non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:04 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
♡ एक नया संसार ♡
अपडेट........《 53 》

अब तक,,,,,,,,

"इसमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं है डियर।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"तुमने जो कुछ भी किया उसमें सिर्फ तुमहारी अपने पति के प्रति चिंता व फिक्र थी। ख़ैर अब जो हो गया सो हो गया मगर अब हमें बड़ी ही होशियारी और सतर्कता से काम लेना होगा। तुम उन्हें ये नहीं बताओगी कि कल तुमने उन्हें किस वजह हे फोन किया था बल्कि यही कहोगी कि तुम्हें उनकी बहुत याद आ रही थी। दूसरी बात शिवा को भी समझा दो कि वो उनके सामने ऐसी कोई भी बात न करे जिससे किसी भी तरह की बात खुलने का चाॅस बन जाए।"

"हमारी दूसरी बेटी नीलम भी तो आज आ गई है मुम्बई से।" प्रतिमा ने कहा___"इतना ही नहीं उसके साथ में मेरी बहन की बेटी सोनम भी है।"
"क्या????" अजय सिंह चौंका।
"हाॅ अजय।" प्रतिमा ने बेचैनी से कहा___"वो दोनो ऊपर कमरे में इस वक्त सो रही हैं।"

"अरे तो तुम उनके पास जाओ।" अजय सिंह एकदम से फिक्रमंद हो उठा था, बोला___"और उन दोनो को अच्छी तरह समझा दो कि वो दोनो अपने नाना जी के सामने हालातों के संबंध में किसी भी तरह की कोई बात नहीं करेंगी।"
"ठीक है।" प्रतिमा ने सोफे से उठते हुए कहा___"मैं अभी जाती हूॅ उनके पास और सब कुछ समझाती हूॅ उन्हें।"

ये कह कर प्रतिमा तेज़ तेज़ क़दमों के साथ ऊपर के कमरे में जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई। जबकि उसके जाने के बाद अजय सिंह एक बाथ पुनः असहाय सा सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर पसर गया था। चेहरे पर चिंता व परेशानी के भाव गर्दिश करते हुए नज़र आ रहे थे।

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,,

उधर पुलिस वालों की कार से मैं और आदित्य भी सुरक्षित रितू दीदी के पास फार्महाउस पर पहुॅच गए थे। सारे रास्ते मैं सारी बातों और सारे हालातों के बारे में बारीकी से मनन करता आया था। इस जंग में मुझे दो ताकतों से भिड़ना था। एक तो अपने ताऊ अजय सिंह से और दूसरा मंत्री से। रितू दीदी ने मुझे मंत्री के संबंध में सारी बातें बता दी थी। मैं जान कर खुश था कि रितू दीदी के पास मंत्री के खिलाफ़ ऐसे सबूत हैं कि वो जब चाहे उस मंत्री और उसके साथियों को बीच चौराहे पर नंगा दौड़ने पर बिवश कर दें। इधर वही हाल मेरा भी था। मेरे पास भी अजय सिंह के खिलाफ़ ऐसे सबूत थे कि उन सबूतों के आधार पर अजय सिंह पलक झपकते ही कानून की ऐसी गिरफ्त में पहुॅच जाएगा जहाॅ से बच कर निकलना उसी तरह नामुमकिन था जैसे किसी नदी के दो किनारोउअं आपस मिलना नामुमकिन ही नहीं असंभव होता है।

मेरे मन में कभी कभी ये ख़याल भी आता था कि इस खेल को एक पल में खत्म कर दूॅ। यानी ग़ैर कानूनी धंधा करने और अवैध गैर कानूनी ऐसा पदार्थ रखने के जुर्म में अजय सिंह ऊम्र भर का लिए जेल की सलाखों के पीछे चला जाए जो पदार्थ किसी भी इंसान की ज़िंदगी खत्म करने के लिए काफी थे। मगर मैं ऐसा करना नहीं चाहता था बल्कि मैं तो अजय सिंह को खुद अपने हाथों से ऐसी सज़ा देना चाहता था कि वो मौत के लिए गिड़गिड़ाए मगर मौत उसे नसीब न हो सके।

