antervasna चीख उठा हिमालय
03-25-2020, 01:28 PM,
#60
RE: antervasna चीख उठा हिमालय
विजय न पूछा----" तुम पर कहां से आ गये ?"


इस प्रश्न पर क्रिरुटीना बौखला गई । फिर स्वयं को संभालने का प्रयास करती हुई बोली---"मुझे मालूम था न भैया कि ये आ रहे हैं । यह भी पता था कि सफेद के अलावा किसी रंग का कपडा नहीं पहनते है ! सो...........सो मैं खरीद.....।


बात पूरी न कर सकी क्रिस्टीना । हलक सुख गया उसका !


'"यह्र तो बड़ा अच्छा किया तुमने । वतन सीधा क्रिस्टीना से बोला---;-"कपडे बदलना मेरे लिए इस समय किसी भी कार्य से अधिक आवश्यक है । अगर कपडे मैं नहा… कर बदलूं तो ओर भी अधिक अच्छा रहे ।"



यह अनुभूति करते ही कि यह वाक्य बतन ने सौधा उसी कहा है क्रिस्टीना का दिल जोर-जोर से धड़क उठा !


बीच में टपक पड़ा विजय---"क्यों" नहीं-क्यों नहीं बटन प्यारे, नहाना जरूर, चाहिये । आओ, मैं तुम्हें बाथरूम दिखाता हूं !



सोफे पर से उठकर खडे हो गये विजय की कलाई पकडी विकास ने एक झटका देकर सोफे पर विजय को वापस विठाता हुआ विकास वोला------"अाप बैठो गुरु, क्रिस्टी वतन को बाथरुम बतला देखी !"

"'अजी नहीं !" विजय ने खड़े होने का अभिनय किया ---"हम बतायेंगे !"
"'नहीं गुरु !" विकास ने वापस खीचा



-"अजी नहीं ।'" विजय ने पुन: उठना चाहा तो इस बार विकास के साथ बागारोफ ने भी विजय को पकड़कर खींचते हुये कहा…"अबे बोलती पर ढक्कन लगा ढक्कनी के ! मुहब्बत की खिचडी पक रही है तो पकने दे । तु क्यों दालभात में मूसलचन्द बनता है ? जा छिनाल की ताई-तू दिखा इस भूतनी वाले को बाथरूम का रास्ता ! इस चिडी के नटवे को हमने पकड़ रखा है !"



विजय की इस एक्टिंग पर वतन और क्रिस्टीना भी बिना मुस्कराये नहीं रह सके ।



-"'आप भी खूब हैं चचा !" कहता हुआ वतन उठ खड़ा हुआ-" मैं नहाने जा रहा हूँ ! क्रिस्टोना----बताना बाथरुम ।"



दृष्टि झुकाये कमरे से बाहर की तरफ चल दी क्रिस्टीना ।

उसके पीछे वतन था !


रहरहकर विजय विकास और बागारोफ के बन्धनों से मुक्त होने का प्रयास कर रहा था----साथ ही चीख रहा था -------"अबे छोडो मुझे ! बटन को बाथरुम का रास्ता मैं दिखाऊँगा !



"काँफी पी चटनी के वर्ना गंजा कर दूंगा ।" बागरोंफ उसे रोकता हुआ बोला !



दरवाजा पार करके वतन और क्रिस्टीना ओझल हो गये । तो ढीला पड़ गया विजय । बागारोफ की तरफ देखकर नाराजगी जैसे शब्दों में बेला-"ये तुमने अच्छा नहीं किया चचा मेरे पेट में दर्द होने लगा है ।''

" अबे चुपचाप कॉफी पी चोट्टी के ।"


कप उठकर कॉफी का एक पूंट भरा विजय ने और फिर विकास से वोला…"तुम्हें तो मैं भुगत लूँगा दिलजले !"


इधर यह मोज-मस्ती आ रहीं थी और उधर…वतन और क्रिस्टीना ?



उसके पीछे-पीछे चल रहा था वतन ! गर्दन झुकाये क्रिस्टीना धीरे-धीरे चली जा रही थी !
अचानक वतन दो लम्बे कंदमों के साथ उसके बराबर में अा गया !

उसके साथ चलता हुआ बोला--" क्रिस्ट्री !"



ठीठककर, दृष्टि झुकाये हुए ही क्रिस्टीना ने कहा…" जी !"



