RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
बालक के हाथ में ‘मिंटो वायलन’ था, जिसे झट से राजन ने लिया और नीचे फेंकने को बढ़ा, पार्वती ने उसकी बाँह पकड़ते हुए कहा-‘यह क्या कर रहे हो राजन?’
‘यदि आज यह न होता तो तुम्हें यह चोट न लगती।’
‘तुम मुझे बहुत चाहते हो न?’
‘हाँ।’
‘फिर मेरी चोट की दवा-दारू का प्रबंध भी तुम्हीं ने किया।’
‘हाँ तो।’
‘इसी प्रकार तार टूटने से ‘मिंटो वायलन’ को चोट लगी है, तो क्या इसे फेंक दोगे। ठीक नहीं करवाओगे। इसे भी तुम बहुत चाहते हो न?’
‘परंतु तुम्हारे से अधिक नहीं।’ यह कह राजन पार्वती को सहारा देेते हुए ‘लिफ्ट’ की ओर बढ़ा।
थोड़ी ही देर में दोनों लिफ्ट में बैठ सीतलवादी की ओर उड़ने लगे। बादलों ने चारों ओर से उन्हें एक बार फिर घेर लिया। पार्वती अपना सिर राजन की गोद में रखकर लेट गई। जब बादलों की गर्जन तथा बिजली की चमक दिखाई पड़ती तो अपना मुँह उसकी गोद में छिपा लेती, परंतु राजन चुपचाप बैठा सीतलवादी की ओर देख रहा था। पार्वती उसके मुरझाए चेहरे को देख सोचने लगी, शायद बाबा से डर लग रहा है कि यह क्या कहेंगे? उसने अपना हाथ राजन की ठोड़ी तक ले जाते हुए उसे बुलाया। राजन ने मुँह नीचे कर गोद में पड़ी उन दो आँखों को देखा और बोला-
‘क्यों-क्या है?’
‘किस चिंता में हो?’
‘चिंता, चिंता कैसी?’
‘देखो, छिपाओ नहीं। कोई बात अवश्य है-क्या बाबा से डर रहे हो?’
‘नहीं तो।’
‘फिर क्या है? क्या सोच रहे हो इतनी गंभीरता से?’
‘अपने भाग्य की रेखाओं को पढ़ रहा हूँ।’
‘कैसे?’
‘वह आश्रम वाले महात्मा कहते थे... कि तुम्हारे प्रेम में सिवाय तड़प और जलन के अलावा कुछ नहीं है और जलन भी ऐसी कि एक दिन वह जलन सारे संसार को जलाएगी।’
‘तुम्हें तो सुनकर प्रसन्न होना चाहिए। जब जलोगे नहीं तो ऊपर उठोगे कैसे?’
‘पगली!’ और राजन ने अपने हाथ उसकी आँखों पर रख दिए और फिर से ‘सीतलवादी’ की ओर देखने लगा।
जब दोनों घर पहुँचे तो राजन का दिल डर के मारे बैठा जा रहा था। पार्वती की दशा देख बाबा क्या कहेंगे? क्या फिर भी उसके साथ आने देंगे उसे? यह सोचते हुए राजन ने भीतर प्रवेश किया और पार्वती को ले धीरे-धीरे कमरे की ओर बढ़ने लगा।
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