XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
03-09-2021, 03:22 PM,
RE: XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
तुम्हारी बातें हमारी समझ से बाहर हैं।”
तो मैं कहां कह रहा हूं कि मेरी बात को समझो। तुम जैसे नन्हे नादान जथूरा के साम्राज्य को नहीं जान सकते हैं। जो देखता है, वो ही समझता है। मात्र सुन-सुनकर जथूरा के बारे में नहीं जाना जा सकता। बोलो, जथूरा महान
| लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा ने एक दूसरे को देखा।
“बोलो। वहां मेरे खाते में इस बात की एंट्री हो जाएगी कि मेरे यहां सब ठीक चल रहा है। मैं ड्यूटी पर हूं।”
“बोल दे सपन।” लक्ष्मण दास ने मुंह बनाकर कहा-“ये हमारा यार बना हुआ है, तभी तो सब बातें बता रहा है।”
“इसने हमें नंगा करके सड़क पर घुमा दिया तो, तब भी कहना पड़ेगा। पहले तू बोल ।”
दोनों एक साथ बोलते हैं—बोलो...” । मोनो जिन्न मुस्कराकर कह उठा।।
“तुम दोनों बहुत अच्छे हो, जो मेरी बात मान जाते हो। चलो, अब मेरे पास आकर मेरी बांहें थाम लो। हमें यहां से रवाना होना है, जहां देवा मिन्नो, नगीना, नील सिंह, परसू, भंवर सिंह और त्रिवेणी मौजूद हैं।”
दोनों उठकर मोमो जिन्न के पास पहुंचे।
मोमो जिन्न ने दोनों बांहें फैला दीं। लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा ने उसकी एक-एक बांह थाम ली।
हम जा कहां रहे हैं?” सपन चड्ढा बोला।
वहां पहुंचकर देख लेना ।”
“हम कार पर नहीं जा सकते।”
वहां कार नहीं जाती।”
ऐसा कैसे हो सकता है?” लक्ष्मण दास कह उठा।
“वहां पहुंचोगे तो पता चल जाएगा। एक बार फिर बोलो, जथूरा महान है।”
जथूरा महान है।” दोनों फंसे स्वर में कह उठे। अगले ही पल, मोमो जिन्न के साथ-साथ लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा का शरीर भी धुंधला-सा पड़ने लगा। देखते-ही-देखते उनके शरीर जैसे हवा में घुलते गायब होते चले गए।
अब ऐसा लग रहा था जैसे कोई वहां था ही नहीं।
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जगमोहन और सोहनलाल कुएं में फंसे ऊपर देख रहे थे। ऊपर धूप और आसमान नजर आ रहा था, जबकि भीतर अंधेरा था। बहुत कम, बाहर की रोशनी नीचे पहुंच पा रही थी। ऊपर से आती रस्सी अभी तक नीचे लटक रही थी, जिसके साथ बाल्टी बंधी थी। वो अगर खींचते तो पूरी की पूरी रस्सी नीचे गिर जानी थी। उन्हें इंतजार था कि कोई कुएं पर आए और उन्हें बाहर निकाले। सोहनलाल जगमोहन को देखकर बोला।
“हम तो बुरे फंस गए।”
बेवकूफ हैं हम।” जगमोहन ने झल्लाकर कहा।
वो कैसे?” उसके शब्दों पर सोहनलाल मुस्करा पड़ा।
“वो मोना चौधरी नहीं थी, उसका बहरूप था। ये हम जानते थे। हमने उसे देखा तो, सोचने लगे कि उसका पीछा करके, बहुत बड़ा तीर मार रहे हैं जबकि हकीकत ये थी कि वो हमें फंसाने के लिए जानबूझकर हमारे सामने आई थी कि हम उसके पीछे जाएं और वो हमें इस तरह फंसा दे।”
जगमोहन ने कुढ़कर कहा-“जथूरा का कालचक्र सच में बहुत चालाक है।”
“अब तो जो होना था, जो चुका ।”
“मुझे आशंका है कि बंगले में देवराज चौहान, बांके और रुस्तम के साथ भी बुरी घटना पेश आई होगी।”
“ये जरूरी तो नहीं ।”
“जरूरी है। जथूरा का कालचक्र हर उसके लिए है, जो पूर्वजन्म से सम्बंध रखता है।” जगमोहन बोला।
“परंतु वो तो हम लोगों को गायब कर रहा था, अब हमें इस तरह फंसा क्यों दिया।” सोहनलाल ने कहा।
“क्या पता कालचक्र ने हमें क्या सोचकर कुएं में फंसाया है। जरूर इसके पीछे कोई बड़ी चाल है।” जगमोहन ने गहरी सांस लेकर कहा-“मैं उस बुढ़िया को पहचान न सका। मैं क्या मेरी जगह कोई भी होता धोखा खा जाता। वो ही पहले मोना चौधरी के रूप में थी, जो बुढ़िया हमें मिली। मैं कुएं की मुंडेर पर हाथ रखे नीचे झांक रहा था कि कितनी आसानी से उसने मेरी दोनों टांगें उठाईं और मुझे नीचे फेंक दिया।”
“तेरे को तो फिर भी उसने इज्जत से फेंका।” सोहनलाल ने मुंह बनाया–“मुझे तो बच्चों की तरह उठाकर नीचे फेंक दिया।