मुझे इस बात का भी एहसास था कि आज भले ही मंत्री सच्चाई को पूरी तरह न जानता हो मगर देर सवेर उसे सब कुछ पता चल ही जाएगा। वो चुप नहीं बैठेगा बल्कि कुछ तो ऐसा करेगा ही कि उसके गले में फॅसी हुई हड्डी निकल सके और उसके बच्चे सही सलामत उसे वापस मिल सकें। मुझे एहसास था कि ये दोनो ही ताकतें बहुत ही खतरनाक साबित हो सकती है हमारे लिए। हम अभी तक इसी लिए सेफ रह सके थे क्योंकि हमने खुल कर तथा सामने आकर कोई काम नहीं किया था। बल्कि हर काम दोनो ताकतों की ग़ैर जानकारी में एवं छुप कर किया था। मगर हालात ज्यादा दिन तक ऐसे ही नहीं बने रह सकते थे। इस लिए इन सब बातों पर विचार करके मुझे सबसे पहले अपनी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करना था।

फार्महाउस पर हमें छोंड़ कर वो पुलिस के आदमी वापस चले गए थे। रितू दीदी मुझे वापस आया देख कर बेहद खुश हो गई थी। आदित्य तो सीधा कमरे की तरफ चला गया था जबकि मैं और कुछ देर वहीं ड्राइंगरूम में बैठा सबसे बातें करता रहा। नैना बुआ ने मुझसे मुम्बई में सबका हाल चाल पूछा। उसके बाद मैं भी उठ कर कमरे की तरफ बढ़ गया।

कमरे के अटैच बाथरूम में मैं मस्त ठंडे पानी से नहाया तो तबीयत हरी हो गई। नहा कर मैं टावेल लपेटे ही बाथरूम से कमरे में आ गया। जैसे ही मैं कमरे में आया तो बेड पर आराम से बैठी रितू दीदी पर मेरी नज़र पड़ी तो मैं चौंका। दरअसल मैं इस वक्त सिर्फ एक टावेल में ही था। बाॅकी ऊपर का समूचा जिस्म नंगा ही था मेरा। रितू दीदी के सामने इस तरह आ जाने से मुझे शर्म सी महसूस हुई।

"ओहो क्या बात है राज।" सहसा रितू दीदी की चहकती हुई आवाज़ मेरे कानों से टकराई___"क्या बाॅडी शाॅडी बना रखी है तुमने। ओहो सिक्स पैक भी है। पक्का जिम करते होगे तुम, है न?"

"हाॅ थोड़ा बहुत करता हूॅ दीदी।" मैने शर्माते हुए कहा।
"अरे तुम शर्मा क्यों रहे हो राज?" रितू दीदी का चौंका हुआ स्वर___"भला मुझसे किस बात की शरम भाई? मैं तो तेरी बहन हूॅ कोई ग़ैर लड़की नहीं जिससे तू शरमाए।"

"पर दीदी।" मैने असहज भाव से कहा___"मैं कभी आपके सामने इस हालत में नहीं आया न। इस लिए मुझे थोड़ी शरम आ रही है।"

मेरी ये बात सुन कर रितू दीदी बेड से उतर कर मेरे क़रीब आ गई और फिर मेरे चेहरे को अपनी हॅथेलियों के बीच लेते हुए कहा___"ओए ये क्या बात हुई भला? तू मेरा सबसे अच्छा और सबसे हैण्डसम भाई है। तुझे मुझसे किसी भी तरह से शरमाने की या झिझकने की ज़रूरत नहीं है। तुझे पता है राज, अब तक मैं ऐसे रिश्तों के बीच थी जो कहने को तो मेरे अपने थे मगर उन सभी के अंदर पाप और गंदगी भरी हुई थी। ऐसे लोगों से मेरा कोई संबंध नहीं है अब। दुनियाॅ में मेरा अगर कोई अपना है तो वो है तू। मेरी ज़िंदगी का अब एक ही मकसद है भाई और वो है तेरे साथ ग़लत करने वालों सर्वनाश करना और तुझे संसार की हर खुशी देना। मेरा दिल करता है कि मैं तुझ पर कुर्बान हो जाऊॅ मेरे भाई, फना हो जाऊॅ तुझ पर।"

"मुझे पता है दीदी।" मैने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"कि आप मुझसे बहुत प्यार करती हैं। इसका सबसे बड़ा सबूत यही है कि आज आप अपने ही माता पिता के खिलाफ़ हो गई हैं और अपने माता पिता के सबसे बड़े दुश्मन का साथ दे रही हैं। मुझे इस बात की खुशी नहीं है कि आपने मेरे लिए अपने माता पिता से बगावत की है बल्कि इस बात की खुशी है कि मैं जिस रितू दीदी से बात करने के लिए अब तक तरस रहा था वो आज मेरे पास हैं।"

