Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 01:04 PM,
#93
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"विनीत!" वह उसकी ओर देखती रह गयी। "झूठ अपने आप में एक पाप है। परन्तु सत्य पर आवरण डाल देना उससे भी बड़ा पाप होता है अर्चना! जीवन में जो कुछ हुआ, उसकी ही सजा अब तक पूरी नहीं हुई। कोई दूसरा पाप करूं....इतना साहस अब मुझमें नहीं है।"

"ओह...!"

"अर्चना, मुझे जाना ही पड़ेगा।"

“परन्तु क्यों....?"
अपनों को खोजने....उन स्वजनों की तलाश में जो आज भी अधूरे पड़े हैं। उनके बिना मेरी सांसें रुक जायेंगी अर्चना।"

"और मेरा प्यार...?"

"अर्चना....."

"विनीत, मैं समझ नहीं पायी कि मुझे क्या हो गया है।" अर्चना भावुक हो उठी—“जी नहीं चाहता कि तुमसे एक पल के लिये भी अलग हो जाऊं। प्लीज विनीत, यहां से जाने का नाम भी मत लेना। मैं तुम्हारे लिये सब कुछ करूंगी। सुधा और अनीता कहीं भी हुईं, मैं उन्हें खोज निकालूंगी। उनकी तुम बिल्कुल भी परवाह मत करो....."

"अर्चना।" विनीत ने एक निःश्वास लेकर कहा-"तुम मेरे विषय में सब कुछ जानती हो। तुम्हें यह भी मालूम है कि जो सारे समाज में बदनाम हो चुका है, जो वर्षों से मेरी राह में पलकें बिछाये बैठा है....मैं उसी का न हो सका। फिर यह कैसे सम्भव है कि मैं....."

“करने के लिये सभी कुछ सम्भब हो जाता है विनीत । एक बात है, प्रीति कभी भी तुम्हारी नहीं हो सकती।"

“यह....यह तुम कह रही हो अर्चना?" विनीत ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।

"झूठ नहीं है। मैंने उस दिन सारी बातें सुनी थीं। प्रीति के पिताजी के शब्द आज भी मुझे याद हैं। उस दीवार को तुम नहीं गिरा सकते।"

"मैं भी जानता हूं।"

"फिर....?"

"अर्चना, यदि मैं दीवार को नहीं गिरा सकता तो स्वयं तो गिर सकता हूं।"

अर्चना निरुत्तर सी हो गयी। उसकी समझ में नहीं आया कि वह विनीत को किस प्रकार से समझाये। और फिर प्रीति तथा उसमें तो जमीन-आकाश का अन्तर है। वह प्रीति से अधिक सुन्दर है। सब कुछ है उसके पास।

विनीत ने फिर कहा- "अर्चना...इन ब्यर्थ की बातों को छोड़ दो। इस भाबुकता में कुछ भी नहीं है। सिबाय इसके कि तुम्हारे मन की शांति भी भंग हो जाये। दूसरी ओर सोचने वाली बात यह है कि मैं....."

*मैं क्या....?"

“मैं किस योग्य हूं?"

"इस विषय में जितना मुझे जानना चाहिये था, मैं जान चुकी हूं।"

"ओह! परन्तु अर्चना–तुम यह तो सोचो कि मैं एक बेघर, बेसहारा इन्सान हूं। यदि मैंने तुम्हारी बात मान ली तो इससे तुम्हें क्या मिलेगा?"

सुनकर अर्चना की निराशा फिर आशा में बदल गयी। उसने विनीत को उत्तर देते हुये कहा —“विनीत, मुझे तुमसे सिवाय प्यार के कुछ नहीं चाहिये। विश्वास करो, मैं इसके अलावा और कुछ नहीं चाहती।”

"मैं समझता हूं यह मूर्खता की बात होगी।"

"क्यों....?"

"इसलिये कि मैं तुम्हें कुछ नहीं दे सकूँगा। मेरी मानो....इन बिचारों को अपने दिमाग से निकालकर फैंक दो।"
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 01:04 PM

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