Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
10-27-2020, 01:28 PM,
#45
RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
Chapter 4

डीसीपी पाटिल और नीलेश मौकायवारदात पर पहुंचे ।
डीसीपी वर्दी में नहीं था इसलिये उसे उम्‍मीद थी कि उसे वहां कोई पहचानने वाला नहीं था । पूछे जाने पर वा खुद को पत्रकार बता सकता था जो कि इत्‍तफाक से पहले से आइलैंड पर मौजद था ।
नीलेश यूं डीसीपी के वहां आने के हक में नहीं था ।
उस वक्‍त मौकायवारदात पर कई पुलिसिये मौजूद थे और पुलिस जीप के करीब एक एम्‍बूलेंस भी खड़ी दिखाई दे रही थी । उसके पिछले दोनों पट खुले थे जिनकी वजह से फासले से भी भीतर झांका जा सकता था ।
एम्‍बूलेंस फिलहाल खाली थी ।

परे रेलिंग के पास दयाराम भाटे खड़ा था जो कि एक सब-इंस्‍पेक्‍टर के रूबरू था । दोनों में कोई वार्तालाप जारी था जिसमें सब-इंस्‍पेक्‍टर वक्‍ता था और भाटे श्रोता था जो कि रह रहकर संजीदगी से सहमति में सिर हिला रहा था ।
उधर से तवज्‍जो हटा कर नीलेश डीसीपी की तरफ घूमा ।
डीसीपी उसके पहलू में मौजूद नहीं था । उसने इधर उधर निगाह दौड़ाई तो पाया वो रेलिंग के पार की ढ़लान उतरा जा रहा था ।
नीलेश व्‍यग्र भाव से सोचने लगा ।
उसे वहीं ठहरना चाहिये था या डीसीपी के पीछे लपकना चाहिये था !

उसकी अक्‍ल ने यही फैसला किया कि उसे वहीं बने रहना चाहिये था । डीसीपी अपने साथ उसकी हाजिरी चाहता होता तो उसे साथ ले कर जाता ।
पांच मिनट में डीसीपी वापिस लौटा ।
“एक निगाह में एक्‍सीडेंट ही जान पड़ता है” - वो संजीदगी से बोला - “एक सैंडल रेलिंग के पास जरा ही दूर पड़ी मिली । शायद उसी की वजह से लड़खड़ाई और गिर पड़ी । गिरी तो लुढ़कती चली गयी । स्‍लोप बहुत स्‍टीप है इसलिये ढ़लान पर लुढ़कते पत्‍थर की तरह रफ्तार पकड़ती गयी जिसको तभी ब्रेक लगी जबकि सिर जाकर चट्‌टान से टकराया । खोपड़ी तरबूज की तरह खुली पड़ी थी ।”

“सर, किसी न आपको टोका नहीं ?”
“कौन टोकता ! कमीने ड्‌यूटी की तरह ड्‌यूटी करें तो टोकने लायक कुछ दिखाई दे न ! लाश से परे खडे़ दो जने यूं हंस हंस के गप्‍पे हांक रहे थे जैसे बारात में आये हों और एम्‍बूलेंस वालों के स्‍ट्रेचर के साथ नीचे पहुंचने का इंतजार कर रहे थे ।”
“सर, लेकिन जब पुलिस इसे कत्‍ल का केस तसलीम कर भी चुकी है तो....”
“राइट ! राइट ! मैंने वो नतीजा बयान किया जो फर्स्‍ट इंस्‍टेंस में सूझता था, जो रेलिंग के पास पड़ी सैंडल सुझाती थी ।”
“ओह ! सर, अधिकारी साहब ने ये भी तो कहा था कि कातिल गिरफ्तार हो भी चुका है !”

