Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 01:03 PM,
#85
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"प्रेम का वह रूप, जिसे आदमी अपनी सामान्य दृष्टि से नहीं देख पाता। अर्चना जी, लोग प्रेम करते हैं....उसके लिये त्याग भी करते हैं। परन्तु प्रीति का प्रेम अपने आपमें एक ऐसी साधना है जहां तक आम व्यक्ति पहुंच नहीं पाते। शायद प्रीति ने यह सब इसी नदी से सीखा था। देख नहीं रही हैं आप....इसकी धारा में ठहराब है कहीं?"

"नहीं....."

“जानती हैं क्यों?"

"आप बता दीजिये।"

"इसलिये कि दूर बहुत दूर कोई उसकी प्रतीक्षा कर रहा है, इस जलधारा को वहां तक पहुंचना ही है....भले ही इसे लाखों बाधाओं में से गुजरना पड़े। किनारे पर फैला हुआ रेत इस बात का प्रमाण है कि इसने पत्थरों को भी चूर-चूर कर दिया है। मन्जिल तो दूर है ही परन्तु प्रियतम की चाह इसे और भी बेग से बढ़ने पर विवश कर रही है।"

अर्चना ने बीच में ही पूछा- और मान लीजिये, किसी ने इस पर बांध बना दिया, तब? क्या तब भी यह अपने प्रियतम तक पहुंचने में सफल हो जायेगी।"

"शायद नहीं।" विनीत ने कहा-"परन्तु ऐसी स्थिति में यह अपने नेत्रही मिटा डालेगी....अपने अस्तित्व को ही समाप्त कर देगी। फिर इसे कोई वहती धारा न कह सकेगा। वह एक जलाशय का रूप लेकर रह जायेगी।"

अर्चना ने कुछ नहीं कहा। विनीत के शब्दों में दर्द तो था ही, साथ ही एक गहरी सच्चाई भी थी। संसार का कटु अनुभव उसे था। उसने एक छोटा-सा पत्थर उठाकर जलधारा में फैंक दिया। उस स्वर में पत्थर के गिरने पर आवाज गुम हो गयी। लम्बी खामोशी। परन्तु इस खामोशी में विनीत वहां से हटकर अपने अतीत की ओर चला गया था, जिसमें बेचैनी थी, तड़प थी। प्रीति के साथ के दिन उसकी आंखों के आगे साकार हो उठे। गुजरी जिंदगी का रूप उसके सामने आकर खड़ा हो गया। बस, एक आह भरकर रह गया वह। विवशता!

हां, विनीत के रास्ते में यही एक दीवार थी। सोचने लगा, जब वह उस खुशी को अपनाने के लिये तैयार था, उस समय दुनिया ने उसकी प्रसन्नताओं का गला घोंट दिया। अपने भी दीवार बनकर खड़े हो गये।

और जब....उसे सब कुछ मिला, वह कुछ भी न ले सका। लेकिन प्रीति के विषय में विनीत को ऐसा लग रहा था कि जैसे वह पापी है। उसे किसी की भावनाओं से खेलने का कोई हक नहीं है। उसे प्रीति के जीवन से नहीं खेलना चाहिये था। उससे साफ कह देना चाहिये था, प्रीति....मैं इस जन्म में कभी तुम्हारा नहीं हो सकता। मुझे भूलकर अपने तरीके से जीना सीखो। उसकी विचारधारा टूटी।

अर्चना कह रही थी "शायद बहुत ही दूर खो गये हैं आप।”

"जी....?"

"मेरा मतलब.....आखिर कब तक इतनी गहराई से सोचते रहेंगे?"

"जब तक सांसों का सिलसिला नहीं टूटता।"

"परन्तु इससे मिलता क्या है?"

"शांति।" विनीत ने दूर शून्य की ओर देखते हुये कहा- शायद आप नहीं जानतीं कि विचारों के साथ वहता हुआ इंसान भी बहुत दूर चला जाता है। उस समय लगता है जैसे अपने उसके ही निकट खड़े हों। कितना सुख मिलता है इसमें....।"
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 01:03 PM

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