RE: Mastaram Stories पिशाच की वापसी
पिशाच की वापसी – 3
“हाँ बस हो गया, आया"
बोलने के लिए कालू रुका और फिर उसने हाथ उप्पर उठाकर ज़मीन पे दे मारा, लेकिन इस बार मिट्टी की आवाज़ नहीं किसी और चीज़ की आवाज़ आई, कालू कुछ सेकेंड ऐसे ही खड़ा कुछ सोचता रहा, उसने एक बार फिर हाथ उठाया और उस जगह पे दुबारा मारा तो फिर वही आवाज़ आई, आवाज़ से उसके चेहरे पे थोड़ी शिकन आ गयी, वह झुका और हाथ से मिट्टी को हटाने लगा, जैसे जैसे उसने मिट्टी हटानी शुरू की वैसे वैसे उसकी आँखों के सामने उस कुछ चमकता हुआ नज़र आने लगा…
इधर वह आदमी आसमान में देख रहा था, जहाँ अभी साफ मौसम था अब वहां घने नीले बादलों ने उस जगह पे क़ब्ज़ा कर लिया था, हवा भी जोरों से चल रही थी, ये सब देख के उस आदमी की शकल पे थोड़ी सी घबराहट उभर आई थी.
इधर कालू ने मिट्टी हटा दी और उसके सामने एक चमकदार चीज़ आ गयी जिसे देख के,कालू के चेहरे पे बड़ी सी मुस्कान आ गयी, फिर उसने धीरे धीरे अपने हाथ उस चीज़ की तरफ बड़ा ये, धीरे धीरे वह हाथ उस चीज़ पे पहुंच रहे थे, जा रहे थे और जैसे ही उसने उस चीज़ को छुआ,
कड़दड़… कड़कड़कड़…..कद्द्द्दद्ड…कड़कड़कड़……. वहां ज़ोरदार बिजली कड़कने लगी, बादलों की वजह से जो अंधेरा वहां हुआ था, अब बिजली की वजह से रोशनी हो रही थी, ये दृश्य देख के दूर खड़े आदमी की तो हालत बुरी हो गयी, उसका हलक सुख रहा था, और यही हाल कालू का भी था वह भी एक पल के लिए सहम गया इस अजीब सी बिजली की कड़कने की आवाज़ सुन के.
"अरे चल भी कालू, देख नहीं रहा, लगता है कोई बहुत बड़ा तूफान आने वाला है जल्दी कर मुझे बहुत घबराहट हो रही है"
वह आदमी जैसे तैसे कर के कांपती आवाज़ में चिल्लाया.
"हाँ हाँ बस हो गया"
कालू ने चिल्ला के कहा, और जिस चीज़ पे उसने अपना हाथ रखा हुआ था उस चीज़ को उठा लिया, जैसे ही उसने उसे उठाया, एक ज़ोरदार कड़कड़ाती हुई बिजली चमकी, जिसकी रोशनी में कालू का चेहरा और उसके हाथ में वह चीज़ भी चमक उठी.
दूसरी तरफ वह आदमी जंगल के बाहर खड़ा था, अचानक उस कुछ आभास हुआ,
"एका एक इतनी ठंड कैसे बढ़ गयी"
उसने अपने आप से कहा, और अपने हाथ मसलते हुई सामने देखने लगा और तभी उसकी आँखों के सामने एक बहुत ही अजीब वाक्य दिखाई दिया ….
सामने खड़े ट्रक पे धीरे धीरे बर्फ की कठोर चादर सी बिछने लगी, उसके देखते देखते ट्रक का शीशा बर्फ की कठोर चादर में अकड़ गया, ये देख के उस आदमी की सांस ही अटक गयी एक पल के लिए.शायद ये अभी कुछ नहीं था, तभी उसके कानों में कुछ अजीब सी आवाज़ पडी, वह फौरन पीछे घुमा और फिर जो उसने देखा उसके कदम खुद बीए खुद पीछे हटते चले गये, उसके सामना वाला पेड़ एका एक अजीब सी आवाज़ करते हुई ज़मने लगा, और यही हाल उसके बगल वाले पेड़ों का भी हुआ, बहुत ही अजीब और एक पल के लिए दिल दहला देने वाला दृश्य था उसके लिए, पर शायद अभी इसे भी ज्यादा होना बाकी था.
उधर कालू उस चीज़ पे से अच्छी तरह से मिट्टी हटा चुका था, और उस चीज़ को देख के उसके चेहरे पे एक बड़ी सी मुस्कान आ गयी,
"सोने का लगता है, क्या पता कुछ और भी मिल जाए"
कालू की आँखों में लालच दिखाई दे रहा था.
