RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
"कोई नहीं आएगा।" अलका ने कुछ ऐसे सख्त अंदाज में कहा कि चाहकर भी सुरेश कुछ न बोल सका—हां, अलका को विशिष्ट दृष्टि से उसने देखा जरूर और मर्द की दृष्टि से ही उसके समूचे इरादों को भांप लेने वाले नारी सुलभ गुण के कारण अलका भांप गई कि वह उस पर बुरी नजर रखता है।
अलका के सारे जिस्म में चिंगारियां सुलग उठीं।
मुखड़े पर नफरत के चिन्ह उभर आए, उसकी नजरों से सम्बन्धित कोई बात न करके पूछा—"मिक्की की मौत के बारे में क्या बात थी?"
"भइया के पास आने पर तुम्हें कई बार देखा, महसूस किया और भइया ने बताया भी कि तुम उससे बेइन्तहा प्यार करती थीं—मगर आज से पहले कभी यकीन न कर सका—सोचा करता था कि भइया तुम्हें लेकर भ्रमित हैं, आज तुम्हारा विलाप देखकर मेरा भ्रम टूटा.....तुम सचमुच मिक्की भइया को बहुत प्यार करती थीं।"
"और आप शायद बिल्कुल नहीं।" अलका ने कटाक्ष किया।
"क.....क्या मतलब?" सुरेश बौखला गया।
लगातार उसे घूरती रही अलका बोली— "अंत्येष्टि तक तो आपके चेहरे पर थोड़ा-बहुत दर्द था भी सुरेश बाबू, मगर इस वक्त 'अफसोस' तक नहीं है, इससे लगता है कि दिन में भी आप सिर्फ एक्टिंग कर रहे थे।"
"ऐसा न कहो, अलका।" उसने घबराकर अपना चेहरा दूसरी तरफ घूमा लिया—जेब से ट्रिपल फाइव का पैकेट निकाला, सोने के लाइटर से सिगरेट सुलगाने के बाद कमरे के वातावरण को दूषित करता हुआ बोला— "मिक्की भइया की मौत का सबसे ज्यादा आघात मुझे लगा है।"
"क्यों?"
"क्योंकि मैं खुद को उनका हत्यारा समझता हूं।"
अलका ने जहरीले स्वर में पूछा—"क्यूं भला?"
"भूल मुझसे हुई, मैंने उनकी बातों पर यकीन न किया—अगर मैं उन्हें दस हजार रुपये दे देता तो ऐसा कभी न होता, अलका।"
"जो आरोप सामने वाला आप पर लगा सकता है।" अलका के होंठों पर कुटिल मुस्कान उभर आई—"उसे पहले ही, अपने मुंह से कहकर 'हल्का' कर देने के हुनर में आप अमीर लोगों को महारत हासिल होती है।"
"ऐसा मत कहो, अलका।"
"आप भी ये बेमानी बातें छोड़िए सुरेश बाबू।" अलका ने रुखाई के साथ कहा— "वे बातें करो जिनके लिए आए थे—मुझे सबकुछ मालूम है, वह भी जो मिक्की ने किया और वह भी जो आपने किया—हालांकि मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है—मिक्की का आप पर कोई पैसा चाहिए नहीं था जो आप उसे देते, मगर रहटू के सोचने का अंदाज दूसरा है, वह आपको मिक्की का हत्यारा मानता है और मुझे पूरा यकीन है कि यदि आप इस तरह उसके सामने अकेले पहुंच गए तो वह अपने दोस्त की मौत का बदला लेकर ही रहेगा—भले ही कानून उसे फांसी पर क्यों न चढ़ा दे।"
सुरेश ने विषय परिवर्तन किया—"मैं तुम्हारे पास एक प्रस्ताव लेकर आया था।"
"प्रस्ताव?"
"हां—मुझे यकीन है कि तुम उस प्रस्ताव को कबूल कर लोगी, क्योंकि मेरे पास वह सबकुछ है जिसकी एक लड़की कल्पना किया करती हैं—बेहिसाब दौलत, कोठी, विदेशी कारें, एक-से-एक कीमती कपड़ा, जेवर, नौकर-चाकर—ऐसी कोई चीज नहीं अलका जो मेरे पास न हो।"
अलका के नेत्र सिकुड़ गए, सबकुछ समझकर भी उसने एकदम से जाहिर न किया, बोली— "कहना क्या चाहते हो सुरेश बाबू?"
"म.....मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं।"
अलका का समूचा जिस्म मानो आग की लपटों में घिर गया, जबड़े भींचकर बड़ी मुश्किल से उसने गुस्से पर काबू पाया। फिर भी, मुंह से गुर्राहट निकल ही पड़ी—"आप शादीशुदा होकर भी ऐसी बात कह रहे हैं, सुरेश बाबू, विनीता का क्या होगा?"
