XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
03-20-2021, 11:45 AM,
RE: XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
तभी दरवाजा खुला।। परंतु कोई दिखा नहीं । फिर दरवाजा बंद हो गया।

जथूरा महान है।” वहां पर पोतेबाबा की मध्यम-सी आवाज गूंजी।

स्पष्ट था कि पोतेबाबा ने भीतर प्रवेश करके, दरवाजा बंद कर दिया था।

इसके साथ ही मध्यम-सी कदमों की आहट, कलशों की तरफ बढ़ने लगी।

कलशों के पास पहुंचकर आहट थमी फिर चांदी के कलश से एक गोली उठकर हवा में तैरती महसूस हुई। अगले ही पल वो गोली हवा में लुप्त हो गई, जो कि पोतेबाबा के मुंह में चली गई थीं। | उसके बाद मध्यम-सी आहट गूंजी जो कि कुर्सियों की तरफ बढ़ रही थी। फिर एक कुर्सी पीछे को खींची गई और कुर्सी पर पड़े दबाव से लगा जैसे कोई उस पर बैठा हो।

वक्त बीतने लगा। दौड़ते पल मिनटों में बदलने लगे।

मात्र पांच मिनट ही बीतें होंगे कि पोतेबाबा की मध्यम-सी कराह वहां गूंजी।।

“आह। कितना तकलीफदेह है अदृश्य होना और फिर अपने असली रूप में लौटना। कितना दर्द होता है।”

एकाएक कुर्सी पर हल्का-सा खाका उभरने लगा। खाका उभरता और गायब हो जाता।। साथ ही पातेबाबा की कराहें सुनाई दे रही थीं।

कभी पोतेबाबा का दाढ़ी से भरे चेहरे का खाका उभरता तो कभी सिर का, कभी पेट, बांह या टांग का।

खाका उभरता और लुप्त हो जाता। पोतेबाबा की मध्यम-सी कराह रह-रहकर उठ रही थी।

‘जथूरा महान है। उस जैसा दूसरा कोई नहीं।' कराहों के बीच, बड़बड़ाहट यूँजी पोतेबाबा की।

तभी पोतेबाबा की बांई टांग एकाएक स्पष्ट हो उठी।

टांग पर न तो कोई कपड़ा था और न ही पांवों में कुछ पहना था।
फिर दूसरी टांग स्पष्ट नजर आने लगी।

उसी पल पोतेबाबा के होंठों से तीव्र कराह पूंजी और चेहरा स्पष्ट दिखाई देने लगा। सिर भी। आंखें बंद थीं। सिर के बाल चांदी की तरह सफेद और काले, मिक्स थे। जो कि पीछे की तरफ थे। गर्दन तक पहुंच रहे थे। माथे पर चंदन का तिलक लगा था। चेहरे पर सफेद दाढ़ी थी। थोड़ी लम्बी दाढ़ीं, जो छातीं तक आ रहीं थी।

पोतेबाबा के होंठ खुले और तीखी चीख निकली। लगा जैसे कुछ छटपटाया हो। | फिर उसका गला, छाती और कमर का हिस्सा स्पष्ट हो उठा। बांहें भी नजर आने लगीं।

पोतेबाबा अब सशरीर सामने मौजूद था।

आंखें बंद थीं उसकी। वो गहरी-गहरी सांसें ले रहा था। गले में मालाएं पड़ी दिखाई दे रही थीं। वो कमर में धोती पहने था। कई पलों तक पोतेबाबा बंद आंखों की मुद्रा में ही रहा। |

‘कितना कष्ट से भरा है अदृश्य होना और फिर वापस शरीर के साथ दिखाई देना।' वो बड़बड़ाया।

अगले ही पल जथूरा ने आंखें खोलीं। उसकी आं में किसी महात्मा जैसी चमक थी। चंद पल वो सामने देखता रहा फिर उसने अपने हाथों-पैरों पर निगाह मारी और कुर्सी से उठकर, दोनों हाथ छत की तरफ करके मुस्कराया और मधुर स्वर में कह उठा। \

“जथूरा महान है। उस जैसा दूसरा कोई नहीं।” फिर उसने बांहें नीचे कीं और दरवाजे की तरफ बढ़ गया। दरवाजा खोला। बाहर निकला। आगे राहदारी में बढ़ गया। होंठों पर बराबर मुस्कान ठहरी हुई थी।

तभी सामने से लाल वर्दी में महल का कर्मचारी आता दिखाई दिया।

“ओह, पोतेबाबा।” पोतेबाबा को देखकर वो ठिठका–“आप कब आए?

