RE: Mastaram Stories पिशाच की वापसी
पिशाच की वापसी – 9
"मुझे जल्दी से यहाँ से निकल के जाना होगा, हाँ आह.."
दर्द में करहते हुए जावेद अपने हाथ को दूसरे हाथ से पकड़ा हुआ था, शायद इसे दर्द में कुछ कमी महसूस हो रही थी.
तभी जावेद ने सामने ट्रक खड़ा हुआ देखा वह उसे ट्रक की बढ़ भगा… जल्दी से उसेमें बैठा, पर उसेमें चाबी नहीं थी, उसने अपना एक हाथ स्टेरिंग वील पे मारा, और एक बार फिर उसे हैरानी का सामना करना पड़ा जिसे उसके दिल की धड़कने बढ़ गयी, वील पे हाथ मारते ही ट्रक शोर करते हुई अपने आप स्टार्ट हो गया, कुछ सेकेंड जावेद ऐसे ही सोचता रहा लेकिन फिर गियर डाल के ट्रक को वहां से निकाल ले गया.
"मुझे जल्दी पहुचना होगा, हाँ…"
बोलते हुई जावेद तेजी से ट्रक चला रहा था, रास्ता तेजी से पार हो रहा था, कुछ देर की ड्राइविंग में जावेद ने ट्रक पे ब्रेक लगाया, उसके खिड़की से देखा तो सामने मुख्तार का घर था उसने ट्रक को ऐसे ही खुला छोड, दरवाजा से बाहर निकल गया और जैसे ही उसके कदम ज़मीन पे पड़े और कुछ कदम आगे गये, उसे एक बड़ा हिला देने वाला झटका लगा जिसे उसके मुंह से एक ज़ोर दार चीख निकल गयी
“नहियीईईईईईईईईईईई…….."
जावेद सामने की तरफ देख के चिल्ला पड़ा, क्यों की सामने वही जगह, वही खामोशी और वही अंधेरा जंगल.
"खीखीखीखीखीखीखीखी……….."
तभी जावेद के कानो में एक अजीब सी भारी आवाज़ में किसी की हँसी सुनाई दी, जिसे सुन के उसकी रूह में एक बार फिर कपकपि की लहर दौड़ गयी.
"कौन है, कौन है"?
जावेद इधर उधर अपनी गर्दन को घुमा के चिल्लाता है, लेकिन उसका जवाब देने वाला उसे कोई नहीं दिखा, रात के उसे अंधेरे में जब सर्द हवा के साथ, जिंदगी मौत से टकरा रही हो तब जो चेहरा किसी इंसान का होता है इस वक्त उसे इंसान यानि की जावेद का था, साँसें उखड़ी जा रही थी, हाथ और चेहरा इतना ठंडा हो गया था की वह नीला पढ़ चुका था, जावेद हैरान परेशान वहां खड़ा कुछ सोचने में लगा हुआ था, लेकिन ऐसे वक्त में दिमाग साथ छोड देता है, सुनाई देता है तो सिर्फ़ वह डर जो अपनी तरफ खीचे इंसान को और खिंचता है, शायद इस वक्त भी डर ही जीत गया था.
"खीखीखीखीखीखीखी"
हवा की लहर के साथ एक अजीब सी भारी और बेहद धीमी आवाज़ जावेद को सुनाई दी.
"कौन है, कौन है वहां, सामने आ, आ सामने"
इस बार जावेद अपने डर को काबू करते हुए ज़ोर से चीलाया और उसके पैर खुद ब खुद जंगल की तरफ चल पड़े, उसे गीली मिट्टी पे चल रहे जूतों की आवाज़ भी इस वक्त डर की लहर शरीर में छोड रही थी
"कौन है वहां, सामने आ जा, जो भी हो"
बोलते हुए जावेद जंगल के अंदर घुस गया, पर फिर चलते चलते रुक गया, सामने कुछ नहीं था, ना कोई रोशनी, ना कोई इंसान और ना ही कोई आवाज़, जावेद सोच ही रहा था की क्या किया जाए तभी एक हाथ पीछे से आकर सीधे उसके कंधे पे पड़ा.
“आअहह…"
सहमते हुए जावेद दो कदम आगे चला गया और पीछे घूम गया, जावेद को इस वक्त अंधेरे में एक साया खड़ा हुआ दिखाई दिया, जिसे देख के जावेद का हलक सुख गया
“क..क..कौन हो तुम, देखो चले जाओ नहीं तो, नहीं तो में"
बोलते हुई जावेद ज़मीन पे कुछ ढूंढ़ने लगा, कुछ मारने के लिए हथियार, लेकिन तभी
“साहब में हूँ"
जैसे ही ये आवाज़ जावेद के कानों में पडी, उसने चैन की सांस ली और सामने देखने लगा, तभी सामने से वह साया चलता हुआ जावेद के करीब पहुंचा.