ये तो अच्छा हुआ कि मैं तेरे ऊपर नहीं गिरा। मुझे तो अपने इस हाल पर तरस आ रहा है।”
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।
“उधर देवराज चौहान, बांके, रुस्तम हमारा इंतजार कर रहे होंगे। शाम होने वाली है।”
“पता नहीं यहां कितनी देर रहना पड़ेगा। ऊपर कुएं पर कोई गांव वाला अभी तक पानी निकालने आया नहीं।”
तभी जगमोहन को अपने बेहद करीब से, धीमी-सी आवाज सुनाई दी।
“जग्गू।”
जगमोहन की नजर तेजी से कुएं में हर तरफ घूमी। परंतु कोई न दिखा।
“कौन है?" जगमोहन के होंठों से निकला।
“मैं वही हूँ जग्गू, जो तेरे को जथूरा के हादसों का पूर्वाभास करा रहा था।” आवाज पुनः सुनाई दी।
इस बार सोहनलाल ने भी उस आवाज को सुना।
कौन हो तुम?” ।
इस वक्त मैं तुझे अपने बारे में नहीं बता सकता।”
“क्यों?" ।
तुम कालचक्र के भीतरी हिस्से में आ फंसे हो। यहां मैंने अपना नाम बताया तो कालचक्र सुन लेगा।”
“तुम कालचक्र से डरते हो?”
“मैं नहीं जानता कि इसका क्या जवाब दें, परंतु मैं नहीं चाहता कि अभी कालचक्र मेरे बारे में जाने। वैसे तू मुझे अच्छी तरह से जानता है। मेरी आवाज सुनकर तू मुझे पहचान सकता है।” वो धीमी आवाज दोनों को सुनाई दे रही थी।
“तो मैं तुझे पहचान क्यों नहीं रहा?”
“अभी तेरे को पूर्वजन्म की याद नहीं आई। जब भी तेरे मस्तिष्क में पूर्वजन्म की यादें आएंगी, तू मुझे पहचान लेगा ।”
हमें यहां से बाहर निकलो।” जगमोहन ने कहा।
ये मेरे बस में नहीं। मैं सीधे-सीधे कालचक्र से नहीं टकरा सकता।”
तो तुम हमारे लिए क्या कर सकते हो?” ।
मैं तुम पर आने वाली मुसीबतों से तुम्हें बचा सकता हूं।” वो आवाज पुनः सुनाई दी–“तुम दोनों को कालचक्र, अपने भीतर निगलने वाला है। वहां तुम दोनों के लिए ढेरों खतरे सामने आएंगे। कोई भी खतरा तुम लोगों की जिंदगी ले लेगा। तब मेरे से जितनी सहायता हो सकेगी, करूंगा, तुम्हें बचाऊंगा।”
“आखिर हमारी मंजिल क्या है?” ।
“पूर्वजन्म में प्रवेश करना। लेकिन कालचक्र तुम दोनों को अपने भीतर समेट चुका है। तुम दोनों के सामने इतने खतरे आएंगे कि बच न सकोगे, अगर बच गए तो खुद को पूर्वजन्म के प्रवेश द्वार पर खड़े पाओगे। परंतु शायद बच न सकोगे।”
“ओह!” ।
लेकिन मैं तुम्हारे साथ हूं। भरसक चेष्टा करूंगा कि तुम लोग कालचक्र से बचे रह सको।”
जगमोहन और सोहनलाल के चेहरे पर गम्भीरता के भाव थे।
“तुम मुझे जथूरा के हादसों का पूर्वाभास क्यों कराते रहे, अब तुम मेरी सहायता क्यों कर रहे हो?” । “वक्त आने पर तुम्हें तुम्हारे सवालों का जवाब मिल जाएगा जग्गू। अभी इन बातों का जवाब देकर मैं कालचक्र के सामने अपना भेद नहीं खोलना चाहता। इस वक्त तुम लोग बहुत भारी खतरे में हो।” ।
“तुम सामने क्यों नहीं आते?”
नहीं आ सकता। ये ही बहुत बड़ी बात है कि मैं कालचक्र के भीतर पहुंचकर तुमसे बात कर रहा हूं।” ।
“ओह।”
अब मेरी बात ध्यान से सुनो। जल्द हीं तुम लोग कालचक्र के भीतरी हिस्से में पहुंचने वाले हो। ये बात मन से निकाल दो कि तुम लोग इस कुएं से बाहर निकल सकोगे। ये कुआं नहीं, कालचक्र का प्रवेश द्वार है। बाहर गांव वालों को ये कुआं नजर नहीं आता। क्योंकि ये मायावी है। कुछ ही देर में ये कुआं भी गायब हो जाएगा।”
“तुम तो हमारे में डर पैदा कर रहे हो।”
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03-09-2021, 03:22 PM,
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डरो मत। हौसले से काम लो। तभी आने वाले खतरों का सामना करके जिंदा रह पाओगे।” वो आवाज उनके कानों में पड़ रही थी—“कुछ ही देर में कालचक्र तुम दोनों को अपने भीतर समेटकर, मौत की राह पर फेंकने जा रहा है। वहां तुम्हें दो रास्ते नजर आएंगे। तुम्हें गुलचंद के साथ बाईं तरफ वाले रास्ते में जाना है।”
“बाईं तरफ वाला रास्ता?”

“हां ।”
“वहां क्या होगा—जो...।”
मैं नहीं जानता कि बाईं तरफ वाले रास्ते में क्या होगा, परंतु इतना जान लिया है मैंने कि उस रास्ते पर जाने से, तुम लोग अगले खतरे के आने तक, जिंदा रह सकते हो। ये मत सोचना कि बाईं तरफ वाले रास्ते पर तुम लोग सुरक्षित हो। खतरे वहां भी होंगे, लेकिन कम होंगे। सतर्क रहे तो बचे रह सकते हो। भूलना मत, बाईं तरफ वाले रास्ते पर जाना है तुम दोनों ने। अब मैं जाता हूं, कालचक्र के भीतर की रहस्यमय परतों के बारे में पता लगाना है। कि वहां क्या-क्या खतरे भरे पड़े हैं, ताकि तुम दोनों को बचाकर पूर्वजन्म के प्रवेश द्वार तक ले जा सकें। इसमें मुझे भी खतरा है। कालचक्र मुझ पर भी अपना जाल फेंक सकता है। मुझे भी सावधानी से काम करना होगा।”
फिर कब आओगे हमारे पास?”
जल्दी लौटुंगा।”
लेकिन मेरे या सोहनलाल के पूर्वजन्म में प्रवेश कर लेने से क्या होगा। हम दोनों वहां के खतरों का सामना नहीं कर सकते। जब-जब भी हमने पूर्वजन्म में प्रवेश किया है, सबके साथ ही किया
“कालचक्र ने देवा, मिन्नो, भंवर सिंह, परसू, नीलसिंह, नगीना को भी बुरा फंसा रखा है। वो भी इस वक्त जहां पहुंच चुके हैं, वहां खतरे ही खतरे हैं, वो लोग भी खतरों से बच नहीं सके, जो बचेगा, वो ही पूर्वजन्म के प्रवेश द्वार तक पहुंच सकेगा।” । “ओह।” जगमोहन चिंतित स्वर में बोला–“वो सब लोग हैं।
कहां?” ।
“उनके बारे में सोचकर वक्त बर्बाद मत करो, अपने बारे में सोचो। याद रखना बाईं तरफ वाले रास्ते पर जाना है। अब मैं जा रहा हूं।” इसके साथ ही आवाज आनी बंद हो गई।
जगमोहन और सोहनलाल की नजरें मिलीं।
ये तो फंस गए हम।” जगमोहन गहरी सांस लेकर बोला। । “बुरे फंसे हैं।” ।
तभी कुएं में कम्पन उभरा।
दो पल के लिए लगा जैसे कुएं की गोल दीवार गिरने वाली हो, फिर वो गोल दीवार धीरे-धीरे, गोल-गोल घूमने लगी। जैसे लट्टू घूमता है। हर बीतते पल के साथ उसकी रफ्तार तेज होती जा रही थी । जगमोहन और सोहनलाल कुएं के पानी के बीचोबीच खड़े थे। हैरत की बात तो ये थी कि पानी शांत था, कुएं की गोल दीवारों के गोल-गोल घूमने पर भी, पानी अपनी जगह पर स्थिर था। तेज-तेज ऐसी आवाजें आ रही थीं, जैसे पत्थर आपस में रगड़ खा रहे हों।
तभी सोहनलाल की निगाह ऊपर पड़ी तो उसके मुंह से निकला।
ओह, हम जमीन के भीतर जा रहे हैं।” जगमोहन ने सिर उठाकर ऊपर देखा तो खुद को सुरंग जैसी जगह में महसूस किया। बाहर की रोशनी और आसमान बहुत दूर, बिंदु की तरह दिखे।
‘ये कैसी मुसीबत है।' जगमोहन बड़बड़ाया। वे दोनों अब घुप्प अंधेरे में, पानी में थे। फिर ऊपर बिंदु जैसी रोशनी नजर आनी बंद हो गई।
देर तक उन्हें पत्थरों के रगड़ने की आवाज सुनाई देती रही। फिर एकाएक ही सब कुछ थम गया। सन्नाटा सा उभर आया वहां। चुप्पी ऐसी थी कि उन्हें अपनी सांसों की आवाजें स्पष्ट सुनाई दे रही थीं। एकाएक ही उन्हें पुनः पत्थरों के रगड़ खाने की आवाज सुनाई दी और देखते-ही-देखते सामने दो दरवाजे जैसी जगह नजर आने लगी। जिनके पार दिन का उजाला फैला था। वहां पेड़ थे, मैदान था, हवा चल रही थी, उनकी नजरें दोनों दरवाजों पर थीं। ना उनके लिए हैरत की बात तो ये थी कि दोनों दरवाजों के पास एक ही जगह थी। बाएं से भीतर जाएं या दाएं से, पहुंचेंगे एक ही जगह पर, फिर उसने क्यों कहा कि वो बाईं तरफ वाले दरवाजे से भीतर प्रवेश करे। ये उलझन खुद-ब-खुद ही उनके मस्तिष्क में आ ठहरी थी।
जगमोहन ने ऊपर देखा। कुआं पाइप की तरह बंद दिखा।
ये सब क्या है?” सोहनलाल बोला।
“हम कालचक्र के भीतरी हिस्से में आ फंसे हैं।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।
“लेकिन ये दो दरवाजों का क्या मामला है। उसने कहा था कि हम बाईं तरफ वाले दरवाजे से भीतर प्रवेश करें। जबकि दोनों दरवाजे तो एक ही जगह पर लगे हैं। बाएं दरवाजे से जाएं या दाएं से, बात तो एक ही है।” सोहनलाल बोला।
“कुछ तो बात होगी जो उसने हमें बाईं तरफ वाले दरवाजे से जाने को कहा।”

