Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-28-2020, 02:13 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“आ्ह्ह््आआह्ह्ह्, ममा, ओ्ओ्ओह्ह्ह् माई स्वीटहार्ट, यस्स्स्स्, प्यार करो ओह मेरे पपलू को।” आनंदित हो कर बोला वह। अब मैंने अपने जीभ से उसके लिंग को सुपाड़े से लेकर जड़ तक चाटना शुरू किया। लिंग के जड़ के पास पहुंच कर मैं रुकी नहीं, नीचे जा कर उसके अंडकोश को चाटने लगी। “आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, ऐसे ही, उफ्फ हां मेरी जान ऐसे ही” वह खुशी के मारे बोले जा रहा था। मैं उसके आनंद भरे उद्गार से उत्साहित हो कर उसके सुपाड़े को अपने होंठों के बीच ले कर चुभलाने लगी। अपनी जीभ को उसके सुपाड़े के ऊपर के चमड़े के अंदर डाल कर चलाने लगी। फिर धीरे धीरे उसके विशाल सुपाड़े को मुह में भर कर चूसना आरंभ किया। अभी मैंने चूसना आरंभ ही किया था कि क्षितिज ने उत्तेजना के आवेश में मेरे सर को कस कर पकड़ लिया और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, उसनें अपनी कमर को ऊपर की ओर उछाला और अपना पूरा आठ इंच लंबा गधे सरीखा लिंग मेरे हलक में उतार दिया। यह इतना आकस्मिक हुआ कि मैं संभल भी नहीं पाई। उसका लिंग और अधिक मोटा हो कर मेरे गले को अवरुद्ध कर दिया। उसके मुंह से आनंद भरी लंबी आह निकलने लगी।

“आ्आआ््आआ््हह्ह, ओ्ओ्ओह्ह्ह् मेरी जा्आ्आ्आ्आन, इस्स्स्स्स।” मेरे सर को इस कदर सख्ती से पकड़ रखा था कि मैं सर हिलाने या पीछे करने में भी असमर्थ हो गयी, मेरी सांसें जैसे थम गईंं, और तभी उसके लिंग से गरमागरम गाढ़े वीर्य का फौव्वारा फूट पड़ा। घुटती सांसों के बीच मैं उसके इतने सालों से जमे वीर्य का कतरा कतरा अपने हलक में उतारती चली गई। शायद यह उसके जीवन का प्रथम स्खलन था। करीब एक डेढ़ मिनट की दमघोंटू स्खलन के पश्चात जब उसकी पकड़ ढीली हुई, मैं हकबका कर उसके ढीले पड़ते लिंग को अपने मुख से निकाल कर लंबी लंबी सांसें लेने लगी। उधर वह भी अपने जीवन के प्रथम स्खलन के अनिर्वचनीय आनंद में डूब कर अपनी आंखें बंद किए लंबी लंबी सांसें ले रहा था। काफी देर से बेचारा बेचैन था इस आनंद भरे स्खलन के सुख से। इस सुखद अनुभव से अबतक वह वंचित था। मैं सर उठा कर उसके चेहरे को देख रही थी, ओह, मेरा बेटा कितना खुश दिख रहा था, पूरी तरह संतुष्ट। मुझे उस पर ढेर सारा प्यार उमड़ पड़ा और मैं उसके माथे को, गालों को होंठों को बेहताशा चूमने लगी, फिर बोली, “ओह मेरे प्यारे राजा, तुम्हारा पपलू बड़ा मस्त है रे, लेकिन बड़ा जालिम भी। मेरी तो जान ही निकाल डाली थी इसने।”

