RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
माला का चेहरा शर्म से थोडा लाल हो गया. वो मानिक को प्यार से डपटती हुई बोली, “चुप रहो बुधू कहीं के. ये भी नही जानते कि औरत का पेट इस तरह बाहर क्यों निकलता है? अरे मैं माँ बनने वाली हूँ. मेरे पेट में नन्हा बच्चा है. जो कुछ महीनों बाद पैदा हो जायेगा.”
मानिक को माला की डांट से बड़ा आनंद आया. वो फिर से मजाक में बोला, "लेकिन मैने तो ठीक से तुम्हें छुआ भी नही फिर ये बच्चा...?"
माला ने आँखें तरेर कर मानिक की बात को बीच में ही काट दिया और बोली, “चुप रहो मानिक. हमें परेशान न करो. ऐसी बातों से हमें शर्म आती है.”
मानिक माला की इस बात पर खिलखिला कर हंस पड़ा. माला भी चोरी चोरी मानिक को देख हँसने लगी. माहौल खुशनुमा हो गया. ____ मानिक ने गम्भीर हो माला से पूंछा, “अच्छा माला एक बात बताओ. अगर कल को राणाजी चाचा को पता पड़ जाए तो तुम क्या करोगी? क्या उनके डर से मुझे भूल जाओगी या फिर भी ऐसे ही चाहोगी?"
माला भी गम्भीर हो गयी. बोली, “मैं तुमसे पहले ही कह चुकी हूँ कि मैं अपनी तरफ से पीछे नही हटंगी. अगर उन्हें पता पड़ा तो मैं उन्हें भी ये बात साफ साफ बोल दूंगी और मुझे उम्मीद है कि वो मेरी बात को समझ जायेंगे."
मानिक को माला की बात में दृढ़ता साफ़ साफ़ दिखाई देती थी लेकिन वो अब इस माहौल को थोडा हल्का करना चाहता था. बोला, “अच्छा माला तुम्हें इस हालत में लगता कैसा है? क्या पेट में बच्चा होने से कुछ अजीब सा नही लगता?"
माला उसकी बात पर मुस्कुरा पड़ी. बोली, “अजीब सा तो लगता है
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
राणाजी ने देखा माला और मानिक को और सोचा कि वापस फिर से खेतों की तरफ लौट जाएँ. किन्तु इस बात से कोई हल नही निकलना था. उन्होंने द्वार से पहले ही गला खंखार दिया और इतनी जोर से खंखारा कि माला और मानिक का ध्यान उस तरफ चला गया.
माला और मानिक ने देखा कि राणाजी सर झुकाए सामने से चले आ रहे हैं तो मानिक को लगा कि वो इसी वक्त वेहोश हो जायेगा. वो झट से उठा और वहां से चल दिया. माला के भी होश पूरी तरह से उड चुके थे. समझ नही आता था कि वो क्या करे लेकिन अंदर जाने की जगह वहीं जमी खडी रही.
मानिक ने राणाजी की बगल से गुजरते समय उनसे दुआ सलाम की. राणाजी जी ने विना उसकी तरफ देखे उसके रामराम' का जबाब दे दिया और अपने द्वार की तरफ बढ़ गये. मानिक ने मुड़कर भी फिर से माला की तरफ न देखा. लेकिन माला को भी राणाजी की तरफ देखने की हिम्मत न हो रही थी. उसे लगता था जैसे कयामत आने वाली लेकिन राणाजी ने माला से कुछ न कहा. पास आकर थोड़े से रुके और बोले, “आओ माला अंदर चलते हैं. यहाँ क्यों बैठी हो?"
माला की समझ न आया कि राणाजी ने उससे कुछ भी क्यों नहीं कहा. जबकि उन्होंने मानिक को उसके पास बैठा देख लिया था. माला का मन हल्का होने की जगह और ज्यादा उलझ गया. तूफ़ान तो राणाजी के दिमाग में भी था और राणाजी जैसे हर पुरुष के दिमाग में यह सब देख तूफ़ान ही होता लेकिन समय राणाजी को कुछ भी करने की इजाजत नहीं देता था. माला की कोख में उनका दिया बच्चा पल रहा था. वो नही चाहते थे कि उनसे कोई ऐसी गलती हो जाए जिससे कुछ अनर्थ हो.
माला थके कदमों से राणाजी के पीछे पीछे घर के अंदर चल दी. राणाजी अपने कमरे में जा पलंग पर बैठ गये. माला रसोई में जा उनके लिए एक गिलास पानी ले आई. राणाजी ने पानी पिया और माला से बोले, “माला थोड़ी देर मेरे पास बैठोगी? तुमसे थोड़ी बात करनी थी.” माला की धुकधुकी चल पड़ी. उसे पता था राणाजी क्या बात करेंगे लेकिन राणाजी का शांत लहजा उसे ढाढस बंधा रहा था. वो पलंग के दूसरी तरफ बैठ गयी.
|