यासा हूँ—तुमने अगर मेहरबानी न की तो कयामत तक प्यासा ही रह जाऊंगा।"

*मुसाफिर ! सुलतान...। मेहर के मुंह से अस्फुट स्वर निकला। वह भी आपा खो चुकी थी _____ आह, मैं नहीं जानती थी सुलतान कि मुहब्बत इतनी राहत देने वाली चीज है। तुम्हें पाकर मैं बहुत खुश हूं।"

"मैं भी, मेरी महबूबा ! मेरे दिल की मल्लिका!"-सुलतान ने कहा और दोनों के अधरोष्ठ एक साथ मिलकर, शान्त वातावरण में एक विचित्र ध्वनि छोड कर पृथक हो गये। ग्रीष्म ऋतु की गर्मी में उन्हें शीलता का अनुभव हुआ।

इसी समय बाहर से किसी के गाने की ध्वनि सुनाई पड। दोनों के सुखमय संसार में अन्धकार की धूमिल छाया का प्रवेश हो गया।

"हैं, यह गाने की आवाज किसकी है?" सुलतान आश्चर्य से बोले।

मेहर आवाज सुनकर अत्यधिक घबरा उठी।
वह बोली- मालूम होता है कि सरदार अपने गिरोह के साथ लौट आया है। यह गाने की आवाज कादिर की है। वह सरदार का दाहिना हाथ है।
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12-05-2020, 12:19 PM,
#28
RE: Desi Sex Kahani जलन
सुलतान के हृदय की स्पन्दन-गति तीव्र हो गई थी।
“अब हम बुरे फंसे। उनके आने की आज जरा भी उम्मीद न थी। वे तो अभी हफ्तों में आने वाले थे, अब क्या होगा? " मेहर ने कम्पित स्वर में कहा।

*यहां कोई तलवार है?" सुलतान ने पूछा।

मेहर बोली-"तलवार से काम नहीं चलेगा, सुलतान ! उनकी गिनती बहुत ज्यादा है। अगर तुम उनसे भिड गये तो तुम्हारी खैर नहीं। ओह, वे सब दरवाजा खटखटा रहे हैं। खोलना चाहिए...या खुदा! क्या करूं मैं? अच्छा सुलतान। तुम इस चारपाई के नीचे छिप जाओ, जल्दी करो।"

और कोई रास्ता न देख सुलतान चारपाई के नीचे जा छिपे। मेहर ने आगे बढ़कर दरवाजा खोल दिया। डाकू अन्दर आ गये और अपनी-अपनी कोठरियों में जाकर आराम करने लगे।

सरदार मेहर के साथ उस कोठरी में आया, जिसमें सुलतान छिपे थे। चारपाई पर बैठकर सरदार बोला—“मेहर!"

“जी...!" मेहर ने प्रसन्नता-मिश्रित स्वर में कहा।

"आज तो तुम्हारे चेहरे पर खुशी झलक रही है। इतना खुश तो मैंने तुम्हें कभी नहीं देखा था। आओ इधर, मेरे पास बैठो।" सरदार ने कहा।

मेहर सरदार की बगल में चारपाई पर जा बैठी। सरदार बहुत खुश हुआ, क्योंकि उसने मेहर को इतना प्रफुल्लित कभी नहीं देखा था। और उस दिन जब वह मेहर के सामने आता तो मेहर बराबर उसे कोसा करती और बुरा-भला कहा करती थी-परंतु आज न जाने क्या सोचकर वह सरदार के बगल में जा बैठी।

आज तक सरदार ने मेहर को अपने पास बिठाने का कितना ही प्रयत्न किया था, परंतु वह टस-से-मस तक नहीं हुई थी। आज स्वयं अपनी इच्छा से वह उसके पास जा बैठी तो सरदार ने समझा कि अब वह रास्ते पर आ गई है। उसके अधर धीरे-धीरे मेहर की ओर बढने लगे।

अब मेहर को उसके पास बैठने की गलती महसूस हुई। वह तेजी से उठ खडा हुई और घृणायुक्त स्वर में बोली- मैं तुम्हें नहीं चाहती-मुझे परेशान न करो।"

