RE: Desi Porn Stories बीबी की चाहत
तरुण ने कहा, "तो ठीक है भाभी आप ही डिब्बे को उतारिये। चलिए आप चढ़ जाइये प्लेटफार्म के ऊपर। मैं आपकी मदद करता हूँ।"
यह कह कर अचानक तरुण ने मौक़ा देख कर दीपा के जवाब का इंतजार किये बगैर दीपा के कन्धों को पकड़ कर दीपा को घुमा कर रसोई के प्लेटफार्म के सामने खड़ा किया, और खुद दीपा के पीछे हो गया। दीपा को उठाने के लिए तरुण ने काफी निचे झुक दीपा की साड़ी और घाघरा काफी ऊपर उठा कर दीपा की टाँगों के बिच अपने दोनों हाथ डाल दिए। मुझे पक्का यकीन था की उस समय दीपा की चूत को तरुण की बांहों ने जरूर छुआ होगा और रगड़ा भी होगा। फिर तरुण ने दीपा के कूल्हे में पीछे से अपना सर लगाया और दीपा को पीछे से बड़ी ताकत लगाकर ऊपर उठाया।
बाप रे, मुझे जब बाद में पता लगा तो मेरे लण्ड से जैसे पानी झरने लगा। पीछे जाते समय थोड़ी देर के लिए ही सही, पर उसने अपना लण्ड दीपा के कूल्हे में घुसेड़ कर उसे एकाध धक्का जरूर मारा होगा। एक बार अपना हाथ आगे कर दीपा के बूब्स उसने जरूर दबाये होंगे! दीपा की जाँघों को जकड़ कर अपने हाथ की उंगलियां जरूर दीपा की पैंटी के ऊपर से उसकी चूत में डाली होंगी। यह सब तरुण के लिए कितना रोमांचक होगा! उस समय तरुण का क्या हाल हुआ होगा यह समझना मुश्किल नहीं था। जरूर उसने काफी कुछ शरारत की होगी।
मैं आज भी उस दृश्य की कल्पना करता हूँ तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मेरी बीबी के पीछे उससे सटकर कैसे तरुण खड़ा होगा और उस समय उसका लण्ड कितना सख्त होगा और मेरी बीबी की खूबसूरत गाँड़ और चूत के नीचे कैसे उसने अपने दोनों हाथ डालें होंगें, पिछेसे कैसे धक्का दे रहा होगा यह तो मेरे लिए बड़ा उत्तेजना भरा सोचने का विषय था। वैसे भी इस बहाने उसने दीपा के स्तनों को तो जरूर दबाया होगा। तरुण दीपा के स्तनों पर फ़िदा था और जब भी उसे देखो तो उसकी नजर वहीं टिकी रहती थी।
दीपा तरुण की इस हरकत से भौंचक्की सी रह गयी और कुछ बोल नहीं पायी। वह प्लेटफार्म पर तो चढ़ गयी पर लड़खड़ाने लगी। डिब्बा भारी था। तरुण ने कस कर दीपा के पाँव पकडे और कहा, "दीपा भाभी संभल कर। गिरना मत।"
परन्तु दीपा डिब्बा निचे उतारते लड़खड़ाई और सीधी तरुण पर जा गिरी। तरुण और दीपा दोनों धड़ाम से निचे गिरे। निचे तरुण और उसके ऊपर दीपा। जब मैंने धमाके की आवाज़ सुनी तो भागता हुआ रसोई में गया और देखा की बड़ा रोमांटिक सीन चल रहा था। दीपा तरुण के उपर लेटी हुयी थी और तरुण दीपा को अपनी बाहों में लिए हुए दीपा के निचे दबा था।
आटे के डिब्बे का ढक्कन खुल गया था और दीपा और तरुण के पुरे बदन पर गेहूं का आटा फ़ैल गया था। डिब्बे के ढक्कन का एक कोना तरुण के कपाल पर लगा था और उसमें से खून रिस रहा था। दीपा के बदन को तरुण ने अपनी एक बाँह में घेर रखा था। दीपा की साडी और घाघरा दीपा की जाँघों के काफी ऊपर तक चढ़ा हुआ था और जाँघों को बिलकुल नंगी किये हुए था। ऐसा लग रहा था जैसे तरुण का लण्ड बिलकुल दीपा की चूत में घुसा हुआ था। तरुण दूसरे हाथ से मेरी बीबी के दोनों स्तनों को जकड़े हुए था और वह उन्हें धड़ल्ले से दबा रहा था। मैंने देखा की दीपा अपने आप को सम्हाल नहीं पा रही थी और तरुण को डर और हैरानगी से देख रही थी। दोनों के होठ एक दूसरे के इतने करीब थे की जैसे वह चुम्बन करने वाले थे। तरुण की आँख आटे से भरी हुई थी।
