RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
राणाजी ने उस आदमी का शुक्रिया अदा किया और अपने घर की तरफ चल दिये. उन्हें गुल्लन से इस तरह की आशा नही थी. राणाजी गुल्लन पर खुद से ज्यादा भरोसा था लेकिन गुल्लन की एक हरकत ने उनके जीवन को काँटों भरे रास्ते पर ला दिया था. राणाजी ने एक जिगरी दोस्त इस वक्त खो दिया था लेकिन इसमें राणाजी की गलती नही थी.
इतनी उलझन होने पर राणाजी के दिमाग ने तो काम करना ही छोड़ दिया था और दिल ऐसा कुछ भी करने से मना करता था जो किसी का दिल दुखाये. आज राणाजी को अपनी माँ की याद आ रही थी. वो राणाजी की समस्याओं का हल बहुत जल्दी निकाल देती थी. साथ ही किसी भी मुश्किल में राणाजी का साथ भी देतीं थी. माँ के रहते वे कभी किसी के सामने झुके नही थे लेकिन आज वो पंचों के गलत फैसले के सामने भी चुप हो चले आये थे.
माला के प्रति राणाजी का दिल इस वक्त भी नर्म था जबकि माला की वजह से ही उन्हें इन मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था. परन्तु माला उनकी पत्नी का दर्जा लिए हुई थी. इस वक्त वो उनकी अपनी थी. उसकी कोख में राणाजी का अपना बच्चा था. इस कारण ये बात तो लाज़मी थी कि पंचों के फैसले से माला की अहमियत कहीं ज्यादा होनी थी.
दूसरा राणाजी माला के बारे में हर बात जानते थे. उसकी गरीबी भुखमरी और राणाजी जितनी उम्र के आदमी के साथ शादी करने की मजबूरी भी उनसे छुपी नही थी. कोई भी लडकी हमेशा अपना हमउम्र दूल्हा चाहती है. हालाँकि वो बात अलग है कि कभी कभी बूढ़े आदमी से उसे भी इश्क हो जाता है लेकिन जीवन साथी तो हर लडकी को अपने हमसाये जैसा ही चाहिए होता है. इस कारण से भी राणाजी को माला के प्रति सहानुभूति थी.
राणाजी घर आकर कमरे में लेट गये. महरी खाना बना चुकी थी. माला ने आकर राणाजी से खाना खाने के बारे में पूंछा तो राणाजी ने मना कर दिया. माला ने राणाजी की उदासी देख ली थी लेकिन वो नादान ये नही जानती थी कि इस उदासी का कारण क्या है? राणाजी उस उदासी में अंदर ही अंदर घुले जा रहे थे. सोच रहे थे कि इस मुश्किल से छुटकारा कैसे पाया जाय?
अगर वो माला को अपने घर रखते भी हैं तो गाँव के पंचायती लोग अपनी धौंस जमायेंगे लेकिन अगर वो कानूनी केस करें तो गाँव के बड़े लोगों से दुश्मनी हो जाएगी. माला के लिए दुश्मनी भी मोल ले सकते थे लेकिन माला तो मानिक को चाहती थी. फिर उसे घर रखने से फायदा क्या था? आज नही तो कल माला अपना रूप दिखाएगी ही. फिर क्यों चार दिन के लिए सारे गाँव से रार मोल लें?
राणाजी की सोच का समुन्दर हिलोरे ले रहा था. न तो परेशानी का कोई हल मिलता था और न गाँव की सत्ता से लड़ने की हिम्मत होती थी. हिम्मत भी तब होती जब माला उनके साथ कंधे से कन्धा मिलाये खड़ी होती. वो तो उनको चाहती ही नहीं थी. मानिक से उसका दिल लग चुका था. फिर राणाजी को क्या पड़ी कि उसके लिए अपना जीवन दांव पर लगा दें?*
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