RE: Mastaram Stories पिशाच की वापसी
पिशाच की वापसी – 5
"मुख्तार साहब आप शांत रहिए, देखो तुम सब, कालू कहाँ गया और बाकी सब कहाँ गये उनका पता पुलिस जल्दी ही लगा लेगी, उसकी फिक्र तुम सब मत करो, रही बात किसी भटकती रूह की तो वह सब तुम्हारे मन का वहम है, में भी तो कल तुम्हारे साथ पूरा दिन था, मुझे तो कुछ ऐसा नहीं दिखा.
"क्यों की साहब आप दोनों दिन, जल्दी चले गये थे, और ये हादसे शाम को तकरीबन 5 से 6 के बीच हुए हैं, हमने आपको और बडे मालिक को अपना फैसला सुना दिया है, हम में से कोई भी काम नहीं करेगा"
"क्या करोगे फिर अगर काम नहीं करोगे तो, क्या होगा तुम्हारे बीवी बच्चों का, जानते हो ना की जीतने पैसे तुम्हें यहाँ रोज़ के मिल रहे हैं, उतने तुम 5 दीनों में भी नहीं कमा पाओगे, वैसे भी यहाँ पे उस हादसे के बाद काम मिलने बंद हो गये हैं, जल्दी तुम्हें कोई काम नहीं मिलेगा"
जावेद ने मज़दुरो की कमज़ोरी को पकड़ते हुए उनको एक दूसरा पहलू दिखाया.
जावेद की बात सुन की सभी मज़दुर का जोश एक पल के लिए ठंडा पढ़ गया, हॉल में शांति थी, बस कुछ आवाज़ थी तो उन लकड़ियों के जलने की.
"पर पैसों के लिए हम अपनी जान जोखिम में नहीं डालेंगे साहब"
शांति को तोड़ते हुए रघु ने कहा.
“तुम्हें क्या लगता है, वहां काम करने से तुम्हारी मौत हो जायेगी"
जावेद ने रघु की तरफ बढ़ते हुए कहा
"मौत हो नहीं जाएगी साहब, मौत हो ही गयी थी, ना जाने कैसे बच गया में, वह जगह शापित है साहब, शापित है वह जगह, वहां कोई इंसान कुछ नहीं कर सकता, उसने मुझे कान में कहा था, हाँ कहा था उसने मुझे कान में, इन्हीं कान में"
रघु थोड़ा गुराते हुई बोल रहा था, उसकी साँसें तेज चल रही थी, उसके चेहरे की रंगत काफी बदली हुई नज़र आ रही थी.
"किसने और क्या कहा था तुमसे रघु"
इस बार जावेद ने थोड़ी नर्मी से कहा.
"उस बहती हवा ने मालिक, मौत, मौत, उस बहती हवा में मौत का संदेश था"
रघु ने आवाज़ उठा के कहा, उसकी आवाज़ में एक ऐसी कंपन थी, जिसे सुन के सभी के शरीर में कंपन हो गयी.
"वह सिर्फ़ तुम्हारा वहम है रघु, वहां ऐसा कुछ नहीं है जैसा तुम सोच रहे हो, अगर फिर भी आप सब को ऐसा लगता है की वहां कोई शैतानी रूह है, कोई प्रेत, आत्मा या कोई भी अदृष्य शक्ति है तो ठीक है में वहां जाऊंगा आज रात को"
जावेद ने अपना फैसला सुनाया,
"नहीं…..नहीं मालिक, ये भूल मत करना, उस जगह पे कोई जिंदगी जाती तो अपनी मर्जी से है, पर उसको मौत उसकी मर्जी से मिलती है"
रघु ने बहुत बड़ी बात जावेद के लिए गये फैसले पे कह डाली.
जावेद, रघु की बात सुन के कुछ नहीं बोल पाया, और चलता हुआ हॉल की खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया जहाँ अभी भी हल्की हल्की बारिश हो रही थी पर हवा की वजह से ज़ोर ज़ोर से बाहर बड़े बड़े पेड़ हिल रहे थे, रघु एक पल के लिए जावेद को देखता रहा और फिर वह हॉल से निकल गया, उसके जाते ही उनमें से एक ने कहना शुरू किया.
"देखिए साहब, हम गरीब आदमी है, हमारी जिंदगी और हमारा परिवार ही सब कुछ है, अगर हमें कुछ हो गया तो हमारे परिवार का क्या होगा"
एक आदमी ने हाथ जोड़ के विनती करते हुए कहा
"अरे आप लोगों की चिंता हमें अपने आप से ज्यादा रहती है, में भला आपको कैसे तकलीफ में डाल सकता हूँ, अगर वहां कुछ ऐसी चीज़ है तो जरूर वहां काम नहीं हो सकता, पर अगर वहां ऐसा कुछ नहीं है तो क्या आप सब वहां काम करने के लिए तैयार है"
मुख्तार ने आगे की बात को संभालते हुए, अपनी बात कही.
