RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
माला की समझ में न आया कि ये क्रिकेट क्या होता है. वो तो अपनी बस्ती के पास बने तालाब में मछली ढूढने का खेल खेलती थी. गोटियाँ फेंकने का खेल खेलती थी. उसे क्या पता ये क्रिकेट क्या बला है? बोली, “तुम वो नही खेलते जो गोटियों से खेला जाता है. पिचगोटी कहते हैं न उसे? ___मैं तो बचपन में उसी को खेलती थी और बड़े होने तक खेला लेकिन यहाँ तो कोई खेलने वाला है ही नही जिसके साथ में खेलूं?"
माला के खेलने की बात सुन मानिक की हंसी छूट गयी. वो खिलखिला कर हँसने लगा. माला उसे देखती ही रह गयी.
मानिक की हंसी रुकी तो बोला, “अरे अब खेलने की उम्र है आपकी? भला शादी के बाद कोई औरत खेलती भी है क्या? मेरी माँ तो आज तक कभी कोई खेल नही खेली."
माला को मानिक की बात थोड़ी अजीब सी लगी लेकिन वो सच कह रहा था. उसकी माँ ने भी राणाजी के साथ विदा करते वक्त कहा था कि वहां पर जाकर काम किया करना. कभी भी खेलने ये कूदने में अपना मन न लगाना. और वही बात आज मानिक कह रहा था.
मानिक ने माला को चुप हो सोचते हुए देख तो बोल पड़ा, "आपने पढाई की है क्या?"
माला का ध्यान मानिक की बातों से उचट गया. बोली, "नही. मेरी बस्ती और गाँव के आसपास भी स्कूल नही है लेकिन मुझे किताबें रखना बहुत अच्छा लगता है. क्या तुम्हारे पास बहुत सी किताबें है?"
मानिक से यह बात कहते हुए माला का चेहरे उसके जबाब को सुनने के लिए बेताब लग रहा था. शायद ये उसका किताबों के प्रति प्रेम था. मानिक बोला, "हाँ मेरे पास बहुत किताबें हैं. क्या तुम्हे चाहिए वो किताबें?"
माला ने थोडा सोचा फिर बोली, “अगर फालतू हो तो दे देना."
मानिक सोचते हुए बोला, "लेकिन तुम तो अभी स्कूल गयीं ही नहीं फिर किताबें कैसे पढ़ोगी?"
माला चुटकी बजाते हुए बोली, "किताब में फोटो होता है न. उसे देख देख कर सारी बात समझ जाती हूँ. यहाँ भी कई किताबें रखी थीं जिनको मैंने फोटो देख देख कर ही पढ़ डाला."
मानिक को माला की बात पर हंसी आई और पढने की इस अजीब लत पर हैरत भी हुई. लेकिन सबसे बड़ी हैरत इस बात पर थी कि उसकी राणाजी से शादी कैसे हो गयी? जबकि वो उनकी बेटी के बराबर सी लगती थी.
मानिक ने माला की और देखते हुए पूंछा, "क्या मैं आपसे एक बात पूंछ लूँ. बुरा तो नहीं लगेगा आपको?"
माला मुस्कुराती हुई बोली, “अरे नही नही. मैं किसी की भी बात का बुरा नही मानती तुम पूंछ लो.”
मानिक ने सिटपिटाते हुए पूंछा, “ये राणाजी चाचा से आपकी शादी कैसे हो गयी? आप तो इनसे उम्र में बहुत छोटी हो. क्या आपके माँ बाप ने इन्हें देखकर शादी के लिए मना नही किया?"
माला तिरिस्कार जैसी हल्की हंसी से हँस बोली, “अब क्या बताउं तुम्हें. बहुत लम्बी कहानी है. सुनते सुनते बहुत देर हो जाएगी तुमको.”
मानिक उसकी कहानी जानना चाहता था. वो माला के बारे में हर बात जानना चाहता था. बोला, “आप तो कहती थी मुझे कुछ भी बुरा नही लगता. फिर अब क्या हुआ?”
माला हंसते हुए बोली, “अरे मुझे बुरा कब लगा? मैं तो ऐसे ही नही सुनाना चाहती थी. अगर तुम फिर भी सुनना चाहो तो बता देती हूँ."
मानिक ने हाँ में सर हिला दिया. माला पेड़ की जड में बैठ गयी और बोली, "हम लोग छह भाई बहिन हैं. चार बहनें और दो भाई. मुझसे बड़ी तीन बहिनें हैं और मुझसे छोटे दो भाई. हमारी बस्ती बहुत गरीब है. खाने में सिर्फ चावल और मछली होती है और उसमे भी बहत दिन तक चावल से काट दिए जाते हैं. खेती के नाम पर कुछ भी नही. काम करने भी बाहर जाना पड़ता है. पहले मेरे बापू बाहर काम करते थे. वहां जो तनख्वाह मिलती थी उसमें से जो बचाकर भेजते थेथे उसमें एक महीने का राशन भी बड़ी मुशिकल से आता था. ऊपर से चार लडकियों का बोझ भी उनके सर पर था. कुछ दिन बाद मेरे बापू मजदूरी की नौकरी छोड़ घर आ गये और वही रहकर अपना गुजरा करने लगे. लेकिन हमारे यहाँ तो खेती के अलावा कोई काम ही नही है ओर हमारे पास खेती थी ही नही. मेरी बहनें बड़ी हो रही थीं और उन्हीं दिनों बस्ती में कुछ बाहर के लोग आने लगे.
वो लोग लड़कियों को शादी के लिए ले जाते थे और बदले में लोगों को पैसा दे जाते. मेरी बड़ी बहनों के साथ भी ऐसा ही हुआ. तीनों बड़ी बहनों को बापू ने पैसा ले ले कर लोगों के साथ शादी कर दी. उनमें से एक बहिन की तो तुम्हारे गाँव के गुल्लन ने ही शादी करवाई थी और मेरी भी शादी इन्होने ही करवाई है."
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