“क्या पता वो कौन था। ये भी कालचक्र की कोई चाल न हो।”
जगमोहन सोहनलाल को देखने लगा । सोहनलाल की बात सही हो सकती थी।
जगमोहन को खामोश पाकर सोहनलाल कह उठा।
क्या सोचा, कौन-से दरवाजे से भीतर जाएं?”
“हमारे लिए दोनों रास्ते अंजाने हैं।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा—“किसी से भी भीतर प्रवेश करें। कोई फर्क नहीं पड़ता। वो जो कोई भी था, हम उस पर भरोसा करके, बाईं तरफ वाले दरवाजे से भीतर जाएंगे।”
एक बार फिर सोच ले।” सोहनलाल ने बेचैन स्वर में कहा।
सोच लिया।” जगमोहन की आवाज में दृढ़ता थी। इसके साथ ही वो कुएं के पानी में आगे बढ़ा और ऊपर चढ़कर बाईं तरफ वाले दरवाजे से उस हरे-भरे, पेड़ों-भरे मैदानी हिस्से में प्रवेश कर गया।
सोहनलाल वहीं खड़ा देखता रहा। जगमोहन ने मुस्कराकर सोहनलाल से कहा। बहुत ठंडी हवा चल रही है, तू भी आ जा।” सोहनलाल के होंठ भिंच गए।
“सब ठीक है। फिक्र क्यों करता है।” जगमोहन पुनः कह उठा–“आ, अब, देर न कर।”
सोहनलाल कुएं के पानी में आगे बढ़ा और फिर वो भी बाईं तरफ वाले दरवाजे से निकलकर, जगमोहन के पास जा पहुंचा। तभी गड़-गड़ की आवाजें उभरीं। उन्होंने चौंककर कुएं की दीवारों में नजर आ रहे दरवाजों की तरफ देखा। आवाजें वहीं से उभरी थीं। उनके देखते-ही-देखते वो दरवाजे जैसे रास्ते बंद हो गए। वहां कुएं की दीवार नजर आने लगी। जहां से वो आए थे, वो रास्ता बंद हो चुका था और कुआं वहां किसी मीनार की तरह खड़ा था।
जगमोहन और सोहनलाल की नजरें वहां दूर-दूर तक घूमी।
परंतु वहां इंसान तो क्या, जानवर या चिड़िया तक भी नजर न आई। ऐसे हरियाली भरे वातावरण में किसी पक्षी को भी नजर न आना, उलझन में डालने वाली बात थी।
वो क्या है?” तभी सोहनलाल के होंठों से निकला।
जगमोहन ने सोहनलाल की निगाहों का पीछा करते हुए उस तरफ देखा। | वो कोई घुड़सवार था, जो कि तेजी से इसी दिशा की तरफ दौड़ा चला आ रहा था।

दोनों उसी घुड़सवार को देखते रहे। वो अब काफी पास आ चुका था। उसके शरीर पर गहरे नीले रंग के कपड़े थे। वर्दी की तरह, वो कैप्टन या फिर किसी सिपाही या ऐसे ही किसी ओहदे जैसी वर्दी में था। जब वो पास से निकला तो उसने घोड़े की रफ्तार धीमी करते हुए चिल्लाकर कहा।। । “ऐ तुम लोग यहां क्या कर रहे हो, रानी साहिबा की सवारी
आ रही है, जल्दी से रास्ता साफ कर दो। इस बात का ढिंढोरा पहले ही पिटवा दिया था कि कोई नजर न आए, फिर तुम दोनों रानी साहिबा की राहों में क्यों खड़े हो। जल्दी से दूर हट जाओ, वरना बेहद कठोर सजा मिलेगी।”
इसके साथ ही वो घुड़सवार पुनः तेजी से आगे को दौड़ता चला गया।
जगमोहन और सोहनलाल की नजरें मिलीं।
“ये सब क्या हो रहा है, ये कैसी जगह है?” सोहनलाल के होंठों से निकला।
“यहां मत खड़े रहो। कोई जगह ढूंढ़ो छिपने की, वरना नई मुसीबत में फंस जाएंगे।” जगमोहन ने कहा।
“ये रानी साहिबा कौन है जो...।”
“कहीं छिपकर देखते हैं कि रानी साहिबा और उसकी सवारी कैसी है, आओ उधर, उस पत्थर के पीछे...।”
दोनों जल्दी से कुछ दूरी पर मौजूद बड़े-से पत्थर की तरफ दौड़ते चले गए। अभी उस पत्थर के पीछे पहुंचकर, उन्होंने दो-चार सांसें ही ली होंगी कि काफी दूर धूल का छोटा सा गुब्बार उठता दिखा, साथ ही घोड़ों की बेहद मध्यम टप-टप की आवाजें, उनके कानों में पड़ने लगी थीं।
“रानी साहिबा की सवारी आ रही है।” धूल के गुब्बार को देखते हुए जगमोहन कह उठा।
। “मुझे घोड़ों की टॉपों की आवाजें सुनाई दे रही हैं।” सोहनलाल बोला।।
“पता नहीं, कहां आकर फंस गए हैं।” जगमोहन गहरी सांस लेकर सोहनलाल को देखते हुए मुस्करा पड़ा।
दोनों की निगाह दूर उठते धूल के गुब्बार पर थी, जो इसी तरफ आता जा रहा था।

samaapt
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03-09-2021, 03:22 PM,
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पोतेबाबा --देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

