RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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कमरे आकर मैं फ्रेश हुआ और फिर तैयार होने लगा. अभी मैं तैयार हो रहा था कि, तभी अमि निमी हंसते हुए मेरे कमरे मे आ गयी. उन्हे देखते ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी.
लेकिन मैने अपनी मुस्कुराहट को छुपा कर, उन पर झूठा गुस्सा दिखाते हुए, अपना मूह बना लिया और उनसे कुछ नही कहा. थोड़ी देर तक दोनो मेरे बोलने का इंतजार करती रही. मगर जब मैं खामोशी से तैयार होता रहा. तब दोनो आपस मे ख़ुसर फुसर करने लगी.
फिर अमि ने बात सुरू करते हुए मुझसे कहा.
अमि बोली “भैया क्या आप हम से नाराज़ हो.”
मैने बिना उनकी तरफ देखे, तैयार होते हुए कहा.
मैं बोला “मैं क्यो तुम लोगों से नाराज़ होने लगा.”
अमि बोली “वो इसलिए क्योकि हम लोगों ने कीर्ति दीदी के साथ मिलकर, आपकी बुराई की थी.”
मैं बोला “तुम लोगों ने ऐसा क्यो किया.”
अमि बोली “वो तो हम इसलिए कर रहे थे. ताकि दोबारा दीदी आपको कही जाने के लिए परेशान ना करे.”
मैं बोला “मैं कीर्ति के साथ गया था. क्या ये बात तुम लोगों को खराब लगी है.”
मेरी इस बात पर दोनो ही चुप रही. मैं उनके पास आकर बैठ गया और दोनो के सर पर, हाथ फेरते हुए कहा.
मैं बोला “देखो बेटू, जितना प्यार मैं तुम दोनो से करता हूँ. उतना ही प्यार कीर्ति भी तुम लोगों से करती है. यदि ऐसा नही होता तो, वो खुद से पहले तुम लोगों को, मेरे साथ घूमने क्यो भेजती. आज मैं यहाँ नही हू तो, क्या वो मेरी तरह, तुम लोगों का ख़याल नही रख रही है.”
मैं इतना कह कर चुप हो गया. मुझे लगा कि दोनो मे से कोई अपनी सफाई ज़रूर देगा. लेकिन शायद दोनो को ये लग रहा था कि, इस बात को लेकर मैं उनसे नाराज़ हूँ. जब दोनो चुप रही तो, मैं उन्हे समझाते हुए कहने लगा.
मैं बोला “मैं तुम दोनो से ज़रा भी नाराज़ नही हूँ. मैं अपनी आमो निम्मो से, कभी नाराज़ हो ही नही सकता. बस मेरी इतनी सी बात मान लो कि, अपनी कीर्ति दीदी से मिलकर रहा करो. वो यदि मुझ पर गुस्सा भी होती है तो, उसकी बात का बुरा मत माना करो. क्योकि तुम्हारी तरह, वो भी मुझे बहुत प्यार करती है और जो हमे प्यार करता है. वही हम पर गुस्सा भी होता है. बोलो मेरी बात मनोगी ना.”
मेरी इस बात सुनकर दोनो के चेहरे खिल गये थे. उन्हे इस बात की खुशी थी कि, मैं उनसे ज़रा भी नाराज़ नही हूँ. उन दोनो ने खुशी खुशी कहा.
अमि निमी बोली “जी भैया, हम आपकी ये बात ज़रूर मानेगे. अब हम कीर्ति दीदी के साथ हमेशा मिलकर रहेगे और उनकी किसी बात का कभी बुरा नही मानेगे.”
मैं बोला “गुड, अब ये बताओ. छोटी माँ और आंटी कहाँ है.”
अमि बोली “भैया वो नीचे खाने के लिए आपका इंतजार कर रही हैं. हम इसीलिए आपको बुलाने आए थे. लेकिन ये बात कहना भूल ही गये.”