"मेरी तरफ देखो ।" उसके समीप ही खड़े वतन ने गम्भीर स्वर में कहा ।



न जाने कैसी शक्ति थी वतन में कि क्रिस्टीना कों धडकता हुआ दिल उसकी पसलियों में टकराने लगा है ! कम्पित से नेत्र उठे ! ऊपर, वतन के चेहरे की तरफ़ देखा उसने ! एक अनजाने से आदेशबश उसका सारा शरीर कांप रहा था ।


"त----तुम मुझे कैसे जानती हो !" वतन… ने गंभीर स्वर में पूछा ।


हलक सूख-सा गया था क्रिस्टीना का उसने वोलना चाहा है किन्तु स्वर अधरों से बाहर ना निकला !

"जवांब दो क्रिस्टीना-"कैसे जानती हो तुम मुझे ?"


क्रिस्टीना ने साहास समेटा धीमे स्वर में बोली…आपकौ कौन नहीं जानता ?"


"जो मुझे जानता है वह मेरी पूरी कहानी से भी परिचित होता है !"


" अनभिज्ञ मैं भी नहीं !"




" फिर भी मेरी तरफ इस विशेष दृष्टि की त्रुटि क्यों कर रही हो तुम ?" शान्त सागर जैसे गंभीर स्वर में वतन …" तुम भी तो जानती होंगी कि मैं उन अभागों में हूं जिससे जो प्रेम करेगा वह मृत्यु की गोद में सो जायैगा !" क्रिस्टीना देख रही थी-बोलते हुये वतन के मस्तक पर बल उभर आया था ---- वह कह रहा था---" अपने परिवार से प्रेम था मुझे अपनी मां से, बहन और पिता से मगर वे जीवित न रहे ! बूढी दादी मां से प्रेम करके उसे भी मार डाला मैंने अब----अव किसी से प्रेम करना नहीं चाहता । किसी को मारना नहीं चाहता ! किसी के भी प्रति मेरे ह्रदय मे प्रेम उमड़ने का तात्पर्य हैं, उसके लिये मृत्यु का सृजन करना ! मैं ओर अधिक हत्यायें नहीं, कर सकता ।"
"आपकी यह धारणा त्रुटिपूर्ण है !" क्रिस्टीना ने धीरे से कहा--- "आपके ह्रदय का भ्रम मात्र !"


"नहीं क्रिस्टी ये भ्रम नहीं, सत्य है !" वतन ने कहा---"कठोर सत्य है कि जिससे मैं प्रेम करूंगा, वह जीवित नहीं रह सकेगा क्रिस्टी !" वतन की आवाज भर्रा गई---" मैं और अधिक धाव न सह सकूगां ! मैं तुम्हारे प्रेम का उत्तर प्रेम से नहीं दे सकुंगा !"




"उतर की अभिलाषा किसे है ?" क्रिस्टीना ने कहा --- ईश्वर का उपासक यह कब चाहता है कि ईश्वर उसकी उपांसना करे ?"

" समझने का प्रयास करो क्रिस्टी !"


"यह प्रयास करने की आवश्यकता आपको है !" कहने के साथ ही क्रिस्टीना आगे बढ़ गई । बाथरुम की ओर सकेंत करके बोलीट---"वह बाथरुम है, उसी के अन्दर अपके कपड़े भी उपस्थित हैं ! नहाकर परिवर्तित कर लीजिएगा ।"



वतन उसे देखता रह गया !



सिर झुकाये वह तेजी से गैलरी में बढ़ी जा रही थी ।


"क्रिस्टी !" वतन ने पुकारा !"


ठिठकी क्रिस्टीना, मुड़ कर वतन की अोर देखा । कम्पित स्वर में बोली-"क्षमा करें, आपके उत्तर की अभिलाषी, नहीं मैं !"



"मैं तुम्हें कुछ समझाना चाहता हूं !"



" यही न कि ईश्वर की उपासना त्याग दूं मैं ?" धीरे से क्रिस्टीना ने कहा--------परन्तु क्षमा करें । चमन पर शासन होगा आपका । चमन के नागरिकों के हृदय पर भी राज्य करते हैं आप--किन्तु क्रिस्टी के ह्रदय पर आप का कोई अधिकार नहीं है !

क्रिस्टी अंपने मनो-मस्तिष्क में किसी भी प्रकार के विचारों को स्थायित्व प्रदान करने हेतु स्वतन्त्र है । यह कहने का आपको कोई अधिकार नहीं कि अपने ह्रदय में ईश्वर की उपासना के विचारों को त्याग दूं । यह मुझ पर अत्याचार होगा और अत्याचार सहना क्रिस्टी का काम नहीं है !" कहकर वह मुडी और आगे बढ़ गयी !



" सुनों क्रिस्टी, मेरी बात सुनो ।" वतन ने पुकारा !