सब मजदूर एक दूसरे की शकलें देखने लगे,
"लेकिन कैसे पता लगाएँगे"
कुछ मिनट बाद एक ने कहा.
"अभी जावेद ने कहा ना की वह जाएगा आज रात, देखिए आप बेफ़िक्र रहिए, अभी रात बहुत हो गयी है, आप आराम से वापिस जाये, में खुद कल साइट पे आऊंगा और पूरा दिन आपके साथ रहूँगा"
मुख्तार ने बात को खत्म करते हुए कहा.
"ठीक है साहब, अगर ऐसा है तो कल हम सब जगह पे आएँगे, पर साहब एक बात कहना चाहूँगा, हादसे तभी होते हैं जब उसके पीछे कोई वजह होती है, शायद वहां कोई वजह छुपी है"
उस आदमी ने अपनी बात कही और फिर सब एक एक कर के निकल गये.
मुख्तार के कानों में कुछ सेकेंड तक, उस आदमी की कही आखिरी लाइन गूँजती रही,
"वजह होगी हुहह"
मुख्तार ने अजीब से स्वर में कहा और जावेद की तरफ देखा जो की अभी भी वैसे ही खड़ा था.
"ये गाँव वाले बड़े चालू होते हैं, ज्यादा पैसे मिल रहे हैं तो सोचा और लूट लें ऐसी झूठी अफवा ये फैला के, तुमने बहुत अच्छा किया जावेद जो मुझे शाम को फोन कर के बता दिया की इन सब ने काम पे आने के लिए मना कर दिया, और ये सब यहाँ आने वाले हैं"
मुख्तार की आवाज़ ने एक अलग रूप ले लिया
"इतनी देर से इन लोगों की बक-बक सुन के में थक गया था, अच्छा हुआ चले गये, तुमने बहुत सही दाव फेंका"
मुख्तार ने कहा और चलते हुए एक अलमारी खोल के उसमें से वाइन निकल के गिलास में डाली और एक ही झटके निकल के गिलास में डाली और एक ही झटके में पी गया.
"आ…. मजा आ गया, इन लोगों को क्या पता, की कितने करोड का प्रोजेक्ट है ये"
बोलते हुए मुख्तार ने जावेद की तरफ देखा, जो अभी भी बाहर देख रहा था,"
"जावेद किस सोच में डूबे हुए हो, चलो यार आओ थोड़ा चखो तो शरीर में गर्मी आयेगी, भूल जाओ इस सब बकवास को"
बोलते हुए उसने गिलास को मुंह से लगाया.
"बकवास नहीं है ये, मुख्तार साहब"
जावेद ने मूड़ के कहा, उसकी आवाज़ सुन के मुख्तार ने गिलास रोक दिया, और मुंह से हटा के नीचे रख दिया.
"क्या कहना चाहते हो तुम"?
जावेद को घूरते हुए मुख्तार ने सवाल किया.
"यही कहना चाहता हूँ, की उन मज़दुरो की बातों में कुछ तो सच्चाई है"
“तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया, तुम भी इन सब बातों में आ गये जावेद, जानते हो क्या कह रहे हो तुम, बहुत, प्रेत, रूह क्या तुम भी इन सब चीज़ों में मानते हो"
मुख्तार थोड़े गुस्से में बोला.
"नहीं, साहब, नहीं में ये नहीं कह रहा की में ये सब मानता हूँ, लेकिन जो मैंने देखा, उस भूलना मुश्किल है और इस बात को भी नकारना मुश्किल है की मजदूर गलत कह रहे हैं".
“कहना क्या चाह रहे हो तुम"?
जावेद की शकल पे शिकन देख के मुख्तार का गुस्सा शांत हो गया
"यही साहब, कालू और बाकी सभी की लाशे मिल चुकी है"
जावेद के इतना कहने पर मुख्तार को एक बड़ा झटका लगा.
"ये क्या कह रहे हो तुम, इन मजदूरों ने कहा था की नहीं मिली है"
मुख्तार एक दम से घबरा गया था, जावेद की ये बात सुन के.
"मुख्तार साहब, उन सब को कुछ नहीं पता है, अगर पता चल जाता तो अभी तक बहुत बड़ा बवाल मचा देते ये लोग क्यों की जिस हालत में मुझे वह लाशें मिली, ना तो मैंने ऐसी लाशें कभी देखी है ना ही सुनी है"
जावेद ने थोड़ी घबराहट के साथ कहा.
"कैसी मिली है तुम्हें वह लाशें"
"आप वीरा को तो जानते ही हैं"
“हाँ, जो इन सब का लीडर है, हाँ वैसे वह नहीं आया आज"
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