मैं उन से कीर्ति के बारे मे पुच्छने वाला था कि, तभी मेरी नज़र दरवाजे के पास खड़ी कीर्ति पर पड़ी. वो शायद अभी अभी आकर वहाँ खड़ी हुई थी. मैने कीर्ति को देखा तो, अमि निमी से कहा.
मैं बोला “ठीक है. अब तुम दोनो नीचे जाओ. मैं भी तैयार होकर थोड़ी देर मे नीचे आता हूँ.”
मेरी बात सुनकर दोनो नीचे जाने लगी. उनकी नज़र कीर्ति पर पड़ी तो, उन ने उसे भी नीचे चलने को कहा. मगर कीर्ति ने मेरे साथ नीचे आने को कह कर, उन दोनो को नीचे भेज दिया.
अमि निमी के नीचे जाते ही कीर्ति अंदर आई और मुझसे लिपट गयी. मैने भी बिना कुछ कहे, उसे अपनी बाहों मे भर लिया. हम दोनो ऐसे ही एक दूसरे के सीने से लगे रहे. ना तो कीर्ति कुछ कह रही थी और ना ही मैं कुछ कह रहा था. हम दोनो ही खामोश रहे.
इंसान दो ही सुर्तों मे खामोश रहता है. एक तो तब जब उसके पास कहने को कोई बात ना हो, या फिर तब जब उसके पास कहने के लिए बहुत कुछ हो. ऐसा ही कुछ हम दोनो के साथ भी था. हम दोनो के पास एक दूसरे से करने के लिए बातें तो, बहुत सी थी. मगर उन बातों को करने के लिए समय, अब बिल्कुल नही था.
इसलिए हम दोनो एक दूसरे के सीने से खामोशी से लगे रहे और एक दूसरे के दिल मे छुपे प्यार को, उसके दिल की धड़कन से महसूस करते रहे. जो बात हम नही कह पा रहे थे. वो बातें हमारे दिल की धड़कने एक दूसरे से कह रही थी और हम खामोशी से उनकी बात सुन रहे थे.
लेकिन वक्त किसी के लिए नही रुकता. ऐसा ही हमारे साथ भी हुआ. हम एक दूसरे मे खोए हुए थे. तभी मुझे किसी के आने की आहट सुनाई दी और मैं तुरंत कीर्ति से अलग होकर, अपने बाल सवारने मे लग गया.
कीर्ति तो ना जाने किन ख़यालों मे खोई हुई थी. उसे मेरा इस तरह, अचानक से अलग हो जाने का कारण समझ मे ही नही आया. इसके पहले की वो मुझसे इसका कारण पुच्छ पाती. उसके पहले ही छोटी माँ ने मेरे कमरे मे कदम रख दिया और कहने लगी.
छोटी माँ बोली “तुम दोनो अभी तक यहाँ क्या कर रहे हो. मैं कब से नीचे तुम्हारा खाने पर वेट कर रही हूँ.”
कीर्ति इतनी देर मे अपने आपको संभाल चुकी थी. उसने छोटी माँ की बात का जबाब देते हुए कहा.
कीर्ति बोली “मौसी, मैं तो कब से इसे नीचे चलने को कह रही हूँ. लेकिन इन लाट साहब का अभी तक बनना सवरना ही नही हो पा रहा है.”
कीर्ति की बात सुनकर मैने छोटी माँ से कहा.
मैं बोला “बस छोटी माँ, मेरा तैयार होना हो गया. चलिए नीचे चलते है.”
ये कह कर मैं, छोटी माँ और कीर्ति के साथ नीचे आ गया. नीचे आंटी मेरे लिए खाना लगा रही थी. मैने ये देखा तो कहा.
मैं बोला “क्या मैं अकेला ही खाना खाउन्गा. आप लोग नही खाएगे.”