"म.....मैं उससे तालाक ले लूंगा।"
"तलाक?"
"हां, इसमें मुझे कोई दिक्कत नहीं आएगी, क्योंकि विनी भी मुझ पसन्द नहीं करती—किसी अन्य को चाहती है वह—किसी एक को नहीं बल्कि अनेक लोगों को, वह आधुनिक और आजाद ख्यालों वाली औरत है—तलाक में दिक्कत तब आती है जब एक पक्ष असहमत हो—मैं जानता हूं कि मेरे से तलाक का प्रस्ताव रखते ही विनी स्वीकार कर लेगी, क्योंकि मेरे साथ बंधकर शायद वह भी कैद महसूस करती है।"
जहर बुझा स्वर—"मुझे आपसे सहानुभूति है सुरेश बाबू मगर.....।"
"मगर— ?"
"आपने कैसे सोच लिया है कि मैं 'कैद' में रहना पसन्द करूंगी?"
"मुझे मालूम है कि तुम उसे 'कैद' ही समझोगी।'' सिगरेट में हल्का-सा कश लगाने के साथ ही वह चहलकदमी करता हुआ बोला— "दरअसल मैं इसी मामले में मिक्की से रश्क करता था, आज उसके लिए तुम्हारा विलाप देखकर यह 'रश्क' चरम सीमा पर पहुंच गया—मुझे तुम जैसी बीवी की, टूट-टूट कर प्यार करने वाली बीवी की जरूरत है। न तो विनी ही मुझे सच्चा प्यार दे सकी, न मैं विनी को—बस.....मेरे पास यही एक कमी है, प्यार करने वाली पत्नी नहीं है मेरे पास—और इस कमी को तुम दूर कर सकती हो।"
अलका बड़े ही अजीब स्वर में कह उठी—"आप मिक्की की बेवा से यह बात कह रहे हैं।"
"ब.....बेवा?"
"जी हां, आपके बड़े भाई की विधवा हूं मैं।"
"म.....मगर।" सुरेश बुरी तरह बौखला गया—"तु.....तुम भला विधवा कैसे हो सकती हो, म......मिक्की भइया से तुम्हारी शादी थोड़ी हुई थी?"
"उससे ज्यादा प्रामाणिक पति कोई नहीं होता जिसे लड़की अपने दिल से पति मान ले।"
आंखों में हैरत का सागर लिए सुरेश उसे देखता रह गया, चाहकर भी वह कुछ बोल न सका—जुबान तालू से जा चिपकी थी, जबकि अलका जख्मी नागिन के समान बल खाकर फुंफकारी—"पैसे वालों से बड़ा मूर्ख मैंने इस दुनिया में नहीं देखा, उसे मूर्ख नहीं तो और क्या कहा जाए सुरेश बाबू जो पैसे को ही सबकुछ समझता हो—अब खुद ही को लीजिए न, आपको पूरा यकीन था कि मैं आपका प्रस्ताव कबूल कर लूंगी क्योंकि आपके पास सबकुछ है।"
सुरेश सिटपिटा गया, मुंह से निकला—"क्या मतलब?"
"आपने शुरू से ही मुझे जिस 'नजर' से घूरना शुरू किया है, उस नजर का मतलब मैं ही नहीं बल्कि हर औरत पल-भर में समझ जाती है—इसके बावजूद मैं नियन्त्रित रही—मगर अब यदि आप एक पल भी यहां ठहरे तो मेरी सहनशक्ति से बाहर हो जाएंगे.....यहां से फौरन चले जाइए, प्लीज—चले जाइए यहां से।"
"म.....मेरी बात तो सुनो, अलका।"
"मुझे कुछ नहीं सुनना।" अलका ने हलक फाड़कर चीखना चाहा—"आप यहां से.....।"
सुरेश ने झपटकर उसके मुंह पर हाथ रख दिया—आगे के शब्द अलका के हलक में घुटकर रह गए—उसे अपनी गिरफ्त में लिए सुरेश दरवाजे की तरफ बढ़ा।
गूं-गूं करती अलका उसके बंधनों से निकलने की पुरजोर कोशिश के बावजूद असफल थी—सुरेश उसे घसीटता हुआ दरवाजे पर पहुंचा, दोनों किवाड़ों के बीच झिर्री पैदा करके बाहर झांका।
गली में सन्नाटा था।
आश्वास्त होने के बाद सुरेश ने दरवाजा बंद करके चटकनी चढ़ाईं, अलका को उसी तरह जकड़े घसीटता हुआ चारपाई तक लाया, बहुत धीमे-से उसके कान में बोला— "मैं सुरेश नहीं मिक्की हूं, बेवकूफ.....मिक्की।"
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