“ओह मेरी रानी मॉम, यू आर ग्रेट। पहली बार मैंने ऐसे आनंद को फील किया। मेरे पपलू को पता नहीं आपने क्या कर दिया, मेरा तो पूरा शरीर आनंद में डूब गया। सारा तनाव दूर हो गया। आपकी मुनिया, उफ मेरी जान, ऐसा महसूस हुआ जैसे स्वर्ग का द्वार हो। मन नहीं भरा। पता नहीं क्यों? कुछ तो और खास है आपकी मुनिया में जो मुझे पता नहीं है। ऐसा लग रहा है आपकी मुनिया मेंं कोई बहुमूल्य खजाना छिपा है, मगर उस खजाने को हासिल कैसे किया जाय यह मुझे पता नहीं है।” वह अनाड़ी नौजवान इस तरह अपने मनोभावों को व्यक्त कर रहा था कि मुझे उस की मासूमियत पर तरस आ रहा था। अब उसे कैसे बताऊँ मैं कि जिसे वह स्वर्ग का द्वार महसूस कर रहा है वह सचमुच में स्वर्ग का द्वार ही है। कैसे बताऊँ उसे कि मेरी योनि में क्या खजाना है? खजाना भी कैसा, अखंड, अवर्णनीय, आनंद का स्रोत।

“हाय मेरे भोले बलम, सच में तू बड़ा भोला है रे। बलिहारी जाऊं तेरे इस भोले पन पर।” मैं उसकी भोली बातें सुनकर हंस पड़ी। बड़ा प्यार उमड़ आया उसकी मासूमियत पर। उसके कामदेव स्वरूप नंगे तन से चिपक गई और उसके होठों को बेसाख्ता चूमने लगी।

मैं अब नैतिकता और अनैतिकता के बीच के द्वंद्व से पूरी तरह मुक्त हो चुकी थी। जब बात इतनी दूर तक बढ़ चुकी है तो अब और किस बात की झिझक। सिर्फ उसके कुवांरे लिंग को अपनी योनि में समाहित करना ही तो बाकी रह गया था। यौन क्रिया का असली सुख तो लिंग और योनि के मिलन में ही निहित है, अतः संसर्ग के वास्तविक सुख से इस नादान को वंचित रखने का कोई औचित्य भी नहीं था। मैं उसके नंगे जिस्म से चिपकी हुई उसके सारे अंगों पर अपने हाथ फेरती रही। यही काम क्षितिज भी अब मेरे साथ करने लगा था। वह मेरे चुंबन के प्रतिदान में मुझे अपनी मजबूत बांहों में दबोचे मेरे होंठों को चूम रहा था, मेरे गालों को चूम रहा था, मेरी गर्दन को चूम रहा था। इस वक्त मैं उसके नग्न शरीर पर चढ़ी हुई थी। उसके नंगे बदन से चिपका मेरा नंगा बदन मुझमें एक खुमारी सा भर रहा था। एक ऐसा आहसास, जिसे मैं आज तक महसूस नहीं कर पाई थी, ऐसे आहसास को महसूस कर रही थी। मैं उस पर निछावर हुई जा रही थी। मैं पुनः उत्तेजित होने लगी थी। मेरे बड़े बड़े स्तन उसके चौड़े चकले सीने से दबे हुए मुझे उकसा रहे थे कि मैं अपने बच्चे को अपनी कामुकता की भट्ठी में झोंक दूं। अपने साथ लिए दिए उसे भी वासना के सैलाब में डुबो दूं। पूरी तरह अपनी कामुक कमनीय देह को अपने बेटे को समर्पित कर दूं। उस अनजाने स्वर्गीय सुख से परिचित करा दूं जो उस अनाड़ी, नादान, सीधे सादे बच्चे के लिए बिल्कुल नया है। अपने हाथों से उसके सिर को बड़े प्यार से सहला रही थी। उसके गालों पर हाथ फिरा रही थी। यह सब करते करते करीब पांच मिनट बीत चुका था तभी मुझे आभास हुआ कि मेरी योनि के ठीक पास क्षितिज के मुरझाये हुए लिंग का स्पर्श हो रहा है जो शनैः शनैः सर उठा रहा था, सख्त हो रहा था, जाग रहा था। मैं गनगना उठी, प्रसन्न हो उठी उसके लिंग को पुनः जागता देख कर। मेरी योनि भी फड़फड़ा उठी। मेरा रोम रोम सिहर उठा। मेरे स्तन कठोर हो गये और चुचुक तन गये, शायद उनकी चुभन को क्षितिज ने भी अपने सीने पर महसूस कर लिया था। क्षितिज के हाथ खुद ब खुद मेरे सख्त हो चुके उरोजों पर अठखेलियाँ करने लगे।

