RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
माला को पता था गुल्लन का कितना एहसान है. कमिशन खाकर दोस्त की दुल्हन को खरीदवा लाने का एहसान. ऐसे एहसान से बढिया तो एहसान ही न किया जाय. माला तडप कर पलंग से उठ खड़ी हुई और गुल्लन से बोली, “क्या भाड का एहसान है आपका? इनसे पन्द्रह हजार ले मेरे बापू को दस हजार रुपए दे देने पर आपका एहसान हो गया? एक लडकी के बिकने का भी पैसा खा गये आप. अपने जिगरी दोस्त से छुप कमिशन खा लिया. इसे एहसान कहते हुए आपको शर्म आनी चाहिए. इससे अच्छा तो आप एहसान करते ही नही. एक बाप अपनी बेटी को पैसों के लिए क्यों बेचता है जानते हैं आप? एकबार अपनी बेटी को बेचकर देखना आपको अपने आप पता पड़ जाएगा? आप उस पैसे में से भी अपना हिस्सा ले चुके हैं. मैं फिर भी आपकी इज्जत करती हूँ. मैं आपको अपने बड़े भाई की तरह मानती हूँ. मैने आज तक आपके दोस्त को ये बात नही बताई कि आपके दिए हुए पैसों से आपके दोस्त ने कमिशन खा लिया था."
इतना कह माला हिल्की भर भर कर रोने लगी. माला की पूरी बात सुन गुल्लन की सारी रसियागिरी धरी रह गयी. मुंह की रंगत उड़ चुकी थी. मुंह से एक भी जबाब नही फूटा. आँखों में वहशीपन की जगह अपमान की ग्लानी थी. उन्हें नही पता था कि माला को उनके कमिशन खाने वाली बात पता है क्योंकि माला के बाप से उन्होंने इस बात को किसी से भी बताने के लिए मना किया था. गुल्लन को डर था कि कही माला राणाजी को ये बात न बता दे. उनकी टाँगे इस बात को सोच सोच कर काँपे जा रही थी.
गुल्लन ने सामने जमीन पर अर्धनग्न अवस्था में बैठी माला के ऊपर फिर से पलंग की चादर डाल दी. माला ने हिल्कियों को रोक गुल्लन की तरफ देखा. इस वक्त गुल्लन की आँखें अपने बुरे कृत्य पर शर्मिंदा थीं.
गुल्लन घुटनों के बल अपने हाथ जोड़ माला के सामने बैठ गये और बोले, “माला बहन मुझे इस घृणित कार्य के लिए माफ़ कर देना. मैं अँधा हो गया था जो ये काम करने की दिमाग में सोच डाली. तुम भी आज से मेरी छोटी बहन हो. अगर तुम भी मुझे अपना बड़ा भाई मानती हो तो कभी इस बात को किसी से न कहना और न ही मेरे कमिशन खाने की बात को कभी राणाजी से कहना. तुम नही जानती इस बात से कितना बड़ा अनर्थ हो जायेगा. मेरी बर्षों की दोस्ती पल भर में खंडित हो जाएगी. मैं राणाजी की नजरों में गिर जाऊंगा लेकिन तुम इस वात को होने से रोक सकती हो. मुझे उम्मीद है तुम ऐसा कुछ नही करोगी."
माला ने पलंग की चादर अपने चारो तरफ लपेट ली. अपने आंसू पोंछे और बोली, “मैं कहना चाहती तो कब का कह सकती थी लेकिन मुझे आप से ज्यादा अपनी बस्ती के उन भूखे नंगे लोगों की ज्यादा फ़िक्र है जो अपनी बेटियों को बेचकर अपना पेट भरते हैं. मुझे उन लडकियों की भी फ़िक्र है जो अपने बिकने का इन्तजार करती रही हैं. जिससे उनके माँ बाप और बाकी के भाई बहिन आराम से रह सकें. अपना पेट भर सकें. और जिससे लडकियाँ भी अपनी जिन्दगी को चैन से जी सकें. अगर मैं आपकी ये बात अपने पति से कह देती तो आप फिर कभी किसी लडकी को पैसे दे खरीदवाने नही जाते. जिससे वहां रहने वाली लडकियों की दशा और ज्यादा गिरती. और यही मैं नहीं चाहती हूँ. आप मुझे नोंच भी। डालते तो भी यह बात आपके दोस्त को न बताती. क्योंकि एक मेरे मरने से वहां की बस्ती के लिए कुछ अच्छा हो सकता है तो मेरे लिए ये गर्व की बात होगी."
|