आंटी बोली “हम सब तो खाना खा चुके है. बस तुम और कीर्ति ही खाना खाने के लिए बाकी रह गये थे. अब ज़्यादा समय बर्बाद मत करो और चुप चाप खाना खाओ.”
आंटी की बात सुनकर मैं और कीर्ति खाना खाने बैठ गये. अमि निमी भी हमारे पास ही बैठी थी. वो मुझसे कुछ छुपाने की कोसिस कर रही थी. जब मैने उन्हे ऐसा करते देखा तो, मैने उनसे पुछा.
मैं बोला “बेटू, छुटकी, ये तुम दोनो मुझसे क्या छुपा रही हो.”
अमि बोली “कुछ नही भैया, पहले आप खाना खा लीजिए. फिर हम बताएगे.”
मैं बोला “नही, मुझे अभी देखना है.”
मेरा इतना कहना था कि, निमी फ़ौरन अपनी जगह से खड़ी हो गयी. उसे डर था कि कहीं अमि अपनी चीज़ पहले मुझे ना दिखा दे. इसलिए वो मेरे पास आई और अपने हाथ मे पकड़ा हुआ, मनी बॅंक मेरे सामने रख दिया.
मनी बॅंक देखते ही, मैं समझ गया कि, ये मेरा बर्थ’डे गिफ्ट है. लेकिन फिर भी मैने अंजान बनते हुए निमी से कहा.
मैं बोला “छुटकी ये क्या है. अब तुझे पैसे किस लिए जोड़ना है.”
निमी मुझे समझते हुए कहने लगी.
निमी बोली “भैया, ये आपका बर्थ’डे गिफ्ट है. मैने बड़े प्यार से आपके लिए खरीदा है.”
मैं बोला “लेकिन मैं इसका क्या करूगा.”
निमी बोली “भैया आप इसमे पैसे जोड़िएगा और जब ये भर जाएगा. तब मैं उन पैसो से आपके लिए एक कार खरिदुगि.”
निमी की बात सुनकर सब हँसने लगे. लेकिन मैने उसका मनी बॅंक लेकर, उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा.
मैं बोला “तुझे मेरा कितना ख़याल है. ये तूने बहुत अच्छा किया. अब मेरे पास भी खुद की एक कार होगी. लेकिन यदि मुझे इसमे पैसे डालना याद ही नही रहा तो, ये भरेगा कैसे.”
निमी बोली “उसकी चिंता आप मत कीजिए. मैने सब सोच लिया है. मैं खुद रोज आपसे इसमे पैसे डलवाया करूगी. अब आप जल्दी से अपना पर्स निकालिए और इसमे पैसे डालिए.”
मैं बोला “ठीक है. लेकिन हम इसे रखेगे कहाँ.”
निमी बोली “मैं इसे अपने कमरे मे रखुगी. ताकि मुझे भी याद रहे कि, इसमे आपसे पैसे डलवाना है. अब जल्दी से इसमे पैसे डालिए.”
निमी की बात सुनकर मैने पर्स निकाल कर, मनी बॅंक मे पैसे डाले और जब पर्स रखने को हुआ तो, अमि मुझे रोकते हुए कहने लगी.
अमि बोली “रुकिये भैया. आपने निमी का गिफ्ट तो ले लिया. लेकिन मेरा गिफ्ट तो लिया ही नही है. अब आप ये पर्स नही रखेगे. अब आप मेरा दिया हुआ पर्स रखेगे.”
ये अमि ने पर्स मेरे हाथ मे थमा दिया. मैने अमि का पर्स ले लिया. लेकिन वो अभी मुझसे पर्स रखने की ज़िद करने लगी. तब तक कीर्ति खाना खा चुकी थी. मैने अपने दोनो पर्स उसे थमा दिए और अपने पुराने पर्स का समान नये पर्स मे रखने को कहा.
कीर्ति ने पर्स ले लिया और मैं फिर से खाना खाने लगा. तभी छोटी माँ ने कहा.