"तू यहाँ क्या कर रहा है रघु"?
जावेद ने अपना चेहरा साफ करते हुए कहा.
"साहब, जब अपने कहा था की आप यहाँ आओगे तब से आपकी चिंता हो रही थी, इसलिए में यहाँ आपको देखने आया"
रघु ने चिंता जताते हुए कहा.
"हम्म, पर तू कब आया, और तुझे कैसे पता चला की में यहाँ हूँ"?
जावेद ने थोड़ी आशंका जताते हुए कहा
“साहब में तो बहुत देर से आया हुआ हूँ, आपको ढूंढ़ते हुये जंगल के आखिरी कोने तक पहुंच भी गया था, फिर जब आप नहीं मिले तो वापिस आते हुए आपके चिल्लाने की आवाज़ सुनी, एक पल के लिए में डर गया था की कहीं आपके साथ कोई अनहोनी तो नहीं होगयी, लेकिन जब आपको देखा तब राहत मिली"
रघु ने अपनी बात से जावेद की शंका को दूर करना चाहा.
"हम्म… रघु तुमने सही कहा था, यहाँ कुछ है, जिसे में महसूस कर सकता हूँ, सुन सकता हूँ पर देख नहीं सकता, जब से यहाँ आया हूँ अजीब अजीब अनहोनी हो रही है, सच यहाँ कुछ अजीब है, कुछ ऐसा है जिसे इंसानियत का अंत नज़र आता है"
जावेद एक ही सांस में बोलता चला गया.
"मैंने तो आपको पहले ही कहा था साहब, यहाँ कोई बुरी शक्ति है, कोई बहुत बुरी जो नहीं चाहती की हम यहाँ काम करे, लेकिन अपने मेरी नहीं सुनी, यहाँ आकर ठीक नहीं किया साहब सच यहाँ से निकलना बहुत मुश्किल है"
बहुत धीमी आवाज़ में रघु ने कहा.
"लेकिन जब तुम्हें पता है, तो तुम यहाँ क्यों आए"?
"क्यों की में उस मौत से लड़ चुका हूँ साहब, मैंने सामना करा है उससे और मुझे कुछ मिला भी है, वहां पे"
रघु ने बोलते हुए जंगल के अंधेरी गहराई में अपनी उंगली से इशारा किया.
जावेद ने उसे तरफ अंधेरे जंगल में देखा और उसके दिमाग में वह सब कुछ आ गया जो उसके साथ थोड़ी देर पहले हुआ, जिसे सोचते ही उसकी रूह सहम गयी, जावेद को ऐसे सोच में पड़ता देख रघु ने सवाल किया.
"क्या हुआ साहब, क्या सोच रहे हैं”?
"बस वही सब सोच रहा हूँ, जो कुछ हुआ मेरे साथ, उसके बाद इस जंगल में जाने का सोच के ही"
जावेद ने अपनी बात यहीं खत्म कर दी.
"लेकिन साहब आप जानते हैं, की अगर यहाँ कुछ है, अगर कोई शैतानी रूह है तो उसके बिना मर्जी के आप यहाँ से नहीं जा सकते"
रघु ने डरे हुए जावेद को अपनी बात से और डरा दिया.
"मुझे मुख्तार साहब को बताना पड़ेगा की यहाँ कुछ है, यहाँ काम नहीं कर सकते, शायद सबकी जान को खतरा भी हो सकता है"
जावेद ने असमंजस में कहा,
“रघु मुझे यहाँ से फौरन निकल के मुख्तार साहब के पास जाना है, किसी भी तरह"
इस बार जावेद थोड़ी ऊंची आवाज़ में बोला
"फोन, साहब, आपके पास फोन तो होगा मिला लीजिए"
रघु ने जावेद का काम आसान कर दिया.
"हाँ राइट, फोन ये तो मेरे दिमाग में ही नहीं आया, बहुत बढ़िया रघु"
बोलते हुए जावेद अपनी जेब में फोन ढूंढ़ने लगा, उसके हाथ कांप रहे थे, डर चीज़ ही ऐसी है, हर छोटे काम को मुश्किल बना देती है, अक्खिर उसने अपनी जेब से फोन निकाला पर.....????
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