मेरी बीबी की प्यारी सुआकार गाँड़ तरुण के बिलकुल आधी नंगी दिख रही थी। दीपा की साड़ी और उस का घाघरा इतना उठा हुआ था की दीपा की सुडौल जाँघें यहां तक की उसकी पैंटी भी साफ़ साफ़ नजर आ रही थीं। तरुण के पुरे बदन पर आटा फैला हुआ था। दीपा भी आटे से पूरी तरह ढक चुकी थी।
न चाहते हुए भी मैं हंस पड़ा और ताली बजाते हुए बोला, "भाई वाह, क्या रोमांटिक सिन चल रहा है।"
तरुण और दीपा एकदम हड़बड़ाते हुए उठ खड़े हुए। दीपा ने अपनी साड़ी ठीक की और बोली, "मैंने तो तुम्हे बुलाया था। तुम्हे तुम्हारी मैच से फुर्सत कहाँ? तुमने अपने इस मित्र को भेज दिया और देखो क्या हुआ। देखो तुम्हारे दोस्त ने क्या किया? मेरी फजीहत हो गयी ना? और तुम हो की तालियां बजा रहे हो। मैं क्या करती?" दीपा के गाल शर्म के मारे लाल हो रहे थे। वह आगे कुछ बोल नहीं पायी।
तरुण अपनी आँखें मलते हुए बोला, "भाई, मुझे माफ़ कर दो। यह अचानक ही हो गया। मैंने दीपा भाभी को कहा की मैं डिब्बा उतार दूंगा। खैर मैं तो दीपा भाभी को बचाने की कोशिश कर रहा था। यह सब जान बुझ कर नहीं हुआ।"
मैंने मेरी बीबी का तरुण के प्रति कुछ और सहानुभूति बने इस इरादे से मैंने मेरी बीबी दीपा की और घूम कर उसे सख्त नज़रों से देख कर पूछा, "कमाल है! गलती तुम्हारी हुई और तुम दोष तरुण को दे रही हो? क्या यह सब उसने किया? क्या तरुण ने तुम्हें नहीं कहा की तुम ऊपर मत चढ़ो? क्या उसने वह डिब्बा खुद उतार देगा ऐसा तुम्हें नहीं कहा था?"
मेरी बेचारी बीबी मुझे दोषी सी खड़ी चुपचाप लाचार नज़रों से देखती रही। उसे शायद अपने कराये पर पछतावा हो रहा था। मैंने उसे और डाँटते हुए कहा, "तरुण ने बेचारे ने तो तुम्हें गिरने से बचाया। अगर तरुण तुम्हारे निचे ना होता तो तुम फर्श पर गिरती और तुम्हारी हड्डी भी टूट सकती थी। आज अगर तरुण ना होता तो मुझे अभी तुम को लेकर शायद हॉस्पिटल की और भागना पड़ता। देखो बेचारे को कितनी चोट आयी है? उसके सर से कितना खून बह रहा है? ऊपर से उसका सारा ड्रेस तुमने खराब कर दिया। अहसान मानने के बजाय तुम तरुण को दोषी करार दे रही हो?"
मुझे पता नहीं की मेरी बात सुनकर या वाकई में दर्द के कारण; अचानक तरुण ने एकदम कराहना चालू किया। मैंने देखा की तरुण का दाँया हाथ कोहनी के निचे से टेढ़ा हुआ दिख रहा था। तरुण उस हाथ को बाएं हाथ से पकड़ कर कराहने लगा। जब दीपा ने यह देखा तो एकदम डर गयी और तरुण के पास जाकर बोली, "तरुण क्या हुआ? तुम्हें ज्यादा चोट आयी है क्या? तुम ठीक तो हो?"
तरुण ने अपनी आटे से भरी हुई आँखों को मूंदे हुए रखते हुए अपना दायां हाथ आगे करते हुए कहा, "देखो ना दीपा, यह हाथ मूड़ गया है। मुझे वहाँ दर्द हो रहा है।"
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