छोटी माँ बोली “तुम खाना खाओ. तब तक मैं तैयार होकर आती हूँ.”
मैं बोला “क्यो छोटी माँ. क्या आप कहीं जा रही है.”
छोटी माँ बोली “हाँ, हम सब तुझे एरपोर्ट छोड़ने जा रहे है.”
मैं बोला “नही छोटी माँ. किसी को जाने की ज़रूरत नही है. मैं अकेला चला जाउन्गा. मुझे सबको छोड़ कर जाने मे बहुत तकलीफ़ होती है.”
छोटी माँ बोली “ठीक है, तुझे छोड़ने मेरे सिवा कोई नही जाएगा.”
मैं बोला “आप भी क्यो जा रही है. क्या मुझे आपको छोड़ कर जाने मे तकलीफ़ नही होगी.”
छोटी माँ बोली “अब मुझे कुछ नही सुनना. मैं जा रही हूँ, मतलब जा रही हूँ. तुम चुप चाप खाना खाओ. तब तक मैं तैयार होकर आती हूँ.”
ये कह कर छोटी माँ तैयार होने चली गयी और मैं फिर से खाना खाने लगा. मैं खाना खाकर उठा तो, कीर्ति ने मुझे नया वाला पर्स थमा दिया. मैने नये पर्स को अपने जेब मे रखते हुए, उस से कहा.
मैं बोला :ये पुराना पर्स मेरे कमरे मे रख देना.”
कीर्ति बोली “नही, इसे मैं अपने पास रखुगी.”
मैं बोला “तू इस पुराने पर्स को रख कर क्या करेगी. ये तेरे किस काम आएगा.”
कीर्ति बोली “तुम्हे नही देना तो मत दो. इतने सवाल करने की क्या ज़रूरत है.”
शायद कीर्ति इस बात से नाराज़ हो गयी थी. मैने उसे गुस्सा होते देखा तो, उसे मानते हुए कहा.
मैं बोला “तुझे रखना है तो, रख ले. मैं तो ऐसे ही पुच्छ रहा था. इसमे गुस्सा होने की क्या बात है.”
मेरी बात सुनकर कीर्ति खुश हो गयी. मैने एक नज़र सबको देखा. किसी का ध्यान अभी हमारी तरफ नही था. मैने धीरे से कीर्ति से कहा.
मैं बोला “ये बता, तेरे पास मेरे बर्थ’डे गिफ्ट के लिए पैसे कहाँ से आए.”
कीर्ति बोली “वो मैने अपनी पॉकेट मनी मे से बचाए थे.”
मैं बोला “ज़्यादा झूठ मत बोल. तूने अपनी पॉकेट मनी से इतने ज़्यादा पैसे बचा लिए कि, एक साथ दो दो मोबाइल खरीद लिए. सच बता, तेरे पास इसके लिए पैसे कहाँ से आए.”
कीर्ति बोली “प्लीज़, ये बात अभी छोड़ो. मैं फोन पर तुम्हे सब बता दुगी.”
मैं कीर्ति से इसके आगे कुछ और बोल पाता. उसके पहले ही छोटी माँ तैयार होकर आ गयी. वैसे तो वो हमेशा ही, साड़ी पहना करती थी. लेकिन आज उन ने पर्पल कलर का सलवार सूट पहना था. जो उनके गोरे रंग पर बहुत खिल रहा था. मैने उन्हे देखा तो, देखते ही रह गया.
लेकिन ये हाल सिर्फ़ मेरा नही था. वहाँ खड़े सभी लोगों का यही हाल था. कीर्ति तो दौड़ कर, छोटी माँ के पास गयी और उन्हे गले लगाते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली “मौसी, आज आप सच मे बहुत सुंदर लग रही है. आप आज मेरी मौसी नही, मेरी बड़ी बहन लग रही है.”
