RE: RajSharma Stories आई लव यू
थोड़ी ही देर में हम लोग होटल पहुंच गए। कमरे में पहुंचकर मैं कपड़े बदलकर सोफे पर बैठ गया। शीतल, बिना कपड़े बदले फिर से उसी खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई, जहाँ से समंदर साफ नजर आ रहा था। मैं शांत खड़ी शीतल को देख रहा था और बो बाहर की तरफ। काफी देर तक ऐसे देखने के बाद भी शीतल ने एक बार पलटकर मेरी तरफ नहीं देखा।
मैं समझ गया था कि शीतल मेरी तरफ नहीं देखेंगी। मैं जानता था कि वो मेरा इंतजार कर रही हैं। मैं उठा और खिड़की के पास जाकर शीतल को पीछे से हग कर लिया। मेरी बाँहों की गिरफ्त पाते ही शीतल ने एक लंबी साँस ली, मानो वो इस पल का ही इंतजार कर रही थीं। मेरा चेहरा उनके कंधे के पास था। शीतल ने भी अपना चेहरा थोड़ा पीछे घुमाया और मेरी आँखों में देखने की कोशिश की। उनकी आँखों में पानी साफ नजर आ रहा था।
मैं उनके इन आँसुओं को पोंछ पाता, इससे पहले ही उन्होंने मुड़कर मुझे अपनी बाँहों में भर लिया। मैंने शीतल का चेहरा अपने हाथ से ऊपर उठाया और फिर एक बार पूछा, "क्या सब-कुछ पहले जैसा नहीं हो सकता है शीतल? मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता हूँ।"
___ “राज, मैं भी तुम्हारे बिना हमेशा अधूरी रहूँगी; पर मुझसे दूर हो जाने में ही तुम्हारी भलाई है।"
“ये कैसी जिद है शीतल ... मैं नहीं जी पाऊँगा तुम्हारे बिना; क्या तुम रह पाओगी?"
“मैं भी नहीं रह पाऊँगी, लेकिन साथ भी नहीं रह सकती मैं राज।" इतना कहकर शीतल ने अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दिए। मैंने अपनी बाँहों की पकड़ और मजूबत कर ली। मैं शीतल की आँखों में इस सवाल का जवाब हूँढ़ने की कोशिश कर रहा था। मैं देख रहा था कि ये वही आँखें हैं, जिनके जादू से मैं शायद ही कभी बाहर आ पाऊँगा। मैं जितना शीतल की आँखों में देखता गया, मैं उतना ही शीतल में गहराता चला गया। हम दोनों की साँसें तेज हो गई थीं... हम दोनों एक-दूसरे में खोते चले गए। मैं इस पल को रोमांच से भर देना चाहता था। मेरे भीतर अभी भी ये उम्मीद थी, कि शायद ये सब होने के बाद शीतल मेरी होकर रह जाएँ। शायद यही वजह थी कि मैं उनके इंच-इंच में इतना प्यार भर देना चाहता था, कि चाहकर भी शीतल खुद को मुझसे अलग न कर पाएँ। मैं किसी हाल में शीतल से अलग नहीं होना चाहता था। जब वो मुझसे थोड़ा भी अलग होती, तो मैं उन्हें अपनी तरफ खींच लेता और फिर से अपने सीने से लगा लेता।
मैं शीतल को गोद में उठाकर बेड पर ले आया था। वो लेटी हुई थी और उनकी आँखें बंद थीं। उनकी साड़ी हट चुकी थी। रेशमी साड़ी के बंधन से आजाद होते ही शीतल खुद को समेटने की कोशिश करने लगी, लेकिन मैंने उन्हें अपने गले से लगा लिया। अब हम दोनों के बीच कोई दूरी नहीं थी। मेरी उँगलिया उनके बालों के बीच से निकलकर उनके बदन को छू रही थीं। नाजुक छुअन से शीतल पागल हो चुकी थीं। मैं भी इस मिलन की बेला पर कुछ भी अधूरा छोड़ना नहीं चाहता था। शीतल का चेहरा लाल हो चुका था, उनकी आँखों में चमक साफ दिख रही थी। शीतल ने अपने होंठों से मेरे बदन को छुआ, तो मेरा वजूद तक हिल गया। मने भी अपने होंठों से चूमकर उनके पूरे शरीर को प्रेम से भर दिया था। ऐसा लग रहा था जैसे आज पूरी कायनात हम दोनों को मिलाने में लगी है। मैं और शीतल, प्रेम के उस पड़ाव पर थे, जब लगता है दुनिया की सारी खुशियाँ उस एक इंसान से हैं, जो तुम्हारी बाहों में हैं। आखिरी दिन के आखिरी पलों में मैं और शीतल एक-दूसरे के हो चुके थे।
खूबसूरत यादों के साथ उम्र भर न भूल पाने वाला बेहद खूबसूरत पल लेकर हम दोनों मुंबई से दिल्ली लौट आए।
शीतल मेरी कभी नहीं हो पाएंगी...लेकिन शीतल हमेशा मेरी रहेंगी। ज्योति की शादी को दो दिन बीत गए थे। सुबह, टाइम से ऑफिस जाना और शाम को टाइम से घर लौट आना शुरू कर दिया था। ऑफिस में दिनभर काम में लगा रहता था। न मैं कैफेटेरिया जाता था और न शीतल मेरे फ्लोर पर आती थीं। शीतल के मेल, उनके सारे मैसेज मुझे बार-बार उनकी याद दिलाते थे, इसलिए मैंने वो सारे मेल और मैसेज अपने फोन से हटा दिए थे। अगर मैं नहीं हटा पाया था, तो शीतल के दिए हुए संगमरमर से बने वो गणेश जी, जो वो मेरे लिए आगरा से लाई थीं। बप्पा की वो छोटी-सी मूरत, मेरे डेस्क पर अब भी रखी थी।
ऑफिस से लौटते वक्त पता नहीं मन में क्या आया कि पापा को फोन लगा दिया। "हेलो पापा!”
