non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:18 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
ख़ैर, जितना जल्दी हो सकता था उतना जल्दी किया गया। यानी फौरन ही सबको तैयार कर चलने के लिए कहा गया। किन्तु यहाॅ किसी को भला क्या तैयार होना था? जो जिन कपड़ों में था वो वैसे ही चलने को तैयार हो गया था। लगभग एक घंटे बाद पवन सिंह बॅगले पर आया। उसने बताया कि रिज़र्व में सिर्फ पाॅच ही टिकटों का इंतजाम हो सका है। बाॅकी की सब वेटिंग या आरएसी की टिकटें मिली हैं। पवन की बात सुन कर अभय ने कहा कोई बात नहीं। जाना तो अनिवार्य ही है फिर चाहे भले ही जनरल में ही क्यों न जाना पड़े। पवन ने बताया कि ट्रेन शाम की है। उससे पहले एक और थी जो कि सुबह नौ बजे की थी मगर वो जा चुकी है।

पवन की इस बात ने सबको निराश व मायूस सा कर दिया। सबके सब अतिसीघ्र यहाॅ से जाना चाहते थे। मगर जाने का साधन तो अब शाम को ही मिलने वाला था। अतः शाम का इन्तज़ार करना ही सबकी नियति थी। कहते हैं कि जब हम बड़ी शिद्दत से चाहते हैं कि वक्त गुज़र जाए तब ऐसा कदापि नहीं होता। बल्कि एक एक पल मानो शदियों में तब्दील हो जाता है। कुछ ऐसा ही आलम था यहाॅ पर।

सारा दिन सबके बीच ऐसा आलम रहा जैसे कोई हमारे बीच का दुनियाॅ से ही जा चुका हो। डायनिंग टेबल पर नास्ते के लिए परोसी गई थाली व प्लेट सब वैसी की वैसी ही रखी रह गई थी। किसी ने उस तरफ देखा तक न था और ना ही कोई अपने कमरे की तरफ गया था। बॅगले के नौकर चाकर तक संजीदा थे इस सबसे। अभय सिंह सुबह से अब तक हज़ारों बार जगदीश ओबराय को फोन लगा चुका था किन्तु उसका नंबर अभी भी नेटवर्क क्षेत्र के बाहर ही बता रहा था।

बड़ी मुश्किल से ही सही किन्तु वक्त अतिमंद्र गति से गुज़र ही गया। ट्रेन के निर्धारित समय से आधा घंटा पहले ही सबके सब रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहुच गए। रुक्मिणी व करुणा गौरी के साथ ही थी। हर कोई उदास व दुखी था। आधे घंटे बाद जब ट्रेन आई तो सब ट्रेन की तरफ लगभग भागते हुए बढ़े। ट्रेन में चढ़ कर हर कोई सीट पर बैठ चुका था। रिज़र्व सीटों पर औरतों और लड़कियों को बैठा दिया गया था। हलाॅकि रिज़र्व में पाच ही सीटें मिली थी। जिनमें गौरी रुक्मिणी करुणा निधी व दिव्या को बैठा दिया गया था। शगुन दिव्या के साथ ही बैठा हुआ था। जबकि पवन अभय व आशा ट्रेन के फर्श पर ही खड़े थे।

गौरी को रुक्मिणी व करुणा ने बड़ी मुश्किल से सम्हाला हुआ था। सारा दिन रोती रही थी वो जिसकी वजह से उसकी ऑखें लाल सुर्ख पड़ चुकी थीं। चेहरे पर ऐसी वीरानी थी जैसे इस चेहरे ने कभी किसी तरह की खुशियो से भरी बहार को देखा ही न हो। कुछ ही समय बाद ट्रेन अपने गंतब्य स्थान के लिए चल पड़ी। ट्रेन के चल पड़ने से सबके मन में थोड़ी राहत के भाव उभर आए थे। आने वाले समय में किसके साथ क्या क्या होने वाला था इसकी कल्पना से ही सबकी रूहें काॅप जाती थी।
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