आंटी बोली “ये आज तुझे क्या हुआ. आज अचानक तुझे ये सलवार सूट पहनने की क्या सूझ गयी.”
आंटी और कीर्ति की बात पर छोटी माँ ने हंसते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “मेरा बेटा, मुझे साथ ले जाने मे हिचकिचा रहा था. मैं उसे हंसते हंसते यहा से भेजना चाहती थी. इसलिए मैने सोचा कि, चलो आज उसे एक दोस्त बनकर एरपोर्ट तक छोड़ कर आती हूँ.”
ये कह कर छोटी माँ ने ड्राइवर को गाड़ी निकालने को कहा और फिर मुझसे कहने लगी.
छोटी माँ बोली “यदि अब तुम्हारा सबसे मिलना जुलना हो गया हो तो, अब हमे एरपोर्ट के लिए निकलना चाहिए.”
मैं बोला “जी छोटी माँ.”
इसके बाद हम सब बाहर आ गये. बाहर आकर मैने आंटी के पैर छुये तो, उन्हों ने मुझे गले लगा लिया. उनकी आँखों मे नमी आ गयी थी. फिर भी उन ने मुझे हंसते हंसते विदा किया. आंटी से मिलने के बाद मैं चंदा मौसी से मिला. उन्हों ने भी मुझे गले लगाया और जल्दी वापस आने को कहा.
फिर मैं अमि निमी से मिला. मैने उनके सर पर हाथ फेरा और उन्हे अपने गले से लगाते हुए, उनको समझाया कि कीर्ति के साथ मिलकर रहना. इसके बाद मैं कीर्ति से मिला. उस से मैने सिर्फ़ इतना कहा कि, “मैं जा रहा हूँ. तुम अपना और सबका ख़याल रखना.”
उसके बाद मैने छोटी माँ को चलने को कहा तो, उन्हों ने ड्राइवर को साथ जाने से मना कर दिया और कहा कि, कार वो खुद ड्राइव करेगी. मैं कार मे बैठा और सबको हाथ हिलाकर बाइ कहा. सबने भी मुझे हाथ हिला कर बाइ कहा और फिर छोटी माँ ने गाड़ी आगे बढ़ा दी.
मैं थोड़ी देर गाड़ी से सर बाहर निकाल कर सबको देखता रहा और सब हाथ हिलाते रहे. फिर सबके आँखों से ओझल हो जाने के बाद, मैने अपना सर गाड़ी के अंदर कर लिया. लेकिन सबकी जुदाई से मेरा चेहरा उतर गया था और मैं उदास हो गया था.
छोटी माँ खामोशी से, गाड़ी चलाते चलाते, बार बार मेरी तरफ देख रही थी. मुझे इस तरह से उदास होते देख कर, उन्हों ने मुस्कुरा कर मुझसे कहा.
छोटी माँ बोली “इस तरह उदास क्यो है. अभी मैं तो तेरे साथ हूँ ना.”
मैं बोला “छोटी माँ, मैने आप से भी आने को मना किया था. लेकिन आप मानी नही और ज़बरदस्ती आ गयी. आपको नही पता कि, मुझे सबसे दूर होने मे कितनी तकलीफ़ होती है.”
छोटी माँ बोली “मुझे सब पता है. इसीलिए तो मैं तेरे साथ आई हूँ. ताकि तुझे हंसते हंसते विदा कर सकूँ.”
मैं बोला “आप भी छोटी माँ कमाल करती है. मैं भला आपसे हंसते हंसते दूर कैसे जा सकता हूँ.”
छोटी माँ बोली “वो सब बाद मे देखेगे. पहले तू ये बता तेरी उस गर्लफ्रेंड का क्या हुआ. उस से तेरी बात हुई या नही हुई.”
छोटी माँ के मूह से अचानक गर्लफ्रेंड की बात सुनकर, मुझसे कोई जबाब देते नही बना. मैं खामोश ही रहा. तब उन्हों ने मुझसे कहा.