दो शब्द–लेखक की कलम से
पाठकों को अनिल मोहन का नमस्कार!
हाजिर है, देवराज चौहान और मोना चौधरी एक साथ वाला नया उपन्यास–“पोतेबाबा'। | इससे पहले प्रकाशित ‘जथूरा' तो आपने पढ़ ही लिया होगा
और मजा भी आया होगा। अगर नहीं पढ़ा तो चिंता की कोई बात नहीं, ‘पोतेबाबा' को आप संभालकर रखें और बाजार से जथूरा’ लेकर पहले उसे पढ़े। पोतेबाबा को संभालकर रखने के लिए इसलिए कहा है कि 'जथूरा’ समाप्त होते ही आप फौरन ‘पोतेबाबा' को पढ़ना चाहेंगे और बाजार से लाने-ढूंढने में आपका वक्त जाया न हो और मजा भी बराबर बना रहे। मैं पाठकों को ये बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि पहले ‘जथूरा पढ़े, उसके बाद ही ‘पोतेबाबा' पढ़े वरना ‘पोतेबाबा' में आपकी कुछ भी समझ में नहीं आएगा कि कौन-सी बात कब शुरू हुई और अब क्या हो रहा है। ‘पोतेबाबा' में जथूरा' की कहानी का सारांश भी नहीं है, क्योंकि एक पूरे उपन्यास का सारांश 5-10 पेजों में लिखना असम्भव सा काम होता है और इससे उपन्यास पढ़ने की रवानगी में बोझिलता भी आती है। यूं आज तक तो ये ही होता आया है। कि दो भागों में उपन्यास हो तो पहले उपन्यास का सारांश उल्टा-पुल्टा लिखकर, जिम्मेवारी से मुक्ति पा ली जाती है, जबकि ऐसा करना सिरे से ही गलत है। उपन्यास का मजा दस पेजों में
आ जाता तो फिर उपन्यास दस पेजों के ही होते, न कि 300-400 पेज के। इसलिए पहले जथूरा’ पढ़े फिर ‘पोतेबाबा' और पूरे-का-पूरा मजा लें। मजा आएगा, इस बात की जिम्मेवारी मेरी है। क्योंकि देवराज चौहान और मोना चौधरी की पूर्वजन्म की रहस्यमय दुनिया से वास्ता रखते हादसों में मजा ही मज़ा भरा है। रोमांस है। सनसनीखेज स्थिति आ जाने पर दिल की धड़कनें जोरों से बढ़ जाती हैं। कदम-कदम पर उलझनों का जाल है।

मेरा आगामी नया उपन्यास है—‘महाकाली।
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03-09-2021, 03:22 PM,
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पोतेबाबा

