Sex Hindi Story स्पर्श ( प्रीत की रीत )
06-08-2020, 11:34 AM,
#21
RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
एकाएक अपने कपोल पर किसी के गर्म होंठों का स्पर्श पाकर डॉली की नींद टूट गई। आंखें खोलकर देखा शिवानी बिस्तर पर झुकी उसके कपोल को चूम रही थी। डॉली ने उसे शरारत से अपने ऊपर खींच लिया और बोली- 'क्या कर रही थी?'

'प्यार कर रही थी तुझे।'

'प्यार करने के लिए कोई और नहीं मिला क्या?'

'मिले तो बहुत।'

'फिर?'

'किसी पर दिल न आया।'

'और मुझ पर आ गया?'

'सच कहूं?'

'तू बहुत सुंदर है।'

'अच्छा ।'

'सच कहती हूं। तू लड़का होती तो मैं तुझसे शादी कर लेती।' शिवानी ने कहा और दूसरे ही क्षण वह अपनी कही हुई बात पर स्वयं ही खिलखिलाकर हंस पड़ी। उसी समय बाहर से राज की आवाज सुनाई पड़ी- 'शिवा! भई हमारी चाय कहां है?'

"अभी लाती हूं भैया!' शिवानी ने कहा। फिर डॉली से अलग होकर वह उससे बोली- ‘भैया को चाय दे आऊं।' कहकर वह चली गई।

उसके जाने के पश्चात डॉली उठी और दर्पण के सामने आकर अपने बाल संवारने लगी। कल तो जय के चले जाने के पश्चात उसे अपना होश ही न रहा था। न कुछ खाया और न ही दर्पण में अपना मुख देखा। दो दिन पहले पहने हुए कपड़े भी कितने गंदे हो गए थे।

सहसा वह चौंक गई।

दर्पण में उसने देखा। कोई व्हील चेयर पर बैठा उसी की ओर देख रहा था। डॉली ने शीघ्रता से ब्रुश रख दिया और मुड़कर बोली- 'ओह, आप!'

'राज-राज वर्मा।'

डॉली ने हाथ जोड़ दिए।

राज उसके अभिवादन का उत्तर देकर बोला 'और आप-आप डॉली जी हैं।'

'जी।'

'खड़ी क्यों हैं-बैठिए।'

डॉली बैठ गई। राज अपनी चेयर को मेज के पास ले गया। उसी समय शिवानी चाय ले आई। चाय के प्याले मेज पर रखकर वह राज से बोली- 'भैया! यह ही है मेरी सहेली।'

'परिचय हो चुका।'

'फिर तो बहुत तेज निकले आप। मुझसे पूछे बगैर ही परिचय कर लिया। खैर चाय लीजिए।'

'सॉरी बाबा!' राज ने एक बार डॉली की ओर देखा फिर प्याला उठाकर वह शिवानी से बोला 'आगे से ऐसी भूल न होगी। वैसे-तुम्हारी यह सहेली करती क्या हैं?'

'शैतानी।' शिवानी को मजाक सूझ गई, बोली 'जानते हैं एक बार इसने क्या किया?'

'कहीं से एक बिल्ली पकड़ी और उसके गले में घंटी बांध दी। अब बेचारी बिल्ली परेशान। कहीं भी चूहों की तलाश में निकले तो घंटी पहले बजे। परिणाम यह हुआ कि बेचारी भूखों मर गई।'

'झूठी कहीं की।' डॉली बोली- 'मैंने ऐसा कब किया?'

'हम भी यही सोच रहे थे।' राज बोला- 'बात यह है कि बिल्ली के गले में घंटी बांधना कोई आसान काम नहीं होता।'

डॉली ने इस पर कुछ न कहा।

फिर तीनों ही मौन चाय की चुस्कियां लेते रहे।

एकाएक शिवानी ने मौन को तोड़ा। राज से वह बोली- 'भैया! आज तो आप अखबार के दफ्तर भी जाएंगे न?'

'क्यों?'

'आपने विवाह का जो विज्ञापन दिया है-उसका परिणाम देखने के लिए।'

'उस विज्ञापन में तो सक्सेना का पता लिखा है। डाक उसी के पते पर आएगी।'

डॉली यह सुनकर चौंक गई। अखबार में जो विज्ञापन उसने पढ़ा था-उसमें 'संपर्क करें' के पश्चात विनोद सक्सेना का नाम लिखा था।
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RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत ) - by hotaks - 06-08-2020, 11:34 AM

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