RE: Mastaram Stories पिशाच की वापसी
पिशाच की वापसी – 2
"देखो मुझे कुछ नहीं पता है, तुम क्या कहना चाहते हो साफ साफ बताओ"
नर्मी से एक बार फिर से जवाब आया.
"ये चुप हो जा, बडे साहब से बात करने की तुझे तमीज है की नहीं"
दूसरे आदमी ने उसका हाथ पकड़ के उसे कहा.
"माफ करना साहब, जवान खून है जोश में थोड़ा ऊंचा बोल गया, ये नहीं ध्यान रहा की मजदूर और मालिक में बहुत फर्क होता है"
उस आदमी ने सामने हाथ जोड़ के माफी माँगी
"कोई बात नहीं, तुम ये सब छोड़ो और ये बताओ आख़िर क्या हुआ है, जो तुम सब इतने घबराए हुए लग रहे हो मुझे”
"बात ही कुछ ऐसी है साहब की जिसे सुन और देख के घबराहट की लहर हम सभी के शरीर में दौड़ रही है"
उस आदमी ने थोड़ी धीमी आवाज़ में कहा, उसने आगे कहना शुरू करा और कहते कहते उसके चेहरे के भाव बदलने लगे.
"जिस जगह पे हम काम कर रहे हैं साहब, वहां कुछ बहुत गलत चीज़ है, कोई है जो हमें काम करने देना नहीं चाहता, कोई है जो हमें चेतावनी दे रहा है वहां से चले जाने की"
“कोन है वह"?
कुर्सी पे बैठे आदमी ने भी धीमी आवाज़ में पूछा..
"शायद कोई शैतान है साहब, क्यों की एक शैतान ही ऐसे काम कर सकता है”
"कैसे काम की बात कर रहे हो तुम, क्या हुआ है वहां”
"मौत, मौत हुई है वहां, वह भी कोई आम मौत नहीं साहब, दर्दनाक मौत"
मौत का नाम सुनते ही कुर्सी पे बैठे आदमी की आँखें बड़ी हो गयी, मानो उसे बहुत बड़ा झटका दिया हो अभी..
“मौत, शैतान, क्या बोल रहे हो रघु तुम, मुझे अभी तक कुछ समझ नहीं आया, आख़िर हुआ क्या है मुझे साफ साफ क्यों नहीं बता रहे हो तुम लोग"
इस बार थोड़ी ऊंची आवाज़ में कहा.
एक पल के लिए वहां शांति हो गयी, रघु भी चुप था, कुर्सी पे बैठा आदमी और ज़मीन पे बैठे सारेे आदमी रघु की तरफ देख रहे थे और रघु अपनी बात को कहने के लिए शब्द ढूँढ रहा था.
आख़िर उसने कहना शुरू किया……….
"साहब कल की बात है जब हम सब वहां काम के लिए पहुंचे ………."
रघु ने आगे बताना शुरू किया….
सुबह का समय, अच्छा ख़ासा दिन निकल रहा था, सूरज ने उस जगह पे अपनी अच्छी छाप छोड रखी थी.
खुली जगह, जगह की हालत काफी बिगड़ी हुई थी, और शायद तभी उस बड़ी सी जगह पे शोर हो रहा था, काम होने का शोर.
काफी सारे आदमी वहां लगे हुए थे काम में, कोई पेड़ काट रहा था तो कोई एक तरफ खुदाई कर रहा था, कोई मिट्टी उठा उठा के ट्रक में डाल रहा था, सब अपना काम कर रहे थे, कोई उस आधे घने जंगल में काम कर रहा था, जहाँ काफी कम पेड़ बचे थे, तो कुछ लोग एक कुछ खुदायी का काम कर रहे थे …
ये सब करते हुए सुबह शाम में कब बदली पता ही नहीं चला, एक एक कर के उस जगह से सारे आदमी जाने लगे, उस जगह पे चल रहा शोर, धीरे धीरे कम होने लगा, लेकिन अब भी कोई था जिसने उस जगह पे अपना काम जारी रखते हुई उस शोर को बना रखा था …
ककचह…….ककचह……ककचह…….ककचह……..ककचह……….ककचह… ककककचह……..ककककचह……ककककचह……कककचह……ककचह….. लगातार एक के बाद एक प्रहार ज़मीन पे करता हुए एक मजदूर अपने काम में लगा हुआ था, मिट्टी खोदते खोदते उसका आधा शरीर इस वक्त उस गढ्ढे में था जो वह खोद के बना चुका था..