प्रस्तुत उपन्यास ‘पोतेबाबा' वहीं से शुरू करते हैं, जहां पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘जथूरा’ समाप्त हुआ था। ‘जथूरा’ में तब आखिरी दृश्य चल रहा था कि जगमोहन और सोहनलाल को, कालचक्र कमला रानी के माध्यम से कुएं में फिंकवा देता है और कालचक्र का वो कुआं जमीन में धंसता हुआ अंजानी दुनिया में जा पहुंचता है, वहां जब जगमोहन और सोहनलाल कुएं से बाहर निकलते हैं तो खुद को अजीब सुनसान जगह पर पाते हैं। तभी सामने से एक घुड़सवार, जिसने नीली वर्दी पहन रखी है, तेजी से आता है और उन्हें बताता है कि रानी साहिबा का काफिला आ रहा है, रास्ते से हट जाओ। ये कहकर वो आगे बढ़ जाता है और जगमोहन, सोहनलाल पास के एक बड़े से पहाड़ी पत्थर के पीछे छिप जाते हैं। कि उन्हें काफी दूर धूल का उठता गुब्बार दिखाई देता है।
जगमोहन और सोहनलाल की निगाह दूर धूल के उठते गुब्बार पर टिकी थी, जो कि पल-प्रतिपल बड़ा होता जा रहा था। देखते ही देखते धूल का गुब्बार अब स्पष्ट होने लगा। वो काफी सारे घुड़सवार थे, जो कि नीली वर्दी में थे। वो कतार में थे। उनके पीछे छत्र लगी बग्गी दिखीं और बग्गी के पीछे भी घुड़सवार थे।
ये रानी साहिबा का काफिला है।” जगमोहन बोला। लेकिन रानी साहिबा है कौन?” सोहनलाल ने गहरी सांस ली।
क्या पता। हमें कालचक्र ने अंजानी जमीन पर पहुंचा दिया है, हम...।” ।
“हम पूर्वजन्म में तो नहीं पहुंच गए?” सोहनलाल ने गर्दन घुमाकर जगमोहन को देखा।
जगमोहन की निगाह भी सोहनलाल पर गई।
कुछ पलों तक उनके बीच चुप्पी रही फिर जगमोहन गम्भीर स्वर में कह उठा।
ये जगह पूर्वजन्म का हिस्सा नहीं हो सकती।”
“क्यों?”
“जथूरा ने कालचक्र हमारे पीछे डाला था कि वो हमें पूर्वजन्म के सफर के लिए रोक सके। ऐसे में कालचक्र हमें पूर्वजन्म में क्यों पहुंचाएगा।” जगमोहन ने सोच भरे स्वर में कहा।।
सोहनलाल की निगाह काफिले की तरफ गई, जो कि अब पास आता जा रहा था।
“तुम उसे भूल गए, जो मुझे जथूरा के हादसों का पूर्वाभास करा रहा है, वो कुएं में अदृश्य रूप से हमें मिला और हमसे बात की थी। उसने कहा था कि हम लोग कालचक्र के भीतरी हिस्से में आ फंसे हैं।” जगमोहन ने कहा-“उसके मुताबिक कालचक्र हमें अपने भीतर निगल रहा है, जहां हमारे लिए ढेरों खतरे हैं। परंतु वो जो भी है, वक्त-वक्त पर हमारी सहायता करता रहेगा। लेकिन उसने ये भी कहा था कि अब हमारे सामने इतने खतरें आएंगे कि हम बच न सकेंगे।”
“जबकि हम पूर्वजन्म में प्रवेश करना चाहते हैं।” सोहनलाल ने कहा। । “मजबूरी में। वैसे पूर्वजन्म में प्रवेश करके ख़तरों का सामना करने की हमारी इच्छा नहीं है।” जगमोहन की निगाह काफिले की तरफ उटी–“जथूरा हमें पूर्वजन्म में प्रवेश करने पर रोकना चाहता है, यही वजह है कि हम जिद में पूर्वजन्म में प्रवेश करने की सोच रहे हैं कि देखें, आखिर जथूरा क्यों नहीं चाहता कि हम पूर्वजन्म में प्रवेश करें।”
“हम जथूरा के फेंके कालचक्र की भीतरी परतों में फंस चुके हैं। मेरे खयाल में तो यहां से बच जाना सम्भव नहीं लगता। हमारी जिंदगी यही खत्म हो जाएगी।” सोहनलाल बोला।
काफिला करीब आ चुका था। दोनों की निगाह उस तरफ जा टिकी थी।
उस बग्गी के आगे छः घुड़सवार थे। पीछे भी छ: घुड़सवार ही थे। सबकी कमर से बंधी तलवारें नजर आ रही थीं। बग्गी में दो घोड़े लगे थे। वहां एक युवती या औरत बैठी नजर आ रही थी। उसके अगल-बगल, कुछ पीछे की तरफ दो युवतियां थीं जिन्होंने बड़े से छाते की रॉड थाम रखी थी ताकि रानी साहिबा के ऊपर छाया रहे। दौड़ती बग्गी में इस तरह उस भारी छाते को सम्भाले रखना
आसान नहीं था। कोचवान बग्गी संभाले दौड़ा रहा था।
काफिला अब उस बड़े पत्थर के उस पार से गुजरने लगा था, जिसके पीछे वे छिपे थे।
परंतु तभी जगमोहन से गलती हो गई।
जब बग्गी पत्थर के पीछे से निकल रही थी तो उसने सिर आगे करके, बग्गी के भीतर बैठी रानी साहिबा को देख लेना चाहा और ये ही वो वक्त था कि रानी साहिबा नाम की औरत की निगाह यूं ही इस तरफ ही थी।
रोको।” रानी साहिबा एकाएक तेज स्वर में कह उठी–“बग्गी रोको ।”
फौरन ही कोचवान ने बग्गी रोक दी। पीछे आते घुड़सवार भी थम गए।
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03-09-2021, 03:23 PM,
RE: XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
आगे के घुड़सवार बीस-तीस कदम अवश्य आगे निकल गए थे, परंतु वे पलटकर करीब आ गए।
तभी एक घुड़सवार फौरन बग्गी के पास आ पहुंचा। “हुक्म रानी साहिबा।” वो अदब से बोला।
रानी साहिबा 35 से 50 तक की, किसी भी उम्र की हो सकती थीं।
वो खूबसूरत थी। चोली-घारा और चुनरी में थी वो। कभी वो ज्यादा उम्र की झलकती तो कभी कम उम्र की लगती।
“उस पत्थर के पीछे कोई छिपा है।” रानी साहिबा ने कहा और उठ खड़ी हुई।
“मैं अभी देखता हूं।”
“नहीं, मैं देखेंगी।” कहने के साथ ही रानी साहिबा एक ही छलांग में बग्गी से नीचे आ गई। उसके पांव नगे थे।
“आप क्यों तकलीफ करती...” उस घुड़सवार ने कहना चाहा।
“मुझे लगता है, कालचक्र से मुझे मुक्ति मिलने वाली है।” रानी साहिबा ने गम्भीर स्वर में कहा“उस पुरानी किताब में ये ही लिखा था कि सफर के दौरान मैं एक पत्थर के पीछे छिपे युवक को देखेंगी, जो कि असल में दो होंगे। वे कालचक्र का हिस्सा नहीं होंगे। कालचक्र में फंसकर यहां पहुंचे होंगे। वो ही मेरी मुक्ति का साधन बनेंगे।”
आपने दो युवकों को देखा?” घुड़सवार ने पूछा।
नहीं, एक को। अगर वो दो हैं तो, किताब की बात सच हो सकती है। शायद ये वहीं हो। तुम यहीं ठहरो।” रानी साहिबा आगे बढ़ती कह उठी_“मैं वहां जाकर देखेंगी।”
*आपको वहां खतरा...।”
चुप रहो।”
रानी साहिबा तीस-चालीस कदम का फासला तय करके पत्थर के पीछे की तरफ पहुंची।
जगमोहन तो रानी साहिबा से नजर मिलते ही, दुबक गया था। परंतु उसी पल ही घोड़ों की खामोश होती दापों का उसे एहसास से गया था कि काफिला अचानक ही रुक गया है।
जगमोहन को लगा कि इस तरह झांककर उसने गलती कर दी है। सोहनलाल उस वक्त गोली वाली सिग्रेट सुलगा रहा था। हालांकि कुएं में सिग्रेट-माचिस गीली हो गई थी, परंतु सिग्रेट-माचिस को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था। उसने सिग्रेट सुलगाकर कुश लिया कि तभी सामने आ खड़ी, रानी साहिबा पर उसकी नजर पड़ी।
रानी साहिबा सोहनलाल को धुआं उड़ाते देख रही थी। सोहनलाल हड़बड़ाया-सा रानी साहिबा को देखने लगा।
“हम मुसीबत में पड़ गए हैं सोहनलाल।” जगमोहन ने धीमे स्वर में कहा।
क्यों?” “ये रानी साहिबा है और मुझे देखने के बाद ही इसने अपना काफिला रोका है।”
तभी रानी साहिबा उनके करीब आने लगीं। दोनों की निगाह उस पर जा टिकी थी।
स्वागत है धुआं उड़ाने वाले इंसान।” रानी साहिबा चार कदम पर ठिठककर मुस्कराकर बोली।
म...मैं?” सोहनलाल फौरन सीधा हुआ।
तुम ही। उस किताब में लिखा है कि एक इंसान धुआं उड़ा रहा होगा। वो ही मुझे मुक्ति दिलाएगा।”
“कौन-सी किताब?” ।
कालचक्र की किताब। जब मुझे कालचक्र के भीतरी हिस्से में स्थापित किया गया था, तभी वो किताब लिख दी गई थी कि धुओं उड़ाने वाले इंसान ही मुझे मुक्ति दिलाएगा, अगर मैं उसे खुश कर सकी तो...।”
खुश? मैं... मैं तो खुश ही हूं।” सोहनलाल के होंठों से निकला।
ये खुश नहीं, दूसरा खुश। वो खुश तुम्हें मैं करूंगी। अपनी बांहों में समेटकर। झूला झुलाकर ।”
सोहनलाल ने जगमोहन को देखा। जगमोहन मुस्कराया। “ये क्या कह रही है?” “तुम्हें कह रही है। मुझे नहीं।”
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03-09-2021, 03:23 PM,
RE: XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
ये मुझे खुश करने को कह रही है, लेकिन मैं...दुखी ही कब था।” सोहनलाल के होंठ सिकुड़ चुके थे।

जगमोहन मुस्करा रहा था। सोहनलाल ने रानी साहिबा को देखा। रानी साहिबा हौले से हंस पड़ी, फिर कह उठी।

“तुम घबरा रहे हो धुआं उड़ाने वाले, जबकि मैं तुम्हारे इंतजार में 50 साल की होने पर भी कुंआरी हूं।”

“म...मेरे इंतजार में ।” सोहनलाल ने सकपकाकर जगमोहन को देखा।

जन्मों का साथ लगता है।” जगमोहन मुस्कराकर सोहनलाल से बोला।

ऐ धुआं उड़ाने वाले, तू मुझसे घबरा मत, मैं तेरे को फूलों की तरह रसुंगी ।” वो कह उठी।।

फूलों की तरह।” सोहनलाल ने रानी साहिबा को देखा।

“हां, मैं तेरे को हर पल खुश रखेंगी। क्योंकि तू ही मेरे को कालचक्र से मुक्ति दिलाएगा। तेरे इंतजार में मैं मरी जा रही थी कि तू कब मिलेगा मुझे। किताब में लिखा है कि 50 बरस की होने पर, मुझे धुआं उड़ाने वाला मिलेगा। सब कुछ सच लिखा है उसमें । मेरे को ये पहले ही पता था ।”

रानी साहिबा बराबर मुस्करा रही थी—“मेरी तलाश पूरी हुई। मेरी उदासी के दिन दूर हुए। अब हम दोनों बहुत अच्छा जीवन व्यतीत करेंगे।”