पोतेबाबा रुका नहीं । पास से निकलता कह उठा।

“जथूरा महान हैं।”

“ओह।” कर्मचारी एकाएक इस तरह संभला जैसे भूली बात याद आ गई हो। वो फौरन कह उठा–“जथूरा महान है।

” | पोतेबाबा आगे बढ़ता हुआ राहदारी मैं मुड़ा तो सामने से आते

दो कर्मचारी उसे देखकर ठिठके।

जथूरा महान है।” वो दोनों एकाएक कह उठे।

उस जैसा, दूसरा कोई नहीं ।” बिना रुके कहता पोतेबाबा आगे बढ़ता चला गया।

इसी तरह कुछ रास्तों को पार करके पोतेबाबा स्नानघर में पहुंचा।

जो कि बंद दीवारों के बीच खुले में था। तालाब जैसी बहुत बड़ी जगह बनी हुई थी। जिसके भीतर तीन-चार फुट पानी था, जिसमें वे केवड़े की महक उठाकर, वहां के वातावरण को मदहोश बनाए हुए थी।

। कमर में कपड़ा बांधे वहां एक सेवक टहल रहा था जो कि पोतेबाबा के देखते ही संभला।

“जथुरा महान है।” वो कह उठा।

उस जैसा दूसरा कोई नहीं।” पोतेबाबा ने मुस्कान भरे स्वर में कहा।

आप कब आए?” उसने आदर भरे स्वर में पूछा।

सीधा यहीं आ रहा हूं गुलाम अली। मुझे स्नान की जरूरत है।” पोतेबाबा ने कहा-“मेरी पीठ को अच्छी तरह रगड़ना।”

जो हुक्म।”

पोतेबाबा ने गले में पहन रखी मालाएं उतारकर एक तरफ रखीं, फिर धोती उतारी और केवड़े के खुशबूदार जल में प्रवेश करता चला गया।

पानी में पहुंचकर डुबकी लगाई। फिर गुलाम अली से कहा। “भीतर आ जाओ। मेरी पीठ रगड़ो।”

जी।” गुलाम अली पीठ रगड़ने वाले सामान के साथ फौरन पानी में उतर आया और पीठ रगड़ने लगा।

“यहां कैसा चल रहा है गुलाम अली?”

सब ठीक है। पहले की तरह।”

स्नान के लिए तो यहां अक्सर सारे आते होंगे?” पौतेबाबा ने पूछा।

। “सब नहीं। बाकी दूसरे स्नानघर में जाते हैं। यहां आने की सबको इजाजत नहीं है।”

तो नई खबर क्या है। तुम्हारी तो यहां आने वालों से बातें होती होंगी।”

“नई खबर कुछ भी नहीं है। सब ठीक चल रहा है।” पीठ रगड़ते गुलाम अली ने कहा-“हर कोई इसी बात के कयास लगा रहा है कि आप देवा-मिन्नो को यहां ला पाने में सफल हो पाते हैं। या नहीं।”

पोतेबाबा के होंठों पर मुस्कान थी।

गलती माफ हो तो पूछे कुछ?”

देवा-मिन्नों के बारे में?” सही अंदाजा लगाया आपने ।”

जथूरा महान है। उस जैसा दूसरा कोई नहीं ।” पोतेबाबा श्रद्धा भरे स्वर में कह उठा–“जथूरा का हाथ मेरी पीठ पर है। मैं अपने काम में सफल होकर लौटा हूं।”

“ओह, तो आप देवा-मिन्नो को ले आए?” गुलाम अली खुश हो उठा।

“हो ।”

ये तो बहुत खुशी की बात है, अब...।”

सब ठीक हो जाएगा।” पोतेबाबा कह उठा।

अवश्य ठीक होगा। जथूरा के आप जैसे सेवक हैं तो उसकी महानता में और भी बढ़ोत्तरी होगी।”
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