"अरे कालू टाइम हो गया है"
थोड़ी दूर से एक आदमी चील्लाया
"हाँ पता है बस 5 मिनट दे, इसे पूरा कर लू"
चील्लाते हुए उसने एक बार फिर ज़मीन पे जब मारा तो इस बार मिट्टी की नहीं किसी और चीज़ की आवाज़ आई.
कालू ने उस जगह पे दुबारा मारा तो फिर वही आवाज़ आई, फिर वह झुका और उसने अपने हाथ से उस जगह की मिट्टी हटाने लगा, जैसे जैसे उसने मिट्टी हटानी शुरू की वैसे वैसे उसकी आँखों के सामने उसे कुछ चमकता हुआ नज़र आने लगा…
मिट्टी हटते ही उसके सामने चमकदार चीज़ आ गयी, जो सूरज की रोशनी में और ज्यादा चमक रही थी, कालू के चेहरे पे बड़ी सी मुस्कान आ गयी जब उसने उस चमकती चीज़ को देखा, फिर उसने धीरे धीरे अपने हाथ उस चीज़ की तरफ बड़ाये, धीरे धीरे वह हाथ उस चीज़ पे पहुंच रहे थे
"अरे चल भी शाम होने को आई, घर जाते जाते देर हो जायेगी"
फिर से दूर से एक आदमी की चिल्लाने की आवाज़ आई.
"तू चल में आ रहा हूँ"
कालू ने गर्दन घुमा के कहा और फिर उस चमकदार चीज़ को देखने लगा, और अपने हाथ को उस तरफ ले जाने लगा, आख़िर उसने उस चमकदार चीज़ को अपने हाथों से पकड़ा और उठा लिया, जैसे ही उसने उस उठाया ……….
"आआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआ……….."
एक दर्दनाक आवाज़ ने उस जगह को घर लिया…….
ककचह…….ककचह……ककचह…….ककचह……..ककचह……….ककचह… ककककचह……..ककककचह……ककककचह……कककचह……ककचह….. लगातार एक के बाद एक प्रहार ज़मीन पे करते हुए एक मजदूर अपने कम में लगा हुआ था, मिट्टी खोदते खोदते उसका आधा शरीर इस वक्त उस गढ्ढे में था जो वह खोद के बना चुका था..
"अरे कालू टाइम हो गया है"
थोड़ी दूर से एक आदमी चिल्लाया,
"हाँ पता है बस 5 मिनट दे, इसे पूरा कर लू"
चील्लाते हुए वह एक बार फिर काम में लग गया.
जैसे ही उसने दुबारा खोदना स्टार्ट किया, अचानक ही वहां के वातावरण में बदलाव होने लगा,धीरे धीरे हवा के शोर ने वहां कदम रख लिया, एक तरफ कालू मिट्टी हटा के गढ़ा खोदने में लगा हुआ था, दूसरी तरफ हवा आवाज़ करते हुए तेज चलने लगी.
"अचानक से इतनी हवा"
दूसरा आदमी जंगल से बाहर निकल रहा था, उसे भी उस ठंडी हवा का एहसास होने लगा, उसने अपने शरीर पे हाथ बाँध लिए जिससे वह हवा से बच सके.
ककचह … कककच…. कालू अपने काम में लगा हुआ था, गढ्ढा गहरा होता जा रहा था, हवा भी तेज होती जा रही थी.
"अरे. का…लू.. चल आजा"
उस दूसरे आदमी ने कपकपाते स्वर में कहा, उसे अपने बदन पे वह ठंडी हवा अब चुभने लगी थी, उसका शरीर कांप रहा था, उसने अपनी नज़रे आसमान की तरफ की, तो उसने पाया की धीरे धीरे ढलता सूरज नीले बादलों में खोता जा रहा था, नीले घने बदल आगे की तरफ बढ़ने लगे.
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