उसने उस चीज़ को अपने कमर के अंदर अच्छे से फँसा लिया, और फिर मिट्टी हटाने लगा, कुछ ही सेकेंड हुए थे उसे मिट्टी हटाए की उसके चेहरे के भाव बदल गये, उसकी चेहरे की मुस्कान गायब हो गयी, माथे की शिकन बढ़ के गहरी होती चली गयी, और उसकी आँखें बिलकुल बड़ी होकर फटने को हो गयी और तभी बिजली की कड़कड़ने की आवाज़ में कालू की एक भयंकर चीख निकली ……. “आआआआआआआआआआआआ”
ये आवाज़ उस जगह पे एक पल के लिए गूँज उठी,
"ये तो कालू की आवाज़ है"
उस आदमी ने अपने आप से कहा,
"कालू, कालू,"
वह चीलाया, लेकिन फिर कोई आवाज़ नहीं आई,
"ये सब क्या हो रहा है, मुझे लग ही रहा था कोई गड़बड़ है, कालू क्या हुआ"
वह चीलाया पर कोई जवाब नहीं आया, फिर वह खुद ही जंगल के अंदर घुसने लगा.
इधर कालू गढ्ढे में से निकल के, भागने लगा, वह बोलना चाह रहा था पर उसके मुंह से आवाज़ नहीं निकल रही थी, वह भाग रहा था, लेकिन जंगल खत्म नहीं हो रहा था, उधर वह आदमी उसके पास जाने की कोशिश कर रहा था, पर पहुंच ही नहीं पा रहा था, कालू पागलों की तरह भाग रहा था की तभी उसका पैर मुडा और वह नीचे गिर गया, ज़मीन पे गिर कर वह उठा और फिर भागने लगा, भागता रहा, लेकिन उस जंगल के बाहर का रास्ता ना मिला, वह भागता रहा, भागता रहा, अचानक उसका बैलेन्स फिर बिगड़ा और वह सीधे एक गढ्ढे में जा गिरा.
“आह"
उसके मुंह सी हल्की सी चीख निकली, गिरने की वजह से गढ्ढे में धूल फैल गयी, इसलिए कुछ सेकेंड वह कुछ नहीं देख पाया,
इधर वह आदमी अंदर घुसता चला जा रहा था, उसका दिल इस वक्त बुरी तरह से डरा हुआ था, अभी भी उसकी आँखों के सामने एक एक कर सारे पेड़ बर्फ की चादर को ओढे जा रहे थे, बड़ी मुश्किलों से वह आवाज निकाल पा रहा था
"कालू… कहाँ है"
वह कहता हुआ आगे तरफ रहा था.
“आख़िर मुझे रास्ता क्यों नहीं मिल रहा है"?
जब कुछ मिनट तक चलने के बाद भी उस आदमी को रास्ता नहीं मिला तो उसने अपने आप से कहा, वह फिर वहीं एक जगह खड़ा हो गया, और वहीं से वह कालू को आवाजें लगाने लगा.
जबकि, असल में उसके और कालू के बीच सिर्फ़ कुछ ही मीटर की दूरी थी, लेकिन ना दोनों एक दूसरे को देख पा रहे थे ना ही सुन पा रहे थे.
कालू गढ्ढे में गिरा हुआ था, जब वहां की धूल बैठ गयी तो उसने नज़रे उठा के इधर उधर देखा तो उसकी आँखें फट गयी, उसके बगल में उसी का वह समान रखा था, जहाँ वह थोड़ी देर पहले खुदाई कर रहा था, उसने फौरन अपने नीचे देखा जिसे देख के उसकी दिल की धड़कन बंद हो गयी, वह वहीं जम गया, वह कुछ कर पता उससे पहले, वह हवा में उप्पर की तरफ उड़ते हुई गढ्ढे से बाहर निकला और फिर ….
“आआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआ"
एक चीख के साथ कालू जंगलों की गहराइयों में खोता चला गया, और इधर जो गढ्ढा खुदा हुआ था, उसमें अपने आप मिट्टी भरने लगी, इतनी तेजी सी मिट्टी भरने लगी की कुछ ही सेकेंड में वह गढ्ढा भर गया, और बिलकुल पहले जैसी ज़मीन हो गयी.
"ये तो कालू की चिल्लाने की आवाज़ है, हे भगवान क्या हो रहा है ये, कालू, कालू"
वह चिल्लाता हुआ इधर उधर देखने लगा और भागता हुआ जंगल की गहराई में खोता चला गया.
"कालू मिला की नहीं"?
कुर्सी पे बैठे आदमी ने बडे ही चिंता जनक स्वर में कहा
"नहीं साहब, कालू का कुछ नहीं पता वह कहाँ गया, अभी तक कुछ भी नहीं"
उस आदमी ने हल्की आवाज़ में कहा
कोई कुछ कह पाता उससे पहले,
“कडाअक्ककककक”,
एक आवाज़ हॉल में हुई, हॉल में बैठे सभी एक पल के लिए सहम गये, पर
"साहब लकड़ियाँ खत्म हो गयी है, बस इतनी ही मिली"
दरवाजे पे खड़े नौकर ने कहा.
“अच्छा ठीक है, कल याद से ले आना, अभी इसे जला दे"
कुर्सी पे बैठे आदमी ने राहत की सांस लेते हुए कहा.
"जी"
बोलते हुए वह लकड़ियाँ लेकर अपने काम में लग गया.
“वैसे वह आदमी जो कालू के साथ था, वह कहाँ है"?
बात को आगे बढ़ाते हुये उस आदमी ने कहा
"वह यहीं है साहब, ये रहा"
उस आदमी ने एक आदमी की तरफ इशारा किया, जिसने अपने चेहरे को आधा ढका हुआ था.
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