RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
‘‘भैया, थोड़ा ते़ज चलाओ; इतना धीरे क्यों चला रहे हो? लगता है कुछ खाते नहीं हो, सारा पैसा दारू में उड़ा देते हो।’’ माया ने फिर से शरारत की।
‘‘मेमसाब, जल्दी चलाऊँगा तो हम जल्दी पहुँच जाएँगे; इतनी सुंदर सवारी हो तो उसके साथ ज्यादा से ज्यादा ब़खत बिताने का मन करता है।’’ कबीर ने भी वैसी ही शरारत की।
‘‘हाय राम, बहुत बेशर्म रिक्शेवाले हो; ऐसे भी कोई बात करता है लेडी़ज सवारी के साथ?’’
‘‘मेमसाब! ऐसे तो रिक्शे वाले से भी बात नहीं करनी चाहिए; मजूरी करते हैं, ग़ुलामी नहीं।’’
‘‘अच्छा, तुमसे प्यार करूँ तो ग़ुलामी करोगे?’’ माया ने थोड़ा आगे झुकते हुए एक नटखट मुस्कान बिखेरी।
कबीर ने मुड़कर माया को देखा। उसके चेहरे पर बिखरी नटखट मुस्कान उसे बहुत अच्छी लग रही थी। माया को इस तरह शरारत करते हुए उसने कम ही देखा था। अपनी मंज़िल की ओर भागती माया, जिसे ते़ज ऱफ्तार पसंद थी, आज रिक्शे की धीमी सवारी में छोटी-छोटी शरारतों का म़जा लेती हुई कुछ अलग ही लग रही थी। कबीर की आँखें माया के चेहरे पर टिक गयीं।
‘‘कबीर वाच...।’’ अचानक से माया चीखी।
माया का चेहरा निहारते हुए कबीर का ध्यान, रिक्शे की दिशा पर नहीं रहा था। रिक्शे का अगला पहिया सड़क के किनारे बने फुटपाथ के कर्ब से टकराकर फुटपाथ पर चढ़ा, और रिक्शे का बैलेंस पूरी तरह बिगड़ गया। कबीर ने रिक्शे को सँभालने की कोशिश की, मगर नाकाम रहा। रिक्शा, पलटकर सड़क पर गिरा, और साथ ही कबीर और माया भी। पीछे से आती एक कार के ड्राइवर ने जोर से ब्रेक लगाया। एक चरचराहट के साथ कार के टायर सड़क पर रगड़े; मगर रुकते-रुकते भी कार रिक्शे से टकरा गयी। माया को एक ज़ोर का धक्का लगा और वह रिक्शे से छिटक कर लुढ़कती हुई सड़क पर जा गिरी।
कार ड्राइवर ने झटपट अपने मोबाइल फ़ोन से इमरजेंसी का नंबर मिलाकर एम्बुलेंस बुलाई। तीन मिनट के भीतर, सायरन बजाती एम्बुलेंस पहुँच गई। एम्बुलेंस से पैरामेडिक्स की टीम निकली। पैरामेडिक्स ने झटपट, माया और कबीर को उठाकर स्ट्रेचर पर लिटाया और उन्हें एम्बुलेंस के भीतर लेकर गए। कबीर को कम चोटें आई थीं। वह होश में था। माया को का़फी चोटें लगी थीं, वह बेहोश थी। उसके सिर से खून भी बह रहा था। एम्बुलेंस, सायरन बजाती ते़जी से सेंट थॉमस एक्सीडेंट एंड इमरजेंसी हॉस्पिटल की ओर दौड़ी।