सरदार झुंझला उठा। उसकी काम-वासना जाग्रत हो उठी थी। उसने खडा होकर बलपूर्वक उसे छाती से लगा लिया और बोला— देखता हूं, अब किस तरह से तू मुझसे बच सकती है।

आज तक तरी सब सुनता आया हूं, लेकिन अपनी बात पूरी करके ही रहूगा।"

सरदार की दृढता देखकर मेहर को अपनी चेतना जैसे लुप्त होती मालूम पड। वह एकबारगी चीख उठी।

चारपाई के नीचे पड हुए सुलतान से अब न रहा गया। वह बाहर निकल आये और झपटकर सरदार को ऐसा धक्का दिया कि वह जमीन पर लुढ़क गया, परंतु तुरंत ही उठ खड हुआ। एक क्षण के लिए अपने प्रतिद्वन्द्वी को आश्चर्यचकित नेत्रों से देखा।

"तुम...तुम, एक अदने आदमी।" सरदार ने लपककर अपनी तलवार उठा ली।

मेहर यह सोचकर चीख उठी कि जो सरदार रात-दिन तलवार से खून से खेला करता है, उसका सामना सुलतान किस तरह कर सकेंगे।

सरदार के हाथ की तलवार विद्युत रेखा-सी चमक उठी। सुलतान कायर नहीं थे। भला जिसके अधिकार में एक विशाल साम्राज्य रहा हो, क्या उसकी भुजाओं में इतनी भी शक्ति न होगी कि वह डाकू का सामना कर सके।
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12-05-2020, 12:19 PM,
#29
RE: Desi Sex Kahani जलन
सुलतान थोडा पीछे हटे और निमिषमात्र में उनकी कसी हुई मुट्ठी सरदार की कनपटी पर जा बैठी। सरदार का सिर चकरा गया। आज तक वह इस तरह पराजित कभी नहीं हुआ था। ___"काफिर कहीं का, निहत्थे पर वार करता है? तलवार बजाने का शौक है तो दे मुझे भी तलवार !"सुलतान ने कहा।

"नादान! क्यों जान देने के लिए सांप से खेलने की कोशिश कर रहा है? लडने का शौक है। ऐसा ही है...तो ले यह तलवार...।" सरदार ने एक तलवार सुलतान के आगे फेंक दी

—“हां, आ जा! देख, अगर घर में बीवी बच्चे हों, तो अब भी खैर है।" ___

शुक्र है खुदा का कि आज मेरा शौक पूरा होगा।" सुलतान ने कहा- आज तक मैं ऐसे मौके की ताक में था कि कोई बहादुर मुझसे तलवार बाजी का शौक करे। आज तुम मिल ही गये। देखना, बच के आना! हां, शाबाश।"

सुलतान का वार भयानक था, मगर वह उसे बचा गया।

तीव्र गति से तलवारें बजने लगीं। दल के लोग, तलवारों की झनझनाहट सुनकर वहां आ पहुंचे थे, मगर सरदार का संकेत पाकर सब अलग खडथे।

"यह लो...." सरदार की तलवार दीवार पर झन्न से जा टकराई-"खबरदार, तलवार उठाने की कोशिश न करना।"

सरदार की तलवार दीवार से टकराकर जमीन पर गिर पड़ थी, मगर सुलतान ने उसे उठाने का अवसर नहीं दिया।

सुलतान की तलवार की नोक सरदार की छाती पर जा लगी— अब तुम हारे!" सुलतान ने कहा।

*शाबाश बहादुर....!" सरदार ने कहा। वह उस खूबसूरत नौजवान की बहादुरी देखकर बेहद खुश हुआ—"तुम बहुत दिलेर हो। मुझे तुम पर नाज है। तुम अपनी कहानी कह जाओ। तुम कौन हो, यहां किस तरह आ पहुंचे...?"

