स्पर्श ( प्रीत की रीत )
डॉली अब भी चिल्ला रही थी और मुक्ति के । लिए संघर्ष कर रही थी किन्तु इस प्रयास में उसे सफलता न मिली और युवक ने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया। उसका ध्यान अब आने वाली गाड़ी की ओर न था। किन्तु इससे पूर्व कि वह डॉली को लूट पाता-सामने से आने वाली गाड़ी ठीक उसके निकट आकर रुक गई। गाड़ी रुकते ही युवक के साथी द्वार की ओर बढ़े-किन्तु गाड़ी वाला स्थिति को समझते ही दूसरे द्वार से बाहर निकला और उसने फुर्ती से आगे बढ़कर अपनी रिवाल्वर उन लोगों की ओर तान दी। साथ ही गुर्राकर कहा- 'छोड़ दो इसे। नहीं तो गोलियों से भून दूंगा।'
युवक ने डॉली को छोड़ दिया।
डॉली उठ गई। उसकी आंखों से टप-टप आंसू बह रहे थे। चारों युवक सन्नाटे जैसी स्थिति में खड़े थे। अंत में उनमें से एक ने मौन तोड़ते हुए गाड़ी वाले से कहा- 'आप जाइए बाबू! यह हमारा आपसी मामला है और वैसे भी इंसान को किसी के फटे में टांग नहीं अड़ानी चाहिए।'
गाड़ी वाले ने एक नजर डॉली पर डाली और फिर युवकों से कहा- 'यह गाड़ी तुम्हारी है?'
'हां।'
'इधर कहां से आ रहे हो?'
'पर्वतपुर से।'
'तो अब तुम लोगों की भलाई इसमें है कि अपनी गाड़ी में बैठो और फौरन यहां से दफा हो जाओ।'
'बाबू साहब! आप हमारा शिकार अपने हाथ में ले रहे हैं।' 'तुम लोग जाते हो-अथवा।'
गाड़ी वाले ने अपनी रिवाल्वर को सीधा किया। चारों युवक गाड़ी में बैठ गए।
फिर जब उनकी गाड़ी आगे बढ़ गई तो युवक ने रिवाल्वर जेब में रखी और डॉली के समीप आकर उससे बोला- 'आप यहां क्या कर रही थीं?'
'शहर जा रही थी।' डॉली ने धीरे से उत्तर दिया।
'इस समय?'
'विवशता थी-काम ही कुछ ऐसा था कि...।'
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