"हाँ राज...याद आ गई हमलोगों की?"
"क्या पापा, आप भी...आप लोगों की याद हमेशा आती है।"
"लगता तो नहीं; पिछले कितने दिनों से तुमने फोन तक नहीं किया।"
"सॉरी पापा,बहुत मूड खराब था।"
"देखो राज, जिस रास्ते पर तुम चल रहे हो, उस पर तुम कभी खुश नहीं रहोगे; हमारी बात मानो, हम तुम्हारे माँ-बाप हैं, जो सोचेंगे अच्छा सोचेंगे।"
"आई नो पापा।"
"देखो, एक अच्छी-सी लड़की से शादी करो और अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करो। शीतल बेटी बहुत अच्छी है, लेकिन वो तुम्हारे लिए नहीं है; उसका और तुम्हारा कोई मेल नहीं है।" __
में बस सुनता जा रहा था।
"शीतल को अपनी उम्र का दूसरा लड़का मिल जाएगा, तुम अपने भविष्य के बारे में मोचो। शीतल का साथ अभी तुम्हें अच्छा लग रहा है... लेकिन हमने भी जमाना देखा है; ऐसी परिस्थिति में जो शादी होती हैं, उनमें आगे प्रॉब्लम ही होती हैं... तुम्हारी खुशी इसी में है कि जो लड़कियाँ हमने देखी हैं, उनमें से किसी एक को तुम पसंद कर लो। हाँ, हमारा, तुम्हारे ऊपर कोई प्रेशर नहीं होगा; लड़की से मिलने के बाद तुम्हें लगे कि वो तुम्हारे लिए ठीक नहीं है, तो मना कर देना।"
“ठीक है पापा, आप जैसा चाहें; आपकी और मम्मी की खुशी से बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं है... अगर इस बात से आप लोगों के चेहरे पर मुस्कान आएगी, तो मैं तैयारहूँ।" ___
“ये हुई न समझदारी बाली बात: चलो, ये खुशखबरी मैं तुम्हारी मम्मी को देता हूँ और तुम ध्यान रखो अपने खाने-पीने का: लड़की वालों से मिलो, तो लगना चाहिए कि कोई लड़का है।"
"ओके पापा, बॉय।" पापा को शादी के लिए हाँ तो कर दी थी, पर मन अभी भी दुविधा में था। आखिर कर भी क्या सकता था मैं? जिसके लिए जमाने से लड़ना चाहा, उसने ही कदम पीछे कर लिए; अब पापा की बात मानने के अलावा कोई चारा भी नहीं था मेरे पास।
घर के पास पहुँचा था, कि डॉली का कॉल आ गया।
"हेलो राज, कहाँ हो?"
"हाय डॉली...ऑन द बेटू होम।"
“मैं भी रास्ते में हूँ...आई वांट टूमीट यू।"
"ओके, आओ भुबन भैय्या के यहाँ।।"
"ओके...दस मिनट में।" मैं भुवन भैय्या के यहाँ पहुँच गया। थोड़ी देर में डॉली भी आ गई। टेबल पर कॉफी भी आ गई थी और हमारी बातें भी शुरू हो गई थीं। बातों में सिर्फ डॉली के सवाल थे और मेरे जवाब। मुंबई में सब कैसा रहा? ज्योति की शादी कैसी हुई? मेरे और शीतल के बीच क्या चल रहा है?
