Free Sex Kahani काला इश्क़!
01-10-2020, 12:39 PM,
RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
फिर हुई सुबह एक ऐसी सुबह जो सब के लिए एक अलग रूप ले कर आई थी| जहाँ एक तरफ मैं और अनु खुश थे क्योंकि आज हमारी बेटी नेहा का जन्मदिन था, ताऊ जी-ताई जी खुश थे की उनके घर में आई खुशियाँ आज दो गुनी होने जा रही है, माँ-पिताजी खुश थे की उनका बहु-बेटा उनके पास हैं और बहुत खुश हैं, चन्दर भैया- भाभी खुश थे की उनकी जिंदगी में एक नया मेहमान आने वाला है और आज उनकी पोती का जन्मदिन है तो दूसरी तरफ जलन, बदले और सब को दुःख पहुँचाने वाली रितिका इसलिए खुश थी की आज वो इस घर रुपी घोंसले के चीथड़े-चीथड़े करने वाली है! वो घरोंदा जो उसे आज तक सर छुपाने की जगह दिए हुआ था आज उसी घरोंदे को वो अपने बदले की आग से जलाने वाली थी|

मैं और अनु नेहा को साथ लिए हुए नीचे आये और सब का आशीर्वाद लिया और नेहा को भी सबका आशीर्वाद दिलवाया| नहा-धो कर हम तीनों पहले मंदिर गए और वहाँ नेहा के लिए प्रार्थना की| हमने भगवान से अपने लिए कुछ नहीं माँगा, ना ही ये माँगा की वो नेहा को हमारी गोद में डाल दे क्योंकि हम दोनों ही इस बात से सम्झौता कर चुके थे की ये कभी नहीं होगा, आज तो हमने उसके लिए खुशियाँ माँगी...ढेर सारी खुशियाँ ...हमारे हिस्से की भी खुशियाँ नेहा को देने को कहा| प्रार्थना कर हम तीनों ख़ुशी-ख़ुशी घर लौटे और रास्ते में नेहा के लिए रखी पार्टी की बात कर रहे थे| सारे लोह आंगन में बैठे थे की रितिका ऊपर से उत्तरी और उसके हाथों में कपड़ों से भरा एक बैग था| उसे देख सब के सब खामोश हो गए, "ये बैग?" ताई जी ने पुछा|

"मैं अपने ससुर जी की जायदाद का केस जीत गई हूँ!" रितिका ने मुस्कुराते हुए कहा और उसकी ये मुस्कराहट देख मेरा दिल धक्क़ सा रह गया और मैं समझ गया की आगे क्या होने वाला है| "आप सब की चोरी मैंने केस फाइल किया था और कुछ दिन पहले ही सारी जमीन-जायदाद मेरे नाम हो गई!" रितिका ने पीछे मुड़ने का इशारा किया तो हम सब ने पीछे पलट कर देखा, वहाँ वही वकील जो उस दिन आया था हाथ में एक फाइल ले कर खड़ा था| "वकील साहब जरा सब को कागज तो दिखाइए!" रितिका ने वकील को फाइल की तरफ इशारा करते हुए कहा और वो भी किसी कठपुतली की तरह नाचते हुए फाइल ताऊ जी की तरफ बढ़ा दी और वपस हाथ बाँधे खड़ा हो गया| ताऊ जी ने वो फाइल मेरी तरफ बढ़ा दी, चूँकि मेरी गोद में नेहा थी तो मैंने अनु से वो फाइल देखने को कहा| सबसे ऊपर उसमें कोर्ट का आर्डर था जिसमें लिखा था की रितिका मंत्री जी की बहु उनकी सारी जायदाद की कानूनी मालिक है| अनु ने ये पढ़ते ही ताऊ जी की तरफ देखते हुए हाँ में गर्दन हिला दी| "हरामजादी! तूने....तेरी हिम्मत कैसे हुई?" ताऊ जी का गुस्सा आसमान पर चढ़ गया था और वो लघभग रितिका को मारने को आगे बढे की पिताजी ने उन्हें रोक लिया| "तुझे पता है न उस दौलत की वजह से ही मंत्री का खून हुआ? और तू उसी के लालच में पड़ गई?" पिताजी ने कहा|

"आप सब को तो मेरी चिंता है नहीं, तो मैंने अगर अपने बारे में सोचा तो क्या गुनाह किया? मेरी भी बेटी है, कल को उसकी पढ़ाई का खर्चा होगा, शादी-बियाह का खर्चा होगा वो कौन करेगा? अब आपके पास उतनी जमीन-जायदाद तो रही नहीं जितनी हुआ करती थी, सब तो आपने इस....मनु की शादी में लगा दी!" रितिका बोली और उसकी बात सुन सब का पारा चढ़ गया|

"चुप कर जा कुतिया!" भाभी बोलीं|

"किस हक़ से मुझे चुप होने को कह रही हो? मैं तुम्हारी बेटी थोड़े ही हूँ? तुमने तो मुझे नौकरानी की तरह पाल-पोस कर बड़ा किया अब मेरी बेटी को भी नौकरानी बनाना चाहती हो?" रितिका भाभी पर चिल्लाते हुए बोली ये सुनते ही चन्दर भैया ने रितिका की सुताई करने को लट्ठ उठाया; "मुझे छूने की कोशिश भी मत करना, तुम्हें सिर्फ नाम से पापा कहती हूँ! बेटी का प्यार तो तुमने मुझे कभी दिया ही नहीं! मुझे अगर छुआ भी ना तो पुलिस केस कर दूँगी!" रितिका ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा पर भैया का गुस्सा उसकी धमकी सुन और बढ़ गया| मैंने और भाभी ने उन्हें शांत करने के लिए उन्हें रोक लिया| भाभी उनके सामने खड़ी हो गईं और मैंने पीछे से अपने एक हाथ को उनकी छाती से थाम लिया|

