RE: RajSharma Stories आई लव यू
पाँच बज चुके थे। शीतल अभी भी सोई हुई थीं। उन्हें उठाने के लिए फोन घुमा दिया। पाँच-छह रिंग के बाद एक आवाज आई-हेलो!'
“गुड मानिंग शीतल..उठिए, रेन का टाइम हो गया।" मैंने कहा था।
“शिट यार, पाँच बज गए: राज हम तुरंत तैयार होते हैं, हम तो सोते ही रह गए।" उन्होंने जवाब दिया।
फोन रखकर हम बस उनके तैयार होने का इंतजार कर रहे थे, या यों कहें कि उस दिन की पहली मुलाकात का इंतजार कर रहे थे। साढ़े पांच बजे मैं अपना लगेज लेकर उनके कमरे के बाहर था और मेरे हाथ खुद-ब-खुद उनके कमरे की घंटी की तरफ चले गए।
शीतल ने दरवाजा खोला। “गुडमॉनिंग...रेडी?"- मैंने पूछा।
“या रेडी"- उन्होंने जवाब दिया।
"तो फिर चलें!'' मैंने पूछा।
'चलिए।' उन्होंने कहा।
हम दोनों होटल के फस्ट फ्लोर से ग्राउंड फ्लोर पहुँच चुके थे। दोनों एक-दूसरे से बात करने का बहाना चाहते थे, लेकिन बात नहीं कर पा रहे थे। मैं तो सोच रहा था कि क्या कहूँ और कैसे कहूँ। हम दोनों कार में बैठ चुके थे। रेलवे स्टेशन के लिए कार ने रफ्तार पकड़ ली थी। छह बजे हमें शताब्दी एक्सप्रेस से बापस दिल्ली आना था। चौदह दिसंबर को जिस वक्त हम दिल्ली से चंडीगढ़ के लिए रवाना हुए थे, तब से अब तक हम दोनों के बीच काफी कुछ बदल चुका था। अब शीतल मेरे लिए ऑफिस की एक सहयोगी नहीं थी। अब वो एक खास शख्म हो गई थीं मेरे लिए। दिल्ली से चंडीगढ़ आते हुए भले ही अलग अलग कोच में बैठना मुझे नहीं खटका था, लेकिन दिल्ली लौटते वक्त अलग कोच में पांच घंटे बिताना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। चंडीगढ़ आने से पहले मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि जो शीतल मेरे साथ जा रही हैं, उनसे मुझे प्यार हो जाएगा; वरना रिजर्वेशन उनके साथ ही कराने की कोशिश जरूर करता। में कार में आगे वाली सीट पर बैठा था और शीतल पीछे सीट पर बैठी थीं।
“शीतल, खाली सड़कें कितनी अच्छी लग रही हैं न!" मैंने पूछा।
मेरे इस सवाल के जवाब में एक चुप्पी थी।
“शीतल... क्या हुआ? देखिए कितना अच्छा लग रहा है चंडीगढ़।” मैंने फिर कहा था। इस बार भी वो कुछ नहीं बोलीं। एक सन्नाटा था कार में।
मुझे लगा शायद जाने का वक्त है, तो वो मुझसे जान-बूझकर बात नहीं कर रही हैं। स्टेशन पहुंचने तक मैंने दोबारा उनसे कोई बात नहीं की। पूरे रास्ते मैं चुप ही रहा। स्टेशन पर कार से उतरते हुए उन्होंने अपनी नजरें मुझसे चुरा ली थीं। मैं उनके चेहरे की तरफ देख रहा था, लेकिन वो मेरी आँखों में अपनी आँखें नहीं डाल रही थीं। प्लेटफार्म नंबर एक की तरफ बढ़ते हुए भी उन्होंने एक बार भी मेरी तरफ नहीं देखा।
"शीतल, क्या हुआ? ऐसे क्यू रिएक्ट कर रही हो?” मैंने हैरानी के साथ पूछा।
"कुछ नहीं राज, तुम चले जाओ; बो रहा सी-5 तुम्हारा कोच ।" शीतल ने तीखी नजरों से मेरी तरफ देखा था।
"अरे, चला जाऊँगा तुम लोगों को बिठाकर।"
"हम लोग बैठ जाएंगे, तुम प्लीज चले जाओ।"
“यार कैसी लड़की है ये; तीन दिन साथ काम करना था, तो अच्छे से बात की, अब जाने की बारी आई तो अंजान हो गए। बहुत मतलबी निकली ये तो।"- पहली बार मेरे मन में ये खयाल आया था। लेकिन हमें जाने के लिए कहते हुए शीतल की आँखें नम हो चुकी थीं, तो मेरे मन में आया ये बेहूदा खयाल तुरंत बाहर हो गया। मुझे जाने के लिए कहने पर जिनकी आखरोरही हों,बो मतलबी तो नहीं हो सकती हैं।
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