परन्तु इस बार रुकी नहीं क्रिस्टीना, पूर्ववत आगे वढ़ती चली गई !
अपने स्थान पर खडा वतन उसे उस समय तक देखता रहा जब तक कि गैलरी के मोड़ पर घूमकर ओझल न हो गई । वतन के मस्तक पर पड़ा बल गहरा हो गया । फिर न जाने किन विचारों के वशीभूत उसका चेहरा सुर्ख पड़ गया ।


सुर्ख चेहरा लिये वह लम्बे-लम्बे कदमो के साथ बाथरुम में समा गया !



उधर जब क्रिरुटीना ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया ।


नारा-सा लगाया विजय ने---" तो पक गई प्रेम की खिचडी ?"



" आपका तो हर सम्य मजाक सूझा करती है विजय भैया !" कहती हुई सोफे अर बैठ गई क्रिस्टीना ।


कॉफी का मग उठाया उसने और होंठो से लगा लिया ।


इधर उसने एक घूंट लिया और उधर विजय ने कहना शुरू किया------------"'मजाक नहीं क्रिस्टी इस गंजे चचा की कसम ।" विजय के स्वर में बंनावटी गम्भीरता थी------------"ये इस्क का रोग बडा भयानक है । एक बार हमें कल्लो..."




"अबे चुप !" बीच में ही डाटा बागारोफ ने---"तू साले क्या जाने कि…।"



"नहीं चचा, पिछले जन्म में कान्ता से इश्क किया था गुरू ने !"

इस प्रकार तीनों ही ऊलजलूल बातें करते रहे । इधर उनकी कॉफी समाप्त हुई, उधर दूध जैसे सफेद कपडे पहने वतन प्रविष्ट हुआ ।



एकटक वतन के सौन्दर्य को देख रही थी क्रिस्टी ।


वतन उससे नजर बचाने का प्रयत्न कर रहा था !


.'"चचा ! विजय ने नारा सा लगाया---" मामला तो साला उल्टा हो गया है क्रिस्टी मर्द बन गयी अौर अपना बटन औरत !"
जलपोत ने बन्दग्गाह पर लंगर डाला तो कई सैनिक अंधिकारियों के साथ सांगपोक और सिंगसी भी जलपोत पर चढ़ गये । इस बात से उनका 'माथा' ठनका था कि डेक पर कोई भी आदमी नहीं चमका था !



एक साधारण-सी बात थी के कि जलपोत जब बन्दरगाह पर पहुंचे तो यात्री डेक पर आजाते हैं, मगर डेक सूना पड़ा था ! कल्पना तो उन्होंने यहीं की थी कि कम-से-कम हवानची को तो होना ही चाहिये था ।



किन्तु पह अप्रिय घटना क्या हो सकती है, यह बात सांगपोक के-दिमाग के दायरे से बाहर थी ।



यह विचार भी उसके दिमाग से चकराया था कि अगर रास्ते में कोई अप्रिय घटना घटी है तो जलपोत के सुरक्षित यहां पहुंचने का क्या मकसद है?



फिर भी सांगपोक ने सैनिकों को सचेत कर दिया ।


सर्थप्रथम वे चालक-कक्ष में पहुंचे ।।

दो चालकों को बुत की भांति अपनी सीटों पर बैठे पाया !


"क्या बात है इस तरह क्यों बठे हो तुम ?" -सांगपोक ने पूछा !



अपने साथियों को अपने पास देखकर उनके पीले चेहरों की रंगत बदली । उन्होंने बताया कि, उनकेसभी साथियों को एक कक्ष में बन्द कर दिया गया है ।



विजय ने उन्हें जलपोत चलाते रहने का आदेश देते हुए यह कहा था कि अगर वे एक पल के लिये भी सीट से उठे अथवा अन्य किसी प्रकार की अनुचित हरकत करने की चेष्टा की तो वह टी.बी हाल में बैठा उन्हें देख रहा है । इसी डर से उनमें से कोई हिला तक नहीं ! जलपोत को सीधा यहाँ ले आये । अब भी बुत के समान इसीलिये बैठे थे, क्योंकि, उनकी दृष्टि में उन पर नजर रखी जा रही थी !
उनके उलटे-सीधे बयान से सांगपोक समझ गया कि रास्ते में जलपोत पर क्या घटना घटी है !


सिंगसी और कई अन्य अधिकारियों सहित सांगपोक टी वी हॉल की तरफ वढ़ गया है ! वहां पहुंचने के लिये पहले वे उस हॉल से गुजरे जिसमें वतन ने व्यूह का कमाल दिखाया था !




वहाँ की स्थिति कां निरीक्षण करता हुआ साँगपोक अनुमान लगाने का प्रयास करने लगा कि क्या कुछ हुआ होगा !!
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RE: antervasna चीख उठा हिमालय - by sexstories - 03-25-2020, 01:28 PM

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