RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
बीस-पच्चीस मिनट पश्चात एक शहर की रोशनियाँ नजर आनी शुरू हो गईं।
शहर का नाम था- अलीगढ़।
पहली ही इमारत पर लगे नियोन साइन से बने अक्षर चमक रहे थे-सैनी डीलक्स मोटल। प्रवेश द्वार और लॉबी में दिन की भाँति प्रकाश फैला था।
ठीक सामने कार पार्क करके राज भीतर दाखिल हुआ।
रिसेप्शन डेस्क पर मौजूद सुंदर स्त्री ने सर से पाँव तक उसे देखा।
-“फरमाइए?” थकी सी आवाज में बोली।
-“मेरी कार में एक आदमी को मदद की सख्त जरूरत है।” राज ने कहा- “मैं उसे अंदर ले आता हूँ। आप डाक्टर को बुला दीजिये।”
स्त्री की आँखों में चिंता झलकने लगी।
-“बीमार है?”
-“उसे गोली लगी है।”
-“वह जल्दी से उठी और पीछे बना दरवाजा खोला।
-“सतीश, जरा बाहर आओ।”
-“उसे डाक्टर की जरूरत है।” राज ने कहा- “बातें करने का वक्त यह नहीं है।”
गवरडीन का सूट पहने एक लंबा-चौड़ा आदमी दरवाजे में प्रगट हुआ।
-“अब क्या हुआ? खुद कुछ भी नहीं संभाल सकतीं ?”
स्त्री की मुट्ठियाँ भींच गईं।
-“मेरे साथ तुम इस ढंग से पेश नहीं आ सकते।”
आदमी तनिक मुस्कराया। उसका चेहरा सुर्ख था।
-“मैं अपने घर में जो चाहूँ कर सकता हूँ।”
-“तुम नशे में हो सतीश।”
-“बको मत।”
डेस्क के पीछे थोड़ी सी जगह में वे दोनों एक-दूसरे के सामने तने खड़े थे।
-“देखिये बाहर एक आदमी को खून बह रहा है। उसकी हालत बहुत नाज़ुक है।” राज बोला- “अगर आप उसे अंदर नहीं लाने देना चाहते तो कम से कम एंबुलेंस ही बुला दीजिये।”
आदमी उसकी ओर पलटा।
-“कौन है वह?”
-“पता नहीं। साफ-साफ बताइए, आप लोग मदद करेंगे या नहीं?”
-“जरूर करेंगे।” स्त्री ने कहा।
आदमी दरवाजा बंद करके बाहर निकल गया।
स्त्री डेस्क पर रखे टेलीफोन का रिसीवर उठाकर नंबर डायल कर चुकी थी।
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