सुलतान ने एक मनगढ त कहानी सुना दी और अपना राज छुपायें रखा।

सुनकर सरदार बहुत खुश हुआ। बोला- क्या कहते हो तुम? क्या तुम्हारा घर-मकान कुछ भी नहीं है? तुम दुनिया में अकेले हो? तब तो ठीक है दोस्त! अब मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगा। ऐसे बहादुर जवान को अपने साथ पाकर मुझे बेहद खुशी हासिल होगी। आज से तुम मेरे ही साथ रहोगे और मेरे काम में हाथ बंटाओगे। में सब काम तुम्हारी राय से करूंगा।"

सुलतान कुछ देर तक सोचते रहे—सोचते रहे कि सरदार का प्रस्ताव ग्राह्य है या नहीं। अन्त में उन्होंने सरदार का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना ही उचित समझा, क्योंकि वहां रहकर उन्हें मेहर से मिलने का सदा अवसर मिलता रहेगा। उन्होंने सोचा कि जब तक मेहर को आजाद कराने की कोई सूरत नहीं निकल आती, तब तक यहीं रहकर दिन बिताये जाएं।

"मैं तैयार हूं।।" सुलतान ने उत्तर दिया- "मगर तुम मेहर से कुछ भी शरारत नहीं करोगे।"
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12-05-2020, 12:19 PM,
#30
RE: Desi Sex Kahani जलन
आठ
मेहर अकेली बैठी थी, उस सुनसान मकान में। उसका हृदय रह-रहकर सुलतान की याद में तडप उठता था।

आज सवेरे से ही डाकुओं का समूह कहीं गया हुआ था। सुलतान भी उसी गिरोह के साथ थे।

जाने क्या सोचती हुई मेहर अन्यमनस्क भाव से बैठी थी कि दर से किसी के गाने का स्वर सुनाई पड । ___हैं! यह तो कादिर की आवाज जान पड़ती है। मेहर ने कादिर का स्वर तुरंत पहचान लिया, क्योंकि कादिर ही उस गिरोह में ऐसा दयावान व्यक्ति था जिसे मेहर से पूरी सहानुभूति थी।

गायन कला में उसकी पहुंच अच्छी थी।

गाने का स्वर मकान के द्वार तक आकर रुक गया। साथ ही खट-खट की आवाज हुई। मेहर ने दौड कर दरवाजा खोला।

प्रसन्नचित्त कादिर अन्दर आया। __सना....!* कादिर प्रसन्नतामिश्रित स्वर में मेहर से बोला_*आज सुलतान ने ही सरदार की जान बचाई, नहीं तो उस खौफनाक शेर ने तो उन्हें मार ही डाला था। आह ! यह तो सुलतान भी कितना बहादुर है। वाह रे नौजवान ! बहादुर हो तो ऐसा हो।"

“क्या बात है कादिर?" मेहर ने अत्यंत उत्सुक होकर पूछा।

"जंगल से आते समय हम लोगों पर एक खौफनाक शेर ने हमला कर दिया। हम सब तो भाग खडा हुए, मगर सरदार को उसने दबोच लिया। हमारी आंखों के सामने अंधेरा छा गया, इस तरह जैसे काली रात। कुछ सुझता ही न था कि क्या करें? मगर वाह रे सुलतान! वाह रे, उसकी हिम्मत! दौड कर उस बहादुर ने उस पर तलवार का ऐसा जबरदस्त बार किया कि थोडी ही देर में छटपटाकर उसने दम तोड़ दिया।"

मेहर हंसने लगी।, फिर बोली—"क्या सरदार बहुत ज्यादा घायल हो गये हैं ?"

"हां बहुत ज्यादा, मगर बच जायेंगे। सुलतान उन्हें उठाकर ला रहा है, मगर वाह रे सुलतान! हाथी-सा बल है उसके बदन में और चेहरा तो चमकता चांद है! क्यों मेहर, हंसती क्यों हो? मुझसे कोई बात छिपी है क्या? क्या मैं अंधा हूं कि यह भी न देख सकू कि जब से वह आया है, तुम कितनी खुश रहती हो? इसके पहले मैं तुम्हें घंटों समझाता था, मगर तुम्हारे चेहरे की गमगीनी न जाती थी...मगर मेहर, तुमने मुझसे यह बात छपाई क्यों?"

कादिर की बातों से मेहर की आँखों में आंस छलछला आये।

कादिर बोला-"छि बहन! रोती हो? मुझे बेरहम न समझना। मैं डाकू हूं तो क्या, मेरा दिल मोम-सा मुलायम है। क्या कहूं बहन, शुरू से ही मुझे सरदार ने पाला है, नहीं तो यहां से कभी का निगल भागा होता।"
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