RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
राजन ठाकुर बाबा का संकेत पाते ही रामू के साथ हो लिया। दोनों एक छोटे से कमरे में पहुँचे, जो न जाने कब से बंद पड़ा था। हर ओर धूल जमी पड़ी थी। रामू धोती-कुर्ता भी ले आया और किवाड़ बंद कर वापस लौट गया। राजन ने रामू से अधिक पूछताछ करना ठीक न समझा। परंतु फिर भी यह सोचकर असमंजस में पड़ा हुआ था कि ठाकुर बाबा ने उसे यहाँ क्यों बुलाया है? वह उसका कौन है? यदि परदेसी ही समझ कर अतिथि रखा है तो उन्होंने उसे पहले देखा कहाँ? खैर फिर भी इस भयानक रात में आसरा देने वाले का भला हो।
उसने भीगे वस्त्र उतार सामने फैला दिए और स्वयं धोती-कुर्ता पहन पास बिछी खाट पर लेट गया। राजन की आँखों में भरी नींद उड़ चुकी थी-वह शीत के मारे काँप रहा था।
अचानक किवाड़ धीरे से खुला और किसी के अंदर आने की आहट हुई-राजन चौंक उठा। सामने उसने देखा-हाथों में प्याला लिए पार्वती खड़ी मुस्करा रही थी-वह भौंचक्का-सा रह गया-उसके दाँत जोर-जोर से बजने लगे।
राजन को यूँ घबराहट में देख पार्वती बोली-
‘डरो नहीं, यह चाय है-देखो शीत के मारे तुम्हारे दाँत बज रहे हैं।’
‘परंतु तुम-यह ठाकुर बाबा-यह चाय?’
‘भगवान का तो नहीं, परंतु एक प्राणी का दूसरे प्राणी के लिए मन पसीज ही उठा।’
‘अच्छा, तो वह प्राणी तुम हो?’
‘जी।’
‘और यह ठाकुर बाबा।’
‘मेरे दादा हैं। जब मैंने तुम्हारे बारे में इन्हें कहा तो इन्होंने तुरंत रामू को तुम्हें बुलाने भेज दिया।’
‘ओह! तो बात यूँ है, परंतु तुम।’
‘एक चट्टान पर दया जो आ गई-लो चाय पी लो, ठण्ड दूर हो जाएगी।’
राजन ने काँपते हाथों से चाय का प्याला पार्वती के हाथ से ले लिया और बोला-‘क्या मुझे देवता समझकर भेंट दी जा रही है?’
‘देवता नहीं, मनुष्य समझकर-देवताओं पर तो फूल चढ़ाए जाते हैं।’
‘तो क्या मनुष्य उन फूलों के योग्य नहीं?’
‘नहीं, उसे दी जाती है केवल चाय’ कहती पार्वती द्वार की ओर बढ़ी।
‘पार्वती!’ राजन ने पुकारा।
‘अब विश्राम कर लो’ और किवाड़ बंद करके चली गई।
थोड़ी देर तो राजन सोचता रहा, फिर उसे लगा जैसे अंदर-ही-अंदर कुछ भर उठा, जैसे उसके स्वप्न साकार हो उठे हैं। उसने आज वह पाया है, जिसकी कभी उसने कल्पना भी न की थी।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
|