"तो इतने दिन तू बस ड्राम कर रही थी!" ताई जी बोलीं|

"हाँ!!! आज नेहा का जन्मदिन है और सब के सब यहाँ हैं जिन्होंने कभी न कभी मेरा दिल दुखाया है और तुम सब लोगों से बदला लेने का यही सही समय था| जब से बड़ी हुई हमेशा मैंने सब के ताने सुने, कोई पढ़ने नहीं देता था सब मुझसे ही काम करवाते थे! थोड़ी बड़ी हुई तो मुझे लगा ये (मेरी तरफ ऊँगली करते हुए) शायद मुझे समझेगा पर इसके अपने नियम-कानून थे! Not to mention you’re the one who cursed me! I haven’t forgotten that… हमेशा इस घर के नियम-कानून से बाँधे रखा...पर अब नहीं! अब मेरे पास पैसा है और मैं अपनी जिंदगी वैसे ही जीऊँगी जैसे मैं चाहती हूँ!” रितिका ने अपने इरादे सब के सामने जाहिर किये पर ये तो बस एक झलक भर थी|

"तुझे क्या लगता है की अपने बचपन का रोना रो कर तू सब को चुप करा सकती है? भले ही किसी ने तुझे बचपन से प्यार नहीं दिया पर जिसने किया उसे तूने क्या दिया याद है ना? तुझे सिर्फ मुझसे नफरत है तो बाकियों पर ये अत्याचार क्यों कर रही है? इतनी मुश्किल से इस घर में खुशियाँ आई हैं और तू उनमें आग लगाने पर तुली है!" मैंने गुस्से में कहा| "तेरी माँ के मरने के बाद मैंने ही तुझे संभाला था, तुझे तो याद भी नहीं होगा! बेटी तुझे किस बात की कमी है इस घर में?" माँ ने कहा|

"याद है....आपके सुपुत्र ने ही बताया था और इसीलिए आपसे मुझे उतनी शिकायत नहीं जितनी इन सब से है! मेरा दम घुटता है यहाँ!" रितिका अकड़ कर बोली|

"तो निकल जा यहाँ से! और आज के बाद दुबारा कभी अपनी शक्ल मत दिखाइओ!" चन्दर भैया ने लट्ठ जमीन पर फेंकते हुए कहा| "मेरे ही खून में कमी थी....या फिर ये तेरी असली माँ का गंदा खून है जो अपना रंग दिखा रहा है!" भैया ने कहा और रितिका से मुँह मोड लिया! रितिका चल कर मेरे पास आई जबरदस्ती नेहा को खींचने लगी| नेहा ने मेरी कमीज अपने दोनों हाथों से पकड़ राखी थी, रितिका ने अपने हाथों से उसकी पकड़ छुड़ाई| इधर नेहा को खुद से दूर जाते हुए देख मेरी आँखों से आँसू बहने लगे, अनु का भी यही हाल था और वो लगभग रितिका से मूक जुबान में मिन्नत करने लगी| पर रितिका पर इसका रत्तीभर फर्क नहीं पड़ा, नेहा ने रोना शुरू कर दिया था और रितिका उसी को डाँटते हुए घर से निकल गई| बाहर उसकी शानदार काले रंग की Mercedes खड़ी थी जिसमें बैठ वो अपने हवेली चली गई और इधर सारा घर भिखर गया|

पिताजी और ताऊ जी आंगन में पड़ी चारपाई पर सर झुका कर बैठ गए, माँ और ताई जी रसोई की दहलीज पर बैठ गए, भाभी और चन्दर बरामदे में पड़ी चारपाई पर बैठ गए और मैं और अनु स्तब्ध खड़े रहे! जो कुछ अभी हुआ उससे हम दोनों के सारे सपने चूर-चूर हो गए थे| माँ ने हम दोनों को 2-3 आवाजें मारी पर हमारे कानों में जैसे वो आवाज ही नहीं गई| आखिर भाभी ने उठ कर हमारे कन्धों पर हाथ रखा तब जा कर हमें होश आया| अनु ने मेरी तरफ देखा तो मेरी आँखें आंसुओं की धारा बहा रही थी| वो कस कर मुझसे लिपट गई और जोर-जोर से रोने लगी! भाभी ने उसके कंधे पर हाथ रख कर उसे शांत करवाना चाहा पर वो चुप नहीं हुई| वो रो रही थी पर मैं तो रो भी नहीं पा रहा था, दिल में आग जो लगी हुई थी! आज तीसरी बार मैंने नेहा को खोया था और ये दर्द दिल में आग बन कर सुलग उठा था| मैंने अनु को खुद से अलग किया और तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ा तो अनु ने एकदम से मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक लिया| वो जानती थी की मैं रितिका की जान ले कर रहूँगा; "प्लीज....अभी आपकी जर्रूरत… यहाँ इस घर को है!" अनु ने रोते हुए कहा और कस कर मेरा हाथ थामे रही| उसकी बात सही थी, पहले मुझे अपने परिवार को संभालना था उसके बाद मैं रितिका की हेकड़ी ठिकाने लगाने वाला था| मैंने हाँ में सर हिला कर उसकी बात मान ली और वापस आंगन में आ गया|
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