“ये मुझे पागल कर देगी।” सोहनलाल जगमोहन से कह उठा।

“हम किसी बड़ी मुसीबत में फंसने जा रहे हैं।” जगमोहन् गम्भीर हो गया था।

“तुम्हारा सेवक तुम्हें अम में डाल रहा है। मैं मुसीबत नहीं हूं। मैं तुम्हारा प्यार हूं धुआं उड़ाने वाले। कब से तुम्हारा ही इंतजार कर रही थीं। तुम्हारे लिए अभी तक मैं कुंआरी रही। वरना मेरे को पाने के लिए लोग लड़ाइयां लड़ते रहे, परंतु मैंने किसी के संग प्यार नहीं किया। क्योंकि उस किताब में लिखा है कि अगर मैं तुम्हारे मिलने तक कुंआरी रही तो तभी तुम्हारे द्वारा मैं मुक्ति पा सकेंगी।” कहकर वो आगे बढ़ी और हाथ आगे किया—“मेरा हाथ थामो।”

“क्यों?” सोहनलाल के होंठों से निकला।

मैं तुम्हें अपने महल में ले चलूंगी। वहां हम प्रेम से रहेंगे।” सोहनलाल ने व्याकुल से अंदाज में जगमोहन को देखा।

जगमोहन उलझन भरी नजरों से रानी साहिबा को देख रहा था।

“तुम मुझसे बात करते-करते अपने सेवक को क्यों देखने लगते हो। क्या उससे डरते हो?” ।

रानी साहिबा का हाथ अभी भी सोहनलाल की तरफ बढ़ा हुआ था।

थाम लो मेरा हाथ।”—वो बोली।

नहीं।” सोहनलाल कह उठा।

मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती? क्या मैं सुंदर नहीं जो तुम...।”

“मैं तुम्हें नहीं जानता।”

मेरे साथ चलोगे तो जान जाओगे।”

मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगा।”

रानी साहिबा ने हाथ पीछे कर लिया और नाराजगी भरी नजरों से सोहनलाल को देखा।

“मेरा नाम नानिया है। लोग मुझे रानी साहिबा कहते हैं।” वो कह उठी।

सोहनलाल खामोश रहा। तुम्हें मेरे साथ चलना ही होगा।”

“नहीं ।”

मेरे पहरेदार तुम्हें जबर्दस्ती साथ ले जा सकते हैं।” नानिया बोली-“लेकिन मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे साथ जबर्दस्ती हो। क्योंकि तुम्हारे इंतजार में मैं कब से बैठी थी।” ।

“तुम जानती हो, ये कालचक्र है?” जगमोहन ने कहा।

“अवश्य सेवक। कालचक्र की भीतरी परतों में मुझे डाला गया है।” नानिया कह उठी।

किसने किया ऐसा?”

सोबरा ने। परंतु अब कालचक्र पर जथूरा का कब्जा हो चुका है। जथूरा के इशारे पर ही इस वक्त कालचक्र काम कर रहा है।”

हमें कालचक्र ने फंसाकर यहां फेंका है।”

जानती हूं। तभी तो तुम दोनों यहां तक आ गए। परंतु तुम्हें आना ही था। वो किताब में लिखा है ऐसा।”

कहां है किताब?” ।

मेरे पास मेरे महल में।” कुछ पल वहां चुप्पी रही।

“ऐ सेवक। क्या तुम अपने मालिक को मेरे साथ चलने पर तैयार कर सकते हों?”

क्यों हम तुम्हारे साथ चलें?”

मुझे मुक्ति चाहिए कालचक्र से और किताब में लिखा है कि धुआं उड़ाने वाला ही मुझे मुक्ति दिलाएगा।”
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03-09-2021, 03:23 PM,
RE: XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
तुम धोखा भी हो सकती हो, हमारे लिए...।”

“क्या मैं तुम्हें ऐसी लगती हूं?”

कालचक्र में कुछ भी हो सकता है।” नानिया ने गहरी सांस ली और बोली।

तो मुझे धुआं उड़ाने वाले के साथ जबर्दस्ती करनी ही पड़ेगी।” तभी सोहनलाल कह उठा।

मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूं।” ।

नानिया का चेहरा खिल उठा। “तुम सच में मुझे प्यार करते हो धुआं उड़ाने वाले...”

मेरे खयाल में ये गलत होगा।” जगमोहन ने सोहनलाल से कहा।

यहां हमारे लिए सब कुछ अनजाना और नया है। कहीं तो हमें कदम आगे बढ़ाने ही हैं।”

परंतु इसके साथ जाने से हम किसी बड़ी मुसीबत में..." ।

इसके साथ नहीं गए तो क्या गारंटी है कि हम मुसीबत में नहीं फंसेंगे।” सोहनलाल ने कहा।

जगमोहन के होंठ भिंच गए।

हम कालचक्र में हैं। यहां हमारे लिए सिर्फ खतरे हैं। जो तुम्हें जथूरा के हादसों का पूर्वाभास करा रहा था, उसने भी कुएं में हमें यहीं कहा कि कालचक्र की गहरी परतों में हमारे सामने खतरे आएंगे, जिनसे बचना कठिन है। अगर बच गए तो उस स्थिति में ही हम पूर्वजन्म में प्रवेश कर सकेंगे।”

जगमोहन ने गहरी सांस ली। नानिया को देखा। नानिया मुस्कराकर सोहनलाल से बोली।

मैंने तुम दोनों की बातें सुनीं। तुम दोनों आशंका में फंसे हो। परंतु मेरे से तुम्हें कोई नुकसान नहीं होगा।” ।

“नुकसान क्यों नहीं होगा।” सोहनलाल बोला—“तुम भी तो कालचक्र का ही हिस्सा हो।”

तुम्हारा शक जायज है, परंतु मैं तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाऊंगी, एक बार मेरे साथ चल के तो देखो।”

एक बार साथ चलने पर ही हमारा काम हो गया तो..."

धुआं उड़ाने वाले, तुम तो बहुत डरपोक हो। ऐसे में मुझे क्या मुक्ति दिलाओगे?”

मैंने कब कहा कि मैं तुम्हारे लिए कुछ करूंगा।” ।

“तो उस किताब में ऐसा क्यों लिखा है?” नानिया ने सोच-भरे स्वर में कहा।

और क्या-क्या लिखा है उस किताब में?”

बहुत कुछ, परंतु वो मुझे समझ नहीं आता। अपने मतलब की बात ही समझ पाती हूं।”

“किसने लिखी वो किताब?” ।

सोबरा ने। जब उसने कालचक्र की भीतरी परतों में मुझे बिठाया तो वो किताब भी मुझे दे दी थी, कहा कि ये किताब मुझे कालचक्र से आजाद कराएगी।”

“हैरानी है। सोबरा ने कालचक्र का निर्माण किया और वो तुम्हें कालचक्र से मुक्ति का रास्ता भी बता रहा है।”

“शायद तब सोबरा को आशंका रही होगी कि कालचक्र पर उसका भाई जथूरा, अपना कब्जा जमा सकता है।”

नानिया बोली-“इस बात पर मैंने भी बहुत बार सोचा, परंतु किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी। अब तुम चलों मेरे साथ। देर क्यों कर रहे हो। यहां गर्मी भी बहुत है। महल में पहुंचकर तुम मेरे साथ गुलाब जल में नहाना।”

सोहनलाल ने जगमोहन को देखा।

अब मैं क्या करूं?”