इमरजेंसी वार्ड के बिस्तर पर लेटा कबीर, अपने पैरों में बँधी पट्टियों को देख रहा था। उसके सिर पर भी हल्की चोट आई थी, जिसे ग्लू कर दिया गया था। माया आईसीयू में थी। कबीर को अपनी लापरवाही पर गुस्सा आ रहा था। बेपरवाही तो कुछ हद तक अच्छी होती है, मगर क्या उसे इस तरह की लापरवाही करनी चाहिए, जिससे किसी की जान खतरे में आ जाए। माया को कुछ हो गया तो? कितनी दुर्घटनाओं का बोझ वह अपने ऊपर लेगा? नेहा की मौत का, प्रिया के अवसाद का, और अब माया...।
‘‘आपकी पार्टनर को मल्टीपल इन्जुरी़ज हैं; ब्रेन में ब्लड क्लॉट भी बन गया है; हम दवाइयाँ दे रहे हैं, मगर शायद ऑपरेशन करना पड़े।’’
डॉक्टर नायक ने इमरजेंसी वार्ड के बेड पर लेटे कबीर को बताया।
‘‘वो ठीक तो है न डॉक्टर? ज़्यादा सीरियस तो नहीं है?’’ कबीर ने घबराते हुए पूछा।
‘‘अभी कुछ कह नहीं सकते... कभी-कभी ब्रेन इंजुरी फेटल भी हो जाती है; दूसरे इंटरनल ऑर्गंस में भी चोट आई है... ब्लड लॉस का़फी हुआ है।’’
कबीर की घबराहट और बढ़ी। उसके पास माया के किसी रिश्तेदार का कोई कांटेक्ट नंबर भी नहीं था। ऐसे में उसे सि़र्फ प्रिया की याद आई।
‘‘डॉक्टर! एक फ़ोन कर सकता हूँ?’’ कबीर ने पूछा।
‘‘आप आराम करें; जिसे भी इन्फॉर्म करना है, बता दें, हम उन्हें फ़ोन कर देंगे।’’ डॉक्टर नायक ने कहा।
कबीर ने अपने मोबाइल फ़ोन से प्रिया का नंबर निकालकर ड्यूटी नर्स को दिया। ड्यूटीनर्स, प्रिया को फ़ोन करने वार्ड से बाहर निकल गई।
‘‘हे कबीर! क्या हुआ? कैसे हो?’’ हॉस्पिटल पहुँचते ही प्रिया ने घबराई आवा़ज में पूछा।
‘‘मैं ठीक हूँ प्रिया, मगर माया ठीक नहीं है।’’
‘‘क्या हुआ माया को? मैं मिल सकती हूँ उससे?’’ प्रिया की घबराहट कुछ और बढ़ी।
‘‘अभी नहीं प्रिया; अभी तो शायद वह होश में भी नहीं आई है; ब्रेन में ब्लड क्लॉट बन गया है, शायद ऑपरेशन भी करना पड़े।’’
‘‘ओह! यह सब कैसे हुआ?’’ प्रिया की घबराहट चिंता में बदल गई।
‘‘बताता हूँ प्रिया, मगर पहले ये बताओ, तुम्हारे पास माया के घर वालों का कांटेक्ट नंबर है? उन्हें इन्फॉर्म कर सकती हो?’’