“आह मॉम, मेरा पपलू फिर आपके प्यार का भूखा हो रहा है। ओह्ह मेरी जादूगरनी डार्लिंग, क्या जादू कर दिया आपने मॉम?” उसके चेहरे पर अब उत्तेजना स्पष्ट झलकने लगी थी।

“हाय मेरे राजा, जादूगरनी सिर्फ मैं नहीं हूं रे, तू भी कम बड़ा जादूगर नहीं है। देख मेरी चूचियां कैसे तन गयी हैं। देख मेरी मुनिया कैसे फड़फड़ा रही हैं, ओह मेरे नादान बेटे, जो हाल तेरे पपलू का हो रहा है वही हाल मेरी मुनिया का भी हो रहा है।” मैं जानती थी कि अब मुझे क्या करना है। जो भी मैं करने जा रही थी उसे मैं इस तरह करना चाहती थी कि क्षितिज को ऐसा आभास हो कि यह सब अपने आप हो रहा है, बिना किसी के पहल के। मैं कसमसाती हुई किसी प्रकार अपनी योनि छिद्र को अबतक पूर्ण रूप से तन चुके उसके लिंग के सुपाड़े के ऊपर स्थापित कर लिया था।

“ओह मेरी मां, यह क्या, उफ्फ, आपकी मुनिया तो लगता है मेरे पपलू को चूम रही है। आह्हह कितना अच्छा लग रहा है मैं बता नहीं सकता।” उसने उत्तेजना के आवेश में अपने हाथ का दबाव मेरे नितंबों पर बढ़ाना शुरू कर दिया। “ओह मॉम, अपनी मुनिया को मेरे पपलू से चिपकने दो, कस के चूमने दो, उफ्फफ, आने दो मेरी रानी अपनी मुनिया को।”

मैं ने अपनी ओर से सिर्फ इतना ही किया था कि मेरी योनि को उसके लिंग पर स्थापित कर दिया और नतीजा मेरे मनोनुकूल निकला। अनजाने में आवेशित क्षितिज मेरे नितंबों पर दबाव बढ़ाता जा रहा था, परिणाम स्वरूप धीरे धीरे मेरे लसलसे योनि छिद्र को फैलाता हुआ उसके लिंग का विशाल सुपाड़ा मेरी योनि में प्रवेश करने लगा। “आह्ह् मेरे बेटे, ओह यह क्या कर रहे हो, ओह मा्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, उफ्फ तेरा पपलू मेरी मुनिया के अंदर घुस्स्स्स्आ्आ्आ्आ्ह्ह चला जा रहा है, ओह।”

“आह्ह्ह् मॉम, यह मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे पपलू को आपकी मुनिया के इसी रास्ते की तलाश थी। ओह मॉम जाने दो मेरे पपलू को, शायद यहीं वह खजाना है जिसकी तलाश मुझे थी।” धीरे धीरे मुझे अपने बंधन में कसता जा रहा था। इसी क्रम में उसके सुपाड़े के ऊपर का चमड़ा कब पलट गया उसे पता ही नहीं चला। शायद उत्तेजना की अधिकता और आनंद के उन पलों में चमड़ा पलटने की हल्की सी पीड़ा का उसे आभास तक नहीं हुआ था। सरकता सरकता धीरे धीरे घुसता चला जा रहा था उसका कुवांरा लिंग, मुझ जैसी खेली खाई रंडी की फूल कर कुप्पा बनी फकफकाती योनि में, जो उस समय तक वासना की अग्नि में झुलस झुलस कर धधकती ज्वालामुखी का कुआं बन चुका था। फिर भी अपने खुद के बेटे के लिंग को अपनी योनि में ग्रहण करने का एक अलग ही आहसास हो रहा था। समाज की दृष्टि से अनैतिक इस दैहिक संबंध के रोमांच को महसूस करने का एक निहायत ही अलग अनुभव था यह। मैं नैतिक अनैतिक की लक्ष्मण रेखा को पार कर चुकी थी।

आगे जो कुछ हुआ, उसे जानने के लिए अगली कड़ी पढ़ें।

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RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - by desiaks - 11-28-2020, 02:13 PM

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