“जैसा तुम चाहो ।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।

“तुम बात-बात पर अपने सेवक से इजाजत क्यों लेते हो?” नानिया तीखे स्वर में बोली।

इजाजत नहीं सलाह ले रहा हूं। ये मुझे सलाह देने की सेवा करता है।

ओह समझी।” नानिया ने सिर हिलाया-“तो क्या सलाह दी इसने?”

“इसे तुम पर भरोसा नहीं। फिर भी ये कहता है कि एक बार तुम्हें आजमाकर देख लें।” ।
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03-09-2021, 03:23 PM,
RE: XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
“सलाह तो समझदारी वाली है परंतु देखने में ये इतना समझदार नहीं लगता।”

जगमोहन ने दूसरी तरफ मुंह फेर लिया। नानिया ने सोहनलाल की तरफ हाथ बढ़ाया।

सोहनलाल ने गहरी सांस ली और उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया।

“ओह, कितना अच्छा लग रहा है, तुम्हारा हाथ अपने हाथों में पाकर। आओ, मेरे साथ आओ।”

सोहनलाल उसके साथ चल पड़ा। जगमोहन होंठ सिकोड़े चार कदम पीछे था।

वे चट्टानों के पीछे से निकले तो सामने बग्गी और घुड़सवार दिखने लगे।

“तुम्हारा नाम क्या है धुआं उड़ाने वाले?”

सोहनलाल ।”

कितना अच्छा नाम है, तुम तो...।”

आगे के शब्द नानिया के होंठों में ही रह गए। दूर धूल का गुब्बार उड़ता दिखा।

“ओह।” नानिया के होंठों से निकला–“इस दिशा से तो बोगस के आदमी आते हैं।”

“बोगस कौन?” सोहनलाल ने कहा। तभी एक घुड़सवार घोड़े को दौड़ाता पास आया।

रानी साहिबा, ये बोगस के आदमी हैं। यहां से निकल चलिए। उनकी संख्या ज्यादा लगती है।”

आओ।” नानिया चीखीं। फिर वे सब बग्गी की तरफ दौड़े।

नानिया ने सोहनलाल का हाथ थाम रखा था।

आनन-फानन वे तीनों बग्गी में बैठे। चलो।” वो घुड़सवार चीखा। इसके साथ ही काफिला पुनः दौड़ पड़ा।

सोहनलाल नानिया के साथ ही बग्गी पर बैठ गया था जबकि जगमोहन को बैठने के लिए जगह नहीं मिली तो वो नीचे बग्गी के फर्श पर बैठ गया था। दौड़ती बग्गी में खड़ा रह पाना आसान नहीं था। दोनों सेविकाओं ने बड़ा-सा छाता अभी भी संभाल रखा था। परंतु बग्गी की रफ्तार छाते को डगमगा रही थी।

रफ्तार तेज करो।” एक घुड़सवार चीखा। काफिला बहुत तेजी से दौड़ रहा था। धूल उड़ रही थीं। घोड़ों की टापों की आवाज वातावरण में गूंज रही थी।

नानिया ने गर्दन घुमाकर उधर देखा, जिधर से बोगस वाले घुड़सवार आ रहे थे। | वो अब स्पष्ट नजर आने लगे थे। उनकी रफ्तार भी कम नहीं थीं। वे दस से ज्यादा लग रहे थे।

तभी सामने जंगल नजर आने लगा।

नानिया विचलित-सी हो उठी।

“हम भागकर निकल नहीं सकेंगे। आगे जंगल आ गया है। हमारी रफ्तार कम हो जाएगी।” वो बड़बड़ाई।

तो उनकी रफ्तार भी तो कम हो जाएगी।” सोहनलाल ने कहा।

“उनकी और हमारी स्थिति में फर्क है। वो झगड़ना चाहते हैं और हम झगड़े से बचना चाहते हैं।”

तो तुम उससे डर रही हो?”

“मुझे तुम्हारी चिंता है सोहनलाल।”

मेरी चिंता?” सोहनलाल के होंठों से निकला।

हो। तुम्हारे दम पर मैं कालचक्र से मुक्ति पा लेना चाहती हूं, जैसा कि किताब में लिखा है। तुम मुझे इस कालचक्र से आजाद करा दोगे। इस झगड़े में अगर तुम्हें कुछ हो गया तो कालचक्र से मुझे मुक्ति कभी नहीं मिलेगी।”

सोहनलाल मुस्करा पड़ा। तभी नीचे बैठा जगमोहन बोला।

बोगस है कौन–क्यों तुम लोगों से झगड़ा करना चाहता है?”

“वो मुझे पाना चाहता है। बरसों से इसी चेष्टा में लगा है।”

फिर तो तुम्हें डरना नहीं चाहिए।” सोहनलाल बोला।

“क्यों?" ।

“ज्यादा से ज्यादा यहीं होगा कि वो तुम्हें पा लेगा।” नानिया के चेहरे पर कड़वे भाव उभरे।

फ्तार तेज करो।” एक घुड़सवार के चीखने की आवाज आई।

सोहनलाल, मैंने तुम्हें बताया था कि मैं 50 साल की उम्र तक भी कुंआरी क्यों रही।”

याद है।”

“तो मुझे तुम्हारे अलावा किसी और ने पा लिया तो मैं कालचक्र से मुक्ति नहीं पा सकेंगी। कालचक्र से बाहर निकलने तक मुझे तुम्हारी बनकर ही रहना होगा। तुम्हें खुश रखना होगा। तुम नहीं जानते कि बोगस बहुत बुरा आदमी है। उसने मुझे पकड़ लिया तो नौकरानी बनाकर रखेगा मुझे। जब चाहेगा ऊपर चढ़ जाएगा, जब चाहेगा नीचे उतर जाएगा। मेरे आदमी उसे हर बार हरा देते हैं, जब भी उसने मुझे पाने की चेष्टा की।” ।

* “तुम्हारे आदमियों ने उसे मारा क्यों नहीं?” नीचे बैठा जगमोहन बोला।।
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03-09-2021, 03:23 PM,
RE: XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
उसे मारा नहीं जा सकता। कालचक्र वाले आपस में किसी की जान नहीं ले सकते। सोबरा ने हमें बनाया ही इस तरह है। अगर हम आपस में झगड़कर मरते रहे तो कालचक्र तबाह हो जाएगा।”

“ओह।”

परंतु किसी को भी कैद करके रख सकते हैं। मेरे सिपाही इस बार भी बोगस और उसके आदमियों का मुकाबला करके उन्हें हरा देते, परंतु मुझे सिर्फ तुम्हारी चिंता है कि तुम्हें न कुछ हो जाए।”

“मुझे कुछ नहीं होगा। तुम्हें जो करना है करो। मैं अपनी रक्षा और सुरक्षा, दोनों ही कर सकता हूं।”

लेकिन मुझे तुम्हारी बात पर भरोसा नहीं।”

“क्यों?”