‘‘कबीर, तुम्हें नहीं पता कि माया का कोई नहीं है?’’ प्रिया ने आश्चर्य से पूछा।
‘क्या!’ कबीर चौंक उठा।
‘‘हाँ कबीर; माया के पेरेंट्स की डेथ उसके बचपन में ही हो गई थी; उसके दादा-दादी ने उसे पाल कर बड़ा किया... अब तो वे भी नहीं रहे।’’
‘‘ओह! माया ने कभी बताया ही नहीं।’’
‘‘तुमने कभी पूछा ही नहीं होगा; तुम हो ही ऐसे लापरवाह।’’
कबीर को अब जाकर समझ आया, कि माया में सफलता और संपन्नता की इतनी ललक क्यों है... अनाथ थी... अभावों से गु़जरी रही होगी।
चैप्टर 22
अगले दिन माया को होश आया। प्रिया, माया के लिए उसके पसंदीदा स़फेद फूलों का गुलदस्ता लेकर उससे मिलने गई।
‘‘हाय माया! अब कैसी हो?’’ प्रिया ने उसे गुलदस्ता देते हुए पूछा।
‘बेटर।’ माया ने मुश्किल से कहा।
‘‘तो ये सब कबीर की करतूत है; इसी ने तुम्हें रिक्शे से गिराया था।’’ प्रिया ने कबीर पर एक व्यंग्य भरी दृष्टि डाली, ‘‘कबीर, तुम कुछ सँभाल भी पाते हो? न प्रेम सँभलता है और न ही प्रेमिका।’’
प्रिया की बात पर कबीर को का़फी झेंप महसूस हुई; उसने शरमाकर माया की ओर देखा। माया ने कुछ कहना चाहा, मगर उसके पहले ही प्रिया ने कहा, ‘‘माया, सुना है तुम अपनी फ़र्म में पार्टनर बन गई हो, कांग्रेट्स।’’
‘‘थैंक्स प्रिया।’’ माया को प्रिया का मिलनसार व्यवहार अच्छा लगा। उसे तो लगता था कि प्रिया कभी उसका चेहरा भी न देखना चाहेगी, मगर प्रिया तो ख़ुद एक नए रूप में उसके सामने थी। माया के लिए यह एक सुखद आश्चर्य था।
माया के ब्रेन का ऑपरेशन सफल रहा। उसकी दार्इं टाँग में मल्टिपल प्रâैक्चर हुए थे। हिपबोन सरक गई थी; उसे भी ऑपरेट करके जाँघ के भीतर स्टील की प्लेटें डालकर सहारा दिया गया था। पूरी टाँग पर प्लास्टर चढ़ा था। बाकी की चोटों से हुए घाव भी भरने लगे थे। इस बीच प्रिया, माया से नियमित मिलती रही। वो माया के लिए उसके पसंदीदा फूल और खाना भी ले आती। माया को ये जानकर राहत और ख़ुशी मिली, कि प्रिया के मन में उसके लिए कोई दुर्भावना नहीं रह गई थी। कुछ दिनों में माया को बेड रेस्ट और अच्छी केयर की सलाह देकर उसे हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई।
‘‘माया, तुम मेरे घर चलो; वहाँ तुम्हारी अच्छी केयर हो जाएगी।’’ कबीर ने माया से कहा।
‘‘नहीं कबीर, माया मेरे साथ मेरे अपार्टमेंट में रहेगी।’’ प्रिया ने कहा।
तुम अपना काम करोगी या माया की केयर करोगी?’’
‘‘और तुम अपनी जॉब करोगे या माया की केयर करोगे?’’
‘‘घर पर माँ हैं; वो केयर करेंगी माया की।’’
‘‘माँ को तकली़फ तब देना, जब माया उनकी बहू बन जाए; अभी माया को मेरे साथ ही रहने दो।’’ प्रिया ने माया की ओर एक मीठी मुस्कान बिखेरी।
प्रिया की बात से कबीर को थोड़ी से झेंप हुई। उसने झेंपते हुए, माया की ओर देखा। माया को प्रिया के शब्द छू गए। उसका यकीन मजबूत हो गया कि प्रिया ने उसे मा़फ कर दिया था।
‘‘कोई मुझसे भी पूछेगा कि मैं कहाँ रहना चाहूँगी?’’ माया ने कहा।
‘‘हाँ माया, तुम्हीं कहो प्रिया से, कि तुम मेरे घर पर आराम से रह सकोगी।’’ कबीर ने प्रिया की ओर देखते हुए माया से कहा।
‘‘ह्म्म्म...मुझे लगता है कि मैं अपनी सहेली के घर ज़्यादा आराम से रहूँगी।’’ माया ने कुछ सोचने का अभिनय करते हुए मुस्कुराकर कहा।
‘‘हूँ... नारी एकता... तुम लोगों को, मर्दों को झुकाकर ही म़जा आता है।’’ कबीर ने झुँझलाते हुए कहा।
माया ने शरारत से प्रिया को आँख मारी, और फिर दोनों खिलखिलाकर हँस पड़ीं।
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