छोटी माँ बोली “देख मैने तुझे दोस्त बनकर छोड़ने के लिए, अपना हुलिया तक बदल लिया और तू अभी भी मुझसे अपनी बात कहने मे शरमा रहा है. मैने कहा ना, मैं तेरी माँ भी हूँ और दोस्त भी हूँ. अब बता ना तेरी उस से बात हुई या नही हुई.”
मैने सकुचाते हुए छोटी माँ से कहा.
मैं बोला “जी छोटी माँ. मेरी उस से बात हो गयी.”
छोटी माँ बोली “उसने बताया कि, उसने सगाई करने के लिए अपने घर वालों को क्यो हाँ कहा था.”
मैं बोला “छोटी माँ उसने सगाई नही की है. उसने अपने घर वालों को, अपनी पढ़ाई पूरी होने तक रोकने के लिए, शादी की हाँ का नाटक किया है. लेकिन उसने ये भी बोल दिया है कि, जब तक उसकी पढ़ाई पूरी नही हो जाती और वो बालिग नही हो जाती. तब तक वो ना तो, शादी करेगी और ना ही सगाई करेगी.”
छोटी माँ बोली “देख, मैं ना कहती थी. एक बार उस से बात करके देख ले. ऐसा करने के पिछे, ज़रूर उसकी कोई मजबूरी रही होगी.”
मैं बोला “जी छोटी माँ, आपने बिल्कुल सही कहा था.”
छोटी माँ बोली “अब तू उस से मुझे कब मिला रहा है.”
मैं बोला “ये क्या छोटी माँ, आप फिर उसी बात के पिछे पड़ गयी.”
मेरे इस तरह से गुस्सा करने पर छोटी माँ ने हंसते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “अरे मैं तो इसलिए कह रही थी. ताकि मैं भी लड़की देख लूँ. आख़िर वक्त आने पर, लड़की के घर वालों से शादी की बात तो, मुझे ही करनी पड़ेगी.”
मैं बोला “जब वक्त आएगा. तब मैं सबसे पहले उसको आप से ही मिलवाउंगा. लेकिन आप अभी उस से मिलने की बात नही करेगी.”
छोटी माँ बोली “ठीक है, मैं तेरी बात मानकर, अभी मैं उस से मिलने की बात नही करती. लेकिन इसके बदले मे तुझे भी मेरी एक बात मानना होगी.”
मैं बोला “मैं आपकी हर बात मानुन्गा छोटी माँ. आप कह कर तो देखिए.”
मेरी बात सुनकर छोटी माँ मुस्कुरा दी. फिर उन्हों ने मुझे समझाते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “देख तेरी भी दो छोटी बहनें है. यदि तू उनकी शादी के लिए लड़का ढूंढेगा तो, कैसा लड़का ढूंढेगा.”
मैं बोला “मैं तो अपनी अम्मो निम्मो के लिए बहुत पढ़ा लिखा, अच्छे जॉब वाला और बहुत पैसे वाला लड़का देखुगा. ताकि उन्हे कभी कोई परेशानी ना हो.”
मेरी इस बात पर छोटी माँ फिर मुस्कुरा दी और मुझसे कहने लगी.
छोटी माँ बोली “जैसे तू अपनी छोटी बहनों के लिए, बहुत पढ़ा लिखा, अच्छे जॉब वाला और बहुत पैसे वाला लड़का चाहता है. वैसे ही उस लड़की के माँ बाप भी, उसके लिए ऐसा ही लड़का चाहते होगे. इसलिए अभी तू सिर्फ़ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे और खूब पढ़ लिख जा. जब तू खूब पढ़ लिख जाएगा और तेरे पास अच्छा सा जॉब होगा. तब उस लड़की के माँ बाप भी, तेरे साथ उसकी शादी से इनकार नही कर पाएगे.”
