RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
पार्वती जब राजन के करीब पहुँची तो अचानक उसके हाथ ‘वायलन’ पर रुक गए और वह उसकी ओर देखने लगा। पार्वती के पास एक लाल गुलाब था। राजन ने ‘मिंटो वायलन’ एक किनारे रख दिया और स्वयं आगे आ पार्वती के हाथों से फूल ले उसके बालों में खोंस दिया। लाल फूल तथा लाल शाल उस बर्फीले स्थान पर एक अनोखी शोभा दे रहे थे। दोनों के गर्म-गर्म श्वासों का धुंआ हवा में उड़ रहा था। फिर उड़ते-उड़ते आपस में मिल गया। दोनों यह देखकर मुस्करा उठे और राजन बोला-
‘पार्वती! सुना है जाड़ों में फल कुम्हला जाते हैं।’
‘हाँ तो।’
‘फिर यह फूल कहाँ से आया?’
‘प्रेम के फूल कभी नहीं कुम्हलाते और फिर यह...।’ पार्वती जोर-जोर से हँसने लगी। राजन उसकी यह हरकत देख अचंभे में पड़ गया। थोड़ी देर बाद उसे यूँ हँसते देख बोला-
‘इसमें हँसी की क्या बात है?’
‘तुम्हारी फूलों की पहचान देख।’ और फिर वह हँसने लगी, राजन कुछ संदेह में पड़ गया। फिर तुरंत ही वह बालों से उतार उसे देखने लगा। वह कपड़ों का बना हुआ था। वास्तविकता और नकल में कोई अंतर नहीं दीख पड़ता था। जब उसने फूल से दृष्टि उठा पार्वती की ओर देखा तो वह प्रसन्नता के मारे फूली नहीं समा रही थी।
राजन ने फूल दोबारा उसके बालों में लगा दिया और आनंद विह्वल हो पार्वती को अपने गले से लगा लिया। पार्वती की दृष्टि जब राजन के वस्त्रों पर पड़ी तो बोल उठी-‘यह क्या?’
‘क्यों क्या है?’
‘इतना जाड़ा और शरीर पर एक ही कुर्ता।’
‘यह भी न हो तो कोई अंतर नहीं पड़ता।’
‘यदि तुम्हें कुछ हो गया तो।’
‘तुम्हारे होते जाड़ा इतना साहस नहीं कर सकता कि मुझे छू भी ले।’
‘तो क्या मैं कम्बल हूँ अथवा कोट, जो मुझे ओढ़ लोगे?’
‘तुम्हें तो देखते ही जाड़ा दूर हो जाता है। यदि ओढ़ लूँ तो शरीर जलने लगे।’
‘तो मैं आग हूँ।’
राजन बर्फीली ढलानों पर बैठ गया और पार्वती का हाथ खींच उसे अपने समीप बिठा लिया। पार्वती शाल संभालते हुए बोली-
‘कैसी होती है यह मिठास?’
राजन ने चुंबन के लिए अपने होंठ बढ़ाए और कहा-‘ऐसी’। परंतु पार्वती ने किनारे से बर्फ उठा उसके मुँह पर रख दी, फिर हँसते-हँसते मुँह फेर लिया। राजन ने उसे जोर से खींचा, परंतु बर्फ की ढलान पर फिसल गया। पार्वती भी लड़खड़ाती हुई उसके साथ नीचे की ओर लुढ़क पड़ी।
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