"काश ये सब मैं पहले ही सोच लेती राज।" रितू दीदी एकदम से दुखी होकर मुझसे लिपट गईं। फिर भारी स्वर में बोलीं___"तो इतने सालों तक मैं अपने भाई से दूर न रहती और ना ही ऐसे हालात पैदा होते।"

"हालात तो तब भी ऐसे ही पैदा होते दीदी।" मैने कहा___"क्योंकि इंसानों की फितरत कभी नहीं बदलती। वो अपनी फितरत से मजबूर होकर पहले भी वही करता जो आज कर रहा है।"
"माना कि मेरे पिता अपनी फितरत के चलते वही सब करते जो आज कर रहे हैं।" रितू दीदी ने कहा___"मगर मैं तेरी बात कर रही हूॅ राज। तू मुझे पहले ही तो मिल जाता न? मेरी वजह से तेरे दिल को इतनी तक़लीफ तो न होती जितनी अब तक हुई थी।"

"कोई बात नहीं दीदी।" मैने प्यार से कहा___"जो गुज़र गया उसे भूल जाइये और आज की बात करिये तथा आज के माहौल में खुश रहिए।"
"तू साथ है तो अब मैं खुश ही रहूॅगी राज।" रितू दीदी ने मेरी ऑखों में देखते हुए कहा___"तुझे पता है राज, इसके पहले मैं कभी किसी लड़के के क़रीब नहीं गई। पता नहीं क्यों पर मुझे हर लड़के से एक नफ़रत सी थी। आज के समय में हर लड़का लड़की एक दूसरे के जाने कितने क़रीब आ जाते हैं मगर मुझे इन सब बातों से बेहद चिढ़ थी। मगर विधी से मिलने के बाद और उसकी प्रेम कहानी सुनने के बाद मुझे एहसास हुआ कि आज भी ऐसे लोग हैं जो पाक़ मोहब्बत करते हैं और एक मिसाल बन जाते हैं। मैं बहुत खुश थी मेरे भाई कि ऐसा इंसान मेरा अपना भाई ही है और फिर मुझे एहसास हुआ कि कितनी ग़लत थी मैं जो तुझे बचपन से ही ग़लत समझती आ रही थी। बस उसके बाद जब सबकुछ पता चला तो तेरे लिए मेरे हृदय में और भी जगह हो गई भाई। मेरी अंतर्आत्मा से बस एक ही आवाज़ आती है और वो ये कि अब तुझसे ही मेरी हर खुशी है और दुख भी।"

"जो होता है सब अच्छे के लिए ही होता है दीदी।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"आज मेरी सबसे अच्छी दीदी मेरे पास है और मुझे इतना प्यार करती है। मैं बता नहीं सकता कि इस बात से मैं कितना खुश हूॅ दीदी। मेरा तो मुम्बई जाने का बिलकुल भी मन नहीं था। मगर सबको लेकर जाना भी ज़रूरी था। लेकिन वहाॅ से वापस आपके पास आ जाने के लिए मैं उतावला हो रहा था। मुझे लग रहा था कि मैं पलक झपकते ही आपके पास पहुॅच जाऊॅ।"

"ऐसी बातें मत कर राज।" रितू दीदी की आवाज़ काॅप सी गई। वो मुझसे कस के लिपट गईं और फिर बोली___"तुझे नहीं पता कि तेरी ऐसी बातों से मैं कितनी कमज़ोर हो सकती हूॅ। कहीं ऐसा न हो जाए कि मैं तेरे बिना एक पल भी रह न पाऊॅ।"

"तो क्या हुआ दीदी?" मैंने कहा___"सब कुछ ठीक होने के बाद हम सब एक साथ ही तो रहेंगे। फिर आप ऐसा क्यों कह रही हैं?"
"तू नहीं समझेगा राज।" रितू दीदी ने सहसा बेचैनी से पहलू बदला___"ख़ैर छोंड़ ये सब। मैं ये कह रही हूॅ कि विधी के माता पिता भी यहाॅ आ गए हैं। उनसे भी मिल लेना तुम।"
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