“तुम कालचक्र के बाहर के हो। बोगस तुम्हारी जान ले सकता है। तुम मर सकते हो। मर गए तो मैं कालचक्र से कभी मुक्त नहीं हो पाऊंगी। इस बार बिना झगड़े के, हमें बचकर ही निकलना होगा।”

काफिला तेजी से दौड़ा जा रहा था। टापों की घड़ाघड़ आवाजें गूंज रहीं थीं। सामने का जंगल अब करीब आ गया था।
पीछे दाईं तरफ से सोबरा के 12-14 घुड़सवार दौड़े आ रहे थे। पहले की अपेक्षा वो अब करीब थे। यही गति रहती तो कुछ देर बाद उन्होंने करीब आ जाना था। परंतु अब मुख्य समस्या ये थी कि सामने जंगल था और जंगल में घोड़ों को रफ्तार से दौड़ाना सम्भव नहीं था।

यानी कि नानिया और बोगस के आदमियों में झगड़ा होना ही था। तभी एक घुड़सवार बग्गी के साथ दौड़ता चिल्ला उठा।

“आगे जंगल है रानी साहिबा। वहां हमारी रफ्तार खत्म हो जाएगी। घोड़ों को चलकर जंगल पार करना होगा और इस स्थिति में बोगस के आदमियों से झगड़ा होगा। वो हमारे पास पहुंच जाएंगे।” ।

“ऐसा है तो हमें मुकाबले के लिए तैयार रहना चाहिए।” नानिया दृढ़ स्वर में कह उठी—“मैं इस सोहनलाल की वजह से मुकाबला टालना चाहती थी। ये वो ही है, जो मुझे कालचक्र से आजाद कराएगा। परंतु अब मुकाबला टल नहीं सकता तो तैयार रहो, जंगल में पहुंचते ही, फौरन घात लगा लो। बोगस और उसके आदमी जब जंगल में प्रवेश करें तो उन पर हमला बोल दो। उन्हें संभलने मत दो और हरा दो।” ।

“ठीक हैं रानी साहिबा ।”

मैं सोहनलाल के साथ जंगल में निकल जाऊंगी। रुकेंगी नहीं।”

हम सब कुछ संभाल लेंगे।” कहने के साथ ही वो घुड़सवार और तेज हो गया और आगे अपने साथियों से जा मिला।

“तो हम तुम्हारे सैनिकों से अलग हो जाएंगे।” सोहनलाल ने नानिया से कहा।

इस वक्त इसी में हमारा भला है। मैं तुम्हें बचाना चाहती हूं।” नानिया व्याकुल थी।

| उसी पल जगमोहन सिर उठाकर कह उठा।

ऐसा तो नहीं कि तुम स्वयं बोगस से डर रही हो और भागने के लिए सोहनलाल की आड़ ले रही हो ।”

नानिया ने जगमोहन को घूरकर देखा फिर सोहनलाल से कहा। “तुम्हारा सेवक बकवास बहुत करता है।”

इसकी परवाह मत करो। इसे चुप रहने की आदत नहीं है। वैसे क्या इसने सही नहीं कहा?”
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03-09-2021, 03:23 PM,
RE: XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
“गलत कहा है। तुम भी इसकी बातों में आ रहे हों। मेरी ताकत नहीं जानते तुम दोनों। जानते होते तो ये सब न कहते। इस वक्त हालात मेरे विपरीत हैं, क्योंकि मेरे साथ सैनिक बहुत कम हैं।” नानिया का स्वर कठोर हो गया—“लेकिन अब मैं सबसे पहला काम बोगस के ठिकाने पर हमला बोलकर, उसे बंदी बनाऊंगी।”
ये बात तो तुमने बहादुरी वाली कही।” सोहनलाल मुस्करा पड़ा।

तभी उनका काफिला तेजी से जंगल में प्रवेश करता चला गया।
फैले पेड़ों की डालों से दौड़ती बग्गी अटक रही थी। उसकी रफ्तार कम हो गई थी। युवतियों ने संभाल रखा छाता तो कब का जंगल में प्रवेश करते ही पेड़ में अटककर पीछे छूट गया था। फिर एकाएक घोड़े हिनहिनाकर ठिठक गए। आगे घना जंगल शुरू हो रहा था। घने पेड़ों की मोटी-मोटी डालें नीचे तक झुकी हुई थीं।

कोचवान बग्गी से उतरता कह उठा।

रानी साहिबा, घने जंगल की वजह से बग्गी अब आगे नहीं जा पाएगीं। वो रास्ता दूसरा था जहां से हम बग्गी ले जाते थे।”

“मेरे ख्याल में हम सुरक्षित हैं।” नानिया बग्गी से उतरती कह उठी_“हम पैदल ही आगे जाएंगे।”

सोहनलाल, जगमोहन और दोनों सेविकाएं भी नीचे आ गईं। सोहनलाल ने पीछे देखा, जहां से वे आए थे। परंतु उधर जंगल ही दिखा।

बोगस के आदमियों की परवाह मत करो।” नानिया सोहनलाल से बोली-“मेरे आदमी उन्हें हरा देंगे।”

“ऐसा है तो हमें वापस चलना चाहिए।” जगमोहन बोला।

नहीं। वापस जाकर मैं सोहनलाल की जान खतरे में नहीं डालूंगी।” नानिया बोल पड़ी।

जगमोहन ने मुस्कराकर सोहनलाल से कहा।

यहां तेरी वैल्यू बढ़ गई हैं।” “भगवान जाने, किस्मत में क्या लिखा है।” सोहनलाल बड़बड़ा उठा।।

नानिया ने आगे बढ़कर सोहनलाल का हाथ थामा और मुस्कराई।

सोहनलाल ने उसे देखा।

क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं सोहनलाल?” नानिया प्यार-भरे स्वर में कह उठी। ।

“भरोसा हो या न हो, क्या फर्क पड़ता है।” सोहनलाल मुस्कराया। *

“बहुत फर्क पड़ता है। अगर तुम मुझ पर भरोसा करो तो मैं खुश हो जाऊंगी। फिर तुम्हें भी खुश रचूंगी।”
तभी कोचवान कह उठा।

रानी साहिबा हमें फौरन आगे बढ़ना चाहिए। अभी हम खतरे से बाहर नहीं हैं।”

“चलो।” नानिया सोहनलाल का हाथ पकड़े रही। सब आगे बढ़ने लगे।

आगे कोचवान फिर नानिया, सोहनलाल और जगमोहन। सबसे पीछे नानिया की दोनों सेविकाएं चल रही थीं।
बेहद घना जंगल था ये। आसमान तो स्पष्ट नजर ही नहीं आ रहा था। न ही आसमान से रोशनी जंगल की जमीन तक पहुंच रही थी। गुम-सुम सा उजाला था जैसे अंधेरा और रोशनी घुल-मिल गए हो।

कोंचवान ने अपनी तलवार निकालकर हाथ में ले रखी थी कि खतरे का सामना कर सके। जंगल की मिट्टी में नमी की वजह से उनके कदमों की आवाजें भी ठीक से नहीं सुनाई दे रही थीं।

तभी चलते-चलते सोहनलाल बोला।

तुम्हारा महल कितनी दूर है?”

“अभी दूर है।”

कितनी?”

इसी तरह दिन भर चलते रहें तो महल तक पहुंच जाएंगे।”

अभी तक कितना दिन बीता है?”

आधा दिन।

” थक जाऊंगा मैं चलते-चलते।” फिक्र मत करो। मेरी सेविकाएं तुम्हें उठा लेंगी।”

“इतना भी बुरा हाल नहीं होगा कि ऐसी नौबत आए ।”

जगमोहन ने मुस्कराकर सोहनलाल को देखा।

तुम्हारी ऐसी खातिर पहले कभी नहीं हुई होगी।” जगमोहन ने कहा।।
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