अब मैं छोटी माँ को, ये बात कैसे समझाता कि, मेरे लिए इन सब बातों से बढ़ कर ये बात है कि, वो लड़की रिश्ते मे मेरी बहन लगती है. मैं यदि उनके कहने पर ये सब हासिल कर भी लूँ. तब भी उसके माँ बाप और खुद छोटी माँ भी इस शादी के लिए कभी तैयार नही होगी.
मैं अभी अपनी इन्ही सोचो मे खोया हुआ था. लेकिन जब छोटी माँ ने देखा कि, मैने उनकी इस बात का कोई जबाब नही दिया. तब उन्हों ने मुझसे पुच्छा.
छोटी माँ बोली “क्या हुआ. क्या तुझे मेरी बात सही नही लगी.”
मैं बोला “नही छोटी माँ. आप सही कह रही है. लेकिन मुझे कोई जॉब करने की क्या ज़रूरत है. हमारा तो खुद का इतना बड़ा बिज़्नेस है.”
छोटी माँ बोली “तेरा सोचना ठीक है. लेकिन वो सारा बिज़्नेस तेरे पापा का है. मैं चाहती हूँ कि, तू जो भी करे अपने दम पर करे. तुझे किसी बात के लिए, किसी के सामने झुकना ना पड़े.”
मैं बोला “जी छोटी माँ, आप जैसा चाहती है, मैं वैसा ही करूगा. मैं पढ़ लिख कर बहुत बड़ा आदमी बनूंगा.”
मेरी बात सुनकर छोटी माँ ने, प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरा और ऐसे ही बात करते करते हम एरपोर्ट पहुच गये. एरपोर्ट पहुच कर मैने छोटी माँ से वापस जाने को कहा. लेकिन वो इसके लिए तैयार नही हुई और गाड़ी पार्क करके, वो भी मेरे साथ एरपोर्ट के अंदर आ गयी.
अभी मेरी फ्लाइट छूटने मे बहुत वक्त था. इसलिए हम लोग कॉफी पीने चले गये. मैने कॉफी पीते पीते, छोटी माँ से कहा.
मैं बोला “छोटी माँ, आप ऐसे कपड़ों मे बहुत अच्छी लगती है. आप हमेशा ऐसे ही रहा कीजिए.”
छोटी माँ बोली “ये तो मैने तेरी खातिर किया है. ताकि तुझे हंसते हंसते यहाँ से भेज सकूँ.”
मैं बोला “तो फिर आप मेरी खातिर ही ऐसी रहा कीजिए.”
छोटी माँ बोली “लेकिन मेरे ये सब करने का फ़ायदा क्या है. तुझे जाते समय उदास होना है तो, वो तू होगा ही.”
मैं बोला “नही छोटी माँ, मैं जाते समय ज़रा भी उदास नही होउंगा. लेकिन आप भी वादा कीजिए कि, अब आप हमेशा ऐसे ही रहा करेगी.”
छोटी माँ बोली “वो तो तू अपनी बात पूरी करवाने के लिए, ये सब कह रहा है. लेकिन जब तू जाने लगेगा. तब तू फिर से उदास हो जाएगा और पूरे रास्ते भर उदास रहेगा.”
मैं बोला “नही छोटी माँ, ऐसा बिल्कुल नही होगा. आप मेरा यकीन कीजिए. ना तो मैं यहाँ से जाते समय उदास रहुगा और ना ही मैं, रास्ते मे उदास रहुगा. प्लीज़ आप मेरी बात मान लीजिए ना.”
छोटी माँ बोली “ना बाबा ना, मैं तेरी ये बात नही मान सकती. मैं तो इधर रहूगी. मैं कौन सा तुझे प्लेन मे देखने आ रही हूँ कि, तू उदास है या नही.”
