XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
05-30-2020, 02:07 PM,
#66
RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
डॉली अपने कमरे में पलंग पर अकेली लेटी थी। कमरे की खिड़की हवा से बार-बार खुल जाती और उसके किवाड़ जोर-जोर से बजने लगते। डॉली की आंखों में नींद न थी। उसके हृदय में भी एक तूफान-सा उठा हुआ था और वह बार-बार लेटे हुए अपने बिस्तर पर करवटें ले रही थी। खिड़की के किवाड़ एक बार फिर हवा से खुल गए। डॉली अपने बिस्तर से उठी और खिड़की बंद कर दी। कुछ देर वह वहीं खड़ी रही। फिर धीरे-धारे दबे पांव पास वाले कमरे के दरवाजे कर गई और कान लगाकर सुनने लगी। एकदम सुनसान था। उसने धीरे-से किवाड़ खोलने का प्रयत्न किया। दरवाजा अंदर से खुला था। उसने सोचा कि शायद शंकर ने जान-बूझकर खुला छोड़ा है। वह धीरे-धीरे बढ़ती हुई शंकर के बिस्तर के समीप पहुंची। वह सो रहा था। डॉली ने कोमल स्वर में पुकारा, 'शंकर! शंकर!'

शंकर आवाज सुनते ही घबराकर उठा "कौन है?'

'मैं डॉली।'

'क्यों, क्या बात है? सब कुशल तो है?'

'सब ठीक है।'

"फिर तुम इतनी रात को यहां....।'

'तो क्या मेरा आना तुम्हें अच्छा नहीं लगा?'

'परंतु....।'

'मैं जानती हूं तुम पूछोगे कि क्यों? मैं अब तुमसे कुछ नहीं छिपाऊंगी। शंकर मैं तुमसे प्रेम करने लगी हूं। चाहती थी कि इस रहस्य को तुम पर प्रकट करू। मेरा अनुमान है कि तुम भी मुझसे प्रेम करते हो.... परंतु तुम्हारे मौन ने तुमसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं बंधाई।'

शंकर चुपचाप सुन रहा था और डॉली कहे जा रही थी 'मैं जानती हूं कि तुम कर्तव्य और समाज के भय से यह साहस न कर सके। परंतु आज लज्जा और भय की जंजीरें तोड़ती हुई मैं तुम्हारे पास आ गई हूं।' डॉली कहते-कहते शंकर के पास बैठ गई।

शंकर ने दियासलाई सुलगाई और लैंप जलाने लगा। डॉली ने उसका हाथ रोकते हुए कहा, 'इसकी क्या आवश्यकता है?

'केवल मन की तसल्ली के लिए। मैं कहीं स्वप्न तो नहीं देख रहा।' लैंप जलते ही कमरे में प्रकाश हो गया। शंकर ने ध्यान से डॉली को देखा, डॉली के मुख पर एक अजीब-सी मादकता छाई थी।

'क्यों शंकर, अब तो विश्वास हुआ कि मैं ही हूं?' डॉली ने शंकर के कुछ और पास आते हुए कहा। उसकी आंखें लाल थीं मानों नशे में डूबी हों। शंकर अभी तक चुपचाप उसकी ओर देख रहा था। "किस गहरे विचार में डूबे हो शंकर? मैं तुम्हारे पास चलकर आई हूं।'

'बहुत-बहुत धन्यवाद।'

'देखो, लैंप बुझा दो, रोशनी मेरी आंखों को काटती है।' डॉली ने अंगड़ाई लेते हुए कहा।

शंकर गंभीर आवाज में बोला, 'डॉली तुम भूल कर रही हो कि तुम एक विवाहिता स्त्री हो और वह भी मेरे एक प्रिय मित्र की पत्नी।'

'मैं जानती हूं। परंतु कहते हैं न कि प्रेम और युद्ध के मैदान में सब कुछ उचित होता है।'

शंकर ने कोई उत्तर न दिया और उठकर दरवाजे के पास जाकर खड़ा हुआ। वह पर्दा हटाकर देखने लगा।
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RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर - by hotaks - 05-30-2020, 02:07 PM

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