और मेरा जवाब था, कि सब खत्म हो गया है, शीतल मेरी जिंदगी से जा चुकी हैं; मैंने उन्हें रोकने की पूरी कोशिश की, पर मैं उन्हें रोकने में असफल ही रहा। डॉली मेरे लिए परेशान थी। उसके चेहरे पर मेरे लिए चिंता साफ नजर आ रही थी। शीतल के जाने के बाद एक डॉली ही थी, जो मेरी फिक्र कर रही थी।
“राज, तुम परेशान मत होना, सब ठीक हो जाएगा। राज, जानते हो, प्यार एक समर्पण है, जिसमें इंसान अपने प्यार के लिए पूरी तरह समर्पित हो जाता है... प्यार एक ऐसा त्याग है, जिसमें इंसान प्यार के लिए दुनिया की सारी दौलत को ठुकरा देता है। प्यार एक ऐसी तपस्या है, जिसमें इंसान अपनी सारी खुशियाँ, अपने सारे ऐशो आराम कुर्बान कर देता है, लेकिन बदले में उसे बस आँसू ही मिलते हैं।"
“डॉली, मैं बहुत अकेला हो गया है।"
“मैं जानती हूँ राज । शीतल की की, तो शायद ही मैं पूरी कर पाऊँ, पर एक दोस्त की तरह मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ: तुम मुझसे अपनी हर परेशानी शेयर कर सकते हो... और मच कहूँ तो मुझे भी तुमसे हर बात शेयर करना अच्छा लगता है। तुम बिलकुल अकेले नहीं हो राज; मैं हूँ तुम्हारे साथ।"
“थेंक यू डॉली।"
"तो अब मुस्कराओ। जनाब राज, उदास चेहरे में अच्छे नहीं लगते हैं।" - डॉली ने हँसते हुए कहा था।
कॉफी खत्म हो गई थी। मैं और डॉली बातें करते-करते घर की तरफ निकले थे। पापा से फोन पर जो बात हुई, वो भी मैंने डॉली को बता दी थी। हाँ, इस बात को सुनकर वो बहुत खुश नहीं हुई थी। उसका रिएक्शन कोई खास नहीं था।
रात काफी हो चुकी थी। आँखों से नींद तो पिछले कई दिनों से गायब थी...लेकिन जब से शादी के लिए हाँ की थी, तब से बेचैनी बहुत बढ़ गई थी।
शीतल की याद आ रही थी। लैपटॉप खोला और शीतल को एक मेल लिखा
" शीतल, कैसी हो? मेरा तो हाल बहुत बुरा है। दिन गुजर जाता है, पर तुम नहीं दिखती हो। बेचैन हो जाता हूँ, तो जानती हो क्या करता हूँ? तुम्हारी फेसबुक प्रोफाइल देख लेता हूँ या पाकिंग में खड़ी तुम्हारी स्कूटी देख आता हूँ। वो सारी चीजें जो तुमसे जुड़ी हैं, वो सारी जगहें जो तुमसे जुड़ी हैं, मुझे तुम्हारी याद दिलाती हैं। वो रास्ते, जहाँ से हम दोनों जाया करते थे, बो हल्दीराम, वो जूम की दुकान, सब तुम्हारा नाम लेकर बुलाते हैं।
पर पता है, अब नहीं जाता हूँ मैं वहाँ; तुम्हारे बिना कहीं जाने का मन नहीं करता है अब। तुम्हारी यादें, आँखों के आगे इस कदर घूमती हैं कि आँखें दुःखने लगती हैं, पर नींद नहीं आती है। और अगर नींद आती भी है, तो तुम ख्वाबों में आ जाती हो। शीतल, मैंने जब से प्यार का मतलब जाना है, बस तुम्हें ही चाहा है.... मैंने जब से जिंदगी का सपना संजोया; हर सपने में तुम्हें ही अपने साथ पाया। तुम्हारी आँखों में भी मैं हमेशा खुद को ही देखना चाहता हूँ। तुम दूर हो गई हो; चली गई हो मेरी जिंदगी से... पर जानती हो, मेरी साँसे तो चल रही हैं, पर मुझे जिंदा होने का अहसास ही नहीं है। तुमने हमेशा मुझे पागल कहा... सच में मैं पागल हो गया हूँ, होशहवास खो बैठा हूँ। अगर मैं जिंदा हूँ, तो सिर्फ तुम्हारे प्यार के अहसास की बदौलत और तुम्हारी यादों की बदौलत । तुमने मेरी जिंदगी में वापस न आने का फैसला कर लिया है। तुम वापस आओ या न आओ, पर यादों में हमेशा तुम्हें प्यार करता रहूँगा। मेरे प्यार को समेटने में तुम्हारी पूरी जिंदगी खत्म हो जाएगी, पर मेरा प्यार खत्म नहीं होगा।
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