मैं बोला “नही छोटी माँ. मैं सच कह रहा हूँ. आपको ऐसे खुश देख कर, मुझे सच मे बहुत अच्छा लग रहा है. यदि आप ऐसे ही हसी खुशी से रहेगी तो, मेरे सामने आपका यही चेहरा घूमता रहेगा. फिर भला मैं क्यो उदास रहुगा. आप चाहे तो मुझसे कसम ले लीजिए.”
छोटी माँ बोली “रहने दे, कसम लेने की कोई ज़रूरत नही है. तू इतनी ज़िद कर रहा है तो, मैं तेरी बात मान लेती हूँ. अब तो तू खुश है ना.”
मैं बोला “जी छोटी माँ, मैं बहुत खुश हूँ.”
ऐसे ही बात करते करते पता नही चला कि, समय कब बीत गया और फ्लाइट की घोषणा हो गयी. फ्लाइट की घोषणा सुनते ही मैने छोटी माँ के पैर छुए तो, उन्हो ने मुझे अपने गले लगा लिया. जब मैं उनसे गले मिलकर अलग हुआ तो, उनकी आँखों मे आँसू थे.
उनकी आँखों मे आँसू देखते ही मैने मुस्कुराते हुए छोटी माँ से कहा.
मैं बोला “ये क्या छोटी माँ, अभी तो आप मुझे कह रही थी कि, मैं जाते समय उदास हो जाउन्गा और अब आप खुद आँसू बहा रही है.”
मेरी बात सुनकर छोटी माँ ने अपने आँसू पोन्छे और मुस्कुराते हुए कहने लगी.
छोटी माँ बोली “पगले, ये आँसू तो एक माँ की आँखों मे उमर भर छुपे रहते है. जब भी उसका बेटा उसके सीने से लगता है तो, ये अपने आप ही छलकने लगते है. इन्हे बहने से, ना तो तू रोक सकता है और ना ही वो उपर वाला रोक सकता है. लेकिन देख अब मेरी आँखों मे आँसू नही है. मैं पहले की तरह ही खुश हूँ. अब तू जा और सबको जल्दी से अपने साथ लेकर आ. हम सबको तुम लोगों के घर वापस आने का बहुत बेसब्री से इंतजार है.”
मैं बोला “जी छोटी माँ, जल्दी ही हम सब वापस आ जाएगे. आप सबका और अपना भी ख़याल रखना. अब मैं चलता हूँ.”
ये कह कर मैने फिर से छोटी माँ के पैर छुये और इस से पहले कि छोटी माँ को मेरी आँखों मे आँसुओं की नमी महसूस हो. मैने एक बार उनके चेहरे को देखा और पलट कर तेज़ी से फ्लाइट की तरफ बढ़ गया.
क्योकि अब मेरे लिए चाह कर भी अपने आँसुओं को बहने से रोक पाना मुस्किल हो गया था. छोटी माँ को यू अकेले छोड़ कर जाने से, मेरा दिल बैठा जा रहा था. मैने फ्लाइट की तरफ बढ़ते हुए अपनी आँखों पर हाथ लगाया तो, वो आँसुओं से भीग चुकी थी. मैने फ़ौरन अपने आँसुओं को पोन्छा और फ्लाइट पर चढ़ गया.
मैं उदास रहना नही चाहता था. इसलिए छोटी माँ के हंसते हुए चेहरे और उनकी बातों को याद करने लगा. छोटी माँ की बातों को याद करते ही, थोड़ी ही देर मे मेरी सारी उदासी भाग गयी.
थोड़ी ही देर बाद फ्लाइट ने भी उड़ान भरना सुरू कर दिया. सारे रास्ते भर मैं अमि, निमी, कीर्ति और छोटी माँ की बातों को ही, सोचता रहा और यही सब सोचते सोचते मेरा मुंबई तक का सफ़र पूरा हो गया और 8:45 पर फ्लाइट ने उड़ान भरना बंद कर दिया.
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