“हां, कहा तो था !”
“कौन होगा बद्‌नसीब ?”
“बद्‌नसीब !”
“सर, लड़की अगर किसी फाउलप्‍ले का शिकार होकर मरी हो तो बद्‌नसीब ही तो !”
“तुम्‍हारा मतलब है कत्‍ल किसी और ने किया और थोपा किसी और के सिर जा रहा है ?”
“गुस्‍ताखी माफ, सर, क्‍या बड़ी बात है ! इंस्‍पेक्‍टर महाबोले के निजाम में यहां जो न हो जाये, थोड़ा है ।”
“ठीक ! वो रेलिंग के पास खड़ा सब-इंस्‍पेक्‍टर केस का इनवैस्टिगेटिंग आफिसर जान पड़ता है । आओ, उससे बात करते है ।”
“सर, मैं भी !”
“क्‍यों नहीं ? ऐनी प्राब्‍लम ?”
“सर, उसके साथ जो सिपाही खड़ा है, वो प्राब्‍लम क्रियेट कर सकता है ।”

“तुम्‍हारे लिये ?”
“जी हां ।”
“देखेंगे ।”
नीलेश हिचकिचाया ।
“अरे, भई, मैं डिप्‍टी कमिश्‍नर आफ पुलिस हूं....”
“लेकिन अभी तो पत्रकार....”
“जरूरत पड़ने पर मै अपनी असलियत उजागर करूंगा तो क्‍या करेगा वो सिपाही या वो सब-इंस्‍पेक्‍टर ! मुझे बहुरूपिया करार देंगे ! मजाल होगी उनकी !”
नीलेश ने हिचकिचाते हुए इंकार में सिर हिलाया ।
“जायंट कमिश्‍नर साथ हैं-जो कि होम मिनिस्‍टर के खास हैं-सारा थाना लाइन हाजिर हो जायेगा । चलो ।”
नीलेश डीसीपी के साथ हो लिया।
वो करीब पहुंचे तो दोनों पुलिसियों ने उनकी तरफ देखा ।
भाटे की नीलेश पर निगाह पड़ी तो उसके नेत्र फैले ।

“साब जी” - एकाएक वो उत्‍तेजित भाव से बोला - “यही है वो आदमी ।”
“कौन आदमी ?” - सब-इंस्‍पेक्‍टर जोशी सकपकाया ।
“जो रात को मरने वाली की तलाश में सुनसान सड़कों पर मारा मारा फिरता था । मरने वाली के बोर्डिंग हाउस पर भी पहुंचा था जहां कि मेरी वाच की ड्‌यूटी थी । मेरे को उल्‍लू बनाकर उसके बोर्डिंग हाउस के कमरे में भी ले गया ताकि इसकी तसल्‍ली हो जाती कि वो भीतर सोई नहीं पड़ी थी ।”
“क्‍यों तलाश थी इसे रोमिला की ?” - सब-इंस्‍पेक्‍टर नेत्र सिकोडे़ नीलेश की तरफ देखता बोला ।
“बोलता था, उसके साथ डेट थी । डेट पर पहुंची नहीं थी इसलिये फिक्र करता था । मैं बोला भूल गयी होगी या डेट क्रॉस कर गयी होगी, ये फिर भी फिक्र करता था । साब जी, मेरे को रात को नहीं खटका था लेकिन अब खटक रहा है, इसकी तलाश में कोई भेद । हमे पूछताछ के लिये इसको थामना चाहिये ।”

“है कौन ये ?”
“आपको नहीं मालूम !”
“क्‍यों, भई ! मेरे पास सारे आइलैंड के बाशिंदो का रेडी रैकनर है !”
“ये कोंसिका क्‍लब का बाउंसर नीलेश गोखले है ।”
“अब नहीं हूं ।” - नीलेश सहज भाव से बोला ।
“क्‍या बोला ?” - सब-इंस्‍पेक्‍टर बोला ।
“कल नौकरी से जवाब मिल गया । खडे़ पैर डिसमिस कर दिया गया ।”
“क्‍यों ?”
“पुजारा बोलेगा न ! पूछना ।”
“मै तुमसे पूछ रहा हूं ।”
“मुझे वजह नहीं मालूम । न उसने मुझे बताई ।”
“पूछी होती !”
“पूछी थी । उसने कोई जवाब नहीं दिया था ।”

“हूं । यहां क्‍यों आये ?”
“रोमिला के साथ जो बीती, वही लाई ।”
“खबर कैसे लगी ?”
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RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट - by desiaks - 10-27-2020, 01:28 PM

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