Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 01:12 PM,
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
“मंगल, बकवास करने की जरूरत नहीं है।" । अनीता ने कहा और फिर लम्बे-लम्बे डग भरती हुई आगे बढ़ने लगी। अभी बस्ती से दर थी तथा मैदान में झाड़ियां फैली हुई थीं। मंगल को देखकर वह भयभीत तो हुई थी, परन्तु दूसरे ही क्षण उसने अपने आपको संभाल लिया था।

मंगल तेजी से चलकर ठीक उसके सामने आ गया। उसका इरादा अच्छा नहीं था। अनीता ने उसे घूरा रास्ता छोड़ो....।"

"रानी, अगर रास्ता छोड़ता तो रास्ते में ही क्यों आता....." मंगल बोला- इन्तजार की भी हद होती है....."

"मंगल...."

“मैं मजबूर हूं रानी। आज तो फैसला होकर ही रहेगा। या तो तुम रहोगी या मैं। दोनों में से एक को हारना ही पड़ेगा।"

आस-पास कोई न था। उसने अनुनय विनय से ही काम लेना उचित समझा। वह बोली ____"मंगल, फालतू बात मत करो....और मेरा रास्ता छोड़ दो।"

"और मेरा ख्वाब....?"

"तुम्हारा....?"

"मैंने भी तो एक सपना देख रखा हैं उसका क्या होगा? कसम ऊपर बाले की, सारा शहर छान मारा, मगर तुम्हारे जैसी परी किसी गली में भी दिखलाई न पड़ी। और फिर....मैं इतना बुरा भी तो नहीं हूं। काले की छोकरी कह रही थी, मंगल तू तो एकदम छैला है....तेरा कसरती बदन इतना प्यारा लगता है। खैर, तुम्हें किसी काले साले से क्या लेना....अपनी तो....." मंगल की बात पूरी भी न हो पायी थी कि तभी अनीता के हाथ का भरपूर चपत उसके गाल पर पड़ा।

उसने आश्चर्य एवं क्रोध से अनीता की ओर देखा, बोला-"तो....तो मेरी मुहब्बत का यह अन्जाम है....?"

"इससे भी बुरा होता, यदि मेरे पास कुछ और होता तो।” अनीता फुफकारती हुई आगे बढ़ी।

मंगल ने झपटकर उसकी कलाई पकड़ ली और कहा-"मंगल का गुस्सा नहीं देखा अभी।"

"कमीने....." उसने पूरी शक्ति से अपनी कलाई छुड़ाने का प्रयत्न किया।

"आज तो फैसला होकर ही रहेगा....." मंगल का इरादा आज कुछ और ही था। उसने अनीता की दूसरी कलाई भी थाम ली और झाड़ियों की ओर खींचने लगा। ठीक उसी समय जैसे चमत्कार हुआ हो। कोई व्यक्ति फुर्ती से झाड़ियों में से निकला और उसने पीछे से मंगल की गरदन को पकड़ लिया। मंगल ने तुरन्त ही अनीता को छोड़कर अप्रत्याशित रूप से हमला करने वाले व्यक्ति को देखा। वह पलटा, परन्तु गरदन नछड़ा। सका।

अनीता समझ नहीं सकी कि यह सब क्या है। मंगल ने अपनी गरदन छुड़ाकर उस युवक को घूरा-"तुम....तुम कौन हो? क्या मतलब है तुम्हारा?"

“मतलब की बात पूछी तो होठों की मूंछे उखाड़कर माथे पर लगा दूंगा। शर्म नहीं आती एक लड़की के साथ जबरदस्ती करते हुए?" युवक ने कहा।

मंगल खून का चूंट पीकर रह गया। रात का समय होता, तब भी बात दूसरी थी, परन्तु दिन था और सड़क भी अधिक फासले पर न थी इसलिये वह अपना मुंह बनाता हुआ एक ओर को चला गया।

"धन्यवाद।" अनीता ने आ भारपूर्ण दृष्टि से युवक की ओर देखा—“यदि आज आप न आते तो...."

"तो कोई दूसरा आता....." युवक ने कहा-"भगवान को सभी की इज्जत का ख्याल रहता है। लेकिन आपको इस जंगल में अकेली नहीं गुजरना चाहिये था। पास ही सड़क है, आप उससे होकर जा सकती थीं।"

"लेकिन मेरा रास्ता तो यही है।”

"कहीं इधर ही रहती हैं क्या....?" उसने पूछा।

“बो, सामने गोमती किनारे बाली मजदूरों की बस्ती में।

अच्छा....मैं चलूँ!"

अनीता के कदम जैसे जड़ होकर रह गये थे। जैसे कि पीछे से कोई उसे खींच रहा हो, फिर भी उसने आगे बढ़ने के लिये अपने कदम उठाये।

“सुनिये।” युवक ने पुकारा—“आपकी बस्ती में दो लड़कियां रहती हैं?"

"लड़कियां...?" उसने पलटकर युबक की ओर देखा।

"हां....." उसने कुछ सोचते हुये कहा-"एक का नाम अनीता है, दूसरी का सुधा.....। क्या आप उन्हें जानती हैं?"

"परन्तु आप....?" अनीता चौंकी।

युबक ने एक गहरी सांस लेकर कहा-"क्या करेंगी जानकर? मैं उन दोनों का बदनसीब भाई हूं....।"

सुनकर अनीता अपलक विनीत की ओर देखती रह गई। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब स्वप्न है अथवा सत्य? उसने पलकें झपकायीं। स्वप्न नहीं हो सकता था। कई क्षणों तक अनीता की यही दशा रही। इसके बाद वह भैया' कहती हुई विनीत से लिपट गयी। आंखों से प्रसन्नता के आंसू वह निकले। रोते-रोते बोली-"मैं ही तुम्हारी अभागी वहन अनीता हूं भैया....."

"अनीता....." विनीत की आंखें भी भर आयी थीं। कुछ क्षणों बाद वहन भाई अलग हुए।

अनीता ने पूछा-"तुम....तुम सीधे जेल से आ रहे हो भैया....?"

"हां....सुधा कहां है....?"

"वहां झोंपड़ी में।” अनीता बोली-"आओ भैया, वह रात-दिन तुम्हारे लिये आंसू बहाती है....आओ....."
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 01:12 PM

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